पसीने और वजन कम आने से परेशान हो गई हूं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मैं 34 वर्षीय घरेलू महिला हूं. मु झे पिछले कई महीनों से पसीना बहुत आ रहा है. बाल भी लगातार  झड़ रहे हैं और वजन भी 9-10 किलोग्राम कम हो गया है. मु झे सम झ में नहीं आ रहा है कि ऐसा क्यों हो रहा है?

जवाब-

आप की समस्या को देख कर लग रहा है कि आप को थायराइड से संबंधित समस्या है. थायराइड एक तितली के आकार की छोटी सी ग्लैंड (ग्रंथि) है जो गरदन के निचले हिस्से में होती है. इस से निकलने वाले हारमोन शरीर की मैटाबौलिक क्रियाओं को नियंत्रित करते हैं. बाल  झड़ना, बिना प्रयास के वजन कम होना, पसीना ज्यादा आना हाइपोथायरोडिज्म के प्रमुख लक्षण हैं. हाइपोथायरोडिज्म में थायराइड ग्रंथि जितना शरीर की सामान्य गतिविधियों के लिए हारमोनों का स्राव जरूरी है उस से अधिक मात्रा में स्राव करती है. इसीलिए ये लक्षण दिखाई देते हैं. आप थायराइड फंक्शनिंग टैस्ट कराएं.

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कुछ बीमारियां ऐसी होती हैं जो महिलाओं पर अधिक हावी होती हैं. ‘हाइपरथायरायडिज्म और हाइपोथायरायडिज्म’ थायराइड से जुड़ी 2 बीमारियां हैं.

महिलाओं के जीवन में उन का सामना कई मानसिक, शारीरिक और हारमोनल बदलावों से होता है. हालांकि महिला जीवन के विभिन्न चरणों में हारमोनल बदलाव होना लाजिम है. लेकिन यदि ये बदलाव असामान्य हैं तो कई तरह की बीमारियों का कारण बन सकते हैं. यही कारण है कि महिलाएं थायराइड रोग के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं.

प्रिस्टीन केयर की डाक्टर शालू वर्मा ने महिलाओं में बढ़ती थायराइड की समस्याएं और उन से बचाव के तरीकों के बारे में जानकारी दी है-

थायराइड क्या है

थायराइड गरदन के निचले हिस्से में पाई जाने वाली एक तितलीनुमा ग्रंथि है. यह ग्रंथि ट्राईआयोडोथायरोनिन (टी3) और थायरोक्सिन (टी4) नामक 2 मुख्य हारमोन का स्राव करती है. दोनों ही हार्मोन शरीर की कई गतिविधियों को नियंत्रित करने में अपना विशेष योगदान निभाते हैं.

परंतु जब दो में से किसी भी हार्मोन के उत्पादन की मात्रा में कोई बदलाव आता है तो इस से शरीर में विभिन्न समस्याओं की शुरुआत होती है. हाइपोथायरायडिज्म और हाइपोथायरायडिज्म में अंतर जब थायराइड हार्मोन का उत्पादन जरूरत से अधिक होता है तो उस स्थिति को हाइपरथायरायडिज्म कहते हैं, जबकि थायराइड हार्मोन के कम उत्पादन की स्थिति को हाइपोथायरायडिज्म के नाम से जाना जाता है. दोनों ही परिस्थितियां असामान्य हैं और रोगी को उपचार की आवश्यकता होती है.

महिलाओं में थायराइड, इलाज है न

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4 Tips: सही खानपान से कंट्रोल करें Thyroid

मोटापे के कई कारण हो सकते हैं. खानपान की आदतें, जीवनशैली, देर रात तक जागना और कई बार अनुवांशि‍क कारणों के चलते मोटापे की शि‍कायत हो जाती है. लेकिन कुछ ऐसे कारण भी होते हैं जिन पर हमारा ध्यान ही नहीं जाता और ये समस्या भयानक रूप ले लेती है.

