स्किन कलर साफ करने के लिए नीबू के रस का प्रयोग किया जा सकता है, क्या यह सही है?

सवाल-

मैं सांवले रंग की महिला हूं. मुझे पता चला है कि रंग साफ करने के लिए नीबू के रस का प्रयोग किया जा सकता है. क्या यह सही है और इस का प्रयोग किस तरह से करना चाहिए?

जवाब-

स्किन पर कभी नीबू का सीधा इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, क्योंकि नीबू में एसिड होता है, जो स्किन को नुकसान पहुंचाता है. इसके ज्यादा प्रयोग से स्किन काली हो जाती है. आप की स्किन अगर औयली है, तो इस के लिए बेसन में 1 ढक्कन सिरका और 1 चम्मच चंदन पाउडर मिला कर पैक बना लें. इसे सप्ताह में 2 बार चेहरे पर लगाएं. इस से आप की स्किन मुलायम और चमकदार हो जाएगी. इसके अलावा किसी अच्छे ब्रैंड की फेयरनैस क्रीम का भी प्रयोग कर सकती हैं. जब धूप में निकलें तो सन क्रीम का प्रयोग करें. वैसे यदि रंग सावला या स्किन साफ है और आप का शरीर चुस्त है तो भी सौंदर्य कम नहीं होता. रंग का सुंदर होने से कोई बड़ा मतलब नहीं है.

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हर कोई खूबसूरत दिखना चाहता है लेकिन आजकल की भागदौड़ भरी लाइफ में यह आसान काम नही है. हाल ही किए गए एक सर्वे के मुताबिक एक औफिस जाने वाली महिला मेकअप के लिए 55 मिनट देती है. इसीलिए अपनी खूबसूरती को निखारने के लिए और अपने डेली रूटीन को बदलने के लिए इन टिप्स को जरूर फौलो करें…

1. रात को कर लें प्लानिंग…

रात को ही सुबह की प्लानिंग  करते हुए अपने सामान को व्यस्थित रखें, इससे सुबह आप को फैसला लेने में कम वक्त के साथ सामान ढूंढ़ने में भी समय नही लगेगा.

2. बालों के लिए माइक्रोफाइबर टौवेल का इस्तेमाल…

रोजाना इस्तेमाल होने वाले टौवेल के मुकाबले माइक्रोफाइबर टौवेल ज्यादा जल्दी पानी सोखता है. यह न केवल आप के ड्रायर से बाल सुखाने का समय आधा करता है, बल्कि आप के बालों को लगने वाली गरमी की मात्रा भी कम करता है.

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पेंसिल आईलाइनर और लिक्विड आई लाइनर में से कौन सा बेहतर रिजल्ट देता है?

सवाल-

पेंसिल आई लाइनर और लिक्विड आई लाइनर में से कौन सा बेहतर रिजल्ट देता है?

जवाब-

लिक्विड लाइनर से आंखें जितनी बड़ी और आकर्षक लगती हैं उतनी पैंसिल लाइनर से नहीं लगतीं. लिक्विड आई लाइनर काफी देर तक टिका भी रहता है. जिन लोगों की स्किन औयली होती है उन के लिए लिक्विड लाइनर एक जैकपौट की तरह होता है. लिक्विड लाइनर लंबे समय तक उसी शेप में रह सकता है. साथ ही यह बिलकुल साफसुथरा भी दिखाई देता है. वहीं दूसरी ओर पैंसिल या पाउडर लाइनर आंखों के आसपास औयल प्रौड्यूस होने के कारण दिन भर में उस का शेप खराब भी कर सकता है या फिर पूरा हट भी सकता है. लिक्विड आई लाइनर का एक और सब से बड़ा फायदा यह है कि आप इस की मदद से अपनी कोई भी क्रिएटिविटी कर सकती हैं.

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आप भी गरमियों में अपनी स्किन और आंखों को सुंदर बनाने के लिए बाजार से महंगे स्किन प्रोडक्ट खरीदते हैं, तो आज हम आपको आंखों को ब्यूटीफुल बनाने के लाइनर के कुछ ऐसे प्रौडक्ट के बारे में बताएंगे, जिसे आप दुकानों से 300 रूपए की कीमत के अंदर खरीद सकते हैं. जो आपके बजट में होगा.

