नवजात शिशुओं को कचरे का ढेर क्यों?

कतर, दोहा के हमाद अंतरराष्ट्रिय हवाई अड्डे पर अक्टूबर की शुरुआत में महिला यात्रियों के प्राइवेट पार्ट की आक्रमक तरीके से जांच से ऑस्ट्रेलिया और कतर के बीच तनाव पैदा हो गया है. दरअसल, 2 अक्टूबर को कतर एयरवेज की सिडनी जाने वाली उड़ान को तब रोकना पड़ा जब एक नवजात शिशु एयरपोर्ट पर लावारिस पाया गया. बच्चे की माँ का पता लगाने के लिए एयरपोर्ट अधिकारियों ने कई महिलाओं की जांच की जिनमें 13 ऑस्ट्रेलियाई महिलाएं भी थीं.

ऑस्ट्रेलिया की सेवन नेटवर्क न्यूज एजेंसी के अनुसार, महिलाओं के रनवे पर मौजूद एक एंबुलेंस में जांच की गई. प्लेन पर सवार एक शख्स ने बताया कि हर उम्र की महिलाओं की जांच की गई. जब महिलाएं वापस आईं, तब वे सब परेशान दिखीं. उनमें से एक युवा महिला रो रही थी और लोगों को यकीन ही नहीं आ रहा था कि उनके साथ ये सब हो रहा है. पूछने पर एक महिला ने बताया कि उन्हें अपने अंडरवियर उतारने को कहा गया या फिर बोला गया कि कमर के नीचे सब कपड़े उतारें ताकि जांच की जा सके कि उन्होंने हाल ही में बच्चा जना है या नहीं.

इस पर ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री मरिसे पायने ने कड़ी आपत्ति जताई है.उन्होंने कतर अधिकारियों के इस रवैये को अनुचित बताते हुए कहा कि ‘यह बहुत, बहुत ही परेशान करने वाली आपत्तीजनक और चिंता पैदा करने वाली घटना है. मैंने अपने जीवन में कभी ऐसा कुछ नहीं सुना है. उन्होंने यह भी कहा कि यह मामला संघीय पुलिस को सौंप दिया गया है. लेकिन इस बारे में जानकारी नहीं दी गई है कि ऑस्ट्रेलिया पुलिस इस मामले में किस तरह कार्यवाई कर सकती है. पुलिस विभाग ने भी फिलहाल इस पर कोई टिप्पणी करने से इंकार कर दिया है.नवजात बच्चे की माँ का अब तक पता नहीं चल पाया है.

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गुजरात के भुज तहसील में ऐसे ही एक शर्मशार कर देने वाली घटना पिछले साल सुनने को मिली थी, जहां कॉलेज के प्रिंसपल ने 68 लड़कियों के कपड़े उतरवा कर इस बात की जांच कराई थी कि वे मासिक धर्म से गुजर रही हैं या नहीं. साथ ही यह आदेश भी जारी किया गया कि पास स्थित मंदिर और रसोई में पीरियड्स से गुजर रही लड़कियां नहीं जा सकतीं हैं और न ही वह अपने साथी छात्रा को छु सकती हैं.पीरियड्स को लेकर हॉस्टल ने नियम बना रखा है. इस नियम के मुताबिक, जिस लड़की को पीरियड्स आते हैं वे हॉस्टल में नहीं रह सकती. उस लड़की के लिए हॉस्टल के बेसमेंट में रहने की जगह बनाई गई है. उनके खाने का बर्तन भी अलग होता है.

इसी तरह की एक और घटना 2017 के अप्रेल महीने में उत्तर प्रदेश के मेरठ में भी हुआ था जहां हॉस्टल की वार्डन ने 70 स्कूल की छात्राओं को क्लास रूम में उनके कपड़े उतरवाए थे, यह देखने के लिए कि किस लड़की की माहवारी आई हुई है. ये सभी छात्राएँ 12 से 14 साल की थीं .

कहीं महिलाओं को उनके पीरियड्स को लेकर उनके आत्मसम्मान को चोट पहुंचाया जाता है, तो कहीं डायन साबित कर उनका सिर मुंडवाकर पूरे गाँव में निवस्त्र घुमाया जाता है. देश में महिलाओं के साथ किस तरह से अत्याचार किया जाता है,देख-सुनकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं.

