उलटी गंगा: योगेश को क्या था डर

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उलटी गंगा- भाग 3: योगेश को क्या था डर

मन ही मन योगेश ने उस चपरासी को हजारों गालियां दी और बेचारे को ‘कामचोर’ का नाम दे कर औफिस से निकलवा दिया. मगर मुक्ता अब अलर्ट रहने लगी थी. वक्त के साथ काम करती और सब के साथ ही निकल जाती. लेकिन योगेश मौका तलाश रहा था किसी तरह उसे अपने चंगुल में फंसाने का.

उस रोज योगेश ने उसे फोन कर के बोला कि कल औफिस के काम से उसे उस के

साथ दूसरे शहर जाना होगा. वह तैयार रहे मगर वह बहाने बनाने लगी.

‘‘मैं तुम से पूछ नहीं रहा हूं, बता रहा हूं और खुशी मनाओ कि तुम्हारा बौस तुम्हें अपने साथ बाहर ले जा रहा है. वरना तुम जैसी लड़कियों को पूछता कौन है,’’ अजीब तरह से हंसते हुए योगेश ने कहा.

योगेश उस से देहसुख चाहता था, यह बात मुक्ता समझ गई थी, इसलिए जितना भी हो सकता, वह उस से दूर रहने की कोशिश करती. यह भी जानती थी कि योगेश बहुत ही पावरफुल आदमी है. चाहे तो उस की नौकरी भी छीन सकता है. इसलिए वह उस से पंगा भी नहीं लेना चाहती थी. कभीकभी तो उस का मन होता अपनी मां को सब बता दे, पर इसलिए अपने होंठ सी लेती कि जानने के बाद उस की मां जीतेजी मर जाएगी. जब घर में सब सो जाते तब वह अपनी बेबसी पर रोती. कभी उस का मन करता नौकरी छोड़ दे. कभी करता आत्महत्या कर ले, पर जब मां और भाईबहन का खयाल आता तो अपना इरादा बदल लेती.

अब मुक्ता इसी कोशिश में थी कि कहीं और नौकरी मिल जाए, तो योगेश जैसे राक्षस का सामना न करना पड़े और अब तो उस की शादी भी होने वाली थी, तो इस बात का भी उसे डर सताने लगा था कि अगर लड़के वालों को कुछ भनक मिल गई तो क्या होगा.

आखिरकार उसे दूसरी जगह नौकरी मिल ही गई. कुछ महीने बाद उस की शादी भी हो गई. जानबूझ कर उस ने अपना फोन नंबर बदल लिया ताकि भविष्य में कभी योगेश उसे परेशान न करे. कहते हैं, बीते दुखों और आने वाले सुखों के बीच देहरीभर का फासला होता है और वह यह देहरी ढहने नहीं देना चाहती थी. कटी पतंग का आसमान में उड़ कर गुम हो जाना उस की हार नहीं, बल्कि जीत है और मुक्ता जीतना चाहती थी.

मगर यह बात मुक्ता को नहीं पता थी कि आज योगेश खुद ही उस से भय खाए हुए है. मुक्ता के नाम से भी अब उसे डर लगने लगा है. रातरात भर वह सो नहीं पाता. सोचता है पता नहीं कब मुक्ता नाम का यमराज उस के ऊपर बंदूक तान कर खड़ा हो जाए. कोई अनजान व्यक्ति घर में आ जाए या कूरियर वाला कुछ दे कर चला जाए तो उसे लगता मुक्ता ने ही कुछ भेजा होगा. दरवाजे की एक छोटी सी घंटी भी उस का दिल दहला देती. जोरजोर से सांसें भरने लगता. लगता मुक्ता ही आई होगी.

परसों की ही बात है. एक आदमी नीलिमा के हाथ में एक लिफाफा दे गया. योगेश को लगा जरूर मुक्ता ने ही कुछ भेजा होगा. नीलिमा के हाथ लग गया तो वह तो गया काम से. ‘‘क… कौन है? क्या… क्या है इस में?’’ घबराते हुए उस ने पूछा.

‘‘पता नहीं, लगता है कोई फोटोवोटो है,’’ लिफाफा खोलते हुए नीलिमा बोली.

