‘खोसला का घोसला’, ‘लव सैक्स और धोखा’, ‘शंघाई’, ‘बौंबे टाकीज’, ‘डिटैक्टिव ब्योमकेश बक्शी’ जैसी अलगअलग शैली की फिल्में बनाने वाले 45 वर्षीय दिबाकर बनर्जी निर्देशक, पटकथा लेखक, निर्माता और ऐड फिल्म मेकर हैं. उन की अपनी ‘दिबाकर बनर्जी प्रोडक्शंस’ कंपनी है.

दिल्ली के दिबाकर बनर्जी ने अपने कैरियर की शुरुआत ऐड फिल्म से की थी. ‘खोसला का घोसला’ फिल्म की सफलता के बाद वे अपनी पत्नी और बेटी के साथ मुंबई आ गए. तभी से मुंबई में हैं.

बेहद शांत स्वभाव और फिल्मी चकाचौंध से दूर रहने वाले दिबाकर बनर्जी से बात करना रोचक रहा. पेश हैं, कुछ उम्दा अंश:

आप हमेशा लीक से हट कर फिल्में बनाते हैं. इस की वजह क्या है?

मैं हमेशा ऐसी फिल्म बनाना चाहता हूं जिसे लोग पसंद करें, जिस से आम दर्शक खुद को रिलेट कर सके. ऐसा नहीं है कि मैं व्यावसायिक फिल्में नहीं बनाना चाहता, मुझे डौक्यूमैंटरी फिल्में बनाने का शौक नहीं. मैं पहली फिल्म से ही व्यावसायिक क्षेत्र में प्रवेश करने की कोशिश कर रहा हूं. मुझे खुशी है कि मेरी फिल्मों को भी दर्शक मिल रहे हैं. ‘खोसला का घोसला’ नई तरह की फिल्म थी. मेन स्ट्रीम से हट कर नए दर्शकों की रचना हुई, जिस से मेरी फिल्म सफल हुई. मैं हर फिल्म से लाभ कमाने की कोशिश करता हूं. फिल्म निर्माण, लेखन, निर्देशन के अलावा मैं कोई काम नहीं करता. मेरे पास जो पैसा है वह फिल्मों से ही मिला है. दर्शकों का यह बदलाव मेरे लिए अच्छा है. मुझे खुद पता नहीं कि मैं ऐसी फिल्में कैसे बनाता हूं. जैसेजैसे मैं उम्र के साथ बदल रहा हूं वैसेवैसे ही मेरी फिल्में भी बदल रही हैं. ‘तितली’ फिल्म इस का एक उदाहरण है.

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