Short Story: तुरुप का पता

‘‘क्या हुआ? इस तरह उठ कर क्यों चला आया?’’ कनक को अचानक ही उठ कर बाहर की ओर जाते देख कर विमलाजी हैरानपरेशान सी उस के पीछे चली आई थीं.

‘‘मैं आप के हावभाव देख कर डर गया था. मुझे लगा कि आप कहीं रिश्ते के लिए हां न कर दें इसलिए उठ कर चला आया. मैं ने वहां से हटने में ही अपनी भलाई समझी,’’ कनक ने समझाया.

‘‘हां कहने में बुराई ही क्या है? विवाह योग्य आयु है तुम्हारी. कितना समृद्ध परिवार है. हमारी तो उन से कोई बराबरी ही नहीं है. उन की बेटी स्वाति, रूप की रानी न सही पर बुरी भी नहीं है. लंबी, स्वस्थ और आकर्षक है. और क्या चाहिए तुझे?’’ विमला देवी ने अपना मत प्रकट किया था.

‘‘मां, आप की और मेरी सोच में जमीनआसमान का अंतर है. लड़की सिर्फ स्नातक है. चाह कर भी उसे कहीं नौकरी नहीं मिलेगी.’’

‘‘लो, उसे भला नौकरी करने की क्या जरूरत है? रमोलाजी तो कह रही थीं कि स्वाति के मातापिता बेटी को इतना देंगे कि सात पीढि़यों तक किसी को कुछ करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी. ऐसे परिवार की लड़की नौकरी क्यों करेगी?’’

‘‘नौकरी करने के लिए योग्यता चाहिए, मां. मुझे तो इस में कोई बुराई भी नहीं लगती. आजकल सभी लड़कियां नौकरी करती हैं. मुझे अमीर बाप की अमीर बेटी नहीं, अपने जैसी शिक्षित, परिश्रमी और ढंग की नौकरी करने वाली पत्नी चाहिए.’’

ये भी पढ़ें- प्रतिदिन: क्यों मिसेज शर्मा को देखकर चौंक गई प्रीति

‘‘अपना भलाबुरा समझो कनक बेटे. तुम क्या चाहते हो? तुम और तुम्हारी पत्नी नौकरी करेगी और मैं जैसे अभी सुबह 5 बजे उठ कर सारा काम करती हूं. तुम सब भाईबहनों के टिफिन पैक करती हूं, तुम्हारे विवाह के बाद भी मुझे यही सब करना पड़ा तो मेरा तो बेटा पैदा करने का सुख ही जाता रहेगा,’’ विमला ने नाराजगी जताई थी.

‘‘वही तो मैं समझा रहा हूं, मां. मेरे विवाह की ऐसी जल्दी क्या है? मुझे तो लड़की वालों का व्यवहार बड़ा ही संदेहास्पद लग रहा है. जरा सोचो, मां, इतना संपन्न परिवार अपनी बेटी का विवाह मुझ जैसे साधारण बैंक अधिकारी से करने को क्यों तैयार है?’’

‘‘तुम स्वयं को साधारण समझते हो पर बैंक मैनेजर की हस्ती क्या होती है इसे वे भलीभांति जानते हैं.’’

‘‘हमारे परिवार के बारे में भी वे अच्छी तरह से जानते होंगे न मां, मेरे 2 छोटे भाई अभी पढ़ रहे हैं. दोनों छोटी बहनें विवाह योग्य हैं.’’

‘‘कहना क्या चाहते हो तुम? इन सब का भार क्या तुम्हारे कंधों पर है? तुम्हारे पापा इस शहर के जानेमाने चिकित्सक थे. तुम्हारे दादाजी भी यहां के मशहूर दंत चिकित्सक थे. इतनी बड़ी कोठी बना कर गए हैं तुम्हारे पूर्वज. बाजार के बीच में बनी दुकानों से इतना किराया आता है कि तुम कुछ न भी करो तो भी हमारा काम चल जाए.’’

‘‘मां, पापा और दादाजी थे, अब नहीं हैं. हमारी असलियत यही है कि 6 लोगों के इस परिवार का मैं अकेला कमाऊ सदस्य हूं.’’

‘‘बड़ा घमंड है अपने कमाऊ होने पर? इसलिए स्वाति के परिवार के सामने तुम ने मेरा अपमान किया. मुझ से बिना कुछ कहे ही तुम्हारे वहां से चले आने से मुझ पर क्या बीती होगी यह कभी नहीं सोचा तुम ने,’’ विमलाजी फफक उठी थीं.

