एक खूबसूरत मोड़ : शेखर और मीना को क्यों अलग होना पड़ा?

‘‘कुछ भी नहीं बदला न इन 12 सालों में.’’

‘‘हां सचमुच. क्या तुम मुझे माफ कर पाए शेखर?’’  यह पूछती मीना की पनीली आंखें भर आईं पर मन हर्षित था. अनायास हुई यह मुलाकात अप्रत्याशित सही पर उसे क्षमा मांगने का अवसर मिल ही गया था. होंठों पर मुसकान ऐसे आ चिपकी जैसे बड़ी जिद्द के बाद भी जो खिलौना न मिला हो और वही बर्थडे गिफ्ट के रैपर खोलते ही अनायास हाथों में आ गया हो.

‘‘तुम से नाराज नहीं था यह कहना गलत होगा. मुझे ऐसा लगा था कि तुम से कभी बात नहीं कर सकूंगा मगर देख तुझे देखते ही सब भूल गया,’’ शेखर एक ही सांस में बोलता चला गया फिर उस ने अपनी शिकायत रखी, ‘‘तू तो ऐसे गई कि मुड़ कर भी नहीं देखा. हमारे जीवन से जुड़े फैसले अकेले कैसे ले लिए?’’

‘‘मैं ने कब लिए. तुम्हारे लिए ही तुम से दूर हुई. मैं तुम्हें सफलता के शिखर पर देखना चाहती थी शेखर. मेरे पीछे तुम्हारी पढ़ाई नहीं हो रही थी. आज तुम इतने बड़े औफिसर हो. मैं साथ होती तो यह संभव होता? बोलो, जवाब दो?’’

मीना बस मुसकराए जा रही थी. लंबी जुदाई के बाद मिली थी सो वह 1-1 क्षण जी लेना चाहती थी.

‘‘क्यों नहीं होता? तुम्हारा साथ मिलता तो सब हो जाता.’’

‘‘क्लासेज छोड़ कर दीवानों की तरह घूमते थे तुम. मैं तुम्हारी सफलता का कारण बनना चाहती थी, असफलता का नहीं,’’ मीना ने गहरी सांस लेते हुए कहा.

‘‘पता नहीं यार पर ऐसा क्या चाह लिया था. कोई ताजमहल तो नहीं मांग लिया था. एक तू मिल जाती और मैं आईएएस बन जाता इतना ही न. मगर नहीं. मैं जो चाहता हूं वह मुझे कभी नहीं मिलता,’’ कह कर आसमान की ओर देखने लगा जैसे उस की एक नाराजगी प्रकृति से भी हो.

‘‘तुम सुखी गृहस्थी जी रहे हो, अच्छे पद पर हो. आखिर तुम्हारे पापा तो तुम्हें ऐसे ही तो देखना चाहते थे,’’ कह मीना शेखर की आंखों मे देखने लगी. वही आंखें जिन में अपना प्रतिबिंब देख कभी शर्म से दोहरी हो जाती थी. जिन होंठों की मुसकान पर सदा वारी जाती पर न जाने क्यों वे सभी सूने पड़े थे जो कभी उस के प्रेम से लबरेज रहा करते थे.

सालों बाद दोनों यों मिलेंगे यह सोचा न था. मीना मायके से अकेली लौट रही थी और शेखर अपने मातापिता से मिलने जा रहा था. बड़ी मुश्किल से एकदूसरे को भुला कर अपनीअपनी जिंदगी जीना शुरू ही किया था कि नियति ने उन्हें फिर से मिला दिया. बिना कुदरत की मरजी के पत्ता भी नहीं खड़कता. आज उस की ही हरी ?ांडी रही होगी जो बरसों के बिछड़े प्रेमियों का एअरपोर्ट पर अचानक आमनासामना हो गया और फिर वे अतीत के पन्नों में ऐसे उल?ो कि उन की फ्लाइट मिस हो गई.

‘‘कुछ खाएगी?’’

‘‘हूं… चिली चिकन विद गार्लिक सौस.’’

इस डिश का नाम सुनते ही शेखर के होंठों पर मुसकान आ गई जिसे देख कर मीना को भी तसल्ली हुई. प्यार के कुछ निशां अब भी बाकी थे. यही उन की फैवरिट डिश थी जिसे वे हर रविवार खाया करते थे. आज एअरपोर्ट पर मेनलैंड चाइना में साथ बैठ कर खाने लगे.

‘‘तू अब भी वैसी ही प्यारी दिखती है.’’

‘‘यह तुम्हारा प्यार है शेखर. जब तक तुम्हारा प्यार मुझ में रहेगा मैं प्यारी ही रहूंगी.’’

इस बार मन भावुक था. आंखें छलक आईं. जज्बात ही थे आखिर कब तक काबू में

रहते. कभी उन नयनयुग्मों ने एक होने के सपने सजाए थे. मीना के नयनों की नमी शेखर को न भिगो पाई. उस ने सूखी आंखों से उस की ओर देखा जैसे इस मीना को वह पहचानता ही न हो. उस के चेहरे पर आए बदलाव ने मीना को सहमा दिया.

पल दो पल की खामोशी के बाद शेखर ने पूछा, ‘‘सब ठीक है न तेरे साथ?’’

‘‘बस कुछ ही देर का साथ है और फिर तुम्हें देखने को तरस जाऊंगी इसलिए ही…’’ अवरुद्ध कंठ से इतना ही निकला.

‘‘इतना ही चाहती थी तो तब कहां थी जब मुझे तेरी जरूरत थी? मैं ने आईएएस परीक्षा निकाल ली थी. इंटरव्यू की तैयारी के दौरान बस एक ही खयाल कि मुझे तू मिलेगी या नहीं. बस इन्हीं सवालों से जंग लड़ते न जाने कितनी ही रातें आंखों में कटीं. स्ट्रैस लैवल कितना हाई था कि जब इंटरव्यू देने गया था. ऊपर से जितने मुंह उतनी बातें. सब कहते थे कि तुम ने मुझे बरबाद कर दिया है.’’

उस की सीधी बातें सीने को चीरती थीं. एक नाराजगी थी शायद या उस का आहत स्वाभिमान. बातों में एक तीखापन जैसे प्यार पर से विश्वास ही उठ चुका हो.

‘‘सब कौन और तुम भी यही सोचते हो?’’

‘‘नहीं, पर बाकी सब यही कहते हैं.’’

‘‘तुम्हारे दोस्त तो पहले भी मेरे दुश्मन थे. तुम क्या सोचते हो, मेरे लिए यह माने रखता है.’’

‘‘तुम्हारी कोई मजबूरी रही होगी. मैं ने तुम्हें कभी गलत नहीं समझ. इसी बात का तो दुख है मेरी पत्नी को.’’

‘‘पत्नी? पर तुम ने तो कहा था आजीवन मेरी प्रतीक्षा करोगे?’’

‘‘कर ही रहा था. मेरा चयन फौरेन सर्विस में हो गया था. ट्रेनिंग के दौरान तुम्हारे घर वालों से बारबार कौंटैक्ट करता रहा, तुम्हें याद करता रहा पर तुम्हारी शादी हो गई थी. तुम्हारी ही बातें करतेकरते मेरी बैचमेट सपना मेरे नजदीक आई और मेरे जीवन की हकीकत बन गई. अब तुम कुछ अपने बारे में बताओ?’’

‘‘मेरी शादी मेरी मरजी के विरुद्ध राजेश के साथ हुई. मैं ने उसे अपनी पूरी कहानी बता दी ताकि वह मुझे छोड़ दे पर वह पारंपरिक इंसान निकला. शादी को सिरियसली निभाने लगा.’’

‘‘तू खुश है?’’

‘‘मैं दोहरी जिंदगी जी रही हूं. तुम्हें भुला न सकी शेखर. सुखदुख में, तनहाइयों में बस तुम ही याद आते रहे. कभी बादलों में तुम्हारा अक्स ढूंढ़ा करती तो कभी पुरानी बातों को याद कर खुश हो जाया करती.’’

‘‘मैं भी कहां भुला सका. अपने गम कम करने के लिए शराब का सहारा भी लिया पर इस का भी कोई लाभ नहीं हुआ. जिंदगी जीने के लिए सही फलसफा जरूरी है, जिसे मैं भी देर से ही सम?ा पाया.

‘‘अव्वल तो यह कि जब अकेली थी तभी मेरे पास आती तो जैसे भी होता मैं संभाल लेता. दूसरा यह कि जब अपने ही घर वालों को मना न सकी तब कोई कदम उठा न सकी तो अब अपनी जिंदगी जिस में और लोग भी शामिल हैं, उसे खुशी से न जीना गलत है.’’

कितनी हिम्मत से उस ने मीना की बेवफाई को निभाया था. वह उसे एकटक देखे जा रही थी. हमेशा उस के लिए स्नेह के भाव रखने वाला शेखर पहली बार उसे प्रश्नों के कठघरे में रख रहा था. क्या सचमुच उस ने उस के प्रति इतना अन्याय किया है जितना उसे इलजाम मिल रहा है? क्या उस की कोशिशों में कमी रह गई? उस ने तो आखिर तक शादी के लिए हां नहीं कही थी तो क्या उसे भाग कर उस के पास जाना चाहिए था? मगर वह भागना नहीं चाहती थी. उसे शेखर और अपना परिवार सब एकसाथ चाहिए और वह भी पूरे सम्मान के साथ.

‘‘तुम नहीं समझोगे एक स्त्री का दिल, प्यार होता है तो होता है और नहीं होता तो नहीं होता है. इस के लिए खूबसूरती, महानता या आदर्शों की कसौटी नहीं होती. मसलन, ज्यादा महान, खूबसूरत या आदर्श व्यक्ति से प्यार हो ही जाएगा, यह नहीं कह सकते. न ही इस में कोई प्रतिदान होता है. हां, तुम्हें तब भूलना संभव था जब तुम गलत होते. एक बहाने से मन को समझ लेती कि किसी गलत इंसान के लिए एक सही इंसान को क्यों दुखी करूं मगर तुम ने तो कभी कुछ गलत किया ही नहीं था.’’

‘‘गलतसही की कसौटी पर मत तोलो. जो हो गया है उसे स्वीकार करो और जिंदगी का एहसान उतारते हुई नहीं बल्कि खुश हो कर जीयो. तमाम कोशिश कर के भी हम मिल न सके तो शायद इसे ऐसे घटना ही था. अब हम इतना तो कर ही सकते हैं कि अपने परिवार के साथ खुश रहें. मैं ने भी यह सब अपने अनुभव से ही सीखा. बड़ी मुश्किल से संभला हूं. अब अपनी उस पत्नी को जिस ने हम दोनों के बारे में सब जानते हुए भी मु?ा से प्यार किया और मेरा साथ दिया है, उस से बेवफाई नहीं कर सकता. और फिर यह सोचो न हम एकदूसरे के जीवन में प्यार बन कर आए. यह क्या कम है. उन की सोचो जिन का पूरा जीवन निकल जाता है मगर प्यार नाम के पंछी से कोई परिचय तक नहीं होता.’’

सही तो कह रहा था शेखर. पत्नी के प्रति उस की निष्ठा देख कर दिल भर आया. ऐसे इंसान का किसी के जीवन में होना ही बड़ी बात थी. उस से मिलना ही तो उस के जीवन का सब से खूबसूरत मोड़ था. वहीं से उस का सबकुछ बदल गया था. बचपन छूट गया था. सम?ादार हो गई थी. शेखर न आता तो क्या वह इतनी बदलती? नहीं न? इस का मतलब उन्हें ऐसे ही मिलना था. एकदूसरे को संवारने के लिए, यह सोच कर आंसू थमने लगे.

तभी शेखर ने कहा, ‘‘चल, अब वापसी के टिकट देखते हैं, घर पहुंचना है न.’’

शेखर की आवाज पर हंसी आ गई. घर तो पहुंचना ही होगा. टिकट ले कर दोनों ने एक बार फिर से एकदूसरे की आंखों में देखा. बस 1 मिनट के लिए ही उन में अपनी छवि देख पाई फिर एक चिंतित पति व व्याकुल पिता दिखा. उसे भी राजेश और बेटे अमन की याद आई. उन की जिंदगियां अलग मोड़ ले चुकी थीं. खुश थे या नहीं यह कहना वाकई मुश्किल था पर दोनों ही जिम्मेदार इंसान अपनीअपनी मंजिल यानी गेट की ओर चल पड़े. यह विश्वास और भी गहरा हो गया कि कुछ रिश्ते कभी नहीं बदलते, बस प्राथमिकताएं बदल जाती हैं.

शेखर और मीना जो कभी गहरे प्यार में थे पर उन्होंने बड़ी वफा से बेवफाई को भी स्वीकार कर लिया. प्यार जरूरत के अनुसार कुरबान होना होता है.

कोने वाली टेबल: क्या सुमित को मिली उसकी चाहत

ठाणे में सब से बड़ा मौल है, विवियाना मौल. काफी बड़ा और सुंदर. एक से एक ब्रैंडेड शोरूम हैं. जब से यह मौल बना है, ठाणे में रहने वालों को हाई क्लास शौपिंग के लिए बांद्रा नहीं भागना पड़ता. वीकैंड में टाइम पास करने वालों की यह प्रिय जगह है. थर्डफ्लोर पर बढ़िया फ़ूड कोर्ट है. वैसे, हर फ्लोर पर बहुत ही क्लासी रैस्त्रां हैं, उन में से एक है, येलो चिल्ली. यह मशहूर सैलिब्रिटी शेफ संजीव कपूर की फ़ूडचेन का पार्ट है.

येलो चिल्ली की कोने वाली टेबल पर 30 वर्षीया लकी बहुत देर से बैठी फ्रैश लाइम वाटर पी रही है. उसे इंतज़ार है सुमित का. बस फोटो ही देखी है उस ने सुमित की. अपने घर वालों के कहने पर दोनों आज पहली बार अकेले मिल रहे हैं. सुमित अंदर आया, लकी ध्यान से सुमित को देख रही थी.

सुमित ने इधरउधर देखा, सीधा लकी के पास आ कर ‘हैलो’ बोला और अपना बैग दूसरी खाली पड़ी चेयर पर रखता हुआ बैठ गया. पूछ लिया, “आप इतने ध्यान से क्या देखने की कोशिश कर रही हैं?”

“देख रही हूं, टौल, डार्क एंड हैंडसम वाले कौन्सैप्ट पर कितना फिट बैठते हो.”

सुमित हंस पड़ा, तो क्या देखासुना-

“सब बकवास है, पता नहीं किस ने यह लाइन बना दी. लड़कियां फ़ालतू में टौल, डार्क एंड हैंडसम लड़कों की कल्पना करकर के अपना टाइम खराब करती हैं. अरे, क्या फर्क पड़ जाएगा अगर लड़का गोरा हो गया तो, या न हो लंबा? क्या करना है, सब अमिताभ बच्चन हो सकते हैं क्या? और हैंडसम होने की परिभाषा तो सब की अपनीअपनी अलग होती है न…

सुमित बहुत ही ध्यान से लकी को देखने लगा, लड़की है या तोप का गोला, किस बात पर इतनी भरी बैठी है. अभी तो आ कर बैठा ही हूं और यह तो शुरू हो गई. लकी अब मैन्यू कार्ड देखने लगी थी.

सुमित को लगा यही मौका है इसे ध्यान से देख लूं. वाइट जंप सूट में पोनीटेल बनाए, सुंदर सा चेहरा, अच्छा लग रहा था.

लकी ने कहा, “पहले और्डर दे दें? मुझे भूख लगी है, भूख के आगे मुझे कुछ नहीं सूझता. मेरा पेट भरा होना चाहिए, तभी मुझ से ठीक से बात हो पाती है.’’

सुमित ने कहा, “हां, हां, और्डर करते हैं, बताओ, क्या खाओगी?”

आप अपनी पसंद बताएं, मुझे यहां के छोलेभठूरे अच्छे लगते हैं, जब भी आती हूं, वही खाती हूं.’’

“मैं भी वही खा लूंगा.”

“क्यों, अपनी कोई पसंद नहीं आप की?”

“मैं तो सबकुछ खा लेता हूं, जो सामने दोस्त खा रहे होते हैं, मैं उस में खुश हो जाता हूं.”

“मुझे आप ने दोस्त मान लिया, पहली बार तो मिले हैं?”

सुमित चुप रहा, वेटर आया तो लकी ने कहा, “एक प्लेट छोलेभठूरे, एक प्लेट दहीकबाब, एक प्लेट पनीरटिक्का.”

वेटर के जाने के बाद सुमित ने हैरानी से कहा, “क्याक्या मंगवा लिया?”

लकी ने मुसकरा कर कहा, “मुझे बहुत सारी चीजें और्डर करना अच्छा लगता है, फिर एकदूसरे के साथ शेयर कर के ज्यादा चीजें खाई जा सकती हैं. असल में, आई एम अ बिग फूडी. नहीं तो अभी एकएक प्लेट छोलेभठूरे ही खा पाते, अब और भी चीजें खा सकते हैं. यह ठीक रहता है न.”

“लकी जी, मैं ने कभी और्डर को ले कर इतना सोचा नहीं.”

“आप कितने साल के हैं? सही वाली उम्र बताना, सर्टिफिकेट वाली नहीं.”

“30’’

“मैं भी 30. तो फिर बात करते हुए ये आप, आप, जी, लगाना बंद करें क्या? बोरिंग हो रहा है.’’

“अच्छा रहेगा.’’

“सुनो, तुम सचमुच शादी करना चाहते हो?”

“अभी नहीं, पर घर वाले बहुत जोर डाल रहे हैं.’’

“मेरे साथ भी यही प्रौब्लम है. अभी तो जौब में सेट हुई हूं, सोचा था थोड़ा घूमूंगी, फिरूंगी. मुझे नईनई जगहें देखने का बहुत शौक है. पर एक तो घर वाले और ऊपर से रिश्तेदार, चैन नहीं लेने दे रहे. और मुझे लगता है मेरी किसी से बनेगी भी नहीं, गलत बात किसी की जरा भी सहन नहीं होती, झगड़ा हो जाता है. मुझे गुस्सा भी बहुत आता है. तुम बताओ, क्यों कर रहे हो शादी? तुम तो लड़के हो, तुम्हें तो इतने फायदे हैं, कुछ भी कह सकते हो?”

“बस, मम्मीपापा ने रट लगा रखी है कि तुम शादी करो तो छोटे भाई का नंबर आए.”

“पर तुम्हारे शादी न करने की क्या वजह है?”

“बस, अभी मूड नहीं है.’’

“कोई अफेयर चल रहा है या ब्रेकअप हुआ है?”

“ब्रेकअप हुआ है.’’

“तो उस का गम मनाना चाहते हो?”

“नहीं, अब क्या गम मनाना, 2 महीने हो गए इस बात को.’’

“ब्रेकअप क्यों हुआ?”

इतने में वेटर ने खाना ला कर रखा तो लकी ने कहा, “चलो, खाने पर टूट पड़ती हूं, तुम्हारी सैड स्टोरी बाद में सुनती हूं, टैस्टी चीजों का मजा खराब नहीं करना चाहती.’’

सुमित मुसकरा दिया तो लकी ने कहा, “तुम कम बोलते हो क्या या ब्रेकअप के बाद लड़की से बात करने का कौन्फिडैंस ख़त्म हो गया?”

“हां, हो सकता है, जरा मूड कम ही होता है हंसनेबोलने का.”

“क्या बढ़िया छोले बने हैं, वाह, मजा आ गया. मेरी मम्मी भी छोले बनाती तो हैं अच्छे, पर यहां जैसे थोड़े ही बनते हैं घर पर, है न?”

“हां, अच्छा लग रहा है खाना.”

“तुम्हें पता है जब भी मैं विवियाना आती हूं, चाहे टाइम जो भी हो रहा हो, ये दहीकबाब जरूर खाती हूं. तुम नौनवेज खाते हो?”

“हां, तुम?”

“बाहर दोस्तों के साथ खाती हूं, घर वालों को नहीं पता है. तुम सिगरेट पीते हो?”

“हां, कभीकभी. तुम भी पीती हो क्या?”

“एकदो बार पी, मजा नहीं आया, फिर नहीं पी. शराब?”

“घर वालों को नहीं पता, कभीकभी किसी पार्टी में पीता हूं और फिर किसी दोस्त के घर पर ही रुक जाता हूं.”

“सुनो, एक काम करोगे, अपने घर वालों से कह देना कि मैं मिलने आई ही नहीं थी, मुझे नहीं करनी शादी अभी. अपने घर वालों से मैं निबट लूंगी. उन्हें पता चलना चाहिए कि जबरदस्ती करेंगे तो मैं किसी लड़के से मिलने जाऊंगी ही नहीं. मैं ने पहले 2 लड़कों को तो दूर से देखते ही रास्ता बदल लिया था, मिलने ही नहीं गई थी. मेरे घर वाले भी थकते नहीं मेरी बदतमीजी से.’’

“तो, आज मुझ से क्यों मिलीं?”

“बोर हो रही थी, यहां लंच का मूड हो गया.’’

“कोई बौयफ्रैंड है?”

“अभी तो नहीं है.’’

“कब था?”

“एक साल पहले.’’

“ब्रेकअप क्यों हुआ?”

“अपनी ज्यादा चलाता था, हर बात में रोकटोक करने लगा था, फिर मेरे गुस्से को झेल नहीं पाया. तुम्हें बताया न, कि मुझे बहुत गुस्सा आता है.’’

खाना हो चुका था. लकी ने वेटर को बिल लाने का इशारा किया. सुमित अपना वौलेट निकालने लगा तो लकी ने कहा, “मैं पे करूंगी.’’

“प्लीज, मुझे करने दो.’’

“क्यों?”

“मुझे अच्छा नहीं लगेगा, मुझे करने दो.’’

“नहीं, मेरा मन है.’’

“ओके, अगली बार करने दोगी?”

“हम मिल रहे हैं दोबारा?”

“तुम बताओ?’’

“मुश्किल है.’’

“अच्छा, ठीक है, जैसे तुम्हारी मरजी.’’

खाना खा कर दोनों बाहर निकले, तो लकी ने कहा, “जल्दी है जाने की?”

“नहीं, कुछ काम है?”

“बस, एक ब्लैक पैंट लेनी है ज़ारा से. ले लूं, फिर साथ ही निकलते हैं,” ग्राउंडफ्लोर तक आतेआते लकी ने पूछा, “अरे, तुम ने बताया नहीं, तुम्हारा ब्रेकअप क्यों हुआ था?”

“वह बहुत शक्की थी. किसी से भी बात करता, कहीं भी मैं जाता, बहुत सारे सवालों के साथ शक करती. फिर चैक करती कि कहीं मैं ने झूठ तो नहीं बोला. पूछताछ करती सब से. मुझे लगा, जब रिश्ते में विश्वास ही नहीं तो सब बेकार है.”

“औफिस कहां है तुम्हारा?”

“अंधेरी में.’’

“और तुम्हारा?”

“अंधेरी.’’

“अरे, वाह, कैसे जाती हो?”

“एसी बस से. तुम कैसे जाते हो?”

“कार से.”

“बढ़िया.’’

‘ज़ारा’ शोरूम में अपना बैग सुमित को पकड़ा लकी ने जल्दी से पैंट ट्राई कर के ले ली, तो सुमित ने हंसते हुए कहा-

“इतनी जल्दी ले ली? लड़कियां तो शौपिंग में बहुत टाइम लगाने के लिए मशहूर हैं?’’

“मुझे शौपिंग में टाइम खराब करना पसंद नहीं. काम की चीजें लेती हूं और निकलती हूं, ट्रायल रूम की भीड़ से तबीयत घबरा जाती है मेरी. चलो, निकलते हैं, अब. अच्छा लगा मिल कर.”

“हां, अच्छा तो लगा मुझे भी, कैसे आई हो?”

“औटो से. वैसे, मैं ने कार ले ली है, एकदो दिन में डिलीवरी होने वाली है. मैं बहुत एक्ससाइटेड हूं अपनी कार के लिए.”

“यह तो बड़ी ख़ुशी की बात है. अपनी कार की एक पार्टी तो बनती है,” सुमित सचमुच बहुत खुश हुआ था सुन कर.

“पार्टी चाहिए तुम्हें कार की?’’

“तुम्हारा मन हो तो मैं दूं तुम्हें तुम्हारी कार की पार्टी? जब कार आ जाए तो तुम्हारी कार से मरीन ड्राइव चलेंगे. वहीं पिज़्ज़ा एक्सप्रैस में पिज़्ज़ा खिलाऊंगा तुम्हें? बोलो, चलोगी?”

“प्रोग्राम तो अच्छा सोच रहे हो तुम? कहीं तुम्हें मैं पसंद तो नहीं आ गई? देखो, मेरा शादी का कोई मूड नहीं है अभी.”

“अरे बाबा, मुझे भी नहीं करनी है शादी, इसलिए तुम्हारे साथ थोड़ा ठीक लग रहा है.’’

“ठीक है, लाओ फोन नंबर दो अपना, कार आने पर तुम्हें फोन करूंगी, चलेंगे घूमने. और याद रखना, अपने घर वालों को कहना कि मैं मिली ही नहीं.”

“ठीक है.’’

अपने घर से थोड़ा दूर ही सुमित की कार से उतरते हुए लकी ने कहा, “अरे, यह तो बताओ, तुम्हारा अपनी गर्लफ्रैंडफ्रेंड के साथ सैक्स भी चलता था?”

“हां, और तुम्हारा?”

“हां, चलो, बाय, मिलते हैं फिर, कार आने पर.’’

घर जा कर दोनों ने झूठ बोल दिया कि वे आपस में मिले ही नहीं, लकी डांट खाती रही, सुमित के घरवाले दूसरी लड़कियों के बारे में अपनी राय देने लगे. लकी और सुमित ने फोन नंबर होने पर भी एकदूसरे से कोई बात न की, न कोई मैसेज भेजा. जिस दिन लकी की कार आई, लकी ने सुमित को फोन किया, “मरीन ड्राइव चलना है?”

“हां, संडे को शाम 5 बजे निकलेंगे. अपना ऐड्रेस भेज रहा हूं, मुझे लेने आ जाना.’’

संडे तक का टाइम दोनों ने वैसा ही बिताया जैसा दोनों का रूटीन था. संडे शाम को सुमित वर्तक नगर की नीलकंठ सोसाइटी में अपनी बिल्डिंग के बाहर ही मिल गया, सीट बेल्ट बांधते हुए सुमित ने कहा, “कलर सुंदर है कार का, ब्लू कलर मुझे भी पसंद है. कैसा लग रहा है अपनी कार चलाना?”

“बढ़िया. मैं कार चला रही हूं, तुम्हारी मेल ईगो तो नहीं हर्ट हो रही है?”

“नहीं, आराम मिल रहा है, थक जाता हूं रोज ड्राइविंग से, आज मजे से बैठ कर जाऊंगा.’’

शाम बहुत सुंदर लगी आज दोनों को. जाने कितनी बातें होती रहीं. दोनों हैरान से एक किनारे साथ घूमते हुए बीचबीच में समुद्र की लहरें देखने के लिए खड़े हो जाते, हलकेहलके सुरमई से अंधेरे में समुद्र किनारे बनी चट्टानों के पास की दीवारों पर बैठे युवा जोड़े चहक रहे थे. कुछ एकदूसरे की कमर में हाथ डाले एकदूसरे में यों खोए थे कि जैसे किसी बात का उन पर असर नहीं. चाहे उन्हें कोई भी देख रहा हो, चाहे कोई कुछ भी सोच रहा हो. मुंबई में इन जगहों में ये सीन बहुत ही आम हैं. बाहर से आए लोग जल्दी इन सीन को हजम नहीं कर पाते. ऐसे प्रेमियों को बेशर्मों का तमगा तुरंत थमा दिया जाता है.

पिज़्ज़ा एक्सप्रैस में पिज़्ज़ा खाते हुए लकी ने कहा, “सुनो, तुम मुझे वैसे तो ठीक ही लग रहे हो, क्या कहते हो, एकदो बार और टाइम साथ बिताते हैं. दिल हां कर रहा हो, तो शादी कर ही लें क्या?”

सुमित हंसा, बोला, “इतनी जल्दी मूड चेंज हो गया?”

“हां, सोच रही हूं, कर ही लूं. साथ की लड़कियों की भी शादी हो गई है. अकेले ऐसी जगह घूमना छूटता जा रहा है. आज कई दिनों बाद ऐसे शाम बिताई, अच्छा लगा. कोई बौयफ्रैंड फिर बनाऊं, न पटे तो फिर ब्रेकअप हो. फिर मूड खराब हो, इस से अच्छा है कि तुम से शादी कर लूं, साथ घूमने वाला साथी भी मिल जाएगा. बोलो, क्या कहते हो?”

“मैं भी सोच रहा हूं कि तुम से ही कर लूं शादी. तुम कार चलाया करोगी तो मुझे भी आराम हो जाएगा. तुम शौपिंग में बोर भी नहीं करोगी. सो, तुम भी मुझे लग तो ठीक ही रही हो. ठीक है, थोड़ा और मिलते हैं, फिर कर ही लेते हैं शादी.”

दोनों जोर से हंस दिए. फिर वही हुआ जो दोनों ने बिलकुल भी नहीं सोचा था. अगले महीने ही दोनों की शादी हो गई, धूमधाम से. और दोनों अकसर विवियाना मौल में येलो चिल्ली की उसी कोने वाली टेबल पर डिनर करने जरूर जाते हैं. दोनों को ही उस कोने वाली टेबल से कुछ इश्क सा हो गया है!

सामने वाला फ्लैट: जोया और शिवा की कहानी

ठाणे के भिवंडी एरिया में नई बनी सोसाइटी ‘फ्लौवर वैली’ की एक बिल्डिंग के तीसरे फ्लोर के एक फ्लैट में 28 वर्षीय शिव त्रिपाठी सुबह अपनी पूजा में लीन था. तभी डोरबैल बजी. किचन में काम करती उस की पत्नी आरती ने दरवाजा खोला.

सामने वाले फ्लैट की नैना ने चहकते हुए कहा, ”गुडमौर्निंग आरती, दही जमाने के लिए खट्टा देना, प्लीज. रात को मैं और ज़ोया सारी दही खा गए, खट्टा बचाना याद ही नहीं रहा,” फिर गहरी सांस अंदर की तरफ खींचती हुई बोली, ”क्या बना रही हो, बड़ी खुशबू आ रही है. अरे, डोसा बना रही हो क्या?”

आरती ने कहा, ”हां, आ जाओ, दही ले लो.”

”बस, जल्दी से दे दो, एक मीटिंग है, लैपटौप खोल कर आई हूं. और हां, दोतीन डोसे हमारे लिए भी बना लेना, घर के डोसे की बात ही अलग है.”

आरती ने मुसकरा कर कहा, ”हां, तुम दोनों के लिए भी बनाने वाली ही थी.”

फिर अंदर झांकते हुए नैना हंसी, ”तुम्हारे शिव ‘जी’ पूजा में बैठे हैं क्या?”

”हां,” आरती को उस के कहने के ढंग पर हंसी आ गई.

नैना चली गई. शिव वैसे तो पूजा कर रहा था पर उस ने दरवाजे पर हुई पूरी बात सुनी थी. पूजा कर के उठा तो नैना ने अपना और उस का नाश्ता लगा लिया. शिव ने पूछा, ”यह सामने वाले फ्लैट से अब कौन सी लड़की क्या मांगने आई थी? इसे खुद किसी चीज का होश नहीं रहता क्या?”

”अरे, तो क्या हुआ, अकेली लड़कियां हैं, कितनी प्यारी हैं दोनों, मुझे तो बहुत ही अच्छी लगती हैं दोनों.”

शिव ने अचानक पूछा, ”अरे, तुम बिना नहाए नाश्ता कर रही हो आज?”

”हां, आराम से नहा लूंगी, थोड़ी सफाई करनी है.”

”खूब मनमानी करती हो मुंबई आ कर. मेरे मांपिताजी देख लें कि बनारस के इतने बड़े ब्राह्मण परिवार की बहू बिना नहाए खाने बैठ जाती है तो बेचारे यह धक्का कैसे सहन करेंगे,” कह कर शिव व्यंग्य से मुसकराया.

आरती ने हंस कर कहा, ”मैं तो जी ही रही हूं यहां आ कर, वहां पहले अपना परिवार, फिर तुम्हारा कट्टर परिवार, ऐसे अपनी मरजी से जीना तो वहां बड़ा मुश्किल था. बहुत सही समय पर शादी होते ही तुम्हारा ट्रांसफर यहां हो गया, मजा आ गया.” यह कहते हुए उठ कर आरती ने शिव के गले में बांहें डाल दीं.

दोनों के विवाह को सालभर ही हुआ था और शादी होते ही शिव का ट्रांसफर बनारस से मुंबई हो गया था. शिव ने भी उसे अपने करीब कर लिया. नए विवाह का रोमांस जोरों पर था. इतने में डोरबैल बजी. इस बार सामने वाले फ्लैट से ज़ोया थी. शिव ने उठ कर दरवाजा खोला था.

ज़ोया ने गुडमौर्निंग कह जल्दी से पूछा, ”अरे आरती, तुम हमें डोसे देने वाली थी न. भाई, जल्दी दो. नैना ने बताया तो सुनते ही भूख लग आई है.”

आरती ने हंसते हुए कहा, ”हांहां, बस दो मिनट, बना रही हूं.”

”ठीक है, हमारा दरवाजा खुला ही है, जरा पकड़ा देना.’’ शिव अब तक दरवाजे पर ही खड़ा था, ज़ोया जाते हुए बोली, ”भई शिवजी, आप की पत्नी बड़ी सुघड़ है.”

वह चली गई तो शिव ने किचन में आरती के पास जा कर ज़ोया की नक़ल लगाई,”भई, शिवजी, आपकी पत्नी बड़ी सुघड़ है. हुंह, तुम दोनों क्यों नहीं सीख लेतीं कुछ फिर मेरी सुघड़ पत्नी से. बस, बातें बनवा लो इन से. नाक में दम कर के रखती हैं दोनों, पता नहीं कहां से आ गईं यहां रहने.”

आरती मुसकराती रही और नैना व ज़ोया के लिए डोसे बनाती रही. 6 डोसे और नारियल की चटनी ले कर उन के पास गई, प्यार से कहा, ”लो, दोनों गरमगरम खा लो.”

नैना और ज़ोया फौरन अपने लैपटौप को स्लीप मोड पर डाल नाश्ता करने बैठ गईं. आरती से कहा, ”तुम भी बैठो, अपने शिव जी के साथ नाश्ता तो कर ही लिया तुम ने, अब चाय हमारे साथ पी कर जाना या ऐसा करो, तब तक चाय चढ़ा ही दो, साथ पीते हैं,” कह कर दोनों नाश्ते पर टूट सी पड़ीं. आरती ने उन्हें स्नेह से देखा और उन के ही किचन में चाय चढ़ा दी और फिर चौंकते हुए वापस आई, ”यह क्या, चाय की पत्ती ख़त्म है क्या?”

दोनों ने एकदूसरे को घूर कर देखा. फिर दोनों हंस पड़ीं. ज़ोया ने कहा, ”आरती, कौफ़ी ही बना लो फिर. हम मंगाना भूल गए. एक तो यह नई सोसाइटी है, ठीक से अभी दुकानें भी नहीं हैं, दूर जाने का मन नहीं करता, कल औनलाइन और्डर दे रहे थे तो चाय की पत्ती भूल गए. तुम्हारे शिवजी कुछ सामान लेने निकलें तो हमारी भी चाय की पत्ती मंगा देना.”

तीनों ने हंसीठहाके के बीच कौफ़ी पी. नैना और ज़ोया ने आरती को बारबार थैंक्स कहा. फिर नैना के औफिस से कौल आ गई तो वह व्यस्त हो गई. आरती जानती थी कि ज़ोया भी अब औफिस के काम करेगी, वह जल्दी ही अपने फ्लैट में लौट आई.

‘फ्लौवर वैली’ अभी नई ही बनी थी, यहां अभी बहुत कम दुकानें थीं. अभी तो बिल्डिंग्स में सारे फ्लैट्स में लोग रहने भी नहीं आए थे. आरती के फ्लोर पर 4 फ्लैट थे, जिन में से 2 अभी बंद ही थे. इस सामने वाले फ्लैट में 27 साल की नैना और ज़ोया कुछ महीने पहले ही रहने आई थीं. दोनों अभी अविवाहित थीं. ज़ोया लखनऊ की थी. नैना दिल्ली से आई थी. दोनों ही खूब सुंदर, हंसमुख और बेहद मिलनसार स्वभाव की थीं. आते ही उन की दोस्ती आरती से हो गई थी. आरती उन दोनों से मिल कर बहुत खुश थी. बाकी लोग अभी इस बिल्डिंग में महाराष्ट्रियन थे. भाषा की समस्या और अलग तरह के स्वभाव, व्यवहार के कारण आरती और किसी से खुल नहीं पाई थी. वह यहां अकेलापन महसूस कर रही थी कि ये दोनों लड़कियां जैसे ही रहने आईं, आरती का मन खिल उठा था.

दोनों ही किरायदार थीं और एक ही औफिस में काम करती थीं. दोनों के धर्म अलग थे. लेकिन दोनों ऐसे रहतीं जैसी सगी बहनें हों. अब आरती के साथ भी उन की खूब पटने लगी थी. शिव बनारस के एक कट्टर परिवार का पुरातनपंथी सोच वाला लड़का था. उसे मुंबई में अकेले रहने वाली इन लड़कियों पर अकसर झुंझलाहट ही होती रहती. वह एक पढ़ालिखा, अच्छे पद पर काम जरूर करता था पर मन से बहुत पुरानी सोच का लड़का था. उस की भी कोई गलती नहीं थी क्योंकि वह जिस परिवार में पलाबढ़ा था, वहां हर चीज अलग कसौटी पर परखी जाती. उस के परिवार ने आरती को पसंद ही इसलिए किया था क्योंकि आरती का परिवार भी घर की औरतों को धर्म और आस्था के नाम पर पुरानी जंजीरों में बांध कर रखने वाला था. आज़ादी देने के पक्ष में बिलकुल नहीं था.

आरती तो जब से इन दोनों लड़कियों से मिली थी, उस के सोचने का, जीने का नजरिया ही बदल गया था. नैना और ज़ोया के जीवन के ढंग को देख कर आरती रोज हैरान होती. एक दिन तो वह सामने वाले फ्लैट में गई तो लिविंगरूम में ही एक कोने की टेबल पर ज़ोया की औफिस की वीडियोकौल चल रही थी. ज़ोया ने बहुत ही अच्छी वाइट शर्ट पहन रखी थी. नैना किचन में थी. नैना ने बताया, ‘आज इस की अपने बौस से मीटिंग चल रही है.’

पर आरती को बहुत हंसी आ रही थी. ज़ोया ने शर्ट के नीचे बहुत ही छोटी शौर्ट्स पहनी हुई थी, बोली, ‘यह बताओ, तुम लोग नीचे क्याक्या पहन कर बैठी रहती हो, किसी काम से उठना पड़ जाए सब के सामने तो?’

नैना खुल कर हंसी, ‘तो क्या? औफिस वाले भी देख लेंगे कि कितनी हौट लड़की है उन के औफिस में.’ इस के बाद तो आरती उन के स्वभाव, व्यवहार, खुल कर जीने की अदा पर निसार होती रहती.

शिव और आरती ने अपने घरों में एक अलग माहौल देखा था. शिव तो फिर भी औफिस में मुंबई की वर्किंग लड़कियों के संपर्क में था. आरती के लिए नैना और ज़ोया जैसे 2 परियां सी थीं, अलग ही दुनिया में रहतीं, बड़े मजे से दोनों स्वीकार करतीं, ‘देखो भाई, आरती, घर के कामवाम तो हमें इतने आते नहीं, जो बनता है, खा लेते हैं. बस, तुम्हारे जैसे पड़ोसी मिलते रहें, अच्छी गुजर जाएगी.’

शिव ने यह बात सुन ली थी, अंदर आ कर बड़बड़ाता रहा, ‘बस बातें करवा लो इन से, कुछ नहीं आता, यह भी बड़ी शान से बताती हैं. पता नहीं, क्या लड़कियां हैं ये, इन के मांबाप ने इन्हें सिखाया क्या है? बस, छोड़ दिया पढ़ालिखा कर पैसे कमाने के लिए.’

आरती शांतिप्रिय थी. शिव की हर बात को मुसकरा कर टाल देती. यह सोचती कि शिव की अपनी सोच है. उसे भी अपनी बात कहने का पूरा हक़ है. दरवाजे की घंटी बजी, तो शिव ने ही दरवाजा खोला, कोरोना के चक्कर में सब घर से ही काम कर रहे थे, नैना थी, ‘अरे, शिवजी, आप? आरती कहां है?’

”वाशरूम में.”

शिव को उन के शिवजी कहने पर बड़ी चिढ़ होती, पर कुछ कह भी नहीं सकता था. उस ने पूछा, ”कुछ काम था?” फिर मन में सोचा, काम ही होगा, सारा दिन काम से ही तो आती रहती हैं. नैना ने मुसकराते हुए कहा, ”हां शिव जी, काम ही है, हम तो काम से ही आते हैं. अभी आप यही सोच रहे थे न? फिर खुद ही हंस पड़ी, ”कुछ सामान लेने जाएंगे तो हमारी भी ये एकदो चीजें ले आना.” इतने में पीछे से ज़ोया की आवाज आई, “नैना, हैंडवाश भी लिख दे लिस्ट में, ख़त्म हो रहा है.”

इतने में आरती भी आ गई, ”अरे, अंदर आओ न, अब तो औफिस का पैकअप हो गया होगा न?”

”अरे, कहां, पैकअप! वर्क फ्रौम होम में तो काम ख़त्म ही नहीं होता. अभी एक मीटिंग है हम दोनों की, आरती. बस, इस लिस्ट में हमारा हैंडवाश लिख लेना, थैंक यू,शिव जी. आप को हम बड़ी तकलीफ देते हैं, क्या करें, इस समय दुकान वाला होम डिलीवरी कर नहीं रहा है, कल औनलाइन सामान मंगवाने में कुछ चीजें भूल गए हैं. चलो, बाय, मीटिंग है हमारी.” फिर जातेजाते पलटी, ”अरे आरती, एक बात बताओ, दूध बहुत रखा है हमारा, पनीर कैसे बनाएं उस का?”

शिव ने जवाब दिया, ”आजकल तो गूगल और यूट्यूब पर सब पता चल जाता है न, अकेले रहने वालों के लिए यह बड़ी हैल्प है.”

नैना हंसी, ”आरती ही गूगल है हमारी, हमें तो आरती से पूछना अच्छा लगता है. ऐसा लगता है जैसे किसी घर के मैंबर से बात करते हैं.”

उस के जाने के बाद शिव अंदर आ कर बोला, “क्या लड़कियां हैं, बस बातें करवा लो इन से.”

आरती ने उस के सीने से लगते हुए कहा, ”कुछ मत कहा करो उन्हें, अच्छी हैं दोनों.”

”हां, मुझे लिस्ट पकड़ा कर चली जाती हैं. आजकल अपना सामान लाने का टाइम नहीं है, इन का और ले कर दूं.”

और यह ज़ोया तो है भी दूसरे धर्म की, नैना तो फिर भी चलो, पंजाबी है, पर यह ज़ोया से मैं कम्फर्टेबल नहीं हो पाता.”

आरती का चेहरा उतर गया तो शिव चुपचाप सामान लेने चला गया. आरती की ज़ोया और नैना से दोस्ती दिन पर दिन पक्की होती जा रही थी पर शिव को उन दोनों की लाइफस्टाइल से बड़ी दिक्कत थी. उस का मन होता था कि आरती से कहे कि कोई जरूरत नहीं इतना मिक्स होने की, पर आरती को उन के साथ खुश, हंसतेबोलते देख वह चुप रह जाता.

अब कोरोना की दूसरी वेव शुरू हो गई थी. इस नई सोसाइटी में पहले से ही अभी लोग कम थे. जो थे वे अब घरों में बंद होते जा रहे थे. हर तरफ एक डर का माहौल था. नैना और ज़ोया भी अब कम दिखने लगी थीं. शिव लैपटौप में व्यस्त रहता. आरती का चेहरा कुछ बुझा सा रहता. अचानक शिव कोरोना की चपेट में आ गया. बुखार और गले के दर्द से जब वह सुबह जागा तो समझ गया कि कोरोना के लक्षण हैं. उस की तबीयत काफी खराब होने लगी.

आरती घबरा गई. उस ने इंटरकौम से नैना को सूचना दी और रोने लगी.

नैना ने कहा, ”जरा भी परेशान न होना, हम हैं न. बोलो, किस डाक्टर को दिखाना है?”

”अभी तक तो जरूरत ही नहीं पड़ी थी कभी किसी डाक्टर की. सुना है, सोसाइटी के आसपास अभी कोई डाक्टर है भी नहीं, क्या करूं?”

”तुम हम पर छोड़ दो सबकुछ, हम सब कर लेंगे.”

नैना ने ज़ोया से बात की. सब से पहले शिव का टैस्ट करवाना जरूरी था. नैना ने दिल्ली में अपने डाक्टर कजिन रवि से सलाह ली और फिर आरती की डोरबैल बजा दी. आरती की आंखें रोरो कर लाल थीं. ज़ोया भी नैना के साथ ही दरवाजे पर खड़ी थी, कहा, ”यह इतना रोने की क्या जरूरत है, तुम्हारे शिव जी अभी ठीक हो जाएंगे. चिंता मत करो. उन्हें तैयार करो. हम उन का टैस्ट करवाने ले जा रहे हैं. हम ने सब समझ लिया है कि क्या करना है.”

नैना और ज़ोया ने अपनेआप को पूरी तरह से कवर कर रखा था. आरती ने कहा, ”कैसे ले कर जाओगी?”

”मुझे तो ड्राइविंग नहीं आती, पर ज़ोया के पास कार चलने का लाइसैंस है. अपने शिवजी की कार की चाबी दो. ज़ोया कार चला लेगी. तुम घर में रुको. हम सब करवा लेंगे.” फिर अचानक नैना ने कहा, ”तुम तो ठीक हो न?”

आरती ने कहा, ”मेरा गला तो दिन से दुख रहा है और शरीर में दर्द है.”

”ओह्ह, तुम भी चलो, टैस्ट जरूरी हैं.”

आरती और शिव को पीछे बिठा कर नैना और ज़ोया आगे बैठ गईं. नैना के हाथ में ही सैनिटाइज़र था. शिव ने कमजोर आवाज में कहा, ”आप दोनों को हमारे साथ रहने का रिस्क नहीं लेना चाहिए.”

नैना ने कहा, ‘’अभी आप यह सब न सोचें, आप दोनों के लिए रिस्क लेने से हमें कोई डर नहीं लग रहा है.”

टैस्ट हो गए, दोनों पौजिटिव थे. हौस्पिटल्स में जगह नहीं थी. नैना ने किसी तरह एक डाक्टर से वीडियोकौल करवा कर आरती और शिव से बात करवाई. डाक्टर ने दवाई और बाकी चीजों के निर्देश दे दिए. नगरपालिका वाले आ कर शिव और आरती के फ्लैट के दरवाजे पर आ कर स्टीकर लगा कर चले गए. दोनों से फ्लैट के बाहर ही नैना ने कहा, ”आरती, खाने की चिंता मत करना. हम अभी पेपर प्लेट्स का इंतज़ाम कर लेंगे. हमें जो भी आता है, हम खाना बना कर देते रहेंगे. किसी भी टाइम किसी भी चीज की जरूरत हो, हम हैं. तुम लोग, बस, आराम करो. अपने खानेपीने की चिंता बिलकुल न करना. एक डस्टबिन बैग में पेपर प्लेट्स इकट्ठा करती रहना. फिर हमें दे देना. हम कचरे में डाल देंगे.”

नैना और ज़ोया सुबह से ले कर चाय, नाश्ता, लंच, डिनर सबकुछ शिव और आरती के लिए बना रही थीं. उन के फ्लैट के बाहर एक छोटा सा स्टूल रख दिया था. उस पर ही दूर से वे खाना रख देतीं. आरती या शिव कोई भी आ कर उठा लेता. इंटरकौम था ही, उस पर हालचाल जान कर, कोई जरूरत पूछ कर नैना और ज़ोया अपनी किसी भी चीज की चिंता किए बिना आरती और शिव की सेवा में लगी थीं. करीब 10 दिनों बाद दोनों को कुछ बेहतर लगा. कुछ रुक कर ज़ोया फिर दोनों को टैस्टिंग के लिए ले गई. दोनों की रिपोर्ट नैगेटिव आई. चारों बहुत खुश हुए. आरती को बहुत कमजोरी थी. शिव को खांसी अभी भी बहुत थी. दोनों काफी कमजोर हो गए थे. ज़ोया ने कहा, ”अभी कुछ दिन और आराम कर लो, आरती. हम चारों का खाना बनाते रहेंगे अभी. अब तो शायद हमारा हाथ कुकिंग में कुछ ठीक हो गया है न. तुम्हारे चक्कर में पहली बार यूट्यूब पर देखदेख कर अच्छी तरह बनाने की कोशिश कर रहे थे. ये कुकिंग तो हमें हमारे पेरैंट्स भी नहीं सिखा पाए जो तुम दोनों ने सिखा दी.”

शिव इस बात पर खुल कर हंसा तो नैना ने कहा, ”अरे, आप हंसते भी हैं!”

शिव झेंप गया. आरती की आंखें भीग गई थीं. वह बोली, ”तुम लोगों ने जो किया, हम उसे कभी भुला नहीं पाएंगे.”

ज़ोया ने प्यार से झिड़का, ”एनर्जी अभी नहीं है तो ये बेकार की बातें मत करो. अभी कुछ दिन और आराम कर लो. कमजोरी अभी काफी दिन रहेगी.”

लगभग एक महीना ज़ोया और नैना ने दोनों की बहुत सेवा की, खूब ध्यान रखा. दोनों अब ठीक हो रहे थे. एक दिन संडे को आरती की डोरबैल बजी. शिव ने दरवाजा खोला. ज़ोया थी. शिव ने स्नेह से कहा, ”आओ, ज़ोया.”

”नहीं, जरा जल्दी है, कुछ सब्जी लेने जा रही हूं, आरती, कुछ चाहिए?”

शिव ने कहा, ”अरे, मैं अब ठीक हूं, मैं ले आऊंगा. तुम्हें भी कुछ चाहिए तो बता दो.”

”पक्का? आप इतने ठीक हैं कि बाहर जा कर कुछ लाएंगे?”

”हां, काफी ठीक लग रहा है. आजकल दुकानें थोड़ी देर के लिए ही खुलती हैं, भीड़ हो सकती है, तुम लोग अभी मत जाओ, मैं ले आऊंगा. तुम लोगों को भी कोरोना से बचना है.”

”तो ठीक है, यह लिस्ट है और अपने पास रख लेना सामान. मैं थोड़ा और सो लेती हूं फिर. उठ कर ले लेंगे सामान. नैना भी सोई हुई है,’’ फिर अंदर झांकते हुए बोली, ”अरे आरती, तुम क्या बनाने लगी आज?”

”पोहा बना रही हूं, तुम लोगों के लिए भी.”

”वाह, बढ़िया, सुनो, गरमगरम ही दे देना फिर, खा कर ही सो जाऊंगी,’’ कह कर ज़ोया जोर से हंसी.

ज़ोया सामने वाले अपने फ्लैट में चली गई. शिव के होंठों पर आज आरती को देख कर जो मुसकान उभरी, उसे देख आरती का दिल आज अनोखी ख़ुशी से भर उठा था.

फर्स्ट ईयर: दोस्ती के पीछे छिपी थी प्यार की लहर

कालेज शुरू हुए कुछ दिन बीते थे मगर फिर भी पहले साल के विद्यार्थियों में हलचल कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी. युवा उत्साह का तकाजा था और कुछ कालेजलाइफ का शुरुआती रोमांच भी था. एक अजीब सी लहर चल रही थी क्लास में, दोस्ती की शुरुआत की. हालांकि दोस्ती की लहर तो ऊपरी तौर पर थी, लेकिन सतह के नीचे कहीं न कहीं प्यार वाली लहरों की भी हलचल जारी थी. दोस्ती की लहर तो आप ऊपरी तौर पर हर जगह देख सकते थे, लेकिन प्यार की लहर देखने के लिए आप को किसी सूक्ष्मदर्शी की जरूरत पड़ सकती थी. कनखियों से देखना, इक पल को एकदूसरे को देख कर मुसकराना, ये सब आप खुली आंखों से कहां देख सकते हैं. जरा ध्यान देना पड़ता है, हुजूर. मैं खुद कुछ उलझन में था कि वह मुझे देख कर मुसकराती है या फिर मुझे कनखियों से देखती है. खैर, मैं ठहरा कवि, कहानीकार. मेरे अतिगंभीर स्वभाव के कारण जो युवतियां मुझ में शुरू में रुचि लेती थीं वे अब दूसरे ठिठोलीबाज युवकों के साथ घूमनेफिरने लगी थीं. यहां मेरी रुचि का तो कोई सवाल ही नहीं था, भाई, मेरे लिए भागते चोर की लंगोटी ही काफी थी, लेकिन मेरे पास तो उस लंगोटी का भी विकल्प नहीं छूटा था.

लेकिन कुछ लड़कों का कनखियों से देखने व मुसकराने का सिलसिला जरा लंबा खिंच गया था और प्यार का धीमाधीमा धुआं उठने लगा था, अब वह धुआं कच्चा था या पक्का, यह तो आग सुलगने के बाद ही पता चलना था. खैर, उन सहपाठियों में मेरा दोस्त भी शामिल था. गगन नाम था उस का. वह उस समय किसी विनीशा नाम की लड़की पर फिदा हो चुका था. दोनों का एकदूसरे को कनखियों से देखने का सिलसिला अब मुसकराहटों पर जा कर अटक चुका था. मैं इतना बोरिंग और पढ़ाकू था कि मुझे अपने उस मित्र के बारे में कुछ पता ही नहीं चल सकता था. खैर, उस ने एक दिन मुझे बता ही दिया.

’’यार कवि, तुझे पता है विनीशा और मेरा कुछ चल रहा है,’’ गगन ने हलका सा मुसकराते हुए मुझे बताया था. ’’कौन विनीशा?’’ मेरा यह सवाल था, क्योंकि मैं अपने संकोची व्यवहार के कारण क्लास की सभी लड़कियों का नाम तक नहीं जानता था.

पास ही हामिद भी खड़ा था, जो मेरे बाद गगन का क्लास में सब से अच्छा दोस्त था. उस ने बताया, ’’अरे, वह जो आगे की बैंच पर बैठती है,’’ हामिद ने मुझे इशारा किया. ’’कौन निशा?’’ मैं ने अंदाजा लगाया, क्योंकि मैं खुद शुरू में उस लड़की में रुचि लेता था, इसलिए उस का नाम मुझे मालूम था.

’’नहीं यार, निशा के पास जो बैठती है,’’ गगन ने फिर मुसकराते हुए बताया था. ’’अच्छा वह,’’ अब मैं मुसकरा रहा था, मैं अब उस लड़की को चेहरे से पहचान गया था. ’’उस का नाम विनीशा है,’’ मैं ने हलका सा आश्चर्य व्यक्त किया था.

’’हां यार, वही,’’ गगन ने हलका भावुक हो कर कहा था. ’’अच्छा, तो मेरे लायक कोई काम इस मामले में, मैं ने हंसते हुए पूछा था.

’’नहीं यार, तू तो मेरा दोस्त है. तुझे तो मैं अपनी पर्सनल फीलिंग बताऊंगा ही,’’ गगन ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा था. वह पल ऐसा था, जिस में भले ही विनीशा का जिक्र था, लेकिन मुझे हमेशा वह पल मेरा अपना ही लगा. वह एहसास था एक अच्छी और सच्ची दोस्ती की शुरुआत का. मैं मुसकराया और धीमे से बोला, ’’मेरी विशेज हमेशा तुम्हारे साथ हैं, तो मैं चलूं. मुझे लाइब्रेरी जाना है.’’

’’हां, चल ठीक है,’’ गगन के इतना कहते ही मैं लाइब्रेरी की ओर चल दिया. मुझे किसी विनीशा की फिक्र नहीं थी लेकिन एक ताजा सा खयाल था नई दोस्ती की शुरुआत का. वह क्लास की लहर कहीं न कहीं मुझ में भी दौड़ रही थी.

अगले दिन जब मैं कालेज के हाफटाइम में कुछ समय के लिए कालेज की सीढि़यों पर बैठा था, तो राजन मिला. ’’हाय राजन,’’ मैं इतना कह कर कालेज के गेट के बाहर वाली सड़क के पार मैदान में देखने लगा.

तभी मेरी नजरें मैदान में जाने से पहले उस सड़क पर ठहर गईं जहां गगन निशा के साथ टहल रहा था. मेरे मन में कई सवाल उठे कि गगन तो विनीशा को पसंद करता है तो फिर निशा के साथ क्या कर रहा है. खैर, मैं ने हाफटाइम के बाद गगन के क्लास में आने पर उस से पूछा, ’’यार गगन, तू तो कह रहा था कि तू विनीशा को पसंद करता है, फिर निशा?’’

’’अरे, मैं विनीशा के बारे में ही उस से बात कर रहा था,’’ गगन ने गंभीरता से बताया. ’’फिर,’’ मैं ने पूछा था.

’’वह बता रही थी कि विनीशा का पहले से ही कोई बौयफ्रैंड है,’’ उस ने उतनी ही गंभीरता से बताया. ’’हूं… अभी,’’ मैं ने भी गंभीरता व्यक्त की थी.

’’मैं यार, फिर भी उस से एक बार मिलना चाहता हूं,’’ गगन में कहीं न कहीं उम्मीद अभी भी दबी नहीं थी. ’’ठीक है, फिर बताना. अच्छा हो कि निशा की बात गलत हो,’’ मैं ने मुसकराते हुए कहा, फिर पूरी क्लास पढ़ाई में लग गई, क्योंकि हमारे टीचर अब थोड़े सख्ती बरत रहे थे.

अगले दिन तक गगन विनीशा से मिल चुका था और मुझे बता रहा था, ’’यार, वह तो मुझे कन्फ्यूज कर रही है, उस का बौयफ्रैंड है तो वह सीधीसीधी बात क्यों नहीं कहती?’’ ’’हो सकता है वह अपने बौयफ्रैंड से छुटकारा पाना चाहती हो, ब्रेकअप करना चाहती हो,’’ मैं ने उसे समझाया, जबकि मैं खुद इन मामलों में अनाड़ी था.

’’हां यार, देखते हैं. मैं खुद समझ नहीं पा रहा हूं,’’ गगन गंभीर था. खैर, फिर यों ही चलता रहा और आखिर में पहले सैमेस्टर की परीक्षाएं करीब आ गईं. तब तक मैं विनीशा और गगन के चक्कर को भूल ही गया था.

रिजल्ट आया, गगन पास तो हो गया था, लेकिन पूरी क्लास की अपेक्षा उसे कम नंबर मिले थे. गगन उन दिनों हामिद के साथ ज्यादा रहने लगा था. दूसरे सैमेस्टर में तो वह मेरे साथ ज्यादा रहा ही नहीं, लेकिन दूसरे साल में वह अब फिर मेरे साथ रहने लगा था. मैं ने एक दिन उस से विनीशा का जिक्र किया, तो वह बताने लगा, ’’यार, मैं ने उस लड़की की खूबियां देखी थीं, लेकिन कमियां नहीं देखी थीं. वह मुझे उलझाए बैठी थी. उस का बौयफै्रंड था तो भी वह मुझ से क्या चाह रही थी, मैं समझ नहीं पा रहा था. एक दिन वह मेरा इंतजार करती रही और मैं उस से मिलने नहीं गया.’’

’’हूं… मतलब सब ओवर,’’ मैं ने मुसकरा कर पूछा. ’’देखो कवि, एक बात बताऊं,’’ वह मुझे अकसर कवि ही कहता था, ’’तेरे और मेरे जैसे लोग इस कालेज में लाखों रुपए फीस दे कर कोई लक्ष्य ले कर आए हैं और ये सब फालतू चीजें हमें अपने लक्ष्य से भटका देती हैं.’’

मैं उसे ध्यान से सुन रहा था और गौर भी कर रहा था. ’’यार, तू ने देखा न, पिछले सैमेस्टरों में मेरा क्या रिजल्ट रहा,’’ वह मेरी तरफ देख रहा था.

’’अब तू ही बता. एक लड़की के प्यार के पीछे मैं ने कितना कुछ खो दिया,’’ वह गंभीर था. ’’हां यार, मैं तुझे पहले ही कहने वाला था, पर मुझे लगा कि तू बुरा मान जाएगा,’’ मैं ने आज अपने दिल की बात कह दी.

’’नहीं यार, तू तो मेरा दोस्त है. अब तो मैं ने तय कर लिया है कि फालतू यारीदोस्ती व प्यारमुहब्बत में पड़ूंगा ही नहीं और बस, तेरे और दोचार लोगों के साथ ही रहूंगा,’’ उस ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा, ’’दोस्त, तुम मिडिल क्लास पर्सन हो, और तुम आज को ऐंजौय करने की नहीं बल्कि भविष्य संवारने की सोचते हो.’’ ’’वह तो है,’’ मैं ने मुसकरा कर कहा.

’’और मैं भी फालतू बातों से ध्यान हटा कर अपना भविष्य संवारना चाहता हूं,’’ उस का हाथ मेरे कंधे पर ही था. वह भावुक हो गया था. हमारी दोस्ती की यह लहर मुझे अभी भी ताजी महसूस हो रही थी. उस के बाद से अब तक वह मेरे साथ ही रहता है. कालेज में विनीशा की तरफ देखता भी नहीं है. क्लास में खाली समय में भी पढ़ता रहता है.

वह समय पर एनसीसी जौइन नहीं कर पाया था, लेकिन अपनी मेहनत के बलबूते पर अब वह एनसीसी में न सिर्फ सिलैक्ट हो गया, बल्कि एक कैंप भी अटैंड कर के आया है. कैंप में फायरिंग सीखने के बाद अब वह एक और कैंप में एयर फ्लाइंग के लिए भी जाने वाला है. उस का लक्ष्य आर्मी या पुलिस में जाना है और वह उस के करीब भी नजर आने लगा है. गगन एक विशालकाय समुद्र की लहरों को चीरते हुए सतह पर आने लगा है, जिस में कई नौजवान गोते खाते रहते हैं. फर्स्ट ईयर के बाद अब सैकंड ईयर उस का ज्यादा मजे में व उद्देश्यपूर्ण ढंग से बीत रहा है.

गलतफहमी: क्या था रिया का जवाब

आज नौकरी का पहला दिन था. रिया ने सुबह उठ कर तैयारी की और औफिस के लिए निकल पड़ी. पिताजी के गुजरने के बाद घर की सारी जिम्मेदारी उस पर ही थी. इंजीनियरिंग कालेज में अकसर अव्वल रहने वाली रिया के बड़ेबड़े सपने थे. लेकिन परिस्थितिवश उसे इस राह पर चलना पड़ा था. इस के पहले छोटी नौकरी में घर की जिम्मेदारियां पूरी न हो पाती थीं. ऐसे में एक दिन औनलाइन इंटरव्यू के इश्तिहार पर उस का ध्यान गया. उस ने फौर्म भर दिया और उस कंपनी में उसे चुन लिया गया.

रिया जब औफिस में पहुंची तो औफिस के कुछ कर्मी थोड़े समय से थोड़ा पहले ही आ गए थे. वहीं, रिसैप्शन पर बैठी अंजली ने रिया से पूछा, ‘‘गुडमौर्निंग मैडम, आप को किस से मिलना है?’’

‘‘मैं इस कंपनी में औनलाइन इंटरव्यू से चुनी गईर् हूं. आज से मु झे औफिस जौइन करने लिए कहा गया था, यह लैटर…’’

‘‘ओके, कौंग्रेट्स. आप का इस कंपनी में स्वागत है. थोड़ी देर बैठिए. मैं मैनेजर साहब से पूछ कर आप को बताती हूं.’’

रिया वहीं बैठ कर कंपनी का निरीक्षण करने लगी. उसी वक्त कंपनी में काफी जगह लगा हुआ आर जे का लोगो उस का बारबार ध्यान खींच रहा था. उतने में अंजली आई, ‘‘आप को मैनेजर साहब ने बुलाया है. वे आप को आगे का प्रोसीजर बताएंगे.’’

‘‘अंजली मैडम, एक सवाल पूछूं? कंपनी में जगहजगह आर जे लोगो क्यों लगाया गया है?’’

‘‘आर जे लोगो कंपनी के सर्वेसर्वा मजूमदार साहब के एकलौते सुपुत्र के नाम के अक्षर हैं. औनलाइन इंटरव्यू उन का ही आइडिया था. आज उन का भी कंपनी में पहला दिन है. चलो, अब हम अपने काम की ओर ध्यान दें.’’

‘‘हां, बिलकुल, चलो.’’

कंपनी के मैनेजर, सुलझे हुए इंसान थे. उन की बातों से और काम सम झाने के तरीके से रिया के मन का तनाव काफी कम हुआ. उस ने सबकुछ समझ लिया और काम शुरू कर लिया. शुरू के कुछ दिनों में ही रिया ने अपने हंसमुख स्वभाव से और काम के प्रति ईमानदारी से सब को अपना बना लिया. लेकिन अभी तक उस की कंपनी के मालिक आर जे सर से मुलाकात नहीं हुई थी. कंपनी की मीटिंग हो या और कोई अवसर, जहां पर उस की आर जे सर के साथ मुलाकात होने की गुंजाइश थी, वहां उसे जानबू झ कर इग्नोर किया जा रहा था. ऐसा क्यों, यह बात उस के लिए पहेली थी.

एक दिन रोज की फाइल्स देखते समय चपरासी ने संदेश दिया, ‘‘मैनेजर साहब, आप को बुला रहे हैं.’’

‘‘आइए, रिया मैडम, आप से काम के बारे में बात करनी थी. आज आप को इस कंपनी में आए कितने दिन हुए?’’

‘‘क्यों, क्या हुआ सर? मैं ने कुछ गलत किया क्या?’’

‘‘गलत हुआ, ऐसा मैं नहीं कह सकता, मगर अपने काम की गति बढ़ाइए और हां, इस जगह हम काम करने की तनख्वाह देते हैं, गपशप की नहीं. यह ध्यान में रखिए. जाइए आप.’’

रिया के मन को यह बात बहुत बुरी लगी. वैसे तो मैनेजर साहब ने कभी भी उस के साथ इस तरीके से बात नहीं की थी लेकिन वह कुछ नहीं बोल सकी. अपनी जगह पर वापस आ गई.

थोड़ी देर में चपरासी ने उस के विभाग की सारी फाइलें उस की टेबल पर रख दीं. ‘‘इस में जो सुधार करने के लिए कहे हैं वे आज ही पूरे करने हैं, ऐसा साहब ने कहा है.’’

‘‘लेकिन यह काम एक दिन में कैसे पूरा होगा?’’

‘‘बड़े साहब ने यही कहा है.’’

‘‘बड़े साहब…?’’

‘‘हां मैडम, बड़े साहब यानी अपने आर जे साहब, आप को नहीं मालूम?’’

अब रिया को सारी बातें ध्यान में आईं. उस के किए हुए काम में आर जे सर ने गलतियां निकाली थीं, हालांकि वह अब तक उन से मिली भी नहीं थी. फिर वे ऐसा बरताव क्यों कर रहे थे, यह सवाल रिया को परेशान कर रहा था.

उस ने मन के सारे विचारों को  झटक दिया और काम शुरू किया. औफिस का वक्त खत्म होने को था, फिर भी रिया का काम खत्म नहीं हुआ था. उस ने एक बार मैनेजर साहब से पूछा, मगर उन्होंने आज ही काम पूरा करने की कड़ी चेतावनी दी. बाकी सारा स्टाफ चला गया. अब औफिस में रिया, चपरासी और आर जे सर के केबिन की लाइट जल रही थी यानी वे भी औफिस में ही थे. काम पूरा करतेकरते रिया को काफी वक्त लगा.

उस दिन के बाद रिया को तकरीबन हर दिन ज्यादा काम करना पड़ता था. उस की बरदाश्त करने की ताकत अब खत्म हो रही थी. एक दिन उस ने तय किया कि आज अगर उसे हमेशा की तरह ज्यादा काम मिला तो सीधे जा कर आर जे सर से मिलेगी. हुआ भी वैसा ही. उसे आज भी काम के लिए रुकना था. उस ने काम बंद किया और आर जे सर के केबिन की ओर जाने लगी. चपरासी ने उसे रोका, मगर वह सीधे केबिन में घुस गई.

‘‘सौरी सर, मैं बिना पूछे आप से मिलने चली आई. क्या आप मु झे बता सकेंगे कि निश्चितरूप से मेरा कौन सा काम आप को गलत लगता है? मैं कहां गलत कर रही हूं? एक बार बता दीजिए. मैं उस के मुताबिक काम करूंगी, मगर बारबार ऐसा…’’

रिया के आगे के लफ्ज मुंह में ही रह गए क्योंकि रिया केबिन में आई थी तब आर जे सर कुरसी पर उस की ओर पीठ कर के बैठे थे. उन्होंने रिया के शुरुआती लफ्ज सुन लिए थे. बाद में उन की कुरसी रिया की ओर मुड़ी ‘‘सर…आप…तुम…राज…कैसे मुमकिन है? तुम यहां कैसे?’’ रिया हैरान रह गई. उस का अतीत अचानक उस के सामने आएगा, ऐसी कल्पना भी उस ने नहीं की थी. उसे लगने लगा कि वह चक्कर खा कर वहीं गिर जाएगी.

‘‘हां, बोलिए रिया मैडम, क्या तकलीफ है आप को?’’

राज के इस सवाल से वह अतीत से बाहर आई और चुपचाप केबिन के बाहर चली गई. उस का अतीत ऐसे अचानक उस के सामने आएगा, यह उस ने सोचा भी नहीं था.

आर जे सर कोई और नहीं उस का नजदीकी दोस्त राज था. उस दोस्ती में प्यार के धागे कब बुन गए, यह दोनों सम झे नहीं थे. रिया को वह कालेज का पहला दिन याद आया. कालेज के गेट के पास ही सीनियर लड़कों के एक गैंग ने उसे रोका था.

‘आइए मैडम, कहां जा रही हो? कालेज के नए छात्र को अपनी पहचान देनी होती है. उस के बाद आगे बढि़ए.’

रिया पहली बार गांव से पढ़ाई के लिए शहर आई थी और आते ही इस सामने आए संकट से वह घबरा गई.

‘अरे हीरो, तू कहां जा रहा है? तु झे दिख नहीं रहा यहां पहचान परेड चल रही है. चल, ऐसा कर ये मैडम जरा ज्यादा ही घबरा गई हैं. तू इन्हें प्रपोज कर. उन का डर भी चला जाएगा.’

अभीअभी आया राज जरा भी घबराया नहीं. उस ने तुरंत रिया की ओर देखा. एक स्माइल दे कर बोला. ‘हाय, मैं राज. घबराओ मत. बड़ेबड़े शहरों में ऐसी छोटीछोटी बातें होती रहती हैं.’

रिया उसे देखती ही रह गई.

‘आज हमारे कालेज का पहला दिन है. इस वर्षा ऋतु के साक्षी से मेरी दोस्ती को स्वीकार करोगी.’ रिया के मुंह से अनजाने में कब ‘हां’ निकल गई यह वह सम झ ही नहीं पाई. उस के हामी भरने से सीनियर गैंग  झूम उठा.

‘वाह, क्या बात है. यह है रियल हीरो. तुम से मोहब्बत के लैसंस लेने पड़ेंगे.’

‘बिलकुल… कभी भी…’

रिया की ओर एक नजर डाल कर राज कालेज की भीड़ में कब गुम हुआ, यह उसे मालूम ही नहीं हुआ. एक ही कालेज में, एक ही कक्षा में होने की वजह से वे बारबार मिलते थे. राज अपने स्वभाव के कारण सब को अच्छा लगता था. कालेज की हर लड़की उस से बात करने के लिए बेताब रहती थी. मगर राज किसी दूसरे ही रिश्ते में उल झ रहा था.

यह रिश्ता रिया के साथ जुड़ा था. एक अव्यक्त रिश्ता. उस का शांत स्वभाव, उस का मनमोहता रूप जिसे शहर की हवा छू भी नहीं पाई थी. उस का यही निरालापन राज को उस की ओर खींचता था.

एक दिन दोनों कालेज कैंटीन में बैठे थे. तब राज ने कहा, ‘रिया, तुम कितनी अलग हो. हमारा कालेज का तीसरा साल शुरू है. लेकिन तुम्हें यहां के लटके झटके अभी भी नहीं आते…’

‘मैं ऐसी ही ठीक हूं. वैसे भी मैं कालेज में पढ़ने आई हूं. पढ़ाई पूरी करने के बाद मु झे नौकरी कर के अपने पिताजी का सपना पूरा करना है. उन्होंने मेरे लिए काफी कष्ट उठाए हैं.’

रिया की बातें सुन कर राज को रिया के प्रति प्रेम के साथ आदर भी महसूस हुआ. तीसरे साल के आखिरी पेपर के समय राज ने रिया को बताया, ‘मु झे तुम्हें कुछ बताना है. शाम को मिलते हैं.’ हालांकि उस की आंखें ही सब बोल रही थीं. रिया भी इसी पल का बेसब्री से इंतजार कर रही थी. इसी खुशी में वह होस्टल आई. मगर तभी मैट्रन ने बताया, ‘तुम्हारे घर से फोन था. तुम्हें तुरंत घर बुलाया है.’

रिया ने सामान बांधा और गांव की ओर निकल पड़ी. घर में क्या हुआ होगा, इस सोच में वह परेशान थी. इन सब बातों में वह राज को भूल गई. घर पहुंची तो सामने पिताजी का शव, उस सदमे से बेहोश पड़ी मां और रोता हुआ छोटा भाई. अब किसे संभाले, खुद की भावनाओं पर कैसे काबू पाए, यह उस की सम झ में नहीं आ रहा था. एक ऐक्सिडैंट में उस के पिताजी का देहांत हो गया था. घर में सब से बड़ी होने की वजह से उस ने अपनी भावनाओं पर बहुत ही मुश्किल से काबू पाया.

इस घटना के बाद उस ने पढ़ाई आधी ही छोड़ दी और एक छोटी नौकरी कर घर की जिम्मेदारी संभाली.

इधर राज बेचैन हो गया. सारी रात रिया का इंतजार करता रहा. मगर वह आई नहीं. उस ने कालेज, होस्टल सब जगह ढूंढ़ा मगर उस का कुछ पता नहीं चला. रिया ने ही ऐसी व्यवस्था कर रखी थी. वह राज पर बो झ नहीं बनना चाहती थी. पर राज इस सब से अनजान था. उस के दिल को ठेस पहुंची थी. इसलिए उस ने भी कालेज छोड़ दिया और आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चला गया.

‘‘मैडम, आप का काम हो गया क्या? मु झे औफिस बंद करना है. बड़े साहब कब के चले गए.’’

चपरासी की आवाज से रिया यादों की दुनिया से बाहर आई. उस ने सब सामान इकट्ठा किया और घर के लिए निकल पड़ी. उस के मन में एक ही खयाल था कि राज की गलतफहमी कैसे दूर करे. उसे उस का कहना रास आएगा या नहीं? वह नौकरी भी छोड़ नहीं सकती. क्या करे. इन खयालों में वह पूरी रात जागती रही.

दूसरे दिन औफिस में अंजली ने रिसैप्शन पर ही रिया से पूछा, ‘‘अरे रिया, क्या हुआ? तुम्हारी आंखें ऐसी क्यों लग रही हैं? खैरियत तो है न?’’

‘‘अरे कुछ नहीं, थोड़ी थकान महसूस कर रही हूं, बस. आज का शैड्यूल क्या है?’’

‘‘आज अपनी कंपनी को एक बड़ा प्रोजैक्ट मिला है. इसलिए कल पूरे स्टाफ के लिए आर जे सर ने पार्टी रखी है. हरेक को पार्टी में आना ही है.’’

‘‘हां, आऊंगी.’’

दू सरे दिन शाम को पार्टी शुरू हुई. रिया बस केवल हाजिरी लगा कर निकलने की सोच रही थी. राज का पूरा ध्यान उसी पर था. अचानक उसे एक परिचित  आवाज आई.

‘‘हाय राज, तुम यहां कैसे? कितने दिनों बाद मिल रहे हो. मगर तुम्हारी हमेशा की मुसकराहट किधर गई?’’

‘‘ओ मेरी मां, हांहां, कितने सवाल पूछोगी. स्नेहल तुम तो बिलकुल नहीं बदलीं. कालेज में जैसी थीं वैसी ही हो, सवालों की खदान. अच्छा, तुम यहां कैसे…?’’

‘‘अरे, मैं अपने पति के साथ आई हूं. आज उन के आर जे सर ने पूरे स्टाफ को परिवार सहित बुलाया है. इसलिए मैं आई. तुम किस के साथ आए हो?’’

‘‘मैं अकेला ही आया हूं. मैं ही तुम्हारे पति का आर जे सर हूं.’’

‘‘सच, क्या कह रहे हो. तुम ने तो मु झे हैरान कर दिया. अरे हां, रिया भी इसी कंपनी में है न. तुम लोगों की सब गलतफहमियां दूर हो गईं न.’’

‘‘गलतफहमी? कौन सी गलतफहमी?’’

‘‘अरे, रिया अचानक कालेज छोड़ कर क्यों गई, उस के पिताजी का ऐक्सिडैंट में देहांत हो गया था, ये सब…’’

‘‘क्या, मैं तो ये सब जानता ही नहीं.’’

स्नेहल रिया और राज की कालेज की सहेली थी. उन दोनों की दोस्ती, प्यार, दूरी इन सब घटनाओं की साक्षी थी. उसे रिया के बारे में सब मालूम हुआ था. उस ने ये सब राज को बताया.

राज को यह सब सुन कर बहुत दुख हुआ. उस ने रिया के बारे में कितना गलत सोचा था. हालांकि, उस की इस में कुछ भी गलती नहीं थी. अब उस की नजर पार्टी में रिया को ढूंढ़ने लगी. मगर तब तक रिया वहां से निकल चुकी थी.

वह उसे ढूंढ़ने बसस्टौप की ओर भागा.

बारिश के दिन थे. रिया एक पेड़ के नीचे खड़ी थी. उस ने दूर से ही रिया को आवाज लगाई.

‘‘रिया…रिया…’’

‘‘क्या हुआ सर? आप यहां क्यों आए? आप को कुछ काम था क्या?’’

‘‘नहीं, सर मत पुकारो, मैं तुम्हारा पहले का राज ही हूं. अभीअभी मु झे स्नेहल ने सबकुछ बताया. मु झे माफ कर दो, रिया.’’

‘‘नहीं राज, इस में तुम्हारी कोई गलती नहीं है. उस समय हालात ही ऐसे थे.’’

‘‘रिया, आज मैं तुम से पूछता हूं, क्या मेरे प्यार को स्वीकार करोगी?’’

रिया की आंसूभरी आंखों से राज को जवाब मिल गया.

राज ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. उन के इस मिलन में बारिश भी उन का साथ दे रही थी. इस बारिश की  झड़ी में उन के बीच की दूरियां, गलतफहमियां पूरी तरह बह गई थीं.

दिल से दिल तक: शादीशुदा आभा के प्यार का क्या था अंजाम

‘‘हर्ष,अब क्या होगा?’’ आभा ने कराहते हुए पूछा. उस की आंखों में भय साफसाफ देखा जा सकता था. उसे अपनी चोट से ज्यादा आने वाली परिस्थिति को ले कर घबराहट हो रही थी.

‘‘कुछ नहीं होगा… मैं हूं न, तुम फिक्र मत करो…’’ हर्ष ने उस के गाल थपथपाते हुए कहा.

मगर आभा चाह कर भी मुसकरा नहीं सकी. हर्ष ने उसे दवा खिला कर आराम करने को कहा और खुद भी उसी बैड के एक किनारे अधलेटा सा हो गया. आभा शायद दवा के असर से नींद के आगोश में चली गई, मगर हर्र्ष के दिमाग में कई उल झनें एकसाथ चहलकदमी कर रही थी…

कितने खुश थे दोनों जब सुबह रेलवे स्टेशन पर मिले थे. उस की ट्रेन सुबह 8 बजे ही स्टेशन पर लग चुकी थी. आभा की ट्रेन आने में अभी

1 घंटा बाकी था. चाय की चुसकियों के साथसाथ वह आभा की चैट का भी घूंटघूंट कर स्वाद ले रहा था. जैसे ही आभा की ट्रेन के प्लेटफौर्म पर आने की घोषणा हुई, वह लपक कर उस के कोच की तरफ बढ़ा. आभा ने उसे देखते ही जोरजोर से हाथ हिलाया. स्टेशन की भीड़ से बेपरवाह दोनों वहीं कस कर गले मिले और फिर अपनाअपना बैग ले कर स्टेशन से बाहर निकल आए.

पोलो विक्ट्री पर एक स्टोर होटल में कमरा ले कर दोनों ने चैक इन किया. अटैंडैंट के सामान रख कर जाते ही दोनों फिर एकदूसरे से लिपट गए. थोड़ी देर तक एकदूसरे को महसूस करने के बाद वे नहाधो कर नाश्ता करने बाहर निकले. हालांकि आभा का मन नहीं था कहीं बाहर जाने का, वह तो हर्ष के साथ पूरा दिन कमरे में ही बंद रहना चाहती थी, मगर हर्ष ने ही मनुहार की थी बाहर जा कर उसे जयपुर की स्पैशल प्याज की कचौरी खिलाने की जिसे वह टाल नहीं सकी थी. हर्ष को अब अपने उस फैसले पर अफसोस हो रहा था. न वह बाहर जाने की जिद करता और न यह हादसा होता…

होटल से निकल कर जैसे ही वे मुख्य सड़क पर आए, पीछे से आई एक अनियंत्रित कार ने आभा को टक्कर मार दी. वह सड़क पर गिर पड़ी. कोशिश करने के बाद भी जब वह उठ नहीं सकी तो हर्ष ऐबुलैंस की मदद से उसे सिटी हौस्पिटल ले कर आया. ऐक्सरे जांच में आभा के पांव की हड्डी टूटी हुई पाई गई. डाक्टर ने दवाओं की हिदायत देने के साथसाथ 6 सप्ताह का प्लास्टर बांध दिया. थोड़ी देर में दर्द कम होते ही उसे हौस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया.

मोबाइल की आवाज से आभा की नींद टूटी. उस के मोबाइल में ‘रिमाइंडर मैसेज’ बजा. लिखा था, ‘से हैप्पी ऐनिवर्सरी टू हर्ष.’ आभ दर्द में भी मुसकरा दी. उस ने हर्ष को विश करने के लिए यह रिमाइंडर अपने मोबाइल में डाला था.

पिछले साल इसी दिन यानी 4 मार्च को दोपहर 12 बजे जैसे ही इस ‘रिमाइंडर मैसेज’ ने उसे विश करना याद दिलाया था उस ने हर्ष को किस कर के अपने पुनर्मिलन की सालगिरह विश की थी और उसी वक्त इस में आज की तारीख सैट कर दी थी. मगर आज वह चाह कर भी हर्ष को गले लगा कर विश नहीं कर पाई क्योंकि वह तो जख्मी हालत में बैड पर है. उस ने एक नजर हर्ष पर डाली और रिमाइंडर में अगले साल की डेट सैट कर दी. हर्ष अभी आंखें मूंदे लेटा था. पता नहीं सो रहा था या कुछ सोच रहा था. आभा ने दर्द को सहन करते हुए एक बार फिर से अपनी आंखें बंद कर लीं.

‘पता नहीं क्याक्या लिखा है विधि ने मेरे हिस्से में,’ सोचते हुए अब आभा का दिमाग भी चेतन हो कर यादों की बीती गलियों में घूमने लगा…

लगभग सालभर पहले की बात है. उसे अच्छी तरह याद है 4 मार्च की वह शाम. वह अपने कालेज की तरफ से 2 दिन का एक सेमिनार अटैंड करने जयपुर आई थी. शाम के समय टाइम पास करने के लिए जीटी पर घूमतेघूमते अचानक उसे हर्ष जैसा एक व्यक्ति दिखाई दिया. वह चौंक गई.

‘हर्ष यहां कैसे हो सकता है?’ सोचतेसोचते वह उस व्यक्ति के पीछे हो ली. एक  शौप पर आखिर वह उस के सामने आ ही गई. उस व्यक्ति की आंखों में भी पहचान की परछाईं सी उभरी. दोनों सकपकाए और फिर मुसकरा दिए. हां, यह हर्ष ही था… उस का कालेज का साथी… उस का खास दोस्त… जो न जाने उसे किस अपराध की सजा दे कर अचानक उस से दूर चला गया था…

कालेज के आखिरी दिनों में ही हर्ष उस से कुछ खिंचाखिंचा सा रहने लगा था और फिर फाइनल ऐग्जाम खत्म होतेहोते बिना कुछ कहेसुने हर्ष उस की जिंदगी से चला गया. कितना ढूंढ़ा था उस ने हर्ष को, मगर किसी से भी उसे हर्ष की कोई खबर नहीं मिली. आभा आज तक हर्ष के उस बदले हुए व्यवहार का कारण नहीं सम झ पाई थी.

धीरेधीरे वक्त अपने रंग बदलता रहा. डौक्टरेट करने के बाद आभा  स्थानीय गर्ल्स कालेज में लैक्चरर हो गई और अपने विगत से लड़ कर आगे बढ़ने की कोशिश करने लगी. इस बीच आभा ने अपने पापा की पसंद के लड़के राहुल से शादी भी कर ली. बच्चों की मां बनने के बाद भी आभा को राहुल के लिए अपने दिल में कभी प्यार वाली तड़प महसूस नहीं हुई. दिल आज भी हर्ष के लिए धड़क उठता था.

शादी कर के जैसे उस ने अपनी जिंदगी से एक सम झौता किया था. हालांकि समय के साथसाथ हर्ष की स्मृतियां पर जमती धूल की परत भी मोटी होती चली गई थी, मगर कहीं न कहीं उस के अवचेतन मन में हर्ष आज भी मौजूद था. शायद इसलिए भी वह राहुल को कभी दिल से प्यार नहीं कर पाई थी. राहुल सिर्फ उस के तन को ही छू पाया था, मन के दरवाजे पर न तो कभी राहुल ने दस्तक दी और न ही कभी आभा ने उस के लिए खोलने की कोशिश की.

जीटी में हर्ष को अचानक यों अपने सामने पा कर आभा को यकीन ही नहीं हुआ. हर्ष का भी लगभग यही हाल था.

‘‘कैसी हो आभा?’’ आखिर हर्ष ने ही चुप्पी तोड़ी.

‘तुम कौन होते हो यह पूछने वाले?’ आभा मन ही मन गुस्साई. फिर बोली, ‘‘अच्छी हूं… आप सुनाइए… अकेले हैं या आप की मैडम भी साथ हैं?’’ वह प्रत्यक्ष में बोली.

‘अभी तो अकेला ही हूं,’’ हर्ष ने अपने चिरपरिचित अंदाज में मुसकराते हुए कहा और आभा को कौफी पीने का औफर दिया. उस की मुसकान देख कर आभा का दिल जैसे  उछल कर बाहर आ गया.

‘कमबख्त यह मुसकान आज भी वैसी ही कातिल है,’ दिल ने कहा. लेकिन दिमाग ने सहज हो कर हर्ष का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. पूरी शाम दोनों ने साथ बिताई.

थोड़ी देर तो दोनों में औपचारिक बातें हुईं. फिर एकएक कर के संकोच की दीवारें टूटने लगीं और देर रात तक गिलेशिकवे होते रहे. कभी हर्ष ने अपनी पलकें नम कीं तो कभी आभा ने. हर्ष ने अपनेआप को आभा का गुनहगार मानते हुए अपनी मजबूरियां बताईं… अपनी कायरता भी स्वीकार की… और यों बिना कहेसुने चले जाने के लिए उस से माफी भी मांगी…

आभा ने भी ‘‘जो हुआ… सो हुआ…’’ कहते हुए उसे माफ कर दिया. फिर डिनर के बाद विदा लेते हुए दोनों ने एकदूसरे को गले लगाया और अगले दिन शाम को फिर यहीं मिलने का वादा कर के दोनों अपनेअपने होटल की तरफ चल दिए.

अगले दिन बातचीत के दौरान हर्ष ने उसे बताया कि वह एक कंस्ट्रक्शन  कंपनी में साइट इंजीनियर है और इस सिलसिले में उसे महीने में लगभग 15-20 दिन घर से बाहर रहना पड़ता है और यह भी कि उस के 2 बच्चे हैं और वह अपनी शादीशुदा जिंदगी से काफी संतुष्ट है.

‘‘तुम अपनी लाइफ से संतुष्ट हो या खुश भी हो?’’ एकाएक आभा ने उस की आंखों में  झांका.

‘‘दोनों में क्या फर्क है?’’ हर्ष ने पूछा.

‘‘वक्त आने पर बताऊंगी,’’ आभा ने टाल दिया.

आभा की टे्रन रात 11 बजे की थी और हर्ष तब तक उस के साथ ही था. दोनों ने आगे भी टच में रहने का वादा करते हुए विदा ली.

अगले दिन कालेज पहुंचते ही आभा ने हर्ष को फोन किया. हर्ष ने जिस तत्परता से फोन उठाया उसे महसूस कर के आभा को हंसी आ गई.

‘‘फोन का इंतजार ही कर रहे थे क्या?’’ आभा हंसी तो हर्ष को भी अपने उतावलेपन पर आश्चर्य हुआ.

बातें करतेकरते कब 1 घंटा बीत गया, दोनों को पता ही नहीं चला. आभा की क्लास का टाइम हो गया, वह पीरियड लेने चली गई. वापस आते ही उस ने फिर हर्ष को फोन लगाया… और फिर वही लंबी बातें… दिन कैसे गुजर गया पता ही नहीं चला… देर रात तक दोनों व्हाट्सऐप पर औनलाइन रहे और सुबह उठते ही फिर वही सिलसिला…

अब तो यह रोज का नियम ही बन गया. न जाने कितनी बातें थीं उन के पास जो खत्म होने का नाम ही नहीं लेती थीं. कई बार तो ये होता था कि दोनों के पास ही कहने के लिए शब्द नहीं होते थे, मगर बस वे एकदूसरे से जड़े हुए हैं यही सोच कर फोन थामे रहते. इसी चक्कर में दोनों के कई जरूरी काम भी छूटने लगे. मगर न जाने कैसा नशा सवार था दोनों पर ही कि यदि 1 घंटा भी फोन पर बात न हो तो दोनों को ही बेचैनी होने लगती… ऐसी दीवानगी तो शायद उस कच्ची उम्र में भी नहीं थी जब उन के प्यार की शुरुआत हुई थी.

आभा को लग रहा था जैसे खोया हुआ प्यार फिर से उस के जीवन में दस्तक  दे रहा है, मगर हर्ष अब भी इस सचाई को जानते हुए भी यह स्वीकार करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था कि उसे आभा से प्यार है.

‘‘हर्ष, तुम इस बात को स्वीकार क्यों नहीं कर लेते कि तुम्हें आज भी मु झ से प्यार है?’’ एक दिन आभा ने पूछा.

‘‘मैं अगर यह प्यार स्वीकार कर भी लूं तो क्या समाज इसे स्वीकार करने देगा? कौन इस बात का समर्थन करेगा कि मैं ने शादी किसी और से की है और प्यार तुम से करता हूं…’’ हर्ष ने कड़वा सच उस के सामने रखा.

‘‘शादी करना और प्यार करना दोनों अलगअलग बातें हैं हर्ष… जिसे चाहें शादी भी उसी से हो यह जरूरी नहीं… तो फिर यह जरूरी क्यों है कि जिस से शादी हो उसी को चाहा भी जाए?’’ आभा का तर्क भी अपनी जगह सही था.

‘‘चलो, माना कि यह जरूरी नहीं, मगर इस में हमारे जीवनसाथियों की क्या गलती है? उन्हें हमारी अधूरी चाहत की सजा क्यों मिले?’’ हर्ष अपनी बात पर अड़ा था.

‘‘हर्ष, मैं किसी को सजा देने की बात नहीं कर रही… हम ने अपनी सारी जिंदगी उन की खुशी के लिए जी है… क्या हमें अपनी खुशी के लिए जीने का अधिकार नहीं? वैसे भी अब हम उम्र की मध्यवय में आ चुके हैं, जीने लायक जिंदगी बची ही कितनी है हमारे पास… मैं कुछ लमहे अपने लिए जीना चाहती हूं… मैं तुम्हारे साथ जीना चाहती हूं… मैं महसूस करना चाहती हूं कि खुशी क्या होती है…’’ कहतेकहते आभा का स्वर भीग गया.

‘‘क्यों? क्या तुम अपनी लाइफ से अब तक खुश नहीं थी? क्या कमी है तुम्हें? सबकुछ तो है तुम्हारे पास…’’ हर्ष ने उसे टटोला.

‘‘खुश दिखना और खुश होना… दोनों में बहुत फर्क होता है हर्ष… तुम नहीं सम झोगे.’’ आभा ने जब कहा तो उस की आवाज की तरलता हर्ष ने भी महसूस की. शायद वह भी उस में भीग गया था. मगर सच का सामना करने की हिम्मत फिर भी नहीं जुटा पाया.

लगभग 10 महीने दोनों इसी  तरह सोशल मीडिया पर जुड़े रहे. रोज घंटों बात कर के भी उन की बातें खत्म होने का नाम ही नहीं लेती थीं. आभा की तड़प इतनी ज्यादा बढ़ चुकी थी कि अब वह हर्ष से प्रत्यक्ष मिलने के लिए बेचैन होने लगी, लेकिन हर्ष का व्यवहार अभी भी उस के लिए एक पहले बना हुआ था. कभी तो उसे लगता था जैसे हर्ष सिर्फ उसी का है और कभी वह एकदम बेगानों सा लगने लगता.

हर्ष के अपनेआप से तर्क अब तक भी जारी थे. वह 2 कदम आगे बढ़ता और अगले ही पल 4 कदम पीछे हट जाता. वह आभा का साथ तो चाहता था, मगर समाज में दोनों की ही प्रतिष्ठा को भी दांव पर नहीं लगाना चाहता था. उसे डर था कि कहीं ऐसा न हो वह एक बार मिलने के बाद आभा से दूर ही न रह पाए. फिर क्या करेगा वह? मगर आभा अब मन ही मन एक ठोस निर्णय ले चुकी थी.

4 मार्च आने वाला था. आभा ने हर्ष को याद दिलाया कि पिछले साल इसी दिन वे दोनों जयपुर में मिले थे. उस ने आखिर हर्षको यह दिन एकसाथ बिताने के लिए मना ही लिया और बहुत सोचविचार कर के दोनों ने फिर से उसी दिन उसी जगह मिलना तय किया.

हर्ष दिल्ली से टूर पर और आभा जोधपुर से कालेज के काम का बहाना बना कर सुबह ही जयपुर आ गई. होटल में पतिपत्नी की तरह रुके… पूरा दिन साथ बिताया. जीभर के प्यार किया और दोपहर ठीक 12 बजे आभा ने हर्ष को ‘हैप्पी एनिवर्सरी’ विश किया. उसी समय आभा ने अपने मोबाइल में अगले साल के लिए यह रिमाइंडर डाल लिया.

‘‘हर्ष खुशी क्या होती है, यह आज तुम ने मु झे महसूस करवाया. थैंक्स… अब अगर मैं मर भी जाऊं तो कोई गम नहीं…’’ रात को जब विदा लेने लगे तो आभा ने हर्ष को एक बार फिर चूमते हुए कहा.

‘‘मरें तुम्हारे दुश्मन… अभी तो हमारी जिंदगी से फिर से मुलाकात हुई है… सच आभा, मैं तो मशीन ही बन चुका था. मेरे दिल को फिर से धड़काने के लिए शुक्रिया. और हां, खुशी और संतुष्टि में फर्क महसूस करवाने के लिए भी…’’ हर्ष ने उस के चेहरे पर से बाल हटाते हुए कहा और फिर से उस की कमर में हाथ डाल कर उसे अपनी ओर खींच लिया.

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‘‘अब आशिकी छोड़ो…मेरी ट्रेन का टाइम हो रहा है…’’ आभा ने मुसकराते हुए हर्ष को अपनेआप से अलग किया. उसी शाम दोनों ने वादा किया कि हर साल 4 मार्च को वे दोनों इसी तरह… इसी जगह मिला करेंगे… उसी वादे के तहत आज भी दोनों यहां जयपुर आए थे और यह हादसा हो गया.

‘‘आभा, डाक्टर ने तुम्हारे डिस्चार्ज पेपर बना दिए… मैं टैक्सी ले कर आता हूं…’’ हर्ष ने धीरे से उसे जगाते हुए कहा.

‘कैसे वापस जाएगी अब वह जोधपुर? कैसे राहुल का सामना कर पाएगी? आभा फिर से भयभीत हो गई, मगर जाना तो पड़ेगा ही. जो होगा, देखा जाएगा…’ सोचते हुए आभा ने अपनी सारी हिम्मत को एकसाथ समेटने की कोशिश की और जोधपुर जाने के लिए अपनेआप को मानसिक रूप से तैयार करने लगी.

आभा ने राहुल को फोन कर के अपने ऐक्सीडैंट के बारे में बता दिया.

‘‘ज्यादा चोट तो नहीं आई?’’ राहुन ने सिर्फ इतना ही पूछा.

‘‘नहीं.’’

‘‘सरकारी हौस्पिटल में ही दिखाया था न… ये प्राइवेट वाले तो बस लूटने के मौके ही ढूंढ़ते हैं.’’

सुन कर आभा को कोई आश्चर्य नहीं हुआ. उसे राहुल से इसी तरह की उम्मीद थी.

आभा ने बहुत कहा कि वह अकेली ही जोधपुर चली जाएगी, मगर हर्ष ने उस की एक न सुनी और टैक्सी में उस के साथ जोधपुर चल पड़ा. आभा को हर्ष का सहारा ले कर उतरते देख राहुल का माथा ठनका.

‘‘ये मेरे पुराने दोस्त हैं… जयपुर में अचानक मिल गए,’’ आभा ने परिचय करवाते हुए कहा.

राहुल ने हर्ष में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई. बोला, ‘‘टैक्सी से आने की क्या जरूरत थी? टे्रन से भी आ सकती थी,’’ टैक्सी वाले को किराया चुकाना राहुल को अच्छा नहीं लग रहा था.

‘‘आप रहने दीजिए… किराया मैं दे दूंगा…वापस भी जाना है न…’’ हर्ष ने उसे इस स्थिति से उबार लिया. आभा को जोधपुर छोड़ कर उसी टैक्सी से हर्ष लौट गया.

आभा 6 सप्ताह की बैड रैस्ट पर थी. दिन भर बिस्तर पर पड़ेपड़े उसे हर्ष से बातें करने के अलावा और कोई काम ही नहीं सू झता था. कभी जब हर्ष अपने प्रोजैक्ट में बिजी होता तो उस से बात नहीं कर पाता था. यह बात आभा को अखर जाती थी. वह फोन या व्हाट्सऐप पर मैसेज कर के अपनी नाराजगी जताती थी. फिर हर्ष उसे मनुहार कर के मनाता था.

आभा को उस का यों मनाना बहुत सुहाता था. वह मन ही मन प्रार्थना करती कि उन के रिश्ते को किसी की नजर न लग जाए.

ऐसे ही एक दिन वह अपने बैड पर लेटीलेटी हर्ष से बातें कर रही थी. उस ने अपनी  आंखें बंद कर रखी थीं. उसे पता ही नहीं चला कि राहुल कब से वहां खड़ा उस की बातें सुन रहा है.

‘‘बाय… लव यू…’’ कहते हुए फोन रखने के साथ ही जब राहुल पर उस की नजर पड़ी तो वह सकपका गई. राहुल की आंखों का गुस्सा उसे अंदर तक हिला गया. उसे लगा मानो आज उस की जिंदगी से खुशियों की विदाई हो गई.

‘‘किस से कहा जा रहा था ये सब?’’

‘‘जो उस दिन मु झे जयपुर से छोड़ने आया था यानी हर्ष,’’ आभा अब राहुल के सवालों के जवाब देने के लिए मानसिक रूप से तैयार हो चुकी थी.

‘‘तो तुम इसलिए बारबार जयपुर जाया करती थी?’’ राहुल अपने काबू में नहीं था.

आभा ने कोई जवाब नहीं दिया.

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‘‘अपनी नहीं तो कम से कम मेरी इज्जत का ही खयाल कर लेती… समाज में बात खुलेगी तो क्या होगा? कभी सोचा है तुम ने?’’ राहुल ने उस के चरित्र को निशाना बनाते हुए चोट की.

‘‘तुम्हारी इज्जत का खयाल था, इसीलिए तो बाहर मिली उस से वरना यहां… इस शहर में भी मिल सकती थी और समाज, किस समाज की बात करते हो तुम? किसे इतनी फुरसत है कि इतनी आपाधापी में मेरे बारे में कोई सोचे… मैं कितना सोचती हूं किसी और के बारे में और यदि कोई सोचता भी है तो 2 दिन सोच कर भूल जाएगा… वैसे भी लोगों की याददाश्त बहुत कमजोर होती है,’’ आभा ने बहुत ही संयत स्वर में कहा.

‘‘बच्चे क्या सोचेंगे तुम्हारे बारे में? उन का तो कुछ खयाल करो…’’ राहुल ने इस बार इमोशनल वार किया.

‘‘2-4 सालों में बच्चे भी अपनीअपनी जिंदगी में व्यस्त हो जाएंगे, फिर शायद वे वापस मुड़ कर भी इधर न आएं. राहुल. मैं ने सारी उम्र अपनी जिम्मेदारियां निभाई हैं… बिना तुम से कोईर् सवाल किए अपना हर फर्ज निभाया है, फिर चाहे वह पत्नी का हो अथवा मां का… अब मैं कुछ समय अपने लिए जीना चाहती हूं… क्या मु झे इतना भी अधिकार नहीं? आभा की आवाज लगभग भर्रा गई थी.

‘‘तुम पत्नी हो मेरी… मैं कैसे तुम्हें किसी और की बांहों में देख सकता हूं?’’ राहुल ने उसे  झक झोरते हुए कहा.’’

‘‘हां, पत्नी हूं तुम्हारी… मेरे शरीर पर तुम्हारा अधिकार है… मगर कभी सोचा है तुम ने कि मेरा मन आज तक तुम्हारा क्यों नहीं हुआ? तुम्हारे प्यार के छींटों से मेरे मन का आंगन क्यों नहीं भीगा? तुम चाहो तो अपने अधिकार का प्रयोग कर के मेरे शरीर को बंदी बना सकते हो… एक जिंदा लाश पर अपने स्वामित्व का हक जता कर अपने अहम को संतुष्ट कर सकते हो, मगर मेरे मन को तुम सीमाओं में नहीं बांध सकते… हर्ष के बारे में सोचने से नहीं रोक सकते…’’ आभा ने शून्य में ताकते हुए कहा.

‘‘अच्छा? क्या वह हर्ष भी तुम्हारे लिए इतना ही दीवाना है? क्या वह भी तुम्हारे लिए अपना सब कुछ छोड़ने को तैयार है?’’ राहुल ने व्यंग्य से कहा.

‘‘दीवानगी का कोई पैमाना नहीं होता… वह मेरे लिए किस हद तक जा सकता है यह मैं नहीं जानती, मगर मैं उस के लिए किसी भी हक तक जा सकती हूं,’’ आशा ने दृढ़ता से कहा.

‘‘अगर तुम ने इस व्यक्ति से अपना रिश्ता खत्म नहीं किया तो मैं उस के घर जा कर उस की सारी हकीकत बता दूंगा,’’ कहते हुए राहुल ने गुस्से में आ कर आभा के हाथ से मोबाइल छीन कर उसे जमीन पर पटक दिया. मोबाइल बिखर कर आभा के दिल की तरह टुकड़ेटुकड़े हो गया.

राहुल की आखिरी धमकी ने आभा को सचमुच ही डरा दिया था. वह नहीं  चाहती थी कि उस के कारण हर्ष की जिंदगी में कोई तूफान आए. वह अपनी खुशियों की इतनी बड़ी कीमत नहीं चुका सकती थी. उस ने मोबाइल के सारे पार्ट्स फिर से जोड़े और देखा तो पाया कि वह अभी भी चालू स्थिति में है.

‘‘शायद मेरे हिस्से नियति ने खुशी लिखी ही नहीं… मगर मैं तुम्हारी खुशियां नहीं निगलने दूंगी… तुम ने जो खूबसूरत यादें मु झे दी हैं उन के लिए तुम्हारा शुक्रिया…’’ एक आखिरी मैसेज उस ने हर्ष को लिखा और मोबाइल से सिम निकाल कर टुकड़ेटुकड़े कर दी.

उधर हर्ष को कुछ भी सम झ नहीं आया कि यह अचानक क्या हो गया. उस ने आभा को फोन लगाया, मगर फोन ‘स्विच्डऔफ’ था. फिर उस ने व्हाट्सऐप पर मैसेज छोड़ा, मगर वह भी अनसीन ही रह गया. अगले कई दिन हर्ष उसे फोन ट्राई करता रहा, मगर हर बार ‘स्विच्डऔफ’ का मैसेज पा कर निराश हो उठता. उस ने आभा को फेस बुक पर भी कौंटैक्ट करने की कोशिश की, लेकिन शायद आभा ने फेस बुक का अपना अकाउंट ही डिलीट कर दिया था. उस के किसी भी मेल का जवाब भी आभा की तरफ से नहीं आया.

एक बार तो हर्र्ष ने जोधपुर जा कर उस से मिलने का मन भी बनाया, मगर फिर यह सोच कर कि कहीं उस की वजह से स्थिति ज्यादा खरब न हो जाए… उस ने सबकुछ वक्त पर छोड़ कर अपने दिल पर पत्थर रख लिया और आभा को तलाश करना बंद कर दिया.

इस वाकेआ के बाद आभा ने अब मोबाइल रखना ही बंद कर दिया. राहुल के बहुत जिद करने पर भी उस ने नई सिम नहीं ली. बस कालेज से घर और घर से कालेज तक ही उस ने खुद को सीमित कर लिया. कालेज से भी जब मन उचटने लगा तो उस ने छुट्टियां लेनी शुरू कर दीं, मगर छुट्टियों की भी एक सीमा होती है. साल भर होने को आया. अब आभा अकसर ही विदआउट पे रहने लगी. धीरेधीरे वह गहरे अवसाद में चली गई. राहुल ने बहुत इलाज करवाया, मगर कोई फायदा नहीं हुआ.

अब राहुल भी चिड़चिड़ा सा होने लगा था. एक तो आभा की बीमारी ऊपर से उस की सैलरी भी नहीं आ रही थी. राहुल को अपने खर्चों में कटौती करनी पड़ रही थी जिसे वह सहन नहीं कर पा रहा था. पतिपत्नी जैसा भी कोई रिश्ता अब उन के बीच नहीं रहा था. यहां तक कि आजकल तो खाना भी अक्सर या तो राहुल को खुद बनाना पड़ता था या फिर बाहर से आता.

‘‘मरीज ने शायद खुद को खत्म करने की ठान ली है… जब तक यह खुद जीना नहीं चाहेंगी, कोई भी दवा या इलाज का तरीका इन पर कारगर नहीं हो सकता,’’ सारे उपाय करने के बाद अंत में डाक्टर ने भी हाथ खड़े कर दिए.

‘‘देखो, अब बहुत हो चुका… मैं अब तुम्हारे नाटक और नहीं सहन कर सकता… आज तुम्हारी प्रिंसिपल का फोन आया था. कह रहे थे कि तुम्हारे कालेज की तरफ से जयपुर में 5 दिन का एक ट्रेनिंग कैंप लग रहा है. अगर तुम ने उस में भाग नहीं लिया तो तुम्हारा इन्क्रीमैंट रुक सकता है. हो सकता है कि यह नौकरी ही हाथ से चली जाए. मेरी सम झ में नहीं आता कि तुम क्यों अच्छीभली नौकरी को लात मारने पर तुली हो… मैं ने तुम्हारी प्रिंसिपल से कह कर कैंप के लिए तुम्हारा नाम जुड़वा दिया है. 2 दिन बाद तुम्हें जयपुर जाना है,’’ एक शाम राहुल ने आभा से तलखी से कहा.

आभा ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.

आभा के न चाहते हुए भी राहुल ने उसे ट्रेनिंग कैंप में भेज दिया.

‘‘यह लो अपना मोबाइल… इस में नई सिम डाल दी है. अपनी प्रिसिपल को फोन कर के कैंप जौइन करने की सूचना दे देना ताकि उसे तसल्ली हो जाए,’’ टे्रन में बैठाते समय राहुल ने कहा.

आभा ने एक नजर अपने पुराने टूटे मोबाइल पर डाली और फिर उसे पर्स में धकेलते हुए टे्रन की तरफ बढ़ गई. सुबह जैसे ही आभा की ट्रेन जयपुर स्टेशन पर पहुंची, वह यंत्रचलित सी नीचे उतरी और धीरेधीरे उस बैंच की तरफ बढ़ चली जहां हर्ष उसे बैठा मिला करता था. अचानक ही कुछ याद कर के आभा के आंसुओं का बांध टूट गया. वह उस बैंच पर बैठ कर फफक पड़ी. फिर अपनेआप को संभालते हुए उसी होटल की तरफ चल दी जहां वह हर्ष के साथ रुका करती थी. उसे दोपहर बाद 3 बजे कैंप में रिपोर्ट करनी थी.

संयोग से आभा आज भी उसी कमरे में ठहरी थी जहां उस ने पिछली दोनों बार हर्ष के साथ यादगार लमहे बिताए थे. वह कटे वृक्ष की तरह बिस्तर पर गिर पड़ी. उस ने रूम का दरवाजा तक बंद नहीं किया था.

तभी अचानक उस के पर्र्स में रखे मोबाइल में रिमाइंडर मैसेज बज उठा, ‘से हैप्पी ऐनिवर्सरी टू हर्ष’ देख कर आभा एक बार फिर सिसक उठी, ‘‘उफ्फ, आज 4 मार्च है.’’

अचानक 2 मजबूत हाथ पीछे से आ कर उस के गले के इर्दगिर्द लिपट गए. आभा ने अपना भीगा चेहरा ऊपर उठाया तो सामने हर्ष को देख कर उसे यकीन ही नहीं हुआ. वह उस से कस कर लिपट गई. हर्ष ने उस के गालों को चूमते हुए कहा, ‘हैप्पी ऐनिवर्सरी.’

आभा का सारा अवसाद आंखों के रास्ते बहता हुआ हर्ष की शर्ट को भिगोने लगा. वह सबकुछ भूल कर उस के चौड़े सीने में सिमट गई.

रूह का स्पंदन: क्या थी दीक्षा के जीवन की हकीकत

‘‘डूयू बिलीव इन वाइब्स?’’ दक्षा द्वारा पूरे गए इस सवाल पर सुदेश चौंका. उस के चेहरे के हावभाव तो बदल ही गए, होंठों पर हलकी मुसकान भी तैर गई. सुदेश का खुद का जमाजमाया कारोबार था. वह सुंदर और आकर्षक युवक था. गोरा चिट्टा, लंबा, स्लिम,

हलकी दाढ़ी और हमेशा चेहरे पर तैरती बाल सुलभ हंसी. वह ऐसा लड़का था, जिसे देख कर कोई भी पहली नजर में ही आकर्षित हो जाए. घर में पे्रम विवाह करने की पूरी छूट थी, इस के बावजूद उस ने सोच रखा था कि वह मांबाप की पसंद से ही शादी करेगा.

सुदेश ने एकएक कर के कई लड़कियां देखी थीं. कहीं लड़की वालों को उस की अपार प्यार करने वाली मां पुराने विचारों वाली लगती थी तो कहीं उस का मन नहीं माना. ऐसा कतई नहीं था कि वह कोई रूप की रानी या देवकन्या तलाश रहा था. पर वह जिस तरह की लड़की चाहता था, उस तरह की कोई उसे मिली ही नहीं थी.

सुदेश का अलग तरह का स्वभाव था. उस की सीधीसादी जीवनशैली थी, गिनेचुने मित्र थे. न कोई व्यसन और न किसी तरह का कोई महंगा शौक. वह जितना कमाता था, उस हिसाब से उस के कपड़े या जीवनशैली नहीं थी. इस बात को ले कर वह हमेशा परेशान रहता था कि आजकल की आधुनिक लड़कियां उस के घरपरिवार और खास कर उस के साथ व्यवस्थित हो पाएंगी या नहीं.

अपने मातापिता का हंसताखेलता, मुसकराता, प्यार से भरपूर दांपत्य जीवन देख कर पलाबढ़ा सुदेश अपनी भावी पत्नी के साथ वैसे ही मजबूत बंधन की अपेक्षा रखता था. आज जिस तरह समाज में अलगाव बढ़ रहा है, उसे देख कर वह सहम जाता था कि अगर ऐसा कुछ उस के साथ हो गया तो…

सुदेश की शादी को ले कर उस की मां कभीकभी चिंता करती थीं लेकिन उस के पापा उसे समझाते रहते थे कि वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा. सुदेश भी वक्त पर भरोसा कर के आगे बढ़ता रहा. यह सब चल रहा था कि उस से छोटे उस के चचेरे भाई की सगाई का निमंत्रण आया. इस से सुदेश की मां को लगा कि उन के बेटे से छोटे लड़कों की शादी हो रही हैं और उन का हीरा जैसा बेटा किसी को पता नहीं क्यों दिखाई नहीं देता.

चिंता में डूबी सुदेश की मां ने उस से मेट्रोमोनियल साइट पर औनलाइन रजिस्ट्रेशन कराने को कहा. मां की इच्छा का सम्मान करते हुए सुदेश ने रजिस्ट्रेशन करा दिया. एक दिन टाइम पास करने के लिए सुदेश साइट पर रजिस्टर्ड लड़कियों की प्रोफाइल देख रहा था, तभी एक लड़की की प्रोफाइल पर उस की नजर ठहर गई.

ज्यादातर लड़कियों ने अपनी प्रोफाइल में शौक के रूप में डांसिंग, सिंगिंग या कुकिंग लिख रखा था. पर उस लड़की ने अपनी प्रोफाइल में जो शौक लिखे थे, उस के अनुसार उसे ट्रैवलिंग, एडवेंचर ट्रिप्स, फूडी का शौक था. वह बिजनैस माइंडेड भी थी.

उस की हाइट यानी ऊंचाई भी नौर्मल लड़कियों से अधिक थी. फोटो में वह काफी सुंदर लग रही थी. सुदेश को लगा कि उसे इस लड़की के लिए ट्राइ करना चाहिए. शायद लड़की को भी उस की प्रोफाइल पसंद आ जाए और बात आगे बढ़ जाए. यही सोच कर उस ने उस लड़की के पास रिक्वेस्ट भेज दी.

सुदेश तब हैरान रह गया, जब उस लड़की ने उस की रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली. हिम्मत कर के उस ने साइट पर मैसेज डाल दिया. जवाब में उस से फोन नंबर मांगा गया. सुदेश ने अपना फोन नंबर लिख कर भेज दिया. थोड़ी ही देर में उस के फोन की घंटी बजी. अनजान नंबर होने की वजह से सुदेश थोड़ा असमंजस में था. फिर भी उस ने फोन रिसीव कर ही लिया.

दूसरी ओर से किसी संभ्रांत सी महिला ने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘मैं दक्षा की मम्मी बोल रही हूं. आप की प्रोफाइल मुझे अच्छी लगी, इसलिए मैं चाहती हूं कि आप अपना बायोडाटा और कुछ फोटोग्राफ्स इसी नंबर पर वाट्सऐप कर दें.’’

सुदेश ने हां कह कर फोन काट दिया. उस के लिए यह सब अचानक हो गया था. इतनी जल्दी जवाब आ जाएगा और बात भी हो जाएगी, सुदेश को उम्मीद नहीं थी. सोचविचार छोड़ कर उस ने अपना बायोडाटा और फोटोग्राफ्स वाट्सऐप कर दिए.

फोन रखते ही दक्षा ने मां से पूछा, ‘‘मम्मी, लड़का किस तरह बातचीत कर रहा था? अपने ही इलाके की भाषा बोल रहा था या किसी अन्य प्रदेश की भाषा में बात कर रहा था?’’

‘‘बेटा, फिलहाल वह दिल्ली में रह रहा है और दिल्ली में तो सभी प्रदेश के लोग भरे पड़े हैं. यहां कहां पता चलता है कि कौन कहां का है. खासकर यूपी, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान वाले तो अच्छी हिंदी बोल लेते हैं.’’ मां ने बताया.

‘‘मम्मी, मैं तो यह कह रही थी कि यदि वह अपने ही क्षेत्र का होता तो अच्छा रहता.’’ दक्षा ने मन की बात कही. लड़का गढ़वाली ही नहीं, अपने इलाके का ही है. मां ने बताया तो दक्षा खुश हो उठी.

दक्षा मां से बातें कर रही थी कि उसी समय वाट्सऐप पर मैसेज आने की घंटी बजी. दक्षा ने फटाफट बायोडाटा और फोटोग्राफ्स डाउनलोड किए. बायोडाटा परफेक्ट था. दक्षा की तरह सुदेश भी अपने मांबाप की एकलौती संतान था. न कोई भाई न कोई बहन. दिल्ली में उस का जमाजमाया कारोबार था. खाने और ट्रैवलिंग का शौक. वाट्सऐप पर आए फोटोग्राफ्स में एक दाढ़ी वाला फोटो था.

दक्षा को जो चाहिए था, वे सारे गुण तो सुदेश में थे. पर दक्षा खुश नहीं थी. उस के परिवार में जो घटा था, उसे ले कर वह परेशान थी. उसे अपनी मर्यादाओं का भी पता था. साथ ही स्वभाव से वह थोड़ी मूडी और जिद्दी थी. पर समय और संयोग के हिसाब से धीरगंभीर और जिम्मेदारी भी थी.

दक्षा का पालनपोषण एक सामान्य लड़की से हट कर हुआ था. ऐसा नहीं करते, वहां नहीं जाते, यह नहीं बोला जाता, तुम लड़की हो, लड़कियां रात में बाहर नहीं जातीं. जैसे शब्द उस ने नहीं सुने थे, उस के घर का वातावरण अन्य घरों से कदम अलग था. उस की देखभाल एक बेटे से ज्यादा हुई थी. घर के बिजली के बिल से ले कर बैंक से पैसा निकालने, जमा करने तक का काम वह स्वयं करती थी.

दक्षा की मां नौकरी करती थीं, इसलिए खाना बनाना और घर के अन्य काम करना वह काफी कम उम्र में ही सीख गई थी. इस के अलावा तैरना, घुड़सवारी करना, कराटे, डांस करना, सब कुछ उसे आता था. नौकरी के बजाए उसे बिजनैस में रुचि ही नहीं, बल्कि सूझबूझ भी थी. वह बाइक और कार दोनों चला लेती थी. जयपुर और नैनीताल तक वह खुद गाड़ी चला कर गई थी. यानी वह एक अच्छी ड्राइवर थी.

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दक्षा को पढ़ने का भी खासा शौक था. इसी वजह से वह कविता, कहानियां, लेख आदि भी लिखती थी. एकदम स्पष्ट बात करती थी, चाहे किसी को अच्छी लगे या बुरी. किसी प्रकार का दंभ नहीं, लेकिन घरपरिवार वालों को वह अभिमानी लगती थी. जबकि उस का स्वभाव नारियल की तरह था. ऊपर से एकदम सख्त, अंदर से मीठी मलाई जैसा.

उस की मित्र मंडली में लड़कियों की अपेक्षा लड़के अधिक थे. इस की वजह यह थी कि लिपस्टिक या नेल पौलिश के बारे में बेकार की चर्चा करने के बजाय वह वहां उठनाबैठना चाहती थी, जहां चार नई बातें सुननेसमझने को मिलें. वह ऐसी ही मित्र मंडली पसंद करती थीं. उस के मित्र भी दिलवाले थे, जो बड़े भाई की तरह हमेशा उस के साथ खड़े रहते थे.

सब से खास मित्र थी दक्षा की मम्मी, दक्षा उन से अपनी हर बात शेयर करती थी. कोई उस से प्यार का इजहार करता तो यह भी उस की मम्मी को पता होता था. मम्मी से उस की इस हद तक आत्मीयता थी. रूप भी उसे कम नहीं मिला था. न जाने कितने लड़के सालों तक उस की हां की राह देखते रहे.

पर उस ने निश्चय कर लिया था कि कुछ भी हो, वह प्रेम विवाह नहीं करेगी. इसीलिए उस की मम्मी ने बुआ के कहने पर मेट्रोमोनियल साइट पर उस की प्रोफाइल डाल दी थी. जबकि अभी वह शादी के लिए तैयार नहीं थी. उस के डर के पीछे कई कारण थे.

सुदेश और दक्षा के घर वाले चाहते थे कि पहले दोनों मिल कर एकदूसरे को देख लें. बातें कर लें और कैसे रहना है, तय कर लें. क्योंकि जीवन तो उन्हें ही साथ जीना है. उस के बाद घर वाले बैठ कर शादी तय कर लेंगे.

घर वालों की सहमति से दोनों को एकदूसरे के मोबाइल नंबर दे दिए गए. उसी बीच सुदेश को तेज बुखार आ गया, इसलिए वह घर में ही लेटा था. शाम को खाने के बाद उस ने दक्षा को मैसेज किया. फोन पर सीधे बात करने के बजाय उस ने पहले मैसेज करना उचित समझा था.

काफी देर तक राह देखने के बाद दक्षा का कोई जवाब नहीं आया. सुदेश ने दवा ले रखी थी, इसलिए उसे जब थोड़ा आराम मिला तो वह सो गया. रात करीब साढ़े 10 बजे शरीर में दर्द के कारण उस की आंखें खुलीं तो पानी पी कर उस ने मोबाइल देखा. उस में दक्षा का मैसेज आया हुआ था. मैसेज के अनुसार, उस के यहां मेहमान आए थे, जो अभीअभी गए हैं.

सुदेश ने बात आगे बढ़ाई. औपचारिक पूछताछ करतेकरते दोनों एकदूसरे के शौक पर आ गए. यह हैरानी ही थी कि दोनों के अच्छेबुरे सपने, डर, कल्पनाएं, शौक, सब कुछ काफी हद इस तरह से मेल खा रहे थे, मानो दोनों जुड़वा हों. घंटे, 2 घंटे, 3 घंटे हो गए. किसी भी लड़की से 10 मिनट से ज्यादा बात न करने वाला सुदेश दक्षा से बातें करते हुए ऐसा मग्न हो गया कि उस का ध्यान घड़ी की ओर गया ही नहीं, दूसरी ओर दक्ष ने भी कभी किसी से इतना लगाव महसूस नहीं किया था.

सुदेश और दक्षा की बातों का अंत ही नहीं हो रहा था. दोनों सुबह 7 बजे तक बातें करते रहे. दोनों ने बौलीवुड हौलीवुड फिल्मों, स्पोर्ट्स, पौलिटिकल व्यू, समाज की संरचना, स्पोर्ट्स कार और बाइक, विज्ञान और साहित्य, बच्चों के पालनपोषण, फैमिली वैल्यू सहित लगभग सभी विषयों पर बातें कर डालीं. दोनों ही काफी खुश थे कि उन के जैसा कोई तो दुनिया में है. सुबह हो गई तो दोनों ने फुरसत में बात करने को कह कर एकदूसरे से विदा ली.

घर वालों की सहमति पर सुदेश और दक्षा ने मिल कर बातें करने का निश्चय किया. सुदेश सुबह ही मिलना चाहता था, लेकिन दक्षा ने ब्रेकफास्ट कर के मिलने की बात कही. क्योंकि वह पूजापाठ कर के ही ब्रेकफास्ट करती थी. सुदेश में दक्षा से मिलने के लिए गजब का उत्साह था. दक्षा की बातों और उस के स्वभाव ने आकर्षण तो पैदा कर ही दिया था. इस के अलावा दक्षा ने अपने जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण बातें मिल कर बताने को कहा था. वो बातें कौन सी थीं, सुदेश उन बातों को भी जानना चाहता था.

निश्चित की गई जगह पर सुदेश पहले ही पहुंच गया था. वहां पहुंच कर वह बेचैनी से दक्षा की राह देख रहा था. वह काले रंग की शर्ट और औफ वाइट कार्गो पैंट पहन कर गया था. रेस्टोरेंट में बैठ कर वह हैडफोन से गाने सुनने में मशगूल हो गया. दक्षा ने काला टौप पहना था, जिस के लिए उस की मम्मी ने टोका भी था कि पहली बार मिलने जा रही है तो जींस टौप, वह भी काला.

तब दक्षा ने आदत के अनुसार लौजिकल जवाब दिया था, ‘‘अगर मैं सलवारसूट पहन कर जाती हूं और बाद में उसे पता चलता है कि मैं जींस टौप भी पहनती हूं तो यह धोखा देने वाली बात होगी. और मम्मी इंसान के इरादे नेक हों तो रंग से कोई फर्क नहीं पड़ता.’’

तर्क करने में तो दक्षा वकील थी. बातों में उस से जीतना आसान नहीं था. वह घर से निकली और तय जगह पर पहुंच गई. सढि़यां चढ़ कर दरवाजा खोला और रेस्टोरेंट में अंदर घुसी. फोटो की अपेक्षा रियल में वह ज्यादा सुंदर और मस्ती में गाने के साथ सिर हिलाती हुई कुछ अलग ही लग रही थी.

अचानक सुदेश की नजर दक्षा पर पड़ी तो दोनों की नजरें मिलीं. ऐसा लगा, दोनों एकदूसरे को सालों से जानते हों और अचानक मिले हों. दोनों के चेहरों पर खुशी छलक उठी थी.

खातेपीते दोनों के बीच तमाम बातें हुईं. अब वह घड़ी आ गई, जब दक्षा अपने जीवन से जुड़ी महत्त्वपूर्ण बातें उस से कहने जा रही थी. वहां से उठ कर दोनों एक पार्क में आ गए थे, जहां दोनों कोने में पेड़ों की आड़ में रखी एक बेंच पर बैठ गए. दक्षा ने बात शुरू की, ‘‘मेरे पापा नहीं हैं, सुदेश. ज्यादातर लोगों से मैं यही कहती हूं कि अब वह इस दुनिया में नहीं है, पर यह सच नहीं है. हकीकत कुछ और ही है.’’

इतना कह कर दक्षा रुकी. सुदेश अपलक उसे ही ताक रहा था. उस के मन में हकीकत जानने की उत्सुकता भी थी. लंबी सांस ले कर दक्षा ने आगे कहा, ‘‘जब मैं मम्मी के पेट में थी, तब मेरे पापा किसी और औरत के लिए मेरी मम्मी को छोड़ कर उस के साथ रहने के लिए चले गए थे.

‘‘लेकिन अभी तक मम्मीपापा के बीच डिवोर्स नहीं हुआ है. घर वालों ने मम्मी से यह कह कर उन्हें अबार्शन कराने की सलाह दी थी कि उस आदमी का खून भी उसी जैसा होगा. इस से अच्छा यही होगा कि इस से छुटकारा पा कर दूसरी शादी कर लो.’’

दक्षा के यह कहते ही सुदेश ने उस की तरफ गौर से देखा तो वह चुप हो गई. पर अभी उस की बात पूरी नहीं हुई थी, इसलिए उस ने नजरें झुका कर आगे कहा, ‘‘पर मम्मी ने सभी का विरोध करते हुए कहा कि जो कुछ भी हुआ, उस में पेट में पल रहे इस बच्चे का क्या दोष है. यानी उन्होंने गर्भपात नहीं कराया. मेरे पैदा होने के बाद शुरू में कुछ ही लोगों ने मम्मी का साथ दिया. मैं जैसेजैसे बड़ी होती गई, वैसेवैसे सब शांत होता गया.

‘‘मेरा पालनपोषण एक बेटे की तरह हुआ. अगलबगल की परिस्थितियां, जिन का अकेले मैं ने सामना किया है, उस का मेरी वाणी और व्यवहार में खासा प्रभाव है. मैं ने सही और गलत का खुद निर्णय लेना सीखा है. ठोकर खा कर गिरी हूं तो खुद खड़ी होना सीखा है.’’

अपनी पलकों को झपकाते हुए दक्षा आगे बोली, ‘‘संक्षेप में अपनी यह इमोशनल कहानी सुना कर मैं आप से किसी तरह की सांत्वना नहीं पाना चाहती, पर कोई भी फैसला लेने से पहले मैं ने यह सब बता देना जरूरी समझा.

‘‘कल कोई दूसरा आप से यह कहे कि लड़की बिना बाप के पलीबढ़ी है, तब कम से कम आप को यह तो नहीं लगेगा कि आप के साथ धोखा हुआ है. मैं ने आप से जो कहा है, इस के बारे में आप आराम से घर में चर्चा कर लें. फिर सोचसमझ कर जवाब दीजिएगा.’’

सुदेश दक्षा की खुद्दारी देखता रह गया. कोई मन का इतना साफ कैसे हो सकता है, उस की समझ में नहीं आ रहा था. अब तक दोनों को भूख लग आई थी. सुदेश दक्षा को साथ ले कर नजदीक की एक कौफी शौप में गया. कौफी का और्डर दे कर दोनों बातें करने लगे तभी अचानक दक्षा ने पूछा था, ‘‘डू यू बिलीव इन वाइब्स?’’

सुदेश क्षण भर के लिए स्थिर हो गया. ऐसी किसी बात की उस ने अपेक्षा नहीं की थी. खासकर इस बारे में, जिस में वह पूरी तरह से भरोसा करता हो. वाइब्स अलौकिक अनुभव होता है, जिस में घड़ी के छठें भाग में आप के मन को अच्छेबुरे का अनुभव होता है. किस से बात की जाए, कहां जाया जाए, बिना किसी वजह के आनंद न आए और इस का उलटा एकदम अंजान व्यक्ति या जगह की ओर मन आकर्षित हो तो यह आप के मन का वाइब्स है.

यह कभी गलत नहीं होता. आप का अंत:करण आप को हमेशा सच्चा रास्ता सुझाता है. दक्षा के सवाल को सुन कर सुदेश ने जीवन में एक चांस लेने का निश्चय किया. वह जो दांव फेंकने जा रहा था, अगर उलटा पड़ जाता तो दक्षा तुरंत मना कर के जा सकती थी. क्योंकि अब तक की बातचीत से यह जाहिर हो गया था. पर अगर सब ठीक हो गया तो सुदेश का बेड़ा पार हो जाएगा.

सुदेश ने बेहिचक दक्षा से उस का हाथ पकड़ने की अनुमति मांगी. दक्षा के हावभाव बदल गए. सुदेश की आंखों में झांकते हुए वह यह जानने की कोशिश करने लगी कि क्या सोच कर उस ने ऐसा करने का साहस किया है. पर उस की आंखो में भोलेपन के अलावा कुछ दिखाई नहीं दिया. अपने स्वभाव के विरुद्ध उस ने सुदेश को अपना हाथ पकड़ने की अनुमति दे दी.

दोनों के हाथ मिलते ही उन के रोमरोम में इस तरह का भाव पैदा हो गया, जैसे वे एकदूसरे को जन्मजन्मांतर से जानते हों. दोनों अनिमेष नजरों से एकदूसरे को देखते रहे. लगभग 5 मिनट बाद निर्मल हंसी के साथ दोनों ने एकदूसरे का हाथ छोड़ा. दोनों जो बात शब्दों में नहीं कह सके, वह स्पर्श से व्यक्त हो गई.

जाने से पहले सुदेश सिर्फ इतना ही कह सका, ‘‘तुम जो भी हो, जैसी भी हो, किसी भी प्रकार के बदलाव की अपेक्षा किए बगैर मुझे स्वीकार हो. रही बात तुम्हारे पिछले जीवन के बारे में तो वह इस से भी बुरा होता तब भी मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ता. बाकी अपने घर वालों को मैं जानता हूं. वे लोग तुम्हें मुझ से भी अधिक प्यार करेंगे. मैं वचन देता हूं कि बचपन से ले कर अब तक अधूरे रह गए सपनों को मैं हकीकत का रंग देने की कोशिश करूंगा.’’

सुदेश और दक्षा के वाइब्स ने एकदूसरे से संबंध जोड़ने की मंजूरी दे दी थी.

शुभस्य शीघ्रम: कौनसी घटना घटी थी सुरभि के साथ 

हैडऔफिस से ब्रांच औफिस के कर्मचारियों को अचानक निर्देश मिला कि इस काम को आज ही पूरा किया जाए, तो काम पूरा करते रात के 10 बज गए. नई नियुक्त सुरभि को उस के घर छोड़ने की जिम्मेदारी मैं ने ले ली, क्योंकि मेरा और उस का घर आसपास है.

मैं सुरभि के साथ घर के लिए रवाना हुआ, तो वह चुप बैठी थी. बातचीत मैं ने शुरू की, ‘‘तुम ने एम.बी.ए. कहां से किया सुरभि?’’

‘‘जी, वाराणसी से.’’

‘‘यहां फ्लैट में रहती हो या पी.जी. में?’’

‘‘सर, पी.जी. में.’’

‘‘घर पर कौनकौन है?’’

‘‘सर, मैं अकेली हूं.’’

‘‘हांहां यहां तो अकेली ही हो. मैं तुम्हारे घर के बारे में पूछ रहा हूं.’’

‘‘जी, मैं अकेली ही हूं.’’

‘‘क्या मतलब सुरभि, घर पर मम्मीपापा, भाईबहन तो होंगे न?’’

‘‘सर, मेरा कोई नहीं. मेरे पापा बहुत पहले चल बसे थे. 4 माह पहले मां का भी देहांत हो गया. मैं उन की इकलौती संतान हूं,’’ उस का चेहरा दुख से मलिन हो गया तथा आंखें सजल

हो गईं.

‘‘ओह सौरी, मैं ने तुम्हें दुखी कर दिया.’’

हम दोनों के बीच कुछ देर चुप्पी पसर गई. फिर चुप्पी तोड़ते हुए मैं ने पूछा, ‘‘तुम्हें, फिल्में देखना पसंद है?’’

‘‘सर, टीवी पर देख लेती हूं. मेरा टीवी हर समय औन रहता है.’’

‘‘ओहो, पूरे समय टीवी का शोर. सिरदर्द नहीं हो जाता तुम्हें?’’

‘‘नहीं सर, बंद टीवी से हो जाता है. शांत वातावरण में मुझे अपने दुखदर्द कचोटते हैं.’’

उस ने इतनी गमगीन गंभीरता से यह बात कही तो मैं ने कहा, ‘‘सही बात है, स्वयं को व्यस्त रखने का कोई बहाना तो चाहिए ही. मैं भी हर समय म्यूजिक सुनता रहता हूं.’’

फिर थोड़ी देर में उस का पी.जी. आ गया तो उस ने नीची नजरों से मुझे थैंक्स कहा और गाड़ी से उतर गई. मैं भी उसे बाय, गुडनाइट कहता हुआ आगे निकल गया.

अगले दिन से हम दोनों की ही नजरों में एकदूसरे के लिए कुछ विशेष था. मुझ से नजरें मिलते ही वह नजरें झका लेती थी. मौका देख कर मैं ने कहा, ‘‘सुरभि, हम दोनों का औफिस आनेजाने का रास्ता एक ही है. हम रोज साथ में आनाजाना कर सकते हैं. हां मैं इतना दावे के साथ कह सकता हूं कि तुम मुझ पर विश्वास कर सकती हो.’’

उस ने मुसकराते हुए नीची नजरों से सहमति प्रकट कर दी.

फिर हम दोनों साथसाथ ही आनेजाने लगे.

हमारे बीच अपनत्व पनप चुका था. एक दिन मैं ने पहल करते हुए कहा, ‘‘सुरभि, हमें मिले ज्यादा समय तो नहीं हुआ, किंतु मेरा मन रातदिन तुम्हारे नाम की माला जपता रहता है. मैं तुम्हें चाहने लगा हूं और तुम से शादी करना चाहता हूं. मैं तुम्हारे मन की बात भी जानना चाहता हूं. और हां, मेरा नाम राज है, वही बोलो. ये सर, सर क्या लगा रखा है?’’

मेरे इतना कहने पर भी वह खामोश रही तो मैं ने उस के कंधे पर हाथ रख पूछा, ‘‘क्या बात है, सुरभि खामोश क्यों हो?’’

मेरा अपनत्व पा कर वह फफक कर रो पड़ी, ‘‘राज सर, मेरा बलात्कार हो चुका है. मैं कलंकित हूं. मुझे कोई कैसे स्वीकार करेगा? मैं इस कलंक को पूरी उम्र ढोने के लिए मजबूर हूं…’’

मैं ने उस के होंठों पर अपना हाथ रखते हुए कहा, ‘‘सुरभि, स्वयं को संभालो. मैं तुम्हें अपनाऊंगा. तुम से शादी करूंगा. स्वयं को हीन न समझे. चलो सब से पहले थोड़ा पानी पी कर स्वयं को संयत करो.’’

वह पानी पी कर कुछ शांत हुई, किंतु आंसू बहाती रही.

‘‘देखो सुरभि, तुम्हारे गुजरे कल से मेरा कोई सरोकार नहीं है, लेकिन मैं तुम्हारे साथ अपना आज और आने वाला कल संवारना चाहता हूं. किंतु हां, जो हादसा तुम्हें इतना दुखी कर गया है, उसे अवश्य बांटना चाहूंगा. तुम अपनी आपबीती, बे?िझक मुझे बताओ. तुम्हारे सामने तुम्हारा दोस्त, हितैषी, हमदर्द बैठा हुआ है.’’

वह धीमे स्वर में बोली, ‘‘राज, हमारे गांव में दादा साहब के यहां मेरे पापाजी अकाउंटैंट का काम करते थे. उन के बेटे बाबा साहब भी अपने पिता की तरह पापाजी की ईमानदारी की बहुत इज्जत करते थे और दोनों ही पापाजी से मित्रवत व्यवहार करते थे. एक दिन काम करते हुए अचानक पापाजी का दिल का दौरा पड़ने से देहांत हो गया. उन दोनों ने हम लोगों की सहायता के लिए हर माह पैंशन देने की घोषणा करते हुए आदेश दिया कि जब तक वे दोनों हैं तब तक पैंशन हमारे परिवार को दी जाए.

‘‘पैंशन से हम लोगों का घर खर्च चलने लगा, फिर 3 सालों में दादा साहब एवं बाबा साहब का निधन हो गया तो उन का बेटा शहर से गांव आ गया और कामकाज देखने लगा.

‘‘उस दिन हर माह की तरह मैं पैंशन लेने पहुंची थी. मैं बहुत खुश थी, क्योंकि मेरा 12वीं का रिजल्ट आ गया था और मुझे बहुत अच्छे अंक मिले थे. वहां काम करने वाले रजत से मालूम हुआ कि मुझे पैंशन लेने लंच टाइम में पुन: आना होगा, क्योंकि अभी छोटे साहब बाहर गए हुए हैं.

‘‘मैं लंच टाइम में दोबारा वहां पहुंची तो देखा वह बैठा हुआ जैसे मेरा इंतजार ही कर रहा था. मुझे देखते ही बोला, ‘बधाई हो सुरभि, सुना है तुम्हारे बहुत अच्छे नंबर आए हैं.’

‘‘मैं ने पैंशन की बात कही तो बोला, ‘अरे बैठो, खड़ी क्यों हो? थोड़ा शरबत तो पी लो. इतनी दुपहरिया में तो आई हो.’

‘‘फिर शरबत का एक गिलास उस ने स्वयं उठा लिया तथा दूसरा मेरी ओर सरका दिया.

‘‘मैं यह सोच कर कि ये बडे़ लोग हैं, इन की कही बातों को मानना चाहिए शरबत पी गई. फिर जब होश आया तो स्वयं को निर्वस्त्र पाया. मेरे ऊपर वह दरिंदा भी निर्वस्त्र पड़ा हुआ था. सारा माहौल देख कर व अपनी शारीरिक पीड़ा से इतना तो समझ सकी कि इस दुष्ट ने मेरा सर्वनाश कर दिया है.

‘‘मेरी दशा घायल शेरनी सी हो रही थी, पर वह दरिंदा मेरी बरबादी का आनंद

लेता हुआ बोला, ‘मुफ्त में पैसा ले जाती है तो अच्छा लगता है. आज अपना हक वसूल लिया

तो काटने दौड़ती है. खबरदार, चुपचाप निकल ले. वह तेरे बाप की पैंशन रखी है, तेरी कीमत

भी बढ़ा कर उस में रख दी है. गिन ले, कम

लगे तो और ले ले. जो कीमत कहेगी दे दूंगा. बहुत आनंद मिला. तू ने मुझे अपना प्रशंसक

बना लिया है. तू तो मुझे पहली नजर में ही भा

गई थी…’ और न जाने क्याक्या वह निर्लज्ज बकता रहा.

‘‘उस के पैसे वहीं छोड़ कर, लड़खड़ाते कदमों से मैं जब घर पहुंची तो उस वक्त मां के पास पासपड़ोस की औरतें भी बैठी हुई थीं. मैं मां के गले लग कर फफकफफक कर रोती हुई सब बोल गई. मां के साथ सभी ने मेरी आपबीती सुन ली तो वे अपनेअपने ढंग से सभी ढाढ़स बंधा कर चली गईं. मां पत्थर की मूर्ति सी बन गईं.

‘‘2 दिनों तक हम मांबेटी, अपने दुख के साथ घर में अकेली बंद पड़ी रहीं. जो पासपड़ोस रातदिन हमारे घर आताजाता रहता था, कोई झंकने नहीं आया, जैसे हमारे घर में छूत की बीमारी हो गई हो. 2 दिनों बाद पड़ोस की राधा दीदी खाना ले कर आईं और बोलीं, ‘भाभी,

यों पत्थर बनने से काम नहीं चलेगा. दिल को मजबूत करो. बिट्टो की हिम्मत बन कर उसे

राह दिखाओ, मेरा कहा मानो तो इस गांव से दूर चली जाओ.’

‘‘दीदी का अपनत्व पा कर, मां के दिल में जमा दर्द आंखों से आंसू बन कर बह निकला. वे रोते हुए बोलीं, ‘दीदी, जिस गांव को अपना रक्षक मानती थी, वही तो इज्जत का भक्षक बन बैठा, अब मैं अकेली विधवा, एक जवान, खूबसूरत लड़की को ले कर कहां जाऊं?’

‘‘दीदी, मां को सस्नेह गले लगा कर बोलीं, ‘भाभी, यों हिम्मत हारने से काम नहीं बनेगा. यहां रातदिन इसी कुकर्म की चर्चा से जीना दूभर हो जाएगा. बिट्टो अच्छे अंक लाई है. यहां का घरबार बेच कर, वाराणसी चली जाओ. उसे पढ़ाओ, पैरों पर खड़ा करो. भैया भी तो यही चाहते थे. भाभी, उन का सपना पूरा करना भी तो तुम्हारा कर्तव्य है.

‘‘मां पर उन की बातों का अवश्य कुछ असर हुआ, जिस से वे कुछ शांत हो गईं. फिर धीरे से बोलीं, ‘घर के लिए इतनी जल्दी ग्राहक ढूंढ़ना भी कठिन है, सौ बातें उठेंगी.’

‘‘तो वे बोलीं, ‘भाभी, तुम उठने वाली बातों की चिंता छोड़ो, बिट्टो का जीवन संवारने की सोचो. बहुत से लोग हैं जो घरजमीन खरीदना चाहते हैं. तुम तो जाने की तैयारी करो. हां इस बात का पूरा ध्यान रखना कि किसी को कानोकान खबर न हो कि तुम कहां जा रही हो.’

‘‘दीदी की मदद से गांव का सब काम निबटा कर हम वाराणसी आ पहुंचे. यहां थोड़ी भागदौड़ के बाद मां को एक बुटीक में काम मिल गया और मुझे अच्छे कालेज में ऐडमिशन. दोनों अपनेअपने काम में तनमन से लग गईं.’’

राज, यह मां ने ही कहा था कि कभी शादी के निर्णय का समय आए, तो अपने साथी को अवश्य बता देना. अन्य किसी के सामने कभी भी इस दुष्कर्म की चर्चा न करना.’’

यह कह कर सुरभि खामोश हो गई तो मैं ने उस के हाथों पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हें और तुम्हारी मां की हिम्मत को तहे दिल से सलाम करता हूं. रोज ही टीवी पर, पेपर्स में इस तरह की दुर्घटनाएं सुनने, पढ़ने को मिल जाती हैं. हमेशा से पुरुष वर्ग स्त्रियों पर इस तरह के जुल्म करता रहा है.

‘‘इन ज्यादतियों की जड़ें हमारे धार्मिक ग्रंथों से भी जुड़ी हुई हैं. रामायण में वर्णित है कि सीता को रावण हरण कर ले जाता है तो उन के पति राम उन की पवित्रता की अग्निपरीक्षा लेते हैं. उस के बाद भी उन्हें त्याग कर वनवास हेतु मजबूर कर दिया जाता है.’’

वह दिन शनिवार का दिन था. हम दोनों लगभग 2 बजे औफिस से निकले थे और अब समय 4 से ऊपर हो चुका था. हम दोनों का मन भी कसैला हो गया था तथा कुछ भूख भी लग आई थी, इसलिए हम पास के रैस्टोरैंट में चले गए. वहां सुरभि ने आहिस्ता से कहा, ‘‘राज, मैं अपने कलंक से आप का जीवन बरबाद नहीं करना चाहती. मुझे माफ कीजिएगा, मैं बेवजह आप की राह में आ गई.’’

