शादी का लड्डू: बनी रहे मिठास

शादी की शुरुआत एकदूसरे के प्रति अथाह प्यार व भविष्य का तानाबाना बुनने से होती है. लेकिन जैसेजैसे समय बीतता जाता है, पारिवारिक जिम्मेदारियां प्राथमिकता बनने लगती हैं और प्यार धीरेधीरे अपनी जगह खोने लगता है. इस आपाधापी में पतिपत्नी यह भूल जाते हैं कि अगर आपसी रिश्ते में प्यार की ताजगी बनी रहेगी तो जिम्मेदारियों का निर्वाह भी हंसीखुशी होता रहेगा.

अपनी व्यस्त जिंदगी से कुछ पल सिर्फ एकदूसरे के लिए निकाल कर तो देखें, हर एक लमहा हमेशा के लिए यादगार बन जाएगा.

कुछ बोल प्यार के

रविवार का खुशनुमा दिन. दिल्ली के शालीमार बाग के एक होटल में कारोबारी चोपड़ाजी की शादी की सिल्वर जुबली की पार्टी चल रही थी. अकसर अपने काम में व्यस्त रहने वाले कारोबारी यहां फुरसत में एकदूसरे से गप्पें लड़ा रहे थे. तभी एक कारोबारी अपने परिचित एक कारोबारी से कहता है, ‘‘गुप्ताजी, आप की शादी को भी तो शायद 25 वर्ष होने वाले हैं. आप कब दे रहे हैं अपनी शादी की सिल्वर जुबली की पार्टी?’’

गुप्ताजी अपने दोस्त की बात पर मुसकराते हुए कहते हैं, ‘‘दोस्त, हमारे जीवन में तो ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, जिसे किसी पर्व की तरह मनाया जाए या फिर पार्टी दी जाए. मेरी पत्नी से कभी पूछ कर देखो तो. वह तो जैसे मेरे से उकता चुकी है. वह यही कहती मिलेगी कि मुझे अपनी जिंदगी में बहुत ही नीरस व्यक्ति मिला है, जो अपनी पत्नी को गहनेकपड़े दे कर ही अपना यानी पति का फर्ज पूरा हुआ समझता है.’’ इस बातचीत के दौरान गुप्ता जी यह बताना भूल गए कि आखिर शादी के बाद स्वयं उन्होंने अपनी पत्नी के साथ प्यार भरे मीठे पल बिताने की कितनी कोशिश की. पत्नी को सोनेचांदी के उपहार से ज्यादा पति के साथ बिताए प्यारे पल व प्यार से कहे गए दो शब्द ज्यादा प्रिय होते हैं.

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आपस में प्यार के दो मीठे बोल बोलने के लिए समय का इंतजार करते रहेंगे तो शायद यूं ही सारी उम्र बीत जाए. सुबह औफिस पहुंचने की भागमभाग के बीच कुछ पल निकाल कर पत्नी को आलिंगन करते हुए सिर्फ इतना कहना है कि आज तुम बहुत सुंदर लग रही हो. फिर तो पत्नी के चेहरे पर छाई लाली को आप सारा दिन भुला नहीं पाएंगे.

शाम को चाय की चुसकियां लेते समय पत्नी की प्यार भरी छेड़छाड़ पति की सारे दिन की थकान दूर कर देगी. ये छोटेछोटे पल नीरसता को दूर कर के जिंदगी को खुशनुमा बना देंगे.

मेड फौर ईचअदर

हाल ही में किए गए एक सर्वे के अनुसार अधिकांश विवाहित जोड़े शादी के 2-3 साल बाद ही एकदूसरे से उकताने लगते हैं. कई पति तो ऐसे भी होते हैं कि पत्नी अगर कुछ दिनों के लिए मायके चली जाए तो वे उन दिनों को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाते हैं. ऐसे पतियों को पत्नी की कमी का एहसास तब होता है जब घरेलू कामकाज खुद करने पड़ते हैं.

