हमें तुम सिर्फ और सिर्फ बेवकूफ नजर आते थे. पूरे 9 महीने हां, पूरे 9 महीने तक कमल का बच्चा मेरे पेट में रहा. 9 महीने बाद हम एक बेटे के मांबाप बन गए. तुम मुझ से प्रैग्नैंसी के दौरान दूर रहे लेकिन कमल उस पीरियड में भी डाक्टरी सुझाव से संबंध बनाता रहा. तुम पिता बन कर बहुत खुश हुए थे और हम अपने प्यार को मंजिल पर पहुंचा कर खुश थे. तुम न्यू बौर्न बेबी का नाम एम अल्फाबेट से रखना चाहते थे लेकिन कमल का मन था प्रेम नाम रखने का. मैं ने भी कमल की हां में हां मिलाते हुए प्रेम नाम पर मुहर लगा दी. तुम प्रेम से बेपनाह प्रेम करने लगे.
तुम्हारे लिए प्रेम ही सबकुछ हो गया था. प्रेम के नाम से जागना, प्रेम के नाम से सोना. सबकुछ प्रेम पर ही अटक गया था तुम्हारा. और मैं लापरवाहों की तरह बस कमल और कमल करती रहती. पर मामला वहीं रुक जाता तो अच्छा होता शायद. अब कमल का हक मुझ पर बढ़ने लगा था. मैं पूरी तरह से कमल की हो गई थी. प्रेम के भविष्य को ले कर मैं तुम से कभी कोईर् चर्चा करना पसंद नहीं करती. कमल जो कहता वही मुझे सही लगता. रात में हम साथसाथ जरूर सोते पर मैं तुम्हें छूने तक न देना चाहती थी. मुझे घृणा होती थी तुम से. मेरी शारीरिक जरूरतें कमल दिन में पूरा कर दिया करता था. तुम्हारी जरूरत महज रुपएपैसों को ले कर रह गई थी.
मेरा बस चलता तो मैं तुम्हें अपने साथ भी न रखती, लेकिन कमल हर बार मुझे मना लेता था. उस की नजर में तुम्हारे जैसा बेवकूफ शायद कोई नहीं था. हम तुम्हारा शोषण करते रहे और तुम शोषित होते रहे. लेकिन अब केवल तुम्हारे शोषित होने या मेरे त्रियाचरित्र का खेल खेलने तक बात न रह गईर् थी. कमल की इच्छाएं बढ़ने लगी थीं. वह अपनी म्यूजिक कंपनी लौंच करना चाहता था. जिस में मुझे वह डांसर लौंच करता, म्यूजिक वीडियों में. मैं पूरी तरह से उस के समर्थन में खड़ी थी. मुझे अपने अधूरे सपने सच होने की संभावनाएं पूरी होती लगीं. मैं जागते हुए सपने देखने लगी. पर एक सचाई यह भी थी कि कमल को इस सपने को पूरा करने के लिए बहुत बड़ी रकम की आवश्यकता थी जिस का जुगाड़ कमल चाह कर भी करने में असमर्थ था.
मार्केट में उस की छवि ऐसी थी कि कोई 2 रुपए तक उधार न दे. हमारा सपना पूरा करने का एक मात्र रास्ता घर को बेच कर रुपए जुटाने पर आ अटका. कमल मेरा माइंड पूरी तरह वाश कर चुका था. चूंकि फ्लैट मेरे नाम से तुम ने लिया था, इसलिए कानूनी तौर पर तुम्हारा कोई इंटरफेयर वैलिड नहीं था. तुम ने बहुत ही मेहनत से फ्लैट लिया था. मेरी मनमानी पर पहली बार तुम ने आपत्ति की थी. तुम्हें मंजूर न था फ्लैट का बिकना. पर मैं ने तुम्हारी एक न चलने दी. मुझे तुम्हें तुम्हारी औकात दिखाने में भी वक्त न लगा. आवेश में मैं तुम्हें नामर्द तक कह गई थी. और प्रेम के जन्म की भी सारी सचाई खोल कर रख दी थी. तुम ठगे से सुनते रह गए थे.
