Summer Special: Tasseled ड्रेस से लेकर प्रिंटेड साड़ी में छाया उतरन एक्ट्रेस का जलवा

सीरियल उतरन फेम एक्ट्रेस टीना दत्ता (Tina Dutta) सोशलमीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं, जिसमें वह अपने लुक्स की फोटोज फैंस के साथ शेयर करती रहती हैं. वहीं उनके फैंस को लुक्स काफी पसंद आते हैं. इसी बीच टीना दत्ता ने अपने इंडियन से लेकर वेस्टर्न, लुक्स शेयर किए हैं, जिसे समर में आप ट्राय कर सकती हैं. आइए आपको दिखाते हैं टीना दत्ता (Tina Dutta) के लेटेस्ट वायरल फोटोज…

ब्लैक ड्रैस में बिखेरे जलवे

उतरन एक्ट्रेस टीना दत्ता (Tina Dutta) ने ब्लैक tasseled ड्रेस में अपनी कुछ फोटोज शेयर की हैं, जिसमें उनका लुक हौट लग रहा है. वहीं कुछ लोग उनके इस लुक को कैटरीना कैफ की ड्रेस से कौपी किया हुआ बता रहे हैं. स्ट्रैपलेस ब्लैक ड्रेस में के साथ टीना का पोनीटेल हेयरस्टाइल फैंस को काफी पसंद आ रहा है.

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समर पार्टी के लिए लुक है परफेक्ट

ब्लैक ड्रैस के अलावा टीना दत्ता ने अपनी कुछ और फोटोज शेयर की हैं, जिनमें उनका लुक काफी ट्रैंडी नजर आ रहे हैं. वहीं टीना का ये समर पार्टी लुक फैंस को काफी पसंद आ रहा है. वाइट प्लेन स्कर्ट के साथ शिमरी औफ शोल्डर फिटिंग टौप टीना के लुक को पार्टी स्पैशल बना रहा है. वहीं इस लुक के साथ हील्स टीना के लुक को कम्पलीट कर रही हैं.

फैमिली फंक्शन के लिए है लुक करें ट्राय

ड्रैसेस के अलावा टीना ने अपनी साड़ी के साथ भी कुछ फोटोज शेयर की हैं, जिनमें प्रिंटेड साड़ी फैंस का ध्यान खींच रही हैं. प्रिंटेड साड़ी के साथ चोकर नेकलेस टीना दत्ता के लुक को कम्पलीट कर रहा है. इसके साथ कर्ल किए हुए हेयर में टीना बेहद खूबसूरत और एलीगेंट लग रही हैं. फैंस को उनका ये लुक काफी पसंद आ रहा है, जिसके चलते सोशलमीडिया पर उनकी तारीफें हो रही हैं.

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Short Story: उतरन- पुनर्विवाह के बाद क्या हुआ रूपा के साथ?

लेखिका- कात्यायनी सिंह

रहरहकर उस का दिल धड़क रहा था. मन में उठते कई सवाल उस के सिर पर हथौड़े की तरह चोट कर रहे थे. यह क्या हो गया? भूल किस से हुई? या भूल हुई भी तो क्यों हुई? मन में उभरते इन सवालों का दंश झेल पाना मुश्किल हो रहा था. अभी बेटी के होस्टल में पहुंचने में तकरीबन 3 घंटे का समय था. बस का झेलाऊ सफर और उस पर होस्टल से किया गया फोन कि आप की बेटी ने आत्महत्या करने की कोशिश की है…

अपने अंदर झांकने की हिम्मत नहीं हुई. स्मृति पटल पर जमी कई परतें, परत दर परत सामने आने और ओझल होने लगीं. दिल बैठा जा रहा था. अवसाद गहरा होता जा रहा था. तन का बोझ भी सहना मुश्किल और आंखों से बहती अविरल धारा…

वह खिड़की के सहारे आंखें मूंदे, दिल

और दिमाग को शांत करने की कोशिश करने लगी. पर एकएक स्मृति आंखों में चहलकदमी करती हुई सजीव होने लगी. वह घबरा कर खिड़की से बाहर देखने लगी. आंखों की कोरों पर बांधा गया बांध एकाएक टूट कर प्रचंड धारा बन गया. यों तो जिंदगी करवट लेती है, पर इस तरह की उस का पूरा वजूद दूसरी शादी के नाम पर स्वाह हो जाए. क्योंकि उस ने दूसरी शादी? क्या मिला उसे? स्वतंत्र वजूद की चाहत भी तो अस्तित्वहीन हो गई?

