औनर किलिंग: भाग 2- अनजानी आशंका से क्यों घिरी थी निधि

जिस शालू ने घर वालों के विरोध के बावजूद विनय से शादी करने में उस का पूरा साथ दिया, वही बहन आज उसे विनय के कारण जान से मारने की साजिश में शामिल हो गई. निधि को इस बात पर अब भी यकीन नहीं हो रहा था.

‘‘क्या आप ठीक महसूस कर रही हैं?’’ ड्यूटी पर तैनात डाक्टर ने आ कर पूछा तो निधि ने आंखें खोल दीं.

‘‘जी,’’ उस ने संक्षिप्त सा जवाब दिया और उठ कर बैड पर बैठ गई. उसे बैठा देख कर कौंस्टेबल ने इंस्पैक्टर सरोज को फोन कर दिया और 15 मिनट में वे भी वहां पहुंच गईं.

‘‘क्या आप अपने बारे में कुछ बताएंगी?’’ सरोज ने पूछा. निधि ने एक बार फिर चुप्पी साध ली. क्या बताती वह उन्हें कि वह अपनों की ही साजिश का शिकार हुई है. उसे जन्म देने वाले ही उसे मौत की नींद सुला देना चाहते हैं.

‘‘जी, मैं मुंबई की रहने वाली हूं. यहां किसी दोस्त से मिलने आई थी, मगर एक हादसे का शिकार हो गई. कुछ गुंडों ने मुझ पर हमला कर दिया था. मेरा बैग और मोबाइल छीन लिया. शायद किसी बुरी नीयत से वे मेरा पीछा कर रहे थे. मगर मैं किसी तरह उन के चंगुल से बच कर यहां तक आ गई,’’ निधि ने असली बात छिपा ली.

‘‘देखिए, आप हम से कुछ भी छिपाने की कोशिश न करें और न ही डरें. हम आप की मदद करना चाहते हैं. आप चाहें तो उन गुंडों के खिलाफ पुलिस में मामला दर्ज करवा सकती हैं,’’ सरोज ने उसे कुरेदा. मगर निधि ने एक बार फिर से चुप्पी साध ली और अपनी आंखें बंद कर के अपने दर्द को दिल के भीतर ही समेटने की कोशिश करने लगी.

रात हो चली थी. हौस्पिटल में भरती लगभग सभी मरीज नींद की आगोश में जा चुके थे. हां, कभीकभी कोई मरीज दर्द से कराह उठता था तो अवश्य ही वार्ड की शांति भंग हो जाती थी. ड्यूटी पर तैनात नर्स और कंपाउंडर भी उबासियां ले रहे थे मगर निधि की आंखों में दूरदूर तक नींद का नामोनिशान नहीं था.

वह उस वक्त को कोस रही थी जब उस ने शालू की बातों में आ कर घर लौटने का मन बनाया था. मौका भी तो कुछ ऐसा ही था. वह चाह कर भी इनकार नहीं कर सकी थी. उस की छुटकी की शादी जो तय हो गई थी. शालू ने जब चहकते हुए बताया था कि मम्मीपापा उसे विनय सहित अपनाने को राजी हो गए हैं तो उस के सिर से भी मांबाप की मरजी के खिलाफ जा कर शादी करने के अपराधबोध का भारी बोझा उतर गया था जिसे वह इतने सालों से ढो रही थी.

इधर, विनय को भी 2 महीने के लिए ट्रेनिंग पर आस्ट्रेलिया जाना था. निधि ने सोचा, एक पंथ दो काज हो जाएंगे. विनय के बिना यहां अकेले मुंबई में रहना किसी सजा से कम नहीं था. इसलिए उस ने कंपनी से एक महीने की लंबी छुट््टी ले ली और अपने पैतृक गांव सिरसा आ गई.

मां तो निधि को देखते ही उस से लिपट गई थी. पापा ने भी कलेजे से लगा लिया था अपनी लाड़ो को. राज शादी के किसी काम के सिलसिले में शहर गया हुआ था. शालू ने उसे बांहों में भींचा तो फिर छोड़ा ही नहीं…न जाने कितने गिलेशिकवे थे जिन्हें वह शब्दों में बयां नहीं कर सकी थी. बस, आंखों से आंसू बहे जा रहे थे. निधि के आने से शादी वाले घर में एक अलग ही रौनक आ गई थी.

रात में छुटकी ने उस से चिपटते हुए पूछा, ‘जीजी, एक बार फिर से बता न, तू ने जीजाजी जैसे विश्वामित्र को आखिर कैसे रिझाया?’

‘कितनी बार सुनेगी तू? आखिर तेरा मन भरता क्यों नहीं, एक ही किस्से को बारबार सुन कर तू बोर नहीं होती?’ निधि ने झूठे गुस्से से कहा.

‘अरे, अब तक तो फोन पर ही सुनती आई थी, आमनेसामने सुनने का मौका तो आज ही हाथ लगा है, सुना न. आज तो मैं तेरे चेहरे की लाली भी देखूंगी, जब तू बोलेगी,’ शालू ने जिद की तो निधि छुटकी की जिद नहीं टाल सकी और एक बार फिर से कूद पड़ी यादों की झील में डुबकी लगाने.

‘मुंबई की बरसात तो तू जानती ही है. बादलों का कोई भरोसा नहीं, जब जी चाहे बरस पड़ते हैं. हालांकि हम मुंबई वाले इस की ज्यादा परवा नहीं करते मगर उस दिन बात कुछ और ही थी. सुबह से ही बरसात हो रही थी. दोपहर होतेहोते तो सारे शहर में पानी ही पानी हो गया था.

‘मौसम विभाग ने भारी वर्षा की चेतावनी जारी कर के लोगों को घर में ही रहने की सलाह दी. मगर जो घर से बाहर थे उन्हें तो घर लौटना ही था. मैं भी अपने औफिस में बैठी बारिश के रुकने का इंतजार कर रही थी. लगभग सभी लोग अपने घर जाने की व्यवस्था कर चुके थे. बस, मैं और विनय ही बचे थे.

‘बारिश के थोड़ा सा हलके होने के आसार दिखे तो विनय ने मुझ से कहा, ‘आप को एतराज न हो तो मैं आप को अपनी बाइक पर घर छोड़ सकता हूं.’

‘मगर बाइक पर तो हम भीग जाएंगे…’ मैं ने कहा.

‘घर ही तो जाना है, किसी पार्टी में तो नहीं? घर पहुंच कर कपड़े बदल लेना,’ विनय ने मुसकराते हुए कहा.

‘मुसकराते हुए कितना प्यारा लगता है ये, पता नहीं मुसकराता क्यों नहीं है,’ मैं ने यह मन ही मन सोचा और खुद भी मुसकरा दी. अंत में मैं ने विनय से लिफ्ट लेना तय कर लिया.

‘जैसा कि मैं ने कहा था, घर पहुंचतेपहुंचते मैं और विनय पूरी तरह से भीग चुके थे. मैं ने विनय को एक कप अदरक वाली चाय पीने का औफर देते हुए अंदर आने को कहा. पहले तो उस ने मना कर दिया मगर अचानक ही उसे तेज छींकें आने लगीं तो मैं ने ही हाथ पकड़ कर उसे भीतर खींच लिया था. उसे छूने का यह मेरा पहला अनुभव था. मैं ने महसूस किया कि विनय भी मेरे छूने से थोड़ा सा नर्वस हो गया था.

‘मैं ने कपड़े बदल कर चाय का पानी चढ़ा दिया. तभी मुझे खयाल आया कि विनय भी तो भीगा हुआ है. मगर मेरे पास उसे देने के लिए जैंट्स कपड़े तो थे ही नहीं. मैं ने गैस धीमी कर के उसे तौलिया दिया और साथ ही बदलने के लिए अपना नाइट सूट भी. यह देख कर विनय सकपका गया. मगर फिर जोर से हंस पड़ा और कपड़े बदलने चला गया.

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औनर किलिंग: भाग 1- अनजानी आशंका से क्यों घिरी थी निधि

निधि भागतेभागते थक चुकी थी. उस की सांसें बारबार उखड़ रही थीं. कपड़े झाडि़यों में उलझ कर कई जगह से फट गए थे. शुक्र है उस ने पैरों में स्पोर्ट्स शूज पहन रखे थे, वरना पांव तो कभी भी बेवफाई कर सकते थे. मगर शरीर तो आखिर शरीर ही है, उस की सहन करने की एक सीमा होती है. अब तो हिम्मत भी आगे बढ़ने से इनकार कर रही थी. मगर ‘नहीं, अभी कुछ देर और साथ दो मेरा…’ अपनी इच्छाशक्ति से रिक्वैस्ट करती हुई निधि ने अपनी अंदरूनी ताकत को जिंदगी का लालच दिया और एक बार फिर से अपना हौसला बढ़ा कर तेजी से भागने लगी उसी दिशा में आगे की ओर.

मगर इस बार हिम्मत उस की बातों में नहीं आई और उस ने आखिर दम तोड़ ही दिया. निधि ने एक पल ठहर कर भयभीत हिरणी की तरह इधरउधर देखा और पूरी तसल्ली करने के बाद एक पेड़ से अपनी पीठ टिका कर उखड़ी हुई सांसों को संयत करने लगी.

‘शायद सुबह होेने में अब ज्यादा देर नहीं है. मुझे सूरज निकलने से पहले ही कोई सुरक्षित ठिकाना तलाशना होगा वरना पता नहीं मैं फिर किसी सूरज का उगना देख भी सकूंगी या नहीं,’ मन ही मन यह सोचते हुए उस ने अंधेरे में देखने की कोशिश की तो उसे दूर कुछ रोशनी गुजरती हुई सी दिखाई दी. ‘शायद कोई सड़क है. मुझे किसी भी तरह वहां तक तो पहुंचना ही होगा, तभी किसी तरह की मदद की कोई उम्मीद जगेगी,’ सोचती हुई निधि ने फिर अपना सफर शुरू किया.

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निधि का अनुमान सही निकला. यह सड़क ही थी. हरियाणा और राजस्थान को आपस में जोड़ता एक स्टेट हाईवे, कुछ ही दूरी पर एक छोटा सा टोल नाका भी बना हुआ था. निधि किसी तरह अपनेआप को ठेलती हुई वहां तक ले कर गई, मगर कुछ बोल पाती, इस से पहले ही गिर कर अचेत हो गई.

