इंटिमेट सीन्स के बारे में क्या कहती है एक्ट्रेस दीक्षा जोशी, पढ़ें इंटरव्यू 

25 साल से गुजरात के अहमदाबाद में रह रही गुजराती अभिनेत्री दीक्षा जोशी को पहली सफलता गुजराती फिल्म ‘करसनदास पे एंड यूज़’ और दूसरी फिल्म ‘शर्तो लाग से मिली. हालाँकि उन्होंने कभी भी फिल्मों में एक्टिंग करने के बारें में सोचा नहीं था, लेकिन थिएटर में काम करना पसंद करती थी. दीक्षा ने बचपन से माँ रश्मि जोशी को सितार बजाते हुए देखा है और खुद भी डांस और गाना गाती थी. दीक्षा की अभिनय क्षमता बहुत है, कही पर किसी भी किरदार को निभाने से वह डरती नहीं, उनमें एक आत्मविश्वास है, जो उन्हें बचपन से अभिनय करने की वजह से मिला है. हंसमुख और मृदुभाषीदीक्षा ने हिंदी फिल्म जयेशभाई जोरदार में रणवीर सिंह की बहन प्रीति की भूमिका निभाई है, जिसमे बड़े कलाकारों के साथकाम करने और बहुत कुछ नजदीक से जानने का मौका मिला. फिल्म रिलीज हो चुकी है. दर्शक उनके अभिनय को काफी पसंद कर रहे है. व्यस्त दिनचर्या के बीच उन्होंने गृहशोभा के लिए बात की,क्योंकि उन्हें इस पत्रिका में मेकअप वाला पार्ट पढना बहुत पसंद है. नेल आर्ट के बारें में मैंने पहली बार इस मैगजीन में पढ़ा था. आइये जानते है, दीक्षा से जुडी बातें, उनकी जुबानी

सवाल – फिल्मों में आने की प्रेरणा कैसे मिली? परिवार की प्रतिक्रिया क्या थी?

जवाब –मेरी पूरी फॅमिली में कोई भी फिल्म इंडस्ट्री से नहीं है. मेरी माँ सितार बजाती है. उन्हें पता था कि मैं भी किसी न किसी तरह से आर्ट में ही जाउंगी, फिर चाहे वह परफोर्मिंग आर्ट हो या क्रिएटिव फील्ड. मैं डांस और गाना दोनों ही करती थी, मेरी माँ मुझे हर प्रतियोगिता में भेजती थी. मेरी माँ का पूरा ध्यान मुझपर था. शुरू में वह मेरे साथ जाती थी, पर फिल्में शुरू होने पर उन्होंने मेरे साथ जाना छोड़ दिया.

सवाल – पहला अभिनय किस उम्र में किया ?

जवाब –पहला अभिनय मैंने 6 साल की उम्र में एक छोटे प्ले से किया था. फिल्मों में 21 वर्ष की उम्र में अभिनय शुरू किया.

सवाल – जयेशभाई जोरदार में काम करने की खास वजह काया रही?

जवाब – जयेशभाई जोरदार में मैं अभिनेता रणवीरसिंह की बहन प्रीति की भूमिका निभाया है.  ये चरित्र अपने आप में बहुत अलग है. पूरी फिल्म में मेरी एक अच्छी ग्राफ है. गुजराती फिल्मों में मैं अधिकतर नायक की भूमिका निभाई है, जबकि इस फिल्म में मैंने एक करैक्टर आर्टिस्ट की भूमिका निभाई है, जो मेरी फिल्मों से बहुत अलग है. मुझे हमेशा लगता है कि मुख्य भूमिका के अलावा चरित्र अभिनेत्री को अभिनय करने का अधिक मौका मिलता है. इसलिए मैंने ये मौका नहीं छोड़ा, क्योंकि ये एक लेयर्ड, इमोशनल और खूबसूरत अभिनय मेरे लिए रहा. इसमें एक नटखट और बुद्धिमती लड़की जो अपने अलग अंदाज में जीती है. दर्शक मेरी इस चरित्र को काफी पसंद कर रहे है. उनके कॉमेंट्स और बहुत सरे मेसेजआ रहे है. असल में मैंने अपने दोस्तों को मेरी भूमिका के बारें में नहीं बताया था, फिल्म रिलीज होने के बाद उन्होंने मुझे कॉल कर बधाई दी. असल में मैं एक्टिंग कर लेने के बाद खुद पहले उसे हॉल में जाकर देखती हूँ, फिर मैं किसी की प्रसंशा को स्वीकार कर पाती हूँ. कलेक्शन से अधिक मुझे दर्शकों की तालियाँ सुनना पसंद है.

सवाल – इस भूमिका से आप कितना रिलेट कर पाती है?

जवाब –प्रीति किसी भी समस्या का समाधन तुरंत ढूढ़ लेती है, पर दीक्षा किसी समस्या से पैनिक हो जाती है और उस परिस्थिति को सुलझाने में काफी समय लेती है. इसके अलावा एक चरित्र बहुत सारी चीजे देकर जाता है और उसे निभाने वाला कुछ न कुछ अवश्य उससे ले लेता है. मैंने भी लिया होगा.

सवाल – आप उत्तराखंड की होने बावजूद गुजराती फिल्मों में अधिक सक्रिय है, वजह क्या है? अपनी जर्नी से कितने संतुष्ट है?

जवाब – मैं उत्तराखंड से हूँ, मेरे पेरेंट्स भी पहाड़ से ही है. दूर-दूर तक गुजरात से मेरा कोई नाता नहीं था. मेरे पिता साइंटिस्ट होने की वजह से उन्हें लखनऊ से अहमदाबाद शिफ्ट होना पड़ा. मेरी पूरी शिक्षा अहमदाबाद में हुई. मैंने अंग्रेजी साहित्य से मास्टर किया है, पर वहां गुजराती बोलने की परमिशन नहीं थी, पर मेरी बचपन से आदत थी कि जिस भाषा में मेरी रूचि है, उसे मैं सुनकर जल्दी सीख लेती थी. गुजराती फिल्मों के लिए मैंने गुजराती सीखी. मैने बचपन से थिएटर करना शुरू कर दिया था. मैं अधिकतर हिंदी और अंग्रेजी में नाटक किया करती थी, लेकिन गुजराती फिल्मों में मैंने अच्छी कहानी और भूमिका को देखा है, तो मैं भी ऑडिशन देने लगी. पहले फिल्मों को करने में थोड़ी परेशानी हुई पर अब सभी मुझे गुजराती ही समझते है. मैं करीब 25 साल से गुजरात में रह रही हूँ.

सवाल –क्या आपको हिंदी फिल्मों में काम करने की इच्छा है ?

जवाब –हिंदी फिल्मों में मौका मिलने पर अवश्य काम करुँगी. मैंने कभी फिल्मों में एक्टिंग करने के बारें में नहीं सोचा था, मुझे थिएटर आर्टिस्ट बनने के साथ-साथ जर्नालिस्ट बनना था और आगे चलकर Phd करना था, लेकिन मैंने जब कुछ शोर्ट फिल्म की तो मुझे समझ में आया कि मैं इस दिशा को भी एक्स्प्लोर कर सकती हूँ, क्योंकि इससे पहले मुझे लगता था कि सुंदर लडकियां ही फिल्मों में अभिनय करती है और मैं उतनी सुंदर नहीं हूँ. जब मैंने कैमरे के आगे अभिनय किया, तो बहुत अच्छा महसूस हुआ. फिर मैंने इसमें आगे बढ़ने का मन बनाया. ऑडिशन देना शुरू की और थोड़े दिनों में मुझे एक के बाद एक अच्छी गुजराती फिल्मे मिलने लगी. मेरी दो गुजराती फिल्में बहुत अच्छी चली, जिससे लोग मुझे पहचानने लगे और मैंने गुजराती फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया.

सवाल – अन्तरंग सीन्स को करने में कितनी सहज होती है?

जवाब – ये कहानी पर निर्भर होती है कि दृश्य क्या होंगे. जरुरत के बिना भी कुछ फिल्में इंटिमेट सीन्स डाल देती है. अगर कोई फिल्म रिलेशनशिप पर बन रही हो, जिसमें कहानी  गहराई तक ले जाने की कोशिश कर रहे है तो ऐसे में इंटिमेट दृश्य करना जरुरी होता है. इसमें सबसे जरुरी होता है, शूट करने के तरीके, क्योंकि मैंने भी ऐसे दृश्य किये है, मेरा अनुभव बताता है कि सेट पर 15 से 20  खड़े रहने पर ऐसे दृश्य करना असुविधाजनक होता है. ऐसे दृश्य देखने में आसान लगता है, पर ये बहुत कठिन होते है. मैंने जब ऐसी सीन्स किये, तो निर्देशक ने सबको बाहर निकाल दिया था और उन्होंने मुझे सही माहौल दिया, ताकि मैं आसानी से उस दृश्य को कर सकूँ. हिंदी फिल्मों में तो कई बार ऐसी दृश्य को फिल्माने के लिए इंस्ट्रक्टर होते है, जो सीनको सही तरीके से परफॉर्म करना सिखाते है. गुजराती में अभी अधिक ऐसे इंटिमेट सीन्स दिखाए नहीं गए है, पर अब दिखाए जा रहे है, क्योंकि ओटीटी की वजह से आज सभी दर्शक ऐसे कुछ अलग दृश्यों को गुजराती में देखना पसंद कर रहे है.

