न्यूड मौडल: कृष्णा ने क्यों चुना वह रास्ता

मैं तकरीबन 20 साल की थी, जब पहली बार कालेज पहुंची. मुझे एक बहुत बड़े कमरे में ले जाया गया, जहां तेज रोशनी थी और बीच में था पलंगनुमा तख्त. वहीं मुझे बैठना था, एकदम न्यूड. नीचे की देह पर बित्तेभर कपड़े के साथ. कई जोड़ा आंखें मुझे देख रही थीं. देह के एकएक उभार, एकएक कटाव पर सब की नजरें थीं. ‘‘मैं बिना हिले घंटों बैठी रहती. सांस लेती, तब छाती ऊपरनीचे होती या पलकें झपकतीं. मुझ में और पत्थर की मूरत में इतना ही फर्क रहा,’’

एक कमरे के उदास और सीलन भरे मकान में कृष्णा किसी टेपरिकौर्डर की तरह बोल रही थीं. कृष्णा न्यूड मौडल रह चुकी हैं. मैं ने मिलने की बात की, तो कुछ उदास सी आवाज में बोलीं, ‘‘आ जाओ, लेकिन मेरा घर बहुत छोटा है. मैं अब पहले जैसी खूबसूरत भी नहीं रही.’’ दिल्ली के मदनपुर खादर के तंग रास्ते से होते हुए मैं कृष्णा की गली तक पहुंचा. वे मुझे लेने आई थीं. ऊंचा कद, दुबलापतला शरीर और लंबीलंबी उंगलियां. बीच की मांग के साथ कस कर बंधे हुए बाल और आंखों में हलका सा काजल. सिर पर दुपट्टा. यह देख कर कोई भी अंदाजा नहीं लगा सकता कि लोअर मिडिल क्लास घरेलू औरत जैसी लगती कृष्णा ने 25 साल दिल्ली व एनसीआर के आर्ट स्टूडैंट्स के लिए न्यूड मौडलिंग की होगी.

सालों तक कृष्णा का एक ही रूटीन रहा. सुबह अंधेरा टूटने से पहले जाग कर घर के काम निबटाना, फिर नहाधो कर कालेज के लिए निकल जाना. कृष्णा मौडलिंग के शुरुआती दिनों को याद करती हैं, जब शर्म उन से ऐसे चिपकी थी, जैसे गरीबी से बीमारियां. ‘‘उत्तर प्रदेश से कमानेखाने के लिए पति दिल्ली आए, तो संगसंग मैं भी चल पड़ी. सोचा था, दिल्ली चकमक होगी, पैसे होंगे और घी से चुपड़ी रोटी खाने को मिलेगी, लेकिन हुआ एकदम अलग. यहां सरिता विहार के एक तंग कमरे को पति ने घर बता दिया. सटी हुई रसोई, जहां खिड़की खोलो तो गली वाले गुस्सा करें. ‘‘धुआंती रसोई में पटिए पर बैठ कर खाना पकाती, अकसर एक वक्त का. घी चुपड़ी रोटी के नाम पर घी का खाली कनस्तर भी नहीं जुट सका. पति की तनख्वाह इतनी कम कि पैर सिकोड़ कर भी खाने को न मिले.

तभी किसी जानने वाली ने कालेज जाने को कहा. ‘‘मैं लंबी थी. खूबसूरत थी. गांव में पलाबढ़ा मजबूत शरीर और खिलता हुआ उजला रंग. बताने वाली ने कहा कि तुम्हारी तसवीर बनाने के पैसे मिलेंगे. ‘‘कालेज पहुंची तो उन्होंने कपड़े उतारने को कह दिया. मैं भड़क गई. कपड़ेलत्ते नहीं उतारूंगी, बनाना हो ऐसे ही बनाओ. ‘‘तसवीर बनी, लेकिन पैसे बहुत थोड़े मिले. फिर बताया गया कि कपड़े उतारोगी तो 5 घंटे के 220 रुपए मिलेंगे. ये बहुत बड़ी रकम थी, लेकिन शर्म से बड़ी नहीं. कपड़ों समेत भी मौडलिंग करती तो शर्म आती कि अनजान लड़के मेरा बदन देख रहे हैं. ‘‘पहले हफ्ते कपड़े उतारने की कोशिश की, लेकिन हाथ जम गए. समझ ही नहीं पा रही थी कि इतने मर्दों के सामने कपड़े खोलूंगी कैसे? खोल भी लिया तो बैठूंगी कैसे?’’ कृष्णा की आवाज ठोस है, मानो वह वक्त उन की आवाज में भी जम गया हो.

‘‘2 हफ्ते बाद कमीज उतरी. इस के बाद कपड़े खुलते ही चले गए. बस आंखें बंद रहती थीं. बच्चे डांटते कि आंखें खोलिए तो खोलती, फिर मींच लेती. ‘‘किस्मकिस्म के पोज करने होते. कभी हाथों को एक तरफ मोड़ कर, कभी एक घुटने को ऊपर को उठा कर, तो कभी सीने पर एक हाथ रख कर मैं बैठी रहती.’’ लंबी बातचीत के बाद कृष्णा कुछ थक जाती हैं. वे बताती हैं, ‘‘बीते 5 सालों से डायबिटीज ने जकड़ रखा है. वक्त पर रोटी खानी होगी,’’ वे रसोई में खाना पकाते हुए मुझ से बातें कर रही हैं. ‘‘शुरू में मैं बहुत दुबली थी. लड़के तसवीर बनाते तो मर्द जैसी दिखती. धीरेधीरे शरीर भरा. न्यूड बैठती तो सब देखते रह जाते. कहते कि मौडल बहुत खूबसूरत है. इस की तसवीर अच्छी बनती है.

सब की आंखों में तारीफ रहती, अच्छा लगता था,’’ कृष्णा बताते हुए हंस रही थीं, आंखों में पुराने दिनों की चमक के साथ. मैं ने पूछा, ‘‘फिगर बनाए रखने के लिए कुछ करती भी थीं क्या?’’ उन्होंने बताया, ‘‘नहीं. मेहनत वाला शरीर है, आप ही आप बना हुआ. हां, बीच में तनिक मोटी हो गई थी, तो रोज पार्क में जाती और दौड़ लगाती, फिर पहले जैसे ‘शेप’ में आ गई.’’ कृष्णा जब रोटी बना रही थीं, तब मैं उन का रसोईघर देख रहा था. मुश्किल से दसेक बरतन. टेढ़ीपिचकी थाली और कटोरियां. महंगी चीजों के नाम पर एक थर्मस, जो उन्होंने ‘अमीरी’ के दिनों में खरीदा था. दीवारें इतनी नीची कि सिर टकराए. वे खुद झुक कर अंदर आतीजाती हैं. रसोईघर से जुड़ा हुआ ही ड्राइंगरूम है, यही बैडरूम भी है. 2 तख्त पड़े हैं, जिन पर उन समेत घर आए मेहमान भी सोते हैं. रोटी पक चुकी थीं. अब वे बात करने के लिए तैयार थीं. धीरेधीरे कहने लगीं, ‘‘पहली बार 2,200 रुपए कमा कर घर लाई, तो पति भड़क गए.

वे 1,500 रुपए कमाते थे. शक करने लगे कि मैं कुछ गलत करती हूं. मेरा कालेज जाना बंद हो गया. ‘‘फिर पूछतेपुछाते कालेज से एक सर आए. तब मोबाइल का जमाना नहीं था. वे बड़ी सी कार ले कर आए थे, जो गली के बाहर खड़ी थी. ‘‘सर मेरे पति को कालेज ले गए और मेरी पोट्रेट दिखाई. कहा कि फोटो बनवाने के पैसे मिलते हैं तुम्हारी पत्नी को. वह इतनी खूबसूरत जो है. ‘‘पति खुश हो गए. लौटते हुए छतरी ले कर आए. तब बारिश का मौसम था. हाथ में दे कर कहा था, ‘अब से रोज कालेज जाया कर.’ ‘‘सर ने पति को न्यूड के बारे में नहीं बताया था. सारी कपड़ों वाली तसवीरें ही दिखाई थीं.’’ ‘‘काम पर लौट तो गई, लेकिन यह सब आसान नहीं था. नंगे बदन होना. उस पर बुत की तरह बैठना. नस खिंच जाती. कभी मच्छर काटते तो कभी खुजली मचती, लेकिन हिलना मना था. छींक आए,

चाहे खांसी, सांस रोक कर चुप रहो. ‘‘महीना आने पर परेशानी बढ़ जाती. पेट में ऐंठन होती. एक जगह बैठने से दाग लगने का डर रहता, लेकिन कोई रास्ता नहीं था. ‘‘ठंड के दिनों में और भी बुरा हाल होता. मैं बगैर कपड़ों के बैठी रहती और चारों ओर सिर से पैर तक मोटे कपड़े पहने बच्चे मेरी तसवीर बनाते होते. बीचबीच में चायकौफी सुड़कते. मेरी कंपकंपी भी छूट जाए तो गुस्सा करते. पसली दर्द करती थी. एक दिन मैं रो पड़ी, तब जा कर कमरे में हीटर लगा. ‘‘एक फोटो के लिए 10 दिनों तक एक ही पोज में बैठना होता. हाथपैर सख्त हो जाते,’’ कृष्णा हाथों को छूते हुए याद करने लगीं, ‘‘नीले निशान बन जाते. कहींकहीं गांठ हो जाती. ब्रेक में बाथरूम जा कर शरीर को जोरजोर से हिलाती, जैसे बुत बने रहने की सारी कसर यहीं पूरी हो जाएगी. ‘‘5 साल पहले डायबिटीज निकली, लेकिन काम करती रही.

*शरीर सुन्न हो जाता. घर लौटती तो बाम लगाती और पूरीपूरी रात रोती. सुबह नहाधो कर फिर निकल +जाती… गरीबी हम से क्याक्या करवा गई.’’ ‘‘इतने साल इस पेशे में रहीं, कभी कुछ गलत नहीं हुआ?’’ मैं ने तकरीबन सहमते हुए ही पूछा, लेकिन मजबूत कलेजे वाली कृष्णा के लिए यह सवाल बड़ा नहीं था. ‘‘हुआ न. एक बार मुझे किसी सर ने फोन किया कि क्लास में आना है. मैं ने हां कर दी. शक हुआ ही नहीं. तय की हुई जगह पहुंची तो सर का फोन आया. तहकीकात करने लगे और पूछा कि तुम मौडलिंग के अलावा कुछ और भी करती हो क्या? मैं ने कहा कि हां, घर पर सीतीपिरोती हूं. ‘‘सर ने दोबारा पूछा कि नहीं, और कुछ जैसे सैक्स करती हो?’’ मैं शांत ही रही और कहा कि सर, मैं यह सब नहीं जानती. ‘‘फोन पर सर की आवाज आई कि जैसे दोस्ती. तुम दोस्ती करती हो? मैं ने कहा कि मैं दोस्ती नहीं, मौडलिंग करने आई हूं सर. करवाना हो तो करवाओ, वरना मैं जा रही हूं. ‘‘फिर मैं लौट आई.

पति को इस बारे में नहीं बताया. वो शक करते, जबकि मेरा ईमान सच्चा है. ‘‘कहीं से फोन आता तो भरोसे पर ही चली जाती. खतरा तो था, लेकिन उस से ज्यादा इज्जत मिली,’’ लंबीलंबी उंगलियों से बनेबनाए बालों को दोबारा संवारते हुए कृष्णा याद करते हुए बोलीं, ‘‘पहलेपहल जब कपड़े उतारने के बाद रोती तो कालेज के बच्चे समझाते थे कि तुम रोओ मत. सोचो कि तुम हमारी किताब हो. तुम्हें देख कर हम सीख रहे हैं. ‘‘मेरी उम्र के या मुझ से भी बड़े बच्चे मेरे पांव छूते थे. अच्छा लगता था. फिर सोचने लगी कि बदन ही तो है. एक दिन मिट्टी में मिल जाएगा. अभी बच्चों के काम तो आ रहा है. ‘‘भले ही कम पढ़ीलिखी हूं, लेकिन मैं खुद को विद्या समझने लगी. इसी बदन ने कालेज जाने का मौका दिया, जो मुझ जैसी के लिए आसान नहीं था.’’ पूरी बातचीत के दौरान कृष्णा स्टूडैंट्स को बच्चे कहती रहीं.

उन के ड्राइंगरूम में 2 पोट्रेट भी हैं, जो इन्हीं बच्चों ने गिफ्ट किए थे. वे हर आनेजाने वाले को गर्व से अपनी तसवीरें दिखातीं और बतातीं कि वे यही काम करती हैं. ‘‘क्या लोग जानते हैं कि आप न्यूड मौडलिंग करती रहीं?’’ ‘‘नहीं. वैसे घर पर तो अब सब जानते हैं कि कालेज में कपड़े खोल कर बैठना पड़ता था, लेकिन गांव में कोई नहीं जानता. अगर पता लग जाए तो सोचेंगे कि मैं ‘ब्लू फिल्म’ में काम करती हूं. थूथू करेंगे. बिरादरी से निकाल देंगे, सो अलग. हम ने उन्हें नहीं बताया.’’ बीते एकाध साल से कृष्णा कालेज नहीं जा रहीं. डायबिटीज के बाद पत्थर बन कर बैठना मुश्किल हो चुका है. मौडलिंग के दिनों का उन का काला पर्स धूल खा रहा है. सिंगार की एक छोटी सी पिटारी है, जिस में ऐक्सपायरी डेट पार कर चुकी रैड लिपस्टिक है, काजल है और बिंदी की पत्तियां हैं. बीते दिनों की हूक उठने पर कृष्णा प्लास्टिक की इस पिटारी को खोलती और आईने में देखते हुए सिंगार करती हैं.

संदूक पर रखा यह बौक्स वे मुझे भी दिखाती हैं. लौटते हुए वे कहती हैं, ‘‘फोन तो बहुतेरे आते हैं, लेकिन मैं जाऊं कैसे… डायबिटीज है तो बिना हिले बैठ नहीं सकती. तिस पर गले के आपरेशन ने चेहरा बिगाड़ दिया. बदन पर अब मांस भी नहीं. न्यूड बैठती तो बच्चे मुझे सब से खूबसूरत मौडल पुकारते. अब मैं वह कृष्णा नहीं रही. बस, तसवीरें ही बाकी हैं.’’

हमारी भागीदारी: क्या बेटी नेहा अपने अधिकारों को जान पाई?

सामान के बैगों से लदीफदी नेहा जब बाजार से घर लौटी तो पसीने से लथपथ हो रही थी. उसे पसीने से लथपथ देख कर उस की मां नीति दौड़ कर उस के पास गईं और उस के हाथ से बैग लेते हुए कहा,” एकसाथ इतना सारा सामान लाने की जरूरत क्या थी? देखो तो कैसी पसीनेपसीने हो रही हो.”

” अरे मां, बाजार में आज बहुत ही अच्छा सामान दिखाई दे रहा था और मेरे पास में पैसे भी थे, तो मैं ने सोचा कि क्यों ना एकसाथ पूरा सामान खरीद लिया जाए… बारबार बाजार जानाआना भी नहीं पड़ेगा.”

“बाजार में तो हमेशा ही अच्छाअच्छा सामान दिखता है. आज ऐसा नया क्या था?”

“आज कुछ नहीं था, पर 4 दिन बाद तो है ना,” नेहा ने मुसकराते हुए कहा.

“अच्छा, जरा बताओ तो 4 दिन बाद क्या है, जो मुझे नहीं पता. मुझे भी तो पता चले कि 4 दिन बाद है क्या?”

“4 दिन बाद दीवाली है मां, इसीलिए तो बाजार सामानों से भरा पड़ा है और दुकानों पर बहुत भीड़ लगी है.”

“तब तो तुम बिना देखेपरखे ही सामान उठा लाई होगी?” नीति ने नेहा से कहा.

“मां, आप भी ना कैसी बातें करती हैं? अब इतनी भीड़ में एकएक सामान देख कर लेना संभव है क्या? और फिर दुकानदार को भी अपनी साख की चिंता होती है. वह हमें खराब सामान क्यों देगा भला?”

“चलो ठीक है. बाथरूम में जा कर हाथपैर धो लो, फिर खाना लगाती हूं,” नीति ने बात खत्म करने के लिए विषय ही बदल दिया.

खाना खा कर नेहा तो अपने कमरे में जा कर गाना सुनने लगी और नीति सामान के पैकेट खोलखोल कर देखने लगी.

उन्होंने सब से पहले कपड़े के पैकेट खोलने शुरू किए. कपड़े के प्रिंट और रंग बड़े ही सुंदर लग रहे थे.

नीति ने सलवारसूट का कपड़ा खोल कर फर्श पर बिछा दिया और उसे किस डिजाइन का बनवाएगी, सोचने लगी. अचानक उस की निगाह एक जगह जा कर रुक गई. उसे लगा जैसे वहां का कपड़ा थोड़ा झीना सा है. कपड़ा हाथ में उठा कर देखा तो सही में कपड़ा झीना था और 1-2 धुलाई में ही फट जाता.

नीति नेहा के कमरे में जा कर बोली,” कैसा कपड़ा उठा कर ले आई हो? क्या वहां पूरा खोल कर नहीं देखा था?”

“मां, वहां इतनी भीड़ थी कि दुकानदार संभाल नहीं पा रहा था. सभी लोग अपनेअपने कपड़े खोलखोल कर देखने लगते, तो कितनी परेशानी होती. यही तो सोचना पड़ता है ना.”

“ठीक है. वहां नहीं देख पाई चलो कोई बात नहीं. अब जा कर उसे यह कपड़ा दिखा लाओ और बदल कर ले आओ. अगर यह कपड़ा ना हो, तो पैसे वापस ले आना.”

नीति की बात सुन कर नेहा झुंझला कर बोली, “आप भी न मां, पीछे ही पड़ जाती हैंं. अभी थोड़ी देर पहले ही तो लौटी हूं बाजार से, अब फिर से जाऊं? रख दीजिए कपड़ा, बाद में देख लेंगे.”

“तुम्हारा बाद में देख लेंगे कभी आता भी है? 3 महीने पहले तुम 12 कप खरीद कर लाई थींं, उन में से 2 कप टूटे हुए थे. अभी तक वैसे ही पड़े हैं. लाख बार कहा है तुम से कि या तो दुकान पर ही चीज को अच्छी तरह से देख लिया करो और या फिर जब घर में आ कर देखो और खराब चीज निकले तो दुकानदार से जा कर बोलना बहुत जरूरी होता है. जाओ और बोलो, उसे बताओ कि तुम ने अच्छी चीज नहीं दी है.”

“ठीक है मां, मैं बाद में जा कर बदल लाऊंगी,” कह कर नेहा मन ही मन बुदबुदाई,”अच्छी मुसीबत है. अब मैं कभी कुछ खरीदूंगी ही नहीं.”

नेहा के पीछेपीछे आ रही मां नीति ने जब उस की बात सुनी, तो उन्हें बहुत गुस्सा आया. उन्होंने गुस्से में नेहा से कहा, “एक तो ठीक से काम नहीं करना और समझाने पर भड़क कर कभी न काम करने की बात करना, यही सीखा है तुम ने.”

“मां, अब दो कपड़ों के लिए मैं बाजार जाऊंगी और फिर वहां से आऊंगी भी तो टैक्सी वाले को कपड़ों से ज्यादा पैसा देना पड़ेगा. यह भी समझ में आता है आप को?”

“नहीं आता समझ… और मुझे समझने की जरूरत भी नहीं है, क्योंकि मैं तो दुकान पर ही सारी चीजें ठीक से देख कर रुपएपैसे का मोलभाव कर तब खरीदती हूं.

“तुम्हारी तरह बिना देखे नहीं उठा लाती और अगर कभी ना भी देख पाऊं तो वापस जा कर दुकानदार को दिखाती हूं और खराब चीज बदलती हूं या पैसे वापस लेती हूं.”

“मां, क्या फर्क पड़ता है एक या दो चीजें खराब निकलने से. अब दुकानदार भी कितना चैक करेगा?”

“कितना चैक करेगा का क्या मतलब है? अरे, उस का काम है ग्राहकों को अच्छा सामान देना. सब तुम्हारी तरह नहीं होते हैं, जो ऐसे ही छोड़ दें. इस तरह तो उस की इतनी बदनामी हो जाएगी कि कोई उस की दुकान पर पैर भी नहीं रखेगा.”

“नहीं मां, ऐसा कुछ नहीं होगा. उस की दुकानदारी ऐसे ही चलती रहेगी, आप देखना.”

“क्यों नहीं चलेगी? जब तेरे जैसे ग्राहक होंगे, लेकिन इस का असर क्या पड़ेगा, यह सोचा है. धीरेधीरे सारे दुकानदार चोरी करना सीखेंगे, खराब सामान बेचेंगे और अपनी गलती भी नहीं मानेंगे.

“आज जो बेईमानी है, भ्रष्टाचार का माहौल बना है ना, इस के जिम्मेदार हम ही तो हैं,” नीति ने गुस्से में कहा.

” कैसे? हम कैसे हैं उस के जिम्मेदार? बताइए ना…”

“तो सुनो, हम गलत काम को प्रोत्साहित करते हैं जैसे तुम बाजार गई हो और कोई सामान खरीद कर ले आए. घर आ कर जब सामान को खोल कर देखा तो सामान खराब निकला. तुम ने उस को उठा कर एक ओर पटका. दूसरा सामान खरीद लिया. अब दुकानदार को कैसे पता चलेगा कि सामान खराब है?

“मान लो, उसे पता भी है, पर फिर भी वह जानबूझ कर खराब सामान बेच रहा हो तो… जब जिस का पैसा बरबाद हो गया, उसे चिंता नहीं है तो दुकानदार को क्या और कैसे दोष दे सकते हैं?”

“मां, सभी दुकानदार तो ऐसा नहीं करते हैं न.”

“अभी नहीं करते तो करने लगेंगे. यही तो चिंता की बात है. इस तरह तो उन का चरित्र ही खराब हो जाएगा. हम हमेशा दूसरों को दोष देते हैं, पर अपनी गलती नहीं मानते.”

“अच्छा मां, अगर दुकानदार न माने तो…?”

“हां, कभीकभी दुकानदार अड़ जाता है. बहुत सालों पहले एक बार मैं परदे का कपड़ा खरीदने गई. कपड़ा पसंद आने पर मैं ने 20 मीटर कपड़ा खरीद लिया. घर आ कर कपड़ा अलमारी में रख दिया. 2 दिन बाद मैं ने जब परदे काटने शुरू किए, तो बीच के कपड़े में चूहे के काटने से छेद बने हुए थे. मैं उसी समय कपड़ा ले कर बाजार गई और दुकानदार को कपड़ा दिखाया. उस ने कपड़ा देखा और कहा, “हमारी दुकान में चूहे नहीं हैं. आप के घर पर चूहे होंगे और उन्होंने कपड़ा काटा होगा… मैं कुछ नहीं कर सकता.”