संविधान से बराबरी का हक पाने के बावजूद आज भी महिलाएं दोयम दर्जे की नागरिक बनी हुई है. आज भी उनके साथ एसिड अटैक से लेकर बलात्कार और बर्बर हत्या तक की घटनाएँ यही साबित करती हैं कि यह स्थिति देहरी से लेकर दफ्तर तक, हर जगह मौजूद है. कतर की यह घटना सच में चिंताजनक है.

महिलाओं के साथ इस तरह की शर्मनाक हरकत अशोभनीय है. लेकिन सवाल यह भी उठता है कि आखिर एयरपोर्ट पर लावारिस बच्चा आया कहाँ से ? कौन छोड़ गया उसे और क्यों ?कौन ऐसी माँ है जो अपने ही जिगर के टुकड़े को एयरपोर्ट पर छोड़ कर भाग गई.

आज कितने ऐसे लोग हैं दुनिया में जो माँ-बाप बनने के लिए तरस रहे हैं, पर उन्हें वह सौभाग्य प्राप्त नहीं हो पा रहा है. लोग बच्चा पाने के लिए जाने क्या-क्या जतन नहीं करते हैं. मगर फिर भी उन्हें औलाद का सुख नसीब नहीं होता. कई लोग अनाथ आश्रम से बच्चा गोद लेकर माँ-बाप बन जाते हैं. लेकिन कई लोगों को जब माँ-बाप बनने का सुख मिलता है तो उन्हें उनकी कद्र ही नहीं होती.

मध्य प्रदेश के एक मंदिर में लावारिस बैग मिलने से हड़कंप मच गया. जब बैग से बच्चे की रोने की आवाज आने लगी तो लोग चौंक गए . बैग खोला तो उसमें एक महीने की बच्ची थी. कोई बच्ची को बैग में डालकर मंदिर परिसर में लावारिस छोड़ गया था. वहाँ खड़े लोगों के मन में एक ही सवाल था कि ये किसकी बच्ची है और इसे मंदिर में क्यों छोड़ दिया ?एक माँ अपने बच्चे को नौ महीनेपेट में रखने के बाद, आखिर क्यों उसे ऐसे मंदिर में छोड़ गई ?

सिर्फ यही दो केस नहीं,बल्कि ऐसे कितने की बच्चों के बारे में देखने सुनने को हमें मिल जाता है जहांमाँ-बाप अपनी अनचाही संतान को कहीं भी मरने के लिए फेंक देते हैं. अवैध रूप से जन्म लिए नवजातों के साथ ऐसी घटनाएँ अक्सर होती है. अवैध संबंध से जन्मे नवजातों के साथ ऐसी घटनाएँ आम हो चली है. युवावस्था में की गई गलतियों की वजह से कई बार युवतियाँ बिनब्याही माँ बन जाती है. फिर लोक-लाज के भय से जन्म लेते ही नवजात को झड़ियों या कूड़े-कचरे में फेंक देते हैं. ऐसे में पुलिस के लिए पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि नवजात किस माता-पिता का है.

पिछले साल ही जब पुलिस रात के समय राउंड पर थी, उन्हें रास्ते में एक प्लास्टिक का बैग दिखा. जब उन्होंने उस बैग से हलचल होते देखा और जब बैग खोल कर देखा तो दंग रह गए ! उस बैग में एक नवजात बच्ची थी जिसकी नाल भी अभी नहीं काटी गई थी. जीवन मृत्यु से जूझ रही वह नवजात बच्ची बिलख रही थी. तुरंत उस बच्ची को अस्पताल पहुंचाया गया.
ऐसी अमानवीय घटना सिर्फ हमारे भारत देश में ही नहीं होती, बल्कि विदेशों में भी ऐसी घटनाएँ घटित होती है.

अमेरिका के जॉर्जिया, अटलांटा से करीब 64 किलोमीटर दूर जंगल में एक नवजात, जिसका जन्म एक घंटे पहले हुआ था, उसे मरने के लिए छोड़ दिया गया. जन्म लेते ही उस बच्ची को थैली में भरकर जंगल में फेंक दिया गया था. लोगों ने तुरंत उस बच्ची को अस्पताल में भर्ती कराया. उस बच्ची को किसने फेंका इस बात की पुलिस तो खोजबीन कर ही रही थी. मगर क्यों फेंका यह समझ नहीं आया?

