
कितना दर्दनाक रहा होगा वह पल जब एकएक कर लड़के सोनी को सैक्स की गहराई समझाते रहे वह भी वहशियों की तरह. पहले तो सोनी के मुंह को जबरन बंद कर दिया गया. उस के बाद सोनी के जिस्म से एकएक कर कपड़े उतार दिए गए और उसे जमीन पर लिटा कर वीरेंद्र के 2 रंगरूटों ने उस के हाथों और पांवों को पकड़ लिया. अब सोनी बोल नहीं पा रही थी, बोल रही थी सिर्फ उस की आंखें, जो आंसुओं से डबडबाई हुई थीं, पहले वीरेंद्र ने उसे सैक्स की गहराई को समझाया. फिर उस ने सोनी के पैरों को दबोच कर रखा. दूसरे ने भी वही किया और तीसरे ने.
सोनी की आंखें भी बंद हो चुकी थीं, खून से लथपथ जांघों के बीच सोनी ने असहनीय दर्द महसूस किया था और बेहोश हो गई थी, लड़के उस के मुंह की पट्टी खोल कर उसे अकेला छोड़ चले गए थे. लड़के बताए गए रेस्तरां पहुंच गए, जहां पूजा और सीमा उन का इंतजार कर रही थीं. पूजा ने पूछा था कि क्यों इतनी देर हो गई उन लोगों को तो वीरेंद्र ने घमंड से पूजा और सीमा को कहा कि अब सोनी कभी भी उन बातों को नहीं दोहराएगी, उसे सबक सिखा चुके हैं हम.
सोनी को जब होश आया तो वह खुद को क्षतविक्षत महसूस कर रही थी. नंगा शरीर, जांघों के बीच से रिसता खून, उसे समझ नहीं आ रहा था कि पूजा और सीमा ने इतनी बड़ी साजिश क्यों की, उस के साथ. क्यों उस के शरीर को लड़कों से नुचवा दिया. सिर घूम रहा था सोनी का, ये सब सोच कर. किसी तरह उस ने पास रखे कपड़े पहने और बहुत आहिस्ताआहिस्ता चलने की कोशिश करने लगी.
रात होतेहोते जब वह किसी तरह घर पहुंची तो उस की मां बहुत चिंतित नजर आ रही थीं. सोनी के पापा अभी तक औफिस से लौटे नहीं थे. सोनी की मां ने जब सोनी को देखा तो वह डर गईं. सोचने लगीं कि उस की मासूम सी बच्ची के साथ न जाने कौन सा हादसा हो गया. सोनी को वे उस के कमरे में ले गईं, उसे पानी पीने को दिया, फिर उस के सिर को सहलाते हुए पूछा कि क्या बात है, क्या हुआ, सबकुछ सचसच बताओ बेटी.
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सोनी समझ नहीं पा रही थी कि उस के साथ जो हुआ वह क्या था. ऐसा उस ने कभी कल्पना में भी नहीं सोचा था कि उस के साथ जो हुआ वह सब उसे अपनी मां और पापा को बताना पड़ेगा. हालांकि दर्द से वह लगभग कराह रही थी. उस ने अपनी मां को बाथरूम में जा कर दिखाया, देखते ही उस की मां बेहोश हो गईं. सोनी ने हिम्मत कर अपनी मां के सिर पर पानी के छींटें दिए, सिर सहलाया, तब जा कर कहीं उस की मां होश में आई और होश में आते ही रोने लगीं, पूरा वृत्तांत सुनने के बाद सोनी की मां तो लगभग अर्द्धमूर्छित अवस्था में पहुंच चुकी थीं.
किसी तरह सोनी को फर्स्टऐड दे कर, उसे आराम करने को कह, दूसरे कमरे में निढाल सी पड़ गई थीं सोनी की मां. डाक्टर को दिखाने की खबर सोनी के भविष्य को बदनुमा न बना दे, यही सोच रही थीं सोनी की मां. अगर इस बात की जरा भी भनक किसी को लगी तो कौन करेगा सोनी से ब्याह? इसी तरह के खयाल सोनी की मां के मन में चल रहे थे कि कौल बेल बजी. सोनी की मां की तंद्रा टूटी. सोनी की मां ने जा कर दरवाजा खोला, सोनी के पापा आ गए थे, आते ही सोनी के बारे में पूछा, सोनी की मां ने कहा कि वह अपने कमरे में सो गई है. सोनी की मां ने सोनी के साथ हुए हादसे को छिपा लिया था. बेटी के साथ हुए गैंगरेप को शायद बरदाश्त नहीं कर पाएंगे सोनी के पिता.
रात को अपनी मां से हुई बातचीत से सोनी इतना तो समझ चुकी थी कि उस ने पूजा और सीमा के साथ मिल कर अनजाने में ही सही ऐसा गलत कदम उठाया है कि जिस की भरपाई इस जन्म में तो संभव नहीं. सोनी सोच रही थी कि उस के साथ जो कुछ हुआ और उस की मां ने जो कुछ बताया, इस से तो यही नतीजा निकलता है कि मैं बहुत बुरी लड़की हूं, मेरी सभी सहेलियां बुरी हैं, उन लोगों से मुझे दूरी बना कर रखनी चाहिए थी, पर ऐसा करने पर मेरी पढ़ाई, कहीं जाना, ऐग्जाम देना सब बंद हो जाता. पागल की तरह सोचे जा रही थी सोनी.
दूसरे दिन घर पर सन्नाटा छाया रहा, न जाने सोनी की मां ने सोनी के पिता को क्या कह दिया था इस संबंध में कि वे सिर्फ सोनी के कमरे के बाहर ही एक मिनट रुक कर औफिस चले गए.
सोनी घर से दोपहर के वक्त चुपचाप, बिना कुछ बोले निकल कर चल दी और पास ही के थाने में जा कर थानेदार को पूरा वृत्तांत सुना दिया. हालांकि सोनी की कहानी उस की जबानी सुनते हुए थानेदार के साथसाथ अन्य पुलिसकर्मी भी मजा ले रहे थे.
पूरी बात सुनने के बाद थानेदार ने पूछा कि जब घटना हुई उस वक्त तुम ने थाने में आ कर रिपोर्ट क्यों नहीं लिखवाई. जवाब में सोनी कुछ न बोल सकी सिर्फ इतना ही कहा कि मैं आने की हालत में नहीं थी. थानेदार ने उसे जाने को कहा और कार्यवाही करने की बात कही.
सोनी घर चली गई. पूजा और सीमा ने उसे इन दोचार दिनों में कभी कौंटैक्ट करने की कोशिश नहीं की. वीरेंद्र और उस के साथियों ने हालांकि एक बार सोनी को थाने से निकलते देखा था.
वीरेंद्र एक अमीरजादा था, ऐयाशी के साथसाथ वह शराब और शबाब का भी आदी था. अपनी पहुंच लगा कर वह साफ बच निकला. लिहाजा, मुकदमा क्षेत्राधिकार के बिंदु पर दर्ज नहीं किया गया और सोनी को थानेदार ने बतलाया कि घटना जहां हुई थी उसी इलाके के थाने में मुकदमा दर्ज हो सकता है और इतने विलंब से तो उस इलाके के भी थाने में मुकदमा अब दर्ज नहीं होगा. सोनी बिना घर में बताए इस थाने से उस थाने के चक्कर लगाती रही परंतु जैसा पुलिस का हाल है कि रसूख वालों की ही वह सुनती है औरों की नहीं इसलिए सोनी कोई मुकदमा दर्ज नहीं करवा पाई बल्कि थानेदार ने उसे ही भलाबुरा कहा और यह साबित करने की कोशिश करते रहे कि वह एक मनगढ़ंत घटना बयान कर रही है जैसा उस ने बताया वैसा कुछ हुआ ही नहीं.
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जबकि सोनी की मां चाहती थीं कि वह फिर से सामान्य जिंदगी के लिए खुद को तैयार करे और इस के लिए वे अपनी बेटी को समझाती रहती थीं कि वह घर से निकले. कहीं अगर जाना भी हो तो उसे साथ ले ले. परंतु सोनी पर इस का कोई असर नहीं पड़ रहा था, वह सजा दिलवाना चाहती थी वीरेंद्र और उस के साथियों को और साथ में पूजा और सीमा को भी. न्याय न पाने का सदमा उसे अपने साथ हुए हादसे से भी ज्यादा लगा. उस ने उस रात एक कागज पर लिखा, ‘मैं बहुत बुरी लड़की हूं. वीरेंद्र और उस के साथी हर सीमा को लांघ चुके थे. मेरे मां और पापा मुझ से बहुत प्यार करते हैं. मैं नहीं जानती थी कि मेरे लिए क्या बुरा और क्या अच्छा है.
मुझे पूजा और सीमा ने कई गलत रास्ते दिखाए लेकिन मैं ने उन्हें नहीं अपनाया पर न जाने उस दिन पूजा और सीमा ने ऐसा क्या कह दिया वीरेंद्र और उस के साथियों को कि मैं उस दिन के हादसे के बाद वैसी नहीं हूं जैसी मैं थी अगर उन लोगों को पुलिस सजा देती तो शायद मुझे जीने की कोई वजह मिल जाती. तब मैं यह साबित कर सकती कि मैं निर्दोष हूं पर ऐसा नहीं हुआ. अब जीने की कोई वजह मेरे पास नहीं है, मैं अपने मांपापा को समाज में शर्मिंदा होते नहीं देख सकती. इसलिए मैं हमेशा के लिए जा रही हूं… सोनी.’
