आज के जीवनस्तर और बढ़ती महंगाई को देखते हुए यह जरूरी हो गया है कि पत्नियां भी नौकरी करें. मगर समस्याएं तब खड़ी होती हैं जब वे पति से अलग अपनी पहचान की बात उठाती हैं और आर्थिक रूप से स्वतंत्र होना चाहती हैं. घर का खर्च चलाना आज भी पति की ही जिम्मेदारी मानी जाती है, जबकि पत्नी की कमाई एक बोनस के रूप में ली जाती है. रचना एक मल्टीनैशनल कंपनी में मैनेजर हैं. उन का कहना है, ‘‘रोजीरोटी चलाने लायक मेरे पति कमा ही लेते हैं. मैं घर और औफिस की दोहरी जिम्मेदारी सिर्फ घरखर्च में पैसा झोंकने के लिए ही नहीं उठा रही हूं. मैं यह कहने का अधिकार रखती हूं कि मेरा पैसा कहां और कैसे खर्च होगा. एक अफसर की हैसियत से औफिस में मेरी एक अलग छवि है, जिसे मुझे कायम रखना होता है. उसी तरह घर, पति और बच्चों की इमेज भी बनाए रखनी होती है वरना लोग हमारे बारे में क्या सोचेंगे.’’

लेकिन पति कुछ और ही सोचते हैं. इस संबंध में सोनिया कहती हैं, ‘‘मेरे पति अपनी आर्थिक सुरक्षा को ले कर कुछ ज्यादा ही चिंतित रहते हैं. इसलिए वे अपनी सारी सैलरी निवेश कर मुझ से ही घर का खर्च चलवाना चाहते हैं.’’ सोनिया के पति का तर्क है, ‘‘आखिरकार, मैं घर की भलाई के बारे में ही तो सोचता हूं. ऐसा कर के मैं क्या बुरा करता हूं? क्या परिवार की सुरक्षा, इमेज बनाए रखने से ज्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं है?’’

यहां पर पतिपत्नी दोनों की प्राथमिकताएं अलगअलग होने के कारण ही उन में टकराव होने की स्थिति उत्पन्न हो गई है. लेकिन वे शरद और ऊषा से इस टकराव से बचने का उपाय जान सकते हैं. आर्किटेक्ट ऊषा एम.ई.एस. में कार्यरत हैं. नईनई शादी और नयानया परिवार. शरद का हुक्म सिरमाथे पर लिए ऊषा शरद की हर बात मान कर खुश थीं. शरद की यह सलाह कि घर का खर्च ऊषा के वेतन से चलेगा और शरद का वेतन बचत खाते में जमा होगा, भी ऊषा ने सहर्ष मान ली, क्योंकि दोनों का पैसा साझा ही तो था. इसलिए कौन सा खर्च हो रहा है, कौन सा जुड़ रहा है, यह बात कोई खास माने नहीं रखती थी

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