समाज के घिनौने चेहरे को दिखाने की कोशिश की गयी है -त्रिधा चौधरी

बांगला और तेलगू फिल्मों में काम करने वाली अभिनेत्री त्रिधा चौधरी धारावाहिक ‘दहलीज’ से चर्चा में आई. फिल्मों के अलावा उसने कई वेब सीरीज और विज्ञापनों में भी काम किया है. कोलकाता की त्रिधा ने 4 साल की उम्र से ओडिसी डांस सीखना शुरू कर दिया था और कई स्टेज परफोर्मेंस भी दिया है. उसके इस काम में साथ दिया उसकी माता-पिता ने, जो हर समय उनके साथ रहे.

स्वभाव से स्पष्टभाषी और हंसमुख त्रिधा की वेब सीरीज ‘आश्रम’ रिलीज हो चुकी है, जिसमें उसने एक सेक्स वर्कर की भूमिका निभाई है, जो अपने अतीत को भूलकर नये सिरे से अपना जीवन शुरू करना चाहती है. उनसे उनकी जर्नी के बारें में बात हुई, पेश है अंश.

सवाल-आश्रम में आपकी भूमिका क्या है, कितना चुनौतीपूर्ण था ?

मैंने अभी तक अधिकतर मैच्योर भूमिका निभाई है. जब मुझे ये भूमिका मिली तो मैं डरी हुयी थी, क्योंकि सेक्स वर्कर की भूमिका निभाना आसान नहीं होता. इन महिलाओं को लोग अच्छी नज़र से नहीं देखते. ऐसी कई महिलाएं समाज में है, जिनके साथ ऐसा होता है. ये एक स्ट्रोंग चरित्र है. महिलाओं की भावनाओं को लोग नहीं समझते. इस फिल्म को शूट करने के बाद मैं बहुत भावुक हो गयी थी और ये सोचकर रोई थी कि अगर मेरे साथ ऐसा कुछ होता, तो मैं कैसे रह पाती. ये चरित्र मेरे लिए बहुत चुनौतीपूर्ण था. इसमें मैंने समाज का जो घिनौना चेहरा है, उसे दिखाने की कोशिश की है. छोटी-छोटी बच्चियां तक बलात्कार का शिकार होती है और ऐसे में लड़की मुंह दिखने के लायक नहीं होती, जबकि उसकी गलती कुछ नहीं होती. मुझे दुःख इस बात से है कि इस फिल्म के हर दृश्य में सन्देश को न देखकर, लोग सेक्स और अनएथिकल बातों को खोजते और उसका मजाक बनाते है. ये हमारे देश के यूथ के लिए शर्मनाक है, जो कहानी की गंभीरता को न देखकर उसकी मिम्स बनाकर कलाकार के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल करते है.

सवाल-इस चरित्र को करने में आपको कितनी मेहनत करनी पड़ी?

एक महिला होममेकर या सेक्स वर्कर कुछ भी हो सकती है. इसमें औरत की ममता और प्यार को दिखाने की कोशिश की गई है, जिसमें हालात जो भी हुए हो, उसे भूलकर वह नया जीवन बिताना चाहती है. उसके भविष्य को सवारने वाला एक पुरुष भी उसके जीवन में आता है. जो उसे उसी सम्मान के साथ अपनाता है और ये वाकई सबके लिए सन्देश है और मुझे इस भाव को लाने के लिए मेहनत करनी पड़ी.

सवाल-रियल लाइफ में महिला को सही सम्मान न मिलने की वजह क्या मानती है?

मेरे जीवन में भी कई ऐसे पल आये जब मुझे खुद के बारें में सोचने की जरुरत महसूस हुई, क्योंकि मैं एक कलाकार हूं और मुझे एक सपोर्टिव पार्टनर की जरुरत है, जो मिलना मुश्किल है. समाज और परिवार में हमेशा सिखाया जाता है कि पति के एक चांटे को सह लो, उसे कुछ न कहो और ये सालों से चलता आ रहा है, लेकिन अब महिलाएं आगे आकर कह रही है. मैं पुरुष को दोषी नहीं कहती, क्योंकि वह वैसा ही है, उसे आप बदल नहीं सकते. आपको खुद आगे आकर खड़े होने की जरुरत है. महिलाओं के लिए आत्महत्या या कही चले जाना, ये समाधान नहीं. किसी के गलत को सहन करना भी गलत है. ये लड़के या लड़की दोनों के लिए हो सकता है. जब भी कोई समस्या जीवन में आये उसे सबके सामने खुलकर कहे, छिपाए या गलत कदम न उठाएं.

सवाल-आउटसाइडर होने की वजह से आपको कितना संघर्ष करना पड़ा?

