REVIEW: ऊंची दुकान फीका पकवान है ‘मॉडर्न लव मुंबई’

रेटिंगः एक स्टार

निर्माताः प्रीतीश नंदी कम्यूनीकेशन

निर्देशकःहंसल मेहता, विशाल भारद्वाज, अलंकृता श्रीवास्तव, शोनाली बोस, ध्रुव सहगल और नुपूर अस्थाना

कलाकारः प्रतीक गांधी, प्रतीक बब्बर, मेयांग चैंग, रणवीर ब्रार, वामिका गब्बी, मसाबा गुप्ता, अरशद वारसी और फातिमा सना शेख आदि

अवधिः 37 से 43 मिनट की छह लघु कहानियां, कुल अवधि चार घंटे

ओटीटी प्लेटफार्मः अमेजॉन प्राइम पर 13 मई से स्ट्ीमिंग

अमरीका के दैनिक अखबार ‘न्यू यार्क टाइम्स ’’ में प्रकाशित एक स्तम्भ पर आधारित वेब सीरीज ‘‘मॉडर्न लव न्यूयार्क’’ के दो सीजन प्रसारित हो चुके हैं, जिन्हे वहां काफी पसंद किया गया. अब प्रीतीशनंदी कम्यूनीकेशन उसी को मुंबई की पृष्ठभूमि में  ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ में छपे कॉलम की छह कहानियों या यॅू कहें कि एंथेलॉजी के तहत छह लघु फिल्मों को एक साथ वेब सीरीज ‘मॉडर्न लव मुंबई’’ के नाम से लेकर आया है. जो कि 13 मई से ‘‘अमेजॉन प्राइम वीडियो’ पर स्ट्रीम हो रही है. इन्हें देखकर घोर निराशा हुई. मुंबई शहर सपनों का शहर. जहां हर दिन हजारों लोग देश के हर कोने से अपने सपनों को पूरा करने के लिए पहुॅचता है और फिर मुंबई शहर की तेज गति से भागती जिंदगी में वह खो जाता है. मुंबई की जिंदगी में काफी विविधताएं हैं. देश के हर कोने से ही नहीं बल्कि कई दूसरे देशों के लोग भी यहां आते हैं, तो उनकी जिंदगी क्या हो सकती है, यह सभी समझ सकते हैं. जिंदगी जीने के संघर्ष के साथ प्यार का होना भी स्वाभाविक है. उसी प्यार को छह भिन्न भिन्न निर्देशकों ने अलग अलग कहानियों के माध्यम से उकेरा है.  मगर इन सभी छह लघु फिल्मों में कुछ भी नयापन नही है. चार घ्ंाटे का समय बर्बाद करने के बाद दर्शक खुद को ठगा हुआ महसूस करता है.  यह कहानियां मुंबई की जीवनशैली, मुंबई में जीवन की आपा धापी, संघर्ष आदि को लेकर कोई बात नहीं करती. इस वेब सीरीज से मुंबई की धड़कन पूरी तरह से गायब है.

कहानी व समीक्षाः

अलंकृता श्रीवास्तव निर्देशित कहानी ‘‘माई ब्यूटीफुल रिंकल्स‘ में बोल्ड और खुर्राट दिलबर सोढ़ी (सारिका) की कहानी है. जो 25 वर्षीय बिजनेस एनालिस्ट कुणाल (दानेश रजवी) को अंग्रेजी बोलना सिखाती हैं. कुणाल एक दिन दिलबर को उनकी एक अजीब सी तस्वीर बना कर देता है और कहता है कि वह रात रात भर उनके साथ रहने का सपना देखता रहता है. वह कह जाता है कि वह उनके साथ सेक्स भी करना चाहता है. दिलबर तुरंत उसे युवा लड़कियों के सपने देखने की सलाह देेते हुए घर से निकाल देती हैं. मगर फिर अपनी सहेलियों के साथ गपशप करने के बाद दिलबर, कुणाल को बुलाकर दोस्ताना संबंध रखती है, इस शर्त पर कि उनके बीच कोई शारीरिक संबंध नहीं होगा.

‘‘लिपस्टिक अंडर बुर्खा’’से जबरदस्त शोहरत हासिल कर चुकी अलंकृता श्रीवास्तव इस फिल्म में बुरी तरह से मात खा गयी हैं. वह प्रेम कथा को भी उभार नहीं पायी. पूरी फिल्म अति धीमी गति से ही आगे बढ़ती हैै. जिसे देखते हुए दर्शक सोचने लगता है कि कि यह कब खत्म होगी.

इसमें सारिका और दानेश रजवी का अभिनय भी आकर्षणहीन है.

दूसरी कहानी ‘‘मार्गरीटा विथ स्ट्पि’’ फेम निर्देशक शोनाली बोस की ‘‘रात रानी ’’है. इस कहानी कें केंद्र में शादीशुदा कश्मीरी लड़की  लाली (फातिमा सना शेख) है, जो पिछले दस साल से अपने बोरिंग व वाचमैन की नौकरी कर रहे पति लुत्फी (भूपेंद्र जदावत) के साथ मुंबई में रह रही है. लाली भी एक घर में काम करती है. लाली दस साल पहले  अपने पिता का विरोध कर अपने से नीची जाति के लुत्फी संग शादी कर कश्मीर छोड़कर मुंबई आ गयी थी. उसने पति के लिए स्कूटर खरीदकर दिया. मगर एक दिन अचानक लुत्फी उसे छोड़कर चला जाता है. कुछ दिन लाली, लुत्फी को बार बार फोन कर वापस आने की बात करती है. पर एक दिन वह अकेले ही जिंदगी जीने का निर्णय लेकर सायकल चलाते हुए दिन व रात में काम कर अपने टूटे मकान को बनाने के साथ ही एक नई जिंदगी जीना शुरू कर देती है, जिसमें लुत्फी के लिए कोई जगह नहीं है.

शोनाली बोस बेहतरीन कथा वाचक और निर्देशक हैं, इसमें कोई दो राय नही है. इस फिल्म से उन्होने साबित कर दिखाया कि उन्हे नारी मन की बेहतरीन समझ हैं. वह सामाजिक बंधनों को तोड़ने की भी वकालत करते हुए नजर आती हैं. फिल्म में ट्पिल तलाक का मुद्दा भी हैं. लगभग 41 मिनट की इस लघु फिल्म में शोनाली बोस ने नारी उत्थान का मुद्दा भी खूबसूरती से उठाया है. सभी छह कहानियों में से एक मात्र यह ऐसी काहनी लघु फिल्म है, जो दर्शकों को कुछ हद तक बांध कर रखती है.

लेकिन  ‘‘रात रानी’’ की कमजोर कड़ी इसके कलाकार फातिमा सना शेख व भूपेंद्र जतावत हैं. भूपेंद्र के हिस्से कुछ खास करने को आया ही नही. मगर फातिमा सना शेख ने अपनी ‘ओवर एक्टिंग’ से सब कुछ बर्बाद कर डाला.

हंसल मेहता निर्देशित फिल्म ‘‘बाई’’ की कहानी काफी बिखरी हुई है. अति धीमी गति से बागे बढ़ने वाली इस कहानी में यही नहीं समझ में आता कि यह ‘बाई’ यानी कि नायक मंजर अली उर्फ मंजू (प्रतीक गांधी) की दादी (तनुजा) की कहानी है अथवा होमोसेक्सुअल समलैंगिक मंजर अली की कहानी है. फिल्म की शुरूआत दंगों से की जाती है. खैर, मंजर के माता पिता को लगता है कि बाई यह बर्दाश्त नही कर पाएंगी कि उनका पोता समलैंगिक है. वह एक अच्छी लड़की से मंजर का निकाह करवाने की बात करते हैं. मगर मंजर मुंबई छोड़कर गोवा जाकर समलैंगी राजवीर (रणवीर ब्रार  ) से विवाह कर लेता है.

हंसल मेहता बेहतरीन निर्देशक हैं. मैं उनकी कई फिल्मों का प्रशंसक हॅूं. मगर इस बार हंसल मेहता ने निराश किया है. वह समलैगिकता पर ‘अलीगढ़’जैसी फिल्म दे चुके हैं. उसके बाद ‘बाई’ तो मलमल में ताट का पैबंद ही है. इस फिल्म में समलैंगिक प्यार को लेकर उनका ताना-बाना हास्यास्पद है. मंजर व राजवीर के  बीच किसिंग सीन से लेकर बिस्तर के दृश्य अजीब ढंग से फिल्माए हैं. यह हंसल मेहता की अब तक की सबसे कमजोर फिल्म है.