किबेरा—- मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि केन्या में माएं अपने बच्चों को कोको कोला पिलाकर मार रही हैं.अपने अनचाहे बच्चे से छुटकारा पाने के लिए अफ्रीकी देश की माएं ऐसा कदम उठा रही है. केन्या में गर्भपात कानूनी रूप से अवैध है. जब तक किसी महिला की जान को खतरा नहीं होता तब तक उसे गर्भपात की अनुमति नहीं दी जाती. नवजात शिशु को जीवित रखने के लिए तमाम पोषक तत्व माँ के दूध से मिलते हैं. लेकिन केन्या में उन्हें मारने के लिए कोका कोला, जिंजर बियर और अन्य नुकसानदायक पेय पदार्थ पिलाने के बाद कूड़े के ढेर में मरने के लिए फेंक दिया जाता है. डेलीमेल की एक रिपोर्ट के अनुसार, यहाँ नवजात बच्चे को मरने के लिए झोपड़ी में छोड़ दिया जाता है.तो कोई अवैध तरीके से गर्भपात का रास्ता चुनतीं हैं, लेकिन इस तरह से उनमें जान का भी खतरा बना रहता है. आंकड़ें यह बताते हैं कि अवैध तरीके से गर्भपात मातृ स्वास्थय की खराब हालत और शिशु मृत्यु दर का प्रमुख कारण है.

कोरिया में एक नाबालिग लड़की ने बच्चे को जन्म दिया लेकिन लड़की के प्रेमी ने उस बच्चे और अपनी प्रेमिका को अपनाने से इंकार कर दिया. करीब तीन साल से दोनों के बीच प्रेम संबंध था. गर्भवती होते ही लड़के ने लड़की से किनारा कर लिया.

बिहार के चंपारण में एक प्रेमी ने अपनी प्रेमिका को जिंदा जला दिया, क्योंकि वह उसके बच्चे की माँ बनने वाली थी और शादी के लिए दबाव बना रही थी. कहीं लोगों के सामने उस लड़के का भेद न खुल जाए इसलिए उसने अपनी प्रेमिका को जला कर मार डाला.

भोपाल में एक महिला बच्चे को जन्म देते ही उसे मरने के लिए कचरे में फेंक गई. वहाँ से गुजर रहे एक आदमी ने जब रोने की आवाज सुनी और जाकर देखा तो एक नवजात शिशु बिलख रहा था और उसके पूरे शरीर पर चीटियां रेंग रही थी. उसे सांस लेने में भी तकलीफ हो रही थी. जल्दी एंबुलेंस बुलाकर उस बच्चे को अस्पताल में भर्ती करवाया गया जहां उसका इलाज शुरू हुआ. शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. सतीश मरावी का कहना था कि बच्चे की स्थिति गंभीर है. खुले में पड़ा होने से गंदे पानी से संक्रमन हो गया. जिन लोगों ने इस नवजात बच्चे की सूचना पुलिस को दी थी उनका कहना है कि कोई अविवाहित माँ लोक-लाज के डर से शायद नवजात को कचरे में फेंक कर भाग गई होगी.

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ज़्यादातर मामलों में ऐसा ही होता है. प्रेम संबंध में जब प्रेमिका गर्भवती हो जाती है, तब प्रेमी उससे और होने वाले बच्चे को अपनाने के इंकार कर देता है.फिर लोक-लाज के डर सेया परिवार के दबाव में आकरलड़की अपने नवजात बच्चे को कहीं कूड़े, कचरे में फेंक देती है.

विदेशों में इस तरह की घटनाएँ भले ही कम घटित होती हो,पर हमारे देश में ये आम बात है. इस तरह की घटनाएँ आए दिन घटती रहती है, और जिसे रोकने की कोशिशें नाकामयाब है.

देश में हर साल न जाने कितने ही बच्चे इस दुनिया में अनचाहे जन्म ले लेते हैं. बिन ब्याही माँ अक्सर अपने ऐसे बच्चों को लोक-लाज के डर से जन्म देते ही सड़क के किनारे,कूड़े के डब्बे में, झड़ियों या फिर अस्पतालों में छोड़कर चली जाती हैं कई बार तो ऐसे बच्चे मौत के कगार तक पहुँच जाते हैं तो कुछ सही समय पर बचा लिए जाते हैं.एक माँ ने अपने नवजात बच्चे को नाली में बहा दिया. एक लावारिस नवजात बच्चे को कौवे नोच कर खा रहा था. एक नवजात लावारिस बच्ची मंदिर के चौखट पर पाई गई. एक नवजात बच्चा अधजले अवस्था में पाया गया जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई. ऐसे कितने ही किस्से हम रोज सुनते है और फिर भूल जाते हैं.

