अभिनेत्री श्रुति आनंद के आंखों में आंसू आने की वजह क्या रही, पढ़ें पूरा इंटरव्यू

खूबसूरत, हंसमुख और स्पष्टभाषी श्रुति आनंद एक टीवी एक्ट्रेस है, उन्होंने शो ‘मन सुंदर’ से कैरियर की शुरुआत की है. इसके बाद उन्होंने शो ‘तेरी लाडली मैं’ और कई फिल्मों, वेब सीरीज में भी अभिनय किया है. उन्हें बचपन से ही अभिनय की इच्छा थी, इसलिए मॉस कम्युनिकेशन की पढ़ाई पूरी कर उन्होंने जॉब ज्वाइन किया और इस इंडस्ट्री की ओर मुड़ी. यहाँ उनका कोई गॉडफादर नहीं था, जिसके परिणामस्वरुप उन्हें बहुत अधिक संघर्ष करने पड़े, लेकिन उन्होंने शुरू में जो भी काम मिला करती गई. कैमरे के आगे रहना उन्हें हमेशा से पसंद था. इसलिए अभी भी ओटीटी और विज्ञापनों के लिए ऑडिशन देती रहती है. आगे उनकी एक फिल्म भी रिलीज होने वाली है, जिसमे उन्होंने अभिनेत्री साक्षी तनवर के साथ काम किया है.

इन दिनों सोनी टीवी पर उनकी शो मेहंदी वाला घर है, जिसमें उन्होंने मौली की भूमिका निभाई है, वह काफी खुश है. उन्होंने खास गृहशोभा के लिए बात की. पेश है कुछ खास अंश.

परिवार पहली पसंद

इस शो को करने की खास वजह के बारें में श्रुति कहती है कि ये कहानी एक संयुक्त परिवार की है, जिसमे संयुक्त परिवार की शक्ति को दिखाया गया है, जो बहुत सही है, क्योंकि अगर परिवार में कोई बीमार पड़ता है, तो पूरा परिवार उसके साथ खड़ा हो जाता है, जो एक अजनबी से उम्मीद नहीं की जा सकती. काम के बाद जब मैं घर जाती हूँ और पूरा परिवार मिलता है, तो एक अलग तरीके की सुकून और ख़ुशी मिलती है. इसके अलावा पूरा परिवार मिलकर किसी भी त्यौहार को मनाने की जो ख़ुशी होती है, उसे बयान करना मेरे लिए संभव नहीं. मैं अपने परिवार को मुंबई में बहुत मिस करती हूँ, क्योंकि मेरा परिवार बिहार में रहता है. वहां मुझे जाना बहुत पसंद होता है. देखा जाय तो आज कल सोशल मीडिया की दुनिया चल रही है, जो दिखावे की दुनिया है, अगर कोई उनसे जाकर बात करें, तो पता चलेगा कि उनके अंदर कितना खालीपन और खोखलापन है. बहुत सारी एक्टिविटीज को कर वे खुद को खुश दिखाने की कोशिश करते है कि वे बहुत खुश है, जबकि वे नहीं होते. शो में की चरित्र मौली का मुझसे बहुत मेल खाता है, क्योंकि मैने परिवार में भी किसी मनमुटाव को ठीक किया है और वही परिस्थिति यहाँ भी करती हूँ. परिवार मेरे लिए बहुत मायने रखती है. दोस्त और दोस्ती एक हद तक सही होती है, उसके बाद परिवार की भूमिका ही अहम् होती है.

करती हूं परिवार को मिस

इस शो से मुझे बहुत कुछ सीखने को भी मिल रहा है, क्योंकि इस शो के ऑडिशन के वक्त मेरे आँखों में आंसू आ गए थे, क्योंकि मैं परिवार को बहुत मिस करती हूँ और चाहती हूँ कि सब साथ मिलकर मुंबई में रहूं. शूटिंग से घर जाने पर बहुत अकेलापन महसूस होता है. मैंने देखा है कि आज के यूथ अकेले रहना पसंद करते है, मुझे भी पहले लगता था, अब नहीं लगता. इस शो में एक्टिंग ही सही, पर मौली की भूमिका से मुझे अच्छा महसूस होता है, जो एक परिवार में रहती है.

