किसी देश में लेनदेन के लिए प्रचलित नोट और सिक्कों को करेंसी कहते हैं. प्रचलित करेंसी या तो कागज की होती है या किसी धातु की. मसलन, भारत में रुपये के नोट और सिक्के. हाल के वषों में सूचना प्रौद्योगिकी के प्रसार के बाद वचरुअल करेंसी की परिकल्पना भी सामने आई है. उदाहरण के लिए बिटकॉइन, लाइटकाइन, नेमकाइन और पीपीकाइन. इस तरह की वचरुअल करेंसी को क्रिप्टोकरेंसी कहते हैं.

दरअसल क्रिप्टोकरेंसी एक ऐसी मुद्रा है जिसे डिजिटल माध्यम के रूप में निजी तौर पर जारी किया जाता है. यह क्रिप्टोग्राफी व ब्लॉकचेन जैसी डिस्ट्रीब्यूटर लेजर टेक्नोलॉजी (डीएलटी) के आधार पर काम करती है. सरल शब्दों में कहें तो ब्लॉकचेन एक ऐसा बहीखाता है जिसमें लेनदेन को ब्लॉक्स के रूप में दर्ज किया जाता है और क्रिप्टोग्राफी का इस्तेमाल कर उन्हें लिंक कर दिया जाता है. क्रिप्टोग्राफी सूचनाओं को सहेजने और भेजने का ऐसा सुरक्षित तरीका है जिसमें कोड का इस्तेमाल किया जाता है और सिर्फ वही व्यक्ति उस सूचना को पढ़ सकता है जिसके लिए वह भेजी गई है.

जब कोई कंपनी करेंसी शुरू करती है तो लिमिटेड कंपनियों के आइपीओ की तर्ज पर आइसीओ (इनिशियल कॉइन ऑफरिंग्स) संभावित खरीदारों को बेचती है और क्राउडफंडिंग कर बाजार से पूंजी जुटा लेती है. यहां यह समझना जरूरी है कि क्रिप्टोकरेंसी और रियल करेंसी में बड़ा अंतर है. मसलन, रियल करेंसी को जारी करने वाला केंद्रीय बैंक उसके भुगतान की गारंटी प्रदान करता है जबकि क्रिप्टोकरेंसी में ऐसा कुछ नहीं है. यही वजह है कि क्रिप्टोकरेंसी में पैसा लगाना बेहद जोखिम भरा माना जाता है. क्रिप्टोकरेंसी के रेट में तेजी से उतार-चढ़ाव आता है.

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