मगर जब तक नीलिमा लिफाफा खोल पाती, योगेश ने उस के हाथ से पैकेट छीन लिया और कहने लगा कि ऐसे कैसे बिना जाने वह यह लिफाफा खोल सकती है?

‘‘अरे, पागल हो गए हो क्या? क्या हो गया है तुम्हें? क्यों नहीं खोल सकती मैं यह लिफाफा? डर तो ऐसे रहे हो जैसे इस में तुम्हारा कोई पुराना राज छिपा हो?’’

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नीलिमा की बातें उस के दिल में तीर की तरह चुभ गईं. कहते हैं न चोर की दाढ़ी में तिनका वही यागेश के साथ हो रहा था. हर बात पर उसे डर लगता कि कहीं वह पकड़ा न जाए. पुराने राज न खुल जाएं. लेकिन उस ने तब राहत की सांस ली जब लिफाफे में कुछ और निकला.

जैसेजैसे मीटू का प्रचार गरमाता जा रहा था, योगेश की दिल की धड़कनें बढ़ती ही जा रही थीं. उस की रातों की नींद और दिन का चैन उड़ा हुआ था. पलपल वह डर के साए में जी रहा था. कभी सोतेसोते जाग जाता, तो कभी बैठेबैठे अचानक उठ कर यहांवहां घूमने लगता.

अचंभित थी नीलिमा उस के व्यवहार से. सोचती, कहीं पगला तो

नहीं गया यह? मगर योगेश के दिल की हालत वह क्या जाने भला. सालों पहले उस के किए पाप अब उस के गले की हड्डी बन चुके थे. सोचता, काश, मुक्ता मिल जाए और वह अपने किए की उस से माफी मांग ले, तो सब ठीक हो जाएगा. कभी सोचता काश, बीते पल वापस लौट आएं और वह सब सुधार दे. मगर क्या बीते पल कभी वापस आए हैं.

फिर सोचा, क्यों न खुद जा कर मुक्ता से उस बात की माफी मांग ले. जरूर वह उसे माफ कर देगी. आखिर औरतों का दिल बहुत बड़ा होता. बहुत ढूंढ़ने पर मुक्ता का पता उसे मिल ही गया. मगर तब उस की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. जब उस ने मुक्ता को उस वकील के साथ थाने में प्रवेश करते देखा. उसे लगा जरूर वह उस के खिलाफ ही शोषण का केस करने गई होगी. खड़ेखड़े योगेश को लगा वह गश खा कर वहीं गिर पड़ेगा. अगर उस राहगीर ने न संभाला होता, तो सच में गिर ही पड़ता.

‘‘धन्यवाद भाई,’’ उस बचाने वाले आदमी को धन्यवाद कह योगेश थाने के आसपास ही चक्कर काटने लगा ताकि मुक्ता निकले तो उस से बात कर सके, अपने किए की माफी मांग सके. मगर वह कब किस रास्ते से निकल गई पता ही नहीं चला.

इस तरह उसे हफ्तों बीत गए, पर मुक्ता से बात न हो पाई और न ही पता लग पाया कि क्यों वह थाने आई थी. लेकिन एक दिन उसे पता चल ही गया कि वह यहां अपने भाई की पत्नी की शिकायत पर पैरवी कर रही है. किसी तरह अपने भाई को सजा से बचाना चाह रही है और इसलिए वह वकील के साथ थाने आई थी. दरअसल, उस की भाभी ने उस के भाई पर उसे मारनेपीटने को ले कर पुलिस में शिकायत कर दी थी. इसलिए वह थाने के चक्कर काट रही थी. सारी बातें जानने के बाद योगेश ने राहत की सांस ली. लगा वह बच गया. तभी उस का फोन घनघना उठा. देखा, तो नीलिमा का फोन था. चिल्लाए जा रही थी कि वह कहां है और अब तक घर क्यों नहीं आया.

जैसी ही योगेश घर पहुंचा, दैत्य की तरह नीलिमा उस के सामने खड़ी हो गई और पूछने लगी कि अब तक वह कहां था? फिर बताने लगी कि अमन अंकल फिलहाल तो जमानत पर छूट गए, मगर बच नहीं पाएंगे. उन का किया पाप एक न एक दिन ले ही डूबेगा उन्हें.