सवाल – किस शो ने आपकी जिंदगी बदली?

जवाब – करसनदास में मेरी मुख्य भूमिका एक काम वाली बाई की थी और वह ठेठ गुजराती अलग तरीके की भाषा बोलती है. मैंने तब गुजराती सीखी थी. मेरे घर पर काम वाली से मैने घंटो-घंटो बात किया करती थी. इसके अलावा निर्देशक ने भी भाषा को सीखने में काफी मदद की है. इस फिल्म में मैंने जितना भी कठिन परिश्रम किया था, उसका फल मुझे रिलीज के बाद मिली.

सवाल – आगे कौन से फिल्में रिलीज पर है?

जवाब – कई गुजराती और हिंदी फिल्में रिलीज पर है. मेरी एक फिल्म में पहली बार  अभिनेता अमिताभ बच्चन एक छोटी सी भूमिका के लिए आने वाले है. बड़े कलाकारों के साथ काम करने पर हमेशा ही कुछ सीखने को मिलता है.

सवाल – मानसून में खुद का ख्याल कैसे रखती है?

जवाब – मुझे इस साल कोविड हुआ था, लेकिन अधिक समस्या नहीं हुई, क्योंकि अभी मैं मुंबई में ही रहती हूँ. शूट करते हुए अगर किसी को कोविड हो जाता है, तो बहुत मुश्किल होती है. मानसून में मैं कुछ अधिक अपना ख्याल नहीं रख पाती, क्योंकि मैं बहुत केयरलेस लड़की हूँ,मैं अभी अहमदाबाद में हूँ, जहाँ बहुत गर्मी है. मैं मानसून को बहुत एन्जॉय करती हूँ और कुछ भी ख़राब नहीं लगता.

सवाल – क्या कोई ड्रीम रखती है?

जवाब – हिंदी फिल्मों में मैं निर्देशक मीरा नायर और नंदिता दास के साथ महिला प्रधान फिल्में करने की इच्छा रखती हूँ. इसके अलावा माँ और बेटी की एक फिल्म अगर करने को मिले तो अच्छी बात होगी. मैं खुद लिखकर उसकी फिल्म बनाना चाहती हूँ.

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एक बदनाम–आश्रम 3 ! मीडिया के सामने निकला प्रकाश झा का डर

अपने बेखौफ और बेबाक विषयों से समाज को सच्चाई का आइना दिखानेवाले , सत्ता की राजनीति हो या आस्था के नाम पर धर्म गुरुओं की राजनीति, बिना किसी भय के सच्ची कहानियों को बड़े पर्दे पर दिखाने की इनकी कला कमाल की हैं . जी हा, बेखौफ और निडरता से हर कहानी को बड़ी ही बारीकी से कह देनेवाले डायरेक्टर प्रकाश झा ने हाल ही में आश्रम 3 के प्रेस कॉन्फ्रेंस पहली बार कहा की हां,उन्हे भी डर लगता हैं. जब किसी अनचाही हलचल या विरोध का सामना होता हैं.

मुंबई में जुहू के पांच सितारा होटल में रखी गई MX Player की सबसे बड़ी वेब श्रृंखला एक बदनाम–आश्रम 3 के प्रेस कांफ्रेंस पर जब डायरेक्टर प्रकाश झा को पूछा गया कि आश्रम के पहले सीजन में उनके खिलाफ एफ. आई.आर दर्ज की गई और अब के सीजन में उनपर स्याही फेकी गई ऐसे में लगातार हो रहे हंगामों से क्या वो डर भी जाते हैं?

इनपर प्रकाश झा कहते हैं,“ आश्रम के बारे में ऐसा हैं कि कही कुछ भी हो सकता हैं , कोई कुछ भी कर सकता हैं. क्योंकि हमने विषय ही ऐसा चुना हैं जो समाज का विषय हैं लोगो से संबंध रखता हैं , लेकिन यहां किसी एक व्यक्ति या कल्पना की कहानी नहीं हैं. और मैं ये कहूं की मुझे डर नही लगता ये भी गलत बात हैं. लेकिन डर के जीना भी अच्छा नहीं लगता, तो उसके साथ जीता हूं. और हमेशा से मन करता हैं कि जो कहना हैं वो तो कहना ही हैं. किसी व्यक्ति को अगर व्यक्तिगत रूप से चोट पहुंचाए बिना कुछ कह सकूं,तो मैं कोशिश करता हूं की उसे कहूं अब चाहे वो राजनीतिक हो चाहे हो धार्मिक हो या चाहे वो व्यवसायिक हो. बाकी पत्थर फेंके जाते हैं , गालियां पड़ती हैं, एफ आई आर दर्ज होते हैं चलो कोई नही लोगों के हाथ मजबूत होंगे”.

आश्रम के बॉबी बाबा निराला का चोला पहनकर मायाजाल फैला रहे हैं ऐसे में, जब प्रकाश झा की पूछा गया कि उन्हें बॉलीवुड में वो किसे बाबा निराला समझते है तो उन्होंने हंसकर कहा कि” मेरे सारे दोस्त तो मुझे ही बाबा निराला समझते हैं . मुझसे बड़ा निराला तो कोई हैं ही नहीं . मैं किसी और का नाम क्यों लू”. खैर हसकर प्रकाश झा ने मीडिया के सवालों का बड़ी ही सहजता से जवाब दिया .

आपको बता दे की इस प्रेस कांफ्रेंस में डायरेक्टर और प्रोड्यूसर प्रकाश झा के अलावा दर्शन कुमार, अध्यन सुमन, सचिन श्रॉफ, राजीव सिद्धार्थ, त्रिधा चौधरी ,अनुप्रिया गोयनका और MX Player के सी सी ओ गौतम तलवार भी मौजूद थे. एक बदनाम –आश्रम 3 , MX player पर 3 जून से स्ट्रीम की जाएगी जिसे लोग मुफ्त में देख सकेंगे.

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राजश्री प्रोडक्शन का नया दांव

‘राजश्री प्रोडक्शंस’ के संस्थापक स्व.ताराचंद बड़जात्या की विशेषता रही है कि वह हमेशा पारिवारिक फिल्मों का निर्माण करते हुए नई प्रतिभाओं को अपनी फिल्म में काम करने का अवसर देेते रहे हैं. यॅूं तो ‘राजश्री प्रोडक्शन’ से कैरियर की शुरूआत करने वाले कलाकारों, निर्देशकों व संगीतकारों की एक लंबी सूची है.मगर यहां पर एक फिल्म का जिक्र जरुरी है.1989 में ‘राजश्री प्रोडक्शन’ के तहत फिल्म ‘‘मैने प्यार किया’’ का निर्माण हुआ था,जिससे ताराचंद बड़जात्या के पोते सूरज बड़जात्या ने बतौर निर्देशक, लेखक सलीम खान के बेटे सलमान खान व भाग्यश्री ने अपने कैरियर की शुरूआत की थी.और इस फिल्म की सफलता ने इन तीनों को बौलीवुड में स्थापित कर दिया था.

अब ताराचंद बड़जात्या और उनके बेटे राज कुमार बड़जात्या इस दुनिया में नही है.राज कुमार बड़जात्या के बेटे सूरज बड़जात्या ने बीच में कई फिल्में स्थापित कलाकरको साथ बनायी.मगर अब एक बार फिर वह भी ‘राजश्री प्रोडक्शन’ की पुरानी परंपरा के पथ पर चलते हुए अपने बेटे अवनीश बड़जात्या के लिए फिल्म बनाने जा रहे हंै,जो कि ‘राजश्री प्रोडक्शन’के बैनर तले बनने वाली 59 वीं फिल्म होगी.इस फिल्म में वह अपने बेटे अवनीश बड़जात्या (स्व.ताराचंद बड़जात्या के पड़पोते) को बतौर निर्देशक के अलावा अभिनेता धर्मेंद्र के पोते व अभिनेता सनी देओल के बेटे राजवीर देेओल को बतौर अभिनेता तथा अभिनेत्री पूनम ढिल्लों व फिल्म निर्माता अशोक ठाकरिया की बेटी पलोमा को बतौर अभिनेत्री लांच कर रहे हैं.इस फिल्म का फिल्मांकन जुलाई 2022 में शुरू होगा.

फिल्म की कहानी आज के युग की प्रेम कहानी होगी,जो एक भव्य डेस्टिनेशन शादी के दौरान पल्लवित होती है.फिल्म के निर्देशक अवनीश कहते हैं-‘‘यह फिल्म, प्यार के रिश्तों और उनकी जटिलताओं और सरलताओं की कहानी को दर्शाएगी.पलोमा एक बेहतरीन कलाकार हैं और उनकी स्क्रीन पर जबरदस्त उपस्थिति है. वह फिल्म के किरदार के लिए एकदम फिट हैं.पलोमा और राजवीर स्क्रीन पर एक साथ शानदार केमिस्ट्री साझा करते हैं.यह दोनों अपनी भूमिकाओं में सहजता से घुल-मिल गए हैं.”

