Inspiring Story : शिकवा तो नहीं

राइटर- रिमझिम

Inspiring Story : कोलकाता की हर बात निराली है, जहां की सुबह रविंद्रा संगीत है तो शाम नजरुल संगीत, सुर संस्कृति में लिपटा अपनेआप में अनोखा शहर. देश के हरेक कोने से आए हुए व्यक्ति को ठौर मिल जाता है. ऐसी जगह में ही सुखद ठिकाना मिल गया था सिक्किम बौर्डर पर तैनात सूबेदार शेखर श्रीकांतरंगनाथन की पत्नी विभा और बेटी नैन्सी को. सुबह के करीब 9 बजे थे. धर्मतल्ला के ठीक सामने वाली गली में जो बड़ी बिल्डिंग है उसी के 8वें माले पर रहने वाली सूबेदार शेखर श्रीकांतरंगनाथन की पत्नी विभा ने अपनी 4 वर्षीय बेटी नैन्सी को पास के ही मोंटेसरी स्कूल भेजने के लिए स्कूल वैन में बैठा कर प्यार से गालों को चूमा, लव यू टू बोल कर विदा किया. वापस आ कर चाय बनाई और टीवी चला कर बैठ गई. यही उस की रोजमर्रा की जिंदगी थी. शुरूशुरू में श्रीकांत के अपने से दूर होने का गम परेशान करता था लेकिन अब उस ने स्थिति से सम?ाता कर लिया था. बाएं हाथ में चाय का कप और दाहिने हाथ में रिमोट ले कर चैनल बदलती जा रही थी. तभी पड़ोसिन लिपिका का फोन आया, ‘‘हैलो विभा.’’

‘‘हां. हैलो.’’

‘‘न्यूज देखी?’’

‘‘नहीं. पर क्यों?’’

‘‘देख न जल्दी,’’ लिपिका ने रुंधे गले से कहा.

‘‘क्या न्यूज… कौन सा न्यूज अच्छा रुक देखती हूं,’’ कह कर उस ने फोन रख दिया और न्यूज चैनल तलाशने लगी.

न्यूज में फ्लैश हो रहा था, ‘‘कल देर रात सिक्किम बौर्डर पर कुछ अज्ञात घुसपैठियों को रोकने में सूबेदार शेखर श्रीकांतरंगनाथन गंभीर रूप से जख्मी हो गए हैं, लेकिन संतोषजनक बात यह है कि उन की जांबाजी ने स्वतंत्रता दिवस पर छाए हुए खतरे को टाल दिया. देश ऐसे जांबाज को सलाम करता है.’’

यह खबर सुनते ही विभा सुन्न पड़ गई.

तभी सिक्किम से कर्नल गिरीश शर्मा का फोन आया तो सचेतन हुई. उन्होंने श्रीकांत के विषय में विस्तृत जानकारी दी. उन की बात पूरी होते ही विभा ने आत्मविश्वास से भर कर कहा, ‘‘उन्हें कुछ नहीं होगा, मैं अभी आ रही हूं.’’

‘‘नहीं, आप मत आइए. हम श्रीकांत को ले कर कोलकाता आर्मी हौस्पिटल आ रहे हैं,’’ कहतेकहते कर्नल गिरीश ने ठंडी सांस ली.

दरअसल, वहां के डाक्टरों ने श्रीकांत को अनिश्चितकाल के लिए कोमा पेशैंट मान लिया था क्योंकि शरीर से सारा खून निकल जाने की वजह से केवल दिमाग काम कर रहा था बाकी सारा शरीर शिथिल हो चुका था. अब इस बात को विभा को फोन पर बताना मुश्किल था इसलिए वहां से जवानों की एक टुकड़ी श्रीकांत के साथ कोलकाता भेजी जा रही थी.

‘‘अच्छा ठीक है. वैसे आप लोग कब तक पहुंच रहे हैं?’’

‘‘कल शाम…कल शाम तक हम पहुंच जाएंगे,’’ कर्नल ने माथे पर बल डालते हुए कहा क्योंकि श्रीकांत की हालत विभा को न बताने लायक थी न छिपाने लायक.