टोल कर्मचारियों ने उसे देखा तो वे घबरा गए. उस की हालत देख कर उन्होंने तुरंत पुलिस को सूचित करना ही उचित समझा. कुछ ही देर में ऐंबुलैंस सहित पुलिस की गाड़ी वहां आ गई और महिला पुलिस की निगरानी में निधि को सिटी हौस्पिटल ले जाया गया.

डाक्टरों के थोड़े से प्रयास के बाद ही निधि को होश आ गया. खुद को पुलिस की निगरानी में पा कर निधि के मन में दबे हुए गुबार को शब्द मिले और वह महिला कौंस्टेबल से लिपट कर फूटफूट कर रो पड़ी. इंस्पैक्टर सरोज ने उस की पीठ पर हाथ रखते हुए उसे भरोसे का एहसास दिलाया और कहा, ‘‘देखो, तुम हमारे पास पूरी तरह सुरक्षित हो. और तुम्हें घबराने या किसी से डरने की जरूरत नहीं है. तुम बेखौफ हो कर अपने साथ हुए हादसे के बारे में हमें बताओ. हम तुम्हारी मदद करने की पूरी कोशिश करेंगे.’’

निधि कुछ भी नहीं बोली, बस, टकटकी लगाए छत की तरफ देखती रही. किस पर लगाए इलजाम, किसे ठहराए दोषी, किसे सजा दिलवाए, किसे भिजवाए सलाखों के पीछे. जो भी उस की इस हालत के जिम्मेदार हैं, वो उस के अपने, उस के सगे ही तो थे. वे, जिन के साथ उस का खून का रिश्ता है. हां, ये हैं उस के पापा, जो उस की एक जिद पर सारी दुनिया उस पर न्योछावर कर देते थे. ये है उस की मां, जो उस की जरा सी तकलीफ पर पूरी रात आंखों में बिता दिया करती थीं. उस का भाई राज, जो उस के लिए शहरभर से बैर मोल ले लेता था. और तो और, उस की छुटकी सी बहन शालू भी, जो सदा उस के आगेपीछे दीदीदीदी कहती घूमा करती थी. निधि के मुंह से कोई शब्द नहीं निकल पाया. बस, उस की आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे.

डाक्टर ने इंस्पैक्टर सरोज से कहा, ‘‘अभी पेशेंट काफी सदमे में है, इसे नौर्मल होने दीजिए, फिर आप लोग अपनी पूछताछ कीजिएगा.’’

इंस्पैक्टर सरोज निधि को डाक्टर की निगरानी में छोड़ कर अपनी टीम के साथ लौट गईं. हां, एक महिला कौंस्टेबल को उस की सुरक्षा के लिए तैनात कर दिया गया था. सब के जाने के बाद निधि आंखें बंद कर लेट गई. रातभर भागते रहने के कारण उसे नींद आना स्वाभाविक था, मगर निधि सोना नहीं चाहती थी. वह तो यहां से भाग जाना चाहती थी अपने घर, अपने विनय के पास, उस की सुरक्षित बांहों के घेरे में जहां उसे किसी का डर नहीं, किसी की फिक्र नहीं. निधि के दिमाग में पिछले कई दिनों के घटनाक्रम चलचित्र की तरह घूमने लगे.

करीब 10 वर्षों पहले जब वह इंजीनियरिंग और एमबीए करने के बाद मुंबई में एक मल्टीनैशनल कंपनी में जौब करने लगी थी तभी उस की मुलाकात विनय से हुई थी. मजबूत और स्वस्थ शारीरिक बनावट वाला विनय अपने नाम के अनुरूप मन से बहुत ही विनय था. कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता था कि बाहर से एकदम शांत और सीधा सा दिखने वाला विनय अपने भीतर कवि हृदय भी रखता है. सब के साथ निधि को भी यह बात उस साल कंपनी की न्यू ईयर पार्टी में ही पता चली थी, जब उस ने वहां एक प्रेमगीत गाया था. उस की प्रेम कविताओं की धारा में बहतीबहती निधि कब उस के प्रेमपाश में बंध गई, उसे भान ही नहीं हुआ.

अब तो निधि जब देखो तब किसी न किसी बहाने से उस के आसपास ही बने रहने की कोशिश में लगी रहती थी. उस ने यह बात छुटकी शालू से शेयर की थी. शालू ने ही तो उसे इस रास्ते पर आगे बढ़ने का हौसला दिया था. उस ने कहा था, ‘कोई सामान्य पुरुष होता तो तुम्हारी नजदीकियों का भरपूर फायदा उठाने की कोशिश करता मगर विनय तुम से एक सम्मानजनक दूरी बनाए रखता है और उस की यही खूबी उसे सारी पुरुष जमात से अलग करती है.’

‘छुटकी की बात में दम है,’ सोच कर निधि विनय के और भी करीब होने लगी थी. निधि ने जब कंपनी के रिकौर्ड में विनय का प्रोफाइल देखा तो उसे सुखद महसूस हुआ कि वह न केवल उस की जाति से संबंध रखता है बल्कि वे दोनों तो एक ही प्रदेश से भी हैं. ‘अगर घर वालों को मानने में थोड़ी सी मेहनत की जाए तो हमारी शादी हो सकती है,’ सोच कर निधि खुद ही शरमा गई. वह अपनी सोच को बहुत आगे तक ले जा चुकी थी.

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औनर किलिंग: भाग-3 अनजानी आशंका से क्यों घिरी थी निधि

‘बाथरूम से बाहर आया तो उस का हुलिया देख कर मेरी भी हंसी छूट गई. विनय मेरे नाइट सूट में बहुत ही फनी लग रहा था. अभी हम दोनों चाय पी ही रहे थे कि बाहर बारिश फिर से बहुत तेज हो चली थी. मैं ने झिझकते हुए विनय से घर न जाने की जिद की. विनय को भी शायद यही ठीक लगा और वह मेरे पास ही रुक गया.

‘मेरी रूमपार्टनर आजकल छुट्टी पर अपने घर गईर् हुई थी और मेरा टिफिन भी बारिश के कारण नहीं आया था. खाने की बात आने पर विनय ने मुसकराते हुए रसोई संभाली और बहुत ही टैस्टी मटरपुलाव

बना लिया. बातें करतेकरते हमारा आपसी संकोच काफी हद तक दूर हो चुका था.‘हम देररात तक हंसीमजाक करते हुए एक ही सोफे पर बैठे टीवी देखते रहे. फिर न जाने कब हमें नींद आ गई और जब सुबह मैं उठी तो विनय की बांहों में थी. विनय अभी भी सो ही रहा था. पता नहीं क्या सम्मोहन था उस के मासूम चेहरे में कि मैं अपनेआप को रोक नहीं पाई और मैं ने झुक कर उस के होंठ चूम लिए. नींद में ही विनय ने मुझे बांहों में कस लिया और फिर हम दोनों…अब छोड़ न छुटकी. अब आगे बताते हुए मुझे शर्म आ रही है,’ निधि ने शर्माते हुए कहा तो छुटकी ने जोर से उसे गुदगुदी कर दी और दोनों बहनें खिलखिला उठीं.

दर्द में भी निधि के चेहरे पर एक मुसकान आ गई. मगर अचानक ही आंखों में फिर से डर की परछाइयां तैरने लगीं. उसे याद आ गया 10 दिनों पहले का वह मंजर जब शालू की शादी तय करवाने वाला बिचौलिया पंडित रामशरण शास्त्री शादी में होने वाले लेनदेन के सिलसिले में कुछ बात करने के लिए पापा से मिलने घर आया था. निधि को देख कर बोला, ‘यह आप की बड़ी बिटिया है क्या?’

‘हां जी, यह हमारी बड़ी बेटी निधि है और अपने पति के साथ मुंबई में रहती है. वो रेवाड़ी वाले चौधरीजी हैं न, उन के बेटे से ही शादी हुई है इस की,’ मां ने निधि की तरफ प्यार से देखते हुए शास्त्रीजी से उस का परिचय करवाया.

‘क्या बात करती हो भाभीजी? चौधरीजी और आप के पति दोनों एक ही गोत्र से संबंध रखते हैं. इस नाते तो यह शादी नाजायज हुई. यह तो भाईबहन का आपस में शादी करने जैसा ही पाप हुआ है,’ शास्त्रीजी ने अपने कानों को हाथ लगाते हुए कहा.

‘मगर हमारे परिवारों का आपस में तो कोई संबंध नहीं है,’ निधि के पापा ने अपनी सफाई देते हुए कहा.

‘उस से क्या फर्क पड़ता है? क्या हमारे पुरखों ने शादियों में गोत्र टालने का प्रावधान यों ही मजाक में किया था? नहीं साहब, हम चाहे कितने भी मौडर्न हो जाएं, लेकिन समाज की परिपाटी तो सभी को निभानी पड़ती है,’ शास्त्रीजी अब अपना यहां आने का मकसद भूल चुके थे और इस नई बहस में उलझ गए. पापामम्मी ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की, मगर शास्त्रीजी ने किसी की एक न सुनी और आखिर में वे पापा से भुगतने को तैयार रहने की धमकी देते हुए चले गए.

किसी अनजानी आशंका से निधि का मन कांप गया और जैसा कि उसे डर था, शास्त्रीजी तीसरे ही दिन वापस आए तो उन के तेवर कुछ अलग ही थे. पापा और शास्त्रीजी बैठक में धीरेधीरे बातें कर रहे थे जोकि बीचबीच में तेज भी हो रही थीं. निधि के कान उधर ही लगे थे. उस ने सुना वे कह रहे थे, ‘पंचों की राय है कि निधि बिटिया की शादी को खारिज करार दिया जाए और वह पूरी पंचायत के सामने अपने पति को राखी बांध कर भाई बनाए,’ यह सुनते ही निधि के पैरों तले जमीन खिसक गई. वह सांस रोके आगे का वार्त्तालाप सुनने लगी.

‘मगर यह कैसे संभव है? निधि की शादी को 5 साल हो चुके हैं, ऐसे में वह कैसे यह सब कर सकती है?’ पापा ने विरोध किया था.

‘तो फिर आप शालू की सगाई को टूटा हुआ समझें. आप के होने वाले समधी इस हालात में आप के साथ रिश्ता रखने के इच्छुक नहीं हैं. और सिर्फ वही नहीं, अब तो शालू को कोई भी गैरतमंद आदमी अपने परिवार की बहू नहीं बनाएगा. यह भी पंचायत ने ही तय किया है,’ शास्त्री ने अपना दोटूक फैसला सुनाया.

‘क्या इस के अलावा और कोई रास्ता नहीं है?’ पापा ने हारे खिलाड़ी की तरह हथियार डालते हुए विनती की.

‘है क्यों नहीं, रास्ता है न. मगर निर्णय तो आप को ही लेना पड़ेगा. हां, निधि के रहते शालू की शादी नहीं हो सकती, यह तो तय है. आप को 2 दिनों बाद पंचायत ने तलब किया है, आप वहां आ कर अपना पक्ष रख सकते हैं.’ शास्त्रीजी पापा को पंचायत का फरमान सुना कर कह कर चले गए.

उस दिन घर में मातम सा पसर गया था. खाना बना तो था मगर किसी से भी एक निवाला तक नहीं निगला गया. सब चुपचाप थे. अपनेअपने विचारों में गुम. हर दिमाग में मंथन चल रहा था. न जाने कौन क्या सोच रहा था.

2 दिनों बाद निधि के पापा चौपाल में बुलाई गई विशेष पंचायत में पहुंचे और जब वापस आए तो निधि ने महसूस किया कि पापा और भाई दोनों का मूड उखड़ा हुआ था. मां ने पूछा तो भी वे टाल गए.

रात को अचानक निधि की नींद खुली तो उस ने देखा कि शालू बिस्तर पर नहीं है. ‘शायद बाथरूम में होगी’ सोच कर निधि उस का इंतजार करने लगी. मगर जब वह काफी देर तक नहीं आई तो निधि कमरे से बाहर निकल आई. पापा के बैडरूम की लाइट जलती देख कर वह उधर चल दी. भीतर से बहुत धीमीधीमी आवाजें आ रही थीं. निधि के अलावा पूरा परिवार वहां मौजूद था. सब किसी गहन मंत्रणा में लगे थे. निधि ने कानाफूसी सुनने की कोशिश की, मगर पूरी तरह कामयाब नहीं हो सकी. हां, इतना अंदाजा उसे हो गया था कि यह मीटिंग उसी को ले कर हो रही है.

भाई राज ने कहा, ‘समस्या की जड़ को ही खत्म कर देते हैं. न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी.’ यह सुनते ही निधि कांप उठी.

तभी पापा ने कहा, ‘समाज मेें अपनी इज्जत के लिए मैं ऐसी कई औलादें कुरबान कर सकता हूं.’

‘क्या कोई और रास्ता नहीं है जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे,’ इस बार मां की ममता ने विरोध किया मगर सब ने उसे सिरे से खारिज कर दिया.

निधि समझ गई कि यह मीटिंग उसे रास्ते से हटाने के लिए हो रही है. वह चुपचाप वहां से हट गई और वापस बिस्तर पर आ कर लेट गई. अब उस ने अपनेआप को यहां से सुरक्षित निकलने के बारे में सोचना शुरू किया. ‘विनय तो इतनी जल्दी यहां आ नहीं सकेगा. अपनी फ्रैंड राशि को मैसेज कर देती हूं ताकि वह कल किसी बहाने से आ कर मुझे घर से ले जाए. आगे तो मैं संभाल लूंगी.’ यह सोचते हुए निधि ने अपने मोबाइल की तरफ हाथ बढ़ाया. मोबाइल अपनी जगह पर न पा कर निधि समझ गई कि किसी सोचीसमझी साजिश के तहत उस का संपर्क बाहर की दुनिया से काट दिया गया है.

आगे पढ़ें- यानी कि यहां से निकलना इतना…

औनर किलिंग: भाग 4- अनजानी आशंका से क्यों घिरी थी निधि

यानी कि यहां से निकलना इतना आसान नहीं होगा जितना वह सोच रही है. तो फिर अभी अनजान बने रहने में ही भलाई है. मुझे मौके का इंतजार करना होगा. निधि ने सोचा और चुपचाप लेट गई. नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. तभी शालू भी आ कर बगल में लेट गई.

‘कहां चली गई थी?’ निधि ने उसे टटोला.

‘कहीं नहीं, यों ही नींद नहीं आ रही थी, तो छत पर टहल रही थी,’ शालू साफ झूठ बोल गई.

‘आ चल, मैं सुला दूं,’ कह हर निधि ने उस का सिर सहलाने की कोशिश की मगर शालू ने ‘रहने दो’ कह कर उस का हाथ? परे कर दिया.

निधि सारे घटनाक्रम से अनजान बने रहने का नाटक करती हुई घर की सारी गतिविधियों पर पैनी नजर रखे हुए थी. उस ने अपने मोबाइल के बारे में भी सब से पूछताछ की मगर किसी ने भी कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया. ‘चलो, कोई बात नहीं, खो गया होगा. नया ले आएंगे,’ निधि ने भी बात को हवा में उड़ाने की कोशिश की.

आज निधि को वह मौका मिल ही गया जिस की उसे तलाश थी. वह इसे किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहती थी. मां तो पापा को ले कर अपने मायके गई हुई थीं शादी का निमंत्रण देने और राज गया था शादी के लिए कुछ पैसों का इंतजाम करने पापा के दोस्त के यहां. सभी लोग कल दोपहर तक ही आने वाले थे. घर में वह और शालू ही थे. निधि ने अपने सारे रुपए और गहने पर्स के हवाले किए और पर्स को सिरहाने छिपा कर रख लिया. उस ने अपने स्पोर्ट्स शूज भी सुरक्षित रख लिए.

रात को शालू ने घर के मुख्य दरवाजे पर ताला लगा दिया और चाबी अपनी तकिया के नीचे रख ली. मौका पा कर निधि ने सोई हुई शालू के बालों को सहलाने के बहाने धीरे से वह चाबी निकाल ली और जब शालू गहरी नींद में थी तो चुपके से दरवाजा खोल कर बाहर आ गई. घर से बाहर निकलने से पहले उस ने शालू के कमरे का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया और उस का मोबाइल बरामदे में ला कर रख दिया ताकि न तो निधि खुद दरवाजा खोल कर बाहर आ सके और न किसी से संपर्क साध सके. इतना समय काफी था निधि के पास अपनेआप को बचाने के लिए.

इस तरह निधि खुद को एक बार तो मौत के मुंह से निकाल कर ले आई, मगर जब तक वह वापस मुंबई नहीं पहुंच जाती, तब तक सुरक्षित नहीं थी.

रात लगभग बीत चुकी थी. मगर निधि ने अब तक अपनी पलकें भी नहीं झपकाई थीं. उसे डर था कि कहीं कोई उसे तलाश करता हुआ यहां तक न आ पहुंचे.

‘अब तक तो सभी घर वालों को मेरे भागने के बारे में यकीन हो ही गया होगा. मुझे 1-2 दिन और यहीं पुलिस की सुरक्षा में रहना चाहिए,’ सोचतेसोचते निधि ने एक बार फिर सोने की कोशिश की और इस बार उसे नींद आ ही गई.

सुबह जब उस की आंख खुली तो सूरज सिर पर चढ़ आया था. डाक्टर सुबह के राउंड पर आ गई थीं. निधि को देख कर मुसकराईं और उस की तबीयत के बारे में पूछा. तभी इंस्पैक्टर सरोज भी आ गईं और उन्होंने निधि का हाथ अपने हाथ में ले कर एक बार फिर से सहानुभूति से पूछताछ शुरू की. निधि ने भी अब सहयोग करनेकी सोच ली थी. उस ने पूरी बात इंस्पैक्टर को बता कर अनुरोध किया और कहा, ‘‘मुझे अपने घर वालों से जान का खतरा है. मेरे पति एक सप्ताह बाद इंडिया आएंगे. तब तक मुझे सुरक्षा उपलब्ध करवाएं. मगर मैं किसी के खिलाफ कोई केस दर्ज नहीं करवाना चाहती.’’ इंस्पैक्टर सरोज मानवता के नाते उसे अपने साथ अपने घर ले गईं. निधि ने फोन पर विनय से संपर्क साधा और उसे पूरी घटना की जानकारी दी. सप्ताहभर बाद विनय आ कर निधि को साथ ले गया.

‘‘निधि, तुम इस मुश्किल वक्त में मेरे मम्मीपापा के पास भी तो जा सकती थीं,’’ विनय ने प्यार से कहा.

‘‘जा तो सकती थी, और सब से पहले यही खयाल ही मेरे मन में आया था मगर मुझे समय पर भरोसा नहीं था. कितनी मुश्किल से मैं अपनी जान बचा कर भागी थी, मुझे डर था कि कहीं कुएं से निकल कर खाई में गिरने जैसी बात न हो जाए. कहीं वहां भी ऐसे ही हालात पैदा न हो जाएं. अगर मेरी आशंका सही निकलती तो फिर मैं आज यहां तुम्हारे पास न होती.’’ निधि अब तक भी डर के साए में ही थी.

विनय को भी उस की बात में दम लगा, इसलिए उस ने भी अपने मन का वहम निकाल लेना ही उचित समझा. विनय ने अपने पापा को फोन कर के पूरे घटनाक्रम का ब्योरा दिया और निधि के खिलाफ रची गई औनर किलिंग की साजिश के बारे में भी उन्हें बताया. सुनते ही पापा भड़क उठे, बोले, ‘‘हद हो गई. किस आदम युग में जी रहे हैं लोग आज भी, क्या हो रहा है यह सब…क्या न्यायपुलिस कुछ भी नहीं बचा? लेकिन तुम लोग फिक्र मत करो. मैं निधि के पापा से मिल कर उन्हें समझाने की कोशिश करता हूं. मुझे विश्वास है कि कोई न कोई रास्ता जरूर निकलेगा.’’

और जैसा कि चौधरीजी ने कहा था, वे एक दिन विनय की मां को ले कर निधि के पापा से मिलने उन के घर गए. उन का परिचय जानने के बाद निधि के पापा सकपका गए. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वे उन का सामना कैसे करें. दरअसल, वे लोग अब भी इसी मुगालते में थे कि निधि घर से भाग कर कहीं चली गई है और उस की ससुराल वाले उसे ढूंढ़ते हुए यहां तक आए हैं. लेकिन जब उन्हें पता चला कि निधि सहीसलामत अपने पति के पास पहुंच गई है तो उन्होंने भी राहत की सांस ली.

चौधरीजी के कुछ कहने से पहले ही निधि के पापा ने अपने किए पर शर्मिंदा हो कर उन से माफी मांग ली और अपनी दकियानूसी सोच को त्याग कर निधि और विनय को आदर के साथ घर लाने की बात कही.

‘‘मगर ऐसा करने से अगर शालू का रिश्ता टूट गया तो?’’ चौधरीजी ने एक बार फिर उन का मन टटोलने की कोशिश की.

‘‘टूटता है तो टूट जाए मगर मैं अब एक बेटी का घर बसाने के लिए दूसरी बेटी का बसाबसाया घर नहीं उजाड़ सकता. यह बात मेरी मोटी बुद्धि में बहुत अच्छी तरह से आ गई है,’’ निधि के पापा ने कहा तो चौधरीजी ने उन्हें प्यार से गले लगा लिया. निधि की मां अपने आंसू पोंछते हुए मेहमानों के लिए चायनाश्ते का इंतजाम करने भीतर चली गईं.

लेकिन उस दिन के बाद निधि ने कभी उस घर में पैर न रखने का फैसला कर लिया था. जो मातापिता उसे मार डालने को तैयार हों उन के किसी वादे का वह भरोसा नहीं कर सकती. न जाने कब कौन पंडा या शास्त्री टपक पड़े, न जाने कब कौन सा खाप सरपंच आ धमके.

एक सांकल सौ दरवाजे: भाग 4- सालों बाद क्या अजितेश पत्नी हेमांगी का कर पाया मान

अब तक ममा बाहर आ गई थी. पूरे एक साल बाद हम ममा को देख रहे थे. पीली जयपुरी प्लाजो सूट में भव्य लग रही थी. आंखों में चमक वापस आ गई थी. गालों में लाली थी. रंग भी फिर से निखर गया था. हम दोनों को उस ने गर्मजोशी से गले लगा लिया. आंखों में आंसू भर आए थे.

हम ममा को पा कर आश्वस्त थे, लेकिन क्या पता मैं जाने क्यों कुछ आशंकित सी महसूस कर रही थी. क्या यह ममा का अपना घर है? या ममा का घर बस रहा है और हम घरविहीन हो रहे हैं धीरेधीरे? भाई को मेरी धड़कनें तुरंत महसूस हो जाती हैं. उस ने सशंकित सा मुझे देखा.

ममा ने शुभा से कहा कि हमें वह हमारा कमरा दिखा दे और फ्रैश होने के लिए बाथरूम में हमारे जरूरत का सामान रख दे.

‘ममा,’ मैं ने आवाज लगाई थी. ममा ने कहा- ‘सब बताती हूं, यह जल्दीबाजी की बात नहीं है.’ ममा मन की बात खूब समझती है. वह फिर उसी शीघ्रता में दूसरे किनारे बने एक कमरे में दाखिल हो गई.

शुभा हमारे कमरे से लगे बाथरूम में सबकुछ व्यवस्थित कर रही थी. भाई ने कहा- ‘दीदी, मुझे बहुत अजीब लग रहा है. क्या ममा भी पापा के जैसे…’

मैं ने उसे रोकते हुए कहा- ‘ममा पर हमें विश्वास नहीं खोना चाहिए. वह पापा की तरह नहीं है. उस में सचाई है, हमारे लिए चिंता भी. रुको जरा.’

हमारा यह कमरा दूसरी मंजिल पर है. 2 अगलबगल पलंग पर सफेद फुलकारी वाली चादर के साथ आकर्षक बिस्तर लगे हैं. बगल की अलमारी में कुछ अच्छी चुनिंदा किताबें रखी हैं. पास ही टेबलकुरसी और एक कपड़ों की छोटी अलमारी है.

शुभा जाने को हुई, तो मैं ने उसे रोका.

‘शुभा, क्या तुम बता सकती हो हम यह कहां आए हैं?’

तभी ममा ने शुभा को नीचे से आवाज दी और वह कहने को कुछ होती हुई भी नीचे चली गई.

हम अपने घर में हमेशा त्रिशंकु की तरह रहे. न मान की ऊंचाई मिली, न प्रेम का आधार. बीच में रहे हमेशा असुरक्षित, अशांत, असहाय से.

यह हमारा अपना घर नहीं था. लेकिन शायद ममा का निडरभाव हमें सुरक्षा का आभास दे रहा था.

2 घंटे बाद यानी करीब रात के 8 बजे वह हमारे कमरे में आई. उस ने हमें पुचकारा. मगर हम दोनों भाईबहन अब संतोष मनाने की हिम्मत खो चुके थे. हमारे मन में उलझनों की घटाएं घनी हो आई थीं.

मैं ने तुरंत कहा- ‘ममा, क्या यह घर तुम्हारा है?’

‘चलो आओ मेरे साथ. तुम्हारे सारे सवाल के उत्तर वहीं मिल जाएंगे.’

हम निचली मंजिल के उसी किनारे वाले कमरे में दाखिल हुए जहां ममा को शाम को हम ने जाते देखा था.

सुंदर नक्काशीदार पौलिश किए हुए दरवाजे से अंदर जाते ही एक गरिमापूर्ण, सुसज्जित कमरा हमारे सामने था. कमरे के बीचोंबीच सागवान लकड़ी की चारों ओर से स्टैंड लगी पलंग लगी थी.

इस पलंग पर 45 के आसपास के एक शांतचित्त पुरुष लेटे थे जिन के एक पैर पर प्लास्टर चढ़ा था और यह पैर पलंग से जुड़े एक स्टैंड से बंधा था.

ममा ने पुकारा उन्हें, ‘पल्लव, मेरे दोनों बच्चे आए हैं.’

मैं अजीब सा महसूस करने लगी. ममा को हमें बताना चाहिए था कि हम कहां लाए गए हैं.

पल्लव जी तो ममा के दोस्त हैं, क्या यह इन्हीं का घर है? इन्हें चोट कैसे आई?

ढेरों सवाल मुझे तंग करने लगे थे.

पल्लव जी ने हमारी ओर देखा. क्या जादू सा था उन की आंखों में. गेहुंए वर्ण में आकर्षक चेहरा और ऊंचाई भी तकरीबन 6 फुट के आसपास होगी. हम ने कभी ऐसा शांत चेहरा देखा नहीं था.

पल्लव जी यथासंभव हमारी ओर मुड़े, हम दोनों के हाथ पकड़े, कहा- ‘तुम दोनों को कब से देखना चाहता था. हेमा इन्हें यहां आराम से रहने को कहो. जब मैं ठीक हो जाऊंगा, इन्हें भोपाल में ही अच्छे स्कूलकालेज में भरती करवा दूंगा, तब तक इन के रिज़ल्ट आ जाएं.’

ममा ने पल्लव जी से पूछा- ‘अभी और किसी चीज की जरूरत तो नहीं. शुभा को यहीं आसपास रुकने को कहती हूं. मैं जरा बच्चों के साथ हूं. कुछ जरूरत हो, तो फोन से बुला लेना.’

‘हांहां, ज़रूर. अभी तुम इन के साथ रहो.’

हम ऊपर अपने कमरे में चले आए थे. रहस्य की जाने कितनी परतें अभी उघड़नी बाकी थीं. मैं और भाई बेसब्र हुए जा रहे थे.

‘शुभा कौन है ममा?’ मैं ने पूछ लिया.

‘इन के कालेज के चपरासी की बेटी है. चपरासी का 5 वर्षों पहले निधन हो गया, तो उस की बीवी और बच्ची मुश्किल में आ गई थीं. पल्लव जी ने पड़ोस में मांबेटी को छोटा सा घर खरीद कर दे दिया. इस की मां इस घर में साफसफाई का काम कर लेती है और पल्लव जी इस के लिए उसे ठीकठाक तनख्वाह देते हैं. शुभा 11वीं में है. उस की पढ़ाई का भी पल्लव जी इंतजाम देखते हैं.’

‘इन्हीं पल्लव जी के कालेज में तुम लैक्चरर हो न?’

‘सही पहचाना. मेरे पुराने दोस्त हैं और अब ये हमारे कालेज के प्रिंसिपल हैं. इन्हीं का कालेज है.’

अब तक हम अपने कमरे के पलंग पर पसर कर बैठ चुके थे. ममा भाई के सिर को अपनी गोद में रख कर आराम से हमारे पास बैठ गई थी.

‘ममा, हम जानना चाहते हैं कि तुम यहां क्यों हो? तुम तो होस्टल में रहती थीं? तुम ने कहा था, तुम ने किराए का एक मकान देख रखा है और हमारे आते ही हम सब वहां रहने लगेंगे?’

‘यही तय था. लेकिन 2 दिनों पहले पल्लव जी का ऐक्सिडैंट में पैर टूट जाने के बाद डाक्टर के कहने पर मुझे आज यहां आ जाना पड़ा है. और चूंकि इन का अपना कोई जिम्मेदारी लेने वाला है नहीं, मुझे ही देखभाल के लिए रुकना होगा. पल्लव जी दिल के बड़े प्यारे और सच्चे इंसान हैं. सुना न, तुम्हारे लिए उन्होंने क्या कहा? तुम लोग यहां कुछ दिन शांति से रहो, एकाध महीने में पल्लव जी ठीक होने लगें तो हम किसी अच्छे मकान में चले जाएंगे और तुम दोनों को यहीं अच्छे स्कूल और कालेज में भरति कर देंगे.’

‘ममा, पल्लव जी के बारे में कुछ और बात कहो न, जो अब तक तुम ने नहीं कहा?’

‘पल्लव जी कालेज में 2 वर्ष मुझ से सीनियर थे. इन का भी विषय इकोनौमिक्स था. मेरे कई दोस्त पढ़ाई में इन से मदद लेते, तो मैं भी इन से मदद लेने लगी थी. बाद में इन्होंने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से डाक्ट्रेट किया था.

Serial Story: स्वामी जी का आशीर्वाद

Serial Story: स्वामी जी का आशीर्वाद- भाग 3

अलका घर लौट आई मगर यह बात उस के दिलोदिमाग में घूमती रही. घर में खुशियां मनाई जा रही थीं पर वह गहरे सदमे में थी. उसे समझ नहीं आ रहा था कि अपना यह दर्द घरवालों से साझा करे या नहीं. किसी और ने तो गौर नहीं किया मगर समीर अपनी पत्नी के चेहरे पर खुशी की चमक न देख कर हैरान था.

रात में जब घर में सब सो गए तो समीर ने प्यार से बीवी का माथा सहलाते हुए पूछा,” क्या बात है अलका तुम्हारे चेहरे पर वह खुशी नहीं जो इस वक्त होनी चाहिए. वैसे भी काफी दिनों से तुम मुझे परेशान सी दिख रही हो. मुझे ऐसा क्यों लग रहा है जैसे तुम ने मुझ से कोई बात छिपा रखी है और उसी को ले कर परेशान रहती हो. ”

अलका की आंखें भर आईं. उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह बात अपने पति से शेयर करे या नहीं. आखिर वह भी तो एक पुरुष ही है और पुरुष सब कुछ स्वीकार कर सकते हैं मगर अपनी स्त्री का चरित्र हनन नहीं. पुरुष एक ऐसी स्त्री को स्वीकार नहीं कर सकता जो अपनी इज्जत गंवा चुकी हो.

वह पति की तरफ देखती हुई रो पड़ी तो पति ने उसे उठा कर सीने से लगा लिया और आंसू पोंछते हुए अपना सवाल दोहराया,” अलका तुम किस बात पर इतनी परेशान हो मुझे बताओ प्लीज . जो भी बात तुम्हारे दिल को तकलीफ पहुंचा रही है मुझ से कहो. हम जीवन साथी हैं और हमें एकदूसरे से कोई राज नहीं रखना.”

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अब अलका खुद को संभाल नहीं सकी और फूटफूट कर रोती हुई बोली,” उस नापाक स्वामी ने मुझे अपवित्र कर दिया है समीर. उस ने तुम्हारी अलका की इज्जत लूटी. मेरे गर्भ में जिस बच्चे के आने की खुशियां मनाई जा रही हैं न दरअसल यह उस पापी की नीच करतूत का ही नतीजा है. फिर बताओ मैं खुश कैसे हो सकती हूं?”

“मगर अलका यह सब कब हुआ और तुम ने मुझे पहले बताया क्यों नहीं?”

” कैसे बताती समीर, तुम्हें अपने मुंह से कैसे बताती कि जिस अलका को तुम इतना प्यार करते हो उसे किसी दरिंदे ने अपनी हवस का निशाना बना लिया. केवल एक बार नहीं कई बार. हां समीर मेरे अंदर यह सच बताने की हिम्मत नहीं थी. इसी का फायदा उठा कर हर सोमवार को वह मेरे साथ दरिंदगी करता रहा. पर अब सब कुछ बताने के बाद मुझ में हिम्मत नहीं कि मैं तुम्हारा सामना कर सकूं. समीर अब मुझे नहीं जीना. मर जाऊंगी मैं,” कह कर उस ने टेबल पर रखा चाकू उठा लिया.

समीर चीखा,”होश में आओ अलका, क्या करने जा रही हो तुम? अपनी जान लोगी? पागल हो? तुम ने सोचा है तुम्हारे बाद तुम्हारे बच्चों का क्या होगा ?मेरा क्या होगा? खबरदार जो ऐसी बात भी की,” समीर ने चाकू छीन कर दूर फेंक दिया.

तब तड़पती हुई अलका अपने पेट में घूंसे मारने लगी,” तो ठीक है समीर मुझे नहीं मरने दोगे तो मैं इस बच्चे को मार डालूंगी. मैं इसे अपने गर्भ में नहीं रख सकती. मुझे पाप की यह निशानी अपने पास नहीं चाहिए वरना मैं हर पल घुटती रहूंगी.”

“नहीं अलका तुम ऐसा कुछ नहीं करोगी. होश में आओ अलका प्लीज शांत हो जाओ, ” समीर उसे शांत कराने की पूरी कोशिश कर रहा था.

“नहीं समीर में इस बच्चे को जन्म नहीं दे सकती,” अलका कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी.

“पर अलका इन सब में इस अजन्मे बच्चे का क्या दोष? तुम किसी की हत्या कैसे कर सकती हो? प्लीज अलका देखो मैं इसे अपना नाम दूंगा. इसे संतान मान लूंगा पर इस तरह तुम अपना आपा मत खोओ. याद करो पिछली दफा भी डॉक्टर ने कहा था कि गर्भपात कराना तुम्हारे लिए घातक हो सकता है. मैं तुम्हें इस की अनुमति कभी नहीं दूंगा. ”

” नहीं समीर मैं यह ढेर सारी नींद की गोलियां खा कर बच्चे को खत्म कर दूंगी,” कह कर अलका ने नींद की गोलियों वाली डब्बी उठा ली.

अमीर ने उसे समझाया,” इस तरह बच्चा टेढ़ा या कुबरा पैदा होगा. उस की जिंदगी खराब कर के तुम्हें क्या मिलेगा? अलका जो आने वाला है उसे आने दो. जो हो चुका है उस पर तुम्हारा वश नहीं था. अब जो होने वाला है उस के लिए अपना जी मत जलाओ. शांत रहो. यह राज केवल मुझ तक रहेगा. तुम परेशान मत होओ.”

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काफी समझाने पर अलका शांत हो गई और सोने चली गई. मगर उस के मन के अंदर का तूफान अभी भी थमा नहीं था. उस की बेचैनी दूर नहीं हुई थी. वह जानबूझ कर वैसे काम करती जिन्हें गर्भावस्था में करने से मना किया जाता है. भारी वजन उठाना, सीढ़ियां चढ़ना, झटके से उठना आदि ताकि वह इस गर्भ से छुटकारा पा सके. पर समीर हमेशा उसे यह सब करने से रोकता. उसे दिलासा देता. साथ देने का वादा करता.

समय इसी तरह गुजरता रहा. बहुत बेमन से अलका ने गर्भावस्था के ये दिन काटे. समय आने पर उस ने एक बेटे को जन्म दिया. देखा जाए तो यह दिन अलका के लिए सब से खुशनुमा दिन हो सकता था क्योंकि वह पुत्रप्राप्ति के लिए ही स्वामी के यहां चक्कर लगाती थी. पर आज पुत्रप्राप्ति का यह दिन ही उस के लिए घोर संताप वाला दिन बन गया था.

उस ने अब तक अपने बेटे का चेहरा नहीं देखा था और न ही देखना चाहती थी.

पति उस के करीब आ कर प्यार से समझाने लगा,” अलका जो हुआ वह सब भूल जाओ और पूरे दिल से अपने बेटे को अपनाओ. सब जानते हुए भी मैं ने उसे अपना बेटा मान लिया है न फिर तुम ऐसा क्यों नहीं कर सकती? देखो जरा मां के चेहरे पर कितनी खुशी है. उस खुशी को बरकरार रहने दो. जो हुआ उस में इस नन्ही सी जान का कोई दोष नहीं. अलका प्लीज इसे प्यार से अपना लो.”

अलका की आंखों के आगे उस की दोनों बेटियां अपने नएनवेले भाई का स्वागत कर रही थीं. उन की खुशी देखते ही बनती थी. सास भी बच्चे की बलैयां लेती नहीं थक रही थीं. पर अलका के दिल में अजीब सी नफरत थी. पति के समझाने पर उसने खुद से कहा कि वास्तव में बच्चा तो निर्दोष है. फिर बच्चे से कैसी नफरत. उस ने मन ही मन तय किया कि उसे भी अब बच्चे को अपना लेना चाहिए.

अभी वह ऐसा सोच ही रही थी कि सास बच्चे को गोद में उठाए उस के करीब आईं और चेहरा दिखाती हुई बोलीं,” देख तो बहू कितनी प्यारी सूरत है. बिल्कुल अपने बाप पर गया है.”

अलका ने बच्चे की तरफ देखा और सहसा ही उसे बच्चे में स्वामी की शक्ल नजर आने लगी. वह चीख पड़ी और चीखें मारती हुई रोने भी लगी. तुरंत नर्स और डॉक्टर पास आ गए और बच्चे को दूर कर दिया गया. उसे बेहोशी का इंजेक्शन दे कर सुला दिया गया. सास समझ नहीं पा रही थी कि बहू को अचानक क्या हो गया. इधर समीर सब समझ रहा था पर मां को कुछ भी बताने की हिम्मत नहीं थी.

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2 दिन बाद अलका बच्चे के साथ घर आ गई. पूरे धूमधाम के साथ बच्चे का ग्रहप्रवेश हुआ. सास पोते को पा कर फूली नहीं समा रही थी. अलका की दोनों बेटियां भी पूरे दिन भाई के साथ मगन रहतीं पर अलका के चेहरे पर अब न हंसी नजर आती और न आंसू. वह एकदम खामोश हो गई थी. बच्चे को देखते ही उसे स्वामी की शक्ल नजर आती और वह फिर से बच्चे से बहुत दूर चली जाती.रात में नींद से जाग जाती और चिल्लाती, छोड़ दे स्वामी मुझे छोड़ दे. कहते हुए वह रोने लगती और उस की नींद खुल जाती. पति का प्यार भी उसे सामान्य नहीं कर पा रहा था. एक खुशहाल जिंदगी जी रही अलका अब एक मानसिक रोगी बन चुकी थी.

Serial Story: स्वामी जी का आशीर्वाद- भाग 1

अलका ने सुबहसुबह नाश्ता तैयार किया और जल्दीजल्दी तैयार होने लगी. समीर ने टोका,” क्या बात है आज कहीं जाना है क्या?”

“हां, स्वामी जी के पास जाना है. आप भूल गए क्या? आज उन्होंने मुझे बुलाया था न, पुत्रप्राप्ति के लिए किसी अनुष्ठान की शुरुआत करनी थी.”

“हां याद आया. पिछले महीने जब हम दोनों गए थे तभी तो उन्होंने बताया था कि फरवरी महीने की चतुर्दशी को एक अनुष्ठान की शुरुआत करनी है. चलो ठीक है. तुम आज जा कर उन से मिलो. ऑफिस से जल्दी छुट्टी ले कर शाम तक मैं भी आ जाऊँगा,” समीर ने कहा.

“हां जी ठीक है. फिर आप मुझे लेने आ जाना. मैं ने आटा जमा दिया है. सब्जी भी बन गई है. बस मांजी फुलके बना लेंगी. नन्ही और छोटी तो अभी सो रही हैं, ” अलका ने सास की तरफ देखते हुए कहा.

“कोई नहीं बहू तू निश्चिंत हो कर जा. मैं दोनों बच्चियों को संभाल लूंगी. बस स्वामी जी तेरी मनोकामना पूरी कर दें और कुछ नहीं चाहिए,” पास में बैठी सासू मां ने उसे आश्वस्त किया.

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अलका ने आज नीले रंग की साड़ी पहनी थी. स्वामी जी ने कहा था कि उसे मंगल, शुक्र और शनिवार को नीला रंग ही पहनना चाहिए. अलका निकलने लगी कि तभी छोटी जाग गई और रोने लगी. अलका ने उसे किसी तरह चुप कराया. मुंह में दूध की बोतल दे कर मांजी के पास बिठा दिया. वैसे तो छोटी 3 साल की हो चुकी थी पर सो कर उठते ही सब से पहले उसे दूध की बोतल चाहिए होती थी. नन्ही भी सातवें साल में लग चुकी थी. क्लास 2 में पढ़ने भी जाती थी.

देखा जाए तो अलका के जीवन में कोई कमी नहीं थी. पति समीर अच्छा कमाता था. घर में सारी सुखसुविधाएं थीं. दो बेटियां थीं और सासससुर भी बच्चियों को संभालने में उस का पूरा सहयोग देते थे. भरापूरा परिवार था. इतना सब होने के बावजूद अलका को एक कमी सालती रहती थी और वह थी बेटे की कमी. सास भी एक पोते की ख्वाहिश रखती थी. अलका स्वामी जी के आश्रम इसी चक्कर में जाने लगी थी. उस की किसी परिचिता ने ही उसे स्वामी जी के बारे में बताया था और कहा था कि उन का आशीर्वाद मिल जाए तो सब कुछ संभव हो जाता है.

स्वामी जी की उम्र करीब 50 साल की थी. चेहरे पर दाढ़ीमूछें और बदन पर गेरुए वस्त्र. शहर से 15 किलोमीटर दूर एक सुनसान से इलाके में स्वामी जी का बड़ा सा आश्रम था. यहां सुखसुविधा की हर चीज मौजूद थी. आश्रम में कई कमरे थे. एक बड़े से हॉल में वह भक्तों को उपदेश देते थे. दूसरे कमरे में उन के ध्यान लगाने की व्यवस्था थी. तीसरा कमरा थोड़ा अंदर की तरफ था. वहां स्वामी जी अपने खास भक्तों को ही बुलाते थे और थोड़ा वक्त उन के साथ अकेले बिताते थे. उन्हें ज्ञान देते थे. एक कमरे में स्वामी जी के सारे गैजेट्स रखे हुए थे जहां किसी को भी प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी.

अलका स्वामी जी के खास भक्तों में शुमार हो चुकी थी मगर अब तक उसे अंदर नहीं बुलाया गया था. वह हॉल में बैठ कर ही स्वामी जी के प्रवचन सुना करती. आज जब वह आश्रम पहुंची तो स्वामी जी ने अपने उसी कमरे में आने को कहा जहां खास भक्त ही आ सकते थे. अलका खुशी से फूली नहीं समाई और जल्दी से अंदर पहुंची.

स्वामी ने कमरा अंदर से बंद कर लिया. इस वक्त स्वामी के शरीर पर सिवा एक धोती के और कोई कपड़ा नहीं था. अलका को कुछ अजीब लगा मगर स्वामी के प्रति उस के मन में गहरी श्रद्धा थी. वह हाथ जोड़ कर नीचे बैठने लगी तो स्वामी ने उसे बाजुओं से पकड़ कर बैड के पास रखी कुर्सी पर बिठा लिया.

फिर उसे आंखें बंद कर ध्यान लगाने को कहा और बोला, “पुत्री आज मैं तुझे एक मंत्र बताऊंगा. तुझे उस मंत्र को 108 बार जपना है. इस बीच मैं तेरे साथ योगक्रिया करुंगा पर तुझे खामोश रह कर मंत्रजाप करते रहना होगा. कुछ भी बोलना नहीं है. ”

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अलका ने आंखें बंद कर लीं और स्वामी के बताए मंत्र का जाप करने लगी. तभी उसे महसूस हुआ जैसे कोई उस के होठों पर कुछ चिपका रहा है. उस ने जल्दी से आंखें खोली तो स्वामी को अपने बहुत करीब पाया. स्वामी की लाललाल आंखों में वासना की लपटें साफ़ दिख रही थीं. स्वामी ने अलका के मुंह पर टेप चिपका दिया था ताकि वह चिल्ला न सके.

अब स्वामी एकएक कर उस के कपड़े उतारने लगा. अलका चिल्लाने की और खुद को उस जानवर के पंजे से छुड़ाने की नाकाम कोशिश करती रही. पर कुछ कर न सकी. स्वामी ने उस की इज्जत तारतार कर दी. वह देर तक उसे लूटताखसोटता रहा.

अंत में अपनी भूख मिटा कर वह उस की आंखों में देखता हुआ बोला, ” पुत्री घबरा मत मेरे आशीर्वाद से अब तुझे पुत्ररत्न की प्राप्ति होगी. तू आज की बात घर में किसी से मत कहना वरना कार्य की सफलता बाधित होगी और तेरी बदनामी भी हो जाएगी. अगर तूने मुंह खोला तो याद रख तेरे साथ बहुत बुरा होगा. तेरी बच्चियां खतरे में आ जाएंगी ”

अलका को समझ नहीं आ रहा था कि वह अब क्या करे, किसे दोष दे और किस से क्या कहे? वह उसी अस्तव्यस्त हालत में बाहर निकलने लगी तो स्वामी ने उसे रोका,” पुत्री बाथरूम में जा कर चेहरा धो, बाल और कपड़े संवार और फिर बाहर निकल वरना लोग क्या सोचेंगे? तेरी मनोकामना पूरी करने के लिए मुझे तेरे करीब आना पड़ा. अब तू पुत्रवती बनेगी. तेरी हर तकलीफ दूर हो जाएगी.”

अलका दर्द से व्यथित थी. मन में स्वामी के लिए घृणा के भाव उबल रहे थे. दिमाग में हजारों सवाल घूम रहे थे, जैसे यदि वह घरवालों को अपने साथ हुई इस घटना की जानकारी देगी तो क्या वे उसे पहले की तरह ट्रीट करेंगे? क्या वे उस औरत को अपने घर की लाडली बहू बना कर रखेंगे जिस की इज्जत लुट चुकी हो? उस का मन बेचैन हो रहा था. वह सोचने लगी कि यह सच्चाई बता कर क्या वह अपने पति की नजरों में गिर नहीं जाएगी? क्या पति उस की बात पर विश्वास करेगा?

हैरानपरेशान सी अलका चेहरा धो कर बाहर निकली तो देखा स्वामी उस के पति से बात कर रहा है. अलका अंदर ही अंदर बुरी तरह डर गई. स्वामी ने उस की तरफ देखते हुए उस के पति समीर से कहा,” ले जा अपनी पत्नी को. मैं ने उसे अपना आशीर्वाद दे दिया है. अनुष्ठान की शुरुआत भी कर दी है और हां अलका पुत्री, मैं ने तेरे पति को बता दिया है कि तुझे हर सोमवार यहां आना होगा ताकि अनुष्ठान पूर्ण हो सके,” स्वामी ने धूर्तता से कहा तो अलका अंदर से घबरा उठी.

आगे पढ़ें- अलका के दिमाग में तूफान उठते रहे…

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Serial Story: स्वामी जी का आशीर्वाद- भाग 2

समीर ने स्वामी के पैर छू कर विदा लिया और अलका को ले कर घर की तरफ चल पड़ा. अलका समझ रही थी कि घरवालों के मन में स्वामी के प्रति कैसी अंधभक्ति जमी है. वह चाह कर भी पति के आगे स्वामी की हकीकत जाहिर नहीं कर सकी. उल्टा समीर सारे रास्ते स्वामी की तारीफों के पुल बांधता आया. अलका के दिमाग में तूफान उठते रहे.

उस दिन रात में वह ठीक से सो भी नहीं सकी. बारबार उठ कर बैठ जाती. जैसे ही नींद पड़ती कि स्वामी का चेहरा आंखों के आगे घूमने लगता और वह नींद में ही चीख पड़ती. सांसे तेज चलने लगतीं.

धीरेधीरे दिन बीतने लगे. फिर से सोमवार आने वाला था और अलका यह सोचसोच कर बेचैन थी कि वह अब क्या करेगी. उस ने अपने दिल का दर्द किसी से भी बयां नहीं किया था. उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि अब उसे क्या करना चाहिए.

रविवार की रात पति ने याद दिलाया,” कल हमें स्वामी जी के पास जाना है. मैं ने ऑफिस से छुट्टी ले ली है. तुम सुबह तैयार रहना.”

“मगर मैं अब वहां जाना नहीं चाहती प्लीज.”

“मगर क्यों ? कोई बात हुई है क्या? बताओ अलका, ” समीर ने पूछा.

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अलका समझ नहीं पा रही थी कि पति को कैसे बताए? कहीं उसे ही गलत न समझ लिया जाए. इसलिए उस ने बहाना बनाया ,”बच्चों को छोड़ कर जाना पड़ता है न इसलिए.”

“अरे नहीं अलका तुम बच्चों की फ़िक्र मत करो. उन्हें मां संभाल लेंगी. स्वामी जी ने बताया है कि अनुष्ठान अधूरा रह गया तो पूरे परिवार पर विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ेगा. बच्चों की जान पर बन आएगी. वैसे भी एक बार अनुष्ठान पूरा हो जाए तो स्वामी जी के आशीर्वाद से तुम पुत्रवती बन जाओगी. तुम ही चाहती थी न,” समीर ने समझा कर कहा.

मन मसोस कर अलका को फिर से स्वामी के पास जाना पड़ा. समीर अलका को ले कर भक्तों की कतार में किनारे की तरह बैठ गया. स्वामी ने जैसे ही अलका को देखा तो उस की आंखों में चमक आ गई. इधर अलका का दिल धड़क रहा था. स्वामी ने थोड़ी देर उपदेश देने का ढोंग किया और फिर उठ गया.

इधर समीर के पास किसी क्लाइंट का फोन आ गया. उस ने उठते हुए अलका से कहा,” मुझे जरूरी काम से किसी क्लाइंट से मिलने जाना होगा. बस 1-2 घंटे में आ जाऊंगा,” कह कर वह चला गया.

अलका बुत बन कर बैठी रही. कुछ ही देर में स्वामी ने उसे अंदर आने को सूचना भिजवाई. अलका का दिल कर रहा था कि वह भाग जाए पर पति को क्या जवाब देगी. यही सोच कर उस से उठा भी नहीं गया. स्वामी ने उसे फिर से बुलवाया. एक बार फिर से अलका के शरीर को रौंदा.

काम पूरा होने के बाद स्वामी ने फिर धूर्तता से कहा,” जा पुत्री हाथमुंह धो कर आ. अब तुझे अगले सोमवार आना होगा.”

अलका का दिल कर रहा था कि पास पड़ी कुर्सी उठा कर स्वामी के सिर पर दे मारे मगर वह ऐसा नहीं कर सकती थी. अपने साथसाथ अपने परिवार की इज्जत मिट्टी में नहीं मिला सकती थी.

कई बार यही सब फिर से दोहराया गया. घर वाले खुश थे कि अनुष्ठान पूरा होने पर उस के गर्भ में पुत्र धन आएगा. जब कि अलका अंदर ही अंदर घुट रही थी. फिर धीरेधीरे अलका को अपने शरीर के अंदर बदलाव नजर आने लगे.

उस दिन सुबहसुबह बाथरूम में उसे उल्टियां हुईं. पीरियड्स पहले ही बंद हो चुके थे. अलका समझ गई थी कि वह गर्भवती है पर इस बार गर्भवती होने के अहसास उसे कोई खुशी नहीं दी. उल्टा वह चिल्लाचिल्ला कर रोने लगी. उसे लग रहा था जैसे उस कुटिल स्वामी की दो लाल आंखें अभी भी उस का पीछा कर रही हैं. उस के गर्भ को भींच कर ठहाके मार रही हैं. वह तड़प उठी और वहीं पर बेहोश हो कर गिर पड़ी.

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बाद में घर वालों ने डॉक्टर को बुलाया तो सब को पता चल गया कि वह गर्भवती है. सभी के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई मगर अलका का चेहरा पीला पड़ा हुआ था. वह समझ नहीं पा रही थी कि आज प्रेगनेंसी की खुशी मनाए या फिर स्वामी द्वारा दिए गए धोखे का गम.

पति प्यार से उस की तरफ देख रहा था. सास बलैयां ले रही थी मगर वह उदास अपने आंसू छिपाने की नाकाम कोशिश कर रही थी. 2 दिन बाद सोमवार था. पति उसे फिर से स्वामी के पास ले कर गया. उस के पैर छू कर आशीर्वाद लिया और बोला,” स्वामी जी आप के आशीर्वाद से अलका मां बनने वाली है.”

अलका ने स्वामी की तरफ देखा. स्वामी ने धूर्तता से हंसते हुए कहा,” पुत्रवती भव. आज अनुष्ठान का अंतिम दिन है पुत्री. आओ मेरे साथ.”

कमरे में पहुंचते ही अलका ने चिल्ला कर स्वामी से कहा,” तेरा बच्चा मेरे पेट में है धूर्त, अब क्या करोगे ? अपने बच्चे को अपना नाम नहीं दोगे? ”

” पागल है क्या तू ? तेरे बच्चे को अपना नाम दूंगा तो मुझ पर भरोसा कौन करेगा? लाखों लोगों की भीड़ नहीं देखी जो मेरे मेरे ऊपर विश्वास रख कर इतनी दूर मेरे दर पर आते हैं, गुहार लगाते हैं. ”

“हां पाखंडी तेरी धूर्तता सब के आगे नहीं आती न. तभी तू स्वामी का मुखौटा लगा कर रोज नईनई औरतों को अपनी हवस का शिकार बनाता है. मेरे जैसी मजबूर औरतें चुपचाप तेरी ज्यादतियां सहती रहती हैं तभी तेरी हिम्मत इतनी बढ़ी हुई है.”

“जुबान संभाल कर बात कर. तू कर भी क्या सकती है? पति को बताएगी तो बता दे. देखूं किस की इज्जत पर आंच आती है ? यहां भक्तों की भीड़ देखी ही है, सब तुझे पागल समझ कर पत्थरों से मारेंगे. समझदारी इसी में है कि अब अपने इस बच्चे और पति के साथ सुख से जी. मेरे यहां आने की जरूरत नहीं है.”

” मैं यह सच अपने पति को जरूर बताऊंगी. सब बता दूंगी उन्हें .. “रोते हुए अलका ने कहा.

स्वामी हंसा, ” बता रहा हूं तुझे, ऐसी भूल मत करना. तेरी जिंदगी और परिवार की इज़्ज़त दोनों बर्बाद हो जाएंगे. चल अब उठ, जा यहां से. चली जा और याद रखना मुंह खोला तो तेरी ही जिंदगी तबाह होगी. मुझ पर आंच भी नहीं आएगी.”

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लेन नं 5: क्या कोई कर पाया समस्या का समाधान

लेखिका – सुधा थपलियाल 

पानी बरसने के कारण पूरी गली पानी से भरी हुई थी. गली में कहींकहीं ईंटें पड़ी हुई थीं. निर्मलजी एक हाथ में सब्जी का थैला पकड़े व दूसरे में छाता संभाले उन्हीं पर चलने की कोशिश कर रहे थे कि अचानक तेजी से आती मोटरसाइकिल पर सवार 2 लड़कों ने उन के सारे प्रयास पर पानी फेर दिया.

निर्मलजी चिल्लाए, ‘‘दिखाई नहीं देता क्या?’’

लड़के अभद्रता से हंसते हुए निकल गए.

‘‘मैं अभी गली के सभी लोगों से मिलता हूं, सारे के सारे सोए हुए हैं,’’ निर्मलजी गुस्से से बुदबुदाए.

लेन नं. 5 में संभ्रांत लोगों का निवास था. वे न केवल उच्च शिक्षित थे वरन उच्च पदों पर भी आसीन थे. कुछ तो विदेशों में भी सर्विस कर चुके थे. पिछले वर्ष सीवर लाइन डालने के लिए गली खोदी गई थी. सीवर लाइन पड़े भी अरसा हो गया था, मगर गली अब भी ऊबड़खाबड़ पड़ी थी. जगहजगह ईंटों व मिट्टी के ढेर लगे थे. पानी का सही निकास न होने के कारण बरसात के दिनों में गली पानी से लगभग भर जाती थी, जिस कारण चलना मुश्किल हो जाता था.

‘‘आइएआइए निर्मलजी,’’ घंटी बजने पर उन्हें दरवाजे पर खड़ा देख सुभाषजी बोले.

‘‘अरे सुनती हो, 1 कप चाय भेजना, निर्मलजी आए हैं,’’ सुभाषजी पत्नी अनीता को आवाज दे कर निर्मलजी की ओर उन्मुख हो कर बोले, ‘‘कहिए, आज कैसे आने का कष्ट किया?’’

‘‘आप तो गली का हाल देख ही रहे हैं,’’ सुबह हुए हादसे का असर अभी भी दिमाग पर छाया हुआ था. अत: जबान पर उस की कड़वाहट आ ही गई.

‘‘मैं भी परेशान हूं. 1 साल से गली का यह हाल है. पहले खुदी तब परेशान हुए, अब बन नहीं रही है,’’ सुभाषजी भी अपनी भड़ास निकालते हुए बोले.

‘‘ऐसा है, सभी लेन के लोगों को बुला कर मीटिंग करते हैं, नगर निगम के औफिस जा कर शिकायत दर्ज कराते हैं, तभी कुछ होगा.’’

‘‘आप बिलकुल सही कह रहे हैं,’’ निर्मलजी की बात का समर्थन करते हुए सुभाषजी बोले.

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‘‘क्या कह रहे थे निर्मलजी?’’ उन के जाने के बाद सुभाषजी की पत्नी अनीता ने पूछा.

‘‘वही गली के बारे में कह रहे थे,’’ अखबार में नजर गड़ाए सुभाषजी बोले.

‘‘आप उन से कहते कि पहले अपने नौकर को तो समझाएं, जो रोज कूड़ा हमारे घर के सामने फेंक जाता है,’’ अनीताजी ने भी अपनी भड़ास निकालते हुए कहा.

‘‘तुम फिर शुरू हो गईं,’’ झुंझला कर अखबार एक तरफ फेंक कर सुभाषजी बोले.

‘‘क्या बात है, कर्नल विक्रमजी नहीं दिखाई दे रहे हैं,’’ शाम को मीटिंग के लिए एकत्र होने पर उन्हें उपस्थित न देख कर निर्मलजी व्यंग्य से बोले.

‘‘कहीं उठा रहे होंगे रास्ते से कूड़ा,’’ सुभाषजी ने कहा तो सभी ठहाका लगा कर हंस पड़े.

‘‘अरे भई, उन से कहो यह कैंट नहीं है, जहां सिर्फ आर्मी के लोग रहते हैं. यहां सभी का आनाजाना लगा रहता है. कितनी भी कोशिश कर लो, यह लेन ऐसी ही गंदी रहेगी.’’

मीटिंग शुरू हुई. सभी लोग न केवल गली के हाल से परेशान थे वरन एकदूसरे के व्यवहार से भी क्षुब्ध थे. कोई किसी के पानी के अपने गेट के पास इकट्ठा होने से परेशान था, कोई गली गंदी करने के कारण से, कोई किसी के आचरण से, कोई बच्चों की गेंद बारबार घर आने से, तो कोई अपने गेट के पास किसी की गाड़ी की पार्किंग से.

‘‘मैं तो रोज एक शिकायती पत्र ईमेल करता हूं, मेयर साहब को,’’ विदेश में 10 वर्ष रह चुके दिनेशजी बोले.

उन पर विदेशी अनुभव पूरी तरह छाया हुआ था, अपनी मातृभूमि का प्रभाव कहीं नजर नहीं आ रहा था.

‘‘आप ईमेल की बात करते हैं. आप तो सशरीर भी उन के सामने उपस्थित हो जाएं तब भी वे आप को न पढ़ें,’’ निर्मलजी की बात पर फिर सब हंसने लगे.

‘‘तभी तो इस देश का कुछ नहीं हो रहा,’’ खीज कर चिरपरिचित जुमला हवा में उछालते हुए दिनेशजी बोले.

अंत में यह तय हुआ कि एक शिकायती पत्र लिख कर उस पर सब के हस्ताक्षर करा कर नगर निगम के औफिस जा कर जमा कराया जाए. पत्र को निर्मलजी और सुभाषजी ले कर जाएंगे. कारण, दोनों सेवानिवृत्त थे और दोनों के पास पर्याप्त समय था इन कार्यों को करने का.

अगले दिन निर्मलजी और सुभाषजी पत्र ले कर कर्नल विक्रमजी के घर पहुंचे, ‘‘आप मीटिंग में उपस्थित नहीं थे. हम सब एक शिकायती पत्र पर सब के हस्ताक्षर करा कर नगर निगम के औफिस में जमा करा रहे हैं. उसी संबंध में आप से इस पत्र पर हस्ताक्षर कराने आए हैं,’’ गर्व से निर्मलजी बोले.

‘‘बहुत अच्छा किया,’’ कह कर विक्रमजी ने हस्ताक्षर कर दिए.

शिकायती पत्र को नगर निगम के कार्यालय में दिए 1 महीने से ऊपर समय बीत जाने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हो रही थी. जब भी उन के पास जाते एक ही जवाब सुनने को मिलता कि फंड नहीं है.

प्रशासन को कोसते हुए लेन नं. 5 के निवासियों की सहनशक्ति दिनबदिन कम होती जा रही थी.

‘‘तुम्हारी हिम्मत कैसे होती है हमारे घर के पास कूड़ा फेंकने की?’’ सुभाषजी की पत्नी अनीताजी दहाड़ते हुए बोलीं.

एकाएक हुए इस आक्रमण से निर्मलजी का नौकर सकपका गया.

‘‘जब देखो तब कूड़ा हमारे घर के पास फेंक देता है,’’ रात के 10 बजे अनीताजी की बुलंद आवाज से आसपास के सभी लोग घरों से बाहर निकल आए.

‘‘आप के घर के पास कहां फेंका? आप बिना वजह नाराज हो रही हैं,’’ निर्मलजी की पत्नी आशा नाराजगी से बोलीं.

‘‘आप जरा देखिए…आप ने अपने नौकर को इतने भी मैनर्स नहीं सिखा रखे.’’

‘‘आप ज्यादा मैनर्स की बातें न करें तो अच्छा रहेगा.’’

‘‘क्या कहा?’’

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‘‘और नहीं तो क्या. आप के पोते, जो इतना शोर मचाते हुए खेलते हैं…कई बार गेंद हमारे घर आती है. गेंद के लिए जब देखो तब गेट खोलते रहते हैं. तब आप कुछ नहीं सोचतीं,’’ आशाजी हाथ नचाती हुई बोलीं.

दोनों एकदूसरे को गलत ठहरा रही थीं. कोई अपनी गलती मानने को तैयार नहीं थी, सारा पड़ोस तमाशा देख रहा था, दोनों के पति बीचबचाव करने में लगे हुए थे.

 

उस दिन के बाद वातावरण बेहद तनावग्रस्त हो गया. 2 खेमों में विभाजित हो गई लेन नं. 5. एक सुभाषजी का पक्षधर तो दूसरा निर्मलजी का. गली की समस्या अपनी जगह ज्यों की त्यों थी.

एक दिन जब मलबे से भरा ट्रैक्टर गली में आया तो सब चौंक उठे. कर्नल विक्रम ने 2 मजदूरों की सहायता से गली में जहांजहां  पानी भरा था वहां मलबा डलवाना शुरू कर दिया.

‘‘यह आप क्या करा रहे हैं कर्नल साहब?’’ निर्मलजी बोले.

‘‘मलबे से भरा यह ट्रैक्टर जा रहा था. मैं ने इन से यहां फेंकने के लिए कहा तो ये तैयार हो गए. पानी इकट्ठा होने से मच्छर आदि पैदा होने से कई बीमारियां पैदा होने का खतरा भी है.’’

‘‘यह काम तो प्रशासन का है. हम टैक्स देते हैं.’’

‘‘लेकिन परेशानी तो हमें हो रही है,’’ निर्मलजी के पोते को चिप्स खाने के बाद रैपर को सड़क पर फेंकते देख कर्नल साहब ने टोका, ‘‘नहीं बेटा, रैपर सड़क पर नहीं फेंकते. इसे कूड़ेदान में फेंकना चाहिए.’’

‘‘यहां पर तो सभी फेंकते हैं. एक इस के न फेंकने से गली साफ तो नहीं हो जाएगी?’’

कर्नल साहब द्वारा अपने पोते को इस तरह टोकना निर्मलजी को अच्छा नहीं लगा. लेकिन जब उन्होंने कर्नल साहब को रैपर उठा कर अपने घर ले जाते देखा तो कुछ सोचने पर मजबूर हो गए.

दूसरे दिन सुबह जब कूड़ा उठाने वाली एक ठेली के साथ एक सफाई कर्मचारी को निर्मलजी के घर से कूड़ा ले जाते देखा तो दिनेशजी से रहा न गया और वे पूछ ही बैठे, ‘‘निर्मलजी, यह तो आप ने बहुत अच्छा किया. मैं भी काफी दिनों से इस विषय में सोच रहा था,’’ फिर सफाई कर्मचारी की ओर उन्मुख हो कर बोले, ‘‘कहां ले कर जाते हो इस कूड़े को? पता चला यहां से उठा कर किसी और के घर के सामने फेंक दिया.’’

‘‘जी, नहीं. हम इस कूड़े को 2 हिस्सों में अलगअलग कर देते हैं. एक हिस्से में फलों व सब्जियों के छिलके, बचा हुआ खाना, कागज, पत्ते आदि रखते हैं, जिन्हें आसानी से खाद में बदला जा सकता है और दूसरे में वे चीजें, जिन्हें सड़ाया न जा सके. जैसे, पौलिथीन बैग्स आदि. इन्हें हम सुरक्षित तरीकों से नष्ट कर देते हैं,’’ सफाई कर्मचारी बोला.

‘‘तभी तो सरकार पौलिथीन बैग्स के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा रही है, क्योंकि ये अपनेआप नहीं सड़ते. वैसे हम इन वस्तुओं से अपने घरों में भी खाद बना सकते हैं?’’ निर्मलजी ने पूछा.

‘‘बिलकुल, अगर आप के पास किचन गार्डन है तो आप उस में छोटा सा गड्ढा खोद कर उस के अंदर फलों व सब्जियों के छिलके, सूखे पत्ते, बचा खाना डालते रहें, जब गड्ढा भर जाए तो उसे मिट्टी से बंद कर उस में पानी का छिड़काव करते रहें. 3-4 महीनों में ये सब वस्तुएं सड़ जाती हैं और खाद में परिवर्तित हो जाती हैं, जिन्हें आप खाद के रूप में अपने गमलों व क्यारियों में इस्तेमाल कर सकते हैं,’’ सफाई कर्मचारी बोला.

‘‘अगर लोग सफाई के प्रति थोड़ी सी भी जागरूकता दिखाएं तो सड़कों के किनारे इतनी गंदगी नहीं दिखाई देगी,’’ दिनेशजी बोले.

‘‘कैसे?’’

‘‘सड़कों, गलियों आदि को भी अपने घरों की तरह साफ रखने की कोशिश करें और कोई भी गंदगी सड़कों व गलियों में न फेंकें. मैं तो कहता हूं कि हमें भी विदेशों की तरह थोड़ीथोड़ी दूरी पर कूड़ेदान रखने चाहिए ताकि  रास्ते में कोई गंदगी न फेंके और अगर फेंके तो हम उसे कूड़ेदान में फेंकने के लिए कहें. विदेशों में इसीलिए इतनी सफाई रहती है, क्योंकि वहां सड़कों पर कोई भी गंदगी नहीं फेंकता. सभी सड़कों और लेन आदि को साफ रखना अपना नैतिक कर्तव्य समझते हैं. वहां सार्वजनिक स्थानों पर तो क्या लोग निर्जन स्थानों पर भी कूड़ा नहीं फेंकते. यह उन की आदत है न कि किसी दबाव के कारण, क्योंकि बचपन से वे यह सब देखते आए हैं.

‘‘हमारा देश प्रत्येक क्षेत्र में प्रगति कर रहा है, लेकिन सफाई के प्रति हम जरा भी सचेत नहीं हैं. इतना भी नहीं सोचते कि इन सब का कितना बुरा प्रभाव पड़ता है. हमारा देश इतना सुंदर है. पर्यटन से हमें आय की कितनी संभावनाएं हैं. लेकिन यहां जगहजगह फैली गंदगी को देख कर विदेशी पर्यटक

चाह कर भी यहां आने से कतराते हैं,’’ अपना विदेश का अनुभव बताते हुए दिनेशजी बोले.

कुछ सोचते हुए निर्मलजी बोले, ‘‘सड़कों पर तो प्रशासन ही कूड़ेदान रखेगा, लेकिन अपनी गली में हम आपसी सहयोग से कूड़ेदान रख सकते हैं और इसी सफाई कर्मचारी से उन की सफाई कराते रहेंगे. चलिए, सब से बात कर के देखते हैं.’’

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कूड़ेदान के प्रस्ताव पर सब सहर्ष तैयार हो गए. सब के सहयोग से लेन नं. 5 में कूड़ेदान भी आ गए. कर्नल विक्रमजी के मलबा डलवाने, सफाई कर्मचारी के कूड़ा उठाने व कूड़ेदान रखने से लेन नं. 5 साफ और व्यवस्थित रहने लगी. घर के पास कूड़ा न पड़ने के कारण अब अनीताजी ने भी अपने पोतों पर लगाम लगानी शुरू कर दी.

‘‘देखिए, सब के थोड़े से प्रयास और सफाई के प्रति थोड़ा सा सजग रहने से लेन कितनी साफ रहने लगी है,’’ निर्मलजी बोले.

‘‘इस सब का श्रेय तो कर्नल साहब को देना चाहिए,’’ गोद में 3 वर्ष की पोती को उठाए सुभाषजी बोले.

‘‘आप बिलकुल ठीक कह रहे हैं.’’

तभी कर्नल विक्रमजी की कार ने लेन में प्रवेश किया.

‘‘कहां से आ रहे हैं कर्नल साहब?’’ सुभाषजी बोले.

‘‘नगर निगम के औफिस से आ रहा हूं.’’

‘‘आप और नगर निगम के औफिस से?’’

‘‘क्यों नहीं? मैं भी इस देश का नागरिक हूं और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हूं.’’

‘‘क्या कहा उन्होंने?’’ उत्सुकता से सुभाषजी ने पूछा.

‘‘उन्होंने कहा, फंड आ गया है, जल्द ही काम शुरू हो जाएगा.’’

तभी सुभाषजी की पोती गोद से उतरने के लिए मचलने लगी. जब वह नहीं मानी तो सुभाषजी को उसे गोद से उतारना पड़ा. गोद से उतरते ही अपने नन्हे कदमों से चल कर चौकलेट का रैपर, जो उस के हाथ से गिर गया था, को उठा कर कूड़ेदान में डालने की कोशिश करने लगी.

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