Mother’s Day 2024: हसीं वादियों का तोहफा धर्मशाला

घूमने या सैरसपाटे की जब भी बात आती है तो शहरी आपाधापी से दूर पहाड़ों की नैसर्गिक सुंदरता सब को अपनी ओर आकर्षित करती है. इन छुट्टियों को अगर आप भी हिमालय की दिलकश, बर्फ से ढकी चोटियों, चारों ओर हरेभरे खेत, हरियाली और कुदरती सुंदरता के बीच गुजारना चाहते हैं तो हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा के उत्तरपूर्व में 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित धर्मशाला पर्यटन की दृष्टि से परफैक्ट डैस्टिनेशन हो सकता है. धर्मशाला की पृष्ठभूमि में बर्फ से ढकी छोलाधार पर्वतशृंखला इस स्थान के नैसर्गिक सौंदर्य को बढ़ाने का काम करती है. हाल के दिनों में धर्मशाला अपने सब से ऊंचे और खूबसूरत क्रिकेट मैदान के लिए भी सुर्खियों में बना हुआ है. हिमाचल प्रदेश के दूसरे शहरों से अधिक ऊंचाई पर बसा धर्मशाला प्रकृति की गोद में शांति और सुकून से कुछ दिन बिताने के लिए बेहतरीन जगह है.

धर्मशाला शहर बहुत छोटा है और आप टहलतेघूमते इस की सैर दिन में कई बार करना चाहेंगे. इस के लिए आप धर्मशाला के ब्लोसम्स विलेज रिजौर्ट को अपने ठहरने का ठिकाना बना सकते हैं. पर्यटकों की पसंद में ऊपरी स्थान रखने वाला यह रिजौर्ट आधुनिक सुविधाओं से लैस है जहां सुसज्जित कमरे हैं जो पर्यटकों की जरूरतों को ध्यान में रख कर बनाए गए हैं. बजट के अनुसार सुपीरियर, प्रीमियम और कोटेजेस के औप्शन मौजूद हैं. यहां के सुविधाजनक कमरों की खिड़की से आप धौलाधार की पहाडि़यों के नजारों का लुत्फ उठा सकते हैं. यहां की साजसजावट व सुविधाएं न केवल पर्यटकों को रिलैक्स करती हैं बल्कि आसपास के स्थानों को देखने का अवसर भी प्रदान करती हैं. इस रिजौर्ट से आप आसपास के म्यूजियम, फोर्ट्स, नदियों, झरनों, वाइल्ड लाइफ पर्यटन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आनंद ले सकते हैं.

धर्मशाला चंडीगढ़ से 239 किलोमीटर, मनाली से 252 किलोमीटर, शिमला से 322 किलोमीटर और नई दिल्ली से 514 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इस स्थान को कांगड़ा घाटी का प्रवेशद्वार माना जाता है. ओक और शंकुधारी वृक्षों से भरे जंगलों के बीच बसा यह शहर कांगड़ा घाटी का मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यताप्राप्त धर्मशाला को ‘भारत का छोटा ल्हासा’ उपनाम से भी जाना जाता है. हिमालय की दिलकश, बर्फ से ढकी चोटियां, देवदार के घने जंगल, सेब के बाग, झीलों व नदियों का यह शहर पर्यटकों को प्रकृति की गोद में होने का एहसास देता है.

कांगड़ा कला संग्रहालय: कला और संस्कृति में रुचि रखने वालों के लिए यह संग्रहालय एक बेहतरीन स्थल हो सकता है. धर्मशाला के इस कला संग्रहालय में यहां के कलात्मक और सांस्कृतिक चिह्न मिलते हैं. 5वीं शताब्दी की बहुमूल्य कलाकृतियां और मूर्तियां, पेंटिंग, सिक्के, बरतन, आभूषण, मूर्तियां और शाही वस्त्रों को यहां देखा जा सकता है.

मैकलौडगंज : अगर आप तिब्बती कला व संस्कृति से रूबरू होना चाहते हैं तो मैकलौडगंज एक बेहतरीन जगह हो सकती है. अगर आप शौपिंग का शौक रखते हैं तो यहां से सुंदर तिब्बती हस्तशिल्प, कपड़े, थांगका (एक प्रकार की सिल्क पेंटिंग) और हस्तशिल्प की वस्तुएं खरीद सकते हैं. यहां से आप हिमाचली पशमीना शाल व कारपेट, जो अपनी विशिष्टता के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचलित हैं, की खरीदारी कर सकते हैं. समुद्रतल से 1,030 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मैकलौडगंज एक छोटा सा कसबा है. यहां दुकानें, रेस्तरां, होटल और सड़क किनारे लगने वाले बाजार सबकुछ हैं. गरमी के मौसम में भी यहां आप ठंडक का एहसास कर सकते हैं. यहां पर्यटकों की पसंद के ठंडे पानी के झरने व झील आदि सबकुछ हैं. दूरदूर तक फैली हरियाली और पहाडि़यों के बीच बने ऊंचेनीचे घुमावदार रास्ते पर्यटकों को ट्रैकिंग के लिए प्रेरित करते हैं.

कररी : यह एक खूबसूरत पिकनिक स्थल व रैस्टहाउस है. यह झील अल्पाइन घास के मैदानों और पाइन के जंगलों से घिरी हुई है. कररी 1983 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. हनीमून कपल्स के लिए यह बेहतरीन सैरगाह है.

मछरियल और ततवानी : मछरियल में एक खूबसूरत जलप्रपात है जबकि ततवानी गरम पानी का प्राकृतिक सोता है. ये दोनों स्थान पर्यटकों को पिकनिक मनाने का अवसर देते हैं.

कैसे जाएं

धर्मशाला जाने के लिए सड़क मार्ग सब से बेहतर रहता है लेकिन अगर आप चाहें तो वायु या रेलमार्ग से भी जा सकते हैं.

वायुमार्ग : कांगड़ा का गगल हवाई अड्डा धर्मशाला का नजदीकी एअरपोर्ट है. यह धर्मशाला से 15 किलोमीटर दूर है. यहां पहुंच कर बस या टैक्सी से धर्मशाला पहुंचा जा सकता है.

रेलमार्ग : नजदीकी रेलवे स्टेशन पठानकोट यहां से 95 किलोमीटर दूर है. पठानकोट और जोगिंदर नगर के बीच गुजरने वाली नैरोगेज रेल लाइन पर स्थित कांगड़ा स्टेशन से धर्मशाला 17 किलोमीटर दूर है.

सड़क मार्ग : चंडीगढ़, दिल्ली, होशियारपुर, मंडी आदि से हिमाचल रोड परिवहन निगम की बसें धर्मशाला के लिए नियमित रूप से चलती हैं. उत्तर भारत के प्रमुख शहरों से यहां के लिए सीधी बससेवा है. दिल्ली के कश्मीरी गेट और कनाट प्लेस से आप धर्मशाला के लिए बस ले सकते हैं.

कब जाएं

धर्मशाला में गरमी का मौसम मार्च से जून के बीच रहता है. इस दौरान यहां का तापमान 22 डिगरी सैल्सियस से 38 डिगरी सैल्सियस के बीच रहता है. इस खुशनुमा मौसम में पर्यटक ट्रैकिंग का आनंद भी ले सकते हैं. मानसून के दौरान यहां भारी वर्षा होती है. सर्दी के मौसम में यहां अत्यधिक ठंड होती है और तापमान -4 डिगरी सैल्सियस के भी नीचे चला जाता है जिस के कारण रास्ते बंद हो जाते हैं और विजिबिलिटी कम हो जाती है. इसलिए धर्मशाला में घूमने के लिए जून से सितंबर के महीने उपयुक्त हैं.

झारखंड में हैं घूमने की कई खास जगहें, गर्मियों की छुट्टियों के दौरान जरूर करें यात्रा

झारखंड पर प्रकृति ने अपने सौंदर्य का खजाना जम कर बरसाया है. घने जंगल, खूबसूरत वादियां, जलप्रपात, वन्य प्राणी, खनिज संपदाओं से भरपूर और संस्कृति के धनी इस राज्य में सैलानियों के लिए देखने को बहुत कुछ है.

रांची

झारखंड की राजधानी रांची समुद्र तल से 2064 फुट की ऊंचाई पर बसा है. यह चारों तरफ से जंगलों और पहाड़ों से घिरा है. इस के आसपास गुंबद के आकार के कई पहाड़ हैं जो शहर की खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं. इस जिले में हिंदी, नागपुरी, भोजपुरी, मगही, खोरठा, मैथिली, बंगला, मुंडारी, उरांव, पंचपरगनिया, कुडुख और अंगरेजी बोलने वाले आसानी से मिल जाते हैं. यहां के कई जलप्रपात और गार्डन पर्यटकों को रांची की ओर बरबस खींचते रहे हैं.

हुंडरू फौल :

रांची शहर से 40 किलोमीटर दूर स्थित इस फौल की खासीयत यह है कि इस में नदी का पानी 320 फुट की ऊंचाई से गिर कर मनोहारी दृश्य पेश करता है. रांचीपुरुलिया मार्ग पर अनगड़ा के पास स्थित इस फौल तक कार, मोटरसाइकिल, बस, ट्रैकर (छोटी गाड़ी जिस में 10-12 लोग बैठ सकते हैं) के जरिए पहुंचा जा सकता है.

