कुछ कहना था तुम से : 10 साल बाद सौरव को क्यों आई वैदेही की याद?

वैदेही का मन बहुत अशांत हो उठा था. अचानक 10 साल बाद सौरव का ईमेल पढ़ बहुत बेचैनी महसूस कर रही थी. वह न चाहते हुए भी सौरव के बारे में सोचने को मजबूर हो गई कि क्यों मुझे बिना कुछ कहे छोड़ गया था? कहता था कि तुम्हारे लिए चांदतारे तो नहीं ला सकता पर अपनी जान दे सकता है पर वह भी नहीं कर सकता, क्योंकि मेरी जान तुम में बसी है. वैदेही हंस कर कहती थी कि कितने झूठे हो तुम… डरपोक कहीं के. आज भी इस बात को सोच कर वैदेही के चेहरे पर हलकी सी मुसकान आ गई थी पर दूसरे ही क्षण गुस्से के भाव से पूरा चेहरा लाल हो गया था. फिर वही सवाल कि क्यों वह मुझे छोड़ गया था? आज क्यों याद कर मुझे ईमेल किया है?

वैदेही ने मेल खोल पढ़ा. सौरव ने केवल

2 लाइनें लिखी थीं, ‘‘आई एम कमिंग टू सिंगापुर टुमारो, प्लीज कम ऐंड सी मी… विल अपडेट यू द टाइम. गिव मी योर नंबर विल कौल यू.’’

यह पढ़ बेचैन थी. सोच रही थी कि नंबर दे या नहीं. क्या इतने सालों बाद मिलना ठीक रहेगा? इन 10 सालों में क्यों कभी उस ने मुझ से मिलने या बात करने की कोशिश नहीं की? कभी मेरा हालचाल भी नहीं पूछा. मैं मर गई हूं या जिंदा हूं… कुछ भी तो जानने की कोशिश नहीं की. फिर क्यों वापस आया है? सवाल तो कई थे पर जवाब एक भी नहीं था.

जाने क्या सोच कर अपना नंबर लिख भेजा. फिर आराम से कुरसी पर बैठ कर सौरव से हुई पहली मुलाकात के बारे में सोचने लगी…

10 साल पहले ‘फोरम द शौपिंग मौल’ के सामने और्चर्ड रोड पर एक ऐक्सीडैंट में वैदेही सड़क पर पड़ी थी. कोई कार से टक्कर मार गया था. ट्रैफिक जाम हो गया था. कोई मदद के लिए सामने नहीं आ रहा था. किसी सिंगापोरियन ने हैल्पलाइन में फोन कर सूचना दे दी थी कि फलां रोड पर ऐक्सीडैंट हो गया है, ऐंबुलैंस नीडेड.

वैदेही के पैरों से खून तेजी से बह रहा था. वह रोड पर हैल्प… हैल्प चिल्ला रही थी, पर कोई मदद के लिए आगे नहीं आ रहा था. उसी ट्रैफिक जाम में सौरव भी फंसा था. न जाने क्या सोच वह मदद के लिए आगे आया और फिर वैदेही को अपनी ब्रैंड न्यू स्पोर्ट्स कार में हौस्पिटल ले गया.

वैदेही हलकी बेहोशी में थी. सौरव का उसे अपनी गोद में उठा कर कार तक ले जाना ही याद था. उस के बाद तो वह पूरी बेहोश हो गई थी. पर आज भी उस की वह लैमन यलो टीशर्ट उसे अच्छी तरह याद थी. वैदेही की मदद करने के ऐवज में उसे कितने ही चक्कर पुलिस के काटने पड़े थे. विदेश के अपने पचड़े हैं. कोई किसी

की मदद नहीं करता खासकर प्रवासियों की. फिर भी एक भारतीय होने का फर्ज निभाया था. यही बात तो दिल को छू गई थी उस की. कुछ अजीब और पागल सा था. जब जो उस के मन में आता था कर लिया करता था. 4 घंटे बाद जब वैदेही होश में आई थी तब भी वह उस के सिरहाने ही बैठा था. ऐक्सीडैंट में वैदेही की एक टांग में फ्रैक्चर हो गया था, मोबाइल भी टूट गया था. सौरव उस के होश में आने का इंतजार कर रहा था ताकि उस से किसी अपने का नंबर ले इन्फौर्म कर सके.

होश में आने पर वैदेही ने ही उसे अच्छी तरह पहली बार देखा था. देखने में कुछ खास तो नहीं था पर फिर भी कुछ तो अलग बात थी.

कुछ सवाल करती उस से पहले ही उस ने कहा, ‘‘अच्छा हुआ आप होश में आ गईं वरना तो आप के साथ मुझे भी हौस्पिटल में रात काटनी पड़ती. खैर, आई एम सौरव.’’

सौरव के तेवर देख वैदेही ने उसे थैंक्यू

नहीं कहा.

वैदेही से उस ने परिवार के किसी मैंबर का नंबर मांगा. मां का फोन नंबर देने पर सौरव ने अपने फोन से उन का नंबर मिला कर उन्हें वैदेही के विषय में सारी जानकारी दे दी. फिर हौस्पिटल से चला गया. न बाय बोला न कुछ. अत: वैदेही ने मन ही मन उस का नाम खड़ूस रख दिया.

उस मुलाकात के बाद तो मिलने की उम्मीद भी नहीं थी. न उस ने वैदेही का नंबर लिया था न ही वैदेही ने उस का. उस के जाते ही वैदेही की मां और बाबा हौस्पिटल आ पहुंचे थे. वैदेही ने मां और बाबा को ऐक्सीडैंट का सारा ब्योरा दिया और बताया कैसे सौरव ने उस की मदद की.

2 दिन हौस्पिटल में ही बीते थे.

ऐसी तो पहली मुलाकात थी वैदेही और सौरव की. कितनी अजीब सी… वैदेही सोचसोच मुसकरा रही थी. सोच तो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी. सौरव के ईमेल ने वैदेही के पुराने सारे मीठे और दर्द भरे पलों को हरा कर दिया था.

ऐक्सीडैंट के बाद पंद्रह दिन का बैडरेस्ट लेने को कहा गया

था. नईनई नौकरी भी जौइन की थी तब वैदेही ने. घर पहुंच वैदेही ने सोचा औफिस में इन्फौर्म कर दे. मोबाइल खोज रही थी तभी याद आया मोबाइल तो हौस्पिटल में सौरव के हाथ में था और शायद अफरातफरी में उस ने उसे लौटाया नहीं था. पर इन्फौर्म तो कर ही सकता था. उफ, सारे कौंटैक्ट नंबर्स भी गए. वैदेही चिल्ला उठी थी. तब अचानक याद आया कि उस ने अपने फोन से मां को फोन किया था. मां के मोबाइल में कौल्स चैक की तो नंबर मिल गया.

तुरंत नंबर मिला अपना इंट्रोडक्शन देते हुए उस ने सौरव से मोबाइल लौटाने का आग्रह किया. तब सौरव ने तपाक से कहा, ‘‘फ्री में नहीं लौटाऊंगा. खाना खिलाना होगा… कल शाम तुम्हारे घर आऊंगा… एड्रैस बताओ.’’

वैदेही के तो होश ही उड़ गए. मन में सोचने लगी कैसा अजीब प्राणी है यह. पर मोबाइल तो चाहिए ही था. अत: एड्रैस दे दिया.

अगले दिन शाम को महाराज हाजिर भी हो गए थे. सारे घर वालों को सैल्फ इंट्रोडक्शन भी दे दिया और ऐसे घुलमिल गया जैसे सालों से हम सब से जानपहचान हो. वैदेही ये सब देख हैरान भी थी और कहीं न कहीं एक अजीब सी फीलिंग भी हो रही थी. बहुत मिलनसार स्वभाव था. मां, बाबा और वैदेही की छोटी बहन तो उस की तारीफ करते नहीं थक रहे थे. थकते भी क्यों उस का स्वभाव, हावभाव सब कितना अलग और प्रभावपूर्ण था. वैदेही उस के साथ बहती चली जा रही थी.

वह सिंगापुर में अकेला रहता था. एक कार डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी में मैनेजर था. तभी आए दिन उसे नई कार का टैस्ट ड्राइव करने का मौका मिलता रहता था. जिस दिन उस ने वैदेही की मदद की थी उस दिन भी न्यू स्पोर्ट्स कार की टैस्ट ड्राइव पर था. उस के मातापिता इंडिया में रहते थे.

इस दौरान अच्छी दोस्ती हो गई थी. रोज आनाजाना होने लगा था. वैदेही के परिवार के सभी लोग उसे पसंद करते थे. धीरेधीरे उस ने वैदेही के दिल में खास जगह बना ली. उस के साथ जब होती थी तो लगता था ये पल यहीं थम जाएं. वैदेही को भी यह एहसास हो चला था कि सौरव के दिल में भी उस के लिए खास फीलिंग्स हैं. मगर अभी तक उस ने वैदेही से अपनी फीलिंग्स कही नहीं थीं.

15 दिन बाद वैदेही ने औफिस जौइन कर लिया. सौरव और वैदेही का औफिस और्चर्ड रोड पर ही था. सौरव अकसर वैदेही को औफिस से घर छोड़ने आता था. फ्रैक्चर होने की वजह से

6 महीने केयर करनी ही थी. वैदेही को उस का लिफ्ट देना अच्छा लगता था.

आज भी वैदेही को याद है सौरव ने उसे

2 महीने के बाद उस के 22वें बर्थडे पर प्रपोज किया था. औसतन लोग अपनी प्रेमिका को गुलदस्ता या चौकलेट अथवा रिंग के साथ प्रपोज करते हैं, पर उस ने वैदेही के हाथों में एक कार का छोटा सा मौडल रखते हुए कहा कि क्या तुम अपनी पूरी जिंदगी का सफर मेरे साथ तय करना चाहोगी? कितना पागलपन और दीवानगी थी उस की बातों में. वैदेही उसे समझने में असमर्थ थी. यह कहतेकहते सौरव उस के बिलकुल नजदीक आ गया और वैदेही का चेहरा अपने हाथों में थामते हुए उस के होंठों को अपने होंठों से छूते हुए दोनों की सांसें एक हो चली थीं. वैदेही का दिल जोर से धड़क रहा था. खुद को संभालते हुए वह सौरव से अलग हुई. दोनों के बीच एक अजीब मीठी सी मुसकराहट ने अपनी जगह बना ली थी.

कुछ देर तो वैदेही वहीं बुत की तरह खड़ी रही थी. जब उस ने वैदेही का उत्तर जानने की उत्सुकता जताई तो वैदेही ने कहा था कि अगले दिन ‘गार्डन बाय द वे’ में मिलेंगे. वहीं वह अपना जवाब उसे देगी.

उस रात वैदेही एक पल भी नहीं सोई थी. कई विषयों पर सोच रही थी जैसे

कैरियर, आगे की पढ़ाई और न जाने कितने खयाल. नींद आती भी कैसे, मन में बवंडर जो उठा था. तब वैदेही मात्र 22 साल की ही तो थी और इतनी जल्दी शादी भी नहीं करना चाहती थी. सौरव भी केवल 25 वर्ष का था. पर वैदेही उसे यह बताना भी चाहती थी कि उस से बेइंतहा मुहब्बत हो गई है और जिंदगी का पूरा सफर उस के साथ ही बिताना चाहती है. बस कुछ समय चाहिए था उसे. पर यह बात वैदेही के मन में ही रह गई थी. कभी इसे बोल नहीं पाई.

अगले दिन वैदेही ठीक शाम 5 बजे ‘गार्डन बाय द वे’ में पहुंच गई. वहां पहुंच कर उस ने सौरव को फोन मिलाया तो फोन औफ आ रहा था. उस का इंतजार करने वह वहीं बैठ गई. आधे घंटे बाद फिर फोन मिलाया तब भी फोन औफ ही आ रहा था. वैदेही परेशान हो उठी. पर फिर सोचा कहीं औफिस में कोई जरूरी मीटिंग में न फंस गया हो. वहीं उस का इंतजार करती रही. इंतजार करतेकरते रात के 8 बजे गए, पर वह नहीं आया और उस के बाद उस का फोन भी कभी औन नहीं मिला.

2 साल तक वैदेही उस का इंतजार करती रही पर कभी उस ने उसे एक बार भी फोन नहीं किया. 2 साल बाद मांबाबा की मरजी से आदित्य से वैदेही की शादी हो गई. आदित्य औडिटिंग कंपनी चलाता था. उस के मातापिता सिंगापुर में उस के साथ ही रहते थे.

शादी के बाद कितने साल लगे थे वैदेही को सौरव को भूलने में पर पूरी तरह भूल नहीं पाई थी. कहीं न कहीं किसी मोड़ पर उसे सौरव की याद आ ही जाती थी. आज अचानक क्यों आया है और क्या चाहता है?

वैदेही की सोच की कड़ी को अचानक फोन की घंटी ने तोड़ा. एक अनजान नंबर था. दिल की धड़कनें तेज हो चली थीं. वैदेही को लग रहा था हो न हो सौरव का ही होगा. एक आवेग सा महसूस कर रही थी. कौल रिसीव करते हुए हैलो कहा तो दूसरी ओर सौरव ही था. उस ने अपनी भारी आवाज में ‘हैलो इज दैट वैदेही?’ इतने सालों के बाद भी सौरव की आवाज वैदेही के कानों से होते हुए पूरे शरीर को झंकृत कर रही थी.

स्वयं को संभालते हुए वैदेही ने कहा, ‘‘यस दिस इज वैदेही,’’ न पहचानने का नाटक करते हुए कहा, ‘‘मे आई नो हू इज टौकिंग?’’

सौरव ने अपने अंदाज में कहा, ‘‘यार, तुम मुझे कैसे भूल सकती हो? मैं सौरव…’’

‘‘ओह,’’ वैदेही ने कहा.

‘‘क्या कल तुम मुझ से मरीना वे सैंड्स होटल के रूफ टौप रैस्टोरैंट पर मिलने आ सकती  हो? शाम 5 बजे.’’

कुछ सोचते हुए वैदेही ने कहा, ‘‘हां, तुम से मिलना तो है ही. कल शाम को आ जाऊंगी,’’ कह फोन काट दिया.

अगर ज्यादा बात करती तो उस का रोष सौरव को फोन पर ही सहना पड़ता. वैदेही के दिमाग में कितनी हलचल थी, इस का अंदाजा लगाना मुश्किल था. यह सौरव के लिए उस का प्यार था या नफरत? मिलने का उत्साह था या असमंजसता? एक मिलाजुला भावों का मिश्रण जिस की तीव्रता सिर्फ वैदेही ही महसूस कर सकती थी.

अगले दिन सौरव से मिलने जाने के लिए जब वैदेही तैयार हो रही थी, तभी आदित्य कमरे में आया. वैदेही से पूछा, ‘‘कहां जा रही हो?’’

वैदेही ने कहा, ‘‘सौरव सिंगापुर आया है. वह मुझ से मिलना चाहता है,’’ कह वैदेही चुप हो गई. फिर कुछ सोच आदित्य से पूछा, ‘‘जाऊं या नहीं?’’

आदित्य ने जवाब में कहा, ‘‘हां, जाओ. मिल आओ. डिनर पर मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा,’’ कह वह कमरे से चला गया.

आदित्य ने सौरव के विषय में काफी कुछ सुन रखा था. वह यह जानता था कि सौरव को वैदेही के परिवार वाले बहुत पसंद करते थे… कैसे उस ने वैदेही की मदद की थी. आदित्य खुले विचारों वाला इनसान था.

हलके जामुनी रंग की ड्रैस में वैदेही बहुत खूबसूरत लग रही थी. बालों को

ब्लो ड्राई कर बिलकुल सीधा किया था. सौरव को वैदेही के सीधे बाल बहुत पसंद थे. वैदेही हूबहू वैसे ही तैयार हुई जैसे सौरव को पसंद थी. वैदेही यह समझने में असमर्थ थी कि आखिर वह सौरव की पसंद से क्यों तैयार हुई थी? कभीकभी यह समझना मुश्किल हो जाता है कि आखिर किसी के होने का हमारे जीवन में इतना असर क्यों आ जाता है. वैदेही भी एक असमंजसता से गुजर रही थी. स्वयं को रोकना चाहती थी पर कदम थे कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे.

वैदेही ठीक 5 बजे मरीना बाय सैंड्स के रूफ टौप रैस्टोरैंट में पहुंची. सौरव वहां पहले से इंतजार कर रहा था. वैदेही को देखते ही वह चेयर से खड़ा हो वैदेही की तरफ बढ़ा और उसे गले लगते हुए बोला, ‘‘सो नाइस टू सी यू आफ्टर ए डिकेड. यू आर लुकिंग गौर्जियस.’’

वैदेही अब भी गहरी सोच में डूबी थी. फिर एक हलकी मुसकान के साथ उस ने कहा, ‘‘थैंक्स फार द कौंप्लीमैंट. आई एम सरप्राइज टु सी यू ऐक्चुअली.’’

सौरव भांप गया था वैदेही के कहने का तात्पर्य. उस ने कहा, ‘‘क्या तुम ने अब तक मुझे माफ नहीं किया? मैं जानता हूं तुम से वादा कर के मैं आ न सका. तुम नहीं जानतीं मेरे साथ क्या हुआ था?’’

वैदेही ने कहा, ‘‘10 साल कोई कम तो नहीं होते… माफ कैसे करूं तुम्हें? आज मैं जानना चाहती हूं क्या हुआ था तुम्हारे साथ?’’

सौरव ने कहा, ‘‘तुम्हें याद ही होगा, तुम ने मुझे पार्क में मिलने के लिए बुलाया था. उसी दिन हमारी कंपनी के बौस को पुलिस पकड़ ले गई थी, स्मगलिंग के सिलसिले में. टौप लैवल मैनेजर को भी रिमांड में रखा गया था. हमारे फोन, अकाउंट सब सीज कर दिए गए थे. हालांकि 3 दिन लगातार पूछताछ के बाद, महीनों तक हमें जेल में बंद कर दिया था. 2 साल तक केस चलता रहा. जब तक केस चला बेगुनाहों को भी जेल की रोटियां तोड़नी पड़ीं. आखिर जो लोग बेगुनाह थे उन्हें तुरंत डिपोर्ट कर दिया गया और जिन्हें डिपोर्ट किया गया था उन में मैं भी था. पुलिस की रिमांड में वे दिन कैसे बीते क्या बताऊं तुम्हें…

‘‘आज भी सोचता हूं तो रूह कांप जाती है. किस मुंह से तुम्हारे सामने आता? इसलिए जब मैं इंडिया (मुंबई) पहुंचा तो न मेरे पास कोई मोबाइल था और न ही कौंटैक्ट नंबर्स. मुंबई पहुंचने पर पता चला मां बहुत सीरियस हैं और हौस्पिटलाइज हैं. मेरा मोबाइल औफ होने की वजह से मुझ तक खबर पहुंचाना मुश्किल था. ये सारी चीजें आपस में इतनी उलझी हुई थीं कि उन्हें सुलझाने का वक्त ही नहीं मिला और तो और मां ने मेरी शादी भी तय कर रखी थी. उन्हें उस वक्त कैसे बताता कि मैं अपनी जिंदगी सिंगापुर ही छोड़ आया हूं. उस वक्त मैं ने चुप रहना ही ठीक समझा था.

‘‘और फिर जिंदगी की आपाधापी में उलझता ही चला गया. पर तुम हमेशा याद आती रहीं. हमेशा सोचता था कि तुम क्या सोचती होगी मेरे बारे में, इसलिए तुम से मिल कर तुम्हें सब बताना चाहता था. काश, मैं इतनी हिम्मत पहले दिखा पाता. उस दिन जब हम मिलने वाले थे तब तुम मुझ से कुछ कहना चाहती थीं न… आज बता दो क्या कहना चाहती थीं.’’

वैदेही को यह जान कर इस बात की तसल्ली हुई कि सौरव ने उसे धोखा नहीं दिया. कुदरत ने हमारे रास्ते तय करने थे. फिर बोली, ‘‘वह जो मैं तुम से कहना चाहती उन बातों का अब कोई औचित्य नहीं,’’ वैदेही ने अपने जज्बातों को अपने अंदर ही दफनाने का फैसला कर लिया था.

थोड़ी चुप्पी के बाद एक मुसकराहट के साथ वैदेही ने कहा, ‘‘लैट्स और्डर सम कौफी.’’

लव आजकल: विनय से शादी क्यों नहीं कर पाई वह

जिम में ट्रेडमिल पर चलतेचलते वैशाली ने सामने लगे शीशे में खुद को देखा. फिर मन ही मन अपने रूपरंग और फिगर पर इतराई कि कौन कहेगा वह इस महीने 35 साल की हो गई है. वह चलने की स्पीड बढ़ाते हुए अब लगभग दौड़ने सी लगी थी. अचानक उसे महसूस हुआ कि उसे कोई देख रहा है. उस ने सामने शीशे में फिर देखा. करीब 25 साल का नवयुवक वेट उठाते हुए उसे चोरीचोरी देख रहा था. वह थोड़ी देर टे्रडमिल पर दौड़ी, फिर साइक्लिंग करने लगी. वह लड़का अब ट्रेडमिल पर था. जिम में हर तरफ शीशे लगे थे. शीशे में ही उस की नजरें कई बार उस लड़के से मिलीं, तो वह अनायास मुसकरा दी. उस की नजरों से शह पा कर वह लड़का भी मुसकरा दिया. दोनों अपनाअपना वर्कआउट करते रहे. अपनी सोसाइटी के इस जिम में वैसे तो वैशाली शाम को आती थी पर शाम को जिस दिन किट्टी पार्टी होती थी, वह जिम सुबह आती थी. अपने पति निखिल के औफिस और 5 वर्ष के बेटे राहुल को स्कूल भेजने के बाद वह आज सुबह 9 बजे ही जिम आ गई थी.

वैशाली ने उस लड़के से आंखमिचौली करते हुए खुद को एक नवयुवती सा महसूस किया. घर आ कर जब तक वह फ्रैश हुई, उस की मेड किरण आ गई, फिर वह काम में व्यस्त हो गई. अगले दिन वैशाली निखिल और राहुल के लिए नाश्ता बना रही थी, तभी अचानक जिम वाला लड़का ध्यान आ गया कि कहीं देखा तो है उसे. कहां, याद नहीं आया. होगा इसी सोसाइटी का, कहीं आतेजाते देखा होगा, फिर सोचा वह लड़का तो सुबह ही होगा. जिम में, शाम को तो दिखेगा नहीं. उस लड़के की तरफ वह पहली नजर में ही आकर्षित हो गई थी. स्मार्ट, हैंडसम लड़का था. वह अपना मन उस से हटा नहीं पाई और निखिल और राहुल के जाने के बाद जिम के लिए तैयार हो गई.

9 बज रहे थे. जा कर देखा, वह लड़का आ चुका था. वैशाली उसे देख कर मुसकरा दी. वह भी मुसकरा दिया. रोज की तरह दोनों अपनीअपनी ऐक्सरसाइज करते रहे. एकदूसरे से जब भी नजरें मिलीं, मुसकराते रहे, कोई बात नहीं हुई. 1 हफ्ता यही रूटीन चलता रहा. दोनों ही एकदूसरे के प्रति आकर्षित थे. वैशाली बहुत खूबसूरत थी, फिगर की उचित देखरेख से बहुत यंग दिखती थी. एक दिन वह लड़का वैशाली के जिम से निकलने पर साथसाथ चलता हुआ अपना परिचय देने लगा. ‘‘मैं विनय हूं, अभीअभी एक कंपनी में जौब शुरू की है.’’

