तीमारदारी: राज के साथ क्या हुआ

सरकारी अस्पताल का बरामदा मरीजों से खचाखच भरा हुआ था. छींक आने के साथ गले में दर्द, सर्दी, खांसी, बुखार से सम्बंधित मरीजों की तादाद यहां अचानक ही बढ़ गई थी.

मरीजों को सुबह से ही तमाम सरकारी अस्पताल में लंबीलंबी लाइनों में खड़े देखा जा सकता था क्योंकि इन अस्पतालों में मरीजों को पहले ओपीडी में पर्ची बनवाने के बाद ही डाक्टर के पास जाना होता था. देखने के बाद डाक्टर दवा दे कर घर भेज देते थे.

तब तक कोरोना अपने देश में आया नहीं था. एक सरकारी अस्पताल में ऐसे मरीजों की तादाद ज्यादा ही बढ़ गई.

सरकार ने इन मरीजों को गंभीर बता कर भर्ती करने के लिए कहा तो ऐसे में वहां डाक्टरों की जिम्मेदारी बढ़ गई. स्टाफ की भी जरूरत आ पड़ी.

इन मरीजों को अलग ही वार्ड में रखा गया था. छूत की बीमारी बता कर इन मरीजों को दूर से ही दवा, खाना दिया जाता था. मरीजों के साथ एक तरह से अलग तरह का ही बरताव किया जाता था.

इन मरीजों की देखरेख के लिए सीनियर डाक्टर कमल ने अपने से जूनियर डाक्टर सुनील से कुछ को मैडिकल अटेंडेंट के तौर पर रखने के लिए कहा.डाक्टर सुनील ने किसी नर्स के माध्यम से राज को मैडिकल अटेंडेंट के तौर पर रख लिया.

‘‘बधाई हो राज, तुम नौकरी पर रख लिए गए हो. अपने काम में मन लगाना ताकि किसी को कहने का मौका न मिले. तुम यहां इनसानियत के लिए भी काम कर सकोगे. किसी लाचार के काम आ सकोगे.’’ डाक्टर सुनील ने राज का हौसला बढ़ाते हुए कहा.

“जी डाक्टर साहब,” इतना ही कह सका राज.

जो भी हो, राज  की समझ में तो यही आया कि उसे एक अच्छी नौकरी मिल गई है.अस्पताल में राज को 6 महीने की पहले ट्रेनिंग दी गई. पर उसे इस छूत की बीमारी के बारे में ज्यादा नहीं बताया गया था.

जब डाक्टरों को खुद ही नहीं पता था, तो वे उसे क्या बताते. राज को अस्पताल में सबकुछ करना पड़ता था. मरीजों के टैंपरेचर, ब्लडप्रैशर वगैरह के रिकौर्ड रखने से ले कर उन्हें बिस्तर पर सुलाने तक की जिम्मेदारी उस पर थी. हर बिस्तर तक जा कर उसे मरीजों को दवा देनी पड़ती थी.

वैसे, राज अस्पताल के आसपास ही रहता था और पैदल ही चला आता था. वह एक पिछड़े इलाके से ताल्लुक रखता था और गरीब भी.

यहां  अस्पताल की नर्स से ले कर कंपाउंडर, डाक्टर तक मरीजों को डांटते रहते थे. किसी से मिलने की मनाही थी. एकएक इंजैक्शन लगाने के लिए नर्स फीस लेती थी. डाक्टरों से बात करने में डर लगता था कि कहीं डांटने न लगें.

यहां नर्सों का दबदबा था. राज को पहले ही ताकीद कर दी गई थी कि किसी मरीज से कभी भी चाय मत पीना, वरना निकाला जा सकता है.राज को पलपल यही खयाल रहता था कि कैसे नौकरी महफूज रखी जाए.

एक दिन जब राज अपनी शिफ्ट ड्यूटी पर गया, तो उस से पहले काम कर रहे साथी उमेश ने बताया, ‘‘एक नया मरीज भरती हुआ है. उसे दवा दे देना.’’यह कह कर वह उमेश अपनी ड्यूटी खत्म कर घर चला गया.

 राज ने उस मरीज को गौर से देखा. उस के गले में बेहद दर्द था. उसे छींकें भी बहुत आ रही थीं. बुखार से उस का बदन तप रहा था. पर राज ने डाक्टर को न बुला कर डाक्टर द्वारा दी गई पर्ची के मुताबिक उसे दवा दे दी. पर उस मरीज की तबियत बिगड़ने लगी.

अगले दिन उस मरीज की जांच की गई. डाक्टर कमल राज पर चिल्लाया, ‘‘यह क्या है…? तुम ने तो मरीज का कोई केयर ही नहीं किया है?’’यह सुन कर राज के पैरों तले जमीन खिसक गई. वह बोला, ‘‘सर, मैं ने उसे दवा दी थी.’’

“पर, दवा से कुछ असर नहीं हुआ.” राज ने अपनी बात कही. उस की बात सुन कर डाक्टर कमल उस पर बिगड़ा, ‘‘तुम्हारी समझाने की ड्यूटी नहीं है. तुम्हारी लापरवाही के चलते इस मरीज की हालत बिगड़ी है. कहीं दवा से कोई इंफैक्शन न हो जाए.’’

यह सुन कर राज की बोलती बंद हो गई. डाक्टर द्वारा डांट खा कर राज अपने को अपमानित सा महसूस करने लगा.राज को बड़ी कुंठा होने लगी.अब वह अपनेआप को बड़ा बेबस महसूस कर रहा था.

यही सोच कर राज कुछ दिन की छुट्टी ले कर अपने गांव जाने की योजना बनाने लगा.अगले दिन यही सोच कर राज  सीनियर डाक्टर कमल के पास चला गया, ‘‘सर, मुझे तो अपनेआप पर शर्म आ रही है, इसलिए मैं कुछ दिन की छुट्टी ले कर गांव जाना चाहता हूं.’’

वह सीनियर डाक्टर तुरंत मुड़ा और दूसरे मरीज को आवाज दी. वह मरीज उस के चैंबर में आया. राज वहीं खड़ा उस डाक्टर और मरीज को देखने लगा.

उस मरीज को देखने के बाद सीनियर डाक्टर कमल ने राज से समझाते हुए कहा, ‘‘उस दिन उस मरीज की जान चली जाती, अगर थोड़ी देर और होती.”

“क्या तुम ने खबर देखी है कि सरकार ने इस तरह के मरीजों को कोरोना होने की बात कही है, इसलिए इन्हें भर्ती किया जा रहा है. मरीज भी पहले से ज्यादा हो गए हैं. इन मरीजों को ले कर सरकार बहुत गंभीर है. और तुम ऐसे समय में छुट्टियां मांग रहे हो. ऐसे समय में तो तुम्हें इन मरीजों की तीमारदारी करनी चाहिए. यह भी एक तरह की देशभक्ति है.”

इतना कह कर सीनियर डाक्टर कमल अपने चैंबर से चला गया.यह सुन कर राज को दुख होने लगा. डाक्टर द्वारा समझाए जाने पर उस ने छुट्टी पर न जाने का मन बनाया. उसे अब इस नौकरी का असली माने पता चला था. यही तो उस का असली काम था, जिसे करने से वह चूक रहा था.

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