Valentine Special: तुम्हारे ये घुंघराले बाल

‘‘मैंभी चलूंगी कल से तुम्हारे साथ हौस्पिटल. कोरोना की वजह से मरीजों की तादाद कितनी बढ़ रही है. ऐसे में डाक्टर्स के अलावा नर्सों की भी तो जरूरत है न. जब कर सकती हूं मरीजों की सेवा तो क्यों बैठूं घर पर?’’ फोन पर कुशल के हैलो कहते ही गौरी बोल उठी.

‘‘प्लीज गौरी, बात को समझो. तुम्हारी तबीयत ठीक हुए अभी बहुत समय नहीं बीता है और उस से भी बड़ी बात है कि तुम्हारे पास नर्सिंग की डिग्री भी नहीं है.’’

‘‘तुम्हें तो पता है कि डिग्री क्यों नहीं मिली मुझे. फाइनल इयर के एग्जाम्स ही नहीं दे सकी थी. पढ़ाई तो पूरी कर ही ली थी न मैं ने. अपने साथ कल से मुझे ले जाना ही पड़ेगा तुम्हें.’’

‘‘मुझे पता है गौरी सब. अच्छा बताओ

क्या तुम चाहोगी कि कोई गैरकानूनी काम करें हम? बस तुम रोज एक बार फोन पर बात कर लिया करो मुझे और मैं लगा रहूंगा अपने कर्तव्य पालन में.’’ कुशल के मन की मिठास बातों में घुल रही थी.

‘‘डियर डाक्टर साहब, मैं क्या बेवकूफ लगती हूं तुम्हें? आज ही अपने इंस्टिट्यूट में फोन कर नर्स के रूप में काम करने की परमिशन ले ली है मैं ने. कालेज के मेरे पिछले रिकार्ड्स और समय की मांग को देखते हुए वीसी सर की ओर से स्पैशल परमिशन का मेल मिल गया है. मैं

उस मेल का प्रिंट दिखा कर काम कर सकती हूं. तीन महीने के लिए वैलिड होगी यह परमिशन… कुछ समझे?’’ खिलखिला कर हंसते हुए गौरी

ने बताया.

‘‘अरे वाह… ठीक है कल पिक कर लूंगा घर से तुम्हें.’’ कुशल अभिभूत हो उठा.

अगले दिन जाने की तैयारी कर गौरी सोने चली गई, लेकिन नींद तो आंखों के आसपास थी ही नहीं. कुछ था तो यादों का कारवां, जिस के साथ चलतेचलते गौरी पुराने दिनों में पहुंच गई.

यूपी के एक छोटे से कस्बे में कुशल के साथ खेलतेकूदते बीता था गौरी का बचपन. परिवार के नाम पर वह और मां 2 लोग ही थे. सालभर की गौरी को अपनी पत्नी के पास छोड़ उस के पिता शहर में नौकरी करने क्या गए कि आज तक नहीं लौटे. कुछ लोगों का कहना था

कि उन्होंने दूसरी शादी कर ली. गौरी की मां न

तो पढ़ीलिखी थी और न ही उस के पास इतना पैसा था कि घर की गुजरबसर हो पाए. उस का अपना मायका भी प्रदेश के दूसरे छोर पर पहले ही गरीबी की मार झेल रहा था. ऐसे में वह घर पर ही पापड़ और अचार बनाने का काम करने लगी थी.

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कुशल के पिता आर्थिक रूप से संपन्न थे, निकट के एक गांव में बड़ेबड़े खेत और रहने को हवेलीनुमा घर भी. अपने पिता की व्यस्तता और मां के एक जानलेवा बीमारी का शिकार हो दुनिया छोड़ देने के बाद कुशल का अकेलापन गौरी की संगति में कम हो गया था. उसे गौरी के सिवाय किसी और का साथ अच्छा भी नहीं लगता था. गौरी को जब वह अपनी सहेलियों के साथ खेलते देखता तो दूर से ही आवाज लगा कर बुला लेता था. गौरी आश्चर्यचकित हो पूछती कि उस ने इतनी दूर से, इतनी सारी लड़कियों के बीच कैसे पहचान लिया उसे? कुशल हंसते हुए जवाब देता, ‘‘तुम्हारे घुंघराले बाल इतने सुंदर हैं कि दूर से ही चमकते हैं गौरी… बस पहचान लेता हूं बालों से तुम्हें.’’ सचमुच गौरी के रेशमी से सुनहरे घुंघराले बाल बहुत सुंदर थे.