पर समाज का तो एक अलग ही नजरिया होता है. तलाकशुदा स्त्री को देख लोगों की

आंखों में हिकारत का कांटा चुभ सा जाता है. और उस कांटे को निकालने के लिए ही तो रूपा ने दूसरी शादी की.

पहली शादी और तलाक को याद कर मन कसैला नहीं करना चाहती

अब. पर न चाहने से क्या होता है. तलाक के 10 साल पहले ही बेटी उस की गोद में आ चुकी थी. शादी के 2 दिन बाद ही सपने बिखरने की आहट सुनाई देने लगी थी. सुनहरे दिन और सपनों में नहाई रात, सब इतनी भयावह कैसे हो गई? वह आज तक समझ नहीं पाई.

हर रोज की मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना उसे जिंदगी से बेजार करने लगी थी और उस के नीचे कराहता उमंगों भरा मन. पहलेपहल भरपूर विरोध किया रूपा ने. पर दिन, महीने और 7 साल बीतते चले गए और उस का धैर्य क्षीण होता रहा. पर एक दिन… उसी विरोध के महीन परतों के नीचे ज्वालामुखी के असंख्य कण फूट पड़े. और अंतत: उसे तलाक की पहल भी करनी पड़ गई…

2 साल लगे इस अनचाही पीड़ादायी परिस्थिति से नजात पाने में. तलाक के बाद बेटी को साथ ले कर वो एक अनजान सफर पर निकल गई. मंजिल उस को पता नहीं थी. इस असमंजस की स्थिति के बावजूद वह तनावमुक्त महसूस कर रही थी खुद को. आखिर

2 सालों के संघर्ष ने नारकीय जीवन से मुक्ति जो दिलाई थी. कुदरत ने मेहरबानी दिखाई और 1 हफ्ते में ही रेडियो स्टेशन में नौकरी लग जाने के कारण

उसे कोई आर्थिक तंगी का एहसास नहीं हुआ. और फिर मायके का सहारा भी संबल बना.

उगते सूरज की लालिमा उस के गालों पर उतरने लगती थी, जब रेडियो स्टेशन में उसे एक पुरुष प्यार से देखता था. अच्छा लगता था उसे यों किसी का देखना. 2 वर्ष का अकेलापन ही था, जो अनजान पुरुष को देख कर पिघलने लगा.

पिछली यादों में तड़पता उस का मन कहता कि मुझे इस सुख की आशा नहीं करनी चाहिए अब. मेरे हिस्से में कहां है सुख… और अजीब सी उदासी मन को उद्वेलित करने लगती.

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उफ्फ, यह अचानक आज मुझे क्या हो रहा है? 2 सालों के अकेलेपन में कभी भी इस तरह का खयाल नहीं आया. अकेलापन, उदासी, सबकुछ अपनी बेटी की मुसकान तले दब चुकी थी. फिर आज क्यों? जबकि उस ने तलाक के बाद किसी भी पुरुष को अपने दायरे के बाहर ही रखा. अंदर आने की इजाजत नहीं दी किसी को. पर आज इस पुरुष को देख कर क्यों तपते रेगिस्तान में बारिश की बूंदों जैसा महसूस हो रहा है.

‘क्या ये कोई स्वप्न है या फिर पिछले जन्म का साथ. क्यों मेरी नजरें बारबार उस की ओर उठ रही हैं? क्यों वह उसे अनदेखा नहीं कर पा रही है? मन में एक सवाल- क्या कुदरत को कुछ और खेल खेलना है? इसी उधेड़बुन में शाम हो गई,’ उस ने अपने बैग को कंधे पर लटकाया और बाहर निकल आई.