अब फिर योगेश को डर सताने लगा. सोचने लगा कि पता नहीं कहीं मुक्ता का दिमाग फिर गया तो…

भले ही योगेश आज खुद को बचा हुआ समझ रहा है, पर तलवार तो उस की भी गरदन पर टंगी है, जो जाने कब गिर जाए. जैसी उलटी गंगा बही है न, शायद ही योगेश बच पाए. जाने कब मुक्ता का दिमाग फिर जाए और वह योगेश के खिलाफ मीटू का केस कर दे. यह बात योगेश भी अच्छी तरह समझता था और जान रहा था कि अब बाकी की जिंदगी ऐसे ही डरडर कर कटेगी उस की. भविष्य में उस के साथ क्या होगा, नहीं पता.

उलटी गंगा- भाग 2: योगेश को क्या था डर

उस के पति को बदनाम करना चाहती है, क्योंकि उस ने उन्हें नौकरी से निकाल दिया था. गुस्सा तो मुझे उन की पत्नी पर भी आ रहा है, क्योंकि वह एक गुनहगार को बचाने पर तुली है, पर बचेगा नहीं. मैं तो कहती हूं उस की पत्नी को भी जेल में डाल देना चाहिए, जो एक गुनहगार की अगुआई कर रही है,’’ गुस्से से अपनी आंखें लाल कर नीलिका बोली.

‘‘हो सकता है अमनजी सही कह रहे हों और वह लड़की झूठ…’’

‘‘झूठ…? बीच में ही नीलिमा बोल पड़ी,’’ और वे सच बोल रहे हैं? क्यों, क्या वह लड़की पागल है जो खुद को ही बदनाम करेगी? जरूर कुछ किया ही होगा तभी तो वह बोल रही होगी… इसलिए गुनाह कर के भी मर्द बच निकलते हैं, क्योंकि उन की पत्नियां उन्हें बचाने के लिए दीवार बन कर उन के सामने खड़ी हो जाती हैं. जानती हैं कि पति गुनहगार है फिर भी… सच कहती हूं अगर उस की जगह मेरा पति होता न, तो मैं उसे नहीं छोड़ती. जेल भिजवा कर ही रहती साले को, ‘‘नीलिमा के मुंह से ऐसी बातें सुन कर योगेश के रोंगटे खड़े हो गए.’’

‘‘सोचो, खुद की भी बेटी है, अगर उस के साथ कोई ऐसा करे तो? छि:, अरे, औरत क्या कोई वस्तु है, जो जिस का जब मन चाहे इस्तेमाल कर लो, बिना उस की मरजी के?’’

आज नीलिमा के तेवर देख योगेश की रूह कांप रही थी. बस मन ही मन यही प्रार्थना किए जा रहा था कि वह इस सब से बचा रहे किसी तरह.

‘‘अब तुम्हें क्या हुआ?’’ योगेश के चेहरे पर हवाइयां उड़ते देख नीलिमा कहने लगी, ‘‘हां, पता है मुझे, तुम्हें भी सुन कर बुरा लग रहा होगा, है न? अरे किसी भी शरीफ इंसान को सुन कर बुरा लगेगा, मगर देखो, हम उन्हें क्या समझते थे और क्या निकले?’’ किसी का कुछ कहा नहीं जा सकता,’’ भुनभुनाते हुए नीलिमा किचन की तरफ बढ़ गई.

योगेश धम्म से वहीं सोफे पर बैठ गया. सोचने लगा कि आज जिस तरह से संस्कारी अमन अंकल की थूथू हो रही है, कल उस की बारी न हो. फिर कैसे नजरें मिलाएगा वह अपनी बेटियों से? गुमसुम सा वह आ कर कमरे में बैठ गया. नीलिमा ने पूछा, ‘‘कुछ खाओगे?’’

बच्चे और नीलिमा तो सो गए, उस की आंखें अब भी जाग रही थीं. अचानक उस के दिल में एक शूल सा उठता, फिर शांत हो जाता. कभी वह अपने सो रहे बच्चों को निहारता, तो कभी एकटक नीलिमा को देखता. आज नीलिमा उसे उस की पत्नी नहीं, बल्कि चंडिका का रूप लग रही थी, जो छूते ही भस्म कर देगी. इसलिए वह हौल में जा कर सोफे पर सोने की कोशिश करने लगा, लेकिन वहां भी उसे कहां चैन.