जिस पति के साथ हंसतेमुसकराते सप्ताह भर पहले ही फोन पर बात हुई थी आज उस के बारे में यह सुन रही थी.

कल शाम… उफ इतना लंबा इंतजार, उड़ सकती तो उड़ कर चली जाती लेकिन अभी क्या करे.

नैन्सी स्कूल से आ चुकी थी. उसे किसी तरह खिलापिला कर सुला दिया. खुद खाने बैठी तो निवाला गले से नीचे न उतरा. आंखों से आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा. बारबार यही सोचती कि कोई कह दे कि सब ठीक है कुछ नहीं हुआ श्रीकांत को. यही सब सोचतेसोचते न जाने कब नींद आ गई.

सपने में श्रीकांत सामने खड़ा था. आंख खुल गई. फिर से सारी बातें जेहन में घूमने लगीं. क्या कहता था, कैसे हंसता था सबकुछ. रात भर यादों का चलचित्र दिमाग में चलता रहा.

शेखर श्रीकांतरंगनाथन दक्षिण भारतीय युवक था. वहीं विभा बंगाली परिवार की एकलौती कन्या थी. नागपुर के इंजीनियरिंग कालेज के वैलकम जश्न में श्रीकांत ने विभा को ही अपना डांसिंग पार्टनर क्यों चुना यह तो श्रीकांत ही जाने, जबकि उसे घर से सख्त हिदायत थी कि किसी अन्य जाति, धर्म के लोगों से न मिले, न बात करे और मांसमछली खाने वालों से तो कोसों दूर रहे. ऐसे में बड़ीबड़ी हिरणी जैसी आंखों वाली सोख, चंचल, हर बात में आंखें मटकाने वाली विभा उसे कब अच्छी लगने लगी पता ही नहीं चला.

श्रीकांत देखने में तो काफी आकर्षक था बस रंग के मामले में मार खा गया था और ठीक उस के विपरीत विभा मां दुर्गा का स्वरूप लगती थी. दोनों की जोड़ी का अंतर दिख जाता था. ऐसे में शेखर तिरुपतिबालाजी को अपने पूर्वजों के रिश्तेदार जैसी अजीबोगरीब बात कह कर सभी को बहला देता था.

जब श्रीकांत देश, उस की सुरक्षा और उस के लिए अपनी जान देने की बात करता था तो विभा उसे अपलक देखती रहती थी. उस के सारे साथी भी बिना कुछ बोले बस उसे ही सुनते रहते थे. अंतर इतना था कि सुनने के बाद, ‘‘कहना आसान है करना मुश्किल,’’ कह कर चले जाते थे लेकिन विभा उस पर भरोसा कर के कहती, ‘‘वह और को न हो मु?ो तुम पर पूरा विश्वास है जो कह रहे हो वह कर के दिखाओगे.

यही वह क्षण था जब श्रीकांत ने विभा के हाथ को अपने हाथ में लेते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारे साथ अग्नि के 7 फेरे लेना चाहता हूं, हमेशा के लिए तुम्हारा होना चाहता हूं और तुम विभा?’’ आंखों में आंखें डाल कर पूछा.

बदले में विभा ने उसे अपनी जूठी चौकलेट खिला दी और वहां से शरमा कर चली गई.

‘‘जवाब तो देती जाओ,’’ जाती हुई विभा को जोर से आवाज लगा कर श्रीकांत ने पूछा.

‘‘बुद्धू’’ बोल कर विभा तेजी से अपने होस्टल की ओर चली गई.

श्रीकांत परेशान हो गया, विभा ने ‘हां’ क्यों नहीं बोला.

शाम को होस्टल के फोन से श्रीकांत की मां बात से हुई. बहुत सारी नसीहतों के साथ किसी लड़की का जूठा न खाने की हिदायत मिली, ‘‘वैसे क्यों मां?’’ विभा द्वारा चाकलेट खिलाने वाली बात को याद करते हुए पूछा.

‘‘ऐसा कर के लड़कियां लड़के को अपना पति स्वीकार लेती हैं,’’ मां ने गुड जानकारी दी.

श्रीकांत का चेहरा खिल उठा.

‘‘थैंक्यू, थैंक्यू मां. मैं आप से बाद में बात करता हूं.’’