जौब के साथ किये अभिनय

बिहार से मुंबई आकर काम की तलाश करना श्रुति के लिए आसान नहीं था, पर वह इसे संघर्ष नहीं एक प्रोसेस मानती है. वह कहती है कि काम हो या न हो, दिल से मेहनत करना जरुरी है. मैंने जब शो नहीं मिला था, तो जॉब कर रही थी. छोटी – छोटी एक्टिंग जो भी मिले करती रहती थी. पहला शो जब मुझे मिला था, तो मैं गुडगांव से मुंबई ऑडिशन देने आई थी. वहां नाईट शिफ्ट में मैं जॉब करती और दिन में शूट करती थी. कोई सपोर्ट नहीं था, क्योंकि मैं अपने परिवार से पैसे नहीं मांगना चाहती थी, ऐसे ही मैंने कई बार जॉब छोड़ा और शो किया. कोविड का आना भी मेरे लिए बड़ी समस्या थी, लेकिन इतनी उतार – चढ़ाव के बीच मैंने अपनी जर्नी तय की है कि अब इसका कोई असर मुझपर नहीं पड़ता. मुझे पता है कि ये समस्याए आएगी और मुझे इससे निकलना पड़ेगा.

स्किन के रंग को लेकर सुनी कई बातें  

पहले जब यहाँ आई थी तो लोगों के हाँव – भाव बहुत अलग हुआ करते थे, मुझे कास्टिंग और ऑडिशन के बारें में कुछ भी जानकारी नहीं थी और मेरा रंग भी थोडा डस्की है, उन लोगों के हिसाब से मैं ऐसी थी कि मुझे काम नहीं मिल सकता या फिर वजन कम करों आदि सुनने को मिलते थे. मेरे पेरेंट्स ने हमेशा मुझे मेरे माइंड सेट को स्ट्रोंग रखने की सलाह दी है. शुरू से ही कैमरे के ऑन होते ही मैं अपने संघर्ष के सब कुछ भूल जाती हूँ. मैंने कभी सोचा नहीं था कि मैं यहाँ तक पहुँच सकती हूँ, लेकिन धीरे – धीरे थिएटर ज्वाइन करने के बाद लगा कि मैं कुछ कर सकती हूँ. पेरेंट्स ने मुझे कभी मना नहीं किया, हमेशा सहयोग दिया. मैंने जॉब कर अपना बैंक बैलेंस बनाया, फिर एक्टिग में आई, मेरे हिसाब से हर न्यू कमर को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वे एक्टिंग में अवश्य आये पर पढ़ाई पूरी कर अपना बैंक बैलेंस लेकर ही आये, तभी वे आगे बढ़ सकते है.

फूडी नहीं

श्रुति बहुत अधिक फूडी और फैशनेबल नहीं है, वह अपनी फिटनेस का बहुत ध्यान रखती है, ताकि वह मोटी न हो जाय. वह नियमित जिम जाती है, मीठा नहीं खाती, चावल पसंद है, पर नहीं खाती. इसके अलावा समय मिलने पर श्रुति डायरी लिखती है, ताकि किसी प्रकार की तनाव को कम किया जा सकें.

गणतंत्र दिवस के अवसर पर श्रुति का कहना है कि संविधान और कानून को फोलो करना हर नागरिक का कर्तव्य होता है, इससे ही देश में शांति बनी रहती है और मैं भी इसे हमेशा मानती हूँ.

New Year 2024: नए साल में क्या है, सेलेब्स की नई सोच, जानें यहाँ

नया साल 2024 की शुरुआत होने वाली है, हर कोई अपने ढंग से इस साल को नए रूप में मनाने की कोशिश करने वाले है. होटलों, दुकानों और पर्यटन स्थलों पर पर्यटकों की भीड़ की कमी नहीं है, ऐसे में फिल्म हो या टीवी सेलेब्रिटी थोड़े सुकून की जिंदगी अपने परिवार के साथ बिताना पसंद कर रहे है और एक नई और ताजगी के साथ आगे आने वाले वर्ष का स्वागत भी करना चाहते है. इस बार उन सभी ने नए साल में नई सोच को प्राथमिकता दी है, जिससे हर तरफ लोग खुश रह सकें, जो आज के तनाव भरे माहौल के लिए बहुत जरुरी है. इस साल को वे खुशियों से भर देना चाहते है, जिसमे वे अपने साथ अपने परिवार और अपने आसपास के सभी को नई सोच के साथ आगे बढ़ने के लिए कहते  है, क्या है उनके सुझाव, आइये जानते है.

