जानें पहली Trans Queen India की ट्रासजेंडर नव्या सिंह के संघर्ष की कहानी

गलत वक्त किसी के जीवन में न आये, जो मेरे साथ हुआ, मेरा जन्म तो एक लड़के के शरीर में हुआ,लेकिन मेरी सोच, मेरी चाल-चलन सब लड़कियों जैसी थी, ये गलती मेरी नहीं थी, जिसे परिवार और समाज सहारा देने के बजाय घर से बेसहारा निकाल देते है, ऐसी ही भावनात्मक बातों को कहती हुई स्वर भारी हो गयी, भारत की ट्रांसजेंडर महिला,नव्या सिंह, जो भारत की पहली ट्रांसजेंडर महिला ‘ट्रांस क्वीन इंडिया’ की ख़िताब जीती है और अब वह ट्रांसक्वीन इंडिया की ब्रांड एम्बेसेडर है.

शुरू में नव्या के पिता सुरजीत सिंह, नव्या को लड़की नहीं मानते थे, वे बहुत एग्रेसिव थे, वे इसे भ्रम समझते थे, पर उनकी माँ परमजीत कौर को समझ में आ रहा था, लेकिन वह इसे कह नहीं पाती थी. नव्या कथक और बॉलीवुड डांसर भी है, जिसका प्रयोग उन्होंने मुंबई आकर किया.

काफी संघर्ष के बाद वह बॉलीवुड की एक डांसर, मॉडलिंग और अभिनेत्री बनी है और ट्रांसजेंडर समाज को मुख्य धारा में जोड़ने की कोशिश कर रही है. वह एक हंमुख और विनय स्वभाव की है और हर कठिन घड़ी को जीना सीख किया है. दिव्या को गृहशोभा की ब्यूटी कॉलम पढना पसंद है, जिसमें अच्छी टिप्स ब्यूटी के लिए होती है. उसे गर्व है कि उसकी इंटरव्यू इतनी बड़ी पत्रिका में जा रही है.

उनसे बात हुई, आइये जाने उनके संघर्ष की कहानी उनकी जुबानी.

सवाल – आपकी जर्नी कैसे शुरू हुई?

जवाब – मैं बिहार के कटिहार जिले के गांव लक्ष्मीपुर काढ़ागोला की हूं. मैं सरदार परिवार की सबसे बड़ी लड़की हूं. पिछले 11 साल से मैं मुंबई में रह रही हूं. मैं एक ट्रांसजेंडर महिला हूं. मेरा जन्म एक गलत शरीर में हुआ था, मैं एक लड़के के शरीर में पैदा हुई और बहुत जल्दी मुझे पता चल गया था कि मेरा जन्म गलत हुआ है. 11 साल की उम्र में मुझे समझ में आ गया था की मेरी बनावट भाइयों से अलग है, मेरे भाई क्रिकेट खेलना पसंद करते थे, पर मुझे मेरी माँ का साथ अच्छा लगता था. मेरी माँ भी कुछ हद तक समझती थी. मैं गांव में पैदा हुई थी और वहां पुरुष प्रधान समाज था, औरतों को बोलने का अधिकार नहीं था. मेरे दादा कभी उस गांव के सरपंच हुआ करते थे. बचपन नार्मल ही गुजरा, लेकिन जैसे-जैसे मैं बड़ी होती गयी,लोग प्यार न देकर मजाक उड़ाते थे. बाद में मुझे पता चला कि लोग मेरे हाव-भाव को देखकर मजाक उड़ाते है. करीब तीन साल तक मैंने ऐसे गुजारा फिर मुझे इससे आगे बढ़ने की इच्छा पैदा हुई.

सवाल – सेक्स चेंज करवाना कितना मुश्किल था?

जवाब – जब मैं 18 साल की थी , तो माता-पिता ने मुंबई मासी के पास भेज दिया, ताकि मैं मुंबई की चकाचौध को देखकर खुद को सम्हाल लूँ , लेकिन मुझे मुंबई की हर बात अच्छी लगी. मेरी मासी मेरी समस्या को समझ रही थी, मुझे लेकर एक एनजीओ में गयी जहाँ मेरा लिंग परिवर्तन हुआ. डॉक्टर ने भी मासी को सलाह दिया कि मैं सेक्स के बदलने के बाद आसानी से जी सकती हूं. 18 साल की उम्र से ही मेरा परिचय एक लड़की के रूप में हुआ. मासी ने मेरी दायित्व लेकर सब कुछ किया.

मैं शुरू में पिता के साथ मुंबई आई थी, वे बहुत एग्रेसिव थे वे नहीं मानते थे कि मैं एक लड़की हूं, उन्हें मैं बेटा ही लगती थी. डॉक्टर के साथ काउन्सलिंग करवाने के बाद पिता समझे और मुझे अपना लिए.

सवाल – मुंबई जैसे शहर में पैसों का इंतजाम कैसे किया?

