#coronavirus: रोजाना 90 लाख वैक्सीन देने का दावा कितना सही?

भारत ने हाल ही में 21 जून को देश में 90 लाख से ज्यादा लोगों को कोविड वैक्सीन डोज देने का ‘वर्ल्ड रिकॉर्ड’ बनाया था. जिसको लेकर केंद्र सरकार अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनने को लेकर कोई कसर नहीं छोड़ी थी. 21 जून के बाद कोई भी दिन ऐसा नहीं था जिस दिन इतनी तो क्या इसके आसपास भी वैक्सीनेशन नहीं हो पाया है, जिसको लेकर अब सरकार की तरफ से कोई बयान नहीं आ रहा है. 21 जून से केंद्र ने वैक्सीन की खरीद खुद से करनी शुरू की थी और ऐसे-ऐसे राज्यों में वैक्सीनेशन का रिकॉर्ड बना, जहां दो-तीन दिन पहले तक कुछ हजार डेली वैक्सीनेशन भी ठीक से नहीं हो पा रहे थे.

अब ये बात गौर करने वाली है कि क्या देश के पास सिर्फ 21 जून के लिए वैक्सीन स्टॉक था? पिछले चार दिनों में वैक्सीनेशन 17 लाख तक गिर चुका है. ऐसे में क्या फिर हम वैक्सीन कमी से जूझ रहे हैं?

वैक्सीनेशन की रफ्तार में कमी

21 जून को रिकॉर्ड वैक्सीनेशन के बाद से ही वैक्सीनेशन में लगातार कमी आ रही है. 22 जून को ही सिर्फ 54,66,891 लोगों को वैक्सीन की डोज दी गईं. 23 और 24 जून को वैक्सीनेशन में कुछ उछाल जरूर आया था, लेकिन अब पिछले चार दिनों से फिर रफ्तार धीमी पड़ती नजर आ रही है.

28 जून को 52,68,881 लोगों को वैक्सीन की डोज दी गईं, तो आंकड़ा 29 जून को सीधे 36 लाख पर पहुंच गया. 30 जून को ये 27 लाख रहा. कुल मिलाकर पिछले चार दिनों के आंकड़े देखकर ऐसा लगता नहीं है कि वैक्सीन खरीद की जिम्मेदारी केंद्र के पास जाने के बावजूद कोई बड़ा बदलाव आया है.

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राज्यों में दोबारा हुई वैक्सीन की कमी

मुंबई में 1 जुलाई को सभी सरकारी वैक्सीनेशन केंद्र बंद कर दिए गए. कई शहरों और गांवो में वैक्सीन की कमी की वजह से वैक्सीनेशन स्थगित कर दिया गया है. वैक्सीनेशन ऐसे समय में रोक दिया गया है जब डेल्टा और डेल्टा प्लस वैरिएंट के मामले में लगातार बढ़ोतरी हो रही हैं.

अगर हम 27 जून का आंकड़ा देखगें तो हमें अप्रैल, मई का महीना याद आ सकता है, जब कई राज्य वैक्सीन कमी की शिकायत कर रहे थे. इस दिन सिर्फ 17 लाख वैक्सीन दी गईं. इतना ढुलमुल वैक्सीनेशन म्यूटेशन पर आती हर दिन नई जानकारी के बीच डराने वाला है.

पश्चिम बंगाल, दिल्ली, गुजरात, झारखंड, महाराष्ट्र जैसे राज्य एक बार फिर वैक्सीन की कमी का सामना कर रहे हैं. 21 जून के रिकॉर्ड वैक्सीनेशन के बमुश्किल एक हफ्ते बाद ऐसी स्थिति गंभीर सवाल पैदा करती है.

बीजेपी शासित राज्य गुजरात के अहमदाबाद में वैक्शीनेशन के लिए लंबी कतारें और अस्त-व्यस्त माहौल देखा गया. अधिकारियों का दावा है कि अहमदाबाद में 1 लाख लोगों के रोजाना वैक्सीनेशन का टारगेट पूरा होना नामुमकिन सा है.

