अगर आपका चेहरा भी हो जाता है लाल, तो फॉलो करें ये टिप्स

कई बार हमारा चेहरा लाल हो जाता है और यह शिकायत लगभग सभी की होती है. चेहरे लाल होने के बहुत से कारण होते हैं जिसमें गलत कॉस्मेटिक्स का प्रयोग करना, अधिक देर तक एक्सरसाइज करना और सूर्य की रोशनी में बहुत देर तक रहना आदि शामिल है. अगर आप अधिक शराब पीते हैं या आपको एलर्जी रिएक्शन होते हैं तो भी आपका चेहरा लाल हो सकता है. अगर आप चेहरे के लाल होने के कारण परेशान रहते हैं और हमेशा इस चीज के इलाज की तलाश में रहते हैं तो आज आप बिल्कुल सही जगह आए हैं. आज हम चेहरे के लाल हो जाने के कुछ कारणों के बारे में जानेंगे और इनके घरेलू इलाजों के बारे में भी पता लगाएंगे.

चेहरे के लाल होने के कारण

आपका चेहरा तब लाल होता है जब आपकी ब्लड वेसल्स अधिक खुल जाती हैं और आपकी स्किन तक खून ज्यादा मात्रा में पहुंचने लग जाता है. इस कारण आपका चेहरा ही नहीं बल्कि आपकी गर्दन भी लाल हो जाती है. इस एकदम से हो जाने वाली ललक को फ्लशिंग रेडनेस कहते हैं. इसके कुछ कारणों में सन बर्न हो जाना या गुस्से, स्ट्रेस या अधिक इमोशनल स्टेट में आ जाने के कारण भी आपका चेहरा लाल हो जाता है. यह मेनोपॉज और रोसेशिया जैसी मेडिकल स्थिति के कारण भी ऐसा होना संभव है.

 रैडिशनेस के उपचार

शहद : शहद को स्किन की समस्याओं जैसे घाव भरने या एंटी इन्फ्लेमेटरी गुणों के लिए प्रयोग किया जाता है. यह आपकी स्किन के रैश को ठीक करने में भी सहायक होता है. इसके लिए आपको एक कपड़े को शहद में डूबो कर उसे अपने चेहरे के उन भागों में लगाना होता है जहां से चेहरा लाल हो रखा होता है.

एलो वेरा : एलो वेरा में भी घाव भरने वाले और एंटी इन्फ्लेमेटरी गुण होते हैं. इसलिए यह आपकी स्किन से लाल धब्बों को मिटाने में लाभदायक होता है और उन्हें जल्दी ठीक करने में भी सहायक होता है. इसे प्रयोग करने के लिए आपको अपनी स्किन पर लाल धब्बों पर एलो वेरा जेल अप्लाई करना होता है और सुबह उठ कर उसे पानी से धो लें.

चैमोमाइल टी : यह टी भी इसके अंदर एंटी इंफ्लेम्टरी गुण होने के कारण स्किन की समस्याओं को ठीक करने के लिए प्रयोग की जाती है. यह आपकी स्किन से इंफ्लेमेशन दूर करने में सहायक होती है जिससे आपकी स्किन से लाल पन खुद ही ठीक हो जाता है. इसका प्रयोग करने के लिए आपको इसके टी बैग्स को पानी में उबाल कर और ठंडा करके अपने चेहरे पर प्रयोग करना होता है.

खीरे : खीरे में फाइटो केमिकल्स होते हैं जो पिंपल्स को कम करते है. यह चेहरे के लाल पन को भी दूर करता है और आपकी स्किन को अधिक क्लीयर और मॉइश्चराइज दिखाता है. इसको प्रयोग करने के लिए एक खीरे को कस लें और फिर उसे अपने चेहरे पर अप्लाई करें. 15 मिनट के बाद इसे धो लें.

दही : दही के अंदर प्रो बायोटिक्स होते हैं. यह स्किन बैरियर फंक्शन को बेहतर बना सकते हैं और स्किन सेंसिटिविटी को कम करने में सहायक होते है. उससे आपके चेहरे का लालपन खत्म होने में भी मदद मिलती है. इसके लिए आपको दही और नींबू के रस को एक साथ मिला कर अपने चेहरे पर लगाना है और उसे फिर धो लेना है.

ग्रीन टी : ग्रीन टी में एंटी फंगल और एंटी इंफ्लेमेटर गुण होते हैं जो आपकी स्किन से लाल धब्बों को ठीक करने में मदद करते है . सबसे पहले ग्रीन टी बैग्स को पानी में उबाल लें और इसके पानी को निचोड़ कर एक कटोरी में रख लें और फिर उसे फ्रीज में रख दें. थोड़ी देर के बाद उस पानी को अपने चेहरे पर लगा लें और फिर थोड़ी देर के बाद धो लें.

पेट्रोलियम जेली : पेट्रोलियम जेली में एक कंपाउंड होता है जिसमें एंटी माइक्रोबियल गुण होते है. यह इंफेक्शन से लडने में और आपकी स्किन के लाल धब्बों को दूर करने में लाभदायक होती है. इसे प्रयोग करने के लिए रात में. अपने चेहरे पर इसे अप्लाई करें और सुबह उठ कर मुंह धो लें.