जहां तक अभिनय की बात है तो प्रतीक गांधी और रणवीर ब्रार दोनो ही निराश करते हैं.

नूपुर अस्थाना की फिल्म ‘कटिंग चाई‘ में उपन्यास लिख रही लतिका(चित्रांगदा सिंह) और उनके पति डैनी(अरशद वारसी) के रिश्ते की कहानी है. डैनी कभी भी सही समय पर कहीं नहीं पहुंचते.

‘‘कटिंग चाय’’ प्रेम कहानी की बजाय पति पत्नी के बीच रिश्ते की कहानी बयां करने वाली अति धीमी गति की फिल्महै. इस तरह के विषय पर सैकड़ों फिल्में बन चुकी हैं. इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है कि दर्शक इसे देखना चाहे.

जहां तक अभिनय का सवाल है तो अरशद वारसी का अभिनय बेहतरीन है. वह अपने सदाबहार वाले अंदाज में नजर आते हैं.  मगर चित्रांगदा सिंह निराश करती हैं. लगता है कि वह अभिनय भूलती जा रही हैं.

ध्रुव सहगल निर्देशित कहानी लघु फिल्म ‘‘आई लव थाणे’’ की कहानी के केंद्र में बांदरा में रहने वाली आर्किटेक्ट व लैंडस्केप डिजायनर साईबा (मासाबा गुप्ता) हैं, जो रिश्ते में बंधने के लिए परेशान हैं. इसी बीच उन्हें ठाणे म्यूनीशिपल कारपोरेशन की तरफ से एक हरा भरा पार्क बनाने का काम मिलता है. यहां उन्हें अपनी उम्र से कम उम्र के ठाणे में रहने वाले पार्थ (ऋत्विक भौमिक) के साथ काम करना है. धीरे धीरे साईबा, पार्थ की ओर आकर्षित होती है.

ध्रुव सहगल बतौर लेखक व निर्देशक बुरी तरह से असफल रहे हैं. कहानी की गति धीमी तो है ही, वहीं एडीटिंग व मिक्सिंग भी गड़बड़ है. दृश्य आने से पहले ही संवाद शुरू हो जाते हैं. कहानी में ऐसा कुछ नही है कि लोग देखना चाहें. यह फिल्म बोर ही करती हैं.

जहंा तक अभिनय का सवाल है तो जब कहानी व पटकथा मंे दम न हो तो कलाकार कुछ नही कर सकता. वैसे अभिनय उनके वश की बात नही है, इस बात को मासाबा गुप्ता जितनी जल्दी समझ जाएं, उतना ही उनके हित में होगा. ऋत्विक भौमिक भी नही जमे.

विशाल भारद्वाज निर्देशित ‘‘मुंबई ड्ैगन’’ की कहानी के केंद्र में सुई (येओ यान यान) हैं, जो कि युद्ध के वक्त अपने पिता के साथ चीन से भारत आ गयी थी. अपने पिता की तरह सुई भी अति स्वादिष्ट भोजन बनाती हैं. उनके पति का देहंात हो चुका है. बेटा मिंग(मियांग चांग) डाक्टर बनते बनते गायक बनने के लिए संघर्ष करने के साथ ही एक गुजराती लड़की मेघा के प्यार में पड़ा हुआ है. वह मेघा(वामिका गब्बी ) के साथ मेघा के पिता के घर मंे पेइंग गेस्ट है. सुई अपने बेटे मिंग का विवाह चीनी लड़की से ही करना चाहती है. इसी बात को लेकर मां बेटे के बीच टकराव है.

विशाल भारद्वाज की फिल्म ‘‘मुंबई डै्गन’’ चुं चुं का मुरब्बा के अलावा कुछ नही है. इस कहानी के साथ दर्शक जुड़ नही पाता.

जहां तक अभिनय का सवाल है तो मां सुई के किरदार में येओ यान यान का अभिनय ठीक ठाक है. मगर मियांग चांग और वामिका गब्बी निराश करती हैं.

REVIEW: जानें कैसी है रणवीर सिंह की फिल्म ‘जयेशभाई जोरदार’

रेटिंगः डेढ़ स्टार

निर्माताः आदित्य चोपड़ा व मनीष शर्मा

लेखक व निर्देशकः दिव्यांग ठक्कर

कलाकारः रणवीर सिंह, शालिनी पांडेय, बोमन ईरानी,  रत्ना पाठक शाह,  पुनीत इस्सर व अन्य.

अवधिः दो घंटे चार मिनट

‘लिंग परीक्षण के बाद भ्रूण हत्या’ और ‘बेटी बचाओ’ जैसे अति आवश्यक मुद्दे पर कितनी घटिया कथा व पटकथा वाली फिल्म बन सकती है, इसका उदाहरण है फिल्म ‘‘जयेशभाई जोरदार’’.  लेखक व निर्देशक कथा व पटकथा लिखते समय यह भूल गए कि वह किस मुद्दे को उभारना चाहते हैं?वह अपनी फिल्म में ‘लिंग परीक्षण’ व भ्रूण हत्या के खिलाफ जनजागृति लाकर ‘बेटी बचाओ ’ की बात करना चाहते हैं अथवा  इस नेक मकसद की आड़ में दर्शकों को कूड़ा कचरा परोसते हुए उन्हे बेवकूफ बनाना चाहते हैं. फिल्म का नायक जयेश भाई कहीं भी अपनी पत्नी के गर्भ धारण करने पर अपने पिता द्वारा उसका लिंग परीक्षण कराने के आदेश का विरोध नहीं करता. बल्कि वह खुद अस्पताल में डाक्टर के सामने स्वीकार करता है कि ‘वारिस’ यानी कि लड़के की चाहत में उसकी पत्नी को छह बार गर्भपात करवाया जा चुका है. कहने का अर्थ यह कि यह फिल्म बुरी तरह से अपने नेक इरादे में असफल रही है. इस फिल्म के लेखक निर्देशक के साथ ही कलाकार भी कमजोर कड़ी हैं. यह फिल्म इस संदेश को देने में बुरी तरह से असफल रही है कि ‘परिवार में लड़का हो या लड़़की, सब एक समान हैं. ’’यह फिल्म लिंग परीक्षण के खिलाफ भी ठीक से बात नही रख पाती है. अदालती आदेश के बाद जरुर फिल्म मेंे दो तीन जगह लिखा गया है कि ‘लिंग परीक्षण कानूनन अपराध है. ’

फिल्म में दिखाया गया है कि हरियाणा के एक गांव में लड़कियों के जन्म न लेने के चलते गांव के सभी पुरूष अविवाहित हैं. मगर यदि हम सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो 2019 के आंकड़ों के अनुसार हरियाणा में प्रति हजार पुरूष के पीछे 905 औरते हैं. जबकि गुजरात में प्रति हजार पुरूष के पीछे 909 औरतें हैं. इस हिसाब से दोनों राज्यों में बहुत बड़ा अंतर नहीं है.

कहानीः

फिल्म की कहानी गुजरात के एक गांव से शुरू होती हैं, जहां सरपंच के पद पर एक पृथ्विश (बोमन ईरानी) के परिवार का कब्जा है. जब सरपंच के लिए दूसरा उम्मीदवार मैदान में आया तो उन्होने ‘महिला आरक्षित सीट’ का हवाला देकर अपने बेटे जयेश भाई (रणवीर सिंह ) की बहू मुद्रा (शालिनी पांडे )को मैदान में उतारकर सरपंच अपने परिवार के अंदर ही रखा है. एक दिन पंचायत में जब गांव की एक लड़की सरपंच से कहती है कि स्कूल के बगल में शराब की बिक्री बंद करायी जाए,  क्योंकि शराब पीकर लड़के,  लड़कियों को छेड़ते हैं, तो पृथ्विश आदेश देते है कि गांव की लड़कियंा व औरतें साबुन से न नहाए. खैर, पृथ्विश को अपनी बहू मुद्रा से परिवार के वारिस के रूप में लड़की चाह हैं. मुद्दा की पहली बेटी सिद्धि(जिया वैद्य) नौ वर्ष की हो चुकी है. सिद्धि के पैदा होने के बाद ‘घाघरा पलटन’ नही चाहिए. वारिस के तौर पर लड़के की चाहत में पृथ्विश के आदेश की वजह से मुद्रा का छह बार लिंग परीक्षण के बाद गर्भपात कराया जा चुका है. मुद्रा अब फिर से गर्भवती हैं. इस बार भी लिंग परीक्षण में जयेश भाई को डाक्टर बता देती है कि लड़की है, तो पत्नी से प्रेम करने वाले जयेशभाई नाटक रचकर बेटी सिद्धि व मुद्रा के साथ घर से भागते हंै. पृथ्विश गांव के सभी पुरूषों के साथ इनकी तलाश में निकलते हैं. पृथ्विश ऐलान कर देते हैं कि अब पकड़कर मुद्रा को हमेशा के लिए खत्म कर जयेशभाई की दूसरी शादी कराएंगे. चूहे बिल्ली के इसी खेल के बीच हरियाणा के एक गांव के सरपंच अमर ताउ(पुनीत इस्सर) आ जाते हैं. जिनके गांव में लड़कियों के अभाव में सभी पुरूष अविवाहित हैं. एक मुकाम पर अमर ताउ अपने गांव के सभी पुरूषों के साथ सिद्धि के बुलाने पर मुद्रा अपनी बेटी को जन्म दे सकें, इसके लिए पहुॅच जाते हैं.