गौरी और कुशल दोनों ही पढ़ने में अव्वल थे. कुशल को अपनी मां का बीमारी से छिन

जाना जबतब पीड़ा दे जाता था. कस्बे में अभी भी कोई बड़ा अस्पताल नहीं था. उस की इच्छा थी कि वह डाक्टर बन कर अपने लोगों की सेवा करे. गौरी चाहती थी कि वह भविष्य में कुशल का साथ दे पाए, डाक्टर बन कर न सही नर्स बन कर ही.

10वीं कक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होने के बाद कुशल ने कोचिंग सैंटर जाना शुरू कर दिया था. गौरी जानती थी कि किसी अच्छे सरकारी कालेज में जहां फीस कम होगी, नर्सिंग में एडमिशन लेने के लिए उसे भी अपना सारा ध्यान पढ़ने में ही लगाना होगा. खेलनाकूदना कम कर इसलिए ही वह पढ़ाई में जुटी रहती. एक दूसरे के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए खूब परिश्रम कर रहे थे वे रातदिन.

दोनों की इस मेहनत का सुखद परिणाम भी सामने आया. कुशल को मुंबई के एक मैडिकल कालेज ने डाक्टर बनने का अवसर प्रदान कर दिया. गौरी को कुशल के कालेज में प्रवेश तो नहीं मिल सका, लेकिन नर्स बन कर कुशल का साथ निभाने का सपना अवश्य पूरा हो गया. मेरठ के एक इंस्टिट्यूट में नर्सिंग की डिग्री के लिए उस का नाम प्रथम लिस्ट में ही आ गया था. खुशियों को दोनों हाथों से बटोरते हुए वे प्रफुल्लित हुए ही थे कि बिछड़ने का समय भी आ गया.

उस दिन गौरी सामान तैयार कर मेरठ जाने को बस स्टैंड पर खड़ी थी. कुशल घर से निकल ही रहा था कि उस के पिता से मिलने कुछ लोग आ गए. पिता के किसी आवश्यक कार्य में व्यस्त होने के कारण कुशल को उन के साथ बैठना पड़ा. उधर गौरी कुशल की प्रतीक्षा करते हुए व्याकुल हो रही थी. बस से उतर कर नीचे आ वह चारों ओर निगाहें दौड़ाती हुई निराशा से घिरने लगी. कस्बे से मेरठ के लिए बसें लगभग 2 घंटे के अंतराल से चलती थीं.

अगली बस की प्रतीक्षा करती तो मेरठ पहुंचतेपहुंचते देर हो जाती. ‘लगता है जाने से पहले कुशल से मिलना नहीं हो सकेगा… एक तो मां से दूर जाने का दुख, उस पर कुशल से भी बिना मिले जाना होगा क्या मुझे? मां से तो हौस्टल में रहते हुए भी हर महीने मिलने आ सकती हूं. लेकिन कुशल… उस से तो पता नहीं अब कितने दिनों बाद मिलना होगा? वो भी तो अब चला जाएगा बहुत दूर. काश, मैं उस की

बात मान लेती. जिद कर रहा था कि अपने पापा से पैसे ले कर मुझे एक मोबाइल दिला दे, मैं ने क्यों मना कर दिया?’ सोच कर गौरी रुआंसी

हो गई.

कंडक्टर के यात्रियों को पुकारने पर गौरी बस में चढ़ आंखें मूंद कर सीट से सिर टिका कर बैठ गई. सहसा पीछे से किसी ने उस का कंधा थपथपाया. हड़बड़ा कर आंखें खोल गौरी ने पीछे मुड़ कर देखा तो खुशी से चहक उठी, ‘‘अरे, कुशल तुम… कितनी देर कर दी. कब से बाहर खड़ी इंतजार कर रही थी तुम्हारा.’’