अगर आप इन टिप्स का पालन करेंगी तो जरूर ही आपके चेहरे से लाल धब्बे दूर हो जाएंगे.

मिर्गी के दौरे का क्या है उपचार और दोबारा ब्रेन स्ट्रोक होने पर क्या करें

सवाल

मेरी बेटी की उम्र 12 साल है. उसे पिछले 1 साल से मिर्गी के दौरे पड़ रहे हैं. क्या इस का कोई उपचार नहीं है?

जवाब

जब मस्तिष्क में स्थाई रूप से परिवर्तन हो जाता है और मस्तिष्क असामान्य संकेत भेजता है तब मिर्गी के दौरे पड़ते हैं. मिर्गी भी अन्य रोगों की तरह एक रोग ही है और अगर ठीक समय पर उचित उपचार मिल जाए तो मरीज पूरी तरह ठीक हो कर सामान्य जीवन जी सकता है. आप किसी अच्छे डाक्टर को दिखाएं. जरूरी जांचों के बाद उपचार के विभिन्न विकल्पों, दवाइयों, सर्जरी और विभिन्न थेरैपियों के द्वारा आप की बेटी को ठीक करने का प्रयास किया जाएगा.

सवाल

मेरी उम्र 57 साल है. मुझे एक बार ब्रेन स्ट्रोक हो चुका है. क्या दोबारा इस के होने का खतरा है?

जवाब

ब्रेन स्ट्रोक के दोबारा होने की आशंका काफी अधिक होती है इसलिए उपचार के बाद भी आवश्यक सावधानियां बरतना जरूरी है क्योंकि एक बार स्ट्रोक की चपेट में आने पर पुन: स्ट्रोक होने की आशंका पहले सप्ताह में 11त्न और पहले 3 महीनों में 20त्न तक होती है. डाक्टर द्वारा सु?ाई दवाइयां समय पर लें, संतुलित और पोषक भोजन का सेवन करें. शारीरिक सक्रियता बहुत जरूरी है, इसलिए नियमित रूप से टहलें या हलकीफुलकी ऐक्सरसाइज करें.

मायोसाइटिस को समझने में ना करें देरी ,समय रहते इलाज है जरूरी

Myositis: हाल ही में दंगल फ़िल्म कि छोटी बबिता का रोल अदा करने वाली सुहानी भटनागर की मौत का कारण बनी एक ऐसी बीमारी जो 10 लाख लोगो में किसी एक को होती है. इस बीमारी का नाम है डर्मेटोमायोसाइटिस. यह मायोसाइटिस का एक प्रकार है।मायोसाइटिस एक तरह की ऑटो इम्यून डिजीज है.

इस बीमारी में सबसे ज्यादा मांसपेशियां कमज़ोर होने लगती हैं यह रोग त्वचा के साथ साथ शरीर के किसी भी अंग को अपनी चपेट में लें लेता है.इस बीमारी के कारण पीड़ित को उठने – बैठने,चलने में परेशानी होती है अगर समय रहते बीमारी का इलाज ना हो तो मरीज की जान भी जा सकती है.

जाने क्या है मायोसाइटिस

आमतौर पर यह समस्या 40 से 60 साल की उम्र के लोगो को होती है लेकिन कई बार बच्चे भी इसका शिकार हो सकते हैं. यह बीमारी इम्यून सिस्टम पर वार करती है जिस कारण हमारा शरीर बीमारियों से लड़ने में असमर्थ हो जाता है और ऐसे एंटीबाडी डेवलप होने लगते हैं जो मांसपेशियों को कमजोर करते हैं.

मायोसाइटिस के कारण

किसी वायरस द्वारा इन्फेक्शन होना,रूमेटाइड अर्थराइटिस
दवाई का साइड इफ़ेक्ट, लुपस ,स्क्लेरोडर्मा इस बीमारी के मुख्य कारण हैं.

लक्षण

इस बीमारी के आम लक्षण है मांसपेशियों में दर्द रहना कंधे,कूल्हे, गर्दन, के आसपास दर्द होना,सांस फूलना,स्किन पर रेशेज का होना,रोजमरा की क्रिया करने में परेशानी आना, घुटने,पाँव, नाखुनो के आसपास सुजन व दर्द होना. कई बार इसके लक्षण सामन्य लगते है और जब बीमारी घातक हो जाती है तब पता चलता है समय रहते इलाज मिलने से मरीज को ठीक किया जा सकता है.

मायोसाइटिस के प्रकार

डर्मेटोमायोसाइटिस
इंक्लूजन-बॉडी मायोसाइटिस
जूवेनाइल मायोसाइटिस
पोलिमायोसाइटिस
टॉक्सिक मायोसाइटिस
मायोसाइटिस का इलाज
मायोसाइटिस के लिए कोई सटीक इलाज नहीं है, इसलिए उचित इलाज का पता लगाने के लिए डॉक्टर को कई अलग-अलग इलाज प्रक्रियाओं का इस्तेमाल करके देखना पड़ता है।जिसके लिए मांसपेशियों की बायोप्सी इलेक्ट्रोमायोग्राफी,एमआरआई,ब्लड टेस्ट,मायोसाइटिस स्पेसिफिक एंटीबॉडी पैनल टेस्ट व जेनेटिक टेस्ट करके पता लगाया जाता है कि किस तरह का मायोसाइटिस है और और तब इलाज शुरू किया जाता है.

