Mother’s Day 2024: हसीं वादियों का तोहफा धर्मशाला

घूमने या सैरसपाटे की जब भी बात आती है तो शहरी आपाधापी से दूर पहाड़ों की नैसर्गिक सुंदरता सब को अपनी ओर आकर्षित करती है. इन छुट्टियों को अगर आप भी हिमालय की दिलकश, बर्फ से ढकी चोटियों, चारों ओर हरेभरे खेत, हरियाली और कुदरती सुंदरता के बीच गुजारना चाहते हैं तो हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा के उत्तरपूर्व में 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित धर्मशाला पर्यटन की दृष्टि से परफैक्ट डैस्टिनेशन हो सकता है. धर्मशाला की पृष्ठभूमि में बर्फ से ढकी छोलाधार पर्वतशृंखला इस स्थान के नैसर्गिक सौंदर्य को बढ़ाने का काम करती है. हाल के दिनों में धर्मशाला अपने सब से ऊंचे और खूबसूरत क्रिकेट मैदान के लिए भी सुर्खियों में बना हुआ है. हिमाचल प्रदेश के दूसरे शहरों से अधिक ऊंचाई पर बसा धर्मशाला प्रकृति की गोद में शांति और सुकून से कुछ दिन बिताने के लिए बेहतरीन जगह है.

धर्मशाला शहर बहुत छोटा है और आप टहलतेघूमते इस की सैर दिन में कई बार करना चाहेंगे. इस के लिए आप धर्मशाला के ब्लोसम्स विलेज रिजौर्ट को अपने ठहरने का ठिकाना बना सकते हैं. पर्यटकों की पसंद में ऊपरी स्थान रखने वाला यह रिजौर्ट आधुनिक सुविधाओं से लैस है जहां सुसज्जित कमरे हैं जो पर्यटकों की जरूरतों को ध्यान में रख कर बनाए गए हैं. बजट के अनुसार सुपीरियर, प्रीमियम और कोटेजेस के औप्शन मौजूद हैं. यहां के सुविधाजनक कमरों की खिड़की से आप धौलाधार की पहाडि़यों के नजारों का लुत्फ उठा सकते हैं. यहां की साजसजावट व सुविधाएं न केवल पर्यटकों को रिलैक्स करती हैं बल्कि आसपास के स्थानों को देखने का अवसर भी प्रदान करती हैं. इस रिजौर्ट से आप आसपास के म्यूजियम, फोर्ट्स, नदियों, झरनों, वाइल्ड लाइफ पर्यटन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आनंद ले सकते हैं.

धर्मशाला चंडीगढ़ से 239 किलोमीटर, मनाली से 252 किलोमीटर, शिमला से 322 किलोमीटर और नई दिल्ली से 514 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इस स्थान को कांगड़ा घाटी का प्रवेशद्वार माना जाता है. ओक और शंकुधारी वृक्षों से भरे जंगलों के बीच बसा यह शहर कांगड़ा घाटी का मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यताप्राप्त धर्मशाला को ‘भारत का छोटा ल्हासा’ उपनाम से भी जाना जाता है. हिमालय की दिलकश, बर्फ से ढकी चोटियां, देवदार के घने जंगल, सेब के बाग, झीलों व नदियों का यह शहर पर्यटकों को प्रकृति की गोद में होने का एहसास देता है.

कांगड़ा कला संग्रहालय: कला और संस्कृति में रुचि रखने वालों के लिए यह संग्रहालय एक बेहतरीन स्थल हो सकता है. धर्मशाला के इस कला संग्रहालय में यहां के कलात्मक और सांस्कृतिक चिह्न मिलते हैं. 5वीं शताब्दी की बहुमूल्य कलाकृतियां और मूर्तियां, पेंटिंग, सिक्के, बरतन, आभूषण, मूर्तियां और शाही वस्त्रों को यहां देखा जा सकता है.

मैकलौडगंज : अगर आप तिब्बती कला व संस्कृति से रूबरू होना चाहते हैं तो मैकलौडगंज एक बेहतरीन जगह हो सकती है. अगर आप शौपिंग का शौक रखते हैं तो यहां से सुंदर तिब्बती हस्तशिल्प, कपड़े, थांगका (एक प्रकार की सिल्क पेंटिंग) और हस्तशिल्प की वस्तुएं खरीद सकते हैं. यहां से आप हिमाचली पशमीना शाल व कारपेट, जो अपनी विशिष्टता के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचलित हैं, की खरीदारी कर सकते हैं. समुद्रतल से 1,030 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मैकलौडगंज एक छोटा सा कसबा है. यहां दुकानें, रेस्तरां, होटल और सड़क किनारे लगने वाले बाजार सबकुछ हैं. गरमी के मौसम में भी यहां आप ठंडक का एहसास कर सकते हैं. यहां पर्यटकों की पसंद के ठंडे पानी के झरने व झील आदि सबकुछ हैं. दूरदूर तक फैली हरियाली और पहाडि़यों के बीच बने ऊंचेनीचे घुमावदार रास्ते पर्यटकों को ट्रैकिंग के लिए प्रेरित करते हैं.

कररी : यह एक खूबसूरत पिकनिक स्थल व रैस्टहाउस है. यह झील अल्पाइन घास के मैदानों और पाइन के जंगलों से घिरी हुई है. कररी 1983 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. हनीमून कपल्स के लिए यह बेहतरीन सैरगाह है.

मछरियल और ततवानी : मछरियल में एक खूबसूरत जलप्रपात है जबकि ततवानी गरम पानी का प्राकृतिक सोता है. ये दोनों स्थान पर्यटकों को पिकनिक मनाने का अवसर देते हैं.

कैसे जाएं

धर्मशाला जाने के लिए सड़क मार्ग सब से बेहतर रहता है लेकिन अगर आप चाहें तो वायु या रेलमार्ग से भी जा सकते हैं.

वायुमार्ग : कांगड़ा का गगल हवाई अड्डा धर्मशाला का नजदीकी एअरपोर्ट है. यह धर्मशाला से 15 किलोमीटर दूर है. यहां पहुंच कर बस या टैक्सी से धर्मशाला पहुंचा जा सकता है.

रेलमार्ग : नजदीकी रेलवे स्टेशन पठानकोट यहां से 95 किलोमीटर दूर है. पठानकोट और जोगिंदर नगर के बीच गुजरने वाली नैरोगेज रेल लाइन पर स्थित कांगड़ा स्टेशन से धर्मशाला 17 किलोमीटर दूर है.

सड़क मार्ग : चंडीगढ़, दिल्ली, होशियारपुर, मंडी आदि से हिमाचल रोड परिवहन निगम की बसें धर्मशाला के लिए नियमित रूप से चलती हैं. उत्तर भारत के प्रमुख शहरों से यहां के लिए सीधी बससेवा है. दिल्ली के कश्मीरी गेट और कनाट प्लेस से आप धर्मशाला के लिए बस ले सकते हैं.

कब जाएं

धर्मशाला में गरमी का मौसम मार्च से जून के बीच रहता है. इस दौरान यहां का तापमान 22 डिगरी सैल्सियस से 38 डिगरी सैल्सियस के बीच रहता है. इस खुशनुमा मौसम में पर्यटक ट्रैकिंग का आनंद भी ले सकते हैं. मानसून के दौरान यहां भारी वर्षा होती है. सर्दी के मौसम में यहां अत्यधिक ठंड होती है और तापमान -4 डिगरी सैल्सियस के भी नीचे चला जाता है जिस के कारण रास्ते बंद हो जाते हैं और विजिबिलिटी कम हो जाती है. इसलिए धर्मशाला में घूमने के लिए जून से सितंबर के महीने उपयुक्त हैं.

नेचर का लाइट जोन है हिमाचल

हमारी टोली की ट्रैक गाइड आइसा कह रही थी, ‘‘इस बार कुछ नया हंगामा करेंगे. खानाबदोशी का निराला जश्न मनाएंगे. ऐसा ट्रैक पकड़ेंगे कि हिमाचल प्रदेश के अधिकांश ऊपरी रोमांचक स्थलों पर पैदल घूमा जा सके और वहां बसे लोगों के संग फुरसत से रहा जा सके. हम तिब्बत से जुड़ी भारत की अंतिम आबादियों तक जाएंगे.’’

इस सफर में 14 मित्र शामिल हुए, हालांकि हमें 10 से ज्यादा की उम्मीद नहीं थी. पहाड़ों पर छोटी टोली में  झं झट कम रहते हैं. आइसा जैसी गाइड हों तो 2 ही बहुत हैं.

अगली सुबह हम ओल्ड मनाली से क्लबहाउस के रास्ते सोलंगनाला की पगडंडी पर थे. मनालसू नदी पीछे छूट गई. अब व्यास नदी हमारे दाहिने थी. सब नदी पार बसे वसिष्ठ गांव और उस के आगे के जोगनी फौल के खुलेपन को देख रहे थे. धीरेधीरे हम सब में एक फासला आ गया और हम बातचीत भूल कर नजारों में डूब गए.

हिमालय की घाटियों से बचपन से परिचित आइसा सब से आगे थी. पीछे छूट जाने वाले मित्रों की सुविधा के लिए वह हर मोड़ या दोराहे पर चट्टान पर चाक से तीर का निशान बना कर ‘एस’ लिख रही थी, ताकि अगर मोबाइल फोन काम न कर सके तो आगे मिला जा सके.

