Serial Story: मून गेट (भाग-2)

नीरा और किंजल फिर नीरा के ही फ्लैट पर आ गए, दोनों कुछ देर के लिए लेट गयी, किंजल ने नीरा को शांत करने के लिए कहा, “नीरा, अब तुम सब गौतम पर छोड़ दो, बहुत जल्दी ही इरा का पता चल जायेगा.”

नीरा की बेचैनी की कोई सीमा नहीं थी, उसने रोज की तरह अपने पापा से बात की, उन्होंने परेशान होते हुए कहा,” नीरा, इरा ने कई दिन से मुझसे बात नहीं की, कहां है वह?”

“पापा, पहले ऑफिस के काम में बहुत व्यस्त थी. अब ऑफिस की एक मीटिंग में जिस जगह गयी है वहां का नेटवर्क बहुत खराब है. आप बिलकुल चिंता मत करना, वह बिलकुल ठीक है. “ वह बहुत देर अपने पापा से बिलकुल नार्मल तरीके से बात करते हुए हंसती हंसाती रही. फ़ोन रखकर अचानक रोने लगी. किंजल ने फौरन उसे गले से लगाया चुप करवाया. वह सुबकते हुए कहने लगी,” किंजल, पापा से कब तक छुपाउंगी? और, पता चलते ही कहीं उनकी तबियत खराब न हो जाए. वे बहुत बीमार रहते हैं, उनके सिवा तो हमारा कोई और है भी नहीं.”

“डोंट वरी, नीरा. गौतम अब तक काम पर लग गया होगा. इस केस की रिपोर्ट तो तुमने अपने पापा की हेल्थ को ध्यान में रखते हुए नहीं की, अच्छा किया, अब गौतम अपने तरीके से सब पता कर लेगा.”

गौतम ने अपने ऑफिस जाकर इंस्पेक्टर कपिल और सुरेश को बुलाकर उन्हें केस के बारे में बताते हुए कहा, “ये रहे सबके फ़ोन नंबर. आनंद और वासु को यहाँ बुलवाओ. मुझे उनसे बात करनी है, फौरन, आज ही. और एक आदमी नीरा की निगरानी के लिए लगा दो, वह घर से कब निकली, कहां गई, किससे मिली, सब नजर रखवाओ.”

“जी सर,” दोनों गौतम को सेल्यूट कर चले गए.

गौतम और कामो में व्यस्त हो गया, अचानक उसे कुछ याद आया, उसने नीरा को फ़ोन किया, “जरा चेक करो, उसका बैग, कपडे, और क्या क्या सामान फ्लैट पर नहीं है, उसका ऑफिस का बैग? लैपटॉप?” नीरा ने उसे कुछ देर बाद फ़ोन किया, बताया, “ वह अपने काफी कपडे ले गयी है, ऑफिस का बैग, लैपटॉप, अपने सारे वॉलेट, कार्ड्स, सब जरुरी सामान.”

“ठीक है, मतलब तैयारी से गयी है.”

आनंद जब कपिल के साथ आया तो काफी घबराया हुआ था, उसके चेहरे की रंगत उड़ी हुई थी, गौतम ने उसे बैठने का इशारा किया, गौतम ने पूछा,” उस शाम के बारे में एक एक डिटेल्स बताते चलो, जब तुम नीरा के साथ उसके फ्लैट पर गए थे.”

“हमेशा की तरह मैंने उसे उसकी बिल्डिंग तक ड्राप किया, उसने नीचे से देखा, उसके फ्लैट की लाइट बंद थी, उसे लगा, उसकी बहन इरा अभी तक नहीं लौटी है, उसने मुझे ऊपर चलने के लिए कहा, मैं उसके साथ गया, और…. आनंद झिझका तो गौतम ने कहा,” हां, ठीक है, तुम लोगों साथ सोए. ठीक?”

“यस, सर.”

“ठीक है, फिर?”

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“फिर अचानक नीरा की नजर टेबल की ड्राअर से झांक रहे एक पेपर पर पड़ी जो इरा लिख कर गयी थी. बस, तबसे वह परेशान है और यही चिंता है कि इरा कहां है.”

“उसी बेड पर साथ सोए जिसके बराबर में टेबल से नोट लिखा पेपर झाँक रहा था, तुम्हारी नजर नहीं पड़ी थी?”

“नहीं, सर.”

“तुम्हें कैसे पता कि वह नोट इरा ने ही लिखा था?” गौतम ने तल्खी से पूछा.

आनंद ने कहा, ”मैंने तो कभी इरा की हैंड राइटिंग नहीं देखी थी. हो सकता है कि किसी और की हैंड राइटिंग हो.”

गौतम ने कहा वह चैक करेगा. फिर पूछा, “दोनों बहनों के आपसी सम्बन्ध कैसे हैं?”

“बहुत दोस्ताना, बहुत प्यार है दोनों बहनों में, एक दूसरे से बहुत खुली हुई हैं.”

“वासु को जानते हो?”

“जी”

“कैसा लड़का है?”

“दोनों बहनों में से किसी का बर्थडे होता है, या कोई और पार्टी, तब वासु से मिलना हुआ है, काफी सुलझा हुआ, शांत सा लगा हमेशा.”

“इरा तुम्हे पसंद करती है? तुम्हारे साथ उसकी बॉन्डिंग कैसी है?”

“जब भी मिला हूं, नार्मल बातचीत ही हुई, सर”

“ठीक है, अभी तुम जाओ, जब भी जरुरत होगी, बुलाएँगे तुम्हे.”

आनंद ने वहां से निकलते ही नीरा को फ़ोन किया,” यार, आज पहली बार तुम्हारे चक्कर में पुलिस स्टेशन आना पड़ गया, मेरे पेरेंट्स सुनेंगें तो बहुत नाराज होंगें.”

नीरा ने उदास स्वर से कहा,” आनंद, कैसी बात कर रहे हो? क्या तुम इस केस में हमारी हेल्प नहीं करना चाहते?”

आनंद ने कहा, ”नहीं, ऐसी बात नहीं है, पर ये पुलिस स्टेशन के चक्कर मुझसे नहीं लगाए जायेंगें,” कहकर आनंद ने फ़ोन रख दिया तो नीरा की आँखों में आंसू आ गए, किंजल ने पूरी बात सुनी तो हैरान हुई, बोली, नीरा, पहले से ही इरा के लिए परेशान हो, अब आनंद की बात पर दुखी होकर मत बैठना, मुसीबत के समय लोगों के सही रंग दिख जाएँ तो संभल जाना चाहिए.”

नीरा बहुत उदास, चुप ही रही.

कपिल ने फ़ोन पर ही गौतम को बता दिया था कि वासु बड़ी मुश्किल से आपसे मिलने के लिए तैयार हुआ है, वह उखड़ा सा आया. गौतम के इशारे पर बैठ गया. गौतम ने पूछा,” इरा को कबसे जानते हो?”

“साल भर से. वाइट फील्ड एरिया में जहाँ मेरा ऑफिस है, वहीं कई आई टी कंपनियों के ऑफिस हैं, मेरे कई दोस्त वहां के कई ऑफिसेस में हैं, उन्ही में से एक दोस्त ने इरा से मिलवाया था, इरा के ऑफिस में भी मेरा आना जाना हुआ तो दोस्ती हो गयी थी.”

“इरा के बारे में और कुछ बताओ.”

वासु पहले तो चुप रहा, फिर उसने कहना शुरू किया,” काफी बोल्ड है इरा, मुझसे पहले भी जिसके साथ उसका अफेयर था, उससे ब्रेक अप के बाद एक दिन भी दुखी नहीं रही थी वो, अपनी लाइफ का हर पल अपने हिसाब से जीने वाली हैं दोनों बहनें, अमीर पिता की संतानें हैं, कोई जिम्मेदारी है नहीं, खूब आज़ादी से जीती हैं, इरा ने मुझसे अचानक एक महीने पहले दूरी बनानी शुरू कर दी थी, मुझे अभी तक कारण भी नहीं पता कि उसने मुझसे ब्रेक अप क्यों किया.”

गौतम ने पूछा, “कुछ तो हुआ होगा ब्रेकअप से पहले? कोई झगड़ा, मन मुटाव वगैरा.”

“कुछ खास नहीं पर 3-4 महीने से हम कम मिलते थे. इरा बताती थी कि उसका आफिस में काम बढ़ गया है. वह कुछ दिनों के लिए अचानक कोलकाता भी गई थी और उसके बाद जब भी मिली उसके फोन पर फोन आते थे.” वासु ने जोड़ा.

“उसके पहले बॉय फ्रेंड के बारे में बताओ, कुछ पता है? क्या नाम है उसका?”

“तनय, वेलेंदूर एरिया में रहता है, इरा ने ही बताया था.” वासु ने बताया.

“ठीक है, अभी तुम जाओ, जरुरत होगी तो बुलाएंगें.”

वासु के जाने के बाद गौतम ने नीरा को फ़ोन किया, “तनय का नंबर है तुम्हारे पास?”

“जी, अभी देती हूं.”

गौतम ने सुरेश को तनय का नंबर देते हुए कहा, “इसे बुलाओ, फौरन.”

पूरा दिन किंजल नीरा के साथ रही, अब अँधेरा हो चला तो किंजल ने कहा,” यहां अकेली मत रहो अभी, मेरे साथ चल कर रहो, नीरा.”

“नहीं, नहीं, मैं ठीक हूं, यहीं रहूंगी, तुम बिलकुल चिंता मत करो, तुमने तो आज बहुत साथ दिया, गौतम को भी मेरी तरफ से बहुत सा थैंक्स बोलना.”

“फॉर्मेलिटी मत करो, नीरा, यहीं रहना चाहती हो तो ठीक है, पर जरा भी मन घबराए, चली आना, हम दोस्त हैं, और परेशान मत हो, गौतम काम पर लग चुका है. “किंजल चली गयी तो नीरा ने फिर अपने पापा को फोन किया. बहुत देर तक बातें की, उनकी तसल्ली कर दी कि इरा यहीं कहीं है. वे बारंबार उसके लिए चिंता कर रहे थे जबकि पहले कभी ज्यादा पूछताछ नहीं करते थे. तो यूँ ही लेट कर इरा का सोशल मीडिया अकाउंट चेक करने लगी, उसे एक झटका सा लगा. इरा ने अपना फेसबुक, इंस्टाग्राम सब डीएक्टिवेट कर रखा था, उसने आनंद को फ़ोन किया, उसके फ़ोन की घंटियां बजती रहीं. फ़ोन नहीं उठाया तो नीरा समझ गयी कि आनंद पुलिस के चक्कर में पड़ने से बचने के लिए उससे दूरी बना रहा है. उसने एक ठंडी सांस ली. आंसू बह निकले, वह आनंद को सचमुच प्यार करने लगी थी. बहुत जल्दी उसे अपने पापा से मिलवाने ले जाने के लिए भी सोच चुकी थी. पर अब! सब ख़तम होने वाला था.

तनय का फ़ोन नहीं मिला तो गौतम ने इंस्पेक्टर सुरेश को कहा कि नीरा से पता पूछकर किसी को भेज कर उसे बुलवा ले, तनय बैंगलोर से बाहर दो दिन के टूर पर गया हुआ था. उस दिन तो तनय से किसी की बात नहीं हो पायी. रात को गौतम घर पहुंचा, उसके फ्रेश होने के बाद किंजल अधीर सी होते हुए इरा की खोज के बारे में पूछने लगी, गौतम ने कहा,” इतनी जल्दी कुछ नहीं कह सकता, अभी तो सब मेरे शक के घेरे में हैं, “ फिर मुस्कुराते हुए किंजल की आँखों में आँखें डाल कर कहा,” तुम्हारी सहेली भी.”

किंजल तुनकी,” खबरदार, मेरी सहेली पर जरा भी शक किया तो, कबसे जानती हूं उसे.”

गौतम मुस्कुरा कर रह गया.

तीसरे दिन तनय गौतम के सामने उसके ऑफिस में बैठा था. गौतम ने पूछना शुरू किया, “इरा से ब्रेक अप क्यों हुआ था?”

तनय ने झेंपते हुए कहा, “मैं उस समय थोड़ा ड्रिंक करने लगा था, इरा को मेरा ड्रिंक करना पसंद नहीं था, फिर थोड़ा तल्खी से कहा,” मुझे तो ड्रिंक करने पर इतना गुस्सा दिखाया, पर मैडम खुद ड्रिंक करती हैं बार में बैठकर.”

गौतम चौंका,” क्या? तुमने कब देखा उसे? कहाँ देखा?”

“एम जी रोड पर एक आदमी के साथ बैठ कर ड्रिंक कर रही थी.”

“कौन था? जानते हो?”

“नहीं, मैंने तो पहली बार देखा था उस लड़के को. पर मैंने इरा को लास्ट मंथ फिर उसी लड़के के साथ कार से आते जाते दो तीन बार देखा है.”

गौतम ने फौरन सुरेश को आने के लिए कहा, उसके आते ही गौतम ने कहा, “ये जो बता रहा है, उसका स्केच बनवाओ, दोनों लड़कियों के पूरे सर्किल में पता करो,कि किसी को पता है, इरा किसके साथ उठती बैठती थी.”

“ओके सर” कहकर सुरेश तनय को लेकर अपने आर्टिस्ट से स्केच बनवाने चला गया.

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तनय के बताने के आधार पर जो स्केच बन कर आया, वह एक सुंदर, स्मार्ट लड़के का था. घने, थोड़े बड़े,बालों वाले, फ्रेंच कट दाढ़ी, तनय ने बताया था, लड़का अपने पहनावे, अपने एक स्टाइल से बहुत अमीर लगा था. इंस्पेक्टर सुरेश और कपिल ने इरा और नीरा के एक एक कांटेक्ट से जाकर पता किया कि किसी ने उस लड़के को कहीं देखा है? पर निराशा ही हाथ लगी. सब हैरान थे कि इरा ने इस लड़के के बारे में किसी से भी कुछ शेयर क्यों नहीं किया था? नीरा बहुत हैरान थी, ऐसा क्या है जो इरा छुपा रही थी, कहीं वह किसी खतरे में तो नहीं है? वह कहां है. ठीक तो है! नीरा बहुत परेशान थी, अब समर सिंह भी इरा से बात करने के लिए ज्यादा बेचैन से होने लगे, उन्हें अब शक होने लगा कि नीरा उनसे कुछ छुपा रही है. वे बारंबार फोन करते. इधर नीरा परेशान थी, जब कुछ समझ नहीं आया, वह किंजल के घर गयी,उस समय गौतम भी घर पर ही था, नीरा ने कहा, “पापा को शायद अब कुछ शक होने लगा है कि मैं उनसे कुछ छुपा रही हूं, वे बार बार इरा के बारे में पूछ रहे हैं,” उसकी बात ख़त्म भी नहीं हुई थी कि कलकत्ता से उसके बचपन के दोस्त जय का फ़ोन आया, वह और नीरा बचपन के साथी थे, थोड़े दिन पहले ही उसने दोनों की ही एक कॉमन फ्रेंड निशा से विवाह किया था, जय ने आम हालचाल के बाद पूछा, यार, तुम क्यों नहीं आयी इरा के साथ?”

नीरा बुरी तरह चौंकी,”इरा के साथ?”

‘ हाँ, भाई, मैंने उसे पिछले महीने पार्क स्ट्रीट में देखा.”

“क्या कह रहे हो? जय?”

“पक्का?”

“हाँ, कोई उसके साथ था, मैं थोड़ा दूर था, मैंने उसे आवाज़ नहीं दी, मुझे लगा, तुम आयी होगी तो मिलने आओगी ही, तुम नहीं आयी थी?”

“नहीं, जय, मैं तो नहीं आयी थी, इरा ही थी, पक्का?”

“हाँ यार, हुआ क्या है? परेशान सी क्यों लग रही हो?”

“बाद में फ़ोन करती हूं, जय.”

फ़ोन रखकर नीरा ने गौतम और किंजल को हैरान होते हुए जय से हुई बात के बारे में बताया. गौतम ने कहा,” नीरा, फौरन जय को व्हाट्सएप्प पर उस नए स्केच वाले लड़के की फोटो भेजकर पूछो, कि क्या इरा के साथ यही लड़का था.”

“जी. “वहीँ बैठे बैठे नीरा ने जय को फोटो भेज दी, फोटो उसके फ़ोन में थी ही. पांच मिनट के अंदर पुष्टि हो गयी कि स्केच वाला लड़का ही इरा के साथ कलकत्ता के पार्क स्ट्रीट एरिया में था. गौतम ने कहा,’ बहुत बड़ी गड़बड़ लग रही है, नीरा, वह कलकत्ता गई और पापा से नहीं मिली? हद है! चल क्या रहा है? कहीं ऐसा तो नहीं कि पापा से मिली हो और मुझे भी नहीं बताया. पापा और इरा के बीच कोई खिचड़ी पकती हो और मुझे मालूम तक नहीं?”

नीरा ने एक ठंडी सांस लेकर कहा,” मेरा मन पापा के पास जाने का कर रहा है, बहुत ही चिंता हो रही है कि यह हो क्या रहा है, मैँ अगर पापा के पास कुछ दिन के लिए चली जाऊं तो आप अपनी खोजबीन जारी तो रखेंगें न भैया?”

नीरा गौतम को भैया ही कहती पर फिर भी गौतम, गौतम था, अभी उसने नीरा को इस केस में क्लीन चिट नहीं दी थी, कुछ सोचता हुआ बोला,” मुझे तुम्हारे कलकत्ता जाने में कोई ऑब्जेक्शन नहीं है, पर मेरा एक ख़ास आदमी तुम्हारे साथ जायेगा, वहां भी तुम्हारे साथ ही रहेगा और फिर तुम्हारे साथ ही लौट आएगा, तुम कितने दिन के लिए जाना चाहती हो?”

“कल ऑफिस जाकर अपने बौस से बात करती हूं, एक हफ्ते में आ जाउंगी, पापा को सामने बैठ कर इरा के गायब होने की बात बताउंगी तो उनकी चिंता बाँट भी सकती हूं.”

“ठीक है, मुझे बताना कि तुम कब जाना चाहती हो?”

“कल ऑफिस में बात होने के बाद बताती हूं.”

नीरा के वहां से निकलते ही गौतम ने किसी को फ़ोन करके तुरंत अपने आफिस पहुंचने के लिए कहा, फिर किंजल से अचानक पूछा,” किंजू, दोनों बहनों का आपसी सम्बन्ध कैसा था?”

“मैंने तो दोनों के बीच कोई मनमुटाव नहीं देखा, जैसे आजकल की आत्मनिर्भर लड़कियां होती है, दोनों वैसी ही हैं, और ये तो खानदानी रईस हैं, फिर भी कभी कोई दिखावा नहीं, कोई घमंड नहीं.”

“नीरा ने कभी इरा की किसी बात की तुमसे शिकायत नहीं की?”

“नहीं, पर कभी कभी जब हम सब साथ बैठते, इरा नीरा को चिढ़ाती, कि देख, नीरा, पापा मुझे ज्यादा प्यार करते हैं, “ हम सब पूछते ऐसा क्यों, तो वह हंस देती, कहती, नीरा को पता है. “ नीरा उस समय चुप ही रहती, वो तो मुझे अब अंदाजा हुआ कि उसके पापा ने अपनी सारी जायदाद का मुख्य वारिस इरा को बनाया होगा, इसलिए वह नीरा को चिढ़ाती रही होगी.

“क्या तुम्हे लगता है, नीरा इरा के साथ कुछ गलत कर सकती है?”

“नहीं, कभी नहीं.”

“यार, पुलिस वाले की बीबी हो. इतनी जल्दी किसी पर यकीन नहीं करते, यह तो सीख लो.”

किंजल के घूरने पर गौतम हंस कर जाने के लिए उठ गया.

अगले दिन नीरा आफिस गई, अब तक सब इरा के गायब होने के बारे में जान चुके थे, सब उसे तसल्ली देते रहे. किंजल ने उसे बॉस से पूछने के लिए इशारा किया, वह अपने सीनियर संजीव मेहरा के पास गयी, उन्हें पूरी बात बताकर एक हफ्ते की छुट्टी मांगी, संजीव बोले, “ हां, अपने पापा से मिल आओ, पर जल्दी ही एनुअल मीटिंग की तैयारी करनी है, तुम्हे अपने प्रोजेक्ट को भी पूरा करना है, ऐसा करो, लैपटॉप साथ ही रखना, भले ही चली जाओ, पर काम करती रहना.”

“जी, सर.”

किंजल ने उसके बाहर निकलते ही इशारे से उसे अपने पास बुलाया, कहा,” यही कहा होगा न, काम करती रहना!”

नीरा को किंजल के अंदाजे पर हंसी आ गयी, बोली, तुम तो बॉस को पूरी तरह जान गयी.”

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“और क्या, मेहरा जी का बस चले तो सबकी लाइफ से रात का कांसेप्ट ही ख़तम कर दें, बस, दिन रहे और सब ऑफिस में बैठे रहें, काम करते रहें, न रात हो, न कोई घर जाए!”

“ओफ्फो, क्यों कोस रही हो उन्हें इतना, आराम से मुझे छुट्टी दे दी.”

“आराम से? बेटा, तुम जाओ, तुमसे पूछूंगी कि कितने आराम से दी है.”

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मंगनी की अंगूठी: क्या मोहित सुमिता के जादू में बंध पाया?

Serial Story: मंगनी की अंगूठी (भाग-2)

पूर्वकथा

मोहित की पहली मुलाकात जहां कौल सैंटर वाली सुमिता से होती है वहीं दूसरी बार वह स्विट्जरलैंड भ्रमण के दौरान व्योमबाला सुमिता से मिलता है. अब मोहित की तीसरी मुलाकात एक विज्ञापन कंपनी की डायरैक्टर सुमिता से होती है. आखिर इन तीनों सुमिता में से उस ने किस को अपना हमसफर बनाया.

आगे पढि़ए…

एकदूसरे की तारीफ के बाद जैसे ही  ड्रिंक्स का दौर शुरू हुआ, तभी हौल में कौल सैंटर वाली सुमिता ने कदम रखा. वह भी आज खासतौर से ब्यूटीपार्लर से सजधज कर आई थी.

उस ने नए फैशन की काली सलवारकमीज डाली हुई थी. बिना दुपट्टे के वह गले में नए डिजाइन का नैकलेस डाले हुए थी. आज वह मोहित से शादी के बारे में बात करना चाहती थी.

तनहा कोने वाली पसंदीदा मेज अभी तक खाली थी. ‘शायद मोहित अभी तक नहीं आया था,’ यह सोचते हुए वह धीरधीरे चलती हुई मेज के पास पहुंची. साथ वाली मेज पर एक जोड़ा चहकताहंसता बातें कर रहा था. पुरुष की पीठ उस की तरफ थी. चेहरा पीछे से कुछ जानापहचाना सा लग रहा था. मगर मोहित तो हमेशा जींस, टीशर्ट या फिर कैजुअल वियर पहनता था. यह तो कोई हाई सोसाइटी का कोई सूटेडबूटेड नौजवान है.

कुर्सी पर बैठ कर वह उस जोड़े को देखने लगी. आवाज मोहित की ही थी. उसे अपनी तरफ देखते हुए व्योमबाला ने मोहित से कहा, ‘‘आप के पीछे की मेज पर बैठी लड़की आप को देख रही है.’’

इस पर मोहित चौंका, व्योमबाला से बातों में मग्न हो कर वह सुमिता के साथ अपने फिक्स्ड प्रोग्राम को तो भूल ही गया था. वह फुरती से उठा और मुड़ कर सुमिता के समीप पहुंचा.

‘‘हैलो डियर, हाऊ आर यू?’’

मोहित के इस बदले रूप को देख कर सुमिता चौंकी. साथ में एक खूबसूरत लड़की भी थी. ऐसी स्थिति की उस ने कल्पना भी नहीं की थी.

मोहित ने उस की बांह थामी और प्यार से खींचता हुआ उसे व्योमबाला के समीप ले आया.

‘‘इन से मिलिए, ये आप की हमनाम हैं, इन का नाम सुमिता वालिया है और ये एयरहोस्टेस हैं.’’

उन दोनों ने एकदूसरे से हाथ मिलाया. व्योमाबाला के स्पर्श में गर्मजोशी थी क्योंकि उस को मोहित ने कौल सैंटर वाली सुमिता के बारे में बता रखा था. वहां कौल सैंटर वाली सुमिता का स्पर्श ठंडा था. वह बड़े असमंजस में थी.

‘‘पिछले महीने जब मैं स्विट्जरलैंड भ्रमण पर गया था तब इन से मुलाकात हुई थी. मैं ने आप के बारे में तो इन्हें बता दिया था लेकिन इन के बारे में आप को बताना भूल गया था.’’

सुमिता के माथे पर बना तनाव का घेरा थोड़ा ढीला पड़ा. ठंडे और हलके ड्रिंक्स का दौर फिर से शुरू हुआ.

तभी डांस फ्लोर पर डांस का पहला दौर शुरू हुआ.‘‘लैट अस हैव ए राउंड,’’ व्योमबाला ने मोहित की तरफ हाथ बढ़ाते हुए कहा. मोहित उठा और उस के साथ डांस फ्लोर की तरफ बढ़ गया.

एयरहोस्टेस दुनियाभर में घूमती थी. अनेक देशों में ठहरने के दौरान एंटरटेनमैंट  के लिए डांस करना, ऐंजौय करना, उस के लिए सहज था.

वह रिदम मिला कर दक्षता से डांस कर रही थी. सुमिता के साथ मोहित भी अनेक बार डांस फ्लोर पर थिरक चुका था. मगर एयरहोस्टेस सुमिता के साथ बात कुछ और ही थी.

पहला दौर समाप्त हुआ. रैस्ट करने और हलके ड्रिंक्स के बाद नया दौर शुरू हुआ. इस बार कौल सैंटर वाली सुमिता का साथ था.

आज वह विशेष तौर पर सजधज कर नए उत्साह के साथ प्रपोजल ले कर आई थी. मगर खीर में मक्खी पड़ जाने के समान एयरहोस्टेस आ टपकी थी. वह उसी के समान सुंदर थी और उस से कहीं ज्यादा ऐक्टिव थी.

मोहित हमेशा कैजुअल वियर में ही आता था, लेकिन आज वह बनठन कर सुमिता को अपनी बांहों में ले कर उस के वक्षस्थल को भींच लेता था. सुमिता भी उस का मजा लेती थी.

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मगर आज दोनों में वह बेबाकी नहीं थी. दोनों आज किसी प्रोफैशनल डांसर जोड़े की तरह नाच रहे थे, जिन का मकसद किसी तरह इस राउंड को पूरा करना था, न कि अपना और अपने साथी का मनोरंजन करना.

डांस के बाद खाना खाया गया. वे दोनों अपनीअपनी शिकायतों के साथ मोहित को विश करतीं ऊपर से मुसकराती हुई विदा हुईं.

इस बात का मोहित को भी पछतावा हुआ कि क्यों उस ने उन दोनों को एकसाथ यहां बुलाया. उसे दोनों में से किसी एक को टाल देना चाहिए था, या फिर दोनों को ही टाल देना चाहिए था. मगर अब जो होना था हो चुका था.

अगले कई दिन तक उन दोनों में से किसी का भी फोन नहीं आया. मोहित फिर से अपने चित्रों, ग्राफिक्स व डिजाइनों में डूब गया.

एक शाम उसे किसी विज्ञापन कंपनी से फोन आया. कंपनी की डायरैक्टर उस से एक सौंदर्य प्रसाधन कंपनी के लिए नए डिजाइनों पर आधारित विज्ञापन शृंखला के लिए विचारविमर्श करना चाहती थी.

मोहित नियत समय पर कंपनी औफिस पहुंचा. विज्ञापन कंपनी की डायरैक्टर के औफिस के बाहर नेमप्लेट थी ‘सुमिता मुदगल’ विज्ञापन डायरैक्टर.

मोहित मुसकराया. 2-2 सुमिताओं के बाद तीसरी सुमिता मिल रही थी. उस का कार्ड देखने के बाद बाहर बैठा औफिस बौय उस को तुरंत अंदर ले गया.

औफिस काफी भव्य और सुरुचिपूर्ण था. कीमती लकड़ी की मेज के साथ रिवौल्विंग चेयर पर दमकते चेहरे वाली बौबकट युवती टौप और पैंट पहने बैठी थी.

उस ने उठ कर गर्मजोशी से हाथ मिलाया.

‘‘प्लीज बैठिए, मिस्टर मोहित, आप का सरनेम क्या है?’’

‘‘मेहता, माई नेम इज मोहित मेहता.’’

‘‘आप के बनाए डिजाइन काफी आकर्षक और लीक से हट कर होते हैं.’’

‘‘तारीफ के लिए शुक्रिया.’’

‘‘हमारे पास एक मल्टीनैशनल कंपनी का बड़ा और्डर आया है, आप से इसी सिलसिले में बात करनी है.’’

इस के बाद लंबी बातचीत हुई. अपनी नोटबुक में जरूरी निर्देश नोट कर मोहित चला आया. इस के बाद डिजाइन दिखाने, डिसकस करने का सिलसिला चल पड़ा. कई बार सुमिता मुदगल उस के कार्यस्थल पर भी आई.

मोहित पहले की तरह ही बेतरतीब ढंग से कपड़े पहनता, कभी तो कईकई दिन तक शेव नहीं करता. उस का यही खिलंदड़ापन अब तीसरी सुमिता को भी भा गया. वह भी अब बारबार आने लगी. मोहित भी शाम को उस के साथ घूमने लगा.

इस दौरान पहले वाली सुमिता और व्योमबाला का फोन भी नहीं आया. दोनों उस से नाराज हो गई थीं. मगर दोनों की नाराजगी ज्यादा दिन नहीं रही. दोनों का गुस्सा धीरेधीरे कम हुआ और दोनों यह सोचने लगीं कि क्या मोहित धोखेबाज था?

नहीं ऐसा नहीं था. यह तो एक संयोग ही था कि 2-2 हमनाम लड़कियां उस से टकरा गई थीं या उसे मिल गई थीं. एक ही दिन, एक ही स्थान पर मुलाकात होना संयोग था.

अगर मोहित धोखेबाज होता तो उन्हें एक ही स्थान पर नहीं बुलाता.

पहले कौल सैंटर वाली सुमिता का फोन आया. पहले तो मोहित चौंका, फिर मुसकराया और खिल उठा.

‘‘अरे, इतने दिन बाद आप ने कैसे याद किया?’’

‘‘आप ने भी तो फोन नहीं किया.’’

‘‘मैं ने सोचा आप नाराज हैं.’’

‘‘किस बात से?’’

अब मोहित क्या कहता. उस के बिना कहे भी सुमिता सब समझ गई.

‘‘आज शाम का क्या प्रोग्राम है?’’

‘‘जो आप चाहें.’’

‘‘किसी और के साथ कुछ फिक्स्ड तो नहीं है?’’

इस पर मोहित खिलखिला कर हंस पड़ा.

‘‘उस दिन तो संयोग मात्र ही था.’’

‘‘ओके, फिर सेम जगह और सेम टाइम.’’

अभी फोन रखा ही था कि व्योमबाला का फोन आ गया.

‘‘अरे, स्वीटहार्ट, आज आप ने कैसे याद किया.’’

‘‘आप ने मुझे स्वीटहार्ट कहा, मैं तो सोचती थी कि आप की स्वीटहार्ट तो वह है,’’ व्योमबाला चहकी.

‘‘वह तो है ही, आप भी तो हो.’’

‘‘एकसाथ 2-2 स्वीट्स होने से आप को शुगर की प्रौब्लम हो सकती है.’’

व्योमबाला के इस शिष्ट मजाक पर मोहित खिलखिला कर हंस पड़ा.

‘‘आज का क्या प्रोग्राम है?’’

‘‘पहले से ही फिक्स्ड है.’’

‘‘अरे, मैं तो सोचती थी शायद आज आप की शाम खाली होगी.’’

‘‘उस ने भी उस दिन के बाद आज ही फोन किया है.’’

‘‘क्या बात है, क्या उस से झगड़ा हो गया था?’’

‘‘नहीं वह उस दिन से ही नाराज हो गई और आज उस का गुस्सा कम हुआ तो उस ने फोन किया. आज उसी जगह मिलना है.’’

‘‘ओह, तब तो आप की शामें इतने दिन तक बेरौनक रही होंगी,’’ व्योमबाला के स्वर में तलखी भरी थी.

आगे पढ़ें- मोहित खिलखिला कर हंस पड़ा. वह…

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Serial Story: मंगनी की अंगूठी (भाग-3)

मोहित खिलखिला कर हंस पड़ा. वह बताने लगा कि इस दौरा तीसरी सुमिता से उस की दोस्ती हो गई थी और कोई शाम बेरौनक नहीं रही.

‘‘ओके, आज शाम पहली नंबर की रही मैं फिर फोन करूंगी.’’

रैस्टोरैंट में तनहा कोने वाली मेज पर मोमबत्ती स्टैंड पर लगी मोमबत्तियों का प्रकाश माहौल को बेहद रोमानी बना रहा था.

सुमिता सफेद झालरों और हलके सितारे टंगे सफेद सूट में बहुत दिलकश लग रही थी. मोहित भी मैच करती टीशर्ट और ट्राउजर में था. उस के गले में सोने की मोटी चेन थी. आज वह बेहद स्मार्ट लग रहा था.

आज डांस फ्लोर पर दोनों काफी करीब थे. दोनों चाहेअनचाहे कहीं भी किसी के शरीर को स्पर्श हो जाने पर दूरी बनाए रखने की कोई सावधानी नहीं थी. सुमिता इस बात से निश्चिंत थी कि आज मोहित उस का था और उस की नजरें किसी व्योमबाला या किसी और के लिए नहीं भटक रही थीं.

डांस के बाद हलका ड्रिंक और फिर लजीज खाने का दौर शुरू हुआ. फिर शहर के एक तरफ स्थित पार्क में घूम कर दोनों राजीखुशी विदा हुए. 2-3 दिन बीत गए. मोहित काम में व्यस्त था. तभी मोबाइल की घंटी बजी. स्क्रीन पर नजर डाली तो फोन विज्ञापन कंपनी वाली सुमिता का था.

‘‘अरे, सुमिताजी नमस्ते.’’

‘‘बहुत बिजी रहते हैं आप. जब भी फोन करो स्विच औफ मिलता है. कम से कम शाम को तो फोन औन रखा करो?’’ सुमिता मुदगल के स्वभाव में प्यार भरी शिकायत थी.

अब मोहित क्या कहता. शाम को तो वह बिना काम के ही बिजी रहता है. आखिर 2-2 उस के लिए लालायित थीं, लेकिन अब तो तीसरी भी आ गई थी.

‘‘क्या हुआ? क्या सो गए आप?’’

‘‘नहींनहीं, जरा काम में लगा था.’’

‘‘आज शाम आउटिंग के लिए आ सकते हैं?’’

‘‘नहीं, आज बिजी हूं.’’

‘‘कल?’’‘‘देखेंगे.’’

आज की शाम तो व्योमबाला के साथ थी. व्योमबाला हलके मैरून कलर की साड़ीब्लाउज में अपने गौरवर्ण के कारण बला की हसीन लग रही थी. मोहित भी क्रीम कलर के सफारी सूट में जंच रहा था.

व्योमबाला के साथ डांस अलग अंदाज और हलका जोशीला था. कौल सैंटर वाली सुमिता अगर खिला गुलाब थी, तो व्योमबाला महकता हुआ जूही का फूल थी.

मोमबत्तियों के रोमांटिक प्रकाश में खानापीना हुआ, फिर बोट क्लब पर बोटिंग. दोनों विदा हुए. इस दौरान पहली सुमिता का कोई जिक्र नहीं हुआ. उस के साथ बीती शाम अच्छी थी. यह शाम भी अच्छी रही. तीसरी सुमिता का जिक्र मोहित ने जानबूझ कर नहीं किया.

3 दिन बाद तीसरी सुमिता के साथ डेट थी. संयोग से उसे भी वही रैस्टोरैंट पसंद था. आज मोहित फिर से कैजुअल वियर में था. उस को आभास हो चला था कि तीसरी सुमिता भी पहली सुमिता की तरह उसे बेतरतीब और कैजुअल पहनावे में पसंद करती थी. उसे वह एक चित्रकार, एक कलाकार या दार्शनिक दिखने वाले रूप में ज्यादा पसंद था.

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‘‘आप बैठो, मैं जरा टौयलेट हो आऊं.’’

टौयलेट से बाहर आते ही उस के कानों में 2 व्यक्तियों की बातचीत के अंश पड़े. ‘‘यह लड़का तगड़ा चक्करबाज है, 3-3 हसीनाओं से एकसाथ चक्कर चलाता है.’’

यह जुमला सुन कर मोहित पर जैसे घड़ों पानी पड़ गया. उस ने तब तक कभी इस पहलू पर सोचा भी न था कि उस के बारे में देखने वाले खासकर उस से परिचित या उस को पहचानने वाले क्या सोचते थे.

‘‘आप को क्या हुआ? आप का चेहरा एकदम उतर गया है?’’ उस के चेहरे पर छाई गंभीरता को देख कर सुमिता ने पूछा. ‘‘कुछ नहीं, मैं अकस्मात किसी ग्राफिक्स के बारे में विचार कर रहा था.’’

‘‘अरे, छोड़ो न. हर समय प्रोफैशन के बारे में नहीं सोचना चाहिए. शाम को ऐंजौय करो.’’

वह शाम भी अच्छी गुजरी. मगर अगले दिन मोहित गंभीर था.

अब से उस ने कभी अपने कार्यस्थल पर काम करने वाले स्टाफ के चेहरे के भावों पर गौर नहीं किया था. मगर अब उसे महसूस हो रहा था कि उस की छवि उन की नजरों में पहले जैसी नहीं रही जब से 3-3 सुंदरियों के साथ शाम बिताने का सिलसिला चला था.

अगले 3 दिन में तीनों सुमिताओं का फोन आया. मगर उस ने मोबाइल की स्क्रीन पर नजर डाल कर फोन अटैंड नहीं किया. सभी कौलें मिस्ड कौल्स में दर्ज हो गईं.

एक सप्ताह तक मिस्ड कौल्स का सिलसिला चलता रहा लेकिन वह अपने काम में व्यस्त रहा. आखिर कौल सैंटर वाली सुमिता से रहा न गया और वह उस के औफिस आ गई.

‘‘क्या बात है, फोन अटैंड क्यों नहीं करते?’’

‘‘कुछ काम कर रहा हूं.’’

‘‘आज शाम खाली हो?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘कल?’’

‘‘देखेंगे.’’

उस के स्वर में तटस्थता और उत्साहहीनता को महसूस कर सुमिता चुपचाप चली गई. इस के बाद बारीबारी से व्योमबाला और विज्ञापन कंपनी की डायरैक्टर का आना भी हुआ. मगर मोहित ने उन को भी टाल दिया. उस के ऐसा करने से तीनों देवियों की उत्कंठा और बढ़ी. पहले तो सभी उस के मर्यादित संयमित व्यवहार से प्रभावित थीं अब शाम की डेट टालने से उन की बेकरारी और बढ़ी.

दोनों सुमिताओं ने समझा कि वह उसे नहीं दूसरी को ज्यादा पसंद करता है. मगर तीसरी को पहली दोनों देवियों का पता नहीं था. इसलिए वह असमंजस में थी.

मोहित अब सोच में पड़ गया था किसी चक्करबाज या रसिक के समान 3-3 सुंदरियों के साथ घूमनाफिरना, खानापीना उस के व्यक्तित्व के अनुरूप नहीं था. उसे किसी एक को पसंद कर के उस से विवाह कर लेना चाहिए. वह इस पर विचार करने लगा किसे चुने.

तीनों ही सुंदर थीं, वैल सैटल्ड थीं. अच्छे परिवार से थीं. जातपांत का आजकल कोई मतलब नहीं था.

उस के साथ तीनों जंचती थीं. तीनों का स्वभाव भी उस के अनुरूप था. उधर वे तीनों उस से स्पष्ट बात कर विवाह संबंधी फैसला करना चाहती थीं. पहली 2 इस पसोपेश में थीं कि मोहित की पहली पसंद कौन थी?

इतने दिन तक डेट के लिए मना करने से उन को गलतफहमी होनी ही थी. दोनों चुपचाप बीचबीच में रैस्टोरैंट का चक्कर भी लगा आईं कि शायद मोहित पहली या दूसरी सुमिता के साथ आया हो. मगर वह नहीं दिखा.

कौल सैंटर वाली सुमिता के ‘वेटर’ ने भी पुष्टि की कि वह नहीं आया था. अब उन का विचार यही बना कि वह काम में ज्यादा व्यस्त था.

मोहित को भी स्पष्ट आभास था कि तीनों उस से विवाह करना चाहती हैं मगर वे तीनों ही उस से इस संबंध में पहल करने की अपेक्षा कर रही थीं.

अब उस ने तीनों में से किसी एक को चुनना था और उसे प्रपोज करना था. इस के लिए क्या करे? कैसे किसी एक का चुनाव करे. तीनों ही सुंदर थीं. अच्छे परिवारों से थी. चरित्रवान थीं. किसी के भी व्यवहार में हलकापन नहीं था.

‘‘मिस्टर मोहित, मैं सुमिता मुदगल बोल रही हूं. आज शाम का क्या प्रोग्राम है?’’ विज्ञापन डायरैक्टर का फोन था.

‘‘आज शाम खाली हैं आप. बोट क्लब आ जाएं?’’ काफी दिन से बाहर नहीं निकला. इसलिए मोहित भी शाम को ऐंजौय करना चाहता था.

‘‘बोट क्लब क्यों? रैस्टोरैंट क्यों नहीं?’’

‘‘आज खानेपीने से ज्यादा घूमने की इच्छा है.’’

‘‘ओके.’’

पैडल औपरेटेड बोट झील में हलकेहलके शांत पानी में धीमेधीमे चल रही थी. झील के बीचोंबीच बोट रोक कर दोनों ने एकदूसरे की आंखों में झांका.

‘‘मैं आप से कुछ बात करना चाहती हूं.’’

‘‘किस बारे में,’’ अनजान बनते हुए मोहित बोला.

‘‘आप का विवाह के बारे में क्या खयाल है?

‘‘आप मुझ से विवाह करना चाहती हैं?’’

‘‘जी हां,’’ सुमिता मुदगल ने स्पष्ट कहा.

‘‘अभी हमें मुलाकात किए मात्र 2 महीने हुए हैं इतनी जल्दी फैसला करना ठीक नहीं है.’’

‘‘आप कितना समय चाहते हैं, फैसला करने के लिए?’’

‘‘कुछ कह नहीं सकता.’’

‘‘आप चाहें तो फैसला लेने से पहले एकदूसरे को समझने के लिए ‘लिव इन’ के तौर पर साथसाथ रह सकते हैं. वैसे भी आजकल इसी का चलन है.’’ विज्ञापन डायरैक्टर ने गहरी नजरों से उस की तरफ देखते हुए कहा.

मोहित भी गहरी नजरों से उस की तरफ देखने लगा. विज्ञापन डायरैक्टर अच्छी समझदार थी. उस का सुझाव आजकल के नए दौर के हिसाब से था.

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‘‘मैं सोचूंगा इस बारे में. अब हम थोड़ी देर बोटिंग कर के खाना खाने चलते हैं.’’

सही फैसले तक पहुंचने के लिए मोहित को एक सूत्र मिल गया था. वह यही था कि विवाह के संबंध में तीनों क्या विचार रखती थीं.

अगले रोज उस ने शाम से पहले कौल सैंटर फोन किया.

‘‘अरे, आप ने आज कैसे याद किया,’’ सुमिता ने तनिक हैरानी से कहा.

‘‘इतने दिन व्यस्त रहा. आज काम की थकान शाम को सैर कर के दूर करने का इरादा है.’’

‘‘ओके, फिर सेम प्लेस एट सेम टाइम.’’

‘‘नोनो, रैस्टोरैंट नहीं नैशनल पार्क.’’

‘‘ओके.’’

नैशनल पार्क काफी एरिया में फैला हुआ था. एक आइसक्रीम पार्लर से आइसक्रीम के 2 कप ले दोनों टहलतेटहलते आगे निकल गए. जहांतहां झाडि़यों व पेड़ों के पीछे नौजवान जोड़े रोमांस कर रहे थे. कई बरसात का मौसम न होने पर भी रंगबिरंगे छाते लाए थे और उन को फैला कर उन की ओट में एकदूसरे से लिपटे हुए थे.

इस रोमानी माहौल को देख कर हम दोनों ही सकपका गए. तन्हाई्र पाने के इरादे से दोनों जल्दीजल्दी आगे बढ़ गए. एक तरफ कृत्रिम पहाड़ी बनाई गई थी. दोनों उस पर चढ़ गए. एक बड़े पत्थर पर बैठ कर दोनों ने एकदूसरे की तरफ देखा.

‘‘मैं आप से कुछ बात करना चाहता था.’’

‘‘किस बारे में?’’

‘‘आप का शादी के बारे में क्या विचार है?’’

मोहित के इस सीधे सपाट सवाल पर सुमिता चौंक पड़ी और फिर मुसकराई.

‘‘विवाह जीवन का जरूरी कदम है. एक जरूरी संस्कार है.’’

‘‘और लिव इन रिलेशनशिप?’’

‘‘इस का आजकल फैशन है. यह पश्चिम से आया रिवाज है. वहां इस के दुष्परिणामों के कारण इस का चलन अब घट रहा है.’’

‘‘आप विवाह को अच्छा समझती हैं या लिव इन को?’’

‘मेरा तो लिव इन में बिलकुल भी विश्वास नहीं है.’’

‘‘और अगर विवाह सफल न रहे तो?’’

‘‘ऐसा तो लिव इन में भी हो सकता है.’’

‘‘मगर लिव इन में संबंध विच्छेद आसान होता है.’’

‘‘अगर संबंध विच्छेद का विचार पहले से ही मन में हो तो विवाह नहीं करना चाहिए और न ही लिव इन में रहना चाहिए.’’

सुमिता के इस सुलझे विचार से मोहित उस का कायल हो गया और प्रशंसात्मक नजरों से उस की तरफ देखने लगा. वह शाम भी काफी अच्छी बीती.

2 दिन बाद मोहित ने व्योमबाला को फोन किया. उस के साथ रैस्टोरैंट में मुलाकात तय हुई. व्योमबाला बिंदास और शोख अंदाज में नए फैशन के सलवारसूट में आई. हलके ड्रिंक और डांस के 2-2 दौर चले. खाने का दौर शुरू हुआ.

‘‘मिस वालिया, आप का विवाह के बारे में क्या विचार है,’’ मोहित ने सीधे सवाल दागा.

‘‘मैरिज लाइफ के लिए जरूरी है. सोशल तौर पर भी और फिजिकली भी.’’

‘‘और लिव इन…’’

‘‘वह भी ठीक है. बात तो आपस में निभाने की है. निभ जाए तो विवाह भी ठीक है लिव इन भी ठीक है. न निभे तो दोनों ही व्यर्थ हैं.’’

‘‘आप किस को ठीक समझती हैं?’’

‘‘मैं तो लाइफ को ऐंजौय करना अच्छा समझती हूं. निभ जाए तो ठीक नहीं तो और सही. मगर घुटघुट कर जीना भी क्या जीना,’’ व्योमबाला दुनियाभर में घूमती थी. रोजाना सैकड़ों लोगों से उस की मुलाकात होती थी. उस का नजरिया काफी खुला और बिंदास था. वह शाम भी काफी शोख और खुशगवार रही.

तीनों सुमिताओं की प्रकृति और सोच मोहित के सामने थी. पहली का लिव इन में विश्वास नहीं था.

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दूसरी बिंदास थी, शोख थी, लाइफ ऐंजौय करना उस का मुख्य विचार था. ऐसी औरत या युवती बेहतर जीवनसाथी या बेहतर लिव इन साथी मिलने पर पुराने साथी को छोड़ सकती थी.

तीसरी विज्ञापन डायरैक्टर काफी व्यावहारिक थी. उस का नजरिया विवाह के बारे में भी व्यावसायिक था. पहले लिव इन सफल रहा तो फिर विवाह. नहीं तो आप अपने रास्ते मैं अपने रास्ते. मोहित एक चित्रकार था. कलाकार था. दार्शनिक विचारधारा वाला था. उस को अपना सही जीवन साथी समझ आ गया था.

उस ने कौल सैंटर फोन किया.

‘‘अरे, अभी परसों ही तो मिले थे.’’

‘‘आज मैं ने आप से एक खास बात करनी है.’’

वह तैयार हुआ. कैजुअल वियर की जगह वह शानदार ईवनिंग सूट में था. एक मित्र ज्वैलर्स के यहां से कीमती हीरे की अंगूठी खरीदी और रैस्टोरैंट की पसंदीदा मेज पर बैठ कर अपनी भावी जीवनसंगिनी का इंतजार करने लगा.

Serial Story: मंगनी की अंगूठी (भाग-1)

रैस्टोरैंट के हौल में दाखिल हो कर सुमिता ने इधरउधर देखा. सारी मेजें भरी हुई थीं. वह इस रैस्टोरैंट की रैगुलर कस्टमर थी. स्टाफ उस को पहचानता था. हैडवेटर भी तनिक शर्मिंदा था. वह मन ही मन सोच रहा था, ‘मोटा टिप देने वाली मैडम को आज कोई मेज खाली नहीं मिली.’

‘‘मैडम…’’ आ कर वह सौरी बोलता इस से पहले ही सुमिता ने कहा, ‘‘डोंट माइंड, आज रश है.’’

वह जैसे ही वापस जाने को मुड़ी तभी उस की नजर हौल के तनहा कोने में बैठे एक गंभीर सूरत वाले नौजवान पर पड़ी. खयालों में खोया वह नवयुवक फ्रूट जूस के गिलास से धीरेधीरे चुसकियां ले रहा था.

वह तनहा कोना सुमिता को बहुत पसंद था मगर आज वह भी खाली नहीं था. गोल मेज के इर्दगिर्द सिर्फ 2 ही कुरसियां थीं. एक खाली थी दूसरी पर हलकीहलकी दाढ़ी और आंखों पर नजर का चश्मा लगाए गंभीर सूरत वाला वही नौजवान बैठा था.

कुछ सोच कर सुमिता उस मेज के समीप पहुंची. आगंतुक को देख कर नौजवान तनिक चौंका फिर उस ने सवालिया नजरों से सुमिता को देखा.

‘‘आप के सामने की सीट खाली है, अगर माइंड न करें तो मैं बैठ जाऊं?’’ थोड़े संकोच भरे स्वर में सुमिता ने कहा.

‘‘शौक से बैठिए, आई डोंट माइंड’’, स्थिर स्वर में नौजवान ने कहा.

सुमिता ने कुरसी खिसकाई और उस पर बैठ गई. सामने बैठा नौजवान निर्विकार ढंग से अपने फ्रूट जूस के गिलास से चुसकियां लेता रहा.

सुमिता बहुत सुंदर थी. उस का फिगर काफी सुडौल और आकर्षक था. उस को देखते ही नौजवान और अधेड़ कुत्ते की तरह लार टपकाने और जीभ लपलपाने लगते थे. मगर सामने बैठा नवयुवक उस सौंदर्य से लापरवाह था.

सुमिता एक कौल सैंटर में ऊंचे पद पर काम करती थी, उसे मोटी तनख्वाह मिलती थी. वह सैरसपाटा करने, खानेपीने के लिए कभी अकेली तो कभी किसी सहेली या सहयोगी के साथ इस रैस्टोरैंट में आतीजाती थी. यह रैस्टोरैंट उसे काफी पसंद था.

तभी उस का स्थायी वेटर उस के सामने आ गया.

‘‘मैडम…’’

यह सुनते ही सुमिता ने एक क्षण सामने देखा. सामने बैठा नवयुवक फ्रूट जूस पी कर गिलास मेज पर रख कर मैन्यू पढ़ रहा था.

‘‘माई और्डर इज सेम.’’

सिर हिलाता वेटर लौट गया. थोड़ी देर बाद वेटर उस  पसंदीदा लाइट ड्रिंक और फ्रैंच फ्राइज की प्लेट रख कर चला गया.

उस नवयुवक ने भी अपना और्डर दे दिया. वेटर उस का और्डर भी सर्व कर गया. नवयुवक खातापीता रहा. थोड़ी देर बाद सुमिता का खाने का और्डर भी सर्व हो गया. वेटर उस की पसंद जानता था.

आमनेसामने बैठे खापी रहे दोनों नौजवान युवकयुवती थे. युवती मन ही मन सोच रही थी कि नौजवान उस की तरफ ललचाई नजरों से अवश्य देखेगा, लार टपकाएगा व उस पर लाइन मारने की कोशिश करेगा. मगर एक यंत्रचलित पुतले के समान सामने बैठा नौजवान बिना किसी भाव के खातापीता रहा.

बिल अदा कर सुमिता उठ कर खड़ी हुई लेकिन अभी तक वह नवयुवक खाना खा ही रहा था. ‘अजीब आदमी है, शायद सैडिस्ट है.’ सोचती हुई वह बाहर आ गई.

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थोड़े दिन बाद एक शौपिंग मौल की लिफ्ट में जाते समय उस का सामना फिर से उसी सैडिस्ट से हो गया. पहले की तरह वह अब भी निर्विकार था.

‘‘अरे, वह नौजवान या तो कोई फिलौसफर होगा या फिर इंपोटैंट व्यक्ति.’’ उस की कौल सैंटर की सहयोगी नीरू ने कहा.

‘‘अरे, अगर वह इंपोटैंट हुआ या फिलौसफर तब भी इस के किसी का काम का नहीं है,’’ शालू ने कहा.

‘‘वैसे क्या तेरी उस में दिलचस्पी है,’’ नीरू ने शरारत भरी नजरों से उस की तरफ देखते हुए पूछा.

‘‘अरे, इस के ईगो पर चोट पहुंची है, क्योंकि वह न तो इस के फिगर से इंप्रैस हुआ न ही बातों से. इस को उम्मीद थी कि वह इस को देखते ही ललचाएगा, लार टपकाएगा, मगर उस ने तो इस की तरफ ध्यान से देखा भी नहीं,’’ शालू का तीर निशाने पर लगा.

पहले सुमिता तिलमिलाई फिर खिलखिला कर हंस पड़ी. उस के साथ सभी सहेलियां हंस पड़ीं.

‘‘अगर वह युवक तुझ से इंप्रैस हो जाए और दोस्ती कर ले तब क्या खिलाएगी,’’ मीनाक्षी ने शरारत से कहा.

‘‘इस के पसंदीदा रैस्टोरैंट में लंच करेेंगे,’’ एक सहेली ने कहा.

‘‘लंच का टाइम तो अब भी हो गया है,’’ नीरू की इस बात पर सब सहेलियां अपनाअपना टिफिन खोलने लगीं.

शाम को सब का कार्यक्रम हलके जलपान का बन गया. सब उसी रैस्टोरैंट में पहुंचीं. तभी सुमिता की नजर एक कोने में मेज के करीब बैठे नौजवान पर पड़ी. सभी ने उस की नजर का अनुसरण किया.

‘‘अरे, क्या वही फिलौसफर तो नहीं,’’ नीरू ने कहा.

‘‘वही है.’’

‘‘चलो, हम उस से इंट्रोडक्शन करती हैं.’’

सुमिता पहले तो सकुचाई, लेकिन फिर वह उन के साथ उस नौजवान की मेज के समीप पहुंची.

‘‘हैलो, हैंडसम,’’ सुंदर नवयुवतियों को एकसाथ मेज के पास आ कर खड़े होने और बेबाकी से उस को हैलो, बोलता देख नौजवान सकपकाया.

‘‘हैलो,’’ सुमिता को देख उस की आंखों में पहचान के भाव उभरे मगर वह असमंजस में पड़ा उन को देखता रहा.

‘‘यह आप से पहले भी मिल चुकी है, यह कहती है कि आप शायद कोई फिलौसफर हैं इसलिए हम आप से परिचय करना चाहते हैं,’’ मीनाक्षी ने कहा.

‘‘ओह, श्योर. बैठिए,’’ सामने पड़ी कुरसी की तरफ इशारा करते हुए उस नौजवान ने कहा. सामने एक ही कुरसी थी

3 कुरसियां और लग गईं. ‘‘आप का नाम,’’ उस नौजवान से नीरू ने पूछा.

‘‘मोहित,’’ संक्षिप्त सा जवाब मिला.

‘‘आप क्या करते हैं,’’ दूसरा सवाल मीनाक्षी का था.

‘‘मैं आर्टिस्ट हूं. विज्ञापन कंपनियों के लिए डिजाइन बनाता हूं.’’

‘‘आर्टिस्ट भी फिलौसफर ही होता है,’’ इस टिप्पणी पर सब सहेलियां हंस पड़ीं.

‘‘मेरे मामाजी कहते हैं लेखन, चित्रकला, फिलौसफी सब असामान्य मस्तिष्क के लोगों के काम ही होते हैं,’’ शेफाली की इस बात पर सब सहेलियां फिर हंस पड़ीं. मोहित भी मुसकरा पड़ा.

‘‘अरे, तू भी तो कुछ बोल, असल फिलौसफर तो तू है,’’ नीरू ने सुमिता को कहा.

‘‘मिस्टर, आप का स्टूडियो कहां है?’’ पहली बार सुमिता ने सवाल किया.

इस पर मोहित ने अपने पर्स से एक विजिटिंग कार्ड निकाल कर थमा दिया.

‘‘अब आप हमें कुछ खिलाएंगे या फिर हम आप की खिदमत करें,’’ नीरू ने आंखें मटकाते हुए कहा.

इस पर मोहित हलका सा हंसा और सिर झुकाते हुए बोला, ‘‘फरमाइए, आप की खिदमत में क्या पेश करूं?’’

उस की इस अदा पर सब खिलखिला कर हंस पड़े. फिर सब ने मैन्यू पढ़ कर अपनीअपनी पसंद का और्डर दिया. हलकीफुलकी बातें करतेकरते हंसते हुए खायापिया. अच्छाखासा बिल आया जो मोहित ने मुसकराते हुए अदा किया. फिर अपने कौल सैंटर का पता और सुमिता का मोबाइल नंबर दे कर सब चली आईं.

मोहित अपने स्टूडियो में बैठा सोच रहा था कि वह कंप्यूटर पर ग्राफिक डिजाइन बनाता था. कभी यह काम कागज और ब्रश से होता था. मगर अब सब कंप्यूटर से होता है.

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वह तनहाई पसंद, खुद तक सीमित रहने वाला युवक था. उस का सामाजिक दायरा सीमित था. मूल रूप से वह

एक चित्रकार था. रोजीरोटी के लिए वह  आर्टिस्ट बन विज्ञापन कंपनियों को छोटेछोटे क्रिएटिव डिजाइन, स्कैच बना कर देता था.

30 वर्ष का होने पर भी वह कुंआरा था. कभी आगे बढ़ कर उस ने किसी लड़की से दोस्ती नहीं की थी. अभी तक विवाह न होने का कारण यही था. अपने रिजर्व नेचर की वजह से वह किसी लड़की को पसंद नहीं कर पाता था और न ही कोई लड़की उसे पसंद कर पाती थी.

मगर आज का किस्सा कुछ अजीब सा था. कुछ दिन पहले एक सुंदर सी लड़की उसे रैस्टोरैंट में मिली थी, फिर लिफ्ट में, मगर अपने स्वभाव के कारण वह उस की तरफ ध्यान नहीं दे पाया और चुपचाप बैठा रहा था. अब उस को क्या पता था कि एक दिन उस की यही खुद में सीमित रहने की प्रवृत्ति आकर्षण का कारण बन जाएगी.

सुमिता भी यही सोच रही थी कि दर्जनों पुरुष मित्र होने पर भी उस को कोई प्रभावित नहीं कर पाया था और इस का सब से अहम कारण था कि हर कोई उस पर ललचाई दृष्टि डालता था.

कुछ दिन बाद वह मोहित के स्टूडियो में जा पहुंची. मोहित कंप्यूटर पर ग्राफिक्स बना रहा था. अन्य कंप्यूटरों पर उस के कई सहायक काम कर रहे थे. इन में 3-4 लड़कियां भी थीं.

‘‘अरे, आप… आइएआइए, तशरीफ रखिए,’’सुमिता को देख कर मोहित खिल उठा.

ठंडा पीते हुए सुमिता ने इधरउधर नजर डाली. स्टूडियो में एक तरफ स्टैंड पर कैनवास से बने खाली और अर्धनिर्मित चित्र भी थे.

‘‘क्या कंप्यूटर के जमाने में आप तुलिका और कैनवास पर भी काम करते हैं?’’ उस ने पूछा.

‘‘जो रचनात्मकता ब्रश और कैनवास पर आती है. वह कंप्यूटर के डिजाइन या ग्राफिक्स में नहीं आ सकती.’’

‘‘लेकिन आजकल तो अधिक चलन कंप्यूटर से बनी डिजाइनों का है.’’

‘‘वह तो है, मगर इस तरह बने किसी डिजाइन या तसवीर में वह आत्मा नहीं होती, जो ब्रश से बने चित्र में होती है.’’

मोहित की इस बात को सुन कर सुमिता समझ गई कि मोहित एक चित्रकार के साथसाथ पक्का दार्शनिक भी है. इस के बाद हलकीफुलकी बातें कर सुमिता चली आई.

स्टूडियो में सुमिता का आनाजाना बढ़ गया और अब दोनों शाम को काम समाप्त होने के बाद घूमनेफिरने भी जाने लगे.

सुमिता को उस का सहज, स्वाभाविक स्वभाव और खुद में खोए रहने की प्रवृत्ति पसंद आई. मोहित भी उस से प्रभावित हुआ. वह एक बार उस के कौल सैंटर भी आया मगर वहां का व्यावसायिक और व्यस्त माहौल उस को पंसद नहीं आया.

सुमिता सोचती कि वह मोहित से विवाह संबंधी बात करे या फिर वह ही उस को प्रपोज करेगा.

एक शाम मोहित के पास एक बड़ी विज्ञापन कंपनी का फोन आया.

‘‘मिस्टर मोहित, काैंग्रेचुलेशन.’’

‘‘फौर व्हाट?’’

‘‘पिछले महीने आप के बनाए लैंडस्केप डिजाइन को इंटरनैशनल नैचुरल डिजाइन कौंटैस्ट में पहला अवार्ड मिला है, आप को एक सप्ताह का स्विट्जरलैंड भ्रमण का इनाम मिला है.’’

इस पर मोहित आश्चर्य में पड़ गया.

‘‘मगर मैं तो कभी बाहर घूमने नहीं गया.’’

‘‘कोई बात नहीं, अब हो आइए.’’

‘‘मेरे पास तो पासपोर्ट भी नहीं है.’’

‘‘आजकल पासपोर्ट 3 दिन में बन जाता है.’’

नियत दिन मोहित भ्रमण के लिए हवाईजहाज पर सवार हुआ, उस के साथ अन्य शहरों से आए कई चित्रकार और आर्टिस्ट भी थे. भ्रमण टूर का कांट्रैक्ट एक टूरिज्म कंपनी ने लिया था.

हवाईजहाज उड़ते ही सब को सीट बैल्ट बांधने की हिदायत दी गई. साथ ही लैमन जूस या टौफी चूसने को दी गईं. हवाई सफर लगभग 7 घंटे का था. पहले हलका नाश्ता सर्व हुआ. फिर दोपहर का भोजन मिला.

‘‘मिस्टर, आप वैज लेंगे या नौनवैज,’’ एक खूबसूरत व्योमबाला ने मोहित के समीप आ कर पूछा. किसी खयाल में खोया मोहित एकदम चौंका और बोला, ‘‘मैं दोनों ही खा लेता हूं, जो अच्छा बना है ले आइए.’’

उस के इस जवाब पर आगेपीछे और सामने की कतार में बैठे यात्री हंस पड़े. व्योमबाला भी हंस पड़ी.

‘‘मिस्टर, हवाईजहाज में खाना किचन में नहीं बनता बल्कि बंद पैकेट्स में सप्लाई होता है. आप अगर वैजिटेरियन पैकेट मांगेंगे तो वैजिटेरियन मिलेगा और नौनवैज मांगेंगे तो वही मिलेगा.’’

‘‘ठीक है, नौनवैज ही दे दो.’’

एयरहोस्टैस एक पैकेट और एक खाली प्लेटचम्मच उसे थमा कर आगे बढ़ गई. अगली सीट के पीछे फोल्डिंग टेबल का इंतजाम था. सहयात्री की देखादेखी मोहित ने भी मेज खींच ली और उस पर प्लेट रख कर पैकेट खोला.

फिर आइसक्रीम व कौफी सर्व हुई. व्योमबाला एक ट्रौली में यह सब सर्व कर रही थी. उस का पाला पहली बार हवाईजहाज की यात्रा करने वाले यात्रियों से पड़ता ही रहता था. उसे मोहित जैसे यात्री मिलते ही रहते थे.

जहाज हवाईअड्डे पर उतरा तब तक शाम ढल आई थी जहां से मुख्य शहर काफी दूर था. एक स्टेशन वैगन में अनेक यात्री सवार हुए. व्योमबाला एक एयरबैग थामे आ गई और संयोग से उसे मोहित के बगल में सीट मिली.

‘‘क्या आप स्विट्जरलैंड पहली बार आए हैं?’’ एयरहोस्टैस ने बातचीत शुरू की.

‘‘मैं हवाईजहाज में पहली बार सवार हुआ हूं.’’

‘‘आप यहां क्या करने आए हैं?’’ बेहतरीन दाढ़ी बढ़ाए मस्तमौला नजर आने वाले सुंदर नैननक्श वाले युवक की तरफ गौर से देखते व्योमबाला ने पूछा.

‘‘मैं एक आर्टिस्ट हूं. विज्ञापन कंपनियों के लिए ग्राफिक्स और डिजाइन बनाता हूं. हाल ही में मेरे एक डिजाइन को एक प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार मिला है. इस के लिए एक सप्ताह के लिए स्विट्जरलैंड भ्रमण का इनाम मिला है.’’

व्योमबाला प्रशंसात्मक नजरों से उस की तरफ देखने लगी.

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‘‘आप तो नियमित आती रहती होंगी.’’

‘‘जी हां, हमारा तो प्रोफैशन ही ऐसा है.’’

‘‘यहां कब तक ठहरेंगी?’’

‘‘3 दिन, वापसी के पूरे यात्री मिलने में 3 दिन लग ही जाते हैं.’’

‘‘समय बिताने के लिए आप क्या करती हैं?’’

‘‘यहां समय कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता. सारा स्विट्जरलैंड बहुत खूबसूरत है. बर्फ पर स्कीइंग करते, पहाड़ों पर ऐक्सपिडिशन करते और बड़ी झील में बोट चलाते समय कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता,’’ व्योमबाला ने कहा.

इस तरह हलकीफुलकी बातें होती रहीं. मुख्य शहर बर्न आधे घंटे बाद आया. एक तीनसितारा होटल में ठहरने का इंतजाम था. व्योमबाला और उस के क्रू के अनेक साथी नियमित आतेजाते थे, इसलिए स्टाफ उन्हें पहचानता था.

अगले दिन साइट सीइंग के लिए भ्रमण दल एक टूरिस्ट बस में सवार हुआ. सचमुच सारा स्विट्जरलैंड ही खूबसूरत था. व्योमबाला भी साथ थी.

मोहित और उस की मुलाकात हलकीफुलकी दोस्ती में बदल गई.

‘‘आप का क्या नाम है,’’ रैस्टोरैंट में मैन्यू पढ़ते मोहित ने पूछा.

‘‘सुमिता वालिया, और आप का?’’

‘‘मेरा नाम तो मोहित है,’’ मोहित उस की तरफ अपलक देख रहा था. उस के इस तरह देखने पर सुमिता वालिया तनिक चौंकी और उस ने पूछा, ‘‘आप इस तरह मेरी तरफ क्यों देख रहे हैं?’’

‘‘एक ही महीने में 2-2 लड़कियों से वास्ता पड़ा और संयोग से दोनों का नाम भी सुमिता है.’’

इस पर सुमिता वालिया खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘वह दूसरी सुमिता कौन है,’’ उस ने मोहित से जानना चाहा.

‘‘वह एक कौल सैंटर में काम करती है. एक बार रैस्टोरैंट में मेज खाली नहीं थी तो मेरे समीप ही आ कर बैठी थी. फिर पता नहीं मुझ पर कैसे आकर्षित हो गई थी.’’

‘पता नहीं कैसे आकर्षित हो गई थी,’ कहने पर सुमिता वालिया ने उस की तरफ गौर से देखा. क्या कभी मोहित ने अपने व्यक्तित्व पर गौर नहीं किया.

रैस्टोरैंट का माहौल मोमबत्तियों के मद्धिम प्रकाश में बहुत रोमानी हो गया था. हलकेफुलके ड्रिंक्स के बाद एकदूसरे की पसंद का खाना खाया गया. खाने के बाद टहलने का प्रोग्राम बना. बाहर हलकीहकी बर्फबारी हो रही थी.

‘‘आप भारी गरम कपड़े नहीं लाए.’’ मोहित के हलके पुलओवर की तरफ देखते हुए सुमिता वालिया ने कहा.

‘‘मैं कभी ऐसी जगह आया ही नहीं.’’

‘‘चलिए, मेरे पास ऐक्स्ट्रा ओवर कोट है,’’ सुमिता के साथ मोहित उस के होटल के कमरे में चला गया. ओवरकोट उसे फिट आ गया.

हलकी बर्फबारी में दोनों काफी देर तक इधरउधर घूमते रहे. घूमतेघूमते सुमिता स्वयं को मोहित के गले में बांहें डाले देखने लगी. शहर के एक किनारे पर काफी बड़ी झील थी. जिस की दूसरी सीमा साथ लगते जरमनी को छूती थी.

‘‘कल मुझे वापस जाना है,’’ सुमिता ने कहा.

‘‘मेरा अभी 4 दिन का भ्रमण बाकी है.’’

‘‘कहां घूमोगे?’’

‘‘क्या पता? यह तो भ्रमण टूर का संचालक बताएगा.’’

शायद सुमिता वालिया कहना चाहती थी कि अगर ठहरती तो भ्रमण और भी सुखद रहता मगर वह खामोश रही. अपनाअपना मोबाइल नंबर दे कर दोनों ने विदा ली.

भ्रमण समाप्त कर मोहित भी सप्ताहांत में लौट आया. थोड़ेथोड़े अंतराल पर कौल सैंटर में कार्यरत सुमिता भी आती रही. दोनों पहले की तरह ही शाम को खानेपीने, घूमनेफिरने को निकलते रहे.

एक शाम व्योमबाला सुमिता वालिया का फोन आया. उस ने मोहित को शाम के खाने के लिए आमंत्रित किया. स्थान वही था जहां कौल सैंटर वाली सुमिता मिली थी. यह जान कर मोहित की स्थिति बड़ी खराब हो गई, क्योंकि उसी शाम उस का दूसरी सुमिता के साथ खाने का प्रोग्राम था और स्थान वही था. अब वह क्या करे? कुछ समझ में नहीं आ रहा था.

व्योमबाला को तो कौल सैंटर वाली सुमिता के बारे में बता दिया था मगर व्यस्तता के कारण कौल सैंटर वाली सुमिता को व्योमबाला सुमिता के बारे में नहीं बता पाया था.

‘जो होगा देखा जाएगा,’ इस विचार को ले कर वह वहां जाने के लिए तैयार होने लगा. पहले वह कभी भी शाम को घूमने जाते समय तैयार नहीं होता था मगर जब से उस की दोस्ती सुमिता से हुई और अब व्योमबाला से तब से वह अपने व्यक्तित्व की तरफ ध्यान देने लगा था.

शानदार काले ईवनिंग सूट और मैच करती टाई लगाए कीमती परफ्यूम से महकता मोहित रैस्टोरैंट में पहुंचा. व्योमबाला एक रिजर्व टेबल पर बैठी उस का इंतजार कर रही थी. मोहित को देखते ही चौंक पड़ी. उस का व्यक्तित्व एकदम से बदल गया. कहां तो वह एक बेतरतीब, मस्तमौला सा साधारण कपड़े पहनने वाला नौजवान और अब कहां यह एकदम से अपटूडेट सूटबूटटाई में सजाधजा नौजवान.

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‘‘हैलो,’’ दोनों ने एकदूसरे से हाथ मिलाया.

‘‘बहुत अच्छे लग रहे हो, एकदम शहजादा गुलफाम की तरह,’’ व्योमबाला ने मोहित को देखते हुए कहा.

अपनी तारीफ से कौन खुश नहीं होता, इसलिए मोहित भी यह सुन कर खुश हो गया.

‘‘आप भी तो बला की दिलकश और हसीन नजर आ रही हैं,’’ व्योमबाला हलकी नीले रंग की शिफौन साड़ी पहने हुए थी और उस से मैच करता लो कट ब्लाऊज और मैच करती हलकी ज्वैलरी सचमुच उस के सौंदर्य में चार चांद लगा रही थी.

(क्रमश:)

एहसास : बिंदास आजादी ने श्रेया को कैसे गर्त में पहुंचा दिया

Serial Story: एहसास (भाग-1)

आईने में निहारती, तैयार होती श्रेया से किरण ने पूछा, ‘‘कहां जा रही हो इस समय?’’ श्रेया बड़बड़ाई, ‘‘ओह मौम, आप को बताया तो था कि आज मनजीत की बर्थडे पार्टी है, उसी में जा रही हूं.’’

‘‘मेरी समझ में यह नहीं आता कि तुम लोगों की बर्थडे पार्टी इतनी देर से क्यों शुरू होती है? थोड़ी पहले नहीं हो सकती क्या?’’

मांबेटी की तकरार सुन कर किशोर को लगा कि अगर उन्होंने मध्यस्थता नहीं की, तो बात बिगड़ सकती है. ड्राइंगरूम से उन्होंने कहा, ‘‘किरण, यह तुम लोगों की किटी पार्टी नहीं है, जो दोपहर में होती है. यह तो जवानों की पार्टी है… श्रेया बेबी, तुम जाओ, मम्मी को मैं समझाता हूं.’’

‘‘थैंक्स ए लौट… पापा… बाय सीयू.’’

‘‘बाय ऐंड टेक केयर स्वीटहार्ट… थोड़ीथोड़ी देर में फोन करती रहना.’’

श्रेया ने सैनिकों की तरह सैल्यूट मारते हुए कहा, ‘‘येस सर,’’ और चली गई.

उस के जाते ही किरण की बकबक शुरू हुई, ‘‘श्रेया को आप ने बिलकुल आजाद कर दिया है. मेरी तो यह सुनती ही नहीं है.’’

‘‘किरण, सोचो, यह हमारी संतान है.’’

‘‘वह भी एकलौती… और लाडली भी,’’ पति की बात बीच में काटते हुए किरण बोली.’’

‘‘तुम गुस्से में कुछ भी कहो, लेकिन हमें अपनी संतान पर भरोसा होना चाहिए. श्रेया 21 साल की हो गई है. बच्चों की यह उम्र बड़ी नाजुक होती है. इस उम्र में ज्यादा रोकटोक ठीक नहीं है. कहीं विद्रोह कर के गलत रास्ते पर चली गई तो…’’

‘‘लेकिन यह भी तो सोचो, रात 9 बजे वह पार्टी में जा रही है, वहां न जाने कैसेकैसे लोग आए होंगे.’’

किशोर ने दोनों हाथ हवा में फैलाते हुए कहा, ‘‘किरण, अब श्रेया की चिंता छोड़ कर मेरी चिंता करो. कुछ खानेपीने को मिलेगा कि किचकिच से ही पेट भरना होगा.’’

‘‘जब देखो तब मजाक, बात कितनी भी गंभीर हो, हंस कर उड़ा देते हो.’’ बड़बड़ाते हुए किरण किचन में चली गई.

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श्रेया की तरह ही किशोर भी मांबाप की एकलौती संतान थे. अमेरिका के एक विशाल स्टोर को कौटन की शर्ट्स सप्लाई करने का बढि़या बिजनैस था उन का. नोएडा के इंडस्ट्रियल एरिया में बहुत बड़ी फैक्टरी भी थी, जहां शर्ट्स तैयार होती थीं. नोएडा के ही सैक्टर 15ए जैसे पौश एरिया में उन की विशाल कोठी थी. राज्य के ही नहीं, केंद्र के भी तमाम राजनेताओं और अधिकारियों से उन के अच्छे संबंध थे.

इन्हीं संबंधों की वजह से वे एनजीओ भी चलाते थे. एनजीओ का कामकाज श्रेया संभालती थी. शायद श्रेया के लिए ही उन्होंने एनजीओ का काम शुरू किया था. इस से भी उन्हें मोटी कमाई होती थी, लेकिन पुराने विचारों वाली किरण को श्रेया से हमेशा शिकायत रहती थी. उसे ले कर जब भी पतिपत्नी में बहस होती, किरण बनावटी गुस्सा कर के एक ही बात कहती, ‘‘मेरी तो इस घर में कोई गिनती ही नहीं है.’’

‘‘ऐसी बात नहीं है. इस घर में पहला नंबर तुम्हारा ही है.’’

‘‘ये सब बेकार की बातें हैं,’’ किरण उसी तरह कहती, ‘‘छोड़ो इन बातों को. मैं इतनी भी बेवकूफ नहीं, जितना तुम समझते हो.’’

