मुझे खाना बनाना नहीं आता, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 25 वर्षीय कामकाजी युवती हूं. 2 महीने बाद मेरी शादी होने वाली है. मुझे खाना बनाना नहीं आता जबकि टीवी धारावाहिकों में मैं ने देखा है कि बहू को खाना बनाना नहीं आने पर ससुराल के लोग न सिर्फ उस का मजाक उड़ाते हैं वरना उसे प्रताडि़त भी करते हैं. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

छोटे परदे पर प्रसारित ज्यादातर धारावाहिकों का वास्तविक जीवन से दूरदूर तक वास्ता नहीं होता. सासबहू टाइप के कुछ धारावाहिक तो इतने कपोलकल्पित होते हैं कि जागरूकता फैलाने के बजाय ये समाज में भ्रम और अंधविश्वास फैलाने का काम करते हैं. शायद ही कोई धारावाहिक हो जिस में सासबहू के रिश्ते को बेहतर तरीके से प्रस्तुत किया गया हो.

वास्तविक दुनिया धारावाहिकों की दुनिया से बिलकुल अलग है. आज की सासें समझदार और आधुनिक खयाल की हैं. उन्हें पता है कि एक कामकाजी बहू को किस तरह गृहस्थ जीवन में ढालना है.

फिर भी आप अपने मंगेतर से बात कर इस बारे में जानकारी दे दें. अभी विवाह में 2 महीने बाकी भी हैं, इसलिए खाना बनाने के लिए सीखना अभी से शुरू कर दें. खाना बनाना भी एक कला है, जिस में निपुण महिला को किसी और पर आश्रित नहीं होना पड़ता, साथ ही उसे पति व बच्चों सहित घर के सभी सदस्यों का भरपूर प्यार भी मिलता है.

मेरी सहेली शिखा की सास बहुत प्रोटैगनिस्ट है. उस ने अपनी बहू को नौकरानी बना रखा है और शिखा का पति अपनी माताजी का आज्ञाकारी बेटा है, जो अपनी मां के अमानवीय व्यवहार पर भी एक शब्द तक नहीं बोलता और न ही अपनी पत्नी के पक्ष में खड़ा दिखता. यदि शिखा शिकायत भी करती है तो वह उसी को 4 बातें सुना देता. हमेशा जवाब होता कि रहना है तो रहो वरना फौरेन चली जाओ. परेशान हो कर शिखा अपने मायके आ गई. लेकिन समाज के लिए फिर भी शिखा ही गलत है. क्यों? क्योंकि गलती हमेशा बहू की ही होती है.

समाज का यह दोहरा चेहरा क्यों

अकसर खबरें मिलती हैं कि बहू अच्छी नहीं थी बेटे ने उस के कहने पर आ कर मां को घर से निकाल दिया. सोचने वाली बात है हर समय बहू ही गलत क्यों?

जब बीवी की बातों में आ कर मां को तंग करना गलत है, तो मां के सम्मान की खातिर उस की गलत बातों पर चुप रहना सही कैसे हो सकता है?

2 शब्द सासों से

मैं भी मां हूं और मैं जानती हूं मां दुनिया का सब से प्यारा लफ्ज है और सब से ही अनोखा बंधन. वह अद्भुत प्यारा सा एहसास जिस में. मां को सब से करीब देखा जाता है, पर इस का मतलब यह तो नहीं कि मां गलत हो ही नहीं सकती. गलत को गलत कहने में कौन सा गुनाह है? वह भी तब जब अकसर बेटे की मां, सास बनने के बाद जानबूझ कर यह गुनाह करती है. कहीं ऐसा तो नहीं कि सास बनने के बाद मांएं बहुत ही निस्स्वार्थ भाव से की गई ममता का मोल चाहती हैं. इनसिक्योर फील करती हैं. कड़वी सचाई तो यह है कि सास बनने के बाद मांएं स्वार्थी हो जाती हैं. अपने बेटे के अलावा उन्हें कुछ नहीं दिखता, बहू तो बिलकुल भी नहीं, बल्कि बहू को तो वे अपनी प्रतिस्पर्धी समझती हैं, दुश्मन मानती हैं जो उन का बेटा छीन रही हैं.

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