रीवा अरोड़ा

‘उरीः द सर्जिकल स्ट्राइक’ और ‘मॉम’ जैसी फिल्मों में काम कर चुकी अभिनेत्री रीवा अरोड़ा कहती है कि मैं नए साल में हर बार कुछ नई सोच के साथ प्रवेश करना चाहती हूँ. इस बार मैं अपने परिवार के साथ वृन्दावन में हूँ और सर्दी के मौसम को महसूस कर रही हूँ, मुझे ये खिला – खिला मौसम बहुत पसंद है. इस बार मैं दर्शकों को आने वाली दो फिल्मों में काम कर उन्हें खुश करना चाहती हूँ. शारीरिक रूप से इस बार मुझे थोडा बैकपैन है, जो मुझे डांस और वर्कआउट के दौरान हुआ था, उसे ठीक करने में लगी हूँ और रेस्ट कर रही हूँ. मैं नए साल में फिट रहना चाहती हूँ, ताकि मुंबई जाकर शूटिंग शुरू कर सकूँ. आगे मैं पूरे साल भारत के विभिन्न स्थानों पर घूमकर एक्स्प्लोर करना चाहती हूँ, मुझे वृन्दावन बहुत पसंद है, क्योंकि यहाँ के लोगों की सादगी बहुत अच्छी लगती है. पर्यावरण की बात करें तो हर नागरिक की जिम्मेदारी बनती है कि वे अपने आसपास और देश को स्वच्छ रखने की कोशिश करें. इधर – उधर न थूंके. इतनी सुन्दर वृन्दावन में भी हायजीन की कमी मुझे कई बार दुखी करती है.

सुमित राघवन

वागले की दुनिया फेम सुमित राघवन कहते है कि नए साल में सामाजिक रूप से मैं एक एलर्ट सिटीजन रहना चाहता हूँ, जिसमे अगर कोई राह चलते थूकता है तो मुझे उसे समझाना पड़ेगा कि ये गलत है, अगर कोई चलती हुई गाडी से खिड़की खोलकर कुछ बाहर फेंकता है, तो उसे रोकना पसंद करूँगा और यहाँ मैं अपने चेहरे का प्रयोग करूँगा, जिसे दर्शकों ने हमेशा चाहा है. शारीरिक रूप से नए साल में मैं फिट और हेल्दी रहना पसंद करूँगा. बीच – बीच में बड़ा पाँव, पिज़्ज़ा और चोकलेट केक भी खाऊंगा, लेकिन आधा घंटे की वर्कआउट मैं अवश्य करना चाहूँगा, जिससे मैं मानसिक रूप से स्वस्थ रहूँ. पर्यावरण की अगर मैं बात करूँ तो नए साल में जो लोग पर्यावरण को ख़राब अपनी गलत आदतों की वजह से कर रहे है, कचरा इधर – उधर फेंक रहे है, उन्हें बंद करने की कोशिश करूँगा. इसके अलावा मैंने अपनी स्टूडियों के आसपास प्लांट्स लगवाए है और आगे भी लगाता रहूँगा. मैंने अपने मेकअप रूम के आगे एक किचन गार्डेन भी बनाया है, ताकि क्लाइमेट चेंज को कम किया जा सकें.

इंद्राक्षी कांजीलाल

पुष्पा इम्पॉसिबल धारावाहिक में अभिनय कर रही कोलकाता की इंद्राक्षी कांजीलाल कहती है कि नए साल में सभी को अपने आसपास और परिवार से एक अच्छी बोन्डिंग बनाए रखने की जरुरत है, क्योंकि आजकल लोग बहुत अधिक सेल्फ सेंटर्ड होते जा रहे है. मैं भी यही कोशिश करूंगी, कि मैं अपनी उपस्थिति को समाज और परिवार में एक सम्मानजनक रूप में दर्ज करवा सकूं, गलत का समर्थन न करूँ. शारीरिक रूप से हेल्दी रहने की कोशिश करूँगी, क्योंकि स्वास्थ्य ही सबसे उत्तम धन है. पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाऊं, आसपास पेड़ लगाकर लोगों को प्रेरित करूँ, ताकि मौसम में आये इस अचानक बदलाव और पृथ्वी को गर्म होने से बचा सकूँ.