देखना है कि ‘‘राजश्री प्रोडक्शन’’ की  75 वर्ष की विरासत मको अवनीश एस. बड़जात्या,राजवीर देओल और पलोमा किस तरह आगे बढ़ाते हैं.

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43 साल की उम्र में Kanika Kapoor ने की दूसरी शादी, फोटोज वायरल

बॉलीवुड हो या टीवी इंडस्ट्री, इन दिनों शादी का सिलसिला जारी है. जहां बीते दिनों एक्ट्रेस आलिया भट्ट ने अपनी सिंपल वेडिंग से फैंस को चौंका दिया था तो वहीं अब सिंगर कनिका कपूर की वेडिंग फोटोज (Kanika Kapoor Wedding) सोशलमीडिया पर छाई हुई हैं. आइए आपको दिखाते हैं बेबी डॉल फेम सिंगर कनिका कपूर की वेडिंग फोटोज की झलक…

कनिका कपूर ने की शादी

 

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हाल ही में बॉलीवुड की पौपुलर सिंगर कनिका कपूर (Kanika Kapoor) ने NRI बिजनेसमैन  गौतम संग शादी की है, जिसकी फोटोज वायरल हो रही हैं. लंदन में सात फेरे लेने वाली सिंगर कनिका कपूर ने पिंक कलर का हैवी ब्राइडल लहंगा पहना था, जिसके साथ मैचिंग ज्वैलरी सिंगर के लुक पर चांद लगा रही थी. वहीं सिंगर के पति गौतम के लुक की बात करें तो वह क्रीम कलर की शेरवानी पहने दिखे थे.

वेडिंग फंक्शन की दिखाई थी झलक

 

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शादी की फोटोज के अलावा सिंगर कनिका कपूर की मेहंदी फोटोज भी इन दिनों सोशलमीडिया पर छाई हुई हैं. अपने वेडिंग फंक्शन की फोटोज को फैंस के साथ शेयर करने वाली सिंगर कनिका कपूर ने अपने पति को किस करते हुए भी फोटोज शेयर की थी.

शादी में दिए ढेरों पोज

कनिका कपूर की शादी में केवल फैमिली और करीबी दोस्त शामिल हुए थे, जिसमें दोनों ढेरों रोमांटिक पोज शेयर करते हुए नजर आए. वहीं सोशलमीडिया पर शादी की एक वीडियो वायरल हो रही है, जिसमें सिंगर कनिका कपूर  ‘फूलों की चादर’ के नीचे से एंट्री करते हुए नजर आ रही हैं.

 

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बता दें, 43 साल की उम्र में सिंगर कनिका कपूर ने दूसरी शादी की है. वहीं पहले पति राज चंदोक से उनका साल 2012 में तलाक हुआ था, जिनसे उनके तीन बच्चे हैं, जिनकी फोटोज औऱ वीडियो वह सोशलमीडिया पर शेयर करती रहती हैं.

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REVIEW: जानें कैसी है कार्तिक आर्यन और कियारा अडवाणी की ‘Bhool Bhulaiyaa 2’

रेटिंगः डेढ़ स्टार स्टार

निर्माताः टीसीरीज

निर्देशकः अनीस बजमी

कलाकारः कार्तिक आर्यन, कियारा अडवाणी, तब्बू, मिलिंद गुणाजी, राजपाल यादव, संजय मिश्रा, अश्विनी कलसेकर,

अवधिः दो घंटे 24 मिनट

2007 में अक्षय कुमार और विद्या बालन के अभिनय से सजी फिल्म ‘‘भूल भुलैय्या’’ ने बाक्स आफिस पर सफलता दर्ज करायी थी. अब 15 वर्ष बाद उसी का सिक्वल हॉरर कॉमेडी फिल्म ‘‘भूल भुलैय्या 2’’लेकर अनीस बज़मी आए हैं, जिसमें कार्तिक आर्यन व किआरा अडवाणी के साथ महत्वपूर्ण किरदार में तब्बू हैं. फिल्म की कहानी के अनुसार 18 वर्ष बाद मंजूलिका का भूत पुनः कमरे से बाहर आ गया है. बहरहाल, यह फिल्म अंध विश्वास को फैलाने काम करने वाली निराशाजनक फिल्म है. फिल्मकार ने यह सोचकर इस फिल्म को बनाया है कि सभी दर्शक अपना दिमाग घर पर रखकर आएंगे और वह जो कुछ भी बेसिर पैर का परोसंेगेे उसे हजम कर जाएंगे.

कहानीः

फिल्म की कहानी बर्फ से ढंके पर्यटन स्थल पर रूहान रंधावा (कार्तिक आर्यन ) और रीत(किआरा अडवाणी   ) के आकस्मिक मिलन से शुरू होती है. रूहान, रीत को बताता है कि वह दिल्ली के एक बिजेस टाइकून का बेटा है,  जो दून स्कूल में शिक्षित है,  जो बिना नौकरी के गुजरात में पतंग उड़ाने के लिए उड़ान भरता है और बनारस में पान खाता है. जबकि रीत एक राजस्थानी लड़की है, जिसके पिता कड़क स्वभाव के हैं.  वह चार साल की डाक्टरी की पढ़ाई पूरी कर चुकी है और अब  अपने पारंपरिक परिवार के खिलाफ विद्रोह करती है. रीत का साथ पाने के लिए रूहान उसे वहां के एक संगीत कार्यक्रम में ले जाता है. वह दोनों जिस बस को छोड देते हैं, वह बस आगे जाकर दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है और सभी यात्री मारे जाते हैं. रीत के परिवार के लोगो को पता चल जाता है कि रीत की मौत हो गयी. सच बताने के  लिए जब रीत अपने घर पर फोन करती है, तो वह अपनी बहन व अपने मंगेतर सागर की बातें सुनकर समझ जाती है कि यह दोेनो एक दूसरे से प्रेम करते हैं और शादी करना चाहते हैं. तब रीत सच बताने का इरादा बदल देती है.  वह चाहती है कि सागर से उसकी बहन की शादी हो जाए. अब रीत अपनी मदद के लिए रूहान को अपने साथ लेकर अपने गांव पहुंचती है और दोनों अपनी उस पुश्ैतनी हवेली मंे जाकर छिप जाते हैं, जिसे भूतिया हवेली कहा जाता है. जिसके अंदर के एक कमरे में मंजूलिका(तब्बू) का भूत कैद है. मगर चैधरी को छोटे पंडित से हवेली में ेलाइट जलने की खबर मिलती है. पूरा परिवार वहंा आता है , जहां रूहान मिलता है. रीत छिप चुकी होती है. रूहान ख्ुाद को मृत आत्माओं  से बात करने वाला बताकर मृत रीत की आत्मा की ख्ुाशी के नाम पर रीत के घर वालांे से कई काम करवाने लगता है. पूरे गांव में उसकी धाक बन जाती है.  और बड़े पंडित की दुकानदारी बंद हो जाती है. इसलिए वह साजिश रचते हैं. रीत खुद को छिपाने के लिए मंजूलिका के कमरे के अंदर चली जाती है. मंजूलिका कमरे से बहार निकलती है. अंत में पता चलता है कि काला जादू करने वाली मंजूलिका ने अपनी बहन अंजूलिका के पति को पाने के लिए अंजूलिका को मार दिया था और ख्ुाद अंजूलिका(तब्बू   ) बनकर मृत अंजूलिका के भूत को मंजूलिका बताकर तांत्रिक(गोविंद नामदेव ) की मदद से कमरे में बंद करा दिया था.

लेखन व निर्देशनः

अनीस बज़मी अतीत में कुछ बेहतरीन मनोवैज्ञानिक रोमांचक फिल्मंे दे चुके हैं. वह हास्य फिल्में भी बना चुके हैं.  मगर हॉरर कॉमेडी फिल्म ‘भूल भुलैया 2’ में वह बुरी तरह से मात खा गए है. कहानी में कुछ भी नयापन नही है. फिल्म की अवधारणाएं रूह हैं.  फिल्म की पटकथा भी काफी गड़बड़ है. 15 साल पहले आयी फिल्म ‘भूल भुलैया’ का संदेश था कि भूत या आत्मा वगैरह कुछ नही होता है. यह हमारे मन का भ्रम है. मगर ‘‘भूल भुलैया 2’’ में रूह, भूत, आत्मा ही है. इसमें भूत दीवार पर चलती हुए नजर आते हैं. बेहूदगी की हद कर दी गयी है.

फिल्म में हास्य दृश्यों का अभाव है. लेखक व निर्देशक ने चुटकुलांे का सहारा लेकर फिल्म को हास्यप्रद बनाए रखने का असफल प्रयास किया है. जी हॉ! फिल्म में मंजुलिका के सफेद-चेहरे,  लंबे-लंबे,  काले कपड़े वाले लुक के अलावा एक अधिक वजन वाले मोटे बच्चे  पर बार-बार चुटकुले हैं. इंटरवल के बाद फिल्म बेवजह खींची भी गयी है. फिल्म का क्लायमेक्स बहुत घटिया है.

