तीन तलाक जैसे विवादित मुद्दे पर फिल्म बनाना बहुत ही हिम्मत का काम है. और यह हिम्मत दिखाई है निर्देशक शिवाजी लोटण-पाटिल और उनकी पूरी टीम ने, जो काफी रोचक बात है.

मुस्लिम समाज में तलाक लेने की प्रक्रिया अन्य धर्मों की तुलना में बहुत आसान है. लेकिन पुरुष प्रधान समाज होने के कारण यह प्रथा महिलाओं के लिए अन्यायपूर्ण साबित हो जाती हैं. कई बार ऐसा होता है कि कुछ ठोस कारण नहीं होते हुए भी मुस्लिम पुरुष जल्दबाजी में तीन बार तलाक कहकर अपनी पत्नी को तलाक दे देते है. लेकिन हलाल फिल्म में बताया गया है कि कुरान के अनुसार, ये गलत है.

मुस्लिम पुरुषों को यदि पत्नी से तलाक लेना है तो तीन महीने में तीन बार मुस्लिम पंचों के सामने सार्वजनिक रूप से तलाक कहना पड़ता है. और विवाह के समय शगुन के तौर पर तय की गई मेहर की रकम वापस करनी पड़ती है. लेकिन यह धार्मिक प्रक्रिया छोड़कर अमानवीय पद्धति से तलाक देने वाले मुस्लिम युवकों की आंखे खोलने का प्रयास ‘हलाल’ फिल्म के माध्यम से किया गया है.

हलीम (प्रीतम कागने) और कुद्दुस (प्रियदर्शन जाधव) का तलाक हो चुका है, लेकिन दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते है. कुद्दुस की मां हमेशा हलीम को प्रताड़ित करती रहती है. मां एक दिन हलीम को जान से मार देगी, इस डर से कुद्दुस उसको तलाक दे देता है. दो साल बाद जब कुद्दुस की मां गुजर जाती है तो वह हलीम को वापस लेने जाता है. लेकिन एक बार तलाक होने के बाद लड़की को वापस ससुराल जाने को मुस्लिम समाज में मान्यता नहीं है, इसलिए हलीम के पिता (विजय चव्हाण) ले जाने से इंकार कर देते है. लेकिन हलीम की मां (छाया कदम) के कहने पर वे गांव के मौलवी (चिन्मय मंडलेकर) के पास उपाय पूछने जाते हैं.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...