फिर जिन दिनों को आप स्वतंत्रता के दिन कह रहे हैं, ऐसे आजादी के दिन जब लंबे खिंचने लगते हैं तो पत्नी पर निर्भर ज्यादातर पति मन ही मन यही सोचते हैं कि पत्नी जल्दी से जल्दी घर लौट आए तो अच्छा हो. हां, यह बात अलग है कि 100 में से 1 भी पति यह मानने को तैयार नहीं होता है कि पत्नी के जाने पर उसे किसी प्रकार की कोई दिक्कत पेश आ रही थी.

उम्र के साथ बढ़ता प्यार

‘‘शादी के कुछ वर्ष बीत जाने के बाद पतिपत्नी एकदूसरे से उकताए से दिखते जरूर हैं, पर यह उकताहट मन से नहीं, ऊपरी तौर पर होती है, क्योंकि शादी के कुछ ही वर्षों के बाद पति अपनी पत्नी पर कुछ इस कदर निर्भर हो जाते हैं कि छोटीमोटी बात के लिए भी वे अपनी पत्नी के मुहताज हो जाते हैं और तब उन की ‘मेड फौर ईचअदर’ वाली स्थिति बन जाती है.

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शादी के बाद बढ़ती उम्र में प्यार का प्रभाव जानने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि शादी के बाद समय के साथ शादीशुदा जोड़ों में आपसी प्यार व लगाव कम होता जाता है, वाली बात पूरी तरह से गलत है. सचाई यह है कि शादी के बाद वर्षों तक साथ रहने और एकदूसरे के गुणों को जाननेसमझने के बाद शादी के शुरुआती दौर की तरह ही इस उम्र में भी प्यार फिर से परवान चढ़ता है और पहले के प्यार के दौर के मुकाबले यह कहीं ज्यादा गहरा होता है.

मां-बाप कहें तो भी तब तक शादी नहीं जब तक कमाऊ नहीं

‘‘बहुत हो गई पढ़ाई. जितना चाहा उतना पढ़ने दिया, अब बस यहीं रुक जा. आगे और उड़ने की जरूरत नहीं. बहुत अच्छे घर से रिश्ता आया है. खूब पैसा है, फैमिली बिजनेस है. लड़का कम पढ़ा-लिखा है तो क्या हुआ, दोनों जेबें तो हरदम भरी रहती हैं उसकी।’’ पिता के तेज स्वर से पल भर को कांपी निम्मी ने अपनी हिम्मत जुटाते हुए कहा, ‘‘पर पापा, मैं नौकरी करना चाहती हूं. इतनी पढ़ाई शादी करके घर बैठने के लिए नहीं की है. और नौकरी कोई पैसे कमाने का लक्ष्य रखकर ही नहीं की जाती, अपनी काबीलियत को निखारने और दुनिया को और बेहतर ढंग से जानने-समझने के लिए भी जरूरी है. मैं जब तक कमाने नहीं लगूंगी, शादी करने के बारे में सोचना भी नहीं चाहती. अच्छा होगा आप मुझ पर दबाव न डालें. मैं मां की तरह हर बात के लिए अपने पति पर निर्भर नहीं होना चाहती, फिर चाहे वह कितने ही पैसेवाला क्यों न हो. और एक बात नौकरी करना या खुद कमाना उड़ना नहीं होता, आत्मसम्मान के साथ जीना होता है.’’ निम्मी की बात सुन उसके पापा को आघात लगा, पर वह समझ गए कि निम्मी उनकी जिद के आगे झुकने वाली नहीं, इसलिए शादी के प्रकरण को उन्होंने वहीं रोकने में भलाई समझी. 

 टूटे सपनों से खुशी नहीं मिलती

निम्मी तो अपने सपनों को पूरा कर पाई, पर कितनी लड़कियां हैं जो ऐसा कर पाती हैं? उन्हें मां-बाप की जिद के आगे हार मानकर शादी करनी पड़ती है, जबकि वे खुद कमा कर अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हैं. शादी के बाद अपने टूटे सपनों के साथ जीते हुए वे न खुद खुश रह पाती हैं, न ही पति को खुशी दे पाती हैं. 