अभिनयः

पूरी फिल्म में रीत के किरदार में किआरा अडवाणी के हिस्से करने को कुछ खास आया ही नही. रूहान के किरदार में कार्तिक आर्यन अपनी छाप छोड़ने मंे विफल रहे हैं. वह नृत्य वाले दृश्यों में ही अच्छे लगे हैं. कुछ दृश्यों मंे उनकी उछलकूद मंे जोश नजर आता है. तब्बू ने शानदार अभिनय किया है. सशक्त अभिनेता गोविंद नामदेव को महत्वहीन तांत्रिक के किरदार में देखकर निराश होती है. लोगों को हंसाने के लिए संजय मिश्रा और राजपाल यादव की जुगलबंदी अच्छी है. अमर उपाध्याय व मिलिंद गुणाजी के हिस्से करने को कुद राह ही नही. चाचा के किरदार में राजेश शर्मा भी निराश करते हैं. अश्विनी कलसीकर का अभिनय ठीक ठाक है.

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Cannes 2022 में छाया हिना खान का जलवा, बौलीवुड हसीनाओं को दे रही हैं टक्कर

इन दिनों कान्स फिल्म फेस्टिवल 2022 काफी चर्चा में हैं. जहां बौलीवुड हसीनाएं अपने लुक को लेकर ट्रोल हो रही हैं तो वहीं टीवी एक्ट्रेसेस अपना जलवा बिखेरती दिख रही हैं. एक्ट्रेसेस की इस लिस्ट में हिना खान सबसे ज्यादा सुर्खियों में हैं. दरअसल, हाल ही में एक इंटरव्यू में कान्स फिल्म फेस्टिवल 2022 में एक कार्यक्रम का हिस्सा ना बन पाने को लेकर एक्ट्रेस ने नाराजगी जताई है. हालांकि फैंस के लिए वह अपने लुक्स को फ्लौंट करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं, जिसके चलते हिना खान के कान्स फिल्म फेस्टिवल 2022 के लुक्स चर्चा में हैं. आइए आपको दिखाते हैं हिना खान से लेकर कान्स फिल्म फेस्टिवल 2022 का हिस्सा बनीं टीवी हसीनाओं की झलक…

एक्ट्रेसेस की बीच चर्चा बना हिना खान का लुक

 

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हाल ही में चल रहे कान्स फिल्म फेस्टिवल में दीपिका पादुकोण, उर्वशी रौतेला, पूजा हेगड़े, तमन्ना भाटिया, सिंगर मामे खान जैसे सितारों के बीच एक्ट्रेस हिना खान का लुक चर्चा में हैं, जिसकी फोटोज वह अपने फैंस के लिए सोशलमीडिया पर शेयर करती नजर आ रही हैं. कान्स 2022 के पहले दिन एक्ट्रेस हिना खान ने रेड कलर का औफशोल्डर गाउन कैरी किया था, जिसके साथ सिंपल पर्ल इयरिंग्स और शौर्ट हेयर में हिना खान एलिंगेट और स्टाइलिश लग रही थीं. फैंस को एक्ट्रेस का ये अंदाज काफी पसंद आ रहा है.

 

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दूसरे दिन भी छाया हिना खान का लुक

 

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कान्स में दूसरे दिन एक्ट्रेस हिना खान ब्लैक कलर के ट्रांसपैरेंट आउटफिट में नजर आईं, जिसमें एक्ट्रेस का हौट अंदाज फैंस को काफी पसंद आ रहा है. वहीं सोशलमीडिया पर एक्ट्रेस के फैशन और लुक की काफी तारीफ हो रही हैं. वहीं फैंस उन्हें बौलीवुड एक्ट्रेस से भी ज्यादा खूबसूरत बताते नजर आ रहे हैं.

हेली शाह की हुई हिना खान की तुलना

 

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जहां हिना खान का कान्स 2022 का लुक फैंस के बीच चर्चा में है तो वहीं एक्ट्रेस हेली शाह के लुक को कई लोग हिना खान के लुक की कौपी बताते नजर आ रहे हैं, जिसके चलते वह सुर्खियों में हैं. दरअसल, कान्स 2022 के पहले दिन एक्ट्रेस हेली शाह ने सिल्वर गाउन कैरी किया था, जिसकी ट्रोलर्स हिना खान के साल 2019 में हुए कान्स लुक से तुलना कर रहे हैं.

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REVIEW: जानें कैसी है Kangana Ranaut की फिल्म Dhaakad

रेटिंगः एक स्टार

निर्माताः दीपक मुकुट और सोहे मकलाई

निर्देशकः रजनीश घई

कलाकारः कंगना रनौत,  अर्जुन रामपाल, दिव्या दत्ता, शाश्वत चटर्जी,  शारिब हाशमी और अन्य

अवधिः दो घंटे 13 मिनट

फिल्मकार रजनीश घई एक महिला प्रधान एक्शन जासूसी फिल्म ‘‘धाकड़’’लेकर आए हैं. जिसे देखने के बाद यही समझ में नहीं आया कि यह फिल्म बनायी क्यों गयी है? फिल्म में कथा पटकथा, निर्देशन, कंगना का अभिनय सब कुछ गड़बड़ है. फिल्म ‘‘धाकड़’’देखने के बाद मन में सवाल उठता है कि फिल्म ‘क्वीन’ में शानदार अभिनय करने वाली यही कंगना रानौट थी. ‘धाकड़’में कंगना की अभिनय क्षमता में जबरदस्त गिरावट नजर आती है. वैसे फिल्म देखकर यह समझ में आता है कि 2003 की सफलतम हालीवुड फिल्म ‘‘किलबिल’’ की नकल करने का प्रयास किया गया है.

कहानीः

फिल्म शुरू होती है बुद्धापेस्ट से, जहां एक महिला भारतीय जासूस अग्नि( कंगना रानौट) बंदूकों व तलवारों का उपयोग करते हुए अपनी जान को जोखिम में डाल कर ‘मानव तस्करी’ का व्यवसाय करने वालों के यहां से सैकड़ों छेाटे लड़के व लड़कियों को छुड़ाती है. यहां पर अग्नि को एक पेन ड्राइव मिलती है, जिसमें एशिया के सबसे बड़े बाल तस्कर रूद्रवीर सिंह(अर्जुन रामपाल) के बारे में जानकारी है, जो कि सरकार के खिलाफ नफरत भरकर अपनी साथी रोहिणी(दिव्या दत्ता) के साथ कोयला खदानों पर कब्जा करने के साथ ही छोटे बच्चों की मानव तस्करी करते है. अब अग्नि के बॉस(शाश्वत चटर्जी ) और जिन्होने उसे पाल पोस कर इस लायक बनाया है वह अग्नि को रूद्रवीर को खत्म करने के लिए भारत भेजते हैं. जहां अग्नि की मदद करने के लिए फजल(शारिब हाशमी) है.

पता चलता है कि रूद्रवीर जब अपने साथियों के साथ कोयला चोरी करता है, तो उसके पिता उसे रोकते हैं, तब वह अपने पिता की ही हत्या कर देता है. इसके बाद उसे रोहिणी का साथ मिलता है और देखते ही देखते वह एशिया का सबसे बड़ा मानव तस्कर बन जाता है.

अग्नि के भारत पहुंचने के बाद रूद्रवीर को खत्म करने के लिए अग्नि जुट जाती है. पर अंत में उसे रूद्रवीर को खत्म करने के लिए बुद्धापेस्ट ही जाना पड़ता है. तब रूद्रवीर से पता चलता है कि वह तो उसी इंसान की मोहरा बनी हुई है, जिसने बचपन में उसके माता पिता की हत्या की थी.

लेखन व निर्देशनः

फिल्म की कहानी रजनीश घई ने चिंतन गांधी और रिनिश रवींद्र के साथ मिलकर लिखी है. कहानी काफी घिसी पिटी है. फिल्म का हर दृश्य किसी न किसी फिल्म से चुराया हुआ है. पटकथा बकवास है. पूरी फिल्म हिचकोले लेते हुए धीमी गति से आगे बढ़ती है. फिल्म देखते हुए अहसास होता है कि संवाद लेखक रितेश शाह ने अपना दिमाग कहीं रखने  के बाद ही संवाद लिखे हैं. फिल्म में ‘‘सो जा. . .  सो जा. . ’’गाना कई बार आता है. फिल्म के सभी एक्शन दृश्य अतार्किक हैं. कई दृश्यों का दोहराव भी नजर आता है. इमोशंंस का घोर अभाव है. लेखक व निर्देशक को यही पता नही है कि जब जासूस दुश्मन से भिड़ने जा रहा है, तो बंदूक आदि के साथ ही अपनी सुरक्षा के उपाय करते हुए बुलेट प्रुफ जैकेट वगैरह पहनकर जाता है न कि बिकनी या अति छोटे कपड़े पहनकर जाता है. निर्देशन अति कमजोर है. कहीं भी बेवजह सेक्स दृश्य ठॅंूस दिए गए हैं. मानव तस्करी के व्यवसाय को भी ठीक से रेख्ंााकित नही किया गया. मानव तस्करी के लिए ले जाने वाले बच्चों के साथ किस तरह का व्यवहार होता है, उसका भी कहीं जिक्र नहीं. पूरी फिल्म में कहानी तो कहीं है ही नही. दर्शक सिर्फ यही सोचता रहता है कि यह फिल्म कब खत्म होगी. कोयला खदान के मसले को भी सही ढंग से उठाया ही नहीं गया. रूद्रवीर कोयला खदानांे के व्यवसाय ेसे क्यों जुड़े है, कुछ भी स्पष्ट नही है. दर्शक को लगता है कि उसने इस फिल्म के लिए पैसे व अपना समय खर्च करके बहुत बड़ा अपराध कर दिया है.