वैशाली ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मैं वैशाली.

विनय बोला, ‘‘मैं जानता हूं, आप मेरे सामने वाली बिल्डिंग में ही रहती हैं.’’

वैशाली चौंकी, ‘‘आप को कैसे पता?’’

‘‘मैं आप की सहेली रेनू का देवर हूं, आप को मैं ने 1-2 बार अपने घर पर देखा भी है, शायद आप ने ध्यान नहीं दिया होगा. आप के बेटे राहुल की मेरी भाभी कभीकभी ड्राइंग में हैल्प करती हैं.’’

वैशाली हंस दी, ‘‘हां, रेनू की ड्राइंग अच्छी है, कई बार चार्ट बनाने में रेनू ने उस की हैल्प की है.’’

दोनों बातें करतेकरते अपनी बिल्डिंग तक पहुंच गए थे. वैशाली घर आ कर भी विनय के खयालों में डूबी रही… कितनी अच्छी स्माइल है, कितना स्मार्ट है और मुझ जैसी 1 बेटे की मां को पसंद करता है, यह उस की आंखों से साफ महसूस होता है. विनय को भी वैशाली अच्छी लगी थी. कहीं से एक बच्चे की मां नहीं लगती. जिम में वर्कआउट करते हुए तो एक कालेज गोइंग गर्ल ही लगती है. दोनों ही एकदूसरे के बारे में सोचने लगे थे. अब वैशाली शाम की जगह सुबह 9 बजे ही जिम जाने लगी थी, जहां अब मुख्य आकर्षण विनय ही था और यही हाल विनय का भी था. पहले वह कभीकभार जिम से छुट्टी भी कर लेता था पर जब से वैशाली से दोस्ती हुई थी, उसे देखने के चक्कर में कतई छुट्टी नहीं करता था. और अब तो दोनों के मोबाइल फोन के नंबरों का भी आदानप्रदान हो चुका था. सोमवार को जिम बंद रहता था. उस दिन दोनों बेचैनी से एकदूसरे से फोन पर बात करते. निखिल अपनी पत्नी की हरकतों से अनजान अपने काम और परिवार की जिम्मेदारियों को हंसीखुशी निभाने वाले एक सभ्य पुरुष थे. वैशाली के जोर देने पर विनय अब वैशालीजी की जगह वैशाली पर आ गया था. 2 साल पहले ही निखिल का ट्रांसफर दिल्ली से मुंबई हुआ था पर उन्हें अकसर किसी न किसी काम से दिल्ली जाना पड़ता रहता था.

एक दिन निखिल 3-4 दिनों के लिए दिल्ली गए तो वैशाली ने राहुल के स्कूल जाने के बाद विनय को घर बुलाया. जिम से दोनों ने छुट्टी कर पहली बार अपने रिश्ते को एक कदम और आगे बढ़ा दिया. विनय पहली बार वैशाली के घर आया था. दोनों के बीच पहली बार शारीरिक संबंध भी बन गए.

विनय ने कहा, ‘‘सौरी वैशाली, शायद मुझे नहीं आना चाहिए था.’’

‘‘कोई बात नहीं विनय, बस अब मेरा साथ कभी न छोड़ना.’’

‘‘पर वैशाली, तुम्हारे पति को कभी भनक लग गई तो?’’

‘‘नहींनहीं, यह नहीं होना चाहिए, बहुत गड़बड़ हो जाएगी, बहुत संभल कर रहना होगा.’’

वैसे भी महानगरों में कौन क्या कर रहा है, इस बात से किसी को मतलब नहीं होता है और फिर किसी के पास समय ही कहां होता है. उस के बाद दोनों अकसर अकेले में मिलते रहते थे. वैशाली तनमन से विनय के प्यार में डूबी थी. विनय अकसर औफिस से हाफडे लेता था, दोनों के संबंधों के 6 महीने कब बीत गए, दोनों को ही पता न चला. वैशाली मशीनी ढंग से अपनी घर की जिम्मेदारियां पूरी करती और विनय के खयालों में डूबी रहती. एक दिन वैशाली किट्टी पार्टी में गई थी. वहां रेनू भी थी. रेनू ने उत्साहपूर्ण स्वर में सब को बताया, ‘‘बहुत जल्दी एक गुड न्यूज दूंगी तुम लोगों को.’’

सब पूछने लगीं, ‘‘जल्दी बताओ.’’

रेनू हंसी, ‘‘अभी नहीं, डेट तो पक्की होने दो.’’

अनीता ने पूछा, ‘‘कैसी डेट? बता न.’’

‘‘विनय के लिए लड़की देखी है, सब को पसंद आ गई है, बहुत अच्छी है, बस शादी की डेट फिक्स करनी बाकी है.’’

वैशाली को गहरा झटका लगा, ‘‘क्या? विनय के लिए?’’

‘‘हां भई, अब तो अच्छीखासी जौब कर रहा है… उस की जिम्मेदारी भी पूरी कर दें.’’

रेखा ने पूछा, ‘‘वैसे तो आजकल लड़के खुद ही लड़की पसंद कर लेते हैं. उस ने कोई लड़की खुद नहीं पसंद की?’’

‘‘नहीं भई, मेरा देवर तो बहुत ही प्यारा है, मांपिताजी ने कई बार पूछा, उस ने हमेशा यही कहा, आप लोग जहां कहोगे मैं कर लूंगा.’’

वैशाली ने अपनी कांपती आवाज पर नियंत्रण रखते हुए पूछा, ‘‘उस ने हां कर दी है?’’

‘‘और क्या?’’

वैशाली ने फिर पूछा, ‘‘उस ने देख ली लड़की?’’

‘‘हां भई, हम सब गए थे लड़की के घर. सब तय हो गया है. बस डेट फिक्स करनी है, 2-3 महीने के अंदर शादी हो जाएगी.’’

वैशाली के दिल पर गहरी चोट लगी. वह मन ही मन फुफकार रही थी. फिर, ‘‘कुछ जरूरी काम है,’’ कह कर वह किट्टी पार्टी से उठ कर बाहर निकल आई और फिर तुरंत विनय को फोन मिलाया, ‘‘मुझे तुम से मिलना है, विनय, अभी इसी वक्त.’’

‘‘कल जिम में मिलते हैं न सुबह.’’

‘‘नहीं, अभी, फौरन मुझ से मिलो.’’

‘‘क्या हुआ, अभी मुश्किल है, मैं औफिस में हूं.’’

‘‘ठीक है, जिम में सुबह मिलते हैं.’’

रात वैशाली ने जैसे जाग कर गुजारी, एक पल भी उसे नींद नहीं आई. निखिल ने उसे बेचैन सा देखा, तो कई बार उस का माथा सहलाया, पूछा, ‘‘तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘हां, ऐसे ही,’’ कह कर वह मन ही मन छटपटाती रही, पति के स्नेहिल स्पर्श से भी उसे चैन नहीं मिला. जिस विनय के प्यार में रातदिन डूब कर उसे अपना सब कुछ सौंप दिया और उस ने उसे कुछ बताया भी नहीं, इतना बड़ा धोखा…

सुबह निखिल और राहुल के जाते ही वैशाली जिम पहुंच गई. वहां अकेले एक कोने में पहुंच कर वैशाली गुर्रा पड़ी, ‘‘यह क्या सुना मैं ने कल? तुम विवाह कर रहे हो?’’

‘‘हां, मैं बताने वाला था पर मौका नहीं मिला, फिर मैं भूल गया, सौरी.’’

‘‘तुम्हें शर्म नहीं आई विवाह के लिए हां कहते हुए?’’

‘‘शर्म कैसी वैशाली?’’

‘‘हमारे बीच जो संबंध है उस के बाद भी यह पूछ रहे हो? धोखा दे रहे हो मुझे?’’ वैशाली का चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था.

आतेजाते लोगों की नजरें उन पर न पड़ें, यह सोच कर विनय ने कहा, ‘‘अभी मैं तुम्हारे घर आता हूं, वहीं बात करते हैं, यहां ठीक नहीं रहेगा.’’ वैशाली उसी समय घर चली गई.

विनय भी थोड़ी देर में पहुंच गया. बोला, ‘‘क्या हो गया? इतना गुस्सा क्यों कर रही हो?’’

‘‘तुम किसी से विवाह करने की सोच भी कैसे सकते हो? हमारा जो रिश्ता है…’’

विनय ने बीच में ही बात काटी, ‘‘हमारा जो रिश्ता है, वह रहेगा न, परेशान क्यों हो?’’

‘‘कैसे रहेगा? कल तुम्हारी पत्नी होगी, कैसे रहेगा रिश्ता?’’

‘‘तुम्हारे भी तो पति हैं, तुम ने रखा न मुझ से रिश्ता?’’

‘‘नहीं, मैं यह नहीं सहन करूंगी, तुम शादी नहीं कर सकते किसी से.’’

‘‘यह तो गलत बात कर रही हो तुम.’’

‘‘नहीं, तुम सोचना भी मत यह वरना…’’

विनय को भी गुस्सा आ गया, ‘‘धमकी दे रही हो? मेरा परिवार है, मातापिता हैं… वे जहां कहेंगे, मैं विवाह करूंगा.’’

वैशाली जैसे फुफकार उठी, ‘‘मैं देखती हूं कैसे मेरे साथ रंगरलियां मना कर तुम कहीं और रिश्ता जोड़ते हो.’’

विनय उसे शांत करने की कोशिश में खुद को असफल होता देख बोला, ‘‘अभी मैं जा रहा हूं, कल मिलता हूं, जिम नहीं जाएंगे, यहीं बैठ कर बात करेंगे.’’ दिन में कई बार वैशाली ने विनय को फोन पर बुराभला कहा, उसे धमकी दी… पूरा दिन विनय को वैशाली के बिगड़े तेवर परेशान करते रहे. वैशाली का रौद्र रूप, उस का धमकी देना उसे बहुत कुछ सोचने के लिए मजबूर करता रहा. विनय बहुत तेज दिमाग का लड़का था. वह पूरी स्थिति को अच्छी तरह सोचतासमझता रहा. पहले की मोहिनी, गर्विता सुंदरी वैशाली एक घायल नागिन की तरह फुफकारती विनय को अपना नया रूप दिखा गई थी.

अगले दिन विनय वैशाली से मिलने नहीं जा पाया. उसे औफिस जल्दी जाना था. वैशाली फोन पर चिल्लाती रही. शाम को विनय घर पहुंचा तो हंसीखुशी का माहौल था. अगले महीने की डेट फिक्स हो चुकी थी. 10 दिन बाद सगाई थी. विनय को वैशाली का क्रोधित रूप याद आता रहा. वह मन ही मन बहुत परेशान था. अगली सुबह विनय ने वैशाली के फ्लैट की डोरबैल बजाई. उतरा मुंह लिए वैशाली ने दरवाजा खोला, विनय को दुख हुआ. अब कुछ भी हो रहा हो, दोनों ने इस से पहले काफी समय प्यार भरा बिताया था. उस ने वैशाली के कंधे पर हाथ रखते हुए प्यार से कहा, ‘‘क्यों टैंशन में हो? मैं कहीं भागा तो नहीं जा रहा… हम मिलते रहेंगे.’’

‘‘नहीं, तुम विवाह के लिए मना कर दो, मैं तुम्हारी पत्नी को सहन नहीं करूंगी.’’

‘‘क्यों? मैं ने कभी तुम्हारे पति को कुछ कहा है?’’

वैशाली गुर्राई, ‘‘वह सब मैं नहीं जानती, तुम ने विवाह किया तो मुझ से बुरा कोई न होगा.’’

विनय चुपचाप पैंट की जेब में हाथ डाल कर खड़ा हो गया, बोला, ‘‘मैं कुछ नहीं कर सकता अब… 10 दिन बाद सगाई है मेरी.’’

‘‘तो ठीक है, मैं भी देखती हूं कैसे विवाह करते हो तुम?’’

‘‘क्या करोगी?’’

‘‘मैं सब को बताऊंगी कि तुम ने मेरे साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की. अभी इसी समय चिल्लाऊंगी, बदनाम कर दूंगी तुम्हें, इतने दिन मेरे साथ मौजमस्ती कर तुम आराम से किसी और के साथ घर नहीं बसा सकते.’’ वैशाली गुस्से में चिल्लाए जा रही थी.

अचानक विनय ने कहा, ‘‘ठीक है, फिर अब मैं चलता हूं और तुम्हें नेक सलाह देना चाहता हूं, कोई गलत हरकत करने की स्थिति में तुम नहीं हो इसलिए मेरे बारे में कुछ गलत कहनेकरने की सोचना भी मत.’’

‘‘मतलब? क्या कर लोगे?’’

‘‘चाहता तो नहीं था यह सब पर तुम्हारी धमकियां और गुस्सा यह सब करने पर मजबूर कर गया, लो सुनो,’’ कह कर विनय ने पैंट की जेब से अपना फोन निकाला और बटन औन करते ही वैशाली की गुस्से से भरी आवाज कमरे में गूंज गई, ‘इतने दिन मेरे साथ मौजमस्ती…’

यह सुनते ही वैशाली के चेहरे का रंग उड़ गया. विनय कह रहा था, ‘‘यह सब मैं करना नहीं चाहता था पर अगर तुम ने मुझे बदनाम किया तो तुम्हारे पति भी यह सुनेंगे. जो भी हमारे बीच हुआ, अच्छाबुरा, उस का जिम्मेदार मैं अकेला नहीं हूं. दोस्त बन कर हम हमेशा साथ रह सकते थे पर तुम ने धमकियां देदे कर इस की गुंजाइश भी नहीं छोड़ी. अब तुम अपने रास्ते मैं अपने रास्ते,’’ और फिर विनय चला गया. वैशाली चोट खाई नागिन की तरह उसे जाते देख फुफकारती रह गई.

एक कमरे में बंद दो एटम बम  

वे चारों डाइनिंग टेबल पर जैसे तैसे आखरी कौर समेट कर उठने के फिराक में थे. दिल के दरवाजे और खिड़कियां अंदुरनी शोर शराबों से धूम धड़ाका कर रहीं थीं.

नीना और लीना दोनों टीन एज बच्चियां अब उठकर अपने कमरे में चली गईं है और कमरे का दरवाजा अंदर से बन्द कर लिया है.

समीर और श्रीजा का चेहरा मेंढ़क के फूले गाल की तरह सूजा है, और उन दोनों के मन में एक दूसरे पर लात घुंसो की बारिश कर देने की इच्छा बलवती हो रही है.

” मै कुछ भी वीडियो फारवर्ड करूं ,किसी से कुछ भी कहूं ,तुम्हे क्या – तुमने मेरे मामले में दुबारा टांग अड़ाने की कोशिश भी की तो अंजाम देखने के लिए तैयार रहना! तुम औरत हो,देश और दुनिया के बारे में ज्यादा नाक न गलाओ! समझी?”

“अरे! इतनी क्यों कट्टर सोच है  तुम्हारी ! तुम सारे ग्रुप्स में फेक वीडियो डाल रहे हो ,भड़काऊ संदेश भेज रहे हो, कोरोना वाले लौक डाउन में जहां लोगों को शांत रहकर एक जुट होने का संदेश देना चाहिए, ताकि बिना वैमनस्य के लोग एक दूसरे की मदद कर सकें, तुम असहिष्णुता को बढ़ावा दे रहे हो, और मुझसे सहा नहीं जा रहा तो मै इसलिए चुप रहूं क्योंकि मै औरत हूं!”

“हां ,इसलिए ही तुम  मुझसे मुंह मत लगो! तुम लेडिस लोग समझती कुछ नहीं बस मुंह फाड़कर चिल्लाने लगती हो!”

“लडकियां भी समझ रही हैं, कि औरतों के प्रति तुम्हारा नजरिया कितना पूराना और कमतर है!”

“जानना ही चाहिए! उन्हें अपनी तरह नाच मत नचाओ!

औरत का जन्म है तो जिंदगी भर औरत ही रहेगी,मर्द बनकर  तो नहीं रह सकती!”

उफ़ इसका क्या इलाज! बात बढ़ने से बच्चियां परेशान होंगी, श्रीजा मन मसोस कर रह गई.

कोरोना की वजह से लौक डाउन था.औफिस बंद था,यानी अब अपनी मर्जी का था,दवाब नहीं था. सैर सपाटा,दोस्ती यारी ,शराब कबाब बन्द था , बिन बताए घर से घंटों गायब रहना बन्द था, इस बन्द में सब कुछ तो बन्द था – फिर श्रीजा का खुलकर सांस लेना तो बन्द होना ही था ! मन लगाने को भड़काऊ संदेश फारवर्ड और पत्नी और बेटियों पर कट्टर पंथी सोचों का वार! लौक डाउन ने वाकई श्रीजा की जिंदगी तोड़ मरोड़ कर रख दी थी.

वह बेटियों के पास जाकर बैठ गई.छोटी बेटी ने पूछा – मां क्या पापा के दूसरे धर्मों के दोस्त नहीं है? मेरे तो बहुत सारे दोस्त हैं पक्के पक्के, जिनकी धर्म जाति  मुझसे अलग है.उनके घर जाती हूं तो पता तो नहीं चलता कि वे अलग धर्म के है, हम तो उनके घर खूब मज़े करते हैं!”

“बेटा खुराफात लोगों का यह अच्छा टाइम पास है! यहां इस लौक डाउन में  कितने ही लोगों को कितनी मुश्किलें हो रहीं हैं ,हम चाहे तो उन्हें मदद करें, ये क्या कि आपस में रंजिश बढ़ाएं! हर जाति धर्म में बुरे लोग होते हैं, जो अपराध करते हैं, उनका धर्म अपराध होता है, और कुछ नहीं! लेकिन कट्टर सोच वालों को कैसे समझाया जाय!”

“क्या हमारे पापा भी कट्टर ही हैं?”

“ये तुम खुद ही समझना , मै नहीं बता सकती!”

डिनर जैसे तैसे खत्म कर अब सोने की तैयारी थी.

निबाहना भी भारी काम है .श्रीजा को निभाना पड़ता ही है, बात सिर्फ बच्चों के भविष्य की ही नहीं, इस मरदुए से वो भी तो जाने अनजाने लगाव की डोर से बंधी है! दिमाग में कितनी ही भिन्नता हो, दिल में कितनी ही खिन्नता हो, निभाना सिर्फ निभाना नहीं, दिल का कहा मानना भी है!

काश ! पति अगर शांति प्रिय होता, उदार और समझदार होता, तो घर में ताला बन्दी कितनी रूमानी होती! हसरतें अनुराग से भरी भरी -बल्लियों उछलती पतिदेव के गले में झुल सी जाती!

पर यहां तो कूप मंडूक को देखते ही तन बदन में आग लहक जाती है!

कमरा साफ सुंदर, नीली रोशनी जैसे मादक नील परी सी अपनी चुनरी फैलाए थी!

करीने से बिस्तर लगाकर श्रीजा एक किनारे सिमट गई .

“श्रीजा ! इधर आओ ”

“मन नहीं है!”

“तुम्हारे मन से क्या होता है?”

“लौक डाउन!”

“वो बाहर है!”

“दिल में भी!”

“अरे! छोड़ो मै दिल की बात नहीं कर रहा!”

” मेरे घर का दरवाजा दिल से होकर गुजरता है! मेरा दिल चकनाचूर है! तुम देश वासियों में नफरत क्यों बांट रहे हो? उदार बनो,कट्टर नहीं! ”

“भाड़ में जाओ! इतना लेक्चर चौराहे पर जाकर दो!”

यार एक तो घर में कैद होकर रह गया ,ऊपर से तुम एटम बम फोड़े जा रही हो! घर है कि ब्लास्ट फर्नेस!”

“तुम ही बताओ! तुम भी कोरोना बम से कम हो क्या!

इतनी नफरत और उंच नीच का भेद भाव!”

अचानक  एक तकिया श्रीजा की पीठ पर आकर लगा. वो समीर की तरफ पीठ दिखाकर लड़ती जा रही थी, कि अचानक यह झटका !

धमाके सा समीर मेन गेट खोलकर बाहर निकल चुका था.

दिमाग भन्ना गया था समीर का. आखिर एक औरत को इतनी हिम्मत पड़ी कैसे कि वह अपने पति से जवाब तलब करे ! कहीं उसने श्रीजा को ज्यादा ढील तो न दे दी? समीर अपने विचारों में इतना ही खो चुका था कि कब वह अपनी कालोनी से निकलकर मेन रोड में चलता जा रहा था उसे पता ही न चला!

होश तो तब हुआ जब पुलिस पेट्रोलिंग गाड़ी ने उसे आकर रोका!

“अरे !सर जी कुछ नहीं, बीबी घर में बड़ा चिक चिक कर रही थी!

मजाक है ?बिना मास्क बाहर घूम रहे हैं, वो भी रात के बारह बजे इस 144 में!”

लाख मिन्नतें कर किसी  तरह समीर पुलिस से जान छुड़ाने में कामयाब हुआ लेकिन पुलिस की गाड़ी उसे घर तक छोड़ने आई.

क्या हुआ मैडम! हम तो इन्हे थाने ले जा रहे थे.बड़ा गिड़गिड़ाया इन्होंने. क्या अनबन हो गई?”

“अहंकार के फुले हुए कुप्पे का यूं पिचक जाना श्रीजा के लिए बड़ा संतोष कारी था.उसने समीर की ओर भेद भरी नजरों से देख इतना ही पूछा- “क्या हुआ था बताऊं?”

“अरे सर जी! गलती मेरी भी थी! अब घर के अंदर ही रहूंगा और बीबी की बात मानुंगा.”

श्रीजा के अंदर हंसी का गुबार भर भर निकलने को हुआ,लेकिन वो समीर के घिघियाए चेहरे को हंसी में टालना नहीं चाहती थी.

फिर से दोनो बिस्तर पर थे.समीर इस बार अपना खार खाया हाइड्रोजन बम दिल में ही दबाकर चुप सो गया!

करम फूटे जो ऐसी एटम बम को छुए!

अपहरण: रायन दंपती का जब दिखावा पड़ा महंगा

नीरव शांति भी कितनी जानलेवा हो सकती है इस का ऋचा को रायन दंपती के कमरे में जा कर ही आभास हुआ था. बडे़ से सजेधजे ड्राइंगरूम में 20-25 लोग बैठे थे पर किसी के पास कहने के लिए कुछ बचा ही नहीं था. बीचबीच में बज रही फोन की घंटी ही इस घोर शांति को भंग कर रही थी. ऋषभ और सारंगी रायन शहर के धनवान दंपती थे.

ऋषभ रायन की व्यापारिक कामयाबी का लोहा सभी मानते थे. उधर सारंगी के हर हावभाव से झलकता था कि वह अभिजात्य वर्ग से हैं. कई समाजसेवी और गैरसरकारी संगठनों से वह जुड़ी थीं. उन के समाज सेवा के कार्यों की तो सराहना होती ही थी, मीडिया व समाचारपत्रों में  भी उन की अच्छीखासी पैठ थी.

ऐसे नामीगिरामी परिवार के इकलौते पुत्र आर्यन का अपहरण कर लिया गया था. दिनरात मित्रों से घिरे रहने वाले आर्यन का भला कौन शत्रु हो सकता है? ऋचा की आंखों के सामने आर्यन का हंसता चेहरा तैर गया था. आर्यन के अपहरण के बाद सारंगी का रोरो कर बुरा हाल था. ऋषभ उसे सांत्वना देने के अलावा कुछ नहीं कह पा रहे थे. बीचबीच में उन्हें पुलिस वालों के सवालों का उत्तर भी देना पड़ता था. शहर में जो भी सुनता दौड़ा चला आता. कब? क्या? कैसे हुआ? इन प्रश्नों का उत्तर देते हुए ऋषभ पस्त हो गए थे.