‘‘मां, मैं आप को दुख नहीं पहुंचाना चाहता था पर जरा सोचो, विवाह के बाद कोई मुझे आप से छीन कर अलग कर दे तो क्या आप को अच्छा लगेगा?’’ कनक ने विमलाजी के आंसू पोंछे थे.

‘‘कनक, यह क्या कह रहा है तू?’’ वे चौंक उठी थीं.

‘‘वही, जो मैं वहां से सुन कर आ रहा हूं. आप सब हम दोनों को अकेला छोड़ कर चले गए थे. हम ने अपने भविष्य पर विस्तार से चर्चा की. मेरी और स्वाति की सोच में इतना अंतर है कि आप सोच भी नहीं सकतीं. वह यदि सातवें आसमान पर है तो मैं रसातल में.’’

‘‘ऐसा क्या कहा उस ने?’’

‘‘पूछ रही थी कि सगाई की अंगूठी कहां से खरीदोगे. हाल ही में किसी फिल्मी हीरोइन का विवाह हुआ है. कह रही थी उस की अंगूठी 3 करोड़ की थी. मैं कितने की बनवाऊंगा.’’

‘‘फिर तुम ने क्या कहा?’’

‘‘मैं ने हंस कर बात टाल दी कि बैंक का अफसर हूं. बैंक का मालिक नहीं और बैंक में डकैती डालने का मेरा कोई इरादा नहीं है.’’

कनक के छोटे भाई तनय व विनय और बहनें विभा और आभा खिलखिला कर हंस पड़े थे.

‘‘तुम लोगों को हंसी आ रही है और मेरा चिंता के कारण बुरा हाल है,’’ विमला ने सिर थाम लिया था.

‘‘छोटीछोटी बातों पर चिंता करना छोड़ दो, मां, सदा खुश रहना सीखो, दुख भरे दिन बीते रे भैया…’’ तनय ने अपने हलकेफुलके अंदाज में कहा.

‘‘चिंता तो मेरे जीवन के साथ जुड़ी है बेटे. आज तेरे पापा होते तो ऐसा महत्त्वपूर्ण निर्णय वे ही लेते पर अब तो मुझे ही सोचसमझ कर सब कार्य करना है.’’

‘‘और क्या कहा स्वाति ने, भैया?’’ विभा ने हंसते हुए बात आगे बढ़ाई थी.

‘‘मैं बताती हूं दीदी, विवाह परिधान किस डिजाइनर से बनवाया जाएगा. गहने कहां से और कितने मूल्य के खरीदे जाएंगे. हनीमून के लिए हम कहां जाएंगे. स्विट्जरलैंड या स्वीडन,’’ आभा ने हासपरिहास को आगे बढ़ाया.

‘‘कनक भैया, सावधान हो जाओ. दीवाला निकलने वाला है तुम्हारा. यहां तो उलटी गंगा बह रही है. पहले लड़की वाले दहेज को ले कर परेशान रहते थे. यहां तो शानशौकत वाले विवाह का सारा भार तुम्हारे कंधों पर आ पड़ा है,’’ विनय भी कब पीछे रहने वाला था.

‘‘चुप रहो तुम सब. यह उपहास का विषय नहीं है. हम यहां गंभीर विषय पर विचारविमर्श कर रहे हैं. विभा और आभा तुम्हारी कल से परीक्षाएं हैं, जाओ उस की तैयारी करो. यहां समय व्यर्थ मत गंवाओ. तनय, विनय, तुम लोग भी जाओ, अपना काम करो और हमें कुछ देर के लिए अकेला छोड़ दो,’’ विमला ने चारों को डपटा.

चारों चुपचाप उठ कर चले गए थे.

‘‘हां, अब बताओ और क्या बातें हुईं तुम दोनों के बीच. पता तो चले कि वह लड़की हमारे साथ हिलमिल पाएगी या नहीं,’’ एकांत पाते ही विमला ने पूछा था.

ये भी पढ़ें- तिलांजलि: क्यों धरा को साथ ले जाने से कतरा रहा था अंबर

‘‘मां, विनय, तनय, विभा और आभा की कल्पना की हर बात पूछी थी उस ने. पर एक और बात भी पूछी थी जो उन चारों तो क्या आप की कल्पना से भी परे है और वह बात बता कर मैं आप को दुखी नहीं करना चाहता.’’