‘‘पता है मैं घर से भागता हुआ आ रहा हूं. तुम आज यहां न मिलतीं तो पीछेपीछे तुम्हारे कालेज आ जाता.’’ बिछड़ने से पहले गौरी को हंसते हुए देखना चाहता था कुशल.

‘‘सच्ची? तुम मेरठ तक आ जाते? वैसे… एक बात बताओ मैं तो बस के अंदर आ चुकी थी. तुम्हें कैसे पता लगा कि मैं इस बस में ही हूं? हो सकता था कि मैं अभी घर से निकली ही न होती या पहले ही जा चुकी होती?’’ गौरी ने भौंहें नचाते हुए पूछा.

‘‘हा हा हा… मैं ने कैसे पता लगा लिया कि तुम बस में बैठी हो? तो आज तुम्हें फिर से बता देता हूं कि मुझे दूर से ही दिख जाते हैं तुम्हारे ये रेशमी घुंघराले बाल. पता है, आज भी बस की खिड़की से लहराते हुए दिख रहे थे मुझे. अब कभी मत भूलना कि मैं हमेशा तुम्हें दूर से ही इन बालों से पहचान लेता हूं.’’ कुशल ने बात पूरी की ही थी कि ड्राइवर ने बस स्टार्ट कर दी. भारी मन से एकदूसरे से बिछड़ते हुए दोनों का चेहरा निस्तेज हो गया था. नीचे उतर कर कुशल तब तक हाथ हिलाता रहा जब तक कि बस उस की आंखों से ओझल नहीं हो गई.

बुझे मन से घर की ओर जाते हुए चप्पाचप्पा उसे अपनी दोस्त की याद दिला रहा था.

शाम ढलने लगी थी. मन की तरह ही आसपास अंधेरा घिर आया. भारी कदमों से चलते हुए घर पहुंच वह आज गौरी को याद करते हुए महसूस कर रहा था कि मन एक रेशमी सी डोर में बंधा जैसे उड़ कर गौरी के पास चले जाना चाहता है. यह खिंचाव महज दोस्ती तो नहीं कुछ और है… पर क्या नाम दे इसे? इसी उधेड़बुन में उलझते हुए वह अपने जाने की तैयारी करने लगा.

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कुछ दिनों बाद वह भी अपने पिता और गांव से दूर मुंबई चला गया.

वहां पहुंच कर कुशल को लगा जैसे किसी और ही लोक में आ गया है. ‘क्या गौरी भी मुझे ऐसे ही याद कर रही होगी?’ अकसर वह सोचता. उधर गौरी को भी मेरठ का माहौल कस्बे से बहुत अलग लग रहा था. कदमकदम पर उसे कुशल के साथ की कमी महसूस होती. कुशल का हाथ थामने की ख्वाहिश बढ़ने के साथ ही उसे बेहद करीब से महसूस करने की तमन्ना भी अब सिर उठाने लगी थी.

छुट्टियों में गौरी तो अकसर मां के पास चली आती थी, लेकिन कुशल के लिए यह संभव नहीं हो पाता था. गौरी से उस की मुलाकात बहुत दिन बीत जाने पर तब हो सकी जब वह पहला समैस्टर पूरा होने पर घर आया.

दोनों मिले तो खुशियां जैसे पंख लगा कर उड़ान भरने लगीं. पूरा दिन अपनी नई दुनिया की बातें करतेकरते बीत जाता था. एक दिन कुशल के घर बैठे हुए दोनों एकदूसरे को कालेज, वहां की कैंटीन, हौस्टल, मित्रों आदि के विषय में बता रहे थे कि कुशल अचानक बोल उठा, ‘‘गौरी, दिन तो वहां पढ़तेपढ़ाते बीत जाता है, लेकिन रात होने पर मुझे यहां की बहुत याद आती है और सब से ज्यादा… तुम्हारी…!’’ अंतिम वाक्य कुशल के मुंह से न चाहते हुए भी निकल गया. गौरी का दिल इतनी तेजी से धड़क उठा जैसे निकल कर बाहर ही आ जाएगा.