स्कूल के लिए निकले बालकबालिकाएं और बागों व वनों में निकले स्त्रीपुरुष मुसकराते और हाथ हिलाते. दोनों ओर फैले सेब के बागों में भरे अधपके सेबों पर लाली आ रही थी. सामने धौलाधार का अंतिम शिखर और उस से जुड़ा रोहतांग पर्वत अपने विराट रूप में सुबह की किरणों का सुनहरा जादू ओढ़े प्रतीत हो रहे थे.

2 घंटे के बाद सोलंगनाला के चट्टानी नदी तट पर हमारी टोली शवासन में लेटी थी. आइसा ने हमें मन और सांस को साधने की यौगिक क्रिया से गुजारा और बताया कि किस तरह शरीर थक जाने के बाद भी वह स्वयं को दोबारा अनोखी ऊर्जा से भर देता है. होश और जोश के साथ मन से मिलजुल कर भोजन पकाया व खाया. दोपहर बाद चाय पी कर हम मनाली-लेह रोड की चढ़ाई की ओर मुड़े. पलचान और कोठी के बीच के अनोखे मखमली भूभाग से गुजर कर शाम को गुलाबा के ऊपरी वन में पहुंचे, जहां देवदारों का सिलसिला समाप्त होता है और भोजपत्र के वन दिखाई देने लगते हैं.

सुबह हम चले तो ग्लेशियरों और  झरनों से घिरी चढ़ाई पार कर के मढ़ी पहुंचे, जहां पेड़पौधे नहीं उगते. हमारे सिरों के ऊपर सैलानी हैंडग्लाइडरों पर उड़ रहे थे. यहां से मनाली तक की ढलानों और उन पर बिछी सर्पीली सड़क और चारों ओर के बर्फ ढके पहाड़ों को देखना रोमांचक है.

मढ़ी के निचले क्षेत्र में नदी की धाराओं और ग्लेशियरों पर हजारों पर्यटकों को एक नजर में खेलते और खातेपीते देखा जा सकता है. मढ़ी में भी एक ढाबे में जलते चूल्हे के इर्दगिर्द हमारे रैनबसेरे का इंतजाम हो गया, अपने पल्ले में ओढ़नेबिछाने और खानेपीने का इंतजाम हो तो मईजून में जनवरीफरवरी की ठंडक पाने का मजा ही कुछ और है. जहां जलाने की लकड़ी नहीं होती, वहां चाय बनाने के लिए नन्हा गैसस्टोव हमारी मदद कर रहा था. रोमांच की आंच हो तो इस से अच्छा और क्या हो सकता है.

हमारी टोली की जयपुरवासी नेहा गा रही थी, ‘‘इस रंग में कोई जी ले अगर…’’

सुबह सूरज निकलते ही हम रोहतांग पर्वत की चोटी पर चढ़ रहे थे, दिसंबर से 5-6 महीने के लिए यह रास्ता वाहनों और पैदल यात्रियों के लिए पूरी तरह बंद हो जाता है, लेकिन जून से अक्तूबर तक इस पर दुनियाभर के सैलानियों का मेला दिखाई देता है. हजारों लोग जोखिम उठा कर अपनी कारों पर सपरिवार यहां पहुंचते हैं.

मनाली से रोहतांग शिखर 52 किलोमीटर है. हम ने शौर्टकट वाली कुछ पगडंडियां पकड़ कर 10-12 किलोमीटर कम कर लिए थे. इस में चढ़ाई ज्यादा बढ़ जाती है, लेकिन कुदरत के अजूबे ज्यादा मिलते हैं.

दोपहर से पहले हम रोहतांग की चोटी पर थे. पर्यटकों को ले कर मनाली से मुंहअंधेरे निकली गाडि़यों की कतारें लग रही थीं. यहां की बर्फ से व्यास नदी निकली है जो आगे आने वाले  झरनों और नालों से भरती चली गई है. रोहतांग पर्वत पर नीले आसमान से उतरी मीठी धूप में बैठने, बर्फीले मैदानों पर टहलने और ढलानों पर फिसलने का मजा लेने के बाद रोहतांग के उस पार निकले.

उतराई पर बसमार्ग से हट कर निकली पगडंडी ने हमारे सफर को राहत दी. 3 घंटे के बाद हम रोहतांग की तलहटी पर बहती चंद्र नदी के किनारे अगले भोजन के लिए

3 पत्थरों वाला चूल्हा बना रहे थे. सूखे हुए तिनके और डंठल आसानी से मिल गए. सूखा हुआ गोबर भी काम आया. ग्रांफू नामक इस जगह से बाएं लाहुलस्पिति के मुख्यालय केलांग को और दाएं स्पिति घाटी को रास्ते हैं. हमें स्पिति जाना था. तभी घास से अधभरा एक ट्रक हमारे चूल्हे के पास आ कर रुका. ड्राइवर ने हमारी चाय सुड़की और बताया कि अगर हम 14 नरनारी घास के बीच समाना पसंद करें तो वह हमें बातल तक पहुंचा देगा. यह एक संयोग था कि हमें बातल में डेरा डालना था, जहां से 12 किलोमीटर का चंद्रताल लेक ट्रैक दुनिया के बेहतरीन घुमक्कड़ों को निमंत्रण देता आया है.  शाम को हम चंद्र नदी के किनारे बातल में डेरा डाल चुके थे.

रोमांच से भरा चंद्रताल

सुबह आइसा की आवाज गूंजी, ‘‘चायवाय और बाकी सब कुछ रास्ते में होगा. 7 बजने वाले हैं. दोपहर को हम चंद्रताल पर खिली धूप में खाना पका रहे होंगे. आप लोग वहां फैसला करेंगे कि आज यहां लौटना है या वहीं कहीं गुफा में रहना है. मैं रात को वहीं रुकना चाहती हूं.’’ मैं ने बताया, ‘‘मैं अकेला होता हूं तो सप्ताहभर वहीं रहता हूं. आज तो नहीं लौटूंगा.’’

चंद्रताल पहुंचे तो वहां का मंजर देख कर चिल्लाए, ‘‘आज यहीं रहेंगे.’’ जेएनयू दिल्ली के हितेश और लंदन की मिरांडा को कल से हलका बुखार था, लेकिन उन्होंने बताया कि यहां की प्यारी हवा में दोपहर तक बुखार उड़ जाएगा. सब उस पतली धारा में हाथपांव भिगोने लगे जो चंद्रताल  झील में से निकल कर चंद्रताल नदी बनाती है और केलांग के पास भागा नदी से मिल कर चंद्रभागा हो जाती है. इसी नदी को चेनाब कहा जाता है यानी चंद्रनीरा.

एक छोर पर थैले और स्टिक्स छोड़ कर सब चुपचाप अकेलेअकेले  झील की ढाई किलोमीटर की परिक्रमा पर निकल गए. हम ने पूर्णिमा की रात यहां रहने के लिए चुनी थी. आइसा यह देख कर मुसकराई कि कुछ साथी अपनी नोटबुकें निकाल कर कुछ लिखने लगे हैं. वह बोली, ‘‘यहां आ कर मैं ने अकसर कविताएं और कहानियां लिखी हैं. हिमाचल प्रदेश में यह एकमात्र जगह है, जहां मकान या मंदिर जैसी कोई चीज दिखाई नहीं देती. आकाश जैसी यह  झील है और उस के चारों ओर खड़े बर्फीले पर्वत. मन सीधा कुदरत से बात करता है,’’ सहसा वह गाने लगी, ‘‘अज्ञात सा कुछ उड़नखटोले पर आता है और हमारे कोरे कागज पर उतर जाता है…’’

रात को चांद निकला तो वही हुआ, जिसे सम झाया नहीं जा सकता. चांद के निकलते ही  झील में लहरें उठने लगीं और चांद की परछाईं उन में नाचती रही. हमारे पास चांद और लहरों के साथ थिरकने के अलावा और कुछ नहीं था. चंद्रताल और उस के सारे विराट मंजर को प्रणाम कर के हम अपना हर निशान मिटा कर लौटे. अधकचरे लोग तो हर कहीं अपना नाम खोद कर ही लौटते हैं.

तन और मन का शोध करने वालों की बस्ती

बातल से कुंजुम दर्रे तक खड़ी चढ़ाई है. दोपहर को बातल में बस मिली और शाम को हम कुंजुम और लोसर गांव की अनोखी बुलंदियों से होते हुए स्पिति के मुख्यालय काजा में पहुंचे. अगली सुबह हम पास ही ‘की’ गोंपा को निकले और दोपहर को दुनिया के ऐसे सब से ऊंचे गांव किब्बर में पहुंचे जहां बिजली भी है और बस भी पहुंचती है. स्पिति नदी के तट पर बसे काजा क्षेत्र और वहां के लोगों के बीच 2 दिन बिताने और जीभर कर सुस्ताने के बाद हम ने ताबो की बस पकड़ी. लगभग डेढ़ सदी पहले ताबो में ऐसे  स्त्रीपुरुषों ने डेरा जमाया था जो निपट सन्नाटे में रह कर तन और मन के रहस्यों को जानना चाहते थे. ताबो संग्रहालय में उन लोगों की प्रतिमाएं और ममियां देखी जा सकती हैं. ‘की’ गोंपा, काजा और ताबो में आज भी गहरी रुचियों वाले लोग अज्ञातवास में रहने आते हैं. हर गोंपा में ध्यान, निवास और खानेपीने की सुविधाएं हैं. बौद्ध परंपरा में भी हालांकि रूढि़यां भर गई हैं लेकिन वहां हर व्यक्ति को अपने ढंग से भीतरबाहर का अध्ययन करने की स्वतंत्रता है. शांत चित्त के लिए तो यहां की दुनिया संजीवनी है.