1. लैक्मे इंस्टा लिक्विड आईलाइनर

कौलेज गर्ल्स के फेवरेट आईलाइनर्स में से एक है लैक्मे इंस्टा लिक्विड आईलाइनर. जो आपको दुकानों में 110 रुपये की कीमत में मिल जाएगा. इसका ब्रश पतला और कलर काला होता है. साथ ही यह वौटर प्रूफ भी है जो गरमी में भी आंखों को खूबसूरत बनाए रखेगा.

2. मेबेलिन हाइपर ग्लौसी लिक्विड आईलाइनर

मेबेलिन लिक्विड आईलाइनर स्मज प्रूफ और वौटर रेसिस्टेंट लिक्विड आईलाइनर है, जो कि 225 रुपये में आता है. इसका लंबा और पतला हैंडल सही ढंग से आईलाइनर अप्लाई करने में मदद करता है.

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2 साल पहले मोच आने से सर्दियों में मेरे पैर में दर्द रहता है, मै क्या करूं?

सवाल-

मेरी उम्र 25 साल है. 2 साल पहले मेरे पैर में मोच आ गई थी, जो कुछ दिनों में ठीक भी हो गई. लेकिन ठंड के मौसम में मु झे उसी जगह पर दर्द होता है, जिस के कारण चलने में तकलीफ होती है. यह दर्द कैसे ठीक होगा?

जवाब-

कई बार मोच देखने में हलकी लगती है, लेकिन अंदर से वह काफी गंभीर होती है. आप की बात से साफ जाहिर होता है कि आप के पैर में अंदरूनी चोट है, जो ठीक नहीं हुई है. ठंड में हड्डियां और जोड़ कमजोर पड़ जाते हैं, जिस से हड्डियों की समस्याएं होती हैं और फिर दर्द होने लगती है. चोट ठंड से प्रभावित होती है, जिस से दर्द होता है. आप की समस्या सामान्य नहीं है, इसलिए इसे तुरंत मैडिकल ट्रीटमैंट की आवश्यकता है. दर्द से छुटकारा पाने के लिए हड्डी के किसी अच्छे डाक्टर से संपर्क करें. इस के अलावा दर्द वाली जगह की सिंकाई करें. उसे ठंड से बचा कर रखने में दर्द से राहत मिलेगी.

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फरीदाबाद, हरियाणा के एशियन इंस्टिट्यूट औफ मैडिकल साइंसैस के सीनियर कंसल्टैंट और और्थोपैडिक्स विभाग के प्रमुख डा. मृणाल शर्मा का कहना है कि युवतियों को समस्याओं पर गौर करना चाहिए ताकि वे स्वस्थ जिंदगी जी सकें.

मीनोपौज की मार

आमतौर पर दुनियाभर में महिलाओं को मीनोपौज 45 से 55 वर्ष की उम्र में होता है, लेकिन हाल ही में द इंस्टिट्यूट फौर सोशल ऐंड इकोनौमिक चेंज के सर्वे से पता चला है कि करीब 4 फीसदी भारतीय महिलाओं को मीनोपौज 29 से 34 साल की उम्र में ही हो जाता है, वहीं जीवनशैली मेें बदलाव के चलते 35 से 39 साल के बीच की महिलाओं का आंकड़ा 8 फीसदी है.

एस्ट्रोजन हार्मोन महिलापुरुष दोनों में पाया जाता है और यह हड्डियों को बनाने वाले औस्टियोब्लास्ट कोशिकाओं की गतिविधियों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. मीनोपौज के दौरान महिलाओं का एस्ट्रोजन स्तर गिर जाता है, जिस से औस्टियोब्लास्ट कोशिकाएं प्रभावित होती हैं. इस से महिलाओं की हड्डियां कमजोर होने लगती हैं.

शरीर में एस्ट्रोजन की कमी से कैल्शियम सोखने की क्षमता कम हो जाती है और हड्डियों का घनत्व गिरने लगता है. इस से महिलाओं को औस्टियोपोरोसिस और औस्टियोआर्थ्राइटिस जैसी हड्डियों से जुड़ी बीमारियां होने की आशंका बढ़ जाती है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- बढ़ते हड्डी और जोड़ों के रोग, कैसे बचें इन से

ठंड में मेरे जोड़ों में कसाव और दर्द महसूस होता है, मै क्या करूं?