कंगना रानौत की एक फिल्म आई थी, ‘सिमरन’ जिसमें वह कहती है, 

‘मुझे लगता है मेरी पीठ से दो छोटे-छोटे तितली के जैसे पंख निकल रहे हैं. हवाएं मुझे रोक नहीं सकती, रास्ते मुझे बांध नहीं सकते, मेरे पीठ पर पंख हैं और मन में हौसला है. मैं कभी भी उड़ सकती हूं.’ यह संवाद पहली बार नौकरी पर जाने वाली लड़कियों की भावनाओं को खूबसूरती से व्यक्त करता है. यूं तो नौकरी मिलना या कोई काम करना किसी को भी आत्मनिर्भर और खुद पर भरोसा करने के एहसास से भरता है, लेकिन जब लड़कियों के कमाने की होती है, तो आज भी उसे अलग ढंग से तो देखा ही जाता है साथ ही माना जाता है कि मानो उसने कोई बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली है या नौकरी करने का मतलब है झंडे गाड़ना. लड़के के लिए कमाना एक स्वीकृत धारणा है, पर लड़की के कमाने की बात हो तो आज इक्कीसवीं सदी में भी सबसे पहले उसके मां-बाप ही रोड़ा बनकर खड़े हो जाते हैं. 

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बोझ से कम नहीं

‘‘पढ़ लिया, बेशक काबिल हो, पर शादी करो और हमें हमारी जिम्मेदारी से मुक्त करो, वरना समाज कहेगा कि देखो मां-बाप ने लड़की को घर में बिठा रखा है या मां-बाप उसकी कमाई खा रहे हैं.’’ यह जुमला बहुत सारे घरों में सुनने को मिलता है. वक्त बेशक बदल गया है पर लड़की अभी भी मां-बाप के लिए उनकी जिम्मेदारी है या बोझ. मजे की बात तो यह है कि लड़कों की परवरिश उन्हें पैसा कमाने लायक बनाने के लिए की जाती है, बेशक वैसे उनमें किसी चीज की तमीज न हो, पर लड़कियों के लिए हर चीज को आना जरूरी है, उसका सुघड़ पत्नी, मां, बहू होना जरूरी है, और अगर पैसा कमाना भी आ गया तो उसे किस्मत वाली बेशक कहा जाएगा पर योग्य नहीं. कई बार तो इसे पिछले जन्म में उसके अच्छे कर्म करने तक से जोड़ दिया जाता है. 

दृढ़ता से अपनी बात रखें

कोई लड़की कमाने की इच्छुक नहीं है, और मां-बाप शादी करवा देते हैं तो बात अलग है, पर अगर वह कमाने के बाद ही फिर जिंदगी के अगले पड़ाव पर कदम रखना चाहती है तो सही यही होगा कि मां-बाप की जिद के आगे न झुकें. पछतावे के साथ पूरी जिंदगी गुजारने से अच्छा है, पहले ही अपनी बात दृढ़ता से उनके सामने रखें और उन्हें समझाएं कि आखिर क्यों आप कमाना चाहती हैं. 

आजकल लड़कियां आत्मनिर्भर तो हुई हैं, लेकिन केवल 48 प्रतिशत महिलाओं की आबादी में एक-तिहाई से भी कम नौकरी कर रही हैं. इसका कारण भी यही है कि लड़कियों को काम करने के लिए बढ़ावा ही नहीं दिया जाता, और लड़कियां भी ये मानकर बैठ जाती हैं कि मेरा पति अच्छा कमाएगा और वही घर चलाएगा. लेकिन क्या वे इस बात की गारंटी ले सकती हैं कि पति की कमाई निरंतर बनी रहेगी. हो सकता है किसी कारणवश उसकी नौकरी छूट जाए या काम ही ठप्प हो जाए, ऐसे में अगर वह नौकरी करती होगी तो गृहस्थी की गाड़ी रुकेगी नहीं. अपने मां-बाप को यह पहलू भी दिखाएं और खुद भी समझें. 