“मैं ने कहा, “चूहे मेरे घर में भी नहीं हैं. कोई बात नहीं, अभी पता चल जाएगा. आप पूरा थान मंगवा दीजिए. अगर वह ठीक होगा, तो मैं मान जाऊंगी.”

नौकर थान ले कर आया. जब थान खोला गया, तो उस में भी जगहजगह चूहे के काटने से छेद बने थे.

“अब तो दुकानदार क्या कहता, उस ने चुपचाप हमारे पूरे पैसे लौटा दिए.

“अगर मैं कपड़ा वापस करने नहीं जाती, तो दुकानदार अच्छा कपड़ा दिखा कर खराब कपड़ा लोगों को देता जाता. अगर सभी लोग यह ध्यान रखें, तो वे खराब सामान लेंगे ही नहीं, तो दुकानदार भी खराब सामान नहीं बेच पाएगा.

“हम अफसरों और नेताओं को गाली देते हैं, पर यह नहीं सोचते कि जब तक हम बरदाश्त करते रहेंगे, तब तक सामने वाला हमें धोखा देता रहेगा. जिस दिन हम धोखा खाना बंद कर देंगे, धोखा देने वाले का विरोध करेंगे, गलत को गलत और सही को सही सिद्ध करेंगे, उसी दिन से लोग गलत करने से पहले सौ बार सोचेंगे अपनी साख बचाने के लिए. बेईमानी करना छोड़ देंगे और तब ईमानदारी की प्रथा चल पड़ेगी,” इतना कहतेकहते नीति हांफने लगी.

मां को हांफता देख कर नेहा दौड़ कर पानी लाई और बोली, “मां, आप बिलकुल सही कह रही हैं. हमें मतलब उपभोक्ताओं को जागरूक बनना बेहद जरूरी है. जब तक हम अपने अधिकारों के प्रति ध्यान नहीं देंगे, तब तक हमें धोखा मिलता रहेगा.”

“ठीक है बेटी, अब इस बात का खुद भी ध्यान रखना और दूसरों को भी समझाना.”

“जी… मैं अभी वापस दुकान पर जा कर दुकानदार से कपड़ा बदल कर लाती हूं,” इतना कह कर नेहा बाजार चली गई, तो नीति ने चैन की सांस ली.

दोबारा : पति की मौत के बाद जसप्रीत के साथ क्या हुआ ?

जसप्रीत की सांस बहुत तेजी से चल रही थी. 65 साल की उम्र में कोई उन्हें प्रपोज करेगा, उन्होंने कभी नहीं सोचा था. जसप्रीत को सम  झ नहीं आ रहा था कि मानव की बात का वह क्या जवाब दे?

क्या यह कोई उम्र है उस की अपने बारे में सोचने की? कुछ ही वर्षों में तो उस के पोते, पोतियों की शादी की उम्र हो जाएगी. मगर जसप्रीत फिर भी अपनेआप को रोक नहीं पा रही थी. बरसों बाद जसप्रीत को लग रहा था कि वह भी एक औरत है जिसे कोई पुरुष पसंद कर सकता है. मगर क्या एक उम्र के बाद औरत औरत रह जाती है या उसे एक बेजान समान मान लिया जाता है जैसेकि घर में पड़ा हुआ फालतू फर्नीचर जिस के न होने से घर खालीखाली लगता है मगर उस का घर में कितना योगदान है किसी को पता नहीं होता है.

जसप्रीत को पहननेओढ़ने का बेहद शौक था. शोख रंग जसप्रीत के गोरे रंग पर बेहद फबता था. आज भी जसप्रीत को ऐसा लगता है मानो वह पिछले जन्म की बात हो. हर साल लोहड़ी और बैसाखी पर जसप्रीत आबकारी के सलमासितारों वाले दुप्पटे लेती थी. सिल्क, शिफौन, क्रेब और भी न जाने कितनी तरह के सूट जसप्रीत के पास थे. सूट ही नहीं, इस सिखनी को साडि़यों का भी बेहद शौक था. घर की हर अलमारी जसप्रीत के कपड़ों से भरी हुई थी.

पति महेंद्र सिंह को भी जसप्रीत को सजाने का बेहद शौक था. मगर जब कुलवंत 13 वर्ष का था और ज्योत 10 वर्ष की तभी महेंद्र सिंह की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. 2 महीने तक तो जसप्रीत को अपना भी होश नहीं था. मगर फिर बच्चों का मुंह देख कर जिंदगी की तरफ लौटना पड़ा.

लगभग 2 महीने बाद जब जसप्रीत ने अलमारी खोली तो उस का मन रोंआसा हो गया. कितने शौक से उस ने सब कपड़े बनवाए थे. जसप्रीत खड़ेखड़े रोने लगी.

तभी जसप्रीत की सास नवाब बोली, ‘‘पुत्तर कुदरत के आगे किस की चलती है?’’

‘‘तू दिल छोटा मत कर तू नहीं तो तेरी देवरानी, भाभियां ये कपड़े पहन लेंगी.’’

जसप्रीत बोलना चाह रही थी कि उस का पति मरा है मगर वह अभी जिंदा है.’’

देखते ही देखते जसप्रीत के कपड़े बांट दिए गए. उस की जिंदगी की तरह उस के कपड़े भी बेरंग हो गए थे.

देवर और देवरानी ने एहसान जताते हुए कहा, ‘‘भाभी, बीजी को आप के पास छोड़े जा रहा हूं, आप को सहारा भी हो जाएगा और आप का मन भी लगा रहेगा.’’

जसप्रीत को सम  झ ही नहीं आ रहा था कि सास नवाब उस का सहारा बनेगी या जसप्रीत को उन का सहारा बनना पड़ेगा.

नवाब के साथ रहने से जसप्रीत को उन के हिसाब से और बच्चों के हिसाब से 2 अलग तरह का खाना बनाना पड़ता था. जसप्रीत जरा भी हंसबोल लेती तो नवाब की त्योरियां चढ़ जाती थीं. लगता जैसे जसप्रीत बेहयाई कर रही हो. घर से दफ्तर जाते हुए और दफ्तर से घर आ कर जसप्रीत को सारा काम करना पड़ता. सास की दवा का भार और अलग से था.

1 वर्ष के भीतर ही जसप्रीत मुर  झा गई. उस की सांसें तो चल रही थीं मगर जिंदगी कहीं पीछे छूट गई थी. तभी जसप्रीत की जिंदगी में विपुल का पदार्पण हुआ. विपुल जसप्रीत के भाई का दोस्त था. वह कभीकभी जसप्रीत के छोटेमोटे काम कर देता था. ऐसे ही जसप्रीत और विपुल करीब आ गए. कभीकभी जसप्रीत विपुल के घर भी चली जाती. जसप्रीत अब फिर से जिंदगी की तरफ कदम बढ़ा रही थी. उस ने विपुल की जिंदगी में अपना दोयम दर्जा स्वीकार कर लिया था. मगर एक दिन जब जसप्रीत और विपुल को जसप्रीत के देवर ने देख लिया तो जसप्रीत को लानतसलामत दी गई. जसप्रीत के देवर ने कहा, ‘‘भाभी, आप को शर्म नहीं आती इस उम्र में ये सब करते हुए?’’

उधर जसप्रीत की सास लगातार बोल रही थी, ‘‘औरतें तो अपने सुहाग के साथ सती हो जाती हैं और एक यह है.’’

‘‘अरे 40 साल की उम्र में कौन सी जवानी चढ़ी हुई है तुम्हें?’’

जसप्रीत के पास इन बातों का कोई जवाब नहीं था. उधर विपुल भी सब बातों के बाद जसप्रीत से कन्नी काटने लगा था. इस घटना के बाद जसप्रीत की सास अधिक चौकनी हो गई थी.

जसप्रीत का परिवार भी उसे उस की जिम्मेदारियों से अवगत कराता था. कैसे एक मां बन कर उसे अपने बच्चों के लिए रोल मौडल बनना है. जसप्रीत ने अपने अंदर की औरत का गला घोट दिया था.

जसप्रीत की सास के साथसाथ जसप्रीत के अपने मातापिता भी उस की ही जिम्मेदारी बनते जा रहे थे. जब भी भाईभाभियों को कहीं घूमने जाना होता तो जसप्रीत के मातापिता महीनों उस के साथ रहते.

जसप्रीत का भी मन करता था बाहर घूमनेफिरने का. मगर न तो हालात ने कभी इस बात की इजाजत दी और न ही उस के आसपास वालों को इस की कभी जरूरत लगी.

जसप्रीत की सास और बाकी परिवार उसे बचत और हाथ रोक कर खर्च करने की ही सलाह देता था.

विपुल की घटना के पश्चात भी जसप्रीत की जिंदगी में पुरुषों का सिलसिला चलता रहा. बस अब जसप्रीत पहले से ज्यादा सतर्क हो गई थी. कभीकभी उसे लगता जैसे वह खुद को औरत  साबित करने के लिए इधरउधर रेगिस्तान में भटक रही है. जहां भी उसे लगता कि पानी है वह मिराज निकलता. उसे लगने लगा था कि वह इंसान नहीं एक समान है. जब तक वह पुरुष को दैहिक सुख दे सकती है तब तक ही पुरुष उस के आसपास बने रहेंगे. जल्द ही उसे यह बात सम  झ आ गई कि आंतरिक प्यास इधरउधर के अफेयर से कभी नहीं बु  झ पाएगी. वह अपनेआप में सिमट गई थी.

जसप्रीत को कुदरत ने एक बेटा दिया हुआ है. थोड़े दिनों की बात और है जब उस के दुख खत्म हो जाएंगे. उन दिनों जसप्रीत ने भी इन बातों पर विश्वास कर लिया था. उस के जीवन की धुरी अब कुलवंत और ज्योत बन गए थे. मगर फिर भी न जाने क्यों जसप्रीत के अंदर का खालीपन बढ़ता ही जा रहा था. देखते ही देखते वह 55 वर्ष की हो गई थी. कुलवंत अब परिवार में मुखिया की भूमिका निभा रहा था.

कुलवंत का विवाह हो गया. वह अपनी पत्नी में डूब गया और ज्योत ने भी जल्द ही अपनी पसंद से विवाह कर लिया. जसप्रीत की सास और मातापिता का निधन हो गया था. कुलवंत बराबर अपनी मां जसप्रीत पर पैतृक घर बेचने का दबाव डाल रहा था. जसप्रीत अब 62 वर्ष की हो गई थी. नौकरी प्राइवेट थी, इसलिए पेंशन नही थी.लोगो की सलाह पर उसे लगा, बेटे से बिगाड़ना ठीक नहीं हैं इसलिए उस ने घर बेच दिया. कुलवंत ने एक शानदार सोसायटी में फ्लैट ले लिया. उस फ्लैट में जसप्रीत एकाएक बूढ़ी और अकेली हो गई थी. सारा दिन वह घर के कामों में लगी रहती और अपनी पोती   झलक को संभालती. उस की जिंदगी बेरंग हो गई थी.

जब   झलक का 10वां बर्थडे था तब जसप्रीत की बहू अजीत की मम्मी हरप्रीत भी आई हुई थी. रंगों और शोखी से भरपूर हरप्रीत को देख कर कोई नहीं कह सकता था कि उन की इतनी बड़ी नातिन है. हरप्रीतजी ने ही जबरदस्ती उस रोज जसप्रीत को गुलाबी रंग का सूट पहनाया जो उन के रंग में घुल सा गया था.

जाने से पहले हरप्रीत ने जसप्रीत से कहा, ‘‘आप खुद के लिए खड़ा होना सीखिए. आप बस 62 साल की हुई हैं. अभी भी आप के पास जिंदगी है.’’

जसप्रीत धीरेधीरे ऐक्सरसाइज करने लगी. सोसायटी के क्लब में जाने से जसप्रीत को अपने हमउम्र मिले और कुछ ऐसे रास्ते भी मिले जिन से वह अपने लिए कमा भी सकती थी. जसप्रीत ने धीरेधीरे अपने हमउम्र लोगों की सहायता से औनलाइन ट्रक्सैक्शन, इनवैस्टमैंट और बैंकिंग  सीखी. उस ने अपने आर्थिक फैसले खुद लेने आरंभ किए.

जैसे ही जसप्रीत आर्थिक रूप से स्वावलंभी हुई उस के पंख खुलने लगे. बच्चों की जिम्मेदारी भी पूरी हो गई थी. इसलिए जसप्रीत ने अब देश घूमने का फैसला किया. उस के बाहर घूमने का फैसला उस के बेटे को पसंद नहीं आया क्योंकि जसप्रीत अपने पैसे से जा रही थी इसलिए वह कुछ बोल नहीं पाया.

फन एट सिक्स्टी नामक ग्रुप के साथ जसप्रीत घूमने जा रही थी.62 साल की उम्र में पहली बार उसे 16 वर्ष के भांति उत्साहित हो रही थी.पूरे जोरशोर के साथ बहुत वर्षों के बाद उस ने शौपिंग करी.

बेटेबहू सामने से तो कुछ कह नहीं पाए मगर उन के भावों में नाराजगी   झलक रही थी. जसप्रीत का एक बार तो मन हुआ कि न जाए मगर फिर उस ने अपना मन कड़ा कर लिया. जब जसप्रीत अपने समान के समेत बस में चढ़ी तो उसे इस बात का बिलकुल भान नहीं था कि यह सफर उस की जिंदगी का सफर की दिशा ही बदल देगा.

एक मिनी बस थी. सभी लोग जसप्रीत को अपने हमउम्र दिख रहे थे. करीब 20 लोग बैठे हुए थे, जिन में से 8 जोड़े थे और 3 महिलाएं और 1 पुरुष था. शुरूशुरू में तो जसप्रीत को थोड़ी  ि झ  झक हो रही थी मगर फिर वह सहज हो गई.

जब सां  झ के धुंधलके में वह गु्रप वाराणसी पहुंचा तो जसप्रीत को थकान के बजाय बेहद ताजा महसूस हो रहा था.

जसप्रीत जब अपने कमरे से बाहर निकली तो सभी लोग अपने कमरों में दुबके हुए थे. उस ने देखा बाहर लौबी में बस मानव बैठे हुए थे. जसप्रीत को देख कर उठ खड़े हुए और बोले, ‘‘चलो, मेरी तरह कोई और भी है जो कमरे से बाहर तो निकला है बाकी सभी लोग तो आज थकान उतारेंगे.’’

जसप्रीत ने कहा, ‘‘आप घाट पर चलना चाहेंगे?’’

मानव हंसते हुए बोला, ‘‘चलना नहीं दौड़ना चाहूगा.’’

दोनों ने एक रिकशा कर लिया और पूरे जोश के साथ घाट पहुंच गए. एक अलग सा माहौल था घाट का. दोनों ही करीब 2 घंटे तक वहीं बैठ कर घाट को निहारते रहे. मानव की तंद्रा तब भंग हुई जब होटल से उन के ग्रुप का फोन आया. पूरा ग्रुप दोनों के लिए चिंतित था.घड़ी देखी तो रात के 9 बज गए थे.

वापसी में मानव और जसप्रीत ने कचौरी और टमाटर की चाट का आनंद लिया.

जसप्रीत शुरू में थोड़ी  ि झ  झकी मगर मानव ने यह कहते हुए उस का डर काफूर कर दिया, ‘‘मैं डाक्टर हूं कुछ हुआ तो देख लूंगा. बिंदास खाइए और जिंदगी का आनंद लीजिए.’’

जब रात के 10 बजे मानव और जसप्रीत होटल पहुंचे तो मैत्री की डोर में बंध गए थे.

4 दिन ऐसा लगा मानो 4 पल के समान उड़ गए हों. जसप्रीत ने जिस तरह अपने पति को युवावस्था में खो दिया था वैसे ही मानव का अपनी पत्नी के साथ विवाह के 5 वर्ष बाद ही अलगाव हो गया था. पहले विवाह का अनुभव इतना अधिक कसैला था कि मानव ने दोबारा विवाह नही किया. दोनों ने अपनी युवावस्था अकेलेपन में गुजारी थी इसलिए दोनों ही एकदूसरे के साथ बेहद सहज थे. दोनों की किसी के प्रति जवाबदेही नहीं थी.

जसप्रीत को ऐसा लग रहा था मानो वह दोबारा से एक औरत की तरह सांस ले रही हो. मानव ने बातों ही बातों में जसप्रीत से कहा, ‘‘अरे, आप को देख कर लगा ही नहीं कि आप 62 साल की हैं. मु  झे तो आप 55 से अधिक की नहीं लगी थी.’’

न जाने क्यों जसप्रीत को मानव की ये बातें अंदर से गुदगुदा रही थीं. पूरे ट्रिप के दौरान जसप्रीत और मानव एकसाथ ही बने रहे. दोनों को एकदूसरे का साथ बहुत भा रहा था.

वापसी यात्रा में मानव और जसप्रीत दोनों को यह लग रहा था कि यह सफर कभी खत्म न हो. फोन के द्वारा मानव और जसप्रीत के बीच बातचीत चलती रही. जिस दिन दोनों की बातचीत नहीं होती ऐसा लगता मानो वह दिन कुछ अधूरेपन के साथ समाप्त हुआ हो. 62 साल की उम्र में जसप्रीत अपने मन की थाह को नहीं पा रही थी. यह जीवन उस ने पहले भी जीया था मगर तब उस के अपने परिवार ने उसे सामाजिक और नैतिक रूप से गलत साबित किया था. क्या ये भाव उसे शोभा देते हैं? क्यों मानव का एक फोन उसे खुशी से भर देता है? जसप्रीत को पहली बार अपने पति के जाने के बाद ऐसा कोई पुरुष मिला था जो उस से व्यापार नहीं कर रहा था. मानव ने जसप्रीत के साथ एक साथी की तरह ही व्यवहार किया था. यह सच था कि जसप्रीत और मानव उम्र के उस मोड़ पर थे जहां पर दैहिक व्यापार का प्रश्न गौण हो जाता है. मगर पुरुष फिर भी उम्र के हर पड़ाव पर स्त्री से किसी न किसी चीज की उम्मीद ही रखता है.

जसप्रीत और मानव को बात करतेकरते पूरा 1 साल बीत गया. इस 1 साल में मानव जसप्रीत को बहुत अच्छे से जान गया था. आज मानव का जन्मदिन था. जसप्रीत ने जैसे ही रात के 12 बजे उस को कौल किया तो मानव ने जसप्रीत को प्रपोज कर दिया.

मानव ने जसप्रीत से कहा, ‘‘जसप्रीत, जीवन की इस संध्या में कब जीवन का सूर्य अस्त हो जाएगा, मालूम नहीं? मगर अब आगे की यात्रा में तुम्हारे साथ तय करना चाहता हूं.’’

जसप्रीत यही तो सुनना चाहती थी. मगर उस के अंदर इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह इतना बड़ा फैसला ले पाए.

जसप्रीत को अच्छे से पता था कि अगर वह मानव का यह प्रस्ताव अपने घर वालों के समक्ष रखेगी भी तो उस के बच्चे ही उस के अतीत को कुरेदने लगेंगे.

जसप्रीत के अंदर हिम्मत का अभाव देख कर मानव एक दिन खुद ही जसप्रीत के घर पहुंच गया.

जसप्रीत से कोई पुरुष मिलने आया है, यह बात जसप्रीत के बेटेबहू को पसंद नहीं आई. मगर प्रत्यक्ष रूप से वे कुछ कह नहीं पाए. मानव को आए हुए 2 घंटे हो गए थे.

जाने से पहले मानव ने जसप्रीत के बेटे से कहा, ‘‘बेटा, सम  झ नहीं आ रहा ये बात में कैसे करूं? मगर मैं आप की मम्मी से विवाह करना चाहता हूं.’’

मानव की यह बात सुनते ही जसप्रीत का बेटा आग बबूला हो उठा, ‘‘मम्मी इस उम्र में भी आप यह गुल खिला रही हैं.’’

उधर जसप्रीत की बहू बोली, ‘‘आप ऐसा करोगी तो कौन   झलक से विवाह करेगा? उम्र है अपना जन्म सुधारने की… ध्यान में ध्यान लगाएं.’’

जसप्रीत शर्म से जमीन में गढ़ी जा रही थी. उसे लग रहा था कि उस से फिर से गलती हो गई है. क्यों उसे एक साथी की दरकार रहती है? क्यों वह कुदरत में ध्यान नहीं लगा पाती हैं?

मानव ने जसप्रीत से कहा, ‘‘जसप्रीत मु  झे तुम्हारे फैसले का इंतजार रहेगा.’’

मगर उस दिन के बाद से जसप्रीत और मानव के बीच कोई बात नहीं हुई. कुलवंत ने यह बात अपनी बहन ज्योत को भी बता दी थी. ज्योत भी घर आ गई थी. जसप्रीत के बेटे और बेटी ने साफसाफ शब्दों में कह दिया था कि अगर जसप्रीत को मां का दर्जा चाहिए तो दूसरे विवाह की बात दिमाग से निकाल दे.

जसप्रीत फिर से सम  झौता करने को तैयार हो गई थी. वह घर की शांति और समाज के रिवाजों के हिसाब से खुद को ढालने के लिए तैयार हो गई थी. कैसी होती है एक 62 वर्ष की महिला की जिंदगी, एक फालतू फर्नीचर जिस के होने या न होने से कोई फर्क नहीं पड़ता है. हां यदि वह न हो तो घर का एक कोना खाली हो जाता है. 62 साल की महिला या वृद्धा को अपनी जिंदगी के बाकी दिन नातीपोतों की देखभाल में बिताने चाहिए. जिंदगी के इस पड़ाव में किसे घूमनेफिरने की, इधरउधर मित्रता करने की ललक होती है?

जसप्रीत ने मानव से बातचीत लगभग बंद कर दी थी. बहू ने फूल टाइम मेड की छुट्टी कर दी. उस के अनुसार मम्मीजी घर के कामकाज में बिजी रहेंगी तो उन के दिमाग में फालतू बात नहीं आएगी.

जसप्रीत ने खुद को घर के कार्यों में व्यस्त तो कर लिया मगर मानसिक रूप से टूट गई थी. पहले सासससुर और मातापिता ने उसे बच्चों की दुहाई दे कर कठपुतली की तरह नचाया और अब उस के अपने बच्चे उसे समाज की दुहाई दे कर नचा रहे हैं.