नवजात शिशुओं को जन्म के बाद सड़क पर छोड़ने की घटनाएँ पिछले कुछ सालों से बढ़ गई हैं. इस बात का खुलासा चाइल्ड लाइन ने की है. आंकड़ों के मुताबिक,लखनऊ शहर में ही 120 नवजात शिशुओं को सड़क पर फेंक दिया गया.

बहुत सी ऐसी लड़कियां हैं जो बलात्कार या परिवार में ही व्यभिचार की शिकार होती हैं. उनके पिता या सौतेले पिता या भाई ही लड़की के साथ बलात्कार करते हैं और वह इतनी डरी हुई होती है कि कुछ बोल नहीं पातीं. अक्सर बलात्कारी वही व्यक्ति होता है जो परिवार को पाल रहा होता है.

रिश्तों को तार-तार करती ऐसी ही एक घटना गुजरात के सूरत में सामने आई, जहां एक लड़की ने अपने ही भाई के बच्चे को जन्म दिया और फिर उसे कूड़े में मरने के लिए फेंक दिया. जब जांच के बाद मामला सामने आया तब पुलिस ने उस भाई के खिलाफ मुकदमा दायर किया . बच्ची को जन्म देने वाली लड़की और उसका भाई दोनों नाबालिक थे.

मध्य पूर्व के अन्य देशों की तरह कतर में भी शादी के बाहर शारीरिक संबंध बनाना अपराध माना जाता है. ऐसे में कई बार महिलाएं अपनी गर्भावस्था को छिपाने की कोशिश करती है और विदेश में जा कर बच्चा पैदा करती हैं या गर्भपात कराती हैं. कई मामलों में माएं अपने नवजात शिशु को लावारिस छोड़ देती हैं.
भारत जैसे देश में भी जहां शादी से पहले सेक्स को अपराध की नजरों से देखा जाता हो, वहाँ बिन ब्याही माँ बनना एक लड़की या उसके परिवार के लिए कितनी बड़ी मुश्किल और शर्मिंदगी की बात है, सोच सकते हैं आप.देश में कितनी ऐसी मौतें असुरक्षित गर्भपात के कारण होता है. जन्म के बाद कितने ऐसे नवजात बच्चे लावारिस सड़क के किनारे या कचरे के ढेर पर अंतिम सांस ले रहा होता है, ताकि एक लड़की और उसका परिवार बदनामी से बच सके.

हमारे समाज में वयस्क होना उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना विवाहित होना. शादी से पहले माँ बनने का कलंक और शर्म कई बार महिलाओं को अपने ही नवजात बच्चे को फेंकने के लिए मजबूर कर देता है. शादी से पहले अगर लड़की पेट से हो जाती है तो किसी तरह परिवार की महिला उस बच्चे को गर्भ में ही मारने की तरकीब आजमाती है या किसी झोला छाप डॉक्टर के पास ले जाकर लड़की का गर्भ गिरवा देती हैं ताकि लड़की और उसका परिवार इस कलंक से बच जाए.और जब ऐसा नहीं हो पाता, जब जन्म के बाद नवजात को कहीं मरने के लिए फेंक दिया जाता है.मतलब किसी न किसी तरह से उस बच्चे से छुटकारा पा लिया जाता है.

•शादी से पहले गर्भवती होने का कलंक, महिलाओं को असुरक्षित गर्भपात की ओर धकेलती है——–
जब एक महिला को कानूनी रूप से गर्भपात करने की अनुमति नहीं मिलती है या उसकी पहुँच प्रशिक्षित डॉक्टर/ नर्स तक नहीं होती है, तो उसे अवैध रूप से गर्भपात को अंजाम देने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जिससे उसके जीवन पर खतरा बढ़ जाता है.आपको यह जानकार हैरानी होगी कि भारत वो देश है जहां असुरक्षित गर्भपात महिलाओं की मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण है. और 80 प्रतिशत भारतीय महिलाओं को यह पता ही नहीं है कि 20 सप्ताह के भीतर गर्भपात करवाना असल में लीगल है यानि कानूनी रूप से मान्य है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक, दुनिया में हर साल 5.6 करोड़ महिलाएं गर्भपात करती हैं, जिनमें से 45 फीसदी गर्भपात असुरक्षित होते हैं.