राकेश कौल

अभिनेता राकेश कौल कहते है कि आज विश्व में सभी लोगों पर काम का दबाव अधिक हो चुका है. हर स्माइल के पीछे एक संघर्ष की कहानी है, जिसे हम नहीं समझ पाते, इसलिए ऐसे लोगों के लिए मैं नए साल में दयावान रहना पसंद करूँगा और चारों तरफ खुशियाँ बिखेरना चाहूँगा. अगर किसी ने कुछ अच्छा काम मेहनत से किया है, तो उसे शाबासी देने में कंजूसी नहीं करूँगा. कोई अंजान अगर मुझे देखकर मुस्कुराये, तो एक स्माइल मैं भी करूँगा. एक मुस्कराहट हर किसी को एक सुकून देती है और इससे मैं नए साल में अधिक से अधिक बिखेरना चाहूँगा.

महेश ठाकुर

अभिनेता महेश ठाकुर का वर्ष 2024 के लिए सभी को नई सोच के साथ प्रवेश करने को कहते है, जिसमे अपने स्वास्थ्य, समाज और पर्यावरण प्रदूषण पर ध्यान देना जरुरी समझते है. वे कहते है कि आगे आने वाले साल में सभी को समवेत रूप से समाज को बदलने के लिए आगे आना पड़ेगा. तभी हमारे फ्यूचर जेनरेशन को आगे आने में मदद मिलेगी. जहाँ भष्टाचार है, अन्याय है, उसे दूर से नहीं, सामने आकर समन्वित रूप से दूर करें. जब तक सब साथ मिलकर आवाज नहीं उठायेंगे, बदलाव होना संभव नहीं हो सकता. पर्यावरण में बदलाव के लिए हर एक इंसान को एक या दो पौधे निश्चित स्थान पर लगाते रहना है, तभी जाकर जलवायु परिवर्तन की समस्या 20 साल में ख़त्म हो सकती है. ये मुश्किल नहीं, जहाँ आप रहते है, अपने पास एक प्लांट लगाकर उसकी सेवा कर बड़ा करें. 20 साल बाद पर्यावरण प्रदूषण में कमी अवश्य आएगी.

‘अनुपमा’ एक्ट्रेस रुपाली गांगुली ने शेयर किया कास्टिंग काउच एक्सपीरिंयस

घर-घर में अपनी पहचान बनाने वाली ‘अनुपमा’ एक्ट्रेस रुपाली गांगुली इन दिनों काफी सुर्खियों में है. वे अपने सीरियल की वजह से लाइमलाइट में नहीं है बल्कि अपने इंटरव्यू की वजह से चर्चा का विषय बन गई है. रुपाली गांगुली ने हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान कास्टिंग काउच एक्सपीरिंयस शेयर किया है. रुपाली ने बताया कि उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री से दूरी कास्टिंग काउच की वजह से बना लीं थी.

सबसे स्ट्रेसफुल दिन थे वो- रुपाली

टीवी एक्ट्रेस रुपाली गांगुली ने मीडिया इंटरव्यू में बताया कि मेरे लिए वे दिन सबसे ज्यादा कठिन थे जब मैं घर में बैठी हुई थी. मैने 6.5 साल होममेकर का काम किया था. सबके जागने से पहले उठती थी. वो बात अलग थी कि किसी ने मुझे जल्दी उठने के लिए नहीं कहा था. मेरे पति तो मुझे बहुत पैम्पर करते है. लेकिन हमारी परवरिश ही ऐसी हुई थी. वे दिन मेरे जिंदगी के सबसे हेक्टिक और मेहनत वाले दिन थे. अब ये सारे काम मेरे पति करते है. आज वो होममेकर है, मैं बहुत ही गर्व महसूस करती हूं.

इस वजह से बनाई फिल्म इंडस्ट्री से दूरी

रुपाली ने आगे कहा, उस समय फिल्म इंडस्ट्री में कास्टिंग काउच था. हो सकता है कि कुछ लोग को इसका सामना नहीं करना पड़ा हो, लेकिन मेरे जैसे लोगों को इसका सामना करना पड़ा है. हालांकि, हमने ये विकल्प न चुनने का फैसला किया और फिल्म इंडस्ट्री का दूरी बनाने का फैसला कर लिया. हां, दूरी बनाने के बाद जब काम नहीं था तब छोटापन महसूस होता था, लेकिन आज मुझे गर्व महसूस होता है. ‘अनुपमा’ की वजह से मैनें जो मुकाम हासिल किया है मैनें हमेशा उसका सपना देखा था.