1 हफ्ते बाद दीवाली थी. घर में जोरशोर से तैयारियां चल रही थीं. जसप्रीत के बेटे ने जसप्रीत से कहा, ‘‘मम्मी, मैं इस बार बच्चों के साथ दीवाली पर घूमने जा रहा हूं. आप को भी ले चलते मगर आप की तबीयत भी ठीक नहीं रहती और फिर दीवाली पर घर भी बंद नहीं कर सकते हैं.’’

जसप्रीत को बुरा लगा मगर उस ने खुद को ही दोष दिया, उस की क्या उम्र है घूमनेफिरने की?

बच्चे नियत समय पर दुबई के लिए रवाना हो गए थे. जसप्रीत को अगले ही दिन बुखार हो गया. उस ने फोन पर बच्चों को बताया तो उसे डाक्टर से मिलने की सलाह दे दी गई.

बेटी ज्योत भी दीवाली पर अपने परिवार के साथ घूमने गई हुई थी. दीवाली की रात पर चारों ओर रोशनी से आकाश सजा हुआ था मगर जसप्रीत के अंदर इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि वह खड़ी हो जाए.

बुखार की दवाई कोई असर नहीं कर रही थी. सुबह से कुछ खाया भी नहीं था. तभी जसप्रीत को फोन पर मानव का मैसेज दिखा. जसप्रीत ने बुखार की घुमेरी में उसे कुछ लिखा और फिर जब जसप्रीत को होश आया तो उस ने खुद को अस्पताल में पाया.

मानव वहीं जसप्रीत के सामने बैठा हुआ था. वह मन ही मन सोच रही थी कि अब समाज उस के बच्चों से कुछ क्यों नहीं पूछ रहा है जब वे लोग उसे अकेले छोड़ कर दीवाली मनाने चले गए. जसप्रीत ने फिर मानव को अपनी पूरी कहानी सुना दी. जसप्रीत ने अपनी जिंदगी का वह पन्ना भी मानव के समक्ष बेपरदा कर दिया जिस के कारण वह खुद को माफ नहीं कर पाई थी.

मानव ने सुना और बस जसप्रीत से इतना कहा, ‘‘न तुम कल गलत थी और न ही आज गलत हो. उस समय अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए उन परिस्थितियों में तुम्हें वह ही ठीक लगा होगा. हमारा अतीत हमारे वर्तमान को नियंत्रित नहीं कर सकता है. मैं आज भी तुम्हारे फैसले की प्रतीक्षा में हूं.’’

जसप्रीत की अस्पताल से छुट्टी हुई तो उस ने खुद ही मानव से कहा, ‘‘जब तक बच्चे नहीं आते मैं तुम्हारे घर पर ही रहूंगी.’’

बिना कुछ बोले जसप्रीत के मन की बात मानव को सम  झ आ गई थी.

अपने दोनों बच्चों को अपने फैसले से अवगत कराते हुए जसप्रीत ने सूचित कर दिया था. उस ने दोबारा से एक महिला की तरह फैसला ले लिया था.

जसप्रीत समाज को जवाब देने के लिए तैयार थी. कोर्ट में विवाह की तिथि के लिए पंजीकरण करवा दिया था. खुद को माफ करते हुए जसप्रीत ने दोबारा से जिंदगी की तरफ कदम बढ़ाया था.

जसप्रीत के इस फैसले के बाद उस के  परिवार ने उस का बहिष्कार कर दिया. वह अपने परिवार के इस बरताव से आहत थी. वह चाहती थी कम से कम उस की बेटी ज्योत तो उसे सम  झेगी.

पहले 1 महीने तक तो जसप्रीत इसी ऊपोपोह में रही कि क्या वह मानव के साथ रहे या फिर वापस अपने घर चली जाए. मगर मानव ने जसप्रीत को इतना विश्वास और प्यार दिया कि जसप्रीत का मन मानव के घर में रम गया.

मानव सुबह सवेरे जब ऐक्सरसाइज करता तो जसप्रीत को भी अपने साथ करवाता. दोनों साथसाथ नाश्ता करते, फिर मानव हौस्पिटल चला जाता और जसप्रीत अपना औनलाइन बिजनैस देखती. पैसे की कोई कमी नहीं. मानव जसप्रीत का साथ पा कर पूर्ण महसूस करता था. जसप्रीत भी बेहद खुश थी मगर अपने बच्चों और परिवार की कसक उसे रहरह कर टीस देती. मानव को जसप्रीत के दर्द का आभास था मगर उसे सम  झ नहीं आ रहा था कि वह कैसे जसप्रीत और उस के परिवार को एक कर दे.

दिन हफ्तों में और हफ्ते महीनों में परिवर्तित हो गए थे. आज जसप्रीत बेहद खुश थी. बरसों बाद उस के जीवन में करवाचौथ इतनी सारी रोशनी और मिठास ले कर आई थी. उस ने आज सुनहरे रंग की कांजीवरम साड़ी पहन रखी थी. साथ में उस ने बेहद शोख रंग की चूडि़यां और मेकअप कर रखा था. मानव तो आज जसप्रीत को देख कर पलक   झपकाना भूल गया.

जसप्रीत शरमाते हुए बोली, ‘‘बहुत ओवर हो गया लगता है. इस उम्र में इतना शोख मेकअप अच्छा नहीं लगता है.’’

मानव जसप्रीत का हाथ पकड़ते हुए बोला, ‘‘खूबसूरती की कोई उम्र नहीं होती है जसप्रीत. तुम आज बेहद सुंदर लग रही हो.’’

चांद को देखने के बाद मानव और जसप्रीत ने खाने का पहला निवाला ही तोड़ा था कि अस्पताल से फोन आ गया. मानव बिना खाने खाए कार निकल कर अस्पताल चला गया. वहां जा कर मानव को पता चला कि ऐक्सीडैंट केस है. खून से लथपथ एक जोड़ा अस्पताल के गलियारे में कराहा रहा था. मानव जैसे ही उन के करीब पहुंचा जसप्रीत के बेटे कुलवंत और उस की पत्नी को देख कर उस के होश उड़ गए. बिना पुलिस की प्रतीक्षा करे मानव ने जूनियर डाक्टर्स को इलाज करने के लिए बोल दिया. मानव को सम  झ नहीं आ रहा था कि वह कैसे जसप्रीत को यह बात बताए. तभी मानव को जसप्रीत की पोती   झलक की याद आई कि वह कहां है?

मानव बिना देर करे जसप्रीत को ले कर उस के बेटे कुलवंत के घर पहुंचा.   झलक दादी को देखते ही गले लग कर रोने लगी.

‘‘दादी पिछले 4 घंटो से मम्मीपापा का फोन बंद आ रहा है.’’

जसप्रीत ने मानव की तरफ देखा तो वह बोला, ‘‘तुम दोनों हौसला रखो, उन का ऐक्सीडैंट हो गया है और वे मेरे ही हौस्पिटल में भरती हैं.’’

झलक और जसप्रीत के साथ मानव जब अस्पताल पहुंचा तो कुलवंत और अजीत तब भी औपरेशन थिएटर में ही थे.

मानव ने बड़ी मुश्किल से   झलक और जसप्रीत को कुछ खिलाया और वहीं हौस्पिटल के एक कमरे में आराम करने की व्यवस्था कर दी.

जसप्रीत को बारबार यही लग रहा था कि वह मनहूस है. मगर काली रात के बाद जब सूरज की पहली किरण आई तो कुलवंत खतरे से बाहर था. दोपहर होतेहोते अजीत को भी होश आ गया. जसप्रीत की बेटी ज्योत भी आ गई थी.

पूरे 4 दिन बाद जब दोनों को डिस्चार्ज मिला तो जसप्रीत भी अपने बेटे और बहू के साथ उन के घर चली गई.

मानव ने घर से नौकर और अस्पताल से एक नर्स भी भेज दी थी. कुलवंत और ज्योत

आज पहली बार अपनी मां से नजर नहीं मिला पा रहे थे.

कुलवंत को अच्छे से पता था कि अगर वह मानव का अस्पताल न होता तो वे दोनों पतिपत्नी वहीं अस्पताल में पुलिस की प्रतीक्षा में मर जाते. मानव ने अपनी जिम्मेदारी पर ही दोनों का इलाज करा था.

पूरे 1 हफ्ते तक जसप्रीत वहां रही और खूब अच्छे से पूरे घर को संभाला.

जसप्रीत रोज रात मानव को फोन करती मगर न तो कुलवंत ने और न ही अजीत ने कभी मानव से बात करने की इच्छा जाहिर करी. जसप्रीत को थोड़ा बुरा भी लगा, मगर वह चुप लगा गई.

दीवाली से 2 दिन पहले जब जसप्रीत ने अपने घर जाने की इच्छा जाहिर करी तो   झलक बोली, ‘‘दादी, इस बार तो बूआ भी दीवाली पर यहीं हैं. आप भी प्लीज रुक जाए.’’

बहू अजीत भी बोली, ‘‘मम्मी, मान जाएं. पूरा परिवार कबकब साथ होता है? चाचाजी और चाचीजी भी यहीं पर दीवाली मनाएंगे.’’

जसप्रीत का मन किया बोलने का कि मानव के बिना यह परिवार कैसे पूरा हो सकता है? मगर वह फीकी हंसी हंस दी.

छोटी दीवाली पर अजीत की मम्मी भी आ गई थी. जसप्रीत ने मानव को जब इस प्रोग्राम के बारे में बताया तो वह बोला, ‘‘कोई बात नही जसप्रीत, तुम्हारे परिवार का तुम पर हक है.’’

दीवाली पर चारों तरफ हंसीखुशी का माहौल था. जसप्रीत ने सब की पसंद के पकवान बनाए मगर रहरह कर उस का मन मानव को याद कर रहा था.

सब के कहने पर न चाहते हुए भी जसप्रीत ने महरून सिल्क की साड़ी पहन ली थी. बहू अजीत ने सोने का सैट जबरदस्ती पहना दिया था.

बेटी ज्योत हुलसते हुए बोली, ‘‘मम्मी, सच में आज आप कमाल की लग रही हो.’’

तभी दरवाजे की घंटी बजी. मानव मिठाई के डब्बों और उपहारों के साथ खड़ा था.

जसप्रीत एकाएक घबरा गई. तभी कुलवंत ने आगे बढ़ कर मानव के पैर छू लिए, ‘‘अंकल, आप ने हमारे लिए वही किया है जो हमारे पापा जिंदा होते तो करते.’’

जसप्रीत का देवर भी बोल उठा, ‘‘भाभीजी को हम ने हमेशा गलत ही सम  झा, मगर हम ही गलत थे.’’

हंसीखुशी पटाखे छुड़ाते हुए मानव ने ही बताया, ‘‘पूरा प्लान ज्योत और अजीत का ही था.’’

देर रात को जब जसप्रीत और मानव अपने घर के लिए निकलने लगे तो मानव ने   झलक को पास बुला कर कहा, ‘‘बेटे, अब तुम्हारे इस शहर में 2 घर हैं, एक यह और एक दादी का.’’

ज्योत मुंह फुला कर बोली, ‘‘अंकल, क्या हम आप के परिवार का हिस्सा नहीं हैं?’’

मानव खुशी से बोला, ‘‘उठाओ सामान और अब कुछ दिन हमारे घर को भी गुलजार करो.’’

जसप्रीत आज मन ही मन कुदरत का धन्यवाद कर रही थी. देर से ही सही जसप्रीत को भी मुकम्मल जहां मिल गया था.

एक ही आग में : क्या एक विधवा का किसी से संबंध रखना है गुनाह

‘‘यह मैं क्या सुन रही हूं सुगंधा?’’ मीना ने जब यह बात कही, तब सुगंधा बोली, ‘‘क्या सुन रही हो मीना?’’

‘‘तुम्हारा पवन के साथ संबंध है…’’

‘‘हां है.’’

‘‘यह जानते हुए भी कि तुम विधवा हो और एक विधवा किसी से संबंध नहीं रख सकती,’’ मीना ने समझाते हुए कहा. पलभर रुक कर वह फिर बोली, ‘‘फिर तू 58 साल की हो गई है.’’

‘‘तो क्या हुआ?’’ सुगंधा ने कहा, ‘‘औरत बूढ़ी हो जाती है तब उस की इच्छा नहीं जागती क्या? तू भी तो

55-56 साल के आसपास है. तेरी भी इच्छा जब होती होगी तो क्या भाई साहब के साथ हमबिस्तर नहीं होती होगी?’’

मीना कोई जवाब नहीं दे पाई. सुगंधा ने जोकुछ कहा सच कहा है. वह भी तो इस उम्र में हमबिस्तर होती है, फिर सुगंधा विधवा है तो क्या हुआ? आखिर औरत का दिल ही तो है. उस ने कोई जवाब नहीं दिया.

तब सुगंधा बोली, ‘‘जवाब नहीं दिया तू ने?’’

‘‘तू ने जो कहा सच कहा है,’’ मीना अपनी रजामंदी देते हुए बोली.

‘‘औरत अगर विधवा है तो उस के साथ यह सामाजिक बंधन क्यों?’’ उलटा सुगंधा ने सवाल पूछते हुए कहा. तब मीना पलभर के लिए कोई जवाब नहीं दे पाई.

सुगंधा बोली, ‘‘अगर किसी की पत्नी गुजर जाती है तो वह इधरउधर मुंह मारता फिरे, तब यह समाज उसे कुछ न कहे, क्योंकि वह मर्द है. मगर औरत किसी के साथ संबंध बनाए, तब वह गुनाह हो जाता है.’’

‘‘तो फिर तू पवन के साथ शादी क्यों नहीं कर लेती?’’ मीना ने सवाल किया.

‘‘आजकल लिव इन रिलेशनशिप का जमाना है,’’ सुगंधा बोली, ‘‘क्या दोस्त बन कर नहीं रह सकते हैं?’’

‘‘ठीक है, ठीक है, तेरी मरजी जो आए वह कर. मैं ने जो सुना था कह दिया,’’ नाराज हो कर मीना बोली, ‘‘मगर तू 3 बच्चों की मां है. वे सुनेंगे तब उन पर क्या गुजरेगी, यह सोचा है?’’

‘‘हां, सब सोच लिया है. क्या बच्चे नहीं जानते हैं कि मां के दिल में भी एक दिल छिपा हुआ है. उस की इच्छा जागती होगी,’’ समझाते हुए सुगंधा बोली, ‘‘देखो मीना, इस बारे में मत सोचो. तुम अपनी लगी प्यास भाई साहब से बुझा लेती हो. काश, ऐसा न हो, मगर तुम मुझ जैसी अकेली होती तो तुम भी वही सबकुछ करती जो आज मैं कर रही हूं. समाज के डर से अगर नहीं भी करती तो तेरे भीतर एक आग उठती जो जला कर तुझे भीतर ही भीतर भस्म करती.’’

‘‘ठीक है बाबा, अब इस बारे में तुझ से कुछ नहीं पूछूंगी. तेरी मरजी जो आए वह कर,’’ कह कर मीना चली गई.

मीना ने जोकुछ सुगंधा के बारे में कहा है, सच है. सुगंधा पवन के साथ संबंध बना लेती है. यह भी सही है कि सुगंधा 3 बच्चों की मां है. उस ने तीनों की शादी कर गृहस्थी भी बसा दी है. सब से बड़ी बेटी शीला है, जिस की शादी कोटा में हुई है. सुगंधा के दोनों बेटे सरकारी नौकरी में हैं. एक सागर में इंजीनियर है तो दूसरा कटनी में तहसीलदार.

सुगंधा खुद अपने पुश्तैनी शहर जावरा में अकेली रहती है. अकेले रहने के पीछे यही वजह है कि मकान किराए पर दे रखा है.

सुगंधा के दोनों बेटे कहते हैं कि अम्मां अकेली मत रहो. हमारे साथ आ कर रहो, तब वह कभीकभी उन के पास चली जाती है. महीने दो महीने तक जिस बेटे के पास रहना होता है रह लेती है. मगर रहतेरहते यह एहसास हो जाता है कि उस के रहने से वहां उन की आजादी में बाधा आ रही है, तब वह वापस पुश्तैनी शहर में आ जाती है.

यहां बड़ा सा मकान है सुगंधा का, जिस के 2 हिस्से किराए पर दे रखे हैं, एक हिस्से में वह खुद रहती है. पति की पैंशन भी मिलती है. उस के पति शैलेंद्र तहसील दफ्तर में बड़े बाबू थे. रिटायरमैंट के सालभर के भीतर उन का दिल की धड़कन रुकने से देहांत हो गया.

आज 3 साल से ज्यादा समय बीत गया है, तब से वह खुद को अकेली महसूस कर रही है. अभी उस के हाथपैर चल रहे हैं. सामाजिक जिम्मेदारी भी वह निभाती है. जब हाथपैर चलने बंद होंगे, तब वह अपने बेटों के यहां रहने चली जाएगी. फिर किराएदारों से किराया भी समय पर वसूलना पड़ता है. इसलिए उस का यहां रहना भी जरूरी है.

ज्यादातर सुगंधा अकेली रहती है, मगर जब गरमी की छुट्टियां होती हैं तो बेटीबेटों के बच्चे आ जाते है. पूरा सूना घर कोलाहल से भर जाता है. अकेले में दिन तो बीत जाता है, मगर रात में घर खाने को दौड़ता है. तब बेचैनी और बढ़ जाती है. तब आंखों से नींद गायब हो जाती है. ऐसे में शैलेंद्र के साथ गुजारी रातें उस के सामने चलचित्र की तरह आ जाते हैं. मगर जब से वह विधवा हुई है, शैलेंद्र की याद और उन के साथ बिताए गए पल उसे सोने नहीं देते.

पवन सुगंधा का किराएदार है. वह अकेला रहता है. वह पौलीटैक्निक में सिविल मेकैनिक पद पर है. उस की उम्र 56 साल के आसपास है. उस की पत्नी गुजर गई है. वह अकेला ही रहता है. उस के दोनों बेटे सरकारी नौकरी करते हैं और उज्जैन में रहते हैं. दोनों की शादी कर के उन का घर बसा दिया है.

रिटायरमैंट में 6 साल बचे हैं. वह किराए का मकान तलाशने आया था. धीरेधीरे दोनों के बीच खिंचाव बढ़ने लगा. जिस दिन चपरासी रोटी बनाने नहीं आता, उस दिन सुगंधा पवन को अपने यहां बुला लेती थी या खुद ही वहां बनाने चली जाती थी.

पवन ऊपर रहता था. सीढि़यां सुगंधा के कमरे के गलियारे से ही जाती थीं. आनेजाने के बीच कई बार उन की नजरें मिलती थीं. जब सुगंधा उसे अपने यहां रोटी खाने बुलाती थी, तब कई बार जान कर आंचल गिरा देती थी. ब्लाउज से जब उभार दिखते थे तब पवन देर तक देखता रहता था. वह आंचल से नहीं ढकती थी.

अब सुगंधा 58 साल की विधवा है, मगर फिर भी टैलीविजन पर अनचाहे सीन देखती है. उस के भीतर भी जोश पैदा होता है. जोश कभीकभी इतना ज्यादा हो जाता है कि वह छटपटा कर रह जाती है.

एक दिन सुगंधा ने पवन को अपने यहां खाना खाने के लिए बुलाया. उसे खाना परोस रही थी और कामुक निगाहों से देखती भी जा रही थी. वह आंचल भी बारबार गिराती जा रही थी. मगर पवन संकेत नहीं समझ पा रहा था. वह उम्र में उस से बड़ी भी थी. उस की आंखों पर लाज का परदा पड़ा हुआ था.

सुगंधा ने पहल करते हुए पूछ लिया, ‘‘पवन, अकेले रहते हो. बीवी है नहीं, फिर भी रात कैसे गुजारते हो?’’

पवन कोई जवाब नहीं दे पाया. एक विधवा बूढ़ी औरत ने उस से यह सवाल पूछ कर उस के भीतर हलचल मचा दी. जब वह बहुत देर तक इस का जवाब नहीं दे पाया, तब सुगंधा फिर बोली, ‘‘आप ने जवाब नहीं दिया?’’

‘‘तकिया ले कर तड़पता रहता हूं,’’ पवन ने मजाक के अंदाज में कहा.

‘‘बीवी की कमी पूरी हो सकती है,’’ जब सुगंधा ने यह बात कही, तब पवन हैरान रह गया, ‘‘आप क्या कहना चाहती हो?’’

‘‘मैं हूं न आप के लिए,’’ इतना

कह कर सुगंधा ने कामुक निगाहों से पवन की तरफ देखा.

‘‘आप उम्र में मुझ से बड़ी हैं.’’

‘‘बड़ी हुई तो क्या हुआ? एक औरत का दिल भी है मेरे पास.’’

‘‘ठीक है, आप खुद कह रही हैं तो मुझे कोई एतराज नहीं.’’

इस के बाद तो वे एकदूसरे के बैडरूम में जाने लगे. जल्दी ही उन के संबंधों को ले कर शक होने लगा. मगर आज मीना ने उन के संबंधों को ले कर जो बात कही, उसे साफसाफ कह कर सुगंधा ने अपने मन की सारी हालत बता दी. मगर एक विधवा हो कर वह जो काम कर रही है, क्या उसे शोभा देता है? समाज को पता चलेगा तब सब उस की बुराई करेंगे. उस पर ताने कसेंगे.

मीना ने तो सुगंधा के सामने पवन से शादी करने का प्रस्ताव रखा. उस का प्रस्ताव तो अच्छा है, शादी समाज का एक लाइसैंस है. दोनों के भीतर एक ही आग सुलग रही है.

मगर इस उम्र में शादी करेंगे तो मजाक नहीं उड़ेगा. अगर इस तरह से संबंध रखेंगे तब भी तो मजाक ही बनेगा.

सुगंधा बड़ी दुविधा में फंस गई. उस ने आगे बढ़ कर संबंध बनाए थे. इस से अच्छा है कि शादी कर लो. थोड़े दिन लोग बोलेंगे, फिर चुप हो जाएंगे. उस ने ऐसे कई लोग देखे हैं जो इस उम्र में जा कर शादी भी करते हैं. क्यों न पवन से बात कर के शादी कर ले?

‘‘अरे सुगंधा, आप कहां खो गईं?’’ पवन ने आ कर जब यह बात कही, तब सुगंधा पुरानी यादों से आज में लौटी, ‘‘लगता है, बहुत गहरे विचारों में खो गई थीं?’’

‘‘हां पवन, मैं यादों में खो गई थी.’’