हर वक्त आइना निहारना आदत ही नहीं, हो सकता है बॉडी डिस्मॉर्फिक डिसऑर्डर

अन्नू देखने में बहुत खूबसूरत है. मोटी मोटी ऑंखें, गोरा रंग, सुराही सी गर्दन, पंखुड़ी से होठ, हल्की लम्बी नाक जो उसके चेहरे पर बहुत फबती है. फिर भी जाने क्यों वो कभी भी अपनी नाक को देखकर ख़ुश नहीं होती।उसे हमेशा लगता है कि उसकी नाक उसके चेहरे की रंगत बिगाड़ रही है. जिस कारण वह डॉक्टर के यहां जाने से भी नही चुकती कभी प्लास्टिक सर्जरी की बातें करती है, तो कभी ना-ना प्रकार के ब्यूटी प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करती है. इसके बावजूद उसके मन में यह धारणा बन चुकी हैं उसकी नाक उसकी खूबसूरती को खराब कर रही हैं जिस कारण वह कभी कभी तो पार्टीज़ में जाना,लोगो से मिलना भी छोड़ देती है. उसकी इस सोच के पीछे का कारण कोई मामूली नहीं बल्कि यह एक तरह की बीमारी है जिसमे कोई व्यक्ति हर वक़्त सिर्फ अपने शरीर के केवल अंग दोष के बारे में ही सोचता रहता है इस विकार को बॉडी डिस्मॉर्फिक डिसऑर्डर कहते हैं.

हर किसी व्यक्ति की बॉडी पर्सनालिटी भिन्न होती है कोई साँवला,तो कोई गोरा, किसी के होंठ मोटे,तो किसी के पतले इसी तरह हर एक बॉडी पार्ट अलग होते हैं जो की प्रकृति की देन है लेकिन इस बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति इन सब बातों को नहीं मानता बल्कि उसे सनक हो जाती है की वो दिखने में बहुत खराब हैं और वह अपने अंगों में दोष निकलता रहता है. अगर यह बीमारी अधिक बढ़ जाए तो वह खुद को नुकसान पहुंचाने से भी नहीं चुकता.

इसलिए जरूरी हैं की आपको इसके लक्षण व बचाव के बारे में जानकारी हो जिससे आप अपने या किसी परिचित की स्थिति को समय रहते जान सकें व किसी अनहोनी को होने से बचा सकें.

डिस्मॉर्फिक डिसऑर्डर के लक्षण -इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति अपने अंगों में दोष निकालना या अपने शरीर की बनावट की तुलना किसी अन्य से करना उसकी आदत में शुमार हो जाता है अपने शरीर की बनावट को लेकर खुद से घृणा करना व नकरात्मक विचार आना उसके जीवन का हिस्सा बन जाते हैं जिस कारण वह लोगो से कटने लगता है व खुद को सब से अलग कर लेता हैं कोशिश करता हैं कि वह लोगो की नज़रो से खुद को बचा सकें।बीमारी जब अधिक बढ़ने लगती है तो आत्महत्या तक के विचार मरीज को आने लगते हैं.

बॉडी डिस्मॉर्फिक डिसऑर्डर से बचाव -यदि किसी को इस तरह के लक्षण दिखाई दें तो तुंरत डॉक्टर से संपर्क करें और अपनी स्वास्थ्य स्थिति पर ध्यान दें ताकि मेंटल हेल्थ पर और अधिक असर न पड़े।अगर बीमारी बढ़ गई हैं तो डॉ.आपको दवाई भी दे सकता हैं जिससे जूनूनी विचार और व्यवहार को बदला जा सके. इससे बचने के लिए जरूरी हैं कि परिवार का साथ मिले व खुद से प्यार करें नकरात्मक विचारों से दूरी बनाएं. दुनिया में कोई दो व्यक्ति एक जैसे नहीं होते इसलिए किसी से भी अपनी तुलना ना करें, अपने आपको व्यस्त रखें, अपने दोस्तों के साथ वक़्त बिताए, खुद को समझें व अपने गुणों पर ध्यान दें,अच्छी डाइट लें.

आपकी गलत ब्रा बना सकती है मास्टालजिया दर्द का शिकार

आज के इस दौर में छोटी से छोटी समस्या भी बड़ी लगने लगती है क्योंकि कम उम्र में ही कई लोग गंभीर बीमारी से पीड़ित हो जाते हैं. जिसके चलते हम यह बिलकुल नहीं चाहते कि हम खुद की या किसी अपने की सेहत के साथ लापरवाही बरतें. महिलाओं में ऐसी ही एक समस्या है ब्रेस्ट में दर्द होना. जिस के कारण कभी कभी वह खुद को काफी तनाव में महसूस करती हैं जिस का कारण ब्रैस्ट कैंसर का भय होता है . लेकिन ब्रेस्ट में दर्द होना एक ऐसी समस्या है जिसका सामना अधिकतर महिलों को अपने जीवन काल में कभी न कभी करना पड़ता है . इस दर्द को मास्टालजिया का दर्द कहा जाता है. आज इस लेख में हम आपको मास्टालजिया के कारण ,बचाव और उपचार के बारे में बताने जा रहे हैं.