‘‘ऐसा क्या कहा था उस ने? अब बता ही डाल. नहीं तो मुझे चैन नहीं पड़ेगा.’’

‘‘जाने दो न मां, क्या करोगी सुन कर? इस बात को यहीं समाप्त करो. इसे आगे बढ़ाने  का कोई लाभ नहीं है. कहते हैं न कि जिस गांव में जाना नहीं उस का पता क्या पूछना.’’

‘‘प्रश्न बात आगे बढ़ाने का नहीं है. पर सबकुछ पता हो तो निर्णय लेना सरल हो जाता है.’’

‘‘तो सुनो मां. स्वाति पूछ रही थी कि विवाह के बाद हम कहां रहेंगे?’’

‘‘कहां रहेंगे का क्या मतलब है? हमारी इतनी बड़ी कोठी है. कहीं और रहने का प्रश्न ही कहां उठता है,’’ विमलाजी का स्वर अचरज से भरा था.

‘‘वह कह रही थी कि सास, ननद और देवरों के चक्कर में पड़ कर मैं अपना जीवन बरबाद नहीं करना चाहती. उसे तो स्वतंत्रता चाहिए, पूर्ण स्वतंत्रता,’’ कनक ने अंतत: बता ही दिया था.

‘‘हैं, जो लड़की विवाह से पहले ही ऐसी बातें कर रही है वह विवाह के बाद तो जीना दूभर कर देगी. अच्छा किया जो तुम उठ कर चले आए. ऐसे संस्कारों वाली लड़की से तो दूर रहना ही अच्छा है.’’

‘‘मां, इस बात को यहीं समाप्त कर दो. मेरे विवाह की ऐसी जल्दी क्या है आप को. विभा व आभा के भी कुछ प्रस्ताव हैं, उन के बारे में सोचिए न,’’ कनक ने उठने का उपक्रम किया था.

विमलाजी शून्य में ताकती अकेली बैठी रह गई थीं. उन्होंने सुना अवश्य था कि आधुनिक लड़कियां न झिझकती हैं न शरमाती हैं. जो उन्हें मन भाए उसे छीन लेती हैं. नहीं तो पहली ही भेंट में स्वाति की कनक से इस तरह की बातों का क्या अर्थ है? शायद उस के मातापिता उस की इच्छा के खिलाफ उस का विवाह करना चाह रहे हैं और उस ने ऐसे अनचाहे संबंध से पीछा छुड़ाने का यह नायाब तरीका ढूंढ़ निकाला हो.

‘‘क्या हुआ, मां? किस सोच में डूबी हो,’’ विमलाजी को सोच में डूबे देख विभा ने पूछा था.

‘‘कुछ नहीं रे. ऐसे ही थोड़ी थक गई हूं.’’

‘‘आराम कर लो कुछ देर. खाना मैं बना देती हूं,’’ विभा उन का माथा सहलाते हुए बोली थी.

‘‘नहीं बेटी, तुम्हारी कल परीक्षा न होती तो मैं स्वयं तुम से कह देती. मैं कुछ हलकाफुलका बना लेती हूं, तुम जा कर पढ़ाई करो,’’ विमलाजी स्निग्ध स्वर में बोली थीं.

वे धीरे से उठ कर रसोईघर में जा घुसी थीं. उन्होंने अपने थकने की बात विभा से कही थी पर सच तो यह था कि आज की घटना ने उन का दिल दहला दिया था. अपने पति डा. उमेश को असमय ही खो देने के बाद उन्होंने स्वयं को शीघ्र ही संभाल लिया था. अपने बच्चों के भविष्य के लिए वे चट्टान की भांति खड़ी हो गई थीं. वे स्वयं पढ़ीलिखी थीं, चाहतीं तो नौकरी कर लेतीं पर अपने हितैषियों की सलाह मान कर उन्होंने घर पर ही रहने का निर्णय लिया था.

उमेश की बहन डा. नीलिमा ने उन्हें बड़ा सहारा दिया था पर पिछले 5 वर्ष से वे अपने परिवार के साथ लंदन में बस गई थीं. पहले उन्होंने सोचा था कि उन से बात कर के ही मन हलका कर लें. पर शीघ्र ही उस विचार को झटक कर अपने कार्य में व्यस्त हो गईं. यह सोच कर कि इतनी दूर बैठी नीलिमा दीदी भला उन्हें क्या सलाह दे सकेंगी. वैसे भी जब कनक खुद इस विवाह के लिए तैयार नहीं है तो इस बात को आगे बढ़ाने का अर्थ ही क्या है?

