ट्रैकिंग के शौकीन हैं, तो हिमाचल जरूर जायें

ट्रैवलिंग और ट्रैकिंग के शौकीन लोगों के लिए हिमाचल जाना बेहतरीन ऑप्शन साबित हो सकता है. यहां आप अपने पैशन को पूरा कर सकते हैं. बर्फ से ढ़के ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों पर चढ़ना, वहां से आसपास के नजारों को देखना बहुत ही अच्छा एक्सपीरिएंस होता है. हिमाचल जाकर आप बहुत ही कम समय में बहुत सारी जगहें घूम सकते हैं.

1. पिन पार्वती पास

ऊंचाई- 5319 मीटर

यह एक चैलेजिंग ट्रैक है. इस ट्रैकिंग में ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क के जंगली रास्ते, बिना पुल के नदिओं को पार करना और ग्लेशियर का सामना करना पड़ता है. इस ट्रैकिंग में शामिल जोखिम भी सुकून देने का काम करता है, क्योंकि ट्रैकर को हिमालय के दो पूरी तरह से विभिन्न रूप देखने को मिलते हैं.

रिओ पुरगयिल पर्वत

ऊंचाई- 6816 मीटर

2. ट्रैकिंग टाइम– 6 दिन

यह पर्वत हिमाचल प्रदेश का सबसे ऊंचा पर्वत है. यह पर्वत हिमाचल प्रदेश और तिब्बत की सीमा पर है, जहां जाने के लिए विदेशी पर्यटकों को इनर लाइन परमिट लेनी पड़ती है. इस ट्रैक की शुरुआत किन्नौर जिले के नाको गांव से होती है. यहां से 5500 मीटर तक लगातार चढ़ाई देखने को मिलती है.

किन्नौर कैलाश पर्वत

ऊंचाई- 6349 मीटर

ट्रैकिंग टाइम– 7 दिन

किन्नौर कैलाश हिमाचल के उत्तर पूर्व हिस्से में पड़ता है. इस पर्वत के लिए सबसे सही ट्रैक शिमला से शुरू होती है, जहां से पर्यटक सांगला जा सकते हैं. सांगला से थांगी जाकर ट्रैकिंग की शुरुआत होती है. कुछ दिनों की ट्रेकिंग के बाद छरंग ला पास (5300 मीटर) तक पहुंचने के बाद गहरी घाटियां देखने को मिलती है.

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3. मनी महेश ट्रैक

ऊंचाई– 4,080 मीटर

ट्रैकिंग टाइम– 5 दिन

मनी महेश लेक को डक लेक के नाम से भी जाना जाता है. जो हिमालय के पिर पंजाल रेंज के पास चंबा जिले में स्थित है. मनी महेश, मानसरोवर लेक के भी काफी पास है इसलिए इसकी अपनी एक धार्मिक मान्यता भी है. इसकी ट्रैकिंग के लिए भानलौर-हड़सर मनी महेश रूट को फॉलो किया जाता है जिसके लिए 13 किमी का रास्ता तय करना होता है. वैसे लाहौल और स्पीती रूट को भी इस ट्रैकिंग के लिए फॉलो किया जा सकता है. कांगड़ा और मंडी से आने वाले लोगों के लिए करवारसी पास और जलसू पास रूट ज्यादा सुविधाजनक है.

4. चन्द्रतल ट्रैक

ऊंचाई– 14,1000 फीट

ट्रैकिंग टाइम– 4 दिन

चंद्रतल यानि चांद पर चलना, और सच में यहां ट्रैकिंग करने पर ऐसा ही अहसास होता है. स्पीती वैली के पास स्थित है. बीन्स के आकार का ये लेक 2.8 किलोमीटर में फैला हुआ है. जिसका पानी क्रिस्टल जैसा क्लियर है और इसे ब्लू रंग के कई शेड्स में भी देखा जा सकता है. लेक के आसपास ट्रैकिंग के दौरान कैंप लगाकर यहां के खूबसूरत नजारों का भी आनंद लिया जा सकता है. ट्रैकिंग के लिए मई से अक्टूबर तक का टाइम बेस्ट होता है. कुंजुम पास और बातल पास रूट को ट्रैकिंग के लिए फॉलो किया जाता है.

5. त्रिउंड ग्लेशियर

ऊंचाई– 2827 मीटर

ट्रैकिंग टाइम– 4 दिन

त्रिउंड, भागसू नाग(बाहर से आने वाले टूरिस्ट की फेवरेट जगह) से महज 9 किमी की दूरी पर है. मैकलोड़गंज से यहां पहुंचने में पूरी 4 घंटे का समय लगता है. यहां ट्रैकिंग करते वक्त धौलाधार रेंज और कांगड़ा घाटी के बहुत सारे खूबसूरत नजारे देखने को मिलते हैं. बिना गाइड के भी यहां ट्रैकिंग पॉसिबल है. पहाड़ों पर चलने के दौरान यहां स्नो बर्ड्स और कस्तूरी और काले हिरणों को आसानी से देखा जा सकता है.

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हौसला: बुलंद इरादों वाली ‘ट्रैकिंग गर्ल’ रोशनी चौहान

ये हैं 24 साल की रोशनी चौहान जो उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के छोटे से गांव कविल्ठा कालीमठ घाटी की रहने वाली हैं और देवरियाताल, चोपता तुंगनाथ, मदमहेश्वर, केदारनाथ और कालीमठ कालीशिला की ट्रैकिंग कर चुकी हैं और सैलानियों को भी इन खूबसूरत जगहों के दर्शन करा चुकी हैं.