जोन्हा फौल (गौतम धारा) :

यहां राढ़ू नदी 140 फुट ऊंचे पहाड़ से गिर कर फौल बनाती है. इस की खूबी यह है कि फौल और धारा के निकट पहुंचने के लिए 489 सीढि़यां बनी हुई हैं. सीढि़यों पर चढ़ते और उतरते समय सावधानी रखने की जरूरत होती है क्योंकि पानी से भीगे रहने की वजह से सीढि़यों
पर फिसलन होती है. रांचीपुरुलिया मार्ग पर स्थित यह फौल रांची शहर से 49 किलोमीटर दूर है और यहां तक कार, मोटरसाइकिल, बस, ट्रैकर के जरिए पहुंचा जा सकता है.

दशम फौल :

शहर से 46 किलोमीटर दूर स्थित यह फौल कांची नदी की कलकल करती धाराओं से बना है. यहां पर कांची नदी 144 फुट ऊंची पहाड़ी से गिर कर दिलकश नजारा प्रस्तुत करती है. प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर इस फौल के पानी में कभी भी उतरने की कोशिश नहीं करनी चाहिए क्योंकि पानी के नीचे खतरनाक नुकीली चट्टानें हैं. फौल के पास के पत्थर भी काफी चिकने हैं, इसलिए उन पर खास ध्यान दे कर चलने की जरूरत है. फौल तक कार, मोटरसाइकिल, बस या फिर यहां चलने वाली छोटी गाडि़यों के जरिए पहुंचा जा सकता है.

हिरणी फौल :

यह फौल रांचीचाईबासा मार्ग पर है और रांची से करीब 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यहां तक कार, मोटरसाइकिल, बस, ट्रैकर के जरिए पहुंचा जा सकता है. 120 फुट ऊंचे पहाड़ से गिरते पानी का संगीत पर्यटकों के दिलों के तारों को झंकृत कर देता है.

सीता फौल :

यहां 280 फुट की ऊंचाई से गिरते पानी को देखने और कैमरे में कैद करने का अलग ही मजा है. यह फौल शहर से 44 किलोमीटर दूर रांचीपुरुलिया रोड पर स्थित है. यहां कार, मोटरसाइकिल, बस, ट्रैकर के जरिए पहुंच सकते हैं. फौल के पानी में ज्यादा दूर तक जाना खतरे को न्यौता देना हो सकता है.

पंचघाघ :

यहां पर एकसाथ और एक कतार में पहाड़ों से गिरते 5 फौल प्राकृतिक सुंदरता का अनोखा नजारा पेश करते हैं. रांची से 40 किलोमीटर और खूंटी से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस फौल के पास हराभरा घना जंगल और बालू से भरा तट है जो पर्यटकों को दोहरा आनंद देता है. इस फौल तक पहुंचने के लिए कार, मोटरसाइकिल, बस, ट्रैकर आदि का सहारा लिया जा सकता है.

बिरसा मुंडा जैविक उद्यान :

यह उद्यान रांची से 16 किलोमीटर पूर्व में रांचीपटना मार्ग पर ओरमांझी के पास स्थित है. इस से 8 किलोमीटर की दूरी पर मूटा मगरमच्छ प्रजनन केंद्र भी है.

रौक गार्डन :

कांके के रौक गार्डन में प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद उठाया जा सकता है. गार्डन का भूतबंगला बच्चों के बीच खूब लोकप्रिय है. यहां से कांके डैम का भी नजारा लिया जा सकता है.

टैगोर हिल :

शहर से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मोराबादी हिल, टैगोर हिल के नाम से मशहूर है. यह कवि रवींद्र नाथ टैगोर के बड़े भाई ज्योतिंद्रनाथ टैगोर के जीवन से जुड़ी हुई है. रवींद्रनाथ को भी यहां की प्राकृतिक सुंदरता काफी लुभाती थी. सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा लेने के लिए पर्यटक यहां घंटों बिताते हैं.
इस के अलावा बिरसा मृग विहार, नक्षत्र वन, कांके डैम, सिद्धूकान्हू पार्क, रांची झील, रातूगढ़ आदि भी रांची के मशहूर पर्यटन स्थल हैं.

एअरपोर्ट : रांची एअरपोर्ट.

रेलवे स्टेशन : रांची रेलवे स्टेशन.

बस अड्डा : रांची बस अड्डा (रेलवे स्टेशन के पास).

कहां ठहरें : मेन रोड पर कई होटल 500 से ले कर 3 हजार रुपए किराए पर मौजूद हैं.

जमशेदपुर

टाटा स्टील की नगरी जमशेदपुर या टाटा नगर पूरी तरह से इंडस्ट्रियल टाउन है, पर यहां के कई पार्क, अभयारण्य और लेक पर्यटकों को अपनी ओर खींचते रहे हैं.

जुबली पार्क :

238 एकड़ में फैले जुबली पार्क को टाटा स्टील के 50वें सालगिरह के मौके पर बनाया गया था. साल 1958 में बने इस पार्क को मशहूर वृंदावन पार्क की तरह डैवलप किया गया है. इस की सब से बड़ी खासीयत यह है कि इस में गुलाब के 1 हजार से ज्यादा किस्मों के पौधे लगाए गए हैं, जो पार्क को दिलकश बनाने के साथसाथ खुशबुओं से सराबोर रखते हैं. इस में चिल्डे्रन पार्क और झूला पार्क भी बनाया गया है. झूला पार्क में तरहतरह के झूलों का आनंद लिया जा सकता है. रात में रंगबिरंगे पानी के फौआरे जुबली पार्क की खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं.

दलमा वन्य अभयारण्य :

दलमा वन्य अभयारण्य जमशेदपुर का खास प्राकृतिक पर्यटन स्थल है. शहर से 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह अभयारण्य 193 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. इस में जंगली जानवरों को काफी नजदीक से देखने का खास इंतजाम किया गया है. हाथी, तेंदुआ, बाघ, हिरन से भरे इस अभयारण्य में दुर्लभ वन संपदा भरी पड़ी है. यह हाथियों की प्राकृतिक आश्रयस्थली है. झारखंड के पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला, खरसावां से ले कर पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले की बेल पहाड़ी तक इस का दायरा फैला हुआ है.

डिमना लेक :

जमशेदपुर शहर से 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित डिमना लेक के शांत और प्राकृतिक सौंदर्य का लुत्फ लिया जा सकता है. दलमा पहाड़ी की तलहटी में बसी इस लेक को देखने के लिए सब से ज्यादा पर्यटक दिसंबर और जनवरी के महीने में आते हैं.  इस के अलावा हुडको झील, दोराबजी टाटा पार्क, भाटिया पार्क, जेआरडी कौंप्लैक्स, कीनन स्टेडियम, चांडिल डैम आदि भी जमशेदपुर के प्रमुख पर्यटन स्थल हैं.

नजदीकी एअरपोर्ट : टाटा एअरपोर्ट.

रेलवे स्टेशन : टाटानगर रेलवे स्टेशन.

हजारीबाग

झारखंड के सब से खूबसूरत शहर हजारीबाग को ‘हजार बागों का शहर’ कहा जाता है. कहा जाता है कि कभी यहां 1 हजार बाग हुआ करते थे. झीलों और पहाडि़यों से घिरा यह खूबसूरत शहर समुद्र तल से 2019 फुट की ऊंचाई पर बसा हुआ है. रांची से 91 किलोमीटर की दूरी पर हजारीबाग नैशनल हाईवे-33 पर बसा हुआ है.

बेतला नैशनल पार्क :

साल 1976 में बना यह नैशनल पार्क 183.89 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. इस नैशनल पार्क में जंगली सूअर, बाघ, तेंदुआ, भालू, चीतल, सांभर, कक्कड़, नीलगाय आदि जानवर भरे पड़े हैं. पार्क में घूमने और जंगली जानवरों को नजदीक से देखने के लिए वाच टावर और गाडि़यों की व्यवस्था है. हजारीबाग शहर से 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस पार्क की रांची शहर से दूरी 135 किलोमीटर है.

कनेरी हिल :

यह वाच टावर हजारीबाग का मुख्य आकर्षण है. शहर से 5 किलोमीटर दूरी पर स्थित कनेरी हिल से हजारीबाग का विहंगम नजारा लिया जा सकता है. सूर्यास्त और सूर्योदय के समय पर्यटक इस जगह से शहर की खूबसूरती को देखने आते हैं. इस वाच टावर के ऊपर पहुंचने के लिए 600 सीढि़यां चढ़नी पड़ती हैं.
इस के अलावा रजरप्पा, सूरजकुंड, हजारीबाग सैंट्रल जेल, हजारीबाग लेक आदि कई दर्शनीय स्थल भी हैं.

नजदीकी एअरपोर्ट : रांची एअरपोर्ट (91 किलोमीटर).

रेलवे स्टेशन : कोडरमा रेलवे स्टेशन (56 किलोमीटर).