मास्टालजिया का दर्द कई कारणों से हो सकता है। जैसे की हार्मोन्स में बदलाव , इन्फेक्शन , मासिक चक्र में असामानता, गलत ब्रा का चयन , स्तनपान और सूजन आदि ब्रेस्ट में दर्द का कारण बन सकते हैं।
कारण

संक्रमण हो सकती है वजह

ब्रैस्ट फीड कराने वाली महिलाओं में यह एक आम बात हैं आमतौर पर शुरुवाती तीन महीने में उन्हें अधिक परेशानी का सामना करना पड़ता हैं . यह संक्रमण ब्रैस्ट के मेमोरी ग्लैंड में होता हैं इस स्थति में ब्रेस्ट की टिशूज में इंफ्लेमेशन, दर्द, लालिमा ,सूजन,जलन , बुखार, हो सकता है.

मासिक धर्म के दौरान

मासिक धर्म के समय हार्मोन लेवल में उतार-चढ़ाव होता है जिस कारण पीरियड्स की डेट नजदीक आने पर यह दर्द होने लगता है. व पीरियड्स खत्म होने पर दर्द एक दो दिन में ही ठीक हो जाता है . कभी कभी इस दर्द की अवधि 5 से 10 दिन भी हो सकती है. साथ ही मेनोपोज़ के बाद स्तनों में आए बदलाव के कारण भी इस परेशानी का सामना करना पड़ सकता है.

दवाओं का साइड इफ़ेक्ट

यदि आप नियमित किसी बीमारी के कारण लम्बे समय तक दवाइयों का सेवन करती हैं तो भी यह समस्या हो सकती है.

ब्रा के चयन में गलती

आपकी ब्रा सिर्फ आपके स्तनो को ही शेप में नहीं रखती बल्कि यह आपको ऐसे दर्द से भी निजात दिलाती है लेकिन यदि आप गलत साइज की ब्रा पहनती हैं तो इससे ब्लड सर्कुलेशन सही तरीके से नहीं होता. गलत फैब्रिक व अधिक टाइट ब्रा पहनने से भी ब्रेस्ट की मांसपेशियों में दर्द हो सकता है.

ट्रीटमेंट

यदि आपको लम्बे समय से दर्द की परेशानी बनी हुई हैं तो डॉक्टर आपको मैमोग्राम ,अल्ट्रा साउंड ,बॉयोप्सी ,मैग्नैटिक रेजोनेंस इमेजिन {MRI} कराने की सलाह देते हैं .

बचाव के लिए अपनाएं टिप्स

गलत साइज व टाइट ब्रा को करें ना ,रात में सोते समय मुलायम फैब्रिक की ढ़ीली ब्रा पहने या सोने से पहले ब्रा हटा दें.
कैफीन वाले ड्रिंक्स लेने से बचें.
यदि आपका बच्चा ब्रेस्ट फीडर हैं तो आप दिन में एक -दो बार अपने स्तनो की सिकाई करें.
दर्द में पैन किलर दवाई (पेरासिटामोल ,ब्रूफेन )का सेवन कर सकती हैं लेकिन लम्बे समय तक ऐसी दवाओं के सेवन से बचें व समय रहते डॉक्टर की सलाह अवश्य लें.
डॉक्टर की सलाह पर आप प्रिमरोज तेल से मालिश व विटामिन ई की कैप्सूल ले सकती हैं .

कुछ दिनों से मुझे पेशाब करने में परेशानी हो रही है, मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल-

मेरी उम्र 50 वर्ष है. मुझे 10 वर्षों से शुगर की शिकायत है, जिस की दवा चल रही है. मगर कुछ दिनों से मुझे पेशाब करने में परेशानी हो रही है. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब-

आप कुछ अच्छी आदतों को अपना कर तथा कुछ सावधानी बरत कर अपनी शुगर को नियंत्रित कर सकते हैं तथा सामान्य जीवन जी सकते हैं. आप को स्मोकिंग से बचना चाहिए. अपना ब्लड प्रैशर तथा कोलैस्ट्रौल लैवल नियंत्रित रखें, रोजाना व्यायाम करें, खाने में चीनी की तथा कार्बोहाइड्रेट की मात्रा में कमी लाएं, पानी ज्यादा पीएं, ज्यादा फाइबर वाली चीजें खाएं और विटामिन डी का अनुकूल स्तर बनाए रखें.

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हम सभी जानते हैं कि खाने-पीने के रेडीमेड सामानों और सॉफ्ट ड्रिंक्स के जरिए हम सबसे ज्यादा शुगर (चीनी) कंज्यूम करते हैं. ये शूगर ही हमारे शरीर को कई तरह से सबसे ज्यादा नुकसान भी पहुंचाती है.