अपने  लाड़ले पुत्र का अपहरण, ऊपर से पुलिस और मीडिया वालों के तीखे सवाल…वह बहुत कठिनाई से खुद पर संयम रख पा रहे थे. उन के मित्रों व संबंधियों ने यह भार अपने कंधों पर उठा लिया था. वह केवल दोनों हाथ जोड़ कर मुसकराने की असफल कोशिश क रते थे.

काफी देर तक निरुद्देश्य बैठे रहने के बाद ऋचा और रोमेश ने रायन दंपती से विदा ली थी. वैसे उस तनाव में किसी से विदा लेना न लेना अर्थहीन था. बातबात पर ठहाके  लगाने, चुटकुले सुनाने वाले ऋषभ रायन सामान्य व्यवहार में भी स्वयं को असमर्थ पा रहे थे.

कार में बैठते समय ऋचा को अपनी पिछली किटी पार्टी याद आ गई. पार्टी में सारंगी बड़े उत्साह से आर्यन के जन्मदिन के बारे में क्लब के सदस्यों को बता रही थी :

‘अगले माह अपनी पार्टी सारंगी के यहां होगी,’ ऋचा ने रुपए गिन कर सारंगी की ओर बढ़ाते हुए कहा था.

‘क्या? मेरे यहां? नहींनहीं. अगले माह मैं अपने यहां पार्टी नहीं रख पाऊंगी. आर्यन का जन्मदिन है न. बड़ी तैयारी करनी है. किसी को चाहिए तो इस माह चिट ले ले, मुझे कोई आपत्ति नहीं है,’ सारंगी अपना पर्स खोल छोटे से आईने में अपनी छवि निहारती और लिपस्टिक ठीक करती हुई बड़ी अदा से बोली थी.

‘मुझे नहीं लगता कि यह इतनी बड़ी समस्या है?’ तवांगी बोली, ‘आर्यन का जन्मदिन जून के अंत में है. आज तो पहली मई है. जन्मदिन क्या 2 माह तक मनाओगी?’

उस की इस बात पर ऋचा के साथ रूपा और मीना भी खिलखिला पड़ीं तो सारंगी का चेहरा तमतमा गया था.

‘मेरे इकलौते बेटे का जन्मदिन है. उस के लिए 2 माह तो क्या 2 वर्ष भी कम हैं,’ सारंगी रूखे स्वर में बोली थी.

‘कोई बात नहीं, इस माह की किटी पार्टी मैं अपने यहां रख लेती हूं, पर उस में आने के लिए तो समय निकाल लेना,’ रूपा ने सारंगी को शांत करने का प्रयत्न किया था.

‘देखूंगी, कोई वादा नहीं करती,’ सारंगी का उत्तर था.

‘पार्टी में तो आना ही पड़ेगा. यह बात तो पहले दिन ही तय हो गई थी कि चाहे कितनी भी व्यस्तता हो, कोई सदस्या पार्टी में आने से मना नहीं करेगी,’ रूपा अड़ गई थी.

‘छोड़ो न इस बहस को, चलो, अपना पत्ता फेंको, सारंगी को तुम्हारे यहां पार्टी में लाने का जिम्मा मेरा रहा,’ ऋचा ने चर्चा पर वहीं विराम लगाया था.

‘क्या उपहार दे रही हो आर्यन को?’ अचानक ही ऋचा ने बात का रुख मोड़ दिया था.

‘ऋषभ ने मर्सीडीज मंगवाई है. आर्यन की यही मांग थी. छोेटीमोटी वस्तुओं पर तो वह हाथ रखता ही नहीं. वैसे भी हमारा एक ही बेटा है और इस बार ऐसी शानदार पार्टी देंगे कि शहर  में उस की चर्चा साल भर होती रहेगी.’

‘लेकिन सारंगी, 14 साल के बच्चे को कार का उपहार, तुम्हें डर नहीं लगता?’ ऋचा ने प्रश्न किया तो वहां बैठी सभी महिलाओं की प्रश्नवाचक निगाहें सारंगी पर टिक गई थीं.

‘14 वर्षीय? आर्यन तो पिछले 2 सालों से कार चला रहा है,’ सारंगी ने गर्वपूर्ण स्वर में बताया था.

‘लाइसेंस का कैसे करोगी? 14 साल के बच्चे को ड्राइविंग  लाइसेंस कौन देगा?’

‘इन छोटीछोटी बातों की चिंता मिडिल क्लास के लोग करते हैं हम नहीं. आर्यन का लाइसेंस तो 2 साल पहले ही बन गया था. वैसे भी उस की सहायता के लिए एक ड्राइवर हमेशा उस के साथ रहेगा,’ अपनी बात पूरी करते हुए सारंगी मुसकराई थी. अपनी सहेलियों के चेहरों पर आए प्रशंसा और ईर्ष्या के भाव देख कर सारंगी पुलक उठी थी.

किटी पार्टी समाप्त होने तक चर्चा आर्यन और उस के जन्मदिन के इर्दगिर्द ही घूमती रही थी.

‘अच्छा, अब मैं चलूंगी,’ सारंगी अचानक उठ खड़ी हुई और बोली, ‘आज अपने मित्रों के साथ वह छुट्टियां बिताने मालदीव जा रहा है. मैं जरा जल्दी में हूं.’

‘अच्छा, अब हमें भी चलना चाहिए,’ रूपा और मीना भी उठ खड़ी हुई थीं.

‘बैठो न कुछ देर, अब तो सारंगी चली गई है, वह जब तक यहां रहती है केवल अपना गुणगान करती रहती है. हम तो खुल कर हंसबोल भी नहीं सकते,’ ऋचा और कुछ अन्य सहेलियां बोली थीं.

‘मैं ने तो मना किया था पर सारंगी ने ऐसी जिद पकड़ी कि उसे शामिल करना पड़ा. पर आप लोग नहीं चाहतीं तो अगली चिट में साफ मना कर देंगे. मुझे भी लगता है कि सारंगी का दंभ बढ़ता ही जा रहा है.’ ऋचा ने आश्वासन दिया था.

उस का बेटा प्रसाद, जो आर्यन का सहपाठी था, बोर्ड की परीक्षा में सारे प्रांत में प्रथम आया था और अब फोन पर बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ था.

सारंगी का स्वर सुनते ही ऋचा को लगा कि प्रसाद की कामयाबी पर उसे बधाई देने के लिए ही फोन किया है. पर सारंगी तो दूर की हांक रही थी. छुट्टियां मनाने आर्यन गया था पर उस का असर सारंगी पर दिख रहा था. वह चटखारे लेले कर आर्यन की मालदीव में छुट्टी का विस्तार से वर्णन कर रही थी पर एक बार भी प्रसाद की उपलब्धि का नाम तक नहीं लिया था.

‘कल ही प्रसाद का परीक्षाफल आया है,’ ऋचा बोली, ‘‘मेरा बेटा पूरे प्रांत में प्रथम आया है. आजकल तो कालिज में दाखिले के लिए भी प्रवेश परीक्षा देनी होती है. प्रसाद उसी की तैयारी में जुटा है.’

‘ओह हां, मैं तो भूल ही गई थी. आर्यन बता रहा था. आर्यन ने भी अच्छा किया है. वह तो पूरे 10 हजार रुपए ले कर अपने मित्रों के साथ मस्ती करने गया है. उसे कालिज में दाखिले के लिए दिनरात एक करने की आवश्यकता नहीं है.’

‘क्यों? अभी से पढ़ाई छोड़ कर पिता के साथ बिजनेस करने का इरादा है क्या?’

‘क्या कह रही हो? ऋषभ रायन का बेटा इतनी सी आयु में क्या बिजनेस करेगा? वह आगे की पढ़ाई के लिए स्विट्जरलैंड जा रहा है. मुझे तो मध्यवर्गीय बच्चों पर बड़ा तरस आता है. आधा जीवन तो किताबों में सिर खपाए रहते हैं. शेष आधा 10 से 5 हजार की नौकरी में,’ सारंगी ने सहानुभूति जताते हुए कहा था पर ऋचा के कानों में मानो किसी ने पिघला सीसा उडे़ल दिया था.

‘समझती क्या है अपनेआप को? मेरे प्रसाद से तुलना करेगी आर्यन की?’ फोन रखते ही चीख उठी थी ऋचा.

‘क्या हुआ? बड़े क्रोध में हो? किस से बात कर रही थीं?’ समाचारपत्र पढ़ते रोमेश ने चौंक कर सिर उठाया था.

‘सारंगी थी. कभीकभी ऐसी बेहूदा बातें करती है कि सहन नहीं होतीं.’

‘तुम्हारी प्यारी सहेली है सारंगी. पता नहीं कैसे सहन कर लेती हो उसे,’ रोमेश तल्खी से बोले थे.

‘दिल की बुरी नहीं है. बस, कभीकभी…’ ऋचा हकला गई थी.

‘हांहां कहो न…चुप क्यों हो गईं? कभीकभी दौलत के नशे में ऊटपटांग बातें करने लगती हैं तुम्हारी सारंगी जी…’

‘छोड़ो यह सब, प्रसाद पूरे प्रांत में प्रथम आया है. चलो, कहीं बाहर चलते हैं,’ ऋचा ने किताबों में सिर गड़ाए बैठे प्रसाद को देख कर कहा था.

‘क्या हुआ, मां?’ प्रसाद ने चौंक कर सिर उठाया था.

‘कुछ नहीं, तुम्हारी इस कामयाबी से हम बहुत खुश हैं. तुम जल्दी से तैयार हो कर आ जाओ. आज बाहर जाने का बहुत मन है,’ ऋचा ने आग्रह किया था.

‘ठीक है मां, पर कल हम कुछ मित्र मिल कर पार्टी दे रहे हैं यह भूल मत जाना,’ प्रसाद ने याद दिलाया था.

‘मुझे अच्छी तरह याद है, मैं तुम्हें रोकूंगी नहीं. इतनी कड़ी मेहनत के बाद वैसे भी यह तुम्हारा अधिकार बनता है,’ ऋचा ने प्रसाद को दुलारते हुए कहा था.

रोमेश चुपचाप बैठे मां-बेटे के संवाद को सुन रहे थे. प्रसाद तैयार होने चला गया तो उन्होंने ऋचा पर गहरी नजर डालते हुए निश्वास ली थी.

‘क्या है? ऐसे क्यों देख रहे हो? जाना है, तैयार नहीं होना क्या?’ ऋचा ने प्रश्न किया था.

‘मैं सोच रहा था कि अपने अहं की तुष्टि के लिए मातापिता अपने बच्चों को भी नहीं बख्शते हैं.’

‘क्या मतलब?’

‘यही कि प्रसाद को उस के पुराने स्कूल से निकाल कर जीनियस इंटरनेशनल में डालने की जिद तुम ने ही की थी, क्योंकि वहां तुम्हारी सहेली सारंगी का पुत्र पढ़ता था. तुम ने इसे सम्मान का प्रश्न बना लिया था.’

‘तो इस में बुरा क्या था. आजकल छात्र स्कूल में केवल पढ़ने ही नहीं जाते, संपर्क सूत्र विकसित करने भी जाते हैं. इस का लाभ प्रसाद को बाद में मिलेगा. वैसे भी बच्चों के विद्यालय के स्तर से ही मातापिता के स्तर का पता चलता है,’ ऋचा ने अपना पक्ष स्पष्ट करते हुए कहा था.

‘हां, पर प्रसाद इन वर्षों में किस तनाव से गुजरा है इस का तुम्हें थोड़ा सा भी आभास नहीं है. आर्यन और उस के मित्रों ने प्रसाद और उस के जैसे बच्चों को उपहास का पात्र बना कर रख दिया. अधिकतर शिक्षक भी आर्यन और उस के मित्रों का ही पक्ष लेते थे. यह तो प्रसाद की पढ़ाई में लगन ने उसे बचा लिया, नहीं तो पता नहीं क्या हो जाता.’

‘जो भी हुआ अच्छा ही हुआ. यहां पढ़ कर प्रसाद पूरे प्रांत में प्रथम आया है. पुराने स्कूल में होता तो न जाने क्या हाल होता.’

‘हां, मैं तुम्हें भी सलाह दूंगा. मित्रता अपने स्तर के लोगों में ही शोभा देती है. अपनी क्षमता से अधिक तेजी से दौड़ोगी तो मुंह के बल गिरोगी.’

तभी प्रसाद तैयार हो कर आ गया तो ऋचा और रोमेश की बहस को वहीं विराम लग गया. पूरे परिवार ने पहले फिल्म देखने और फिर क्लब जा कर भोजन करने का निर्णय लिया था. वहीं भोजन करते समय उन्हें आर्यन के अपहरण का समाचार मिला था. टीवी पर आर्यन का छायाचित्र देख कर यह संशय भी जाता रहा था कि वह आर्यन रायन ही था.

ऋचा, रोमेश और प्रसाद का खाना बीच में ही अधूरा रह गया. तीनों चुपचाप भोजन कक्ष से बाहर आ गए थे. ऋचा वहां से सीधे जाना चाहती थी जबकि रोमेश, प्रसाद के साथ वहां जाने के पक्ष में नहीं थे. उन्हें डर था कि प्रसाद के वहां जाने पर न केवल ऋषभ और सारंगी बल्कि पुलिस और मीडिया भी उस से पूछताछ प्रारंभ कर देंगे.

प्रसाद पिता का रुख देख कर चुप रह गया था. ऋचा ने भी दोचार बार जोर डाला था पर रोमेश के कहने पर मान गई थी.

रायन कैसल यानी ऋषभ के घर पहुंच कर ऋचा को लगा कि शायद रोमेश की बात ही सही थी. सदा मित्रों से घिरे रहने वाले आर्यन का एक भी मित्र वहां नहीं था. दबे स्वर में लोग यह भी बात कर रहे थे कि आर्यन के तथाकथित मित्रों ने ही उस का अपहरण कर लिया और अब 10 करोड़ की फिरौती की मांग की थी.

कार रुकी तो ऋचा की तंद्रा टूटी, वह कार से उतर कर घर में आ गई.

प्र्रसाद की अपने मित्रों के साथ सफलता की पार्टी धरी की धरी रह गई थी. उस के अन्य मित्रों के मातापिता ने अपनेअपने पुत्र को न केवल किसी पार्टी में जाने से मना कर दिया, उन के घर से निकलने पर भी प्रतिबंध लगा दिया था.

रोमेश 2-3 बार ऋचा के साथ रायन कैसल गए थे पर अब उन्हें वहां बारबार जाने की कोई तुक नजर नहीं आती थी. हां, ऋचा जरूर दिन में 3-4 चक्कर लगाती, सारंगी को सांत्वना देती पर समझ नहीं पाती थी कि बुरी तरह टूट चुकी सारंगी से क्या कहे.

‘‘धीरज रखो सारंगी, मुझे पूरा विश्वास है कि आर्यन सहीसलामत लौट आएगा. कोई उस का बाल भी बांका नहीं कर सकता,’’ बहुत सोचविचार कर एक दिन बोली थी ऋचा.

‘‘तुम सारंगी की सहेली हो न बेटी,’’ तभी अचानक ऋषभ की मां पूछ बैठी थीं.

‘‘जी.’’

‘‘तो तुम ने समझाया नहीं कि बेटे की हर इच्छा पूरी करना ही मां का धर्म नहीं होता. मैं ने हर बार मना किया कि आर्यन के हाथ में इतना धन मत दो. पर सारंगी को तो अपनी शानोशौकत के सामने कुछ नजर ही नहीं आता था. मैं तो पुराने जमाने की हूं, नए जमाने के रंगढंग क्या समझूं. जाओ, अब जा कर मेरे आर्यन को ले आओ,’’ एक ही सांस में बोल कर वह बिलख कर रोने लगी थीं.

ऋषभ और कुछ अन्य संबंधी उन्हें उठा कर ले गए थे पर बड़े से हाल में सन्नाटा छा गया था और ऋषभ की मां की सिसकियां देर तक गूंजती रही थीं.

ऋचा कुछ देर तक सारंगी को सांत्वना देती रही थी, फिर चुपचाप उठ कर चली आई थी. उस ने रोमेश को सारी बात बताई तो वह भी सोच में डूब गए थे.

पति रोमेश को गंभीर देख ऋचा बोली, ‘‘एक सप्ताह होने को आया पर आर्यन का कहीं पता नहीं है. पुलिस भी हाथ पर हाथ रख कर बैठी है.’’

‘‘ऐसी बात नहीं है, ऋषभ बहुत प्रभावशाली व्यक्ति हैं. कल तो रायन दंपती की अपहरणकर्ताओं के नाम अपील भी प्रसारित की गई थी. पुलिस भी पूरा प्रयत्न कर रही है,’’ रोमेश ने मत व्यक्त किया था.

‘‘मेरे मित्र कह रहे थे कि रायन अंकल ने फिरौती के रुपए भी दे दिए हैं पर आर्यन का अभी तक पता नहीं है,’’ प्रसाद ने रहस्योद्घाटन किया था.

कुछ देर तक आर्यन के बारे में चिंता कर के पूरा परिवार सो गया था.

रात में दरवाजे की घंटी के स्वर से ऋचा की नींद खुल गई. झांक कर देखा तो कोई नजर नहीं आया. घबरा कर उस ने रोमेश को जगाया.

रोमेश ने दरवाजा खोला तो कोई नीचे गिरा पड़ा था. उठा कर मुंह देखा तो दोनों चौंक कर पीछे हट गए. फटे कपडे़ में आर्यन जमीन पर पड़ा था जिस के शरीर पर जहांतहां चोट के निशान थे. फिर तो प्रसाद की सहायता से उसे उठा कर वे अंदर ले आए. आननफानन में रायन दंपती को खबर की और आर्यन को अपनी गाड़ी में डाल कर अस्पताल ले गए.

आर्यन वहां तक कैसे पहुंचा यह सभी के लिए एक पहेली थी. उधर बेहोश पडे़ आर्यन के होश में आने की प्रतीक्षा थी. पहली बार रोमेश ने निरीह पिता की मजबूरी देखी थी. आज ऋषभ की सारी दौलत बेमानी हो गई थी.

‘‘आर्यन ठीक हो जाएगा न,’’ उन्होंने रोमेश से पूछा था. उन्होंने उन का हाथ दबा कर मौन आश्वासन दिया था.

अपराध : क्या नीलकंठ को हुआ गलती का एहसास

एंबुलैंस का सायरन बज रहा था. लोग घबरा कर इधरउधर भाग रहे थे. छुट्टी का दिन होने से अस्पताल का आपातकालीन सेवा विभाग ही खुला था, शोरशराबे से डाक्टर नीलकंठ की तंद्रा भंग हो गई.

घड़ी पर निगाह डाली, रात के 10 बज कर 20 मिनट हो रहे थे. उसे ऐलिस के लिए चिंता हो रही थी और उस पर क्रोध भी आ रहा था. 9 बजे वह उस के लिए कौफी बना कर लाती थी. वैसे, उस ने फोन पर बताया था कि वह 1-2 घंटे देर से आएगी.

‘‘सर,’’ वार्ड बौय ने आ कर कहा, ‘‘एक गंभीर केस है, औपरेशन थिएटर में पहुंचा दिया है.’’

‘‘आदमी है या औरत?’’ नीलकंठ ने खड़े होते हुए पूछा.

‘‘औरत है,’’ वार्ड बौय ने उत्तर दिया, ‘‘कहते हैं कि आत्महत्या का मामला है.’’

‘‘पुलिस को बुलाना होगा,’’ नीलकंठ ने पूछा, ‘‘साथ में कौन है?’’

‘‘2-3 पड़ोसी हैं.’’

‘‘ठीक है,’’ औपरेशन की तैयारी करने को कहो. मैं आ रहा हूं. और हां, सिस्टर ऐलिस आई हैं?’’

‘‘जी, अभीअभी आई हैं. उस घायल औरत के साथ ही ओटी में हैं,’’ वार्ड बौय ने जाते हुए कहा.

राहत की सांस लेते हुए नीलकंठ ने कहा, ‘‘तब तो ठीक है.’’

वह जल्दी से ओटी की ओर चल पड़ा. दरअसल, मन में ऐलिस से मिलने की जल्दी थी, घायल की ओर ध्यान कम ही था.

ऐलिस को देखते ही वह बोला, ‘‘इतनी देर कहां लगा दी? मैं तो चिंता में पड़ गया था.’’

‘‘सर, जल्दी कीजिए,’’ ऐलिस ने उत्तर दिया, ‘‘मरीज की हालत बहुत खराब है. और…’’

‘‘और क्या?’’ नीलकंठ ने एप्रन पहनते हुए पूछा, ‘‘सारी तैयारी कर दी है न?’’

‘‘जी, सब तैयार है,’’ ऐलिस ने गंभीरता से कहा, ‘‘घायल औरत और कोई नहीं, आप की पत्नी सुरमा है.’’

‘‘सुरमा,’’ वह लगभग चीख उठा.

सुबह ही नीलकंठ का सुरमा से खूब झगड़ा हुआ था. झगड़े का कारण ऐलिस थी. नीलकंठ और ऐलिस का प्रणय प्रसंग उन के विवाहित जीवन में विष घोल रहा था. सुबह सुरमा बहुत अधिक तनाव में थी, क्योंकि नीलकंठ के कोट पर 2-4 सुनहरे बाल चमक रहे थे और रूमाल पर लिपस्टिक का रंग लगा था. सुरमा को पूरा विश्वास था कि ये दोनों चिह्न ऐलिस के ही हैं. कुछ कहने को रह ही क्या गया था? पूरी कहानी परदे पर चलती फिल्म की तरह साफ थी.

झुंझला कर क्रोध से पैर पटकता हुआ नीलकंठ बाहर निकल गया.

जातेजाते सुरमा के चीखते शब्द कानों में पड़े, ‘आज तुम मेरा मरा मुंह देखोगे.’

ऐसी धमकियां सुरमा कई बार दे

चुकी थी. एक बार नीलकंठ ने

उसे ताना भी दिया था, ‘जानेमन, जीना जितना आसान है, मरना उतना ही मुश्किल है. मरने के लिए बहुत बड़ा दिल और हिम्मत चाहिए.’

‘मर कर भी दिखा दूंगी,’ सुरमा ने तड़प कर कहा था, ‘तुम्हारी तरह नाटकबाज नहीं हूं.’

‘देख लूंगा, देख लूंगा,’ नीलकंठ ने विषैली मुसकराहट के साथ कहा था, ‘वह शुभ घड़ी आने तो दो.’

आखिर सुरमा ने अपनी धमकी को हकीकत में बदल दिया था. उन का घर 5वीं मंजिल पर था. वह बालकनी से नीचे कूद पड़ी थी. इतनी ऊंचाई से गिर कर बचना बहुत मुश्किल था. नीचे हरीहरी घास का लौन था. उस दिन घास की कटाई हो रही थी. सो, कटी घास के ढेर लगे थे. सुरमा उसी एक ढेर पर जा कर गिरी. उस समय मरी तो नहीं, पर चोट बहुत गहरी आई थी.

शोर मचते ही कुछ लोग जमा हो गए, उन्होंने सुरमा को पहचाना और यही ठीक समझा कि उसे नीलकंठ के पास उसी के अस्पताल में पहुंचा दिया जाए.