सवाल-

मेरी उम्र 40 साल है. ठंड में मेरे जोड़ों में कसाव और दर्द महसूस होता है. आराम के बाद भी दर्द कई बार गंभीर हो जाता है, जिस के कारण कोई काम नहीं कर पाती हूं. कृपया इस समस्या का समाधान बताएं?

जवाब-

आप की उम्र में हड्डियों की समस्याएं होना सामान्य बात है. ठंड में धूप की कमी के कारण हड्डियों और जोड़ों से संबंधित समस्याएं बढ़ जाती हैं. तापमान में गिरावट के साथ हड्डियों का लचीलापन कम हो जाता है, जिस के कारण जकड़न और दर्द की समस्या होती है. ठंड के मौसम में दर्द से बचने के लिए खास ध्यान रखना पड़ता है. गरम कपड़े पहन कर रखें, हड्डियों व जोड़ों की सिंकाई करें, कुनकुने तेल से मालिश करें. हलकी ऐक्सरसाइज की मदद से हड्डियों में जकड़न की समस्या दूर होगी. हड्डियों में लचीलापन आने से दर्द में खुदबखुद राहत मिल जाएगी. चूंकि आप की उम्र ज्यादा है, इसलिए आप को मैडिकल ट्रीटमैंट की आवश्यकता भी है. किसी अच्छे हड्डी विशेषज्ञ से परामर्श लें.

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मीनोपौज की मार

आमतौर पर दुनियाभर में महिलाओं को मीनोपौज 45 से 55 वर्ष की उम्र में होता है, लेकिन हाल ही में द इंस्टिट्यूट फौर सोशल ऐंड इकोनौमिक चेंज के सर्वे से पता चला है कि करीब 4 फीसदी भारतीय महिलाओं को मीनोपौज 29 से 34 साल की उम्र में ही हो जाता है, वहीं जीवनशैली मेें बदलाव के चलते 35 से 39 साल के बीच की महिलाओं का आंकड़ा 8 फीसदी है.

एस्ट्रोजन हार्मोन महिलापुरुष दोनों में पाया जाता है और यह हड्डियों को बनाने वाले औस्टियोब्लास्ट कोशिकाओं की गतिविधियों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. मीनोपौज के दौरान महिलाओं का एस्ट्रोजन स्तर गिर जाता है, जिस से औस्टियोब्लास्ट कोशिकाएं प्रभावित होती हैं. इस से महिलाओं की हड्डियां कमजोर होने लगती हैं.

शरीर में एस्ट्रोजन की कमी से कैल्शियम सोखने की क्षमता कम हो जाती है और हड्डियों का घनत्व गिरने लगता है. इस से महिलाओं को औस्टियोपोरोसिस और औस्टियोआर्थ्राइटिस जैसी हड्डियों से जुड़ी बीमारियां होने की आशंका बढ़ जाती है.

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रनिंग के दौरान मुझे घुटनों के नीचे बहुत ज्यादा दर्द होता है, मैं क्या करूं?

सवाल-

मेरी उम्र 27 साल है. मु झे हैवी वर्कआउट करना पसंद है. लेकिन ठंड में रनिंग के दौरान मु झे घुटनों के नीचे बहुत ज्यादा दर्द होता है, जिस के कारण ठीक से वर्कआउट नहीं कर पाता हूं. मु झे बताएं कि ऐसा क्यों होता है और इस से कैसे छुटकारा पाया जाए?

जवाब-

चूंकि आप हैवी वर्कआउट करते हैं, इसलिए आप के घुटनों के नीचे वाले लिगामैंट पर इस का प्रभाव पड़ता है. अपने वर्कआउट को थोड़ा कम करने की कोशिश करें. अगर आप वर्कआउट जिम में करते हैं तो ऐसा विटामिन डी की कमी से भी हो सकता है, जो धूप न सेंकने के कारण होता है. यदि आप धूप में रनिंग करेंगे तो आप के लिगामैंट मैं दर्द होना बंद हो जाएगा.

वर्कआउट के दौरान अच्छी कंपनी के जूते पहनें, जिन में आप कंफर्टेबल महसूस करें और आप के पैरों में किसी प्रकार का दबाव या दर्द न महसूस हो. इस के अलावा अपना आहार भी ऐसा रखें, जिस में सभी जरूरी मिनरल्स के साथसाथ विटामिन डी भी भरपूर मात्रा में हो. दौड़ने के बाद कुनकुने पानी से सिंकाई करने की आदत डालें. इस से भी दर्द से राहत मिलेगी.

