किडनी फेल होने की वजह कही मोटापा तो नहीं, जानें यहां 

मोटापा किसी व्यक्ति के  लिए एक अभिशाप होता है, जिसे चाहकर भी कम करना कठिन होता है, जिनका बॉडी मॉस इंडेक्स (BMI) दिए गए मानक से अधिक हो, वह व्यक्ति हमेशा कई बिमारियों के दायरे में होता है, जिसमें मधुमेह, स्ट्रोक, हार्ट, किडनी आदि है. आजकल महिला, पुरुष और बच्चे सभी को जंक फ़ूड पसंद होता है, ऐसे में मोटापा स्वाभाविक है. कोविड के समय में तो मोटापा घर बैठने और किसी प्रकार की बाहरी एक्टिविटी न होने की वजह से और भी अधिक देखा जा रहा है.

हाल में हुए एक सर्वेक्षण में मोटापे के तकरीबन 10 से 15 प्रतिशत केस में किडनी खराब होने की समस्या देखी गई. इस बारें में दिल्ली के अपोलो स्पेक्ट्रा हॉस्पिटल के बेरियाट्रिक और लैप्रोस्कोपिक सर्जन डॉ. सुखविंदर सिंह सग्गु कहते है कि बदलती जीवनशैली और खानपान में बदलाव के कारण मोटापा की समस्या बढ रही है. मोटापे की वजह से कई बिमारियों को व्यक्ति आमंत्रण देता है, इसलिए बढते वजन पर नियंत्रण रखना जरूरी है, क्योंकि मोटापा केवल डायबिटीज और हाइपर टेंशन का कारण ही नहीं होता, बल्कि किडनी को भी नुकसान पहुंचाता है. इससे किडनी में फोकल सेगमेंटल ग्लोमेरूलोस्क्लेरोसिस (एफएसजीएस) बढ जाता है, जिससे नेफ्रोटिक सिंड्रोम रोग होता है.

विशेषज्ञों के अनुसार, मोटापा आज के दौर में आम समस्या है. शरीर का वजन बढने से किडनी पर दबाव पडता है. किडनी शरीर में टॉक्सिंस को फिल्टर करने का काम करती है. वजन बढने पर किडनी के टोक्सिंस को फिल्टर करने में काफी मेहनत करनी पडती है, जो सीधे तौर पर उसे काफी नुकसान पहुंचाती है. मोटापा केवल किडनी पर असर नही करता, बल्कि किडनी संबंधी अन्य बिमारी का भी खतरा बढाता है.

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लक्षण

डायबिटीज और ब्लड प्रेशर होने की स्थिति में क्रॉनिक किडनी डिसीज की आशंका रहती है, जिसमें किडनी फेल हो सकती है. किडनी ख़राब होने के लक्षण निम्न है

  • पेशाब ज्यादा या कम होने के साथ बार-बार आना,
  • पेशाब करते समय ब्लड आना या दर्द व जलन होना,
  • रंग बदलने के साथ गाढ़ा होना और झाग बनना,
  • किडनी खराब होने पर शरीर से अतिरिक्त पानी और नमक नहीं निकल पाता है, इससे हाथ-पैर और चेहरे पर सूजन का आ जाना,
  • किडनी से निकलने वाले एथर प्रोटीन से रेड ब्लड सेल्स को ऑक्सिजन मिलता है, ऐसा न होने पर थकान महसूस करना आदि है.

डॉ. सुखविंदर का आगे कहना है कि मोटापा ‘क्रोनिक किडनी डिजीज’(CKD) का मुख्य कारण होता है, क्योंकि मोटापा सीधा ‘मेटाबोलिक सिंड्रोम’ को बढ़ाता है, जिससे किडनी की कार्यप्रणाली में वर्कलोड बढ़ने के कारण किडनी डैमेज हो जाती है. मोटापा और क्रोनिक किडनी डिजीज’ के मरीजों की संख्या देखते हुए यह जरूरी हो गया है कि लोगों को इसके बारे में सभी जरूरी जानकारी दी जाय, जिससे वे इन समस्याओं से खुद को बचा सकें. इसके अलावा मोटापे की वजह से होनेवाली ‘क्रोनिक किडनी डिसीज’ से बचने के लिए शरीर के वजन पर नियंत्रण रखना जरूरी है. वजन को नियंत्रण में रखकर किडनी को फेल होने से बचाया जा सकता है. वजन कम करने के कुछ टिप्स निम्न है,

करे पालन हेल्दी रूटीन 

  • नियमित व्यायाम करना,
  • ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रण में रखना,
  • ब्लडप्रेशर को सामान्य स्तर पर बनाए रखना, 
  • हेल्दी फ़ूड खाना और वजन को नियंत्रण में रखना, 
  • तरल प्रदार्थ का पर्याप्त सेवन करना और पर्याप्त पानी पीना, 
  • खाने में अधिक प्रोटीन का सेवन न करना, ताकि किडनी का काम न बढे, 
  • नमक कम खाना और खाने में अलग से नमक न डालना, 
  • स्वस्थ शरीर के लिए अच्छी नींद लेना,
  • धूम्रपान से परहेज करना, 
  • ओवर-द-काउंटर दवाओं से परहेज करना 
  • 60 साल से अधिक उम्र होने पर किडनी फंक्शन की जाँच कराना.

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जाँच की प्रक्रिया और इलाज़ 

ये सही है कि किडनी के एक बार ख़राब हो जाने पर उसे बचाना मुश्किल होता है, इसलिए समय रहते इसकी जाँच करा लेना सही होता है. किडनी में संक्रमण होने पर इसे दवा के द्वारा ठीक किया जा सकता है, लेकिन किडनी के फेल हो जाने की स्थिति में डायलिसिस या ट्रांसप्लांट करना पड़ता है. डॉ. सुखविंदर कहते है कि क्रोनिक किडनी डिजीज की जांच कराने की पद्यति इस प्रकार है,  

  1. यूरिन की जांच करने से किडनी की बिमारी का पता चल जाता है,
  2. किडनी फंक्शन टेस्ट के लिए बायोप्सी भी की जाती है,
  3. समय रहते बिमारी का पता चलने पर, किडनी की बिमारी का इलाज दवाओं से संभव हो सकता है,
  4. किडनी फेल हुए मरीजों के लिए किडनी ट्रांसप्लांट या डायलिसिस एक सुरक्षित उपाय है.
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