किन्नर कैलास और वास्पा घाटी

चांगो की हिमानी और चट्टानी दुनिया और नाको  झील की खामोशी से बातें करते हम उस सतलुज नदी के तटों पर थे जो मानसरोवर से निकल कर यहां से गुजरती है. हिमाचल का जिला किन्नौर सामने था. मुख्यालय रिकांगपिओ और कल्पा से हम ने किन्नर कैलास की बुलंदियों को देखा.

रिकांगपिओ से हम सतलुज और वास्पा नदियों के संग पर कड़छम गए और वास्पा नदी के साथसाथ सांगला घाटी पहुंचे. वास्पा या सांगला घाटी किन्नर कैलास पर्वत के ठीक पीछे बसी है. यहां काला जीरा और केसर की खेती होती है. कई गांवों में से गुजरते हुए हम अंतिम भारतीय गांव चितकुल पहुंचे. हर गांव कलात्मक मंदिरों से संपन्न हैं. हर कहीं देवदारों के सिलसिले हैं.

ओगला और फाफरा नामक अनाजों से खेत सजे हुए मिले. नृत्य व संगीत के लिए कभी मौका न चूकने वाली मेहनती युवतियों ने हमें कई जगह घेरा और मेहमान बनाया. हिमालय के लोगों का दुर्लभ सरल स्वभाव इस घाटी की माटी में रचाबसा हुआ है. चितकुल में हमें शिमला जाने वाली बस मिली.

जलोड़ी दर्रे के आरपार

किन्नौर के टापरी, वांगतू, भाभानगर, तरंडा और निगुलसरी होते हुए हम शिमला जिले के ज्योरी, सराहन और फिर रामपुर बुशहर पहुंचे. अगले दिन फिर बड़ा रोमांच सामने था. सतलुज पार की चढ़ाई से पैदल कुल्लू जिले के जलोड़ी दर्रे पर पहुंचना और अगले दिन दूसरी तरफ उतरना. जलोड़ी की चढ़ाई रोहतांग से आसान है. रास्ते में कई गांव हैं. हम यहां की अनोखी सरयोलसर  झील तक गए और पास ही वनविभाग की हट में शरण ली. अगले दिन जलोड़ी दर्रे की दूसरी तरफ की उतराई पर शोजा और बनजार होते हुए दिल्ली-मनाली मार्ग पर आ गए.

शाम को हम नए ट्रैक्स पर जाने की योजना बना रहे थे, वे थे : मनाली के वसिष्ठ गांव से भुगु लेक, मनाली से नग्गर होते हुए मलाना, मलाना से मणिकर्ण होते हुए पार्वती वैली के रोमांचक स्थल क्षीरगंगा, क्षीरगंगा से बजौरा होते हुए पर्वत शिखर पर पराशर  झील, रिवालसर  झील और शिकारीदेवी शिखर. इस में एक और महीना लगने वाला था.

हिमाचल प्रदेश के अधिकांश ट्रैक्स आज ठहरने और खानेपीने की सुविधाओं से भरे हुए हैं, इसलिए जब भी जरूरी हो, पैदल चलने वाले लोग उन सुविधाओं का लाभ उठा सकते हैं.

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Summer Special: नेचुरल ब्यूटी से भरपूर है पूर्वोत्तर राज्य

पूर्वोत्तर राज्यों में कुदरती खूबसूरती सौगात बन कर बरसती है. यहां आ कर एक नए भारत के दर्शन होते हैं. आदिवासी जीवन, नृत्यसंगीत, लोककलाएं व परंपराओं से रूबरू होने के साथसाथ प्राकृतिक सुंदरता और सरल जीवनशैली भी यहां के खास आकर्षण हैं.

पूर्वोत्तर राज्यों की  खूबसूरती का जवाब नहीं. यहां के घने जंगल, हरेभरे मैदान, पर्वत शृंखलाएं सैलानियों को बहुत लुभाते हैं. सरल स्वभाव के पूर्वोत्तरवासी अपनी परंपराएं और संस्कृति आज भी कायम रखे हुए है. यहां आ कर ऐसा प्रतीत होता है कि मानो हम किसी दूसरी दुनिया में आ गए हैं. यहां के हर राज्य का अपना नृत्य व अपना संगीत है.

गुवाहाटी

गुवाहाटी असम का प्रमुख व्यापार केंद्र है. गुवाहाटी उत्तरपूर्व सीमांत रेलवे का मुख्यालय है. सड़क मार्ग से भी यह आसपास के राज्यों के अनेक शहरों शिलौंग, तेजपुर, सिलचर, अगरतला, डिब्रूगढ़, इंफाल आदि से जुड़ा हुआ है. यही कारण है यह पूर्वोत्तर का गेटवे कहलाता है.

असम

यहां का सब से बड़ा आकर्षण कांजीरंगा नैशनल पार्क है. गैंडे, बाघ, बारहसिंगा, बाइसन, वनविलाव, हिरण, सुनहरा लंगूर, जंगली भैंस, गौर और रंगबिरंगे पक्षी इस नैशनल पार्क के आकर्षण हैं. बल्कि बर्ड वाचर्स के लिए तो कांजीरंगा बर्ड्स पैराडाइज है. पार्क में हर तरफ घने पेड़ों के अलावा एक खास किस्म की घास, जो हाथी घास कहलाती है, भी देखने को मिलती है. इस घास की खासीयत यह है कि इस की ऊंचाई आम पेड़ जितनी है. यहां की घास इतनी लंबी है कि इन के बीच हाथी भी छिप जाएं. इसी कारण यह घास हाथी घास कहलाती है. कांजीरंगा ऐलीफैंट सफारी के लिए ही अधिक जाना जाता है. यहां हर साल फरवरी में हाथी महोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. इस महोत्सव का मकसद सिर्फ पर्यटन को बढ़ावा देना नहीं है, बल्कि इस क्षेत्र में पाए जाने वाले एशियाई हाथियों का संरक्षण और उन्हें सुरक्षा प्रदान करना भी है.

कांजीरंगा में हाथी सफारी का मजा बागुड़ी, मिहीमुखी में लिया जा सकता है. हाथी की सवारी के लिए सब से जरूरी हिदायत यह दी जाती है कि पैर पूरी तरह से ढके होने चाहिए वरना यहां पाए जाने वाली हाथी घास से दिक्कत पेश आ सकती है. कांजीरंगा जाने का बेहतर समय नवंबर से ले कर अप्रैल तक है. यहां खुली जीप में या हाथी की सवारी कर पहुंचा जा सकता है. कांजीरंगा के पास ही नामेरी नैशनल पार्क है. यह रंगबिरंगी चिडि़यों और ईकोफिश्ंिग के लिए जाना जाता है. नामेरी पार्क हिमालयन पार्क के नाम से भी जाना जाता है.

यहां से 40 किलोमीटर की दूरी पर एक ऐतिहासिक खंडहर है. यह देखने में बड़ा अद्भुत है, लेकिन विडंबना यह है कि इस खंडहर के बारे में अभी तक ज्यादा पता नहीं चल पाया है. गुवाहाटी से 369 किलोमीटर की दूरी पर शिवसागर है. असम के चाय और तेल व प्राकृतिक गैस के लिए शिवसागर जिला प्रसिद्ध है. यहां एक  झील है. इसी  झील के चारों ओर बसा है. असम के अन्य दर्शनीय स्थलों में बोटैनिकल गार्डन, तारामंडल, ब्रह्मपुत्र पर सरायघाट पुल, बुरफुकना पार्क साइंस म्यूजियम और मानस नैशनल पार्क शामिल हैं.

भारत में सब से अधिक वर्षा के लिए जाना जाने वाला चेरापूंजी भी असम में ही है. यह बंगलादेश की सीमा पर है. पर्यटन के लिए सब से अच्छा समय अक्तूबर से मई तक है.

क्या खरीदें

खरीदारी के लिए यहां बांस के बने शोपीस से ले कर बहुत सारा सजावटी सामान है. इस के अलावा महिलाओं के पहनने के लिए मेखला है. यह थ्री पीस ड्रैस है. चोली और लुंगीनुमा मेखला असम का पारंपरिक पहनावा है. इस के साथ दुपट्टेनुमा एक आंचल, साड़ी के आंचल की तरह ओढ़ा जाता है.

  -साधना

ईटानगर

असम, मेघालय के रास्ते अरुणाचल की राजधानी ईटानगर पहुंचा जा सकता है. ईटानगर पहुंचने का दूसरा रास्ता है मालुकपोंग, जो असम के करीब है. यानी असम की यात्रा यहां पूरी हो सकती है, इस के आगे का रास्ता ईटानगर को जाता है.

ईटानगर के आकर्षणों में ईंटों का बना अरुणाचल फोर्ट है. इस के अलावा एक और आकर्षण है और वह है हिमालय के नीचे से हो कर बहती एक नदी जिसे स्थानीय आबादी गेकर सिन्यी के नाम से पुकारती है. जवाहर लाल नेहरू म्यूजियम, क्राफ्ट सैंटर, एंपोरियम ट्रेड सैंटर, चिडि़याघर और पुस्तकालय भी हैं.

टिपी और्किड सैंटर से 165 किलोमीटर की दूरी पर बोमडिला है जो खूबसूरत और्किड के फूलों के लिए विशेष रूप से जाना जाता है. यहां और्किड फूलों का एक सेंटर है, जो टिपी आर्किडोरियम के नाम से जाना जाता है. यहां 300 से भी अधिक विभिन्न प्रजातियों के और्किड के फूलों के पौधे देखने को मिल जाते हैं.