घर का 1-1 सामान जैसे उस के मुंह चिढ़ा रहा हो, हंस रहा हो उस पर और कह रहा हो, ‘‘देख रहे हो, कैसी उलटी गंगा बह रही है? नहीं बच पाओगे तुम भी योगेश बाबू. देरसबेर ही सही, पर कर्मों का फल तो सब को मिलता ही है. तुम्हें भी जरूर मिलेगा. उन की बातें सुन वह घबरा कर उठ बैठता और लंबीलंबी सांसें लेने लगता. डर के मारे हालत खराब हो रही थी उस की, पर बताए तो किसे और क्या? सोच कर ही कंपकंपा उठता कि अगर उस के किए गुनाह सब के सामने आ गए, तब क्या होगा? उस की तो बसीबसाई गृहस्थी ही उजड़ जाएगी.’’

‘नहींनहीं, ऐसा कुछ नहीं होगा. क्यों मैं बेकार की बातें सोच रहा हूं? वह कभी अपना मुंह नहीं खोलेगी और अगर खोल दिया तो? तो मैं उसे झूठा साबित कर दूंगा. कह दूंगा वही मुझ पर डोरे डाल रही थी. जब दाल नहीं गली, तो मुझ पर इलजाम लगा रही है. मगर उस ने कोई सुबूत पेश कर दिया या गवाह खड़ा कर दिया तो, तो क्या होगा? कौन गवाह? किस की  इतनी हिम्मत है कि जो मेरे खिलाफ बोले,’ वह खुद से ही सवालजवाब किए जा रहा था और परेशान हुए जा रहा था. मुक्ता के साथ किए 1-1 अत्याचार आज उस की आंखों के सामने चलचित्र की तरह नाचने लगे.

बात 7-8 साल पहले की है. जिस कंपनी में योगेश बौस था. उसी कंपनी में मुक्ता भी काम करती थी, पर छोटे पद पर. चूंकि योगेश मुक्ता का बौस था, इसलिए उस की मजबूरी थी उस की हर बात को मानना. गोरा रंग, लंबे घने बाल, मोटीमोटी झील सी आंखें और उस का छरहरा बदन देख योगेश उसे देखता ही रह जाता. जिस तरह वह उसे नजरें गड़ाए देखा करता. उस से मुक्ता एकदम असहज हो जाती और अपने कपड़े ठीक करने लगती.

जानती थी वह कि उसे ले कर योगेश के विचार कुछ ठीक नहीं हैं, इसलिए वह अपना काम समय के साथ कर लिया करती ताकि योगेश को उसे कुछ कहने का मौका ही न मिले. फिर भी किसी न किसी बहाने वह उसे अपने कैबिन में बुला ही लेता और घंटों बेमतलब के कामों में उलझाए रखता. जब वह कामों में उलझी रहती, योगेश लगातार अपनी नजरें उस पर ही टिकाए रखता.

आप कितने भी अपने काम में व्यस्त क्यों न हों अगर कोई आप को एकटक निहार रहा हो, तो आप की नजरें खुदबखुद उस ओर चली जाती हैं. ऐसा अकसर होता है. जब मुक्ता की नजर योगेश पर पड़ती, तब भी ढीठ की तरह वह उसे उसी प्रकार निहारता रहता. हार कर मुक्ता ही अपनी नजरें नीची कर लेती या वहां से हट जाती.

मुक्ता को अब योगेश के सामने जाने से भी डर लगने लगा था, क्योंकि जिस तरह से वह उस के सीने पर अपनी नजरें गड़ाए रहता, उस से वह सहम सी जाती. योगेश के डर से ही अब उस ने जींस टीशर्ट और स्लीवलैस कपड़े पहनने छोड़ दिए थे. जानबूझ कर ढीलेढाले कपड़े पहन कर औफिस जाती, ताकि योगेश उसे न देखे, पर उस की गंदी नजरें फिर भी उसे घूरती रहतीं.