जवाब – मुश्किल थी, क्योंकि मेरा परिवार वित्तीय रूप से मजबूत नहीं था. इसलिए मुझे ही सबकुछ करना पड़ा. मुझे डांस आती थी,तो कही पर भी डांस करने से पैसे मिलते थे. इसके अलावा मैं ट्रांसजेंडर कम्युनिटी की मेंबर बन गयी. वहां मुझे ट्रांस एक्टिविस्ट, ट्रांस जेंडर महिला अबिना एहर ने काफी मदद की. वह दिल्ली में रहती है और पहले मुझे ट्रांस जेंडर लोगों से मिलने में डर लगता था, लेकिन जब मेरी जर्नी ऐसी हो गयी, फिर मेरा डर कम हो गया, क्योंकि ये भी इंसान है. अबिना ने जिंदगी जीने का रास्ता बताया, जो मेरे लिए काफी मददगार रही. इसके बाद मैंने कुछ एन जी ओ और इवेंट्स में काम करने लगी. 2016-17 में मैंने दो बड़ी मैगज़ीन के कवर पर आ गयी, उन्होंने मेरी जर्नी को लिखा और मेरी जिंदगी उस मोड़ से बदल गयी.

सवाल – ट्रांसजेंडर को लोग अपना नहीं पाते, इस बारें में आपकी सोच क्या है?

जवाब – असल में ट्रांसजेंडर को लोग इंसान नहीं दूसरे ग्रह की प्राणी समझते है. समाज का हिस्सा नहीं मानते, कई बार मैं कही जाने पर लोग मुझसे दूरियां बना लेते थे. बात करना नहीं चाहते थे. मुझे बहुत दुःख होता था, क्योंकि मैं भी किसी महिला के कोख से ही पैदा हुई हूं. अब नहीं लगता, सभी ने स्वीकार कर लिया है. इसकी वजह शिक्षा की कमी लगती है. आज भी कई ट्रांसजेंडर पढ़े-लिखे नहीं है. उन्हें हक के बारें में पता नहीं होता. ट्रांस जेंडर के अस्पताल जाने पर डॉक्टर उसकी जांच करना नहीं चाहते, उन्हें लगता है कि ये इंसान एचआईवी+ होगा या सेक्स वर्कर या कुछ गलत काम करने वाले ही होंगे. ट्रांस जेंडर को लेकर ये सब चीजें दुखद है. आज ट्रांस जेंडर लोग बड़े- बड़े काम कर रहे है. इसके अलावा मुझे बुलिंग, छेड़छाड़, मजाक का बहुत सामना करना पड़ता था. आज लोग थोड़े बदले है, रेस्पेक्ट मिलता है. मैंने बीकॉम की पढाई की है.

सवाल – फिल्मों में आने की इच्छा कैसे हुई?

जवाब – मुझे बचपन से फिल्मे और धारावाहिकों को देखने का शौक था. उनकी भूमिका को देखकर मैं भी आईने के आगे एक्ट करती रहती थी. ब्रेक मुझे सावधान इंडिया में साल 2017 में मिला था. मैंने ऑडिशन दिया और चुन ली गई. मैंने उसमे मोना की भूमिका निभाई है. इससे मुझे बहुत पहचान मिली, क्योंकि वह भूमिका ट्रांसजेंडर की बहुत दमदार थी. इसके बाद मुझे काम मिलता गया.

सवाल – ब्यूटी पेजेंट में कैसे जाना हुआ?

जवाब – ब्यूटी पेजेंट भी साल 2017 में ही हुआ था. मैं टॉप फाइव में गयी और अब इसकी ब्रांड अम्बेसेडर हूं. यहाँ जाने के लिए मेरे एक दोस्त ने बताया था कि इंडिया में पहली बार ट्रांस जेंडर के लिए ब्यूटी पेजेंट हो रहा है. मुझे मौका मिला और मैंने उसे सफल बनाई.

सवाल – अभी आप क्या कर रही है?

जवाब – अभी मेरा एक म्यूजिक एल्बम रिलीज होने वाला है. इसके अलावा एक बायोपिक भी ओटीटी पर रिलीज़ हो चुकी है. आगे कई और प्रोजेक्ट चल रहे है.

सवाल – फिल्मों में अधिकतर हीरों ट्रांस जेंडर की भूमिका निभाते है,इस बारें में आपकी सोच क्या है?