बस अड्डा : हजारीबाग बस अड्डा.

नेतरहाट :

छोटा नागपुर की रानी के नाम से मशहूर नेतरहाट से सूर्योदय और सूर्यास्त का अद्भुत नजारा देखा जा सकता है. 6.4 किलोमीटर लंबे और 2.5 किलोमीटर चौड़ाई में फैले नेतरहाट पठार में क्रिस्टलीय चट्टानें हैं. समुद्र तल से 3514 फुट की ऊंचाई पर स्थित नेतरहाट के पठार रांची शहर से 160 किलोमीटर की दूरी पर हैं. झारखंड के लातेहार जिले में स्थित नेतरहाट में घाघर और छोटा घाघरी फौल भी पर्यटकों को लुभाते हैं.

नजदीकी एअरपोर्ट : रांची एअरपोर्ट.

नजदीकी रेलवे स्टेशन : रांची रेलवे स्टेशन

Summer Special: गरमियों में घूमने के लिए बेस्ट औप्शन है लाहुल-स्पीति

चारों तरफ झीलों, दर्रों और हिमखंडों से घिरी, आसमान छूते शैल शिखरों के दामन में बसी लाहुल-स्पीति की घाटियां अपने सौंदर्य और प्रकृति की विविधताओं के लिए विख्यात हैं. जहां एक तरफ इन घाटियों की प्राकृतिक सौंदर्यता निहारते आंखों को सुकून मिलता है वहीं दूसरी तरफ हिंदू और बौद्ध परंपराओं का अनूठा संगम आश्चर्यचकित कर देता है. वैसे तो लाहुल-स्पीति दोनों को मिला कर एक जिला बनता है, लेकिन ये दोनों ही जगह अपनेअपने नाम के आधार पर सौंदर्य की अलगअलग परिभाषाएं गढ़ती हैं.
स्पीति

स्पीति हिमाचल प्रदेश के उत्तरपूर्वी भाग में हिमालय की घाटी में बसा है. स्पीति का मतलब बीच की जगह होता है. इस जगह का यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि यह तिब्बत और भारत के बीच स्थित है. यह जगह अपनी ऊंचाई और प्राकृतिक सुंदरता के लिए लोकप्रिय है. स्पीति क्षेत्र बौद्ध संस्कृति और मठों के लिए भी प्रसिद्ध है.

इतिहास :

हिमालय की गोद में बसी इस जगह के लोगों को स्पीतियन कहते हैं. स्पीतियन लोगों का एक लंबा इतिहास है. इतिहास के पन्नों को पलटें तो पता चलता है कि स्पीति पर वजीरों का शासन था जिन्हें नोनो भी कहा जाता था. वैसे तो समयसमय पर स्पीति पर कई लोगों ने शासन किया लेकिन स्पीतियन लोगों ने किसी की गुलामी ज्यादा दिनों तक नहीं सही. वर्ष 1947 में देश की आजादी के बाद यह पंजाब के कांगड़ा जिले का हिस्सा हुआ करता था. 1960 में यह लाहुल-स्पीति नामक जिले के रूप में एक नए प्रदेश यानी हिमाचल प्रदेश के साथ जुड़ा. बाद में स्पीति को सब डिवीजन बनाया गया और काजा को मुख्यालय.

आबादी :

स्पीति और उस के आसपास के क्षेत्रों को भारत में सब से कम आबादी वाले क्षेत्रों में गिना जाता है. इस क्षेत्र के 2 सब से महत्त्वपूर्ण शहर काजा और केलोंग हैं. कुछ वनस्पतियों और जीव की दुर्लभ प्रजातियां भी स्पीति के महत्त्व को बढ़ाती हैं. यहां के लोग गेहूं, जौ, मटर आदि फसलें उगाते हैं.

यातायात :

स्पीति जाने के लिए सब से निकटतम हवाई अड्डा भुंतर है, जो नई दिल्ली और शिमला जैसे प्रमुख शहरों से जुड़ा है. अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक भुंतर एअर बेस के लिए दिल्ली से जोड़ने वाली उड़ानों का लाभ ले सकते हैं. स्पीति से निकटतम रेलवे स्टेशन जोगिंद्रनगर है, जो छोटी लाइन का रेलवे स्टेशन है. इस के अलावा स्पीति से चंडीगढ़ और शिमला नजदीकी प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं, जो भारत के प्रमुख शहरों से जुड़े हैं.

यात्री रेलवे स्टेशन से स्पीति के लिए टैक्सियों और कैब की सुविधा आसानी से ले सकते हैं. सड़क से स्पीति राष्ट्रीय राजमार्ग 21 के माध्यम से पहुंचा जा सकता है. स्पीति तक रोहतांग दर्रा और कुंजम पास दोनों से पहुंचा जा सकता है.

मौसम :

नवंबर से जून तक भारी बर्फबारी के कारण स्पीति जाने वाले सभी मार्ग बंद हो जाते हैं. इसलिए वहां सर्दियों को छोड़ कर साल भर कभी भी आया जा सकता है. गरमी के मौसम में मई से अक्तूबर तक का महीना स्पीति आने के लिए अनुकूल है क्योंकि यहां का तापमान

15 डिगरी सैल्सियस से ऊपर नहीं जाता है. स्पीति बारिश के छाया क्षेत्र में स्थित है, इसलिए यहां ज्यादा बारिश नहीं होती है. सर्दियों के दौरान यह जगह बर्फबारी से ढक जाती है औैर तापमान शून्य डिगरी से नीचे चला जाता है.

दर्शनीय स्थल

स्पीति एक ऐसी घाटी है जहां सदियों से बौद्ध परंपराओं का पालन हो रहा है. यह घाटी अपने कई मठों के लिए देश और विदेश में विशेष स्थान रखती है. यहां कई मठ ऐसे हैं जिन की स्थापना सदियों पहले की गई थी. इन में तबो और धनकर मठ प्रमुख हैं.

तबो :  

तबो मठ को स्पीति घाटी में 996 में खोजा गया. यह स्थान बहुत ही सुंदर है. यह पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है. बताया जाता है कि यह मठ हिमालय पर्वतमाला के सब से पुराने मठों में से एक है. यहां की सुंदर पेंटिंग्स, मूर्तिंयां और प्राचीन ग्रंथों के अलावा दीवारों पर लिखे गए शिलालेख यात्रियों को बहुत आकर्षित करते हैं.

धनकर :

यह मठ धनकर गांव में है जोकि हिमाचल के स्पीति क्षेत्र में समुद्र तल से 3,890 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. यह जगह तबो और काजा 2 प्रसिद्ध जगहों के बीच में है. स्पीति और पिन नदी के संगम पर स्थित धनकर, दुनिया की ऐतिहासिक विरासतों में भी स्थान रखता है.

काजा :

काजा स्पीति घाटी का उप संभागीय मुख्यालय है. यह स्पीति नदी के बाएं किनारे पर खड़ी चोटी की तलहटी पर स्थित है. काजा में रैस्ट हाउस और रहने के लिए कई छोटेछोटे होटल बने हुए हैं. यहां से हिक्किम, कोमोक और लांगिया मठों पर घूमने जाया जा सकता है.

अन्य दर्शनीय स्थल

स्पीति आने वाले लोगों के लिए घूमने के स्थान की कमी नहीं है. यहां किब्बर, गेट्टे, पिन वैली, लिंगटी वैली, कुंजम पास और चंद्रताल कुछ ऐसी जगहें हैं जहां जाए बिना स्पीति की यात्रा पूरी नहीं होती.

लाहुल

कुछ लोग इसे हिमालयन स्कौटलैंड कहते हैं. वैसे लाहुल को लैंड विद मैनी पासेस भी कहा जाता है क्योंकि लाहुल से दुनिया का सब से ऊंचा हाईवे गुजरता है जो इसे मनाली, लेह, रोहतांग ला, बारालाचा ला, लचलांग ला और तंगलांग ला से जोड़ता है.

नदियां :

हिमालय की पर्वत शृंखलाओं से घिरे लाहुल में जो शिखर दिखाईर् देते हैं उन्हें गयफांग कहा जाता है. साथ ही, यहां चंद्रा और भागा नाम की 2 नदियां बहती हैं. इन्हें यहां का जलस्रोत माना जाता है. चंद्रा नदी को यहां के लोग रंगोली कहते हैं. इस के तट पर खोक्सर, सिसु, गोंढला और गोशाल 4 गांव बसे हुए हैं जबकि भागा नदी केलौंग और बारालाचा से बहती हुई चंद्रा में मिल जाती है. जब ये दोनों नदियां तांडी नाम की नदी में मिलती हैं तो इसे चंद्रभागा कहा जाता है.

भाषा और रोजगार :

लाहुल की जमीन बंजर है, इसलिए यहां घास और झाडि़यों के अलावा ज्यादा कुछ नहीं उगता. स्थानीय लोग खेती के नाम पर आलू की पैदावार करते हैं. पशुपालन औैर बुनाई ही यहां के लोगों का प्रमुख रोजगार है. यहां के घर लकड़ी, पत्थर और सीमेंट के बने होते हैं. लाहुल के निवासियों की भाषा का वैसे तो कोई नाम नहीं है लेकिन इन की  भाषा लद्दाख और तिब्बत से प्रभावित है.