काफी खून बह चुका था. नब्ज बड़ी मुश्किल से पकड़ में आ रही थी. शरीर का रंग फीका पड़ रहा था. नीलकंठ के मन में कई प्रश्न उठ रहे थे, ‘सुरमा से पीछा छुड़ाने का बहुत अच्छा अवसर है. इस के साथ जीवन काटना बहुत दूभर हो रहा है. हमेशा की किटकिट से परेशान हो चुका हूं. एक डाक्टर को समझना हर औरत के वश की बात नहीं, कितना तनावपूर्ण जीवन होता है. अगर चंद पल किसी के साथ मन बहला लिया तो क्या हुआ? पत्नी को इतना तो समझना ही चाहिए कि हर पेशे का अपनाअपना अंदाज होता है.’

सहसा चलतेचलते नीलकंठ रुक गया.

‘‘क्या हुआ, सर?’’ ऐलिस ने चिंतित स्वर में पूछा, ‘‘आप की तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘मैं यह औपरेशन नहीं कर सकता,’’ नीलकंठ ने लड़खड़ाते स्वर में कहा, ‘‘कोई डाक्टर अपनी पत्नी या सगेसंबंधी का औपरेशन नहीं करता, क्योंकि वह उन से भावनात्मक रूप से जुड़ा होता है. उस के हाथ कांपने लगते हैं.’’

‘‘यह आप क्या कह रहे हैं?’’ ऐलिस ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘जल्दी से डाक्टर जतिन को बुला लो,’’ नीलकंठ ने वापस मुड़ते हुए कहा. वह सोच रहा था कि औपरेशन में जितनी देर लगेगी, उतनी जल्दी ही सुरमा इस दुनिया से दूर चली जाएगी.

‘‘यह कैसे हो सकता है?’’ ऐलिस ने तनिक ऊंचे स्वर में कहा, ‘‘डाक्टर जतिन को आतेआते एक घंटा तो लगेगा ही. लेकिन इतना समय कहां है? मैं मानती हूं कि आप के लिए पत्नी को इस दशा में देखना बड़ा कठिन होगा और औपरेशन करना उस से भी अधिक मुश्किल, पर यह तो आपातस्थिति है.’’

‘‘नहीं,’’ नीलकंठ ने कहा, ‘‘यह डाक्टरी नियमों के विरुद्ध होगा और यह बात तुम अच्छी तरह जानती हो.’’

‘‘ठीक है, कम से कम आप कुछ देखभाल तो करें,’’ ऐलिस ने कहा, ‘‘मैं अभी डाक्टर जतिन को संदेश भेजती हूं.’’

डाक्टर नीलकंठ जब ओटी में घुसा तो आंखों के सामने अंधेरा छा रहा था, कितने ही उद्गार मन में उठते और फिर बादलों की तरह गायब हो जाते थे.

सामने सुरमा का खून से लथपथ शरीर पड़ा था, जिस से कभी उस ने प्यार किया था. वे क्षण कितने मधुर थे. इस समय सुरमा की आंखें बंद थीं, एकदम बेहोश और दीनदुनिया से बेखबर. इतना बड़ा कदम उठाने से पहले उस के मन में कितना तूफान उठा होगा? एक क्षण अपराधभावना से नीलकंठ का हृदय कांप उठा, जैसे कोई अदृश्य शक्ति उस के शरीर को झंझोड़ रही हो.

नीलकंठ ने कांपते हाथों से सुरमा के बदन से खून साफ किया. उस का सिर फट गया था. वह कितने ही ऐसे घायल व्यक्ति देख चुका था, पर कभी मन इतना विचलित नहीं हुआ था. वह सोचने लगा, क्या सुरमा की जान बचा सकना उस के वश में है?

लेकिन डाक्टर जतिन के आने से पहले ही सुरमा मर चुकी थी. नीलकंठ सूनी आंखों से उसे देख रहा था, वह जड़वत खड़ा था.

जतिन ने शव की परीक्षा की और धीरे से नीलकंठ के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘मुझे दुख है, सुरमा अब इस दुनिया में नहीं है. ऐलिस, नीलकंठ को केबिन में ले जाओ, इसे कौफी की जरूरत है.’’

ऐलिस ने आहिस्ता से नीलकंठ का हाथ पकड़ा और लगभग खींचते हुए ओटी से बाहर ले गई. कमरे में ले जा कर उसे कुरसी पर बैठाया.

‘‘सर, मुझे दुख है,’’ ऐलिस ने आहत स्वर में कहा, ‘‘सुरमा के ऐसे अंत की मैं ने कभी स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थी. मैं अपने को कभी माफ नहीं कर सकूंगी.’’

नीलकंठ ने गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘तुम्हारा कोई दोष नहीं, कुसूर मेरा है.’’

नीलकंठ आंखें बंद किए सोच रहा था, ‘शायद सुरमा को बचा पाना मेरे वश से बाहर था, पर कोशिश तो कर ही सकता था. लेकिन मैं टालता रहा, क्योंकि सुरमा से छुटकारा पाने का यह सुनहरा अवसर था. मैं कलह से मुक्ति पाना चाहता था. अब शायद ऐलिस मेरे और करीब आ जाएगी.’

ऐलिस सामने कौफी का प्याला लिए खड़ी थी. वह आकर्षक लग रही थी.

पुलिस सूचना पा कर आ गई थी. औपचारिक रूप से पूछताछ की गई. यह स्पष्ट था कि दुर्घटना के पीछे पतिपत्नी के बिगड़ते संबंध थे, परंतु नीलकंठ का इस दुर्घटना में कोईर् हाथ नहीं था. नैतिक जिम्मेदारी रही हो, पर कानूनी निगाह से वह निर्दोष था. पोस्टमार्टम के बाद शव नीलकंठ को सौंप दिया गया. दोनों ओर के रिश्तेदार सांत्वना देने और घर संभालने आ गए थे. दाहसंस्कार के बाद सब के चले जाने पर एक सूनापन सा छा गया.

नीलकंठ को सामान्य होने में सहायता दी तो केवल ऐलिस ने. अस्पताल में ड्यूटी के समय तो वह उस की देखभाल करती ही थी, पर समय पा कर अपनी छोटी बहन अनीषा के साथ उस के घर भी चली जाती थी. चाय, नाश्ता, भोजन, जैसा भी समय हो, अपने हाथों से बना कर देती थी. धीरेधीरे नीलकंठ के जीवन में शून्य का स्थान एक प्रश्न ने ले लिया.

कई महीनों के बाद नीलकंठ ने एक दिन ऐलिस से कहा, ‘‘मैं तुम्हारे जैसी पत्नी ही पाना चाहता था. तुम मुझे पहले क्यों नहीं मिलीं. यह सोच कर कभीकभी आश्चर्य होता है.’’

‘‘सर,’’ ऐलिस बोली, ‘‘सर.’’

नीलकंठ ने टोकते हुए कहा, ‘‘मैं ने कितनी बार कहा है कि मुझे ‘सर’ मत कहा करो. अब तो हम दोनों अच्छे दोस्त हैं. यह औपचारिकता मुझे अच्छी नहीं लगती.’’

‘‘क्या करूं,’’ ऐलिस हंस पड़ी, ‘‘सर, आदत सी पड़ गई है, वैसे कोशिश करूंगी.’’

‘‘तुम मुझे नील कहा करो,’’ उस ने ऐलिस की आंखों में झांकते हुए कहा, ‘‘मुझे अच्छा लगेगा.’’

ऐलिस हंस पड़ी, ‘‘कोशिश करूंगी, वैसे है जरा मुश्किल.’’

‘‘कोई मुश्किल नहीं,’’ नीलकंठ हंसा, ‘‘आखिर मैं भी तो तुम्हें ऐलिस कह कर बुलाता हूं.’’

‘‘आप की बात और है,’’ ऐलिस ने कहा, ‘‘आप किसी भी संबंध से मुझे मेरे नाम से पुकार सकते हैं.’’

‘‘तो फिर किस संबंध से तुम मेरा नाम ले कर मुझे बुलाओगी?’’ नीलकंठ के स्वर में शरारत थी.

‘‘पता नहीं,’’ ऐलिस ने निगाहें फेर लीं.

‘‘तुम जानती हो, मेरे मन में तुम्हारे लिए क्या भावना है,’’ नीलकंठ ने कहा, ‘‘मैं चाहता हूं कि तुम मेरे सूने जीवन में बहार बन कर प्रवेश करो.’’

‘‘यह तो अभी मुमकिन नहीं,’’ ऐलिस ने छत की ओर देखा.

‘‘अभी नहीं तो कोई बात नहीं,’’ नीलकंठ ने कहा, ‘‘पर वादा तो कर सकती हो?’’ नीलकंठ को विश्वास था कि ऐलिस इनकार नहीं करेगी, शक की कोई गुंजाइश नहीं थी.

‘‘यह कहना भी मुश्किल है,’’ ऐलिस ने मेज पर पड़े चम्मच से खेलते हुए कहा.

‘‘क्यों?’’ नीलकंठ ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘आखिर हम अच्छे दोस्त हैं?’’

‘‘बस, दोस्त ही बने रहें तो अच्छा है,’’ ऐलिस ने कहा.

‘‘क्या मतलब?’’ नीलकंठ ने खड़े होते हुए पूछा, ‘‘तुम कहना क्या चाहती हो?’’

‘‘यही कि अगर शादी कर ली तो इस बात की क्या गारंटी है,’’ ऐलिस ने एकएक शब्द तोलते हुए कहा, ‘‘कि मेरा भी वही हश्र नहीं होगा, जो सुरमा का हुआ? आखिर दुर्घटना तो सभी के साथ घट सकती है?’’

यह सुनते ही नीलकंठ को मानो सांप सूंघ गया. उस ने कुछ कहना चाहा, पर जबान पर मानो ताला पड़ गया था. ऐलिस ने साथ देने से इनकार जो कर दिया था.

सही रास्ते पर: क्यों मुस्कुराई थी लक्ष्मी

भूख के मारे लक्ष्मी की अंतडि़यां ऐंठी जा रही थीं. वह दिनभर मजदूरी के लिए इधरउधर भटकती रही, मगर उसे कहीं भी मजदूरी नहीं मिली.

आज शहर बंद था. वजह थी कि कल दिनदहाड़े भरे बाजार में सत्ता पक्ष के एक खास कार्यकर्ता की हत्या कर दी गई थी.

इस हत्या के पीछे जो भी  वजह रही हो, मगर इस से शहर की राजनीति गरमा गई थी. हत्यारा खून कर के फरार हो चुका था. दिनभर पूरे शहर में पार्टी वाले पुलिस प्रशासन के खिलाफ नारे लगाते रहे.

सुबह जब लक्ष्मी शासकीय भवन पर मजदूरी करने गई थी, तब ठेकेदार के अलावा वहां कोई नहीं था.

उसे देख कर ठेकेदार मुसकराते हुए बोला, ‘‘लक्ष्मी, आज काम बंद है… कल आना.’’

‘‘क्यों ठेकेदार साहब?’’ लक्ष्मी ने पूछा.

‘‘पूरा शहर बंद है न इसलिए,’’ ठेकेदार ने जवाब दिया.

‘‘पर, आप ने काम क्यों बंद कर दिया ठेकेदार साहब?’’ लक्ष्मी ने फिर पूछा.

‘‘मुझे नुकसान कराना है क्या? और फिर जिस नेता का खून हुआ है, उस ने मुझे यह ठेका दिलवाया था, इसलिए मेरा भी फर्ज बनता है कि मैं उस की याद में एक दिन के लिए काम बंद कर दूं,’’ ठेकेदार ने बताया.

‘‘ठेकेदार साहब, बंद का असर आप पर तो नहीं पड़ेगा, मगर हमारे पेट पर जरूर पड़ेगा,’’ लक्ष्मी ने कहा.

‘‘तो मैं क्या करूं? मैं ने रोजरोज काम देने का ठेका नहीं लिया है. जा, कल टाइम पर आ जाना. आज जहां मजदूरी मिले, वहां जा कर कर ले,’’ ठेकेदार ने टका सा जवाब दे कर उसे वहां से भगा दिया.

लक्ष्मी निराश हो कर वहां से चल दी. फिर वह काम तलाशने उसी चौराहे पर आ गई, जहां रोज आ कर बैठती थी. वहां सारे मजदूर जमा होते थे और अपनी जरूरत के मुताबिक लोग वहां से उन्हें ले जाते थे. मगर लक्ष्मी को वहां पहुंचने में देर हो गई थी. सारा चौराहा मजदूरों से तकरीबन खाली हो चुका था.

कुछ बचेखुचे मजदूर ही वहां बैठे हुए थे. लक्ष्मी भी उन के बीच जा कर बैठ गई. मगर काफी देर बैठने के बाद भी उसे काम के लिए कोई नहीं ले गया.

थोड़ी देर बाद लक्ष्मी वहां से उठ कर काम की तलाश में काफी देर तक इधरउधर भटकती रही, मगर उसे कहीं काम नहीं मिला.

घर में लक्ष्मी के 2 बच्चों और सास के अलावा कोई नहीं था. समाज की नजरों में मांगीलाल उस का पति था, मगर उस ने एक दूसरी औरत रख ली थी. वह सारी कमाई

उसी पर उड़ाता था. उस औरत के बारे में लक्ष्मी कभी कुछ कहती तो वह उसे मारतापीटता था.

शुरूशुरू में तो मांगीलाल लक्ष्मी को कुछ खर्चा देता था, मगर बाद में उस

ने वह भी देना बंद कर दिया, इसलिए

वह मजदूरी करने लगी. कभीकभी तो मांगीलाल उस की मजदूरी भी छीन कर ले जाता था और दारू में उड़ा देता था.

लक्ष्मी ने कुछ पैसे साड़ी के आंचल में छिपा कर रखे थे. उस ने सोचा था कि जिस दिन मजदूरी नहीं मिलेगी, उस दिन यह बचा हुआ पैसा काम आएगा, मगर मांगीलाल ने वे छिपे पैसे भी जबरन छीन लिए थे.

जब दोपहर हो गई, तो लक्ष्मी थकहार कर घर लौट आई. डब्बे में एक भी रोटी नहीं बची थी. सब रोटियां सास और उस के दोनों बच्चे खा चुके थे. घर में पकाने के लिए भी कुछ नहीं था.

लक्ष्मी दिनभर शहर के इस छोर से उस छोर तक भूखी ही काम के लिए भटकती रही. उसे शाम के राशन का इंतजाम जो करना था. मगर शाम तक भी उसे कोई काम नहीं मिला. तब वह एक होटल के पास आ कर बैठ गई.

यह वही होटल है, जहां शहर के रईस लोग आएदिन पार्टियां करते रहते हैं और उन्हें मजदूरों की जरूरत पड़ती रहती है. मगर वहां पर भी उसे बैठेबैठे रात हो गई.

‘‘क्या कोई ग्राहक नहीं मिला? चलेगी मेरे साथ?’’ पास खड़े एक आदमी ने लक्ष्मी से पूछा.

उस आदमी की आंखों में वासना झलक रही थी. वह लक्ष्मी को देह धंधा करने वाली औरत समझ रहा था.

लक्ष्मी बोली, ‘‘फोकट में ही ले जाएगा या पैसे भी देगा?’’

‘‘हां दूंगा… कितने लेगी?’’ उस आदमी ने पूछा.

‘‘दिनभर काम करती हूं, तो मुझे

50 रुपए मिलते हैं,’’ लक्ष्मी ने बताया.

‘‘चल, मैं तुझे 50 रुपए ही दूंगा,’’ उस ने कहा, तो लक्ष्मी की इच्छा हुई कि उस के मुंह पर थूक दे, मगर उसे जोरों की भूख लग रही थी.

लक्ष्मी ने सोचा, ‘मांगीलाल भी तो मेरे जिस्म से खेल कर चला जाता है. और फिर मुझे अब मजदूरी भी कौन देगा?’

‘‘क्या सोच रही है?’’ उसे चुप देख उस आदमी ने पूछा.

‘‘लगता है, मेरी तरह तू भी बहुत भूखा है. तेरी घरवाली नहीं है क्या?’’ लक्ष्मी ने पूछा.

‘‘अभी तो कुंआरा हूं,’’ वह बोला.

‘‘तो शादी क्यों नहीं कर लेता है?’’ लक्ष्मी ने दोबारा पूछा.

‘‘खुद अपना पेट तो पूरी तरह भर नहीं पाता हूं, फिर उसे क्या खिलाऊंगा?’’ वह बोला.

‘‘सही बात है. जो आदमी अपनी घरवाली को खिला नहीं सकता, वह मरद नहीं होता है…’’ कह कर लक्ष्मी ने पूछा, ‘‘कहां ले जाएगा मुझे?’’

‘‘शहर के बाहर एक खंडहर है, जहां अंधेरा रहता?है,’’ उस ने बताया.

‘‘ठीक है, मुझे तो पैसों से मतलब है,’’ लक्ष्मी ने कहा.

‘‘तो चल मेरे पीछेपीछे,’’ उस आदमी ने कहा और लक्ष्मी उस के पीछेपीछे चलने लगी.

वह आदमी पीछे मुड़ कर देख लेता कि वह औरत आ रही है या नहीं. मगर लक्ष्मी उस के पीछेपीछे साए की तरह चल रही थी.

अभी लक्ष्मी एक चौराहा पार कर ही रही थी कि सामने से मांगीलाल आता दिखाई दिया. वह डर के मारे कांप उठी.

मांगीलाल ने पास आ कर पूछा, ‘‘कहां जा रही हो?’’

‘‘तुम पूछने वाले कौन हो?’’ लक्ष्मी ने नफरत से कहा.

‘‘तुम्हारा पति…’’ मांगीलाल बोला.

‘‘खुद को पति कहते हुए तुम्हें शर्म नहीं आती…’’ लक्ष्मी गुस्से से बोली, ‘‘जो आदमी अपने बीवीबच्चों और मां को भूखाप्यासा छोड़ कर दूसरी औरत पर कमाई लुटाए, वह किसी का पति कहलाने लायक नहीं होता.’’

मांगीलाल नीची गरदन कर के चुपचाप किसी मुजरिम की तरह सुनता रहा.

‘‘मगर, तुम जा कहां रही हो?’’ मांगीलाल ने फिर पूछा.

‘‘कहीं भी जाऊं… वैसे भी तुम ने तो मियांबीवी का रिश्ता उसी दिन तोड़ दिया था, जिस दिन तुम दूसरी औरत के साथ रहने लगे थे.’’

‘‘देखो लक्ष्मी, तुम अपनी हद से ज्यादा बढ़ कर बात कर रही हो. मैं तुम्हारा पति हूं. चलो, घर चलो,’’ मांगीलाल भड़क उठा.

‘‘नहीं जाना मुझे तुम्हारे साथ. देखो, मैं उस आदमी के साथ जा रही हूं. वह मुझे 50 रुपए दे रहा है,’’ कह कर लक्ष्मी ने मुड़ कर देखा, मगर वह आदमी तो उन का झगड़ा देख कर वहां से भाग चुका था.

यह देख कर लक्ष्मी बोली, ‘‘आखिर भगा दिया न उसे…’’

‘‘इस का मतलब यह हुआ कि तुम धंधा करने लगी हो,’’ मांगीलाल गुस्से से बोला.

‘‘हमें अपने पेट की भूख मिटाने के लिए यही करना पड़ेगा. तुम तो दूसरी औरत के साथ मस्त रहते हो. मुझे तुम्हारी मां और दोनों बच्चों को देखना पड़ता है.

‘‘आज दिनभर काम नहीं मिला. आखिर क्या करती? घर में न आटा?है, न चावल,’’ कहते हुए लक्ष्मी ने दिनभर की भड़ास निकाल दी.

वह आगे बोली, ‘‘अब कहां से उन लोगों के खाने का इंतजाम करूं?’’

‘‘लक्ष्मी, मैं तुम्हारा गुनाहगार हूं. मुझे माफ कर दो. अब मैं तुम्हें कभी शिकायत का मौका नहीं दूंगा,’’ माफी मांगते हुए मांगीलाल बोला.

‘‘रहने दो. तुम्हारा क्या भरोसा? यह बात तो तुम कई बार कह चुके हो. फिर भी तुम से वह औरत नहीं छूटती है. उस के पीछे तुम ने मुझे कितना मारापीटा है…’’ लक्ष्मी ने कहा, ‘‘ठीक है, मैं कोई दूसरा ग्राहक ढूंढ़ती हूं. पेट की आग तो बुझानी ही पड़ेगी न.’’

‘‘नहीं लक्ष्मी, अब तुम कहीं नहीं जाओगी और न ही मजदूरी करोगी,’’ मांगीलाल ने लक्ष्मी को रोकते हुए कहा.

‘‘अगर मजदूरी नहीं करूंगी तो मेरा, तुम्हारे बच्चों का और तुम्हारी मां का पेट कैसे भरेगा?’’ लक्ष्मी चिढ़ कर बोली.

‘‘मैं कमा कर खिलाऊंगा सब को,’’ मांगीलाल बोला.

‘‘तुम कमा कर खिलाओगे… कभी आईने में अपना चेहरा देखा है?’’

‘‘हां लक्ष्मी, तुम्हें जितना ताना देना हो दो, जो कहना है कह लो, मगर मैं बहुत शर्मिंदा हूं. क्या तुम मुझे माफ नहीं करोगी?’’ मांगीलाल गिड़गिड़ाया.

‘‘माफ उसे किया जाता?है, जिस की आंखों में शर्म हो. मैं तुम पर कैसे यकीन कर लूं कि तुम सही रास्ते पर आ जाओगे?’’ लक्ष्मी ने सवाल दागा.

‘‘हां, तुम्हें यकीन आएगा भी कैसे? मैं ने तुम्हारे साथ काम ही ऐसा किया है, मगर मैं अब पिछली जिंदगी छोड़ कर तुम्हारे साथ पूरी तरह रहना चाहता हूं. यकीन न हो तो मुझे एक महीने की मुहलत दे दो,’’ मांगीलाल बोला.

‘‘मगर, मेरी भी 2 शर्तें हैं?’’ लक्ष्मी ने कहा.

‘‘मैं तुम्हारी हर शर्त मानने को तैयार हूं,’’ मांगीलाल ने कहा.

‘‘सब से पहले तो उस औरत को छोड़ना होगा. दूसरा, दारू पीना भी छोड़ना होगा,’’ लक्ष्मी बोली.

‘‘मुझे तुम्हारी ये दोनों शर्तें मंजूर हैं,’’ मांगीलाल बोला.

‘‘तो फिर चलो घर, पहले राशन ले लो. सभी भूखे होंगे,’’ लक्ष्मी बोली.

‘‘हां लक्ष्मी, अब तो तुम जो कहोगी, वही मैं करूंगा,’’ कह कर मांगीलाल मुसकरा दिया. बदले में लक्ष्मी भी भूखे पेट मुसकरा दी. मगर आज तो उस की मुसकान में सुख छिपा था.

मांगीलाल चलतेचलते बोला, ‘‘आज मैं बहुत राहत महसूस कर रहा हूं लक्ष्मी. मैं अपने रास्ते से भटक गया था. तुम मुझे सही रास्ते पर ले आई हो.’’

मांगीलाल सोच रहा था कि लक्ष्मी कुछ बोलेगी, पर जवाब देने के बजाय वह मुसकरा दी.

सम्मान की जीत: क्या हुआ था रूबी के साथ

‘‘तुम्हें मुझ से शादी कर के पछतावा होता होगा न रूबी…’’ करन ने इमोशनल होते हुए कहा.

‘‘नहींनहीं, पर आज आप ऐसी बातें क्यों ले कर बैठ गए हैं,’’ रूबी ने कहा.

‘‘क्योंकि… मैं एक नाकाम मर्द हूं… मैं घर में निठल्ला बैठा रहता हूं … तुम से शादी करने के 6 साल बाद भी तुम्हें वे सारी खुशियां नहीं दे पाया, जिन का मैं ने तुम से कभी वादा किया था,’’ करन ने रूबी की आंखों में देखते हुए कहा.