‘‘लगता है, पुरानी यादों से तुम परेशानी महसूस कर रही हो.’’

‘‘हां, सही कहा आप ने.’’

‘‘देखो सुगंधा, यादों को भूल जाओ वरना ये जीने नहीं देंगे.’’

‘‘कैसे भूल जाऊं पवन, आप से आगे रह कर जो संबंध बनाए… मैं ने अच्छा नहीं किया,’’ अपनी उदासी छिपाते हुए सुगंधा बोली. फिर पलभर रुक कर वह बोली, ‘‘लोग हम पर उंगली उठाएंगे, उस के पहले हमें फैसला कर लेना चाहिए.’’

‘‘फैसला… कौन सा फैसला सुगंधा?’’ पवन ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘हमारे बीच जो संबंध है, उसे तोड़ दें या परमानैंट बना लें.’’

‘‘मैं आप का मतलब नहीं समझा?’’

‘‘मतलब यह कि या तो आप मकान खाली कर के कहीं चले जाएं या फिर हम शादी कर लें.’’

सुगंधा ने जब यह प्रस्ताव रखा, तब पवन भीतर ही भीतर खुश हो गया. मगर यह संबंध कैसे होगा. वह बोला, ‘‘हम शादी कर लें, यह बात तो ठीक है सुगंधा. मगर आप की और हमारी औलादें सब घरगृहस्थी वाली हो गई हैं. ऐसे में शादी का फैसला…’’

‘‘नहीं हो सकता है, यही कहना चाहते हो न,’’ पवन को रुकते देख सुगंधा बोली, ‘‘मगर, यह क्यों नहीं सोचते कि हमारी औलादें अपनेअपने घर में बिजी हैं. अगर हम शादी कर लेंगे, तब वे हमारी चिंता से मुक्त हो जाएंगे. जवानी तो मौजमस्ती और बच्चे पैदा करने की होती है. मगर जब पतिपत्नी बूढ़े हो जाते हैं, तब उन्हें एकदूसरे की ज्यादा जरूरत होती है. आज हमें एकदूसरे की जरूरत है. आप इस बात को क्यों नहीं समझते हो?’’

‘‘आप ने ठीक सोचा है सुगंधा. मेरी पत्नी गुजर जाने के बाद मुझे अकेलापन खूब खलने लगा. मगर जब से आप मेरी जिंदगी में आई हैं, मेरा वह अकेलापन दूर हो गया है.’’

‘‘सच कहते हो. मुझे भी अपने पति की रात को अकेले में खूब याद आती है,’’ सुगंधा ने भी अपना दर्द उगला.

‘‘मतलब यह है कि हम दोनों एक ही आग में सुलग रहे हैं. अब हमें शादी किस तरह करनी चाहिए, इस पर सोचना चाहिए.’’

‘‘आप शादी के लिए राजी हो गए?’’ बहुत सालों के बाद सुगंधा के चेहरे पर खुशी झलकी थी. वह आगे बोली, ‘‘शादी किस तरह करनी है, यह सब मैं ने सोच लिया है.’’

‘‘क्या सोचा है सुगंधा?’’

‘‘अदालत में गुपचुप तरीके से खास दोस्तों की मौजूदगी में शादी करेंगे.’’

‘‘ठीक है.’’

‘‘मगर, इस की हवा किसी को भी नहीं लगनी चाहिए. यहां तक कि अपने बच्चों को भी नहीं.’’

‘‘मगर, बच्चों को तो बताना ही पड़ेगा,’’ पवन ने कहा, ‘‘जब हमारे हाथपैर नहीं चलेंगे, तब वे ही संभालेंगे.’’

‘‘शादी के बाद एक पार्टी देंगे. जिस का इंतजाम हमारे बच्चे करेंगे,’’ जब सुगंधा ने यह बात कही, तब पवन भी सहमत हो गया.

इस के ठीक एक महीने बाद कुछ खास दोस्तों के बीच अदालत में शादी कर के वे जीवनसाथी बन गए. सारा महल्ला हैरान था. उन्होंने अपनी शादी की जरा भी हवा न लगने दी थी. 2 बूढ़ों की अनोखी शादी पर लोगों ने उन की खिल्ली उड़ाई. मगर उन्होंने इस की जरा भी परवाह नहीं की.

कोई खुश हो या न हो, मगर उन की औलादें इस शादी से खुश थीं, क्योंकि उन्हें मातापिता की नई जोड़ी जो मिल गई थी.

संबल: विनोद को सही राह पर कैसे लायी उसकी पत्नी

अपने मैरिजहोम के स्वागतकक्ष में बैठी नमिता मुख्य रसोइए से शाम को होने वाले एक विवाह की दावत के बारे में बातचीत कर रही थी, तभी राहुल उस के कमरे में आया. नमिता को स्वागतकक्ष में देख कर एक बार को वह ठिठक सा गया, ‘‘अरे, नमिता, तुम यहां?’’ निगाहों में ही नहीं, उस के स्वर में भी आश्चर्य था.

‘‘क्यों? क्या मैं यहां नहीं हो सकती?’’ हंसते हुए नमिता ने गरमजोशी से राहुल का स्वागत किया और बगल में पड़ी कुरसी की तरफ बैठने का संकेत कर रसोइए से अपनी बात जारी रखी, फिर उसे एक सूची पकड़ा कर बोली, ‘‘इस सूची के मुताबिक दावत की हर चीज तैयार रखें. खाना लगभग 9 बजे होना है. कोई शिकायत नहीं सुनूंगी मैं.’’

‘‘जी मैडम,’’ रसोइए ने सिर झुका कर कहा और सूची ले वहां से चला गया.

‘‘यह क्या लफड़ा है भई?’’ राहुल ने अचरज से पूछा.

‘‘कोई खास नहीं,’’ नमिता मुसकराई. वही पुरानी मारक मुसकान, जिस का राहुल कभी दीवाना था.

‘‘अपनी शादी तो सफल नहीं हो सकी राहुल, पर दूसरों की शादियों का सफल आयोजन करने लगी हूं,’’ कह कर खुल कर हंसी नमिता. हंसते समय उसी तरह उस के गालों में पड़ने वाले गड्ढे और वैसे ही खिलखिलाने के साथ उस की छलक उठने वाली चमकदार पनीली आंखें. कुछ भी तो नहीं बदला है नमिता में.

‘‘आजकल कहां हैं महाशय?’’ राहुल को पता था, नमिता का पति एक गैरजिम्मेदार व भगोड़ा किस्म का व्यक्ति निकला. जिस ने शादी के बाद जीवन की किसी भी जिम्मेदारी को ठीक से कभी निभाने की कोशिश नहीं की.

‘‘किसी तरह बिगड़ैल बैल को गाड़ी के जुए के नीचे रखने में सफल हो गई हूं राहुल,’’ वह सगर्व बोली, ‘‘आजकल हमारे इस मैरिजहोम का बाहरी काम वही देखते हैं. आदतों में भी कुछ बदलाव आए हैं. आशा है, अब सब ठीक हो जाएगा.’’

‘‘लेकिन इतना आलीशान मैरिजहोम तुम ने बना कैसे डाला?’’ राहुल चकित स्वर में बोला, ‘‘कोई बैंक लूटा क्या तुम लोगों ने?’’

‘‘दिल में अगर कुछ करने का हौसला हो तो पैसे लगाने वालों की कमी नहीं है राहुल,’’ नमिता बोली, ‘‘मैं जिस कंपनी में काम करती थी, उस के मालिक खन्ना साहब पैसे वाले आदमी हैं. शहर में एक अच्छे मैरिजहोम की जरूरत सब महसूस कर रहे थे, पर कोईर् आगे बढ़ने का साहस नहीं कर रहा था. मैं ने खन्ना साहब से इस संबंध में अपना प्रस्ताव रखते हुए बात की तो वे गंभीर हो गए. वे बोले, ‘अगर तुम उस का इंतजाम कर सकती हो और सारा कुछ अपनी देखरेख में चला सकती हो तो बताओ.’

‘‘मैं ने हिम्मत जुटाई और उन्होंने पैसा लगाया. साहस का संबल यह रहा कि मैरिजहोम शहर की नाक बन गया है. अब हर अच्छी शादी का इंतजाम हम करते हैं. हर अच्छी दावत हमारे यहां से होती है. और आप आश्चर्य करेंगे कि हमारे पति महाशय को अब सिर उठाने की फुरसत नहीं मिलती. रातदिन इस के प्रबंधन में जुटे रहते हैं. खुश भी हैं और संतुष्ट भी.’’

‘‘यानी आजाद पंछी को अपने पिंजड़े में कैद कर लिया तुम ने,’’ राहुल मुसकराया, ‘‘चलो, अच्छा हुआ, वरना मैं परेशान रहता था तुम्हें ले कर कि तुम शादी कर के खुश नहीं रह सकीं.’’

‘‘एक बार को तो सबकुछ उजड़ ही गया था राहुल. लगने लगा था कि सब बिखर गया. जीवन बेकार हो गया. शादी असफल हो जाएगी. विनोद सचमुच ऐसे इंसान नहीं हैं जो घर बसा कर रहने में विश्वास रखते हों. वे यायावर, घुमक्कड़ किस्म के व्यक्ति हैं, आज यहां तो कल वहां. आज यह नौकरी तो कल वह, आज इस शहर में तो कल उस शहर में. दरदर की ठोकरें खाना उन की प्रवृत्ति और आदत में शुमार था राहुल. यह मैं ही जानती हूं कि कैसे उन्हें सही रास्ते पर लाई और अब खुश हूं कि वे मुझे पूरा सहयोग कर रहे हैं और इस काम में रुचि ले रहे हैं. काम चल निकला है और हमें खासी आमदनी होने लगी है.’’

‘‘यह करिश्मा किस का मानूं? तुम्हारा या विनोद का?’’ राहुल ने नमिता की आंखों में अपने पुराने दिन खोजने चाहे, जिन की कोई छाया तक उसे नहीं मिली. कितनी बदल गई है नमिता, कितना आत्मविश्वास छलक रहा है अब उस में.

नमिता के मातापिता नमिता का रिश्ता राहुल से करना चाहते थे. राहुल नमिता को पसंद भी बहुत करता था. जाति की बाधा भी नहीं थी. विश्वविद्यालय में वह नमिता के लिए रोज चक्कर लगाता था. नमिता तब इंग्लिश में एमए कर रही थी और राहुल उसी शहर में आयुर्वेदिक कालेज में बीएएमएस कर रहा था. करना तो हर युवक की तरह वह एमबीबीएस ही चाहता था, पर कई बार परीक्षा में बैठने के बाद भी उस में सफल नहीं हुआ तो जिस में प्रवेश मिल गया, वही पढ़ने लगा था. ऐलोपैथिक डाक्टर न सही, आयुर्वेदिक ही सही. डाक्टर तो बन ही रहा था. नमिता के मातापिता चाहते थे, नमिता जैसी नकचढ़ी लड़की अगर राहुल को पसंद कर ले तो उन के सिर का भार कम हो. पर नमिता ने इनकार कर दिया. उस के इनकार से राहुल को चोट भी पहुंची, लेकिन वह जोरजबरदस्ती किसी लड़की से शादी कैसे कर सकता था?

एक दिन राहुल ने पूछा था, ‘मैं

जानना चाहता हूं कि तुम ने मुझे

क्यों अस्वीकार किया नमिता? मुझ में क्या कमी या खराबी देखी तुम ने.’

‘कोई खराबी या कमी नहीं है राहुल तुम में. सच पूछो तो तुम मेरे एक अच्छे दोस्त हो जिस से मिल कर मुझे वाकई हमेशा अच्छा लगता है, खुशी होती है. पर राहुल, बुरा मत मानना, मैं किसी और से प्यार करती हूं.’

सुन कर जैसे राहुल आसमान से गिरा हो, ‘कौन है वह खुशनसीब?’

‘विनोद,’ नमिता बोली, ‘तुम जानते हो उसे. कई बार मेरे साथ तुम्हारी उस से मुलाकात हुई है. वह मेरा सहपाठी है.’

देर तक गुमसुम बना रहा था राहुल, फिर किसी तरह बोला था, ‘तुम अपने फैसले पर फिर विचार करो नमिता. मैं विनोद की आलोचना किसी जलन से नहीं कर रहा. सच कहूं तो मुझे वह एक बेहद गैरजिम्मेदार किस्म का युवक लगता है. मैं नहीं समझ पा रहा कि तुम ने उसे कैसे और क्यों अपने लिए पसंद किया. हो सकता है, उस की कोई बात या गुण तुम्हें अच्छा लगा हो, पर…’

‘अपनाअपना दृष्टिकोण है राहुल’, नमिता बोली थी, ‘मुझे उस का यह बिखरा, बेढंगा व्यक्तित्व ही बेहद पसंद आया है. वह लकीर का फकीर नहीं है. बंध कर किसी एक विचार और बात पर टिकता नहीं है, यह उस का गुण भी है और अवगुण भी. वह जैसा भी है, वैसा ही मुझे पसंद है राहुल.’

‘तुम्हारे घर वाले राजी हैं, विनोद के लिए?’ राहुल ने दूसरा दांव फेंका.

नमिता बोली, ‘राजी नहीं हैं, पर मैं ने तय कर लिया है. शादी करूंगी तो विनोद से ही, वरना आजीवन कुंआरी रहूंगी,’ उस के दृढ़ निश्चय ने राहुल को एकदम निराश कर दिया था. उस के बाद वह नमिता से कभी नहीं मिला. सिर्फ इधरउधर से उस के बारे में सुनता रहा कि नमिता विनोद से शादी कर खुश नहीं रह सकी.

‘‘खैर, मेरी छोड़ो राहुल, अपनी बताओ कुछ,’’ नमिता ने पूछा, ‘‘आज अचानक यहां इस शहर में कैसे?’’

‘‘जिस बरात की दावत का यहां इंतजाम है, उस का मैं बराती हूं नमिता. कार्ड में यहां का पता था और संपर्क में तुम्हारा नाम. तो तुम से मिलने चला आया. और सचमुच तुम्हें यहां पा कर बहुत आश्चर्य हुआ मुझे.’’

‘‘चलो, ऊपर की मंजिल पर अपने कमरे में ले चलूं तुम्हें,’’ कह कर नमिता उठ खड़ी हुई. अपने सहायक से बोली, ‘‘विनोद साहब आएं तो कहना कि सूची में लिखे सलाद का इंतजाम वे अपनी देखरेख में खुद कराएं.’’

‘‘जी मैडम,’’ सहायक ने उठ कर कहा तो राहुल को लगा कि नमिता की अपने काम पर पूरी पकड़ है और वह सचमुच मैरिजहोम की एक कुशल संचालिका है.

नमिता का कमरा तरतीब से सजा था. राहुल दीवान पर आराम से बैठ गया. नमिता ने घंटी बजा कर ठंडा पेय मंगाया, ‘‘अब अपनी सुनाओ राहुल, शादी की? बच्चे हैं?’’ नमिता की टटोलती नजरों से बचने का प्रयास करता रहा राहुल. चेहरे पर कुछ देर पहले की हंसी अब गायब हो गई थी. वह अचकचा उठा था. कुछ सोच नहीं पा रहा था, कैसे कहे और क्या कहे.

संकोच देख कर नमिता ने उस की तरफ गौर से ताका, ‘‘क्या बात है राहुल? मुझे लग रहा है तुम किसी कशमकश से गुजर रहे हो.’’

‘‘ठीक पकड़ा तुम ने नमिता,’’ वह खिसिया सा गया, ‘‘एक कसबाईर् शहर में सरकारी अस्पताल में नौकरी कर रहा हूं. पत्नी मुझ से खुश नहीं है. उसे लगता है, उस के साथ धोखा हुआ है. जैसा डाक्टर वह समझ रही थी, मैं वैसा डाक्टर नहीं निकला. उस की कल्पना थी कि मेरे पास कार होगी, बंगला होगा, नौकरचाकर होंगे. शहर में नाम होगा, मरीजों की लाइन लगी होगी, हर कोई इज्जत देगा. पर उस की उम्मीदों पर उस वक्त पानी फिर गया, जब उस ने जाना कि मैं आयुर्वेदिक डाक्टर हूं और सरकारी अस्पताल में मुझे मरीज तभी दिखाता है, जब कोई और डाक्टर वहां उसे नहीं मिलता. मरीज को मुझ पर विश्वास भी नहीं होता.

‘‘तनख्वाह जरूर दूसरे डाक्टरों जितनी ही मिलती है, पर न वह भाव है, न वह सम्मान. अस्पताल की नर्सें और कर्मचारी तक मुझे डाक्टर नहीं गिनते, न मेरी कोई बात सुनते हैं. साथी डाक्टर मुझे अपने साथ नहीं बैठाते. अपनी पार्टियों में मुझे नहीं बुलाते. एक प्रकार से अछूत माना जाता हूं मैं उन के बीच. उन की बीवियां मेरी बीवी को इज्जत नहीं देतीं. उस के मुंह पर कह देती हैं, ‘वह भी कोई डाक्टर है? चूरनचटनी से इलाज करता है. क्या देख कर तुम्हारे मांबाप ने उस से शादी कर दी.’’’

‘‘अरे,’’ नमिता को दुख सा हुआ, ‘‘तब तो तुम्हारी पत्नी सचमुच अपमानित महसूस करती होगी.’’

‘‘हां,’’ राहुल बोला, ‘‘उस अपमान के एहसास ने ही उस के दिल में मेरे प्रति नफरत पैदा करा दी नमिता. उसे मेरी सूरत से नफरत हो गई. मैं उस की आंखों में एकदम नकारा और बेकार आदमी हो गया. बिना मुझ से पूछे उस ने गर्भपात करवा लिया. अपने मायके में कह दिया, ‘ऐसे वाहियात आदमी का बच्चा मैं अपने पेट में नहीं पाल सकती.’’’

‘‘अरे, बड़ी बददिमाग औरत है वह,’’ नमिता बोली, ‘‘कहीं ऐसे जिया जाता है अपने पति के साथ?’’

‘‘2 साल वह मायके में ही रही. बारबार बुलाने पर भी नहीं आई. आखिर मैं ही गया अपनी नाक नीची कर के उसे लेने, उस के मातापिता से बात की. पूछा, मेरा क्या कुसूर है? जैसा डाक्टर हूं, वह शादी से पहले उन्हें बता दिया था. उन लोगों ने अपनी लड़की को शादी से पहले ही क्यों नहीं बता दिया? उसे अंधेरे में क्यों रखा? उस की आंखों में इतने बड़े सपने क्यों दिए कि वह जीवन की इस कठोर सचाई से आंखें नहीं मिला सकी?’’

‘‘मांबाप ने तुम्हारा पक्ष नहीं लिया?’’ नमिता ने पूछा.

‘‘कोई मांबाप नहीं चाहता कि उन की लड़की का बसा हुआ घर उजड़े. उन लोगों ने भी लड़की को बहुत समझाया, ‘शादीब्याह हंसीखेल नहीं है. जीवन का प्रश्न है. निर्वाह करना चाहिए. जीवन में ऊंचनीच, अच्छाबुरा कहां नहीं होता? कोई ऐसे लड़झगड़ कर अपने घर से भाग आती है?’’’

‘‘फिर कुछ समझी वह?’’ नमिता ने पूछा.

‘‘हां,’’ राहुल बोला, ‘‘लेकिन उस ने साथ चलने के लिए एक शर्त रखी.’’

‘‘ओह, शादी न हुई एक शर्तनामा हो गया,’’ हंस दी नमिता.

‘‘लेकिन मैं ने उस की वह शर्त तुरंत मान ली,’’ राहुल बोला, ‘‘उस ने कहा, ‘मैं अपना तबादला किसी ऐसे छोटे कसबे में करवा लूं जहां मुख्य डाक्टर मैं ही होऊं और कसबे वाले मुझे सचमुच डाक्टर मानें.’’’ राहुल कुछ चुप रह कर संतुष्ट स्वर में बोला, ‘‘अब जिस कसबे में हूं, वहां वह मेरे साथ खुश है. हालांकि वहां हर वक्त बिजली नहीं मिलती. अस्पताल में साधनों की कमी है. दवाएं अकसर नहीं होतीं. पर कसबे के दुकानदार दवाएं रखते हैं और मैं जिन दवाओं को परचे पर लिख देता हूं, उन्हें मंगाने की कोशिश करते हैं, जिस से मरीज ठीक होते हैं और मेरे प्रति लोगों का विश्वास जमने लगा है.

‘‘मुझे भी अब लगता है कि पत्नी की शर्त मान कर मैं ने शायद ठीक ही किया. बड़े शहर में जहां एक से एक कुशल और विशेषज्ञ डाक्टर मौजूद हों, वहां मुझ जैसे आयुर्वेदिक डाक्टर को कौन पूछेगा भला? वहां कोई क्यों मुझे सम्मान देगा, महत्त्व देगा? पर गांवकसबों में जहां विशेषज्ञ क्या, किसी तरह का डाक्टर नहीं होता, वहां लोग मुझे सम्मान देते हैं. मुझ में भी आत्मविश्वास आया है नमिता.’’

कर्मचारी शीतल पेय रख गया और दोनों पीने लगे थे. इस बीच नमिता का पति विनोद भी वहां आया था. नमिता ने परिचय कराया तो विनोद हंस दिया, ‘‘तुम तो ऐसे परिचय करा रही हो जैसे हम पहली बार मिल रहे हों.’’

कुछ औपचारिक बातों के बाद वह काम से चला गया. राहुल को लगा कि विनोद अब पहले जैसा अस्तव्यस्त और बेढंगा व्यक्तित्व वाला व्यक्ति नहीं रहा. वह काफी चुस्तदुरुस्त और व्यस्त सा लगा. राहुल मुसकरा दिया, ‘‘तुम ने तो विनोद की काया पलट दी नमिता.’’

‘‘मैरिजहोम में हम हर नए जोड़े से खिलखिलाती जिंदगी की इच्छा रखते हैं. इसलिए क्या एक औरत समझदारी से काम ले कर अपनी खुद की जिंदगी को खुशियों से नहीं भर सकती राहुल?’’

‘‘जरूर भर सकती है, अगर वह पति की संबल बन जाए,’’ राहुल मुसकराया, ‘‘मुझे खुशी है कि तुम ने विनोद को संभाल लिया नमिता.’’

‘‘पहले बच्चे का गर्भपात करवाने के बाद तुम्हारी पत्नी ने दूसरे बच्चे का मन बनाया या नहीं?’’ नमिता ने पूछा.

