जानें क्यों बढ़ रही महिलाओं में थायराइड की प्रौब्लम

थायराइड की परेशानी दुनियाभर में बहुत आम है. पूरी दुनिया में करीब 200 मिलियन लोग इस से प्रभावित हैं. नैशनल सैंटर फौर बायोटैक्नोलौजी इन्फौर्मेशन के अनुसार भारत में करीब 42 मिलियन लोग थायराइड के शिकार हैं. इन में 60% महिलाएं हैं. भारत में प्रत्येक 8 युवा महिलाओं में 1 थायराइड से ग्रस्त है. पुरुषों के मुकाबले महिलाएं थायराइड की ज्यादा शिकार होती हैं.

क्या है थायराइड गड़बड़ी

थायराइड ग्लैंड गरदन पर सामने तितली के आकार की ग्रंथि है जो हारमोन बनाती है और ये हारमोन शरीर के भिन्न अंगों के सही काम करने के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं. ये शरीर के मैटाबोलिक रेट के साथसाथ कार्डिएक और पाचन संबंधी काम को सुचारु रखते हैं. मस्तिष्क का विकास, मांसपेशियों पर नियंत्रण और हड्डियों का रखरखाव भी इन्हीं से संभव होता है. थायराइड की गड़बड़ी थायराइड ग्लैंड के काम को प्रभावित करती है. इस से मैटाबोलिज्म के लिए आवश्यक हारमोन बनाने की क्षमता प्रभावित होती है.

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महिलाएं ज्यादा प्रभावित क्यों

थायराइड की ज्यादातर गड़बड़ी अपनेआप बेहतर हो जाने वाली प्रक्रिया है यानी एक अच्छी स्थिति है, जिस में मरीज की प्रतिरक्षा प्रणाली हमला करती है और थायराइड ग्रंथि को नष्ट कर देती है. विभिन्न अध्ययनों के मुताबिक औटो इम्यून डिजीज जैसे सीलिएक डिजीज, डायबिटीज मैलिटस टाइप, इनफ्लैमेटरी बोवेल डिजीज, मल्टीपल स्क्लेरोसिस और रह्यूमेटाइड आर्थ्राइटिस महिलाओं में आम हैं.

थायराइड की गड़बड़ी की किस्में

हाइपोथायरोडिज्म, हाइपरथायरोडिज्म, थाइरोइडिटिस, थायराइड कैंसर जैसी आम गड़बडि़यां हैं जो पुरुषों और महिलाओं दोनों को प्रभावित करती हैं. इन में से हाइपोथायरोडिज्म, हाइपरथायरोडिज्म महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले 10 गुना ज्यादा होती हैं.

हाइपोथायरोडिज्म एक तरह की थायराइड गड़बड़ी है जो तब होती है जब थायराइड ग्रंथि की सक्रियता कम होती है और सामान्य के मुकाबले कम हारमोन बनते हैं. इस से शरीर में हारमोन और मैटाबोलिज्म का संतुलन गड़बड़ा जाता है. महिलाओं में हाइपोथायरोडिज्म के सब से आम कारणों में एक है औटोइम्यून डिजीज जिसे हैशिमोटोज डिजीज कहा जाता है. इस में ऐंटीबौडीज धीरेधीरे थायराइड को लक्ष्य करते हैं और थायराइड हारमोन बनाने की इस की क्षमता को नष्ट कर देते हैं. अनुमान है कि 11 महिलाओं में से 1 अपने जीवन में हाइपोथायराइड से ग्रस्त होती है.

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हाइपरथायरोडिज्म एक तरह की थायराइड गड़बड़ी है जो तब होती है जब थायराइड ग्रंथि की सक्रियता बढ़ जाती है और सामान्य के मुकाबले ज्यादा हारमोन बनते हैं. ये हारमोन शरीर के मैटाबोलिज्म को नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. हाइपरथायरोडिज्म में थायराइड ग्रंथि बड़ी हो जाती है. इस से शरीर का मैटाबोलिज्म बढ़ जाता है और अचानक वजन कम हो जाता है, हृदय की धड़कनें तेज या अनियमित हो जाती हैं और चिंता होती है.