सोनी की लाश उस के कमरे के पंखे से झूल रही थी. पहले तो पुलिस ने खोजबीन में सक्रिय होने की तत्परता दिखाई पर सुसाइड नोट पढ़ने के बाद सोनी के मातापिता ने कोई उत्सुकता नहीं दिखाई हत्यारों को पकड़वाने में. हत्यारे तो अभी भी खुले घूम रहे थे. सोनी के मातापिता अपनी इज्जत को सरेआम नीलाम होते नहीं देखना चाहते थे. पत्थर रख लिया था दोनों ने अपने सीने पर और खून का घूंट पी कर भी चुप थे. पुलिस अपने कर्तव्य के प्रति सचेत नहीं थी कि अनुसंधान करे कि सोनी ने क्यों खुदखुशी की और सोनी को खुदखुशी करने के लिए मजबूर करने वाले हत्यारों को खोज निकाले और सजा दे.
शायद सोनी के मातापिता परिवार की इज्जतप्रतिष्ठा को दावं पर नहीं लगाना चाहते थे इसलिए वे भी खामोश थे अपनी बेटी की तरह, जो खामोश हो चुकी थी हमेशा के लिए.
खेलने का शौक पूजा को कुछ ज्यादा ही था, वह फुटबौल और बौलीबौल की कालेज टीम की कप्तान थी और कालेज की तरफ से खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेने, दूसरे शहरों में आयाजाया करती थी. शारीरिक खेल की लत भी उसे इन खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेने के दौरान ही लगी. सीमा पूजा की तरह कप्तान तो नहीं थी पर खेल में वह भी रुचि रखती थी और पूजा के साथ दोस्ती गांठ कर कई फायदे उठाती थी. सीमा पूजा की अच्छी प्रशंसक थी और पूजा का अनुकरण भी करती थी. शौर्ट्स और टीशर्ट्स पहन कर खेलने वाली लड़कियों को तो मेल टीचर्स तक खा जाने वाली निगाहों से देखा करते हैं तो उन हमउम्र लड़कों का क्या जो कालेज की खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेने सिर्फ इसलिए जाते हैं कि उन्हें लड़कियों का संसर्ग
प्राप्त हो सके. नतीजतन, छोटे शहरों की परंपरानुसार विवाह के पहले शारीरिक संबंध बनाने वाली लड़कियों का जो होता है वही हुआ. पूजा धीरेधीरे बदनाम होने लगी और यही बदनामी की बात सोनी को समझ में नहीं आती थी. पूछने पर उसे कुछ बताया भी नहीं जाता था. लिहाजा, वह चुप रहती थी.
सोनी की समस्या तब शुरू हुई जब वह इंतजार करना छोड़ कर एक दिन अचानक उस कमरे में घुस गई जहां पूजा अपने प्रेमी के साथ हमबिस्तर थी. उस दिन सीमा के एक दूर के रिश्तेदार के खाली पड़े घर में 3 लड़के थे, जिन में वीरेंद्र भी एक था जो एकएक कर अपना काम निबटाने में लगे थे. सोनी भी वहीं थी, एक आता, दूसरा जाता, यद्यपि सोनी अनजान थी परंतु जिज्ञासा उसे हो ही रही थी कि आखिर एकएक कर लड़के अंदर जाते हैं जहां पूजा है और थोड़ी देर बाद बाहर आ जाते हैं. सीमा का उस दिन देह सुख का प्रोगाम नहीं था इसलिए वह घर के बगीचे में चली गई थी और पेड़ों के साए में आहिस्ताआहिस्ता चहलकदमी कर रही थी. सोनी से रहा नहीं गया, तीसरा लड़का जब कमरे में दाखिल हुआ तो सोनी ने सोचा कि इस बार वह जा कर उन लोगों की बातें सुनेगी. लौट कर आए 2 लड़के उतनी मुस्तैदी से उस की निगरानी कर भी नहीं रहे थे और ऐसा करना स्वाभाविक भी था, क्योंकि वे लोग निबट चुके थे. बस, फिर क्या था सोनी निढाल पड़े दोनों लड़कों
की आंख बचा कर कमरे में अचानक घुस गई और जो देखा उस के लिए बिलकुल अचंभित करने वाला था. इस से पहले न सोनी ने ऐसा कुछ देखा था और न ही ऐसा कुछ सोच सकी थी लेकिन निर्वस्त्र तो वह खुद को भी नहीं देख सकती थी, तो फिर अपनी सहेली पूजा को. वह बाहर भागी लेकिन उस की आंखों में एक खौफ था, नंगेपन का खौफ, बाहर कमरे में लड़के उसे दबोच चुके थे और इस से पहले कि वह कुछ कहती या करती, पूजा कपड़े पहन कर आ गई थी और बिना कुछ कहे उस का हाथ पकड़ कर बाहर की ओर चल दी थी.
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पूजा थकी हुई जरूर लग रही थी लेकिन लंबे, कसरती, खिलाड़ी बदन से अभी भी एकदो लड़कों से वह बिस्तर पर निबट सकती थी. लंबे समय के अभ्यास से उस ने अच्छा स्टैमिना प्राप्त कर लिया था. रास्ते में सोनी कुछ बोल नहीं रही थी और न ही पूजा से आंखें मिला पा रही थी. गलती पूजा ने की थी, शर्म सोनी को आ रही थी. न जाने सोनी में कैसे यह एहसास जाग गया था कि वह कुछ ऐसा देख चुकी है जो उसे नहीं देखना चाहिए था. नहीं जानते हुए भी वह उतने बेबाक ढंग से अपनी सहेली पूजा की ओर नहीं देख पा रही थी. जैसी उस की आदत थी लेकिन पूजा के पास वक्त कम था, थोड़ी ही देर में सोनी का घर आ जाता और न जाने सोनी अपने पापामम्मी के सामने अपनी कैसी प्रतिक्रिया व्यक्त करती इसलिए उसे रास्ते में ही समझा देना जरूरी था.
बात की शुरुआत करते हुए पूजा ने कहा, ‘‘तुम ने जो भी देखा वह किसी को बताना, नहीं क्योंकि कोई इस बात को सही ढंग से समझेगा नहीं और हम लोगों का होस्टल से निकलना बंद हो जाएगा. जो लड़के मेरे साथ थे उन में से कोई भी कुछ नहीं पूछेगा लेकिन अगर तुम ने मुंह खोला, तो प्रश्नों की बौछार लगा दी जाएगी. चरित्र पर प्रश्न उठेगा, समाज की मर्यादा का प्रश्न उठेगा, घरपरिवार की इज्जत का प्रश्न उठेगा. इन सभी प्रश्नों के उत्तर सिर्फ हम लोगों को ही देने हैं, वीरेंद्र, गोपी व राजू को नहीं. उन से कोई कुछ नहीं पूछेगा,’’ सोनी सिर्फ सुने जा रही थी, कुछ बोल नहीं रही थी.
सोनी घर पर भी चुप ही रही परंतु पूरे वाकये में कुछ न कुछ गलत होते उस ने देखा था, ऐसा उसे लग रहा था. दिन बीतने के साथसाथ अब पूजा के लिए एक नई मुसीबत शुरू हो गई थी कि सोनी उस किस्से के बारे में बारबार पूछती रहती थी और नहीं बताने की सूरत में उसे एक दबी हुई धमकी दे डालती थी कि वह अपने मातापिता से कह कर इसे समझने की कोशिश करेगी. एक दिन पूजा ने झल्ला कर पूछ डाला, ‘‘क्या समझने की कोशिश करेगी अपने मांबाप से,’’ पूजा ने थप्पड़ उठाया था मारने को पर रुक गई.
सोनी सहम गई थी परंतु उस ने कहा, ‘‘पूछूंगी कि तुम्हारे ऊपर वह लड़का क्यों सोया हुआ था और एक भी कपड़ा नहीं था तुम दोनों के बदन पर.’’
पूजा कांप गई थी यह सोच कर कि सोनी अपने मातापिता से अगर ऐसी बातें पूछेगी तो वे लोग फिर हमारे मातापिता से इस संबंध में बात करेंगे. फिर सीमा के मातापिता तक भी बात पहुंचेगी. इतना सब सोच कर पूजा का गुस्सा ठंडा हो गया. उस ने सोनी को समझाया और रेस्तरां ले गई.
सोनी को इतना तो समझ में आ गया कि इस तरह के सवाल पूजा से पूछने पर वह उसे होटल या रेस्तरां जरूर ले जाएगी. सोनी के लिए यह वाकेआ एक खेल बनता जा रहा था पर वह नहीं समझ रही थी कि यह खेल कितना खतरनाक हो सकता है. अब सोनी के दिमाग में यह बात आने लगी कि जब पूजा नहीं चाहती कि उस ने जो देखा है, किसी से कहे, तो सीमा और वे लड़के जो उस दिन कमरे में थे, भी नहीं चाहेंगे कि उस ने जो देखा है वह किसी से कहे. इस बात को आजमाने के लिए सोनी कभी सीमा से और कभी उन लड़कों से यही कहती और बदले में रेस्तरां या होटल जाती, बाइक पर घूमती. अनजाने में सोनी ब्लैकमेलिंग का खतरनाक खेल खेलने लगी थी.
पूजा और सीमा अब सोनी की धमकियों से तंग आ चुकी थीं. इस बीच उस दृश्य से भी ज्यादा रोमांचक दृश्यों को अंजाम दे चुकी थीं पूजा और सीमा अनेक कमरों में. फिर उसी एक खास दृश्य का उन लोगों के लिए क्या अर्थ रह जाता था, लेकिन सोनी ने तो सिर्फ एक ही दृश्य देखा था इसलिए वह उसी से चिपकी थी. पूजा से ज्यादा नजदीक थी सोनी, सीमा के साथ बातचीत हुआ करती थी सोनी की पर सीमा पूजा की सहेली थी. पूजा सोचती थी, कोई अन्य इस तरह उसे ब्लैकमेल कर रहा होता तो उसे समझाती पर अपनी सहेली सोनी का वह क्या करे. अपने तथाकथित प्रेमियों से भी इस का जिक्र उस ने किया था और एक दिन वह हादसा हुआ जो उस ने सपने में भी नहीं सोचा था.