लेखन व निर्देशनः

इस फिल्म की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी तो इसके लेखक व निर्देशक दिव्यांग ठक्कर ही हैं. खुद गुजराती हैं, इसलिए उन्होने कहानी गुजरात की पृष्ठभूमि में बुनी. गुजरात पर्यटन विभाग ने अपने राज्य की छवि को सुधारने में पिछले कुछ वर्षों के दौरान कई सौ करोड़ रूपए खर्च कर दिए, जिसमें पलीटा लगाने में दिव्यांग ठक्कर ने कोई कसर नही छोड़ी. फिल्म शुरू होने के दस मिनट बाद से ही अविश्वसनीय सी लगने लगती है और इंटरवल तक फिल्म का बंटाधार हो चुका होता है. इंटरवल के बाद तो फिल्म नीचे ही गिरती जाती है.

‘शायद दिव्यांग ठक्कर ‘समाज की पिछड़ी सोच, लैगिक असमानता व ‘भ्रूण हत्या’ जैसे गंभीर मुद्दे पर नेक इरादे से कोई डाक्यूमेंट्री बनाना चाहते हांेगे, पर फीचर फिल्म का मौका मिला, तो बिना इस विषय की गहराई में गए अनाप शनाप घटनाक्रम जोड़कर भानुमती का पिटारा बना डाला. फिल्म में एक दृश्य में एक गांव में सरकारी स्तर पर आयोजित ‘‘बेटी बचाओ’ के मेेले का दृश्य दिखाया, पर इसका भी फिल्माकर सही ढंग से उपयोग नही कर पाएं.

फिल्म में एक कहानी जयेशभाई की बहन प्रीती का भी हैं. फिल्म में बताया गया है कि गुजरात की परंपरा के अनुसार जयेशभाई की बहन प्रीती की शादी जयेश की पत्नी मुद्रा के भाई से हुई है. जब जब  प्रीती का पति उसकी पिटायी करता है, तब तब जयेश को भी मुद्रा की पिटायी करने के लिए कहा जाता है. कई दशक पुरानी गुजरात के किसी अति पिछड़े गांव की इस तरह के घटनाक्रम का इस फिल्म की मूल कहानी से संबंध समझ से परे है. इतना ही नही पृथ्विश के गांव के सारे पुरूष पृथ्विश के साथ मुद्रा व सिद्धि पकड़ने की मुहीम में शामिल हैं, मगर इनमें से एक भी पुरूष अपनी पत्नी या बेटी के साथ गलत व्यवहार करते हुए नहीं दिखाया गया. इतना ही नही फिल्मसर्जक फिल्म में सोशल मीडिया की ताकत को भी ठीक से चित्रित नही कर पाए. यह सब जोकर की तरह आता जाता है.

फिल्मकार का दिमागी दिवालियापन उस दृश्य से समझा जा सकता है, जहां प्रसूति गृह यानी कि अस्पताल में मुद्रा बेन द्वारा बेटी को जन्म देने में आ रही तकलीफ से डाक्ठर परेशान हैं, मगर अचानक मुद्राबेन व जयेश भाई एक दूसरे की ‘पप्पी’ यानी कि ‘चंुबन’ लेने लगते हैं और बेटी का जन्म सहजता से हो जाता है. वाह क्या कहना. . .

पूरी फिल्म देखकर यही समझ में आता है कि लेखक व निर्देशक ने महसूस किया कि इन दिनों सरकारी स्तर पर ‘बेटी बचाओ’ मुहीम चल रही है. तो बस उन्होेने इसी पर फिल्म लिख डाली. पर वह विषय की गहराई में नहीं गए. उन्होने कथा पटकथा लिखने से पहले यह तय नही किया कि वह अपनी फिल्म में ‘लिंग परीक्षण’ के खिलाफ बात करने वाले हैं या उनका नजरिया क्या है. . . . उन्होने जो किस्से सुने थे, , उन सभी किस्सों को जोड़कर चूंू चूंू का मुरब्बा परोस दिया. जो कि इतना घटिया है, कि दर्शक सिनेमाघर से निकलते समय अपना माथा पीटता नजर आता है.

अभिनयः

फिल्म में किसी भी कलाकार का अभिनय सराहनीय नही है. लोग सवाल कर रहे हैं कि आखिर रणवीर सिंह जैसे उम्दा कलाकार ने यह फिल्म क्यों की? शायद वह यशराज फिल्मस व आदित्य चोपड़ा को इंकार करने की स्थिति में नही रहे होंगें. पर इस फिल्म से एक बात साफ तौर पर सामने आती है कि रणवीर सिंह जैसे कलाकार से अदाकारी करवाने के लिए संजय लीला भंसाली जैसा निर्देशक ही चाहिए. फिल्म की नायिका शालिनी पांडे भी इस फिल्म की कमजोर कड़ी हैं. उनके चेहरे पर कहीं कोई हाव भाव एक्सप्रेशन आते ही नही है. उन्हे तो नए सिरे से अभिनय क्या होता है, यह सीखना चाहिए. जयेशभाई के पिता के किरदार में बोमन इरानी का चयन ही गलत रहा. रत्ना पाठक शाह भी अपने अभिनय का जलवा नही दिखा पायी. पुनीत इस्सर के हिस्से करने को कुछ था ही नहीं.

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नहीं रहे प्राख्यात संगीतकार और संतूर वादक पंडित शिवकुमार शर्मा

भारत केप्राख्यात पद्मविभूषण, संगीतकार और संतूर वादक पंडित शिवकुमार शर्मा का मुंबई में कार्डियक अरेस्ट के कारण निधन हो गया, वे 84 वर्ष के थे. पिछले छह महीने से किडनी संबंधी समस्याओं से पीड़ित पंडित जी डायलिसिस पर थे.पंडित शिवकुमार शर्मा का निधन 10 मईसुबह 8 से 8.30 बजे के करीब हुआ. उनका अंतिम संस्कार उनके आवास राजीव आप्स, जिग जैग रोड, पाली हिल, बांद्रा से किया जायेगा. पंडित शिव कुमार शर्मा का सिनेमा जगत में अहम योगदान रहा. बॉलीवुड में ‘शिव-हरी’ नाम से मशहूर शिव कुमार शर्मा और हरि प्रसाद चौरसिया की जोड़ी ने कई सुपरहिट गानों में संगीत दिया था. इसमें से सबसे प्रसिद्ध गाना फिल्म ‘चांदनी’ का ‘मेरे हाथों में नौ-नौ चूड़ियां’ रहा, जो दिवंगत अभिनेत्री श्रीदेवी पर फिल्माया गया था.15 मई को शिव-हरि दोनों की जुगलबंदी एक बार फिर होने वाली थी. जिसका इंतज़ार दर्शक कोविड के बाद उत्सुकता से कर रहे थे.

प्रतिभामयी व्यक्तित्त्व

एक साधारण व्यक्तित्व, शांत, मृदुभाषी और हंसमुख स्वभाव के पंडित शिव कुमार शर्मा का चले जाना शास्त्रीय संगीत जगत में बहुत बड़ी क्षति है. उन्होंने हमेशा समाज से जो मिला, उसे वापस देना पसंद करते थे और संगीत की परंपरा सालों तक बने रहने के लिए गुरु-शिष्य परंपरा का पालन करने थे, जिसमें शिष्य को मुफ्त में संतूर बजाना सिखाया जाता है. उनका कहना था कि मेरी तीन पीढ़ी इस वाद्ययंत्र की परंपरा को बनाये रखने की कोशिश कर रही है और इसमें सभी का योगदान आपेक्षित है. इसके अलावा मैं एक कलाकार सिर्फ तब होता हूँ, जब मैं बजाता हूँ, इसके अलावा घर में रास्ते-चौराहे पर लोगों से सलाम दुआ करते हुए जाता हूँ. मैं संतूर वादक होने के साथ-साथ एक पति, पिता, दादा और एक जिम्मेदार नागरिक भी हूँ. मेरे कुछ सामाजिक और पारिवारिक दायित्व भी है, उन्हें मैं कैसे भूल सकता हूँ.