कई बार तो वह जानबूझ कर उस से टकरा जाता, फिर भी मुक्ता ही सौरी बोलती. एक बार तो उस ने उस के सीने पर हाथ ही रख दिया और फिर सौरीसौरी कहने लगा, लेकिन योगेश ने ऐसा जानबूझ कर किया, यह बात मुक्ता जानती थी. ऐसा पहली बार नहीं हुआ था. जब भी मौका मिलता, वह मुक्ता को यहांवहां छू देता और बेचारी कुछ न बोल कर आगे बढ़ जाती.

रोना आता उसे अपनी हालत पर. सोचती क्या लड़की होना इतना बड़ा पाप है? शुरू से ही मुक्ता पर उस की गंदी नजर थी. जानता था वह कि यह नौकरी उस के लिए कितना माने रखती है, क्योंकि उस के घर में कमाने वाला उस के सिवा और कोई नहीं था. पिता की असमय मौत ने घरपरिवार की सारी जिम्मेदारी उस के कंधों पर डाल दी थी. इसी कारण वक्तबेवक्त योगेश उस का फायदा उठाता रहता था.

उस दिन जानबूझ कर योगेश ने मुक्ता को देर रात तक औफिस में रोक लिया और कहा कि वह उसे घर छोड़ देगा. औफिस के चपरासी को भी उस ने छुट्टी दे दी. लेकिन मुक्ता जल्दीजल्दी अपना काम निबटा कर वहां से जाने ही लगी कि पीछे से आ कर योगेश ने उसे अपनी बांहों में दबोच लिया और उसे यहांवहां छूने लगा.

‘‘सर, यह क्या कर रहे हैं आप? छोडि़ए मुझे,’’ कह कर मुक्ता ताकत लगा कर उस की पकड़ से निकली ही कि फिर से उस ने उसे दबोचना चाहा, यह बोल कर कि इसी मौके की तो उसे कब से तलाश थी. मगर ऐन वक्त पर वही चपरासी वहां पहुंच गया और मुक्ता बच गई. वरना तो आज योगेश उसे नहीं छोड़ता. शायद वह चपरासी भी योगेश के गंदे इरादे भांप गया था, इसलिए अपना खाने का डब्बा छूट जाने का बहाना कर वापस आ गया और मुक्ता बरबाद होने से बच गई.

उलटी गंगा- भाग 1: योगेश को क्या था डर

‘‘देश में लाखों युवा बेरोजगार घूम रहे हैं. किसान आत्महत्या कर रहे हैं, देश बदहाली की ओर जा रहा है और यहां लोग फालतू की बातों में समय बरबाद कर रहे हैं. अरे, मैं पूछता हूं और कोई काम नहीं बचा है क्या इन औरतों के पास, जो मीटू मीटू का नारा लगाए जा रही हैं. मैं पूछता हूं कि जिस समय इन का शोषण हुआ, तब क्यों नहीं आवाज उठाई, जो अब चिल्ला रही हैं? झूठा प्रचार कर रही हैं, षड्यंत्र रच रहीं पुरुषों के खिलाफ और कुछ नहीं या फिर हो सकता है फेम में रहने के लिए ये मीटू अभियान से जुड़ गई हों. बंद करो टीवी, कुछ नहीं रखा है इन सब में,’’  झल्लाते हुए योगेश ने खुद ही टीवी औफ कर दिया और फिर रिमोट को एक तरफ फेंकते हुए औफिस जाने के लिए तैयार होने लगा.

‘‘अच्छा, ये औरतें बकवास कर रही हैं और तुम सारे मर्द दूध के धुले हो, क्यों?’’ रोटी को तवे पर पटकती हुई नीलिमा कहने लगी, ‘‘हूं, स्वाभाविक भी है जिस समाज में महिला की चुप्पी को उस की शालीनता और गरिमामय व्यक्तित्व का मूलाधार माना जाता रहा हो, वहां शोषण के विरुद्ध उस की आवाज झूठी ही मानी जाएगी?’’ नीलिमा तलखी से बोली.

‘‘मैं ऐसा नहीं कर रहा हूं, पर अब 10-20 या 30 साल पुरानी बातों को कुरेदने का क्या मतलब है बताओ? जब उन के साथ ऐसा कुछ हुआ था तब क्यों नहीं आवाज उठाई थी

जो अब चिल्ला रही हैं, मैं यह कह रहा हूं,’’ शर्ट का बटन लगाते हुए योगेश बोला.