‘‘मैं तो नई सहेलियों से तुम्हारी ही बातें करती हूं… कभीकभी वे कह देती हैं कि इतना याद कर रही हो तो उस के पास ही चली जाओ और मैं बस हंस देती हूं.’’

लाज से भरी गौरी की नम आंखों ने चुगली कर ही दी कि उस के मन में भी प्रेम

कर दरिया बह रहा है.

‘‘गौरी, मैं ने एअरपोर्ट से आते समय एक मोबाइल खरीदा था. मुंबई वापस लौटने से पहले उस में अपना नंबर सेव कर दूंगा. तुम से बात कर लिया करूंगा तो शायद चैन आ जाए मुझे.’’

मोबाइल से बातें कर एकदूसरे से जुड़े रहने की चाह में एक बार फिर दूर हो गए दोनों.

गौरी ने कुशल से मोबाइल पर कुछ दिन ही बात की थी. सोच रही थी कि अगली बार जब घर जाएगी तो किसी पड़ोसी का नंबर ले आएगी और कभीकभी मां से बात कर लिया करेगी, लेकिन बिछड़े हुए अपनों से जोड़ने वाला मोबाइल भी उस से जल्दी ही बिछड़ गया. एक दिन जब वह सहेलियों के साथ बाजार से लौट रही थी तो मोबाइल हाथ में लिए उस के बातों में मग्न होने का लाभ उठाते हुए एक मोटरसाइकिल सवार ने मोबाइल छीन लिया. बहुत रोई थी गौरी. अगले दिन क्लास खत्म होने के बाद उस ने कुशल को फोन छिन जाने की बात कहते हुए एक मेल कर दिया. जवाब में कुशल से सांत्वना पा कर गौरी की उदासी कुछ कम तो हुई लेकिन कुशल से यह जानकर कि अति व्यस्तता के कारण अब उस का घर आना और भी कम हो जाएगा, गौरी बेचैन हो उठी.

कुशल गौरी को मन में बसाए कठोर परिश्रम कर रहा था. लैब में रात देर तक काम करते हुए कभीकभी वह बहुत थक जाया करता था. गौरी को याद करते हुए एक दिन वह कुछ ज्यादा ही परेशान था. कुछ दिनों पहले गौरी का एक मेल आया था, जिस में उस ने अपनी तबीयत ठीक न होने की बात लिखी थी. उस के बाद कुशल ने 2-3 मेल किए, लेकिन किसी का उत्तर नहीं मिला. ‘शायद कालेज में कंप्यूटर के पर्सनल यूज पर रोक लगा दी गई हो’ सोच कर वह स्वयं को बहला रहा था.

सहसा कमरे की घंटी बजी. चपरासी कमरे में आया और रजिस्टर पर हस्ताक्षर ले एक और्डर की कौपी उसे थमा दी. और्डर पढ़ते ही कुशल की सारी थकान उड़न छू हो गई. संदेश था कि अगले सप्ताह उसे डाक्टरों के एक दल के साथ दिल्ली भेजा जा रहा है. वहां के एक कैंसर हौस्पिटल में मरीजों की स्थिति देख कर विशेष रिपोर्ट तैयार करने का काम सौंपा गया था. ‘दिल्ली से कुछ घंटों में मेरठ और फिर वहां से गौरी के कालेज… दिल्ली पहुंच तो जाऊं फिर उसे जबरदस्त सरप्राइज दूंगा.’ सोच कर कुशल का मन बल्लियों उछलने लगा.