जवाब – मैंने बीच में इसे लेकर आवाज उठाई थी, बहुत सारे फिल्म निर्देशक को कहा था कि अगर पुरुष, ट्रांसजेंडर की भूमिका निभाएंगे तो ट्रांसजेंडर महिला किसकी भूमिका निभाएगी? शक्ति धारावाहिक में कुछ किन्नर है, लेकिन लीड एक महिला कर रही है. मेरा उन सभी से कहना है कि अभिनेत्री रुबीना दिलैक अगर किन्नर की भूमिका निभाती है तो मुझे रुबीना दिलैक की भूमिका दिया जाय. बानी कपूर अगर एक ट्रांसजेंडर की भूमिका निभाती है तो बानी कपूर की भूमिका में अगर मैं फिट हुई, तो वह मुझे मिलनी चाहिए. एलजीबीटी फिल्मों में भी एक पुरुष ने ट्रांसजेंडर की भूमिका निभाई है. मैं पुरुष नहीं, ट्रांस जेंडर हूं तो मुझे मेरी भूमिका देने से लोग क्यों कतराते है. इसका अर्थ यह है कि आप साबित करना चाहते है कि ट्रांसजेंडर पुरुष होते है. मेरी इस आवाज पर लोगों ने कहा कि ट्रांसजेंडर अच्छा काम नहीं कर सकते. मेरा उनसे पूछना है कि उन्होंने किसी को अवसर दिया क्या?मौका मिलेगा तब वे अच्छा काम करेंगे. मौका ही नहीं दिया गया, फिर कैसे कह सकते है कि ट्रांसजेंडर को अभिनय करना नहीं आता. अलिया भट्ट, बानी कपूर जैसे सभी अभिनेत्रियाँ कोई भी अपनी माँ के पेट से अभिनय सीखकर पैदा नहीं हुई है. उन्हें भी मेहनत करनी पड़ती होगी, रीटेक लेने पड़ते होंगे. मैं शांत बैठने और डरने वाली नहीं हूं,ये हक की लड़ाई है, जिससे हर ट्रांसजेंडर को न्याय मिलेगा. हम सभी समाज का हिस्सा है. फिल्मों में निर्माता, निर्देशक और कहानीकार हम सभी पर फिल्में बनाकर पैसा बटोरते है, ऐसे में हमें ही कास्ट कीजिये. अक्षय कुमार की फिल्म लक्ष्मी में अक्षय कुमार ट्रांसजेंडर बने, जिसकी परफोर्मेंस बहुत ख़राब थी. आदमी जैसे ट्रांसजेंडर नहीं दिखते. मैं चाहती हूं कि ऐसे कलाकार सबकी प्रेरणास्रोत बने. पता नहीं किस तरह का माफिया गैंग है. राजपाल यादव एक फिल्म में ट्रांसजेंडर बने है, मुझे गुस्सा आया, क्योंकि ये लोग पैसे के नाम पर कुछ भी करते है. बॉलीवुड हमारे पर फिल्में बनाता, बेचता और पैसे कमाता है, लेकिन हमें फिल्मों में लेने से डरता है.

अभी नव्या अपने परिवार के साथ मुंबई में रहती है और सेक्स चेंज की वजह से हार्मोन की दवा लेनी पड़ती है, उन्हें मूड स्विंग्स भी होता है. समय मिलने पर मैडिटेशन, गाने सुनना, और फिल्में देखती है.

किन्नरों की मुफ्तखोरी- क्या है किन्नरों से जुड़ा दूसरा सच

यह भी सच है ;

दिल्ली में किन्नरों की बढ़ती कमाई को देखते हुए बाहर से भी किन्नर बुलाए जाते हैं. ये किन्नर यूपी, बिहार और राजस्थान से आते हैं.

कमाई के हिसाब से चौराहों की भी ग्रेडिंग की हुई है.

किन्नर अपनी कमाई का एक हिस्सा पुलिस को भी देते हैं.

बढ़ती कमाई के कारण कई बार जबरन किन्नर बनाए जाने की घटनाएं भी सामने आती हैं.

बहुत से किन्नर गलत धंधों से भी पैसा कमा रहे हैं.

भारत में साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें सरकारी दस्तावेज़ों में बाक़ायदा थर्ड जेंडर के तौर पर एक पहचान दी है. ये सरकारी नौकरियों में जगह पा सकते हैं. स्कूल- कॉलेज में जा कर पढ़ाई भी कर सकते हैं. उन्हें वही अधिकार दिए गए हैं जो किसी भी भारतीय नागरिक के हैं.

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किन्नरों से जुड़ी कुछ बेसिरपैर की मान्यताएं

ऐसा माना जाता है कि अगर आप काफी समय से धन की कमी से जूझ रहे हों तो किन्नरों से एक सिक्का ले कर अपने पर्स में रख लें. ऐसा करने से आप को फिर धन की कमी नहीं होगी. यदि कुंडली में बुध गृह कमजोर हो तो किसी किन्नर को हरे रंग की चूड़ियां व साड़ी दान करनी चाहिए. इस से अवश्य फायदा होता है. इस तरह की मान्यताएं समाज में अस्थिरता फैलाती हैं.

हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार किन्नर बुध ग्रह का प्रतीक होते हैं. ऐसा माना जाता है कि किन्नर बुध ग्रह को शांत करते हैं. इसलिए अगर किसी जातक को बुधवार के दिन ये आशीर्वाद दे दें तो उस की किस्मत खुल जाती है.

माना जाता है कि ये अगर खुश हो कर दुआ देते हैं तो उन्हें पूरा होने में थोड़ा भी समय नहीं लगता है. लेकिन अगर ये गुस्से में कुछ कहे तो सब कुछ खत्म हो जाता है.

मान्यता है कि अगर धन में कमी हो रही है तो किसी किन्नर से एक रुपया ले कर अपने पर्स में रखने या फिर उस सिक्के को किसी कपड़े में बांध कर तिजोरी में रखने से धन की कमी नहीं रहती.

किन्नरों को दान करने की प्रथा बहुत पुराने जमाने से है. जब भी घर में कोई अच्छा काम होता है तो किन्नरों का आना और उन का दुआएं देना बहुत अच्छा माना जाता है. इसीलिए लोग कभी भी किन्नर को खाली हाथ वापस नहीं भेजते.

माना जाता है कि अगर बुरा समय चल रहा है तो किन्नर को पूजा की सुपारी सिक्के के ऊपर रख कर दान करने से बुरा समय खत्म हो जाता है.

विवाहित जीवन में दिक्कतें हैं तो किन्नरों को सुहाग की चीजें जैसे कि हरी चूड़िया, लाल साड़ी, कुककुम, लिपस्टिक आदि दान में देने से समस्या का समाधान होता है.

