मास्क टीवी पर शुरु होने जा रहा है किन्नरों का एक टीवी शो, पढ़े खबर

लेखक व निर्देषक  -मानसी भट्ट

ओटीटी प्लेटफार्म के चलते अब फिल्म कंटेंट को प्रधानता दी जा रही है.इसी बदलाव की वजह से असल जीवन के नौ ट्रासजेंडरो को लेकर ओटीटी प्लेटफार्म ‘‘मास्क टीवी’’ पर बीस दिसंबर से एक षो ‘‘प्रोजेक्ट एंजल्स’’ स्ट्ठीम हो रहा है.यह पहली बार है,जब किसी षो में सिर्फ ट्रासजेंडर/ किन्नर अभिनय  कर रहे हों.ट्रांसजेंडर / किन्नरों को लेकर षो बनाने का साहस लेखक व निर्देषक मानसी भट्ट ने दिखाया है,जिनका मानना है कि ट्रासजेडरो को वह मेनस्ट्ठीम में लाना चाहती हैं.वह चाहती हैं कि लोग ट्रासजेंडरो की प्रतिभा से परिचित होकर उन्हे स्वीकार करे और उन्हे अपने जैसा माने.

ट्रासजेंडर यानी कि इस थर्ड जेंडर को सरकार द्वारा मान्यता दिए जाने के बावजूद यह समुदाय हमारे समाज में आज भी उपेक्षित है. प्रस्तुत है मानसी भट्ट से हुई बातचीत के अंष..अपनी अब तक की यात्रा के बारे में बताएं? मेरे पिता संजय भट्ट जी मार्केटिंग के साथ साथ दूरदर्षन के लिए सीरियलों का निर्माण करते रहे हंैं.जबकि मेरी मां अंजू भट्ट बहुत अच्छी लेखक,गीतकार,अभिनेत्री व निर्देषक हैं.वह काफी पढ़ी लिखी हैं.उन्होने सीरियल ‘मंजिलें’ लिखने के साथ ही उसमें अभिनय भी किया था.इस सीरियल में

वह पुलिस इंस्पेक्टर अंजू दीक्षित बनी थी.कई म्यूजिक अलबम बनाए.उन्होने मेरे भाई चिरंजीवी के लिए एक सीरियल लिखा.मेरी मां ने एक मराठी भाषा में एक सीरियल लिखा था,जिसमें अभिनय कर श्रेयष तलपड़े ने मराठी टीवी में कदम रखा था.एक गांधी जी पर पूरा अलबम लिखा था.उनका लेखन आज भी जारी है. तो मैने अपने घर में बचपन से ही रचनात्मक माहौल पाया है.मैने व मेरे भाई चिरंजीवी ने बचपन से ही षूटिंग व कलाकारों को देखा है.हम अक्सर सीरियल की षूटिंग के दौरान सेट पर भी जाते रहे हैं.तो आप कह सकते हैं कि हमारी परवरिष फिल्मी माहौल मंे ही हुई है.जब मैं कालेज में पढ़ती थी,तो मैने सायकोलाॅजी विषय के साथ पढ़ाई की.षायद यह मेरी गलती थी. क्योंकि उस वक्त मैने जोष में सायकोलाॅजी विषय ले लिया था और तब तक मैंने सोचा ही नही था कि भविष्य में क्या करना है.कालेज की पढ़ाई खत्म होने और स्नातक की डिग्री हाथ मंे आ गयी,तब मेरे पिता जी ने पूछा कि अब क्या? मैने कहा कि अब सोचना है.,अभी तक कुछ सोचा नहीं?तब मेरे पिता ने

कहा कि क्यों न फिल्म या सीरियल निर्माण व निर्देषन करो.तब मैं अपने पिता जी के सहयोग से सीरियल की लेखक व निर्देषक बन गयी. निर्देषक बनने के लिए आपने किस तरह की तैयारियां की? -इमानदारी की बात यही है कि मेरे पिता संजय भट्ट जी ने काफी सलाह दी.इसके अलावा मैने आपको पहले ही बताया कि मैं अक्सर षूटिंग के दौरान सेट पर जाया करती थी,तो अनजाने ही मैं बहुत कुछ सीख रही थी.वैसे स्कूल दिनों में मैं और मेरा भाई चिरंजीवी षौकिया एक एक घ्ंाटे की फिल्में बनाया करते थे.मैने पहली बार सीरीज ‘प्रोजेक्ट एंजल्स’ का लेखन व निर्देषन किया है और मेरे भाई चिरंजीवी ने इसका निर्माण किया है.फिर माता पिता का सहयोग भी रहा है.