निश्चित दिन उत्साहित हो वह टीम के

साथ निकल पड़ा. रात के 2 बजे सब दिल्ली पहुंचे. कुछ घंटे आराम करने के बाद सभी

सुबह अस्पताल के लिए चल दिए. वहां टीम

के एक डाक्टर से बात करते हुए कुशल ने

वार्ड में प्रवेश किया तो लगा कि उस के पैर जैसे वहीं जम गए हों. हिम्मत जुटा कर वह बैड के पास पहुंचा, ‘‘गौरी… तुम यहां?… कैसे… क्या… कब हुआ ये?’’ कुशल कुछ समझ ही नहीं पा रहा था.

गौरी ने कुशल का हाथ कस कर पकड़ लिया, ‘‘पहले बताओ तुम यहां कैसे?’’

‘‘मुझे तो केस स्टडी के लिए टीम के

साथ भेजा गया है… तुम्हारा मेल ही नहीं मिला था, परेशान तो था मैं. लेकिन तुम्हारे साथ ऐसा हुआ… मुझे पता भी नहीं लगा.’’ कुशल भर्राए गले से बोला.

‘‘मैं एग्जाम्स की तैयारी कर रही थी कि एक दिन अचानक चक्कर आ गया, फिर बहुत थकान लगने लगी. मैं ने सोचा कि पढ़ाई के प्रैशर से हो रहा है ऐसा. पर जब हालत ज्यादा खराब होने लगी तो हमारी मैम को कुछ शंका हुई. अस्पताल में दिखाया गया, टैस्ट हुए और पता लगा कि मुझे ब्लड कैंसर है. यह तो अच्छा है कि अभी पहली स्टेज पर है. टीचर ध्यान न देतीं तो जाने क्या होता?’’

‘‘मां जानती हैं इस

बारे में?’’

नहीं, पता लगेगा तो तड़प उठेंगी. वे तो मुझे देखने भी नहीं आ सकती यहां. बोलतेबोलते गला रुंध गया गौरी का.

‘‘तुम चिंता मत करो. मैं आ गया हूं न अब. कुछ करता हूं.’’ प्यार से उस के गालों को थपथपाता हुआ कुशल बोला.

मरीजों को देखने के बाद जब सभी डाक्टर एकत्र हुए तो दल के सब से

सीनियर डाक्टर से कुशल ने गौरी के विषय में बात की. उन्होंने कुशल को मुंबई के एक विशेष हौस्पिटल में जाने की सलाह दी और बताया कि वहां पर ऐसे बहुत से मरीज ठीक हो चुके हैं. कुशल ने गौरी को अपने साथ मुंबई ले जाने का निश्चय किया. अपने घर फोन कर उस ने पिता को सारी स्थिति से अवगत करा दिया. गौरी की मां को अपने घर बुलवा कर कुशल के पिता ने गौरी और मां की बात करवा दी. गौरी की बीमारी के विषय में उस की मां को कुछ न बता कर कहा गया कि एक ट्रेनिंग के सिलसिले में गौरी को मुंबई जाना पड़ेगा, लेकिन चिंता की बात नहीं है क्योंकि कुशल उस के साथ होगा.

कुछ दिनों बाद दोनों मुंबई के लिए रवाना हो गए. इलाज शुरू हुआ और गौरी पर उस का असर जल्द ही दिखने लगा. अपनी पढ़ाई के साथसाथ कुशल गौरी का भी पूरा ध्यान रखता

था. कीमोथैरेपी के लिए गौरी को जब अंदर ले जाया जाता तो वह बाहर बैठ कर इंतजार करता रहता. गौरी को अस्पताल में टाइम से दवाइयां दी गई या नहीं, गौरी ने ठीक से कुछ खाया या नहीं… इन सब बातों का भी ध्यान रखता था वह. थोड़ेथोड़े दिनों बाद बीमारी का बढ़ना या रुकना देखने के लिए टैस्ट होते तो कुशल पूरी स्थिति अच्छी तरह समझता. लगभग 6-7 महीने बाद गौरी की हालत में काफी सुधार आ गया. अब उसे केवल कुछ दवाइयां ही लेने की आवश्यकता थी.