यातायात :

लाहुल पहुंचने के लिए भी स्पीति की तरह भुंतर हवाई अड्डा एकमात्र साधन है. वैसे टैक्सियों औैर कैब के जरिए भी लाहुल पहुंचा जा सकता है. लाहुल का कोई अपना रेलवे स्टेशन नहीं है, इसलिए यात्रियों को पास में स्थित जोगिंदर नगर रेलवे स्टेशन उतरना पड़ता है. फिर वहां से टैक्सी और कैब से सड़क मार्र्ग द्वारा लाहुल जाया जाता है.

प्रमुख स्थल

लाहुल के आसपास घूमने के लिए केलौंग, गुरुकंटाल मठ, करडांग, शाशुर, तैयुल, गेमुर, सिसु और गोंढाल जैसे प्रमुख स्थल हैं जो किसी न किसी विशेषता की चादर ओढ़े हुए हैं.

Summer Special: छुट्टियों में करें इन 6 जगहों की यात्रा

खुद को तरो-ताजा और खुश रखना चाहते हैं तो महीने में कम-से-कम एक बार किसी ट्रीप पर ज़रूर जाएं और जिंदगी से खुद को आराम दे. बहुत सारी ऐसे जगह हैं जो फन और ऐचवेंचर से भरपुर हैं जैसे ट्रैकिंग, रिवर राफ्टिंग. जहां आप एक से दो दिन के अंदर जाकर वापस आ सकते हैं.

1. आगरा

आगरा, शाहजहां के बनवाए खूबसूरत इमारत ताज महल के लिए प्रसिद्ध हैं. यह शहर यमुना नदी के किनारे बसा हुआ है. प्रेम के प्रतीक इस स्मारक का दीदार करने एक साल में करीब 20 से 40 लाख तक देशी-विदेश पर्यटक आते हैं.

2. उदयपुर

राजस्थान का यह शहर उदयपुर जो झील के किनारें बसा हुआ है. चारों ओर पहाड़ों से घिरा हुआ यह शहर टूरिस्ट का मन मोह लेता है. खूबसूरती के कारण उदयुपर को वेनिस ऑफ ईस्ट भी कहा है. यहां का मुख्य आकर्षण रणकपुर के जैन मंदिर, सिटी पेलेस, पिछोला झील, जयसमंद झील आदि.

3. देहरादून

देहरादून की प्राकृतिक सुंदरता और पहाडिय़ों से घिरा शहर अपनी विरासत और संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है. यहां के लोग गहरी आस्थाओं से जुड़े हुए हैं. पशु-पक्षी प्रेमियों के लिए भी आकर्षक है जो दूर से ही टूरिस्ट को लुभाता है. यहां राफ्टिंग, ट्रेकिंग आदि का भरपूर आनंद उठा सकते हैं. इसके आलावा अगर आप खेलों के शौक़ीन हैं तो यहां आपके लिए बेहद रोमांचक खेल भी उपलब्ध हैं.

4. जयपुर

राजस्थान का गुलाबी शहर जयपुर जो अपने विशाल किलों और महलों के लिए प्रसिद्ध है. जयपुर में होने वाले त्यौहारों में आधुनिक जयपुर साहित्य स मेलन से लेकर पारंपरिक तीज और काइट फेस्टीवल भी हैं. गर्मियों में जयपुर का मौसम बहुत गर्म रहता है और तापमान लगभग तक 45 डिग्री हो जाता है. यहां घूमने आने का सबसे अच्छा समय सर्दियों का होता जब तापमान लगभग 8.3 डिग्री तक गिर जाता है.

5. मसूरी

कुदरत का अनमोल खजाना मसूरी जिसे पहाड़ों की रानी के नाम से भी जाना जाता हैं. उत्तराखंड राज्य में स्थित मसूरी देहरादून से 35 किमी की दूरी पर स्थित हैं, जहां लोग बार-बार आना पंसद करते हैं. मसूरी अपने खूबसूरती के लिए काफी प्रसिद्ध हैं. यहां के कुछ फेमस जगह जैसे- मसूरी झील, संतरा देवी मंदिर, गन हिल, केम्पटी फॉल, लेक मिस्ट ट्रीप को यादगार बनाते हैं.

6. नैनीताल

नैनीताल, उत्तराखंड का एक बहुत ही फेमस टूरिस्ट प्लेस है. नैनी शब्द का अर्थ है आंखें और ताल का अर्थ है झील. नैनीताल को झीलों के शहर के नाम से भी जाना जाता है.बर्फ से ढ़के पहाड़ों के बीच बसा यह स्थान झीलों से घिरा हुआ है. अगर आपको मन की शांति चाहिए तो नैनीताल की हसीन वादियों में रोमांचक समय बिता सकते हैं. यहां रिवर राफ्टिंग, ट्रेकिंग, रोपवे और बोटिंग का भरपूर मज़ा उठा सकते हैं.

 

Winter Special: इन 4 प्लेस को चुनें विंटर डेस्टिनेशन

सर्दियां आ ही गईं हैं. कुछ ही दिनों में आपके सुबह की शुरूआत सूरज की किरणों के बजाए कोहरे से होने लगेगी. सर्दियों का मौसम ट्रेवल के नजरीए से बेहतरीन है. सर्दियों में आप बिना पसीना बहाए मिलों चल सकती हैं, थकान भी कम होती है. पहाड़ी इलाकें बर्फ की चादर ओढ़ लेते हैं और समुद्री इलाकों में भी सुकून महसूस होता है. जाड़ों की नर्म धूप और आंगन में लेटकर, गीत के यह लफ्ज ही काफी हैं सर्दियों की खूबसूरती बयां करने के लिए. अगर आप भी सर्दियों में विदेश जाने का प्लान बना रही हैं तो अपने प्लानिंग में इन शहरों को जरूर शामिल करिए.

1. एथेंस, ग्रीस

किसी भी हेरिटेज डेस्टीनेशन को एक्सप्लोर करने के लिए सर्दियों का मौसम बेस्ट है. चाहे वह प्राचीन एक्रोपोलिस शहर के पार्थेनन की खूबसूरत स्थापत्यकला हो या ज्यूस का प्राचीन मंदिर, एथेंस का इतिहास अद्वितीय है. गर्मियों के मुकाबले सर्दियों में ग्रीस की राजधानी में घूमना ज्यादा आसान है. आपको ज्यादा पैसे भी खर्च नहीं करने पड़ेंगे क्योंकि सर्दियों में टूरिस्ट की संख्या घट जाती है.

2. वेनिस, इटली

वेनिस, बस नाम ही काफी है. न जाने कितने ही लोग आधी दुनिया का सफर कर यहां की खूबसूरती को निहारने पहुंचते हैं. पानी के ऊपर बसे हुए इस शहर की अलग ही बात है. यहां का आर्किटेक्चर इस शहर को अलग पहचान देता है. पुराने जमाने के संरक्षित चर्च, शापिंग स्ट्रीट, वाकवे, कैफे. इंतजार किस बात का है, बस अपने हमसफर का हाथ थामिए और पहुंच जाइए वेनिस.

3. ट्रांसिलवेनिया, रोमानिया

रहस्य और प्रकृति की अनछुई खूबसूरती वाला शहर है ट्रांसिलवेनिया. यहां आपको मध्यकालीन यूरोप की झलक देखने को मिलेगी. यहां फगारस की पहाड़ियों में आपको अपनी जिन्दगी का सबसे यादगार रोड ट्रिप का मजा लेने का मौका मिलेगा वहीं कार्पेथियन की पहाड़ियों में तरह तरह के पेड़-पौधे और जानवरों से रूबरू होने का अवसर भी मिलेगा. वाइल्डलाइफ प्रेमियों के लिए तो कार्पेथियन स्वर्ग से कम नहीं है. ट्रांसिलवेनिया आकर ड्रेकुला का कासल देखना मत भूलिएगा.

4. कोपनहैगन, डेनमार्क

इस शहर का अलग ही मिजाज है. चाहे वह फैशन हो या आर्किटेक्चर या फिर म्यूजियम. यहां विश्व के सबसे जायकेदार रेस्त्रां भी हैं. चारों तरफ बर्फ की चादर और गर्म काफी आपको इस शहर को भूलने नहीं देंगे.

Friendship Day Special: दोस्तों के साथ जरूर जायें इन 9 जगह

कॉलेज के दिन यानी कि जेब में पैसे कम, पर आंखों में बड़े-बड़े सपने. पर मैनजमेंट भी तो तभी सही होती थी कम पैसों के साथ भी. और अब पैसें हैं तो अपने सपनों को पूरा करने के लिए ऑफीस के काम से छुट्टी नहीं.