इस एक्स्ट्रा शुगर से आपकी सेहत को कोई भी फायदा नहीं होता बल्कि जर्नल ऑफ अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन के मुताबिक ये शरीर में घटिया किस्म के कॉलेस्ट्रोल को बढ़ावा देती है जिससे आगे चलकर दिल से संबंधित बीमारियों का खतरा पहले से कई गुना ज्यादा बढ़ जाता है.

ज्यादा शुगर वाली खाने-पीने की चीजें इस्तेमाल करने से डायबिटीज का खतरा भी बढ़ जाता है. एडल्ट्स को करीब 30 ग्राम शुगर एक दिन में कंज्यूम करने की सलाह दी जाती है जबकि 4 से 6 साल के बच्चों के लिए ये मात्रा 19 ग्राम और 7 से 10 साल के बच्चों के लिए 34 ग्राम है.

अगर आप मीठा खाने के बहुत ज्यादा शौकीन हैं और डायबिटीज जैसे इसके नुकसानों से भी बचे रहना चाहते हैं तो न्यूट्रीशन एक्सपर्ट डॉक्टर मर्लिन ग्लेनविल बता रहीं हैं ऐसे 6 तरीके जिससे आप अपनी आदत बदले बिना रह सकते हैं डायबिटीज से दूर.

1. बाहर संभल कर खाएं: सबसे ज्यादा शुगर बाहर से खाने-पीने वाली चीजों के जरिये कंज्यूम की जाती हैं. ऐसे में थोड़े सी सतर्कता से आप मीठा खाकर भी बीमारियों से बचे रह सकते हैं. आपको करना बस इतना है कि स्पैगिटी सॉस और मियोनीज की जगह ऑर्गनिक योगार्ट इस्तेमाल करें और ऐसी दुकानों पर खाएं जो अपने सॉस खुद तैयार करते हैं. घर में बने सॉस में अपेक्षाकृत कम शुगर होती है.

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वैकल्पिक स्त्रीरोग को महिलाएं ना करें नजरअंदाज, हो सकता है नुकसान

मदरहुड हॉस्पिटल, नोयडा की सीनियर कंसल्टेंट और गायनेकोलॉजिस्ट डॉ मंजू गुप्ता द्वारा इनपुट

कोविड-19 के शुरुआती फेज में हॉस्पिटल के बेड्स बहुत तेजी से भर रहे थे और इसलिए पूरी दुनिया के डॉक्टरों ने कुछ चिकित्सा प्रक्रियाओं को स्थगित करने का फैसला किया था. कई सर्जरी जो एमरजेंसी की स्थिति में नहीं होती, उन्हें वैकल्पिक सर्जरी के रूप में भी जाना जाता है. इस तरह की सर्जरी को कोरोना के चरम काल में स्थगित कर दिया गया ताकि ज्यादा से ज्यादा संख्या में कोविड मरीजों को हॉस्पिटल में भर्ती किया जा सके. हालाँकि 2020 की आखिरी तिमाही में कुछ क्षेत्रों में वैकल्पिक सर्जरी फिर से शुरू हुई, लेकिन यह देखा गया है कि कई मरीजों को अभी भी हॉस्पिटल जाकर अपनी वैकल्पिक सर्जरी करवाने में शंका हो रही है. कई मेडिकल एसोसिएशन और हॉस्पिटल्स ने कोविड-19 के दौर में वैकल्पिक सर्जरी के लिए अपने खुद के सुरक्षा दिशानिर्देश जारी किए हैं.

वैकल्पिक सर्जरी के कॉमन टाइप (प्रकार)

विभिन्न स्वास्थ्य संगठनों के अनुसार, “वैकल्पिक सर्जरी” को किसी भी प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जाता है, वैकल्पिक सर्जरी से मतलब ऐसी सर्जरी से होता है जिससे व्यक्ति के स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभाव न हो या जिसे तीन महीने तक स्थगित करने पर मरीज के स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े. इन नॉन-एमरजेंसी प्रक्रियाओं में निम्नलिखित सर्जरी शामिल हैं:

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● कॉस्मेटिक सर्जरी

● डर्मटोलॉजी प्रक्रिया

● आई सर्जरी (नेत्र शल्य चिकित्सा) जैसे मोतियाबिंद सर्जरी

● पित्ताशय की थैली (गैललब्लड्डेर) की सर्जरी

● स्त्री रोग संबंधी सर्जरी, जैसे कि हिस्टेरेक्टॉमी

● आर्थोपेडिक सर्जरी

● प्रोस्टेट सर्जरी

गैर-जरूरी रिप्रोडक्टिव हेल्थ केयर (प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल) में देरी होने से पड़ने वाला प्रभाव

प्रेग्नेंसी केयर (गर्भावस्था देखभाल)

प्रसवपूर्व अल्ट्रासाउंड और भ्रूण के सर्वेक्षण सहित प्रसव पूर्व देखभाल में देरी नहीं होनी चाहिए क्योंकि इससे गंभीर खतरा हो सकता है. यदि डाक्टर भ्रूण के विकास में कोई अनियमित वृद्धि देखता है, तो उसे सर्जरी की जरुरत हो सकती है. इससे विशिष्ट जन्म दोष वाले बच्चों के दीर्घकालिक परिणाम को बेहतर बनाने में मदद करता है.