बोमडिला की ऊंचाई से हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियां, विशेष रूप से गोरिचन और कांगटो की चोटियां खूबसूरत एहसास दिलाती हैं. यहां से 24 किलोमीटर की दूरी पर सास्सा में पेड़पौधों की एक सैंक्चुरी है. पहाड़ी नदी माकेंग में पर्यटक और एडवैंचर टूरिज्म के शौकीनों के लिए यहां वाइट वाटर राफ्ंिटग का मजा कुछ और ही है. यहां नदी में फिश्ंिग का भी शौक पर्यटक पूरा करते हैं.

अरुणाचल के हरेक टूरिस्ट स्पौट के लिए बसें, टैक्सी, जीप और किराए पर हर तरह की कार मिल जाती हैं. ईटानगर अक्तूबर से ले कर मई के बीच कभी भी जाया जा सकता है. यहां सर्दी और गरमी दोनों ही मौसम में पर्यटन का अलग मजा है.

अगरतला

पूर्वोत्तर भारत में त्रिपुरा वह राज्य है जो राजेरजवाड़ों की धरती कहलाती है. दुनियाभर में हर जगह लोग प्रदूषण की मार  झेल रहे हैं जबकि त्रिपुरा को प्रदूषणविहीन राज्य माना जाता है. इस राज्य का बोलबाला यहां के खुशगवार और अनुकूल पर्यावरण के लिए भी है. त्रिपुरा पर्यटन के कई सारे आयाम हैं. सिपाहीजला, तृष्णा, गोमती, रोवा अभयारण्य और जामपुरी हिल जैसे यहां प्राकृतिक पर्यटन हैं. वहीं पुरातात्विक पर्यटन के लिए उनाकोटी, पीलक, देवतैमुरा (छवि मुरा), बौक्सनगर भुवनेश्वरी मंदिर आदि हैं. अगर वाटर टूरिज्म की बात की जाए तो रुद्रसार नीलमहल, अमरपुर डुमबूर, विशालगढ़ कमला सागर मौजूद हैं.

त्रिपुरा में ईको टूरिज्म के लिए कई ईको पार्क हैं. तेपानिया, कालापानिया, बारंपुरा, खुमलांग, जामपुरी आदि ईको पार्क हैं. पर्यटकों के लिए त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में सब से महत्त्वपूर्ण दर्शनीय स्थल जो है वह उज्जयंत पैलेस है. यह राजमहल एक वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. 3 गुंबज वाले इस दोमंजिले महल की ऊंचाई 86 फुट है. बेशकीमती लकड़ी की नक्काशीदार भीतरी छत व इस की दीवारें देखने लायक हैं. महल के बाहर मुगलकालीन शैली का बगीचा पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है.

पर्यटकों के लिए दर्शनीय स्थलों में अगरतल्ला से 55 किलोमीटर की दूरी पर है रुद्धसागर नामक एक  झील. इस  झील के किनारे बसा है नीरमहल. इस महल का स्थापत्य मुगलकालीन है. ठंड के मौसम में यहां यायावर पक्षियों का जमघट लग जाता है. अगरतला से 178 किलोमीटर की दूरी पर उनकोटि है. यह जगह चट्टानों पर खुदाई कर के बनाई गई कलाकृतियों के लिए विख्यात है. पहाड़ों की ढलान पर यहां 7वीं और 9वीं शताब्दी के दौरान चट्टानों को काट कर, छील कर और खुदाई कर अनुपम कलाकृतियां बनाई गई हैं. ये कलाकृतियां विश्व- विख्यात हैं.

यहां 19 से भी अधिक आदिवासी जनजातियों का वास है. इसीलिए त्रिपुरा को आदिवासी समुदायों की धरती भी माना जाता है. हालांकि मौजूदा समय में आदिवासी और गैर आदिवासी समुदाय यहां मिलजुल कर रहते हैं और एकदूसरे के पर्वत्योहार भी मनाते हैं.

कैसे पहुंचें

हवाई रास्ते से अगरतला देशभर से जुड़ा हुआ है. ज्यादातर हवाई जहाज गुवाहाटी हो कर अगरतला पहुंचते हैं. ट्रेन के रास्ते गुवाहाटी से होते हुए अगरतला तक पहुंचा जा सकता है. सड़क के रास्ते कोलकाता से अगरतला की दूरी 1,645 किलोमीटर, गुवाहाटी से 587, शिलौंग से 487 और सिलचर से 250 किलोमीटर है. सड़क के रास्ते जाने के लिए लक्जरी कोच, निजी व सरकारी यातायात के साधन उपलब्ध हैं. पासपोर्ट और वीजा साथ ले कर चलें तो त्रिपुरा के रास्ते बंगलादेश भी घूमा जा सकता है.

सिक्किम

रेल मार्ग या सड़क मार्ग से सिक्किम जाया जा सकता है. रेलयात्री जलपाईगुड़ी, सिलीगुड़ी, कलिंपोंग होते हुए जाते हैं, जबकि सड़क मार्ग तिस्ता नदी के किनारेकिनारे चलता है. तिस्ता सिक्किम की मुख्य नदी है. जलपाईगुड़ी से एक टैक्सी ले कर हम सिक्किम की राजधानी गंगटोक के लिए चल पड़े. तिस्ता की तरफ निगाह पड़ती तो उस का साफ, स्वच्छ सतत प्रवाहमान जल मनमोह लेता और जब वनश्री की ओर निगाह उठती तो उस की हरीतिमा चित्त चुरा लेती. प्रारंभ में शाल, सागौन, अश्वपत्र, आम, नीम के  झाड़ मिलते रहे और कुछ अधिक ऊंचाई पर चीड़, स्प्रूस, ओक, मैग्नोलिया आदि के वृक्ष मिलने लगे. हम 7 हजार फुट की ऊंचाई पर पहुंच गए थे, जिस से समशीतोष्ण कटिबंधीय वृक्षों की अधिकता दिखाई दे रही थी.

रंगपो शहर पश्चिम बंगाल व सिक्किम के सीमांत पर स्थित है. यहां ठंड अधिक होती है. फिर हम गंगटोक पहुंचे. वहां हनुमान टैंक घूमने गए. वहां से कंचनजंघा की तुषार मंडित, धवल चोटियां स्पष्ट दिखाई दे रही थीं.  अपूर्व अलौकिक दृश्य देखा. अहा, यहां प्रकृति प्रतिक्षण कितने रूप बदलती है. सूर्योदय के पूर्व कंचनजंघा अरुणिम आभा में रंगा था और जब सूर्य ने प्रथमतया उस की ओर अपनी सुनहरी किरणों से स्पर्श किया, उस का रंग और भी लाल हो गया.

धूप में कंचनजंघा की बर्फीली चोटियां स्वच्छ धवल चांदी की तरह चमक रही थीं. गंगटोक से थोड़ी ही दूर है जीवंती उपवन प्रकृति का मनोरम नजारा प्रस्तुत करता है यह उपवन. रूमटेक गुम्पा भी सिक्किम का एक प्रसिद्ध गुम्पा है. गंगटोक से 30 किलोमीटर दूर तक छोटी सी पहाड़ी की पृष्ठभूमि में इस का निर्माण किया गया है. यहां लामाओं को प्रशिक्षित किया जाता है. वहां का शांत और पवित्र वातावरण सुखद अनुभव देता है.

गंगटोक से पहले की सिक्किम की राजधानी गेजिंग से 15 किलोमीटर दूर पश्चिम में एक छोटा सा गांव है प्रेमयांची. यहां से अन्यत्र जाने के लिए अपने पैरों पर ही भरोसा रखना पड़ता है. 2,600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित प्रेमयांची बौद्ध धर्म की नियंगमा शाखा का सब से बड़ा गुम्पा है. यहां के सभी लामा लाल टोपी पहनते हैं. इसे लाल टोपी धारी लामाओं का गुम्पा भी कहते हैं.

इस गुम्पा के अंदर ‘संग थी पाल्थी’ नाम की उत्कृष्ट कलाकृति प्रथम तल पर स्थापित है. इस कलाकृति से जीव की 7 अवस्थाओं का परिचय मिलता है. कक्ष की भीतरी दीवारों पर अनेक सुंदर चित्र निर्मित हैं, जो भारतीय बाम तंत्र से प्रभावित जान पड़ते हैं.

सेमतांग के पहाड़ों पर चाय के खूबसूरत बागान हैं. दूर से देखने पर लगता है जैसे हरी मखमली कालीन बिछा दी गई हो. यहां से सूर्यास्त का नजारा देखने लायक होता है. इस अद्वितीय दृश्य का लाभ लेने के लिए हमें वहां कुछ घंटों तक ठहरना पड़ा और जब सूर्य दूसरे लोक में गमन की तैयारी करने लगा तो हमारी आंखें उधर ही टंग गईं. सूर्यास्त का नजारा देखने लायक था.

सारा सिक्किम कंचनजंघा की आभा से मंडित प्रकृति सुंदरी के हरेभरे आंचल के साए में लिपटा हुआ है. चावल, बड़ी इलायची, चाय और नारंगी के बाग से वहां की धरती समृद्धि से भरपूर है. तिस्ता की घाटी अपनेआप में सौंदर्य व प्रेम के गीतों की संरचना सी है. यहां की वनस्पतियों में विविधता है. सब से बड़ी बात यह है कि औषधीय गुण वाले वृक्षों की वहां बहुतायत है.