पूजा ने अपने तथाकथित प्रेमियों से कहा कि वे लोग सोनी को किसी भी तरह से मनवा लें कि वह अब कभी भी इस बात का जिक्र नहीं करेगी परंतु सोनी इस बात को उतनी गंभीरता से नहीं ले रही थी. पूजा को इस बात के लीक होने से डर था कि उसे मिली हुई आजादी छिन जाएगी जो उसे कतई मंजूर नही था. वह स्वच्छंद रहना चाहती थी, साधारण लड़की की तरह जिंदगी जीना उसे पसंद नहीं था. सोनी को पूजा इसलिए एक असाधारण लड़की में तबदील कर देना चाहती थी. बस क्या था पूजा के प्रेमियों ने मतलब यही निकाला कि सोनी को सबक सिखाना है किसी भी कीमत पर.
एक दिन शाम को वह लड़के सोनी को चौकलेटस्नैक्स वगैरा दे कर समझाने की कोशिश करते रहे परंतु सोनी न समझी. उसे समझ में नहीं आया कि जिन लड़कों के साथ वह बाइक पर घूमती है, वे उस को किसी भी तरह से नुकसान पहुंचा सकते हैं. पूजा के प्रेमियों को किसी नासमझ लड़की को सैक्स संबंधों के बारे में समझाने, समाज पर उस का असर, मांबाप पर उस का प्रभाव, को तफसील से समझाने की सलाह तो थी नहीं, उजड्ड गंवार की तरह उन का व्यवहार था.
सोनी बारबार यह जानना चाहती थी कि पूजा और सीमा के साथ उन्होंने होटल के बंद कमरे में ऐसा क्या किया कि आज उसे यहां सुनसान जगह पर बुला कर इतना समझायाबुझाया जा रहा है. बहुत मुमकिन था कि अगर पूजा और सीमा उन लड़कों के साथ जो जिस्मानी रिश्ता कायम करती थीं, उसे सोनी को खुल कर समझा दिया जाता तो शायद सोनी को बहुत कुछ खुदबखुद समझ आ जाता और वह इतनी भी नासमझ नहीं थी, आखिर सयानी हो चुकी थी. एक मनोवैज्ञानिक तरीका होना चाहिए सैक्स से अनभिज्ञ ऐसी लड़कियों को समझाने का और खासकर ऐसी स्थिति में तो बहुत ही सावधानी की जरूरत होती है परंतु वे मूढ़मगज लड़के क्या जानें, बस, एक ही भाषा वे जानते थे, शक्ति प्रदर्शन और डराने की भाषा.
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इधर सोनी जो उन लोगों से हिलीमिली हुई थी उन लोगों की बात को गंभीरता से नहीं ले रही थी और साथ ही साथ सोनी जैसे यह नहीं समझ पाई थी कि 2 नंगे जिस्म एकदूसरे से लिपटे हुए क्यों थे, उसी तरह यह भी नहीं समझ पाई थी कि उसे भी नंगा किया जा सकता है और पूजा और सीमा के साथ जो वे लड़के करते आ रहे हैं वह उस के साथ भी हो सकता है. इसी तरह वह यह भी नहीं समझ पा रही थी कि सैक्स अगर गहराई तक उतर जाए तो फर्क पड़ता है, लड़के और लड़की दोनों को. लड़कों को बहुत ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी सोनी से, वह तो चूंकि पूजा ने कहा था कि सोनी को सबक सिखा दें इसलिए इतनी मशक्कत की जा रही थी.
आगे पढें- कितना दर्दनाक रहा होगा वह पल जब…
आज के समाज में लड़की समय के बीतने से जवान नहीं होती बल्कि उसे घूरघूर कर जवान कर दिया जाता है. सोनी, पूजा, सीमा इन्हीं लड़कियों में से हैं जिन्हें लोगों ने समय से पहले जवान कर दिया था. अभी ये तीनों टीनएजर्स हैं और छोटे शहर के तथाकथित आधुनिक समाज की आधुनिक लड़कियां हैं जो बौयफ्रैंड बनाना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझती हैं.
सोनी नहीं समझ सकी थी कि उस के जानेपहचाने लड़के जिन्हें वह अपना बौयफ्रैंड समझती थी, उसे इतना तंग और अपमानित कर देंगे कि एक दिन उसे दुनिया छोड़नी पड़ेगी. वह जिन्हें अपने आसपास हर वक्त देखती थी, जिन के साथ प्राय: घूमने, ट्यूशन पढ़ने व कालेज जाती थी वही उसे अपनी जान देने को मजबूर कर देंगे. वह सोच रही थी कि आखिर ये सभी लड़के पूजा के साथ भी तो इधरउधर घूमते नजर आते थे. पूजा ही तो उसे भेजा करती थी उन लड़कों में से कभी एक के पास और कभी दूसरे के पास. उस वक्त तो वे लड़के उस के साथ बड़े रहमदिल की तरह पेश आते थे, उस की किताबें ले लेते थे, उसे बाइक पर कहीं दूर लंबे सफर पर भी ले जाते थे.
ये लोग उस का कुछ नहीं बिगाड़ सकते, मजाक कर रहे हैं, फिर छोड़ देंगे, वह समझती थी. लेकिन उन लड़कों के उस के साथ शारीरिक रोमांस को वह समझ नहीं पाई थी. वह खुश होती थी. जब दोएक सहेलियों के साथ वह होटल या रेस्तरां में जाती थी तो कभी बिलविल के चक्कर में वह नहीं पड़ी. बस चाट खाई, आइसक्रीम खाई, चाइनीज फूड लिया, इतने से ही उसे मतलब रहता था. यह तो वह जानती थी कि उस की सहेली पूजा होटल के अंदर किसी कमरे में अपने किसी बौयफ्रैंड से मिलने गई है, बातें करती होगी ऐसा सोचती थी वह. वह यह नहीं सोचती थी कि बातों के अलावा भी कोई और संबंध एक जवान होती लड़की एक लड़के से बना सकती है.
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दीनदुनिया से बेखबर सोनी ऐसे परिवार में पलीबढ़ी थी जहां सिर्फ प्यार ही था. मातापिता का प्यार, भाई का प्यार, चाचाचाची का प्यार, दादादादी का प्यार. कला की छात्रा रही सोनी सैक्स के बारे में सिर्फ इतना ही जानती थी जितना एक सभ्य युवती जानती है. शादी के पहले सैक्स की कोई जरूरत ही नहीं होती ऐसी युवतियों को. सोनी वैसी लड़कियों में से थी जो शादी के बाद अपनी सुहागरात में सैक्स के टिप्स अपनी भाभियों, बड़ी बहनों या फिर कामसूत्र की पुस्तकों से लिया करती हैं. गहराई तक जाने वाला सैक्स जो हमारे समाज में शादी के बाद ही जाना जाता है या यों कहिए जानना चाहिए, सोनी नहीं जानती थी. अगर सोनी गलत संगत में नहीं पड़ी होती तो शायद जिंदगी का भरपूर आनंद उठा रही होती. सोनी को यह नहीं मालूम था कि लड़के तो लड़के, मर्द किसी भी उम्र की लड़कियों के वक्ष और नितंबों को किस कारण से घूरते हैं. सोनी को यह भी नहीं मालूम था कि उस के साथ रहने वाले लड़के उसे अपनी तीसरी आंख से पूर्ण नंगा कर कई बार देख चुके हैं.
सोनी कभीकभी अपनी सहेलियों से पूछती थी कि वे क्यों उसे मना करती हैं होटल और रेस्तरां में घटने वाली तमाम बातों को मम्मीपापा को न बताने को, जिस पर उस की सहेलियां उत्तर देने के बजाय उसे धमकी देती थीं कि वे कभी उसे कहीं भी नहीं ले जाएंगी. बाइक पर घूमने का मौका फिर कभी नहीं मिलेगा. सोनी चुप हो जाया करती थी और घर पर भी कुछ नहीं कहती या पूछती थी. फिर भी सयानी होती लड़की थी, कालेज में, महल्ले में अपनी सहेलियों और उन के बौयफ्रैंड्स के बारे में कई उलटीसीधी बातें सुनती थी तो उस का जिक्र वह अपनी सहेली पूजा से अवश्य करती, लेकिन वह उसे टाल जाती.
पूजा और सीमा होस्टल में अपने घर से दूर रह कर पढ़ाई कर रही थीं. खुले व विद्रोही विचारों वाली पूजा और सीमा में खूब पटती थी, वे लड़कों से मजा लेने की हिमायती थीं और लड़कों से खूब खर्च भी करवाती थीं और उन के साथ हमबिस्तर भी होती थीं. पूजा और सीमा का मानना था कि जब उन के बौयफ्रैंड्स वीरेंद्र, गोपी और राजू को उन के साथ शारीरिक संबंध बनाने में कोई रोकटोक नहीं है तो उन लोगों को भी समाज या आसपास के लोग कैसे रोक सकते हैं. पूजा को फुरसत ही नहीं थी कि वह अपने बौयफ्रैंड के साथ हुए शारीरिक संबंधों के बारे में सोचे कि उस की इन हरकतों से उस के सामाजिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ रहा है या उस के परिवार को इस का क्या खमियाजा भुगतना पड़ सकता है.