मानसिकता में बदलाव जरुरी

वास्तव में हिजड़ों को इस तरह रुपएपैसे और वस्तुएं देने का मतलब इन की अकर्मण्यता को बढ़ावा देना है. जरुरी है कि हम लोगों की मानसिकता में बदलाव लाएं. बहुत से किन्नर ऐसे भी हैं जो पढ़ाईलिखाई कर ऊंचे ओहदों तक पहुंचे है. मगर ऐसे किन्नरों की संख्या काफी कम है.

जब तक समाज निठल्लों को बैठेबिठाये खिलाता रहेगा तब तक इस तरह के लोग पनपते रहेंगे. ऐसा नहीं कि इन का शरीर अशक्त है , ये देख नहीं सकते या चल नहीं सकते. ये पूरी तरह स्वस्थ और मजबूत होते हैं. महज एक अंग की आकृति दूसरों से भिन्न होने का मतलब यह नहीं कि हम इन्हें सिर पर बिठा ले , इन्हे मुफ्त की रोटियां तोड़ने को बढ़ावा दे या फिर इन की बदतमीजी और दादागिरी सहते रहे, इन के चरणों में झुक जाए या अपनी मेहनत की कमाई इन पर लुटाते रहे.

भारत में इस तरह की रूढ़िवादी सोचो का ही नतीजा है कि करीब एकचौथाई आबादी दूसरों पर परजीवी की तरह जीने की आदी हो चुकी है. एक तरफ पंडेपुजारियों ने धर्म की दुकानें खोल रखी है और धार्मिक चोंचलों के जरिए लोगों से रूपए ठगते हैं तो दूसरी तरफ भिखारी और हिजड़ों की पूरी जमात निठल्ले घूमते हुए अपनी जिंदगी गुजार देती है.

ये चाहे तो क्या नहीं कर सकते ? प्रकृति ने उन्हें जननांग छोड़ कर सब कुछ दुरुस्त दिया है. ये देख सकते हैं, सुन सकते हैं, पढ़लिख सकते हैं, मेहनत कर के रोजीरोटी कमा सकते हैं मगर नहीं. जब भारत की बेवकूफ जनता इतनी इज्जत के साथ इन्हें मुफ्त की रोटियां खिला रही है तो भला ये अपने हाथपैर हिलाने का कष्ट क्यों करेंगे ? ज्यादातर किन्नर या तो भीख मांगते हैं या फिर वैश्यावृति के पेशे में उतर जाते हैं.

सोच बदलनी जरूरी

राजधानी दिल्ली में रहने वाली 56 वर्षीया मीता कहती हैं, “हमारे एक परिचित सज्जन है जो काफी धनाढ्य परिवार से ताल्लुक रखते हैं. उन के पास धनदौलत की कोई कमी नहीं. मगर वे हिजड़ों, भिखारियों और पंडेपुजारियों की मुफ्तखोरी को ले कर काफी रुष्ट रहते हैं. वे कभी भी पूजापाठ, शुभअशुभ, ग्रहनक्षत्रों या पापपुण्ड्य के चक्कर में नहीं पड़ते. मेहनत से अपना काम करते हैं और चिंतारहित खुशहाल जिंदगी जीते हैं. अपने बच्चों को भी उन्होंने यही शिक्षा दे रखी है.

“एकबार उन की पौत्री की शादी के दौरान मैं उन के पास ही बैठी थी. कहीं से हिजड़ों को इस शादी की खबर लग गई और वे दलबल के साथ आ धमके. लोगों को लगा कि आज के दिन तो यह मना नहीं कर पाएंगे और हिजड़ो के हाथ में खुशी से कुछ रखेंगे. आखिर बिटिया के जीवन का सवाल है. पर मैं यह देख कर चकित रह गई जब वह हौले से मंदमंद मुस्कुराते हुए उठे और हिजड़ो के पास जा कर सहज स्वर में बोले,

“भाई न तो हमें तुम्हारी दुआओं से फर्क पड़ता है और न बददुआओं से. इसलिए बेहतर होगा कि कहीं और शिकारी ढूंढो. हमें आप की जरूरत नहीं है.”

हिजड़ों का मुखिया अवाक नजरों इन्हें देखता रहा फिर भुनभुनाता हुआ अपने काफिले को ले कर चला गया. आज बच्ची की शादी के 5 साल गुजर चुके हैं. उन का पूरा परिवार खुशहाल जिंदगी जी रहा है. मैं भी उन से काफी प्रभावित रहने लगी हूं और मैं ने भी अपने घर में हिजड़ों और भिखारियों का प्रवेश निषिद्ध कर रखा है.”

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इस तरह के लोग समाज को बदलने का दायित्व निभा सकते हैं. वर्षों से जकड़ी पुरातन सोच को जड़ से मिटाना मुश्किल है पर नामुमकिन नहीं. धीरेधीरे यदि कुछ लोग समाज के सामने उदाहरण पेश करें और मानसिकता बदले तो संभव है कि एक दिन हमारा समाज हिजड़ो के चंगुल से पूरी तरह मुक्त हो सकेगा.