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Summer Special: कम खर्च में एडवेंचर ट्रिप के लिए जाएं ऋषिकेश

अक्सर लोग  गरमी के मौसम  में  ऐसी जगह जाना चाहते हैं जहां का मौसम भी ठीक हो और ज्यादा खर्च भी न होने पाए. तो आइए, ले चलते हैं आपको कुछ ऐसी ही जगहों की सैर पर, जहां मजा तो बहुत है पर खर्च कम. यानी इन जगहों पर आप कम खर्च में भी रोमांचक पर्यटन का आनंद उठा सकते हैं.

अगर आप एडवेंचर के शौकीन हैं और एडवेंचर ट्रिप का प्लान बना रहे हैं तो आप उत्तराखंड के ऋषिकेश जरूर जाएं. गंगा के तट पर बसा यह छोटा सा शहर कुदरती नजारों के लिए मशहूर है. यहां कई तरह के एडवेंचर स्पोटर्स भी कराएं जाते हैं. ऋषिकेश में रिवर राफ्टिंग, क्लिफ जंपिंग, बौडी सर्फिंग जैसे स्पोटर्स शामिल हैं. ऋषिकेश के हरी वादियों में सब से मशहूर क्लिफ जंपिंग है. यहां देश का सबसे ऊंचा बंजी फ्लैटफौर्म तैयार किया गया है, जिसकी ऊंचाई लगभग 273 फुट है. इस ऊंचाई से कूदने के बाद आपको एक अलग ही तरीके का रोमांच का एहसास होगा.

अगर आप यह सोच रहे हैं कि इतना सब कुछ है तो खर्चा भी ज्यादा होगा. तो नहीं, अगर आप आने-जाने का खर्चा हटा दें तो आप 1500 रुपये में ही एडवेंचर का मजा उठा सकते हैं. मई-जून के महीने में ज्यादातर लोग घूमने जाते हैं. ऐसे में कई ट्रैवल कंपनियां पैकेज औफर करती हैं.

यह पैकेज काफी सस्ते होते हैं जिससे आपकी जेब भी ढीली नहीं होगी. कई कंपनियां मात्र 400 से 500 रुपये में ही रिवर राफ्टिंग, क्लिफ जंपिंग और बौडी सर्फिंग करवाती हैं. जब भी आप ऋषिकेश या कोई भी एडवेंचर ट्रिप प्लान करें तो एक बार ट्रैवल कंपनियों का पैकेज जरूर देख लें. पर ध्यान दें कि ये सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त हों.

यदि आप आने-जाने की खर्च के वजह से प्लान कैंसिल कर रहे हैं तो ऐसा बिलकुल न करें.  जो 300 रुपये आप एक दिन में बाहर पिज्जा, बर्गर खाने में खर्च कर देते हैं उस से बेहतर है कि आप उस 300 रुपये में ऋषिकेश जाने का मजा ले सकते हैं.

आने-जाने का खर्चा

अगर आप बस से जाना चाहते हैं तो इसका शुरुआती किराया 300 रुपये से शुरू होता है. अगर आप औन लाइन बुकिंग करते है तो कई बार आपको स्पेशल औफर भी दिया जाता है. जिसमें आप कुपन कोड का इस्तेमाल करके सस्ते रेट में ऋषिकेश की वादियों में जा सकते हैं. अगर आपके पास ऋषिकेश जाने का कोई भी जुगाड़ नहीं है तो आप पैसेंजर ट्रेन से भी जा सकते हैं. पैसेंजर ट्रेन में किराया भी कम लगता है और आप की पौकेट भी मैनेज रहती है.

ठहरनें का प्रबंध

अधिकतर टुरिस्ट प्लेस पर सीजन के अनुसार ही होटल का दाम घटता बढ़ता है. गर्मी के मौसम की शुरुआत होते ही अधिकतर पहाड़ी इलाकों के होटल के दाम बढ़ा दिए जाते हैं. लेकिन कुछ ऐसे होटल भी होते हैं जो सस्ते तो होते हैं लेकिन उनकी सर्विस अच्छी नहीं होती. ऐसे में आप चाहें तो आश्रम या धर्मशाला में भी रुक सकते है. ऋषिकेश में कई आश्रम और धर्मशाला हैं जहां आप कम बजट में ठहर सकते हैं. इन के कमरें काफी बड़े और आरामदायक होते हैं. इन कमरों को आप 350 रुपए में बूक कर सकते हैं.

पहले बुकिंग है जरूरी 

आपको अगर होटल, आश्रम या धर्मशाला में रुकना है तो बुकिंग आपको ट्रिप से 10-15 दिन पहले करानी होगी. अगर आप वहां जा कर बुकिंग करेंगे तो आपको काफी महंगा रूम मिलेगा जो आपका सारा बजट बिगाड़ सकता है. इसलिए आप बुकिंग घर से ही कर के जाएं.

बैग पैक में खाना खजाना

बैग पैक में तो हम तमाम जरूरी समान रखते हैं. लेकिन बात जब जेब तंगी और बाहर घूमने की हो तो पेट पूजा का ध्यान रखना भी जरूरी है. सफर करते वक्त भूख ज्यादा लगती है ऐसे में घर से ही बिसकुट, नमकपारे, नमकीन, नट्स, ड्राई फ्रूट, चिप्स, मिल्क पाउडर, टी बैग, शुगर पाउडर और गर्मपानी आप अपने बैग में रख सकते हैं. इससे भूक तो कम होगी ही साथ ही आपका खर्चा भी बचेगा.

ठगने से बचें

अक्सर जब हम नए शहर में जाते हैं तो वहां हर चीज का दाम डबल कर के बताया जाता है. ऐसे में आपका ठगना तो तय है. कोशिश करें मोल-भाव करने की खरीदारी करते वक्त कई बार हमें कोई अलग सी चीज दिखती है तो झट से खरीद लेते हैं जिससे आपकी जैब तो खाली होती ही है और वस्तु भी आपके कोई काम नहीं आता. इसलिए कोई भी फालतू समान बिलकुल न खरीदें यदि वो वस्तु आपके काम की है तो ही खरीदें.

अगर आपको एक जगह से दुसरें जगह जाना है तो पर्सनल गाड़ी न करें. वहां 5-10 रुपये में शेयरिंग टेम्पो आपको आसानी से मिल जाएगा.

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Summer Special: हरी-भरी वादियों से घिरा ‘लोनावला’

महाराष्ट्र में बसा एक छोटा सा हिल स्टेशन लोनावला अपनी नेचुरल ब्यूटी के लिए जाना जाता है. सुंदर झील और झरनों का ये शहर टूरिस्टों के दिल को जीतने के लिए पूरे साल स्वागत को तैयार रहता है. पुणे से 64 किमी तथा मुंबई से 96 किमी दूर ये शहर एक अच्छे वीकेंड के लिए बाहें फैलाए खींचता है.

समुद्रतल से 624 मीटर की ऊंचाई पर बसे हरी-भरी पहाडियों से घिरे लोनावला की सुंदरता देखते ही बनती है. यहां घूमने लायक कई सारी जगहें हैं. ट्रैकिंग का मन हो तो पहाड़ पर चढ़ने की सुविधा भी मौजूद है. ट्रैकिंग करते समय पहाड़ों के नजारों का लुत्फ अलग ही एक्सपीरियंस देता है. इस छोटे से शहर में घूमने के लिए कई जगहें हैं. राजमची पाइंट, लोनावला झील, कारला केव्स, लोहागढ़ फोर्ट, बुशी डैम, रईवुड पार्क तथा शिवाजी उद्यान प्रमुख हैं. परिवार के साथ घूमने जाना हो या दोस्तों के साथ मस्ती करनी हो, यह जगह सभी के लिए मुफीद है.

राजमची पाइंट

लोनावला से लगभग 6 किमी की दूरी पर खूबसूरत वादियों से सजा एक दूसरी जगह है राजमची. इसका यह नाम यहां के गांव राजमची के कारण पड़ा है. यहां का खास अट्रैक्शन शिवाजी का किला और राजमची वाइल्ड लाइफ सेंक्चुअरी है. इस जगह की सुंदरता टूरिस्टों को बहुत लुभाती है.

रईवुड पार्क

यह स्थल पूरी तरह से हरियाली से भरा रहता है. खूब सारे पेड़ और धरती पर बिछी हरी घास का इलाका सबका मन मोह लेता है. बड़ों के साथ बच्चे भी यहां खूब मस्ती करते हैं. पार्क में स्थित प्राचीन शिव मंदिर हमें भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और आस्था से सराबोर कर देता है.रईवुड पार्कलोहागढ़ किला/Lohagarh fort

लोहागढ़ किला

लोनावला से 20 किलोमीटर की दूरी पर समुद्रतल से 1,050 मीटर की ऊंचाई पर बसा लोहागढ़ किला बेहद ही दर्शनीय स्थल है.

इस किले की बनावट और इसकी ऐतिहासिकता हमें इसकी ओर खींचती है. यह किला शिवाजी का युद्धस्थल भी था. विशाल चट्टान पर स्थित इस किले में कैदियों के लिए लोहे के दरवाजे लगाए गए थे

बुशी डैम

लोनावला से 6 किलोमीटर की दूरी पर बसा बुशी डैम एक फेमस पिकनिक स्पॉट है. बरसात के दिनों में जब यह पानी से लबालब भर जाता है तो इसकी सुंदरता देखने लायक होती है. यहां कई पर्यटक पहुंचते हैं.

कब जाएं

लोनावला का मौसम ज्यादातर सुहावना ही रहता है. यहां किसी भी मौसम में जा सकते हैं. लेकिन मार्च से लेकर अक्टूबर के बीच यहां जाएंगे तो मजा कई गुना बढ़ जाएगा. बरसात का मौसम यहां की झीलों और झरनों को निहारने का सबसे अच्छा समय है.

