कैसे बांझपन का कारण बन सकता है गर्भाशय फाइब्रॉयड

अगर गर्भाशय में किसी भी तरह का  सिस्ट या फाइब्रॉएड है तो ऐसी स्थिति में माँ बनना सम्भव नहीं हो पाता . इसके अलावा ओवरी सिंड्रोम, खून की कमी आदि कई ऐसी बीमारियां है जो हमे देखने मे तो छोटी लगती है पर बच्चा पैदा करने के लिए यही सब समस्याएं बहुत बड़ी बन जाती है.

गर्भाशय में विकसित होने वाले गैर-कैंसरकारी (बिनाइन) गर्भाशय फाइब्रॉयड, महिलाओं के बांझपन के सबसे प्रमुख कारणों में से एक हैं. इस बारे में बता रही हैं डॉ रत्‍ना सक्‍सेना, फर्टिलिटी एक्‍सपर्ट, नोवा साउथेंड आईवीएफ एंड फर्टिलिटी, बिजवासन.

गर्भाशय फाइब्रॉयड, फैलोपियन ट्यूब को बाधित करके या निषेचित अंडे को गर्भाशय में प्रत्यारोपित करने से रोककर प्रजनन क्षमता को बिगाड़ सकता है. गर्भाशय में जगह कम होने के कारण, बड़े फाइब्रॉयड भ्रूण को पूरी तरह से विकसित होने से रोक सकते हैं. फाइब्रॉयड प्लेसेंटा के फटने के जोखिम को बढ़ा सकता है क्योंकि प्लेसेंटा फाइब्रॉयड द्वारा अवरुद्ध हो जाता है और गर्भाशय की दीवार से अलग हो जाता है, जिसकी वजह से भ्रूण को ऑक्सीजन और पोषक तत्व कम मात्रा में मिलते हैं. इससे, समय से पहले जन्म या गर्भपात की संभावना काफी बढ़ जाती है.

गर्भाशय फाइब्रॉयड, गर्भाशय की मांसपेशियों के ऊतकों के बिनाइन (गैर-कैंसरकारी) ट्यूमर हैं. उन्हें मायोमा या लेयोमायोमा के रूप में भी जाना जाता है. फाइब्रॉयड तब बनते हैं जब गर्भाशय की दीवार में एकल पेशी कोशिका कई गुना बढ़ जाती है और एक गैर-कैंसरयुक्त ट्यूमर में बदल जाती है.

फाइब्रॉयड छोटे दाने के आकार से लेकर बड़े आकार के हो सकते हैं, जो गर्भाशय को विकृत और बड़ा करते हैं. फाइब्रॉयड का स्थान, आकार और संख्या निर्धारित करती है कि क्या वे लक्षण पैदा करेंगे या इलाज कराने की जरूरत है.

गर्भाशय फाइब्रायॅड, उनके स्थान के आधार पर वर्गीकृत किये जाते हैं. फाइब्रॉयड को तीन बड़ी श्रेणियों में विभाजित गया है:

1-सबसेरोसल फाइब्रॉयड:

यह गर्भाशय की दीवार के बाहरी हिस्से में विकसित होता है. इस तरह के फाइब्रॉयड ट्यूमर बाहरी हिस्से में विकसित हो सकते हैं और आकार में बढ़ सकते हैं. सबसेरोसल फाइब्रॉयड, ट्यूमर आस-पास के अंगों पर दबाव बढ़ाने लगता है, जिसकी वजह से पेडू (पेल्विक) का दर्द शुरूआती लक्षण के रूप में सामने आता है.

2-इंट्राम्यूरल फाइब्रॉयड:

इंट्राम्यूरल फाइब्रॉयड गर्भाशय की दीवार के अंदर विकसित होता है और वहां बढ़ता है. जब इंट्राम्यूरल फाइब्रॉयड का आकार बढ़ता है तो उसकी वजह से गर्भाशय का आकार सामान्य से ज्यादा हो जाता है. जैसे-जैसे इन फाइब्रॉयड्स का आकार बढ़ता है, उसकी वजह से माहवारी में रक्तस्राव ज्यादा होता है, पेडू (पेल्विक) में दर्द और बार-बार पेशाब जाने की समस्या हो जाती है.