जब पीछा छुड़ाना हो हिजड़ों और किन्नरों से

हेल्पलाइन -ट्रेन में किन्नरों का पैसे मांगना गैरकानूनी है. रेलयात्रा के दौरान किन्नरों के गलत व्यवहार का सामना करना पड़े तो शिकायत इस पते पर करें : जनरल मैनेजर, नॉर्दर्न रेलवे हेडक्वार्टर, बड़ौदा हाउस, नई दिल्ली-110001, फोन 011-2338 7227, फैक्स : 011-2338 4548

किन्नरों की बदसलूकी से तुरंत निजात पाने के लिए पुलिस कंट्रोल रूम नंबर 100 या फिर लोकल पुलिस स्टेशन से संपर्क कर सकते

किन्नरों की मुफ्तखोरी

कुछ दिन पहले सपना के यहां बच्चे की छठी का अवसर था. वहां बड़ी धूमधाम से सारे काम निबटाये जा रहे थे. ख़ुशी भरा माहौल था. खानेपीने का भी अच्छा प्रबंध था. तभी धूमधड़ाके के साथ हिज़ड़ों का समूह आ धमका. तालियां बजाते हुए उन्होंने बच्चे के दादा और घरवालों को घेर लिया. अपनी क्षमता के हिसाब से कहीं ज्यादा रकम उन लोगों ने हिजड़ों के हाथों में थमा दिया और बच्चे के सर पर हाथ फेरने का आग्रह करने लगे. मगर हिजड़े जिद पर अड़ गए कि कम से कम 50 हज़ार और दो.

सपना के पति ने हाथ जोड़ दिए मगर तब तक उस के ससुर दौडतेभागते कहीं से रूपए लाने चले गए. इतने समय में ही हिज़ड़ों ने अपनी जात दिखानी शुरू कर दी. वे ऐसा बर्ताव करने लगे जैसे वे लोग रूपए उगाहने आये हों और मनमाफिक रूपए न मिलने पर तेवर दिखाना उन का अधिकार हो. यही नहीं उन्होंने यह चेतावनी भी दे डाली कि वे बददुआ दे देंगे. सारी खुशियां जल कर भस्म हो जाएंगी. घर वाले हाथ जोड़े गिड़गिड़ा रहे थे कि बख्स दो. ऐसा न करो.

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बच्चे के दादा हैरानपरेशान से आये और उन्होंने 50 हजार की गड्डी हिजड़ों के मुखिया के हाथों पर रख दी. उस का चेहरा खिल गया और शब्दों का चोला बदल गया. वह बड़े प्यार से बच्चे के सर पर हाथ फिराने लगा,  ‘तेरा बेटा खूब पढ़ेगा, अफसर बनेगा, माँबाप की खूब सेवा करेगा. जा खुश रह. हम चलते हैं”, कह कर वे आँखों से ओझल हो गए. बूढ़े दादा की आँखें ख़ुशी से छलछला उठीं. आँखों में कृतज्ञता के भाव लिए उन्होंने हिज़ड़ों को विदा किया.

सवाल उठता है कि आखिर इन हिजड़ों से इतना डरने की क्या बात है. उन की बददुआ से इतना भयभीत होने की क्या जरुरत? समारोह में आये हजारों लोगों ने जब बच्चे के सुंदर भविष्य की कामना की, आशीर्वाद दिये तो 4 -5 हिजड़ों के श्राप से डरना कैसा? कोई उन्हें कुछ रूपए भी भला क्यों दे? घर में बच्चे ने जन्म लिया तो खुशियां मना रहे हैं. ये हिजड़े भला कौन होते हैं रंग में भंग डालने वाले? आखिर बिना किसी श्रम के उन्हें रूपए पाने का हक़ किस ने दे दिया?

क्या इन हिजड़ों के कहने भर से बच्चा अफसर बन जाएगा और माँबाप को निहाल कर देगा? क्या बच्चे का भविष्य हिजड़ों के शब्दों पर निर्भर है? वस्तुतः यह सब बेमतलब की बातें हैं. आज से 30 साल बाद क्या होगा यह देखने के लिए शायद बच्चे के दादा जीवित भी न बचें मगर मन को संतुष्टि देने के लिए इस तरह के अंधविश्वासों को हवा जरूर मिलती है.

समाज का तानाबाना मर्द और औरत से मिल कर बना है. लेकिन एक तीसरा जेंडर भी हमारे समाज का हिस्सा है. इस की पहचान कुछ ऐसी है जिसे सभ्य समाज में अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता. समाज के इस वर्ग को थर्ड जेंडर, किन्नर या हिजड़े के नाम से जाना जाता है.

इन के कई नाम होते हैं. किन्नर, हिजड़ा और न जाने क्याक्या कहा जाता है. हमारे देश में इस समय 5 लाख से ज्यादा किन्नर रहते हैं. 2014 से इन को समाज में थर्ड जेंडर की श्रेणी में गिना जाने लगा. इस से पहले इन की न तो कोई पहचान थी और न ही कोई अधिकार. अभी भी इन के बलात्कार को हमारा कानून बलात्कार नहीं मानता.