क्या खाएं

लोनावला चिक्की के लिए मशहूर है. तिल, काजू, बादाम, मूंगफली, पिस्ता, अखरोट जैसे मेवों को शक्कर या गुड़ में मिलाकर बनाई जाने वाली चिक्की का स्वाद जबरदस्त होता है. यहां के फज भी बहुत फेमस हैं. लोनवला की यादगार के तौर पर आप यहां से चिक्की, चॉकलेट, मैंगो फज साथ ले जा सकते हैं.

कैसे जाएं

मुंबई से लोनावला 96 किमी है. लोनावला के लिए नजदीक का रेलवे स्टेशन लोनावला तथा नजदीक का हवाई अड्डा पुणे है. मुंबई और पुणे से सड़क मार्ग से भी लोनावला जा सकते हैं.

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Summer Special: शादी से बचना है तो जाए यहां

दुनिया में दो प्रकार के लोग हैं एक वो जो अपनी शादी के बारे में जानकार बहुत खुश होते हैं और एक वो जो अपनी शादी का नाम सुनते ही भागते हैं. जिन्हे शादी को लेकर उत्सुकता होती यही उनके मन में लड्डू फूटते हैं न जाने क्या क्या सपने वे सोच लेते है, लेकिन जो लोग शादी नहीं करना चाहते वे इससे बचने के उपाय ढूंढते रहते हैं. ‘शादी कब करोगे?’ ये प्रश्न यूं तो आम है. पर ऐसे लोगों को इस प्रश्न से बहुत चिढ़ होती है.

आज कुछ ऐसे जगहों के बारे में जानते हैं जहां जाते ही आप अपनी ही एक दुनिया बना लेंगे, वहां की वादियों में खो जायंगे और शादी के प्रश्न आप तक पहुंच नहीं पायेंगे.

1. तवांग, अरुणाचल प्रदेश

सबसे बड़ी बात यह है कि, तवांग तक पहुंचना अपने आप में ही बहुत बड़ा कार्य है. यहां आपका पीछा कर पाना किसी के लिए नामुमकिन है. तवांग अरुणाचल प्रदेश की छुपी हुई खूबसूरती है. यहां का जबरदस्त परिदृश्य और यहां की शानदार यात्रा आपके शादी के सारे विचारों को भूलने में तुरंत मदद करेगी.

2. फुगतल मठ, लद्दाख

आप ऐसी जगह और कहीं नहीं आसानी से ढूंढ पाएंगे. लुंग्नाक घाटी के पहाड़ों के चट्टानों में खोद कर बनाए हुए फुगतल मठ मधुमक्खी के छत्ते की तरह प्रतीत होते हैं. इस प्राचीन मठ के ट्रेक पर जाना आपके लिए बहुत ही आसान होगा. इस मठ को अच्छी तरह से जानना और इसके किसी एक प्रार्थना घर में बैठ कर ध्यान लगाना, आपको सारे बेकार विचारों और लोगों से दूर शांति का एहसास कराएगा. पहाड़ के इस गुफा जैसे मठ में आपको कोई आसानी से ढूंढ भी नहीं पाएगा.

3. मॉफ्लांग, मेघालय

जंगल दुनिया का सबसे रहस्यमय स्थान होता है. मॉफ्लांग शिलोन्ग के पास ही एक पवित्र वन होने के लिए जाना जाता है. वहां पर रहने वाले जनजाति के लोगों का मानना है कि यह वन उनकी और उनकी ज़मीन की रक्षा करता है. तो आपको ऐसा नहीं लगता की यह जगह आपको भी सुरक्षित रखेगी? तो आप अपना सामान बांध लीजिए और तैयार हो जाइए मेघालय के मंत्रमुग्ध कर देने वाले स्थान और इसके विरासत गांव मॉफ्लांग की सैर पर जाने के लिए. यह यात्रा आपके सारे नेगेटिव थॉट्स को आप से दूर कर देगी.

4. बैरेन आइलैंड, अंडमान

यह आपके मज़े करने का समय है और बैरेन आइलैंड से अच्छी जगह आपके मज़े के लिए और कोई नहीं होगी. दक्षिण एशिया का यह ज्वालामुखी द्वीप स्कूबा डाइविंग के लिए भी सबसे ज़बरदस्त और विशाल लोकेशन है. बैरेन आइलैंड के चारों तरफ पानी के अंदर की दुनिया अंडमान द्वीप की एक जादुई दुनिया है. यहां डुबकी लगाइए और पानी में शांति का अनुभव करिए. बैरेन आइलैंड में लोगो की चहल पहल बहुत कम होती है और यह शादी से बचने के लिए आपके लिए सबसे बेस्ट जगह है.

5. कच्छ का रण, गुजरात

दूर दूर तक सफ़ेद रेत का मरुस्थल और डूबते सूरज का मनोरम दृश्य आपको एक अलग ही काल्पनिक दुनिया में ले जाएगा. कच्छ का रण बहुत सारे सरप्राइज़ेस से भरा पड़ा है. कच्छ के रण का क्षितिज और मरुस्थल की रंगारंग संस्कृति, गुजरात में यात्रा करने की सबसे प्रमुख जगह है. तो अपने अविवाहित और अकेले होने का फायदा उठाइए और सफेद मरुस्थल के हर एक कोने को छान मार मज़े लीजिए.

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Summer Special: आंध्र प्रदेश के 5 खूबसूरत समुद्र तट

आंध्र प्रदेश को प्रकृति ने कई समुद्र तट उपहार में दिए हैं, जिन की तट रेखा बंगाल की खाड़ी से लगती है. छुट्टियों में दक्षिण भारत के कुछ खूबसूरत समुद्र तटों का आनंद लेने के लिए अपनी यात्रा की योजना बना लें…

1. येरादा समुद्र तट

येरादा समुद्र तट, जिस की तटरेखा आंध्र प्रदेश की दूसरी सब से बड़ी तट रेखा है. यह पहाड़ियों और बंगाल की खाड़ी से घिरा है. यह घरेलू और विदेशी पर्यटकों की छुट्टियां बिताने की पसंदीदा जगह है. यह समुद्र तट हरी-भरी वनस्पतियों और नर्म सुनहरी रेत से सजा है, जिस के बीच ब्लैक मोर्स हिल पर डौल्फिंस नोज लाइटहाउस स्थित है. इस स्थान की खूबसूरत छटा को निहारने के लिए प्रकृति प्रेमियों के यहां आने का उपयुक्त समय अक्तूबर से मार्च के बीच है.

2. रामकृष्ण समुद्र तट

रामकृष्ण समुद्र तट ‘आर के बीच’ के नाम से लोकप्रिय है. यह विशाखापट्टनम के लोकप्रिय स्थानों में से एक है. यह खूबसूरत समुद्र तट भारत के कोरोमंडल तट का विस्तार है. देश के विभिन्न हिस्सों से पर्यटक समुद्र स्नान, वाटर स्पोर्ट्स एवं तट रेखा के किनारे-किनारे तेज चलने के लिए इस स्थान पर आते हैं. रामकृष्ण समुद्र तट के चारों ओर कई बेहतरीन पर्यटन स्थल हैं जैसे ऐक्वेरियम, विशाखा म्यूजियम, सबमैरिन म्यूजियम और वाटर मैमोरियल.

3. कलिंगपटनम समुद्र तट

कलिंगपटनम समुद्र तट आंध्र प्रदेश के प्राचीन बंदरगाह शहरों में से एक है, जो खूबसूरत लोक शैली के मंदिरों, आकर्षक रंगों में रंगे बंगलों और फूलदार वृक्षों से सुशोभित है. यहां का पानी नीला है और समुद्र तट स्वच्छ है, जिस की छटा इस की सुनहरी रेत के चलते और अधिक बढ़ जाती है. इस समुद्र तट को ‘ओपन रोड सी’ के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि सड़क समुद्र तक पहुंच कर समाप्त हो जाती है. कलिंगपटनम का समुद्र तट आराम के पल बिताने के लिए सब से उपयुक्त स्थान है.

4. ऋषिकोंडा समुद्र तट

ऋषिकोंडा बीच लोगों के घूमनेफिरने के लिए उपयुक्त स्थान है. यह छोटा है व एकांत में स्थित है. दूर तक फैली रेत और समुद्र की आनंददायक लहरें इस समुद्र तट को यकीनन देखने लायक बनाती हैं. इस का स्वच्छ, निर्मल नीला पानी स्नान करने वालों को लुभाता है, लेकिन तीव्र धाराओं के चलते यहां तैरने पर प्रतिबंध है. ऋषिकोंडा समुद्र तट की शांति व नीरवता अद्भुत है.

5. भीमुनिपटनम समुद्र तट

भीमुनिपटनम समुद्र तट आंध्र प्रदेश के उत्कृष्ट पर्यटन स्थलों में से एक है. इस समुद्र तट का माहौल शांत एवं निर्मल है. यह यहां आने वालों के लिए संपूर्ण मनोरंजन भी सुनिश्चित करता है. एक तरफ हरेभरे नारियल के पेड़ तो दूसरी तरफ इस की सुनहरी रेत इसे आकर्षक रूप प्रदान करती है. डच कब्रिस्तान, प्राचीन क्लौक टावर, लाइटहाउस, पेंट की हुई मूर्तियों की विभिन्न प्रदर्शनियां और बौद्ध सन्यासियों की विभिन्न प्रदर्शनियां इसे जिंदादिल बनाती हैं. कुछ शांतिपूर्ण पल बिताने के इच्छुक पर्यटकों के लिए यह बेहद शांतिप्रद जगह है.