समाज उस के प्रति क्या धारणा बना रहा है, उस के अनैतिक संबंध के प्रति, तो फिर वह सोनी के दिलोदिमाग में क्या चल रहा है, इस की चिंता क्यों करती. देह सुख की लत लग गई थी पूजा और सीमा को. यही देह सुख सोनी को भी प्रदान करना चाहती थीं पूजा और सीमा इसलिए धीरेधीरे सोनी को भी देह सुख हासिल करने की प्रक्रिया में डाल रही थीं. पूजा और सीमा के लिए देह सुख दुनिया का सब से बड़ा सुख था उसे वे किसी भी कीमत पर हासिल करने की चाहत रखती थीं. पूजा और सीमा कहा करती थीं कि देह सुख निया का सब से बड़ा सुख है. तख्त ओ ताज पलट गए इसी देह सुख प्राप्ति में.
देशविदेश के कई नामीगिरामी साहित्यकार, कवि, वैज्ञानिक जिन के लिए हमारे मन में बड़ी इज्जत हो सकती है जैसे फ्रांस के चर्चित लेखक वाल्जाक ने अपनी उम्र से बड़ी महिला डी बर्नी के साथ वर्षों यौनाचार किया, टैलीफोन के आविष्कारक अलैक्जेंडर ग्राहम बेल अपनी छात्रा मैविल हार्वर्ड के साथसाथ उस की मदद से कई अन्य छात्राओं के साथ भी लगातार यौनाचार करते रहे.
अंगरेज कवि लौर्ड वायरन जिन की कविताएं हम अंगरेजी साहित्य में पढ़ते हैं अपने मित्र कैरो की सास के साथ यौनाचार करते रहे, प्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन ने अपनी पत्नी को धोखा दे कर नर्स एल्सा लोवेंथल से जीवनभर यौनाचार किया, साम्यवाद के जनक कार्ल मार्क्स ने अपनी नौकरानी के साथ न सिर्फ यौनाचार किया बल्कि उसे गर्भवती भी बना दिया था. यौनाचार से पूरा इतिहास भरा पड़ा है अगर लिखने बैठ जाऊं तो इन साहित्यकारों, कवियों, वैज्ञानिकों के यौनाचार पर पुस्तक लिख सकती हूं, पूजा ने अपनी जानकारी पर गर्व करते हुए कहा था, सीमा ने भी हामी भर दी थी.
पूजा और सीमा जब भी कालेज जातीं तो उन की निगाहें वीरेंद्र, गोपी या राजू को ढूंढ़ती रहतीं और जैसे ही क्लास खत्म होती दोनों अपनेअपने साझा बौयफ्रैंड्स को ले कर किसी गुप्त ठिकाने पर पहुंच जातीं. विवाह के बाद भी कोई इतने नियमित यौन संबंध नहीं बनाता जितने ये लड़कियां बिन ब्याहे बनाने की आदी हो गई थीं. हर दिन जैसे खाना, पीना, पढ़ना होता था उसी तरह पूजा और सीमा के लिए शारीरिक संबंध बनाना था. पर उन की समस्या तब शुरू होती थी जब कालेज में छुट्टियां रहती थीं और तब वे अपनी सहेली सोनी के सहारे अपने अनैतिक यौन संबंधों को अंजाम देती थीं.
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पूजा और सीमा बहुत कुछ करने की महत्त्वाकांक्षी थीं. अपने कमरे में सनी लियोन, मर्लिन मुनरो, पूनम पांडे की लेटैस्ट नैट पर पोस्ट हुई तसवीरों का प्रिंटआउट लेतीं और दीवारों पर चिपकाती थीं. यौन संबंध बनाने के बाद से पूजा और सीमा ने दीवारों पर नंगधड़ंग मर्दों के भी पोस्टर लगा छोड़े थे. सोनी जब भी उन के होस्टल के कमरे में जाती थी तो उस का सिर घूम जाता था, वह पूछती भी थी कि ऐसी तसवीरें क्यों लगा रखी हैं, तो पूजा और सीमा कहतीं कि ये कमरा तो प्रयोगशाला है यहां भावना को परखनली में डाल कर सैक्सी बनाया जाता है और परिणाम होटल के कमरे में वीरेंद्र के साथ प्राप्त किया जाता है. सोनी की समझ से बाहर थीं ये सब बातें, वह सुन कर भी कुछ समझ नहीं पाती इसलिए बहुत गंभीरता से इन बातों को लेती भी नहीं थी.
आगे पढ़ें- खेलने का शौक पूजा को कुछ ज्यादा ही था, वह…
उसे सताने वाला न जाने कहां गायब हो गया था. उस के लिए अब कोई फूल या उपहार रख कर नहीं जाता था. उन पुरानी बातों को भूल कर रिया एक बार फिर से अपनी पढ़ाई में दिलोजान से जुट गई. उसे लगने लगा कि जिंदगी में अब सब ठीक चल रहा है.
एक दिन भीड़ में किसी उचक्के ने रिया को छूने की कोशिश की तो रिया ने विरोध किया. रोहित उस के साथ ही खड़ा था. उस ने तैश में आ कर उस गुंडे का कौलर पकड़ लिया.
नौबत मारपीट तक आ गई तो रिया घबरा गई. उस ने किसी तरह रोहित को समझाबुझा कर मामला शांत करवाया.
दोनों अपने गंतव्य स्टेशन पर ट्रेन से उतर गए. ‘‘तुम्हें क्या जरूरत थी इस तरह उस गुंडे से उलझने की?’’ रिया बोली तो रोहित बोल पड़ा, ‘‘हिम्मत भी कैसे हुई उस की तुम्हें हाथ लगाने की? और क्या करता मैं? चुपचाप तमाशा देखता?’’
‘‘तो क्या उस की जान ले लेते?’’ रिया खीझ कर बोली.
‘‘अगर तुम न रोकती तो मैं सच में उस की जान ले लेता,’’ रोहित ने जवाब दिया.
रिया अवाक रह गई. उस ने रोहित की तरफ देखा. उस का चेहरा गुस्से में लाल था. ‘‘क्या बोल रहे हो, रोहित? मामूली बात पर कोई किसी की जान लेता है क्या?’’ रिया को हंसी आ रही थी उस की बातों पर.
‘‘रिया, अगर कोई भी तुम्हें छुए तो मैं…’’ कहतेकहते रोहित अचानक चुप हो गया. फिर नरम लहजे में बोला, ‘‘मेरे दोस्तों के साथ कोई बदतमीजी करे तो मुझे गुस्सा आ जाता है.’’
‘‘हाऊ स्वीट, तुम सच में कितने अच्छे हो जो दोस्तों की इतनी परवा करते हो,’’ रिया ने उस का गाल पकड़ कर खींचा.
उसे हमेशा घर के पास तक छोड़ने के बाद रोहित वापस चला जाता था. हाथमुंह धो कर जब रिया फारिग हुई तो उस की नजर उस किताब पर पड़ी जो वह अपने साथ ले आई थी. यह किताब हमेशा रोहित के हाथ में रहती थी. उस गुंडे से हाथापाई के दौरान किताब रोहित के हाथों से गिर पड़ी थी जिसे रिया ने उठा लिया था और बातोंबातों में उसे देना भूल गई थी.
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उस ने यों ही किताब के पन्ने पलटे. कुछ पन्नों पर कुछ लिखावट की गई थी. एक पन्ने पर उसे अपना नाम लिखा हुआ मिला. उस ने गौर से देखा, लिखावट कुछ जानीपहचानी लगी. कुछ और पन्ने रिया ने पलटे, ज्यादातर पन्नों पर उस का नाम था और उस के नाम के साथ एक और नाम लिखा हुआ था. 2 नामों को एकसाथ दिल के आकार में जोड़ कर लिखा गया था.
उस ने उन लिखे हुए अक्षरों को बारबार देखा. कोई संदेह नहीं था कि किताब में लिखे शब्दों की लिखावट उन गिफ्टकार्ड के अक्षरों से हुबहू मिलती थी.
रिया सन्न रह गई. अचानक सारा राज ताश के पत्तों की तरह उस के सामने खुल गया. रिया के लिए यकीन करना मुश्किल था कि वह रोहित ही था जो उसे गुमनाम तोहफे भेजा करता था. खौफ की ठंडी लहर उस की रीढ़ की हड्डी से गुजर गई. जिस डर पर काबू पाने में उसे इतना वक्त लगा था वह अब एक नाम और चेहरे के साथ उस की जिंदगी में लौट आया था.
इस वक्त वह घर पर बिलकुल अकेली थी. शिखा अपनी पारिवारिक व्यस्तता के चलते कुछ दिनों के लिए शहर से बाहर गई थी. मगर क्यों? उस ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? उस के मन में ऐसे तमाम सवाल उमड़ रहे थे जिन का जवाब सिर्फ रोहित दे सकता था.
उस ने ठान लिया कि वह रोहित को बेनकाब कर के रहेगी. इतने दिनों से वह रिया का दोस्त बन कर उस के भरोसे का फायदा उठा रहा था. जो उस का गुनाहगार था उसे ही रिया अपना सब से बड़ा हमदर्द समझती रही.
अगले दिन रिया बहुत देर तक बेसब्री से रोहित का इंतजार करती रही. मैट्रो में सफर करने वालों की भीड़ एक के बाद एक आ कर गुजर गई मगर रोहित उसे कहीं नजर न आया. अंत में निराश हो कर वह अपने इंस्टिट्यूट के लिए चल पड़ी.
देर शाम घर वापस आते हुए रिया को कई बार लगा कि कोई उस का पीछा कर रहा है. वह गली के पास मुड़ी और एक खंभे की आड़ में छिप गई.
बहुत हुआ लुकाछिपी का खेल. आज तो वह उस साए को धर दबोचेगी. रिया ने पूरी हिम्मत जुटा ली, चाहे कुछ हो जाए वह जान कर रहेगी कि आखिर कौन उस का पीछा करता है.
जैकेट के हेडकवर से चेहरे को छिपाए उस शख्स ने गली में कदम रखा ही था कि रिया ने झपट कर उस का नकाबरूपी हुड खींच लिया.
उस शख्स को जब तक संभलने का मौका मिलता, उस का चेहरा बेनकाब हो चुका था.
‘‘रोहित.’’ रिया को एक और झटका मिला, ‘‘अच्छा तो छिपछिप कर मेरा पीछा करने वाले भी तुम ही हो और मुझे वो फूल और गिफ्ट भी तुम ही भेजते थे.’’ सिर झुकाए रोहित चुपचाप रिया के सामने खड़ा था.
‘‘अब चुप क्यों हो? जवाब दो,’’ उसे नफरत से देखते हुए रिया ने कहा.
‘‘मुझे माफ कर दो, रिया. ये सब मैं ने तुम्हारे प्यार को पाने के लिए किया. बहुत प्यार करता हूं मैं तुम से.’’
‘‘तुम ने यह सोचा भी कैसे? तुम सिर्फ मेरे दोस्त थे और अब आज से हमारा दोस्ती का रिश्ता भी खत्म हो गया. आज के बाद मुझ से मिलने की कोशिश भी मत करना.’’
‘‘प्लीज रिया, ऐसा मत करो. देखो, मान जाओ. न जाने कब से मैं तुम्हारे प्यार के लिए तरस रहा हूं,’’ रोहित गिड़गिड़ाया.
‘‘नहीं रोहित, मेरी जिंदगी में प्यारमुहब्बत के लिए कोई जगह नहीं है. मेरे लिए सब से जरूरी मेरा परिवार और मेरा कैरियर है. पर तुम नहीं समझोगे ये सब,’’ रिया अब तक अपने गुस्से को सब्र में बंधे हुए थी.
‘‘रिया, मेरा प्यार कुबूल कर लो, प्लीज,’’ रोहित उस से प्यार की भीख मांग रहा था.
रिया रोहित के छल और फरेब से पहले ही आहत थी. उस ने रोहित के घडि़याली आंसुओं की कोई परवा नहीं की.
जनून में आ कर रोहत ने रिया का रास्ता रोक लिया. ‘‘रिया, अगर तुम ने मेरा प्यार कुबूल नहीं किया तो मैं खुद को मार डालूंगा,’’ धमकी भरे अंदाज में रोहित ने कहा.
‘‘तो मार डालो खुद को,’’ रिया ने दांत भींच कर सख्ती से कहा और एक जोर का धक्का दे कर रोहित को अपने रास्ते से हटाया.
‘‘ठीक है, रिया, मैं मरूंगा तो तुम्हें भी मरना होगा, तुम मेरी नहीं हो सकती तो किसी और की भी नहीं हो पाओगी.’’
रोहित की जबान से इतनी खतरनाक धमकी सुन कर रिया सन्न रह गई. उस ने पलट कर रोहित को देखा. अंधेरे में रोहित के इरादे खूंखार लग रहे थे. उस ने अपने कपड़ों में छिपा बड़ा सा खंजर निकाल लिया. उस की आंखों में वहशीपन देख कर रिया के चेहरे का रंग उड़ गया.
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‘‘नहीं रोहित, प्लीज मुझे जाने दो,’’ रिया गिड़गिड़ाई. रोहित के हाथ में चाकू देख कर रिया के पसीने छूट गए, किस हद तक जा सकता है वह, उस ने सोचा नहीं था.
रोहित उस की तरफ खतरनाक इरादे से बढ़ता ही जा रहा था. वह पूरी ताकत के साथ रोहित से बचने के लिए भाग रही थी. दूरदूर तक कोई मदद नहीं दिख रही थी. वह चीख कर मदद की गुहार लगा रही थी. रोहित किसी साए की तरह उस के पीछे लगा हुआ था. कुछ ही दूर पर उसे अपना घर नजर आया. दोगुनी ताकत लगा कर वह दौड़ रही थी. किसी तरह वहां तक पहुंच जाए एक बार उस की सांसें उखड़ने लगी थीं. मगर उस के पैर नहीं रुके.
किसी जानवर की सी ताकत से उस का पीछा करता रोहित उस के पास पहुंच गया था. रिया ने उसे परे धकेलने के लिए जोर लगाया. रोहित ने उस का हाथ अपनी मजबूत गिरफ्त में ले लिया. बेबस रिया उस की गिरफ्त से छूटने के लिए छटपटाने लगी. वह बारबार मदद के लिए पुकार रही थी. तभी रोहित ने खंजर से उस पर वार कर दिया. विस्फारित नजरों से रिया ने अपने ही खून को पानी की तरह बहते देखा.
वह अर्धमूर्छित हालत में जमीन पर गिर पड़ी. उस की आंखें मुंदने लगी. मां का आंचल उस की आंखों में तैरने लगा. उस के बाद उसे कुछ होश न रहा.
पूरे शहर में इस घटना की चर्चा थी. न्यूज चैनलों से ले कर गलीमहल्लों के नुक्कड़ों पर लोग इस खौफनाक वारदात के बारे में ही बातें कर रहे थे. महज 20 साल की एक महत्त्वाकांक्षी, होनहार लड़की किसी सिरफिरे दरिंदे के जनून का शिकार हो गई.
अस्पताल के डाक्टरों के मुताबिक, रिया को करीब 10 से 12 बार चाकू से गोदा गया था. पुलिस पोस्टमौर्टम रिपोर्ट का इंतजार कर रही थी.
रिया के घर वाले सदमे में थे और मां को बारबार बेहोशी के दौरे पड़ रहे थे. शिखा और रिया के दोस्तों से पूछताछ के नतीजे में पुलिस ने रोहित को गिरफ्तार कर लिया था. शिखा को अपनी गलती पर बारबार पछतावा हो रहा था, आखिर क्यों उस ने उस दिन पुलिस स्टेशन में जा कर रिपोर्ट दर्ज नहीं करवाई. अगर उस दिन वह रिया की बात न मान कर पुलिस स्टेशन में शिकायत कर देती, तो शायद रोहित बहुत पहले ही गिरफ्तार हो चुका होता और आज उस की सब से अजीब दोस्त रिया जिंदा होती.
एक सिरफिरे के जनून ने एक मासूम कली को खिलने से पहले ही कुचल डाला था.
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वह रिया को टकटकी लगाए देखे जा रहा था, कभी उस के एकदम पास आ जाता, कभी उस की गरम सांसें रिया के चेहरे से टकरा जातीं. वह जितना दूर जाने की कोशिश करती, वह उस के उतने ही करीब आ रहा था. रिया अब असहज होने लगी, सारा मजा किरकिरा हो चला था.
न जाने क्या था उन आंखों की गहराई में कि उस का मन चाहा कि वह फौरन वहां से हट जाए. हाथ में बियर का बड़ा सा मग ले कर शिखा लौटी तो रिया ने चैन की सांस ली.
‘‘बहुत देर से डांस कर रही हूं, मैं थक गई हूं, अब चलते हैं,’’ रिया उस के कान में फुसफुसाई. पार्टी देर तक चलने वाली थी मगर शिखा के साथ रिया वहां से चली आई. वे 2 आंखें अब भी रिया का पीछा कर रही थीं. अपने कमरे में बिस्तर पर लेटते ही रिया को गहरी नींद ने आ घेरा. न जाने कितनी देर से उस के मोबाइल की घंटी बज रही थी. नींदभरी आंखें मलतेमलते उस का हाथ अपने मोबाइल तक पहुंचा.
‘‘हैलो,’’ उस ने फोन उठाया, ‘‘हैलो, हैलो.’’
दूसरी तरफ से कोई जवाब न पा कर उसे झल्लाहट हुई. कुछ देर खामोशी रही और दूसरी तरफ से फोन कट गया.
रात के 2 बज रहे थे. न जाने किस का फोन था. उस ने करवट बदली और एक बार फिर से नींद की आगोश में चली गई.
सुबहसुबह शिखा ने चहकते हुए उसे उठाया, ‘‘उठ रिया देख तेरे लिए क्या आया है?’’
‘‘क्या है?’’ खीझ कर रिया उठ बैठी.
‘‘कोई तुम्हारे लिए यह रख कर गया है दरवाजे पर. कौन है मैडम, हमें कभी बताया नहीं,’’ शरारती लहजे में शिखा खिलखिला रही थी.
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दिलकश महकते फूलों से सजा हुए एक बुके था, साथ में लगा हुए एक छोटा सा कार्ड. रिया ने उलटपलट कर उस गुलदस्ते को देखा, कार्ड पर उस का नाम लिखा था फौर रिया विद लव.
‘‘मुझे नहीं पता यह किस ने भेजा और क्यों?’’ रिया का दिमाग चकराया. आज तो उस का जन्मदिन भी नहीं था, फिर किस ने उसे फूल भेजे हैं.
‘‘यार, नहीं बताना चाहती तो ठीक है, नाटक क्यों कर रही है,’’ शिखा बुरा लगने के अंदाज में बोली.
दोनों की दोस्ती इतनी गहरी थी कि दोनों एकदूसरे से कुछ नहीं छिपाती थीं कभी. रिया ने शिखा का मूड ठीक करने के लिए उसे कस कर आलिंगन में भर लिया. ‘‘सच में मुझे कुछ नहीं पता, ये फूल किस ने भेजे.’’ उस ने कसम खाने के लिए गले को छुआ.
‘‘फिर तो बड़ी अजीब बात है कि कोई यों ही फूल भेज रहा है,’’ शिखा कंधे उचका कर बोली.
‘‘तू उदास मत हो, क्या पता कल तेरे नाम का बुके आ जाए,’’ रिया ने चुहल की और दोनों जोरों से हंस पड़ीं.