संघर्ष से किया दो चार

कश्मीर से सिर्फ 500 रूपये लेकर पंडित शिवकुमार शर्मा मुंबई अपने एक मित्र के पास आये थे और एकदिन आल इंडिया रेडियो से निकलकर घर पहुंचने पर  उनका सामान बाहर फेका हुआ देखते है, बाद में पता चला कि दोस्त ने कमरे का किराया नहीं चुकाया है, इसलिए मकान मालिक ने उसे घर से निकाल दिया था, जिसमें उनके समान भी बाहर थे. उन्हें उस दिन बाहर बेंच पर रात गुजारनी पड़ी थी.

संगीत रही जीवन

कश्मीर की घाटी की संगीतज्ञ परिवार में जन्मे पंडित शिवकुमार शर्मा ने बचपन से ही संगीत सुना और वही उनके जीवन का अभिन्न अंग बन गया था, जिसमें हमेशा साथ दिया उनकी पत्नी मनोरमा ने.उनके छोटे बेटे राहुल को वे अपना शिष्य मानते थे और आज वह भी अपने पिता की तरह संतूर बजाता है. उनका दूसरा पुत्र रोहित भी संगीत के क्षेत्र से जुड़ा है.

जब भी पंडित शिव कुमार शर्मा से मिलना हुआ हमेशा एक संगीत की प्रतिमूर्ति नजर आती थी. यही वजह थी कि संगीत उनके परिवार और मुंबई की पाली हिल की घर में रची-बसी है. कालिंग बेल से लेकर हर जगह संतूर की मधुर आवाज अनायास ही सबका मन मोह लेती है.

संतूर को मिली पहचान

पंडित शिव कुमार शर्मा अपने माता-पिता के इकलौते संतान थे, पर उन्होंने संगीत के साथ-साथ अर्थशास्त्र में पढाई भी पूरी की है. उनके पिता पंडित उमादत्त शर्मा से उन्होंने पांच वर्ष की उम्र से गायन और तबला वादन की शिक्षा शुरू की थी.पंडित शिव कुमार शर्मा संतूर को शास्त्रीय संगीत में प्रयोग करने वाले पहले व्यक्ति है, क्योंकि इससे पहले संतूर केवल सूफी संगीत में होता था.

पंडितजी जब भी संतूर बजाते थे उनके दाई हाथ की अनामिका में नीले रंग की अंगूठी बहुत ही खूबसूरत लगती थी, उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि ये अंगूठी उन्हें प्रेरणा देती है, इसलिए इसे वे हमेशा पहनते है. संतूर पंडित शिव कुमार शर्मा के हाथों में आते ही ऐसा जादुई वाद्य यंत्र हो गया कि ना केवल ये यंत्र शास्त्रीय संगीत का हिस्सा बना, बल्कि इसकी जादुई आवाज भारत से निकल कर विश्व के हर देश में जा पहुंची.उनके हाथों का कमाल था कि संतूर पर काफी काम हुआ और विश्व पटल पर अब संतूर को फ्यूजन में भी शामिल करके नई संगीत दिए जाने पर काम हो रहा है. आज वे नहीं रहे लेकिन इस मनमोहक व्यक्ति की संगीत और संतूर वादन को हमेशा याद किया जाएगा.

Ex वाइफ्स के साथ आमिर खान ने मनाया बेटी Ira का बर्थडे, देखें फोटोज

बौलीवुड स्टार आमिर खान (Aamir Khan) आए दिन सुर्खियों में रहते हैं. जहां बीते दिनों उनका तलाक चर्चा का कारण बना था तो वहीं हाल ही में बेटी आइरा खान (Ira Khan) के 25th बर्थडे पार्टी के कारण वह सोशलमीडिया पर छाए हुए हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

ट्रोल हुई आइरा

 

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दरअसल, हाल ही में आइरा खान ने अपने 25वें बर्थडे के पूल पार्टी की फोटोज फैंस के साथ शेयर की थीं, जिसमें वह बिकिनी में पार्टी (Ira Khan Pool Party)करती हुई नजर आ रही हैं. वहीं उनमें से एक फोटोज में वह बिकिनी में ही अपने पेरेंट्स के साथ केक कटिंग करती हुई दिख रही हैं. फोटोज देखकर जहां फैंस उन्हें जन्मदिन की बधाई दे रहे हैं तो वहीं सोशलमीडिया पर उनके केक काटते समय बिकिनी पहनने पर ट्रोल भी कर रहे हैं.

बेटी के बर्थडे पर एक्स वाइफ्स के साथ पहुंचे एक्टर

 

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ट्रोलिंग के अलावा बर्थडे पार्टी की बीत करें तो आइरा खान की खास पूल बर्थडे पार्टी में पापा आमिर खान, मां रीना दत्ता और भाई आजाद राव खान के साथ-साथ उनकी एक्स वाइफ किरन राव भी नजर आईं. वहीं इस पार्टी में आइरा अपने बौयफ्रेंड संग मस्ती करती हुई भी नजर आईं.

अपने लुक्स को लेकर सुर्खियों में रहती हैं आइरा

 

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आमिर खान की बेटी आइरा अपने लुक्स को लेकर सुर्खियों में रहती हैं. जहां वह अतरंगी फैशन शो में हिस्सा बनती नजर आती हैं तो वहीं हौट लुक से फैंस का ध्यान खींचती हुई नजर आती हैं. हालांकि यह पहली बार नहीं है कि वह ट्रोलिंग का शिकार नही है. लेकिन इस बार वह पिता के साथ-साथ ट्रोल हो रही हैं.

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Mother’s Day पर इन एक्ट्रेसेस ने शेयर की बेबी की First फोटो, देखें पोस्ट

बीते दिन दुनिया में मदर्स डे सेलिब्रेट किया गया. इस मौके पर बौलीवुड से लेकर टीवी के सेलेब्स ने अपनी मां संग फोटोज शेयर कीं. वहीं कई एक्ट्रेसेस और सेलेब्स ने पहली बार अपने बच्चे के साथ फोटोज शेयर की हैं, जो सोशलमीडिया पर तेजी से वायरल हो रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं बौलीवुड से लेकर टीवी सेलेब्स के बच्चों की पहली बार शेयर की गई फोटोज की झलक….

बेटी और पति संग शेयर की फोटोज

 

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बीते दिनों सरोगेसी के जरिए बेटी के पिता बने एक्ट्रेस प्रियंका चोपड़ा (Priyanka Chopra) और सिंगर निक जोनस ने मदर्स डे के मौके पर बेटी संग फोटो शेयर करते हुए स्पेशल पोस्ट किया है. दरअसल, फोटो में प्रियंका जहां अपनी बेटी मालती मैरी चोपड़ा जोनस के साथ बैठी दिख रही हैं. तो वहीं निक जोनस बेटी का हाथ थामे नजर आ रहे हैं. इसके अलावा प्रियंका चोपड़ा ने पोस्ट में बताया है कि उनकी बेटी 100 दिन अस्पताल में रहने के बाद मदर्स डे के मौके पर घर आई हैं, जिसे सुनकर फैंस और सेलेब्स उन्हें बधाई दे रहे हैं.

मोहेना ने भी शेयर की बेटे की फोटो

 

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सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है फेम एक्ट्रेस मोहेना कुमारी सिंह  (Mohena Kumari Singh) ने भी मदर्स डे के मौके पर अपने बेटे के साथ पहली फोटो शेयर की हैं, जिसे देखकर फैंस बेहद खुश हैं और फोटोज पर जमकर प्यार लुटा रहे हैं.

बेटे संग शेयर की काजल अग्रवाल ने फोटोज

प्रैग्नेंसी के चलते सोशलमीडिया पर एक्टिव रहने वाली साउथ और बौलीवुड एक्ट्रेस काजल अग्रवाल (Kajal Aggarwal) ने भी मदर्स डे के मौके पर बेटे नील किचलू संग फोटोज शेयर की हैं, जिसमें वह बेटे को गले लगाती हुई नजर आ रही हैं. वहीं इसके अलावा कुछ फोटोज में एक्ट्रेस की मां और बेटा साथ नजर आ रहे हैं. हालांकि फोटोज में बेटे का चेहरा छिपाया हुआ दिख रहा है.

जुड़वां बच्चों की शेयर की फोटो

 

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मदर्स डे के मौके पर एक्ट्रेस प्रीति जिंटा (Preity Zinta)  ने भी अपने जुड़वां बच्चों की फोटोज शेयर की हैं, जिसमें वह अपनी मां और बच्चों के साथ नजर आ रही हैं. फोटोज को देखकर फैंस बेहद खुश हैं.

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ऋषि कपूर के जाने के बाद कितनी बदल गई है नीतू कपूर की जिंदगी

जब अभिनेता ऋषि कपूर जिन्दा थे, वे मेरे लिए फुल टाइम जॉब थे, मेरे किसी फ्रेंड का घर पर आना या मेरा कहीं जाना उन्हें पसंद नहीं था, उनकी आवाज मेरी आवाज बनी थी, लेकिन अब उम्र के इस पड़ाव में जब बच्चे बड़े हो गए है, उनकी शादियाँ भी हो गयी है, मैं अब फ्री हूं और अपने हिसाब से जी सकती हूं, ऐसी ही बातों को कह रही थी, एक सफल और खूबसूरत अभिनेत्री नीतू कपूर, जिन्होंने कई सुपर हिट फिल्मे दी और अपनी एक अलग पहचान बनायीं. नीतू कपूर आज भी उतनी ही खूबसूरत और हंसमुख दिख रही हैं, जितना वह पहले दिखती थी. नीतू इन दिनों कलर्स टीवी की रियलिटी शो ‘डांस दीवाने जूनियर्स’ में एक जज बनी है, जो डांस के साथ उनके एक्सप्रेशन को भी देख रही हैं.

हंसमुख, शांत और खूबसूरत अभिनेत्री नीतू कपूर किसी परिचय की मोहताज नहीं. पिता की मृत्यु के तुरंत बाद उन्होंने केवल 5 साल की उम्र में बाल कलाकार के रूप में अभिनय करना शुरू किया. नीतू ने लेट 1960 से लेकर, 1970 और 1980 के शुरुआत तक हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में सफल फिल्मों की झड़ी लगा दी थी. वर्ष 1980 में उन्होंने ऋषि कपूर के साथ शादी की और दो बच्चों रिद्धिमा कपूर साहनी और रणवीर कपूर की माँ बनी. रणबीर आज एक अभिनेता हैं.

सवाल – इतनी सालों बाद इंडस्ट्री में वापस करने की वजह क्या है?

जवाब –मुझे जिंदगी में जो मिला,उससे मैं बहुत खुश हूं और कभी भी कुछ कमी मुझे महसूस नहीं हुई. अगर किसी बात से दुखी होती थी, तो जल्दी ही उसमें से निकल जाने की कोशिश करती हूं. पिछले 2 से 3 साल तक मेरी जिंदगी में जो सैड पार्ट आई, उससे निकलने के लिए मैंने फिल्म की. हालाँकि मेरी कॉंफिडेंट लेवल बहुत कम हो चुकी थी, फिर भी मैं एक्टिंग करने चली गयी और चंडीगढ़ में पहली शॉट पर मेरी हालत ख़राब हो रही थी, पर धीरे-धीरे अच्छा करती गयी, क्योंकि कई बार माइंड को किसी दुःख की परिस्थिति से निकालना बहुत मुश्किल होता है, लेकिन कुछ छोटे-छोटे शोज में गेस्ट जज बनकर गयी और कई लोगों से मिली. इसके बाद ये बच्चों की रियलिटी शो आई और मैंने इसे करने के लिए हाँ कह दी, क्योंकि बच्चों के साथ कुछ भी करना मुझे पसंद है. अकेली जिंदगी में कितना फ्रेंड्स के साथ रहूं, कितना ट्रेवल करूँ? मेंटल ऑक्यूपेशन बहुत जरुरी होता है.

सवाल – आप हमेशा अपने ड्रेसेस को लेकर चर्चित रहती है, क्योंकि आपकी ड्रेसिंग सेंस बहुत अच्छी है, इसके बारें में आप क्या कहना चाहती है?

जवाब – मेरे पास जो भी है, उसे मैं अपने हिसाब से पहनती हूं. मैंने हमेशा अपने ड्रेसेस खुद स्टाइल किया है.

सवाल – रियलिटी शो में काम करने में किसी प्रकार का प्रेशर अनुभव करती है?

जवाब – प्रेशर बहुत होता है, क्योंकि काफी समय इसमें देना पड़ता है. मेरी आदत सुबह लेट उठना, आराम से सब कुछ करना था. अब सुबह जल्दी उठकर भागम-भाग में सब करना पड़ता है, लेकिन अच्छी बात ये है कि इस शो में छोटे-छोटे बच्चे इतना अच्छा डांस करते है, जिसे देखकर मैं चकित हो जाती हूं. ये बच्चे छोटे-छोटे गांव से आये है, पर उनमें कुछ बनने कीउत्साह मुझे भी प्रेरित करती है.

सवाल – आपका बचपन कैसा था,क्या आपको बचपन याद आता है?

जवाब – मेरा बचपन था कहाँ? मैने 5 साल की उम्र से काम करना शुरू कर दिया था, उस समय न तो कोई फ्रेंड था, न ही बचपन था. बाल कलाकार के बाद ऋषि कपूर के साथ मेरा कैरियर शुरू हुआ.14 साल की उम्र से मैंने ऋषि कपूर के साथ डेटिंग शुरू कर दी थी,तब मुझे दुनिया का कुछ पता नहीं था, मेरी माँ भी बहुत स्ट्रिक्ट थी. जब मुझे बहुत सारे काम मिलने शुरू हो गए तो मेरे पति ने मुझसे शादी करने का प्रस्ताव रखा और मैंने शादी कर ली. 7 साल में मैंने 70 से 80 फिल्में की. 21 की उम्र में मेरी शादी हो गयी और बेटी भी हो गयी, दो साल बाद रणवीर का जन्म हो गया. मेरे जीवन में सबकुछ फटाफट हो गया. इसके बाद लाइफ इतनी बिजी हो गयी कि मुझे काम छोड़ना पड़ा, क्योंकि ऋषि कपूर मेरे लिए फुलटाइम जॉब थे.

सवाल –आपके हिसाब से,क्या कम उम्र में शादी करना अच्छा होता है? आपकी राय क्या है?

जवाब – आज के बच्चे इतनी जल्दी शादी नहीं करना चाहते, क्योंकि उन्हें पहले उस इंसान को जानने की जरुरत है, जिससे वे शादी कर रहे है. मेरी सोच यह है कि पति-पत्नी दोनों ही इन्नोसेंट होने पर शादी के बाद वे धीरे-धीरे साथ में ग्रो करते है, पर आज मेरी ये सोच गलत है, क्योंकि पहले हम दोनों एडजस्ट करते थे, लेकिन अब कोई एडजस्ट करना नहीं चाहता और एक दूसरे की आदतें उन्हें पहले से पता होती है. इसके अलावा दोनों मैच्योर होने पर उनकी एक राय बन जाती है, जिससे वे निकल नहीं पाते.

सवाल – क्या आपने काम को कभी नहीं मिस किया?

जवाब – मैंने बहुत काम किया और मैं अभिनय करते हुए ऊब चुकी थी, हर दिन एक स्टूडियो से दूसरी स्टूडियो जाना, ऑउटफिट बदलना, मेकअप लेना आदि मुझे अच्छा नहीं लग रहा था. इसलिए काम को छोड़ते हुए मुझे कोई परेशानी नहीं हुई.

सवाल –आपने बहुत कम उम्र में डेटिंग की है, जबकि आपकी माँ बहुत स्ट्रिक्ट थी, ऐसे में आप कैसे घर से निकलती थी या आपकी माँ का रिएक्शन कैसा था?

जवाब –मैं अकेले कभी निकली नहीं, मेरे साथ मेरा एक कजिन भाई जाता था, पर मैं उसे आधे रास्ते में छोड़ दिया करती थी. हमारी डेटिंग खाना खाया, थोड़ी गप-शप की, घर आते वक्त कजिन को उठा लिया और घर आ गए, आजकल की तरह डेटिंग नहीं थी.

सवाल –फिल्म जुग-जुग जियो में आपने अलग भूमिका निभाई है, क्या अभी भी खुद को एक्स्प्लोर कर रही है?