श्रीकांत विभा के होस्टल पहुंचा. उस के सामने आते ही गले से लगा लिया, ‘‘आई लव यू.’’

विभा ने धीरे से, ‘‘मीटू,’’ कह दिया.

कालेज खत्म होते ही दोनों ने शादी कर ली. श्रीकांत विभा को ले कर तिरुपति पहुंचा जहां उस के मातापिता रहते थे. दक्षिण भारतीय शुद्ध शाकाहारी मां ने बंगाली बहू को स्वीकार करने से साफ मना कर दिया. लिहाजा, दोनों कोलकाता आ गए.

समय अपनी गति से चलता रहा. दोनों ने अलगअलग प्राइवेट फर्म में नौकरी भी कर ली पर श्रीकांत का इंडियन आर्मी जौइन करने का जनून जैसे का तैसा था. इसी बीच विभा ने नैन्सी को जन्म दिया. आखिर  कठिन परिश्रम से श्रीकांत ने उस मुकाम को पा लिया जिस की उसे ख्वाहिश थी. वह बेहद खुश था. आर्मी की ट्रेनिंग साधारण नहीं होती. श्रीकांत ने हर चुनौती को पार किया. उस की पहली पोस्टिंग सिक्किम बौर्डर पर हुई थी. सिक्किम पहाड़ों वाला शहर, पहाड़ काट कर ऊपर जाने के लिए रास्ता बना था. वैसे पहाड़ों पर व्यवस्था तो हर चीज की होती है पर अपने हिसाब से. वहां की खूबसूरती ने शुरूशुरू में श्रीकांत को बहलाए रखा लेकिन समय के साथ वह सब बेजान लगने लगा. कभी नैटवर्क मिलता कभी नहीं मिलता. विभा से दिल खोल कर बात करने को तरस गया था. बताने को बहुत कुछ होता पर सुनने वाला कोई नहीं होता. आपस में जब जवानों के बीच बात होती तो सभी का दर्द एक जैसा ही होता था. महीनों बीत गए वहां रहते हुए.

फौज में छुट्टी मिलना ठीक वैसा ही है जैसे रेगिस्तान में पानी ढूंढ़ना या फिर अमावस की रात में चांद को तलासने जैसा होता है. श्रीकांत जिस विभा के बगैर एक पल भी नहीं रह सकता था लगभग 6 महीने हो गए थे उस की सूरत तक नहीं देख पाया था. बेटी नैन्सी से बात करने का मन करता, उस की छोटीछोटी नादानियों पर समझने का मन करता पर अपने कर्र्तव्य पर अडिग रहने वाला श्रीकांत मन मसोसा कर रह जाता. यही वजह थी कि समय मिलते ही श्रीकांत अपने जज्बातों को शब्दों में पिरोने लगा था.

विभा को श्रीकांत की पहली चिट्ठी अक्षरसह याद है. उस ने लिखा था…

‘‘डियर विभू,

‘‘मेरी प्यारी विभा,

‘‘मेरी सब से प्यारी विभा,

‘‘यहां सब ठीक है. विभा, एक बात बताऊं. तुम्हें खुद भी नहीं पता तुम कितनी सुंदर हो. सब से ज्यादा तो तब जब तुम भीगे बालों में टौवेल लपेट कर, माथे पर बिंदी के नीचे लाल चंदन लगा कर आरती की थाली लिए पूरे घर में घूमती हो न तो मु?ो अपना घर मंदिर जैसा लगता है. उसी बीच मेरी किसी हरकत पर तुम्हारे मुंह के मंत्रोचारण का तेज हो जाना, अपनी बड़ीबड़ी आंखों से मु?ो धमकाना बहुत याद आता है. विभा मैं यहां जी तो रहा हूं पर मेरी सांसें, मेरी धड़कन तुम हो विभा.

‘‘सिर्फ तुम्हारा श्रीकांत.’’

श्रीकांत की दूसरी चिट्ठी को खोल कर पढ़ने लगी. उस में लिखा था…

‘‘नाजुक सी विभू,

‘‘तुम्हारी परेशानियों का एहसास है मु?ो. अकेली नैन्सी को पालना उस की जिद, उस के नखरों को बरदाश्त करना बहुत मुश्किल होता होगा. मेरा भी मन करता है उस के टिफिन बौक्स को पैक करूं, उस के रूटीन को सजा कर तुम्हारे कामों में थोड़ा हाथ बटाऊं, उसे उस की गलती पर डांटूं पर तुम तो जानती हो न मेरी मजबूरियां.