थायरॉइड एक ऐसी ही बीमारी है जिसमें वजन तेजी से बढ़ने लगता है और अगर समय रहते इसे कंट्रोल न किया जाए तो यह शुगर जैसी कई बीमारियों की वजह भी बन सकता है. इस बीमारी को थोड़ी सी सजगता और खानपान की सही आदतों को अपनाकर ठीक किया जा सकता है.

1. आयोडीन युक्त भोजन

रोगी को उन पदार्थों का सेवन करना चाहिए जिसमें आयोडीन की भरपूर मात्रा हो क्‍योंकि इसकी मात्रा थायरॉइड फंक्शन को प्रभावित करती है. सी फूड खासकर मछलियों में आयोडीन की मात्रा भरपूर होती है इसलिए इन्हें डाइट में शामिल करना न भूलें.

2. कॉपर और आयरन युक्त भोजन

कॉपर और आयरन युक्‍त आहार लें क्योंकि यह भी थायरॉइड फंक्‍शन को प्रभावित करते हैं. कॉपर की सबसे ज्‍यादा मात्रा काजू, बादाम और सूरजमुखी के बीज में होती है और हरे पत्‍तेदार सब्जियों में आयरन भरपूर मात्रा में होता है.

3. विटामिन और मिनरल्स

विटामिन और मिनरल्‍स युक्‍त चीजों को डाइट का हिस्सा बनाएं. यह थायरॉइड की अनियमितता में फायदेमंद होता है. पनीर, हरी मिर्च, टमाटर, प्‍याज, लहसुन, मशरूम में पर्याप्त मात्रा में विटामिन और लवण पाए जाते हैं.

4. कम वसा युक्त भोजन

कम वसा युक्‍त आहार का सेवन करें. इसके साथ ही गाय का दूध भी थायरॉइड के रोगी के लिए फायदेमंद होता है. खाना बनाने के लिए नारियल तेल का इस्तेमाल करना भी फायदेमंद रहेगा.

थायरॉइड के रोगी क्या न खाएं?

1. सोया और उससे बनीं चीजों के सेवन से बचें.

2. जंक और फास्ट फूड का सेवन कम से कम करें.

3. ब्रोकली, गोभी जैसे सब्जियों के सेवन से बचें.

थायरॉइड के मरीजों को उचित आहार के साथ ही नियमित रूप से योग और व्यायाम भी करना चाहिए. थायरॉइड की समस्‍या होने पर रोगी को चिकित्‍सक की सलाह अवश्य लेनी चाहिए और उसी के अनुसार जीवशैली अपनानी चाहिए.

समझें थायराइड के संकेत

था यराइड ग्रंथि शरीर की एक छोटी सी, लेकिन महत्त्वपूर्ण ग्रंथि है. इस के द्वारा स्रावित हारमोन शरीर की कई प्रमुख गतिविधियों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. जब इस ग्रंथि द्वारा स्रावित हारमोन असंतुलित हो जाते हैं तो उस का प्रभाव पूरे शरीर पर पड़ता है. जब ऐसा होता है तो शरीर कुछ संकेत देता है, लेकिन अकसर लोग इन्हें नजरअंदाज कर देते हैं क्योंकि इस तरह के संकेत कई और स्वास्थ्य समस्याओं में भी दिखाई देते हैं.

खानपान की गलत आदतों और खराब जीवनशैली के कारण युवा महिलाएं भी बड़ी तेजी से थायराइड से संबंधित गड़बडि़यों की शिकार हो रही हैं. थायराइड ग्रंथि से संबंधित समस्याएं महिलाओं और पुरुषों दोनों को हो सकती हैं. लेकिन इस के 60-70% मामले महिलाओं में ही सामने आते हैं. मीनोपौज की स्थिति में पहुंची महिलाओं में थायराइड की गड़बड़ी से ग्रस्त होने का खतरा युवा महिलाओं की तुलना में दोगुना हो जाता है.