किताब पढ़ने के फायदे है क्या, जाने यहां

‘दिल की किताब कोरी है……’,‘किताबे बहुत सी पढ़ी होगी तुमने मगर कोई चेहरा जो तुमने पढ़ा है…..ऐसी कई हिंदी फिल्मों के गाने, जो किताबों के जरिये ही प्यार की गहराई को, प्रेमी जोड़े एक दूसरे को जाहिर करते आ रहे है, ये सभी जानते है, लेकिन आज फिल्मों के साथ-साथ लोगों ने भी किताबों को पढना कम कर दिया है. इसी वजह से विश्व में लोगों के बीच में किताब पढने की सिलसिला को जारी रखने के लिए हर साल 23 अप्रैल को वर्ल्ड बुक डे मनाया जाता है.

बचपन में पहले पेरेंट्स बच्चों को किताबें पढने पर जोर दिया करते थे, क्योंकि किताबें पढना अच्छी बात मानी जाती है. इससे बच्चे में एकाग्रता, यादाश्त, नई खोज को जानने की इच्छा, आदि विकसित हुआ करती है. पैरेंट्स से लेकर डॉक्टर, टीचर्स और लाइब्रेरियन तक, सभी हमें यही एडवाइस करते थे कि हमें बुक्स पढ़नी चाहिए. बुक्स आपकी हेल्थ और वेलनेस के लिए भी फायदेमंद होती हैं, लेकिन ये दुःख की बात है कि बदलते वक्त में आज के बच्चे किताबों को छोड़कर मोबाइल पर व्यस्त हो चुके है, जिससे उनकी एकाग्रता और यादाश्त में कमी होने के साथ-साथ उनके आँखों पर भी इसका प्रेशर बढ़ रहा है, आज 5 साल के बच्चे को भी चश्मा पहननी पढ़ती है. आज वे किसी बात को बार-बार कहने पर भी भूल जाया करते है.

रिसर्च बताते हैं कि किताबों के पढ़ने से ना केवल आप स्मार्ट बनते हैं बल्कि उम्र बढ़ने के साथ-साथ यह आपको शार्प और एनालिटिकल भी बनाता है. किताबें हमारे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा होती हैं. असल में किताबेंबिल्कुल एक पार्टनर की तरह होती है, उसके बिना व्यक्ति खुद को अकेला महसूस करता है.

किताबे पढने से लाभ

किताबें पढ़ने और इसके प्रकाशन को बढ़ावा देने के लिए हर साल 23 अप्रैल को दुनिया भर के लोग वर्ल्ड बुक डे मनाते हैं. ऐसा माना जाता है कि नियमित रूप से किताबें पढ़ने से तनाव कम होता है, एकाग्रता, याददाश्त और विनम्रता बढ़ती है और कम्युनिकेशन स्किल्स में भी सुधार आता है. किताबें हमें नई-नई चीजें सिखाती हैं और हमें अपने काम और रिश्तों में कामयाब होने में मदद करती हैं. कुछ लाभ निम्न है,

  • शब्दों और भाषा का ज्ञान होना,
  • अल्जाइमर और डिमेंशिया से बचना,
  • तनाव कम करना,
  • ज्ञान बढ़ना,
  • याद रखने की क्षमता को बढ़ाना,
  • फोकस और एकाग्रता का बढ़ना,
  • आत्मविश्वास बढ़ाना,
  • अच्छी नींद आना,
  • लेखन क्षमता को बढ़ाना आदि.