रोजाना का आंकड़ा करीब 40 लाख डोज

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना था कि जून में 12 करोड़ वैक्सीन डोज राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को दी जाएगी. जिसमें 10 करोड़ कोविशील्ड और 2 करोड़ कोवैक्सीन के हिसाब से रोजाना का आंकड़ा करीब 40 लाख डोज ही बैठता है.

एक बार फिर आपको याद दिलाते है कि 21 जून को वैक्सीनेशन रिकॉर्ड 90 लाख हुआ. जिसके बाद गिरना, बढ़ना, गिरना चलता रहा है. इसमें सोचने वाली बात यह है कि अगर सरकार को ये बात स्पष्ट थी कि 12 करोड़ से ज्यादा डोज नहीं दी जा सकती है तो एक दिन में 88 लाख डोज देने का क्या मतलब बनता था. अगर ध्यान दे पाएंगे कि ज्यादातर राज्यों ने 21 जून के बाद वैक्सीनेशन की रफ्तार तेज कर दी गई थी लेकिन सप्लाई में वैक्सीनेशन की मात्रा जस की तस बनीं हुई थी. नतीजा लगातार गिरती वैक्शीनेशन की रफ्तार सबके सामने है.

वैक्सीनेशन में सुधार की कितनी उम्मीद?

गौरतलब हो कि सरकार ने 21 जून को कथित ‘वर्ल्ड रिकॉर्ड’ तो बना लिया, लेकिन क्या अब उसके पास इतनी वैक्सीन है कि इस रिकॉर्ड को कायम रखा जा सके? सरकार अपनी वाहवाही लूटने में लगी है, लेकिन इसपर किसी के पास कोई जवाब नहीं है कि रोजाना 90 लाख डोज के लिए वैक्सीन कहां से आएंगी.

इस रिकॉर्ड को बरकरार रखने के लिए सरकार को लगभग जुलाई तक 30 करोड़ डोज की जरुरत पड़ेगी, लेकिन देखने वाली बात यह है कि देश में वैक्सीन का प्रोडक्शन लगभग 15 करोड़ तक होता है.

सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने मई से प्रतिमाह 10 करोड़ वैक्सीन का प्रोडक्शन करने का ऐलान किया था, जो मुमकिन नहीं हो पाया. सीरम ने जून से 10 करोड़ वैक्सीन देने की शुरुआत की है.

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इसके साथ ही कोवैक्सीन बनाने वाली भारत बायोटेक का प्रोडक्शन सीरम इंस्टीट्यूट के मुकाबले अभी भी काफी कम है. बेशक कंपनी जुलाई-अगस्त तक साढ़े 6 करोड़ डोज और सितंबर से 10 करोड़ डोज तैयार करने की तैयारी में जरुर है. लेकिन अभी इसका प्रोडक्शन सिर्फ 2 ही करोड़ है.

केंद्र सरकार स्पुतनिक वैक्सीन को काफी समय पहले मंजूरी दे चुका है. स्पुतनिक की सवा करोड़ डोज भारत आई थीं. लेकिन कितनी-कहां दी गईं, इसकी कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है. इसके साथ ही मॉडर्ना को भी सरकार की तरफ से मंजूरी मिल चुकी है. लेकिन, ये वैक्सीन कब तक और कितनी आएगी, अभी इसकी कोई जानकारी नहीं है.

मतलब साफ है कि 90 लाख डोज रोजाना देने का ख्वाब अभी तो पूरा नहीं हो पाएगा . इसके लिए जब तक सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक का कुल प्रोडक्शन लगभग 24 करोड़ नहीं पहुंचता है, इस रिकॉर्ड का आंकड़ा छूना लगभग नामुमकिन है. ऐसे में सरकार का ये दावा कब तक सफल हो पाएगा ये देखने वाली बात है.