स्त्री रोग संबंधी कैंसर

ओवेरियन ट्यूमर से सम्बंधित सर्जरी को लेकर डाक्टरों ने सुझाव दिया है कि इस तरह की सर्जरी में देरी नहीं करनी चाहिए. ओवेरियन कैंसर या सर्वाइकल कैंसर जोकि स्टेज 1B में होती है तो इसके सर्जरी में देरी नहीं होनी चाहिए. जिस मरीज में जानलेवा आंत में रुकावट या हैमरेज होता है उन्हें भी तुरंत मेडिकल हस्तक्षेप की जरुरत होती है.

आपातकालीन गर्भनिरोधक प्रक्रिया

कोविड-19 द्वारा लगे लॉकडाउन में कई जगहों पर इमरजेंसी गर्भनिरोधक गोलियों की उपलब्धता में कमी देखी गई थी, इसमें देरी नहीं की जानी चाहिए क्योंकि इमरजेंसी गर्भनिरोधक गोली की प्रभावकारिता तब होती है जितनी जल्दी आप इसे खाते हैं जितना जल्दी आप इसे खायेंगे उतना ही ज्यादा इसका प्रभाव होगा. जितनी जल्दी हो सके अपने असुरक्षित यौन संबंध के बाद इन गर्भनिरोधक गोलियों को खाएं. ये गोलियां केवल तभी प्रभावी होती है जब इसका उपयोग गर्भावस्था होने से पहले किया जाता है. इमरजेंसी गर्भनिरोधक गोलियों में पहले से ही स्थापित हो चुकी गर्भावस्था को समाप्त करने में कोई क्षमता नहीं होती है.

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सौम्य स्त्री रोग संबंधी कंडीशन

फाइब्रॉएड, एंडोमेट्रियोसिस, पेल्विक दर्द और सौम्य ओवेरियन की सर्जरी में कई महीनों तक देरी हो सकती है. फाइब्रॉएड के ट्रीटमेंट में देरी होने से एनीमिया, बांझपन और किडनी, आंत्र, मूत्राशय या संचार प्रणालियों में परेशानी आ सकती है जोकि लॉन्गटर्म कॉम्प्लीकेशन्स हो सकती है.

बच्चों की आंख में लालिमा का कारण

पिंक आंखें आमतौर पर आंख की अन्य परेशानियों का एक लक्षण  है जो सौम्य से लेकर गंभीर तक हो सकती है.  ये तब होता है जब आंख के सफ़ेद भाग की रक्त नलिकाएं फैल जाती हैं और उनमें सूजन आ जाती है. यह समस्या एक या दोनों आंखों में हो सकती है.

लक्षण-आंखों में चिड़चिड़ाहट, जलन, खुजली, सूखापन, दर्द, निर्वहन, बहुत पानी आना,रोशनी के प्रति संवेदनशीलता. आदि पिंक आयी के लक्षण हैं. कुछ मामलों में बच्चे की आंखों में लालिमा के अतिरिक्त कोई लक्षण दिखाई नहीं देता.

कारण-कभी कभी बच्चे की आंखों में लालिमा का कोई विशेष कारण नहीं होता,और यह अपने आप ठीक भी हो जाती है,लेकिन कुछ मामलों में यदि ध्यान न दिया जाय तो यह समस्या और भी गम्भीर हो जाती है. बच्चे की आँखों की ललिमा के कुछ कारण इस प्रकार हैं-

1-एलर्जी-

यदि आपका शिशु आंखों में जलन होने के कारकों,जैसे सिगरेट का धुआं,पराग के कण,पालतू पशुओं की रूसी या धूल कणों के सम्पर्क में आता है,तो संवेदनशीलता के कारण उसे एलर्जी होने की संभावना हो सकती है. जिससे,आमतौर पर आंखों में सूजन या इसके लाल होने के लक्षण दिखाई देने लगते  हैं.

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2-बच्चों के दांत निकलना-

चूंकि आंखों और दांतों की नसें आपस में जुड़ी होती हैं,इसलिए दांत निकलने पर भी आँखों में सूजन हो सकती है.

3-मच्छर का काटना-

इस तरह की lलाली में आंखों में दर्द नहीं होता,बस खुजली होती है,एक नवजात शिशु में यह समस्या लगभग 10 दिनों तक रहती है.  यह लाली, आमतौर पर गुलाबी या लाल रंग की होती है.

4-चोट लगना-

आंख के पास सिर की चोट से,आंखों में जलन,सूजन,लाली या इससे अधिक भी कुछ हो सकता है.  छोटे बच्चे इधर उधर घूमते रहते हैं,इसलिए उन्हें चोट लगने का ख़तरा ज़्यादा होता है. क़ई बार सूजन  के बावजूद भी उन्हें दर्द नहीं होता.

5-स्टाय और पलकों में गिल्टी(कलेजियन)-

स्टाय एक लाल गांठ होती है जो पलक के किनारे या उसके नीचे हो सकती है और सूजन का कारण बन सकती है. ये समस्या अपने आप ठीक हो जाती है.