बुके उठा कर रिया ने अपनी मेज पर सजा दिया. मगर यह सिलसिला सिर्फ फूलों तक नहीं थमा. रोज कोई चुपके से उस के दरवाजे पर उपहार रख के चला जाता था. रिया को लगा कोई उस के साथ शरारत कर रहा है. वह उपहारों को उठा लेती, शिखा के साथ मिल कर उन्हें खोलती और दोनों एकदूसरे को छेड़ कर खूब हंसतीं. मगर, मामला अब धीरेधीरे गंभीर हो चला.
तोहफे अब भी आते थे लेकिन रिया को अब हंसी नहीं आती थी, बल्कि एक अजीब सा खौफ उस के मन में छाने लगा. कोई जानपहचान वाला उसे तंग करने के लिए यह सब नहीं कर रहा था.
फूलों और तोहफों के सिलसिले ने जब थमने का नाम नहीं लिया तो रिया के मन का डर बढ़ने लगा. वह हर वक्त यही खैर मनाती कि उसे आज कोई फूल या उपहार न मिले दरवाजे पर. मगर वहां कुछ न कुछ रोज ही रखा रहता. लाल रंग के दिल के आकार के तकिए, महंगी विदेशी ब्रैंड की चौकलेट्स और बड़ेबड़े गिफ्टकार्ड जिन पर उस का नाम सजा होता. लेकिन कौन था इन तोहफों को भेजने वाला, यह राज था.
एक दिन घर लौटते वक्त उसे लगा कि कोई उस का पीछा कर रहा है. उस ने कई बार पलट कर देखा, 2-3 बार अलगअलग दुकानों में बेमतलब घुस गई. लोगों की भीड़ में आखिर वह किस पर शक करती.
‘शायद मेरा वहम है,’ उस ने खुद को ही तसल्ली दी. रोज की तरह रिया ने जब सुबह का अखबार उठाने के लिए दरवाजा खोला तो पाया वहां आज फिर एक डब्बा रखा हुआ था. वह समझ गई कि उस में क्या होगा. सिर से पैर तक एक बिजली सी उस के तन में कौंध गई. आज उस का गुस्सा सातवें आसमान पर था. उस ने डब्बा उठाया और बगैर खोले गैस का चूल्हा जला कर उस पर रख दिया.
शिखा ने गैस पर आग की लपटें देखीं. वह तुरंत भागती हुई आई और चूल्हा बुझा कर डब्बे पर पानी की बालटी उड़ेल दी. ‘‘यह क्या कर रही है रिया,होश में तो है? अभी पूरा घर ही जल जाता.’’
‘‘मैं तंग आ गई हूं, शिखा. अब बरदाश्त नहीं होता. न जाने कौन है जो मुझे चैन से जीने नहीं दे रहा. अब तो सुबह के खयाल से ही डर लगता है. वही फूल, वही सब रोजरोज नहीं झेला जाता.’’
रिया फफकफफक कर रोने लगी. उस के सब्र का बांध टूट गया था. उस की इस हालत पर शिखा बहुत परेशान हो उठी. आखिर वह भी एक लड़की थी. रिया के दुख से वह वाकिफ थी.
शिखा ने उसे अपने आलिंगन में ले लिया, फिर बोली, ‘‘चुप हो जा, रिया. तू रो मत. जो भी तेरे साथ ये सब कर रहा है, अब बचेगा नहीं. तू आज ही मेरे साथ पुलिस स्टेशन चल. तुझे तंग करने वाले को अब पुलिस ही सबक सिखाएगी.’’
‘‘नहीं, मैं पुलिस के पास नहीं जाऊंगी. बात मेरे घर वालों तक पहुंच जाएगी.’ मांबाबूजी का चेहरा रिया की आंखों के आगे तैर गया.
‘‘तू नहीं जानती, शिखा, मेरे मांबाबूजी को. बहुत कमजोर दिल के हैं वे लोग. फौरन मुझे वापस बुला लेंगे. और मेरे सारे सपने अधूरे…’’ कहते हुए रिया की रुलाई फूट पड़ी.
रिया के पास बैठ कर बड़ी देर तक शिखा उसे हौसला बंधाती रही. उस का दिमाग रिया की परेशानी दूर करने का उपाय ढूंढ़ रहा था.
मानसिक तनाव की वजह से रिया का मन अब ट्रेनिंग में नहीं लग रहा था, उसे यों लगता था मानो कोई उस के हर पल की खबर रख रहा है. रातों को अजीबअजीब से सपने आते. मन का डर उस के चेहरे पर दिखने लगा. चेहरे पर हरदम बनी रहने वाली मुसकान अब गायब हो गई थी.
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एक दिन उस की ट्रेनर मिस सिन्हा ने उसे अपने पास बुलाया, ‘‘क्या बात है, रिया? कई दिनों से देख रही हूं आजकल तुम कुछ खोईखोई सी रहती हो, क्लास में भी अब पहले जैसा उत्साह नहीं दिखाती? एनी प्रौब्लम?’’
रिया इस प्रश्न से सकपका गई. यह बात अगर जगजाहिर हुई तो उस का मखौल बन कर रह जाएगा. ‘‘नो, मैम, सब ठीक है. कोई प्रौब्लम नहीं है,’’ रिया ने मुसकरा कर कहा.
‘‘हूं, आई होप सो,’’ मिस सिन्हा बोलीं.
एक सीसीटीवी कैमरा घर के गेट पर लगाने का खयाल शिखा के दिमाग में आया. रिया को भी यह बात दुरुस्त लगी. जो भी गिफ्ट रखने दरवाजे के पास आएगा, उन्हें कैमरे में उस की तसवीर दिख जाएगी. उन्होंने मकानमालकिन से कैमरा लगवाने की बात की तो उस ने शकभरी नजर से दोनों को घूरा.
दोनों ने महल्ले में बढ़ती चोरी की वारदात का जिक्र किया तो वह मान गई.
यह अजीब इत्तेफाक था कि सीसीटीवी कैमरे के लगते ही फूल और गिफ्ट आने एकाएक बंद हो गए. हफ्ता बगैर किसी परेशानी के गुजर गया.
घर से इंस्टिट्यूट तक वह मैट्रो ट्रेन में सफर करती थी. मैट्रो की भीड़ में अपने लिए जगह तलाश करती रिया को अचानक किसी ने नाम ले कर पुकारा. रिया ने चौंक कर पुकारने वाले की तरफ देखा. कुछ जानापहचाना सा लगा उसे वह लड़का जो उस के लिए एक सीट खाली करा कर उसे बैठने का इशारा कर रहा था.
‘‘थैंक्स,’ रिया ने मुसकरा कर शुक्रिया अदा किया.‘ आप मेरा नाम कैसे जानते हैं?’’ रिया ने पूछा.
‘‘उस दिन पार्टी में मैं आप से मिला था.’’
रिया को याद आया. यह वही लड़का था जो उस दिन विवेक के जन्मदिन की पार्टी में उस के साथ डांस कर रहा था.
रोहित ने उसे बताया कि वह किसी पौलिटैक्निक कालेज का छात्र है. उन की मुलाकात अब रोज ही होने लगी. रिया के लिए वह हमेशा कोई सीट खाली करा देता ताकि वह आराम से सफर कर सके. उस की तहजीब और शराफत से रिया के मन में अब उस की छवि बदल गई थी.
पार्टी में रिया को रोहित बदतमीज किस्म का लगा था पर कुछ दिनों में रोहित की शराफत और तहजीबभरे रवैए से रिया प्रभावित हुए बिना न रह सकी. रिया रोहित पर आंख मूंद कर विश्वास करने लगी थी. रिया की हर छोटीबड़ी मुश्किल में रोहित हमेशा मदद के लिए आगे रहता था.
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रिया बेतहाशा भाग रही थी उस साए से बचने के लिए, मगर उस की पुकार सुनने वाला वहां कोई नहीं था. भयभीत हिरनी की तरह शिकारी से बचने के लिए उस ने मदद के वास्ते अपनी नजरें चारों तरफ दौड़ाईं. मगर कहीं कोई नजर नहीं आया. पूरा शहर जैसे रातोंरात वीरान हो गया था. अब तक वह नकाबपोश उस के बेहद करीब पहुंच चुका था, भागने का कोई रास्ता अब बचा नहीं था. खुद को बचाने की कोशिश में उस ने पूरी ताकत लगा कर उस नकाबपोश का मुकाबला करना चाहा, मगर उस की कोशिशें उस दरिंदे की ताकत के सामने हार गईं. कपड़ों की तह में छिपा खंजर निकाल उस ने रिया पर हमला बोल दिया. दर्द में तड़पती हुई वह खून से लथपथ जमीन पर गिर पड़ी.
‘‘मुझे बचा लो, मां, मुझे बचा लो,’’ वह बदहवास लहजे में चीख रही थी.
‘‘रिया उठ, रिया क्या हुआ? रिया, रिया,’’ कोई उसे झंझोड़ कर उठाने की कोशिश कर रहा था.
उस ने आंखें खोलीं तो देखा, वह अपने कमरे के बिस्तर पर लेटी हुई थी. उस की कुरती पसीने से भीगी हुई थी, पूरा शरीर अब भी थरथर कांप रहा था.
‘‘कोई बुरा सपना देखा क्या? बाप रे, कितनी जोर से चीखी तुम, मैं तो डर ही गई थी.’’ रूममेट शिखा हैरानपरेशान उस के सिरहाने खड़ी थी.
‘‘बहुत डरावना सपना देखा, यार. कोई मेरी जान लेने की कोशिश कर रहा था,’’ रिया ने माथे का पसीना पोंछते हुए कहा.
‘‘सपना ही था न, खत्म हो गया, बस. अब उठ कर जल्दी से तैयार हो जा वरना आज फिर क्लास लगेगी,’’ शिखा ने कहा.