‘‘नहीं… ऐसी कोई बात नहीं है. आप ने मुझे सबकुछ दिया है… 2 इतने अच्छे बच्चे… यह छोटा सा खूबसूरत घर… यह सब आप ही बदौलत ही तो है,’’ रूबी ने करन के चेहरे पर प्यार का एक चुंबन देते हुए कहा. करन ने भी रूबी को अपनी बांहों में कस लिया.

गोपालगंज नामक गांव में ही रूबी और करन के घर थे. दोनों का एकदूसरे के घर आनाजाना होता था और घर के बाहर दोनों का प्यार धीरेधीरे परवान चढ़ रहा था. दोनों ने शादी की योजना भी बना ली थी, साथ ही दोनों यह भी जानते थे कि यह शादी दोनों के घर वालों को मंजूर नहीं होगी, क्योंकि दोनों की जातियां इस मामले में सब से बड़ा रोड़ा थीं.

करन ब्राह्मण परिवार का लड़का था और उस का छोटा भाई पारस राजनीति में घुस चुका था और गांव का प्रधान बन गया था. रूबी एक गड़रिया की बेटी थी.

इस इश्क के चलते रूबी शादी से पहले ही पेट से हो गई थी और अब इन दोनों पर शादी करने की मजबूरी और भी बढ़ गई थी. फिर क्या था, दोनों ने अपनेअपने घर पर विवाह प्रस्ताव रखा,  पर दोनों ही परिवारों ने शादी के लिए मना कर दिया. इस के बाद इन दोनों ने अपने घर वालों की मरजी के खिलाफ एक मंदिर में शादी कर ली.

पर दोनों के ही घर वाले उन्हें अपनाने और घर में पनाह देने के खिलाफ थे, इसलिए रूबी और करन को उसी गांव में अलग रहना पड़ा.

दोनों ने गांव के एक कोने में एक झोंपड़ी बना ली थी, दोनों का जीवन प्रेमपूर्वक गुजरने लगा. करन के पास तो कोई कामधाम नहीं था, इसलिए रूबी को ही घर के मुखिया की तरह घर चलाने की जिम्मेदारी लेनी पड़ी.

गोपालगंज से 15 किलोमीटर दूर एक कसबे के एक पोस्ट औफिस में रूबी को कच्चे तौर पर लिखापढ़ी का काम मिल गया था. उसे रोज सुबह 12 बजे से शाम 5 बजे तक की ड्यूटी देनी पड़ती थी, पर वह मेहनत करने से कभी पीछे नहीं हटी.

धीरेधीरे रूबी की मेहनत रंग लाई. घर में चार पैसे आने लगे, तो समय को मानो पंख लग गए और इसी दौरान रूबी 2 बेटियों की मां भी बन गई थी.

रूबी ने उन के पालनपोषण और अपने काम में बहुत अच्छा तालमेल बिठा लिया था. बच्चों की दिक्कत कभी उस के काम के आड़े नहीं आई, जिस का श्रेय करन को भी जाता है, क्योंकि जब भी रूबी बाहर जाती है, करन पर घर रह कर बच्चों का ध्यान रखता है.

रूबी ने कसबे के स्कूल जा कर इंटरमीडिएट तक पढ़ाई कर ली थी और उस के बाद प्राइवेट फार्म भर कर ग्रेजुएशन भी कर ली थी.

बचपन से ही रूबी को समाजसेवा करने का बहुत शौक था. उस के मन में गरीबों के लिए खूब दया का भाव था, इसलिए वह अब पोस्ट औफिस में डाक को छांटने और लिखापढ़ी के काम के साथसाथ शहर की एक समाजसेवी संस्था के साथ जुड़ गई थी, जो महिलाओं पर हो रहे जोरजुल्म के खिलाफ काम करती थी.

इस संस्था से जुड़ कर रूबी को मशहूरी मिलनी भी शुरू हो गई थी. शुरुआत में तो वह महिलाओं में जनजागरण करने के लिए पैदल ही गांवगांव घूमती थी, इस काम में उस की सहायक महिलाएं भी उस के साथ होती थीं, पर जब काम का दायरा बढ़ा तो

उस ने अपने लिए एक ईरिकशा भी खरीद लिया.

फिर क्या था, वह खुद आगे ड्राइविंग सीट पर बैठ जाती और पीछे अपनी सहायक महिला दोस्तों को

वह खुद बिठा लेती और गांवों में महिलाओं को सचेत करती और उन्हें आत्मनिर्भर होने का संदेश देती.

…धीरेधीरे रूबी पूरे इलाके में रिकशे वाली भाभी के नाम से जानी जाने लगी.

समाजसेवा का काम बढ़ जाने के चलते रूबी ने पोस्ट औफिस वाला काम भी छोड़ दिया था और अपने को पूरी तरह से समाजसेवा में लगा दिया.

गैरजाति में शादी कर लेने के चलते रूबी और करन पहले से ही गांव के सवर्ण लोगों की आंख में बालू की तरह खटक रहे थे, ऊपर से रूबी के इस समाजसेवा वाले काम ने घमंडी मर्दों के लिए एक और परेशानी खड़ी कर दी थी.

गांव के लोगों को लगने लगा कि अगर रूबी इसी तरह से लोगों को अपने होने वाले जोरजुल्म के खिलाफ जागरूक करती रही, तो एक दिन मर्दों का दबदबा ही खत्म हो जाएगा.

एक दिन जब रूबी अपने ईरिकशा से काम के बाद वापस आ रही थी, तो करन के छोटे भाई पारस, जो गांव का प्रधान भी था, ने उस का रास्ता रोक लिया.

‘‘क्या भाभी… कहां चक्कर में पड़ी हो… इस झमेले वाले काम के चक्कर में जरा अपनी कोमल काया को तो देखो… कैसी काली पड़ गई हो,’’ पारस ने रूबी के सीने पर नजरें गड़ाते हुए कहा. दिनरात मेहनत करने से तुम्हारा मांस तो गल ही गया है… सूख कर कांटा होती जा रही हो और इन कोमल हाथों में ईरिकशा चला कर छाले पड़ गए हैं…

‘‘क्या इसी दिन के लिए तुम ने भैया से शादी की थी कि तुम्हें गलियों की धूल खानी पड़े…’’ पारस की नजरें अब भी रूबी के शरीर का मुआयना कर रही थीं.

‘‘क्या… भैया… आज बड़ी चिंता हो रही है मेरी…’’ रूबी ने ऊंची आवाज

में कहा.

‘‘क्यों नहीं होगी चिंता… अब आप भले ही नीची जाति की हों… पर अब तो मेरी भाभी बन गई हो न… तो हम लोग अपनी भाभी की चिंता नहीं करेंगे, तो कौन करेगा?

‘‘वैसे, सच कहते हैं भाभी… तुम्हें देखने से यह नहीं लगता है कि तुम

2 बच्चों को पैदा कर चुकी हो… बड़ा फिगर मेंटेन किया है आप ने.’’

‘‘ये आप किस तरह की बातें कर रहे हो? आखिर चाहते क्या हो…?’’ रूबी की आवाज तेज थी.

‘‘कुछ नहीं भाभी… बस इतना चाहते हैं कि आप एक रात के लिए हमारे साथ सो जाओ. बस… कसम से… खुश कर देंगे आप को…’’

पारस अपनी बात को अभी खत्म भी नहीं कर पाया था कि तभी रूबी के एक तेज हाथ का जोरदार थप्पड़ उस के गाल पर पड़ा

पारस गाल पकड़ कर रह गया. कुछ दूरी पर खड़े लोगों ने भी यह मंजर देख लिया था.

अचानक पड़े थप्पड़ के चलते और मौके की नजाकत को देखते हुए पारस वहां से तुरंत हट गया. मन में रूबी से बदला लेने की बात ठान ली.

उस दिन की घटना का जिक्र रूबी ने किसी से नहीं किया और सामान्य हो कर काम करती रही.

जिस समाजसेवी संस्था के लिए रूबी काम करती थी, वह संस्था उस के द्वारा की जा रही कोशिशों से काफी खुश थी और रूबी अपने काम को और भी बढ़ाने में लगी हुई थी.

दिनभर जनसंपर्क के बाद जब रूबी शाम को घर लौटती, तो पति और बच्चे घर के दरवाजे पर इंतजार करते मिलते. उन्हें देख कर उस की सारी थकान मिट जाती और वह अपनी बच्चियों को अपने बांहों में भर लेती और अपनी स्नेहभरी आंखों से अपने पति को भी धन्यवाद देती कि उस ने बेटियों का ध्यान रखा.

आज जब काम के बाद रूबी घर लौट रही थी, तो उस की दोनों बेटियां गांव की टौफी और चिप्स की दुकान पर चिप्स खरीदती दिखीं, उन्हें इस तरह बाहर का सामान खरीदने के लिए रूबी ने पैसे तो दिए नहीं थे, फिर इन के पास पैसे कहां से आए…?

‘‘अरे, तुम यहां चिप्स खरीद रही हो… पर यह तो बताओ कि तुम्हारे पास चिप्स के लिए पैसे कहां से आए…?’’ रूबी ने उन्हें बहला कर पूछा.

‘‘मां… हमें पापा ने पैसे दिए थे और यह भी कह रहे थे कि बाहर जा कर खेलना… तभी हम लोग बाहर घूम रहे हैं,’’ बड़ी बेटी ने जवाब दिया.

न जाने क्यों, पर रूबी को यह बात कुछ अजीब सी लगी, पर फिर भी उस ने सोचा कि बच्चे अकेले करन को परेशान कर रहे होंगे, तभी उस ने पैसे दे कर बाहर भेज दिया होगा. इसी सोच के साथ वह बच्चों को ले कर घर आ गई.

घर में करन बिस्तर पर पड़ा हुआ आराम कर रहा था. रूबी के घर पहुंचने पर भी वह लेटा रहा और सिरदर्द होने की बात भी बताई. रूबी ने हाथपैर धो कर चाय बनाई और दोनों साथ बैठ कर पीने लगे.

चाय पीने के बाद जब रूबी रसोईघर में काम करने गई, तो वहां उस को एक पायल मिली. पायल देख कर उसे लगा कि क्या उस के पीछे किसी से करन का मामला तो नहीं चल रहा है?

रूबी ने वह पायल अपने पास रख ली और करन से इस बात का जिक्र तक नहीं किया.

एक दिन की बात है. रूबी काम से थकीहारी आ रही थी. उस ने देखा कि उस की दोनों बेटियां उसी दुकान पर फिर से कुछ खाने का सामान खरीद रही थीं. आज वह चौंक उठी थी, क्योंकि इस तरह से बच्चियों को पैसे ले कर दुकान पर आना उसे ठीक नहीं लग रहा था.

‘‘अरे आज फिर पापा ने पैसे दिए क्या?’’ रूबी ने पूछा.

‘‘नहीं मां… आज हमारे घर में गांव की एक आंटी आईं और उन्होंने ही हमें पैसे दिए.’’

बच्चों की बात पर सीधा भरोसा करने के बजाय रूबी ने घर जा कर देखना ही उचित समझा.

घर का दरवाजा अंदर से बंद था. अंदर क्या हो रहा है, यह जानने के लिए रूबी ने दरवाजे के र्झिरी से आंख लगा दी तो अंदर का सीन देख कर वह दंग रह गई. कमरे में करन किसी औरत पर झुका हुआ था और अपने होंठों से उस औरत के पूरे शरीर पर चुंबन ले रहा था, वह  औरत भी करन का पूरा साथ दे रही थी.

यह सब देख कर रूबी वहीं धम्म से दरवाजे पर बैठ गई. आंसुओं की धारा उस की आंखों से बहे जा रही थी.

कुछ देर बाद ‘खटाक’ की आवाज के साथ दरवाजा खुला और एक औरत अपनी साड़ी के पल्लू को सही करते हुए बाहर निकली. रूबी ने उसे पहचान लिया था. यह गांव की ही एक औरत थी, जिस का पति बाहर शहर में ही रहता है और तीजत्योहार पर ही आता है. गांव में यह औरत अपने ससुर के साथ रहती है.

रूबी उस औरत से एक भी शब्द न कह पाई, अलबत्ता वह औरत पूरी बेशर्मी से रूबी को देख कर मुसकराते हुए चली गई.

रूबी बड़ी मुश्किल से अंदर गई. करन ने रूबी से हाथ जोड़ लिए. ‘‘मैं बेकुसूर हूं रूबी… यह औरत गांव में बिना मर्द के रहती है… आज जबरन कमरे में घुस आई… और बच्चों को बाहर भेज दिया. फिर मुझ से कहने लगी कि अगर मैं ने उस की प्यास नहीं

बुझाई, तो वह मुझ पर बलात्कार का आरोप लगा देगी… अब तुम्हीं बताओ… मैं क्या करता… मैं मजबूर था,’’ रोने लगा था करन.

रूबी कुछ नहीं बोल सकी. शायद अभी उस में सहीगलत का फैसला करने की हिम्मत नहीं रह गई थी.

अगले 15 दिनों तक रूबी अपने पति का बरताव देखने और नजर रखने की गरज से काम पर नहीं गई और न ही घर से बाहर निकली. इन दिनों में करन ने बड़ा ही संयमित जीवन बिताया. रोज नहाधो कर पूजापाठ में ही रमा रहना उस के रोज के कामों में शामिल था. उस का आचरण देख कर रूबी को लगने लगा कि करन जो कह रहा था, वही सही है. गलती करन की नहीं है, गलती उसी औरत की ही है.

कुछ दिनों बाद सबकुछ पहले की  तरह ही हो गया. फिर रूबी काम पर जाने लगी. उसे विश्वास हो चला था कि उस का पति उस से सच बोल रहा है, पर उस का यह विश्वास तब गलत साबित हो गया, जब उस ने एक बार फिर करन और उस औरत को एकसाथ संबंध बनाते हुए पकड़ लिया.

रूबी दुख और गुस्से में डूब गई थी और अब उस ने मन ही मन कुछ कठोर फैसला ले लिया था.

रूबी अपनी बेटियों को अपने साथ ले कर सीधे गांव के प्रधान पारस के पास पहुंची. उसे देख कर पारस की बांछें खिल गईं.

‘‘अरे… अरे भाभीजी… आज हमारे दरवाजे पर आई हैं… अरे, धन्य भाग्य हमारे… बताइए, हमारे लिए क्या

आदेश है?’’

‘‘करन का एक दूसरी औरत के साथ गलत संबंध है… मैं खुद अपनी आंखों से उन दोनों को गलत काम करते देख चुकी हूं… मुझे इंसाफ मिलना चाहिए… अब मैं करन के साथ और नहीं रहना चाहती हूं… तुम इस गांव के प्रधान हो, इसलिए मैं तुम्हारे पास आई हूं.’’

‘‘सही कहा आप ने भाभीजी…  मैं इस गांव का प्रधान हूं… और इस नाते मेरा फर्ज बनता है कि मैं लोगों की मदद करूं और आप की भी… पर, गांव का प्रधान कोई भी फैसला अकेला नहीं

सुना सकता. उस के लिए पंचायत बुलानी पड़ेगी…

‘‘और भाभीजी आप का मामला तो बहुत संगीन है… तो हम ऐसा करते हैं कि कल ही पंचायत बुला लेते हैं. आप कल सुबह 11 बजे पंचायत भवन में आ जाना… तब तक हम करन भैया को भी संदेश पहुंचवा देते हैं.’’

यह सुन कर रूबी वहां से चली आई और अगले दिन 11 बजने का इंतजार करने लगी.

अगले दिन ठीक 10 बजे पंचायत बुलाई गई, जिस में दोनों पक्षों के लोग भी थे. रूबी के मातापिता भी थे, पर करन के मातापिता ने यह कह कर आने से मना कर दिया कि लड़के ने अपनी मरजी से निचली जाति में शादी की है, अब हमें उस से कोई मतलब नहीं है… जैसा किया है… वैसा भुगते… लिहाजा, करन अपना पक्ष खुद ही रखने वाला था.

पंचायत की कार्यवाही शुरू हुई. पहले रूबी को अपना पक्ष रखने का मौका दिया गया.

‘‘मैं कहना चाहती हूं कि मैं ने अपने घर वालों की मरजी के खिलाफ जा कर करन से शादी की थी, जिस से मैं

खुश भी थी, पर अब मेरे पति के गांव की ही दूसरी औरत के साथ गलत संबंध बन गए हैं, जिन्हें मैं ने अपनी आंखों से देखा है.

‘‘इस के बावजूद मैं ने करन को संभलने का एक मौका भी दिया, पर वह फिर भी गलत काम करता रहा, इसलिए मैं उस के साथ और नहीं रहना चाहती. मैं करन से तलाक लेना चाहती हूं. कार्यवाही आगे कोर्ट तक ले जाने से पहले मैं पंचायत की इजाजत चाहती हूं.’’

इस के बाद करन बोला, ‘‘मैं ने तो गले में कंठी धारण कर रखी है. मैं तो ऐसा कर ही नहीं सकता. और सारा गांव जानता है कि जब रूबी काम पर जाती है, तो मैं अपनी बेटियों के साथ घर पर रहता हूं. अब अपनी बेटियों के सामने कोई भला ऐसा काम कैसे कर सकता है… फिर भी रूबी के पास मेरे खिलाफ कोई सुबूत हो तो वह अभी पेश करे. अगर आरोप सही निकलेगा, तो मैं तुरंत ही तलाक दे दूंगा.’’

पारस तो पहले से ही रूबी से बदला लेना चाहता था, पर ऐसा कर नहीं पा रहा था. आज उस के सामने रूबी को जलील करने का अच्छा मौका था और पंचायत में भी सभी पारस की मंडली के ही लोग थे.

पारस द्वारा पंचायत का फैसला सुनाया गया, ‘‘रूबी किसी भी तरह से अपने पति को गुनाहगार साबित नहीं कर पाई और न ही करन के खिलाफ कोई सुबूत ही पेश कर पाई है. पंचायत को लगता है कि करन बेकुसूर है, इसलिए पंचायत के मुताबिक दोनों को एकसाथ ही रहना होगा. इन का तलाक नहीं कराया जा सकता.

‘‘रूबी ने अपने बेकुसूर पति पर बेवजह आरोप लगाए और पंचायत का समय खराब किया, इसलिए रूबी को सजा भुगतनी होगी.

‘‘रूबी को यह पंचायत 30,000 रुपए बतौर जुर्माना जमा करने का हुक्म देती है. और पैसे न जमा कर पाने की हालत में रूबी पर कड़ी कार्यवाही भी हो सकती है. जुर्माना परसों शाम तक प्रधान के पास जमा हो जाना चाहिए.’’

यह फैसला सुन कर रूबी टूट गई थी. जो रूबी कुछ दिनों पहले तक महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति जगा रही थी, वही रूबी जिस ने अपने मांबाप की मरजी के खिलाफ जा कर शादी की थी, उसे ही धोखा मिला.

और सब बातों के साथसाथ रूबी के सामने इतने पैसे जुर्माने के तौर पर जमा करने का हुक्म भी बजाना था, नहीं तो जालिम पंचायत न जाने क्या करवा दे.

एक दिन बीत गया था. पोस्ट औफिस में कुछ पैसे जमा थे और कुछ संदूक में थे, उन्हें मिला कर 20,000 रुपए ही हो सके. जब और पैसे का इंतजाम नहीं हो सका, तो तय समय पर रूबी इतने ही पैसों को ले कर पंचायत के सामने पहुंची और जुर्माने के पूरे पैसे जमा कर पाने में अपनी मजबूरी दिखाई.

प्रधान पारस ने बोलना शुरू किया, ‘‘रूबी हमारी भाभी लगती हैं… ये कहें तो हम सारा जुर्माना खुद ही जमा कर देंगे, पर क्यों करें, इंसाफ और धर्म के हाथों मजबूर हैं. हम ऐसा नहीं कर सकते… और हमारी रूबी भाभी जुर्माना नहीं जमा कर पाई हैं, इसलिए पंचों का फैसला है कि इन को बाकी के बचे 10,000 रुपयों के बदले दूसरी तरह का जुर्माना देना होगा.

‘‘और वह जुर्माना यह होगा कि हमारे खेत में जितना कटा हुआ गेहूं पड़ा हुआ है, उसे किसी भी तरह से हमारे आंगन तक पहुंचाना होगा.’’

एक बार फिर यह पंचायती फरमान सुन कर रूबी दंग रह गई थी,

हां, शायद भाग ही जाती, पर दो बच्चियों को छोड़ कर जाना संभव नहीं था. और फिर करन का क्या भरोसा?

‘‘बोलो… जुर्माने के तौर पर दी जाने वाली सजा मंजूर है तुम्हें?’’ प्रधान पारस की आवाज गूंजी. कोई चारा नहीं था उस अबला रूबी के पास, पर वह इस समय एक ऐसे दर्द में थी, जिस से एक दूसरी औरत ही समझ सकती है.

रूबी ने हिम्मत जुटाई और सभी के सामने बोल दिया, ‘‘फैसला मंजूर है, पर मैं अभी यह सजा नहीं झेल सकती.’’

‘‘पर क्यों?’’ एक पंच बोला.

‘‘क्योंकि, मैं रजस्वला हूं…’’

सारी बैठी औरतें सन्न रह गईं और आपस में खुसुरफुसुर करने लगीं.

‘‘मैं इस समय कोई भारी चीज नहीं उठा पाऊंगी, इसलिए मैं विनती करती हूं कि मेरी यह सजा माफ कर दी जाए.’’

प्रधान और पंचायत के कानों में जूं तक नहीं रेंगी. और नहीं किसी औरत के प्रति इस हालत में जरा भी हमदर्दी आई.

लिहाजा रूबी को पंचायत की बात माननी पड़ी. उस ने खेत में पड़ा गेहूं बोरियों में भरना शुरू किया और बोरी को लादलाद कर प्रधान के घर में रखना शुरू कर दिया, सूरज ऊपर तप रहा था, रूबी की आंखों में आंसू थे, पर वह अपने को किसी जाल में फंसा हुआ महसूस कर रही थी.

वह अभी कुछ ही बोरे रख पाई थी कि उस के पैर कांपने लगे. उस की जांघें छलनी हो गई थीं. उस की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. वह और नहीं सह सकी और वहीं बेहोश हो गई.

रूबी की आंख जब खुली, तो उस ने अपने आसपास सभी साथियों को पाया, जो समाजसेवा के काम में रूबी के साथ ईरिकशे पर बैठ कर जाती थीं, उन लोगों ने ही रूबी को अस्पताल में भरती कराया और उस से बिलकुल भी चिंता न करने की सलाह दी.

जब अस्पताल से रूबी को छुट्टी मिली, तो वह वहां से अपनी साथियों की मदद से महिला आयोग पहुंची, जहां उस ने अपने ऊपर हुए जुल्म की दास्तां बताई और यह भी बताया कि किस तरह से उस का पति एक दूसरी औरत के साथ जिस्मानी संबंध रखे हुए है, जबकि उन दोनों ने आपसी सहमति से प्रेम विवाह किया था.

महिला आयोग ने रूबी से हमदर्दी तो दिखाई, पर यह भी कहा कि आप पढ़ीलिखी लगती हैं… और जब तक आप के पास अपने पति के खिलाफ दूसरी महिला के साथ संबंध होने का कोई सुबूत नहीं होगा. तब तक हम

चाह कर भी आप की कोई मदद नहीं कर पाएंगे.

रूबी निराश हो कर वहां से लौट आई और यह सोचने लगी कि सुबूत कैसे जुटाया जाए.

फिर कुछ दिन बीतने के बाद रूबी एक दिन दोपहर में चोरीछुपे अपने गांव के घर में पहुंची और दरवाजा खटखटाया.

दरवाजा करन ने खोला और रूबी को देखते ही बिफर गया, ‘‘तू फिर यहां आ गई अपनी शक्ल दिखाने के लिए.’’

‘‘करन… एक मिनट मेरी बात तो सुनो… हम ने तो प्रेम विवाह किया था, फिर मुझ से इतनी नफरत क्यों?’’ रूबी ने पूछा.

‘‘प्रेम विवाह… हुंह… क्या तुम नहीं जानती कि हम दोनों अलगअलग जाति से संबंध रखते हैं… और हमारे गांव में किसी भी छोटी जाति वाली लड़की से शादी करने वाले को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता… पूरे गांव ने मेरा बहिष्कार कर दिया… मैं अब और नहीं सह सकता… और फिर तुम्हारे अंदर भी मैं ने एक कमाऊ औरत होने का अहंकार देखा… तुम काम से आ कर मुझ पर अहसान दिखाती थी और अकसर ही मेरा बिस्तर बिना गरम किए ही सो जाती थी. और मैं रातभर करवट बदलता रहता था… और फिर तुम्हारे भी तो बाहर और भी कई मर्दों के साथ संबंध हैं, इसीलिए मैं ने भी इस औरत के साथ संबंध बना लिया है और आगे भी मैं इसी के साथ रहूंगा,’’ करन ने सब स्वीकार कर लिया.

‘‘पर, मैं ने तुम से प्रेम…’’ रूबी का स्वर बीच में ही रुक गया.

‘‘हट साली… गड़रिया की जाति… चली है एक ब्राह्मण से इश्क लड़ाने… भाग जा यहां से और दोबारा इस दरवाजे पर मत आना,’’ दहाड़ उठा था करन.

रूबी पीछे चल दी, आगे चल कर उस ने अपने हैंडबैग में छुपा खुफिया कैमरा निकाला और उस में होने वाली रिकौर्डिंग बंद की और अब उस के चेहरे पर विजयी मुसकान थी.

ये वीडियो रिकौर्डिंग उस ने कोर्ट में पेश की, जहां पर करन को अपने पत्नी को मानसिक रूप से प्रताडि़त करने के लिए और दूसरी महिला से संबंध रखने के आरोप में सजा सुनाई गई.

यही नहीं, पंचायत द्वारा एक स्त्री पर अमानवीय व्यवहार करने के जुर्म में पंचायत के सभी सदस्यों को भी सजा दी गई और प्रधान को तत्काल प्रभाव से उस के पद से भी हटा दिया गया.

ये एक औरत की जीत थी, उस के सम्मान की जीत…

3 किरदारों का अनूठा नाटक: क्या था सिकंदर का प्लान

पिछला टेलीफोन उस के लिए परेशानी भरा था. दूसरा फोन तो उसे खौफजदा करने के लिए काफी था. दोनों टेलीफोन दिन के वक्त आए थे. तब जब उस का हसबैंड सिकंदर अपने औफिस में था और वह घर पर अकेली थी.

‘‘मिसेज सिकंदर,’’ फोन पर एक अजनबी औरत की आवाज सुनाई दी.

‘‘हां, बोल रही हूं. आप कौन हैं?’’ मिसेज सिकंदर ने कहा.

‘‘एक दोस्त हूं. मकसद है आप की मदद करना. क्या आप सलिलि को जानती हैं?’’ उस ने पूछा.

‘‘तो क्या आप सलिलि हैं?’’ मिसेज सिकंदर ने पूछा.

‘‘नहीं मिसेज सिकंदर, सलिलि तो आप के शौहर की सेक्रेटरी का नाम है. मिस्टर सिकंदर और सलिलि के बीच जो चल रहा है, आप के लिए ठीक नहीं है. मेरा फर्ज है कि मैं आप को सही हालात की जानकारी दे दूं.’’

मिसेज सिकंदर गुस्से से चिल्लाई, ‘‘यह सब फालतू बकवास है. सलिलि मेरे शौहर की सेक्रेटरी जरूर है. वह उस का जिक्र भी करते हैं. पर उन का उस से कोई चक्कर है, यह बिलकुल गलत है. सलिलि को दिल की बीमारी है, इसलिए वह उस से हमदर्दी रखते हैं. अबकी बार तो वह कह रहे थे, अगर अब उस ने ज्यादा छुट्टियां लीं तो उसे नौकरी से निकाल देंगे.’’

दूसरी तरफ से औरत की जहरीली हंसी की आवाज आई, ‘‘हां, आप यह सच कह रही हैं मिसेज सिकंदर. सलिलि को दिल की बीमारी है, लेकिन वह दूसरी तरह की दिल की बीमारी है. वैसे मुझे सलिलि से कोई जलन नहीं है. मैं तो आप का भला चाहती हूं. आप यह मालूम करने की कोशिश करें कि जब आप के शौहर पिछले महीने बिजनैस के सिलसिले में सिंगापुर गए थे, उस वक्त उन की खूबसूरत सेक्रेटरी सलिलि कहां थी?’’

‘‘आप हद से आगे बढ़ रही हैं मैडम, अपनी बेहूदा बकवास बंद कीजिए.’’ गुस्से से मिसेज सिकंदर ने फोन रख दिया. दोनों हाथों से सिर थाम कर मिसेज सिकंदर सोच में डूब गईं.

उन्हें याद आया, जब पिछले महीने सिकंदर बिजनैस के लिए सिंगापुर गया था, तो उस ने उसे सिंगापुर के उस होटल का नाम बताया था, जहां वह ठहरने वाला था. लेकिन एक जरूरी काम के सिलसिले में जब उस ने सिकंदर को होटल फोन किया था तो होटल से बताया गया था कि सिकंदर नाम का कोई आदमी उन के होटल में नहीं ठहरा है. उस वक्त उस ने सोचा था कि सिकंदर ने किसी वजह से होटल बदल लिया होगा. लेकिन अब?

सिकंदर से उस की शादी किसी रोमांस का नतीजा नहीं थी. उसे कहीं देख कर सिकंदर ने उस के हुस्न की तारीफ की तो वह सोच में पड़ गई थी. वह सिकंदर से उम्र में बड़ी थी. देखने में भी कोई खास अच्छी नहीं थी. उसे अपने हुस्न के बारे में कोई गलतफहमी नहीं थी.

सिकंदर ने उस से शादी सिर्फ इसलिए की थी कि वह एक बड़ी दौलत और जायदाद की वारिस थी. 14 साल से वह सिकंदर के साथ एक अच्छी जिंदगी गुजार रही थी. सिकंदर देखने में स्मार्ट था और बेहद जहीन भी.

उस ने रोमा की दौलत को इस तरह बिजनैस में लगाया कि कारोबार चमक उठा. बिजनैस खूब फलफूल रहा था. 14 साल के अरसे में उन की शादी को एक शानदार कारोबारी समझौता कहा जा सकता था. दोनों एकदूसरे से खुश थे और इस कामयाब फायदेमंद कौंट्रैक्ट को तोड़ने पर राजी नहीं थे. दोनों ही खुशहाल जिंदगी बसर कर रहे थे.

शाम को सिकंदर की वापसी पर रोमा ने फोन काल के बारे में कुछ नहीं बताया. एक हफ्ता आराम से गुजरा. इस बार किसी आदमी का फोन था. जिस ने उसे दहशतजदा कर दिया. उस ने घबरा कर पूछा, ‘‘आप कौन हैं?’’

‘‘इस बारे में आप को फिक्र करने की जरूरत नहीं है. जो मैं कह रहा हूं, उसे ध्यान से सुनो मिसेज सिकंदर. मैं एक पेशेवर कातिल हूं. मैं मोटी रकम के बदले किसी का भी कत्ल कर सकता हूं. शायद यह जान कर आप को ताज्जुब होगा कि आप के शौहर सिकंदर ने आप को कत्ल करने के लिए मुझे 10 लाख रुपए की औफर दी है.’’

रोमा डर कर चिल्लाई, ‘‘तुम पागल हो गए हो या मजाक कर रहे हो? मेरा शौहर हरगिज ऐसा नहीं कर सकता.’’

मरदाना आवाज फिर उभरी, ‘‘अगर आप को आप के शौहर के औफर के बारे में न बताता तो शायद मैं पागल कहलाता. मैं हर काम बहुत सोचसमझ कर करता हूं. 10 लाख का औफर मिलने के बाद मैं ने अपने शिकार के बारे में जानकारी हासिल की और आप तक पहुंचा.

‘‘मैं कोई मामूली ठग या चोर नहीं हूं. अपने मैदान का कामयाब खिलाड़ी हूं. मैं इस तरह कत्ल करता हूं कि मौत नेचुरल लगे. किसी को भी कोई शक न हो. मैं अपने काम में कभी भी नाकाम नहीं रहा.’’

मिसेज सिकंदर ने कंपकंपाती आवाज में कहा, ‘‘यह सब क्या कह रहे हो तुम, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है.’’

अजनबी मर्द की आवाज गूंजी, ‘‘मैं आप को सब समझाता हूं. आप के हसबैंड की औफर कबूल करने के बाद मुझे आप के बारे में पता लगा कि सारी दौलत की मालिक आप हैं. आप का शौहर आप का कत्ल करवाने के बाद पूरी दौलत का मालिक बनना चाहता है.

‘‘तब मुझे एक खयाल आया कि अगर मिसेज सिकंदर मुझे डबल रकम देने पर राजी हो जाएं तो मैं उन की जगह उन के शौहर को ही ठिकाने लगा दूं. आप क्या कहती हैं, इस बारे में मिसेज सिकंदर?’’

मिसेज सिकंदर खौफ से चीखीं, ‘‘तुम एकदम पागल आदमी हो. मैं पुलिस को खबर कर रही हूं.’’

मर्द ने जोरों से हंसते हुए कहा, ‘‘पुलिस, आप उन्हें क्या बताएंगी. चलिए, अगर उन्होंने यकीन कर भी लिया तो आप मुझे कहां तलाश करेंगी? मैं पीसीओ से फोन कर रहा हूं. आप बेकार की बातें छोड़ें और गौर करें. आप दोनों में से कोई एक मरने वाला है. अब रहा सवाल यह कि मरने वाला कौन होगा? आप या आप का शौहर? इस का फैसला आप को करना होगा. आप तसल्ली से सोच लें. कल मैं इसी वक्त फिर फोन करूंगा. आप का आखिरी फैसला जानने के लिए.’’

दूसरी तरफ से फोन बंद हो गया.

शाम को सिकंदर घर नहीं आया. उस ने फोन कर दिया कि औफिस में काम ज्यादा है, वह देर रात तक काम करेगा. उस ने सोचा कि सलिलि के साथ ऐश करेगा. जब आधी रात को सिकंदर बैडरूम में दाखिल हुआ तो वह जाग रही थी और कुछ सोच रही थी.

सोचतेसोचते वह इस फैसले पर पहुंच गई कि सुबह सिकंदर को टेलीफोन के बारे में बताएगी. मगर सिर्फ पहले फोन के बारे में. वह उस से कहेगी कि अगर उसे कोई कीप रखनी है तो रखे. उसे कोई ऐतराज नहीं, पर यह बात राज रहे. कोई बदनामी न हो.

वह आखिर दूसरे फोन के बारे में क्या बताती कि एक आदमी ने कहा है कि मुझे कत्ल करने के लिए 10 लाख का औफर दिया गया है. अगर मैं औफर डबल कर दूं तो मेरी जगह वह मारा जाएगा. शायद यह सुन कर सिकंदर उसे पागलखाने में दाखिल करा दे.

फिर उसे खयाल आया कि क्यों न वह उस अजनबी मर्द के दूसरे फोन का इंतजार करे. हो सकता है बातचीत के दौरान उस की कोई ऐसी गलती पकड़ में आ जाए, जिस की वजह से सिकंदर और पुलिस दोनों को उस की बात का यकीन आ जाए. फिर उसे पागलखाने में डालने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

लेकिन उसे लगा कि पहले फोन के बारे में भी बताने की भी क्या जरूरत है. वह उस की कहानी सुन कर खूब हंसेगा. अफेयर से इनकार करेगा और चौकन्ना हो जाएगा.

जैसेजैसे वह सोच रही थी, उसे लग रहा था कि फोन करने वाला आदमी पागल है. आखिर सिकंदर उस का कत्ल क्यों करवाएगा? वह खुद बूढ़ा हो रहा है, तोंद निकल आई है. अब क्या इश्क लड़ाएगा. पर यह बात भी सच है कि वह उसे तलाक नहीं दे सकता, क्योंकि सारी दौलत उस के हाथ से निकल जाएगी.

पर अचानक एक खयाल ने उसे डरा दिया कि अगर आज वह मर जाती है तो सारी दौलत का मालिक सिकंदर होगा. इस तरह उसे अपनी बीवी से छुटकारा मिल जाएगा और वह सलिलि से शादी करने के लिए आजाद हो जाएगा.

इसी सोचविचार में सारी रात कट गई. दूसरे दिन जब फोन की घंटी बजी तो उसी मरदाना आवाज ने पूछा, ‘‘मैडम, आप ने क्या फैसला किया?’’

रोमा की पेशानी पसीने से भीग गई. उस ने कहा, ‘‘मैं तैयार हूं. मैं तुम्हें 20 लाख दूंगी, तुम शिकार बदल दो. पर शिकार सिकंदर नहीं, सलिलि होगी.’’

‘‘बहुत अच्छा फैसला है, मतलब अब इस लड़की को ठिकाने लगाना है.’’ मरदाना आवाज ने पूछा.

‘‘हां, मेरे शौहर के बजाए उस की सेक्रेटरी सलिलि को कत्ल करना बेहतर है. क्योंकि न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी. उसे लग रहा था, जैसे सलिलि और सिकंदर के अफेयर के बारे में सारी दुनिया जानती है. सलिलि के न रहने से वह खुद ही वफादार बन जाएगा और अगर उस ने अपनी बीवी को कत्ल कराने की कोशिश की थी तो वह उस से खौफजदा भी रहेगा.’’

उस के दिमाग में एक खयाल और आया कि ये सारी बातें लिख कर अपने वकील के पास हिफाजत से रखवा देगी कि उस की अननेचुरल डैथ के बाद इसे खोला जाए और मौत का जिम्मेदार सिकंदर को ठहराया जाए.

फोन में मरदाना आवाज उभरी, ‘‘मुझे इस से कोई मतलब नहीं कि शिकार कौन है? मैं अपना काम बहुत ईमानदारी और सलीके से करता हूं. मैं आज ही आप के शौहर के औफर से इनकार कर दूंगा.

‘‘आप का काम हो जाने के बाद फिर कभी आप मेरी आवाज नहीं सुनेंगी, पर एकदो चीजें बहुत जरूरी हैं. मैं अपनी फीस एडवांस में नहीं मांग रहा हूं पर आप को मेरे बताए पते पर मेरे कहे मुताबिक एक खत लिख कर भेजना पड़ेगा. मेरा पता है— रूस्तम, पोस्ट बौक्स-911, रौयल पैलेस.’’

रोमा ने घबरा कर पूछा, ‘‘मुझे क्या लिखना होगा?’’

‘‘आप को लिखना होगा कि आप ने 20 लाख के एवज में मुझे हायर किया है कि मैं आप के शौहर की सेक्रेटरी सलिलि फर्नांडीज को कत्ल कर दूं.’’ मरदानी आवाज सुनाई दी.

रोमा चीख पड़ी, ‘‘नहीं, हरगिज नहीं. इस तरह तो मैं कत्ल में शामिल हो जाऊंगी.’’

‘‘बेशक, पर यह खत मेरे लिए बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इसे लिखने के बाद आप मेरे बारे में छानबीन नहीं करेंगी. यही खत मेरी फीस की गारंटी भी है. जब आप को सबूत मिल जाए कि सलिलि मर चुकी है, आप मुझे 20 लाख की रकम भेजेंगी. उस के मिलते ही कुरियर से आप को आप का खत वापस मिल जाएगा.’’

‘‘नहीं नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकती.’’ रोमा ने चिल्ला कर कहा.

‘‘मुझे बहुत दुख है मैडम कि आप के शौहर आप से कहीं ज्यादा अक्लमंद हैं. उन्होंने मेरी हर बात मंजूर कर ली थी. अब मैं आप के शौहर से ही सौदा कर लेता हूं.’’

रोमा ने कांपती आवाज में कहा, ‘‘ठहरो, मुझे तुम्हारी बात मंजूर है. बताओ, मुझे क्या लिखना है?’’

‘‘हां, यह ठीक है. आप कागज पेन ले लें, मैं आप को लिखवाता हूं.’’

रोमा ने कांपते हाथों से खत लिखा. फिर उस ने कहा, ‘‘मैं आप को खबर करूंगा कि आप खत भेज दें. खत मिलने के 2-3 दिन के अंदर ही अखबार में आप को सलिलि फर्नांडीस की मौत की खबर मिल जाएगी. फिर मैं आप को रकम के बारे में बताऊंगा कि कहां और कैसे भेजनी है. और फिर आप का खत आप को वापस मिल जाएगा. इस के बाद हमारा ताल्लुक खत्म.’’ दूसरी तरफ से फोन बंद हो गया.

2 दिन बाद फिर फोन आया. उस ने खत भेजने की हिदायत दी. रोमा ने खत रवाना कर दिया. तीसरे दिन अखबार में सलिलि फर्नांडीस की मौत की खबर छपी कि कल रात सलिलि फर्नांडीस की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई.

रोमा का शौहर सिकंदर काम के सिलसिले में कलकत्ता गया हुआ था. अब उसे कोई फिक्र नहीं थी. वह कहां जाता है, कहां ठहरता है, क्या करता है.

दूसरे दिन उसी आदमी ने रकम के बारे में कई हिदायतें दीं. रोमा ने अलगअलग बैंकों से रकम निकलवाई. कुछ अपने पास से मिलाई और बड़ी ईमानदारी से वहां पैसा पहुंचा दिया, जहां कहा गया था. वह कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी. पेशेवर कातिल भी अपने वादे का पक्का निकला. दूसरे रोज ही रोमा को कुरियर से उस का खत वापस मिल गया. उस ने फौरन उसे जला दिया और चैन की नींद सो गई.

उसी रात रोमा का शौहर रोमा से कई सौ मील दूर अपनी खूबसूरत सेक्रेटरी सलिलि के साथ एक शानदार होटल में अपनी कामयाबी का जश्न मना रहा था. सलिलि ने पूछा, ‘‘सिकंदर, मुझे यकीन नहीं हो रहा है कि यह सब कैसे हो गया? आखिर कैसे तुम ने मेरी मौत की खबर छपवा दी?’’

सिकंदर ने शराब का घूंट भरते हुए कहा, ‘‘बहुत आसानी से, तुम्हारे मरने की खबर और रकम मैं ने अखबार वालों को भेज दी थी और उस के साथ एक परचा रखा था—‘सलिलि फर्नांडीस का कोई रिश्तेदार या करीबी इस शहर में नहीं है और वह मेरी कंपनी में मुलाजिम थी. उस की सारी जिम्मेदारी मुझ पर आती है. उस के सारे मामलात मैं ही देख रहा हूं. बस अखबार के जरिए उस की मौत की खबर दुनिया को बताना चाहता हूं.’

उन लोगों ने दूसरे दिन ही यह खबर छाप दी. अच्छा जानेमन, तुम यह बताओ कि तुम ने फ्लैट छोड़ते वक्त अपनी मकान मालकिन से क्या कहा?’’

‘‘मैं ने मकान मालकिन से कहा था कि मैं दिल की मरीज हूं. अपने शहर वापस जा कर अपने डाक्टर से इलाज कराऊंगी, क्योंकि अब तकलीफ बहुत बढ़ गई है.’’

‘‘शाबाश, तुम्हें मुंबई आए अभी बहुत कम अरसा हुआ है. कोई तुम्हें जानता भी नहीं है, न कोई दोस्त है. अब तुम दूरदराज के इलाके में एक शानदार फ्लैट ले कर ठाठ से रहना. अपना नाम और पहचान भी बदल लेना. रोमा से मिले 20 लाख रुपए मैं किसी बिजनैस में लगा दूंगा ताकि हर महीने गुजारे के लिए अच्छीखासी रकम मिलती रहे.’’

‘‘डार्लिंग, तुम कितने अच्छे हो, सारी रकम मेरे नाम पर लगा रहे हो.’’

‘‘क्यों नहीं डियर, पहली बार टेलीफोन करने वाली तुम खुद थीं. तुम्हीं ने तो प्लान कामयाब बनाया.’’

‘‘मगर सिकंदर, सारी प्लानिंग तो तुम्हारी थी. तुम ने कितनी कामयाबी से आवाज बदल कर कातिल का रोल अदा किया. तुम्हारी आवाज सुन कर तो मैं भी धोखा खा गई थी. तुम वाकई में बहुत बड़े कलाकार हो.’’

‘‘चलो, फालतू बातें छोड़ो, अब हमारे मिलने में कोई रुकावट नहीं रहेगी. टूर का बहाना कर के मैं तुम्हारे पास आ जाया करूंगा. उधर रोमा अपनी दौलत पर नाज करते हुए चैन से सोएगी. अब मुझ पर शक भी नहीं करेगी.’’

वह काली रात: क्या हुआ था रंजना के साथ

जैसे ही रंजना औफिस से आ कर घर में घुसीं, बहू रश्मि पानी का गिलास उन के हाथ में थमाते हुए खुशी से हुलसते हुए बोली, मांजी, 2 दिनों बाद मेरी दीदी अपने परिवार सहित भोपाल घूमने आ रही हैं. आज ही उन्होंने फोन पर बताया.’’

‘‘अरे वाह, यह तो बड़ी खुशी की बात है. तुम्हारी दीदीजीजाजी पहली बार यहां आ रहे हैं, उन की खातिरदारी में कोई कोरकसर मत रखना. बाजार से लाने वाले सामान की लिस्ट आज ही अपने पापा को दे देना, वे ले आएंगे.’’

‘‘हां मां, मैं ने तो आने वाले 3 दिनों में घूमने और खानेपीने की पूरी प्लानिंग भी कर ली है. मां, दीदी पहली बार हमारे घर आ रही हैं, यह सोच कर ही मन खुशी से बावरा हुआ जा रहा है,’’ रश्मि कहते हुए खुशी से ओतप्रोत थी.

‘‘बड़ी बहन मेरे लिए बहुत खास है. 12वीं कक्षा में पापा ने जबरदस्ती मुझे साइंस दिलवा दी थी और मैं फेल हो गई थी. मैं शुरू से प्रत्येक क्लास में अव्वल रहने की वजह से अपनी असफलता को सहन नहीं कर पा रही थी और निराशा से घिर कर धीरेधीरे डिप्रैशन में जाने लगी थी. तब दीदी की शादी को 2 महीने ही हुए थे. मेरी बिगड़ती हालत को देख कर दीदी बिना कुछ सोचेविचारे मुझे अपने साथ अपनी ससुराल ले गईर् थीं. जगह बदलने और दीदीजीजाजी के प्यार से मैं धीरेधीरे अपने दुख से उबरने लगी थी. मेरा मनोबल बढ़ाने में जीजाजी ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी. उन्हीं की मेहनत और प्यार का फल है कि डौक्टरेट कर के आज कालेज में पढ़ा कर खुशहाल जिंदगी जी रही हूं. मां, कितना मुश्किल होता होगा अपनी नईनवेली गृहस्थी में किसी तीसरे, वह भी जवान बहन को शामिल करना,’’ रश्मि ने अपनी दीदी की सुनहरी यादों को ताजा करते हुए अपनी सास से कहा.

‘‘हां, सो तो है बेटा, पर तुम उन की यादों में ही खोई रहोगी कि कुछ तैयारी भी करोगी. दीदी के कितने बच्चे हैं?’’ रंजना ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘2 बेटे हैं मां, बड़ा बेटा अमन इंजीनियरिंग के आखिरी साल में है और छोटा अर्णव 12वीं कर रहा  है,’’ रश्मि ने खुशी से उत्तर दिया.

‘‘अच्छा,’’ कहते हुए रंजना ने अपने

2 कमरों के छोटे से घर पर नजर डाली जो 4 लोगों के आ जाने से भर जाता था. उन्होंने पति के साथ मिल कर बड़े जतन से इस घर को उस समय बनाया था जब बेटे का जन्म हुआ था. तब आर्थिक स्थिति भी उतनी अच्छी नहीं थी. सो, किसी तरह 2 कमरे बनवा लिए थे. उस के बाद परिवार बड़ा हो गया पर घर उतना ही रहा. कितनी बार सोचा भी कि ऊपर 2 कमरे और बनवा लें, ताकि किसी के आने पर परेशानी न हो, पर सुरसा की तरह मुंह फाड़ती इस महंगाई में थोड़ा सा पैसा बचाना भी मुश्किल हो जाता है. खैर, देखा जाएगा.

2 दिनों बाद सुबह ही रश्मि की दीदी परिवार सहित आ गईं. सभी लोग हंसमुख और व्यवहारकुशल थे. शीघ्र ही रश्मि के दोनों बच्चे 12 वर्षीय धु्रव और 8 वर्षीया ध्वनि दीदी के बेटों के साथ घुलमिल गए. पुरुष देशविदेश की चर्चाओं में व्यस्त हो गए. वहीं रश्मि और उस की दीदी किचन में खाना बनाने के साथसाथ गपों में मशगूल हो गईं. रंजना स्वयं भी नाश्ता कर के अपने औफिस के लिए रवाना हो गईर्ं.

नहाधो कर सब ने भरपेट नाश्ता किया. रश्मि ने खाना बना कर पैक कर लिया ताकि घूमतेघूमते भूख लगने पर खाया जा सके. पूरे दिन भोपाल घूमने के बाद रात का खाना सब ने बाहर ही खाया. मातापिता के लिए खाना रश्मि के पति ने पैक करवा लिया. घर आ कर ताश की महफिल जम गई जिस में रंजना और उन के रिटायर्ड पति भी शामिल थे.

रात्रि में हौल में जमीन पर ही सब के बिस्तर लगा दिए गए. सभी बच्चे एकसाथ ही सोए. बाकी सदस्य भी वहीं एडजस्ट हो गए. रश्मि की दीदी ने पहले ही साफ कह दिया था कि मम्मीपापा अपने कमरे में ही लेटेंगे ताकि उन्हें कोई डिस्टर्ब न करे. अपने रात्रिकालीन कार्य और दवाइयां इत्यादि लेने के बाद जब रंजना हौल में आईं तो कम जगह में भी सब को इतने प्यार से लेटे देख कर उन्हें बड़ी खुशी हुई. अचानक बच्चों के बीच ध्वनि को लेटे देख कर उन का माथा ठनका, वे अचानक बहुत बेचैन हो उठीं और बहू रश्मि को अपने कमरे में बुला कर कहा, ‘‘बेटा, ध्वनि अभी छोटी है, उसे पास सुलाओ.’’

‘‘मां, वह नहीं मान रही. अपने भाइयों के पास ही सोने की जिद कर रही है. सोने दीजिए न, दिनभर के थके हैं सारे बच्चे, एक बार आंख लगेगी तो रात कब बीत जाएगी, पता भी नहीं चलेगा,’’ कह कर रश्मि वहां से खिसक गईं.

वे सोचने लगीं, ‘यह तो सही है कि थकान में रात कब बीत जाती है, पता नहीं चलता, पर रात ही तो वह समय है जब सब सो रहे होते हैं और करने वाले अपना खेल कर जाते हैं. रात ही तो वह पहर होता है जब चोर लाखोंकरोड़ों पर हाथ साफ करते हैं. दिन में कुलीनता, शालीनता, सज्जनता और करीबी रिश्तों का नकाब पहनने वाले अपने लोग ही अपनी हवस पूरी करने के लिए रात में सारे रिश्तों को तारतार कर देते हैं.

कहते हैं न, दूध का जला छाछ भी फूंकफूंक कर पीता है, सो, उन का मन नहीं माना और कुछ देर बाद ही वे फिर हौल में जा पहुंचीं. ध्वनि उसी स्थान पर लेटी थी. उन्होंने धीरे से उस के पास जा कर न जाने कान में क्या कहा कि वह तुरंत अपनी दादी के साथ चल दी. बड़े प्यार से अपनी बगल में लिटा कर वे ध्वनि को कहानी सुनाने लगीं और कुछ ही देर में ध्वनि नींद की आगोश में चली गई. पर नातेरिश्तों पर कतई भरोसा न करने वाला उन का विद्रोही मन अतीत के गलियारे में जा पहुंचा.

तब वे भी अपनी पोती ध्वनि की उम्र की ही थीं. परिवार में उन के अलावा

4 वर्षीया एक छोटी बहन थी. मां गांव की अल्पशिक्षित सीधीसादी महिला थीं. एक बार ताउजी का 23 वर्षीय बेटा मुन्नू उन के घर दोचार दिनों के लिए कोई प्रतियोगी परीक्षा देने आया था. भाई के आने से घर में सभी बहुत खुश थे, आखिर वह पहली बार जो आया था. गरमी का मौसम था. उस समय कूलरएसी तो होते नहीं थे, सो, मां ने खुले छोटे से आंगन में जमीन पर ही बिस्तर लगा दिए थे.

वे अपने पिता से कहानी सुनाने की जिद कर रही थीं कि तभी भाई ने कहानी सुनाने का वास्ता दे कर उसे अपने पास बुला लिया. वह भी खुशीखुशी भैया के पास कहानी सुनतेसुनते सो गई. आधी रात को जब सब सोए थे, अचानक उन्हें अपने निचले वस्त्र के भीतर कुछ होने का एहसास हुआ. कुछ समझ नहीं आने पर वे अचकचाईं और करवट ले कर लेट गईं. कुछ देर बाद भाई ने दोबारा उन्हें अपनी ओर कर लिया और वही कार्य फिर से शुरू कर दिया. न जाने क्यों उसे यह सब अच्छा नहीं लग रहा था. जब असहनीय हो गया तो एक झटके से उठी और जा कर मां से चिपक कर लेट गई. उस दिन बहुत देर तक नींद ही नहीं आई. वह समझ ही नहीं पा रही थीं कि आखिर भैया उस के साथ क्या कर रहे थे?

8 साल की बच्ची क्या जाने कि उस के ही चचेरे भाई ने उस के साथ दुष्कर्म करने का प्रयास किया था. उस समय मोबाइल, टीवी और सोशल मीडिया तो था नहीं जो मां के बिना बताए ही सब पता चल जाता. यह सब तो उसे बाद में समझ आया कि उस दिन भाई अपनी ही चचेरी बहन के साथ…छि… सोच कर उस का मन आज भी मुन्नू भैया के प्रति घृणा से भर उठता है. अगले दिन सुबह मां ने पूछा, ‘क्या हुआ रात को उठ कर मेरे पास क्यों आ गई थी.’

उसे समझ ही नहीं आया कि क्या कहे? सो वह ‘कुछ नहीं, ऐसे ही’ कह कर बाहर चली गई. उस समय तो क्या वह तो आज तक मां से नहीं कह पाई कि उन के लाड़ले भतीजे ने उस के साथ क्या किया था. पर क्या वह उस समय मां को बताती तो मां उस की बातों पर भरोसा करतीं? शायद नहीं, क्योंकि मां की नजर में वह तो बच्ची थी और मुन्नू भैया उन के लाड़ले भतीजे.

उस जमाने में मांबेटी में संकोच की एक दीवार रहती थी. वे इतने खुल कर हर मुद्दे पर बात नहीं करती थीं जैसे कि आज की मांबेटियां करती हैं. वह कभी किसी से इस विषय में बोल तो नहीं पाई परंतु पुरुषों और सैक्स के प्रति एक अनजाना सा भय मन में समा गया. पुरानी यादों की परतें थीं कि धीरेधीरे खुलती ही जा रही थीं. समय बीतता गया. जब उन्होंने जवानी की दहलीज पर पैर रखा तो मातापिता को शादी की चिंता सताने लगी. आखिर एक दिन वह भी आया जब पेशे से प्रोफैसर बसंत उन के जीवन में आए.

उन्हें याद है जब वे शादी कर के ससुराल आईं तो बहुत डरी हुई थीं. पति बसंत बहुत सुलझे और समझदार इंसान थे. उन्होंने आम पुरुषों की तरह संबंध बनाने की कोई जल्दबाजी नहीं की. जब सारे मेहमान चले गए तो एक दिन परिस्थितियां और माहौल अनुकूल देख कर बसंत ने जब उन के साथ संबंध बनाने की कोशिश करनी चाही तो वे घबरा कर पसीनापसीना हो गईं और उन की आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बहने लगी. इस के बाद जब भी बसंत उन के नजदीक आने की कोशिश करते, उन की यही स्थिति हो जाती.

उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से कई बार रंजना से इस का कारण जानने की कोशिश की परंतु रंजना हर बार टाल गईं. एक दिन जब घर में कोई नहीं था, समझदार बसंत ने मानो समस्या हल करने का बीड़ा ही उठा लिया. वे रंजना का हाथ पकड़ कर जमीन पर बैठ गए और बड़े प्यार से इस मनोदशा का कारण पूछने लगे. पहले तो रंजना चुप रहीं पर फिर बसंत के प्यारभरे स्पर्श से सालों से जमी बर्फ की पर्त मानो पिघलने को आतुर हो उठी, उन की आंखों से आंसुओं के रूप में लावा बह निकला और रोतेरोते पूरी बात उन्होंने बसंत को कह सुनाई, जिस का सार यह था कि जब भी बसंत उन के नजदीक आते हैं उन्हें वह काली रात याद आ जाती है और वे घबरा उठती हैं.

बसंत कुछ देर तो शांत रहे, वातावरण में चारों ओर मौन पसर गया. वे मन ही मन घबराने लगीं कि न जाने बसंत की प्रतिक्रिया क्या होगी. परंतु कुछ देर बाद माहौल की खामोशी को तोड़ते हुए बसंत उठ कर उन की बगल में बैठ गए, रंजना का हाथ अपने हाथ में ले कर बड़े ही प्यार से बोले, ‘रंजू, जो हुआ उसे एक बुरा सपना समझ कर भूल जाओ. तुम्हारी उस में कोई गलती नहीं थी. गलती तो तुम्हारे उस भाई की थी जिस ने एक कोमल कली को कुचलने का प्रयास किया. जिस ने तुम्हारे मातापिता के साथ विश्वासघात किया. जिस ने रिश्तों की गरिमा को तारतार कर दिया. वह भाई के नाम पर कलंक है. जहां तक मां का सवाल है वे यह कभी सपने में भी नहीं सोच पाईं होंगी कि उन का सगा भतीजा ऐसा कुकृत्य कर सकता है. परंतु अब मैं तुम्हारे साथ हूं. हम पतिपत्नी हैं. तुम्हारा और मेरा हर सुखदुख साझा है.

‘कल हम एक मनोवैज्ञानिक काउंसलर के पास चलेंगे जिस से तुम अपने मन की सारी पीड़ा को बाहर ला कर अपने और मेरे जीवन को सुखमय बना पाओगी. इतना भरोसा रखो अपने इस नाचीज जीवनसाथी पर कि जब तक तुम स्वयं को मानसिक रूप से तैयार नहीं कर लेतीं मैं कोई जल्दबाजी नहीं करूंगा. बस, इतना प्रौमिस जरूर चाहूंगा कि यदि भविष्य में हमारी कोई बेटी होगी तो उसे तुम संभाल कर रखोगी. उसे किसी भी हालत में परिचितअपरिचित की हवस का शिकार नहीं होने दोगी. बोलो, मेरा साथ देने को तैयार हो.’

‘हां, बसंत, मैं अपनी बेटी तो क्या इस संसार की किसी भी बेटी को उस तरह की मानसिक यातना से नहीं गुजरने दूंगी, जिसे मैं ने भोगा है, पर मुझे अभी कुछ वक्त और चाहिए,’ रंजना ने बसंत का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, तो बसंत मुसकराते हुए प्यार से बोले, ‘यह बंदा ताउम्र अपनी खूबसूरत पत्नी की सहमति का इंतजार करेगा.’

अचानक रंजना कुछ सोचते हुए बोलीं, ‘बसंत, मैं धन्य हूं जो मुझे तुम जैसा समझदार पति मिला. मुझे लगता है हर महिला बाल्यावस्था में कभी न कभी पुरुषों द्वारा इस प्रकार से शोषित होती होगी. अगर आज तुम्हारे जैसा समझदार पति नहीं होता तो मुझ पर क्या बीतती.’

‘तुम बिलकुल सही कह रही हो, कितने परिवारों में ऐसा ही दर्द अपने मन में समेटे महिलाएं जबरदस्ती पति के सम्मुख समर्पित हो जाती हैं. कितनी महिलाएं अंदर ही अंदर घुटती रहती हैं और कितनों के इसी कारण से परिवार टूट जाया करते हैं, जबकि इस प्रकार की घटनाओं में महिला पूरी तरह निर्दोष होती है, क्योंकि बाल्यावस्था में तो वह इन सब के माने भी नहीं जानती. चलो, अब कुछ खाने को दो, बहुत जोरों से भूख लगी है,’ बसंत ने कहा तो वे मानो विचारों से जागी और फटाफट चायनाश्ता ले कर आ गईं.

कुछ दिनों की कांउसलिंग सैशन के बाद वे सामान्य हो गईं और एक दिन जब वे नहा कर बाथरूम से निकली ही थीं कि बसंत ने उन्हें अपने बाहुपाश में बांध लिया और सैक्सुअल नजरों से उन की ओर देखते हुए बोले, ‘‘अब कंट्रोल नहीं होता, बोलो, हां है न.’’

बसंत की प्यारभरी मदहोश कर देने वाली नजरों में मानो वे खो सी गईं और खुद को बसंत को सौंपने से रोक ही नहीं पाईं. बसंत ने उन्हें 2 प्यारे और खूबसूरत से बच्चे दिए. बेटी रूपा और बेटा रूपेश. उन्हें अच्छी तरह याद है जैसे ही रूपा बड़ी होने लगी, वे रूपा को अपनी आंखों से ओझल नहीं होने देती थीं. दोनों बच्चों के साथ बसंत और उन्होंने ऐसा दोस्ताना रिश्ता कायम किया था कि बच्चे अपनी हर छोटीबड़ी बात मातापिता से ही शेयर करते थे.

वे चारों आपस में मातापिता कम दोस्त ज्यादा थे. बेटी रूपा जैसे ही 7-8 वर्ष की हुई, उन्होंने उसे अच्छीबुरी भावनाओं, स्पर्श और नजरों का फर्क भलीभांति समझाया. ताकि उस के जीवन में कभी कोई रात काली न हो. सोचतेसोचते कब आंख लग गई, उन्हें पता ही नहीं चला. सुबह आंख देर से खुली तो देखा कि सभी केरवा डैम जाने की तैयारी में थे. वे भी फटाफट तैयार हो कर औफिस के लिए निकल लीं. अगले दिन रश्मि की दीदी का सुबह की ट्रेन से जाने का प्रोग्राम था. 3 दिन कैसे हंसीखुशी में बीत गए, पता ही नहीं चला.

पार्टी, डांस, ड्रिंक: क्या बेटे का शादीशुदा घर टूटने से बचा पाई सोम की मां

अलसाई हुई वाणी के मोबाइल की घंटी बजी तो उस ने उसे उठाया. उधर मम्मीजी थीं.

‘‘वाणी, हैप्पी मैरिज ऐनिवर्सरी.’’

‘‘थैंक्स मम्मीजी.’’

‘‘तुम्हारा प्यारा पिया कहां है?’’

‘‘मम्मीजी वे तो घर पर नहीं हैं.’’

‘‘कहां गया?’’

‘‘मैं तो सो रही थी. वे न जाने कब उठ कर चले गए. मुझे पता ही नहीं चला.’’ ‘‘सोम कभी नहीं सुधरेगा. उसे याद भी नहीं रहा कि आज तुम लोगों की मैरिज ऐनिवर्सरी है.’’

‘‘उन्हें कोई जरूरी काम होगा इसीलिए चले गए होंगे,’’ वाणी ने कहा, लेकिन वह मन ही मन उदास हो उठी थी. सोम को ऐनिवर्सरी भी याद नहीं रही. तभी आहिस्ता से सोम कमरे में आया और फोन हाथ में ले कर बोला, ‘‘थैंक्स मौम.’’

‘‘हम लोग शाम तक तुम्हारे पास पहुंच रहे हैं. आज कुछ पार्टीशार्टी हो जाए.’’

‘‘ओ.के. मौम, लेकिन आप की लाडली बहू जब परमिशन देगी तब तो.’’

‘‘समझ लो मिल गई.’’

‘‘ओ.के. मौम, मैं एअरपोर्ट पर आऊं?’’

‘‘नहीं. तुम पार्टी की तैयारी करो.’’ फिर सोम ने वाणी को अपने आगोश में ले लिया और एक प्यारा सा चुंबन उस के गाल पर अंकित कर उस की कलाइयों में डायमंड के कंगन पहना दिए और बोला, ‘‘डियर, हैप्पी ऐनिवर्सरी. आज तो सैलिब्रेशन का दिन है. आज तो ग्रैंड पार्टी होगी. डांस फ्लोर वाला हौल बुक करेंगे. मौम और डैड को तो डांस के बिना मजा ही नहीं आएगा.’’

‘‘लेकिन एक बात सुन लीजिए. ड्रिंक के लिए नो परमिशन.’’ आज से 5 साल पहले की बात है, जब मंजरी की शादी में उस के सौंदर्य और शालीनता से प्रभावित हो कर मम्मीजी और पापाजी ने उसे अपनी बहू बनाने का फैसला कर लिया था. वह छोटे शहर के मध्यवर्गीय परिवार की बेटी थी. उस के बाबूजी कृष्णदास सोम के पिता महेंद्रजी के बचपन के दोस्त थे और एक स्कूल में प्रधानाध्यापक थे. सोम के पिता महेंद्रजी फौज में भरती हो कर बाहर चले गए थे और इस समय बहुत ऊंचे ओहदे पर थे. वे स्वाभाविक रूप से बहुत खुले विचारों के थे और जब से लंदन रह कर आए थे, तब से अपने को आधा अंगरेज समझने लगे थे. इसलिए सोम और वाणी दोनों की पारिवारिक पृष्ठभूमि बिलकुल अलगअलग थी. सोम अपने पापा से बचपन से डरता था. उसी डर के कारण उस ने मंडप में वाणी के संग फेरे ले कर उसे अपनी जीवनसंगिनी बना तो लिया था, परंतु मन ही मन वह उसे देहाती लड़की ही समझ रहा था.

सोम की जीवनशैली के पाश्चात्य तौरतरीके देख वाणी थोड़ा घबराई थी. परंतु रात के अंधेरे में उस का सान्निध्य पा कर वह दिल से उस की हो गई थी. ससुराल में पहले दिन वाणी की नींद जब प्याजलहसुन की तेज गंध से खुली थी, तो उस का जी मिचला उठा था. वह जल्दीजल्दी तैयार हो कर नीचे आई, तो डाइनिंग टेबल पर सब लोग उस का नाश्ते पर इंतजार कर रहे थे. देर हो जाने की वजह से वह सकुचा उठी थी. टेबल पर एक प्लेट में अंडे की भुरजी देख कर वह सकपका गई थी. फिर भी अपने को सामान्य करती हुई अपनी प्लेट में ब्रैड ले कर कुतरने लगी थी. ‘‘वाणी यह अंडा भुरजी तो लो. इसे सोम ने तुम्हारे लिए विशेष रूप से बनवाया है.’’

वह धीमी आवाज में बोली थी, ‘‘मैं अंडा नहीं खाती हूं.’’ लेकिन सोम ने तेजी से लपक कर अपनी प्लेट से पूड़ी और भुरजी का बड़ा सा कौर बना कर उस के मुंह में रख दिया था. वह घबरा कर तेजी से बाथरूम की तरफ भागी थी. उसे मम्मीजी की आवाज पीछे से सुनाई दी थी, ‘‘सोम, तुम्हें इस तरह से जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए थी.’’ इस के बाद वह 2-3 दिन वहां रही तो सोम उस से उखड़ाउखड़ा सा रहा. फिर उस की छुट्टियां समाप्त हो गईं, तो वाणी को उस के साथ मुंबई आना पड़ा. छोटे शहर की वाणी मुंबई की तेज रफ्तार भरी जिंदगी देख सहम सी गई थी. वह हर काम सोम की इच्छानुसार करने के चक्कर में सब उलटापुलटा कर बैठती. एक दिन शाम को सोम घर आते ही बोला, ‘‘तैयार हो जाओ. आज मेरी शादी की पार्टी है, जिस में मेरे कुछ खास दोस्त होंगे. जरा ढंग से तैयार होना.’’ वाणी सोम के साथ आज पहली बार घर से बाहर पार्टी में जा रही थी. इस वजह से वह खुश मन से सजधज कर तैयार हुई तो सोम बुरा सा मुंह बना कर बोला, ‘‘यह क्या गंवारों की तरह साड़ी पहन ली. कुछ वैस्टर्न पहनतीं.’’

पार्टी में उस के दोस्त रुचिर और भुवन तो उस की सुंदरता पर मर मिटे थे. रुचिर ने हैलो करने को हाथ पकड़ा तो पकड़े ही रह गया. उस ने जबरदस्ती खींच कर अपना हाथ छुड़ाया. भुवन नशे में धुत्त था. वह उसे खींच कर डांस फ्लोर पर ले जा रहा था. उस के मना करते ही सोम सब के सामने नाराज हो कर बोला, ‘‘तुम ने तो मैनर्स का ककहरा भी नहीं पढ़ा है. डांस कर लोगी तो क्या हो जाएगा?’’ वाणी की आंखों में आंसू आ गए थे. वह कोने में जा कर बैठ गई थी. वहां भुवन की पत्नी निशा बैठी हुई थी. उस को भी इस तरह की पार्टियां पसंद नहीं थीं. सोम के 7-8 दोस्तों और उन की पत्नियों ने जी भर कर बोतलें खाली कीं. फिर किसी को होश नहीं रहा कि कौन किस की बांहों में थिरक रहा है. सब नशे में डूबे हुए थे. उसे यह सब बहुत अटपटा लग रहा था. सोम को नशे में धुत्त देख वह परेशान हो उठी थी. वाणी ने उस दिन से इस तरह की पार्टियों में न जाने की कसम खा ली थी.जल्द ही वाणी के पैर भारी हो गए. उस की तबीयत ढीली रहने लगी. लेकिन दोनों के संबंध सामान्य नहीं हो पाए. सोम उस पर हावी होता गया. वह झगड़े से बचने के लिए चुप रह जाती. कभीकभी पीने वाला सोम अकसर पी कर आने लगा था.