कमजोर कहानी, कमजोर पटकथा,  कमजोर निर्देशन, कमजोर एक्शन दृश्य व कमजोर अभिनय ने फिल्म का बंटाधार करके रख दिया है.

अभिनयः

अग्नि के किरदार में कंगना रानौट अपने अभिनय से घोर निराश करती हैं. उन्होने ‘किलबिल’ की नायिका की तरह खुद को साबित करने का असफल प्रयास किया है. वह भूल गयीं कि नकल के लिए भी अकल चाहिए. एक्शन दृश्यों में ऐसा लगता है जैसे कोई बच्चा अपने खिलौने वाली बंदूक से खेल रहा हो. हकीकत में कंगना के लिए अग्नि का किरदार है ही नहीं. रूद्रवीर के किरदार में अर्जुन रामपाल नही जंचे. यह उनके कैरियर की सबसे कमजोर फिल्म है. उनका दिव्या दत्ता, शाश्वत चटर्जी व शारिब हाशमी का अभिनय ठीक ठाक है, मगर इन्हे कहानी व पटकथा से कोई मदद नहीं मिलती.

निर्देशक और एडिटर मनोज शर्मा से जानें उनके संघर्ष की कहानी

मैं आया तो था हीरो बनने, लेकिन 6 महीने में पता चल गया कि मुझे हीरो नहीं निर्देशक बनने की जरुरत है, इसलिए मेरे संघर्ष का दौर कम समय तक चला और आज मैने एक फिल्म डायरेक्ट की है, हँसते हुए कहते है निर्देशक, पटकथा लेखक, एडिटर मनोज शर्मा, उन्होंने एक फिल्म ‘देहाती डिस्को’ का निर्माण किया है, जिसे वे अब थिएटर में रिलीज किया जाएगा, आइये जाने उनके संघर्ष की कहानी उनकी जुबानी.

मिली प्रेरणा

बचपन से ही फिल्मों में काम करने की इच्छा रखने वाले मनोज शर्मा उत्तरप्रदेश के बुलंदशहर के खुर्जा से है. खुर्जा में परिवारवाले क्रोकरी का व्यवसाय करते है, लेकिन मनोज को इस व्यवसाय में काम करना पसंद नहीं था,घर में सबसे छोटे होने की वजह से वे चंचल स्वभाव के थे, किसी का ध्यान उन पर अधिक नहीं था, इसलिए बी.कॉम. की फर्स्ट इयर पूरा करने के बाद वे मुंबई आ गए. मनोज को फिल्में देखने का बहुत शौक था,वे अमिताभ बच्चन, मिथुन चक्रवर्ती, धर्मेन्द्र आदि प्रसिद्ध कलाकारों की हर फिल्म देखा करते थे और फिल्म ने ही उन्हें इस क्षेत्र में आने की प्रेरणा दी है.उनके परिवार वालों ने पहले उन्हें मुंबई आने से मना किया था, लेकिन बाद में उन्हें अपनी इच्छा पूरी करने के लिए सहयोग भी दिया

कला को दी अहमियत

मनोज ने कई फिल्मों में निर्देशक का काम किये है, लेकिन उनकी ये फिल्म बहुत खास है, जिसमे उन्होंने भारतीय कला को आगे बढाने वाली एक इमोशनल ड्रामा फिल्म, जो पिता और बेटे की है. मनोज कहते है कि इसकी कहानी से मैं बहुत प्रभावित हुआ और इसे बनायीं. मैं अधिकतर कॉमेडी फिल्में बनाता हूं.

संघर्ष कैरियर की

मनोज अपने संघर्ष के बारें में कहते है कि मैं एक छोटे शहर से आया हूं. जैसा सभी जानते है कि छोटे शहरों में रहने वालों को बहुत कम फ़िल्मी दुनिया के बारें में पता होता है. सभी यहाँ हीरों बनने ही आते है, मैं भी हीरों बनने ही आया था, लेकिन 6 महीने के अंदर पता चल गया कि मैं हीरों नहीं बन सकता, क्योंकि ऑडिशन दिया, पर किसी ने मुझे हीरो बनने का मौका नहीं दिया. फिर मैंने मेरे एक परिचित की सहायता से फिल्म तहलका के लिए एडिटिंग का काम करने लगा. इस तरह से मैं एडिटिंग और निर्देशन में जुड़ गया और कई फिल्में बनायी. इससे मुझे प्रैक्टिकल ज्ञान अधिक मिला. इसके बाद पुलिस वाला गुंडा, माँ, आदि कई फिल्मों में निर्देशक और एडिटिंग का काम करने लगा. मुझे पहले लगता था कि फिल्मों में हीरो की अधिक क़द्र होती है, लेकिन बाद में पता चला कि एक निर्देशक, एडिटर और कैमरामैन को भी बहुत सम्मान मिलता है. इस क्षेत्र में पहले लर्निंग एसिस्टंट के आधार पर रखा जाता है, जो निर्देशक के साथ जरुरी काम करता है और फिल्म डायरेक्शन भी सीखता रहता है. इसके अलावा लोगों से परिचय बढती है और नया काम मिलने में आसानी होती है.

की मेहनत

पहले जब मनोज काम की तलाश कर रहे थे, तब उनकी मुलाकात निर्देशक अनिल शर्मा से हुई और उन्हें काम मिला. वे कहते है कि मैं उनका 10वीं नंबर का निर्देशक था, जिसका काम भागा-दौड़ी के अलावा कुछ नहीं था. इस काम में किसी को कुर्सी ला देना,पानी देना, ड्रेस को आर्टिस्ट तक पहुँचाना आदि करता था और समय मिलने पर डायरेक्शन को देखता था. एडिटिंग में होने की वजह से मैं अधिकतर डायरेक्टर के साथ रहता था. इससे मुझे काम मिलना आसान हुआ.

इंडस्ट्री में काम करना नहीं आसान

वे आगे कहते है कि कड़े अनुभव मुझे शुरू में मिले, जब मैं एक्टर बनने की कोशिश कर रहा था और सभी प्रोडक्शन हाउस में घूम रहा था, लेकिन किसी ने अभिनय में नहीं लिया. करीब 6 महीने में ही मुझे पता चल गया था की मैं हीरों नहीं बन सकता. दरअसल जब मैं अपने शहर में था, तब इंडस्ट्री की कोई जानकारी नहीं थी, लगता था, सबकुछ आसानी से हो जायेगा, लेकिन मुबई आने के बाद ही पता चला कि यहाँ कुछ भी आसान नहीं है. जब सभी ने एक्टिंग देने से मना किया, तो मैं एक वीडियो लाइब्रेरी में गया और खुद संवाद लिखकर शूट करने को कहा और जब क्लिपिंग देखी तो मुझे समझ आ गया कि एक्टिंग मुझे नहीं आती. मुझे कुछ दूसरा काम करने की जरुरत है.

नहीं भूलता बीतें दिन

मनोज अपनी जर्नी में पीछे मुड़कर उन लोगों को देखते है, जिन लोगों ने उन्हें मुसीबत के समय काम किया.  ड्रीम एक्टर आयुष्मान खुराना, राजकुमार राव के जैसे नए कलाकार है,जो बहुत अच्छा अभिनय करते है. इसके अलावा मेरी इच्छा राजकुमार हिरानी के जैसे फिल्में डायरेक्ट करने की है. एक अच्छी कहानी, प्रतिभावान कलाकारों के साथ करने की इच्छा रखता है.

है गोल्डन पीरियड

मनोज इस दौर को हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का गोल्डन पीरियड कहते है, जो बहुत ही अच्छा है, जिसमें सभी नए कलाकारों को काम करने का अवसर मिल रहा है. कम बजट में फिल्में बन रही है, इसमें किसी को भी घाटा नहीं हो रहा है. यू-ट्यूब पर बनी एक आकर्षक क्लिप भी उस व्यक्ति के लिए लाभदायी हो सकता है अगर उसे लोग पसंद करें. इस समय सारे निर्देशक, टेक्नीशियन, सारे कलाकार सभी के लिए काम है. बड़ी फिल्में न मिलने पर, इन नए कलाकारों को लेकर वेब सीरीज बनाया जा सकता है.मैंने धर्मेन्द्र और मधु को लेकर फिल्म खली-बली बनाई है. निर्माता के अनुसार कलाकारों का चयन करना पड़ता है, ताकि फिल्म बजट के अंदर बने. इसके अलावा मैंने कोविड पर एक फिल्म ओंटू बनाई है, जो ओटीटी पर आने वाली है. मैं किसी भी फिल्म को उत्तेजित करने वाली नहीं बनाता, बैर और दुश्मनी को फिल्म में नहीं आने देना चाहिए.

