बच्चे के सही विकास के लिए जन्म के बाद घंटे भर के अंदर उसे मां का दूध पिलाना शुरू कर देना चाहिए. मां का दूध ढेर सारी खासीयतों से भरा होता है. इसका मुकाबला किसी अन्य दूध से नहीं हो सकता है. यह मुफ्त मिलता है, आसानी से उपलब्ध है और सुविधाजनक भी. मां जब गर्भधारण करती है तब से ले कर प्रसव होने तक उस में ढेरों बदलाव आते हैं और ये शारीरिक तथा भावनात्मक दोनों होते हैं.

जब बच्चा पैदा हो जाता है तो उसे दूध पिलाने के चरण की शुरुआत होती है. कुछ शुरुआती सप्ताह में यह संभवतया सब से चुनौतीपूर्ण चरण होता है. दूध पिलाने के इस चरण को अकसर गर्भावस्था की चौथी तिमाही कहा जाता है. इस अवधि में स्थापित होना बहुत आसान है, बशर्ते बच्चे और मां की त्वचा का संपर्क जल्दी से जल्दी हो जाए.

आदर्श पोषण

नवजातों के लिए सिर्फ स्तनपान आदर्श पोषण है और यह जीवन के शुरू के 6 महीने के सर्वश्रेष्ठ विकास के लिए पर्याप्त है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार नवजात को शुरू के 6 महीने तक सिर्फ मां का दूध ही पिलाया जाना चाहिए. इस के बाद कम से कम 2 साल तक मां का दूध पिलाते रहना चाहिए. तभी बच्चे का स्वस्थ विकास होता है और उसकी प्रतिरक्षा प्रणाली स्वस्थ रहती है.

रोट्टेरडैम, नीदरलैंड स्थित इरैसमस मैडिकल सैंटर में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक, अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि जन्म के बाद 6 महीने तक सिर्फ मां का दूध पीने वाले बच्चों के बचपन में दमा जैसे लक्षण का विकास होने का जोखिम कम रहता है. इस अनुसंधान के तहत 5 हजार बच्चों का परीक्षण किया गया है, जिस से पता चला कि जो बच्चे मां का दूध पीए बगैर बड़े हो जाते हैं उन्हें शुरू के 4 वर्षों तक सांस फूलने, सूखी खांसी और लगातार बलगम निकलने की शिकायत रहती है (कभी भी मां का दूध नहीं

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