‘‘तुम्हारा सिर्फ तुम्हारा श्रीकांत.’’

पिछली वाली चिट्ठी तो श्रीकांत ने व्हाट्सऐप पर ही लिखी थी.

‘‘प्रिय संगिनी विभा,

‘‘आज तुम्हारा जन्मदिन है. बहुतबहुत शुभकामनाएं. मैं ने कोशिश की थी तुम से बात करने की पर पहाड़ी इलाका है नैटवर्क थोड़ा कम ही रहता है. तुम अपना जन्मदिन अच्छे से मनाना. तुम्हें मेरी भी उम्र लग जाए. बस इतनी सी ख्वाहिश है तुम हंसती रहो, मुसकराती रहो. तुम्हारा सिर्फ तुम्हारा श्रीकांत.’’

विभा ने गुस्से से कोई रिप्लाई नहीं दिया तो अगली चिट्ठी जल्दी आ गई…

‘‘विभा,

‘‘मेरी मां थोड़ी धार्मिक हैं पर दिल की बेहद अच्छी हैं. तुम्हें अपना लेंगी पर थोड़ा वक्त लगेगा. पापा कोशिश में लगे हुए हैं. सुबहशाम गरमगरम कौफी खुद से बना कर पिलाते हैं और हर गरम कौफी का नाम ‘विभा स्पैशल’ होता है जिस पर मां कभी मुसकरा देती हैं तो कभी नकली गुस्सा करती हैं. पापा अपनी कोशिश में कभी नाकामयाब नहीं हुए, इस बार भी नहीं होंगे देख लेना.

‘‘तुम्हारा श्रीकांत.’’

सुबह कामवाली ने कौलिंग बैल बजाई तो विभा वर्तमान में लौट आई. शाम को सेना की गाड़ी उसे लेने आई थी. रास्तेभर किसी से कोई बात नहीं हुई. गाड़ी हौस्पिटल के मुख्यद्वार के सामने रुकी.

श्रीकांत को आईसीयू में रखा गया था. विभा अंदर गई, श्रीकांत का पूरा शरीर पट्टियों में लिपटा था. केवल बंद आंखें दिख रही थीं.

‘‘श्रीकांत तुम्हें कुछ नहीं होगा मेरा अटल विश्वास है,’’ विभा ने श्रीकांत के पास बैठते हुए कहा.

‘‘जी बिलकुल, इन्हें कुछ नहीं होगा.’’

विभा ने मुड़ कर देखा. लंबी कदकाठी का नौजवान, चेहरे पर मुसकान लिए खड़ा था.

‘‘जी मैं डा. हर्षवर्धन,’’ नौजवान ने हाथ मिलाने के लिए आगे बढ़ाया.

प्रतिउत्तर में विभा ने हाथ जोड़ लिए.

‘‘प्लीज, आप रोना बंद कीजिए. मैं हूं न. मु?ा पर भरोसा कीजिए.’’

‘‘कब तक ठीक हो जाएंगे?’’ विभा ने आंसू पोंछते हुए पूछा.

‘‘आप मेरे कैबिन में आइए. समझता हूं.’’

‘‘जी, बताइए?’’

‘‘विभाजी, आप केवल श्रीकांतजी की पत्नी नहीं नैन्सी की मां भी हैं. पहले आप अपना खयाल रखिए.’’

‘‘उन्हें हुआ क्या है? वे कब तक ठीक होंगे?’’ बेचैन विभा की जबान पर एक ही रट लगी थी. बोलतेबोलते विभा बेहोश हो गई.

हर्षवर्धन की मजबूत बाजुओं ने कस कर थामा न होता तो विभा वहीं गिर जाती.

विभा रातभर बेहोश रही.