जवाब – मैंने हमेशा चोर, उचक्कों, पाकेटमार जैसी चुलबुली भूमिका निभाई है. इस फिल्म में मेरी भूमिका सीरियस है,मैंने ऐसी ठहरी हुई भूमिका पहले कभी निभाई नहीं है. आगे चलकर देखती हूं कि दर्शकों को मेरी भूमिका कितनी पसंद होती है.

सवाल – आपने सफल जर्नी पूरी की है, पिछले 30 से 40 वर्षों में कितना बदलाव हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में देखती है?

जवाब –बदलाव हुआ है और ये अच्छा बदलाव है. नई कहानियां कही जा रही है. फिल्मे बनाने की तकनीक, दर्शकों के टेस्ट, उनकी सोच सब पूरी तरह से बदल चुकी है. इसे मैं सही मानती हूं. आज लोग अधिक प्रोफेशनल हो चुके है, जो पहले नहीं था. मैं हर दिन सेट पर आने का समय पूछती थी, मोनिटर करने वाला कोई नहीं था. फिर भागती हुई सेट पर पहुँचती थी. बहुत बड़ी बदलाव है और ये अच्छे के लिए है, लेकिन अगर मेरी बात करूँ, तो मुझे वही लाइफस्टाइल पसंद थे.

सवाल –आज फिल्मों से एंटरटेनमेंट गायब हो चुका है, हर कोई रियल फिल्में बनाने की कोशिश कर रहे है, ऐसे में जो बाते घर-घर में होती है, वही पर्दे पर है, इस बारें में आपकी सोच क्या है?

जवाब – ये सही है कि आज की फिल्में अधिक वास्तविकता की ओर जा रही है, मुझे तो आज भी मेरी फिल्मे और उनके गाने पसंद है. असल में पहले एक कहानी में बच्चे का बिछड़ना, बलात्कार हो जाना,गाना आदि होते थे, पर अब ये दौर नहीं आएगा, क्योंकि वह हमारा समय था और हमारा ही रहेगा.

सवाल – आपके काम को बच्चे कितना सराहते है?

जवाब – दोनों बच्चे मेरे काम को सराहते है और देखते भी है. एक विज्ञापन में हम दोनों साथ थे, रणवीर वहां मुझे एक्टिंग के तरीके बता रहा था. मुझे मन ही मन हंसी आ रही थी. मैं हमेशा एक स्ट्रिक्ट मोम रही, जबकि ऋषि कपूर ने कभी बच्चों को डाटा नहीं, लेकिन उनका डर बच्चों को बहुत था. रणवीर कभी आँख उठाकर पिता से बात नहीं करते थे, लेकिन बेशर्म फिल्म में ऋषि और रणवीर दोनों ने साथ मिलकर काम किया है,जिसमें रणवीर ने पहली बार अपने पिता की आँखों का रंग देखा था, जिसे सुनकर मैं चकित हो गयी थी.

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रेटिंगः आधा स्टार

निर्माताः साजिद नाड़ियादवाला

निर्देशकः अहमद खान

कलाकारः टाइगर श्राफ,तारा सुतारिया, नवाजुद्दीन सिद्दिकी,

अवधिः दो घंटे  22 मिनट

2014 की सफल फिल्म ‘‘हीरोपंती’’ से अपने कैरियर की शुरूआत की थी,जिसका लेखन संजीव दत्ता,निर्देशन सब्बीर खान और निर्माण साजिद नाड़ियादवाला ने किया था. अब पूरे आठ वर्ष बाद उसी फिल्म का सिक्वअल ‘‘हीरोपंती’’ 29 अप्रैल को सिनेमाघरो में पहुंची है. फिल्म ‘‘हीरोपंती 2’’ के  निर्माता साजिद नाड़ियादवाला ने खुद ही इस बार कहानी लिखी है. यह बात गले नहीं उतरती कि साजिद ने क्या सोचकर अपनी इस बकवास कहानी पर फिल्म के निर्माण पर पैसे खर्च कर डाले. इससे ज्यादा बकवास फिल्म अब तक नही बनी है.

एक फिल्म के निर्माण में तकरीबन सौ से अधिक लोगों की मेहनत लगी होती है. एक फिल्म की सफलता व असफलता का असर हजार से अधिक परिवारों की रसोई पर पड़ता है. इस वजह से अमूमन मैं फिल्म की समीक्षा लिखते दर्शक फिल्म देखने न जाएं,ऐसा लिखने से बचने का प्रयास करता हॅूं,मगर ‘‘हीरोपंती 2’’ देखने का अर्थ सिरदर्द मोल लेेन के साथ ही समय व पैसे का क्रिमिनल वेस्टेज ही होगा.

कहानीः

लैला जादूगर (नवाजुद्दीन सिद्दिकी ) की आड़ में पूरे विश्व के साइबर क्राइम के मुखिया हैं. जिसने योजना बनायी है कि 31 मार्च के दिन भारत के सभी बैंको में सभी नागरिको के बैंक एकाउंट को हैककर सारा धन अपने पास ले लेंगें. बबलू( टाइगर श्राफ )दुनिया का सबसे बड़ा हैकर है,जिसकी सेवाएं कभी सीबाआई प्रमुख खान( जाकिर हुसेन ) के लिया करते थे. अब बबलू अपनी सेवाएं लैला को दे रहे हंै. लैला की बहन इनाया( तारा सुतारिया) ,बबलू से प्यार करती है. फिर बबलू का हृदय परिवर्तन भी होता है.

लेखन व निर्देशनः

फिल्म ‘‘हीरोपंती 2’’ में ऐसा कुछ नही है,जिसे अच्छा कहा जा सके. घटिया कहानी,घटिया पटकथा और घटिया निर्देशन अर्थात फिल्म ‘‘हीरोपंती 2’’ है. लेखक व निर्देशक के दीमागी दिवालिएपन की हालत यह है कि एम्बूलेंस ड्रायवर का मकान अंदर से किसी आलीशान बंगले से कमतर नही है. टाइगर श्राफ की पहचान बेहतरीन डांसर व एक्शन दृश्यों को लेकर होती है,लेकिन इस फिल्म में यह दोनो पक्ष भी कमजोर हैं. फिल्म में कई एक्शन दृश्य ऐसे है, जिन्हे देखते हुए लगता है हम मोबाइल पर एक्शन का वीडियो देख रहे हो. मजेदार बात यह है कि एक्शन दृश्य देखकर हंसी आती है. एक व्यक्ति दोनों हाथांे में मशीनगन पकड़कर टाइगर श्राफ पर गोलियां चला रहा है,मगर टाइगर पर असर नही पड़ता. तो वहीं कहीं किसी भी दृश्य के बाद कोई भी गाना ठूंस दिया गया है. फिल्म में एक भी दृश्य ऐसा नही है,जिसमें कुछ नयापना हो. सब कुद बहुत बचकाना सा है. अब तीन मिनट के सिंगल गानों के जो म्यूजिक वीडियो बन रहे हैं,उनमें भी एक अच्छी कहानी होती है,मगर ‘हीरोपंती 2’’ की पटकथा इतनी खराब लिखी गयी है कि दर्शक अपना माथा पीटता रहता है.

अहमद खान अच्छे नृत्य निर्देशक रहे हैं,मगर बतौर निर्देशक वह बुरी तरह से मात खा गए हैं. वैसे अहमद खान ने इससे पहले ‘बागी 2’ और ‘बागी 3’ जैसी अर्थहीन फिल्मंे  निर्देशित कर चुके हैं.

फिल्म में एक दृश्य पांच सितारा होटल के अंदर से शुरू होता है,जहां इयाना (तारा सुतारिया ) बबलू (टाइगर श्राफ ) की होटल के बाहर बीच सड़क पर अपने आदमियों से बबलू की पैंट उतरवाकर  पीठ के नीचे कमर पर तिल की तलाश करवाती है. यह अति भद्दा व वाहियात दृश्य है. इसे करने के लिए टाइगर श्राफ क्या सोचकर तैयार हुए,पता नही. जबकि इस दृश्य से कहानी का कोई लेना देना नही है.

इसके संवाद भी अति घटिया हैं. फिल्म में नवाजुद्दीन का संवाद है-‘‘यह तुम्हारी मां है और यह मेरी बहन है. अब तुम दोनो जाकर मां बहन करो. ’’

लैला यानी कि नवाजुद्दीन सिद्दिकी के कम्प्यूटर रूम में सीसीटीवी कैमरा लगा है,जो कि अजीब ढंग से घूमता रहता है. यह कैमरा क्यों लगा हुआ है,किस पर निगाह रख रहा है,पता ही नहीं चलता.