दूसरे दिन रमोलाजी का फोन आ गया.

‘‘विमलाजी, कल आप अचानक ही उठ कर चली आईं, पीछे मुड़ कर भी नहीं देखा, राव दंपती तो हक्केबक्के रह गए.’’

‘‘बात यह है रमोलाजी कि यह संबंध हमें जंचा नहीं. इसीलिए हम चले आए.’’

‘‘क्यों नहीं जंचा, विमलाजी, आप आज्ञा दें तो मैं स्वयं आ जाऊं. राव दंपती तो स्वयं आना चाह रहे थे पर मैं ने ही उन्हें मना कर दिया और समझाया कि पहले मैं जा कर वस्तुस्थिति का पता लगाती हूं. आप लोग बाद में आइएगा. आप कहें तो अभी आ जाऊं.’’

‘‘अभी तो मैं जरा व्यस्त हूं. बच्चों के कालेज जाने का समय है. आप 2 घंटे के बाद आ जाइए. तब तक मैं अपना काम समाप्त कर लूंगी,’’ विमलाजी बोली थीं.

‘‘किस का फोन था, मां?’’ फोन पर मां का वार्त्तालाप सुन कर कनक के कान खड़े हो गए थे.

‘‘रमोलाजी थीं. घर आ कर मिलना चाहती हैं.’’

‘‘टाल देना था मां. आप तो रमोलाजी को अच्छी तरह से जानती हैं. जोडि़यां मिलाना उन का धंधा है. वे आप को ऐसी पट्टी पढ़ाएंगी कि आप मना नहीं कर सकेंगी.’’

‘‘वे तो इसे समाज की सेवा कहती हैं. तुम ने सुना नहीं था कि कल कैसे अपनी प्रशंसा के पुल बांध रही थीं. उन के ही शब्दों में उन्होंने जितनी जोडि़यां मिलाई हैं सब बहुत सुखी हैं.’’

‘‘वही तो मैं कह रहा हूं, मां, आप बातों में उन से जीत नहीं सकतीं. आप अभी फोन कर के कोई बहाना बना दीजिए,’’ कनक ने सुझाव दिया था.

‘‘मैं रमोलाजी को व्यर्थ नाराज नहीं करना चाहती. उन की अच्छेअच्छे परिवारों में पैठ है. चुटकी बजाते ही रिश्ते पक्के करवाने में उन का कोई सानी नहीं है. फिर विभा और आभा का विवाह भी करवाना है. तुम कहां टक्कर मारते घूमोेगे?’’

‘‘ठीक है. खूब स्वागतसत्कार कीजिए रमोलाजी का पर सावधान रहिए और दृढ़ता से काम लीजिए. विभा की बात भी उन के कान में डाल दीजिए. अच्छा तो मैं चलता हूं.’’

रमोलाजी आई तो विमलाजी पूरी तरह से चाकचौबंद थीं. रमोलाजी की लच्छेदार बातों से वे भलीभांति परिचित थीं अत: मानसिक रूप से भी तैयार थीं.

‘‘क्या हुआ विमला भाभी? कल आप दोनों बिना कुछ कहेसुने राव साहब के यहां से उठ कर चले आए. जरा सोचिए, उन्हें कितना बुरा लगा होगा. मुझ से तो कुछ कहते ही नहीं बना,’’ रमोलाजी ने आते ही शिकायत की थी.

ये भी पढ़ें- अनोखी जोड़ी: क्या एक-दूसरे के लिए बने थे विशाल और अवंतिका?

‘‘कनक से स्वाति की बातचीत हुई थी. उसे लगा कि उन दोनों के विचारों में बहुत अंतर है. इसलिए वह उठ कर चला आया तो उस के साथ मैं भी चली आई. विवाह तो उसी को करना है.’’

‘‘कैसी बात करती हो, भाभी. इतने अच्छे रिश्ते को क्या आप यों ही ठुकरा दोगी. मैं तो आप के भले के लिए ही कह रही थी. यों समझो कि लक्ष्मी स्वयं चल कर आप के घर आ रही है और आप उसे ठुकरा रही हैं?’’

‘‘पैसा ही सबकुछ नहीं होता, दीदी. और भी बहुत कुछ देखना पड़ता है.’’