‘‘सालभर की एक बच्ची है नमिता,’’ राहुल झेंपा, ‘‘पत्नी अब मेरे साथ खुश रहती है. कसबे की औरतों में उस का सम्मान है. हर जगह उस को बुलाया जाता है और वह आतीजाती है. शायद दूसरों से जब हम अपनी तुलना करने लगते हैं तो हमारे अभाव हमें टीसने लगते हैं नमिता.

‘‘हमारी कमियां हमें आत्महीनता के दलदल में धंसाने लगती हैं. ऊंट अगर पहाड़ की तलहटी में आ कर अपनी ऊंचाई नापना चाहेगा तो अपने पर पछताएगा ही. पर जब वही ऊंट रेगिस्तान के बियाबान में अकेला होगा तो सब से ज्यादा महत्त्वपूर्ण साधन होगा, और सब से ऊंचा भी. यह रहस्य हम लोग कसबे में पहुंच कर समझ पाए. मैं भी ऐसा कोई अवसर नहीं चूकता, जहां मैं अपनी पत्नी को खुश कर सकूं. वह सचमुच अब प्रसन्न रहने लगी है नमिता.’’

पता नहीं किन नजरों से ताकती रही नमिता राहुल को. राहुल भी उसे ताकता रहा. पता नहीं. किस का लिखा वाक्य राहुल को उस वक्त याद आता रहा. औरतें मर्दों से ज्यादा बुद्धिमान होती हैं. हालांकि वे जानती कम हैं, पर जीवन की समझ उन में ज्यादा होती है. यह समझ ही तो है जो आज भी भारतीय परिवारों को बल और संबल प्रदान किए हुए है, जिस से आदमी अपने कद से ज्यादा ऊंचा उठा रहता है और आत्महीनता के दलदल में धंसने से बचा रहता है. औरतें ही तो हैं जो विनोद जैसे बेढंगे व्यक्ति को भी ढंग के आदमी में बदल देती हैं.

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जब सगी बहन ही बीवी हो

अभी कुछ ही देर पहले ट्रेन लंदन के पैडिंगटन स्टेशन से औक्सफोर्ड रेलवे स्टेशन पर आई थी. सोफिया ने अपना बैग पीठ पर डाला और सूटकेस के साथ कोच से नीचे आई. कुछ

देर प्लेटफौर्म पर इधरउधर देखा फिर दिए गए दिशानिर्देश के अनुसार टैक्सी स्टैंड की ओर

चल पड़ी.

उस दिन औक्सफौर्ड में मूसलाधार बारिश हो रही थी. टैक्सी स्टैंड पर पहले से ही काफी लोग टैक्सी की कतार में खड़े थे. औक्सफोर्ड

एक छोटा शहर है जो अपनी यूनिवर्सिटी के लिए दुनियाभर में जाना जाता है. वहां स्टूडैंट्स पैदल

या साइकिल से चलते हैं. सोफिया के आगे एक हमउम्र लड़का भी सामान के साथ खड़ा था. उसे लगा कि यह लड़का भी जरूर यूनिवर्सिटी जा

रहा होगा.

करीब 20-30 मिनट पर एक टैक्सी आई. उस ने लड़के से पूछा, ‘‘अगर मैं गलत नहीं तो तुम भी औक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी जा रहे हो? हम लोग बहुत देर से खड़े हैं टैक्सी के लिए. अगर तुम्हें एतराज न हो तो हम दोनों टैक्सी शेयर

कर लें.’’

‘‘मु झे कोई एतराज नहीं बशर्ते टैक्सी वाला भी मान जाए,’’ लड़के ने कहा और कुछ पल उसे घूरने लगा.

‘‘क्या हुआ? ऐसे क्यों देख रहे हो? तुम्हें प्रौब्लम है तो रहने दो, मैं टैक्सी का इंतजार कर लूंगी.’’

‘‘सौरी. मु झे कोई प्रौब्लम नहीं होगा. उम्मीद है तुम फेयर शेयर करोगी तो मु झे फायदा ही है . फेयर नहीं शेयर करोगी तब भी मु झे कोई प्रौब्लम नहीं है,’’ बोल कर लड़का मुसकरा पड़ा.

फिर दोनों टैक्सी में सवार हुए. लड़के ने कहा, ‘‘मैं सैंडर हूं. मैं सैंडर सिट्रोएन नीदरलैंड से हूं पर इंग्लिश मेरा विषय रहा है और मैं वहां के इंग्लिश स्पीकिंग क्षेत्र से हूं. बाद में हम लोग स्कौटलैंड चले आए पर अब मेरे पेरैंट्स नहीं हैं.’’

‘‘सौरी टू हियर अबौउट योर पेरैंट्स.  मैं सोफिया डी वैन. शायद मेरी मम्मी भी डच ही थीं पर मु झे किसी और ने गोद लिया था. हम लोग आयरलैंड में सैटल्ड हैं पर मेरी मम्मी भी अब नहीं रही हैं.’’

रास्ते में सोफिया और सैंडर दोनों बातें करते रहे. इसी दौरान उन्हें पता चला कि दोनों को एक ही पते पर जाना था. दोनों ने एक ही अपार्टमैंट में एक रूम का स्टूडियो पहले से ही बुक करा रखा था और वह भी एक ही फ्लोर पर. हालांकि सोफिया का ईस्टर्न विंग में था तो सैंडर का वैस्टर्न विंग में. थोड़ी ही देर में दोनों अपार्टमैंट पहुंच गए. वहां लिफ्ट की सुविधा नहीं थी. उन्हें पहली मंजिल पर जाना था इसलिए ज्यादा दिक्कत नहीं हुई. सीढि़यां चढ़ने के बाद सोफिया पूरब की तरफ मुड़ गई और सैंडर पश्चिम की.

वन रूम स्टूडियो बड़े सलीके से बनाया गया था. अंदर प्रवेश करने पर एक तरफ छोटा बाथरूम और उस के आगे 12?12 फुट का एक कमरा था. इसी कमरे में 12 फुट लंबा एक वार्डरोब था जिसे खोलने पर उसी के अंदर किचन, सिंक और एक स्टोरेज रैक था. किचन के नाम पर एक तरफ इलैक्ट्रिक स्टोव था और दूसरी तरफ नीचे एक छोटा सा फ्रिज. रूम से सटी 4 फुट की बालकनी थी जहां कपड़े सुखाने के लिए एक स्टैंड था. रूम में एक फर्निश्ड सिंगल बैड, 1 छोटी टेबल और 1 चेयर थी. यह छोटा सा स्टूडियो किसी स्टूडैंट के लिए परिपूर्ण था.

2 दिन बाद यूनिवर्सिटी की ओर से नए विद्यार्थियों के लिए एक गाइडेड टूर का प्रबंध था. इस से नए विद्यार्थी को यूनिवर्सिटी की भिन्न विभागों की जानकारी मिलती है. सोफिया और सैंडर दोनों का टूर एक ही दिन था. इस के बाद वीकैंड था और फिर सैमैस्टर की शुरुआत. सैंडर भूगोल में मास्टर करने आया था और सोफिया इंग्लिश में. सैंडर ने बीए स्कौटलैंड में ही पूरी कर ली थी और यहां एमफिल करने आया था जबकि सोफिया को 3 साल की इंग्लिश में बीए और फिर 1 साल का मास्टर कोर्स करना था. दोनों को 4 वर्ष वहां पढ़ना था.

सोफिया और सैंडर दोनों साइकिल से कालेज आतेजाते. अपार्टमैंट के ग्राउंड फ्लोर पर मालिक ने एक कवर्ड साइकिल स्टैंड  बना रखा था. विद्यार्थी अकसर साइकिल से या पैदल चल कर कालेज जाते. यूनिवर्सिटी में दोनों को एकसाथ देख कर अकसर उन के दोस्त कहते कि दोनों के चेहरे कुछ हद तक मिलते हैं. अब सोफिया को भी लगा कि उस के और सैंडर के चेहरे में कुछ समानता है. शायद इसी कारण पहली ही मुलाकात में वह उसे घूरने लगा था. औक्सफोर्ड आए अभी 2 साल ही हुए थे कि सोफिया के पापा का निधन हो गया. वे

पत्नी के निधन के बाद ज्यादा शराब पीने लगे थे. जब तक सोफिया साथ थी उन्हें ज्यादा पीने से रोकती. बेटी के जाने के बाद वे बिलकुल अकेले पड़ गए और अब उन्हें रोकने वाला कोई न था. नतीजतन उन्हें लिवर सिरोसिस हुआ और वे चल बसे.

दुख की इस घड़ी में सैंडर सोफिया के साथ खड़ा रहा और उस का साहस बढ़ाते रहा. दोनों एकदूसरे के और नजदीक हो गए और उन में प्यार का बीज फूट पड़ा. दोनों एकदूसरे को चाहने लगे, एकदूसरे की भावनाओं की इज्जत करते. उन्होंने मिल कर फैसला किया कि फिलहाल हम शादी नहीं करेंगे. अपनीअपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद और अपने पैरों पर खड़े होने के बाद ही शादी होगी.

करीब 2 वर्ष बाद वह समय भी आ गया जब उन की पढ़ाई पूरी हुई. शादी की 2 शर्तों में से एक पूरी हुई. अब उन्हें नौकरी की तलाश थी. सैंडर के कहने पर सोफिया भी उस के साथ स्कौटलैंड आई. कुछ ही दिनों के बाद सैंडर को एडिनबरा के एक कालेज में ट्यूटर की नौकरी मिल गई.

तब सैंडर ने सोफिया से कहा, ‘‘तुम शादी के बारे में क्या सोच रही हो? क्या हम अब शादी कर सकते हैं?’’

‘‘नहीं, कुछ दिन और इंतजार कर लेते हैं. इस बीच मु झे जौब मिल जाती है तब ठीक है, नहीं तो मैं आयरलैंड चली जाऊंगी. वहां मेरे बहुत कौंटैक्ट्स हैं.’’

‘‘तुम अगर आयरलैंड चली गई तब हमारी शादी का क्या होगा?’’

‘‘मेरी शादी होगी तो तुम्हीं से होगी,

डौंट वरी.’’

‘‘देखो आयरिश लोगों को हमारे यहां सैटल करने के लिए किसी वीजा की जरूरत नहीं है और न ही कोई समयसीमा है इसलिए तुम यहीं रुक जाओ. नौकरी आज नहीं तो कल मिलेगी ही. आयरलैंड जाने का इरादा छोड़ दो.’’

‘‘एक बार जाना तो पड़ेगा. वहां जा कर घर को लंबी अवधि के लिए लीज पर दे दूंगी और जरूरत पड़ी तो बाद में उसे बेच दूंगी.’’

‘‘तुम फिलहाल कुछ दिनों के लिए आयरलैंड जा कर घर को लीज रैंट कर दो.’’

‘‘ठीक है, मैं 1-2 दिन में जाने की कोशिश करती हूं.’’

‘‘सिर्फ तुम नहीं, हम दोनों जाएंगे. मैं भी बहुत दिनों से आयरलैंड जाने की सोच रहा था. ज्यादा तैयारी भी नहीं करनी है. यहां से करीब

1 घंटे की फ्लाइट है. हम लोग 2 दिन बाद वीकैंड में चलते हैं.’’

सोफिया और सैंडर दोनों आयरलैंड के डब्लिन शहर आए. सोफिया का घर काफी बड़ा था. सोफिया ने अपना कुछ सामान गैराज और उस से सटे एक कमरे में शिफ्ट कर दिया. बाकी फर्नीश्ड घर को उस ने लीज पर दे दिया और

कार को भी किराएदार को बेच दिया. दोनों करीब 1 सप्ताह डब्लिन में रहे. इसी दौरान सोफिया को भी नौकरी मिल गई. उसे ईमेल से जौब औफर मिला. उन दोनों की समस्या का समाधान हो गया. दोनों खुशीखुशी एडिनबरा लौट आए.

सोफिया को स्काटलैंड के दूसरे शहर ग्लासगो के एक कालेज में नौकरी मिली. एडिनबरा से ग्लास्गो जाने में ट्रेन या कार दोनों से करीब 1 घंटे का समय लगता था. फिलहाल मजबूरी थी इसलिए सोफिया ने वहां जौइन कर लिया. उस ने एक सैकंड हैंड कार खरीदी और उसी से आनाजाना होता.

अब दोनों ने जल्द ही शादी करने का फैसला लिया. 1 महीने बाद दोनों की शादी हुई. दोनों अपने हनीमून के लिए इटली में वेनिस गए. दोनों पहली बार वेनिस आए थे और 1 सप्ताह वहां रुके. इस के बाद रोम और वैटिकन घूमने गए और फिर रोम से वापस स्कौटलैंड लौट आए.

करीब 2 महीने बाद सोफिया ने पति से कहा, ‘‘लगता है घर में नया मेहमान आने वाला है.’’

‘‘यह तो बहुत अच्छी बात है, बहुत दिन

हुए कोई गैस्ट नहीं आया हमारे घर और भला आएगा कौन. हम दोनों का कोई निकट संबंधी भी तो नहीं है. अच्छा बताओ कौन आ रहा है, तुम्हारा कोई फ्रैंड?’’

‘‘नहीं, हमारा बहुत नजदीकी संबंधी आने वाला है.’’

‘‘ऐसा कौन निकट संबंधी पैदा हो गया है?’’

‘‘पैदा नहीं हुआ है पर 9 महीने बाद पैदा हो जाएगा. तुम डैड बनने वाले हो.’’

‘‘ओह, व्हाट ए प्लीजैंट सरप्राइज,’’ बोल कर सैंडर ने सोफिया को चूमते हुए गोद में उठा लिया.

‘‘पर तुम्हें इतनी जल्दी क्या पड़ी थी? हम ने सोचा था कि 1-2 साल कुछ मौजमस्ती करने के बाद बच्चे की जिम्मेदारी लेते. खैर, जो हुआ अच्छा ही हुआ.’’

‘‘जल्दी तुम्हें पड़ी थी. मैं ने हनीमून में तुम्हें चेताया था प्रिकौशन लेने को पर तुम माने ही नहीं.’’

‘‘मैं ने यों ही कहा था. बहुत खुशी की बात है बल्कि मैं तो कहूंगा दूसरा बच्चा भी जल्द ही प्लान कर लेंगे ताकि हमारे बच्चे हमारे रिटायरमैंट के पहले वैल सैटल्ड हो जाएं.’’

करीब 3 महीने बाद सैंडर ने सोफिया से कहा, ‘‘मेरे कालेज में इंग्लिश ट्यूटर की वैकेंसी बहुत जल्द निकालने जा रही है. एक ट्यूटर ने रिजाइन कर दिया है. वह लंदन जा रहा है. तुम अपना एक रिज्यूम बना कर मु झे दे दो. जैसे ही नोटिफिकेशन होगा मैं तुम्हारी ऐप्लिकेशन दे दूंगा.’’

करीब 1 महीने के अंदर ही सोफिया को एडिनबरा कालेज से औफर मिला. उस ने ग्लास्गो कालेज से इस्तीफा दे कर एडिनबरा कालेज जौइन करने में कोई देरी नहीं की. अब पतिपत्नी दोनों की नौकरी एक ही शहर और एक ही कालेज में थी. दोनों बहुत खुश थे. सोफिया की डिलिवरी भी निकट थी. उस ने मैटरनिटी लीव ले ली थी.

समय पर उन दोनों को 1 बेटा हुआ. उस का नाम ओलिवर रखा गया. प्रसव के बाद सोफिया करीब 9 महीने तक छुट्टी पर रही. स्कौटलैंड में मैटरनिटी लीव 1 साल तक होती है. इस के अतिरिक्त पिता को भी शिशु के जन्म के बाद 2 सप्ताह की छुट्टी मिलती है. सोफिया और सैंडर दोनों ने मिल कर करीब 1 साल तक ओलिवर की देखभाल स्वयं की. इस के बाद वे ओलिवर को डे केयर में छोड़ कर जाते. 2 साल बाद ओलिवर ईएलसी यानी अर्ली लर्निंग चाइल्ड केयर जाने लगा.

इसी बीच सोफिया एक बार फिर गर्भवती हुई. इस बार उन्हें बेटी हुई ईवा. बेटी होने से दोनों बहुत खुश थे.

सैंडर बोला, ‘‘हमें बेटा और बेटी दोनों मिल गए, अब हम अपनी फैमिली प्लान कर सकते हैं.’’

अब ईवा और ओलिवर दोनों ही अर्ली लर्निंग चाइल्ड केयर जाने लगे थे. समय के साथ उन के बच्चे बड़े होने लगे. सैंडर एक अच्छा सर्फर था. उस ने बहुत दिनों से सर्फिंग नहीं की थी. उस ने सोफिया से कहा, ‘‘अब हमारे बच्चे कुछ बड़े हो चले हैं. बहुत दिन हुए सर्फिंग किए. अगला वीकैंड लौंग वीकैंड है, सोमवार भी औफ है. क्यों न हम पीज बे चलें. ज्यादा दूर भी नहीं 45 मिनट में पहुंच जाएंगे.’’

‘‘थोड़ी बहुत सर्फिंग तो मैं भी कर लेती हूं पर बहुत दिनों से आदत छूट गई है.’’

वीकैंड में सभी पीज बे के लिए निकल पड़े. सैंडर ने सर्फिंग बोर्ड को एक बैग में रखा और उसे अपनी गाड़ी की छत पर सौफ्ट रैक पर बांध लिया. पौने घंटे में ही वे बीच पर थे.

सैंडर सर्फ एक हाथ में बोर्ड लिए था और दूसरे हाथ में फोल्डिंग बीच चेयर. सोफिया ने भी एक हाथ में फोल्डिंग चेयर और दूसरे हाथ से बेटी को पकड़ रखा था. अन्य खानेपीने का सामान सैंडर, सोफिया और ओलिवर के बैग में था.

सैंडर अपने दोनों बच्चों को ले कर समुद्र के पानी में गया. कुछ देर उन के साथ बौल खेलने के बाद उन्हें सोफिया के पास छोड़ कर सर्फिंग बोर्ड ले कर वापस समुद्र में गया. वह करीब 40 मिनट तक लहरों पर सर्फ करता रहा. उस के आने के बाद सोफिया सर्फिंग बोर्ड ले कर जाने लगी. तब सैंडर ने पूछा, ‘‘आर यू श्योर? सर्फ कर सकोगी?’’

‘‘तुम ने मु झे क्या सम झ रखा है? मैं ने कुछ वर्षों से सर्फिंग नहीं की है तो बिलकुल भूल गई हूं. एक बार तैरना या सर्फिंग सीख लेने के बाद कोई इसे भूलता नहीं है,’’ इतना बोल कर सोफिया पानी में चली गई.

सोफिया करीब 20-25 मिनट बाद लौट आई. बीच पर चेंजरूम में जा कर सभी ने फ्रैश वाटर से स्नान कर ड्रैस चेंज की. फिर वापस कार में बैठ कर सब ने खाना खाया और वापस एडिनबरा के लिए चल पड़े. 1 घंटे बाद सभी लोग अपने घर में थे.

समय का कालचक्र अपनी गति से गतिमान था. सैंडर और सोफिया के दोनों बच्चे भी बड़े हो चले थे. दोनों बच्चे स्कूल में थे. दोनों मातापिता से अकसर पूछते, ‘‘न्यू ईयर और क्रिसमस पर सभी बच्चों के घर बहुत गैस्ट आते हैं जिन में उन के ग्रैंड पेरैंट्स भी होते हैं या सभी परिवार के लोग खुद ग्रैंड पेरैंट्स के पास जाते हैं. पूरा सप्ताह साथ रहते हैं. हमारे यहां कोई नहीं आता है न हम लोग  ही ग्रैंड पेरैंट्स के पास जाते हैं.’’

‘‘सौरी, बेटे तुम्हारे ग्रैंड पेरैंट्स इस दुनिया में नहीं रहे. अगर होते तो हम जरूर मिलने जाते या वे लोग ही आते हमारे यहां. तुम्हारे नाना का निधन हमारी शादी के कुछ समय पहले हो गया था. तुम्हारे दादादादी तुम्हारे पापा के बचपन में ही चल बसे थे,’’ सोफिया ने कहा.

औलिवर बोला, ‘‘फिर भी दादादादी और नानानानी कौन थे. उन का अपना घर तो होगा. आप दोनों के सिवा और कोई उन की संतान होगी. वे उन के घर में रहते होंगे.’’

ईवा भी भाई के समर्थन में बोली, ‘‘यस मम्मा. हम लोग उन के बारे में जानना चाहेंगे और अपने पुश्तैनी घर या गांव के बारे में जानना चाहेंगे.’’

‘‘ठीक है, तुम लोग कुछ और बड़े हो जाओ तब दादाजी का घर देखने चलेंगे.’’

‘‘मम्मी बड़े हो जाएंगे तो हम लोग खुद पता लगा लेंगे.’’

दोनों बच्चे अकसर पापामम्मी से अपने पूर्वजों के बारे में पूछा करते. एक दिन

सोफिया ने सैंडर से कहा, ‘‘हम लोगों को बच्चों की इच्छा पूरी करनी चाहिए. मैं तो गोद ली गई थी. मेरे पेरैंट्स अपना देश छोड़ कर आयरलैंड में आ बसे. अब तो वे रहे नहीं और उन का घर भी मैं ने बेच दिया है. तुम्हें कुछ पता है अपने नेटिव प्लेस के बारे में?’’

‘‘मुझे नीदरलैंड जाना होगा. मेरे पेरैंट्स भी नहीं रहे. मु झे जहां तक याद है मेरे अंकलआंटी हम लोगों के साथ रहते थे. डैड और मौम की डैथ के बाद मैं अपनी विधवा मौसी के पास स्कौटलैंड आ गया और मेरा संपर्क वहां से टूट गया. अब तो मौसी भी नहीं रहीं. मु झे भी कोई दिलचस्पी नहीं रही थी इन सब बातों में सो मैं भी सब भूल कर यहीं रम गया.’’

‘‘तुम ने सुना न बच्चे क्या कह रहे थे. वे बोल रहे हैं हम खुद ही पता लगा लेंगे. ओलिवर तो 15 साल का हो गया है, कुछ साल में दोनों बच्चे एडल्ट हो जाएंगे. फिर तो हम न भी पता करें तो वे अपना रूट्स जानने के लिए आजाद हैं. उन्हें हम रोक नहीं सकते हैं.’’

‘‘ठीक है, अगले महीने ईवा भी बोर्डिंग स्कूल जा रही है. उस के बाद हम लोग नीदरलैंड चलते हैं. घूमना भी हो जाएगा और अपनी जड़ें भी खोजेंगे. एक पंथ दो काज.’’

