REVIEW: फिल्म Vikrant Rona को दर्शक मिलना मुश्किल

रेटिंगः डेढ़ स्टार

निर्माताः शालिनी आर्ट्स और एसकेएफ फिल्मस

लेखक व  निर्देशकः अनूप भंडारी

कलाकारः सुदीप किच्चा,  निरूप भंडारी ,  नीता अशोक ,  जैकलीन फर्नांडीस ,  रविशंकर गौडा ,  मधुसूदन राव ,  वज्रधीर जैन और बेबी संहिता व अन्य

अवधिः दो घंटे 27 मिनट

पिछले कुछ समय से दक्षिण भारतीय भाषाओं में बनी फिल्में ‘पैन इंडिया सिनेमा’ के नाम पर डब होकर हिंदी में न सिर्फ प्रदर्शित हो रही हैं, बल्कि जबरदस्त सफलता भी हासिल कर रही है. कन्नड़ अभिनेता यश की फिल्म ‘‘केजीएफ 2’’ ने भी हिंदी में जबरदस्त सफलता हासिल की थी.  यह देखकर कन्नड़ के सुपर स्टार किच्चा सुदीप भी अपनी थ्री डी फिल्म ‘‘विक्रांत रोणा ’’ को हिंदी में भी प्रदर्शित की है. जिसे उनका सबसे बड़ा गलत निर्णय माना जा रहा है.

कन्नड़ फिल्मों के सुपर स्टार किच्चा सुदीप 1997 से 2008 तक केवल 25 कन्नड़ फिल्मों में अभिनय करते हुए वहां के सुपर स्टार बन गए. ‘किच्चा’ सुदीप के नाम का हिस्सा नही है. लेकिन 2003 में एक कन्नड़ फिल्म ‘किच्चा’’ में सुदीप ने किच्चा का ही किरदार निभाया था. इस फिल्म को इतनी सफलता मिली कि लेाग अब उन्हे ‘किच्चा सुदीप’ ही बुलाते हैं. 2008 में राम गोपाल वर्मा ने उन्हे अपनी हिंदी फिल्म ‘फूंक’ में अभिनय करने का अवसर दिया. लेकिन इस फिल्म ने बाक्स आफिस पर पानी नही मांगा. उसके बाद किच्चा सुदीप कन्नड़, तेलगू फिल्मों ही रम गए. 2010 में वह एक बार फिर ‘रक्तचरित्र 2’ में नजर आए. पर उनकी तरफ किसी का ध्यान नहीं गया. 2018 में किच्चा सुदीप ने कन्नड़ फिल्म ‘पहलवान’ की, जिसे हिंदी में भी डब करके रिलीज किया गया. उसके बाद 2019 में वह सलमान खान के साथ फिल्म ‘दबंग 3’ में नजर आए. और अब तीन वर्ष बाद किच्चा सुदीप थ्री डी फिल्म ‘विक्रांत रोना’ के माध्यम से एक बार फिर कन्नड़ के साथ ही हिंदी भाषी दर्शकों के सामने आए हैं. इस बार किच्चा सुदीप न कुछ ज्यादा ही निराश किया है. इस फिल्म में वह पूरी तरह से बौलीवुड अभिनेता सलमान खान की ही नकल करते हुए नजर आते हैं. शायद सलमान खान के साथ ‘दबंग 3’ में अभिनय करने के बाद उनके उपर सलमान खान हावी हो चुके हैं. उसी चक्कर में उन्होेने फिल्म ‘विक्रांत रोणा को डुबा दिया.

फिल्म का आधार जाति संघर्ष है.  सवर्णों और दलितों के बीच के छुआछूत को लेकर उपजे इस संघर्ष के नतीजे में ही फिल्म का असली रहस्य छुपा है. मगर इस जातिगत संघर्ष को भी लेखक व निर्देशक ठीक से उकेर नहीं पाए. ऐसा लगता है कि बहुत डर डर कर पटकथा लिखी गयी है. इसलिए यह फिल्म जातिगत संघर्ष को उंची जाति के लड़के द्वारा मंदिर से चोरी करने पर उसका आराप नीची जाति पर लगाकर उसे सजा देने के अलावा कुछ खास नही कहती.

कहानी

फिल्म ‘विक्रांत रोणा’ उस जमाने की काल्पनिक कहानी है, जब देश में इतनी तरक्की नहीं हुई थी. जब देश में पेट्रोल की कीमत छह रूपए और डीजल की कीमत तीन रूपए प्रति लीटर थी. तथा जंगलों की बस्तियों के आसपास आदिवासियों का डेरा था. मोबाइल और टेलीविजन से दूर बच्चे समूह में बैठकर एक दूसरे को फंतासी कहानियां सुनाते थे और इंद्रजाल कॉमिक्स की ‘फैंटम’ सीरीज की किताबें बच्चे चाव से पढ़ते थे.  फिल्म ‘विक्रांत रोणा’ का नाम भी पहले ‘फैंटम’ ही था. फैंटम के बारे में किवदंती है कि यह किरदार पीढ़ी दर पीढ़ी चलता है. एक फैंटम मरता है, तो उसका बेटा फैंटम बन जाता है. यही किंवंदंती फिल्म ‘‘विक्रांत रोना’’ की कहानी का मूल आधार है.