पर रोशनी चौहान के लिए यह सब करना आसान नहीं था. साल 2013 की जून 16 और 17 तारीख को केदारनाथ इलाके में आई आसमानी आपदा ने वहां का जीवन पूरी तरह से बदल दिया था. तब जान और माल का भारी नुकसान हुआ था. गांव के गांव तबाह हो गए थे. जो लोग बचे थे वे कहीं और बसने के लिए मजबूर हो गए थे.

तब रोशनी चौहान महज 17 साल की थीं और चाहती थीं कि यह पलायन किसी तरह रुक जाए और पहाड़ पर ही लोगों खासकर महिलाओं को स्वरोजगार मिले. पर मन में आई बात को कोई राह नहीं सूझ रही थी. इसी उधेड़बुन में 3 साल बीत गए और रोशनी चौहान ने ठान लिया कि वे ट्रैकिंग का कोर्स सीखेंगी और यहीं पर रोजगार के नए मौके तलाशेंगी.

लिहाजा रोशनी चौहान ने मसूरी के हैनिफल सैंटर से ट्रैकिंग का कोर्स किया, पर काम कैसे मिले यह बड़ी समस्या थी. ऊपर से लड़की. लोगों की सोच थी कि लड़की यह जोखिम भरा काम नहीं कर सकती है. इतना पैदल कैसे चलेगी? अगर लड़कों का ग्रुप आएगा तो उसे कैसे संभालेगी?

तो इस समस्या से कैसे पार पाई? इस सवाल पर रोशनी चौहान ने बताया, “मैं ने हार नहीं मानी, क्योंकि मेरे साथ मेरा परिवार था, मेरे साथी ट्रैकर मेरे थे. तब मैं ने सोच लिया था कि मैं लोगों को यहां की संस्कृति के बारे में बताऊंगी और अपने अंदाज में उन्हें उत्तराखंड दिखाऊंगी. तब से ले कर आज तक ट्रैकिंग मेरी जिंदगी का हिस्सा बन चुका है. मेरे साथ बहुत सी महिला ट्रैकर भी जुड़ी हुई हैं.”

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ट्रैकिंग सीखने के बाद आप की जिंदगी में क्या बड़ा बदलाव आया है? इस सवाल के जवाब में रोशनी चौहान ने बताया, “ट्रैकिंग आप को नेचर से जोड़ती है. शरीर और मन मजबूत हो जाता है. लोगों को ट्रैकिंग करा कर दिल को सुकून मिलता है.

“अब बहुत से लोग ट्रैकिंग के लिए पहाड़ों पर आने लगे हैं, पर उन्हें कुछ बेसिक बातों के बारे में पता होना चाहिए. उन्हें रास्ते पर चलने, आसपास के इलाके को साफ रखने की जानकारी होनी चाहिए. प्राथमिक उपचार की समझ होनी चाहिए, क्योंकि ट्रैकिंग में ‘नो वन, आई एम द वन’ का फार्मूला काम करता है. कोई मुसीबत आने पर पहले अपनी सेफ्टी देखनी चाहिए. जब आप खुद सेफ होंगे तभी दूसरों की मदद कर पाओगे.”

“जिस ने कभी भी ट्रैक नहीं किया हो उसे पहली बार में ही बड़े ट्रैक पर नहीं जाना चाहिए. मदमहेश्वर ट्रैक का एक किस्सा है. मेरे साथ एक ग्रुप था जिन से पूछा गया था कि कौन कितनी ऊंचाई तक जा चुका है. सब का जवाब था कि वे 8,000 फुट की ऊंचाई पर जा चुके हैं.

“हम ने ट्रैक स्टार्ट किया. शाम के तकरीबन 5 बजे थे और हम जंगल के बीच में 9,000 फुट की ऊंचाई पर थे. अचानक एक लड़के की तबीयत खराब हो गई और हालात बिगड़ते देख हम ने वापस नीचे आने का फैसला लिया. वह लड़का बेहोशी की हालत में टैंट में था और हमारे पास कोई भी साधन नहीं था.

“हम ने पूरी रात ऐसे गुजारी मानो किसी डैड बौडी के साथ थे. न खाना, न पीना. अगले दिन सुबह के 11 बजे के आसपास उस लड़के के होश में आते ही हम सब के चेहरे पर जो खुशी आई, उसे सिर्फ महसूस ही किया जा सकता है.”

लोग आप से कैसे जुड़ते हैं और इस काम में आमदनी कितनी हो जाती है? इस सवाल पर रोशनी बोलीं, “जब कोई ट्रैकर अपने काम को अच्छी तरह समझ लेता है, तब वह अपनी वैबसाइट बना सकता है. वह दूसरे ट्रैकर के संपर्क में रह सकता है और उन के माध्यम से अपने लिए लोगों के ग्रुप का इंतजाम कर सकता है.

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“जहां तक कमाई की बात है तो वह फिक्स नहीं है. आने वाले ग्रुप और सीजन पर निर्भर करता है. लेकिन एक बार जब आप को लोग जानने लगते हैं तो औसतन 15,000 से 20,000 रुपए महीना की कमाई हो जाती है.”

सरकार को इस रोजगार को आगे बढ़ाने के लिए क्या करना चाहिए? इस सवाल पर रोशनी ने कहा, “सरकार जो ट्रैक बंद कर रही है, उन्हें वह खोल दे.”

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