तानों के डर से पेरेंट्स अपने बच्चों को घर से निकाल देते है –नाज़ जोशी

कुछ लोग अपने अधूरेपन को लेकर जीवनभर खुद को कोसते रहते है, जबकि कुछ उससे निकलकर एक नयी दुनिया, नयी सोच बना लेने के साथ-साथ, उनके प्रति लोगों के नजरिये को भी बदलने में सक्षम होते है. ऐसा करने के लिए उन्हें चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, पर वे इससे घबराते नहीं, बल्कि समाज, परिवार और धर्म के आगे एक मिसाल खड़ी कर देते है, ऐसे ही चैलेंजेस से गुजरकर, तीन बार मिस वर्ल्ड डाइवर्सिटी विजेता सुंदरी ट्रांससेक्सुअल नाज़ जोशी, भारत की पहली ट्रांस सेक्सुअल इंटरनेशनल ब्यूटी क्वीन, ट्रांस राईट एक्टिविस्ट, मोटीवेशनल स्पीकर और एक ड्रेस डिज़ाइनर है. दिल्ली की रहने वाली नाज़ आगे ‘क्वीन यूनिवर्स 2021 सीजन 3 के लिए बैंकाक जाने वाली है, जो उनकी एक पहल है, जिसमें विश्व के सभी उम्र और बॉडी शेप की महिलाएं भाग लेंगी, जिसमे सुन्दरता को अधिक महत्व न देने के साथ-साथ, उनका परिवार और समाज के प्रति योगदान को भी महत्व दिया जाएगा. हंसमुख और स्पष्टभाषी नाज़ से उनकी जर्नी के बारें में बात हुई, पेश है कुछ अंश.

सवाल- आपको ब्यूटी क्वीन बनने की प्रेरणा कहाँ से मिली?

जब मैंने सुस्मिता सेन और ऐश्वर्या राय को ताज पहनते देखा, तो मुझे भी ताज पहनने का  शौक हुआ. मजे की बात यह है कि मैंने कभी ट्रांसजेंडर के साथ कॉम्पिटिशन नहीं किया. मैंने नॉर्मल लड़कियों के साथ प्रतियोगिता की है और आज तक 7 इंटरनेशनल क्राउन जीत चुकी हूं. इससे मुझे बहुत प्रेरणा मिली. कॉन्फिडेंस मिला और सामाजिक काम करने की इच्छा पैदा हुई. मैं अधिकतर ट्रांसजेंडर की हेल्थ, उनकी समस्याओं का निराकरण, शिक्षित करना आदि करती हूं.

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अभी मेरा उद्देश्य नई लड़कियों को एक्टिंग के क्षेत्र में सही राह दिखाना भी है, क्योंकि अभिनय की दुनिया में कास्टिंग काउच बहुत अधिक है और लड़कियां उनकी शिकार बनती है. ऐसी कई घटनाएं है, जहाँ लोग खुद को कास्टिंग डायरेक्टर कहते है, लडकियों के वहां जाने पर वे उनके खाने या ड्रिंक में कुछ मिला देते है और उनका शोषण करते है. मैं किसी लड़की के ब्यूटी कांटेस्ट जीतने के बाद उन्हें इंडस्ट्री में जाने की पूरी गाइडेंस देती हूं.

सवाल- आप ट्रांससेक्सुअल कैसे बनी? इस मुकाम तक पहुँचने के लिए कितनी चुनौतियाँ थी?

मैं एक मुस्लिम माँ और पंजाबी पिता के घर में जन्मी हूं. जब 7 साल की थी तो मेरे परिवार ने मुझे मुंबई किसी दूर के रिश्तेदार के यहाँ भेज दिया था, ताकि उन्हें किसी प्रकार के ताने न सुनने पड़े. मैंने मुंबई में बहुत मोलेस्टेशन सहा है. जहाँ काम करती थी, वहां भी लोगों ने बहुत प्रताड़ित किया है, इसलिए मैं लड़कियों को आज प्रोटेक्शन देती हूं. अपना सेक्स बदलने के लिए मुझे सर्जरी से गुजरना पड़ा. मेरे हिसाब से अगर हमारे देश की लड़कियां सशक्त नहीं होंगी, तो ट्रांसजेंडर का सशक्त होना मुमकिन नहीं. असल में ट्रांसजेंडर पहले एक इंसान है और बाद में उनका जेंडर आता है. मैं ट्रांसजेंडर के अधिकार के लिए समय-समय पर बात करती हूं, जिसमें उनके स्वास्थ्य से जुडी जानकारियाँ, सेफ सेक्स आदि होता है, जिससे उनका जीवन खतरें में न पड़े. इसके अलावा मैं दुनिया की पहली ऐसी महिला हूं, जो लड़कियों के लिए इंटरनेशनल शो करने बैंकाकजा रही हूं, जिसमें सभी वर्ग और उम्र की महिलाएं भाग ले सकेंगी. इसमें सुन्दरता से अधिक उनका योगदान समाज के प्रति कितना है, उसे प्राथमिकता दी जाएगी.

सवाल- ट्रांसजेंडर के साथ लोगों का दुर्व्यवहार करने की वजह क्या मानती है, किसे आप इसकी जिम्मेदार ठहराती है?

इसकी जिम्मेदारी पेरेंट्स की है, क्योंकि वे ऐसे बच्चे को ताने के डर से स्वीकार नहीं करते और घर में छुपाकर या कही बाहर भेज देते है. उन्हें शिक्षित करने पर वे भी मुख्य धारा से जुड़ सकते है. अगर स्कूल में उन्हें ताने सुनने पड़ते है तो उसका समाधान पेरेंट्स स्कूल में जाकर बातचीत के द्वारा सुलझा सकते है. नार्थ ईस्ट की एक ट्रांसजेंडर लड़की अब डॉक्टर बन चुकी है. उसे अधिक समस्या इसलिए नहीं आई, क्योंकि नार्थ ईस्ट और थाईलैंड जैसी जगहों पर लड़के भी लड़कियों जैसे ही दिखते है. इसलिए सबसे घुलना-मिलना आसान होता है, जो हमारे देश में नार्थ में नहीं होता.