हर्षवर्धन ने उस का और नैन्सी का पूरा खयाल रखा. विभा को जब होश आया तो नैन्सी सामने बैठी चौकलेट खा रही थी. वह काफी खुश थी. हर्षवर्धन से काफी घुलमिल गई थी. नैन्सी आईसीयू से जब बाहर निकल कर आई. तो देखा सामने सेना के 2 जवान खड़े थे. उन से वह पूछ बैठी, ‘‘अंकल, मेरे पापा कितने बहादुर है?’’

‘‘बेटा आप के पापा बहुत बहादुर हैं,’’ जवान ने नैन्सी को गोदी में उठाते हुए जवाब दिया.

‘‘अंकल उस रात क्या हुआ था?’’ नैन्सी ने अपने स्वभाव के मुताबिक दूसरा प्रश्न पूछा. नैन्सी के साथ विभा ने भी उत्सुकता दिखाई.

‘‘उस रात, उस रात हम सभी गस्त पर थे. सीमा पर कुछ नकाबपोश बिना किसी पहचानपत्र के गलत तरीके से घुसपैठ करने की कोशिश कर रहे थे. जैसे ही हमें जानकारी मिली, हम सभी ने अपनीअपनी स्थिति मजबूत कर ली. हमें मुस्तैद देख घुसपैठियों ने दिशा बदल ली, जिस की जानकारी श्रीकांत सर को कुछ ही समय पहले मिली. वह हमें बताना चाहते थे. उन्होंने वायरलैस पर मैसेज भी दिया पर हम देर से पहुंचे. अकेले श्रीकांत सर ने 10 घुसपैठियों को मार डाला था.

आखिरी घुसपैठिए ने पहले तो सफेद रूमाल दिखाया लेकिन पूरे शरीर में उस ने बम छिपा रखा था और जैसे ही श्रीकांत सर उस के पास गए उस ने करीब से वार किया और लगातार वार करता रहा, लेकिन सर ने हार नहीं मानी उसे भी मार गिराया. लेकिन तब तक बहुत सारा खून बह चुका था,’’ जवान ने आंखों देखा हाल सुना दिया.

‘‘मेरे पापा ठीक तो हो जाएंगे न डाक्टर अंकल?’’ नैन्सी ने डाक्टर हर्षवर्धन से पूछा.

‘‘बहादुर बेटी के बहादुर पापा को तो ठीक होना ही पड़ेगा,’’ डा. ने नैन्सी के गालों को थपाते हुए कहा.

देखतेदेखते 2 महीने बीत गए. श्रीकांत के शरीर में कोई सुधार नहीं दिखाई दे रहा था.

इसी बीच हर्षवर्धन को राजस्थान बौर्डर पर मरीजों की देखभाल करने के लिए भेजा गया.

विभा नैन्सी के साथ रोज शाम को हौस्पिटल आती श्रीकांत को देखती और चली जाती. अब श्रीकांत की देखभाल डा. जाकिर कर रहे थे. एक शाम जब विभा श्रीकांत को देख कर नम आंखों को पोंछती निकल रही थी तो डाक्टर जाकिर ने उसे अपने कैबिन में बुलाया.

‘‘विभाजी. आप रोज शाम को आती हैं और नम आंखें लिए चली जाती हैं आखिर क्यों?’’

‘‘और क्या करूं,’’ विभा ने आंचल से चेहरा ढक लिया और फफकफफक कर रोने लगी.

‘‘न न रोइए मत. हमारे होते हुए आप रो रही हैं,’’ कहते हुए डा. जाकिर ने उस का हाथ थाम लिया.

घर पहुंची तो लिपिका का मैसेज मिला, ‘‘नैन्सी को मैं अपने साथ ले आई हूं तुम भी आ जाओ, खाना हम सभी साथ में खाएंगे.’’

लिपिका सचमुच बहुत स्नेहिल थी लेकिन उस के पति की अजीब सी घूरती निगाहें और बात बे बात शरीर को छूने की हर कोशिश उसे लिपिका के घर जाने से रोकती थी.

उस ने एक बार कहा भी था, ‘‘विभाजी. शरीर की अपनी कुछ जरूरतें होती हैं, हमें उन का खयाल रखना चाहिए.’’

‘‘औरतों को सचमुच शारीरिक इच्छाएं परेशान करती हैं लेकिन उन्हें किस से क्या चाहिए इस पर तो औरतों के खुद का मालिकाना हक होना चाहिए. मन का जवाब मन में ही रख वहां से चली आई थी.