शुरुआती लक्षण

थायराइड की गड़बड़ी अकसर शुरू में नहीं पकड़ी जाती है, क्योंकि इस के लक्षण अस्पष्ट होते हैं. इसे बांझपन, लिपिड डिसऔर्डर, ऐनीमिया या डिप्रैशन समझ कर भ्रमित होने की आशंका रहती है. लक्षण देर से सामने आते हैं. तब तक हुए नुकसान की भरपाई न हो पाने की स्थिति बन जाती है.

हाइपोथायरोडिज्म के लक्षणों में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं: थकान, शुष्क त्वचा, मांसपेशियों में ऐंठन, कब्ज, ठंड बरदाश्त न कर पाना, सूजी हुई पलकें, वजन अत्यधिक बढ़ना, मासिक अनियमित होना.

हाइपरथायरोडिज्म के लक्षणों में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं: घबराहट, सोने में परेशानी, वजन कम होना, हथेलियों का गीला रहना, तेज और अनियमित हृदय की धड़कन, भारी आंखें, पलकें झपके बगैर घूरना, नजर में बदलाव, अत्यधिक भूख, पेट की गड़बड़ी, गरमी नहीं झेल पाना.

थायराइड की गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार घटक

थायराइड की बीमारी का पारिवारिक इतिहास, औटोइम्यून स्थिति का साथसाथ मौजूद रहना, गरदन में रैडिएशन का इतिहास, थायराइड की सर्जरी, थायराइड बढ़ जाना.

रोकथाम

थायराइड की गड़बड़ी लाइफस्टाइल से जुड़ी गड़बड़ी नहीं है और पर्याप्त मात्रा में आयोडीन लेने के अलावा किसी और प्रयास की आवश्यकता नहीं होती है. थायराइड की गड़बड़ी का समय पर पता चल जाए और सही उपचार किया जाए तो इसे  बढ़ने से रोका जा सकता है. महिलाओं को साल में 1 बार थायराइड ग्रंथि की जांच जरूर करानी चाहिए ताकि बीमारी का जल्दी पता लग सके और समय से इलाज हो सके.

डा. सुनील कुमार मिश्रा

मेदांता हौस्पिटल     

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प्रेग्नेंसी में थायराइड की स्क्रीनिंग है जरुरी

निशा का गर्भ धारण हुए 3 महीने बीत चुके थे, लेकिन उसे हमेशा कमजोरी महसूस होती थी. जब वह डॉक्टर के पास आई, तो डौक्टर ने उसे थायराइड की जांच करने की सलाह दी. इससे पता चला कि उसका टीएसएच का स्तर बहुत बढ़ चुका है, जिससे बच्चे के दिमाग का विकास सही तरह से हुआ है या नहीं समझना मुश्किल था, ऐसे में उसे जन्म दिया जाय या टर्मिनेट किया जाय. इसे लेकर समस्या थी. निशा खुद भी ये समझ नहीं पा रही थी कि वह करें तो क्या करें. असल में हाइपोथायरोडिज्म अधिकतर महिलाओं को होता है, जिसमें थायराइड ग्लैंड उचित मात्रा में हर्मोन नहीं बना पाता. ये एक आम बीमारी है और आजकल भारत में 10 में से 1 के लिए ये रिस्क बना हुआ है. जिसमें प्रेग्नेंट महिला 13 प्रतिशत से 44 प्रतिशत प्रभावित है. थायराइड में डिसऔर्डर माँ और बच्चा दोनों के लिए घातक होती है. समय पर एक साधारण स्क्रीनिंग टेस्ट से इसका इलाज संभव है.

