जब सैंया भए कोतवाल

यदि राजघराने का युवा खौलता खून एक राजा के मुख्यमंत्री के हैलीकौप्टर में जीप से टक्कर मार दे तो उस देश में क्या होता है? उस युवक को पकड़ा नहीं जाएगा, उस की भी हत्या ही कर दी जाएगी.

1985 में राजस्थान के मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर के हैलीकौप्टर को भरतपुर के राजा किशन सिंह के बेटे मान सिंह ने अपने 2 साथियों के साथ किसी विवाद में टक्कर मार दी तो मुख्यमंत्री ने राजाओं की तरह उसे सजा के तौर पर मारने का हुक्म दे दिया.

एक पुलिस एनकाउंटर में पुलिसकर्मियों ने मान सिंह व उस के 2 साथियों को ऐसे ही मार डाला जैसे कानपुर के विकास दुबे को मारा गया था. दिखावे के लिए पुलिस पर मुकदमा चला पर पहली अदालत का फैसला 35 साल बाद आया है. तब के डिप्टी पुलिस सुपरिंटैंडैंट कान सिंह भाटी को आजीवन कैद की सजा सुनाई गई है. 10 और को भी सजा मिली है.

तो क्या ये अब जेल जाएंगे? हरगिज नहीं, अभी तो उच्च न्यायालय बाकी है. वह 5-7 साल लेगा. फिर सुप्रीम कोर्ट है. वह8-10 साल लेगा. कान सिंह भाटी अब 82 साल के हैं. जब तक मामला अंतिम चरण में पहुंचेगा लगभग सभी गुनहगार बिना सजा काटे मर चुके होंगे. न्याय कहां है, यह आप ढूंढ़ते रहें.

अगर देश में गुंडों का राज चलता है तो इसलिए कि वे गुंडे असल में पुलिस की वरदी के बिना जैसा व्यवहार करते हैं. वे जानते हैं कि पुलिस उन का कुछ नहीं बिगाड़ेगी जैसेकि कानून पुलिस का कुछ नहीं बिगाड़ पाता.

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साधारण नागरिकों को जेलों ठूंस देने वाली अदालतें जमानतें देने में भी ढेरों आनाकानियां करती हैं. आमतौर पर हमारे यहां मजिस्ट्रेट की पहली अदालत पुलिस विभाग का काम करती है. पुलिस ने कहा कि जमानत न दो तो जमानत नहीं मिलेगी. यदाकदा उच्च न्यायालयव सर्वोच्च न्यायालय यह उपदेशदेते रहते हैं कि बेल नौट जेल भारत के कानून का मूल तत्त्व है पर सैकड़ों औरतें जो बहू प्रताड़ता से कर वेश्यावृत्ति के नाम पर जेलों में बंद हैं और 3-4 सालों तक उन के मुकदमे तक शुरू नहीं होते, गवाह हैं कि यहां तो राजा का हुक्म चलता है, प्रजा या कानून का नहीं.

शिवचरण माथुर मुख्यमंत्री के हैलीकौप्टर में टक्कर मार देना कोई हंसीठट्ठा नहीं है पर फिल्मी तर्ज पर उस अपराधी को गोलियोंसे भून देना भी सही नहीं है. जनता आमतौर पर भय के कारण इस तरह के पुलिस एनकाउंटरों में चुप रहती है तो काफी लोग पुलिस को सही मानते हैं. वे हर बात पर कहते हैं कि अपराधी को तो देखते ही गोली मार देनी चाहिए बिना यह सोचेसमझे कि कौन अपराधी है. यह भी तो अदालत ही तय करेगी न. जब आप पुलिस पर ही सबकुछ छोड़ दोगे तो विकास दुबे जैसे कांड होंगे ही.ये रोज होते हैं, हर जगह होते हैं और देश को अराजकता की देते हैं. इसी का शिकार औरतेंलड़कियां होती हैं, क्योंकि जिन गुंडों के सैंया कोतवाल होते हैं उन का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता.

गाजियाबाद में एक पत्रकार विकास जोशी की एनकाउंटर की तरह ही गोली मार कर बेटी के सामने हत्या कर दी गई, क्योंकि ने अपनी भतीजी को छेड़े जाने पर पुलिस में एफआईआर दर्ज कराने की कोशिश की थी. गुंडों और पुलिस की मिलीभगत ऐसी ही थी जैसी मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर और डिप्टी सुपरिंटैंडैंट भाटी की 1985 में. हम से जो टकराएगा हम उसे चूरचूर कर देंगे. भारतपुलिस, शासक और गुंडे यह साफ संदेश दे रहे हैं. अगर आप भजनकीर्तन में यह संदेश सुनाई नहीं दे रहा है तो गलती आप की ही है.

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