थायराइड ग्रंथि

थायराइड एक तितली के आकार की छोटी सी ग्लैंड है जो गरदन के निचले हिस्से में पाई जाती है. इस का वजन तो औसतन 30 ग्राम होता है, लेकिन इस के कार्य बहुत महत्त्वपूर्ण हैं. थायराइड ग्रंथि को मस्तिष्क में स्थित पिट्युटरी ग्रंथि नियंत्रित करती है. यह थौरौक्सिन (टी3), ट्राईडोथौयरोनिन (टी4) और टीएसएच हारमोंस का स्राव करती है.

ये हारमोन शरीर की मैटाबोलिक क्रियाओं को नियंत्रित करते हैं. इसलिए इसे ‘मैटाबौलिज्म मैनेजर’ की संज्ञा दी जाती है. मैटाबौलिज्म की दर को स्थिर बनाए रखने के लिए इन हारमोंस का उचित मात्रा में स्रावित होना आवश्यक है. शरीर में इन हारमोंस के स्तर के कारण मैटाबौलिज्म की ‘दर तेज’ या ‘धीमी’ हो सकती है.

थायराइड ग्रंथि से संबंधित समस्याएं

थायराइड ग्रंथि से स्रावित हारमोंस में असंतुलन आने पर 2 तरह की समस्याएं हो जाती हैं:

हाइपरथायरोइडिज्म

हाइपरथायरोइडिज्म यानी थायराइड ग्रंथि की कार्यप्रणाली कम हो जाना. इस में थायराइड ग्रंथि इतनी सक्रिय नहीं रहती कि वह शरीर की आवश्यकता जितने हारमोंस स्रावित कर पाए. इन हारमोंस के कम स्राव से शरीर की मैटाबौलिक क्रियाएं धीमी पड़ जाती हैं.

लक्षण

– वजन बढ़ना.

– बाल झड़ना.

– नींद ज्यादा, दिनभर सुस्ती महसूस करना.

– ठंड ज्यादा लगना.

– शरीर फूल जाना.

– त्वचा रूखी हो जाना.

– पैरों में सूजन आना.

– मासिकधर्म के दौरान हैवी ब्लीडिंग होना

– कब्ज होना.

आप में ये सब लक्षण दिखें जरूरी नहीं है. इन में से 2-3 या फिर सभी लक्षण भी दिखाई दे सकते हैं.

उपचार

हाइपरथायरोइडिज्म का उपचार केवल दवाइयों से ही संभव है. इस के लिए रोज कृत्रिम थायराइड हारमोन लेना होता है. मुंह से ली जाने वाली यह दवा शरीर में हारमोंस के स्तर को पर्याप्त बनाए रखती है और लक्षणों में भी सुधार आने लगता है.

उपचार न कराने से होने वाली जटिलताएं

अगर हाइपरथायरोइडिज्म का उपचार न कराया जाए तो कोलैस्ट्रौल का स्तर और रक्तदाब बढ़ जाता है, जिस से कार्डियोवैस्क्युलर डिज होने का खतरा बढ़ जाता है. गर्भधारण करने में परेशानी आती है. मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है और अवसाद की चपेट में आने का खतरा बढ़ जाता है.

हाइपरथायरोइडिज्म

हाइपर थायराइडिज्म में थायराइड ग्रंथि बहुत सक्रिय हो जाती है जिस से हारमोंस का स्राव सामान्य से अधिक मात्रा में होने लगता है. ये हारमोंस रक्त में घुल जाते हैं और कोशिकाओं के मैटाबौलिज्म को स्टिम्युलेट करते हैं.

लक्षण

– भूख अधिक लगने के बावजूद वजन कम होना.

– गरमी अधिक लगना और पसीना आना.

– दिल की धड़कनें तेज हो जाना.

– घबराहट होना.

– नींद आने में परेशानी होना.