योगेश की बातों पर नीलिमा को हैरानी भी हुई और गुस्सा भी आया. बोली, ‘‘तुम्हें यह चीखनाचिल्लाना लगता है पर मुझे तो इस में एकदम सचाई नजर आ रही है योगेश. दरअसल, गलती सिर्फ मर्दों की ही नहीं, समाज की भी है, जहां प्रताडि़त होने के बाद भी लड़कियों को ही चुप रहने को कहा जाता है.

‘‘अगर औफिस में लड़कियां शोषण के प्रति आवाज उठाती हैं, तो नौकरी चली जाती है और घरेलू महिला ऐसा करे, इतनी उस की हिम्मत कहां. समाज में औरतों को बचपन से ही यह शिक्षा दी जाती है कि वे शर्म का चोला पहन कर रखें. मगर मर्दों के लिए खुली छूट क्यों? महिलाएं क्या पहनें क्या नहीं, यह उन की अपनी मरजी होनी चाहिए न कि दूसरों की. फिर वैसे भी शर्महया देखने वालों की आंखों में होती है योगेश, कपड़ों या आचरण में नही. लेकिन लद गया अब वह जमाना.

‘‘सच कहूं, तो मुझे बड़ी खुशी हो रही है यह देख कर कि भारत के इतिहास में शायद यह पहला अवसर है जब पुरुष भयभीत दिखाई दे रहे हैं कि कहीं उन के वर्षों पूर्व किए गए गुनाह का पिटारा न खुल जाए,’’ गर्व से सिर ऊंचा कर नीलिमा बोली, ‘‘बहुत दे चुकी सीता अग्नि परीक्षा. अब राम की बारी है, क्योंकि स्त्री सिर्फ देह नहीं है, बल्कि उस में सांस और स्पंदन भी है और यह बात अब पुरुष को समझनी पड़ेगी कि औरत का भी अपना वजूद है. वह सिर्फ सहती नहीं, सोचती भी है.’’

नीलिमा की लंबीचौड़ी बातें सुन योगेश का दिमाग भन्ना गया. अत:

झल्लाते हुए बोला, ‘‘बस हो गया… अब क्या भाषण ही देती रहोगी या खाना भी मिलेगा? वैसे भी आज मुझे देर हो गई है.’’

खाने की प्लेट योगेश के सामने रखती हुई नीलिमा बोली, ‘‘वैसे तुम क्यों इतना बौखला रहे हो? कहीं तुम ने भी तो किसी के साथ… डर तो नहीं रहे हो कि कहीं तुम्हारा भी कोई पुराना पाप न खुल जाए?’’

यह सुनते ही रोटी का कौर योगेश के गले में ही अटक गया. फिर किसी तरह हलक से रोटी को नीचे उतारते हुए बोला, ‘‘प… प… पागलों सी बातें क्यों कर रही हो तुम? मुझे क्यों बिना वजह इन सब में घसीट रही हो? करे कोई और भरे कोई…? मुझे तो बख्श दो और दुनिया जानती है कि मैं कैसा इंसान हूं. सफाई देने की कोई जरूरत नहीं है मुझे.’’

‘‘हूं, और दुनिया उन्हें भी जानती है जिन का पिटारा खुला… पता चले कि जनाब ने भी कभी किसी लड़की के साथ… मैं सिर्फ कह रही हूं,’’ खाने का डब्बा योगेश के सामने रखते हुए नीलिमा बोली.

नीलिका की बातों से योगेश तमतमा उठा. मन तो किया उस का कि खाने का डब्बा उठा कर फेंक दे और कहे कि हां, दुनिया के सारे मर्द खराब हैं. सिर्फ औरतें ही पावन पवित्र हैं. मगर उस की इतनी हिम्मत कहां, जो नीलिमा के सामने औरतों के खिलाफ कुछ बोले, क्योंकि आखिर वह महिलाओं की हमदर्द जो ठहरी. किसी शोषित महिला के बारे में कुछ सुना नहीं कि सखियों सहित मोरचा ले कर निकल पड़ती है.