पूस की सर्दी में भी उस के माथे पर पसीने की बूंदें झिलमिला रही थीं. चेहरे पर शर्म भरी मुसकराहट खिल उठी. तो क्या उसे प्यार हो गया है? एकाएक उस की मुद्रा ने गंभीरता का आवरण ओढ़ लिया. सोचने लगी, ‘उस का मकसद तो सिर्फ और सिर्फ अपनी बेटी का भविष्य बनाना है. नहींनहीं, वह इन फालतू के बातों में नहीं पड़ेगी.’

तभी उसे एक आवाज ने चौंका दिया, ‘‘चलिए मैं आप को घर छोड़ देता हूं. कब तक यहां खड़ी रह कर रिकशे का इंतजार करेंगी. अंधेरा भी तो गहरा रहा है.’’

पलट कर देखा तो वही पुरुष था, जो उस के दिलोदिमाग पर छाया हुआ था. वैसे अंधेरे की आशंका तो उस के मन में भी थी. वह बिना कुछ जवाब दिए उस की कार में बैठ गई. मध्यम स्वर में गाना बज रहा था-

धीरेधीरे से मेरी जिंदगी में आना

धीरेधीरे से दिल को चुराना…

वह चुपचाप बैठ बाहर के अंधेरे में झांकने की असफल कोशिश रही थी. तभी उस ने हंस कर पूछा, ‘‘अंधेरे से लड़ रही हैं या मुझे अनदेखा कर रही हैं?’’

वह भी मुसकरा दी, ‘‘अपने वजूद को तलाश रही हूं. आप घुसपैठिए की तरह

जबरदस्ती घुस आए हैं, इसी समस्या के निवारण में जुटी हूं.’’

खिलखिला कर हंस पड़ा वह. लगा जैसे चारों तरफ हरियाली बिखर गई हो. इन्हीं बातों के दरमियान घर आ गया और वह बिना कुछ कहे गाड़ी से उतर कर जाने लगी. तभी उस ने विनती भरे स्वर में उस का मोबाइल नंबर मांगा. पहले तो वह झिझकी, लेकिन फिर कुछ सोच कर नंबर दे दिया.

दिन बीतने के साथ बातों का और फिर मिलने का सिलसिला शुरू हो गया. वह नहीं चाहती थी कि रचित हर शाम उस से मिलने आए. क्योंकि एक तो बदनामी का डर और दूसरी तरफ बेटी जिस की नजरों का सामना करना मुश्किल होता. मन की आशंकाएं उसे परेशान करती कि उस के जानने के बाद, क्या वह बेझिझक उस के सामने जा पाएगी? पर दफ्तर के बाद का खाली समय उसे काटने दौड़ता. झिझक और असमंजस के बीच वह मिलने का समय होते ही उस के आने की राह भी देखती.

तेरे वादों पर हम एतबार कर बैठे

ये क्या कर बैठे, हाय क्या कर बैठे

एक बार मुसकरा कर देख क्या लिए

सारी जिंदगी हम तेरे नाम कर बैठे…

सपनों के साये तले रात और दिन बीतते रहे. समय पंख लगा कर उड़ रहा

था. पर उस के दिमाग में रहरह कर यही सवाल कौंधता कि कौनकौन होगा उस के घर में… सोचती… पूछूं या नहीं?

परएक दिन उस ने पूछ ही लिया, ‘‘रचित, हम एकदूसरे के इतने करीब आ गए हैं, पर अभी तक मैं तुम्हारे बारे में कुछ नहीं जानती. अपने परिवार के बारे में कुछ बताओ न?’’

‘‘क्या जानना चाहती हो? यही न कि मैं शादीशुदा हूं या नहीं, बच्चे हैं या नहीं…? हां बच्चे हैं. पर शादीशुदा होते हुए भी मैं अकेला हूं, क्योंकि पत्नी अब इस दुनिया में नहीं है. मेरे साथ मेरी मां और मेरा बेटा रहता है.’’

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रूपा ने आंखें बंद कर लीं. यह सुख का क्षण था. सपने अभी जिंदा हैं… कुछ देर की मौन के बाद रचित ने पूछा, ‘‘क्या तुम मुझ से शादी करोगी?’’

