भारत में टिपिंग सिस्टम 

देश भर के रेस्तरां भी अपनेआप को खास कहते हैं, खाने के बिल के साथ 10′ सॢवस चार्र्ज भी जोड़ते हैं. जीएसटी से पहले यह चार्ज बिना सेल्स टैक्स के होता था पर जीएसटी के बाद उस पर टैक्स भी देना होता है. जीएसटी वाले इसे खाने की कीमत मानते है. सरकार का कंज्यूमर मंत्रालय कहता है कि यह अनावश्यक है क्योंकि सॢवस कैसी भी हो, उस पर चार्ज जबरन वसूलना गलत है.

सरकार ने आदेश दिया है कि रेस्तरां यह चार्ज लगाना बंद  करें पर रेस्तरां मालिकों में से कुछ ठीठ हैं और उन्होंने बाहर ही बोर्ड लगा दिया है कि सॢवस चार्ज तो लगेगा. सॢवस चार्र्ज के बाद टिव न देनी होती तो बात दूसरी होती पर इन रेस्तरांओं में वेटर इस मुद्रा में खड़े हो जाते हैं कि मोटी रकम खर्च कर के जाने वाला काफी कुछ छोड़ जाता है.

असल में टिपिंग  का सिस्टम ही गलत है चाहे यह टैक्सी में हो, जोमाटो या स्वीगी में हो या एयरपोर्ट पर व्हीलचेयर चलाने वाले के हो. अगर एंपलायर नौकरी का वेतन दे रहा हो तो टिपिंग  अपनेआप में गलत ही नहीं जुलह है. यह देनी और लेने वालों दोनों के लिए गलत है. देने वाला अपनेआप को राजा समझने लगता है और लेने वाले को भिखारी. दूसरी तरफ लेने वाला की सैल्फ एस्टीक कम होती है जब वह आशा से अधिक टिप्प पा कर ज्यादा जोर से सलाम मारता है.

टिपिंग  असल में राजाओं रजवाड़ों की छोड़ी गई प्रेक्टिस है. टिप लेने वाला खुशीखुशी जाए घर भावना ही गलत है. उसे तो खुशी इस बात की होनी चाहिए उस ने अच्छी सेवा दी. उस की असली टिप तो ग्राहक की संतुष्टि है. बहुत बार टिप देने के बाद भी लेने वाले के माथे पर बल पड़े रहते हैं और देने वाले को लगता है कि नाहक ही खर्च किया.

जहां सॢवस अच्छी न हो, वहां िटिपिंग  का फर्क नहीं पड़ता. अगर न ही जाए तो भी तो तय हुआ है या जो रेट है वह पैसा तो देना ही होगा ही. रेस्तरां में चम्मच गंदे थे, चाय प्लेट में छलकी थी, खाना देर से आया था, टैक्सी में ड्राइवर किसी से रास्ते भर मोबाइल पर झगड़ता रहा या अपने म्यूजिक का वैल्यूम तेज रखे रखा, टिप न देने से भी जो खीख है वापिस नहीं मिलेगा. यह भी कोई गारंटी नहीं कि सेवा देने वाला अगले ग्राहक को टिप न देने या अच्छी सेवा देगा क्योंकि यह तो उस की आदत बन चुकी है.

जापान में टिपिंग बिलकुल नहीं दी ली जाती. अब अच्छे रेस्तरां होटल ‘नो टिपिंग  प्लीज’ बोर्ड लगाने वाले है. वे नहीं चाहते कि टिप के बंटबारे पर वर्कस में झगड़ा है. मंत्रालय जो वहा वह सही है पर सरकार की सलाह गलत है क्योंकि सरकार तो वैसे ही बिना सेवा दिए मोटी कीमत वसूलने की आदी है और उस के कर्मचारी रिश्वत के तौर पर मोटी टिप जबरन ले लेते हैं.

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