मैं बोलती जा रही थी और तुम भावविहीन, विस्मित हो चुपचाप घर से निकल गए थे जो आज तक लौट कर नहीं आए. तुम्हारे जाते ही मैं ने फ्लैट बेच दिया. हम अब पूरी तरह से स्वतंत्र थे. हमारे सपने सच होने वाले हैं, मैं तो बस यही सोचती रह गई और कमल धीरेधीरे मुझ से पैसे लेता चला गया. कभी किसी स्टार सिंगर के संग मीटिंग के नाम पर तो कभी औफिस सैटलमैंट के नाम पर.
कभी म्यूजिक डायरैक्टर के हाफ पेमैंट का बहाना बनाता तो कभी वीडियो डायरैक्टर, कैमरामैन, स्पौट बौय को देने के नाम पर. वह पैसे मांगता रहा और मैं पैसे देती रही. दिल्ली के कई शूटिंग स्पौट पर भी ले कर जाता था. मैं तो मुग्ध हो जाया करती थी. कैमरे की फ्लैश लाइट में खो जाया करती थी मैं. सीन, लाइट, कैमरा सुनते ही मेरे अंदर झुरझुरी सी होने लगती. कमल के झूठे लाइवशो का सिलसिला अधिक दिन न चल सका. मेरे पैसे खत्म होने लग गए. कमल की मांगें बढ़ती ही गईं.
फ्लैट बिक चुका था. अकाउंट खाली हो चुका था. अब उस की नजर मेरे गहनों पर थी. लगभग गहने भी उस ने बिकवा दिए. मैं रुपएरुपए को तरसने लग गई. मेरी जरूरतें मुंह खोले मुझे चिढ़ाने लगीं. मैं बरबाद हो चुकी थी. कमल मुझ से दूर होने लगा था. मैं गृहस्थी चलाने में भी असमर्थ हो गई थी. कमल को अब मेरा फोन भी वाहियात लगने लगा था. मेरा रूप ढलने लगा था. मेरा शृंगार अपनी रंगत खो चुका था. जिस के गले में मैं ने ही बूंदबूंद कर के जहर डाला था, एक दिन तो दम तोड़ना ही था. आखिर मैं गलत ही तो कर रही थी. और गलत कामों का नतीजा तो मुझे भुगतना ही था.
मैं अब कमल से आरपार का फैसला कर लेना चाहती थी. अंतिम बार जब मैं उस से मिली तो उस ने साफसाफ शब्दों में कह दिया, ‘तुझ जैसी बाजारू औरत के लिए अपना समय बरबाद नहीं करता कमल. तुम से बढि़या तो वेश्याएं होती हैं, जो पैसों के लिए गैर मर्दों के संग सोया करती हैं. कम से कम किसी को धोखा तो नहीं देतीं. तू जब अपने बाप की, अपने पति की नहीं हुई तो मेरी कैसे हो सकती है?’
मैं अपने प्यार की दुहाई देती रही पर कमल पर कोई असर नहीं हुआ. उस ने आगे स्पष्ट किया, ‘तू न तो मेरी जिंदगी की पहली औरत है और न ही आखिरी.’ मैं फिर भी गिड़गिड़ाती रही पर उस पर कोई असर नहीं हुआ. मैं रूप, जवानी, धनदौलत सब लुटा चुकी थी. कमल अपनी मर्दानगी साबित करने के लिए मुझे मां तक बना चुका था. उस के जीवन में कोई और आ चुकी थी. नई चिडि़या को फांसने के लिए पुरानी का घरौंदा उजाड़ चुका था.