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Summer Special: अमरकंटक में बरसता है नेचर का वरदान

अमरकंटक में प्रकृति रोमांचित करती है. घने जंगल कान में फुसफुसाते हैं. आध्यात्म और धर्म इस नगरी में एक खास आयाम जोड़ते हैं. दरअसल, यह ऐसी जगह भी है, जो दो बड़ी नदियों नर्मदा और सोन का उद्गम स्थल भी है. इनके उद्गम को देखेंगे, तो लगेगा ही नहीं कि छोटे-छोटे कुंडों से निकलकर काफी दूर तक बहुत पतली धारा में बहने वाली ये नदियां देश की संस्कृति और धार्मिकता और विकास में खास जगह रखती हैं.

पहाड़ों पर बसा अमरकंटक

अमरकंटक ऊंचे पहाड़ों और घने जंगलों के बीच बसी सुंदर-सी जगह है. प्रकृति की तमाम संपदाओं से युक्त अमरकंटक काफी ऊंचाई पर है. यहां खदानें भी हैं और वाटरफॉल भी. अब यहां नए-नए मंदिर बन गए हैं. नर्मदा और सोन के करीब टहलने से, आपको शांति का अनुभव होगा. पहाड़ों के अदृश्य स्रोतों से नर्मदा और सोन का निकलना किसी अचरज से कम नहीं लगता है.

यहां एक और नदी भी निकलती है, उसका नाम जोहिला है. कुछ लोग जब यहां आते हैं और इन नदियों के उद्गम में जल की हल्की- फुल्की कुलबुलाहट के बीच इन्हें देखते हैं तो सोच नहीं पाते कि ये वही नदियां हैं, जो हजारों किमी.का सफर तय करती हैं. सोनमुदा नर्मदा कुंड से 1.5 किमी. की दूरी पर मैकाल पहाड़ियों के किनारे पर है. सोन नदी 100 फीट ऊंची पहाड़ी से एक झरने के रूप में यहां से गिरती है.

धार्मिक महत्व

पहले अमरकंटक शहडोल जिले में था. अब यह अनूपपुर जिले में है. समुद्र तट से कोई 1065 मीटर की ऊंचाई पर. विंध्य व सतपुड़ा की पर्वत शृंखला और मैकाल पर्वत शृंखला के बीचों बीच बसा हुआ. यहां पर्वत, घने जंगल,मंदिर, गुफाएं जल प्रपात हैं.

यहां आते ही हवा में ताजगी और शुद्धता का अहसास होने लगता है. यहां के जंगलों के बारे में कहा जाता है कि ये जड़ी-बूटियों का खजाना हैं. यहां का शांत वातावरण आमतौर पर सैलानियों को मंत्रमुग्ध कर देता है. यहां के अपने आंचलिक लोकगीत भी हैं. कालिदास भी यहां आए और यहां के कायल हो गए. उनके मेघदूत के बादल इसी नगरी के ऊपर से गुजरते हैं.

धार्मिक पर्यटकों को नर्मदाकुंड मंदिर, श्रीज्वालेश्वर महादेव, सर्वोदय जैन मंदिर, सोनमुदा, कबीर चबूतरा, कपिलाधारा, कलचुरी काल के मंदिर पर आना अच्छा लगेगा. नर्मदा कुंड के पास भी कई मंदिर हैं. सबका अपना महत्व है. जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ ने भी यहां आकर तप किया था. कंबीरपंथियों को भी यह जगह खासी प्रिय है, क्योंकि वे इसे कबीर से जोड़कर भी देखते हैं, यहां एक कबीर चबूतरा भी है. कबीर चबूतरे के ठीक नीचे एक जल कुंड है जिसके बारे में कहा जाता है कि सुबह की किरणों के साथ ही यहां के जलकुंड का पानी दूध की तरह सफेद हो जाता है.

कैसे जाएं

रेल: शहडोल रेलवे स्टेशन 80 किलोमीटर दूर है

पेंड्रा रोड रेलवे स्टेशन 45 किमी. दूर है.

हवाई अड्डा: जबलपुर अमरकंटक से करीब 200 किलोमीटर है

रोड: अमरकंटक जाने के लिए आपको लगातार बसें और गाड़ीयां मिल जायेंगी

कपिलधारा भी जाए

अमरकंटक की यात्रा बगैर कपिलधारा देखे अधूरी रहेगी. यहां 100 फीट की ऊंचाई से पानी गिरता है. धर्मग्रंथों में कहा गया है कि कपिल मुनि यहां रहते थे. कपिल मुनि ने सांख्य दर्शन की रचना इसी स्थान पर की थी. कपिलधारा के निकट की कपिलेश्वर मंदिर भी बना है. इस जगह के आसपास कई गुफाएं हैं, जहां अब भी साधु-संत ध्यानमग्न देखे जा सकते हैं.यहां धुनी पानी यानी गर्म पानी का झरना भी है. इसके बारे मे कहा जाता है कि यह झरना औषधीय गुणों से भरपूर है. ऐसा ही एक और झरना है दूधधारा, जो काफी लोकप्रिय है. ऊंचाई से गिरते इस झरने का जल दूध के समान प्रतीत होता है, इसीलिए इसे दूधधारा या दुग्धधारा के नाम से जाना जाता है.

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भारत में कई ऐसे लोकेशन हैं जो हनीमून कपल्स के लिए बहुत खास हैं. बीच, हिल स्टेशन और वाइल्ड लाइफ जैसी कई हनीमून स्पॉट हैं जो अपनी प्राकृतिक सौंदर्य, शीतल हवाएं और समुद्र की लहरों से हनीमून को और यादगार बना देती हैं. अपने लाइफ पार्टनर की पसंद की जगह पर उसके साथ प्यार के अविस्मरणीय पल व्यतीत करना आपको ताउम्र याद रहेगा. अगर आपने अपने हनीमून की प्लानिंग नहीं की है या कर रहे हैं तो हनीमून डेस्टिनेशन के चुनाव में हम आपकी मदद कर देते हैं. आइए जानते हैं भारत के टॉप 10 हनीमून डेस्टिनेशंस..

1.गोवा

गोवा एक ऐसा स्थान है, जहां आप जिंदगी का भरपूर मजा ले सकते हैं. नवविवाहितों के लिए गोवा एकमात्र ऐसा हनीमून डेस्टीनेशन कहा जा सकता है जहां आप चाहें तो शांत सागरतट पर सपनों भरी दुनिया में खो जाएं. यह स्थान अपने आप में रोमांटिक और मनमोहक है.

राजधानी पणजी के निकट मीरामार बीच है जहां शाम के समय सूर्यास्त का दृश्य काफी सुकून देता है. जब रात को खुले आसमान के नीचे बीच के किनारे अपने साथी को अपनी बांहो में लेकर घूमेंगे वह पल कितना यादगार होगा. दोना पाउला, कलंगूट, अंजुना और बागा के अलावा कई अन्य बीचों की सुंदरता देखने लायक हैं.

मडगांव व वास्को डी गामा मुख्य स्टेशन हैं.

2.लक्षद्वीप

अरब सागर में स्थित छोटे द्वीप अपनी सुंदरता में अद्वितीय और आकर्षक हैं. इस जगह को वॉटर स्पोर्ट के लिए एक बेहतरीन जगह माना जाता है. यहां के द्वीप नए जोड़ों को बरबस ही अपनी ओर खींच लेते हैं. लक्षद्वीप में बने रिसॉर्ट्स आपकी हनीमून को और भी बेहतर बना देंगे.

3.कन्याकुमारी

कन्याकुमारी हिंद महासागर, बंगाल की खाड़ी और अरब सागर का संगम है. भिन्न सागर अपने विभिन्न रंगो से मनोरम छटा बिखेरते हैं. दूर-दूर फैले समुद्र के विशाल लहरों के बीच यहां का सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा बेहद आकर्षक लगता है.

4.अंडमान निकोबार

अंडमान निकोबार को ‘गार्डेन ऑफ इडेन’ भी कहा जाता है. नारियल की सघन छाया, घने जंगल, असंख्य प्रजातियों के फूल और पक्षी, ताजी हवा प्रकृति प्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं. इस द्वीप पर आप स्कूबा डाइविंग जैसे रोमांचक खेलों का भी लुत्फ उठा सकते हैं.

5.पुदुच्चेरी

पुदुच्चेरी के समुद्र तट पर हनीमून मनाने वाले कुछ बेहतरीन समय एक साथ गुजार सकते हैं. पेराडाइज बीच के एक ओर छोटी खाड़ी है. यहां केवल नाव द्वारा ही जाया जा सकता है. नाव पर जाते समय पानी में डॉल्फिन के करतब देखना एक सुखद अनुभव है.

6.दार्जिलिंग

‘क्वीन ऑफ हिल्स’ के नाम से मशहूर दार्जिलिंग हमेशा से एक बेहतरीन हनीमून डेस्टिनेशन रहा है. कपल्स हनीमून के लिए आमतौर पर ठंडी जगहों का चयन करते हैं. यहां पर बर्फ से ढकी कंचनजंगा की चोटियां और प्राकृतिक सौंदर्य से लदे खूबसूरत पहाड़ आपको किसी स्वपन लोक से लगेंगे. ट्वाय ट्रेन में आप पहाड़ों और घाटियों के बीच प्रकृति के सौंदर्य को निहारते हुए सफर का आनंद ले सकते हैं. चाय के बगान और देवदार के जंगल का अति सुंदर नजारा देखा जा सकता है.