एक शोध में यह पाया गया है कि कानूनी तौर पर मान्य होने के बावजूद भी अविवाहित भारतीय महिलाएं शर्म की वजह से गर्भपात नहीं करवा पाती हैं. हाल ही में गर्भपात को अपराध के दायरे से पूरी तरह से मुक्त करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई.जिसमें कहा गया कि प्रजनन महिलाओं की पसंद का मामला है इसलिए महिलाओं को प्रजनन और गर्भपात के बारे में फैसला करने का अधिकार होना चाहिए. याचिका में इस बात का भी जिक्र किया गया कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 के तहत वर्तमान गर्भपात कानून में अविवाहित महिलाओं का उललेख कहीं नहीं किया गया है.

भारत में अविवाहित महिला के अबोर्शन के मायने 

एक अविवाहित महिला जिसने 20 साल की उम्र में गर्भपात करवाया, वो इस बात से पर्दा उठा रही हैं कि भारत में शादी से पहले ऑबोर्शन के क्या मायने हैं. इस महिला की बात से तमाम उन महिलाओं की परेशानी समझ सकते हैं जिन्हें गर्भपात की कोई जानकारी नहीं है. निधि नाम की इस लड़की का कहना है कि एक अविवाहित लड़की के गर्भवती होने पर वह यह बात अपने दोस्तों और सहकर्मियों से तो बता सकती है पर अपने परिवार वालों से नहीं. निधि का कहना है कि वह एक रिलेशनशिप में थी. ऑबोर्शन के बारे में सिर्फ इतना ही जानती थी कि ये पाप है और ये नहीं करना चाहिए.’आपको स्कूलों में सो कॉल्ड सेक्स एजुकेशन की क्लास में यही बताया जाता है. यहाँ खासतौर पर लड़कियों को यही यकीन दिलाया जाता है कि किसी भी तरह की सेक्शुअल एक्टिविटी से उन्हें सिर्फ लानतें ही मिलेगी. गर्भपात को हमेशा हत्या के समकक्ष माना गया. असल में आपके शरीर पर आपका अधिकार है, गर्भपात करवाना आपकी अपनी इच्छा है, गर्भपात एक वैध विकल्प है, इस बारे में कभी बात की ही नहीं जाती है.शादी से पहले सेक्स को लेकर लोगों की सोच से हम सभी वाकिफ हैं. लेकिन हकीकत से हम मुंह मोड़ेंगे तो खुद ही धोखा खाएँगे और हकीकत ये है कि आज शादी से पहले सेक्स टैबू नहीं, एक आम बात है. लेकिन हाँ, इस पर बात करना आज भी टैबू है. और समाज के इसी रवैये की वजह से अविवाहित महिलाओं का गर्भवती हो जाना एक शर्म की बात मानी जाती है.

इसी शर्म और लोक-लाज की डर की वजह से ही असुरक्षित गर्भपात के कारण महिलाओं की जान दांव पर लग जाती है. भारत में एक अविवाहित महिला के ऑबोर्शन के मायने सिर्फ मौत को टक्कर देना है.

• यूट्यूब पर देखकर खुद की डिलिवरी करने से गई लड़की की जान

उत्तर प्रदेश के बिलंदपुर इलाके में एक लड़की की मौत की खबर सुनकर जब पुलिस वहाँ पहुंची तो खून से लथपथ उस लड़की की लाश पड़ी थी और उसका बच्चा भी मर गया था. पास में एक मोबाइल फोन पड़ा था जिस पर एक वीडियो चल रहा था. वीडियो बच्चा पैदा करने का था यानि डिलिवरी का था. पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि लड़की यूट्यूब पर वीडियो देखकर खुद डिलिवरी करने की कोशिश कर रही थी.
लड़की ने ऐसा क्यों किया——