दूसरी ओर जब तैलीय ग्रंथि सूज जाती है और उससे खुले भाग में तेल जमा हो जाता है तो पलकों में गिल्टी हो जाती है जिसे कलेजियन भी कहते है. यह आम तौर पर स्टाय से बड़ा होता है

6-ब्लेफराइटिस-

पलकों में उपस्थित एक तेलीय ग्रंथि होती है जिसमें सूजन भी आ सकती इससे ब्लेफराइटिस हो सकता है,जो रात के समय अधिक प्रभावशाली होता है. इसके लक्षण हैं पलकों पर पपड़ी बनना,आंखों में सूजन,संवेदनशीलता और दर्द के कारण शिशू को खुजली या जलन महसूस हो सकती है और वो इसे छूने और रगड़ने का प्रयास करता है

7-नवजात शिशु का आंख आना-

कभी कभी शिशु का जन्म के समय संक्रमण का अधिक ख़तरा होता है,जिससे उसके आंखे आ जाती हैं. ऐसी स्थिति का सबसे आम कारण गोनोरिया,क्लेमेडिया और हरपीज है. इस समस्या के लक्षण हैं सूजी हुई लाल आंखें और अत्यधिक स्त्राव.

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उपचार-

ठंडा सेक-यदि लाली और सूजन ज़्यादा प्रभावी न हो तो,बच्चे की आंखों पर ठंडा सेक करें.

मां का दूध-मां के दूध की दो बूंद (इसमें एंटी बैक्टीरियल गुण होते हैं)बच्चे की आँखों में टपकाएं.

आंखें साफ़ करें-गुनगुने पानी में कपड़ा भिगोकर बच्चे की आँखें साफ़ कर सकते हैं.

रोज़ाना बाल धोएं-अपने बच्चे के बालों को रोज़ाना धोने का नियम बनाएं, क्योंकि इसमें परागकोश की धूल या पालतू जानवरों की रूसी हो सकती है,जो आपके शिशु की आंखों में जलन पैदा कर सकती है.

बिस्तर साफ़ करें-सप्ताह में एक बार उसका बिस्तर साफ़ करें

डाक्टर से सम्पर्क कब करें- यदि सूजन और लाली उपरोक्त घरेलू उपचारों से कम न हो और आंखें पूर्णत:प्रभावित हो चुकी हों,दर्द,संवेदनशीलता और अत्यधिक लाली और बुखार भी आ जाय तो, डाक्टर से तुरंत सम्पर्क करें.  अन्यथा परिस्थिति गंभीर हो सकती है.

यदि आपको उन विशिष्ट कारकों के बारे में पता है जो आंखों की सूजन को बढ़ाते हैं, तो समस्या को संभालना कम चुनौतिपूर्ण होता है.

Dr Ak Jain: क्या करें जब पुरुषों में घटने लगे बच्चा पैदा करने की ताकत?

इनफर्टिलिटी एक बहुत गंभीर समस्‍या है. जिसके कारण बहुत से कपल्‍स की गोद सूनी ही रह जाती है. मौजूदा लाइफस्टाइल की वजह से इनफर्टिलिटी की समस्‍या आम बात हो गई है. इनफर्टिलिटी का मुख्य लक्षण प्रेग्नेंट न हो पाना है. अगर आप भी इस समस्या से जूझ रहे हैं तो संपर्क करिए लखनऊ के डॉक्टर ए. के. जैन से जो पिछले 40 सालों से इसका इलाज कर रहे हैं.

आइए अब जानते हैं इनफर्टिलिटी के बारे में…

नौजवानों में तेजी से बढ़ते तनाव और डिप्रैशन के साथसाथ प्रदूषण और गलत लाइफस्टाइल के चलते एनीमिया की समस्या भी मर्दों में नामर्दी की वजह बनती है. इनफर्टिलिटी से जुड़े सब से बुरे हालात तब पैदा होते हैं जब मर्द के वीर्य में शुक्राणु नहीं बन पाते हैं. इस को एजूस्पर्मिया कहा जाता है. तकरीबन एक फीसदी मर्द आबादी भारत में इसी समस्या से पीडि़त है.

हमारे शरीर को रोज थोड़ी मात्रा में कसरत की जरूरत होती है, भले ही वह किसी भी रूप में क्यों न हो. इस से हमारे शारीरिक विकास को बढ़ावा मिलता है.

हालांकि कसरत के कई अच्छे पहलू भी हैं. मगर इस के कुछ बुरे पहलुओं पर भी ध्यान देने की जरूरत है जिन की तरफ कम ही लोगों का ध्यान जाता है. मसलन, औरतों का ज्यादा कसरत करना बांझपन की वजह भी बन सकता है. वैसे, कसरत करने के कुछ फायदे इस तरह से हैं:

  1. दिल बने मजबूत : हमारे दिल की हालत सीधेतौर पर इस बात से जुड़ी होती है कि हम शारीरिक रूप से कितना काम करते हैं. जो लोग रोजाना शारीरिक रूप से ज्यादा ऐक्टिव नहीं रहते हैं, दिल से जुड़ी सब से ज्यादा बीमारियां भी उन्हीं लोगों को होती हैं खासतौर से उन लोगों के मुकाबले जो रोजाना कसरत करते हैं.