‘‘क्या तुम्हें पता है कि मेरी भी एक बेटी है? मैं एक तलाकशुदा हूं. क्या तुम्हारी फैमिली मुझे और मेरी बेटी को स्वीकार करेगी? सपनों की दुनिया बहुत कोमल होती है रचित. पर वास्तविकता का धरातल बहुत कठोर. अच्छी तरह सोच लो. फिर कोई निर्णय लेना,’’ इतना कहती गई, पर मन के किसी कोने में कुछ नया जन्म लेती महसूस कर रही थी रूपा.

कुछ तेरी कहानी है, कुछ मेरी कहानी है

हर बात खयाली है, हर बात रूहानी है

मिल जाए कभी जो हम, तो हर बात सुहानी है…

रूपा के गोरे से मुखड़े पर अठखेलियां करती लटों को हाथों हटाते हुए रचित ने उस के गालों को अपनी हथेलियों में समेट लिया और उस की मदभरी आंखों में झांकते हुए कहा, ‘‘मैं अब तुम्हारे बगैर नहीं रह सकता रूपा. मैं सब ठीक कर दूंगा. बस तुम हां कर दो.’’

महीनों से चल रही मुलाकातों की फुहारें रूपा को आश्वासन की मधुर चासनी में सराबोर कर चुकी थीं. वह अपनेआप से अजनबी होती जा रही थी. कभी तो मन मचलता कि बारिश की बूंदों को अपनी हथेली में समेट ले. और कभी समंदर की लहरों के साथ विलीन हो जाने की विकलता. भावनाएं तूफान की तरह प्रचंड, उद्वेलित अंतर्मन की छटपटाहट ने आंखों में पानी का उबाल ला दिया. सामान्य गति से बीतते वक्त की चाल बहुत धीमी लग रही थी रूपा को, और सांसें धौंकनी की तरह तेज.

सांसों में बसे हो तुम

आंखों में बसे हो तुम

छूओ तो मुझे एकबार

धड़कन में बसे हो तुम…

समय गुजरते देर नहीं लगती. दोनों ने शादी कर ली. हालांकि रचित की मां बहुत मानमनुहार के बाद राजी हुई थीं और इस शर्त पर कि रूपा की बेटी कभी इस घर में नहीं आएगी. रूपा को बहुत बड़ा झटका लगा था. एक बार फिर से पुराने घावों का दर्द हरा हो गया था.

अचानक ही आए इस झंझावात ने रूपा के सपनों को चकनाचूर कर दिया. विचलित सी वह सन्न रह गई. पर रचित ने यह समझा कर शांत कर दिया कि वक्त के साथ सब बदल जाते हैं. मां को हम दोनों मिल कर मना लेंगे. रूपा ने गहरी सांस ली. उस ने बड़ी मुश्किल से दिल को समझाया, होस्टल से तो बच्ची महफूज है ही. जब मन करेगा जा कर उस से मिल लूंगी. सुखद भविष्य की कामना लिए रूपा को क्या पता था कि नियति क्याक्या रंग दिखाने वाली है.

डूबता हुआ सुर्ख लाल सूरज उसे माथे की बिंदिया सी लग रही थी. एक बार फिर से सब भूल कर उस ने रचित के प्यार भरोसा कर लिया. सुख की अनुभूतियां वक्त का पता ही नहीं चलने देती. सपनों के हिंडोले में झूलते 10 दिन कैसे बीत गए, पता ही नहीं चला.

‘‘कल घर लौटने का दिन है रूपा,’’ रचित ने उस की आंखों में झांकते हुए कहा.

‘‘प्यार ने हम दोनों को बांध रखा है, वरना हम तो नदी के दो किनारे थे.’’

रूपा आसमान की ओर देखती हुई बुदबुदाई.

रचित उस की आंखों में देखता कुछ पढ़ने की कोशिश करता रहा. फिर उस ने मन में अंदर चल रहे द्वंद्व को परे झटक कर रूपा की खूबसूरती को निहारने लगा. पलभर के लिए तो लगा कि काश, यह वक्त यही ठहर जाता. पर वक्त भी कभी ठहरता है भला.