सकारात्मक बदलाव महसूस होता है

शादी बेशक जीवन का जरूरी हिस्सा है, लेकिन शादी से पहले नौकरी करना भी किसी महत्वपूर्ण पड़ाव से कम नहीं. बात केवल पैसा कमाने की ही नहीं है, वरन नौकरी लड़कियों अनगिनत उपहार देती है, उनमें  आत्मविश्वास पैदा करती है, जिंदगी में विकल्पों की उपलब्धता कराती है, एक सकारात्मक बदलाव और खुद व दूसरों की नजरों में अपने लिए सम्मान अर्जित करवाती है. कानपुर से दिल्ली नौकरी करने आई महिमा जिसने मां-बाप के शादी के दबाव से बचने के लिए अपने शहर से दूर आकर काम करने का निश्चय किया, का मानना है कि ‘‘नौकरी से होने वाले बदलाव लड़की के दिमाग में एक तरह की गूंज पैदा करते हैं, जो कहती है कि अब मैं दुनिया का कोई भी काम कर सकती हूं.’’ यह सच है कि कमाने लगने के बाद लड़की हां चाहे रह सकती है, मनचाहे कपड़े पहन सकती है, खुल कर सांस ले सकती है और सबसे बड़ी बात है कि वह तब अपनों के लिए कुछ भी कर सकती है. कमाने के बाद लड़की को दो चीजें मिलती हैं- आजादी और सम्मान. आजादी का अर्थ मनमानी करना नहीं, वरन अपने सम्मान की रक्षा करते हुए अपनी सोच को किसी बंधन में बांधे जीना है, जो हर किसी के लिए जरूरी होता है, फिर चाहे वह लड़की हो या लड़का. 

खुद तय करें

मां-बाप चाहे लाख शोर मचाएं कि शादी कर लो, लेकिन सबसे पहले किसी लड़की के लिए यह तय करना जरूरी है कि वह शादी करना चाहती है कि नहीं, या कब करना चाहती है. मां-बाप को समझाएं कि आप बोझ नहीं हैं और न ही बनना चाहती हैं, इसलिए ही कमाना चाहती हैं. भारतीय समाज में ज्यादातर लड़कियों की परवरिश सिर्फ शादी करने के लिए हिसाब से की जाती है. सामाजिक असुरक्षा या अकेले रह जाने का डर लड़कियों के मन में इतना भर दिया जाता है कि वे शादी के बिना अपनी जिंदगी सोच भी नहीं सकतीं. यह सवाल बार-बार उनके सामने आकर खड़ा होता रहता है कि इससे बचने के लिए आत्मनिर्भर होना जरूरी है. जबरदस्ती शादी करना कभी सही नहीं होता और इससे लड़की का जीवन बहुत प्रभावित होता है. तलाक के बढ़ते मामलों की भी यह बहुत बड़ी वजह है. माता-पिता को इस बात का एहसास कराना जरूरी है कि शादी के लिए कुछ समय रुका जा सकता है, क्योंकि यह एक बहुत ज़रूरी फैसला है. ऐसा इंसान जिसके साथ पूरा जीवन बिताना है, उसके बारे में फैसला लेने में जल्दबाजी क्यों की जाए. उससे पहले खुद अगर आत्मनिर्भर बन लिया जाए तो फैसला सही ढंग से लिया जा सकता है. 

एक पहचान होगी

कट्टर सोच, जिद और समाज क्या कहेगा, इससे परे हटकर, माता पिता को भी समझना चाहिए की उनकी बेटी अगर आगे बढ़ती है तो उसकी खुद की एक पहचान बनेगी. हमेशा वह अपने पिता, भाई या पति के नाम से ही जानी जाए, क्या यह ठीक होगा? एक कैरियर का होना उसे एक अलग पहचान देगा, और लोग उसे उसके खुद के नाम से पहचानेंगे. यह किसी भी मां-बाप के लिए गर्व की बात हो सकती है. 

माता-पिता को यह भी समझना होगा कि अगर उनकी लड़की काम करती है तो वह अपने साथ-साथ अपने जैसी कितने ही लोगों को हौसला देती है, और अपनी खुशी और संतुष्टि पाने का अधिकार उसे भी है. 