– लूज मोशन होना.

– गर्भधारण करने में परेशानी होना.

– अगर गर्भधारण कर लिया है तो गर्भपात का खतरा होना.

– आंखों का उभर आना.

उपचार

उपचार इस पर निर्भर करता है कि समस्या कितनी गंभीर है, मरीज का स्वास्थ्य कैसा है और उसे कोई दूसरी बीमारी तो नहीं है. हाइपरथायरोइडिज्म केलिए 3 तरह के उपचार उपलब्ध हैं. रेडियोएक्टिव आयोडीन थेरैपी, ऐंटीथायराइड मैडिकेशंस और सर्जरी.

रेडियोऐक्टिव आयोडीन थेरैपी

रेडियोऐक्टिव आयोडीन थेरैपी में ओवरऐक्टिव थायराइड की कार्यप्रणाली को धीमा करने के लिए रेडियोऐक्टिव आयोडीन दी जाती है. रेडियोऐक्टिव आयोडीन थायराइड ग्रंथि द्वारा अवशोषित हो जाती है, जिस से थायराइड ग्रंथि थोड़ी सिकुड़ जाती है और हारमोंस का स्राव कम मात्रा में करने लगती है.

ऐंटीथायराइड मैडिकेशंस

ये दवाइयां थायराइड ग्रंथि को अधिक मात्रा में हारमोंस के स्राव से रोकती हैं. इस से धीरेधीरे लक्षणों में सुधार आने लगता है.

सर्जरी

सर्जरी के द्वारा थायराइड ग्रंथि को

निकाल दिया जाता है. आमतौर पर हाइपरथायरोइडिज्म के उपचार के लिए डाक्टर सर्जरी नहीं करते हैं. सर्जरी तभी की जाती है जब महिला गर्भवती हो और ऐंटीथायराइड मैडिसिन नहीं ले सकती है या मरीज को कैंसरयुक्त नोड्यूल है.

थायराइड टैस्ट

थायराइड फंक्शनिंग टैस्ट एक ब्लड टैस्ट है. इस के द्वारा यह पता लगाया जाता है कि आप की थायराइड ग्रंथि कितने बेहतर तरीके से काम कर रही है. इस में टी3, टी3आरयू, टी4 और टीएसएच टैस्ट शामिल हैं.

कब शुरू करें: 35 वर्ष के बाद

कितने अंतराल के बाद: साल में 1 बार, मगर कई डाक्टरों के अनुसार प्रतिवर्ष थायराइड की जांच कराना जरूरी नहीं है जब तक कि थायराइड से जुड़े कुछ सामान्य लक्षण दिखाई न दें.

-डा. सुंदरी श्रीकांत

निदेशक, इंटरनल मैडिसिन, क्यूआरजी सुपर

स्पैश्यलिटी हौस्पिटल, फरीदाबाद –

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महिलाएं बन रहीं थायराइड का शिकार

अचानक वजन का बढ़ जाना, बालों का जरूरत से ज्यादा झड़ना इत्यादि लक्षण बतातें हैं कि थायराइड की समस्या बढ़ रही है. वैसे तो बदलती जीवनशैली के चलते दुनिया में लाखों लोग इस समस्या से ग्रसित हैं, मगर यंग लड़कियों से ले कर महिलाएं तक इस का तेजी से शिकार हो रही हैं. एक शोध के अनुसार हर 8 में से 1 महिला इस समस्या से ग्रसित है.

थायराइड ग्लैंड गरदन पर सामने तितली के आकार की ग्रंथि है जो हारमोन बनाती है और ये हारमोन शरीर के भिन्न अंगों के सही काम करने के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं. ये शरीर के मैटाबोलिक रेट के साथसाथ कार्डिएक और पाचन संबंधी काम को सुचारु रखते हैं. मस्तिष्क का विकास, मांसपेशियों पर नियंत्रण और हड्डियों का रखरखाव भी इन्हीं से संभव होता है. थायराइड की गड़बड़ी थायराइड ग्लैंड के काम को प्रभावित करती है. इस से मैटाबोलिज्म के लिए आवश्यक हारमोन बनाने की क्षमता प्रभावित होती है.