7. नैनीताल

नैनीताल में आप कम खर्च में हिल टूरिज्म का भरपूर आनंद उठा सकते हैं. नैनीताल उत्तराखंड का पहाड़ी पर्यटन स्थल है. शहर के बीचोंबीच नैनी झील इस पर्यटन स्थल में चार चांद लगा देती है. चीड़ के घने जंगल पर्यटकों का मन मोह लेते हैं. काठगोदाम और नैनीताल के बीच ज्योलीकोट स्थान पड़ता है. यहां पर दिन गरम और रातें ठंडी होती हैं. यहां भीनताल, नौकुचियाताल, माल रोड, मल्लीताल, तल्लीताल अनेक स्थान घूमने लायक हैं.

8. शिमला

हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला हनीमून पर आए कपल्स के लिए बहुत ही प्यारा हिल स्टेशन है. यहां की खूबसूरती एक बार तो देखने वालों को आश्चर्यचकित कर देती है. यहां के सादगी भरे सौंदर्य में ऐसा आर्कषण है कि वापस जाने को मन ही नहीं करता. यहां पर आप बलखाती पहाड़ियों पर सुरंगों में से होते हुए ट्वाय ट्रेन का लुत्फ उठा सकते हैं. ट्वाय ट्रेन के सफर के दौरान आपको बहुत सारे हसीन नजारे दिखाई देंगे जिनको देखकर आप आश्चर्य में पड जाएंगे. माल रोड पर आप शॉपिंग का आनंद ले सकते हैं. जाखू हिल्स शिमला का सबसे ऊंचा स्थान है. यहां से पूरे शहर की खूबसूरती को देखा जा सकता है.

9. मनाली

मनाली की वादियां हनीमून कपल्स की सबसे पसंदीदा जगहों में से एक है. मनाली कुल्लु घाटी के उत्तर में स्थित हिमाचल प्रदेश का लोकप्रिय हिल स्टेशन है. यहां पर आपको जंगलों से घिरी मनाली घाटी में पक्षियों का कलरव सुनाई देगा. साथ ही गिरते जलप्रपात और फलों से लदे बाग-बगीचे पर्यटकों को अपनी ओर आर्कषित करते हैं. कुदरत ने मनाली को सदाबहार खूबसूरती से नवाजा है. यहां हर मौसम में मस्ती, रोमांस और रोमांच का पैकेज आपको मिलेगा. मनाली का हिडिंबा मंदिर अपने चार मंजिला पैगोड़ा और लकड़ी की नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है. सोलंग घाटी में हैंड ग्लाइडिंग के रोमांच का मजा लूटा जा सकता है.

10.केरल

केरल को कुदरत ने बड़ी खूबसूरती से संवारा है इसलिए हनीमून के लिए केरल सबसे उपयुक्त जगह है. ऊंचे-ऊंचे पहाड़, मनोहारी समुद्री किनारा, नारियल और खजूर के पेड़ों के झुरमुट के बीच में से नाव पर सवारी, चारों ओर हरियाली और बेहद खूबसूरत नजारे, ये सब हैं केरल की खूबसूरती की असली पहचान. इन रुमानी नजारों में प्यार भरे दिलों की धड़कनें बढ़ना स्वाभाविक हैं.

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Summer Special: खूबसूरती का खजाना है मध्य प्रदेश का हिल स्टेशन ‘पचमढ़ी’

इतिहास और खूबसूरती का अद्भुत रंग समेटे मध्य प्रदेश के हिल स्टेशन पचमढ़ी को सतपुड़ा की रानी के नाम से भी जाना जाता है. प्रदेश के होशंगाबाद जिले में सतपुड़ा की पहाडि़यों के बीच पहाड़ों और जंगलों से घिरे हिल स्टेशन पचमढ़ी में पर्यटकों को कश्मीर जैसी खूबसूरती व नेपाल की शांति मिलती है. अगर आप भी कुदरत के सौंदर्य को नजदीक से निहारना चाहते हैं तो सुकून और प्रदूषणरहित वातावरण से भरपूर पचमढ़ी एक बेहतर प्लेस है. यहां की खूबसूरती और आबोहवा सिर चढ़ कर बोलती है. खुशबूदार हवा, फाउंटेन, मनमोहक पेड़पौधे, पहाड़ और दूरदूर तक फैली हरियाली आंखों के सामने नैसर्गिक सौंदर्य का संसार प्रस्तुत करते हैं. यहां का तापमान सर्दी में 4.5 डिगरी सैल्सियस और गरमी में अधिकतम 35 डिगरी सैल्सियस होता है.

यहां आप वर्षभर किसी भी मौसम में जा सकते हैं. यहां की गुफाएं पुरातात्त्विक महत्त्व की हैं क्योंकि यहां की गुफाओं में शैलचित्र मिले हैं. यहां की प्राकृतिक संपदा को पचमढ़ी राष्ट्रीय उद्यान के रूप में संजोया गया है. पर्यावरण की दृष्टि से पचमढ़ी को सुरक्षित रखने के लिए यहां पौलिथीन का उपयोग नहीं करने दिया जाता.

दर्शनीय स्थल

पांडव गुफा

पचमढ़ी की एक छोटी सी पहाड़ी पर स्थित 5 गुफाओं को पांडव गुफा के नाम से जाना जाता है. माना जाता है कि ये गुफाएं गुप्तकाल की हैं और इन्हें बौद्ध भिक्षुओं ने बनवाया था. ऐसी भी मान्यता है कि 5 पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान इन गुफाओं में कुछ समय बिताया था. गुफा के ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यहां से पूरी पचमढ़ी के सौंदर्य को निहारा जा सकता है.

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अप्सरा विहार

पांडव गुफा से आगे 30 फुट गहरा एक ताल है जहां नहाने और तैरने का आनंद लिया जा सकता है. बच्चों के साथ घूमने के लिए यह एक बेहतरीन पिकनिक स्पौट है.

रजत प्रपात

अप्सरा विहार से आधा किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस प्रपात से 350 फुट की ऊंचाई से गिरता इस का पानी एकदम दूध की तरह दिखाई देता है. अपने साथ एक जोड़ा कपड़ा ले जाएं ताकि इस प्रपात में स्नान कर सकें.

हांडी खोह

300 फुट गहरी यह खाई पचमढ़ी की सब से गहरी खाई है. खाई का अंतिम छोर जंगल के ऊंचेऊंचे पेड़ों के कारण दिखाई नहीं देता. घने जंगलों में ढकी इस खाई के आसपास कलकल बहते झरनों की आवाज सुनना अद्भुत आनंद देता है. ऊपर से देखने पर एक रोमांचभरी सिहरन पैदा होती है. स्थानीय लोग इसे अंधी खोह के नाम से भी पुकारते हैं. यहां बनी रेलिंग प्लेटफौर्म से पूरी घाटी का नजारा दिखाई देता है.

धूपगढ़

धूपगढ़ सतपुड़ा रेंज की सब से ऊंची चोटी है. यहां से सनसैट का व्यू काफी सुंदर दिखाई देता है. धूपगढ़ तक जाने के लिए अंतिम 3 किलोमीटर का रास्ता काफी घुमावदार है. बादलों के बीच में ही धीरेधीरे मलिन होते सूरज को देखना एक अनोखा अनुभव होता है.

सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान

524 वर्ग किलोमीटर में फैले इस उद्यान की स्थापना 1981 में हुई थी. प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर यह उद्यान जहां चीड़, देवदार, सफेद ओक, यूकेलिप्टस, गुलमोहर और अन्य छोटेबड़े वृक्षों से ढका हुआ है वहीं यहां आप को बाघ, तेंदुआ, सांभर, चीतल, गौर, चिंकारा, भालू और रंगबिरंगे पक्षियों के भी दर्शन हो जाएंगे.

डचेश फौल्स

यह पचमढ़ी का सब से दुर्गम स्पौट है. यहां पहुंचने के लिए करीब डेढ़ किलोमीटर का सफर पैदल ही तय करना पड़ता है. 700 मीटर का रास्ता जहां घने जंगलों के बीच से पार करना पड़ता है वहीं करीब 800 मीटर का रास्ता पहाड़ पर से सीधा ढलान का है, इसलिए काफी संभलसंभल कर चलना पड़ता है. लेकिन नीचे उतरने के बाद फौल में नहाने से सारी थकान पल में छूमंतर हो जाती है.

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इस का नाम बी फौल्स इसलिए पड़ा क्योंकि पहाड़ी से गिरते समय यह झरना बिलकुल मधुमक्खी की तरह दिखता है. यहां आते समय अपने साथ स्पोर्ट्स शूज लाना न भूलें क्योंकि पहाड़ी रास्तों पर चलने के दौरान उन की जरूरत पड़ती है. यह 3 बजे बंद हो जाता है.

समुद्रतल से 1,100 मीटर की ऊंचाई पर बसे इस शहर की आबादी लगभग 12 हजार है और यहां की जीवनशैली आज भी बाहरी चकाचौंध से अछूती है. प्रदूषणरहित वातावरण में कुदरत के सौंदर्य को निहारने के लिए इस छोटी सी सैरगाह में स्थानीय व्यंजनों का स्वाद लेना न भूलें. इन में कई जगह कैमरे या हैंडीकैम का शुल्क है, इसलिए गाइड से पूछ लें कि यह शुल्क कहां जमा कराया जाए.

कहां ठहरें

पचमढ़ी में ठहरने की बहुत अच्छी व्यवस्था है. मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग के भी हेरिटेज होटल और गेस्ट हाउस हैं जो विभिन्न आयुवर्ग की जरूरतों को ध्यान में रख कर बनाए गए हैं.

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