जानें क्या है हर्ड इम्युनिटी और वैक्सीन

हर्ड इम्युनिटी के बारें में हर दिन कुछ न कुछ सुर्ख़ियों में रहता है इसकी वजह से ये जानना मुश्किल हो रहा है कि आखिर देश हर्ड इम्युनिटी से कितना दूर है? लोगों को अभी भी अनलॉक हो जाने पर खुद कितनी सावधानियां बरतने की जरुरत है, क्योंकि अनलॉक होने पर इतने महीने से घर में कैद लोग बिना जरूरतों के भी बाहर घूमने लगे है,जिससे कोरोन संक्रमण की संख्या लगातार बढती जा रही है.

असल में जब कोई बीमारी महामारी का रूप ले लेता है तो उसमें कमी आने के लिए हर्ड इम्युनिटी का होना जरुरी होता है और ये तभी हो सकता है जब अधिक संख्या में लोग इस बीमारी से पीड़ित हो. इससे उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है, जिससे किसी संक्रमण को रोका जा सकता है. कोरोना संक्रमण भी कुछ ऐसी ही महामारी है, जिसे हर्ड इम्युनिटी से रोका जा सकता है. इस बारें में रिजनेरेटिव मेडिसिन रिसर्चर Stem Rx बायोसाइंस सोल्यूशन्स प्राइवेट लिमिटेड के डॉ. प्रदीप महाजन कहते है किहर्ड इम्युनिटी में अधिकतर लोगों को इन्फेक्शन हुआ हो और वे ठीक हुए है. उन्हें अंदर एंटी बॉडी तैयार हो चुकी है. ये हर्ड इम्युनिटी की स्टेज में आते है, जिसके बारें में अभी हमें बात करने की जरुरत है, जब एक पूरी बड़ी कम्युनिटी में संक्रमण फैलने की वजह से आसपास के सभी लोग इम्यून हो जाते है और आसपास के लोगों में भी एंटी बॉडी फ़ैल जाता है. इससे कमजोर इम्युनिटी वाले लोग और जिनमें संक्रमण का खतरा अधिक होता है, वे बच जाते है. लोगों को बीमारी अधिक संक्रमित नहीं कर पाती, ये वायरस और बेक्टेरिया कुछ भी हो सकता है.

हर्ड इम्युनिटी के तरीके

इसे दो तरीके से पाया जा सकता है,वैक्सीनेशन या फिर कम्युनिटी स्प्रेड इन्फेक्शन के द्वारा मुमकिन है. इसमें 80 प्रतिशत लोगों के इन्फेक्शन होने पर ही इसे कम्युनिटी स्प्रेड इन्फेक्शन कहा जा सकता है. पूरे समूह को एंटीबॉडी के प्रोटेक्शन की आवश्यकता होती है. इसमें बहुत कम लोगों को इन्फेक्शन होने का खतरा होता है और संक्रमण का फैलाव रुक जाता है. इससे हाई रिस्क वाले सभी लोगों को प्रोटेक्शन मिलता है, जिसमें बच्चे और बुजुर्ग भी सुरक्षित हो जाते है.

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वैक्सीनेशन से बढती है हर्ड इम्युनिटी

दूसरा वैक्सीनेशन के द्वारा एंटी बॉडी को डेवलप किया जाता है. इससे भी इन्फेक्शन कम होने लगता है. एंटी बॉडी से उनमें किसी भी प्रकार का इन्फेक्शन कम हो जाता है. हमारे देश में हम सब हर्ड इम्युनिटी के काफी नजदीक पहुँच गए है, क्योंकि सब कुछ खुल चुका है और लोग काम पर जा भी रहे है, ऐसे में अधिक से अधिक लोग इस संक्रमण के शिकार हो रहे है. ऐसे में अधिकतर लोगों में अगर मॉस एंटीजन टेस्टिंग किया जाय तो 70 से 80 प्रतिशत लोग कोरोना पोजिटिव है, पर उनमें कोरोना के कोई लक्षण नहीं है. इसमें प्रश्न ये भी उठता है कि एसिमटेमेटिक पेशेंट क्या इस संक्रमण को फैला सकता है या नहीं. इस पर काफी रिसर्च चल रहा है. लक्षण न होने पर भी क्या वह इस बीमारी को फलने में समर्थ हो सकता है या फिर वह मात्र एक कैरियर ही है. इस बारें में अभी तक किसी भी प्रकार की जानकारी नहीं आयी है. उस पर कोई राय नहीं दी जा सकती है.