इसके अलावा 100 से भी अधिक ट्रांसजेंडर लड़कियां अपने पाँव पर आज खड़ी है, जिनमे एक्ट्रेस, सामाजिक काम, दूसरों को मोटीवेट करना आदि है. ये सब मुझसे बहुत प्रेरित है. दरअसल माता-पिता अगर ट्रांसजेंडर बच्चे के साथ ‘पिलर’ बनकर खड़े होते है, तो वे भी बहुत कुछ कर सकते है. किन्नर दो तरह के होते है, कुछ जन्म से तो कुछ बाद में अपना सेक्स चेंज करवाते है. ये कोई बीमारी नहीं होती. पैरेंट्स के स्वीकारने से सड़कों पर किन्नरों का भीख मांगना, अनजाने लोगों से सड़क पर सेक्स करना कम होगा. माता-पिता केवल बच्चे को अपना लें, बस यही काफी होगा.

सवाल- आपकी जर्नी में पेरेंट्स की भूमिका कैसी रही?

मेरे परिवार में माता से अधिक पिता और बहनका सहयोग रहा है. भाई और माँ भी केयरिंग है, जब मुझे कोरोना संक्रमण हुआ था, तो उन्होंने मेरा बहुत ध्यान रखा था.

सवाल- सेक्स चेंज की भावना कैसे आई और सेक्स चेंज के बाद क्या-क्या एहतियात बरतने की जरुरत होती है?

बचपन में 3 साल की उम्र से ही ऐसी भावना रही है, क्योंकि स्कूल में मुझे डॉल बनाया गया था और आसपास की लड़कियों के साथ उठना-बैठना अच्छा लगता था. इसके अलावा बचपन में मुझे किसी ने गाना गाने को कहा और मैंने लैला ओ लैला….. गाई . असल मेंमुझे ग्लैमर और एक्टिंग छोटी उम्र से पसंद था, जिसमें जीनत अमान, परवीन बॉबी, श्रीदेवी, माधुरी दीक्षित आदि सभी एक्ट्रेसेस को फिल्मों में देखना अच्छा लगता था. जब बड़ीहुई तो लगा कि मैं भी इनकी तरह पर्दे पर चुडियां पहन कर डांस करूँ. घर पर भी मैं गानालगाकर डांस किया करती थी.बड़ी होने पर साधना कट बाल रखी, जिसे पेरेंट्स ने ऑब्जेक्शन किया और लड़कों की तरह चलने-फिरने की हिदायत दी. मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ, क्योंकि मैं अंदर से लड़की थी. फिर पिता ने मुंबई भेजा, वहां मैंने काम के साथ पढाई की और दिल्ली आ गयी. इसके बाद सेक्स चेंज करवाई और सब ठीक हो गया. शिक्षित होना मुझे पसंद है, क्योंकि इससे आत्मबल बढ़ता है, इसलिए मैंने उसका दामन कभी नहीं छोड़ा.

सेक्स चेंज के दौरान दो साल तक हार्मोन लेना पड़ा है,क्योंकि हार्मोन पूरे शरीर को बदल देता है. इसका असर किडनी, लिवर आदि पर पड़ता है. हर महीने शरीर और हार्मोन का टेस्ट करवाना पड़ता है. कई बार सेक्स चेंज के दौरान मृत्यु भी हो जाती है. इसलिए डॉक्टर की सलाह के अनुसार सेक्स चेंज के लिए जाएँ और उनके हिसाब से दवाएं लें.

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सवाल- आप कितनी फैशनेबल है? आगे की योजनायें क्या है?

मैं एक ड्रेस डिज़ाइनर हूं और अपना ड्रेस खुद डिजाइन करती हूं, जो सिंपल और आरामदायक होता है. सलवार कमीज पहनती हूं और शो के हिसाब से गाउन या शोर्ट ड्रेस पहनती हूं. मुझे बहुत दुःख होता है, जब मैं किसी लड़की को उसके ड्रेस की वजह से रेप हुआ, सुनती हूं. ड्रेस एक पहनावा है और उसे कोई भी लड़की अपने हिसाब से पहन सकती है. ऐसे गलत दिमाग वाले पुरुषों और लड़कों को, लड़कियों की इज्जत बचपन से करने की सीख पेरेंट्स को देने की जरुरत है. मैंने अपनी प्रतियोगिता में मार्शल आर्ट्स की भी एक कोर्स रखने के बारें में सोचा है, ताकि वे अपना बचाव खुद कर सकें.आगे मैं एक एनजीओ खोलकर उसमे भी मार्शल आर्ट्स की ट्रेनिंग और लड़कियों को ग्रूमिंग कर आत्मनिर्भर बनाने की इच्छा रखती हूं.

सवाल- क्या मेसेज देना चाहती है?

मेरा सभी परिवारों, समाज और महिलाओं से कहना चाहती हूं कि ट्रांसजेंडर को अपनाएं, उन्हें शिक्षित करें. वे भी सबके साथ मिलकर अच्छा काम कर सकती है. अभी मेक इन इंडिया का स्लोगन से भी अधिक एमपॉवर इंडिया का स्लोगन होना चाहिए, क्योंकि महिलाएं शिक्षित और आत्मनिर्भर होने से पूरा देश आगे बढेगा.

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