‘‘कैसी बातें करती हो सुरभि’’, मैं ने उस के करीब आ कर कहा, मैं तहेदिल से तुम से प्यार करने लगा हूं. प्यार कोई सूखा पत्ता नहीं होता, जो हवा से उड़ जाए. वह तो मजबूत चट्टान सा अडिग होता है, जो अनेक तूफानों का सामना कर सकता है.

‘‘एक अनजान पुरुष ने तुम्हारे साथ दुष्कर्म किया, उस से तुम कैसे कलंकित हो

गई? उस की सजा तुम क्यों पाओगी? जो भी सजा मिलनी चाहिए, उस दुष्कर्मी को मिलनी चाहिए, तुम स्वयं को हीन न समझे, मैं तुम्हारे साथ हूं. हम दोनों मिल कर एक खुशहाल दुनिया बसाएंगे, जहां घृणा तिरस्कार नहीं, सिर्फ प्यार और विश्वास होगा.’’

‘‘राज, आप को विश्वास है कि आप के मातापिता मुझ जैसी लड़की को अपनाएंगे, स्वीकार करेंगे?’’ उस ने अपनी शंका धीरे से व्यक्त की.

‘‘हां, मुझे पूरा विश्वास है. वे दोनों बहुत समझदार हैं और दकियानूसी विचारों के नहीं हैं. मेरे परिवार में मेरे कुछ कजिंस ने अंतर्जातीय विवाह किए तो उस मौके पर सारे परिवार को समझने का काम मेरे मम्मीपापा ने ही किया.

‘‘मैं अपने मम्मीपापा को अपने प्यार

अपने निर्णय के बारे में तो बताऊंगा. मुझे पूरा विश्वास है कि जीवन और समाज के प्रति

मेरी इस सकारात्मक सोच, मेरी पहल का वे स्वागत करेंगे.’’

मैं ने प्यार से उस का हाथ अपने हाथों में

ले कर कहा, ‘‘सुरभि, मेरी इस सकारात्मक

पहल में मेरा साथ दोगी न? मेरी हमसफर बन कर मेरा संबल बनोगी न? यदि मम्मीपापा को समझने में थोड़ा समय लग जाए, तो मेरा इंतजार करोगी न?’’

उस ने मुसकराते हुए सहमति से सिर हिला दिया.

मैं ने गाड़ी की रफ्तार बढ़ाते हुए कहा, ‘‘चलो, फिर आज ही तुम्हें मम्मीपापा से मिलवा देता हूं, देरी क्यों करना, शुभस्य शीघ्रम.’’

वह खिलखिला कर हंस पड़ी. उस की हंसी में मेरी खुशी समाहित थी, इसलिए वह खुशहाल जीवन की ओर इशारा करती प्रतीत हो रही थी.

दिल वर्सेस दौलत: क्या पूरा हुआ लाली और अबीर का प्यार

‘‘किस का फोन था, पापा?’’

‘‘लाली की मम्मी का. उन्होंने कहा कि किसी वजह से तेरा और लाली का रिश्ता नहीं हो पाएगा.’’

‘‘रिश्ता नहीं हो पाएगा? यह क्या मजाक है? मैं और लाली अपने रिश्ते में बहुत आगे बढ़ चुके हैं. नहीं, नहीं, आप को कोई गलतफहमी हुई होगी. लाली मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकती है? आप ने ठीक से तो सुना था, पापा?’’

‘‘अरे भाई, मैं गलत क्यों बोलने लगा. लाली की मां ने साफसाफ मु झ से कहा, ‘‘आप अपने बेटे के लिए कोई और लड़की ढूंढ़ लें. हम अबीर से लाली की शादी नहीं करा पाएंगे.’’

पापा की ये बातें सुन अबीर का कलेजा छलनी हो आया. उस का हृदय खून के आंसू रो रहा था. उफ, कितने सपने देखे थे उस ने लाली और अपने रिश्ते को ले कर. कुछ नहीं बचा, एक ही  झटके में सब खत्म हो गया, भरे हृदय के साथ लंबी सांस लेते हुए उस ने यह सोचा.

हृदय में चल रहा भीषण  झं झावात आंखों में आंसू बन उमड़नेघुमड़ने लगा. उस ने अपना लैपटौप खोल लिया कि शायद व्यस्तता उस के इस दर्द का इलाज बन जाए लेकिन लैपटौप की स्क्रीन पर चमक रहे शब्द भी उस की आंखों में घिर आए खारे समंदर में गड्डमड्ड हो आए.  झट से उस ने लैपटौप बंद कर दिया और खुद पलंग पर ढह गया.

लाली उस के कुंआरे मनआंगन में पहले प्यार की प्रथम मधुर अनुभूति बन कर उतरी थी. 30 साल के अपने जीवन में उसे याद नहीं कि किसी लड़की ने उस के हृदय के तारों को इतनी शिद्दत से छुआ हो. लाली उस के जीवन में मात्र 5-6 माह के लिए ही तो आई थी, लेकिन इन चंद महीनों की अवधि में ही उस के संपूर्ण वजूद पर वह अपना कब्जा कर बैठी थी, इस हद तक कि उस के भावुक, संवेदनशील मन ने अपने भावी जीवन के कोरे कैनवास को आद्योपांत उस से सा झा कर लिया. मन ही मन उस ने उसे अपने आगत जीवन के हर क्षण में शामिल कर लिया. लेकिन शायद होनी को यह मंजूर नहीं था. लाली के बारे में सोचतेसोचते कब वह उस के साथ बिताए सुखद दिनों की भूलभुलैया में अटकनेभटकने लगा, उसे तनिक भी एहसास नहीं हुआ.

शुरू से वह एक बेहद पढ़ाकू किस्म का लड़का था जिस की जिंदगी किताबों से शुरू होती और किताबों पर ही खत्म. उस की मां लेखिका थीं. उन की कहानियां विभिन्न पत्रपत्रिकाओं में छपती रहतीं. पिता को भी पढ़नेलिखने का बेहद शौक था. वे एक सरकारी प्रतिष्ठान में वरिष्ठ वैज्ञानिक थे. घर में हर कदम पर किताबें दिखतीं. पुस्तक प्रेम उसे नैसर्गिक विरासत के रूप में मिला. यह शौक उम्र के बढ़तेबढ़ते परवान चढ़ता गया. किशोरावस्था की उम्र में कदम रखतेरखते जब आम किशोर हार्मोंस के प्रभाव में लड़कियों की ओर आकर्षित होते हैं,  उन्हें उन से बातें करना, चैट करना, दोस्ती करना पसंद आता है, तब वह किताबों की मदमाती दुनिया में डूबा रहता.

बचपन से वह बेहद कुशाग्र था. हर कक्षा में प्रथम आता और यह सिलसिला उस की शिक्षा खत्म होने तक कायम रहा. पीएचडी पूरी करने के बाद एक वर्ष उस ने एक प्राइवेट कालेज में नौकरी की. तभी यूनिवर्सिटी में लैक्चरर्स की भरती हुई और उस के विलक्षण अकादमिक रिकौर्ड के चलते उसे वहीं लैक्चरर के पद पर नियुक्ति मिल गई. नौकरी लगने के साथसाथ घर में उस के रिश्ते की बात चलने लगी.

वह अपने मातापिता की इकलौती संतान था. सो, मां ने उस से उस की ड्रीमगर्ल के बारे में पूछताछ की. जवाब में उस ने जो कहा वह बेहद चौंकाने वाला था.

मां, मु झे कोई प्रोफैशनल लड़की नहीं चाहिए. बस, सीधीसादी, अच्छी पढ़ीलिखी और सम झदार नौनवर्किंग लड़की चाहिए, जिस का मानसिक स्तर मु झ से मिले. जो जिंदगी का एकएक लमहा मेरे साथ शेयर कर सके. शाम को घर आऊं तो उस से बातें कर मेरी थकान दूर हो सके.

मां उस की चाहत के अनुरूप उस के सपनों की शहजादी की तलाश में कमर कस कर जुट गई. शीघ्र ही किसी जानपहचान वाले के माध्यम से ऐसी लड़की मिल भी गई.

उस का नाम था लाली. मनोविज्ञान में पोस्ट ग्रेजुएशन की हुई थी. संदली रंग और बेहद आकर्षक, कंटीले नैननक्श थे उस के. फूलों से लदीफंदी डौलनुमा थी वह. उस की मोहक शख्सियत हर किसी को पहली नजर में भा गई.

उस के मातापिता दोनों शहर के बेहद नामी डाक्टर थे. पूरी जिंदगी अपने काम के चलते बेहद व्यस्त रहे. इकलौती बेटी लाली पर भी पूरा ध्यान नहीं दे पाए. लाली नानी, दादी और आयाओं के भरोसे पलीबढ़ी. ताजिंदगी मातापिता के सान्निध्य के लिए तरसती रही. मां को ताउम्र व्यस्त देखा तो खुद एक गृहिणी के तौर पर पति के साथ अपनी जिंदगी का एकएक लमहा भरपूर एंजौय करना चाहती थी.

विवाह योग्य उम्र होने पर उस के मातापिता उस की इच्छानुसार ऐसे लड़के की तलाश कर रहे थे जो उन की बेटी को अपना पूरापूरा समय दे सके, कंपेनियनशिप दे सके. तभी उन के समक्ष अबीर का प्रस्ताव आया. उसे एक उच्चशिक्षित पर घरेलू लड़की की ख्वाहिश थी. आजकल अधिकतर लड़के वर्किंग गर्ल को प्राथमिकता देने लगे थे. अबीर जैसे नौनवर्किंग गर्ल की चाहत रखने वाले लड़कों की कमी थी. सो, अपने और अबीर के मातापिता के आर्थिक स्तर में बहुत अंतर होने के बावजूद उन्होंने अबीर के साथ लाली के रिश्ते की बात छेड़ दी.

संयोगवश उन्हीं दिनों अबीर के मातापिता और दादी एक घनिष्ठ पारिवारिक मित्र की बेटी के विवाह में शामिल होने लाली के शहर पहुंचे. सो, अबीर और उस के घर वाले एक बार लाली के घर भी हो आए. लाली अबीर और उस के परिवार को बेहद पसंद आई. लाली और उस के परिवार वालों को भी अबीर अच्छा लगा.

दोनों के रिश्ते की बात आगे बढ़ी. अबीर और लाली फोन पर बातचीत करने लगे. फिर कुछ दिन चैटिंग की. अबीर एक बेहद सम झदार, मैच्योर और संवेदनशील लड़का था. लाली को बेहद पसंद आया. दोनों में घनिष्ठता बढ़ी. दोनों को एकदूसरे से बातें करना बेहद अच्छा लगता. फोन पर रात को दोनों घंटों बतियाते. एकदूसरे को अपने अनुकूल पा कर दोनों कभीकभार वीकैंड पर मिलने भी लगे. एकदूसरे को विवाह से पहले अच्छी तरह जाननेसम झने के उद्देश्य से अबीर  शुक्रवार की शाम फ्लाइट से उस के शहर पहुंच जाता. दोनों शहर के टूरिस्ट स्पौट्स की सैर करतेकराते वीकैंड साथसाथ मनाने लगे. एकदूसरे को गिफ्ट्स का आदानप्रदान भी करने लगे.

दिन बीतने के साथ दोनों के मन में एकदूसरे के लिए चाहत का बिरवा फूट चुका था. सो, दोनों की तरफ से ग्रीन सिगनल पा कर लाली के मातापिता अबीर का घरबार देखने व उन के रोके की तारीख तय करने अबीर के घर पहुंचे. अबीर का घर, रहनसहन, जीवनशैली देख कर मानो आसमान से गिरे वे.

अबीर का घर, जीवनस्तर उस के पिता की सरकारी नौकरी के अनुरूप था. लाली के रईस और अतिसंपन्न मातापिता की अमीरी की बू मारते रहनसहन से कहीं बहुत कमतर था. उन के 2 बैडरूम के फ्लैट में ससुराल आने पर उन की बेटी शादी के बाद कहां रहेगी, वे दोनों इस सोच में पड़ गए. एक बैडरूम अबीर के मातापिता का था, दूसरा बैडरूम उस की दादी का था.

अबीर की दादी की घरभर में तूती बोलती. वे काफी दबंग व्यक्तित्व की थीं. बेटाबहू उन को बेहद मान देते. उन की तुलना में अबीर की मां का व्यक्तित्व उन्हें तनिक दबा हुआ प्रतीत हुआ.

अबीर के घर सुबह से शाम तक एक पूरा दिन बिता कर उन्होंने पाया कि उन के घर में दादी की मरजी के बिना पत्ता तक नहीं हिलता. उन की सीमित आय वाले घर में उन्हें बातबात पर अबीर के मातापिता के मितव्ययी रवैए का परिचय मिला.

अगले दिन लाली के मातापिता ने बेटी को सामने बैठा उस से अबीर के रिश्ते को ले कर अपने खयालात शेयर किए.

लाली के पिता ने लाली से कहा, ‘सब से पहले तो तुम मु झे यह बताओ, अबीर के बारे में तुम्हारी क्या राय है?’

‘पापा, वह एक सीधासादा, बेहद सैंटीमैंटल और सुल झा हुआ लड़का लगा मु झे. यह निश्चित मानिए, वह कभी दुख नहीं देगा मु झे. मेरी हर बात मानता है. बेहद केयरिंग है. दादागीरी, ईगो, गुस्से जैसी कोई नैगेटिव बात मु झे उस में नजर नहीं आई. मु झे यकीन है, उस के साथ हंसीखुशी जिंदगी बीत जाएगी. सो, मु झे इस रिश्ते से कोई आपत्ति नहीं.’

तभी लाली की मां बोल पड़ीं, ‘लेकिन, मु झे औब्जेक्शन है.’

‘यह क्या कह रही हैं मम्मा? हम दोनों अपने रिश्ते में बहुत आगे बढ़ चुके हैं. अब मैं इस रिश्ते से अपने कदम वापस नहीं खींच सकती. आखिर बात क्या है? आप ने ही तो कहा था, मु झे अपना लाइफपार्टनर चुनने की पूरीपूरी आजादी होगी. फिर, अब आप यह क्या कह रही हैं?’

‘लाली, मैं तुम्हारी मां हूं. तुम्हारा भला ही सोचूंगी. मेरे खयाल से तुम्हें यह शादी कतई नहीं करनी चाहिए.’

‘मौम, सीधेसीधे मुद्दे पर आएं, पहेलियां न बु झाएं.’

‘तो सुनो, एक तो उन का स्टेटस, स्टैंडर्ड हम से बहुत कमतर है. पैसे की बहुत खींचातानी लगी मु झे उन के घर में. क्यों जी, आप ने देखा नहीं, शाम को दादी ने अबीर से कहा, एसी बंद कर दे. सुबह से चल रहा है. आज तो सुबह से मीटर भाग रहा होगा. तौबा उन के यहां तो एसी चलाने पर भी रोकटोक है.

‘फिर दूसरी बात, मु झे अबीर की दादी बहुत डौमिनेटिंग लगीं. बातबात पर अपनी बहू पर रोब जमा रही थीं. अबीर की मां बेचारी चुपचाप मुंह सीए हुए उन के हुक्म की तामील में जुटी हुई थी. दादी मेरे सामने ही बहू से फुसफुसाने लगी थीं, बहू मीठे में गाजर का हलवा ही बना लेती. नाहक इतनी महंगी दुकान से इतना महंगी मूंग की दाल का हलवा और काजू की बर्फी मंगवाई. शायद कल हमारे सामने हमें इंप्रैस करने के लिए ही इतनी वैराइटी का खानापीना परोसा था. मु झे नहीं लगता यह उन का असली चेहरा है.’

‘अरे मां, आप भी न, राई का पहाड़ बना देती हैं. ऐसा कुछ नहीं है. खातेपीते लोग हैं. अबीर के पापा ऐसे कोई गएगुजरे भी नहीं. क्लास वन सरकारी अफसर हैं. हां, हम जैसे पैसेवाले नहीं हैं. इस से क्या फर्क पड़ता है?’

‘लेकिन मैं सोच रही हूं अगर अबीर भी दादी की तरह हुआ तो क्या तू खर्चे को ले कर उस की तरफ से किसी भी तरह की टोकाटाकी सह पाएगी? खुद कमाएगी नहीं, खर्चे के लिए अबीर का मुंह देखेगी. याद रख लड़की, बच्चे अपने बड़ेबुजुर्गों से ही आदतें विरासत में पाते हैं. अबीर ने भी अगर तेरे खर्चे पर बंदिशें लगाईं तो क्या करेगी? सोच जरा.’

‘अरे मां, क्या फुजूल की हाइपोथेटिकल बातें कर रही हैं? क्यों लगाएगा वह मु झ पर इतनी बंदिशें? इतना बढि़या पैकेज है उस का. फिर अबीर मु झे अपनी दादी के बारे में बताता रहता है. कहता है, वे बहुत स्नेही हैं. पहली बार जब वे लोग हमारे घर आए थे, दादी ने मु झे कितनी गर्माहट से अपने सीने से चिपकाया था. मेरे हाथों को चूमा था.’

‘तो लाली बेटा, तुम ने पूरापूरा मन बना लिया है कि तुम अबीर से ही शादी करना चाहती हो. सोच लो बेटा, तुम्हारी मम्मा की बातों में भी वजन है. ये पूरी तरह से गलत नहीं. उन के और हमारे घर के रहनसहन में मु झे भी बहुत अंतर लगा. तुम कैसे ऐडजस्ट करोगी?’’ पापा ने कहा था.

‘अरे पापा, मैं सब ऐडजस्ट कर लूंगी. जिंदगी तो मु झे अबीर के साथ काटनी है न. और वह बेहद अच्छा व जैनुइन लड़का है. कोई नशा नहीं है उस में. मैं ने सोच लिया है, मैं अबीर से ही शादी करूंगी.’

‘लाली बेटा, यह क्या कह रही हो? मैं ने दुनिया देखी है. तुम तो अभी बच्ची हो. यह सीने से चिपकाना, आशीष देना, चुम्माचाटी थोड़े दिनों के शादी से पहले के चोंचले हैं. बाद में तो, बस, उन की रोकटोक, हेकड़ी और बंधन रह जाएंगे. फिर रोती झींकती मत आना मेरे पास कि आज सास ने यह कह दिया और दादी सास ने यह कह दिया.

‘और एक बात जो मु झे खाए जा रही है वह है उन का टू बैडरूम का दड़बेनुमा फ्लैट. हर बार त्योहार के मौके पर तु झे ससुराल तो जाना ही पड़ेगा. एक बैडरूम में अबीर के पेरैंट्स रहते हैं, दूसरे में उस की दादी. फिर तू कहां रहेगी? तेरे हिस्से में ड्राइंगरूम ही आएगा? न न न, शादी के बाद मेरी नईनवेली लाडो को अपना अलग एक कमरा भी नसीब न हो, यह मु झे बिलकुल बरदाश्त नहीं होगा.

‘सम झा कर बेटा, हमारे सामने यह खानदान एक चिंदी खानदान है. कदमकदम पर तु झे इस वजह से बहू के तौर पर बहुत स्ट्रगल करनी पड़ेगी. न न, कोई और लड़का देखते हैं तेरे लिए. गलती कर दी हम ने, तु झे अबीर से मिलाने से पहले हमें उन का घरबार देख कर आना चाहिए था. खैर, अभी भी देर नहीं हुई है. मेरी बिट्टो के लिए लड़कों की कोई कमी है क्या?’

‘अरे मम्मा, आप मेरी बात नहीं सम झ रहीं हैं. इन कुछ दिनों में मैं अबीर को पसंद करने लगी हूं. उसे अब मैं अपनी जिंदगी में वह जगह दे चुकी हूं जो किसी और को दे पाना मेरी लिए नामुमकिन होगा. अब मैं अबीर के बिना नहीं रह सकती. मैं उस से इमोशनली अटैच्ड हो गई हूं.’

‘यह क्या नासम झी की बातें कर रही है, लाली? तू तो मेरी इतनी सम झदार बेटी है. मु झे तु झ से यह उम्मीद न थी. जिंदगी में सक्सैसफुल होने के लिए प्रैक्टिकल बनना पड़ता है. कोरी भावनाओं से जिंदगी नहीं चला करती, बेटा. बात सम झ. इमोशंस में बह कर आज अगर तू ने यह शादी कर ली तो भविष्य में बहुत दुख पाएगी. तु झे खुद अपने पांव पर कुल्हाड़ी नहीं मारने दूंगी. मैं ने बहुत सोचा इस बारे में, लेकिन इस रिश्ते के लिए मेरा मन हरगिज नहीं मान रहा.’

‘मम्मा, यह आप क्या कह रही हैं? मैं अब इस रिश्ते में पीछे नहीं मुड़ सकती. मैं अबीर के साथ पूरी जिंदगी बिताने का वादा कर चुकी हूं. उस से प्यार करने लगी हूं. पापा, आप चुप क्यों बैठे हैं? सम झाएं न मां को. फिर मैं पक्का डिसाइड कर चुकी हूं कि मु झे अबीर से ही शादी करनी है.’

‘अरे भई, क्यों जिद कर रही हो जब यह कह रही है कि इसे अबीर से ही शादी करनी है तो क्यों बेबात अड़ंगा लगा रही हो? अबीर के साथ जिंदगी इसे बितानी है या तुम्हें?’ लाली के पिता ने कहा.

‘आप तो चुप ही रहिए इस मामले में. आप को तो दुनियादारी की सम झ है नहीं. चले हैं बेटी की हिमायत करने. मैं अच्छी तरह से सोच चुकी हूं. उस घर में शादी कर मेरी बेटी कोई सुख नहीं पाएगी. सास और ददिया सास के राज में 2 दिन में ही टेसू बहाते आ जाएगी. जाइए, आप के औफिस का टाइम हो गया. मु झे हैंडल कर लेने दीजिए यह मसला.’

इस के साथ लाली की मां ने पति को वहां से जबरन उठने के लिए विवश कर दिया और फिर बेटी से बोलीं, ‘यह क्या बेवकूफी है, लाली? यह तेरा प्यार पप्पी लव से ज्यादा और कुछ नहीं. अगर तू ने मेरी बात नहीं मानी तो सच कह रही हूं, मैं तु झ से सारे रिश्ते तोड़ लूंगी. न मैं तेरी मां, न तू मेरी बेटी. जिंदगीभर तेरी शक्ल नहीं देखूंगी. सम झ लेना, मैं तेरे लिए मर गई.’ यह कह कर लाली की मां अतीव क्रोध में पांव पटकते हुए कमरे से बाहर चली गईं.

मां का यह विकट क्रोध देख लाली सम झ गई थी कि अब अगर कुदरत भी साक्षात आ जाए तो उन्हें इस रिश्ते के लिए मनाना टेढ़ी खीर होगा. मां के इस हठ से वह बेहद परेशान हो उठी. उस का अंतर्मन कह रहा था कि उसे अबीर जैसा सुल झा हुआ, सम झदार लड़का इस जिंदगी में दोबारा मिलना असंभव होगा. आज के समय में उस जैसे सैंसिबल, डीसैंट लड़के बिरले ही मिलते हैं. अबीर जैसे लड़के को खोना उस की जिंदगी की सब से बड़ी भूल होगी.

लेकिन मां का क्या करे वह? वे एक बार जो ठान लेती हैं वह उसे कर के ही रहती हैं. वह बचपन से देखती आई है, उन की जिद के सामने आज तक कोई नहीं जीत पाया. तो ऐसी हालत में वह क्या करे? पिछली मुलाकात में ही तो अबीर के साथ जीनेमरने की कसमें खाई थीं उस ने. दोनों ने एकदूसरे के प्रति अपनी प्रेमिल भावनाएं व्यक्त की थीं.

पिछली बार अबीर के उस के कहे गए प्रेमसिक्त स्वर उस के कानों में गूंजने लगे, ‘लाली माय लव, तुम ने मेरी आधीअधूरी जिंदगी को कंप्लीट कर दिया. दुलहन बन जल्दी से मेरे घर आ जाओ. अब तुम्हारे बिना रहना शीयर टौर्चर लग रहा है.’

क्या करूं क्या न करूं, यह सोचतेसोचते अतीव तनाव से उस के स्नायु तन आए और आंखें सावनभादों के बादलों जैसे बरसने लगीं. अनायास वह अपने मोबाइल स्क्रीन पर अबीर की फोटो देखने लगी और उसे चूम कर अपने सीने से लगा उस ने अपनी आंखें मूंद लीं.

तभी मम्मा उस का दरवाजा पीटने लगीं… ‘‘लाली, दरवाजा खोल बेटा.’’