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Cannes Film Festival 2022 में छाया दीपिका पादुकोण का देसी लुक

बॉलीवुड में बाजी राव मस्तानी के नाम से फेमस एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण कांस फिल्म फेस्टिवल 2022 में अपने देसी लुक की वजह से चर्चा में बनी हुई है.

आपको बता दे इस बार कांस में दीपिका पादुकोण पहली बार जूरी मेंबर के तौर पर शामिल हुई हैं. उन्होंने कान्स के रेड कारपेट के लिए जो रेट्रो लुक,अपनाया था वो फैंस को कुछ पसंद नहीं आया.

दीपिका पादुकोण ने रेड कारपेट के लिए बॉलीवुड के फेमस फैशन डिजाइनर सब्यसाची मुखर्जी की ब्लैक एंड गोल्ड सीक्वेंस साड़ी कैरी की थी. इसके साथ ही वह सब्यसाची एक्सेसरीज में नजर आई. साड़ी के साथ मेकअप में अल्ट्रा बोल्ड ड्रामेटिक आईलाइनर, न्यूड लिप्स करें और कानो में चंदेलियेर इयरिंग्स के साथ फंकी हेयर स्टाइल किया, गोल्डेन हैंड बैग के साथ अपने लुक को कंप्लीट किया.

 

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बॉलीवुड एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण अक्सर ही अपने स्टाइल स्टेटमेंट को लेकर चर्चा का विषय बनी रहती हैं. यही कारण है कि इस बार भी कान्स फिल्म फेस्टिवल 2022 में अपने देसी लुक की वजह से एक्ट्रेस टॉक ऑफ द टाउन बनी हुई हैं.

 

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आपको बता दे कान्स फिल्म फेस्टिवल 2022 की शुरुआत हो चुकी है. इस समारोह को लेकर दुनियाभर के फैंस उत्साहित हैं. इस साल कान्स फिल्म महोत्सव अपना 75वां संस्करण आयोजित कर रहा है. खास बात तो ये है कि इस बार कान्स के इतिहास में पहली बार भारत को कंट्री ऑफ ऑनर के रूप में शामिल किया गया है. इस महोत्सव का आयोजन 17 मई से 26 मई तक चलेगा. इस फिल्म फेस्टिवल में दुनियाभर की चुनिन्दा फिल्मों और डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग होती है. इस साल, छह भारतीय फिल्मों को आधिकारिक तौर पर कान्स में प्रदर्शित किया जाएगा. इसमें आर माधवन की ‘रॉकेट्री द नांबी इफेक्ट’, निखिल महाजन की ‘गोदावरी’, अचल मिश्रा की ‘धुइन’, शंकर श्रीकुमार की ‘अल्फा बीटा गामा’, बिस्वजीत बोरा की ‘बूम्बा राइड’ और जयराज की ‘तोतों से भरा पेड़’ है.

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‘वूमन इम्पॉवरमेट ’ की जरुरत को लेकर क्या कहती हैं Simrithi Bhatija, पढ़ें इंटरव्यू

मुंबई से सटे थाणे जिले के अंतर्गत एक छोटा सा शहर उल्हासनगर है.  इस शहर में सिंधी समुदाय के लोगों की ही बस्ती है. यह वह लोग हैं, जो कि बंटवारे के ेवक्त यहंा आकर बस गए थे. यह सभी निम्न मध्यमवर्गीय या मध्यमवर्गीय लोग हैं. इन परिवारों में लड़कियों पर कई तरह की पाबंदियंा लगी हुई थी. लेकिन एक सिंधी मध्यमवर्गीय परिवार की लड़की सिम्रिथि भटीजा ने बचपन से ही ‘मिस इंडिया’ के अलावा फिल्म अभिनेत्री बनने का सपना देखना शुरू कर दिया था. उसके माता पिता ने अपनी कम्यूनिटी के विरोध के बावजूद अपनी बेटी का हौसला बढ़ाया. सिम्रिथि बचपन से कई तरह के खेल खेलने के अलवा नृत्य सीखती रही.  अपनी बेटी के उज्ज्वल भविष्य को गति देने के लिए सिम्रिथि के पिता ने उल्हासनगर से निकलकर मुंबई के मुलुंड उपनगर में रहना शुरू किया और अपनी बेटी को जयहिंद कालेज में पढ़ने के लिए भेजा. अंततः बहुमुखी प्रतिभा की धनी सिम्रिथि भटीजा ने सितंबर 2019 में टोक्यो, जापान में संपन्न ‘‘मिस इंडिया इंटरनेशनल ’’ का खिताब अपने नाम किया. फिर कुछ म्यूजिक वीडियो किए और अब बतौर हीरोईन उनकी पहली फिल्म ‘‘धूप छंाव’’ प्रदर्शन के लिए तैयार है. तो वहीं अब सिम्रिथि भटीजा अपनी सिंधी कम्यूनिटी और छोटे शहरों की लड़कियों के अंदर जागरूकता लाने के लिए काम कर रही हैं. वह हर सप्ताह उल्हासनगर जाकर वहंा की लड़कियों से बात करती हैं, उन्हे सेल्फ डिफेंस व रैंप वॉक करना सिखाती हैं. सिम्रिथि भटीजा राष् ट्ीय स्तर की एथलिट भी हैं.

प्रस्तुत है सिम्रिथि भटीजा से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश. .

क्या कोई ऐसा घटनाक्रम था, जिसकी वजह से आपके मन में ‘मिस इंडिया’ बनने की बात आयी थी?

-ऐसा तो कुछ नही हुआ. पर बचपन से ही मेरे मम्मी व डैड ने मुझे हर छोटी सी बात के लिए मेरा हौसला बढ़ाया. जब मैं दो वर्ष की थी, तभी से उन्होने मुझे डांस सिखवाना शुरू कर दिया था. दो वर्ष की उम्र से ही डांस करती आ रही हूं. तो डांस,  एक्सप्रेशन,  अदाकारी सब कुछ तभी सेे मेरे साथ चिपक गया. मुझे फिजिकल एक्टीविटी भी पसंद है. मैं स्पोर्ट्स खिलाड़ी भी हूं. मैं राष्ट्ीय स्तर पर फेनसिंग एथलिट खिलाड़ी रही हूं. मैं राज्य स्तर की ‘रोलबॉल ’ खिलाड़ी हूं. मैने राज्य स्तर पर स्कीपिंग खेल है. राज्य स्तर पर स्केटिंग किया है. स्कूल के दिनों में राष्ट्ीय स्तर पर डंास किया है. मैने बहुत कुद किया है. क्योंकि मेरे माता पिता हमेशा कहते थे कि, ‘इंसान को सब कुछ करना चाहिए. ’उस वक्त उनकी बातों पर गुस्सा आता था, पर अब समझ में आया कि इंसान का हर तरह का काम करना जरुरी होता है. पर नृत्य पूरी जिंदगी करनी है यह बात तो मेरे दिमाग में बैठी हुई है.  अभी मैं फिल्म की शूटिंग करती हूं, तो अभिनय के साथ मेरे नृत्य और व्यक्तित्व पर गौर किया जाता है. मेरा अपना व्यक्तित्व है, इसलिए मुझे ‘मिस इंडिया’ भी बनना ही था. मुझे संजना संवरना पसंद है. खुद को ग्लैमरस व अच्छे लुक में लोगों के सामने पेश करना अच्छा लगता है.

मैं छोटे शहर उल्हासनगर में रहती थी, तो वहां के लोगों के बीच इतनी अवेयरनेस नही है. उन्हे मॉडलिंग या ‘मिस इंडिया’ को लेकर कोई समझ नही है. सिंधी लोगों की सोच होती है कि दिन रात मेहनत करते हुए काम करो और आगे बढ़ते जाओ. उनकी नजर में मॉडलिंग व फिल्म इंडस्ट्ी अच्छी नही है. सिंधी परिवारों में कोई भी अपने कम्फर्ट लेबल से बाहर नही निकलना चाहता. लेकिन मेरे मन में अपने समुदाय की लड़कियों के लिए प्रेरणास्रोत बनना था. मंै हरलड़की को बताना चाहती हूं कि हम तरह के सपने देखें और मेहनत करें, तो हर सपने पूरे हो सकते हैं. यह भी सच है कि मैने यह सब पा लिया क्योंकि मेरे माता पिता बहुत सपोर्टिब रहे. उन्होने कहीं कोई मेनमीख नही निकाली.

तो ‘मिस इंडिया’ के सपने का क्या हुआ?

-2017 में 18 वर्ष की होते ही मैंने ‘मिस इंडिया’ के लिए कोशिश शुरू कर दी थी. मैं अपनी एक दोस्त की सलाह पर ‘मिस मुंबई’ प्रतियोगिता का हिस्सा बनी. और मैं विजेता भी बनी. उसके बाद मुझे यकीन हो गया कि मैं ‘मिस इंडिया’ भी बन सकती हूं. मैने ‘कोकोबेरी’ को ज्वॉइन कर ट्ेनिंग शुरू की. फिर मैं ‘मिस इंडिया’ प्रतियोगिता का हिस्सा बनी. 2017 व 2018 में ‘मिस इंडिया’ प्रतियोगिता के लिए मेरा चयन ही नहीं हो पाया. मगर मैने अपनी हिम्मत नहीं हारी. 2019 में मैने ‘मिस इंडिया इंटरनेशनल ग्लैम एंड सुपर मॉडल इंडिया’ में हिस्सा लिया. और विजेता बनी.  यह यात्रा आसान नही थी.