कमरे के अंदर दाखिल हुई. सोफे पर बैठने ही वाली थी कि हर्षवर्धन का फोन आया. तपती जमीं पर जैसे बारिश की बूंदें पड़ने जैसा एहसास हुआ. हर्षवर्धन के बारे में कभी कुछ सोचा नहीं था पर आज डा. जाकिर के दुर्व्यवहार ने शायद किसी अपने को तलाशने के लिए झकझोर दिया.

‘‘कैसी हैं आप?’’ हर्षवर्धन पूछना चाहता था. लेकिन श्रीकांत और नैन्सी के बारे में पूछ कर रह गया.

‘‘हां सब ठीक है,’’ अकसर यही जवाब देती रहती थी सभी को.

‘‘आज हौस्पिटल नहीं गई थीं?’’

‘‘गई थी. डाक्टर जाकिर…’’ बोलतेबोलते विभा रुक गई.

हर्षवर्धन ने उस के आगे न कुछ पूछा और न बोला. दरअसल, डा. जाकिर के बारे सभी जानते थे. थोड़ी देर चुप्पी छाई रही. थोड़ी देर बाद हर्ष का मैसेज आया, ‘‘अपना खयाल रखिएगा.’’

थोड़ी देर बाद विभा ने खिन्न मन से लिखा, ‘‘किस के लिए?’’

हर्षवर्धन का मन किया लिख दे मेरे लिए लेकिन दूरियां अब तक नजदीकियों में तबदील नहीं हुई थीं.

‘‘नैन्सी के लिए.’’

‘‘कोशिश कर रही हूं.’’

उत्तर में लव वाली इमोजी आई जिसे तुरंत हटा कर अंगूठे वाली भेजी गई.

विभा के चेहरे पर हलकी सी मुसकान आई. तभी लिपिका नैन्सी के साथ उस के लिए खाना ले कर आ गई.

‘‘कहते हैं इश्कमुस्क, खांसी, खुशी छिपाए नहीं छिपती. बहुत दिनों के बाद इस चेहरे पर मुसकान दिखी, बताने लायक सम?ा तो बता देना,’’ लिपिका ने विभा के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

‘‘नहीं ऐसा कुछ नहीं है,’’ विभा बात टाल गई.

विभा अपने निर्धारित समय से हौस्पिटल जाती रही. कोशिश करती कि डाक्टर जाकिर से सामना न हो लेकिन फिर एक दिन, ‘‘विभाजी, आप तो मुझ से नाराज हो गई हैं.’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है,’’ विभा ने पीछा छुड़ाते हुए कहा.

‘‘मेरे पास आप की समस्या का हल है. डा. जाकिर ने इधरउधर देख फुसफुसाते हुए कहा.

‘‘हल? कैसा हल?’’

‘‘श्रीकांत का शरीर शिथिल हो चुका है… अब वे आप के किसी लायक नहीं रहे… कहें तो दिमाग भी… शांत कर दूं. फिर आप भी आजाद, वैसे भी आप यंग हैं, मासाअल्लाह खूबसूरत हैं… आप के सामने आप की पूरी जिंदगी है, ‘‘डा. जाकिर लगातार बोलता जा रहा था.

‘‘तड़ाक,’’ जोरदार चांटा जड़ दिया विभा ने. इतना जोरदार कि आसपास के डाक्टर, नर्स सामने आ गए.

‘‘श्रीकांत केवल मेरा पति नहीं,मेरा पहला प्यारी है… वह जिस भी हाल में है मुझे स्वीकार है.’’

डाक्टर जाकिर ने भीड़ इकट्ठा होते देख जल्दी से घुटने टेक दिए और माफी मांगने लगा. विभा उसे उस के हाल पर छोड़ कर वहां से निकल आई.

हर्षवर्धन को विभा के घर पहुंचने का समय पता था. अकसर उसी वक्त फोन पर बात या मैसेज कर लेता था. आज न जाने क्यों विभा उस के फोन का इंतजार बेसब्री से कर रही थी. तभी रिंगटोन बजी, ‘‘तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नहीं…’’

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