‘‘तो बताओ न, बात क्या है? क्यों कनक वहां से उठ कर चला आया?’’

‘‘क्या कहूं, जो कुछ कनक ने बताया वह सुन कर मैं तो अब तक सकते में हूं,’’ विमलजी रोंआसी हो उठी थीं.

‘‘ऐसा क्या कह दिया स्वाति ने? मैं तो उस को बहुत अच्छी तरह से जानती हूं. मेरी बेटी की वह बहुत अच्छी सहेली है. जिजीविषा तो उस में कूटकूट कर भरी है. यह मैं इसलिए नहीं कह रही कि मैं उस का रिश्ता कनक के लिए लाई हूं. तुम उसे अपनी बहू न बनाओ तब भी मैं उस के बारे में यही कहूंगी.’’

‘‘आप तो स्वाति की प्रशंसा के पुल बांध रही हैं पर कनक तो उस से मिल कर बहुत निराश हुआ है.’’

‘‘क्यों? उस की निराशा का कारण क्या है?’’

‘‘बहुत सी बातें हैं. स्वाति उस से पूछ रही थी कि वह सगाई की अंगूठी कहां से और कितने की बनवाएगा, विवाह की पोशाक किस डिजाइनर से बनवाई जाएगी. ऐसी ही और भी बातें.’’

‘‘बस, इतनी सी बात? उस ने अंगूठी और पोशाक के बारे में पूछ लिया और कनक आहत हो गया? हर युवती का अपने विवाह के संबंध में कुछ सपना होता है. उस ने प्रश्न कर लिया तो क्या हो गया? भाभी, आजकल हमारा और तुम्हारा जमाना नहीं रहा, आजकल की युवतियां बहुत मुखर हो गई हैं. वे अपनी इच्छा जाहिर ही नहीं करतीं उसे पूरा भी करना चाहती हैं.’’

‘‘पर उन इच्छाओं को पूरा करने के क्रम में परिवार को कष्ट होता है तो होता रहे? स्वाति ने तो कनक से साफ कह दिया कि वह विवाह के बाद संयुक्त परिवार में नहीं रहेगी.’’

‘‘तोे कनक ने क्या कहा?’’

‘‘वह तो हतप्रभ रह गया, कुछ सूझा ही नहीं उसे.’’

‘‘क्या कह रही हो, भाभी? उसे साफ शब्दोें में कहना चाहिए था कि वह परिवार का बड़ा बेटा है. परिवार से अलग होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता. स्वाति ने तो अपने मन की बात कह दी, कोई दूसरी लड़की विवाह के बाद यह मांग करेगी तो क्या करेगा कनक और क्या करेंगी आप?’’

‘‘क्या कहूं, मुझे तो कुछ सूझ ही नहीं रहा है,’’ विमलाजी की आंखें छलछला आईं, स्वर भर्रा गया.

‘‘इतना असहाय अनुभव करने की आवश्यकता नहीं है. घरपरिवार आप का है. इसे सजाने व संवारने में अपना जीवन होम कर दिया आप ने. दृढ़ता से कहो कि इस तरह के निर्णय बच्चे नहीं लेते बल्कि आप स्वयं लेती हैं.’’

‘‘मेरे कहने से क्या होगा, दीदी. लड़की यदि झगड़ालू हुई तो हम सब का जीना दूभर कर देगी. कनक तो इसी कारण नौकरी वाली लड़की चाहता है. उसे तो झगड़ा करने का समय ही नहीं मिलेगा.’’

‘‘पर स्वाति तो नौकरी वाली युवतियों से भी अधिक व्यस्त रहती है. राव साहब के रेडीमेड कपड़ों के डिपार्टमैंट में महिला और बाल विभाग स्वाति संभालती है, उस के डिजाइनों को लाखों के आर्डर मिलते हैं.’’

‘‘पर कनक तो कह रहा था कि स्वाति केवल स्नातक है. उसे कहीं नौकरी तक नहीं मिलेगी.’’

‘‘हां, पर फैशन डिजाइनिंग में स्नातक है. इतना बड़ा व्यापार संभालती है तो नौकरी करने का प्रश्न ही कहां उठता है. मुझे लगता है कनक ने उस से कुछ पूछा ही नहीं, बस उस की सुनता रहा.’’

‘‘थोड़ा शर्मीला है कनक, पहली ही मुलाकात में किसी से घुलमिल नहीं पाता,’’ विमलाजी संकुचित स्वर में बोली थीं.