दरअसल, लड़की अविवाहित थी.और हमारे यहाँ तो अविवाहित लड़की का प्रेग्नेंट होना बदनामी माना जाता है. पूरा घर बर्बाद तबाह हो जाता है. क्योंकि लड़की से ही माँ-बाप की इज्जत, मान-सम्मान सब जुड़ी होती है. लड़का कुछ भी करे,कहीं भी जाए माँ-बाप की इज्जत नहीं जाती है. दुख तो इस बात की भी है कि लड़की समाज से कम अपने परिवार से ज्यादा डर कर रहती है. इज्जत के नाम पर कब माँ-बाप दरिंदा बनकर उसे सूली पर लटका दें, नहीं पता. खैर,अफसोस तो इस बात की है कि लड़की के प्रेमी ने भी उसका साथ नहीं दिया और इस हालत में उसे छोड़कर भाग गया. प्रेम की निशानी वह बच्चा क्या प्रेमी की ज़िम्मेदारी नहीं थी ? और संरक्षण देने वाला परिवार और समाज की भी क्या कुछ ज़िम्मेदारी नहीं बनती थीउनके प्रति ? पर किसी ने भी उस वक़्त उस लड़की का साथ नहीं दिया.अगर दिया होता, तो शायद आज माँ और बच्चा दोनों जीवित होते.

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कॉन्डम के नाम पर लोग नाक-मुंह सिकोड़ते हैं.नाम लेते भी उन्हें शर्म आती है. महिलाओं को कॉन्डम खरीदने से शर्म महसूस होती है, तो वहीं मर्द की मर्दानगी घट जाती है. लेकिन कभी सोचा है इसका खमयजा सिर्फ और सिर्फ लड़की को ही भुगतना पड़ता है. ना माँ-बाप और न ही स्कूल टीचर बच्चों को सेफ सेक्स के बारे में जानकारी देते हैं. उन्हें लगता है ये गंदी बात है और इससे बच्चे और बिगड़ जाएंगे. लेकिन सेक्स तो फिर भी हो रहा है और आए दिन उसका नतीजा कभी कूड़ों के ढेर पर तो कभी किसी नाले में बहती दिख जाती है. सोचिए न, उस मासूम की इसमें क्या गलती है जिसकी उन्हें इतनी बड़ी सजा मिलती है कि दुनिया में कदम रखते ही उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया जाता है, वह भी सिर्फ लोक-लाज और बदनामी के डर से.

सिंगल मदर—– लोगों के लिए एक बड़ा सवाल बन जाता है.’इस बच्चे का बाप कौन है ? अकेले क्यों पाल रही हो ? कहीं यह किसी का पाप तो नहीं? डॉक्टरों की कमी थी ? बच्चा गिरवा देती’ जैसे सवाल लड़की का जीना दूभर कर देते हैं. लेकिन उस लड़के को कोई कुछ नहीं कहता जिसका आधा जिम्मेदार वो भी है.उसे कोई दोष नहीं देता जो लड़की को मुसीबत के वक़्त छोड़कर भाग जाता है. क्या इस प्रेग्नेनेसी की जिम्मेदार सिर्फ लड़की है? प्रेग्नेनेसी के लिए दो लोगों की जरूरत होती है, तो मुसीबत एक के ही सिर पर क्यों डाल कर दूसरा भाग खड़ा होता है ? यह कहना गलत नहीं होगा कि हर अनचाही प्रेगेनेंसी इस वजह से होती है क्योंकि पुरुष गैरजिम्मेदार तरीके से ‘इजैक्यूलेट’ करते हैं. अगर कोई महिला अनचाहे गर्भ से बचना चाहती है तो गर्भ निरोधक इस्तेमाल करने की ज़िम्मेदारी सिर्फ उसकी ही क्यों हो ? आधुनिक गर्भ निरोधक सबसे अच्छा आविष्कार है. पर कई औरतों को इसके साइड इफेक्ट होते हैं, लेकिन इसके बावजूद औरतें गर्भ निरोधक के इस्तेमाल के लिए तैयार रहती हैं.

हालांकि, ये इतना आसान नहीं है. गर्भ निरोधक के इस्तेमाल के लिए आपको डॉक्टर की सलाह लेनी पड़ती है. आम तौर पर यह न तो मुफ्त मिलती है और न सस्ती होती है. इसके अलावा गर्भा निरोधक गोलियों का इस्तेमाल रोजाना करना पड़ता है. बिना भूले और बिना गलती किए.संक्षेप में कहें तो औरतों के लिए गर्भ निरोधक का इस्तेमाल मुश्किल है और पुरुषों के लिए कॉन्डम का इस्तेमाल आसान. कॉन्डम किसी भी दुकान में आसानी से मिल जाता है और इसके लिए डॉक्टर की सलाह की भी जरूरत नहीं होती. कॉन्डम के इस्तेमाल से यौन संक्रमन से होने वाली बीमारियों से भी बचा जा सकता है. इसके बावजूद पुरुष कॉन्डम का इस्तेमाल नहीं करना चाहते और औरतों पर भी बिना कॉन्डम के सेक्स का दबाव बनाते हैं. पुरुष महज कुछ सेकेंड के थोड़े से आनंद के लिए औरतों की सेहत, रिश्ते और उनके करियर तक को खतरे में डाल देते हैं.