उस ने दरवाजा खोला. मम्मा कमरे में धड़धड़ाती हुई आईं और उस से बोलीं, ‘‘मैं ने अबीर के पापा को इस रिश्ते के लिए मना कर दिया है. सारा टंटा ही खत्म. हां, अब अबीर का फोनवोन आए, तो उस से तु झे कुछ कहने की कोई जरूरत नहीं. वह कुछ कहे, तो उसे रिश्ते के लिए साफ इनकार कर देना और कुछ ज्यादा बात करने की जरूरत नहीं. ले देख, यह एक और लड़के का बायोडाटा आया है तेरे लिए. लड़का खूब हैंडसम है. नामी एमएनसी में सीनियर कंसल्टैंट है. 40 लाख रुपए से ऊपर का ऐनुअल पैकेज है लड़के का. मेरी बिट्टो राज करेगी राज. लड़के वालों की दिल्ली में कई प्रौपर्टीज हैं. रुतबे, दौलत, स्टेटस में हमारी टक्कर का परिवार है. बता, इस लड़के से फोन पर कब बात करेगी?’’

‘‘मम्मा, फिलहाल मेरे सामने किसी लड़के का नाम भी मत लेना. अगर आप ने मेरे साथ जबरदस्ती की तो मैं दीदी के यहां लंदन चली जाऊंगी. याद रखिएगा, मैं भी आप की बेटी हूं.’’ यह कहते हुए लाली ने मां के कमरे से निकलते ही दरवाजा धड़ाक से बंद कर लिया.

मन में विचारों की उठापटक चल रही थी. अबीर उसे आसमान का चांद लग रहा था जो अब उस की पहुंच से बेहद दूर जा चुका था. क्या करे क्या न करे, कुछ सम झ नहीं आ रहा था.

सारा दिन उस ने खुद से जू झते हुए बेपनाह मायूसी के गहरे कुएं में बिताया. सां झ का धुंधलका होने को आया. वह मन ही मन मना रही थी, काश, कुछ चमत्कार हो जाए और मां किसी तरह इस रिश्ते के लिए मान जाएं. तभी व्हाट्सऐप पर अबीर का मैसेज आया, ‘‘तुम से मिलना चाहता हूं. कब आऊं?’’

उस ने जवाब में लिखा, ‘जल्दी’ और एक आंसू बहाती इमोजी भी मैसेज के साथ उसे पोस्ट कर दी. अबीर का अगला मैसेज एक लाल धड़कते दिल के साथ आया, ‘‘कल सुबह पहुंच रहा हूं. एयरपोर्ट पर मिलना.’’

लाली की वह रात आंखों ही आंखों में कटी. अगली सुबह वह मां को एक बहाना बना एयरपोर्ट के लिए रवाना हो गई.

क्यूपिड के तीर से बंधे दोनों प्रेमी एकदूसरे को देख खुद पर काबू न रख पाए और दोनों की आंखों से आंसू बहने लगे. कुछ ही क्षणों में दोनों संयत हो गए और लाली ने उन दोनों के रिश्ते को ले कर मां के औब्जेक्शंस को विस्तार से अबीर को बताया.

अबीर और लाली दोनों ने इस मुद्दे को ले कर तसल्ली से, संजीदगी से विचार किया और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि अब जो कुछ करना है उन दोनों को ही करना होगा.

‘‘लाली, इन परिस्थितियों में अब तुम बताओ कि क्या करना है? तुम्हारी मां हमारी शादी के खिलाफ मोरचाबंदी कर के बैठी हैं. उन्होंने साफसाफ लफ्जों में इस के लिए मेरे पापा से इनकार कर दिया है. तो इस स्थिति में अब मैं किस मुंह से उन से अपनी शादी के लिए कहूं?’’ अबीर ने कहा.

‘‘हां, यह तो तुम सही कह रहे हो. चलो, मैं अपने पापा से इस बारे में बात करती हूं. फिर मैं तुम्हें बताती हूं.’’

‘‘ठीक है, ओके, चलता हूं. बस, यह याद रखना मैं तुम्हें बहुत चाहता हूं. शायद खुद से भी ज्यादा. अब तुम्हारे बिना मेरा कोई वजूद नहीं.’’

लाली ने अपनी पनीली हो आई आंखों से अबीर की तरफ एक फ्लाइंग किस उछाल दिया और फुसफुसाई, ‘हैप्पी एंड सेफ जर्नी माय लव, टेक केयर.’’

लाली एयरपोर्ट से सीधे अपने पापा के औफिस जा पहुंची और उस ने उन्हें वस्तुस्थिति से अवगत कराया. उस की बातें सुन पापा ने कहा, ‘‘अगर तुम और अबीर इस विषय में निर्णय ले ही चुके हो तो मैं तुम दोनों के साथ हूं. मैं कल ही अबीर के घर जा कर तुम्हारी मां के इनकार के लिए उन से माफी मांगता हूं और तुम दोनों की शादी की बात पक्की कर देता हूं. इस के बाद ही मैं तुम्हारी मां को अपने ढंग से सम झा लूंगा. निश्चिंत रहो लाली, इस बार तुम्हारी मां को तुम्हारी बात माननी ही पड़ेगी.’’

लाली के पिता ने लाली से किए वादे को पूरा किया. अबीर के घर जा कर उन्होंने अपनी पत्नी के इनकार के लिए उन से हाथ जोड़ कर बच्चों की खुशी का हवाला देते हुए काफी मिन्नतें कर माफी मांगी और उन दोनों की शादी पक्की करने के लिए मिन्नतें कीं.

इस पर अबीर के पिता ने उन से कहा, ‘‘भाईसाहब, अबीर के ही मुंह से सुना कि आप लोगों को हमारे इस 2 बैडरूम के फ्लैट को ले कर कुछ उल झन है कि शादी के बाद आप की बेटी इस में कहां रहेगी? आप की परेशानी जायज है, भाईसाहब. तो, मेरा खयाल है कि शादी के बाद दोनों एक अलग फ्लैट में रहें. आखिर बच्चों को भी प्राइवेसी चाहिए होगी. यही उन के लिए सब से अच्छा और व्यावहारिक रहेगा. क्या कहते हैं आप?’’

‘‘बिलकुल ठीक है, जैसा आप उचित सम झें.’’

‘‘तो फिर, दोनों की बात पक्की?’’

‘‘जी बिलकुल,’’ अबीर के पिता ने लाली के पिता को मिठाई खिलाते हुए कहा.

बेटी की शादी उस की इच्छा के अनुरूप तय कर, घर आ कर लाली के पिता ने पत्नी को लाली और अबीर की खुशी के लिए उन की शादी के लिए मान जाने के लिए कहा. लाली ने तो साफसाफ लफ्जों में उन से कह दिया, ‘‘इस बार अगर आप हम दोनों की शादी के लिए नहीं माने तो मैं और अबीर कोर्ट मैरिज कर लेंगे.’’ और लाली की यह धमकी इस बार काम कर गई. विवश लाली की मां को बेटी और पति के सामने घुटने टेकने पड़े.

आखिरकार, दिल वर्सेस दौलत की जंग में दिल जीत गया और दौलत को मुंह की खानी पड़ी.

रूठी रानी उमादे: क्यों संसार में अमर हो गई जैसलमेर की रानी

रेतीले राजस्थान को शूरवीरों की वीरता और प्रेम की कहानियों के लिए जाना जाता है. राजस्थान के इतिहास में प्रेम रस और वीर रस से भरी तमाम ऐसी कहानियां भरी पड़ी हैं, जिन्हें पढ़सुन कर ऐसा लगता है जैसे ये सच्ची कहानियां कल्पनाओं की दुनिया में ढूंढ कर लाई गई हों.

मेड़ता के राव वीरमदेव और राव जयमल के काल में जोधपुर के राव मालदेव शासन करते थे. राव मालदेव अपने समय के राजपूताना के सर्वाधिक शक्तिशाली शासक थे. शूरवीर और धुन के पक्के. उन्होंने अपने बल पर  जोधपुर राज्य की सीमाओं का काफी विस्तार किया था. उन की सेना में राव जैता व कूंपा नाम के 2 शूरवीर सेनापति थे.

यदि मालदेव, राव वीरमदेव व उन के पुत्र वीर शिरोमणि जयमल से बैर न रखते और जयमल की प्रस्तावित संधि मान लेते, जिस में राव जयमल ने शांति के लिए अपने पैतृक टिकाई राज्य जोधपुर की अधीनता तक स्वीकार करने की पेशकश की थी, तो स्थिति बदल जाती. जयमल जैसे वीर, जैता कूंपा जैसे सेनापतियों के होते राव मालदेव दिल्ली को फतह करने में समर्थ हो जाते.

राव मालदेव के 31 साल के शासन काल तक पूरे भारत में उन की टक्कर का कोई राजा नहीं था. लेकिन यह परम शूरवीर राजा अपनी एक रूठी रानी को पूरी जिंदगी नहीं मना सका और वह रानी मरते दम तक अपने पति से रूठी रही.

जीवन में 52 युद्ध लड़ने वाले इस शूरवीर राव मालदेव की शादी 24 वर्ष की आयु में वर्ष 1535 में जैसलमेर के रावल लूनकरण की बेटी राजकुमारी उमादे के साथ हुई थी. उमादे अपनी सुंदरता व चतुराई के लिए प्रसिद्ध थीं. राठौड़ राव मालदेव की शादी बारात लवाजमे के साथ जैसलमेर पहुंची. बारात का खूब स्वागतसत्कार हुआ. बारातियों के लिए विशेष ‘जानी डेरे’ की व्यवस्था की गई.

ऊंट, घोड़ों, हाथियों के लिए चारा, दाना, पानी की व्यवस्था की गई. राजकुमारी उमादे राव मालदेव जैसा शूरवीर और महाप्रतापी राजा पति के रूप में पाकर बेहद खुश थीं. पंडितों ने शुभ वेला में राव मालदेव की राजकुमारी उमादे से शादी संपन्न कराई.

चारों तरफ हंसीखुशी का माहौल था. शादी के बाद राव मालदेव अपने सरदारों व सगेसंबंधियों के साथ महफिल में बैठ गए. महफिल काफी रात गए तक चली.

इस के बाद तमाम घराती, बाराती खापी कर सोने चले गए. राव मालदेव ने थोड़ीथोड़ी कर के काफी शराब पी ली थी.

उन्हें नशा हो रहा था. वह महफिल से उठ कर अपने कक्ष में नहीं आए. उमादे सुहाग सेज पर उन की राह देखतीदेखती थक गईं. नईनवेली दुलहन उमादे अपनी खास दासी भारमली जिसे उमादे को दहेज में दिया गया था, को मालदेव को बुलाने भेजने का फैसला किया. उमादे ने भारमली से कहा, ‘‘भारमली, जा कर रावजी को बुला लाओ. बहुत देर कर दी उन्होंने…’’

भारमली ने आज्ञा का पालन किया. वह राव मालदेव को बुलाने उन के कक्ष में चली गई. राव मालदेव शराब के नशे में थे. नशे की वजह से उन की आंखें मुंद रही थीं कि पायल की रुनझुन से राव ने दरवाजे पर देखा तो जैसे होश गुम हो गए. फानूस तो छत में था, पर रोशनी सामने से आ रही थी. मुंह खुला का खुला रह गया.

जैसे 17-18 साल की कोई अप्सरा सामने खड़ी थी. गोरेगोरे भरे गालों से मलाई टपक रही थी. शरीर मछली जैसा नरमनरम. होंठों के ऊपर मौसर पर पसीने की हलकीहलकी बूंदें झिलमिला रही थीं होठों से जैसे रस छलक रहा हो.

भारमली कुछ बोलती, उस से पहले ही राव मालदेव ने यह सोच कर कि उन की नवव्याहता रानी उमादे है, झट से उसे अपने आगोश में ले लिया. भारमली को कुछ बोलने का मौका नहीं मिला या वह जानबूझ कर नहीं बोली, वह ही जाने.

भारमली भी जब काफी देर तक वापस नहीं लौटी तो रानी उमादे ने जिस थाल से रावजी की आरती उतारनी थी, उठाया और उस कक्ष की तरफ चल पड़ीं, जिस कक्ष में राव मालदेव का डेरा था.

उधर राव मालदे ने भारमली को अपनी रानी समझ लिया था और वह शराब के नशे में उस से प्रेम कर रहे थे. रानी उमादे जब रावजी के कक्ष में गई तो भारमली को उन के आगोश में देख रानी ने आरती का थाल यह कह कर ‘अब राव मालदेव मेरे लायक नहीं रहे,’ पटक दिया और वापस चली गईं.

अब तक राव मालदेव के सब कुछ समझ में आ गया था. मगर देर हो चुकी थी. उन्होंने सोचा कि जैसेतैसे रानी को मना लेंगे. भारमली ने राव मालदेव को सारी बात बता दी कि वह उमादे के कहने पर उन्हें बुलाने आई थी. उन्होंने उसे कुछ बोलने नहीं दिया और आगोश में भर लिया. रानी उमादे ने यहां आ कर यह सब देखा तो रूठ कर चली गईं.

सुबह तक राव मालदेव का सारा नशा उतर चुका था. वह बहुत शर्मिंदा हुए. रानी उमादे के पास जा कर शर्मिंदगी जाहिर करते हुए कहा कि वह नशे में भारमली को रानी उमादे समझ बैठे थे.

मगर उमादे रूठी हुई थीं. उन्होंने स्पष्ट कह दिया कि वह बारात के साथ नहीं जाएंगी. वो भारमली को ले जाएं. फलस्वरूप एक शक्तिशाली राजा को बिना दुलहन के एक दासी को ले कर बारात वापस ले जानी पड़ी.

रानी उमादे आजीवन राम मालदेव से रूठी ही रहीं और इतिहास में रूठी रानी के नाम से मशहूर हुईं. जैसलमेर की यह राजकुमारी रूठने के बाद जैसलमेर में ही रह गई थीं. राव मालदेव दहेज में मिली दासी भारमली बारात के साथ बिना दुलहन के जोधपुर आ गए थे. उन्हें इस का बड़ा दुख हुआ था. सब कुछ एक गलतफहमी के कारण हुआ था.

राव मालदेव ने अपनी रूठी रानी उमादे के लिए जोधपुर में किले के पास एक हवेली बनवाई. उन्हें विश्वास था कि कभी न कभी रानी मान जाएगी.

जैसलमेर की यह राजकुमारी बहुत खूबसूरत व चतुर थी. उस समय उमादे जैसी खूबसूरत महिला पूरे राजपूताने में नहीं थी. वही सुंदर राजकुमारी मात्र फेरे ले कर राव मालदेव की रानी बन

गई थी. ऐसी रानी जो पति से आजीवन रूठी रही. जोधपुर के इस शक्तिशाली राजा मालदेव ने उमादे को मनाने की बहुत कोशिशें कीं मगर सब व्यर्थ. वह नहीं मानी तो नहीं मानी. आखिर में राव मालदेव ने एक बार फिर कोशिश की उमादे को मनाने की. इस बार राव मालदव ने अपने चतुर कवि आशानंदजी चारण को उमादे को मना कर लाने के लिए जैसलमेर भेजा.

चारण जाति के लोग बुद्धि से चतुर व वाणी से वाकपटुता व उत्कृष्ट कवि के तौर पर जाने जाते हैं. राव मालदेव के दरबार के कवि आशानंद चारण बड़े भावुक थे. निर्भीक प्रकृति के वाकपटु व्यक्ति.

जैसलमेर जा कर आशानंद चारण ने किसी तरह अपनी वाकपटुता के जरिए रूठी रानी उमादे को मना भी लिया और उन्हें ले कर जोधपुर के लिए रवाना भी हो गए. रास्ते में एक जगह रानी उमादे ने मालदेव व दासी भारमली के बारे में कवि आशानंदजी से एक बात पूछी.

मस्त कवि समय व परिणाम की चिंता नहीं करता. निर्भीक व मस्त कवि आशानंद ने भी बिना परिणाम की चिंता किए रानी को 2 पंक्तियों का एक दोहा बोल कर उत्तर दिया—

माण रखै तो पीव तज, पीव रखै तज माण.

दोदो गयंदनी बंधही, हेको खंभु ठाण.

यानी मान रखना है तो पति को त्याग दे और पति को रखना है तो मान को त्याग दे. लेकिन दोदो हाथियों को एक ही खंभे से बांधा जाना असंभव है.

आशानंद चारण के इस दोहे की दो पंक्तियों ने रानी उमादे की सोई रोषाग्नि को वापस प्रज्जवलित करने के लिए आग में घी का काम किया. उन्होंने कहा, ‘‘मुझे ऐसे पति की आवश्यकता नहीं है.’’ रानी उमादे ने उसी पल रथ को वापस जैसलमेर ले चलने का आदेश दे दिया.

आशानंदजी ने मन ही मन अपने कहे गए शब्दों पर विचार किया और बहुत पछताए, लेकिन शब्द वापस कैसे लिए जा सकते थे. उमादे जो इतिहास में रूठी रानी के नाम से प्रसिद्ध है, अपनी रूपवती दासी भारमली के कारण ही अपने पति राजा मालदेव से रूठ गई थीं और आजीवन रूठी ही रहीं.

जैसलमेर आए कवि आशानंद चारण ने फिर रूठी रानी को मनाने की लाख कोशिश की लेकिन वह नहीं मानीं. तब आशानंदजी चारण ने जैसलमेर के राजा लूणकरणजी से कहा कि अपनी पुत्री का भला चाहते हो तो दासी भारमली को जोधपुर से वापस बुलवा लीजिए. रावल लूणकरणजी ने ऐसा ही किया और भारमली को जोधपुर से जैसलमेर बुलवा लिया.

भारमली जैसलमेर आ गई. लूणकरणजी ने भारमली का यौवन रूप देखा तो वह उस पर मुग्ध हो गए. लूणकरणजी का भारमली से बढ़ता स्नेह उन की दोनों रानियों की आंखों से छिप न सका. लूणकरणजी अब दोनों रानियों के बजाय भारमली पर प्रेम वर्षा कर रहे थे. यह कोई औरत कैसे सहन कर सकती है.

लूणकरणजी की दोनों रानियों ने भारमली को कहीं दूर भिजवाने की सोची. दोनों रानियां भारमली को जैसलमेर से कहीं दूर भेजने की योजना में लग गईं. लूणकरणजी की पहली रानी सोढ़ीजी ने उमरकोट अपने भाइयों से भारमली को ले जाने के लिए कहा लेकिन उमरकोट के सोढ़ों ने रावल लूणकरणजी से शत्रुता लेना ठीक नहीं समझा.

तब लूणकरणजी की दूसरी रानी जो जोधपुर के मालानी परगने के कोटड़े के शासक बाघजी राठौड़ की बहन थी, ने अपने भाई बाघजी को बुलाया. बहन का दुख मिटाने के लिए बाघजी शीघ्र आए और रानियों के कथनानुसार भारमली को ऊंट पर बैठा कर मौका मिलते ही जैसलमेर से छिप कर भाग गए.

लूणकरणजी कोटड़े पर हमला तो कर नहीं सकते थे क्योंकि पहली बात तो ससुराल पर हमला करने में उन की प्रतिष्ठा घटती और दूसरी बात राव मालदेव जैसा शक्तिशाली शासक मालानी का संरक्षक था. अत: रावल लूणकरणजी ने जोधपुर के ही आशानंद कवि को कोटडे़ भेजा कि बाघजी को समझा कर भारमली को वापस जैसलमेर ले आएं.

दोनों रानियों ने बाघजी को पहले ही संदेश भेज कर सूचित कर दिया कि वे बारहठजी आशानंद की बातों में न आएं. जब आशानंदजी कोटड़ा पहुंचे तो बाघजी ने उन का बड़ा स्वागतसत्कार किया और उन की इतनी खातिरदारी की कि वह अपने आने का उद्देश्य ही भूल गए.

एक दिन बाघजी शिकार पर गए. बारहठजी व भारमली भी साथ थे. भारमली व बाघजी में असीम प्रेम था. अत: वह भी बाघजी को छोड़ कर किसी भी हालत में जैसलमेर नहीं जाना चाहती थी.

शिकार के बाद भारमली ने विश्रामस्थल पर सूले सेंक कर खुद आशानंदजी को दिए. शराब भी पिलाई. इस से खुश हो कर बाघजी व भारमली के बीच प्रेम देख कर आशानंद जी चारण का भावुक कवि हृदय बोल उठे—

जहं गिरवर तहं मोरिया, जहं सरवर तहं हंस

जहं बाघा तहं भारमली, जहं दारू तहं मंस.

यानी जहां पहाड़ होते हैं वहां मोर होते हैं, जहां सरोवर होता है वहां हंस होते हैं. इसी प्रकार जहां बाघजी हैं, वहीं भारमली होगी. ठीक उसी तरह से जहां दारू होती है वहां मांस भी होता है.

कवि आशानंद की यह बात सुन बाघजी ने झठ से कह दिया, ‘‘बारहठजी, आप बड़े हैं और बड़े आदमी दी हुई वस्तु को वापस नहीं लेते. अत: अब भारमली को मुझ से न मांगना.’’

आशानंद जी पर जैसे वज्रपात हो गया. लेकिन बाघजी ने बात संभालते हुए कहा कि आप से एक प्रार्थना और है आप भी मेरे यहीं रहिए.

और इस तरह से बाघजी ने कवि आशानंदजी बारहठ को मना कर भारमली को जैसलमेर ले जाने से रोक लिया. आशानंदजी भी कोटड़ा गांव में रहे और उन की व बाघजी की इतनी घनिष्ठ दोस्ती हुई कि वे जिंदगी भर उन्हें भुला नहीं पाए.

एक दिन अचानक बाघजी का निधन हो गया. भारमली ने भी बाघजी के शव के साथ प्राण त्याग दिए. आशानंदजी अपने मित्र बाघजी की याद में जिंदगी भर बेचैन रहे. उन्होंने बाघजी की स्मृति में अपने उद्गारों के पिछोले बनाए.

बाघजी और आशानंदजी के बीच इतनी घनिष्ठ मित्रता हुई कि आशानंद जी उठतेबैठे, सोतेजागते उन्हीं का नाम लेते थे. एक बार उदयपुर के महाराणा ने कवि आशानंदजी की परीक्षा लेने के लिए कहा कि वे सिर्फ एक रात बाघजी का नाम लिए बिना निकाल दें तो वे उन्हें 4 लाख रुपए देंगे. आशानंद के पुत्र ने भी यही आग्रह किया.

कवि आशानंद ने भरपूर कोशिश की कि वह अपने कविपुत्र का कहा मान कर कम से कम एक रात बाघजी का नाम न लें, मगर कवि मन कहां चुप रहने वाला था. आशानंदजी की जुबान पर तो बाघजी का ही नाम आता था.

रूठी रानी उमादे ने प्रण कर लिया था कि वह आजीवन राव मालदेव का मुंह नहीं देखेगी. बहुत समझानेबुझाने के बाद भी रूठी रानी जोधपुर दुर्ग की तलहटी में बने एक महल में कुछ दिन ही रही और फिर उन्होंने अजमेर के तारागढ़ दुर्ग के निकट महल में रहना शुरू किया. बाद में यह इतिहास में रूठी रानी के नाम से प्रसिद्ध हुई.

राव मालदेव ने रूठी रानी के लिए तारागढ़ दुर्ग में पैर से चलने वाली रहट का निर्माण करवाया. जब अजमेर पर अफगान बादशाह शेरशाह सूरी के आक्रमण की संभावना थी, तब रूठी रानी कोसाना चली गई, जहां कुछ समय रुकने के बाद वह गूंदोज चली गई. गूंदोज से काफी समय बाद रूठी रानी ने मेवाड़ में केलवा में निवास किया.

जब शेरशाह सूरी ने मारवाड़ पर आक्रमण किया तो रानी उमादे से बहुत प्रेम करने वाले राव मालदेव ने युद्ध में प्रस्थान करने से पहले एक बार रूठी रानी से मिलने का अनुरोध किया.

एक बार मिलने को तैयार होने के बाद रानी उमादे ने ऐन वक्त पर मिलने से इनकार कर दिया.

रूठी रानी के मिलने से इनकार करने का राव मालदेव पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा और वह अपने जीवन में पहली बार कोई युद्ध हारे.

वर्ष 1562 में राव मालदेव के निधन का समाचार मिलने पर रानी उमादे को अपनी भूल का अहसास हुआ और कष्ट भी पहुंचा. उमादे ने प्रायश्चित के रूप में उन की पगड़ी के साथ स्वयं को अग्नि को सौंप दिया.

ऐसी थी जैसलमेर की भटियाणी उमादे रूठी रानी. वह संसार में रूठी रानी के नाम से अमर हो गईं.

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