‘‘होता है, भाभी. पहली मुलाकात में ऐसा ही होता है. सहज होने में समय लगता है. मैं तो कहती हूं दोनों को मिलनेजुलने दो. एकदूसरे को समझने दो. आप भी ठोकबजा कर देख लो, सबकुछ समझ में आए तभी अपनी स्वीकृति देना.’’

‘‘आप की बात सच है. मैं कनक से कहूंगी कि स्वाति और वह फिर मिल लें. पर दीदी, सबकुछ कनक के हां कहने पर ही तो निर्भर करता है. तुम तो जानती ही हो, आज के समय में बच्चों पर अपनी राय थोपना असंभव है.’’

‘‘बिलकुल सही बात है पर तुम एक बार राव दंपती से मिल तो लो. उस दिन तुम और कनक अचानक उठ कर चले आए तब वे बहुत आहत हो गए थे.’’

‘‘उस के लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूं पर कनक अचानक ही उठ कर चल पड़ा तो मुझे उस का साथ देना ही पड़ा.’’

‘‘चलो, कोई बात नहीं है. जो हो गया सो हो गया. जब आप को सुविधा हो बता देना. मैं उसी के अनुसार राव दंपती से आप की भेंट का समय निश्चित कर लूंगी,’’ रमोलाजी ने सुझाव दिया था.

‘‘एक बार कनक से बात कर लूं फिर आप को फोन कर दूंगी.’’

‘‘एक बात कहूं, भाभी? बुरा तो नहीं मानोगी.’’

‘‘कैसी बातें करती हो, दीदी? आप की बात का बुरा मानूंगी? आप ने तो कदमकदम पर मेरा साथ दिया है. वैसे भी बच्चों के विवाह भी तो आप को ही करवाने हैं.’’

‘‘तो सुनो, समय बहुत खराब आ गया है. इसलिए सावधानी से सोचसमझ कर अपने निर्णय स्वयं लेना सीखो. आजकल के युवा अपने पैरों पर खड़े होते ही स्वयं को तीसमारखां समझने लगते हैं. मेरा तो अपने काम के सिलसिले में हर तरह के परिवारों में आनाजाना लगा रहता है. राजतिलकजी का नाम तो आप ने सुना ही होगा?’’

ये भी पढ़ें- आसान किस्त: क्या बदल पाई सुहासिनी की संकीर्ण सोच

‘‘उन्हें कौन नहीं जानता,’’ विमला के नेत्र विस्फारित हो गए थे.

‘‘उन का इकलौता बेटा सुबोध, हर लड़की में कोई न कोई कमी निकाल देता था. फिर अपनी मरजी से स्वयं से 10 साल बड़ी अपनी अफसर से विवाह कर लिया. लड़की भी पहले की विवाहित थी. 2 बच्चे भी थे. दोनों परिवार बरबाद हो गए. राजतिलकजी का तो दिल ही टूट गया.’’

‘‘सच कह रही हो, दीदी, आजकल की औरतों ने तो हयाशरम बेच ही खाई है,’’ विमलाजी ने हां में हां मिलाई थी.

‘‘सो मत कहो भाभी. सैनी साहब का नाम तो सुना ही होगा आप ने?’’

‘‘नहीं तो, क्यों?’’

‘‘उन के बेटे निखिल ने तो अपने पुरुष मित्र से ही विवाह कर लिया. बेचारे सैनी साहब तो शरम के मारे अपना घर बेच कर चले गए,’’ रमोलाजी ने बात आगे बढ़ाई थी.

‘‘लगता है अब घोर कलियुग आ गया है,’’ विमलाजी ने इतना बोल कर दोनों हाथों से अपना सिर थाम लिया.

‘‘इसीलिए तो कहती हूं, भाभी. सावधान हो जाओ और होशियारी से काम लो. बच्चे आखिर बच्चे हैं…दुनियादारी की बारीकियां वे भला क्या समझें,’’ रमोलाजी विदा लेते हुए बोली थीं.

रमोलाजी चली गई थीं पर विमला को सकते में छोड़ गईं, ‘‘ठीक कहती हैं रमोला. निर्णय तो स्वयं लेंगी. कनक क्या जाने जीवन की पेचीदगियों को.’’

रमोलाजी तुरुप का पत्ता चल गई थीं और जानती थीं कि उन का दांव कभी खाली नहीं जाता.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें