मखमली आवाज के धनी मोहम्मद रफी साहब ने फिल्म ‘पगला कहीं का’ के लिए जब ‘तुम मुझे यों भुला न पाओगे...’ गीत गाया था, तो उन्हें कतई यह लगा न होगा कि इसे वे अपने लिए गा रहे हैं. लेकिन हुआ यही. उन्हें इस दुनिया से विदा हुए लंबा अरसा हो गया है, लेकिन यह सच है कि लोग उन्हें वाकई भुला नहीं पाए हैं. और आज भी उन की दिल को छू लेने वाली आवाज के कायल हैं. केवल 13 साल की उम्र में उन्होंने अपना पहला स्टेज शो किया था. यह घटना कुछ ऐसे हुई कि रफी अपने भाई हमीद के साथ उस समय के मशहूर गायक केएल सहगल का एक कार्यक्रम देखने गए. इत्तफाक से कार्यक्रम के दौरान बिजली चली गई और सहगल ने गाने से इनकार कर दिया. ऐसे में रफी ने मंच संभाला और अपनी आवाज का जादू बिखेरा.

मशहूर संगीतकार नौशाद अपने अधिकतर गाने तलत महमूद से गवाते थे. एक बार उन्होंने रिकौर्डिंग के दौरान तलत महमूद को सिगरेट पीते देख लिया तो वे उन से चिढ़ गए और अपनी फिल्म ‘बैजू बावरा’ के लिए उन्होंने रफी को साइन किया. नौशाद शुरू में रफी से कोरस गाने गवाते थे. गायकी के इस जादूगर ने नौशाद के लिए पहला गीत 1944 में फिल्म ‘पहले आप’ के लिए गाया था. उसी समय उन्होंने फिल्म ‘गांव की गोरी’ के लिए ‘अजी दिल हो काबू...’ गीत गाया था. रफी इसी गीत को हिंदी भाषा में अपना पहला गीत मानते थे. सुरों के बेताज बादशाह को 1960 में ‘चौदहवीं का चांद’ के लिए पहली बार फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था. फिर उन्हें 1968 में ‘बाबुल की दुआएं लेती जा...’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया था. रफी को सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक का फिल्मफेयर पुरस्कार 6 बार मिला. इस के अलावा उन्हें इस क्षेत्र में 2 बार प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पुरस्कार भी दिया गया था.

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