महिलाएं ज्यादा प्रभावित क्यों

थायराइड की ज्यादातर गड़बड़ी अपनेआप बेहतर हो जाने वाली प्रक्रिया है यानी एक अच्छी स्थिति है, जिस में मरीज की प्रतिरक्षा प्रणाली हमला करती है और थायराइड ग्रंथि को नष्ट कर देती है. विभिन्न अध्ययनों के मुताबिक औटो इम्यून डिजीज जैसे सीलिएक डिजीज, डायबिटीज मैलिटस टाइप, इनफ्लैमेटरी बोवेल डिजीज, मल्टीपल स्क्लेरोसिस और रह्यूमेटाइड आर्थ्राइटिस महिलाओं में आम हैं.

इन बीमारियों का पता लगाने और इलाज में इसलिए देरी होती है, क्योंकि विभिन्न लक्षणों का पता लगाना मुश्किल होता है. औटोइम्यून बीमारियां आयोडीन की कमी से हो सकती हैं. गर्भावस्था में आयोडीन की कमी ज्यादा होती है. इस की कमी से थायराइड हारमोन के स्तर में कमी हो जाती है, जिस से कई परेशानियां हो जाती हैं.

थायराइड की गड़बड़ी की किस्में

हाइपोथायरोडिज्म, हाइपरथायरोडिज्म, थाइरोइडिटिस, थायराइड कैंसर जैसी आम गड़बडि़यां हैं जो पुरुषों और महिलाओं दोनों को प्रभावित करती हैं. इन में से हाइपोथायरोडिज्म, हाइपरथायरोडिज्म महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले 10 गुना ज्यादा होती हैं.

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हाइपोथायरोडिज्म एक तरह की थायराइड गड़बड़ी है जो तब होती है जब थायराइड ग्रंथि की सक्रियता कम होती है और सामान्य के मुकाबले कम हारमोन बनते हैं. इस से शरीर में हारमोन और मैटाबोलिज्म का संतुलन गड़बड़ा जाता है. महिलाओं में हाइपोथायरोडिज्म के सब से आम कारणों में एक है औटोइम्यून डिजीज जिसे हैशिमोटोज डिजीज कहा जाता है. इस में ऐंटीबौडीज धीरेधीरे थायराइड को लक्ष्य करते हैं और थायराइड हारमोन बनाने की इस की क्षमता को नष्ट कर देते हैं. अनुमान है कि 11 महिलाओं में से 1 अपने जीवन में हाइपोथायराइड से ग्रस्त होती है.

हाइपरथायरोडिज्म एक तरह की थायराइड गड़बड़ी है जो तब होती है जब थायराइड ग्रंथि की सक्रियता बढ़ जाती है और सामान्य के मुकाबले ज्यादा हारमोन बनते हैं. ये हारमोन शरीर के मैटाबोलिज्म को नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. हाइपरथायरोडिज्म में थायराइड ग्रंथि बड़ी हो जाती है. इस से शरीर का मैटाबोलिज्म बढ़ जाता है और अचानक वजन कम हो जाता है, हृदय की धड़कनें तेज या अनियमित हो जाती हैं और चिंता होती है.

शुरुआती लक्षण

थायराइड की गड़बड़ी अकसर शुरू में नहीं पकड़ी जाती है, क्योंकि इस के लक्षण अस्पष्ट होते हैं. इसे बांझपन, लिपिड डिसऔर्डर, ऐनीमिया या डिप्रैशन समझ कर भ्रमित होने की आशंका रहती है. लक्षण देर से सामने आते हैं. तब तक हुए नुकसान की भरपाई न हो पाने की स्थिति बन जाती है.