‘‘क्या अब अपने पति पर भी तुम्हें भरोसा नहीं रह गया और क्या मैं तुम्हें इतना गिरा हुआ इंसान लगता हूं जो ऐसी बातें बोल रही हो?’’

नीलिमा को लगा कि कहीं योगेश उस की बातों को दिल से न लगा बैठे, इसलिए खुद को शांत कर बोली, ‘‘अरे, मैं तो बस ऐसे ही बोल रही थी और क्या मैं तुम्हें नहीं जानती… चलो अब निकलो औफिस के लिए वरना कहोगे मैं ने ही देर करवा दी.’’

‘‘हूं, वैसे भी आज मेरी जरूरी मीटिंग है,’’ योगेश ने मुसकराते हुए कहा और फिर हमेशा की तरह बाय कह कर औफिस निकल गया. लेकिन उस के माथे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही थीं. डर तो उसे सताने ही लगा था अपने भविष्य को ले कर. सोच कर ही सिहर उठता कि अगर मीटू की चपेट में वह भी आ गया, तो क्या होगा. नीलिमा तो एक पल भी उसे बरदाश्त नहीं करेगी. और तो और उसे सजा दिलवाने में भी पीछे नहीं रहेगी. अपने बच्चों की नजरों में भी उस की छवि धूमिल पड़ जाएगी सो अलग. कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाएगा. समाज में बनीबनाई इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी.

मीटिंग में भी योगेश बस यही सब सोचता रहा. औफिस के किसी काम में आज उसे मजा नहीं आ रहा था और न ही किसी स्टाफ को वह कुछ काम करने को कह रहा था वरना तो किसी को ठीक से सांस तक नहीं लेने देता. सब के सिर पर सवार रहता.

‘‘क्या बात है यार, आज बौस बड़े चुपचुप लग रहे हैं? न चीखना, न चिल्लाना, बस चुपचाप जा कर कैबिन में बैठ गए. गुडमौर्निंग बोला तो कोई जवाब भी नहीं दिया. कहीं इन पर भी किसी देवी ने मीटू का केस तो नहीं कर दिया?’’ ठहाके लगाते हुए संदीप ने कहा तो उस की बात पर औरों को भी हंसी आ गई.

‘‘सही कह रहा हूं यार वरना तो आते ही हमें घूरने लगते थे, मगर आज नजरें नीची किए किसी गहरी चिंता में डूबे हैं. क्या बात हो सकती है?’’ संदीप फिर बोला.

‘‘हां यार, मुझे तो लगा था डांटने के लिए बुलाया है, पर कहने लगे कि उन्होंने मेरी छुट्टी मंजूर कर दी है,’’ नमन ने कहा, तो वहां बैठे सभी हैरान रह गए. क्योंकि मजाल थी जो किसी को वह बिना नाक रगड़ाए छुट्टी दे दे.

‘‘खैर, जाने दो न हमें क्या. हो गई होगी पत्नी से लड़ाई और क्या,’’ कह कर सभी अपनेअपने काम में लग गए.

भरे मन से जैसे ही योगेश घर पहुंचा, देखा नीलिमा किसी से फोन पर बातें कर रही

थी. जोरजोर से कह रही थी, ‘‘एकदम नहीं छूटना चाहिए वह इंसान. समझता क्या है? भेडि़या कहीं का. बड़ा संस्कारी बना फिरता था, पर चलन तो देखो. नातीपोता वाला हो कर ऐसे कुकर्म और वह भी अपनी बेटी समान लड़की से?’’

‘‘क्या हुआ?’’ धीरे से योगेश ने पूछा,

‘‘आ गए तुम? अभी मैं तुम्हें ही फोन लगाने वाली थी. पता है, वे अमनजी अरे हमारे  पड़ोसी… उन पर किसी लड़की ने हैरेसमैंट का केस किया है. देखो, कितने संस्कारी बने फिरते थे.

‘‘मैं तो कहती हूं ऐसे इंसान का मुंह काला कर चौराहे पर खड़ा कर हजार जूते मारने चाहिए. पता है तुम्हें, उस की पत्नी तो यह बोलबोल कर चिल्लाए जा रही थी कि वह लड़की झूठी है.

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