बच्चे मन के सच्चे…………. सारे जग के आँख के तारे……….लेकिन अफसोस की इन्हीं नन्हें फूलों का दुशमन कोई गैर नहीं, अपने ही होते हैं.एक नवजात बच्चा इसलिए किसी कूड़े-कचरे में फेंक दिया जाता है क्योंकि वह एक लड़की है या फिर किसी के ऐयाशी का नतीजा. लेकिन इस सब में इस बच्चे का क्या कसूर था? उसे भी तो इस दुनिया में आने और जीने का हक था न ? कैसे निर्मम हैं वो कलेजा जो नवजात को कूड़े के ढेर में मरने के लिए छोड़ देते हैं.आज समाज में खुलापन तो बढ़ा है हम अपने आप को आधुनिक कहलाने में भी गर्वान्वित महसूस कर रहे हैं. लेकिन लोक-लाज के डर से या बच्चे की क्या जरूरत है ज़िंदगी में, इस सोच के साथ बच्चे को माँ के गर्भ में या फिर जन्म लेते ही मार दिया जाता है.जरा भी दर्द नहीं होता ऐसा करने में. यह भी नहीं सोचते कि जिस नवजात को अपनी माँ की गोद चाहिए उसे कुत्ते और कौवे नोच-नोच कर खा रहे होंगे.

दिशा चाल्डलाइन के सेक्रेटरी अबुल कलाम आजाद अपने यहाँ यतीम बच्चों को आश्रय देते हैं.कई माता-पिता जब अपने नवजात बच्चों को लावारिस छोड़ जाते हैं, तब ये उनका सहारा बनते हैं. कोरोना काल में कई नवजात लावारिस पाए गए, जिन्हें जनता कर्फ़्यू यानि 22 मार्च को शेल्टर होम पहुंचाया गया. इन बच्चोंके माता-पिता कौन है, कोई नहीं जानता.इनमें से कोई सड़क पर मिला तो कोई चुपचाप इन्हें पालना घर के बाहर छोड़ गया था.शहरों में कई ऐसे आश्रम और पालना घर है जहां इन लावारिस बच्चों की ज़िम्मेदारी ली जाती है. कहने का मतलब यह है कि अगर बच्चा नहीं पाला जाता, तो उसे मरने के लिए कूड़े के ढेर में न फेंके. उसे ऐसे जगह छोड़ आए जहां उसकी जान बच सके. जीवन किसी का भी अमूल्य है.
साल 2015 की Pew रिसर्च सेंटर एनालिसिस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के ज़्यादातर देश, आंकड़ों के हिसाब से कहें तो 96% किसी महिला की ज़िंदगी को बचाने के लिए एबोर्शन की अनुमति देता है. इस रिपोर्ट के मुताबिक चिली, बता दें कि इस फैसले से पहले पोलेंड में भ्रूण में किसी भी तरह की समस्या आने पर कानूनी तौर पर महिलाएं गर्भपात करा सकती थीं. लेकिन नए कानून के अनुसार, गर्भपात पर अब पूरी तरह से बैन लगा दिया गया है. देश में गभपात से जुड़े कानून पहले से ही पूरे यूरोप में सबसे सख्त थे. लेकिन इस फैसले के बाद अब सिर्फ बलात्कार, अनाचार या माँ की सेहत से जुड़े खतरे को देखकर ही गर्भपात की अनुमति दी जाएगी.

हर साल 80,000 से 1,20,000 पोलिश महिलाएं दूसरे देशों में जाकर गर्भपात करवाती है. इस फैसले के बाद गर्भपात करवाने के लिए दूसरे देशों में जाने वाली महिलाओं के संख्या बढ़ेगी. हालांकि, दुनिया भर में गर्भपात की दरों पर नजर रखना मुश्किल है क्योंकि कई राष्ट्र गर्भपात की दरों को रिकॉड या रिपोर्ट नहीं करते हैं. यह बात उन देशों के लिए भी विशेष रूप से सच है जहां गर्भपात गैरकानूनी है और इसके किसी भी प्रकार के रिकॉड नहीं रखे जाते. फिर भी जो आंकड़ें मौजूद हैं उनके मुताबिक, भारत सहित कुछ देशों में गर्भपात की दर सबसे कम है.