कमल की हकीकत मेरे सामने थी. मैं चुप नहीं रह सकती थी. मैं होश खो रही थी. मेरी आंखों में गुस्सा उबल रहा था. मैं उस का मर्डर कर देना चाहती थी. मैं आवेश में आ कर कमल पर चाकू फेंक मारने लगी. वह बच निकला. मुझे गालियां देते वहां से भागते हुए चला गया. उस के हाथ पर चाकू के निशान पड़ गए थे. उस ने हाफमर्डर का केस दर्ज कर दिया. असीम ने मुझे सचेत करते हुए पुलिस के आने से पहले गुड़गांव छोड़ भाग जाने की सलाह दी. असीम ने ही आगरा में मेरे और अभिलाषा के रहने का प्रबंध कर दिया. लेकिन साथ ही असीम मोहित के परिवार को भी इस घटना की सूचना दे चुका था.
तुम्हारी मां और बहन हमारे भागने से पहले ही आ कर मेरे हाथों से प्रेम को छीन कर ले गईं. मैं आगरा चली आई. कुछ दिनों बाद असीम ने आगरा आ कर अपने पैसों से मेरे लिए एक ब्यूटीपार्लर खुलवा दिया. तब से आज तक मैं आगरा की ही हो कर रह गई. रातभर मेरे दिलोदिमाग में मेरी पूरी जिंदगी नाचती रही. मैं पछतावे की अग्नि में जले जा रही हूं. मुझे ग्लानि हो रही है खुद पर. सुबह उठते ही सब से पहले शादी का पहला कार्ड मैं तुम्हारे परिवार को बाईपोस्ट भेजने कूरियर औफिस के लिए चल दी. शायद एक बार अपने बेटे को देखने की लालसा जाग्रत हो उठी थी.
कूरियर करवा कर मैं वापस घर आ कर तुम्हारी और प्रेम की फोटो को ले कर बैठ गई. मेरी आंखों से आंसू अपनेआप बहने लगे. मैं तुम्हारे फोटो पर गिरे अपने आंसू की बूंदों को अपने आंचल से पोंछने लगी. पता ही नहीं चला कब कमबख्त आंसू आंखों से ढुलक कर तुम्हारे फोटो पर आ गिरा था. मैं तुम्हारे फोटो से कहने लगी, ‘पहले मैं रोती थी तो तुम या कभी कमल अपना कंधा दे कर चुप करवा दिया करते थे. लेकिन अब मैं नहीं रोती. रोने का दिल भी होता तो भी मैं नहीं रोती. कोई सांत्वना के 2 शब्द बोल कर चुप करवाने वाला जो नहीं है. अब अगर रोती हूं तो उपहास का पात्र बन जाती हूं.’ तुम फिर से जवाब तलब करने आ जाते हो,
‘तुम कमल को अपना लो. अब तो मैं भी नहीं हूं तुम्हारे जीवन में. तुम्हें कमल को अपनाने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए.’ ‘दिक्कत तो कुछ नहीं है लेकिन तुम भूल रहे हो शायद कि मैं आज भी तुम्हारी पत्नी हूं. एक परित्यक्ता ही सही पर तलाकशुदा नहीं हूं. और फिर मैं वही गलती दोबारा कैसे दोहरा सकती हूं.’ ‘क्या तुम भी गलती कर सकती हो?’ ‘तुम्हारे वाक्य में कटाक्ष है. लेकिन फिर भी मैं प्रतिउत्तर दूंगी… हां, मैं गलती कैसे कर सकती हूं.
आज से 10 साल पूर्व वाली माया होती तो शायद यही उत्तर देती. लेकिन आज वाली माया जान चुकी है खुद को. खुद के परिवेश को, इस समाज को, सामाजिक आहर्ता को. वक्त सबकुछ सिखा देता है. मैं भी सीख चुकी हूं.’ ‘काश कि तुम पहले समझ जाती.’ ‘काश…’ ‘तुम में दिक्कत क्या है, तुम जानती हो? तुम किसी को अपने आगे कुछ समझती ही नहीं. तुम्हें तुम्हारी दुनिया सब से ज्यादा प्यारी लगती. तुम इस दुनिया को भी अपने अनुसार चलाना चाहती हो, लेकिन ऐसा नहीं होता. वास्तविकता का धरातल कुछ और ही है, जिसे तुम ने कभी समझने की कोशिश ही नहीं की.’ ‘तभी तो आज भुगत रही हूं.’