‘प्रोजेक्ट एंजल्स’ की योजना कैसे बनी? मेरी मां ने एक गाना ‘‘राज तुम्हारे’’ लिखा था,जिसमें किन्नर साइबा अंसारी ने अभिनय किया था.गाने के फिल्मांकन के दौरान साइबा अंसारी कैमरे के सामने डांस कर रही थीं,तभी उनसे मेरी मुलाकात हुई थी.उन्ही को देखकर मेरे दिमाग में ‘प्रोजेक्ट एंजल्स’ का ख्याल आया.मैने सोचा कि लड़कियों को लेकर हर कोई सीरियल बना रहा है.मगर केवल ट्ांसजेंडर /किन्नर को लेकर अब तक कोई फिल्म या सीरियल नही बनी है.तो हमने सोचा कि ऐसी सीरीज बनायी जाए, जिसमें सभी ट््ंासजेंडर ही अभिनय करें.तो यह रियालिटी षो जैसा है,जिसमें साइबा अंसारी,जोया सिद्दििकी,अल्फिया अंसारी, गरिमा ग्रेवाल,सोनम खान, आफिया मुकरी, सिमरन खान,आफरीन षेख, खुषी पारगी षामिल हैं.किन्नरों को समाज में हमेषा दूर रखा जाताहै.उन्हे हिकारत की नजरों से देखा जाता है.कुछ

फिल्मों या सीरियल में किन्नरों को महज मजाक उड़ाने या उनसे ताली बजवाने के लिए ही रखा जाता है.किसी भी फिल्म या सीरियल में किसी किरदार मंे किन्नरों /ट्ांसजेंडरांे को षामिल नही किया जाता.मैं इस तरह का कामनहीं करना चाहती थी.मैं ट्ांसजेंडरों के साथ रीयालिटी षो बनाना चाहती थी,जिसमें हम उनके व्यक्तित्व वगैरह को लोगो के सामने ला रहे हैं. कुछ फिल्मों में नवाजुद्दीन सिद्दिकी सहित कुछ कलाकारों ने किन्नरो /ट्जेंडर वाले किरदार निभाए हैं.पर उसमें नकलीपना झलकता है.हमने वास्तविक ट्ंासजेंडरो / किन्नरों को अपने षो में षामिल किया है.मुझे उनकी समस्याओं को दिखाने में कोई रूचि नही है.मुझे तो उनके

सकारात्मक पक्ष ही दिखाने हैं.मैं उन्हे एक इंसान के तौर पर पेष करते हुए दिखा रही हॅूं कि ट्ांसजेंडर भी क्या क्या कर सकते हैं.वह जिस तरह से रहती हैं,उसे ही हम वास्तविकता के धरातल पर दिखा रहे हैं.हम किसी के दुःख का महिमामंडन नही करना चाहते.हम नही चाहते कि लोग उनक ेप्रति ‘दयाभाव’ या सहानुभूति’ के साथ पेष आएं.हम इसमें उनकी संुदरता व फैषन को दिखारहे हैं.उनके अंदर मनोंरजन का जो पक्ष है,उनके अंदर अभिनय के जो गुणहै,उन सभी पक्षों को हम दिखा रहे हैं. क्या ‘प्रोजेक्ट एंजल्स’ से लोगों की साच में बदलाव आएगा? मैं तो यही चाहती हॅूं कि लोगांे की सोच बदले.लोग समझें कि ट्ंासजेंडर का मतलब सिर्फ यह नही है कि वह आपके घर में खुषी के मौके परआकर तालियां बजाएं व डांस करें और आप उन्हें भीख में चंद रूपए दे दें. मैं हर इंसान को बता रही हॅूं कि भारत में बदलाव का वक्त आ गया है.जब एक

ट्ंासजेंडर हमारे देष के पष्चिम बंगाल राज्य में जज बन सकते हैं.तो फिर हमउन्हे नीची निगाह से क्यों देखें?अब वक्त आ गया है कि हमें खुद की सोच बदलकर इन्हें अपनाना होगा.ईष्वर ने उन्हे जैसा भी बनाया है,उसी रूप में हर इंसान उन्हें स्वीकार करे.उनके साथ चले.अब उन्हे पीछे रखकर ख्ुाद आगे बढ़ते जाना ठीक नही है.‘प्रोजेक्ट एंजल्स’’ का लेखन करने से पहले आपने किन्नरों के बारे में किस तरह से जानकारियंा इकट्ठीं की? मैने सिर्फ भारतीय ही नही बल्कि अमरीकन सहित कई देषों के सीरियल देखेहैं.मैने सड़क पर जाकर इन किन्नरों से लंबी बातचीत की है.उनसे जानने काप्रयास किया कि वह क्या क्या कर सकती हैं.मैने अमरीकन कल्चर को भी देखा वसमझा.वहां पर आम इंसान व ट्ांसजेंडर में कोई फर्क नहीं समझा जाता.वहां पर हर समुदाय के लोग किन्नरों को स्वीकार करते हैं.जबकि हमारे देष में ऐसानही है.हमारे यहां लोग उनसे दूर भागते हैं.हमारे यहां परिवार के लोगभी उन्हे अपने घर से निकाल देते हैं.कोई उनसे विवाह नही करना चाहता.