1 महीने बाद सैंडर और सोफिया दोनों नीदरलैंड की राजधानी एमस्टरडम पहुंचे. दोनों वहां के एक होटल में ठहरे थे. थोड़ी देर आराम करने के बाद सैंडर ने टेलीफोन डायरैक्टरी खगालनी शुरू की. सिट्रोएन सरनेम के जितने नाम थे सब के नाम, फोन नंबर और पता नोट किया. इस के बाद डी वालेन और जोर्डान रिहायशी इलाके के नंबर अलग कर लिए. सैंडर की आंटी ने उसे बताया था कि उस के मातापिता दोनों इसी क्षेत्र के निवासी थे. सैंडर ने सोचा फोन न कर सीधे उन से बात करना ठीक रहेगा.

अगले दिन सैंडर और सोफिया दोनों डी वालेन गए वहां सिट्रोएन सरनेम के सिर्फ 3 परिवार रहते थे. तीनों से उन्हें अपने पेरैंट्स का कोई क्लू नहीं मिला. फिर भोजनोपरांत वे जौर्डन महल्ला गए. वहां सिट्रोएन सरनेम के 5 परिवार थे. 4 जगहों से उन्हें निराशा ही मिली. 5वां परिवार कहीं बाहर गया था. सैंडर ने उन्हें फोन कर बताया कि मैं ब्रिटेन से आया हूं और आप से मिलना चाहता हूं. फोन पर जवाब मिला कि वे शहर से बाहर हैं और अगले दिन शाम तक एमस्टरडम लौटेंगे. वे दोनों अपने होटल लौट गए. उन के पास सिट्रोएन के इंतजार करने के सिवा कोई दूसरा उपाय नहीं था.

अगले दिन शाम को सैंडर ने उन्हें फोन किया तो वे बोले, ‘‘तुम अभी या कल सुबह जब चाहो मिल सकते हो.’’

सैंडर ने सुबह मिलने का फैसला किया.

उस ने सोचा सिट्रोएन से मिले क्लू के बाद उसे कुछ और लोगों से भी संपर्क करना पड़ सकता है. यही सोच कर उस ने सुबह का प्रोग्राम बनाया.

अगली सुबह वे दोनों सिट्रोएन के घर पहुंचे. सैंडर ने अपना परिचय दिया. फिर सोफिया की तरफ देख कर सिट्रोएन ने पूछा, ‘‘और ये तुम्हारी सिस्टर हैं?’’

‘‘नो, माइ वाइफ सोफिया.’’

‘‘ओह, सौरी.’’

इस के बाद बिना देर किए अपने मातापिता का नाम बताया. फिर अपने और मातापिता के बारे में जितना जानता था बताया.

सिट्रोएन ने कहा, ‘‘मैं सीधे तौर पर तुम्हारे पेरैंट्स को नहीं जानता पर यह घर किसी सिट्रोएन फैमिली का ही था जिसे मेरे डैड ने खरीदा था. 1 मिनट रुको मैं कुछ दस्तावेज देख कर उन का पूरा नाम बताता हूं.’’

कुछ देर बाद सिट्रोएन ने कहा, ‘‘इस घर को किसी विलेन सिट्रोएन नाम के आदमी से मेरे डैड ने खरीदा था.’’

‘‘हां, यही तो मेरे छोटे अंकल का नाम था, मेरी मौसी ने बताया था.’’

‘‘तुम ने अपने डैड का क्या नाम बताया था?’’

‘‘ब्रेम, आई मीन ब्रेम सिट्रोएन.’’

‘‘और, मां का क्या नाम था?

‘‘फेना डी वैन सिट्रोएन.’’

सोफिया ने कहा, ‘‘मौम फेना डी वैन थीं. शादी के बाद फेना सिट्रोएन बनी होंगी. मेरी मौसी का भी सरनेम डी वैन था शादी के पहले.’’

‘‘डी वैन का मतलब फ्राम माउंटेन होता है और यहां एक ही डी वैन नाम सुना है मैं ने.’’

सिट्रोएन ने कहा सैंडर के मातापिता का नाम सुन कर वह व्यक्ति कभी सैंडर तो कभी सोफिया को गौर से देखने

लगा. कुछ देर सिर खुजलाता रहा फिर बोला, ‘‘मेरी मौम

और तुम्हारी मौम दोनों एकदूसरे को जानती थीं पर पता नहीं

क्यों मौम ने बाद में फेना से दूरी बना ली. जहां तक मु झे याद है मौम से सुना था कि फेना को

2 बच्चे थे.’’

सैंडर आश्चर्य से पूछ बैठा ‘‘2 बच्चे, और क्या जानते हैं मेरे पेरैंट्स के बारे में?’’

‘‘मैं सम झ नहीं पा रहा हूं तुम्हें कैसे बताऊं या बताऊं भी कि नहीं.’’

‘‘आप निस्संदेह जो भी जानते हों फ्रैंकली बता सकते हैं, अच्छाबुरा जो भी.’’

कुछ देर सिट्रोएन को खामोश देख कर सोफिया से नहीं रहा गया, ‘‘सिट्रोएन, क्या हुआ? आप ने हमारी जिज्ञासा बड़ा दी है. अब तो बिना जाने हम यहां से जाएंगे भी नहीं.’’

सिट्रोएन ने कहना शुरू किया, ‘‘आई एम सौरी. मैं जो कहने जा रहा हूं वह सुनी बात है, इस की सचाई का दावा मैं नहीं करता. हो सकता है गलत बात हो तो मु झे माफ  करना पर हो सकता है इस बात से तुम्हारे मकसद में मदद मिले.’’

‘‘हांहां, आप अवश्य कहें.’’

‘‘मैं ने सुना है कि आप की मौम की शादी आप के डैड सिट्रोएन से हुई थी. पर उन के चालचलन से आप के डैड बहुत नाराज थे और उन्होंने फेना को छोड़ दिया था.’’

‘‘अगर आप कुछ और स्पष्ट करें तो बेहतर होगा.’’

‘‘आप की मौम लैस्बियन थीं. हालांकि बाद में उन्हें मां बनने की इच्छा हुई. उन्हें 2 बच्चे हुए थे और दोनों सरोगेसी से, आई मीन आईवीएफ तकनीक से. एक बेटा उन के साथ रहा था कुछ दिन. बाद में उन्हें एक बेटी हुई. सुना है उसे किसी ने गोद ले लिया था.’’

‘‘क्या आप किसी खास फर्टिलिटी क्लीनिक के बारे में जानते हैं जहां से मौम प्रैगनैंट हुई थीं?’’

‘‘यह मैं कैसे बता सकता हूं? वैसे भी यह कानूनन मना है. हां दोनों पार्टी यानी डोनर और रिसीवर सहमत हों तो यह संभव है.’’

‘‘ठीक है, आप ने जितना कुछ बताया वह बहुत है हमारे लिए. बहुतबहुत धन्यवाद.’’

सैंडर और सोफिया दोनों वहां से निकल पड़े. उन्होंने शहर के फर्टिलिटी क्लीनिक के

नंबर गूगल कर निकाले. सैंडर ने शहर के कुछ पुराने फर्टिलिटी क्लीनिक के नंबर और पता नोट किया. एक सब से मशहूर क्लीनिक के एम्सटरडम और उस के आसपास 3 ब्रांचें थे. अगले दिन वे उस क्लीनिक में गए. सैंडर ने अपना पासपोर्ट दिखा कर अपनी मां के नाम का सुबूत दिखा कर फेना की डिलिवरी के बारे में रिसैप्शन पर पूछा.

रिसैप्शनिस्ट ने कहा, ‘‘एक तो आप के अनुसार यह केस 3 दशक से भी ज्यादा पुराना है. वैसे भी इस की जानकारी इंचार्ज के पास होगी. भला हो कंप्यूटर का कि सारे रिकौर्ड्स को हम लोगों ने कंप्यूटर के डेटा बेस में ले लिया है.’’

वे दोनों इंचार्ज से मिलने गए और पूरी बात बताई तो उस ने अपने कंप्यूटर में चैक कर

कहा, ‘‘हां, आज से करीब 35 साल पहले यहां फेना की सरोगेसी हुई थी और उन्हें एक बेटा

हुआ था.’’

‘‘आप स्पर्म डोनर का नाम बता सकते हैं?’’

‘‘सौरी, मैं उन की बिना सहमति के नहीं बता सकता हूं.’’

‘‘आप प्लीज, बता दें. मैं पिछले कई वर्षों से अपने पेरैंट्स के बारे में जानना चाहता हूं.’’

‘‘नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकता हूं.’’

‘‘आप उन से फोन पर मेरी बात करा दें तो मैं उन का कंसैंट ले लूंगा.’’

बहुत मिन्नत करने के बाद क्लीनिक

इंचार्ज तैयार हुआ और बोला, ‘‘1 मिनट मु झे

चैक करने दीजिए. उस समय उन का पुराना लैंड लाइन का नंबर था. अगर उन्होंने अपडेट किया है तब तो आसानी होगी वरना क्या पता नंबर बदल गया हो.’’

कुछ देर बाद क्लीनिक इंचार्ज ने बताया ‘‘हां, नंबर भी अपडेट कराया है उन्होंने. दरअसल वे फ्रीक्वैंट डोनर हैं.’’

क्लीनिक वाले ने उस डोनर से सैंडर की बात कराई. सैंडर ने अपना और मां के बारे में पूरी बात बताई. डोनर ने क्लीनिक वाले को फोन पर अपनी सहमति दे दी. पर क्लीनिक ने उसे ईमेल या व्हाट्सऐप पर कन्फर्म करने को कहा. थोड़ी ही देर में डोनर का मैसेज आया.

क्लीनिक वाले ने थोड़ी देर में सैंडर से कहा, ‘‘फेना उस दिन रिक वर्हिस के स्पर्म से प्रैगनैंट हुई थीं और उन्होंने एक बेटे को इसी क्लीनिक में जन्म दिया था. रिक

ही उस दिन पैदा हुए बच्चे का बायोलौजिकल फादर है.’’

अगले दिन सैंडर रिक से मिलने गया. उस ने कहा, ‘‘मु झे उम्मीद है कि आप ही मेरे बायोलौजिकल फादर हैं. इस उम्मीद को मैं यकीन में बदलना चाहता हूं. इस के लिए हम दोनों को डीएनए टैस्ट कराना होगा. प्लीज, आप मेरा साथ दें.’’

‘‘तुम बचकानी हरकत कर रहे हो बल्कि पागल जैसी बात कर रहे हो. मैं क्यों अपना डीएनए दूं और तुम्हें इस से क्या मिलेगा?’’

‘‘मैं कुछ लेने के लिए ऐसा नहीं कह रहा हूं. वैसे भी मु झे पता है कानूनन हम दोनों का एकदूसरे पर कोई हक नहीं है. बस मेरी तस्सली के लिए. आप से और कुछ नहीं चाहिए मु झे मैं लिखित दे सकता हूं.’’

‘‘मैं तुम्हारे कहने पर इतना भर कर सकता हूं. तुम अपना डीएनए टैस्ट कराओ और वहीं पर मैं भी सैंपल दूंगा. लैब वाले मेरी सहमति से तुम्हें बता देंगे डीएनए का रिजल्ट पर मैं अपनी रिपोर्ट तुम्हें नहीं दूंगा.’’

‘‘इतना ही काफी है मेरे लिए.’’

4  दिनों के बाद दोनों के डीएनए रिपोर्ट मिलनी थी. इन 4 दिनों के अंदर सैंडर और सोफिया दोनों कुछ और क्लीनिक में पता लगाने गए कि फेना की दूसरी संतान किस क्लीनिक

में हुई थी. एक क्लीनिक शहर से दूर था. वहां उन्होंने रिक की रिपोर्ट मिलने के बाद जाने का फैसला किया.

4 दिनों के बाद दोनों की डीएनए रिपोर्ट मिलें. रिक ही सैंडर का बायोलौजिकल फादर था.

दूसरे दिन वे जब एक क्लीनिक गए तो पता चला कि फेना ने किस क्लीनिक में सरोगेसी डिलिवरी कराई थी. यहां क्लीनिक से पता

चला कि फेना की दूसरी सरोगेसी डिलिवरी यहीं हुई थी. उसे एक बेटी हुई थी. यहां भी क्लीनिक वाले ने बहुत अनुरोध करने पर डोनर से बात कराई. यह डोनर भी रिक ही था. सैंडर और सोफिया दोनों कुछ पल एकदूसरे को देखने लगे. दोनों ने एक बार फिर रिक से अनुरोध किया कि वह सोफिया की डीएनए रिपोर्ट से अपनी रिपोर्ट मैच कराए.

सोफिया ने अपना डीएनए टैस्ट कराया. उस का और रिक का डीएनए मैच कर रहा था. रिक ही सोफिया का भी बायोलौजिकल फादर निकला. सैंडर और सोफिया दोनों के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. दोनों ने अपना डीएनए मैच कराया तो देखा कि उन का डीएनए भी 55% मैच कर रहा था. उन्होंने डीएनए ऐक्सपर्ट से भी बात की तो उस ने कहा तुम दोनों की मौम एक ही हैं, फेना और स्पर्म डोनर भी एक ही है रिक तो इस में शक की कोई गुंजाइश ही नहीं है. तुम दोनों के सिबलिंग होने में कोई शक नहीं है. तुम दोनों सगे भाईबहन हो.’’

सैंडर और सोफिया दोनों पर जैसे बिजली गिर पड़ी, सोफिया बोली, ‘‘कुदरत हमें माफ करें, ये हम ने क्या किया. अनजाने में ही हम से गुनाह हो गया.’’

‘‘यह गुनाह कुदरत की मरजी से हुआ है. हम ने खुद जानबू झ कर कोई गुनाह नहीं किया

है. हम लोग तो 4-5 दिन पहले तक इस बारे

में कुछ नहीं जानते थे. हमें कोई पछतावा नहीं करना चाहिए.’’

सैंडर और सोफिया दोनों औक्सफोर्ड में

हुई मुलाकात से पहले एकदूसरे से बिलकुल अनजान थे और वर्षों से पतिपत्नी रहे हैं और उन के 2 बच्चे भी हुए. वे दोनों नीदरलैंड से वापस एडिनबरा आए. वहां उन्होंने वकील से राय ली कि ऐसे में क्या करना चाहिए.

उस ने कहा, ‘‘आप ने जानबू झ कर ऐसा नहीं किया है. पर अब पतिपत्नी के रूप में रहना कानूनन अपराध है. बेहतर है आप लोग खामोश रहें पर आप खुद सम झदार हैं कि अब आप भाईबहन हैं  और रहेंगे, पतिपत्नी नहीं. बच्चों से भी इस की चर्चा न करें.’’

सोफिया और सैंडर दोनों काफी उदास और चिंतित थे. उन्हें देख कर वकील ने कहा, ‘‘आप पहले ऐसे दंपती नहीं हैं. पहले भी ऐसे मामले मु झे देखने और सुनने को मिले हैं. रिक जैसे कुछ प्रोफैसनल डोनर्स हैं जिन्हें खुद पता नहीं कि दुनिया में उन की कितनी औलादें हैं. कुछ दिन पहले मु झे पढ़ने को मिला था कि किसी डोनर ने 150 से भी ज्यादा बार स्पर्म डोनेट किया है. ऐसे में इस तरह की समस्या का होना कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है.’’

‘‘बच्चों को क्या बताया जाण्?’’ सैंडर ने पूछा.

वकील ने कहा, ‘‘सचाई छोड़ कर उन्हें कुछ भी बातएं मसलन कोई मनगढ़ंत कहानी बता कर इस मुद्दे को हमेशा के लिए खत्म कर दें. पूरे परिवार की भलाई इसी में है.’’

सोफिया और सैंडर दोनों ने सिर हिला कर अपनी सहमति जताई. अब उन्हें भी बात सम झ में आने लगी थी कि क्यों लोग अकसर हम दोनों को साथ देख कर कुछ पल घूरा करते थे. हमारे चेहरों का मिलना मात्र संयोग नहीं था. हमारे चेहरे बायोलौजिकल फादर रिक से मिलते थे.

ए दिल तुझे कसम है

शाम के 4 बज रहे थे. गरमी से काजल की हालत खराब थी. वह सुबह 10 बजे घर से निकली थी. अभी मैट्रो से घर वापस आई थी. अब आ कर देखा तो लाइट नहीं थी. गरमी ने इस साल पूरे देश को जला रखा था. लोग दिनभर हाय गरमी हाय गरमी कर रहे थे. समृद्ध लोग ग्लोबल वार्मिंग पर बात करते हुए दिनबदिन कम होती जा रही हरियाली को कोसते, फिर घर आ कर एसी चला कर टांगें फैला कर पसर जाते. काजल दिनभर दिल्ली में एक सरकारी औफिस से दूसरे सरकारी औफिस धक्के खाती रही थी, लंच भी नहीं किया था. कहीं किसी दुकान पर एक गिलास लस्सी पी ली थी. अब रास्ते से ही उस के सिर में दर्द था. पूरा रास्ता सोचती रही कि घर जा कर नहाधो कर चायब्रैड खाएगी.

घर का दरवाजा खोलते ही दिल भारी सा हुआ. लगा, स्नेह में डूबी एक आवाज आएगी, ‘‘बड़ी देर लगा दी, बेटा,’’ पर अब यह आवाज तो कभी नहीं आएगी, सोचते हुए एक ठंडी सांस  ली और अपना बैग सोफे पर रख टौवेल उठा कर वाशरूम चली गई. वाशरूम में जा कर खूंटी पर टौवेल टांगा ही था कि फिक्र हुई कि मेन गेट अंदर से ठीक से बंद तो कर लिया है न.

आजकल यही तो होता है पता नहीं कितनीकितनी बार घर के दरवाजे चैक करती रहती है.

छत पर जाने वाले दरवाजे का ताला पता नहीं कितनी बार चैक करती, ठीक से बंद है या नहीं. शरीर पर पानी पड़ा तो चैन की सांस आई. पूरा दिन बदन जैसे आग में तपता रहा था. नहातेनहाते रोने लगी कि आओ मम्मी देखो, आप की फूल जैसी बच्ची कहांकहां दिनभर धक्के खा कर आई है, अब आप की बच्ची फूल सी नहीं रही. आप को पता है कि अपनी जिस बेटी को आप फूल सी बना कर पालते रहे, वह फूल अब कांटों से घिरा है?

शावर से गिरते पानी में आंसू मिलते रहे. नहा कर निकली, बस एक हलका छोटा सा  स्लीवलैस टौप पहन लिया. नीचे नामभर की शौर्ट्स पहनी. अकेली ही तो थी घर में, कुछ पहनने का मन नहीं किया. अब बस 1 कप चाय और 2 ब्रैडस्लाइस, फिर थोड़ी देर आराम करेगी. फ्रिज खोला, सिर पकड़ लिया, सुबह जल्दी निकलने के चक्कर में भूल गई थी, दूध खत्म हो गया है. ब्रैड भी तो नहीं है.

पापा के रहते ऐसा कभी नहीं होता था. वह इस बात का हमेशा ध्यान रखते कि फ्रिज भरा रहे. क्या खाए, कुछ सम झ नहीं आया तो मैगी बनने रख दी. पानी, मैगी मसाला, नूडल्स एकसाथ सबकुछ डाल दिया. आंच धीमी कर थोड़ी देर लेटने चली गई. बिस्तर पर लेटी क्या, औंधी पड़ी थी.

काजल 35 साल की देखने में ठीकठाक, पढ़ीलिखी, आधुनिक, अब दुनिया में अकेली रह गई अविवाहित लड़की. 24 साल की थी तो उस की मम्मी की अचानक हार्ट फेल से डैथ हो गई थी. पितापुत्री पर कहर सा टूटा था. शांत सीधे से सरकारी अफसर पापा की देखरेख के लिए उस ने दिल्ली से बाहर शादी करने का मन नहीं बनाया, जिन पापा का हमेशा साथ देने के लिए उन की एक आवाज पर हाजिर रहती, वही अब अचानक हमेशा के लिए छोड़ कर चले गए थे. उस के पापा का भी हार्ट फेल हुआ था. भरी दुनिया में काजल उन के अचानक जाने से ठगी सी रह गई थी. इस के लिए तो सोचा ही नहीं था पर भला इंसान जो सोचता है, क्या हमेशा वही होता है? वक्त की हर शय गुलाम, वक्त का हर शय पर राज.

अभी तक काजल अपना पूरा ध्यान अपने पापा में, घर में और अपने किसी न किसी कोर्स में लगाती रही थी. अब जाने कितने काम निकल आए थे, पैंशन पेपर्स और प्रौपर्टी ट्रांसफर के पेपर्स बनवाने के लिए उसे बहुत धक्के खाने पड़ रहे थे. मैगी बनने की खुशबू आई तो भूख फिर जाग गई. पेट कोई  दुखदर्द नहीं देखता. पेट शायद हमेशा ही एक छोटे बच्चे की तरह रहता है, जब उस का टाइम हो, उसे जरूरत हो तो बस चाहिए. काजल उठी, मैगी प्लेट में डाली, उसे अपने पापा की याद आई, उन्हें भी मैगी पसंद थी. दोनों पितापुत्री बहुत शौक से मैगी खाते थे. मम्मी डांटती रह जाती कि दोनों अनहैल्दी चीजें खाते हो. काजल की आंखों के आगे वे दृश्य उपस्थित हो गए. ऐसा तो अब पता नहीं कितनी बार होता था.

टीवी देखते हुए मैगी जल्दीजल्दी खाई, बहुत भूख लग रही थी. अपनी पसंद की चीज देखते ही वैसे भी भूख बढ़ जाती है. खास दोस्त तनु और रवीना के फोन आ रहे थे. उस ने दोनों को मैसेज डाल दिया कि बहुत थकी हुई हूं, बाद में कौल करूंगी. ये दोनों सहेलियां उस की शुभचिंतक थीं, दोनों मैरिड थीं. तनु कोलकाता में और रवीना रोहिणी, दिल्ल में ही रहती थी. दोनों उस की खोजखबर लेती रहतीं.

मैगी खा कर वह बैड पर लेटी ही थी कि डोरबेल बजी. मेन गेट पर बड़ीबड़ी ग्रिल वाला डिजाइन था, किचन की खिड़की से दिख जाता कि कौन है. काजल ने किचन से  झांका, उमेश था. उसे देखते ही काजल का मूड खराब हो गया. उस का चचेरा भाई. काजल के काफी रिश्तेदार आसपास ही थे पर वह उन सब से बहुत परेशान हो चुकी थी.

