वे दोनों बचपन से एक ही कालोनी में आसपड़ोस में रहते हुए बड़े हुए थे. दोनों ने एकसाथ स्कूल व कालेज की पढ़ाई पूरी की. उन के संबंध मित्रता तक सीमित थे, वो भी सीमित मात्रा में. दोनों एक ही जाति के थे. सो, स्कूल समय तक एकदूसरे के घर भी आतेजाते थे. कालेज में भी एकदूसरे की पढ़ाई में मदद कर देते थे. एकदूसरे के छोटेमोटे कामों में भी सहयोग कर देते थे. लेकिन कालेज के समय से उन का एकदूसरे के घर आनाजाना बहुत कम हो गया. जाना हुआ भी तो अपने काम के साथ में एकदूसरे के परिवार से मिलना मुख्य होता था.

दोनों अपने समाज, जाति की मर्यादा जानते थे. अब दोनों जवानी की उम्र से गुजर रहे थे. रमा तभी विजय के घर जाती जब विजय की बहन से उसे काम होता. विजय से तो एक औपचारिक सी हैलो ही होती. कालेज में भी उन का मिलना बहुत जरूरत पर ही होता. रमा को यदि विजय से कोई काम होता तो वह विजय की बहन या मां से कहती. विजय को वैसे तो जाने की जरूरत नहीं पड़ती थी रमा के घर, पर कई बार ऐसे मौके आते कि जाना पड़ता. जैसे रमा को नोट्स देने हों या कालेज की लाइब्रेरी से निकाल कर पुस्तकें देनी हों.

विजय जाता तो रमा के मम्मी या पापा घर पर मिलते. रमा चाय बना कर दे जाती. विजय पुस्तकें रमा के मातापिता को दे देता. रमा के मातापिता उसे बैठा कर घरपरिवार, पढ़ाईलिखाई, भविष्य की बातें पूछते, कुछ अपनी बताते. विजय वापस आ जाता.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...