मगर रिया अभी तक उस सपने के सदमे में थी. कुछ देर तक वह यों ही चुपचाप बैठी रही. फिर उन बुरे खयालों को दिमाग से झटक कर वह बाथरूम में घुस गई.
उस की एयरहोस्टैस की ट्रेनिंग को अभी कुछ ही अरसा गुजरा था. इस नए शहर में उस के लिए सबकुछ नया था. शहर की तेजतर्रार जिंदगी के साथ रिया अभी कदम से कदम मिला कर चलना सीख रही थी. अपने घरपरिवार से दूर इस बड़े शहर में आने का उस का एक ही मकसद था, अपने भविष्य को सुनहरा बनाना और इस के लिए वह जीजान से मेहनत भी कर रही थी.
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उस के छोटे से कसबे में इतनी सुविधाएं नहीं थीं कि रिया अपने सपनों की उड़ान भर पाती. 12वीं की परीक्षा अच्छे अंकों में पास करने के बाद उस के हौसले और मजबूत हो गए थे. कुछ करने की तमन्ना उस के मन में शुरू से ही थी. छोटी सी रिया जब अपनी छत पर से गुजरने वाले हवाईजहाजों को देखती तो उस का जी चाहता कि वह भी किसी जहाज में बैठ कर आसमान की ऊंचाइयों से नीचे झांके, अपना छोटा सा घरआंगन और आंगन में अपने परिवार वालों को ऊपर से देख कर हाथ लहराए.
बड़ी मानमनौवल के बाद उस के बाबूजी किसी तरह राजी हुए थे और मां तो इस खयाल से ही डर रही थी कि उस की बिटिया इतने बड़े शहर में अकेले कैसे रहेगी. यह रिया का ही जनून था जो उस ने अकेले अपने दम पर ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट में दाखिला लेने के लिए भागदौड़ की थी.
घर छोड़ते वक्त मां के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे. बाबूजी ने किसी तरह पैसों का इंतजाम किया था. कर्ज का बोझ और गरीबी की लाचारी उन के चेहरे पर हर वक्त झलकती थी. रिया मांबाप की सारी परेशानियां समझती थी, इसीलिए नौकरी कर के वह अपने परिवार का सहारा बनना चाहती थी. बड़ी बहादुरी से उस ने अपने आंसू रोक कर मां को तसल्ली दी कि बस, एक बार अच्छी सी नौकरी मिल जाए तो वह बाबूजी के सारे कर्ज उतार देगी. इतना सुख देना चाहती थी अपने मांबाप को वह कि लोग उस की मिसाल दें.
शहर में अकेले रहने की चुनौतियां कुछ कम नहीं थीं. शिखा से उस की मुलाकात इंस्टिट्यूट में ही हुई थी. एक ही इंस्टिट्यूट में होने के कारण दोनों का मकसद भी एक था और साथ में रहने से उन दोनों के खर्चे बचते. दोनों ने फैसला लिया कि वीमेन होस्टल के बजाय एक कमरा किराए पर ले कर रहा जाए.
एक ढंग का कमरा तो मिला मगर मकानमालकिन उम्रदराज और कुछ खब्ती निकली. उस की शर्त थी कि किसी तरह का कोई बवाल या हुड़दंग नहीं होना चाहिए और 3 महीने का अग्रिम किराया एकमुश्त देना होगा. इतना खर्च करना उस की जेब पर भारी पड़ रहा था, लेकिन यह तसल्ली थी कि एक सुरक्षित माहौल में रह कर दोनों अपनी ट्रेनिंग पूरी कर सकती हैं.
जल्द ही रिया ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट के होनहार छात्रों में शुमार हो गई. उस का एक ही लक्ष्य था और उस के लिए वह पूरी लगन के साथ अपनी पढ़ाई में ध्यान देती थी. इसी दौरान उस के बहुत से नए दोस्त भी बन गए. उन दोस्तों की संगत में उसे बड़े शहर के बहुत से अनछुए पहलुओं को जानने का मौका मिला. दोस्तों के साथ मिल कर मौजमस्ती करना, पब और डिस्को जाना आदि बातें अब उस की जिंदगी का हिस्सा थीं.
कभी सादगी से रहने वाली रिया अब किसी फैशन पत्रिका की मौडल सी नजर आने लगी थी. यह कायाकल्प उस के ग्लैमर से भरे एयरहोस्टैस की नौकरी की पहली जरूरत भी थी.
रिया में खूबसूरती के साथसाथ आत्मविश्वास भी गजब का था. उसे पसंद करने वालों में उस के कई पुरुष मित्र थे. ट्रेनिंग में साथी लड़के उस की एक नजर के लिए तरसते और वह जैसे जान के भी अनजान बन जाती. प्यार के चक्कर में पड़ कर वह अपनी मंजिल से भटकना नहीं चाहती थी.
अपने पैरों पर खड़ी होने का सपना ही उस का पहला प्यार था जिसे हर हाल में उसे पूरा करना था. मां का उदास चेहरा याद आते ही एक आग सी लग जाती उस के तनबदन में और वह खुद को दोगुनी ऊर्जा से भर कर ट्रेनिंग में झोंक देती.
रिया की सहेली का खास दोस्त था विवेक, जिस के जन्मदिन की पार्टी में रिया और बाकी दोस्त आमंत्रित थे. पैसे वाले बाप के बेटे विवेक को पार्टियां देने और खूबसूरत लड़कियों से दोस्ती करने का शौक था. इन पार्टियों का सारा खर्च उस के कारोबारी पिता के लिए किसी मामूली जेबखर्च से अधिक नहीं होता था, जहां शराब पानी की तरह बहाई जाती और जवानी के जोश में डूबे कमउम्र लड़केलड़कियां देर रात तक हुड़दंग मचाते.
फाइवस्टार होटल की दावत के अनुरूप कपड़े खरीदने के लिए रिया ने पूरे 2 महीने तक कंजूसी कर के पैसे बचाए थे. कपड़े, मेकअप से ले कर नए जूते तक खरीद डाले थे उस ने. पहली बार किसी फाइवस्टार होटल के नजारे देख कर उस की आंखें चुंधिया गईं. शानोशौकत क्या होती है, यह उसे आज एहसास हुआ.
विवेक अपने दोस्तों के साथ बैठ कर जाम पे जाम चढ़ाए जा रहा था. रिया की तरह ही कई बला की खूबसूरत लड़कियां वहां मेहमान थीं और महफिल की शान में चारचांद लगा रही थीं. विवेक रिया को ललचाई नजरों से घूर रहा था. रिया ने हाथ मिला कर उसे जन्मदिन की बधाई दी तो बहुत देर तक उस ने रिया का हाथ नहीं छोड़ा.
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उत्तेजक संगीत की धुन में कई जवान जोड़े डांसफ्लोर पर थिरक रहे थे. शिखा ने हाथ पकड़ कर रिया को डांसफ्लोर की तरफ खींचा. ‘‘नहींनहीं, मुझे नाचना नहीं आता,’’ रिया ने प्रतिरोध में हाथ छुड़ाया.
‘‘कम औन रिया, चल न, बड़ा मजा आएगा,’’ शिखा पूरे मूड में थी.
‘‘यार, मुझे नहीं आता नाचना. मेरा मजाक बन के रह जाएगा,’’ रिया को झिझक हो रही थी.
‘‘चल मेरे साथ, मैं सिखा दूंगी,’’ रिया के मना करने के बावजूद शिखा उसे अपने साथ ले चली.
कुछ ही देर में रिया भी उसी मस्ती के माहौल में डूबने लगी. एक सुरूर सा उस के तनमन पर छाने लगा. उस का चेहरा लाखों में एक था, उस पर कमसिन उम्र और मासूम अदाएं. सुर्ख लाल रंग की मिनी ड्रैस में वह आज कहर ढा रही थी. उस की छठी इंद्रिय अनजान नहीं थी इस बात से कि न जाने कितनी ही बेकरार नजरें उसे निहार रही थीं.
मगर, एक जोड़ी आंखें उस का पीछा तब से कर रही थीं जब से उस ने यहां कदम रखा था. रिया पर से वे आंखें एक पल को भी नहीं हटी थीं. मगर इस से बेखबर रिया डांसफ्लोर पर किसी नागिन सी झूम रही थी.
‘‘गला सूख रहा है. मैं अभी आई कुछ पी कर,’’ शिखा उस के कान में लगभग चीखती हुई बोली.
‘‘मेरे लिए भी कुछ लेते आना,’’ रिया ने भी चिल्ला कर कहा. पुरजोर बजते कानफोड़ू संगीत में कुछ सुनाई नहीं दे रहा था.
‘‘ठीक है,’’ कह कर शिखा होटल के बार की तरफ बढ़ गई.
‘‘मे आई हैव द प्लेजर टू डांस विद यू,’’ उस अजनबी ने रिया के पास आ कर पूछा. रिया औपचारिकता से मुसकरा दी तो वह अजनबी उस के साथ थिरकने लगा.
आगे पढ़ें- वह रिया को टकटकी लगाए देखे जा रहा था, कभी…
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रईस दद्दा ने सौदामिनी के लालनपालन में कहीं कोताही नहीं की थी लेकिन अनुशासन में बंधी वह न ज्यादा पनप पाई न ही पढ़लिख पाई. मृदुल जैसा सच्चा प्रेमी मिला लेकिन छीन लिया गया. आदित्य के पल्ले से बांध दी गई जिस ने पत्नी होने का उसे अधिकार कभी दिया ही नहीं. सास ने घर की मानमर्यादा के नाम पर उस की जबान बंद कर दी. क्या सौदामिनी ने अपने साथ होते अन्याय के आगे हथियार डाल दिए?