किताबों को कम पढने को लेकर टीवी सेलेबस भी चिंतित है और अपनी सन्देश लोगों तक पहुँचाने की कोशिश कर रहे है. क्या कहते है वे आइये जाने

निहारिका रॉय

धारावाहिक ‘प्यार का पहला नाम राधा मोहन’ की अभिनेत्री निहारिका रॉय कहती है ‘‘मैं अपने खाली वक्त में हमेशा किताबें पढ़ती हूं. किसी भी दिलचस्प नॉवेल को पढ़कर हमेशा मुझे खुशी मिलती है और मैं थका देने वाले शूट शेड्यूल में भी तनावमुक्त महसूस करती हूं. मैं बताना चाहूंगी कि मेरे बचपन से ही मेरी किताबों का कलेक्शन बढ़ता जा रहा है. किताबें वाकई आपको एक व्यक्ति के रूप में विकसित होने में मदद करती हैं. यह कभी-कभी आपका सपोर्ट सिस्टम भी बन जाती हैं. मैंने भी यही महसूस किया है. जब भी मुझे निराशा महसूस होती है, मैं एक किताब पढ़ना शुरू कर देती हूं और इससे वाकई मुझे अंदर से खुशी मिलती है. किताबें पढ़ने के असली फायदों को देखते हुए मैं सभी को यह सलाह देना चाहूंगी कि वे महीने में कम से कम एक किताब जरूर पढ़ें.

अनुष्का मर्चंडे

धारावाहिक ‘मैं हूं अपराजिता’ में छवि का रोल निभा रहीं अभिनेत्री अनुष्का मर्चंडे बताती हैं कि जिस पहली किताब ने जिंदगी के प्रति वाकई मेरा नजरिया बदल दिया था, वो थी रिजर्ड बक की ‘जॉनेथन लिविंगस्टन सीगल’. इससे मुझे चीजों को देखने का एक नया नज़रिया मिला. असल में इस किताब को पढ़ने के बाद ही मुझे महसूस हुआ कि मुझे ऐसी विचारोत्तेजक कहानियां पढ़ना पसंद हैं, जो मुझे एक इंसान के रूप में आगे बढ़ने में मदद करें. जब भी मुझे खाली वक्त मिलता है, मैं एक नई उपन्यास पढ़ती हूं. मैं बताना चाहूंगी कि जब भी मैं कोई दिलचस्प नॉवेल पढ़ती हूं, तो मैं अपने बिजी शूट शेड्यूल के बावजूद बड़ा खुश और तरोताजा महसूस करती हूं. कोई किताब पढ़ना एक और जिंदगी जीने जैसा है और इससे मुझे बेइंतेहा खुशी मिलती है. मैं सभी को यह सलाह दूंगी कि वो हर दिन एक नॉवेल के कुछ पन्ने जरूर पढ़ें. अपनी पसंद की किताबों के बारे में बात करूं, तो यह अलग-अलग विषय की किताबें हैं जैसे मुझे ऐतिहासिक, बायोग्राफिकल, हेल्थ और फिक्शन जैसे अनोखे जॉनर्स की किताबें पढ़ना अच्छा लगता है. इस समय मेरी फेवरेट बुक्स हैं – ऐलेना अरमास की द स्पैनिश लव डिसेप्शन, ऐना हुआंग की ट्विस्टेड लव और ऐसी ही कई अन्य किताबें है. मुझे स्टिफेनी मेयेर और कॉलीन हूवर का काम भी बहुत पसंद है, जिन्होंने मुझे प्रेरित और प्रभावित किया. इसके अलावा कॉन्स्टैंटिन स्टेनिस्लाव्स्की की बिल्डिंग ए कैरेक्टर हर एक्टर के लिए पढ़ने लायक किताब है, क्योंकि इसमें उनकी कला को निखारने के लिए कई नायाब टेक्निक्स बताई गई हैं

इंटिमेट सीन्स नहीं कर सकतीं टीवी एक्ट्रेस रूपल त्यागी, पढ़ें इंटरव्यू  

 कोरियोग्राफर से अभिनय के क्षेत्र में आने वाली टीवी अभिनेत्री रूपल त्यागी बंगलुरु की है. शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने बंगलुरु में शामक डावर की डांस इंस्टिट्यूट ज्वाइन किया. उस दौरान उन्हें बॉलीवुड कोरियोग्राफर पोनी वर्मा को एसिस्ट करने का मौका, फिल्म ‘भूल भुलैया का गाना ‘मेरे ढोलना’…में मिला.दो साल तक वह मुंबई और बंगलुरु आना-जाना करती रही और बार-बार ऐसा करना संभव न हो पानेकी वजह से वह मुंबई शिफ्ट हो गयी. मुंबई आने के बाद रूपल कोरियोग्राफी के साथ-साथ अभिनय की भी ऑडिशन देने लगी. उनकी कोशिश तब रंग लायी, जब उन्हें पहली धारावाहिक ‘हमारी बेटियों का विवाह’ में मंशा कोहली की भूमिका मिली. इसके बाद उन्होंने ‘एक नयी छोटी सी जिंदगी, कसम से,सपने सुहाने लड़कपन के’ आदि कई धारावाहिकों में काम कर घर-घर पहचानी गयी. शांत और हंसमुख रूपल दंगल टीवी पर धारावाहिक ‘रंजू की बेटियां’ में बुलबुल की भूमिका निभा रही है. आइये जाने, रूपल की कहानी उनकी जुबानी.