पर अगर आप अभी अपने जीवन के इस खूबसूरत सफ़र से गुज़र रहें हैं, तो तैयार हो जाइए अपने ज़िंदगी के सबसे खूबसूरत सफ़र में कुछ यादगार पलों को जोड़ने के लिए. कॉलेज के दिनों में ही युवाओं में सबसे ज़्यादा उत्साह होता है, रोमांचक क्रियाओं का, रहस्यमय चीज़ों के बारे में जानने का, अपने खिलते हुए प्यार को और गहरा करने का. आज हम आपके इसी खूबसूरत सफ़र को यादगार बनाने के लिए, आपको लिए चलते हैं भारत के इन खूबसूरत जगहों पर जहां आप अपने पॉकेट की चिंता किए बिना अपने ज़िंदगी के सबसे बेहतरीन पलों को जी पाएंगे.

तो बैग पैक करिए और तैयार हो जाइए ज़िंदगी के सबसे खुबसूरत सफ़र के लिए.

1. मसूरी

हिमालय के उंचें-उंचें पहाड़ों को उंचाई से ही देखना कितना अद्भुत होगा ना? मसूरी में रस्सी से लटकी केबल कार से हिमालय की पर्वतों का सुरम्य दृश्य आपको मंत्रमुगध कर देगा. थोड़े देर के लिए आप पूरी दुनिया से दूर आकाश की सैर पर जा दुनिया के सबसे खूबसूरत अनुभव को क़ैद करिए अपने सबसे खूबसूरत दोस्तों के साथ.

2. चेल, शिमला

शिमला से लगभग 44 किलोमीटर दूर और सोलन से लगभग 45 किलोमीटर दूर चेल के सफ़र में आप प्रकृति की गोद में समा जाइए. प्रकृति के बीच पैदल यात्रा आपके ज़िंदगी का सबसे लुभावना पल होगा. अपने साथीयों के साथ खूब सारी बातें, प्रकृति की खूबसूरती और बस आपका खूबसूरत अनुभव,और क्या चाहिए ज़िंदगी से.

3. ऋषिकेश

कॉलेज के दिनों में किसी खतरनाक और रोमांचक कार्य को करने का उत्साह सबसे ज़्यादा होता है. अपने इसी उत्साह को पूरा करने के लिए चले चलिए ऋषिकेश की जलयात्रा में, रिवर राफ्टिंग करने और कैमरे में कैद करिए अपने साहस भरे इन खूबसूरत पलों को.

4. भरतपुर

पक्षियों से प्रेम किसे नहीं होता? हर बार जी चाहता है कि काश हमारे भी उनकी तरह पंख होते जिन्हें फैला जहां मर्जी होती, जब मर्जी होती उड़ चलते. पक्षियों के अपने इस प्रेम को और निखारने के लिए जाना ना भूलें राजस्थान के भरतपुर, पक्षी अभ्यारण्य में. उनके खूबसूरत पलों को अपने कैमरे में कैद कर अपने फोटोग्राफी के शौक को भी पूरा करिए.

5. रणथम्बोर वन्यजीव अभ्यारण्य

जंगल के राजा के सामने से दर्शन करने का सपना यहां आकर आपके लिए सपना नहीं रहेगा. अपने इस सपने को हकीकत में बदलने के लिए निकल पड़िए राजस्थान के माधोपुर जिले के रणथम्बोर वन्यजीव अभ्यारण्य में.

6. चकराता

अपने कॉलेज के रोज की वही बोरिंग क्लासेस से अगर आप बोर हो चुके हैं और कहीं ऐसी जगह जाना चाहते हैं जहां बस आप और आपकी शांति और आपके दोस्तों के साथ कुछ सुहाने पल हों तो देर मत करिए, अभी ही निकल पड़िए चकराता की यात्रा के लिए. दुनिया भर के चहल पहल से दूर कम आबादी वाले इस क्षेत्र में जी भर के मज़े करिए दोस्तों संग.

7. जयपुर

जयपुर के रॉयल सफ़ारी में सफ़र कर अपने बचपन के सपने ‘एक राजसी ठाठ का अनुभव लेना हाथी की सवारी में’ को पूरा करिए और उनमें रंग भारिए. राजा महाराजाओं के बड़े-बड़े किलों में हाथी की सवारी करना आपके लिए शानदार राजसी अनुभव होगा.

8. रानीखेत

दोस्तों के साथ कैंम्पिंग करना कॉलेज के दिनों के विशलिस्ट में सबसे पहली विश होती है. इसी विश को पूरा करने के लिए रानीखेत से अच्छी जगह क्या हो सकती है. रानीखेत अपने जादुई नज़ारों और कैंमपिंग के लिए ही सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है.

9. प्रतापगढ़ फार्म्स

कॉलेज के दिनों में हर किसी का एक ग्रूप होता है. अपने इसी ग्रूप के साथ योजना बनाइए और निकल पड़िए प्रतापगढ़ फार्म्स की ओर जो दिल्ली से सिर्फ़ दो घंटे की दूरी पर है. हरे-हरे लहलहाते खेतों का नज़ारा, खेतों में काम करने का अनुभव, बचपन के देशी खेल जैसे खो-खो, कबड्डी, पिठ्ठू आदि के मज़े ले अपने बचपन के खूबसूरत पलों को फिर से वापस ले आइए.

Monsoon Special: सावन की बरसात में इन जगहों पर मनाएं रोमांटिक वेकेशन

बारिश, हरियाली, झूले, मिट्टी की सौंधी सी खुशबू, मेहंदी, बागों में खिले फूल, चिड़ियों का चहचहाना. यही तो है सावन की पहचान. सावन आते ही प्रकृति की अनोखी छटा बिखर जाती है. ऐसा लगता है मानो प्रकृति ने हरे रंग की चादर ओढ़ ली हो. बागों में झूले लग जाते हैं, लोग गीत गुनगुनाने लगते हैं, पेड़ों से आम लटक जाते हैं और रिमझिम बारिश से मौसम खुशनुमा हो जाता है. यह एक ऐसा मौसम है जिसमें रोमांस और रोमांच दोनों ही है. यह कहना गलत नहीं होगा की सावन एक ऐसा मौसम है जब प्रकृति का असल रूप और सुंदरता देखने को मिलती है.

जब बारिश की बूंदों को आप महसूस करती हैं तभी आपका मन पूरी तरह मस्ती में सराबोर हो जाता है. आप भी अगर ऐसी जगह जाना चाहती हैं जहां जाकर आप इस बेहतरीन मौसम का लुत्फ उठा सकें तो आज हम आपको भारत की ऐसी जगह बता देते हैं जहां जाकर आप सावन का मजा ले सकती हैं.

1. मेघालय

यदि आपको बारिश की फुहारें पसंद हैं तो आपके लिए मेघालय से अच्छी जगह हो ही नहीं सकती. पूरे साल बारिश होने की वजह से इसे ‘बादलों का निवास स्थान’ भी कहा जाता है. धरती पर सबसे ज्यादा नमी कहीं है तो वह मेघालय का चेरापुंजी ही है. यहां की हरियाली और पेड़-पौधों से टपकती बारिश की बूंदें आपका मन मोह लेगी.

2. गोवा

यूं तो गोवा बीचों के लिए जाना जाता है, लेकिन इस मौसम आप गोवा की असली प्राकृतिक खूबसूरती देख सकती हैं. बारिश के मौसम में अगर आप गोवा जा रही हैं तो मौलेम नैशनल पार्क और कॉटिगो सैंक्चुयरी जरूर जाएं. मौनसून के मौसम में गोवा गए और दूधसागर फॉल नहीं देखा तो क्या देखा. ऑफ सीजन होने के कारण आपके पॉकेट पर भी ज्यादा असर नहीं परेगा.

3. केरला

नदियों व पर्वत-पहाड़ियों से घिरा हुआ एक अनोखा पर्यटन स्थल केरला हमेशा ही सैलानियों को अपनी और खींचता रहा है. वर्षा ऋतु के समय इस जगह का महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है. केरला में मॉनसून सीजन को ड्रीम सीजन के नाम से भी जाना जाता है.

4. लद्दाख

सिंधू नदी के किनारे बसा लद्दाख की वादियां, सुंदर झील, आसमान छूती पहाड़ियां हर किसी का मन मोह लेते हैं. मॉनसून में इन जगहों की खूबसूरती और आकर्षण और ज्यादा बढ जाता है. भारत में अगर आप स्वर्ग का दर्शन करना चाहती हैं तो लद्दाख जरूर जाएं.

5. द वैली ऑफ फ्लावर नेशनल पार्क

मॉनसून के मौसम में द वैली ऑफ फ्लावर नेशनल पार्क (उत्तराखण्ड)का परिदृश्य देख आप अभिभूत हो जाएंगी.सावन के मौसम में यहां विभिन्न प्रकार के 300 फूल देखना किसी उपलब्धि से कम नहीं है. दृश्य देखकर आपको लगेगा कि पार्क में कोई बड़ा चमकीला कारपेट बिछाया गया है.

6. कुन्नूर

कुन्नूर तमिलनाडु राज्य के नीलगिरि जिले में स्थित एक प्रसिद्ध एवं खूबसूरत पर्वतीय पर्यटन स्थल है. यहां की हरियाली और मनमोहक दृश्य पर्यटकों को खींच लाते हैं. यह स्थान मनमोहक हरियाली, जंगली फूलों और पक्षियों की विविधताओं के लिए जाना जाता है. यहां ट्रैकिंग और पैदल सैर करने का अलग ही आनन्द है.