इस क्षेत्र में अधिक जागरूकता को बढ़ाने के लिए इंडियन थायराइड सोसाइटी, एबोट के साथ मिलकर मेक इंडिया थायराइड अवेयर (MITA) कैम्पेन शुरू किया. इस अवसर पर इंडियन थायराइड सोसाइटी के सेक्रेटरी शशांक जोशी का कहना है कि अधिकतर महिलाओं की हाइपोथायराडिज्म होता है,जिसमें थायराड ग्लैंड उचित मात्रा में हर्मोन नहीं बनाता, ऐसे में सही समय में इसका इलाज करना जरुरी है ,क्योंकि इसका सौ प्रतिशत इलाज संभव है. इससे पीड़ित महिलाओं में अनियमित माहवारी और गर्भधारण करने में मुश्किल महसूस होती है. इसलिए गर्भधारण के तुरंत बाद टीएसएच की जांच करवा लेनी चाहिए,क्योंकि इसका प्रारंभिक लक्षण बहुत अधिक दिखाई नहीं पड़ता, इसलिए महिलाएं इसे नजरअंदाज करती है,पर कुछ लक्षण निम्न है,

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  • चेहरे पर सूजन,
  • त्वचा में सिकुडन,
  • ठंड सहन न कर पाना,
  • अचानक तेजी से वजन का बढ़ना,
  • कब्ज की परेशानी,
  • मांस पेशियों में ऐठन आदि है. ऐसा महसूस होते ही तुरंत डॉक्टर से मिलकर थायराइड स्क्रीनिंग अवश्य करवाएं.

थायराइड के सही इलाज न होने से बच्चे में निम्न समस्या दिखाई पड़ सकती है,

  • बच्चे की मस्तिष्क का सही तरह से विकसित न होना,
  • प्रीमेच्योर डिलीवरी होना,
  • मृत शिशु का जन्म होना,
  • बच्चे का वजन कम होना,
  • दिल की धड़कन का तेज होना,
  • उसका आई क्यू लेवल कम होना आदि है. जिसे बाद में ठीक कर पाना आसान नहीं होता.

इस बारें में स्त्री रोग विशेषज्ञ डौ. नंदिता पाल्शेतकर कहती है कि 3 में से एक महिला को ये पता नहीं होता है कि उसे थायराइड है. इसलिए देर से पता चलने के बाद इसका इलाज करना मुश्किल हो जाता है. थायराइड से पीड़ित महिला को केवल पहले ही नहीं डिलीवरी के बाद भी उनमें इसकी समस्या बनी रहती है, जो निम्न है,

  • रोग प्रतिरोधक क्षमता का कम होना,
  • चिडचिडापन का होना,
  • वजन का अधिक बढ़ जाना,
  • अधिक थकान अनुभव करना,
  • केशों का अधिक झड़ना आदि होता है. इसलिए जब भी ऐसी शिकायत हो डौक्टर की तुरंत सलाह लेने की जरुरत होती है.

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इसके आगे एबोट इंडिया की डॉ. श्रीरूपा दास कहती है कि मेक इंडिया थायराइड अवेयर का मिशन अधिक से अधिक डॉक्टर्स को इसकी जानकारी और प्रशिक्षण दिया जाना है. इसमें 8,500 डॉक्टर्स ने अपनी सहमति दी है. इसके लिए मोबाइल वैन और डिजिटल कैम्पेन शुरू किया गया है जो देश के हर बड़े और छोटे शहरों  तक पहुंचकर 10 मिलियन थायराइड के मरीज की पहचान कर उचित इलाज समय रहते करेगी. ये स्क्रीनिंग अधिकतर 25 से 45 साल की महिलाओं के लिए की जायेगी, क्योंकि इस उम्र में महिलाओं को बच्चे का जन्म और उसका पालन-पोषण करना होता है. इसके अलावा यह कैम्पेन एनजीओ के साथ मिलकर गरीब महिलाओं को मुफ्त में थायराइड स्क्रीनिंग की भी सुविधा देंगी.

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