जब से उस के पापा गए थे, उन की मौरल पौलिसिंग बढ़ गई थी. उस की किसी चीज की किसी को चिंता नहीं थी, उस की किसी परेशानी से मतलब नहीं था पर वह कब क्या कर रही है, इस की उन्हें पूरी जानकारी होना वे सब अपना फर्ज सम झते. उन सब को काजल को परेशान होते देख एक आनंद आता.

काजल सोच में ही थी कि क्या करे. दरवाजा खोले या नहीं. तभी उमेश जोर से आवाज देने लगा, ‘‘अरे, काजल दरवाजा खोल. अभी मैं ने तु झे आते देखा है अरे, कहां है?’’

काजल ने अभी जो आरामदायक कपड़े पहने थे, वे जल्दी से उतारे, एक कुरता और जींस पहन दरवाजा खोला. उमेश उस से 2 साल बड़ा था, विवाहित था, एक बेटे जय का पिता था. उमेश की पत्नी मेखला भी काजल को खास पसंद नहीं थी. उस के दिल में काजल के प्रति ईर्ष्या का भाव है, काजल को हमेशा यही महसूस हुआ. काजल ने बिना गेट खोले रूखे स्वर में पूछा, ‘‘क्या है? मैं अभी आराम कर रही हूं. अगर कोई जरूरी काम नहीं है तो बाद में आना.’’

‘‘अरे, दरवाजा तो खोल, तेरा भाई तेरा हाल पूछने आया है. कहां गई थी? मैं अभी दुकान पर ही था, तु झे आता देखा तो आ गया.’’

काजल ने चिढ़ते हुए दरवाजा खोल दिया, ‘‘दुकान छोड़ कर आ गया?’’

अंदर आ कर उमेश सोफे पर पसर गया, कहा, ‘‘चल, चाय पिला दे.’’

‘‘दूध नहीं है.’’

‘‘सुबह से बाहर थी, कहां घूम कर

आई है?’’

‘‘तु झे क्या मतलब है?’’

उमेश ने उसे ऊपर से नीचे तक घूरा, फिर कहा, ‘‘बड़ी थकी हुई लग रही है? कहां ऐश हो रही है?’’

‘‘यह ऐश तुम लोगों को भी मिले, यही कह सकती हूं.’’

उमेश की पास में ही कपड़ों की दुकान थी. यहां सब रिश्तेदारों के घर आसपास थे, काजल के काम तो कोई नहीं आ रहा था, उलटा जब भी कोई आता उसे चार बातें सुना जाता.

काजल ने कहा, ‘‘देख उमेश मु झे अभी बहुत काम हैं, अभी तू जा और हो सके तो तुम सभी लोग यहां आना छोड़ दो.’’

‘‘जब से अकेली रह गई है, बहुत बदतमीज होती जा रही है. अकेले छोड़ दें ताकि तू खानदान की नाक कटवा दे? पापा भी कह रहे थे कि तू किसी का फोन नहीं उठाती,’’ फिर उस की आंखों में जो भाव आए, काजल का मन हुआ उसे धक्के दे कर निकाल दे.

उमेश कह रहा था, ‘‘वैसे तू कुछ पतली सी हो गई है और अच्छी लगने लगी है.’’

काजल अभी तक खड़ी ही थी ताकि वह सम झ जाए कि काजल चाहती है कि वह जल्दी चला जाए. काजल ने जानबू झ कर कहा, ‘‘चल, तेरे पास इतनी फुरसत है तो दूध ला कर दे दे.’’

‘‘पागल हो गई है क्या, तेरा हालचाल पूछने के लिए दुकान छोड़ कर आया हूं, काम देखना है,’’ काम सुनते ही उमेश हमेशा की तरह जाने के लिए उठ कर खड़ा हो गया और चला गया.

काजल को अब 1-1 रिश्तेदार की हकीकत सम झ आ गई थी कि कोई उस का साथ नहीं देगा बल्कि उस की परेशानियां ही बढ़ाई जाती हैं. अब वह वक्त के साथ इन सब से निबटना सीख चुकी थी. उस ने फिर अंदर से गेट बंद किया और कपड़े फिर बदले और जा कर लेट गई. तभी काजल के मामा राजीव का फोन आया, ‘‘कहां घूमती रहती है? मांबाप के जाने के बाद एकदम बेलगाम हो गई है. मैं दिन में 2 बार आया, कहां थी?’’

‘‘जहां आज मैं गई थी, आप मेरे साथ कल चलना, मामाजी. मैं भी चाहती हूं कि कोई बड़ा मेरे साथ जाए तो मेरा पेपर वर्क थोड़ा जल्दी हो जाए.’’

यह बात सुन कर मामाजी की आवाज ढीली हो गई, कहा, ‘‘तू तो जानती ही है कि मेरी तबीयत कितनी खराब रहती है. ऐसा कर उमेश को ले जा, उन लोगों का भी तो फर्ज है कुछ.’’

‘‘आप का बेटा क्या सोशल मीडिया पर ही मु झे फौलो करेगा कि मैं कब क्या कर रही हूं. उसे बोलो मामाजी, रियल लाइफ में मेरे साथ चला करे.’’

‘‘वह तो अपनी जौब में बिजी है न.’’

‘‘पता है मु झे सब लोग कितने बिजी हो.’’

‘‘सचमुच बदतमीज होती जा रही है,’’ कह कर मामाजी ने फोन रख दिया.

काजल का मन खराब हो गया. इन सब से बात कर के वह बहुत देर तक उदास रहती. कोई उस से नहीं पूछता कि वह कैसी है, उसे कोई परेशानी तो नहीं. सब ऐसे व्यवहार करते हैं जैसे वह दिनरात कोई गलत काम कर रही है. अब अकेली रह गई है तो सब के लिए जवाबदेही बढ़ गई है? अकेली मतलब बुरी? इतना पढ़लिख लिया है, कोई जौब भी ढूंढ़ ही लेगी पर यह समाज क्या हमेशा ऐसा ही रहेगा? ये सब उस की पर्सनल लाइफ की खोजबीन ही करते रहेंगे? हमारे समाज में अकेली अविवाहित युवा, युवा विधवा, युवा तलाकशुदा का जीवन कितना संघर्षभरा है, ये वही जानती हैं. समाज इन्हें नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ता.

काजल ने तनु और रवीना को लेटेलेटे ग्रुप कौल किया, दोनों उस से उस का हालचाल लेती रहीं. उमेश और मामा से हुई बात बताते हुए काजल को रोना आ गया. दोस्त भी उदास हुईं, तनु ने कहा, ‘‘तु झे इन सब से एक दूरी बनानी होगी, तभी तू शांति से अपने काम कर पाएगी. कल कोई जौब करेगी तब भी ये सब तेरा जीना मुश्किल ही करेंगे.’’

‘‘तो क्या करूं? उमेश जब चाहे, मुंह उठा कर चला आता है जैसी नजरों से देखता है. उसे पीटने का मन करता है. एक दिन कह रहा था कि मूवी चलेगी? मैं ने मना किया तो कहने लगा कि ‘‘मु झे ही अपना बौयफ्रैंड सम झ ले, तेरी सारी परेशानियां कम हो जाएंगी.

‘‘मैं ने कहा कि चाचा को बताती हूं तो हंस दिया कि अरे मेरी बहन है तू, मजाक नहीं कर सकता क्या? चचेरे भाईबहन तो कितने ही मजाक करते हैं और फिर बेशर्मी से हंस दिया कि तु झे क्या पता, मजाक के साथसाथ क्याक्या चलता है कजिंस में मु झे सम झ नहीं आ रहा है कि मैं कैसे इन सब से निबटूं?

‘‘अब पैंशन औफिस में क्या कह रहे हैं?’’

‘‘15 दिन बाद आने के लिए कहा है. सोच रही हूं, एक वैलनैस सैंटर खुला है दिल्ली से निकलते ही, नोएडा वाले रोड पर. मु झे मैंटल पीस चाहिए, तुम लोगों को भी सही लगता है तो कुछ दिनों के लिए चली जाऊं?’’

दोनों कुछ देर सोचती रहीं, फिर रवीना ने कहा, ‘‘हां, अभी एकाध हफ्ता कहीं मूड चेंज करने के लिए चली जा. ठीक लगे तो रुकना नहीं तो या मेरे पास या तनु के घर आ जाना. हमारा घर तेरा अपना ही है, संकोच मत करना. अभी अंकल को गए 4 महीने ही तो हुए हैं, घर में मन भी नहीं लगता होगा. सम झ रही हूं, तेरे रिश्तेदार किसी काम के नहीं. तेरी मानसिक शांति ही भंग करते हैं और इस उमेश के लिए तो गेट खोला ही मत कर.’’

‘‘हां, यह फोन पर भी उलटेसीधे मैसेज भेजता रहता है.’’

‘‘पढ़वा दे इस की पत्नी को, दिमाग ठिकाने आ जाएगा.’’

‘‘सोच रही हूं, काफी रिश्तेदारों को ब्लौक कर दूं. अभी भी तो बुरी लड़की ही सम झ रहे हैं, बात नहीं होगी तो मेरा दिमाग तो नहीं खाएंगे.’’

‘‘हां, कर दे ब्लौक.’’

‘‘सचमुच कर दूं?’’

‘‘हां, कर दे.’’

थोड़ी देर बाद सब ने फोन रख दिया. फोन रखने के बाद काजल ने सोचा, वह अकेली रहती है, अब उस का कोई नहीं. जो भी दोस्त हैं, दूर हैं. 1-2 दोस्त और भी हैं, अमित और नैना. दोनों उस के साथ पढ़े हैं. अमित तो उस के घर से 2 किलोमीटर दूर ही है, नैना पटपड़गंज में. दोनों पापा के जाने के बाद उस के घर कई बार आ चुके हैं, मुसीबत में काम भी आएंगे, उसे यह भी यकीन है. ये रिश्तेदार उसे सिर्फ ताने मारते हैं, उस का मजाक उड़ाते हैं, ये सब उस के किसी काम नहीं आने वाले हैं. उमेश की गंदी नजरों से बचना ही अब बहुत मुश्किल होता जा रहा है पर अपनी सेफ्टी के लिए उसे कई कदम उठाने ही होंगे. अकेली है तो क्या जीना छोड़ दे?

काजल ने अब उमेश को और कई लोगों को फोन पर ब्लौक कर ही दिया. देखा जाएगा और बुरी सम झ लें, क्या फर्क पड़ जाएगा. फिर उस ने आसपास के वैलनैस सैंटर ढूंढे़. उस का मन था कि दिल्ली से थोड़ा बाहर निकले. यहां की हवा में तो अब सांस भी मुश्किल से आती थी, हर तरफ धुआं ही धुआं, गरमी, अजीब सा मौसम और माहौल. उसे नोएडा वाला ही सैंटर सम झ आया, नैचुरल वैलनैस सैंटर. उस के पास उस के अकाउंट में इतने पैसे थे कि उस के खर्चे आराम से पूरे हो रहे थे. यहां 15 हजार 1 हफ्ते का था, उसे पहले तो ज्यादा लगे पर उस ने सोचा कि उस की मैंटल हैल्थ के लिए यहां से कुछ दिन दूर होना उस के लिए जरूरी है. उस ने रजिस्ट्रेशन करवा लिया. उसे अब अगले दिन ही सुबह निकलना था. वह अब कुछ तैयारी करने लगी. बाहर निकल कर दूध और भी कुछ चीजें लेने निकलीं.

काजल ने सोचा इस समय बस थोड़ी सी खिचड़ी बना लेगी. सुबह चायब्रैड खा कर निकल जाएगी. 5 मिनट दूर ही सब दुकानें थीं. उस ने घर का कुछ सामान लिया. इस समय रात के 8 बज रहे थे. इस समय भी इतनी उमस थी, पसीना पोंछती सब सामान ले कर घर की तरफ बढ़ ही रही थी कि उमेश ने आ कर पीछे से जोर से बोलते हुए डरा ही दिया, ‘‘तेरे फोन को क्या हुआ?’’

काजल तेजी से चली, कहा, ‘‘मेरे पीछे आया तो तेरे घर जा कर मेखला के सामने क्याक्या कहूंगी, कई दिन याद रखेगा, सम झा?’’

पत्नियों के नाम से अच्छेअच्छों को डर लगता है. भरी भीड़ में उमेश उस समय तो चुप हो गया पर मन में सोचा, इसे तो बाद में देख लूंगा.

घर जा कर काजल ने अपने दिल की बेतरतीब धड़कनें संभालीं. हमारे समाज में एक अकेली लड़की की परेशानी सम झना आसान नहीं है. कैसेकैसे भेडि़ए अपनों की शक्ल में आसपास घूमते हैं, अपनों से ही अपनी सुरक्षा करनी होती है. उस ने नैना और अमित को भी फोन कर के सब बता दिया और सब दोस्तों को अगले हफ्ते लगातार टच में रहने के लिए कहा.

काजल ने अगले दिन निकलने के लिए अपनी पैकिंग की, खिचड़ी बनाई, स्नेहिल सुधा जिसे काजल, आंटी कहती थी, जो उस की मम्मी के समय से घर के काम करती थीं, उन्हें सुबह जल्दी आने के लिए कहा. घर में हर तरफ उसे अपने मम्मीपापा दिखते, लगता कहीं नहीं गए हैं, उस के आसपास ही हैं. मगर यह तो मन को बहलाने वाली बात थी. वह अकेली है, वह जानती थी. उस ने गूगल पर इस नैचुरल वैलनैस सैंटर के बारे में और पढ़ा. वहां प्राकृतिक माहौल में मैडिटेशन, ऐक्सरसाइज, हैल्दी लाइफस्टाइल के बारे में सिखाया जाता था. रिव्यू अच्छे थे. उसे सब ठीक ही लग रहा था. इस का एड उसे न्यूजपेपर में काफी टाइम से दिख रहा था.

अगले दिन सुधा आंटी से काम कराते हुए काजल ने अपने जाने के बारे में बता दिया. सुधा को अब उस की फिक्र रहती, उसे अपना ही सम झती थी. अब नौकर और मालिक का रिश्ता न था, इंसानियत और स्नेह

का रिश्ता था. सुधा ने उसे सुरक्षा सबंधी कई निर्देश दिए. वह भी जानती थीं काजल आज की पढ़ीलिखी लड़की है, अलर्ट रहती है. इतने सालों से एक मासूम बच्ची को मजबूत बनते देख रही थी.

काजल मैट्रो से नोएडा पहुंच गई. सैंटर तक पहुंचने में उसे कोई दिक्कत नहीं हुई. आजकल तो वह वैसे भी पता नहीं कहांकहां किसकिस विभाग में चक्कर काट रही थी. अब तो मशीन की तरह एक से दूसरी जगह पहुंचती रहती. दिल्ली में ही जन्मी और पलीबढ़ी थी. रिसैप्शन पर उस ने एक फौर्म भरा, अपनी कुछ डिटेल्स दी. वहां की हरियाली ने उस का मन मोह लिया. लगा ही नहीं कि आसपास इतना सुंदर कोई सैंटर था. बहुत शांति थी. वहां के स्टाफ की एक 20-21 साल की लड़की मुसकराते हुए उसे एक रूम तक ले गई, कहा, ‘‘काजल, आप फ्रैश हो लें. फिर 1 घंटे बाद हौल में मिलते हैं.’’

काजल ने पूछ लिया, ‘‘यहां कितने लोग हैं? सब को 1-1 रूम मिलता है?’’

‘‘इस हफ्ते के बैच में यहां 20 लोग हैं,

2 पुरुषों को एक रूम शेयर करना होता है, किसी लड़की को एक ही रूम दिया जाता है. उसे शेयर नहीं करना पड़ता.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘उन की प्राइवेसी का ध्यान रखना पड़ता है,’’ कहते हुए वह जब मुसकराई तो उस की स्माइल काजल को कुछ भाई नहीं.

1 घंटा काजल ने आराम किया, अपने दोस्तों को, यहां तक कि सुधा आंटी को भी अभी तक के अपडेट्स दे दिए. सभी ने उसे ध्यान से रहने के लिए कहा. सभी को उस की चिंता थी. सभी चाहते तो यही थे कि वह किसी अनजान जगह न जाए पर पिछले कुछ महीनों से काजल जिस उदास दौर से गुजर रही थी, सब ने उस की हां में हां यही सोच कर मिला दी थी कि कहीं निकलेगी तो उस का मन बहलेगा. हौल में पहुंच कर वहां आए लोगों पर एक नजर डाली. सभी उम्र के लोग थे. काजल ने एक बात जरूर नोट की कि स्टाफ की लड़कियां बैच के पुरुषों को कुछ अलग तरह से अटैंड कर रही थीं. उसे अजीब सा लगा. इन लड़कियों की ड्रैस थी, वाइट कलर का टौप और वाइट कलर की ही ढीली सी पैंट. यह ड्रैसकोड काफी स्टाइलिश लग रहा था. फिर वहां 2 लड़के और 2 लड़कियां आए, इन लड़कों ने बड़े स्टाइलिश कुरतेपजामे पहने हुए थे, लड़कियों ने कुरता और लैगिंग. ये चारों वहां बने एक छोटे से स्टेज पर गुरुओं की तरह बैठ कर सब का वैलकम करते हुए अपने वैलनैस प्रोग्राम के बारे में बताने लगे. बैच के लोग इन के सामने जमीन पर बिछी दरी पर बैठे थे.

स्टाइलिश गुरुओं ने सब पर नजर डाली, फिर एक गुरु की नजर काजल पर अटक गई. काजल कुछ असहज हुई. फिर कुछ प्राणायाम हुआ, कुछ ओशो जैसी बातें हुईं. काजल को याद आया कि ये सब ज्ञान की बातें तो इंस्टाग्राम पर रील्स पर खूब घूमती हैं. काफी कुछ यौगिक क्रियाओं पर बातें हुईं. कभी कोई गुरु बोल रहा था, कभी कोई, जैसे सब ने अपनीअपनी बातें रट रखी हों. काजल हैरान सी थी कि सबकुछ कितना मैनेज्ड है. 2 घंटे बाद कहा गया कि जा कर सब लोग थोड़ा आराम कर लें, फिर सैंटर में थोड़ा टहल कर आएं, लंच सब साथ करेंगे. बता दिया गया कि कैंटीन किधर है.

यहां इतनी गरमी, घुटन नहीं थी जितनी काजल को दिल्ली में लग रही थी. इस का कारण यहां की हरियाली होगा. काजल को यहां सब शांत लग रहा था, शांत पर कुछ अलग. लोग आपस में एकदूसरे से पूछने लगे कि कौन कहां से क्यों आया है. कारण लगभग एक सा ही था. बोरिंग लाइफ में

कुछ चेंज के लिए. काजल को छोड़ कर सब के साथ एक न एक परिवार वाला या दोस्त था. वही बिलकुल अकेली थी. सब रूम शेयर कर रहे थे. उसी के पास सिंगल रूम था. सादा स्वादिष्ठ खाना सब ने साफसुथरी कैंटीन में साथ ही खाया. चारों गुरुओं ने भी अपने नाम पल्लवी, ऋतु, रजत और चिराग बताए और अपना परिचय दिया. सब ने कोई न कोई बड़ी डिग्री ली हुई थी पर अब शौकिया अच्छे मनपसंद काम में समय बिता रहे थे.

खाना हो गया तो रजत ने कहा, ‘‘अब आप लोग जो चाहें करें, 4 बजे वापस हौल में आ जाएं, 1 घंटा कुछ बातें करेंगे, फिर शाम की सैर, फिर कुछ ऐक्सरसाइज. यहां वहां सामने एक छोटी सी लाइब्रेरी भी है, जो चाहे, वह करें. हौल में फोन बंद ही रखें.’’

रजत ने काजल से कहा, ‘‘आप अकेली हैं, चाहें तो हमारे स्टाफ के साथ घूम सकती हैं या हम लोग भी हैं, हमारे साथ भी टाइम बिता सकती हैं,’’ कहतेकहते उस ने काजल को जिन नजरों से देखा, उसे उमेश याद आ गया. वह दुखी तो थी पर मूर्ख तो बिलकुल नहीं थी.

काजल ने सामान्य से स्वर में कहा, ‘‘थैंक्स, अभी तो मैं थोड़ी देर सामने पेड़ के नीचे रखी चेयर पर कुछ देर बैठना चाहूंगी. फिर हौल में ही मिलती हूं.’’

‘‘श्योर, एज यू विश, ऐंजौय द ब्यूटी औफ दिस प्लेस,’’ कह कर वह चला गया.

काजल इधरउधर देखती हुई पेड़ के नीचे रखी 2 सुंदर चेयर्स में से एक पर बैठ गई. यहां अच्छा तो लग रहा था पर मन में कुछ खटक रहा था. दोस्तों के व्हाट्सऐप पर कई मैसेज आए हुए थे कि ठीक हो न, सब ठीक है? कुछ रिश्तेदारों के भी मैसेज थे कि कहां घूम रही हो? तुम्हारे घर पर ताला क्यों लगा है? सुबहसुबह कहां निकल जाती हो?

काजल ने अपने दोस्तों से बात की, सब बताया कि अभी तक क्या चल रहा है. इन रिश्तेदारों को ब्लौक कर दिया जिन्हें बस सवाल पूछने थे.

तभी काजल को एक लगभग 50 साल का व्यक्ति अपनी ओर आता दिखा, स्टाइलिश सूट में, मौडर्न शूज, शानदार परफ्यूम की खुशबू बिखेरता उस के सामने आ कर खड़ा हो गया. अपना परिचय दिया, ‘‘हैलो काजल, मैं रवि कुमार. यहां का ओनर, यहां का कांसैप्ट मेरा ही है. आप डिस्टर्ब न हों तो मैं थोड़ी देर आप को कंपनी देना चाहूंगा. आप अकेली हैं, आप को अभी तक यहां कोई प्रौब्लम तो नहीं, बस आप से मिलने आ गया.’’

‘‘नो प्रौब्लम, रविजी, आप से मिल कर खुशी हुई. आइए, बैठिए.’’

