वेब सीरीज को सर्टिफिकेशन से कोई खतरा नहीं – माही गिल

पंजाबी फिल्मों से अभिनय के क्षेत्र में कदम रखने वाली अभिनेत्री माही गिल ने हमेशा अपनी शर्तों पर काम किया और अपनी एक अलग जगह बनाई है. माही को बचपन से अभिनय का शौक था, जिसमें साथ दिया उनके पेरेंट्स ने. माही को हिंदी फिल्मों में परिचय करवाया निर्देशक अनुराग कश्यप ने फिल्म ‘डेव डी’ से, जो आधुनिक देवदास की कहानी थी, जिसमें माही ने पारो की भूमिका निभाई थी. इसके बाद उन्होंने कई फिल्में की और अब वेब सीरीज में भी अच्छा काम कर रही है. अभी हॉट स्टार स्पेशल्स पर माही की वेब सीरीज 1962, द वार इन द हिल्स’ रिलीज पर है, जिसमें उन्होंने एक फौजी की पत्नी की भूमिका निभाई है. उनसे बात करना रोचक था. पेश है कुछ अंश.

सवाल-इस वेब सीरीज में एक फौजी की पत्नी की भूमिका निभाना कितना चुनौतीपूर्ण रहा ?

इसमें सबसे बड़ी चुनौती इसके इमोशन थे. इसके अलावा मेरे ग्रेंड पेरेंट्स आर्मी में थे, इसलिए मैंने आर्मी के लोगों की रहन-सहन को नजदीक से देखा है. इतना ही नहीं मैं खुद भी आर्मी में सेलेक्ट हो गयी थी, किसी कारणवश नहीं जा पायी. मैं इस माहौल से जुडी रहने की वजह से मेरा अनुभव इस फील्ड में है, लेकिन मेरी भूमिका बहुत भावनात्मक है. मेरा इस फिल्म को करने का एक ही मकसद रहा है. इसमें मैं आर्मी की महिलाओं के जीवन के बारें में सबको बताना चाहती थी. सबको ये जानना भी बहुत जरुरी है. जब उनके पति सीमा पर जाते है, तो घरवालों पर क्या गुजरती है. 

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सवाल-इसमें आपको तैयारियां कितनी करनी पड़ी?

जब कोई अच्छी स्क्रिप्ट मेरे पास आती है, तो उसे करने में भी बहुत अच्छा लगता है. उसकी तैयारी मैं जल्दी ही कर लेती हूं. मैंने देखा है, जब आर्मी के लोग जंग के लिए सीमा पर जाकर खुद को बलिदान कर देते है. वही घर पर रहने वाली महिलाएं भी चुपचाप खुद को उसी त्याग से जोड़ लेती है, क्योंकि महिलाएं अगर मजबूत नहीं हुई, तो आगे की जेनरेशन मजबूत नहीं हो पाएगा. देखा जाय तो ये महिलाएं भी बिना यूनिफार्म के सोल्जर्स है. आर्मी, नेवी, या एयरफोर्स आदि में काम करने वाला व्यक्ति जब घर से बाहर निकलता है, तो उसके घर लौटने की कोई गारंटी नहीं होती. इसके अलावा कई ऐसे अवसर होते है, जब उनका परिवार अकेले ही उस त्यौहार को मनाते है. कई बार बच्चे के जन्म के समय भी उनके पिता पास नहीं होते. 

सवाल-काफी लोग सेना की नौकरी से बहुत प्रेरित होते है, वे देश के लिए अपने बेटों को सेना की नौकरी में जाने देते है, ऐसी प्रथा कुछ घरों में सालों साल चलती है, लेकिन कई यूथ ऐसे भी है जो अपने देश को छोड़ विदेश में जाते है और वापस नहीं आते, क्या आपको आज के अधिक पढ़े-लिखे यूथ में देश-प्रेम की भावना कम दिखाई नहीं पड़ती ?

ये सही है कि अधिक कमाई के लिए पढ़े-लिखे यूथ बाहर जाते है और लौटकर वापस नहीं आते, इसकी वजह वहां उन्हें काम करने के काफी संसाधन उपलब्ध है. वहां जिंदगी इतनी कठिन नहीं, लेकिन इससे मेरा जज्बा कम नहीं होता. मेरे लिए मेरा देश ही सबसे प्यारा है.

सवाल-क्या अभिनय के क्षेत्र में आना एक इत्तफाक था या बचपन से सोचा था? 