उस की खराब तबीयत के बारे में सुन कर उस के अम्माबाबूजी आ कर उस को अपने साथ ले गए. वहां कुहू के पैदा होने पर सोम आया और बेटी को लाड़ दिखा कर चला गया. वह सोचती थी कि मेरी प्यारी सी बेटी हम दोनों के रिश्ते सामान्य कर देगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. सोम की मम्मीजी और पापाजी विदेश में थे. थोड़े दिनों बाद वह सोम के साथ फिर से मुंबई आ गई. वहां नन्ही सी कुहू की देखभाल में उस का समय बीतने लगा. उस की सहायता के लिए एक आया लीला को रख लिया गया. एक दिन सुबह औफिस जाते हुए सोम बोला, ‘‘शाम को 6 बजे तैयार रहना. आज रुचिर की मैरिज ऐनिवर्सरी है. उस ने तुम्हें ले कर आने को कहा है.’’ यह कह कर वह औफिस चला गया, लेकिन वाणी के लिए वहां जाना मुमकिन नहीं था, क्योंकि कुहू को बुखार था. फिर उसे शुरू से ही सोम के दोस्त पसंद नहीं थे. पीना, डांस करना और आपस में भद्देभद्दे मजाक करना. पीनेपिलाने वाली पार्टियों से तो वह कोसों दूर रहना चाहती थी.

शाम 7 बजे आते ही सोम घुड़क कर बोला, ‘‘तुम्हारे कान बंद रहते हैं क्या? सुबह मैं तुम से कुछ कह कर गया था. अभी तक तुम तैयार क्यों नहीं हुई हो?’’

‘‘मैं नहीं जा पाऊंगी. कुहू को बुखार है.’’ सोम नाराज हो कर पैर पटकता हुआ घर से चला गया. लेकिन पार्टी में अकेले जाने के कारण सोम दोस्तों से हायहैलो करने के बाद एक पैग ले कर कोने की एक टेबल पर चुपचाप बैठ गया. उस पर अभी नशे का सुरूर चढ़ा भी नहीं था कि एक सुंदर महिला पर उस की निगाह पड़ी. वह कुछ क्षणों तक उस को अपलक निहारता रह गया. सोम की निगाहें उस महिला से एक क्षण को मिल गईं तो उस ने एक घूंट में ही बड़ा पैग खाली कर दिया. वह महिला भी अकेली बैठी सोम की ओर देख रही थी. अचानक वह तेजी से उठी और उस के पास आ कर कुरसी पर बैठते हुए बोली, ‘‘हाय हैंडसम, माईसैल्फ नैना.’’

उस की सुंदरता में खोए सोम को सब सपना सा लग रहा था, लेकिन वह भी बोला, ‘‘हैलो, माईसैल्फ सोम.’’ दोनों में दोस्ती होते देर न लगी. सोम उस की सुंदरता पर मर मिटा था, तो नैना सोम की स्मार्टनैस और जवानी पर. उन दोनों ने बेखौफ ड्रिंक और डांस का अच्छी तरह आनंद लिया. फोन नंबर का आदानप्रदान हुआ और शुरू हो गया दोनों का मिलनाजुलना. सोम सब कुछ भूल कर नैना के प्यार में खो गया. वह मीटिंग और अधिक काम के बहाने घर देर से पहुंचने लगा. दोनों के बीच जिस्मानी रिश्ते बन चुके थे, इसलिए सोम उस के नशे में डूबा रहता. दोनों अकसर साथ में लंच करते, तो कभी पिक्चर, कभी थिएटर, कभी मौल में घूमते. वाणी को पति के आचरण पर शक होने लगा था. वह कभीकभी उस के फोन काल और एसएमएस चैक करती, परंतु चौकन्ना सोम पत्नी के लिए कोई निशान नहीं छोड़ता था. एक दिन शाम को अचानक सोम बोला, ‘‘वाणी, मैं दिल्ली जा रहा हूं. वहां न्यूयार्क से एक डैलिगेशन आया है. उन के साथ मेरी मीटिंग है. मुझे वहां 2-3 दिन लगेंगे.’’ वाणी ने पति को शक की नजर से देखा, लेकिन कुछ बोली नहीं सिर्फ धीमी आवाज में बाय कह दिया. बाद में उस ने सोम की सेक्रेटरी से पता लगा लिया कि वह छुट्टी ले कर गया हुआ है, तो उस का शक विश्वास में बदल गया.

इधर सोम प्लेन की सीट पर बैठते ही नैना के ख्वाबों में खो गया. उस ने अपनी आंखें बंद कर ली थीं और वह नैना के सान्निध्य के खूबसूरत एहसास को जी रहा था. तभी उस के फोन की घंटी बज उठी थी. उधर नैना थी. वह बोली, ‘‘डियर, मेरे लिए एकएक पल काटना मुश्किल हो रहा है. मेरी फ्लाइट में अभी देर है.’’ सोम ने एहतियातन दोनों की अलगअलग फ्लाइट बुक करवाई थी. वह आने वाले कल के रंगीन सपनों में खोया नैना के साथ बिताने वाले समय की रूपरेखा मन ही मन बना रहा था. वह दिल्ली पहुंचा ही था कि फिर से नैना का फोन आ गया, ‘‘डियर, तुम कहां तक पहुंचे?’’

‘‘मैं दिल्ली पहुंच गया हूं. जब तुम्हारी फ्लाइट पहुंचेगी मैं एअरपोर्ट पर तुम्हारा इंतजार करता हुआ मिलूंगा.’’

‘‘तुम बहुत अच्छे हो. तुम मुझे यूज कर के फिर अपनी बीवी के आंचल में तो नहीं लौट जाओगे?’’

‘‘नहीं…’’

नैटवर्क की प्रौब्लम के चलते फोन कट चुका था, लेकिन नैना के नशे में डूबे सोम ने वाणी से तलाक लेने का मन बना लिया था. वह सोच रहा था कि दिल्ली से लौटते ही वह अपने वकील से कागज तैयार करवा लेगा. नैना को लेने वह एअरपोर्ट पर पहुंचा. उस के हाथ में एक बड़ा सा बुके था. आज वह अपने नए जीवन की शुरुआत करने जा रहा था. यहां पर केवल वह होगा और उस की नैना. आज तो नैना शौर्ट स्कर्ट और टौप पहन कर आई थी. सोम उत्तेजनावश उस को निहारता ही रह गया. नैना ने पास आते ही उसे अपने आलिंगन में जकड़ लिया. रात में जिस 5 सितारा होटल में वे ठहरे थे, उस के विशेष कक्ष में दोनों ने डिनर लिया. तभी नैना ने अपने पर्स से एक सुंदर सा ब्रेसलेट निकाल कर सोम की कलाई में पहना दिया.

‘‘डियर सोम, यह ब्रेसलेट मैं ने तुम्हारे लिए ही खरीदा है. यह हर समय तुम्हें मेरी याद दिलाता रहेगा.’’ ब्रेसलेट पहन सोम अचकचा उठा. उसे भी तो नैना के लिए कोई महंगा गिफ्ट खरीदना पड़ेगा. यह मस्ती तो उस पर भारी पड़ रही थी. रात में नैना उस को एक नाइट क्लब में ले गई. यह उस के लिए नया अनुभव था, लेकिन शायद नैना इन पार्टियों और क्लबों की अभ्यस्त थी. वहां सहजता से वह एक के बाद एक पैग चढ़ा रही थी, साथ ही सोम को भी पिला रही थी. दोनों मदहोशी में थे और गहरे नशे में डूब चुके थे. होटल में लौटने पर सोम अपने फोन पर कुछ कर रहा था कि नैना उस के हाथ से फोन खींच कर बोली, ‘‘तुम भी खूब हो. मुझ जैसी हसीना के बजाय फोन से खेल रहे हो.’’ फिर वह उस के और करीब खिसक कर बोली, ‘‘मुझे एक लंबे इंतजार के बाद तुम जैसा साथी मिला है. तुम अपनी बीवी से कब तलाक लोगे? बहुत हो गई लुकाछिपी. अब तुम से दूरी मुझ से बरदाश्त नहीं हो रही है.’’

‘‘नैना, यह बताओ कि आज तक तुम्हारे जीवन में कोई और तो नहीं आया?’’

‘‘नहीं यार, मैं सिंगल हूं. तुम्हें देखते ही मुझे जाने क्या हो गया. मैं तुम्हारे प्यार में पड़ कर सारी दुनिया भूल गई. दिन भर तुम्हारे ख्वाबों में खोई रहती हूं. औफिस के काम में भी मेरा मन नहीं लगता,’’ यह सब कहतेकहते उस ने सोम के होंठों पर अपने दहकते हुए होंठ रख दिए. फिर दोनों बेसुध हो कर सो गए. सुबह सोम के पास औफिस से जरूरी मीटिंग के लिए फोन आ गया. वह जाना नहीं चाहता था, क्योंकि अभी नैना के साथ और समय बिताना चाह रहा था, लेकिन उस का लौटना जरूरी था, इसलिए वह नैना से बोला, ‘‘नैना, मुझे औफिस की मीटिंग की वजह से आज ही मुंबई पहुंचना होगा.’’

‘‘ठीक है, तुम चले जाओ. मैं 2 दिन बाद पहुंचूंगी.’’

सोम फ्लाइट से अगले दिन सुबह जब घर पहुंचा तो नैना को छोड़ कर आने की वजह से खिसियाया हुआ था. फिर जब औफिस के लिए तैयार हो रहा था, वाणी किचन में गई. उस ने चायनाश्ता बनाया और डाइनिंग टेबल पर रख दिया. सोम हड़बड़ाता हुआ कमरे से निकला तो कप में चाय देखते ही चिल्लाया, ‘‘बदतमीज औरत, जब तुझे पता है कि मैं इस तरह की चाय नहीं पीता, तो क्यों बना कर रख देती हो?’’ और गुस्से में चाय का कप और नाश्ता दोनों को उठा कर जमीन में फेंक दिया. वाणी किचन से बाहर आई और सोम से बोली, ‘‘सोम मैं आप की पसंद की पौट वाली चाय बना कर लाती हूं, प्लीज रुक जाइए. घर से इस तरह चायनाश्ते के बिना मत जाइए.’’ सोम ने वाणी को सामने से हटाने के लिए धक्का दिया और बिना पीछे देखे गाड़ी स्टार्ट कर के चला गया. वाणी जमीन पर गिर गई और टेबल का कोना माथे पर चुभ जाने से उस के माथे से खून बह निकला. कुछ पलों के लिए वह बेहोश हो गई. फिर होश आने पर उस ने चोट पर दवा लगाई और लेट कर अपने जीवन के बारे में सोचने लगी. वह कब तक इस तरह से अपमानित होहो कर जीती रहेगी? उसे अपने भविष्य के बारे में गंभीरतापूर्वक सोचना पड़ेगा. सोम उस पर हाथ भी उठाने लगे हैं. वह किस तरह से सोम को सही रास्ते पर लाए.

तभी उस का मोबाइल बज उठा. उधर उस की सासूमां सरिताजी थीं.

‘‘कैसी हो वाणी?’’

‘‘मैं ठीक हूं.’’

‘‘मेरे नालायक बेटे का क्या हाल है?’’

‘‘वे भी ठीक हैं.’’

‘‘तेरा खयाल रखता है मेरा अकड़ू बेटा?’’

‘‘जी मम्मीजी.’’

‘‘उसे बता देना कि मैं उसे याद कर रही थी.’’ उन की बात यहीं खत्म हो गई पर मम्मीजी के अकड़ू शब्द ने वाणी की चेतना को जगा दिया. उस ने नैट पर प्राइवेट डिटैक्टिव एजेंसी को ढूंढ़ व उस से संपर्क कर सोम और उस की महिला मित्र के विषय में पूरी जानकारी हासिल करने के लिए कहा. उस के लिए उस ने मुंहमांगी फीस भी दी. उस के बाद उस ने अपना सामान गैस्टरूम में शिफ्ट कर लिया. शाम को जब सोम आया तो सारे घर में अंधेरा देख उस का माथा ठनका. फिर वाणी को गैस्टरूम में देखा तो बोला, ‘‘यह सब क्या नाटक है?’’

‘‘जो देख रहे हो. जल्दी ही मैं अपनी व्यवस्था कर लूंगी. फिर यहां से हमेशा के लिए आप की नजरों से दूर हो जाऊंगी.’’ अपनी सुबह की गलती का एहसास होते ही उस ने वाणी से आज पहली बार माफी मांग कर समझौता करना चाहा.

 

लेकिन वाणी बोली, ‘‘देखिए सोम, आप का जीने का ढंग मुझे पसंद नहीं और मेरी स्टाइल आप को पसंद नहीं. इसलिए अच्छा यही है कि हम दोनों अलग हो जाएं.’’ मन ही मन खुश होता हुआ सोम बोला, ‘‘वाणी तुम से सौरी बोल तो दिया, अब मान भी जाओ.’’ ‘‘सोम, आज आप ने सारी सीमाएं तोड़ दी हैं. यदि कुहू गोद में न होती तो मैं बहुत पहले आप का घर छोड़ चुकी होती. कुहू की ममता के कारण ही इस समय तक मैं आप का अत्याचार झेलती रही.’’

‘‘बहुत दिमाग खराब हो गया है तुम्हारा, मुझ से जबान लड़ाती हो.’’

‘‘सोम, आज आखिरी बार मैं आप से कह रही हूं कि तमीज से बात करो. नहीं तो मैं क्या करूंगी, इस का आप को अनुमान भी नहीं है. मुझे कमजोर मत समझिएगा. इतने दिन मैं चुप और शांत इसलिए रही कि शायद आप सुधर जाओगे, लेकिन आप ने तो न सुधरने की कसम खा ली है.’’ वाणी का कड़ा रुख देख सोम चुपचाप अपने कमरे में चला गया. परंतु उस की आंखें क्रोध से लाल हो रही थीं. दोनों में बोलचाल बंद थी. घर में शांति छा गई थी. वाणी को सीक्रेट सर्विस वालों की रिपोर्ट का इंतजार था. वह जब उसे मिली तो उस का शक सही निकला था. उन लोगों ने सोम और नैना के रिश्तों की बात सच बताई. साथ ही नैना के अन्य संबंधों की सीडी उस को दे कर गए. अब वह आश्वस्त थी कि अपने और सोम के रिश्ते को या तो बचा लेगी या तोड़ लेगी. तभी मम्मीजी का फोन आ गया कि पापा को हार्टअटैक पड़ा है, इसलिए तुम दोनों तुरंत आओ. सोम और वह दोनों तुरंत वहां पहुंच गए थे. पापाजी एक हफ्ते नर्सिंग होम में रहने के बाद डिस्चार्ज हो कर घर आ गए थे. सोम के पिता महेंद्रजी बहुत जल्दी स्वस्थ हो गए. नैना के नशे में डूबा सोम वाणी को वहीं छोड़ मुंबई चला आया. वाणी के उतरे हुए चेहरे और गुमसुम रहने से सरिताजी का माथा ठनका. उन्होंने पूछा, ‘‘वाणी, तुम्हारे और सोम के बीच सब ठीक तो है न?’’

‘‘जी मम्मीजी.’’

‘‘सोम तो तुम्हें फोन भी नहीं करता?’’

‘‘वे काम में बहुत बिजी रहते हैं, इसलिए नहीं कर पाए होंगे.’’

‘‘तुम मुझ से कुछ छिपा रही हो. सचसच बताओ. मैं अपने बेटे के स्वभाव को अच्छी तरह जानती हूं.’’

अब वाणी अपने को रोक न पाई तो एकदम से उबल पड़ी, ‘‘मम्मीजी, मैं सोम से तलाक लेना चाहती हूं. मैं उन के साथ अब नहीं निभा सकती.’’

‘‘क्या बात है?’’

‘‘प्लीज, आप पापाजी से कुछ मत कहिएगा. अभी उन की तबीयत पूरी तरह ठीक नहीं है.’’ वाणी ने सीक्रेट सर्विस वालों द्वारा दी हुई सीडी उन के हाथ में रख दी और फूटफूट कर रो पड़ी. सरिताजी ने वाणी के आंसू पोछे और बोलीं, ‘‘तुम चुप हो जाओ. मैं तुम्हारे साथ हूं. तुम्हारी समस्या का समाधान मैं करूंगी.’’ सरिताजी ने आहत मन से उस सीडी को देखा. वे वाणी से बोलीं, ‘‘बेटी, जैसे शरीर में कोई रोग या बीमारी हो जाने पर उस का इलाज करने के लिए कड़वी दवा पीनी पड़ती है, वैसे ही यदि सोम के कदम बहक गए हैं, तो हम सब को मिल कर उसे सही रास्ते पर लाना होगा. तुम्हें मेरा साथ देना होगा. मेरा विश्वास है कि सोम बहुत जल्द तुम्हारे पास होगा. बस थोड़ा धीरज रखो.’’ उन्होंने वाणी को इंगलिश स्पीकिंग और व्यक्तित्व विकास की क्लासेज जौइन करवा दीं. सुंदर तो वह थी ही अब उस का व्यक्तित्व भी निखर उठा था, क्योंकि उस का आत्मविश्वास बढ़ चुका था. सरिताजी वाणी के बदले हुए व्यक्तित्व से बहुत खुश थीं. कुछ दिनों बाद वे बेटे के घर अकेले पहुंच गईं. घर पर नैना की यहांवहां बिखरी चीजें देख वे सोम से बोलीं, ‘‘बेटा, यहां तुम्हारे साथ कौन रहता है?’’

सकपकाया सा सोम बोला, ‘‘कोई नहीं मौम? मेरी एक दोस्त किसी मीटिंग में यहां आई है. उसी का सामान यहांवहां बिखरा हुआ है. 3-4 दिनों से वह यहां है, आज उसे जाना है.’’ ‘‘साफ शब्दों में क्यों नहीं कहते कि मेरी गर्लफ्रैंड मेरे साथ रह रही है. वैसे बेटा यह तुम ने बड़ा अच्छा किया कि अपने लिए एक पार्टनर ढूंढ़ लिया. लेकिन तुम्हें पार्टनर बड़ी जल्दी से मिल गई. अभी तो वाणी को गए 2 महीने भी नहीं हुए. चलो मेरी चिंता समाप्त हुई. मैं सोचती थी कि मेरा इतना मौडर्न बेटा कैसे उस देहाती लड़की के साथ गुजर कर रहा होगा?’’

‘‘नहीं मां, ऐसा कुछ नहीं है. लेकिन वाणी के साथ रहना तो वास्तव में बहुत मुश्किल है. पक्की घरेलू और देहातिन लड़की है. मैं तो उस के साथ खून का घूंट पी कर रहता हूं.’’

‘‘तो ठीक है, तुम उस से तलाक ले लो.’’

‘‘हां, मैं मन ही मन यह सोचता तो था, लेकिन हिम्मत नहीं पड़ती थी. अब आप मेरे फेवर में हैं तो मैं कल ही वकील से मिल कर बात करूंगा. लेकिन मौम, आप पापा के सामने अपने कदम पीछे तो नहीं कर लेंगी? मुझे पापा से बहुत डर लगता है.’’ ‘‘हां, तुम्हारे पापा को समझाना तो थोड़ा मुश्किल है, क्योंकि वाणी ने उन पर न जाने कौन सा जादू कर रखा है. वे तो रातदिन उस की तारीफ करते रहते हैं. चलो देखती हूं, लेकिन अपनी दोस्त से कब मिलवाओगे?’’

‘‘शुभ काम में देरी कैसी डियर मौम. मैं ने तो उसे न आने के लिए मैसेज कर दिया था पर अब उसे आने के लिए बोल देता हूं.’’ ‘‘यह सब तो ठीक है, लेकिन वाणी तो आदर्श हिंदू लड़की है. वह तो मरते दम तक तुम्हें तलाक नहीं देगी और साथ में तुम्हारी बेटी कुहू का जीवन संकट में पड़ जाएगा.’’

‘‘मौम, आज नैना बिजी है, इसलिए वह नहीं आएगी.’’

‘‘रात में वह कहां बिजी रहती है?’’

‘‘मुझे क्या मालूम. किसी क्लाइंट के साथ उस की मीटिंग होगी. हम लोग पर्सनल बातें आपस में डिस्कस नहीं करते.’’

‘‘फिर तो वह अमीर लड़की होगी. चलो अच्छा है तुम्हारी नौकरी चली गई तो वह तुम्हारा खर्च तो उठा लेगी.’’

‘‘मौम, आप तो न जाने क्या कहना चाह रही हैं.’’

‘‘देखो सोम, जब किसी ऐसे काम को करने जा रहे हो, जिस का फैसला कोई दूसरा करने वाला हो, तो उस के नकारात्मक पहलू पर भी विचार करना चाहिए. जरा वह ब्रेसलेट ले आओ.’’ सोम ने ब्रेसलेट ला कर सरिताजी की हथेली पर रखा. उन्होंने ब्रेसलेट को उलटपलट कर और यहांवहां जरा सा घिस कर देखा. फिर बोलीं, ‘‘इस ब्रेसलेट पर तो सोने की पौलिश भी नहीं है. इस की कीमत तो क्व100, क्वडेढ़ 100 होगी. चलो इस को ज्वैलर के यहां परखवा लेते हैं.’’

‘‘छोड़ो मौम, नैना ने शायद मुझ पर इंप्रैशन जमाने के लिए यह नकली ब्रेसलेट दिया होगा.’’

‘‘मेरे लाल, असलीनकली को पहचानना सीखो. कब तक नकली तड़कभड़क के पीछे भागते रहोगे?’’

‘‘आप ने तो जरा सी बात का बतंगड़ बना दिया. दोस्तों के बीच तो यह सब चलता ही रहता है.’’ ‘‘हांहां, क्यों नहीं. अब छोड़ो भी ये सब बातें. जरा यह सीडी वीडियो प्लेयर में लगा दो. आते समय तेरे पापा ने यह कह कर दी थी कि इस सीडी को अपने लायक बेटे के साथ ही बैठ कर देखना. जरा देखूं तो इस सीडी में ऐसा क्या है.’’

सोम ने सीडी चालू की. टीवी में सब से पहले नैना का फोटो उस के पूर्व पति के साथ था, जिस में वह साधारण परिवार की वेशभूषा में थी. उस का पति कोई क्लर्क था. उसे छोड़ कर नैना ने किसी दूसरे व्यक्ति से ब्याह रचाया था. उस का भी फोटो था. उसे छोड़ने के बाद किसी अधेड़ रईस के साथ रहने लगी थी. वह उस के पैसे पर ऐश करती रही. जब उस की आर्थिक स्थिति खराब हो गई, उस को पैरालाइसिस हो गया, तो उस को छोड़ कर अब इधरउधर रईस, स्मार्ट लड़कों के संग रोमांस का नाटक कर के उन्हें लूट रही थी. नाइटक्लब के भी कई वीडियो थे, जिस में वह अलगअलग लड़कों के साथ अश्लील नृत्य कर रही थी. सोम ने मां के हाथ से रिमोट ले कर टीवी बंद कर दिया. वह गुमसुम हो गया था. उस की आंखों से आंसू बह निकले थे. ‘‘मौम, मैं भटक गया था. असली हीरे को छोड़ मैं नकली की चमकदमक में भटक गया था. मैं वाणी का गुनहगार हूं. मुझे उस से माफी मांगनी है, कहीं देर न हो जाए.’’ वह सोच रही थी कि मां के इस कदम ने उस की टूटती शादी को बचा लिया था. तभी सोम के दोस्त रुचिर और भुवन के सम्मिलत स्वर से उस की तंद्रा टूटी, ‘‘थैंक्स भाभी. आप के कड़े रुख के कारण सोम ने हम सब के सामने शर्त रख दी थी कि या तो दोस्ती या ड्रिंक. ड्रिंक पर दोस्ती भारी पड़ी.’’

वाणी प्यार भरी निगाहों से सोम को देख कर उस का हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘थैंक्स सोम.’’

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