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मीनोपौज की मार

आमतौर पर दुनियाभर में महिलाओं को मीनोपौज 45 से 55 वर्ष की उम्र में होता है, लेकिन हाल ही में द इंस्टिट्यूट फौर सोशल ऐंड इकोनौमिक चेंज के सर्वे से पता चला है कि करीब 4 फीसदी भारतीय महिलाओं को मीनोपौज 29 से 34 साल की उम्र में ही हो जाता है, वहीं जीवनशैली मेें बदलाव के चलते 35 से 39 साल के बीच की महिलाओं का आंकड़ा 8 फीसदी है.

एस्ट्रोजन हार्मोन महिलापुरुष दोनों में पाया जाता है और यह हड्डियों को बनाने वाले औस्टियोब्लास्ट कोशिकाओं की गतिविधियों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. मीनोपौज के दौरान महिलाओं का एस्ट्रोजन स्तर गिर जाता है, जिस से औस्टियोब्लास्ट कोशिकाएं प्रभावित होती हैं. इस से महिलाओं की हड्डियां कमजोर होने लगती हैं.

शरीर में एस्ट्रोजन की कमी से कैल्शियम सोखने की क्षमता कम हो जाती है और हड्डियों का घनत्व गिरने लगता है. इस से महिलाओं को औस्टियोपोरोसिस और औस्टियोआर्थ्राइटिस जैसी हड्डियों से जुड़ी बीमारियां होने की आशंका बढ़ जाती है.

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डाक्टरों ने मुझे नी रिप्लेसमैंट की सलाह दी है, क्या ये ट्रीटमेंट मेरे लिए सही है?

सवाल-

मेरी उम्र 36 साल है. मुझे जुवेनाइल आर्थ्राइटिस की समस्या है. डाक्टरों ने मु झे नी रिप्लेसमैंट की सलाह दी है. मैं जानना चाहती हूं कि मेरे लिए यह उपचार कितना उपयुक्त रहेगा?

जवाब-

कई प्रकार के आर्थ्राइटिस में फिजियोथेरैपी बहुत कारगर होती है. इस से अंगों की कार्यप्रणाली सुधरती है और जोड़ों के आसपास की मांसपेशियां शक्तिशाली बनती हैं. अगर आर्थ्राइटिस शुरुआती चरण में है तो उसे फिजियोथेरैपी और जीवनशैली में बदलाव ला कर कंट्रोल में किया जा सकता है. लेकिन अगर आप को दूसरे उपचारों से आराम नहीं मिल रहा है और बहुत तकलीफ में हैं तो नी रिप्लेसमैंट ही आप के लिए अंतिम विकल्प बचता है.

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क्या आप को हैरानी हुई है कि छरहरी महिलाएं भी कमजोर और अस्वस्थ क्यों हो जाती हैं?

क्या आप ने कभी सोचा है कि सब का खयाल रखने वाली परिवार की कोई सदस्य अकसर बीमार क्यों पड़ जाती है?

एक दशक पहले तक हैजा, टीबी और गर्भाशय का कैंसर महिलाओं को होने वाली सेहत से जुड़ी मुख्य समस्याएं थीं. इन दिनों नई बीमारियां, जैसे कार्डियो वैस्क्यूलर डिजीज, डायबिटीज और आस्टियोआर्थराइटिस जैसे रोग 30 वर्ष से अधिक आयुवर्ग की युवा महिलाओं में फैले हुए हैं.

आर्थराइटिस फाउंडेशन की ओर से हाल ही में हुए अध्ययन के अनुसार, यह अनुमान लगाया गया है कि 2013 तक देश में लगभग 3.6 करोड़ लोग आस्टियोआर्थराइटिस रोग से प्रभावित हो जाएंगे. कम आमदनी वाले वर्ग की 30-60 वर्ष की भारतीय महिलाओं के बीच हुए एक अध्ययन में अस्थि संरचना के सभी महत्त्वपूर्ण जगहों पर बीएमडी (अस्थि सघनता) विकसित देशों में दर्ज किए गए आंकड़ों से काफी कम थी, जिस के साथ अपर्याप्त पोषण से होने वाले आस्टियोपेनिया (52%) और आस्टियोपोरोसिस (29%) की मौजूदगी ज्यादा थी. अनुमान है कि 50 वर्ष से अधिक की 3 में से 1 महिला को आस्टियोपोरोटिक फ्रैक्चर का अनुभव होगा.