मौनसून में इन शहरों के नजारे देखने लायक होते हैं इसलिए इस मौसम में यहां घूमने जाना फायदे का सौदा हो सकता है. बिना वक्त जाया किए आप भी इस मौसम में घूमने का प्लान बनाइए और अपने इस सावन को यादगार बनाइए.

Monsoon Special: मौनसून ट्रैवल के दौरान अपनाएं ये 6 टिप्स

क्या आप भी बारिश के मौसम में खुलकर इंज्वाय करना चाहती हैं और अलग-अलग डेस्टिनेशन्स पर घुमक्कड़ी करने का एक भी मौका नहीं छोड़ना चाहतीं. ऐसे में अगर आप मौनसून के दौरान ट्रैवल प्लान्स बना रही हैं तो इन जरूरी बातों का रखें ध्यान.

1. ध्यान से चुनें डेस्टिनेशन

अगर आप बीच पर घूमने के शौकीन हैं, तो बारिश में इसका मजा नहीं ले पाएंगे क्योंकि बीच के आसपास आपको कीचड़ मिलेगा, जिससे आप वहां पूरी मस्ती नहीं कर पाएंगे. मौनसून के दौरान घूमने निकलने वालों को अडवेंचर ऐक्टिविटीज जैसे ट्रेकिंग और रिवर राफ्टिंग से बचना चाहिए. कई डेस्टिनेशंस पर मौनसून में भी आपको गर्मी की मार झेलनी पड़ सकती है और लैंडस्लाइड के खतरे की वजह से हिल स्टेशन्स पर जाना भी रिस्की हो जाता है. इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए ही अपना मौनसून डेस्टिनेशन चुनें.

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2. कपड़े होने चाहिए वेदर फ्रेंडली

अगर आप बारिश के मौसम में सफर कर रहे हैं तो इस बात की संभावना है कि कभी न कभी आप बारिश के भीग जाएंगे, लिहाजा लूज फिटिंग वाले और हल्के कपड़े साथ लेकर जाएं. खासकर सिंथेटिक कपड़ों को तरजीह दें जो कौटन कपड़ों की तुलना में जल्दी सूख जाते हैं और आपको परेशानी भी नहीं होगी. इसके अलावा भारी जींस और स्कर्ट की जगह टौप और शार्ट्स को मौनसून ट्रैवल के दौरान तरजीह दें.

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3. छाता और रेनकोट है मस्ट

बारिश के दौरान ट्रैवल कर रहे हों तो सबसे जरूरी चीज जो आपके पास होनी चाहिए वह है छाता और रेनकोट ताकि आप बारिश में भींगने से बच जाएं. कभी-कभार बारिश में भीगना सभी को अच्छा लगता है लेकिन हर दिन बारिश में भीगने से आपकी तबीयत खराब हो सकती है और फिर ट्रिप का मजा खराब हो सकता है इसलिए अपने साथ छाता और रेनकोट दोनों चीजें रखें.

4. ऐसे होने चाहिए आपके जूते

बारिश के मौसम में जगह-जगह कीचड़ और फिसलन की वजह से गिरने का डर रहता है लिहाजा कंफर्टेबल सैंडल्स या फिर ऐसे शूज चुनें जिसका सोल अच्छा हो. इसके अलावा वेलिंगटन बूट्स या गमबूट्स भी बारिश के मौसम के लिए परफेक्ट हैं. साथ ही एक लाइटवेट स्नीकर भी साथ रखें. लाइट कलर के न्यू शूज इस्तेमाल करने से बचें क्योंकि यह कीचड़ लगकर गंदे हो जाएंगे.

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5. वेदर न्यूज पर रखें नजर

वैसे तो मौनसून के दौरान यात्रा करना मजेदार और रोमांचक हो सकता है लेकिन कई बार भारी बारिश की वजह से कई जगहों पर जलजमाव और बाढ़ जैसी परिस्थितियां भी बन जाती हैं और उन जगहों पर यात्रा करना खतरनाक हो सकता है लिहाजा आप जहां जाने वाले हैं उस जगह की वेदर रिपोर्ट पर जरूर नजर रखें.

6. जरूरी दवाइयां साथ रखें

बारिश के मौसम में अक्सर पानी और कीचड़ की वजह से मच्छर और कीड़े-मकोड़े ज्यादा पनपने लगते हैं जिससे बीमारियों का खतरा रहता है. ऐसे में मौस्क्यूटो रेप्लेंट के अलावा मच्छरों से बचाने वाली क्रीम या पैच भी साथ रख सकते हैं. इसके अलावा बारिश में होने वाली कुछ सामान्य बीमारियों से बचने के लिए जरूरी दवाइयां भी साथ रखना न भूलें.

Winter Special: सर्द मौसम में सैरसपाटा

घूमनेफिरने वालों के लिए सर्दी का मौसम किसी सौगात से कम नहीं है. इस मौसम में विदेशी सैलानी भी भारत का रुख करते हैं, क्योंकि उन के लिए भारत की सर्दियां गुलाबी होती हैं. अगर आप का भी सैरसपाटे का मन है, तो निकल पडि़ए भारत के इन स्थानों का लुत्फ उठाने के लिए-

बर्फ से लदी घाटियों की सैर

पहले भले ही लोग सर्दियों में पहाड़ों पर घूमने जाने से कतराते थे पर अब वे लोग बेसब्री से सर्दियों का इंतजार करते हैं ताकि बर्फीली वादियों की सैर कर सकें. क्योंकि चाहे स्नोफाल का मजा लेना हो या बर्फ पर घूमना हो या फिर स्लेजिंग और स्कीइंग के खेल का मजा लेना हो यह सब तभी संभव हो पाएगा जब आप सर्दियों में बर्फीले पहाड़ों की सैर करने का मन बनाएंगे. आसमान से सफेद रुई जैसी बर्फ जब आप के शरीर से टकराती है, तो उस अनुभव को शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल है. स्नोफाल की शुरुआत अकसर जनवरीफरवरी में होती है. हसीन वादियों का शहर शिमला : सर्दी हो या गरमी शिमला हर मौसम में सब का पसंदीदा हिल स्टेशन है. स्नोफाल देखने के लिए सब से पहले लोग शिमला का ही रुख करते हैं, क्योंकि यह दिल्ली से काफी करीब है और यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है. यहां का मौसम भी निराला है. यहां कुफरी और नारकंडा में जब स्नोफाल होता है तब शिमला का मौसम सुहाना होता है.

आप कुफरी और नारकंडा में बर्फ में खेलने के बाद शिमला के मौलरोड पर टहल सकते हैं. कुफरी और नारकंडा में स्नोफाल होने के बाद शिमला में स्नोफाल शुरू होता है. जो मजा यहां के मौलरोड और स्कैंडल पौइंट पर स्नोफाल देखने और बर्फ पर खेलने में आता है वह कहीं और नहीं आता. शिमला के आसपास जाखू मंदिर, कालीबाड़ी, वायसराइगल लौज, समर हिल आदि घूमने का भी अलग ही आनंद है. हनीमून डैस्टिनेशन कुल्लूमनाली :हिमालय का जो सौंदर्य व्यास नदी के तट पर बसे कुल्लूमनाली में दिखता है. वह शायद ही और कहीं देखने को मिले. एक ओर कलकल बहती व्यास नदी, तो दूसरी ओर आसमान को छूती पर्वतशृंखलाएं किसी को भी रोमांचित कर सकती हैं. तभी तो इसे हनीमून मनाने के लिए सब से आदर्श माना जाता है.

यहां भी जनवरी से हिमपात शुरू हो जाता है. सब से पहले रोहतांग दर्रे के पास हिमपात होता है और हिमपात होते ही यहां का मार्ग बंद हो जाता है. और फिर देखते ही देखते पूरा शहर बर्फ की चादर से ढक जाता है. वशिष्ठ मंदिर और हिडंबा मंदिर जाने के लिए भी बर्फ पर चलना पड़ता है. हिमाचल प्रदेश में मनाली के निकट सोलांग घाटी विंटर गेम्स के लिए आदर्श स्थान है. यहां की ढलानों की विशेषता है कि नौसिखिए सैलानी भी स्कीइंग का आनंद उठा सकते हैं. मनाली से सोलांग घाटी आसानी से जाया जा सकता है. नैनीताल में निहारें वाइल्ड लाइफ : नैनीताल में स्नोफाल का आनंद तो लिया ही जा सकता है, वाइल्ड लाइफ को भी काफी करीब से देखा जा सकता है. नैनीताल के नयनाभिराम दृश्य और पहाड़ों पर बिछी बर्फ की सफेद चादर इसे बेहद खूबसूरत बना देती है. इन्हीं पर्वतों के साए में बसा है नैनीताल का कार्बेट नैशनल पार्क, जो कई किलोमीटर में फैला है. यह उद्यान बाघों के लिए भी पहचाना जाता है. आज इस उद्यान में बाघों की संख्या काफी अधिक है. बाघों के अतिरिक्त यहां भालू, तेंदुए, जंगली सूअर, पैंथर, बारहसिंगे, नीलगाय, सांभर, चीतल, हाथी और कई अन्य जंतु भी देखे जा सकते हैं.