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गौरी को अस्पताल से छुट्टी मिल गई. कुशल गौरी को साथ ले कर घर छोड़ने आया तो मां को उस ने एकएक घटना विस्तार से बताई. उन्हें किसी प्रकार की चिंता न करने को कह अपने पिता से ले कर उन को कुछ रुपए भी दे दिए. जाने से पहले गौरी को हिदायत दे कर गया कि दवाई के साथसाथ खानेपीने में भी कोई कमी नहीं होनी चाहिए.

इधर गौरी का स्वास्थ्य सुधरने लगा था, उधर अपनी डिग्री पूरी कर कुछ समय बाद कुशल भी लौट आया.

वापस आ कर कुशल ने कस्बे से कुछ दूर स्थित एक हौस्पिटल में कार्य करना शुरू कर दिया. उस का लक्ष्य अपने कस्बे के लोगों की सेवा करना था, इस के लिए पुरानी पुश्तैनी हवेली तुड़वा कर अस्पताल बनवाने पर विचार हो रहा था. गौरी अपनी अधूरी डिग्री जल्द ही पूरी करने को बेताब थी, लेकिन कुशल ने एक डाक्टर के दृष्टिकोण से उसे कुछ दिन और रुक जाने की सलाह दी. गौरी को भी कभीकभी कमजोरी सी महसूस होती, इसलिए मन मार कर प्रतीक्षा करने के सिवाय कोई रास्ता भी नहीं दिखाई देता था. आज जब कोरोना महामारी का तांडव चारों ओर फैला है, ऐसे समय में अपनी सेवाएं देने से गौरी स्वयं को रोक नहीं सकी.

अगले दिन से वह अपने काम में पूरे मन से लग गई. कुशल उस की इस लगन को देख जैसे उन्स पर न्योछावर हुआ जा रहा था. लगातार बढ़ते रोगियों की देखभाल करते हुए उन दोनों को अन्य डाक्टर व नर्सों की तरह ही खानेपीने का समय नहीं मिल पाता था.

एक दिन थकेमांदे जब दोनों कैंटीन में चाय पी रहे थे तो कुशल मुसकराते हुए बोला,

‘‘गौरी तुम ने तो अपनी मनपसंद ड्रैस पहन ही ली यह नर्स की यूनिफौर्म, लेकिन मेरी मनपसंद ड्रैस कब पहनोगी? अब मैं देखना चाहता हूं तुम्हें लाल जोड़े में.’’

गौरी सिर झुका कर निराश स्वर में बोली, ‘‘क्या रखा है कुशल अब इस गौरी में? झड़ गए घुंघराले बाल कीमोथैरेपी से… बहुत अच्छे लगते थे न तुम्हें वो… मेरे घुंघराले बालों को देख कर तुम मुझे दूर से ही पहचान लेते थे. अब कहां रही है गौरी तुम्हारी वो घुंघराले बालों वाली लड़की.’’

कुशल प्यार से उस की ओर देखते हुए बोला, ‘‘गौरी… तुम अपने को नहीं जानती शायद… मुझे गर्व है तुम पर, जो दिनरात लोगों की सेवा में लगी हो… अपनी बीमारी से हुई कमजोरी की हालत में भी तुम ने मेरा साथ देने के लिए काम करने की परमिशन ली. बहुत प्यारा है तुम्हारा यह रूप… इसलिए ही तो घुंघराले बालों से कहीं ज्यादा कीमती है वह हैजमैट सूट जो तुम कोरोना मरीजों की सेवा करते हुए पहनती हो. अब जिस गौरी को मैं जानता हूं उस में इतनी खूबियां हैं कि दूर से क्या उसे आंखें बंद कर के भी पहचान सकता हूं.’’

‘‘आज मेरे प्यार की जीत हुई है, कोरोना को अब हारना ही होगा. फिर हमेशा के लिए कुशल की हो जाएगी घुंघराले बालों वाली लड़की,’’ कुशल के प्यार को पा कर गौर अभिभूत हो उठी.

दोनों प्रेम मन में संजोए इस महामारी से लड़ने के लिए कैंटीन से निकल वार्ड की ओर चल दिए.

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