अभिनयः

इनाया के किरदार में तारा सुतारिया का अभिनय अति घटिया है. पूरी फिल्म में वह विचित्र से कपड़े पहने,विचित्र सी हरकतें करते हुए नजर आती है.

जादूगर लैला के किरदार में नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने अब तक का सबसे निम्न स्तर का अभिनय किया है. वह कभी ट्रांसजेंडर की तरह हाव भाव करते व चलते नजर आते हैं,तो कभी कुछ अलग ही चाल ढाल होती है. नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने इस फिल्म में क्यों काम किया,यह समझ से परे है. शायद वह सिर्फ पैसा बटोरने के चक्कर में कला व अभिनय को तिलांजली देने पर उतारू हो चुके हैं.

टाइगर श्राफ हर दृश्य में अपना सपाट सा चेहरा लिए हुए नजर आते हैं. उनके चेहरे पर कहीं कोई भाव नहीं आते. बेवजह उछलकूद करते हुए नजर आते हैं.

अफसोस की बात यह है कि इस बकवास फिल्म के गीतों को संगीत से ए आर रहमान ने संवारा है. फिल्म के गाने घटिया हैं और बेवजह फिल्म के बीच बीच में ठॅूंसे गए हैं. फिल्म के अंत में ‘व्हिशल बाजा’ प्रमोशनल गाने में कृति सैनन को देखकर लगा कि शायद अब उनका कैरियर पतन की ओर जाने लगा है.

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लता मंगेशकर को मिलेगी ‘नाम रह जाएगा’ में श्रद्धांजलि, पढ़ें खबर

सुर सम्राज्ञी लता मंगेशकर के गाने हमेशा से ही पूरे विश्व में प्रचलित है, उनके गानों की लिस्ट को गिनना असंभव है, 25 हज़ार से अधिक गीत गाने वाली मृदुभाषी और शांत स्वभाव की लता को ट्रिब्यूट देना अपने आप में एक बड़ी बात है, जिसे सभी बड़े-बड़े गायकों ने उनके गानों को गाकर श्रद्धांजलि देने की कोशिश की. स्टार प्लस पर इस शो को ‘नाम रह जाएगा’ के तहत किया जाएगा. इस शो की ज़ूम प्रेस कांफ्रेंस में सभी ने बहुत ही संजीदगी से भाग लिया और लता मंगेशकर के साथ बिताये उनके अनुभव और सीख को शेयर किया. इसमें 18 जाने-माने गायक कलाकार उनके गीतों को गाकर अपने तरीके से श्रद्धांजलि देंगे, जिसमें सोनू निगम, अरिजीत सिंह, शंकर महादेवन, नितिन मुकेश, नीति मोहन, अलका याज्ञनिक, साधना सरगम, उदित नारायण, शान, कुमार शानू, अमित कुमार, जतिन पंडित, जावेद अली, ऐश्वर्या मजूमदार, स्नेहा पंत, पलक मुच्छल और अन्वेषा मंच पर साथ मिलकर लता मंगेशकर के सबसे प्रतिष्ठित गीत गाकर श्रद्धांजलि देंगे.

 

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प्रेस कांफ्रेंस के दौरान संगीतकार जतिन पंडित ने कहा कि संगीत के इसी दौर को गोल्डन पीरियड कहा जाता है और ये दौर अब चला गया है, उनकी प्योरिटी उनके संगीत में थी, जो आज भी सुनने पर सुकून देती है. लता जी की डिक्शन, गानों में जगह को भरना, र और श को इतनी अच्छी तरीके से प्रयोग करती थी, जो आज तक मैंने कहीं देखा नहीं है. इसके अलावा उनकी लो नोट्स, हाई नोट्स आदि को सहजता के साथ कर लेती थी. मैंने कभी कोई परेशानी उन्हें गाते हुए नहीं देखा है, यहाँ ये भी कहना जरुरी है कि उनकी आवाज के साथ-साथ उनके साथ में रहने वाले कम्पोजर, राइटर भी बहुत अच्छा काम करते थे, उस दौर की संगीतकार सलिल चौधरी, मदन मोहन, शंकर जयकिशन आदि सभी उनके सुर को एक अलग दिशा दी है.आज वैसी कोम्पोजीशन देना, उसे तराशना बहुत मुश्किल है. सारी चीजें जब एक साथ इकट्ठी हुई, तब एक बुनियाद बनी, जिसको हम सारी जिंदगी चलने पर भी नहीं पा सकते. मैंने लता जी के साथ कई काम किये है, संगीत के अलावा उन्हें ह्यूमर बहुत पसंद है. मैंने 9 साल की उम्र में उनके साथ गाना गया है. बचपन में मैं अपने पिता के साथ उनके घर जाया करता था, क्योंकि इनका पूरा परिवार संगीत को लेकर चर्चा करते थे. गानों के साथ-साथ उन्हें सेंस ऑफ ह्यूमर भी बहुत अच्छा था और कई खुबसूरत म्यूजिकल जोक्स सुनाया करती थी. मेरा अहो भाग्य है कि मैंने लताजी की संगीत को सुना और उनके साथ गाया भी है.

साधना सरगम कहती है कि मैं जब भी उनके साथ मिली हूँ, वह दिन मेरे लिए स्पेशल था. मेरे पाँव छूते ही वह मेरी हाल-चाल पूछती रहती थी. उनका प्यार हमेशा मेरे ऊपर रहा और जनसे भी मिलती थी उन्हें आशीर्वाद देती थी. रहमान के एक कॉन्सर्ट में वह मुझसे मिली और रियाज करने के बारें में पूछी थी, उन्होंने रियाज को सफलता का मूल मन्त्र माना है.

 

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सिंगर शान कहते है कि आज जब गाना गाते है तोलोग उसे याद नहीं रखते, जबकि पुराने गीत आज सभी सुनते है. मेरे  मेरे पिता का लताजी के साथ बहुत अच्छा सम्बन्ध थे, लताजी को गाते वक्त सांस की आवाज कंट्रोल करने की क्षमता अद्भुत थी. मैं इसे सीखने की कोशिश कर रहा हूँ. गाना गाते समय साँस को छुपाकर लेना और उसकी आवाज माइक में न आना एक अद्भुत कला है.

नितिन मुकेश भावुक होकर कहते है कि कोविड में उन्होंने मुझे सहारा दिया मेरा ख्याल रखा, क्योंकि मुझे कोविड हो गया था. इसके बाद उन्होंने मुझे एक गिफ्ट देने की बात कही थी,  लेकिन मैं उनसे मिल नहीं पाया, क्योंकि वे पूरी तरह से आइसोलेशन में थी. उनका प्यार, स्नेह हमेशा रहा है, जिसे हम भूल नहीं सकते. संगीत लताजी के साथ शुरू होता है और उनके साथ ही ख़त्म हो गया है, क्योंकि संगीत और लताजी दोनों ही आम है.

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आपको समझ आते हैं ये 8 गाने?

बॉलीवुड की फिल्मों में यदि गाने न हों, तो फिल्म अधूरी-सी लगती है. कभी-कभी फिल्म हिट नहीं होती, मगर उसके गाने जरूर हिट हो जाते हैं. कई बार तो गानों से ही फिल्म का नाम पहचाना जाने लगता है. कई बार ये गाने गैर हिंदी होने हमारी समझ से परे होने के बावजूद, हमारे मन में इतना बस गए हैं कि उनकी धुन पर हम मगन होकर नाचने लगते हैं.

आज हम कुछ ऐसे गानों की बात कर हैं, जो हिंदी में ना हो कर भी हिंदी फिल्मों में और बॉलीवुड के अन्य गानों की तरह धूम मचा चुके हैं.

1. कोलावेरी डी (Kolaveri Di)

इस गाने के रिलीज के दौरान ये नॉन-हिंदी गानों की लिस्ट में टॉप पर था. इस गाने के शुरुआती बोल कुछ इस तरह से हैं ‘Why this Kolaveri Kolaveri Di’. यहां हम आपको बता देना चाहते हैं कि रजनीकांत के दामाद धनुष ने इस गाने को गाया था. ये लोगों के बीच काफी प्रचलित हुआ था. इसे लोग आज भी खूब पसंद करते हैं.

2. आ अंटे अमला पुरम (Aa Ante Amla Puram)

ये गाना एक आइटम सांग है, जो साल 2012 में लोगों के बीच खूब छा हुआ था. उस वक्त तो आलम ये हो गया था कि जब भी इस गाने को बजाया जाता था लोग बिना डांस किये नहीं मानते थे. इस गाने में आई अदाकारा को भी लोगों ने खूब पसंद किया था.