सवाल- इस धारावाहिक में आप बुलबुल की भूमिका निभा रही है, आप कितनी एक्साइटेड और खुश है?

बुलबुल की भूमिका हर दिन मुझे सरप्राइज करता रहता है, मैंने अपने कैरियर में ऐसी भूमिका नहीं निभाई है. शो की शुरुआत में बुलबुल एक रेसलर थी, लेकिन अब वह किसी की बॉडीगार्ड है. एक राजनेता के बॉडीगार्ड की भूमिका आजतक टीवी पर नहीं दिखाया गया है, इसलिए इसे करने में मैं बहुत एन्जॉय कर रही हूं.

सवाल- लॉकडाउन के दौरान शूटिंग कैसे की और किस तरह की सावधानी आप खुद बरतती है?

लॉकडाउन के दौरान पूरी टीम सिलवासा चली गयी थी और वहां सेट पर एक बायोबबल एनवायरनमेंट में हम सभी थे, यूनिट से न कोई बाहर जाता और न कोई अंदर आता था. सिलवासा जाने के बाद सबने कोरोना टेस्ट कराया, हम सब एक रिसोर्ट में रहे, शूट किया, खाना-पीना और सोना सब वही करते रहे. बहुत अच्छी सुरक्षा सिलवासा में रखी गयी. मैंने अभी वैक्सीन नहीं लगवा है,जिन लोगों को स्लॉट मिला उन्होंने वैक्सीन ले लिया है. मैं खुद के लिए बहुत सावधान रहती हूं,मास्क पहनना, सेनेटाईज करना और अच्छा पौष्टिक आहार लेती हूं.

सवाल- अभिनय के क्षेत्र में आना एक इत्तफाक था, या बचपन से सोचा था?

मुझे बचपन से ही अभिनय की इच्छा थी और किसी भी माध्यम में अभिनय करना, मेरे लिए कुछ फर्क पड़ने वाला नहीं था. फिर चाहे वह विज्ञापन, साउथ फिल्म हो या थिएटर कुछ भी करना मुझे पसंद रहा है. मुझे 5 साल की उम्र से पता था कि मुझे एक्टिंग करना है. मुंबई आने पर मुझे टीवी में काम करना ठीक लगा, क्योकि मुझे सुबह उठकर काम पर जाना और शाम को घर लौटकर आना पसंद है. सेट पर समय बिताने में मुझे किसी प्रकार की समस्या नहीं है.

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सवाल- कोरियोग्राफर से एक्ट्रेस कैसे बनी?

मैं बंगलुरु से कोरियोग्राफी सीखने के बाद कोरियोग्राफर पोनी वर्मा को एसिस्ट करने मुंबई आई थी और फिल्म भूल भुलैया की कोरियोग्राफी ख़त्म करने के बाद मैंने एक्टिंग करने का मन बना लिया. कोरियोग्राफी से मुझे बहुत कुछ सीखने का अवसर मिला था. मैंने ऑडिशन देना शुरू किया और पहली टीवी शो ‘हमारी बेटियों का विवाह’ में मंशा की भूमिका निभाई. इस तरह धीरे-धीरे काम मिलना शुरू हो गया.

सवाल- पहली बार पेरेंट्स को कोरियोग्राफी छोड़कर अभिनय करने की इच्छा बताने पर उनके रिएक्शन क्या थे?