इन दिनों कम शारीरिक सक्रियता वाली जीवनशैली की वजह से दबाव संबंधी कारक और मोटापा जोखिम पैदा करने वाले कुछ ऐसे कारक हैं जिन का संबंध आस्टियोआर्थराइटिस जैसी समस्याओं से माना जाता है. इसलिए, यदि कोई स्वस्थ जीवन जीना चाहता है तो जरूरी है कि वह अपनी हड्डियों की देखभाल पर विशेष ध्यान दे. आस्टियोआर्थराइटिस की रोकथाम और काम व जीवन के बीच स्वस्थ संतुलन कायम करने के लिए यहां ऐसे टिप्स बताए जा रहे हैं, जिन पर महिलाओं को ध्यान देना चाहिए.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- आर्थराइटिस से बचाव

गरमी में स्किन टाइप के हिसाब से खरीदेंगे लोशन तो होगा दुगुना फायदा

गरमी हो या सरदी आप कभी लोशन लगाना नही भूलते. लोशन हमारी स्किन का मौइशचर को लौटाता है, लेकिन कभी-कभी यह स्किन के लिए आफत का कारण भी बन जाते हैं. जैसे अगर हम स्किन के लिए थिक लोशन खरीदते हैं, तो स्किन को चिपचिपा बना देती है. गरमियों में भी हमारी स्किन को मौइस्चर की जरूरत होती है. ऐसे में अगर आप भी बिना अपनी स्किन के बारे में जानें गलत लोशन का इस्तेमाल करती हैं, तो यह आपकी स्किन को नुकसान पहुंचा सकता है. इसलिए आप अपने लिए कैसे लोशन चुनें इसके लिए इन टिप्स का ध्यान जरूर रखें.

1. नौर्मल स्किन पर यूवी प्रौटेक्शन वाले लोशन का करें इस्तेमाल

अगर आपकी स्किन नौर्मल है तो आप पर सभी तरह के लोशन काम करेंगे, लेकिन ज्यादा थिक लोशन से बचने की कोशिश करें. गरमी में थिक लोशन्स से बौडी पर ज्यादा पसीना आने लगता है, जो स्किन को चिपचिपा बना सकता है. ऐसे लोशन चुनें जो स्किन को यूवी प्रॉटेक्शन दे, जिसके लिए बाजार में कई औप्शन्स मौजूद हैं.

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2. औइली स्किन पर वौटर बेस्ड या जेल बेस्ड लोशन का करें इस्तेमाल

गरमियों में सबसे ज्यादा प्रौब्लम औइली स्किन वालों को होती है, क्योंकि अगर गलती से आपने गलत लोशन या मौइस्चराइजर चुन लिया तो यह आपकी स्किन को और भी औयली और चिपचिपा बना देगा, जो दिनभर आपके लिए परेशानी का सबब बन जाएगा. इसके साथ ही औइली स्किन वालों को पसीना भी ज्यादा आता है तो बेहतर होगा कि ऐसा लोशन चुनें वौटर बेस्ड या जेल बेस्ड ज्यादा हो. चाहे तो ऐलोवेरा बेस्ड लोशन भी चुन सकते हैं जो स्किन को प्रौटेक्ट करने के साथ ही सूदिंग भी देगा.

3. ड्राई स्किन पर थिकनेस वाला लोशन करें इस्तेमाल

ड्राई स्किन वाले अगर लोशन न लगाएं तो उनकी स्किन के डैमेज होने का खतरा ज्यादा रहता है. ऐसा इसलिए क्योंकि उनकी स्किन एक तो वैसे ही ड्राई है ऊपर से धूप और गर्मी त्वचा के मौइस्चर को भी सोख लेती है, इससे स्किन के जलने या फिर टैन होने का खतरा बढ़ जाता है. ड्राई स्किन वाले ऐसा लोशन चुनें जिसकी थिकनेस थोड़ी ज्यादा हो. बाजार में कई ऐसे लोशन मौजूद हैं, जिनमें मौइस्चराइजिंग प्रौपटीज होने के साथ ही यूवी प्रौटेक्शन की खासियत भी होती है.

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