4. सेन्योरीटा (Senorita)

एक स्पेनिश गाना जो बॉलीवुड में काफ़ी फ़ेमस हुआ. ये गाना ऋतिक रोशन की फिल्म ‘ज़िन्दगी न मिलेगी दुबारा’ का है. आज भी इस गाने को सुनते ही लोग सर के बल डांस करने लगते हैं.

5. बोरो-बोरो (Boro Boro)

ये एक पार्शियन गाना है, इसके बावजूद ये बॉलीवुड में खूब पॉपुलर हुआ था. अभिनेता अभिषेक बच्चन ने भी इस गाने में कमाल का डांस कर, दर्शकों को खूब आकर्शित किया था. इस गाने के इतने पुराने होने के बावजूद, ये आज भी लोगों को बीच काफी मशहूर है और इस गाने पर लोग खूब थिरकते हैं.

6. माशाअल्लाह- माशाअल्लाह (Mashalla)

अभिनेता सलमान खान और कैटरीना कैफ की फिल्म ‘एक था टाइगर’ का ये गाना अरेबिक और हिंदी का मिश्रण है. हर कोई इस गाने पर सलमान और कटरीना के अंदाज में ही डांस करने की कोशिश करता है. ये गाना एक गैर हिन्दी होने के बावजूद आज तक लोगों के बीच यादगार बना हुआ है.

7. अपनी पोड़े (Apni Pode)

13 साल पहले आई तमिल फिल्म ‘घिलि’ (Ghili) का ये गाना आज भी लोगों के दिलों और दिमाग में बसा हुआ है.

8. नवराई माझी (Navrai Majhi)

ये गाना साल 2012 में आई फिल्म इंग्लिश विंग्लिश का एक मराठी सॉन्ग है. भले लोग इसे समझते न हों, लेकिन जब ये गाना चलता है, तो इस पर नाचना खूब पसंद करते हैं.

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बॉलीवुड की पौपुलर और क्यूट जोड़ियों में से एक आलिया भट्ट और रणबीर कपूर की वेडिंग फोटोज और वीडियोज इन दिनों सोशलमीडिया पर छाई रहती हैं. हालांकि दोनों एक बार फिर अपनी प्रौफेशनल लाइफ में बिजी होते हुए नजर आ रहे हैं. हालांकि दोनों की लव स्टोरी जानने के लिए फैंस आए दिन बेताब रहते हैं. इसीलिए आज हम आपके लिए लेकर आए हैं इस सेलिब्रिटी कपल की लव स्टोरी…

 ऐसी थी रणबीर-आलिया की पहली मुलाकात

 

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रणबीर कपूर और आलिया भट्ट अक्सर सीक्रेट वेकेशन पर जाने से लेकर फैमिली गेट-टुगेदर अटेंड करते हुए नजर आती रही हैं. वहीं सोशलमीडिया के जरिए आलिया भट्ट अपने प्यार का इजहार करती दिखती हैं. हालांकि बेहद कम लोग जानते हैं कि 9 साल की उम्र में ही आलिया रणबीर कपूर को दिल दे बैठी थीं. दरअसल, 2005 की फिल्म ब्लैक के लिए ऑडिशन देने के दौरान उनकी पहली मुलाकात रणबीर कपूर से हुई थी, जो कि संजय लीला भंसाली के साथ सहायक निर्देशक के रूप में काम कर रहे थे. वहीं रणबीर पर क्रश के चलते आलिया, फिल्म बालिका वधू की शूटिंग के दौरान शर्मा रही थीं.

रणबीर संग है फोटो

अपनी लव स्टोरी का ये किस्सा आलिया भट्ट एक इंटरव्यू में शेयर करते हुए कहा था कि संजय सर मेरे साथ बालिका वधू के साथ एक और फिल्म बनाना चाहते थे, इसलिए हमने तैयारी के चलते एक फोटोशूट किया. वहीं इस दौरान रणबीर वहां मौजूद थे. इसके अलावा मेरे पास रणबीर के साथ एक फोटो है.  मुझे नहीं पता कि उस उम्र में यह कैसे हुआ, जो कुछ भी हो, मुझे बहुत शर्म आ रही थी. वैसे भी, किसी कारण से यह काम नहीं कर सका. मुझे लगता है कि सर उस फिल्म को बनाने के लिए तैयार नहीं थे.”

पहली फिल्म के दौरान हुआ प्यार

 

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क्रश से प्यार तक के सफर की बात करें तो साल 2017 में अयान मुखर्जी द्वारा निर्देशित फिल्म ब्रह्मास्त्र की शूटिंग के दौरान आलिया भट्ट और रणबीर कपूर को प्यार हुआ. बुल्गारिया में शूटिंग के दौरान दोनों एक दूसरे के करीब आए, जिसके चलते नजदीकियों की खबरें मीडिया में छा गई थीं.

पहली बार साथ आए नजर

प्यार की शुरुआत होने के बाद रणबीर और आलिया की अक्सर चोरी छिपे मिलने की खबरें आईं. लेकिन मई 2018 में सोनम कपूर और आनंद आहूजा की शादी के रिसेप्शन में दोनों पहली बार मीडिया के सामने साथ नजर आए. जहां दोनों ने जमकर पोज देते नजर आए. वहीं लुक की बात करें तो आज भी आलिया भट्ट की सब्यसाची मुखर्जी के हरे रंग के लहंगे में और रणबीर कपूर की क्रीम कलर की शेरवानी पहने फोटो सोशलमीडिया पर वायरल होती रहती हैं.

डेट का रणबीर कपूर ने किया था ऐलान

मीडिया के सामने कपल की तरह एंट्री लेने के बाद दोनों की डेटिंग की खबरों पर मोहर लग गई थी. हालांकि दोनों में से किसी ने इस पर औफिशियल तौर पर कोई बात नहीं कही थी. लेकिन एक मैगजीन को दिए इंटरव्यू में रणबीर कपूर ने अपनी लव लाइफ पर मोहर लगाई थी.

परिवार ने दी मंजूरी

 

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रणबीर और आलिया के ऐलान के बाद कपूर और भट्ट परिवार ने दोनों के रिश्ते को खुशी खुशी मंजूरी दी थी. एक इंटरव्यू में महेश भट्ट ने आलिया और रणबीर के बढ़ते प्यार के बारे में बात करते हुए शेयर किया था कि वह रणबीर से प्यार करते हैं और वह एक महान व्यक्ति हैं. वहीं खबरों की मानें तो रणबीर की दूसरी गर्लफ्रेंड के से परे  नीतू कपूर ने आलिया भट्ट को अपना महसूस किया था. इसी के चलते दोनों साथ में डिनर डेट से लेकर फैमिली टाइम बिताते नजर आ चुके हैं.

नीतू कपूर का दिया था साथ

अच्छे पलों के अलावा आलिया भट्ट, रणबीर कपूर और उनकी फैमिली का बुरे वक्त में भी साथ देते हुए नजर आ चुकी हैं. 30 अप्रैल, 2020 को जब लौकडाउन के दौरान ऋषि कपूर का कैंसर से जूझने के बाद निधन हुआ था तो आलिया भट्ट परिवार के साथ मौजूद नजर आईं थीं, जिसकी फोटोज और वीडियोज सोशलमीडिया पर काफी वायरल हुई थीं, जिसमें वह नीतू कपूर को सांत्वना औऱ रिद्धिमा कपूर, पिता की आखिरी छवि दिखाती नजर आईं थीं.

कपल बना रहा है सपनों का घर

 

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आलिया भट्ट और रणबीर कपूर के रिश्ते मजबूत होते जा रहे हैं, जिसके चलते दोनों की शादी की खबरें भी मीडिया में छाने लगी हैं. वहीं हाल ही में रणबीर कपूर और आलिया भट्ट अपने नए घर की तैयारियों में जुटे हुए नजर आए. इसके अलावा खबरे हैं कि दोनों के घर का नाम रणबीर की दादी कृष्णा राज के नाम पर रखा जाएगा. वहीं कपल अक्सर अपने परिवार के साथ घर को देखने पहुंचते हैं.

आलिया भट्ट और रणबीर कपूर की ये लव स्टोरी किसी सपने से कम नहीं है. क्रश से लेकर प्यार तक का सफर आगे बढ़ गया है. वहीं साल 2022 यानी इस साल ये रिश्ता शादी के बंधन में बंध गए हैं.

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