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लड़कों की सोच में भी आया है बदलाव

पिछले कुछ समय से लड़कों के भी शादी करने के समीकरण बदल गए हैं. पहले की तरह वह अब केवल सुंदर या घर के काम में दक्ष पत्नी नहीं चाहता. वह नौकरीपेशा लड़की को पसंद कर रहा है जो आर्थिक रूप से उसकी मदद कर सके. जब लड़के बदल रहे हैं तो मां-बाप क्यों न जिद छोड़ दें और अपनी बेटी को कमाने की अनुमति देकर उसके सुनहरे भविष्य की नींव रखने में मदद करें.

शादी करें, न करें, कब करें

युवामन शादी शब्द से मचल उठता है. कहते हैं न, जो शादी करे वह पछताए, जो न करे वह भी पछताए. तकरीबन हरेक सोचता है कि जब पछताना ही है तो क्यों न कर के ही पछताए. ऐसे में कोई शादी करे, तो कब करे, किस उम्र में करे, या कि करे ही न.

शादी करना, न करना, हर किसी का निजी फैसला हो सकता है. भारत में यों तो 18 साल की लड़की और 21 साल के लड़के को कानूनीतौर पर शादी करने का हक है, लेकिन आजकल हर कोई शादी से पहले अपनी जिंदगी को सैटल करना चाहता है. बाल विवाह रोकथाम क़ानून 2006 के तहत, इस से कम उम्र में शादी करना ग़ैरक़ानूनी है, जिस के लिए 2 साल की सज़ा और एक लाख रुपए का जुर्माना हो सकता है. हालांकि, आज की गलाकाट प्रतियोगिता को देखते हुए इस उम्र में शादी करना टेढ़ी खीर दिखता है.

वहीँ, यह बता दें कि सरकार लड़कियों के लिए उम्र की इस सीमा को बढ़ाने पर विचार कर रही है. सांसद जया जेटली की अध्यक्षता में 10 सदस्यों के टास्क फ़ोर्स का गठन किया गया है, जो इस पर अपने सुझाव जल्द ही नीति आयोग को देगी. यह भी जान लें कि दुनिया के ज़्यादातर देशों में लड़के और लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल है.

कैरियर या शादी :

हरेक के सामने शादी करने का सवाल कभी न कभी आता ही है. आजकल की भागती जिंदगी और कैरियर की आपाधापी में यह सवाल और भी अहम हो गया है कि शादी करने की उम्र क्या हो.

शादी करने की सरकारी और कानूनी उम्र के इतर हमारे देश में आमतौर पर 20 से 25 साल की उम्र को शादी करने के लिए सही समझा जाता है. बदलती सोच के मद्देनजर कुछ लोग 25 से 30 साल की उम्र को सही उम्र बताने लगे हैं. वहीँ, 27 साल के बृजेश का कहना है कि अब पैमाना कुछ और हो गया है. वे कहते हैं कि लोग सोचते हैं कि 32 से 35 साल के बीच शादी कर लेंगे. दरअसल, 20 से 30 साल की उम्र में तो इंसान अपने कैरियर को सैट करने में ही लगा रहता है, तब शादी के लिए सोच पाना उस के लिए मुश्किल होता है.

सोचने का तरीका सब का अलग होता है. एक प्राइवेट फर्म में जौब करने वाले सिबेस्टीन का कहना है कि कैरियर की महत्त्वाकांक्षा खत्म नहीं होती. ऐसे में शादी के लिए सही उम्र वही है, जब इंसान मानसिकरूप से उस के लिए तैयार हो. वे कहते हैं, “समाज ने या फिर आप के पेरैंट्स ने शादी के लिए क्या उम्र तय कर रखी है, इस से कोई मतलब नहीं. बात यह है कि जब तक कोई मानसिकरूप से इस के लिए तैयार न हो, शादी नहीं करनी चाहिए.”