क्यों डरते हैं लोग

ट्रैफिक पर जैसे ही बत्ती लाल होती है हाथ पसारे, तालियां बजाते हिजड़े जरूर आ धमकते है. भीख मांगने के इस पॉलिशड तरीके में वे दीनहीन बन कर रूपए नहीं मांगते बल्कि दादागिरी दिखा कर मांगते हैं. जबरदस्ती रूपए निकलवाते हैं. इंडिया गेट हो या सेंट्रल पार्क, बुद्धा जयंती पार्क हो या फिर कोई चौराहा, किन्नर हर जगह पैसे मांगते नजर आ जाएंगे. अगर किसी ने पैसे देने में आनाकानी की तो वे मूड खराब कर डालेंगे. शादी व बच्चे के जन्म पर घर में आने वाले किन्नरों की भी यही हालत है. आम आदमी इन के मांगने का ज़्यादा विरोध नहीं करता और चुपचाप पैसे निकाल कर इन के हाथों में पकड़ा देता है.

ऐसा करने के पीछे वजह वही डर है, हिज़ड़ों की बददुआ का डर. साथ ही सदियों से मन में बिठाया गया अन्धविश्वास. इस के पीछे एक मनोवैज्ञानिक कारण भी है वो यह कि किन्नरों की जब हम कोई बात नही मानते है तो वे लोगो को अपने गुप्तांगो को दिखाने का प्रयास करते है. उन की अप्राकृतिक बनावट के कारण लोगो का मन खराब हो जाता है. जिस का मनोवैज्ञानिक असर कही न कही लोगों की निजी जिंदगी पर भी पड़ता है.

मुफ्तखोरी की आदत

सवाल उठता है कि अगर व्यक्ति अपना लिंग बदलना चाहता है या जन्म से ही उस के साथ इस तरह की शारीरिक कमी है तो इस का मतलब यह तो नहीं कि उस को यह अधिकार मिल गया कि वह मेहनत करना छोड़ दे. शरीफ लोगो को सार्वजानिक स्थलों पर पैसे न देने के नाम पर प्राइवेट जगहों पर हाथ लगाने, बददुआ देने या गालीगलौच करने का काम करे. जबरदस्ती रूपए वसूले.

इस तरह के लोग विदेशों में भी होते हैं मगर वहां तो ये ऐसे निठल्ले और बदतमीज नहीं होते. वे किसी के आगे हाथ भी नहीं फैलातें. उन मुकामों तक पहुंच कर दिखातें है जहाँ कोई मर्द भी नहीं पहुंच पाता. हिज़ड़ा होने का मतलब यह नहीं कि उन्हें ज़िन्दगी भर काम से आज़ादी मिल गयी है और वे जो चाहे वह कर सकतें हैं.

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1. हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, वीर्य यानी स्पर्म की अधिकता से बेटा होता है और रज यानि रक्त की अधिकता से बेटी. अगर रक्त और वीर्य दोनों बराबर रहें तो किन्नर पैदा होते हैं. ऐसा भी माना जाता है कि ब्रह्माजी की छाया से किन्नरों की उत्पत्ति हुई है. दूसरी मान्यता यह है कि अरिष्टा और कश्यप ऋषि से किन्नरों की उत्पति हुई है.

2. इन का इतिहास बहुत पुराना है. इन का जिक्र महाभारत और उस,के बाद मुगलों की कहानियों में भी हैं.

3. ये ख़ुद को मंगलमुखी मानते हैं इसलिए ये लोग शादी, जन्म समारोह जैसे मांगलिक कामों में ही भाग लेते हैं. मरने के बाद भी ये लोग मातम नहीं मनाते बल्कि खुश होते हैं कि इस जन्म से पीछा छूट गया.

4. इन के समाज में नए सदस्य का आना कई तरीकों से होता है. अगर किसी के घर बच्चा पैदा होता है और उस बच्चे के जननांग में कोई कमी पायी जाती है तो उसे किन्नरों के हवाले कर दिया जाता है.

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मैं दोबारा किन्नर बन कर ही जन्म लेना चाहती हूं- नाज जोशी

दिल्ली की रहने वाली ट्रांसजेंडर नाज जोशी ने मौरीशस में मिस वर्ल्ड डाइवर्सिटी 2019 में लगातार तीसरी बार जीत हासिल कर भारत का नाम रोशन किया है. वह सामान्य महिलाओं के साथ किसी अंतर्राष्ट्रीय सौंदर्य प्रतियोगिता में जीतने वाली दुनिया की पहली ट्रांसजेंडर भी हैं. आइये तमाम परेशानियों का सामना कर इस मुकाम तक पहुंचने वाली नाज की उपलब्धियों और जीवन में आई चुनौतियों पर डालते हैं एक नजर;

सवाल- आप को जीवन के प्रारम्भिक दिनों में किस तरह के संघर्षों का सामना करना पड़ा था?

मेरा जन्म 31 दिसंबर 1984 को दिल्ली के शाहदरा इलाके में हुआ था. जब मैं 5 साल की थी तो मुझे घर से निकाल दिया गया क्यों कि मैं लड़कियों की तरह व्यवहार करती थी. मांबाप को लगता था कि उन के इस बेटे को दुनिया स्वीकार नहीं करेगी. मैं लड़का कम और लड़की अधिक लगती थी. समाज के तानों के डर से मांबाप ने मुझे मामा के यहां भेज दिया. मामा के यहां पहले से 7 बच्चों का परिवार था जहां मैं आठवीं बन कर गई थी और घर की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं थी. उन के बच्चे पढ़ते नहीं थे बल्कि काम करते थे. मैं ने मामा जी से कहा कि मैं पढ़ना भी चाहती हूं. उन्होंने मेरा दाखिला स्कूल में करवा दिया मगर साथ में एक ढाबे में काम पर भी लगा दिया.