उनसे बात तक करना पसंद नही करता.मेरी सोच है कि हमारे यहां भी हर समुदाय केलोग ट्ांसजेंडरांे को स्वीकार करें,उनके साथ आम इंसानांे जैसा ही व्यवहार करें.षूटिंग के दौरान अगर किसी ने उनके बारे में गलत बात की,तो मैं नाराज होती थी.मैं उनमें कोई भेद नहीं मानती.मेरी नजर में मेरे सेट पर मौजूद ट्ांसजेंडर यानी कि लड़कियंा माॅडल व अभिनेत्री थीं.यह वह ट्ांसजेंडर हैं जो कि आपके घर पर आकर पैसा नही मांग रही इै.

वह सड़क या सिग्नल पर खड़ी नही होती.वह आपसे कुछ नही मांग रही है.यह सभी आम इंसानों की ही तरह मेहनत करके पैसा कमाकर अपनी जिंदगी गुजार रही है.तो फिर इनके साथ सौतेला व्यवहार क्यों? इन्हें हेय दृष्टि से क्यों देखा जाए? हम उन्हे अपने षो में उसी तरह से पेष कर रहे हैं,जिस तरह से वह वास्तव में अपनी जिंदगी में रहती हैं.इसका लेखन करते समय मेरे दिमाग मंे सिर्फ एक ही बात थी कि इन्हे मैं उस तरीके से परदे पर दिखाउं,जिस तरीके से इन्हे अब तक भारत में नही दिखाया गया.मंैने इस षो को लिखने से पहले कई भारतीय फिल्में व सीरियल देखे, जिनमें ट्ांसजेडरों की बात की गयी है,तो पाया कि इनमें ट्ांसजेंडरों को सही अंदाज में नही दिखाया जा राह है,वह जिस तरीके से रहती हैं,वास्तव में उस तरीके से उन्हे नही दिखाया जा रहा है.यहां तक कि

उन्हे अभिनय करने के लिए भी नही बुलाया जाता.उन्हें भिखारी की ही तरह से पेष किया जाता है.मैं इसे बदलना चाहती हॅूं. जब आपने कुछ ट्ांसजेंडरांे से बात की,तो आपको क्या नई जानकारी मिली,जिससे आप वाकिफ नहीं थी?-पहली बात मुझे यह पता चली कि हर किन्नर की अपनी अलग अलग स्टाइल है.इनके व्यक्तित्व में समानता नही है.यह सभी अलग अलग अकेले रहती हैं. और सभी कुछ न कुछ काम कर रही हैं.नौ में से दो तीन बहुत दकियानूसी हैं और षरीर से पैर तक ख्ुाद को ढंक कर राती हैं.दो तीन ऐसी हैं,जिन्हे पहनावे को लेकर किसी भी प्रकार की कोई बंदिष नहीहै.वह खुलकर जिंदगी जीना पसंद करती हैं.उन्हे इस बात की कोई फिक्र नहीं होती कि कौन उन्हे किस निगाह से देख रहा है या उन्होेने स्वयं किस तरह के कपड़े पहन रखे हैं.वह हमेषा

ओपनली रहती हैं.इसी वजह से मुझे अपनी स्क्रिप्ट में कुछ बदलाव भी करने पड़े.क्यांेकि पहले हमने कुछ दृष्य रखे थे,जिनको लेकर दो तीन प्रतियोगी कंफर्ट नही थी.दो तीन ने कह दिया कि वह इस तरह के टास्क नही कर सकती.इनकेसंघर्ष बहुत है,पर इनके पास काम की कमी नही है.यह सभी लगभग हर दिन व्यस्त रहती हैं.फिल्म इंडस्ट्ठी मंे इनका नाम बहुत बड़ा है,मगर आज तक इन्हें इनकी पहचान नही मिली.जबकि इन्हे परफार्म करने के लिए बुलाया जाता रहता है.तो अब ‘प्रोजेक्ट एंजल्स’ से इन्हे इनकी सही पहचान मिलेगी.हमारी फिल्म इंडस्ट्ठी में यह ट्ांसजेंडर जरुरत हैं.लेकिन हमारी फिल्म इंडस्ट्ठी इस बात को स्वीकार कर उन्हे सम्मान नहीं देना चाहती.हमारी फिल्म इंडस्ट्ठी भी इन्हे नीचीदृष्टि से देखते हुए सिर्फ इनका उपयोग करना जानती है.हमारे यहां ट्ांसजेंडर