श्रेया की सहेली थी, मनजीत कौर. दोनों ने एमबीए साथसाथ किया था. एमबीए करने के बाद जहां श्रेया अपने एनजीओ का कामकाज देखने लगी थी, वहीं मनजीत एक मल्टीनैशनल कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर हो गई थी, लेकिन दोनों के संबंध आज भी वैसे ही थे. वे सप्ताह में कम से कम 2-3 बार तो मिल ही लेती थीं, लेकिन रविवार की शाम का खाना निश्चित रूप से दोनों किसी रैस्टोरैंट में साथसाथ खाती थीं.

मनजीत को पार्टियों का बहुत शौक था इसलिए वह अकसर पार्टियों में जाती रहती थी. इस के बाद श्रेया से मिलने पर पार्टियों की चर्चा भी करती थी. कभीकभार श्रेया भी मौका मिलने पर मनजीत के साथ डिस्कोथिक, होटल या रैस्टोरैंट में होने वाली पार्टियों में चली जाती थी. एक दिन मनजीत ने कहा, ‘‘यार श्रेया, इस संडे को एक अलग तरह की पार्टी है. तू कभी इस तरह की पार्टी में गई नहीं है इसलिए मैं चाहती हूं कि तू भी उस पार्टी में मेरे साथ चल.’’

‘‘अलग तरह की पार्टी. उस पार्टी में क्या होता है?’’ श्रेया ने हैरानी से पूछा.

‘‘चल कर खुद ही देख लेना. लौटने में थोड़ी देर हो सकती है, इसलिए घर में कोई बहाना बना देना. बहाना क्या बनाना, बता देना कि मेरी बर्थडे पार्टी है.’’

उसी पार्टी में शामिल होने के लिए मनजीत जब श्रेया को एक फार्महाउस में ले कर पहुंची, तो उसे बहुत हैरानी हुई. श्रेया ने पूछा, ‘‘तू मुझे यहां क्यों ले आई?’’

‘‘यहीं तो वह पार्टी है. इस तरह की पार्टियां ऐसी ही जगहों पर होती हैं, क्योंकि ये एकदम व्यक्तिगत होती हैं. इन पार्टियों में वही लोग आते हैं, जो आमंत्रित होते हैं. अनजान लोगों को अंदर बिलकुल नहीं जाने दिया जाता,’’ मनजीत ने समझाया.

दोनों फार्महाउस की विशाल इमारत के सामने पहुंचीं, तो वहां खड़ा एक युवक आगे बढ़ा और मनजीत से हाथ मिलाते हुए बोला, ‘‘तो यही हैं आप की फ्रैंड श्रेयाजी,’’ इस के बाद वह श्रेया को गहरी नजरों से देखते हुए बोला, ‘‘मैं अमन हूं, आप पहली बार मेरी इस पार्टी में आई हैं, इसलिए आप का विशेष रूप से स्वागत है.’’

कानफोड़ू डीजे म्यूजिक, म्यूजिक की ताल पर थिरकते युवकयुवतियां. पूरा हौल सिगरेट के धुएं से भरा था. मनपसंद दोस्त… सबकुछ तो था यहां. फिर भी श्रेया का मन नहीं लग रहा था. इसलिए उस के मुंह से निकल गया, ‘‘व्हाट ए बोरिंग पार्टी… यहां के जिक में कोई दम नहीं है. यहां तो सब जैसे नशे में हैं.’’

श्रेया की बात का कोई और जवाब देता, उस से पहले वही स्मार्ट युवक, जो गेट पर मिला था, उस के सामने आ कर बोला, ‘‘हाय श्रेया, शायद आप यहां खुश नहीं हैं. आप को न मेरी यह पार्टी अच्छी लग रही है और न ही यह म्यूजिक.’’

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‘‘जी, आप की इस पार्टी में मैं बोर हो रही हूं. म्यूजिक में भी कोई दम नहीं है. क्राउड भी बहुत है. फिर यहां मैं देख रही हूं कि लोग डांस करने के बजाय छेड़छाड़ ज्यादा कर रहे हैं. मुझे यह सब पसंद नहीं है.’’

‘‘दरअसल, मेरा डीजे आज छुट्टी पर है इसलिए इस डीजे को लगाना पड़ा. आप पहली बार इस पार्टी में आई हैं, इसलिए आप को यहां का माहौल रास नहीं आ रहा है. बेसमैंट में मेरा पर्सनल कमरा है. वहां अच्छा म्यूजिक कलैक्शन भी है और एकांत भी. आप वहां चल सकती हैं. वहां हर चीज की व्यवस्था है. खानेपीने की, म्यूजिक की और आराम करने की भी.’’

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Serial Story: एहसास (भाग-2)

अमन की बातें सुन कर श्रेया का दिमाग घूम गया, वह होंठों ही होंठों में बुदबुदाई, ‘‘हूं, अमीर बाप की औलाद, अपनेआप को समझता क्या है? आप का एकांत, म्यूजिक, ड्रिंक और आराम आप को मुबारक.’’

‘‘मिस श्रेया, एक मिनट. आप को मुझ से बात न करनी हो, तो कोई बात नहीं. लेकिन जाने से पहले मेरी एक बात जरूर सुन लीजिए.’’

दोनों हाथ कमर पर रख कर श्रेया बोली, ‘‘बोलो.’’

‘‘मिस श्रेया, मैं ने आप से जो कहा, शायद उस से आप ने मुझे पैसे वाले बाप का बिगड़ा बेटा समझ लिया. आप सोच रही हैं कि यह फार्महाउस मेरे बाप का है और मैं उन के पैसे पर ऐश कर रहा हूं. यही सोच है न आप के दिमाग में मेरे लिए.’’

श्रेया ने कोई जवाब नहीं दिया. वह होंठ चबाते हुए यही सोच रही थी कि इस का कहना सच है. यही धारणा थी उस के मन में उस के प्रति.

श्रेया को चुप देख कर अमन आगे बोला, ‘‘श्रेया, ऐसी बात नहीं है. फौर योर काइंड इन्फौरमैशन, 2 साल पहले मैं लंदन से पढ़ाई पूरी कर के दिल्ली आया हूं. वहां 4 साल पढ़ाई करने के बाद जीतोड़ मेहनत कर के जो कमाया है, कुछ वह रकम और कुछ बैंक से कर्ज ले कर यह फार्महाउस खरीदा है. यह फार्महाउस मैं पार्टियों के लिए किराए पर देता हूं और खुद भी पार्टियां करता हूं. बाप की एक पाई भी इस में नहीं लगी है. आप जैसे ग्राहकों की मेहरबानी से मैं इस फार्महाउस से मोटी कमाई कर रहा हूं. उम्मीद है कि अगले साल तक मैं इस में रैस्टोरैंट और डिस्कोथिक भी शुरू कर दूंगा. इस के अलावा ऐंटरटेनमैंट के बिजनैस में मोटी रकम लगाने का इरादा है. जस्ट विश मी ए लक, आप ने मुझे जो समय दिया, उस के लिए धन्यवाद. चलिए.’’

श्रेया ने हाथ बढ़ा कर अमन को रोका, ‘‘रुकिए, मिस्टर अमन, सौरी. आप को मैं पहचान नहीं पाई, यह मैं स्वीकार करती हूं. ऐक्चुअली आज मेरा मूड ठीक नहीं है. चलिए, आप का म्यूजिक कलैक्शन देखती हूं. मेरा मतलब सुनती हूं.’’

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‘‘थैंक यू, चलिए.’’

अगले दिन सुबह श्रेया की आंख खुली, तो मम्मी झकझोर रही थीं, ‘‘श्रेया…श्रेया… ओ श्रेया…’’

श्रेया दोनों हाथों से सिर दबाते हुए बोली, ‘‘ओह मौम, कितने बजे हैं? मेरा तो सिर फटा जा रहा है…’’

‘‘साढ़े 11 बज रहे हैं और अब भी तेरा सिर फटा जा रहा है? पार्टी में क्या पिया था?’’

‘‘क्या… साढ़े 11…’’ इतना कहतेकहते श्रेया को रात की बातें याद आ गईं. पैप्सी पीतेपीते उसे चक्कर आ गया था. फिर उसे होश नहीं रहा. अच्छा हुआ कि मनजीत ने उसे झकझोर कर जगाया था और घर तक छोड़ गई थी. श्रेया कान पर हाथ रखते हुए बोली, ‘‘ओ मौम, आप तो जानती हैं कि मैं हार्ड ड्रिंक नहीं लेती. आप की कसम मम्मी.’’

श्रेया ने कसम खाई, तो किरण को थोड़ी राहत महसूस हुई. उन्होंने बेटी का हाथ पकड़ कर उठाते हुए कहा, ‘‘चल उठ, जल्दी से नहाधो कर नाश्ता कर ले.’’

अंगड़ाई ले कर आलस्य को झटकते हुए श्रेया पलंग से उठ कर खड़ी हुई. मम्मी के गले में बांहें डाल कर बोली, ‘‘मम्मी, पापा तो चले गए होंगे? उन से थोड़ा काम था.’’

‘‘तो मोबाइल पर बात कर ले,’’ किरण ने कहा, ‘‘रास्ते में होंगे. अभी फैक्टरी नहीं पहुंचे होंगे.’’

बाथरूम का दरवाजा बंद करते हुए श्रेया बोली, ‘‘जाने दीजिए. रात को आएंगे, तो बात कर लूंगी. एक प्रोजैक्ट के बारे में चर्चा करनी थी. खैर, अब तो वह हो नहीं पाएगी.’’

शाम को किशोर लौटे, तो घर का माहौल देख कर ही समझ गए कि स्थिति ठीक नहीं है. ब्रीफकेस मेज पर रख कर सोफे पर पसरते हुए बोले, ‘‘भई, कोई मुझे भी तो बताएगा कि यहां क्या हुआ है?’’

‘‘आप की लाडली कह रही है कि उसे एक प्रोजैक्ट तैयार करना है, जिस में राजस्थान के एक गांव में देहव्यापार करने वाली महिलाओं में होने वाले यौन रोगों के बारे में पता कर के उन के इलाज और उन के पुनर्वास के लिए क्या व्यवस्था की जा सकती है, इस का सर्वे करना है. यह वहां जा कर उन के बीच रह कर उन के बारे में सर्वे करेगी. लड़की के लिए यह कैसा प्रोजैक्ट है?’’

किशोर उठ खड़े हुए, ‘‘रियली, यह बात है. मैं तो मझा श्रेया ने किसी क्रिश्चियन लड़के से प्यार कर लिया है और…’’

‘‘अरे, आप भी कैसे बाप हैं?’’

‘‘देखो किरण, तुम्हें श्रेया की चिंता है न? तुम्हारा सोचना है कि उस गांव में वह अकेली जाएगी. तो सुनो, मुझे तो इस बात की जरा भी चिंता नहीं है. रही बात तुम्हारी चिंता की, तो हम एक काम करते हैं. हम भी इस के साथ चलते हैं. जैसलमेर में मेरा एक दोस्त रहता है. उसी के पड़ोस में एक मकान किराए पर ले लेंगे. तब तो अपनी लाड़ली अकेली नहीं रहेगी. फिर इस के एनजीओ में काम करने वाले लोग भी तो रहेंगे. यह वहां अपना काम करेगी और हम लोग जैसलमेर घूमेंगे. श्रेया, तुम्हें कब जाना है?’’

‘‘प्रोजैक्ट जल्दी ही जमा करना है. आप को जब समय मिले, पहुंचा दीजिए. प्रोजैक्ट जमा होने के बाद ही मंत्रालय से ऐड मिलेगा. मैं इस प्रोजैक्ट को किसी भी हालत में हाथ से नहीं जाने देना चाहती.’’

15 दिन में तैयारी कर के किशोर बेटी श्रेया और पत्नी किरण के साथ जैसलमेर से 60 किलोमीटर दूर रेत के धोरों के बीच बसे एक कसबे में रहने वाले सरपंच के यहां जा पहुंचे. किशोर को देखते ही सरपंच ने कहा, ‘‘आइए…आइए… किशोरजी, कल रात को ही आप लोगों के बारे में साहब का फोन आया था.’’

श्रेया अपने पापा और मम्मी के साथ वहां के एक गांव में देहव्यापार करने वाली महिलाओं के जीवन पर अध्ययन करने आई थी. उसे यहां महीने, डेढ़ महीने रहना था. किशोर के एक मित्र जैसलमेर में डिप्टी कलैक्टर थे. उन्होंने ही शहर से इतनी दूर श्रेया के रहने के लिए सरपंच से कह कर एक मकान की व्यवस्था करवा दी थी. किशोर, श्रेया और किरण को चायनाश्ता कराने के बाद सरपंच ने वहां खड़े एक युवक से कहा, ‘‘बुधिया, यह ले चाबी. साहब को उस मकान पर पहुंचा दे, जहां इन के रहने की सारी व्यवस्था की गई है.’’

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‘‘यह लड़का…’’ किशोर ने पूछा.

‘‘अरे साहब, यह बुधिया है. आप यहां नए हैं. पूरे दिन आप के साथ रहेगा. घर की साफसफाई करेगा, घरबाहर के काम करेगा. पहले यह एक ढाबे पर काम करता था. खाना भी बना लेता है. गरीब घर का लड़का है, जो इच्छा हो, जाते समय दे दीजिएगा,’’ सरपंच ने कहा.

आगे पढ़ें- श्रेया 18-19 साल के उस युवक को देख रही थी. गठा…

Serial Story: एहसास (भाग-3)

श्रेया 18-19 साल के उस युवक को देख रही थी. गठा शरीर, भरीपूरी पानीदार आंखें, बिखरे बाल. शरीर से चिपकी टीशर्ट और हाफ पैंट.

धीरेधीरे सब व्यवस्थित हो गया. अच्छा गांव था. साफ दिल के लोग थे. रोज सवेरे श्रेया और बुधिया निकल पड़ते. किशोर अपनी कार ले गए थे. श्रेया स्वयं गाड़ी चलाती थी, इसलिए उसे कहीं भी आनेजाने में कोई परेशानी नहीं होती थी. देहधंधा करने वाली महिलाओं से श्रेया मिलती, उन से बातें करती, सवाल करती और उन के जवाब वौइस रिकौर्डर में रिकौर्ड कर लेती. शाम को घर आ कर अपने लैपटौप में सब सेव कर लेती. अगले दिन फिर वही काम.

उस शाम श्रेया बाथरूम से निकली, तो उस के युवा शरीर में जवानी की उथलपुथल मची थी. यह भी कैसा इलाका है. वह जिस गांव में सर्वे कर रही थी, वहां के लोग पत्नियों से धंधा कराते हैं, व्यभिचार की कमाई खाते हैं. पैसों के लिए अपनी पत्नी को दूसरे के हवाले करते हैं. न जाने कैसेकैसे लोग उन के पास आते हैं और उन से कितनी ही महिलाओं को कैसेकैसे यौनरोग लग गए हैं.

फिर भी वे धंधा करती हैं. अपनी ये बीमारियां न जाने कितने लोगों को बांट रही हैं. इस के अलावा भी गांवों में ऐंटरटेनमैंट के नाम पर पत्नी से व्यभिचार, एक से अधिक लोगों से संबंध, पत्नी को पत्नी न समझ कर उस का हर तरह से शोषण, ऐसीऐसी बातें श्रेया को जानने को मिलतीं, जिन से उस का  रोमरोम सिहर उठा था.

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श्रेया समय से प्रोजैक्ट पूरा कर के नोएडा वापस आ गई. उस ने प्रोजैक्ट तैयार कर के जमा भी कर दिया. काम पूरा होने के कुछ दिन बाद एक दिन किरण ने पति से कहा, ‘‘अपनी श्रेया को पता नहीं क्या हो गया है? जैसलमेर से लौटने के बाद वह चुपचुप रहती है.’’