मिस इंडिया इंटरनेशनल. . . ’बनने तक आपने क्या क्या सीखा?

-मुझे पता था कि यह यात्रा आसान नही है. इंसान के तौर मानसिक व शारीरिक स्टेबिलिटी चाहिए. हमें बाहर से बहुत आसान लगता है, मगर बहुत दबाव रहते हैं. लेकिन इस तरह की प्रतियोगिताओं में आप किस तरह से चलते हो, आप किस तरह से बोलते हैं, आपका व्यक्तित्व,  आप किस तरह खुद को पेश करते हैं, सहित सब कुछ मायने रखता हैं. इसलिए हर एक बात पर ध्यान देना अनिवार्य हो जाता है. इस मुकाम को पाना बहुत कठिन था. पर मैंने मेहनत की और सफलता दर्ज करा ली. मैं महत्वाकांक्षी हूं. मुझे पता है कि मुझे क्या करना है. ‘मिस इंडिया इंटरनेशनल. . ’ जीतने के बाद मुझ पर बहुत बड़ा दबाव था. लोग आज भी मेरे बारे में कहते हैं-‘‘ए सिंधी गर्ल हू बिकम मिस इंडिया इंटरनेशनल’.

अब मैं भले ही उल्हासनगर में नहीं रहती हूं, लेकिन मेरे परिवार के तमाम सदस्य वहीं रहते हैं और मैं अक्सर उल्हासनगर जाती रहती हूं. मैं सिंधी व छोटे शहर की हर लड़की के अंदर जागरूकता लाने के लिए अपनी तरफ से काफी कुछ कर रही हूं. वहां के लोगों के लिए मैं सुपर स्टार हूं. ‘मिस इंडिया’ बनते ही मुझे उल्हासनगर में हमारे समुदाय के तमाम लोगो ने बुलाकर मेरा सम्मान किया. मेरे ‘मिस इंडिया इंटरनेशनल’ बनने के बाद मेरी पहल पर तमाम सिंधी परिवार के लोगों ने अपनी लड़कियों को इस दिशा में आगे बढ़ने व आॅडीशन देने की छूट दी. यानी कि अब सिंधी समुदाय के बीच एक जागरूकता आयी है.

मुझे अपने समुदाय की लड़कियों के अंदर चेतना जगानी थी कि वह सभी यह सब कर सकती हैं, यह काम मैं लगातार कर रही हूं. अब तो मैं अपने समुदाय की उन लड़कियांे को मुफ्त में ट्ेनिंग भी दे रही हूं, जो मिस मुंबई या मिस इंडिया बनना चाहती हंै. मेरे मन में हमेशा यह रहा है कि कुछ बनने के बाद समाज को वह किसी न किसी रूप में वापस भी देना है. मुंबई में जब हम किसी भी सौंदर्य प्रतियोगिता में हिस्सा लेने से पहले इस तरह की ट्ेनिंग देने वाली एजंसी के पास जाते हैं, तो यह सभी बहुत बड़ी रकम ऐंठते हैं. तो मैने आज तक जो कुछ भी सीखा है, वह मैं दूसरी लड़कियों को सिखा रही हूं.

राष्ट्ीय स्तर की खिलाड़ी होने के बावजूद आपने खेल की बजाय अभिनय को कैरियर बनाने का निर्णय क्यों लिया?

-मैं खुद को फुल इंटरटेनर मानती हूं और बचपन से ही मुझे फिल्म इंडस्ट्री में कुछ करने की इच्छा रही है. मेरे डांस या स्पोटर्स महज शौक रहा है. मैने कैरियर उस क्षेत्र में बनाने का निर्णय लिया, जिसमें मैं अपना हजार प्रतिशत दे सकूं. मुझे पता था कि मुझे एक बेहतरीन अभिनेत्री बनना है, जिसके लिए आवश्यक गुण मेरे अंदर हैं. नृत्य को कलाकार की सबसे बड़ी खूबी है. स्पोटर्स तो मैं अपने आपकों फिट रखने के लिए खेलती थी. आज भी स्पोटर््स खेलना मेरा शौक है. वर्कआउट करना भी मुझे पसंद है. लेकिन मेरा अंतिम लक्ष्य हमेशा अभिनय ही रहा है. अभिनय के साथ बहुत कुछ आता है. कभी कभी कलाकार को शारीरिक ताकत की भी जरुरत होती है. मसलन, फाइटिंग दृश्यों को निभाते समय शारीरिक ताकत होनी ही चाहिए. म्यूजिक वीडियो करते समय नृत्य में महारत होना काम देता है. यदि मैं डांस व स्पोटर््स न कर रही होती, तो अभिनय में जो सफलता मिली है, वह मिलना ज्यादा कठिन हो जाता. स्पोटर्स खेलने से इंसान के अंदर स्पोर्टसमैन शिप आती है. हर खिलाड़ी हार को भी अच्छे से स्वीकार करना जानता है. यह खूबी फिल्मी ुदुनिया के लिए अत्यावश्क है. क्योंकि यहां हर बार आपको स्वीकार किया जाए, यह जरुरी नही है. यहां रिजेक्शन काफी होते हैं और हमें रिजेक्शन को हैंडल करना भी आना चाहिए. बॉलीवुड सदैव मेरा पहला प्यार रहा है. बॉलीवुड गाने बजते हैं, तो मेरे कान खड़े हो जाते हैं. बहुत खुशी मिलती है. स्पोटर््स संघर्ष करने के अलावा अनुशासित रहना भी सिखाता है. एक सेल्फ आत्मविश्वास पैदा होता है.

जब आपने अभिनय को कैरियर बनाने का निर्णय लिया, तो आपका किस तरह का संघर्ष रहा?क्या ‘मिस इंडिया इंटरनेशनल’ का खिताब जीतना मददगार बना?

-जी हॉ!देखिए, मैने पहले ही कहा कि मुझे लगता था कि मेरी पर्सनालिटी ‘मिस इंडिया’ बनने लायक है. इसके अलावा मैं अपने समुदाय व छोटे शहरों की लड़कियों के लिए प्रेरणास्रोत बनना चाहती थी कि यदि मैं ‘मिस इंडिया’ बन सकती हॅंू, तो वह क्यांे नहीं? ‘मिस इंडिया इंटरनेशनल’ का खिताब जीतते ही मेरे सामने कई आपॉच्युर्निटी ख्ुाल गयीं. अब मैं ‘मिस मुंबई’ नही ‘मिस इंडिया इंटरनेशनल’ थी. यानी कि राष्ट्ीय स्तर पर मेरी एक पहचान बन गयी थी. इस प्रतियोगिता के लिए मैं जापान में भारत का प्रतिनिधित्व कर रही थी. वहा पर मुझे मेरे नाम से नही बल्कि ‘मिस इंडिया’ कह कर ही बुलाया जा रहा था. इसलिए अभिनय कैरियर में ज्यादा संघर्ष नही रहा. मेरी अपनी एक के्रडीबिलिटी है. लोग मानकर चलते हैं कि यदि कोई लड़की ‘मिस इंडिया’ है, तो इसके मायने यह हुए कि उसके अंदर कुछ तो टैलेंट है.

अभिनय कैरियर की शुरूआत कैसे हुई?

-वैसे तो कालेज के दिनों में ही मैने नाटकों में अभिनय करना शुरू कर दिया था. ‘मिस इंडिया’बनने के बाद मैने ‘मेरा हाल’, ‘की लग दी तेरी’ सहित कई पंजाबी म्यूजिक वीडियो किए. हिंदी म्यूजिक वीडियो ‘धीरे धीरे कदम’ किया है. इन्ही म्यूजिक वीडियो के चलते मेरी मुलाकात हेमंत सरन जी से हुई, जिन्होने मुझे फिल्म ‘‘धूप छांव’’ में हीरोईन बना दिया. जो कि बहुत जल्द प्रदर्शित होने वाली है.

तो आपने फिल्मों में अभिनय करने के लिए ‘‘धूप छांव’’स्वीकार कर ली ?