हाइपोथायरोडिज्म के लक्षणों में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं: थकान, शुष्क त्वचा, मांसपेशियों में ऐंठन, कब्ज, ठंड बरदाश्त न कर पाना, सूजी हुई पलकें, वजन अत्यधिक बढ़ना, मासिक अनियमित होना.

हाइपरथायरोडिज्म के लक्षणों में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं: घबराहट, सोने में परेशानी, वजन कम होना, हथेलियों का गीला रहना, तेज और अनियमित हृदय की धड़कन, भारी आंखें, पलकें झपके बगैर घूरना, नजर में बदलाव, अत्यधिक भूख, पेट की गड़बड़ी, गरमी नहीं झेल पाना.

थायराइड की गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार घटक: थायराइड की बीमारी का पारिवारिक इतिहास, औटोइम्यून स्थिति का साथसाथ मौजूद रहना, गरदन में रैडिएशन का इतिहास, थायराइड की सर्जरी, थायराइड बढ़ जाना.

रोकथाम

थायराइड की गड़बड़ी लाइफस्टाइल से जुड़ी गड़बड़ी नहीं है और पर्याप्त मात्रा में आयोडीन लेने के अलावा किसी और प्रयास की आवश्यकता नहीं होती है. भारत सरकार द्वारा यूनिवर्सल साल्ट आयोडिनेशन को अपनाए जाने से अब आयोडाइज्ड नमक में पर्याप्त आयोडीन उपलब्ध है.

थायराइड की गड़बड़ी का समय पर पता चल जाए और सही उपचार किया जाए तो इस स्थिति की गंभीरता को बढ़ने से रोका जा सकता है. महिलाओं को साल में 1 बार थायराइड ग्रंथि की जांच जरूर करानी चाहिए ताकि बीमारी का जल्दी पता लग सके और समय से इलाज हो सके.

कैसा हो खानपान

थायराइड की समस्या का पता चल जाने पर अपनी डाइट में ये बदलाव जरूर करें:

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जब कम हो थायराइड: कम थायराइड वालों को अपने डाक्टर की सलाह से कम कैलोरी वाला आहार लेना चाहिए. दिन में 3 बार खाती हैं तो अपने खाने को 5-6 मील में बांट दें. खाना स्किप करने की आदत तो बिलकुल छोड़ दें. खाने में साबूत अनाज जैसे ज्वार, बाजरा, दलिया, ओट्स, ब्राउन राइस इत्यादि शामिल करें.

प्रोटीन के लिए दालें, दही, बींस, अंडा इत्यादि खाएं. अलगअलग रंगों के फलों और सब्जियों को प्राथमिकता दें और फलों के जूस का सेवन कम करें. ड्राईफू्रट्स का शौक है तो अखरोट आप के लिए अच्छा रहेगा. इस में ओमेगा 3 ऐसिड पाया जाता है जो रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है. ऐसी चीजों से दूरी बनाएं जिन में फैट ज्यादा होता है जैसे केक, पेस्ट्री, बटर, मेयोनीज, ब्रैड और पास्ता, प्रौसैस्ड फूड भी फैट बढ़ाता है.

जब थायराइड बढ़ा हो: इस स्थिति में शरीर की ऐनर्जी जल्दी खत्म हो जाती है, इसलिए ऐसी चीजों का सेवन करें जिन से ऐनर्जी भी बनी रहे और वजन भी नियंत्रण में रहे. इस के लिए कौर्न सलाद, लो फैट टोफू या पनीर, सागूदाना, आम, लीची और केला इत्यादि अपनी डाइट में शामिल करें. अंडे के सफेद भाग का भी सेवन कर सकती हैं. मांसाहारी हैं तो फिश खाना सही रहेगा. जंक फूड और आयोडिन रिच फूड से दूरी बनाएं. सी फिश इत्यादि न खाएं.

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