पूरे एशिया में कतर के अलावा सिर्फ भारत ही है, जहां एबोर्शन रेट बहुत कम है. हालांकि, इसके पीछे कई वजहें हैं, इसमें रूढ़िवादी, जानकारी की कमी और धार्मिकता जैसी वजहें भी शामिल है. भारत में 15 से 44 साल के बीच की गर्भवती महिलाओं के बीच एबोर्शन रेट प्रति 1000 पर सिर्फ 3.1 है. वहीं कतर में एबोर्शन रेट प्रति 1000 गर्भवती महिलाओं पर सिर्फ 1.2 है.

एबोर्शन न करा सकने के कारण ही एक माँ अपने बच्चे को या तो किसी अनाथ आश्रम के बाहर या सड़क पर मरने के लिए छोड़ देती है. क्योंकि उस प्रेम की निशानी को छोड़कर प्रेमी भी भाग जाता है और संरक्षण देने वाला समाज भी.

•कोरोना के कारण इस साल दुनिया में पाँच करोड़ अनचाहा गर्भ 

कोरोना महामारी के कारण इस साल के अंत तक दुनियाभर में पाँच करोड़ से ज्यादा अनचाहे गर्भधारण की संभवना है. वहीं 3.3 करोड़ असुरक्षित गर्भपात की भी आशंका है. अमरीकी थिंकटैंक गुट्टमाकर इंस्टीट्यूट के अनुसार, कोरोना प्रतिबंधों के चलते यौन स्वास्थ्य सेवाएँ चरमरा गई है. अनुमान है कि इस साल के अंत तक 5 करोड़ से अधिक महिलाओं तक गर्भनिरोधक नहीं पहुँच पाएंगे. इसके परिणाम स्वरूप उन्हें अनचाहा गर्भधारण करना होगा. गुट्ठमाकर इंस्टीट्यूट के अनुसार, दुनिया के 132 निम्न और माध्यम आय वाले देशों में यौन स्वास्थ्य सेवाओं में 10% की गिरावट हो सकती है, जिनसे 1.5 करोड़ अनचाहे बच्चे पैदा हो सकते हैं. 28 हजार माओं और 1 लाख 70 हजार नवजात शिशुओं की मृत्यु हो सकती है, वहीं 3.3 करोड़ का असुरक्षित गर्भपात होगा.

• अमीर देश भी प्रभावित

अमीर देशों में कोरोना के कारण प्रजनन दर में बढ़ोत्तरी का अनुमान है. इस तरह सिंगापुर में कोरोना से पहले प्रजनन दर 1.14 था जो अब 2.1 हो गई है. इटली के मिलन स्थित कैटोलिका डेल सैक्रो क्यूओर यूनिवर्सिटी की शोधार्थी फ़्रोन्सेस्का लुप्पी ने साल की शुरुआत में एक सर्वे किया था, जिसके अनुसार, स्पेन में 18-34 वर्ष की आयु वर्ग के 29 प्रतिशत कपल और इटली में इसी आयुवर्ग के 37 प्रतिशत कपल जनवरी 2020 में बच्चा पैदा करने की योजना बना रहे थे.

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• गर्भनिरोधक गोलियों में 15, कॉन्डम वितरण में 23 फीसदी कमी

भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं के आंकड़ों के अनुसार दिसंबर से मार्च तक गर्भनिरोधक गोलियों में 15% व कॉन्डम के वितरण में 23% की कमी आई है. यहाँ गाँव-कस्बों, छोटे-छोटे शहरों से लोग परिवार से दूर रहकर नौकरी करते हैं. मार्च में लॉकडाउन के बाद घरों को लौट गए. पार्टनर के साथ अधिक समय बिताने का समय मिला जिससे अनचाहे गर्भ का गर्भपात हो सकते हैं.

• गर्भनिरोधक पर छूट दें

जानकार मानते हैं कि सरकारें गर्भनिरोधक पर सब्सिडी व उनकी पहुँच महिलाओं तक आसान बना दें तो परिवार नियोजन को बल तो मिलेगा ही,नवजात बच्चे कूड़े-कचरे में भी जाने से बचेंगे. और नागरिकों में बेहतर जीवन की नीतियाँ बनाने में सजह होंगी.

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