जानने के लिए आगे पढ़िए.
कोई एक बरस बाद राय साहब ने अपनी लाड़ली बेटी को पीहर बुलवा भेजा था. रोजरोज बेटी को मायके बुलाने के पक्ष में वे कतई नहीं थे. आदित्य के साथ सजीधजी सौदामिनी मायके आई तो राय साहब कृतकृत्य हो उठे. रुके नहीं थे आदित्य, बस औपचारिकता निभाई और चले गए. राय साहब ने भी कुछ पूछने की जरूरत नहीं समझी थी. धनदौलत की तुला पर बेटी की खुशियों को तोलने वाले दद्दा ने उस के अंतस में झांकने का प्रयत्न ही कब किया था? जितने दिन सौदामिनी पीहर में रही, अम्मा, बाबूजी रोज उसे बुलवा भेजते थे. वह कभी कुछ नहीं कहती थी. बस, अपने खयालों में खोई रहती. आखिर एक दिन अम्मा ने बहुत कुरेदा तो वह पानी से भरे पात्र सी छलक उठी, ‘मेरी इच्छाअनिच्छा, भावनाओं, संवेदनाओं को जाने बिना, क्या मेरे जीवन में ठुकराया जाना ही लिखा है, चाची? एक ने ठुकराया तो दूसरे के आंगन में जा पहुंची. अब आदित्य ने ठुकराया है तो कहां जाऊं?’
अम्मा और बाबूजी ने विचारविमर्श कर के एक बार दद्दा को बेटी के जीवन का सही चित्र दिखलाना चाहा था. वस्तुस्थिति से पूरी तरह परिचित होने के बाद भी दद्दा न चौंके, न ही परेशान हुए. वैसे भी ब्याहता बिटिया को घर बिठा कर उन्हें समाज में अपनी बनीबनाई प्रतिष्ठा पर कालिख थोड़े ही पुतवानी थी. उन्होंने सौदामिनी को बहुत ही हलकेफुलके अंदाज में समझाया, ‘पुरुष तो स्वभाव से ही चंचल प्रकृति के होते हैं. हमारे जमाने में लोग मुजरों में जाया करते थे. अकसर रातें भी वहीं बिताते थे और घर की औरत को कानोंकान खबर नहीं होती थी. शुक्र कर बेटी, जो आदित्य ने अपने संबंध का सही चित्रण तेरे सामने किया है. अब यह तुझ पर निर्भर करता है कि तू किस तरह से उस को अपने पास लौटा कर लाती है.’
पिता द्वारा आदित्य का पक्ष लिया जाना उसे बुरा नहीं लगा था, बल्कि इस बात की तसल्ली दे गया था कि जैसे भी हो, उसे अपनी ससुराल में ही समझौता करना है.
समय धीरेधीरे सरकने लगा था. सौदामिनी को समय के साथ सबकुछ सहने की आदत सी पड़ने लगी थी. भीतर उठते विद्रोह का स्वर, कितना ही बवंडर मचाता, संस्कारों की मुहर उस के मौन को तोड़ने में बाधक सिद्ध होती.
इसी तरह 2 वर्ष बीत गए. सौदामिनी का हर संभव प्रयत्न व्यर्थ ही गया. आदित्य उस के पास लौट कर नहीं आए. स्नेह के पात्र की तरह आदमी घृणा के पात्र को एक नजर देखता अवश्य है, पर आदित्य के लिए उस की पत्नी मात्र एक मोम की गुडि़या थी, संवेदनाओं से कोसों दूर, हाड़मांस का एक पुतलाभर.
कभीकभी जीवन में इंसान को जब कोई विकल्प सामने नजर नहीं आता तो उस का सब्र सारी सीमाएं तोड़ कर ज्वालामुखी के लावे के समान बह निकलता है. ऐसा ही एक दिन सौदामिनी के साथ भी हुआ था. घर से बाहर जा रहे आदित्य का मार्ग रोक कर वह खड़ी हुई, ‘किस कुसूर की सजा आप मुझे दे रहे हैं? आखिर कब तक यों ही मुंह मोड़ कर मुझ से दूर भागते रहेंगे?’
‘सजा कुसूरवार को दी जाती है सौदामिनी, तुम ने तो कुसूर किया ही नहीं, तो फिर मैं तुम्हें कैसे सजा दे सकता हूं? मैं ने सुहागरात को ही तुम से स्पष्ट शब्दों में कह दिया था कि हमारा विवाह मात्र एक समझौता है. तुम चाहो तो यहां रहो, न चाहो तो कहीं भी जा सकती हो. मेरी ओर से तुम पूर्णरूप से स्वतंत्र हो.’
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उस रात आदित्य का स्वर धीमा था, पर इतना धीमा भी नहीं था कि हवेली की दीवारों को न भेद सके. एक कमरे से दूसरे कमरे का फासला ही कितना था. दीवान साहब के कानों में आदित्य का एकएक शब्द पिघले सीसे के समान उतरता गया. अपना ही खून इतना बेगैरत हो सकता है? क्या उन की बहू परित्यक्ता का सा जीवन बिताती आई है? इस की तो उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी.
उन्होंने पत्नी को बुला कर कई प्रश्न किए, पर कोई भी उत्तर संतोषजनक नहीं लगा था. तारिणी पूर्णरूप से बेटे की ही पक्षधर बनी रही थीं. दीवान साहब ने सौदामिनी को पीहर लौट जाने का सुझाव दिया था. वह वहां भी नहीं गई.
तब जीवन की हर समस्या की ओर व्यावहारिक दृष्टिकोण रखने वाले दीवान साहब ने बहू को आगे पढ़ने के लिए प्रेरित किया. दबी, सहमी सौदामिनी के लिए यह प्रस्ताव अप्रत्याशित सा ही था. बस, यही सोचसोच कर कांपती रही थी कि बरसों पहले छोड़ी गई किताब और कलम पकड़ने में कहीं हाथ कांपे तो क्या करेगी?
पर दृढ़निश्चयी दीवान साहब के आगे उस की एक भी न चली. उधर तारिणी ने सुना, तो घर में हड़कंप मच गया. पूरी हवेली की व्यवस्था ही चरमरा कर रह गई थी. इतने बरसों बाद बहू को पोथी का ज्ञान करवाना क्या उचित था? पर पति के सामने उन की आवाज घुट कर रह गई.
सौदामिनी की मेहनत, लगन और निष्ठा रंग लाई. उस का मनोबल बढ़ा, व्यक्तित्व में निखार आया. अब लोग उस की तरफ खिंचे चले आते थे, आदित्य का स्थान अब गौण हो चला था.
पत्नी के इस परिवर्तन पर आदित्य परेशान हो उठा था. वैसे भी पुरुष, नारी को अपने ऊपर या अपने समकक्ष कब देखना चाहता है. यदि चाहेअनचाहे पत्नी या उस के संबंधियों के प्रयास से ऐसा हो भी जाता है तो पुरुष की हीनभावना उसे उग्र बना देती है. ऐसा ही यहां भी हुआ था जो थोड़ाबहुत मान पति के अधीनस्थ हो कर उसे मिल रहा था, वह भी छिनता चला गया. पर सौदामिनी रुकी नहीं, आगे ही बढ़ती गई.
अमेरिका में उस के पत्र मुझे नियमित रूप से मिलते रहे थे. मन में राहत सी महसूस होती.
उधर दीवान साहब की दशा दिनपरदिन गिरती चली गई. बहू का दुख घुन के समान उन के शरीर को खाता जा रहा था. हर समय वे खुद को सौदामिनी का दोषी समझते. उस का जीवन उन्हें मझधार में फंसी हुई उस नाव के समान लगता, जिस का कोई किनारा ही न हो. भारीभरकम शरीर जर्जरावस्था में पहुंचता गया, जबान तालू से चिपकती गई. एक दिन देखते ही देखते उन के प्राणपखेरू उड़ गए और सौदामिनी अकेली रह गई.
उस दिन उसे लगा, वह रिक्त हो गई है. ऐसा कोई था भी तो नहीं, जो उस के दुख को समझ पाता. जिस कंधे का सहारा ले कर वह आंसुओं के चंद कतरे बहा सकती थी, वह भी तो स्पंदनहीन पड़ा था.
पिता की मृत्यु के बाद आदित्य पूर्णरूप से आजाद हो गया था. तेरहवीं की रस्म के बाद ही सूजी को घर में ला कर वह मुक्ति पर्व मनाने लगा था. सूजी उस के दिल की स्वामिनी तो थी ही, पूरे घर की स्वामिनी भी बन बैठी. घर की पूर्ण व्यवस्था पर उस का ही वर्चस्व था.
संवेदनशील सौदामिनी विस्मित हो पति का रवैया निहारती रह गई.
आदित्य का व्यवहार धीरेधीरे उसे परेशान नहीं, संतुलित करता गया. उस में निर्णय लेने की शक्ति आ गई थी.
अपने आखिरी पत्र में उस ने मुझे लिखा था…
‘सारे रस्मोंरिवाजों के बंधनों को तोड़ कर एक दिन मैं आजाद हो जाऊंगी. नासूर बन गए जुड़ाव की लहूलुहान पीड़ा से तो मुक्ति का सुख ज्यादा आनंददायक होगा. लगता है, वह समय आ गया है. अगर जिंदा रही तो जरूर मिलूंगी.
तुम्हारी सौदामिनी.’
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उस के बाद वह कहां गई, मैं नहीं जानती थी. दद्दा को भी मैं ने कई पत्र लिखे थे, पर उन्होंने तो शायद दीवान साहब की मृत्यु के बाद बेटी की सुध ही नहीं ली थी. बेटी को अपनी चौखट से विदा कर के ही उन के कर्तव्य की इतिश्री हो गई थी.
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