रामगंगा नदी उद्यान के मध्य से बहती है. यहां पक्षियों की 400 से अधिक प्रजातियां हैं. उन में मोर, बाज, वनमुरगी, तीतर, बया, उल्लू, अबाबील, बगला आदि को सैलानी आसानी से देख पाते हैं. सर्दियों में तो यहां प्रवासी पक्षी भी आ बसते हैं. रामगंगा के तट पर ऊदबिलाव, मगरमच्छ और जलगोह भी देखे जा सकते हैं.

कोल्ड टी दार्जिलिंग : दार्जिलिंग के चाय के बागान जितने खूबसूरत गरमियों के दिनों में दिखते हैं उस से कहीं ज्यादा आकर्षक तब दिखते हैं जब उन पर बर्फ की चादर पूरी तरह से बिछ जाती है. यहां सैलानियों को बर्फ पर खेलना काफी भाता है. बर्फीले रास्तों पर चल कर यहां के बौद्ध मठ एवं पर्वतारोहण संस्थान देखने का मजा ही कुछ और है.

सब से सुंदर कश्मीर : स्नोफाल की बात हो और कश्मीर को भुला दिया जाए, ऐसा तो हो ही नहीं सकता. इस मौसम में पूरा कश्मीर बर्फ से ढक जाता है. कश्मीर का गुलमर्ग देश का सब से पहला स्कीइंग डैस्टिनेशन है. इस खेल का लुत्फ उठाने आज भी यहां देशविदेश के हजारों सैलानी आते हैं. यहां आ कर गंडोले में बैठ कर ऊंची बर्फीली पहाड़ी ढलानों पर नहीं गए, तो कश्मीर दर्शन अधूरा समझिए. इस के अलावा पटनी टौप भी लोगों को काफी पसंद आता है.

करें रेगिस्तान का सफर

भरी गरमी में रेगिस्तान घूमने का आनंद नहीं उठाया जा सकता है. सर्दी के मौसम में रेत के ऊंचेऊंचे टीले, ठंडी हवा और दूर तक फैली रेत पर चलते ऊंटों के काफिले किसी का भी मन मोह लेंगे. यही वह मौसम है, जब आप मरुभूमि के ऐसे मनोरम दृश्यों को अपने कैमरे में कैद कर सकते हैं. राजस्थान का बहुत बड़ा क्षेत्रफल थार रेगिस्तान से घिरा हुआ है. यहां ऐसे बहुत से ठिकाने हैं, जहां सैलानी डैजर्ट हौलीडे मना सकते हैं. इन स्थानों की रेतीली धरती पर रेत के विशालकाय टीले यानी सैंड ड्यूंस देखना किसी रोमांच से कम नहीं है. इन्हें स्थानीय भाषा में रेत के टिब्बे या रेत के धोरे कहा जाता है. कैमल सफारी का मजा : बीकानेर शहर अपने किले, महल और हवेलियों के लिए पहचाना जाता है. राव बीकाजी द्वारा स्थापित इस के आसपास स्थित जूनागढ़ फोर्ट, लालगढ़ पैलेस, गंगा गोल्डन जुबली म्यूजियम, देवी कुंड, कैमल रिसर्च सैंटर आदि दर्शनीय हैं. बीकानेर के निकट सैलानी सैंड ड्यूंस की सैर भी कर सकते हैं. इस के लिए बीकानेर से कुछ किलोमीटर दूर गजनेर वाइल्ड लाइफ सैंक्च्युरी कटारीसर गांव जाना होता है.

रेगिस्तान की धरती का सही रूप देखना है तो कैमल सफारी सब से अच्छा और रोमांचक तरीका है. इन सभी नगरों में टूर औपरेटरों द्वारा कैमल सफारी की व्यवस्था की जाती है. ऊंट के मालिक पर्यटकों के लिए गाइड का काम करते हैं. कैमल सफारी का कार्यक्रम 2 दिन से 1 सप्ताह तक का बनाया जा सकता है. कैमल सफारी के दौरान मरुभूमि के ग्राम्य जीवन को करीब से देखने का अनुभव भी अनूठा होता है. सैलानियों को लुभाता जैसलमेर : राव जैसल द्वारा स्थापित यह ऐतिहासिक शहर सर्दियों में सैलानियों का पसंदीदा पर्यटन स्थल है. तपती धूप में सुनहरी रेत को देखना हो तो जैसलमेर की सैर करना बेहतर होगा. गोल्डन सिटी के नाम से पहचाने जाने वाले जैसलमेर में विशाल किला, सुंदर हवेलियां और शहर से कुछ दूर स्थित सैंड ड्यूंस सभी कुछ है. पीले पत्थरों से बने जैसलमेर फोर्ट को सोनार किला कहा जाता है. त्रिकूट पहाड़ी पर स्थित यह किला विशाल परकोटे से घिरा हुआ है. सोनार किले के अंदर कुछ सुंदर महल भी दर्शनीय हैं. राज परिवार के सुंदर महलों के अलावा यहां आम लोगों के घर भी हैं. शहर में भव्य हवेलियां भी पर्यटकों को आकर्षित करती हैं. इन में सब से आकर्षक पटवों की हवेली है. यह 7 मंजिला 5 हवेलियों का समूह है. जैसलमेर की गडीसर झील में बोटिंग का आनंद लिया जा सकता है.

सैलानियों के लिए यहां सब से बड़ा आकर्षण सम सैंड ड्यूंस है. यहां आप चाहे रेत पर पैदल घूमें या फिर ऊंट पर बैठ कर रेत के धोरों के बीच घूमने निकल पड़ें. लोद्रवा, कनोई, कुलधारा आदि गांवों के पास भी रेत के टीले देखे जा सकते हैं. इस के अलावा अगर आप राजस्थान जाएं तो जयपुर, जोधपुर और अजमेर शरीफ भी जरूर देखें. इन सब का अपना अलग आकर्षण है. इस के अलावा नागौर और चुरू के नजदीक भी रेत के टीलों को देखा जा सकता है. इन टीलों की खासीयत यह है कियहां के टीले तेज हवाओं के साथ अकसर स्थान बदल लेते हैं. इसलिए इन्हें शिफ्टिंग सैंड ड्यूंस भी कहा जाता है.

सागरतट पर ढूंढ़ें सन, सैंड और सर्फिंग

सागरतट लोगों को अपनी ओर आकर्षित न करे, ऐसा हो ही नहीं सकता और यह भारत ही है जहां एक ओर ऊंचे पहाड़ हैं, तो दूसरी ओर समुद्र के तट, जो इसे 3 ओर से घेरे हुए हैं. नंगे पैर समुद्र के किनारे पैदल चलने की कल्पना हर इंसान ने कभी न कभी की ही होगी. अगर आप का भी सपना समुद्र को अपने पैरों के नीचे लेने का कर रहा हो तो यह मौसम आप को बुला रहा है. इन दिनों समुद्री हवाएं और भी सुहानी लगती हैं और किनारे की सूखी रेत पर पैदल चलना भी सुखद लगता है. तभी तो सन, सैंड और सर्फिंग के शौकीन विदेशी पर्यटक भी इन दिनों भारत के सागरतटों पर नजर आते हैं.

गोवा की खूबसूरती : सुंदर सागरतटों का जिक्र आते ही सब से पहले, जो तसवीर हमारे जेहन में आती है वह है गोवा, जो अपनेआप में एक संपूर्ण पर्यटन स्थल है. यहां की लंबी तटरेखा पर करीब 40 मनोरम बीच हैं. कई ऐतिहासिक चर्च व प्राचीन मंदिर भी यहां हैं. वैसे तो पर्यटक राजधानी पणजी के समीप मीरामार बीच पर शाम को सूर्यास्त का शानदार नजारा देखना ज्यादा पसंद करते हैं पर अगर खूबसूरती की बात करें तो कलंगूट यहां का सब से सुंदर समुद्रतट है. दोना पाउला तट पर मोटरबोट की सैर और वाटर स्कूटर का रोमांचक सफर किया जा सकता है. अंजुना बीच पर बैठ कर लाल चट्टानों से टकराती लहरों को देखना भी अपनेआप में एक नया अनुभव होगा. यहां से कुछ दूर ही बागा बीच है. यहां सैलानी समुद्र स्नान का आनंद लेते हैं.