अपनी सोच के मुताबिक बिन्देश्वर कुमार, जो एक कालेज में लैक्चरर हैं, ने 34 साल की उम्र में शादी की. अब उन की एक बेटी है और खुशहाल छोटा सा परिवार है लेकिन वे मानते हैं कि देर से शादी करने में कभीकभी वह नहीं मिल पाता जो शायद आप ने सोचा होता है. वे कहते हैं, “कई बार अच्छे विकल्प मिल जाते हैं, तो कई बार ठीकठाक विकल्प भी मिलना मुश्किल हो जाता है. मेरे कई दोस्त हैं, महिला भी और पुरुष भी, जिन्हें अब सही मैच नहीं मिल पा रहा है.

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ज़रूरत नए नज़रिए की :

नई पीढ़ी कुछ भी सोचे, लेकिन भारत इस मामले में थोड़ा अलग है. यहां वक्त से शादी न हो, तो लोग बातें बनाने लग जाते हैं. ऐसे में मातापिता कितनी भी नई सोच के और व्यावहारिक हों, उन्हें आखिरकार रहना तो समाज में ही है. मुंबई में एक मल्टीनैशनल कंपनी में मैनेजर के पद पर काम कर रहे अनीस अहमद कहते हैं, “जब भी औफिस से घर जाते हैं तो लगता है कि कहीं आज फिर शादी को ले कर नई टैंशन न खड़ी हो. इस से घर के सुकून में खलल पड़ता है. साथ ही, मातपिता की सेहत पर असर भी पड़ता है. उन्हें चिंता रहती है कि बच्चों की शादी नहीं हो रही है. गाहेबगाहे उन्हें लोगों की बातें सुनने को मिलती हैं.”  इस तरह शादी लायक उम्र होने के बाद इंसान पर शादी के लिए भावनात्मक रूप से भी काफी दबाव होता है.

औप्शन शादी का : 

देर से शादी करने में आगे कई दिक्कतें आ सकती हैं, खासकर, परिवार बढ़ाने के सिलसिले में कुछ परेशानियां आ सकती हैं. हालांकि, मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि मैडिकल साइंस के विकास के साथ अब ऐसी आशंकाएं बहुत कम हो गई हैं. वैसे, शादी की बहस के बीच आजकल एक और चलन परवान चढ़ रहा है, वह है ‘लिवइन रिलेशनशिप’ का. यानी, शादी से पहले साथसाथ रहना. बृजेश जैसे जवानों का इस चलन में चाहे ज्यादा विश्वास न हो, लेकिन यह उसी माहौल में हो रहा है जिस का वे भी हिस्सा हैं.

बृजेश कहते हैं, “शहरों में ऐसे युवाओं की संख्या बढ़ रही है जिन्हें लिवइन रिलेशनशिप का चलन पसंद आ रहा है. न सिर्फ यह ट्रैंडी है, बल्कि शादी जैसी बाध्यता भी इस में नहीं है. लेकिन, भारतीय समाज में इस की स्वीकार्यता एक बड़ा मुद्दा है.” लिवइन रिलेशन, दरअसल, शादी का एक प्रारूप जैसा है जिस में शादी सा बंधन नहीं बल्कि गठबंधन होता है जिसे कोई पार्टनर जब चाहे तोड़ दे.

एज औफ़ कन्सेंट :

अचानक से किसी के साथ शारीरिक संबंध बन जाने को कैजुअल सैक्स कहा जाता है. ज़ाहिर है इस में दोनों पार्टनरों की सहमति और पसंद होती है. भारत में ‘एज औफ़ कन्सेंट’, यानी यौन संबंध बनाने के लिए सहमति, की उम्र 18 साल है. शादी से पहले यौन संबंध क़ानूनी तो है, लेकिन समाज ने इसे अभी अपनाया नहीं है.

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बहरहाल, शादी की सही उम्र को ले कर जो बात उभर कर सामने आती है, वह यह है कि कैरियर और निजी जिंदगी में एक बैलेंस होना बेहद जरूरी है. हर इंसान अपनी हालत के मुताबिक तय कर सकता है कि उसे शादी करनी है तो करनी कब चाहिए या फिर लिवइन रिलेशन में रहना चाहिए जिस से कोई पार्टनर जब चाहे आज़ाद हो जाए.

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