REVIEW: जानें कैसी है वेब सीरीज ‘Ray’

रेटिंगः  तीन स्टार

निर्माताः ए टिपिंग प्वाइंट

निर्देशकः श्रीजित मुखर्जी, अभिषेक चैबे, वासन बाला

कलाकारः केके मेनन, मनोज बाजपेयी,  संजय शर्मा, गजराज राव, हर्षवर्धन कपूर, अली फजल

अवधिः चार एपीसोड, लगभग चार घंटे

ओटीटी प्लेटफार्मः नेटफ्लिक्स

इस बार ‘नेटफ्लिक्स’’ भारत के सेक्सपिअर कहे जाने वाले फिल्मकार व लेखक स्व. सत्यजीत रे लिखित चार लघु कहानियों पर अलग अलग चार एपीसोड की एंथोलॉजी सीरीज ‘‘रे’’ लेकर आया है, जिसे अलग अलग निर्देशकों ने निर्देशित किया है. इन कहानियों में सामाजिक व्यंग, डार्क कॉमेडी, मनोविज्ञान,  अर्थव्यवस्था व बेहरीन चत्रि चित्रण है.

कहानियां

पहली कहानी ‘बहुरूपिया’ इंद्राशीष साहा (के के मेनन) के इर्द गिर्द घूमती है, जो एक अकेला उपेक्षित मेकअप कलाकार है जो जीवनयापन करने के लिए संघर्ष कर रहा है. पर बचपन से ही अपनी दादी के करीब रहे हैं. दादी की मौत होने तक वह उनकी सेवा करते रहते हैं. सभी इंद्राशीष की दादी को पागल कहते थे, जबकि वह एक सफल व्यवसायी थी. एक अमरीकन प्रोडक्शन हाउस के लिए मेकअप का सामान निर्माण कर भेजती थी. उधर कंपनी का मैनेजर सुरेश(संजय शर्मा) भी उसे नौकरी से निकालने पर आमादा है. पर वह अपनी दादी की सेवा में कटौती नही करता. उसकी दादी की कैंसर से मौत हो जाती है. उसके बाद वकील बताता है कि उनकी दादी अपनी सारी जयदाद और लाखों रूपए उनके नाम छोड़ गयी हैं. फिर वह अपने सपनों को आगे बढ़ाने और अपने जुनून का पालन करने का फैसला करता है. स्वभाव से नास्तिक,  मेकअप कलाकार के रूप में अपनी प्रतिभा के कारण किसी व्यक्ति की शारीरिक पहचान को बदलने की इंद्राशीष  की उल्लेखनीय क्षमता उसे श्रेष्ठ महसूस कराती है और एक दिन वह अपने वर्चस्व को साबित करने के लिए एक फकीर ध् बाबा(दिव्येंद्र भट्टाचार्य)  के साथ बेवजह खिलवाड़ करता है, जिसकी परिणित काफी दुखद होती है.

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दूसरी कहानी ‘हंगामा है क्यों बरपा’’है. यह सत्यजीत रे की लघु कहानी बरिन भौमिक-एर ब्यारम पर आधारित है. इसकी कहानी चोरी की बीमारी और गायक मुसाफिर अली(मनोज बाजपेयी)  के इर्दगिर्द घूमती है. मुसाफिर अली का असली नाम राजू है. बचपन में वह अपने दोस्तो के खिलौने चुराया करते थे. बड़े होने पर नौकरी की तलाश में हैं. एक बार ट्ेन में यात्रा करते समय उनकी मुलाकात असलम बेग(गजराज राव)उर्फ मशहूर कुश्तीबाज जेगना से होती है. और राजू, असलम बेग की खुशवक्त नामक घड़ी चुरा लेते हैं. उसके बाद वह अपना नाम बदलकर मुसाफिर अली कर लेते हंै और मशहूर गायक बन जाते हैं. दस साल बाद फिर ट्ेन यात्रा में मुसाफिर अली की मुलाकात असलम बेग से होती है. . इस बार दोनो की बीमारी सामने आती हैं.