फिल्म ‘विक्रांत रोना’’की कहानी पुलिस इंस्पेक्टर विक्रांत रोणा(  किच्चा सुदीप ) की है, जिसे अपनी लापता पत्नी और बेटी की तलाश है. वह उनकी तलाश में घने जंगलों में बसे उसी कुमारमट्टू गांव में आता है, जहां के स्कूल में वह कभी  पढ़ता था और अब जहां लगातार बच्चों का अपहरण और हत्याएं हो रही हैं. कुमारमट्टू एक ऐसा रहस्यमय गांव है, जहां अक्सर बारिश होती रहती है.  गांव में अक्सर छोटे बच्चे गायब हो जाते हैं और उनकी लाश पेड़ पर लटकी मिलती है. इसका इल्जाम गांववाले ब्रह्माराक्षस पर लगाते हैं.  एक दिन गांव के थाने के इंस्पेक्टर की सिरकटी लाश कुएं में लटकी मिलती है,  तो वहां सनसनी फैल जाती है और इसका इल्जाम भी ब्रह्माराक्षस पर लगता है.

जबकि उन्ही दिनों गांव के एक पुराने परिवार के सदस्य विश्वनाथ बल्लाल(रविशंकर गौड़ा )  का परिवार अपनी बेटी पन्ना(नीता अशोक )  की शादी अपने पैतृक गांव में करने आई हुई है. बल्लाल के ही परिवार से जुड़े दूसरे परिवार यानी कि जनार्दन गंभीर (मधुसूदन राव )का बेटा संजू(निरूप भंडारी )  भी अरसे बाद गांव लौटा है.  वह पन्ना से इश्क करने लगता है.  शादी की तैयारियों के बीच बच्चों की हत्या का सिलसिला जारी रहता है. अब संजू व पन्ना के इश्क का क्या अंजाम होगा? क्या विक्रात रोना, बच्चों के अपहरण व हत्या की गुत्थी सुलझा पाएगा?   फंतासी लोक में रची गई इस मर्डर मिस्ट्री की कहानी में कई किरदार हैं और हत्याएं करने का शक एक से दूसरे पर घूमता रहता है.

लेखन व निर्देशनः

फिल्म के लेखक व निर्देशक अनूप भंडारी ने ही सलमान खान की फिल्म ‘दबंग 3’ के कन्नड़ संस्करण के गाने लिखे थे. वैसे ‘विक्रांत रोना’ के गाने उन्होने खुद नही लिखे हैं. लेकिन इस फैंतासी मर्उर मिस्ट्री वाली कहानी की पटकथा लिखने में वह मात खा गए. फिल्म मे मर्डर मिस्ट्री के साथ ही लोकेशन की भौगोलिक स्थिति का फायदा उठाने के लिए हॉरर के तत्व भी ठूंसे गए हैं, जबकि इनकी जरुरत नजर नही आती. इससे दर्शक भी कन्फ्यूज होता है. फिल्म में अविश्वसनीय घटनाक्रमों की भरमार है. फिल्म में संजू और पन्ना के प्यार को भी ठीक से उकेरा नहीं गया.

लेखक के दिमागी दिवालिएपन की हद की मिसाल के तौर पर छोटी बच्ची का सवंाद ही काफी है. यह संवाद, जिसमें वह कहती है कि उसका दोस्त भास्कर उससे कहता है-‘‘ भारत में तब बारिश होती है, जब सभी अमरीकन एक साथ पेशाब करते हैं और अमरीका में उस वक्त बारिश होती है जब यहां भारत में हम सभी एक साथ पेशाब करते हैं. ’’

फिल्म की कहानी 28 वर्ष की यात्रा तय करती है. मगर कहानी कहीं से भी विक्रांत रोना व खलनायक के बदले के रिश्ते को स्थापित नही कर पाती.  विक्रांत रोना की बेटी को लेकर क्लायमेक्स में जो खुलासा होता है, उसे देखकर दर्शक खुद को ठगा हुआ महसूस करता है. इतना ही नही क्लायमेक्स में जब बच्चों के अपहरणकर्ता व हत्यारों का खुलासा होता है, तो भी आश्चर्य नही होता.

फिल्म के कैमरामैन विलियम डेविड का योगदान सराहनीय है. मगर गीत संगीतव निराश करते हैं.

अभिनयः

विक्रात रोणा के मुख्य किरदार निभाने में किच्चा सुदीप बुरी तरह से मात खा गए हैं. सलमान खान के अभिनय की की नकल करने के साथ ही वह ओवरएक्टिंग भी करते नजर आते हैं.  बुजुर्गों के सामने सिगार पीना,  बदतमीजी से पेश आना और अपने पूरे आभामंडल को एक देसी दारू के ठेके पर नाचने वाली के साथ ठुमके लगाकर तार तार कर देना विक्रांत रोणा के किरदार की कमजोरियां हैं.

मंदिर से देवताओं के गहने चुराकर भागे उंची जाति के संजू के किरदार में निर्देशक अनूप भंडारी के भाई निरूप भंडारी के अभिनय में कोई दम नजर नही आता. उनका चेहरा हर मौके पर एकदम सपाट ही नजर आता है.  पन्ना के किरदार में नीता अशोक सुंदर जरुर दिखायी देती हैं, मगर अभिनय के मामले मेें उन्हे अभी काफी मेहनत करने की जरुरत है. यदि किसी फिल्म के साथ सलमान खान का जुड़ाव हो और उस फिल्म में जैकलीन फर्नाडिश न हों, ऐसा हो ही नहीं सकता. मगर रक्कम्मा के किरदार में जैकलीन फर्नाडिश सबसे बड़ी कमजोर कड़ी है. वह कहानी में कोई योगदान नही करती.  उनके किरदार की वजह से फिल्म की गति बाधित होती है.

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