साथ तुम्हारे चल कर यह अहसास हुआ

दरमियां हमारे सिर्फ प्यार, और कुछ नहीं…

अंधेरा चढ़ता गया और दोनों महकते एहसास के साथ सपनों सरीखे पलों की नशीली मादकता में विलीन. थकान से चूर कब दोनों की आगोश में समा गए, महसूस भी न हुआ. सुबह का सूरज नया दिन ले कर हाजिर हो गया. जल्दीजल्दी तैयार हो कर दोनों गाड़ी में बैठ गए और चल दिए घर की ओर.

घर पहुंचते ही सब से पहला सामना रचित के बेटे प्रथम से हुआ. उस की नजरें क्रोध और हिकारत से भरी हुई थीं. दोनों को देखते ही वह अंदर के कमरे में चला गया. रूपा के चेहरे पर सोच की लकीरें उभर आईं. तो क्या प्रथम की रजामंदी के बगैर शादी हुई है? जबकि मैं ने तो अपनी बेटी को बताया था कि रचित की मम्मी शादी के लिए तैयार हैं, पर शर्त रखी है कि तुम मेरे साथ उन लोगों के साथ नहीं रहोगी. ये सुन कर भी मेरी बेटी ने तो नाराजगी नहीं जताई. बल्कि उम्मीद से कहीं आगे बढ़ कर बोली, ‘‘मां, अभी भी तो हम साथ नहीं रहते. तुम मुझ से मिलने होस्टल तो वैसे भी आती रहती हो.’’

बच्ची को याद कर के रूपा की आंखें भर आईं. धीरेधीरे खुद को सामान्य कर सास के पास गई. लेकिन सास की बेरुखी ने तो दिल ही बैठा दिया. एक बार फिर से रूपा ने दिल को बहलाया. कोई बात नहीं. रचित तो समझता है न मुझे. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा.

रूपा एक सपना देख रही है. वह है, उस की बच्ची है, रचित और प्रथम है. एक बहुत ही प्यारा सा, रंगीन सा प्रथम और बच्ची गोद में सोई है. रचित और मां उस के बगल में बैठे हैं. सभी बहुत खुश हैं.

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अचानक नींद से जग जाती है रूपा. चारों तरफ देखती है…

ऐसा सपना, जिस का जाग्रत अवस्था से कोई संबंध नहीं. लेकिन सपने की खुशी उस के चेहरे पर झलक आती है. कभी न कभी यह सपना भी सच होगा, जरूर होगा.

देखती है पलट कर रचित को. नींद में बच्चों सा मासूम, प्यार से अपने गुलाबी होंठ उस के माथे पर टिका देती है. रचित के माथे पर भावनाओं का गुलाबी अंकन देख कर खुद शरमा भी जाती है रूपा. फिर उठ कर चल देती है किचन की ओर. नजदीक पहुंचते ही बरतनों की आवाज सुन कर चौंक गई. अंदर घुसते ही देखती है कि रचित की मां नाश्ता बना रही हैं.

‘‘मां, मैं बना देती हूं न…’’ सुनते ही सास किचन से बाहर निकल गई. सब समझते हुए भी रूपा ने खुद को संयत रख कर बाकी काम निबटाया और नाश्ता ले कर प्रथम के कमरे में दाखिल हुई. बेखबर सो रहे प्रथम को कुछ देर अपलक देखती रही. फिर बड़े प्यार से धीरेधीरे बाल सहलाते हुए बोली, ‘‘उठो प्रथम बेटा, स्कूल नहीं जाना क्या आज?’’ रूपा की आवाज कानों में पड़ते ही वह घबरा कर जाग गया और अजीब सी नजरों से घूरने लगा. पता नहीं क्यों इतना असहज कर रहा था उस का इस तरह घूरना? नफरत ऐसी कि आंखों में अंगारे दहक रहे हों.

‘‘आप फिर से मेरे कमरे में आ गईं? एक बात हमेशा याद रखिए कि आप सिर्फ पापा की पत्नी हैं, मेरी मम्मी नहीं. मेरी मम्मी की जगह कोई नहीं ले सकता. कोई भी नहीं.’’

स्तब्ध रह गई थी रूपा. रात का सुनहरा सपना ताश के पत्तों की तरह बिखरता नजर आ रहा था उसे. लगभग दौड़ती हुई वह कमरे से बाहर निकल गई.