मैंने 5 साल की उम्र में एक विज्ञापन शूट किया था और वे जानते थे कि अभिनय मेरा पैशन है, क्योंकि छोटी अवस्था से मैं आईने के सामने खड़ी होकर कंघी को माइक बनाकर अभिनय करती थी. स्कूल में भी हर कार्यक्रम में भाग लेकर पेरेंट्स को इनवाइट किया करती थी. उनकी चिंता केवल इस बात की थी कि मैं मुंबई जाकर अच्छी तरह सेटल्ड हो जाऊं.

सवाल- पहला ब्रेक मिलना कितना मुश्किल था?

संघर्ष बहुत था, क्योंकि 100 से 200 ऑडिशन देने के बाद एक फाइनल होता है और शुरुआत में बात ऐसी ही थी. कहाँ कैसे ऑडिशन दिए जाते है, इसे समझने में समय लगा. एक बार समझ आने पर काम मिलना आसान हो जाता है,लेकिन तब प्रतिभा आपको आगे लाती है. धारावाहिक ‘सपने सुहाने लड़कपन के’ से मेरी जिंदगी बदली, इससे पहले जो काम मिले वे अधिक हिट शो नहीं थे. धारावाहिक ‘हमारी बेटियों का विवाह’ में मंशा कोहली की भूमिका मेरा पहला काम था.

सवाल- आप कोरियोग्राफी को छोड़कर एक्टिंग में आई, दोनों में क्या अंतर देखती है?

कोरियोग्राफी कैमरे के पीछे होता है, जबकि एक्ट्रेस परदे के सामने होती है. इसलिए एक आर्टिस्ट को अच्छा दिखने का प्रेशर रहता है, जबकि कोरियोग्राफी में ये प्रेशर नहीं होता औरव्यक्ति लुक छोड़कर काम पर अधिक मन लगा सकता है. इसके अलावा दोनों की फील्ड अलग है. एक में सिखाना पड़ता है, जबकि दूसरे में काम कर दिखाना होता है.

सवाल- क्या फिल्मों की तरह टीवी में भाई-भतीजावाद का कभी आपने सामना किया?

मैं नेपोटिज्म को अधिक नहीं मानती, स्वतंत्र भारत में सबको अपने मन मुताबिक काम करने की आज़ादी होनी चाहिए. ये सही है कि एक डॉक्टर पिता अपने बेटे को डॉक्टर ही बनाना चाहेगा, लेकिन बिना डॉक्टर की शिक्षा लिए,अगर उसे क्लिनिक में बैठाता है तो वह गलत बात है.वैसे ही एक एक्टर का अपने बेटे या बेटी को एक्टर बनाने की प्लानिंग को मैं गलत नहीं समझती.

सवाल- क्या आप हिंदी फिल्मों में काम करना नहीं चाहती?

मैं अभी टीवी पर काम कर बहुत संतुष्ट हूं, इस शो के समाप्त होने के बाद अगर कोई फिल्म मिले, तो मैं अवश्य करुँगी, क्योंकि मैं एक साथ 2 से 3 प्रोजेक्ट नहीं कर सकती. मेरा मन भटक जाता है. इसके अलावामैं इंटिमेट सीन्स नहीं कर सकती, जैसा आज फिल्में और वेब सीरीज में चल रही है. टीवी की काम से बहुत खुश हूं. मैं किसी रेस में नहीं हूं, इसलिए मुझे किसी भी काम के लिए जल्दबाजी नहीं करनी है. मैं ख़ुशी से जीना चाहती हूं.

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सवाल- फैशन आप कितनी पसंद करती है और कितनी फूडी है?

फैशन को मैं एन्जॉय करती हूं. नए कपडे और शूज मुझे बहुत पसंद है. साफ-सुथरा रहना मेरी आदत रही है. मुझे साधारण खान-पान पसंद है, माँ के हाथ का बनाया दाल चावल, पोहा बहुत पसंद है.

सवाल- कोई मेसेज जो देना चाहे?

मेरा सबसे कहना है कि लाइफ में बहुत कुछ कर लेने से ख़ुशी नहीं मिलती. सभी लोग पैसे के पीछे भाग रहे है. आज का दिन इकलौता ही है, जो पास्ट है उसकी कुछ यादगार लम्हे और भविष्य की कुछ इमेजिनेशन. इसे समझने वाला व्यक्ति आज को नष्ट नहीं करेगा. सभी को इस परिस्थिति को समझने की जरुरत है. किसी को सुनना बंद करें, अपना काम ईमानदारी से करें.

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