‘‘वह ज्यादा बोलती है, तब भी तुम्हें परेशानी होती है. अब चुप है, तो भी तुम्हें परेशानी हो रही है,’’ किशोर ने हंसी में कहा.

‘‘बच्चे जैसे रहते हैं, उसी तरह रहें, तो अच्छे लगते हैं. मैं बड़बड़ाती हूं, तो इस का मतलब यह नहीं कि वह अपना स्वभाव ही बदल ले,’’ थोड़ा परेशान हो कर किरण ने कहा.

‘‘सयानी लड़की है. हर चीज मैं नहीं पूछ सकता. मां लड़कियों की सहेली जैसी होती है. अब तुम्हीं पता करो कि चुप्पी की वजह क्या हो सकती है?’’

इस के बाद किरण ने श्रेया से चुप्पी की वजह पूछी, तो उस ने जो बताया, सुन कर वह सन्न रह गईं. उसी शाम श्रेया को एम्स के रिटायर्ड स्किन स्पैशलिस्ट डा. स्वजन को दिखाया गया. डा. स्वजन ने श्रेया की गहन जांच की. उस के बाद उन्होंने उसे किरण के साथ बाहर भेज कर किशोर को अंदर बुला लिया और बड़ी गंभीरता से बोले, ‘‘आप की बेटी का किसी ऐसे आदमी से संबंध है, जो खतरनाक यौनरोग का शिकार है. यह यौनरोग उन्हीं मर्दों को होता है, जो अकसर बाजारू औरतों के पास जाते हैं. यह रोग उन्मुक्त सैक्स करने वालों को होता है, यह ऐसा रोग है, जो जीवन भर पीछा नहीं छोड़ेगा. जब तक दवा चलती रहेगी, ठीक रहेगा. दवा बंद होने के कुछ दिन बाद फिर उभर आएगा.’’

किशोर क्या कहते, उन का सिर शर्म से झुक गया. उन्होंने श्रेया को जो छूट दी थी, उस ने उस का गलत फायदा उठाया था. उन्हें बेटी पर बहुत विश्वास था, लेकिन उस ने उन के विश्वास को तोड़ दिया था. अब उन्हें पश्चात्ताप हो रहा था कि उन्होंने पत्नी की बात मानी होती, तो आज बेटी की जिंदगी बरबाद न होती. बेटी तो नासमझ थी, वे तो समझदार थे. अगर अपनी समझदारी दिखाते हुए बेटी पर अंकुश लगाए रहते, तो आज यह दिन देखने को न मिलता. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहें, इसलिए डाक्टर जो कहते रहे, सिर झुकाए सुनते रहे.

डाक्टर ने आगे कहा, ‘‘इस के लिए बच्चे ही नहीं, मांबाप भी उतने ही दोषी हैं. मांबाप के पास बच्चों के लिए समय ही नहीं होता और जिन के पास समय होता है, वे अपने बच्चों को आधुनिक बनाने के चक्कर में बिगाड़ देते हैं. बच्चे देर रात तक पार्टियां करते हैं, डिस्कोथिक जाते हैं, उन्हें रोकते ही नहीं. इस तरह की जगहों पर जाने वाले बच्चे ही ऐसे रोग लाते हैं. वहां नशा करने के बाद वे किस से मिलते हैं, क्या करते हैं, उन्हें होश ही नहीं रहता. उस के बाद जिंदगी बरबाद हो जाती है. आप की बेटी को एड्स भी हो सकता था. अब आप इस बात का ध्यान रखें कि आगे वह उस आदमी से न ही मिले, तो अच्छा रहेगा वरना दवा भी फायदा नहीं करेगी.’’

डाक्टर की बातें सुन कर किशोर को श्रेया पर गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन इस के लिए वे खुद को भी दोषी मान रहे थे. उन्होंने ही उसे आजादी दे रखी थी. उन्होंने सोचा, अगर इन सब बातों की जानकारी किरण को हो गई, तो वह बेटी का ही नहीं, उन का भी जीना हराम कर देगी. वे डाक्टर के कैबिन से बाहर आए, तो किरण ने उन्हें सवालिया नजरों से घूरा. श्रेया की नजरों में भी सचाई जानने की उत्सुकता थी. जब किशोर कुछ नहीं बोले, तो श्रेया ने पूछ ही लिया, ‘‘पापा, डाक्टर ने आप को अकेले में क्यों बुलाया था, कोई गंभीर बात है क्या?’’

‘‘नहीं, कोई गंभीर बात नहीं है. डाक्टर ने ऐसे ही बातचीत के लिए बुलाया था. चलो, घर चलते हैं,’’ कह कर किशोर आगे बढ़ गए, तो पीछेपीछे श्रेया और किरण भी चल पड़ीं. घर आ कर वे ड्राइंगरूम में सोफे पर बैठ गए. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि श्रेया को वे उस की बीमारी के बारे में कैसे बताएं, जिस से वह स्वयं को उस आदमी से मिलने से रोक सके. वे सामने बैठी श्रेया को एकटक ताक रहे थे. श्रेया को पापा की नजर बदलीबदली सी लगी. इस तरह उन्होंने उसे पहले कभी नहीं देखा था. श्रेया से रहा नहीं गया, तो उस ने कहा, ‘‘क्या बात है पापा, डाक्टर ने क्या कहा, मुझे क्या हुआ है?’’

किशोर ने पलभर में निर्णय ले लिया. उन्हें लगा कि सचाई छिपाने का कोई फायदा नहीं है. बेटी को बचाने के लिए उन्होंने शर्मसंकोच त्याग कर कहा, ‘‘बेटा, केयरफुली, डाक्टर के कहने के अनुसार तुम्हें खतरनाक यौन रोग हुआ है. यह बीमारी तुम्हें किसी ऐसे आदमी से मिली है, जिसे यह बीमारी पहले से रही होगी.’’

श्रेया बच्ची नहीं थी, उस की समझ में आ गया कि पापा क्या कह रहे हैं. पापा की बातें सुनते ही उसे कमरा गोलगोल घूमता हुआ लगा. बड़ी मुश्किल से उन के मुंह से निकला, ‘‘व्हाट…आप? हैव यू गोन मैड. नो…नो… दिस इज नौट पौसिबल.’’

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‘‘श्रेया प्लीज. जस्ट टैल मी कि तुम्हारा किस आदमी से संबंध है. बेटा, अब उस से बिलकुल संबंध मत रखना. डाक्टर ने कहा है कि अगर उस आदमी से संबंध खत्म नहीं किए, तो यह बीमारी कभी ठीक नहीं होगी.’’

पापा की बात सुन कर श्रेया को झटका सा लगा. उस की समझ में यह नहीं आया कि आज तक उस ने ऐसा कुछ किया ही नहीं, तो फिर डाक्टर या पापा उस से ऐसी बातें क्यों कर रहे हैं. राजस्थान में वह ऐसी औरतों से मिली जरूर है, जिन्हें इस तरह की बीमारी थी, तो क्या मिलने भर से उसे इस बीमारी ने पकड़ लिया, लेकिन ये लोग संबंध बनाने की बात कर रहे हैं जबकि आज तक उस ने किसी पुरुष से संबंध बनाया ही नहीं है.

श्रेया उठी और पापा के सीने पर सिर रख कर फफक पड़ी. किशोर बिना कुछ बोले उस की पीठ सहलाने लगे. उन्होंने श्रेया को रोने दिया, जिस से उस का मन हलका हो जाए, रो लेने के बाद श्रेया ने किशोर से सीने पर सिर रखेरखे ही कहा, ‘‘पापा, आप सोच रहे होंगे कि नासमझी में बच्चों से गलतियां हो जाती हैं, लेकिन मैं ने इस तरह की कोई गलती नहीं की है.’’

‘‘कोई बात नहीं बेटा, जो हो गया, सो हो गया. तुम्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. हम तुम्हारे साथ हैं. जरूरत पड़ी, तो हम तुम्हारा इलाज विदेश तक में कराएंगे. ठीक है, तुम आराम करो. इस सब के बारे में अभी अपनी मम्मी को कुछ मत बताना, वे बेकार में परेशान होंगी,’’ कह कर किशोर बगल में रखे फोन से किसी को फोन करने लगे.

श्रेया सोच में डूब गई. तभी उसे 8-9 महीने पहले की फार्महाउस की वह पार्टी याद आ गई. फार्महाउस के स्मार्ट मालिक अमन की बातों से प्रभावित हो कर श्रेया बेसमैंट में स्थित उस के कमरे में चली गई थी. बहुत अच्छा कमरा था. सोफासैट, छोटा सा बार और कुछ बार स्टूल, अमन ने कहा, ‘‘बोलिए, क्या लेंगी श्रेयाजी? व्हाइट वाइन या रैडवाइन? हाऊ अबाउट चिल्ड बीयर?’’

‘‘सौरी, नो हार्ड ड्रिंक फौर मी. जस्ट गिव मि ए ग्लास औफ पैप्सी, अगर हो, तो… न हो तो पीने के लिए पानी ही दे दीजिए.’’

‘‘औफकोर्स पैप्सी है. आप सामने की रैक से अपने मनपसंद गाने की सीडी सलैक्ट कीजिए, तब तक मैं पैप्सी ले आता हूं,’’ कह कर अमन बार की ओर चला गया, तो श्रेया सीडी देखने लगी. थोड़ी देर बाद अमन श्रेया के पास आ कर बोला, ‘‘श्रेया, यह लो पैप्सी. भई, मुझे तो कोक पसंद है, हम दोनों की ड्रिंक भले ही सौफ्ट है, लेकिन मुझे उम्मीद है कि हमारी फ्रैंडशिप हार्ड होगी… चीयर्स.’’

श्रेया ने मुसकराते हुए अपना गिलास धीरे से अमन के गिलास से टकराया और पैप्सी की चुसकी लेने लगी. थोड़ी देर बाद श्रेया का सिर चकराने लगा. क्या हुआ, वह सोच पाती, उस के पहले ही अमन ने उसे बांहों में भर लिया था. ‘ओह नो…’ अब उस की समझ में आया कि सादी पैप्सी पीने के बावजूद अगले दिन वह क्यों सुस्त थी. उस का शरीर क्यों टूट रहा था. उस के मुंह से चीख निकल गई, ‘‘यू रास्कल, आई विल किल यू.’’

श्रेया की चीख सुन कर फोन पर बातें कर रहे किशोर फोन छोड़ कर बोले, ‘‘क्या हुआ बेटा?’’

‘‘कुछ नहीं पापा, डाक्टर सच कह रहे हैं. मेरे साथ धोखा हुआ है. मगर…’’

श्रेया की बात काटते हुए किशोर बोले, ‘‘जो हुआ बेटा जाने दो. मैं ने कहा न कि मैं तुम्हारा इलाज विदेश में कराऊंगा. जब मैं तुम्हारे साथ हूं, तो तुम्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है.’’

श्रेया एक बार फिर पापा के सीने से लग कर सिसकते हुए बोली, ‘‘थैंक्यू पापा. मुझे भी अपनी गलती का एहसास हो गया है लेकिन हमें उस आदमी की शिकायत पुलिस में करनी चाहिए. अन्यथा वह मेरी जैसी न जाने कितनी युवतियों की जिंदगी बरबाद करता रहेगा.’’

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किशोर फटी आंखों से बेटी को देखते रहे. उस के चेहरे पर दृढ़ता देख कर सिर पर हाथ फेरते हुए बोले, ‘‘ठीक है बेटी, हम इस की भी व्यवस्था करते हैं. अभी कमिश्नर साहब से बात कर के सारी बात बताते हैं.’’

पिता की बातें सुन कर श्रेया एक बार फिर से फफक पड़ी.

Serial Story: सूना आसमान (भाग-3)

पूर्व कथा :

अमिता और अनुज दोनों बाल्यकाल से दोस्त होते हैं और धीरेधीरे उन की दोस्ती परवान चढ़ती है, लेकिन बाद में दोनों का अलगअलग स्कूल में ऐडमिशन हो जाता है और उन का मिलनाजुलना कम हो जाता है. क्या अनुज अमिता को अपनी हमसफर बना पाया.

आगे पढ़िए…

मैं अमिता के घर कभी नहीं गया था, लेकिन बहुत सोचविचार कर एक दिन मैं उस के घर पहुंच ही गया. दरवाजे की कुंडी खटखटाते ही मेरे मन को एक अनजाने भय ने घेर लिया. इस के बावजूद मैं वहां से नहीं हटा. कुछ देर बाद दरवाजा खुला तो अमिता की मां सामने खड़ी थीं. वे मुझे देख कर हैरान रह गईं. अचानक उन के मुंह से कोई शब्द नहीं निकला. मैं ने अपने दिल की धड़कन को संभालते हुए उन्हें नमस्ते किया और कहा, ‘‘क्या मैं अंदर आ जाऊं?’’

‘‘आं… हांहां,’’ जैसे उन्हें होश आया हो, ‘‘आ जाओ, अंदर आ जाओ,’’ अंदर घुस कर मैं ने चारों तरफ नजर डाली. साधारण घर था, जैसा कि आम मध्यवर्गीय परिवार का होता है. आंगन के बीच खड़े हो कर मैं ने अमिता के घर को देखा, बड़ा खालीखाली और वीरान सा लग रहा था. मैं ने एक गहरी सांस ली और प्रश्नवाचक भाव से अमिता की मां को देखा, ‘‘सब लोग कहीं गए हुए हैं क्या,’’ मैं ने पूछा.

अमिता की मां की समझ में अभी तक नहीं आ रहा था कि वह क्या जवाब दें. मेरा प्रश्न सुन कर वे बोलीं, ‘‘हां, बस अमिता है, अपने कमरे में. अच्छा, तुम बैठो. मैं उसे बुलाती हूं,’’ उन्होंने हड़बड़ी में बरामदे में रखे तख्त की तरफ इशारा किया. तख्त पर पुराना गद्दा बिछा हुआ था, शायद रात को उस पर कोई सोता होगा. मैं ने मना करते हुए कहा, ‘‘नहीं, रहने दो. मैं उस के कमरे में ही जा कर मिल लेता हूं. कौन सा कमरा है?’’

अब तक शायद हमारी बातचीत की आवाज अमिता के कानों तक पहुंच चुकी थी. वह उलझी हुई सी अपने कमरे से बाहर निकली और फटीफटी आंखों से मुझे देखने लगी. वह इतनी हैरान थी कि नमस्कार करना तक भूल गई. मांबेटी की हैरानगी से मेरे दिल को थोड़ा सुकून पहुंचा और अब तक मैं ने अपने धड़कते दिल को संभाल लिया था. मैं मुसकराने लगा, तो अमिता ने शरमा कर अपना सिर झुका लिया, बोली कुछ नहीं. मैं ने देखा, उस के बाल उलझे हुए थे, सलवारकुरते में सिलवटें पड़ी हुई थीं. आंखें उनींदी सी थीं, जैसे उसे कई रातों से नींद न आई हो. वह अपने प्रति लापरवाह सी दिख रही थी.

‘‘बैठो, बेटा. मेरी तो समझ में नहीं आ रहा कि क्या करूं? तुम पहली बार मेरे घर आए हो,’’ अमिता की मां ऐसे कह रही थीं, जैसे कोई बड़ा आदमी उन के घर पर पधारा हो.

मैं कुछ नहीं बोला और मुसकराता रहा. अमिता ने एक बार फिर अपनी नजरें उठा कर गहरी निगाह से मुझे देखा. उस की आंखों में एक प्रश्न डोल रहा था. मैं तुरंत उस का जवाब नहीं दे सकता था. उस की मां के सामने खुल कर बात भी नहीं कर सकता था. मैं चुप रहा तो शायद वह मेरे मन की बात समझ गई और धीरे से बोली, ‘‘आओ, मेरे कमरे में चलते हैं. मां, आप तब तक चाय बना लो,’’ अंतिम वाक्य उस ने अपनी मां से कुछ जोर से कहा था.