ऊपर से सब कुछ सामान्य दिख रहा था, पर समय के साथ रचित में भी बदलाव आने लगा. दिनभर औफिस और घर के काम से थक कर चूर हो जाने के बावजूद रात में बिस्तर पर नींद का नामोनिशान तक नहीं. रचित से भी वो अब कुछ नहीं कहती. बस अपनी एक बात उसे अचंभित कर जाती थी. जिस घुटन और प्रताड़ना के विरुद्ध वह महीनों लड़ी, वह घुटन और प्रताड़ना अब उसे उतना विचलित नहीं करती थी. समय और उम्र समझौता करना सिखा देता है शायद.

आज सुबह से मन उद्विग्न हो रहा था बारबार. रहरह कर दिल में एक अजीब सी टीस महसूस हो रही थी. जैसेतैसे काम खत्म कर के चाय पीने बैठी ही थी कि दीया के होस्टल से फोन आ गया. चकोर को चांद मिल जाने खुशी मिल गई हो जैसे.

लेकिन यह क्या, मोबाइल से बात करते हुए उस के चेहरे पर दर्द का प्रहार महसूस कर सकता था कोई भी. कुछ देर के लिए तो वह मोबाइल लिए हतप्रभ सी बैठी रही. फिर अचानक बदहवास सी उठी और निकल गई बस स्टैंड की ओर.

होस्टल के गेट पर पहुंची तो काफी भीड़ दिखी. अनहोनी की आशंका उस के दिलोदिमाग को आतंकित करने लगी. अंदर जा कर देखा तो बेटी को जमीन पर लिटाया गया था. बेसब्री के साथ पास में बैठ गई और बड़े प्यार से पुकारी,

‘‘दीया बेटे.’’

कोई जवाब नहीं…

शरीर पकड़ कर हिलाया.

रूपा को तो जैसे करंट लग गया हो. इतना ठंडा और अकड़ा हुआ क्यों लग रहा है दीया का बदन. तो क्या?

नहीं…

ऐसा कैसे हो सकता है?

क्यों…?

किंतु अशांत धड़कता दिल आश्वस्त नहीं हो पा रहा था. वह निर्निमेष भाव से अपनी प्यारी परी को देखे जा रही थी. वही मोहक चेहरा…

तभी किसी ने उस के हाथों में एक कागज का टुकड़ा थमा दिया. यह कह कर कि आप की बेटी ने आप के नाम पत्र लिखा है.

डबडबाई आंखों से पत्र पढ़ने लगी-

‘दुनिया की सब से प्यारी ममा…’

आप को खूब सारा प्यार

आप को खूब सारी खुशियां मिले. सौरी ममा, मैं आप से मिले बगैर जा रही हूं. ये दुनिया बहुत खराब है ममा. तुम्हारे तलाक और शादी को ले कर बहुत गंदीगंदी बातें करते थे स्कूल के स्टूडैंट्स. कहते थे तेरी मां… छोड़ न मां.

मैं जानती हूं तुम्हारे बारे में.

लेकिन मां, मैं तंग आ गई थी उन के तानों से.

तुझ से नहीं बताया कि तू इतनी खुश है, परेशान हो जाओगी ये सब जान कर. मां, अब मुझे कोई परेशान नहीं करेगा. और तुम भी शांति से रह पाओगी.

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हमेशा खुश रहना मां.

‘-तुम्हारी परी दीया.’

वह अपनेआप को रोक नहीं पाई. अचेत हो कर लुढ़क गई रूपा. पर उस अर्ध चेतनावस्था में भी वह मंदमंद मुसकरा रही थी.

वह अचानक उठ कर बैठ गई और खूब जोर से हंस पड़ी. उसे लगा वह तो न नए पति और उस के बच्चे की बन पाई न ही अपनी वाली को संभाल पाई. मां बनने की इतनी बड़ी कीमत देनी होगी इस का अंदाजा नहीं था.

दिल चिथड़े कर डालने वाली हंसी…

अगला दिन…

दुनिया के लिए एक सामान्य दिन जैसा ही सवेरा था.

सिवाय रूपा के…

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