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मैं सुबह स्कूल जाती थी फिर दोपहर में ढाबे में काम करती. शाम को घर का काम करती और रात को होमवर्क कर थक कर सो जाती. सुबह फिर स्कूल चली जाती. 11 साल की उम्र तक इसी तरह जीवन जिया. मैं खुश थी कि मुझे पढ़ने को मिल रहा है. मगर एक दिन मेरे कजन भाई ने मेरा मौलेस्टेशन किया. मैं काफी इंजुयर्ड हो गई थी. होश आया तो खुद को अस्पताल में पाया. बहुत सारे बैंडेज लगे हुए थे.

मामा ने कहा कि घर में कुछ प्रौब्लम है सो तुम्हे अपने घर नहीं ले जा सकता. यहां से आगे की जर्नी अब तुम्हें खुद ही तय करनी है. उन्होंने किन्नर समुदाय की एक महिला से मेरी मुलाकात कराई और कहा कि अब तुम्हे इन के साथ रहना है. उस महिला से भी मैं ने यही कहा कि मुझे पढ़ना है. उन्होंने स्कूल के साथ मुझे डांस बार में काम पर लगा दिया. मैं कमाने के साथसाथ पढ़ाई करने लगी. डांस बार में हमारा काम सिर्फ लोगों का मनोरंजन करना था. यहां लोग हमें हीनभावना से देखते थे लेकिन किसी भी कस्टमर ने हमारे साथ गलत नहीं किया. हमें गन्दी नजरों से नहीं देखा.

दरअसल कई बार जो जगह गंदी मानी जाती है वहां लोग अच्छे होते हैं और अच्छी जगह में भी गंदगी मिल सकती है जैसे कि बाबाओं साधुसंतों को देखिए. इन के यहां कितने गंदे काम होते हैं.

मैं ने 2013 के दिसंबर में अपनी सर्जरी कराई थी. 2014 में जजमेंट आई कि हमें अपना जेंडर चुनने का हक़ है. तब मैं ने भी मेडिकल और आईकार्ड जमा कर खुद को महिला प्रूव किया. अब मैं महिला हूँ और महिला वाले सारे हक़ मेरे पास हैं. मैं दोबारा भी किन्नर बन कर ही जन्म लेना चाहती हूँ.

सवाल- आप मौडलिंग के फील्ड में कैसे आईं ?

जब मैं 18 साल की हुई तो विवेका बाबाजी जो एक मॉरिश मॉडल हैं, से मेरी मुलाक़ात हुई. वे मेरी दूर की कजन सिस्टर हैं और महाराष्ट्र से बिलॉन्ग करती हैं. उन्होंने मुझे फैशन डिजाइनिंग कोर्स ज्वाइन करने की सलाह दी क्यों कि मुझे कपड़े डिज़ाइन करने का शौक था. उन्होंने मुझे निफ्ट में पढ़ाया. मैं वहां टॉपर रही और 3 साल पढ़ने के बाद मुझे रितु कुमार के यहाँ जॉब मिल गई. 2 साल काम किया पर वहां सेफ वर्क एन्वॉयरन्मेंट नहीं था.

तब मैं ने तय किया कि मैं अपना बुटीक चालू करुँगी. मैं ने शाहदरा में बुटीक खोला मगर लोग अपनी बहुबेटियों को मेरे यहाँ भेजने से कतराते थे क्यों कि मैं किन्नर थी और लोगों को मुझ पर विश्वास नहीं था. उन्हें लगता था कि पता नहीं मैं उन के साथ क्या कर जाउंगी.
बुटीक फ्लॉप होने के बाद मैं ने जिस्म बेचने का धंधा शुरू किया. इस धंधे के दौरान ही एक फोटोग्राफर से मेरी मुलाकात हुई. उन्होंने मुझे मॉडलिंग लाइन में उतारा.

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2008 के आसपास मैं ने मौडलिंग शुरू की. तहलका पत्रिका में मेरी फोटो कवरपेज पर आई. इस के अलावा भी 4- 5 मैगजीन के कवरपेज पर मैं आ चुकी हूं. अब तक 4 ब्यूटी पैजेंट भी जीत चुकी हूं. मैं पहली ऐसी ट्रांसजेंडर मौडल हूं जिसे इतने बड़ेबड़े मौके मिले वरना इस फील्ड में हमारे समुदाय के लोगों को चांस ही नहीं मिलता.

मौडलिंग के दौरान मेरे साथ काम करने वाले बच्चे 18- 19 साल से ज्यादा के नहीं होते थे जब कि मैं काफी मैच्योर थी. तब मैं ने इन्हे अपने फैशन गुरुकुल के तहत फ्री में मॉडलिंग सिखाना शुरू किया. 2015 में मैं ने शादीशुदा महिलाओं के लिए ब्यूटी पैजेंट करवाना शुरू किया. कई तरह के कांटेस्ट करवाए. मैं ने उन महिलाओं से कहा कि मैं आप के लिए काम कर रही हूँ तो आप को भी ट्रांसजेंडर्स के लिए काम करना होगा. उन्होंने ऐसा किया भी. दरअसल मैं गैप खत्म करना चाहती हूं. हमारी जैसी ट्रांसजेंडर्स भी ओरतें ही हैं. दोनों ही समाज में अपनी पहचान खोज रही हैं. दोनों को एकदूसरे का साथ चाहिए.