-ऐसा नही है. मैं एक ऐसी इंसान हूं, जो कि किसी भी काम को करने से पहले दस बार सोचती हूंू. ‘धूप छंाव’ से पहले भी मेरे पास कुछ फिल्मांे के आफर आए थे, पर मैने नहीं किए. मैं हर चीज के लिए बहुत  तैयार हूं. एक बात मैने देखी कि जब मैं किसी काम के लिए बहुत ज्यादा तैयारी कर लेती हूं,  तो वह काम नही होता है. मैने 2017 में ‘मिस ंइडिया’ के लिए काफी तैयारी की थी, पर वह नहीं हो पाया था. दो वर्ष बाद सितंबर 2019 में मैने टोक्यो, जापान में बड़ी सहजता से ‘मिस इंडिया इंटरनेशनल’ का खिताब हासिल किया. तो जब भी अच्छा अवसर आए, उसे जाने नही देना चाहिए. इंसान को मानकर चलना चाहिए कि आप ख्ुाद अपनी जिंदगी के अच्छी या बुरी चीजों को तय नही कर सकते. आपको वही मिलना है, जो पहले से आपकी तकदीर में लिखा हुआ है. जब मेरे पास फिल्म ‘धूप छांव’ का आफर आया और किरदार के बारे में संक्षिप्त जानकारी मिली तो वह रोचक लगी. फिर पूरी कहानी सुनी तो उसने मुझे इसे करने के लिए प्रेरित किया. यह ऐसी पारिवारिक कहानी है, जो कई दशकों से फिल्मों से गायब हो गयी है. फिर मैने आॅडीशन दिया. उसी वक्त ‘कारोना’ शुरू हो गया. मैं सब कुछ भूल गयी. लगभग एक वर्ष ऐसे ही बीत गया. फिर जब शूटिंग शुरू करने की इजाजत मिली, तब मुझे पुनः याद किया गया. हमने शूटिंग की और अब फिल्म बनकर तैयार है.

फिल्म ‘‘धूप छांव’’ क्या है?

-धूप छांव एक इमोशन है. इस फिल्म में भी यही है. यह एक परिवार की कहानी है. परिवार के अंदर चीजें उपर नीचे होती हैं, मगर खुशी भी परिवार ही देता है. परिवार के लोगों की परछाई हमारे उपर होती है या जब वह हमारे आस पास होते हैं, तो हमें ख्ुाशी मिलती ही है.

फिल्म ‘‘धूप छांव’’ के किरदार को लेकर क्या कहेंगी?

-मैने इसमें सिमरन का किरदार निभाया है. सिमरन शादी से पहले मेरी टाइप की लड़की है. उसका व्यक्तित्व काफी हद तक मेरे जैसा ही है. सिमरन महत्वाकांक्षी लड़की है, उसे सब कुछ करना है. वह ‘क्रेजी लव’ है. सिमरन पागल प्रेमी है. प्यार करेगी तो शिद्दत से करेगी. वह बहुत ही ज्यादा स्ट्रांग है. तो मैं भी ऐसी ही हूं. सिमरन अपने परिवार को कैसे हैंडल करती हैं, किस तरह अपने परिवार के लिए ताकत बनती है, उसी की कहानी है. परिवार के अंदर बहुत ज्यादा उतार चढ़ाव घटित हो रहे हंै, पर अकेले सिमरन सभी को ंसंभालती नजर आएगी. वह झगड़ने की बजाय हर चीज को संभाल रही है. उसके पास कुछ जिम्मेदारियंा हैं.  वह सिर्फ अपने बच्चों को और अपने पति को सहारा देना चाहती.

इस फिल्म में सिमरन के किरदार में कई शेडस हैं. कालेज गोइंग लड़की से शादीश्ुादा औरत, फिर मां और फिर शादी शुदा बच्चो की मंा तक का मेरा किरदार है.

एक ही किरदार में इतने शेड्स निभाना आपके लिए कितना सहज रहा?

-मैने सिमरन का किरदार निभाते हुए काफी इंज्वॉय किया. मैंने इस फिल्म के लिए तीस दिन शूटिंग की और यह तीस दिन मेरी जिंदगी के अति बेहतरीन दिन रहे. इन तीस दिनों मैने अपने आपको बहुत अधिक जाना . मुझे अपनी क्षमता को परखने का अवसर मिला. मैने समझा कि मैं अपनइमोश्ंास को किस हद तक लेकर जा सकती हॅंू. 22 वर्ष की उम्र में 42 वर्ष की औरत का किरदार निभाने के लिए उतनी मैच्योरिटी आनी आवश्यक है. फिल्म का एक हिस्सा वह है, जहंा मेरी अपनी हम उम्र का सिमरन का बेटा है. तो ऐसे में मुझे अपने अभिनय से किरदार की मैच्योरिटी को दिखाना ही था. यह सब करते हुए मैने काफी इंज्वॉय किया. इसलिए शूटिंग के तीस दिन की यात्रा बहुत बेहतरीन रही. इस किरदार को निभाने में मेरे आब्जर्वेशन की आदत ने काफी मदद की. बहुत कुछ मैने अपनी मां से सीखा. मै सेट पर सोचती थी कि बचपन मे मै जो काम कर रही थी, वही अब 40 साल की उम्र में भी करुंगी, तो उसमें कहीं न कहीं मैच्योरिटी होगी. वैसे 22 वर्ष की उम्र में 42 वर्ष की और युवा बेटे की मां का किरदार निभाना आसान नहीं था. उस तरह के इमोश्ंास को लाना आसान नहीं था. फिल्म के निर्देशक हेमंत सरन ने भी कफी कुछ सिखाया.

कोई दूसरी फिल्म कर रही हैं?

-जी हॉ! अभी एक दक्षिण भारत में तमिल  फिल्म कर रही हूं. इसके पहले शिड्यूल की शूटिंग हो गयी है. इसके निर्देशक शंाति चंद्रा हैं. इससे अधिक इस फिल्म के संदर्भ में अभी कुछ बताना ठीक नहीं होगा.

अक्सर देखा जाता है कि सौंदर्य प्रतियोगिताएं जीतने के बाद लड़कियंा किसी न किसी एनजीओ के साथ मिलकर समाज सेवा से जुड़े कुछ काम करने लगती हैं?

-जी हॉ!ऐसा है. मैं भी मुंबई से सटे थाणे के एक ‘ओमन इंम्पावरमेंट’ के लिए काम करने वाले एनजीओ के साथ मिलकर काम कर रही हूं. ओमन इम्पॉवरमेंट के लिए कुछ प्रोजेक्ट किए हैं. मुझे मिक्स मार्शल आर्ट पसंद हैं. मैं लड़कियों को ‘सेल्फ डिफेंस’ करना सिखाती हूं. मैं उन्हे प्रोफेशनल गाइडेंस के साथ मिक्स मार्शल आर्ट सिखाती रहती हूं. मैने ‘बलात्कार पीड़िता’ लड़कियों के अंदर के आत्मविश्वास को जगाकर उन्हे फिर से नई जिंदगी शुरू करने के लिए प्रेरित किया. जिनके साथ मेंटल या शारीरिक अब्यूज हुआ था, उन्हे सेल्फ डिफेंस सिखाया. मैं हर लड़की के अंदर खुद का ताकतवर व्यक्तित्व बनाने के प्रति जागरूक करने की कोशिश करती रहती हूं. रैंप वॉक और सौंदर्य प्रतियोगिता में हिस्सा लेने की भी ट्ेनिंग देती हूं. मेरे लिए खुशी की बात है कि एक वक्त जिस ‘मिस मुंबई’ की मैं प्रतिस्पर्धी थी, आज उसी की मैं निदेशक हूं. मैं ‘मिस नई मुंबई’ की रैंप वॉक ट्रेनर हूं. और पूरे शो की कोरियोग्राफी करती हूं.

ओमन इम्पावरमेंट को लेकर आपकी अपनी सोच क्या है?

-मेरी राय में ‘ओमन इम्पॉवरमेट ’ की जरुरत ही नही होनी चाहिए. आज की तारीख में औरतंे हर क्षेत्र में काफी आगे निकल गयी हैं. हमने ‘मैन इम्पावरमेट’ नही सुना.  सिर्फ ‘ओमन इम्पॉवरमेंट’ ही सुना है. ऐसा इसलिए है क्योंकि अभी भी औरतों को पिछड़़ा हुआ माना जाता है. इसी सोच को बदलने की जरुरत है. ‘ओमन इम्पावरमेट’ के नारे लगाने की जरुरत नही है. जबकि अब तो यह सभी के सामने है. जिस काम को पुरूष कर रहे हैं, उसी काम को उनसे ज्यादा बेहतर तरीके से औरतें कर रही हैं. औरतें अपने कैरियर में निरंतर सफलता दर्ज करा रही हैं. ‘ओमन इम्पावरमेंट’ का शब्द ही गलत है. सभी को एक समान देखा जाना चाहिए. नारीवाद नही बल्कि समानता की बात की जानी चाहिए. हमें यह नही भूलना चाहिए कि आज भी औरतें समानता के लिए लड़ रही हैं. अभी भी लोगों के अंदर जागरूकता आनी बाकी है. उल्हासनगर सहित छोटे शहरो में आज भी औरतों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है.

कुछ औरतों के नारी स्वतंत्रता व ओमन इम्पॉवरमेंट का अर्थ खुले आम‘शराब व सिगरेट पीना हो गया है?

-इसीलिए कह रही हूं कि ‘ओमन इम्पावरमेंट’ शब्द ही गलत है. जरुरत है हर अवसर को एक समान दृष्टि से देखने की. आज पुरूष जिस पोजीशन पर है, उसी पोजीशन पर कोई औरत है, तो उसे समान रूप से देखा जाए. उसकी इज्जत की जाए. उसे पुरूष के बराबर ही पारिश्रमिक राशि दी जाए. ओमन इम्पॉवरमेंट का अर्थ पार्टी करना, पब में शराब पीना वगैरह कदापि नही है.

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