मैंने अभिनय के बारें में कभी सोचा नहीं था. मैं अपनी पढाई कर रही थी और मेरा पैशन आर्मी था. मैंने जिंदगी में कभी सोचा नहीं था कि मैं मुंबई रहूंगी और फिल्मों में काम करुँगी. मुझे नयी जिंदगी मिली, मैंने पंजाब में थिएटर ज्वाइन किया और कई पंजाबी फिल्में की. इससे मेरा कैरियर अभिनय में शुरू हो गया था. इसके अलावा जब मेरी माँ यंग थी, तो उन्हें फिल्मों में अभिनय के लिए मौका मिला था, लेकिन नाना ने जाने नहीं दिया था, क्योंकि तब फिल्म इंडस्ट्री को ख़राब नजरों से देखा जाता था, अब तो परिवार वाले खुद अपने बच्चे को फिल्म इंडस्ट्री में डालना चाहते है. वही पैशन शायद मेरे अंदर आ गया और मैंने अभिनय को ही अपना प्रोफेशन बना लिया.

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सवाल-किसी भी फिल्म को चुनते समय किस बात का अधिक ध्यान रखती है?

 सबसे पहले स्टोरी आती है, जिसे करने को मेरा मन करें और मुझे संतुष्टि भी मिले. मैं ऐसी चीज नहीं चुनना चाहती, जिसे करने के लिए मेरा मूड नहीं है. इसके अलावा पैसे और समय की बर्बादी हो, वह भी मुझे पसंद नहीं. इसके साथ-साथ मेरे साथ काम करने वाले लोग, बैनर, फिल्म का समय पर रिलीज होना आदि कई है. 

सवाल-क्या ओटीटी प्लेटफॉर्म पर वेब सीरीज के लिए सर्टिफिकेशन के होने से कोई खतरा है?

मेरे हिसाब से वेब सीरीज को सर्टिफिकेशन देने से कोई खतरा नहीं, क्योंकि इससे पेरेंट्स समझ जायेंगे कि बच्चा क्या देख रहा है, क्योंकि डिजिटल मीडिया पर ऐसे करोड़ों वेबसाईट है, जहाँ आपत्तिजनक चीजे कोई भी देख सकता है. सर्टिफिकेशन से माता-पिता थोड़े निश्चिन्त हो सकेंगे. ये सही है कि निर्देशक और कलाकार जो भी अपने आस-पास देखते है, उसे पर्दे पर लाने की कोशिश करते है और करते भी रहेंगे. सर्टिफिकेशन से लोग समझ जायेंगे कि उन्हें क्या देखना है, क्या नहीं.

सवाल-इतने सालों में इंडस्ट्री में किस तरह के बदलाव आप देखती है?

जब मैंने फिल्म ‘डेव डी’ आज से 10 साल पहले की थी, तो कहानी कहने का नया दौर शुरू हुआ था. स्टोरी टेलिंग में काफी परिवर्तन आज है. बहुत रुचिकर कहानियां अभिनेत्रियों के लिए लिखी जा रही है, जो बीच में कुछ सालों के लिए बंद हो गयी थी. आज के कलाकार उसी फिल्म को करना चाहते है, जिसमें उनकी भूमिका स्ट्रोंग हो और स्टोरी टेलिंग भी मजबूत हो. इसके अलावा पहले एक फिल्म के बनने में 2 से 3 साल लगते थे,अब 2 महीने में फिल्म बन जाती है. इससे पैसे और समय दोनों की बचत होती है. आज लोग पैसे को लेकर समझदार हो चुके है, क्योंकि निर्माता, निर्देशक जल्दी-जल्दी फिल्मों के बनाने से अधिक कलाकारों को काम मिलेगा, जो अच्छी बात है. 

सवाल-क्या महिला दिवस पर आप महिलाओं को कोई सन्देश देना चाहती है?

महिलाओं से मेरा कहना है कि आप सब आत्मनिर्भर बने और अपने हिसाब से जीवन का आनंद उठाएं, क्योंकि पेंडेमिक ने हमें सिखा दिया है कि कम में संतुष्ट होना सीखे. महिलाएं आज कमाल के काम कर रही है. अमेरिका से फ्लाइट को बंगलूरू ले आना आसान काम नहीं था. पुरुषों से मेरा कहना है कि वे भी महिलाओं की इज्जत करना सीखे. 

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