वैक्सीन के प्रकार

वैक्सीन भी दो तरह की है, पहला स्पेसिफिक और दूसरा नॉन स्पेसिफिक वैक्सीन. स्पेसिफिक वाक्सिनेशन में एंटी बॉडी जो कोरोना 2, कोविड 19, कोरोना सार्स कोविड 2 वायरस के लिए होगा. जिसमें 4 प्रकार के प्रोटीन्स होंगे, जिसमें S प्रोटीन इस बीमारी को फ़ैलाने में अधिक कारगर है. इसे स्पाइक प्रोटीन ऑफ़ सरफेस भी कहते है. अगर इस प्रोटीन को एंटीबॉडी को तैयार करने के लिए बनाया जायेगा, तो उसका फायदा सबको होगा, पर ये अभी तक संभव नहीं हो पाया है, क्योंकि ये वायरस म्यूटेट कर रहा है. इसके लिए बड़ी संख्या में लोगों पर इसकी ट्रायल करने की जरुरत है, ताकि लोगों को वैक्सीन लगाने के बाद वे सुरक्षित रहे. बीमारी को आये हुए केवल 6 महीने हुए है और सुरक्षा अभी भी सही मात्रा में नहीं हो पा रहा है, क्योंकि जनसँख्या बड़ी है और लोग नियमों का पालन सख्ती से नहीं कर रहे है. 2 से 3 साल तक इस बीमारी के रहने का अंदेशा है और पता नहीं है कि कब हमसब सुरक्षित हो पायेंगे. वैक्सीन की सुरक्षा साल दो साल बाद ही पता चल पायेगा. सही वैक्सीन के निकलने में एक से 2 साल कम से कम लगता है, जो सुरक्षित और इफेक्टिव होगा.

नॉन स्पेसिफिक वैक्सीन प्रूवेन वैक्सीन होता है, सार्स 2 की स्पाइक प्रोटीन जो कुछ हद तक एम एमआर और बी सी जी में होता है. ये नॉन स्पेसिफिक है और निश्चित रूप से कुछ हद तक कोविड वायरस से भी सीरियस होने से बचाती है. इस वैक्सीन को लगाये हुए व्यक्ति को कोरोना इन्फेक्शन होने पर भी वह माइल्ड ही होगा. एमएम आर और बी सी जी 50 सालों के रिसर्च के बाद आया हुआ सुरक्षित और प्रभावी वैक्सीन है. इसकी वजह से इन्फेक्शन का प्रभाव कम अवश्य हो सकता है ,पर बीमारी का इलाज नहीं हो सकता.

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अभी भी सबको मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग और सेनिटाईजेशन को पूरी तरह से अपनाने की जरुरत है. जो लोग बाहर अधिक काम पर या पब्लिक प्लेस में जा रहे है, एच सी क्यू प्रिवेंटिव मेजर के तौर पर सप्ताह में एक या दो गोली लेते रहेंगे, तो उन्हें प्रोटेक्शन मिलता रहेगा. एम एम आर जिन लोगों ने नहीं लगाया है, वे आज भी इसे ले सकते है. इसका कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होता. इतिहास भी बताती है कि एम एम आर वैक्सीन से इन्फेक्शन कम होता है. देखा जाय तो कोरोना वैक्सीन से भी ये बीमारी ख़त्म नहीं होगी, पर ये इन्फ्लुएंजा के रूप में रहेगी. म्युटेशन होकर अभी ये रोग काफी हद तक माइल्ड हो रहा है, जो अच्छी बात है.

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