का नाम आते ही लोगों के दिमाग में सिर्फ दो गालियां ही आती हैं.मेराकहना है कि यह सोच बदलों.यह ट्ांसजेंडर ख्ुाद को ‘लड़कियंा’ कहती हैं. तो आप भी उनके साथ लड़कियांे की ही तरह से व्यवहार करें.उन्हे लड़कियों की ही तरह ट्ठीट करो.मैं इन्हे ट्ांसजेंडर नही बुलाती.मैनेजब इनका इंटरव्यू लिया था,तब इनमें से एक मेघना ने बताया कि इन्हे किराए पर घर भी नही मिलता.इनके अपने ब्वायुफ्रेंड हैं,मगर वह इन्हे लोगांे के सामने लेकर नही आते.एक प्रतियोगी का ब्वाॅयफ्रेंड किसी अन्य से षादी कर रहाथा,पर वह उससे भी संबंध बरकरार रखे हुए था.कुल मिलाकर इन ट्ांसजेंडरों के संघर्ष न खत्म होने वाले हैं.अब तक किसी भी फिल्मकार ने यह नही दिखाया कि समाज वास्तव में उनके साथ क्या गलत कर रहा है.फिल्मकार सिर्फ इतना दिखाते हंै कि वह सिग्नल पर भीख मांग रहे हैं या घर घर जाकर खुषी केमौके पर पैसा मांगते हैं. हम यह सब नही दिखा रहे हैं.

तो आप क्या क्या दिखा रही हैं? -देखिए,मैने उन्हे फैषन माॅडल व अभिनेत्री के रूप में पेष किया है.बीचमें एक हिस्सा आता है,जहां वह बात करती हंै कि समाज उनके साथ किस तरह काव्यवहार करता है.पर मेरा मकसद उनके साथ होने वाले व्यवाहर को दिखाना नहीरहा.मैं तो समाज को यह बताना चाहती हॅॅंू कि जिन्हे हम तुच्छ समझतेहैं,वह क्या क्या कर सकती हैं.उनमें कितनी प्रतिभा हैं.वह हमारी ही तरहहैं.हमारे षो में वह माॅडल हैं.उनके साथ जो कुछ हुआ,उसमंे से जोउन्होने कहा वही दिखाया.अपने षो ‘‘प्रोजेक्ट एंजल्स’’ के लिए आपने इन ट्ंांसजेंडरों को कहां ढूढ़ा व किस तरह से चुना? -इनकी तलाष करने मंे हमें कई माह लगे.पर सबसे पहले हमारी मुलाकात साइबा से हुई.उसके बाद दूसरों से होती रही.हम नव्या सिंह से मिले,पर उसने कहा कि वह

इस षो की एंकरिंग करना चहेंगी.तो हमने उन्हे एंकर बनाया.क्योकि मुझे भीलगा कि वह एंकरिंग के लिए ठीक हैं.उन्होने इससे पहले भी एंकरिंग वाले कामही ज्यादा किए हैं.फिल्म इंडस्ट्ठी मंे उनकी अपनी एक पहचान भी है.नव्यासिंह यूट्यूब पर एक प्लेटफार्म ‘जोष टाॅक्स’ है,उसमें वह नजर आती हैं.इषो में लोग अपनी कहानियंा आकर सुनाते हुए दर्षकों को मोटीवेट करतेहैं.वह कई गानों में भी नजर आती हैं.वह पंजाबी एंटरटेनर हैं.पंजाब में तो उनका जलवा है.वह फिल्म भी कर रही हैं.इसके बाद की आपकी क्या योजनाएं हैं?-यह तो मेरी षुरूआत है.मैं हमेषा ट्ासजेंडरों के साथ ही षो नहींनाउंगी.आगे चलकर लड़कों व लड़कियों को लेकर भी षो बनाने हैं.जिनकी तैयारियंा कर रही हॅूं.मैं सिर्फ रियालिटी टीवी षो ही नहीं बनानाचाहती.मैं तो हर जाॅनर में कार्यक्रम बनाउंगी.मैं दो क्रिमिनल सीरीज परभी काम कर रही हॅूं.इनके लेखन मंे मेरी सायकोलाॅजी की पढ़ाई मदद कर रही है.

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