तीसरी कहानी ‘‘स्पॉट लाइट’’है. यह कहानी एक मशहूर अभिनेता विक्रम अरोड़ा(हर्षवर्धन कपूर  ) के इर्द गिर्द घूमती है, जिसे घमंड है कि पूरी दुनिया उनके चेहरे की गुलाम है. वह कपूर की फिल्म की शूटिंग के लिए दूसरे शहर जाते हैं. वहंा जिस होटल के मेडोना कमरे में वह रूकते हैं, उस पर ईश्वर की तरह पूजी जा रही दीदी कब्जा करती हैं, सभी दीदी की पूजा कर रहे हैं, पर विक्रम तो दीदी को अपने सामने कुछ समझते ही नही हैं. जिसके चलते विक्रम को फिल्म से निकाल दिया जाता है, मच्छरदानी की एड हाथ से निकल जाती है. हालत खराब हो जाती है. विक्रम को अहसास होता है कि अब उसका चेहरा बदल गया, जिसे लोग देखना नही चाहते. तब विक्रम,  दीदी से मिलने की सोचते हैं. पर तब तक दीदी के यहां पुलिस छापा मार चुकी होती है और अब उसकी असलियत लोगों के सामने आने वाली है. पर विक्रम किसी तरह अकेेले में दीदी से मिलते हैं. दीदी उसे अपनी आप बीती सुनाती है. व्रिकम की मदद से दीदी अमरीका भागने में सफल हो जाती है, विक्रम फंस जाते हैं. लेकिन मंत्री की बेटी की शादी मंे तीन दिन मुफ््त में नृत्य करने के वायदे के साथ जेल जाने से बच जाते हैं. दीदी के आशिवार्द से उनकी तकदीर फिर से चमक जाती है.

चैथी कहानी ‘‘फारगेट नॉट मी’’है. यह सत्यजीत रे की कहानी ‘‘बिपिन चैधरी का स्मृतिभ्रम’पर आधारित है. यह कहानी एक सफल उद्योगपति इपसित रामा नायर(अली फजल)  के इर्द गिर्द घूमती है, जिसकी याददाश्त का लोहा सभी मानते हैं. उन्हे कई पुरस्कार मिल चुके है. लेकिन सफलता के मद में चूर इपसित अपने स्कूल व कालेज के दोस्तों के साथ जो हरकते करते हैं, उससे सभी दोस्त नाराज होकर एक ऐसा खेल रचते हैं, जिसमें इप्सित फंसकर पागल सा हो जाता है. एक रात एक अजनबी (अनिंदिता बोस)दोस्ताना मुस्कान के साथ इप्सित के पास पहुंचती है. वह इप्सिट को अच्छी तरह से जानने का दावा करते हुए उसके साथ अजंटा की गुफाओं में बिताए हुए बेहतरीन पलों की याद दिलाती है. यहां से चीजें खराब होने लगती हैं. इप्सिट चीजों को भूलना शुरू कर देता है,  एक दिन वह एक दुर्घटना के साथ मिलता है और अस्पताल में पहुंच जाता है. इप्सिट की सेक्रेटरी मैगी (श्वेता बसु प्रसाद) मिलने आती है और इप्सिट के लिए मुसीबत बढ़ जाती है.