मेरे लिए संघर्ष कुछ लोगों को अवॉयड करना था और ये सच बात है, जिसे लोग छिपाते है. मेर साथ कुछ लोग हमेशा मेरे दिमाग के अंदर घुसकर निरुत्साहित करने की कोशिश करते रहे, लेकिन मेरी परवरिश और मेरी माँ का हमेशा साथ में रहने की वजह से मैं हमेशा मजबूत रही. कही भी बुलाने पर मैं जाती नहीं थी. लोग मुझे कई प्रकार के सलाह देते थे, मसलन बातें अधिक न करना, हमेशा मीठी मुस्कान बिखेरना आदि, जो मुझे बहुत अजीब लगती थी. वही मेरा संघर्ष रहा है. मैं बहुत स्पष्टभाषी हूं और  जो मुझे पसंद नहीं उसे मैं सामने कहने से डरती नहीं. कई बार इसके लिए मुझे कुछ समस्या आई, पर सबको अपने हक का पूरा समान मिलता है. पहले जिसे मैंने मना किया था और उसने मुझे भला-बुरा कहा था. आज वही इंसान मेरे काम की तारीफ करता है और मैंने उसके साथ कई प्रोजेक्ट किये भी है.

सवाल-कोलकाता से मुंबई कैसे आना हुआ?किसका सहयोग था और कैसे?

मैंने माइक्रोबायोलोजी में पढाई की है. पढाई पूरी करते-करते मुझे धारावाहिक ‘दहलीज’ मिली, लेकिन मैंने उसे करने से मना कर दिया था. फिर वापस मुझे उसका ऑफर मिला और मैंने किया और उससे मुझे बहुत प्रसंसा मिली. इससे मुझे इस क्षेत्र में काम करने की प्रेरणा मिली. मैंने अपनी उम्र से अधिक की भूमिका निभाई, पर उसमें जो ठहराव लाने की जरुरत पड़ी, उसमें कई लोगों ने मुझे सहयोग दिया. बंगाल के निर्देशक श्रीजीत मुख़र्जी ने बहुत सहायता की. उनके साथ की गयी पहली बांगला फिल्म हिट रही इससे मेरी पहचान बनी और आगे काम मिलता गया.

माता-पिता का सहयोग हमेशा रहा. उनका कहना था कि आप जो भी काम करों. सबसे शेयर करों और खुश रहो.

सवाल-बांगला फिल्म इंडस्ट्री में पहले जैसे हिट कलाकारों की कमी की वजह क्या मानती है?

रीजनल फिल्मों की सोच अलग होती है. उनकी वित्तीय शक्ति और मार्केटिंग कम होती है. अभी के दौर में मैं भी नंबर को ही देखती हूं. कहानी उस क्षेत्र के हिसाब से ही बनायीं जानी चाहिए, ताकि लोग उससे जुड़ सके. फिल्में बनती है और चलती भी है, परअब अधिक काम होने की आवश्यकता है. अभी मैं बंगाल के दिग्गज अभिनेता सौमित्र चटर्जी की बायोपिक में शर्मीला ठाकुर की भूमिका कर रही हूं. मैं अपनी काम से सबको प्रभावित करना चाहती हूं. यही मेरा उद्देश्य होता है. इसके अलावा निर्माता, निर्देशक संजय लीला भंसाली और आयान मुखेर्जी के साथ फिल्में करने की इच्छा है.

सवाल-अन्तरंग दृश्यों को शूट करने में कितनी सहज होती है?

बहुत मुश्किल होता है, इसके लिए को एक्टर और निर्देशक के साथ बात करनी पड़ती है, क्योंकि मुझे इसका बहुत ख़राब अनुभव है, जहाँ उस निर्देशक ने उसका फायदा उठाने की कोशिश की थी. क्लियर चर्चा दृश्य को लेकर की जाती है, क्योंकि को एक्टर्स की भी पर्सनल लाइफ और परिवार होता है. इस वेब सीरीज में बॉबी मेरे उपर नहीं साइड में थे, मेरे ऊपर एक पिलो रखा गया और मैं जींस और स्किन कलर के टॉप में थी. मेरा चेहरा और मेरे हाथ ही केवल खुले थे, जो दिखाया गया है वह कैमरे का एंगल और तकनीक होता है, यहां तक की ‘किस’के दृश्य भी ‘चिन’पर थे. मैने ऐसे इसे शूट किया है और मैं इसे लोगों को बताना चाहती हूं, ताकि वे शूटिंग के बारे में जान सकें.

सवाल-क्या कोई मेसेज देना चाहती है?

पेंडेमिक कोरोना की वजह से नहीं, पेंड़ेमिक लोगों की सोच को लेकर आजकल है. आज केवल एक एक्टर ने ही आत्महत्या नहीं की है, कई और लगातार कर रहे है, क्योंकि वे मानसिक रूप से परेशान है. हर किसी को एक दूसरे की सहयोग करने की जरुरत है ताकि सभी लोग अच्छे रहे. समस्या सबके जीवन में होती है, किसी एक व्यक्ति को नैतिक रूप से तोडना सही नहीं है. सबको जीने का अधिकार है.

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