2. अच्छी नींद आना : यह साबित हो चुका है कि जो लोग रोजाना कसरत करते हैं, उन्हें रात को नींद भी अच्छी आती है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि कसरत करने की वजह से हमारे शरीर की सरकेडियन रिदम मजबूत होती है जो दिन में आप को ऐक्टिव बनाए रखने में मदद करती है और जिस की वजह से रात में आप को अच्छी नींद आती है.

3. शारीरिक ताकत में बढ़ोतरी : हम में से कई लोगों के मन में कसरत को ले कर कई तरह की गलतफहमियां होती हैं, जैसे कसरत हमारे शरीर की सारी ताकत को सोख लेती है और फिर आप पूरे दिन कुछ नहीं कर पाते हैं. मगर असल में होता इस का बिलकुल उलटा है. इस की वजह से आप दिनभर ऐक्टिव रहते हैं, क्योंकि कसरत करने के दौरान हमारे शरीर से कुछ खास तरह के हार्मोंस रिलीज होते हैं, जो हमें दिनभर ऐक्टिव बनाए रखने में मदद करते हैं.

4. आत्मविश्वास को मिले बढ़ावा : नियमित रूप से कसरत कर के अपने शरीर को उस परफैक्ट शेप में ला सकते हैं जो आप हमेशा से चाहते हैं. इस से आप के आत्मविश्वास में भी बढ़ोतरी होती है.

रोजाना कसरत करने के कई सारे फायदे हैं इसलिए फिजिकल ऐक्टिविटी को नजरअंदाज करने का तो मतलब ही नहीं बनता, लेकिन बहुत ज्यादा कसरत करने का हमारे शरीर पर बुरा असर भी पड़ सकता है खासतौर से आप की फर्टिलिटी कम होती है, फिर चाहे वह कोई औरत हो या मर्द.

ऐसा कहा जाता है कि बहुत ज्यादा अच्छाई भी बुरी साबित हो सकती है. अकसर औरतों में एक खास तरह के हालात पैदा हो जाते हैं जिन्हें एमेनोरिया कहते हैं. ऐसी हालत तब पैदा होती है, जब एक सामान्य औरत को लगातार 3 महीने से ज्यादा वक्त तक सही तरीके से माहवारी नहीं हो पाती है.

कई औरतों में ऐसी हालत इस वजह से पैदा होती है क्योंकि वे शरीर को नियमित रूप से ताकत देने के लिए जरूरी कैलोरी देने वाली चीजों का सेवन किए बिना ही जिम में नियमित रूप से किसी खास तरह की कसरत के 3 से 4 सैशन करती हैं.

शरीर में कैलोरी की कमी का सीधा असर न केवल फर्टिलिटी पर पड़ता है, बल्कि औरतों की सेक्स इच्छा पर भी बुरा असर पड़ता है. साथ ही मोटापा भी इस में एक अहम रोल निभाता है क्योंकि ज्यादातर मोटी औरतें वजन घटाने के लिए कई बार काफी मुश्किल कसरतें भी करती हैं. इस वजह से भी उन की फर्टिलिटी पर बुरा असर पड़ता है.

इनफर्टिलिटी की समस्या से जूझ रहे जोड़े शारीरिक और मानसिक तनाव की हालत में पहुंच जाते हैं. अकसर देखा गया है कि ऐसे मामलों में या तो शुक्राणु की मात्रा कम होती है या स्पर्म की ऐक्टिविटी बहुत कम रहती है. लिहाजा ऐसे शुक्राणु औरत के अंडाणु को गर्भाधान करने में नाकाम रहते हैं.

वैसे अब इनफर्टिलिटी से नजात पाने के लिए कई उपयोगी इलाज मुहैया हैं. ओलिगोस्पर्मिया में स्पर्म की तादाद बहुत कम पाई जाती है और एजूस्पर्मिया में तो वीर्य के नमूने में स्पर्म होता ही नहीं है. एजूस्पर्मिया में मर्द के स्खलित वीर्य से स्पर्म नहीं निकलता है जिसे जीरो स्पर्म काउंट कहा जाता है. इस का पता वीर्य की जांच के बाद ही लग पाता है.

कुछ मामलों में जांच के दौरान तो स्पर्म नजर आता है लेकिन कुछ रुकावट होने के चलते वीर्य के जरीए यह स्खलित नहीं हो पाता है. स्पर्म न पनपने की एक और वजह है वैरिकोसिल. इस का इलाज सर्जरी से ही मुमकिन है.

कुछ समय पहले तक पिता बनने के लिए या तो दाता के स्पर्म का इस्तेमाल करना पड़ता था या किसी बच्चे को गोद लेना पड़ता था, लेकिन अब चिकित्सा विज्ञान में स्टेम सैल्स टैक्नोलौजी की तरक्की ने लैबोरेटरी में स्पर्म बनाना मुमकिन कर दिया है.

लैबोरेटरी में  मरीज के स्टेम सैल्स का इस्तेमाल करते हुए स्पर्म को बनाया जाता है, फिर इसे विट्रो फर्टिलाइजेशन तरीके से औरत पार्टनर के अंडाशय में डाल कर अंडाणु में फर्टिलाइज किया जाता है. इस तरीके से वह औरत पेट से हो सकती है.

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