हम दोनों उस के कमरे में आ गए. उस ने मुझे अपने बिस्तर पर बैठा दिया, पर खुद खड़ी रही. मैं ने उस से बैठने के लिए कहा तो उस ने कहा, ‘‘नहीं, मैं ऐसे ही ठीक हूं,’’ मैं ने उस के कमरे में एक नजर डाली. पढ़ने की मेजकुरसी के अलावा एक साधारण बिस्तर था, एक पुरानी स्टील की अलमारी और एक तरफ हैंगर में उस के कपड़े टंगे थे. कमरा साफसुथरा था और मेज पर किताबों का ढेर लगा हुआ था, जैसे अभी भी वह किसी परीक्षा की तैयारी कर रही थी. छत पर एक पंखा हूम्हूम् करता हुआ हमारे विचारों की तरह घूम रहा था.

मैं ने एक गहरी सांस ली और अमिता को लगभग घूर कर देखता हुआ बोला, ‘‘क्या तुम मुझ से नाराज हो?’’ मैं बहुत तेजी से बोल रहा था. मेरे पास समय कम था, क्योंकि किसी भी क्षण उस की मां कमरे में आ सकती थीं और मुझे काफी सारे सवालों के जवाब अमिता से चाहिए थे.

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वह कुछ नहीं बोली, बस सिर नीचा किए खड़ी रही. मैं ने महसूस किया, उस के होंठ हिल रहे थे, जैसे कुछ कहने के लिए बेताब हों, लेकिन भावातिरेक में शब्द मुंह से बाहर नहीं निकल पा रहे थे. मैं ने उस का उत्साह बढ़ाते हुए कहा, ‘‘देखो, अमिता, मेरे पास समय कम है और तुम्हारे पास भी… मां घर पर हैं और हम खुल कर बात भी नहीं कर सकते, जो मैं पूछ रहा हूं, जल्दी से उस का जवाब दो, वरना बाद में हम दोनों ही पछताते रह जाएंगे. बताओ, क्या तुम मुझ से नाराज हो?’’

‘‘नहीं, उस ने कहा, लेकिन उस की आवाज रोती हुई सी लगी.’’

‘‘तो, तुम मुझे प्यार करती हो? मैं ने स्पष्ट करना चाहा. कहते हुए मेरी आवाज लरज गई और दिल जोरों से धड़कने लग गया. लेकिन अमिता ने मेरे प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दिया, शायद उस के पास शब्द नहीं थे. बस, उस का बदन कांप कर रह गया. मैं समझ गया.’’

‘‘तो फिर तुम ने हठ क्यों किया? अपना मान तोड़ कर एक बार मेरे पास आ जाती, मैं कोई अमानुष तो नहीं हूं. तुम थोड़ा झुकती, तो क्या मैं पिघल नहीं जाता?’’

वह फिर एक बार कांप कर रह गई. मैं ने जल्दी से कहा, ‘‘मेरी तरफ नहीं देखोगी?’’ उस ने तड़प कर अपना चेहरा उठाया. उस की आंखें भीगी हुई थीं और उन में एक विवशता झलक रही थी. यह कैसी विवशता थी, जो वह बयान नहीं कर सकती थी? मुझे उस के ऊपर दया आई और सोचा कि उठ कर उसे अपने अंक में समेट लूं, लेकिन संकोचवश बैठा रहा.

उस की मां एक गिलास में पानी ले कर आ गई थीं. मुझे पानी नहीं पीना था, फिर भी औपचारिकतावश मैं ने गिलास हाथ में ले लिया और एक घूंट भर कर गिलास फिर से ट्रे में रख दिया. मां भी वहीं सामने बैठ गईं और इधरउधर की बातें करने लगीं. मुझे उन की बातों में कोई रुचि नहीं थी, लेकिन उन के सामने मैं अमिता से कुछ पूछ भी नहीं सकता था.

उस की मां वहां से नहीं हटीं और मैं अमिता से आगे कुछ नहीं पूछ सका. मैं कितनी देर तक वहां बैठ सकता था, आखिर मजबूरन उठना पड़ा, ‘‘अच्छा चाची, अब मैं चलता हूं.’’

‘‘अच्छा बेटा,’’ वे अभी तक नहीं समझ पाई थीं कि मैं उन के घर क्यों आया था. उन्होंने भी नहीं पूछा. इंतजार करूंगा, कह कर मैं ने एक गहरी मुसकान उस के चेहरे पर डाली. उस की आंखों में विश्वास और अविश्वास की मिलीजुली तसवीर उभर कर मिट गई. क्या उसे मेरी बात पर यकीन होगा? अगर हां, तो वह मुझ से मिलने अवश्य आएगी.

पर वह मेरे घर फिर भी नहीं आई. मेरे दिल को गहरी ठेस पहुंची. क्या मैं ने अमिता के दिल को इतनी गहरी चोट पहुंचाई थी कि वह उसे अभी तक भुला नहीं पाई थी. वह मुझ से मिलती तो मैं माफी मांग लेता, उसे अपने अंक में समेट लेता और अपने सच्चे प्यार का उसे एहसास कराता. लेकिन वह नहीं आई, तो मेरा दिल भी टूट गया. वह अगर स्वाभिमानी है, तो क्या मैं अपने आत्मसम्मान का त्याग कर देता?

हम दोनों ही अपनेअपने हठ पर अड़े रहे. समय बिना किसी अवरोध के अपनी गति से आगे बढ़ता रहा. इस बीच मेरी नौकरी एक प्राइवेट कंपनी में लग गई और मैं अमिता को मिले बिना चंडीगढ़ चला गया. निधि को भी जौब मिल  गया, अब वह नोएडा में नौकरी कर रही थी.

इस दौरान मेरी दोनों बहनों का भी ब्याह हो गया और वे अपनीअपनी ससुराल चली गईं. जौब मिल जाने के बाद मेरे लिए भी रिश्ते आने लगे थे, लेकिन मम्मी और पापा ने सबकुछ मेरे ऊपर छोड़ दिया था.

निधि की मेरे प्रति दीवानगी दिनबदिन बढ़ती जा रही थी, मैं उस के प्रति समर्पित नहीं था और न उस से मिलनेजुलने के लिए इच्छुक, लेकिन निधि मकड़ी की तरह मुझे अपने जाल में फंसाती जा रही थी. वह छुट्टियों में अपने घर न जा कर मेरे पास चंडीगढ़ आ जाती और हम दोनों साथसाथ कई दिन गुजारते.

मैं निधि के चेहरे में अमिता की छवि को देखते हुए उसे प्यार करता रहा, पर मैं इतना हठी निकला कि एक बार भी मैं ने अमिता की खबर नहीं ली. पुरुष का अहम मेरे आड़े आ गया. जब अमिता को ही मेरे बारे में पता करने की फुरसत नहीं है, तो मैं उस के पीछे क्यों भागता फिरूं?

अंतत: निधि की दीवानगी ने मुझे जीत लिया. उधर मम्मीपापा भी शादी के लिए दबाव डाल रहे थे. इसलिए जौब मिलने के सालभर बाद हम दोनों ने शादी कर ली.

निधि के साथ मैं दक्षिण भारत के शहरों में हनीमून मनाने चला गया. लगभग 15 दिन बिता कर हम दोनों अपने घर लौटे. हमारी छुट्टी अभी 15 दिन बाकी थी, अत: हम दोनों रोज बाहर घूमनेफिरने जाते, शाम को किसी होटल में खाना खाते और देर रात गए घर लौटते. कभीकभी निधि के मायके चले जाते. इसी तरह मस्ती में दिन बीत रहे थे कि एक दिन मुझे तगड़ा झटका लगा.

अमिता की मां मेरे घर आईं और रोतेरोते बता रही थीं कि अमिता के पापा ने उस के लिए एक रिश्ता ढूंढ़ा था. बहुत अच्छा लड़का था, सरकारी नौकरी में था और घरपरिवार भी अच्छा था. सभी को यह रिश्ता बहुत पसंद था, लेकिन अमिता ने शादी करने से इनकार कर दिया था. घर वाले बहुत परेशान और दुखी थे, अमिता किसी भी तरह शादी के लिए मान नहीं रही थी.

‘‘शादी से इनकार करने का कोई कारण बताया उस ने,’’ मेरी मां अमिता की मम्मी से पूछ रही थीं.

‘‘नहीं, बस इतना कहती है कि शादी नहीं करेगी और पहाड़ों पर जा कर किसी स्कूल में पढ़ाने का काम करेगी.’’

‘‘इतनी छोटी उम्र में उसे ऐसा क्या वैराग्य हो गया,’’ मेरी मां की समझ में भी कुछ नहीं आ रहा था. पर मैं जानता था कि अमिता ने यह कदम क्यों उठाया था? उसे मेरा इंतजार था, लेकिन मैं ने हठ में आ कर निधि से शादी कर ली थी. मैं दोबारा अमिता के पास जा कर उस से माफी मांग लेता, तो संभवत: वह मान जाती और मेरा प्यार स्वीकार कर लेती. हम दोनों ही अपनी जिद्द और अहंकार के कारण एकदूसरे से दूर हो गए थे. मुझे लगा, अमिता ने किसी और के साथ नहीं बल्कि मेरे साथ अपना रिश्ता तोड़ा है.

मेरी शादी हो गई थी और मुझे अब अमिता से कोई सरोकार नहीं रखना चाहिए था, पर मेरा दिल उस के लिए बेचैन था. मैं उस से मिलना चाहता था, अत: मैं ने अपना हठ तोड़ा और एक बार फिर अमिता से मिलने उस के घर पहुंच गया. मैं ने उस की मां से निसंकोच कहा कि मैं उस से एकांत में बात करना चाहता हूं और इस बीच वे कमरे में न आएं.

मैं बैठा था और वह मेरे सामने खड़ी थी. उस का सुंदर मुखड़ा मुरझा कर सूखी, सफेद जमीन सा हो गया था. उस की आंखें सिकुड़ गई थीं और चेहरे की कांति को ग्रहण लग गया था. उस की सुंदर केशराशि उलझी हुई ऊन की तरह हो गई थी. मैं ने सीधे उस से कहा, ‘‘क्यों अपने को दुख दे रही हो?’’

‘‘मैं खुश हूं,’’ उस ने सपाट स्वर में कहा.

‘‘शादी के लिए क्यों मना कर दिया?’’

‘‘यही मेरा प्रारब्ध है,’’ उस ने बिना कुछ सोचे तुरंत जवाब दिया.

‘‘यह तुम्हारा प्रारब्ध नहीं था. मेरी बात को इतना गहरे अपने दिल में क्यों उतार लिया? मैं तो तुम्हारे पास आया था, फिर तुम मेरे पास क्यों नहीं आई? आ जाती तो आज तुम मेरी पत्नी होती.’’

‘‘शायद आ जाती,’’ उस ने निसंकोच भाव से कहा, ‘‘लेकिन रात को मैं ने इस बात पर विचार किया कि आप मेरे पास क्यों आए थे. कारण मेरी समझ में आ गया था. आप मुझ से प्यार नहीं करते थे, बस तरस खा कर मेरे पास आए थे और मेरे घावों पर मरहम लगाना चाहते थे.

‘‘मैं आप का सच्चा प्यार चाहती थी, तरस भरा प्यार नहीं. मैं इतनी कमजोर नहीं हूं कि किसी के सामने प्यार के लिए आंचल फैला कर भीख मांगती. उस प्यार की क्या कीमत, जिस की आग किसी के सीने में न जले.’’

‘‘क्या यह तुम्हारा अहंकार नहीं है?’’ उस की बात सुन कर मुझे थोड़ा गुस्सा आ गया था.

‘‘हो सकता है, पर मुझे इसी अहंकार के साथ जीने दीजिए. मैं अब भी आप को प्यार करती हूं और जीवनभर करती रहूंगी. मैं अपने प्यार को स्वीकार करने के लिए ही उस दिन आप के पास मिठाई देने के बहाने गई थी, लेकिन आप ने बिना कुछ सोचेसमझे मुझे ठुकरा दिया. मैं जानती थी कि आप दूसरी लड़कियों के साथ घूमतेफिरते हैं, शायद उन में से किसी को प्यार भी करते हों. इस के बावजूद मैं आप को मन ही मन प्यार करने लगी थी. सोचती थी, एक दिन मैं आप को अपना बना ही लूंगी. मैं ने आप का प्यार चाहा था, लेकिन मेरी इच्छा पूरी नहीं हुई. फिर भी अगर आप का प्यार मेरा नहीं है तो क्या हुआ, मैं ने जिस को चाहा, उसे प्यार किया और करती रहूंगी. मेरे प्यार में कोई खोट नहीं है,’’ कहतेकहते वह सिसकने लगी थी.

‘‘अगर अपने हठ में आ कर मैं ने तुम्हारा प्यार कबूल नहीं किया, तो क्या दुनिया इतनी छोटी है कि तुम्हें कोई दूसरा प्यार करने वाला युवक न मिलता. मुझ से बदला लेने के लिए तुम किसी अन्य युवक से शादी कर सकती थी,’’ मैं ने उसे समझाने का प्रयास किया.

वह हंसी. बड़ी विचित्र हंसी थी उस की, जैसे किसी बावले की… जो दुनिया की नासमझी पर व्यंग्य से हंस रहा हो. वह बोली, ‘‘मैं इतनी गिरी हुई भी नहीं हूं कि अपने प्यार का बदला लेने के लिए किसी और का जीवन बरबाद करती. दुनिया में प्यार के अलावा और भी बहुत अच्छे कार्य हैं. मदर टेरेसा ने शादी नहीं की थी, फिर भी वह अनाथ बच्चों से प्यार कर के महान हो गईं. मैं भी कुंआरी रह कर किसी कौन्वैंट स्कूल में बच्चों को पढ़ाऊंगी और उन के हंसतेखिलखिलाते चेहरों के बीच अपना जीवन गुजार दूंगी. मुझे कोई पछतावा नहीं है.

‘‘आप अपनी पत्नी के साथ खुश रहें, मेरी यही कामना है. मैं जहां रहूंगी, खुश रहूंगी… अकेली ही. इतना मैं जानती हूं कि बसंत में हर पेड़ पर बहार नहीं आती. अब आप के अलावा मेरे जीवन में किसी दूसरे व्यक्ति के लिए कोई जगह नहीं है,’’ उस की आंखों में अनोखी चमक थी और उस के शब्द तीर बन कर मेरे दिल में चुभ गए.

मुझे लगा मैं अमिता को बिलकुल भी नहीं समझ पाया था. वह मेरे बचपन की साथी अवश्य थी, पर उस के मन और स्वभाव को मैं आज तक नहीं समझ पाया था. मैं ने उसे केवल बचपन में ही जाना था. अब जवानी में जब उसे जानने का मौका मिला, तब तक सबकुछ लुट चुका था.

वह हठी ही नहीं, स्वाभिमानी भी थी. उस को उस के निर्णय से डिगा पाना इतना आसान नहीं था. मैं ने अमिता को समझने में बहुत बड़ी भूल की थी. काश, मैं उस के दिल को समझ पाता, तो उस की भावनाओं को इतनी चोट न पहुंचती.

अपनी नासमझी में मैं ने उस के दिल को ठेस पहुंचाई थी, लेकिन उस ने अपने स्वाभिमान से मेरे दिल पर इतना गहरा घाव कर दिया था, जो ताउम्र भरने वाला नहीं था.

सबकुछ मेरे हाथों से छिन गया था और मैं एक हारे हुए जुआरी की तरह अमिता के घर से चला आया.

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