समुद्र किनारे बसा पुरी शहर : उड़ीसा के इस शहर का सुंदर, स्वच्छ, विस्तृत और सुनहरा सागरतट दुनिया भर के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है. दूर तक फैले सफेद बालू के तट पर बलखाती सागर की लहरों को देख कर हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता है. भीड़भाड़ भरे जीवन से परे जब सैलानी यहां पहुंचते हैं, तो स्वयं को उन्मुक्त महसूस करते हैं. समुद्र को छू कर आती हवाएं उन में नई ऊर्जा का संचार करती हैं. इसलिए पुरी के मनोरम बीच पर सुबह से शाम तक खासी रौनक रहती है. सुबह से दोपहर तक यहां समुद्र स्नान और सूर्य स्नान करने वालों की भीड़ रहती है, तो शाम को सूर्यास्त का नजारा देखने के लिए लोग यहां जुटते हैं. पुरी का यह बीच मीलों तक फैला है. शहर के निकट तट पर भारतीय सैलानी अधिक होते हैं, तो पूर्वी हिस्से में अधिकतर विदेशी सैलानी सनबाथ का आनंद ले रहे होते हैं. यहां हस्तशिल्प की वस्तुओं का हाट भी लगता है. इस की जगमगाहट पर्यटकों को शाम को यहां खींच लाती है. उस समय समुद्र की लहरों का शोर माहौल को संगीतमय बनाए रखता है. पुरी घूमने आए सैलानी विश्वविख्यात कोणार्क मंदिर भी देख सकते हैं. यूनेस्को की ओर से इसे विश्व धरोहरों की सूची में दर्ज किया जा चुका ह.

पर्यटक भुवनेश्वर, चिल्का झील और गोपालपुर औन सी सागरतट भी देखने जा सकते हैं.

कोवलम की छांव में : कोवलम बीच देश के सुंदरतम समुद्रतटों में से एक है. यह देश का ऐसा पहला तट है, जिसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर के सी बीच के रूप में विकसित किया गया है. इसलिए यहां विदेशी सैलानियों की संख्या भी काफी होती है.

कोवलम का सुंदर किनारा ताड़ और नारियल के वृक्षों से घिरा हुआ है. यहां 2 छोटीछोटी खाडि़यां हैं, जिन के कोनों पर ऊंची चट्टानें हैं. चट्टानों पर बैठ कर सैलानी मचलती लहरों का आनंद लेते हैं. तिरुअनंतपुरम में और भी कई दर्शनीय स्थान हैं. इन में शंखमुखम बीच, नेपियर संग्रहालय और श्री चित्र कलादीर्घा मुख्य हैं. चलें अंतिम छोर की ओर : तमिलनाडु के कन्याकुमारी की खूबसूरती को शब्दों में बयां करना मुश्किल है. यहां 3 सागरों के संगम के साथ सूर्योदय व सूर्यास्त का अनूठा नजारा देखा जा सकता है. यहां से श्रीलंका भी काफी करीब है. हिंद महासागर, बंगाल की खाड़ी और प्रशांत महासागर यानी 3 अलगअलग रंगों के समुद्रों का नजारा इस के अलावा भारत में और कहीं नहीं देखा जा सकता है.

Travel Special: प्रकृति का खूबसूरत तोहफा है ‘मालशेज घाट’

हर मौसम में खूबसूरत मालशेज घाट प्रकृति प्रेमियों, ट्रैकर्स, साहसिक पर्यटन प्रेमियों सभी को समान रूप से लुभाता है. शहर की हलचल से दूर मात्र साढ़े तीन घंटे की यात्रा के बाद अप्रतिम सौंदर्य से परिपूर्ण प्रकृति की गोद में स्वयं को पाना एक कौतूहलपूर्ण आश्चर्य लगता है, मगर मालशेज घाट की यही खासियत है. मुंबई से आधी दूरी तय करने के बाद से ही आप छोटे-छोटे झरने, जलप्रपात, हरे-भरे खेत, पर्वतश्रेणियां, काले अंगूर, केले आदि के फार्म, खूबसूरत जंगल व झील आदि का नजारा लेते हुए यहां पहुंचते हैं.

यह एक ऐसा पर्वतीय स्थल है, जहां किसी भी मौसम में जाइए आप प्रकृति के रंग-रूप देख मुग्ध हो जाएंगे और यहां की खूबसूरती में खो जाएंगे. मगर मॉनसून में यहां का सौंदर्य देखते ही बनता है, बादल आपके संग चलते हुए प्रतीत होंगे.

महाराष्ट्र के पुणे जिले के पश्चिमी घाटों की श्रेणी में स्थित है प्रसिद्ध मालशेज घाट. समुद्र तल से 700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मालशेज एक बेहद आकर्षक पर्वतीय पर्यटन स्थल है, जो आम पर्यटकों के अलावा प्रकृति प्रेमियों, हाईकर्स, ट्रैकर्स एवं इतिहासकारों को समान रूप से लुभाता है. वीकेंड या दो-तीन दिन की यात्रा के बाद आप कई महीनों तक अपने को तरोताजा महसूस करेंगे.

मालशेज घाट में ठहरने के लिए यहां सबसे ऊंचाई पर महाराष्ट्र पर्यटन विभाग का गेस्ट हाउस भी एक बेहतरीन जगह पर है. गेस्ट हाउस के परिसर में घूमते हुए आप पर्वतों एवं घाटियों के सौंदर्य का आनंद ले सकते हैं. परिसर के पीछे अनेक हिल प्वाइंट, जैसे-कोंकण, वाटर रिवर्स प्वाइंट, हरिश्चंद्र प्वाइंट, कालू आई प्वाइंट, मालशेज प्वाइंट आदि बने हुए हैं और उसके पीछे सघन वन है. यहां से नीचे की ओर गहरी घाटियों को और मई से सितंबर महीनों में अनेक जलप्रपातों के सौंदर्य को निहारा जा सकता है.

मालशेज घाट और इसके आसपास भीम नदी प्रवाहित होती है. यहां की झीलों में और आसपास सफेद एवं नारंगी फ्लेमिंगो को देखना एक अनूठा अनुभव है, जो दूसरी जगह दुर्लभ है. इसी प्रकार और भी कई खूबसूरत प्रवासी पक्षी यहां की प्रकृति में रमने के लिए आते हैं. मालशेज घाट कोंकण और डक्कन के पठार को जोडऩे वाला सबसे पुराना मार्ग है, इसलिए यह विश्वास किया जाता है कि बौद्ध भिक्षुओं ने यहां थोड़ी दूरी पर स्थित लेनयाद्री में गुफा मंदिरों का निर्माण कराया.

मालशेज घाट के आसपास मात्र एक घंटे की ड्राइव के बाद कई आकर्षक स्थल हैं. इनमें अष्टविनायक मंदिर, शिवाजी की जन्म स्थली, नैने घाट, जीवधन और कुछ जल प्रपात प्रमुख हैं.

शिवनेरी

सिर्फ महाराष्ट्र ही नहीं, बल्कि भारत के इतिहास में भी शिवनेरी का विशेष स्थान है, क्योंकि यह महाराज शिवाजी की जन्मस्थली है. सैकड़ों खड़ी चट्टानी सीढ़ियां चढ़ने के बाद इस स्थान पर पहुंचना भी एक उपलब्धि है. यहां एक छोटा कमरा है, जहां शिवाजी का जन्म हुआ था. यहां पर उनका पालना सुरक्षित रखा गया है. इसे

कई लोग शिवाजी का मंदिर मानते हैं और एक तीर्थस्थल की तरह ही यहां भी कुछ लोग समूह में शिवाजी की जयकार करते हुए इतनी ऊंचाई तक पहुंचते हैं. शिवनेरी की बौद्ध गुफाएं तीसरी सदी की हैं.

हरिश्चंद्रगढ़

ट्रैकिंग के लिहाज से हरिश्चंद्रगढ़ का अपना महत्व है. यह काफी लंबा और कठिन ट्रैक भी है, इसलिए गर्मियों में यहां ट्रैकिंग नहीं करें, तो बेहतर होगा. यहां की ट्रैकिंग के लिए खिरेश्वर गांव उपयुक्त बेस माना जाता है. इसके अलावा, पचनाई और कोठाले को भी बेस बनाया जा सकता है.

जीवधन

जीवधन भी एक कठिन ट्रैकिंग रूट है. प्राचीन काल में नैनेघाट एक प्रमुख व्यापारिक मार्ग था और सुरक्षा की दृष्टि से यहां किलों का निर्माण किया गया था. यह क्षेत्र जीवधन, हदसर, महिषगढ़ और चावंड से सुरक्षित किया गया था. जीवधन वंदारलिंगी के कारण भी प्रसिद्ध है.

पिपलगांव जोग बांध

इस रमणीय स्थल में विविध सुंदर प्रवासी पक्षियों को देखने का मौका मिलता है. धवल नदी और घने वन से सुसज्जित यह स्थान पक्षी प्रेमियों के लिए बेहतरीन है.

कैसे पहुंचे?

रेलवे स्टेशन- मुंबई-कल्याण-घाटघर-मालशेज निकटतम रेलवे स्टेशन कल्याण (90 किमी.), थाणे (112 किमी.), पुणे (116 किमी.)

निकटतम हवाई अड्डा- पुणे (116 किमी.), मुंबई (136 किमी.)

प्रमुख शहरों से दूरियां- थाणे (112 किमी.), नवी मुंबई (130 किमी.), पुणे (116 किमी.), मुंबई (136 किमी.)

कब जायें?

उपयुक्त मौसम यहां की खासियत है कि पूरे साल खुशनुमा मौसम रहता है, मगर जून से सितंबर तक यहां घूमने का अलग ही रोमांच है.

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