निर्देशनः

इन चार कहानियों में से दो कहानियों ‘‘बहुरूपिया’’और ‘‘फॉरगेट नॉट मी’’का निर्देशन श्रीजित मुखर्जी ने किया है, जबकि ‘‘हंगामा है क्यों बरपा’का निर्देशन अभिषेक चैबे और ‘‘स्पॉटलाइट’का निर्देशन वासन बाला ने किया है. श्रीजीत मुखर्जी का निर्देशन ‘‘बहुरूपिया’में भी कमाल का है. काश उन्होने इस कहानी कीपृष्ठभूमि बंगाल कलकत्ता रखा होता, तो यह अति श्रेष्ठतम कृति बन जाती. ‘हंगामा है क्यों बरपा’में निर्देशक अभिषेक चैबे महान  कलाकारों की मौजूदगी के बावजूद अपने निर्देशन का जलवा नही विखेर पाते.  वैसे उन्होने उर्दू की गजल का शानदार उपयोग किया है. श्रीजित मुखर्जी निर्देशित एक घ्ंाटे से अधिक अवधि की लघु फिल्म‘‘फारगेट नॉट मी’’काफी कसी हुई फिल्म है. श्रीजीत मुखर्जी ने ‘‘फॉरगेट नॉट मी’’को डार्क मनोवैज्ञानिक रोमांचक के रूप में बेहतर बनाया है. उनका निर्देशन तारीफ लायक है.

इस पूरी सीरीज की सबसे कमजोर कड़ी निर्देशक वासन बाला और अभिनेता हर्षवर्धन कपूर हैं. वासन बाला ने सत्यजीत रे ‘स्पॉटलाइट’ कहानी को गड़बड़ करने में कोई कसर बाकी नही छोड़ी. वासन बाला निर्देशित एक घंटे से अधिक लंबी लघु फिल्म ‘‘स्पॉटलाइट’’ विखरी हुई फिल्म है. इस कहानी में सामाजिक व्यंग जबरदस्त है, पर वासन बाला उसे उभारने में असफल रहे हैं. ‘स्पॉटलाइट’ने वासन बाला के अतीत के शानदार कार्यों पर भी पानी फेर दिया. वासन बाला ने तो पूरी एंथोलॉजी को लगभग मारने वाला काम ही किया है.

‘बहुरूपिया’कहानी का संवाद-‘‘धूल चेहरे पर थी और मैं आइना साफ करता रहा’’इंसान की सोच व कार्यशैली पर करारा तमाचा है. तो वही ‘स्पॉट लाइट’कहानी का संवाद ‘‘कुत्तों के बीच रहना है, तो भेड़ नही भेड़िया बनना होगा. ’बहुत कुछ कह जाता है.

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अभिनयः

‘बहुरूपिया’कहानी में इंद्राशीष के किरदार में के के मेनन ने  शानदार अभिनय कर लोगों को आकर्षित करने में सफल रहे हैं. तो वहीं पवित्र इंसान फकीर बाबा के किरदार में दिब्येंदु भट्टाचार्य तथा अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्षरत अभिनेत्री के किरदार में बिदिता बैग भी छाप छोड़ती हैं. ‘हंगामा है क्यों बरपा’कहानी में मनोज बाजपेयी की उत्कृष्ट अभिनय प्रतिभा और गजराज राव का लाजवाब अभिनय ‘सत्यजीत रे’की श्रद्धांजलि में चार चांद लगाते हैं. रघुबीर यादव और मनोज पाहवा के छोटे किरदार भी छाप छोड़ जाते हैं. फारगेट नॉट मी’कहानी में अनिंदिता बोस, श्वेता बसु प्रसाद के साथ ही अली फजल ने शानदार अभिनय किया है. ‘स्पॉटलाइट’कहानी में सुपर स्टार विक्रम अरोड़ा के किरदार में हर्षवर्धन कपूर निराश करते हैं. वह कई जगह महज कैरीकेचर ही हैं. विक्रम अरोड़ा के किरदार के लिए हर्षवर्धन कपूर का चयन निदे्रशक की सबसे बड़ी भूल है. ‘हंगामा है क्यों बरपा’कहानी में मनोज बाजपेयी की उत्कृष्ट अभिनय प्रतिभा और गजराज राव का लाजवाब अभिनय ‘सत्यजीत रे’की श्रद्धांजलि में चार चांद लगाते हैं. रघुबीर यादव और मनोज पावा के छोटे किरदार भी छाप छोड़ जाते र्हैं. र्वानका चयन ही गलत है. राधिका मदान भी मात खा गयी हैं. चंदन रॉय सान्याल ने अवश्य बेहरीन अभिनय किया है.

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