सवाल- आप के जीवन में किस तरह की मुश्किलें और चुनौतियां आईं ?

मुश्किलें कई तरह की हैं मसलन; आज भी लोग हमें टेढ़ी और खराब नजरों से देखते हैं.
लोग हमारे साथ भेदभाव करते हैं. वे यह नहीं समझते कि हम भी उन के ही अंश हैं. हमें भी किसी ओरत ने ही जन्म दिया है.
हमारे लिए गलत शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है. यह दिल्ली जैसे शहरों में ज्यादा है. खासकर जब लोग हमारी फैमिली के बारे में कुछ भद्दा बोलने लगते हैं तो यह हमारे लिए बहुत दर्दनाक होता है.
लोग हमारे साथ रिश्ता जोड़ना नहीं चाहते. यहाँ तक कि यह कह कर भी शादियां तोड़ दी जाती हैं कि इस का भाई या बहन ट्रांसजेंडर है. हमें घर ढूंढने में भी परेशानी आती है. कोई हमें घर देना नहीं चाहता.
हमलोग भी चाहते हैं कि हमारा कोई हमराज हो. हमारा भी घर बसे. हम भी महिलाएं हैं. पुरुष हमारी तरफ आकर्षित होते हैं. मगर समाज के डर से पुरुष हमें अपनाने का हौसला नहीं जुटा पाते. वे अपने किये वादे नहीं निभाते. हमें सच्चा प्यार नहीं मिल पाता. नतीजा यह होता है कि बहुत सारी किन्नर 40 -45 की उम्र तक आतेआते डिप्रेशन का शिकार होने लगती हैं. मेरी तो इंगगेजमेंट के बाद भी शादी टूट गई. सिर्फ इस वजह से कि मैं एक ट्रांसजेंडर हूँ.

सवाल- अक्सर हम देखते हैं कि किन्नर शादीब्याह के मौकों या फिर चौकचौराहों पर जबरन पैसे वसूली का काम करते हैं. क्या यह गलत नहीं है?

दरअसल यह बात किन्नर पुराण में लिखी है कि हमें मांग कर खाना है. मगर जोरजबरदस्ती की बात बहुत गलत है. कोई शख्स अपनी ख़ुशी से जितना दे उतना ही प्यार से लेना उचित है. किन्नरों को इस तरह जबरदस्ती करता देख कर कभीकभी बहुत शर्मिंदगी महसूस होती है. यह तो पूरी तरह गुंडागर्दी है.

सवाल- आप को अपनी जिंदगी में कुछ कमी महसूस होती है?

समय के साथ मुझे जीवन में सब कुछ मिलता गया मगर एक कमी फिर भी महसूस होती है और वह है किसी हमराज का न होना. कोई भी पुरुष किसी ट्रांसजेंडर का हाथ थामने की हिम्मत नहीं कर पाता. प्यार भले ही कर ले मगर उसे एक मुकाम तक नहीं पहुंचा पाता. आज भी मैं अकेलापन महसूस करती हूँ और यही वजह है कि मैं ने 2018 में 15 दिन की एक बच्ची को गोद लिया. वह एक आईवीएफ बेबी थी जिसे उस के मांबाप ने छोड़ दिया था. सच कहूं तो इस बच्ची ने मुझे अपने परिवार से वापस जोड़ दिया है.

सवाल- आप फ़िलहाल किस तरह की लड़ाई लड़ रही हैं?

मेरी लड़ाई यह है कि मैं लोगों को समझाने का प्रयास करती हूँ कि हमारा समुदाय भी प्यार और सम्मान के काबिल है. हमें भी जीने और समान अधिकार पाने का हक़ है. हमें गन्दी नजरों से देखना बंद किया जाना चाहिए. हमें भी शादी करने या बच्चे गोद लेने का हक़ है.

हमारे समुदाय की बहुत सी महिलाएं जिस्मफिरोशी के काम करने को मजबूर होती है. ऐसा नहीं कि यही काम उन्हें पसंद है मगर वजह यह है कि कहीं न कहीं सामान्य काम करना उन के वश में नहीं. कॉरपोरेट वर्ल्ड या दूसरी सामन्य नौकरियों में उन्हें सेफ वर्क एन्वॉयरन्मेंट नहीं मिल पाता. लोग हमारा मजाक उड़ाते हैं या हमारे साथ गलत व्यवहार करते हैं. चाह कर भी हम ऐसी जगहों पर काम नहीं कर पाते.

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सवाल- क्या ट्रांसजेंडर भी कई तरह के होते हैं?

जी हां ट्रांसजेंडर कई तरह के होते है; कुछ वे होते हैं जिन के जननांग पूरी तरह डेवेलप नहीं हो पाते.
कुछ ऐसे हैं जो खुद को आइडेंटिफाई नहीं कर पाते. उन का जन्म भले ही पुरुष शरीर में हुआ हो मगर वे खुद को स्त्री जैसा महसूस करते हैं. ये बाद में औपरेशन द्वारा अपना लिंग परिवर्तन कराते हैं. इन्हें ट्रांस सेक्सुअल कहा जाता है.
कुछ ऐसे भी होते हैं जिन्हे जबरन किन्नर बनाया जाता है. बचपन में ही उन के जननांग को काट दिया जाता है.

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