3-सबम्यूकोसल फाइब्रॉयड:

ये फाइब्रॉयड गर्भाशय गुहा की परत के ठीक नीचे बनते हैं. बड़े आकार के सबम्यूकोसल फाइब्रॉयड, गर्भाशय गुहा के आकार को बढ़ा सकता है और फेलोपियन ट्यूब को अवरुद्ध कर सकता है, जिसकी वजह से प्रजनन में समस्याएं होने लगती हैं. इससे जुड़े लक्षणों में शामिल है, माहवारी में अत्यधिक मात्रा में रक्तस्राव और लंबे समय तक माहवारी आना.

कैसे पहचान करें-

पेडू की जांच, लैब टेस्ट और इमेजिंग टेस्ट के जरिये गर्भाशय फाइब्रॉयड का पता लगाया जाता है. इमेजिंग टेस्ट का इस्तेमाल, गर्भाशय की असामान्यताओं का पता लगाने के लिये किया जाता है. इसमें पेट का अल्ट्रासाउंड, योनि का अल्ट्रासाउंड और हिस्टेरोस्कोपी शामिल होती है. हिस्टेरोस्कोपी के दौरान हिस्टेरोस्कोप नाम की एक छोटी, हल्की दूरबीन को सर्विक्स के जरिये गर्भाशय में डाला जाता है. स्लाइन इंजेक्शन के बाद, गर्भाशय गुहा फैल जाएगी, जिससे स्त्रीरोग विशेषज्ञ गर्भाशय की दीवारों और फेलोपियन ट्यूब के मुख की जांच कर पाती हैं. कुछ मामलों में एमआरआई जैसे इमेजिंग टूल्स की जरूरत पड़ सकती है.

उपचार

गर्भाशय फाइब्रॉयड की दवाएं,उन हॉर्मोन्स को लक्षित करती हैं जोकि मासिक चक्र को नियंत्रित करता है, ताकि माहवारी के अत्यधिक रक्तस्राव जैसे लक्षण का उपचार किया जा सके. वैसे तो दवाएं, फाइब्रॉयड को हटा नहीं पातीं, लेकिन उन्हें छोटा कर देती हैं. फाइब्रॉयड्स को हटाने की सर्जरी में पारंपरिक सर्जरी की प्रक्रिया और कम से कम चीर-फाड़ वाली सर्जरी शामिल होती है. “लेप्रोस्कोपिक गाइनकोलॉजिक सर्जरी” जैसी सर्जरी न्यूनतम चीर-फाड़ वाली प्रक्रियाएं होती हैं, जिन्हें बिना ओपन कट किए, गर्भाशय फाइब्रॉयड को सावधानीपूर्वक निकालने के लिये किया जाता है. कैमरे के साथ एक छोटी-सी ट्यूब वाले लेप्रोस्कोप जैसे सर्जरी के उपकरणों को डालने के लिये एक छोटा-सा चीरा लगाया जाता है. इससे स्त्रीरोग विशेषज्ञ को मॉनिटरिंग स्क्रीन पर गाइनेकोलॉजिक अंगों को हर तरफ से देखने में मदद मिलती है. छोटा-सा चीरा लगाकर लेप्रोस्कोपिक सर्जरी करने से दर्द कम होता है और सुरक्षा बढ़ती है, साथ ही साथ ऑपरेशन के बाद की समस्याएं जैसे संक्रमण का दर कम होता है, खून कम बहता है और कम से कम फाइब्रोसिस का निर्माण होता है. सर्जरी के बाद, रोगियों को गर्भधारण के बारे में सोचने से पहले कम से कम एक महीने तक गर्भनिरोधक गोलियां लेने की सलाह दी जाती है.

गर्भाशय फाइब्रॉयड, उच्च एस्ट्रोजन स्तर, गर्भाशय संकुचन, और ओव्यूलेशन डिसफंक्शन जैसी असामान्यताओं का कारण बनता है. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि फाइब्रॉयड फैलोपियन ट्यूब को अवरुद्ध करके और निषेचित अंडे को गर्भाशय में प्रत्यारोपित करने से रोककर प्रजनन क्षमता को बिगाड़ सकता है. इसलिये, फाइब्रॉयड को खत्म करने के लिये उचित और समय पर उपचार महत्वपूर्ण है.

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