रवि उस की ऐजुकेशन, उस के पेरैंट्स के बारे में बात करता रहा, उस के आगे के प्लान पर बात करता रहा. अपने बारे में बताता रहा, उस ने शादी नहीं की थी. वह सालों से इसी कौंसैप्ट पर काम करने में बिजी रहा. फिर कहने लगा, ‘‘आप यहां 1 हफ्ता आराम से रहिए, रातदिन किसी भी टाइम कंपनी चाहिए तो मु झे फोन कर दीजिए, मैं आप की सेवा में हाजिर हो जाऊंगा, आप भी अकेली, मैं भी अकेला. यह रहा मेरा कार्ड,’’ कह कर वह जिस तरह से हंसा, काजल को उमेश की मक्कारी वाली हंसी याद आ गई. वह सोचने लगी कि यहां के लोगों को देख कर उसे उमेश का ध्यान क्यों आ रहा है. आंखों से ही बहुत कुछ कह कर रवि कुमार चला गया. काजल ने ठंडी सांस ली. उफ, उसे क्यों लग रहा है जैसे यह वैलनैस सैंटर किसी मौडर्न बाबा का मौडर्न आश्रम है, अकेली लड़की पर यहां कुछ खास मेहरबानी हो रही है. उसे उमेश जैसी नजरों से देखा जा रहा है. उसे हवा में ही किसी खतरे की गंध आई. उस ने फौरन अमित को फोन लगा दिया, ‘‘अमित, तुम मु झे यहां आ कर तुरंत ले जाओ, बोलना फैमिली इमरजैंसी है. ये लोग कुछ कहें तो अड़ जाना. सख्ती से बात करना.’’

‘‘क्या हुआ? तुम ठीक तो हो?’’

‘‘बस, मु झे आज ही यहां से ले जाओ. और हां, ये लोग हौल में फोन बंद करने के लिए कहते हैं. अब तुम देख लेना कि क्या कैसे करना है. यहां अंदर आ जाओ तो कौल करना, मैं सम झ जाऊंगी कि तुम आ गए हो.’’

‘‘चिंता मत करो, अभी औफिस से निकल रहा हूं.’’

काजल ने बाकी दोस्तों को भी सब बता दिया. सब परेशान हो गए पर सब को यही ठीक लगा कि किसी अनहोनी का इंतजार न किया जाए. अभी निकला जाए.’’

काजल हौल में सब के साथ बैठी थी, उस के कुरते में फोन वाइब्रेट कर रहा था पर इस समय वह फोन उठा नहीं सकती थी. उस ने रूमाल निकालने के बहाने देख लिया कि अमित कौल कर रहा है. वह अब कुछ निश्चिंत हो गई. इस समय मंच पर रजत और पल्लवी सही तरह से सांस लेने की टैक्नीक बता रहे थे. काजल का अब पूरा ध्यान 1-1 आवाज पर था. किसी ने आ कर रजत के कान में कुछ कहा, उस के चेहरे पर नागवारी के भाव आए.

रजत ने पल्लवी को धीरे से कुछ कहा, फिर उस ने घोषणा की, ‘‘काजल, हौल से बाहर जाइए, आप से कोई मिलने आया है. कुछ अर्जैंट है.’’

काजल कुछ न सम झने की ऐक्टिंग करते हुए बाहर निकली, औफिस की तरफ गई, वहां खड़े अमित ने बहुत ही गंभीर स्वर में कहा, ‘‘तुम्हारा फोन ही नहीं लग रहा है, बहुत बुरी खबर है.’’

‘‘अरे, क्या हुआ?’’

‘‘तुम्हारे कजिन की ऐक्सीडैंट में डैथ हो

गई है.’’

‘‘उफ…’’

‘‘जल्दी चलो, तुम्हारे चाचा ने फौरन

बुलाया है.’’

वहीं कुछ दूरी पर रवि कुमार भी खड़ा था. उस का चेहरा ऐसा था जैसे हाथ आए खजाने को कोई छीन कर भाग गया हो. फिर भी उस ने कोशिश की, ‘‘सो सौरी, काजल. बहुत दुख हुआ. आप चाहें तो दोबारा आ जाएं. आप की फीस तो जमा ही रहेगी, हम उसे तो वापस नहीं कर सकते.’’

‘‘जी, थैंक यू, कोशिश करूंगी कि जल्दी आ जाऊं.’’

काजल ने पहले से तैयार अपना बैग जल्दी से जाकर उठाया. वहां से अमित और काजल भागते हुए ही निकले. अमित अपनी कार ले कर आया था. कार में बैठते हुए अपनी सीट बैल्ट लगाते हुए दोनों ने चैन की सांस ली, अमित ने पूछा, ‘‘अब बताओ यार क्या हुआ था?’’

‘‘अभी तक तो कुछ नहीं हुआ था पर मु झे पूरा यकीन है कि यह मौडर्न वैलनैस सैंटर किसी ऐयाश बाबा के आश्रम का ही नया रूप है. नए रैपर में पुरानी मिठाई ही है.’’

‘‘फिर तो समय रहते वहां से निकलना ही ठीक था. इस जगह की शिकायत करनी है?’’

‘‘अभी मेरे पास कोई पू्रफ नहीं है.’’

‘‘हां, यह बात भी है.’’

दोनों बहुत सी बातें करते रहे. काजल ने एक जगह कहा, ‘‘बस मु झे यहीं उतार दो, यहां से मैं मैट्रो पकड़ सकती हूं. मु झे घर छोड़ने जाओगे तो तुम्हें लंबा रास्ता पड़ेगा. थैंक यू, दोस्त. अब तुम ही लोग हो मेरे पास,’’ कहतेकहते काजल का गला भर आया.

अमित ने कहा, ‘‘किसी बात की टैंशन न ले, घर जा कर आराम कर. जल्द ही सब मिलते हैं.’’

इस तरह की अकेली रहने वाली लड़कियों के पास कुछ अच्छे दोस्त भी होते हैं जिन पर ये यकीन कर सकती हैं. ऐसे दोस्तों के कारण इन की दुनिया कुछ सुंदर तो हो ही जाती है. दोस्ती में अगर स्वार्थ, ईर्ष्या न हो तो यह रिश्ता दुनिया का सब से सुंदर रिश्ता होता है.

काजल ने मैट्रो पकड़ी. उसे अच्छा लग रहा था कि आज सुबह से उसे किसी रिश्तेदार का फोन नहीं आया न आगे आना था. सब से कटने का वह मन बना ही चुकी थी. उस ने घर आ कर सुधा आंटी को बता दिया कि वह आ गई है. उस के जल्दी आने पर वह चिंतित हुई. उसे चैन नहीं आया कि काजल तो

1 हफ्ते के लिए गई थी, आज ही कैसे आ गई? वह देखने आ ही गई, ‘‘काजल. आज ही कैसे आ गई, बेटा?’’

काजल ने सब कह सुनाया. आंटी हैरान हुई, दुखी भी हुई. बोली, ‘‘कितनी सम झदार हो तुम, आज का दिन मुश्किल सा रहा होगा पर ऐसी बातें तुम्हें बहुत मजबूत बना देंगी. आराम करो, बेटा सुबह आती हूं. अपनी मम्मी वाला गाना याद कर लो,’’ स्नेह भरे स्वर में कह कर आंटी तो चली गई पर आंटी की कही बात को काजल देर तक सोचती रही, मथती रही. लगा, मम्मी घर के ही किसी कोने में गुनगुना रही हैं कि ऐ दिल तु झे कसम है, तू हिम्मत न हारना, दिन जिंदगी के जैसे भी गुजरें, गुजारना…’’

काजल को यह गाना याद कर मम्मी की याद आई तो कुछ आंसू भी गालों पर बह चले पर अपने दिल पर हाथ रख कर कहा कि चल दिल, हिम्मत नहीं हारनी है, जीना है और हिम्मत से जीना है और फिर उस ने अपने सब दोस्तों को यह एक लाइन गा कर वौइस मैसेज भेज दिया. काजल का मैसेज सब फौरन देखते थे. सब की हार्ट वाली इमोजी और थम्सअप आ गया.

बैडरैस्ट: आखिर जया को कौनसी बीमारी हुई थी?

और्थोपैडिक डाक्टर अमित ने जब मुझे 10 दिन की बैडरैस्ट बताई तो तेज दर्द में भी मैं ने अपने होंठों पर आने के लिए तैयार हंसी रोक ली. मनमयूर नाच उठा. मन में दर्द में आह और बैडरैस्ट सोच कर वाह एकएक निकल रही थीं. मेरे पति विजय ने बैडरैस्ट सुन कर मुझे देखा तो मैं ने फौरन अपना चेहरा गंभीर कर लिया.

आप ने यह तो सुना ही होगा न कि हर औरत के अंदर एक अभिनेत्री होती है. विजय के मुंह से बैडरैस्ट सुन कर आह ही निकली थी. डाक्टर के सारे निर्देश समझ कर विजय ने जाने के लिए उठते हुए मुझे हाथ का सहारा दे कर उठाया. मेरे मुंह से एक कराह निकल ही गई.

‘‘बहुत ध्यान से जया… 10 दिन की बैडरैस्ट है,’’ मुझसे कह डाक्टर अमित ने मेरे दवा के परचे पर भी बड़ेबड़े अक्षरों में सीबीआर यानी कंप्लीट बैडरैस्ट लिख दिया.

डाक्टर अमित को हम काफी सालों से जानते हैं पर सच कहती हूं 60 साल के डाक्टर अमित आज तक मुझे इतने अच्छे नहीं लगे थे जितने आज लगे. अचानक मुझे अपनी कल्पना में डाक्टर अमित एक सुपरमैन की तरह लगे जो घर के कामों में पिसती औरत को कुछ दिन आराम करवाने आए हों. उन का मन ही मन शुक्रिया करते हुए मैं मन में खुद से कहने लगी कि जया, कर ले अब अपना सपना पूरा… कितने अरमान थे कभी बैडरैस्ट मिले… कम से कम कुछ दिन तो चैन से लेट कर टीवी देखेगी, किताबें पढ़ेगी. बस खाएगीपीएगी, नहाएगी फिर अच्छे से कपड़े पहन कर लेट जाएगी. फ्रैंड्स देखने आएंगी, गप्पें मारेंगे. बढि़या टाइम पास होगा. चलो, जया ऐंजौय योर बैडरैस्ट. जी ले अपनी जिंदगी. यह बैडरैस्ट डाक्टर रोजरोज नहीं बोलेगा. 40 साल में पहली बार बोला है. जया, जीभर कर इस बैडरैस्ट का 1-1 पल जी लेना.

मु?ो सोच में डूबे देख विजय ने कहा, ‘‘डौंट वरी जया. बस अब तुम घर चल कर आराम करना. हम सब मैनेज कर लेंगे.’’

मैं कुछ नहीं बोली. बहुत दर्द तो था ही.

विजय ने मु?ो ध्यान से कार की सीट पर बैठा

कर सीटबैल्ट भी खुद ही बांध दी. मैं ने सोचा वाह, इतना ध्यान रखा जाएगा, बढि़या है पर प्रत्यक्षत: इतना ही कहा, ‘‘सम?ा नहीं आ रहा कैसे होगा…डाक्टर का क्या है. ?ाट से बैडरैस्ट बोल दिया.’’

‘‘चिंता क्यों करती हो? हम हैं न… बच्चों के साथ मिल कर मैं सब संभाल लूंगा.’’

विजय ने कार स्टार्ट की. स्पीड ब्रेकर्स, गड्ढों का ध्यान रखते हुए गाड़ी चला रहे थे ताकि ?ाटका आदि लगने पर मु?ो दर्द न हो. दरअसल, हुआ यह था कि मैं आज सुबह तेजी से सीढि़यां उतरते हुए सब्जी लेने जा रही थी कि मेरा पैर फिसल गया… मैं बड़ी मुश्किल से उठ पाई थी. टैस्ट्स और ऐक्सरे के बाद डाक्टर अमित ने कहा कि यह प्रो स्लिप डिस्क इंजरी है… बच गई तुम, जया नहीं तो मुश्किल हो जाती.

मेरा मूड हलका करने के लिए विजय ने कहा ‘‘क्यों दौड़तीभागती हो इतना जया? कितनी बार कहा कि घोड़े की तरह इधर से उधर मत भागती फिरा करो… तुम आराम से क्यों नहीं चलती, डियर?’’

‘‘इस का सारा क्रैडिट मेरे पापी मायके वालों को है, जिन्होंने सब से छोटी होने के

कारण मुझे हर काम बताते हुए यही कहा कि जया, जाओ भाग कर यह ले आओ, भाग कर

वह ले आओ. किसी ने कभी यह कहा ही नहीं कि जाओ जया आराम से ले आओ. तो जनाब, मु?ो तो हर काम भागभाग कर करने की ही

आदत है.’’

मेरी नाटकीयता के साथ कही इस बात पर विजय हंस पड़े. बोले, ‘‘वाह, दर्द में भी हंसना कोई तुम से सीखे.’’

अब मैं उन्हें यह तो नहीं बता सकती थी कि दर्द में मु?ो बस बैडरैस्ट दिख रही है… मेरा सपना पूरा होने जा रहा है.

घर पहुंचे तो बच्चे नीरुषा और तन्मय परेशान से हमारी ही राह देख रहे थे. दोनों ने सवालों की ?ाड़ी लगा दी. विजय ने मुझे बैड तक ले जा कर लिटाते हुए उन्हें सब बताया.

पहले तो बच्चों ने आह कह कर गंभीर प्रतिक्रिया दी, फिर अचानक दोनों

जोश से भर गए. नीरुषा ने कहा, ‘‘मम्मी, हम सब मिल कर आप का ध्यान रखेंगे, डौंट वरी…’’

तन्मय भी बोला, ‘‘हां, बस आप लेटेलेटे हमें बताते रहना कि क्या काम करना है.’’

मैं ने मन ही मन सोचा कि चलो अब शायद सचमुच आराम मिलेगा. कितने प्यारे बच्चे हैं… कितना प्यारा पति है. मु?ो बड़ा लाड़ सा आया तीनों पर. फिर कहा, ‘‘मेड से कुछ और काम भी कह दूंगी…थोड़ी हैल्प हो जाएगी.’’

विजय बोले, ‘‘मैं ने आज छुट्टी ले ली है.’’

तभी नीरुषा बोली, ‘‘कल मैं कालेज नहीं जाऊंगी.’’

तन्मय भी कहां पीछे रहता. बोला ‘‘नहीं दीदी, आप चली जाना, मैं स्कूल नहीं जाऊंगा.’’

‘‘नहीं, मेरा कालेज जाना जरूरी नहीं, तुम स्कूल जाना.’’

तन्मय का मुंह उतर गया तो मु?ो हमेशा की तरह फ्रंट पर आना पड़ा, ‘‘ऐसा करो कि तीनों बारीबारी से 1-1 दिन रह लेना… तब तक तो मु?ो आराम हो ही जाएगा. चलो, आज तुम दोनों जाओ… आज तो विजय हैं.’’

दोनों बेमन से जाने के लिए उठ गए. विजय ने औफिस के 2-4 फोन निबटाए.

फिर मैं ने कहा, ‘‘सुनो, मैं ने नाश्ता तो बना ही दिया था. चलो, सब नाश्ता कर लेते हैं. बस मेरे लिए 1 कप चाय बना दो प्लीज.’’

विजय का चेहरा उतर गया, ‘‘चाय?’’

‘‘हां.’’

घर में सिर्फ मु?ो ही चाय पीने की आदत है. ज्यादा नहीं. 1 कप सुबह उठ

कर, 1 नाश्ते के साथ और 1 शाम को.

इस से ज्यादा एक बार भी नहीं. बच्चे तैयार हो रहे थे. मेड सुबह का काम कर के जा चुकी थी.

विजय ने किचन से वापस आ कर पूछा, ‘‘जया, मंजू चाय का बरतन कहां

रख गई?’’

‘‘टोकरे में रखे धुले बरतनों में होगा.’’

‘‘मतलब टोकरे में ढूंढूं?’’

थोड़ी देर में टोकरे के बरतनों की आवाज से लगा कि चाय का बरतन नहीं, पूरे टोकरे के बरतन एकसाथ नीचे गिर गए हैं. मैं ने आज नाश्ते में पोहा बनाया था. बस बना कर ही ताजा सब्जी लेने उतर रही थी जब यह हादसा हुआ. बच्चे तैयार हो कर अपना और मेरा नाश्ता ले कर मेरे पास ही आ गए, ‘‘मम्मी, आप भी खा लो. दवा लेनी होगी.’’

‘‘विजय चाय ला रहे हैं… तुम लोग शुरू करो… मैं खाती हूं.’’

विजय ?ोंपते हुए बड़ी देर बाद आधा कप चाय ले कर आए तो मैं ने पूछा, ‘‘अरे, इतनी कम बनाई?’’

‘‘नहीं, वह छानते हुए गिर गई.’’

बच्चे जोर से हंस पड़े. मैं ने भी हंसते हुए कहा, ‘‘हंसो मत, तुम लोगों का भी नंबर आने वाला है.’’

विजय ने प्यारे, मीठे स्वर में कहा, ‘‘पी कर बताओ. जया कैसी बनी है? सालों बाद बनाई है.’’

मैं ने पहला घूंट भरा. तीनों एकटक मेरा चेहरा देख रहे थे. मैं ने जानबू?ा कर गंभीरता से कहा, ‘‘तुम से यह उम्मीद नहीं थी, विजय.’’

‘‘क्या हुआ… पीने लायक नहीं है?’’

‘‘अरे, अच्छी बनी है.’’

अब तीनों एकसाथ हंस पड़े. विजय ने बच्चों को गर्व से देखा. मैं कहतीकहती रुक गई कि विजय प्लीज, चाय वापस ले जाओ. मैं कल से चाय पीने की अपनी गंदी आदत छोड़ दूंगी पर कह नहीं पाई. तब ऐसा तो कुछ भी नहीं लगा कि महबूब के हाथ से जहर भी अमृत लग रहा है और उस की आंखों में देखते हुए सब पी गए. जी नहीं, ऐसा कुछ नहीं हुआ. चाय खराब थी पर पोहे के साथ गटक ली. विजय सब काम कर सकते हैं पर किचन में जरा अनाड़ी हैं, छोड़ो आज ?ाठ नहीं बोलूंगी… जरा नहीं पूरे अनाड़ी हैं और मजेदार बात यह है कि उन्हें लगता है कि उन्हें किचन के काम आते हैं. जनाब की इस गलतफहमी को मैं कभी दूर नहीं कर पाई.

बच्चे चले गए तो विजय ने कहा, ‘‘अब तुम आराम करो.’’

मैं सुहाने सपनों में खोई लेटी थी.

10 दिन रैस्ट… डिलिवरी के समय ही कुछ दिन लेटी थी. उस के बाद तो रैस्ट शब्द याद ही नहीं आया आज तक. खैर, मन ही मन काफी कुछ सोचने के बाद मैं ने व्हाट्सऐप पर अपनी 3 खास सहेलियों गीता, नीरा और संजू को बैडरैस्ट की न्यूज दे दी. हम चारों को व्हाट्सऐप पर गु्रप है. तीनों के ज्ञान, जोक्स शुरू हो गए.

 

तभी विजय आए, ‘‘जया, फोन रख कर आराम कर लो,’’ और फिर मेरी

बगल में ही लेट गए. थोड़ी देर हम आम बातें करते रहे. फिर अचानक उन के खर्राटे शुरू हो गए. लो हो गया आराम… मैं ने अपना साइड में रखा नौवेल उठा लिया. ‘इस टाइम सोने की आदत तो है नहीं. चलो नौवेल ही पढ़ लूं,’ सोच मैं हिली तो मेरे शरीर में तेज दर्द की लहर दौड़ गई.

एक कराह सी निकली तो विजय की नींद खुल गई. मु?ो देख बोले, ‘‘उठना मत. कुछ चाहिए तो मु?ो बताना,’’ कह कर करवट बदल कर फिर सो गए.

मु?ो बस वाशरूम जाने की परमिशन थी. मैं रोज 1 बजे लंच करती हूं. मेरा टाइम तय है. 1 बजा तो मु?ो भूख लगने लगी. विजय सो रहे थे. डेढ़ बजे तक मैं ने वेट किया, फिर आवाज दे दी, ‘‘विजय, लंच कर लें?’’

ऊंघती हुई आवाज आई, ‘‘अभी तो खाया था?’’

‘‘भूख लगी है, विजय,’’ मु?ो अपने स्वर में अतिरिक्त गंभीरता का पुट देना पड़ा. जानती हूं इस का असर.

विजय तुंरत उठ गए, ‘‘क्या लाऊं?’’

‘‘तुम लोगों के टिफिन के लिए जो खाना बनाया था, वही रखा है, ले आओ.’’

कुछ ही पलों बाद वे फिर आए, ‘‘खाना गरम करना है?’’

आदतन मु?ो मस्ती सू?ा, ‘‘रोज तो गरम कर के खाती हूं, आज तुम्हारी मरजी है जैसा दोगे खा लूंगी.’’

विजय हंस दिए, ‘‘इतनी बेचारी बन कर मत दिखाओ. गरम कर के ला रहा हूं.’’

विजय मेरा और अपना खाना ले आए. खाना हम ने अच्छे मूड में हंसतेबोलते खाया. मेरा खाना खत्म हुआ तो मैं प्लेट रखने व हाथ धोने के लिए उठने लगी.

तब विजय ने उठने नहीं दिया. बोले, ‘‘मैं तुम्हारे हाथ यहीं धुलवा दूंगा.’’

‘‘नहीं, इतना तो उठूंगी,’’ कह कदम आगे बढ़ाने पर कमर में दर्द की लहर दौड़ गई पर जरा हिम्मत कर के किचन तक चली ही गई. किचन में आने न देने का कारण भी फौरन स्पष्ट हो गया. विजय खिसियाए से मु?ो देख रहे थे. सुबह से दोपहर तक ही किचन की काफी दयनीय स्थिति हो चुकी थी. सुबह टोकरे में जो चाय का बरतन ढूंढ़ा गया था तो बाकी के सारे बरतन किचन में बिखरे अपनी दर्दनाक कहानी सुना रहे थे.

मैं जड़ सी खड़ी रही तो विजय ने मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘जया, खड़ी मत रहो. दर्द होगा. तुम चलो, मैं सब समेट कर आता हूं.’’

मैं चुपचाप लेट गई. किचन तक आनेजाने में काफी दर्र्द हुआ था. विजय ने मु?ो दोपहर की दवाई दी. थोड़ी देर बाद मेरी आंख लग गई. मैं गहरी नींद सोई. विजय के खर्राटों से ही फिर 4 बजे आंख खुली. रोज की तरह चाय पीने का मन हुआ, पर विजय के हाथ की चाय पीने की हिम्मत नहीं थी. संजू मेरी बराबर की बिल्डिंग में रहती है. मैं ने उसे मैसेज डाला, ‘‘आ जाओ, चाय पीनी है, बना कर दो.’’

उस ने खुशी से रोने वाली इमोजी भेजी. पूछा, ‘‘विजय से नहीं बनवाओगी?’’

मैं ने भी सिर पर हाथ मारने वाली इमोजी भेज दी, थोड़ी मस्ती में चैट की, फिर संजू आ गई. चाय उसी ने बनाई तो विजय ने भी चैन की सांस ली.

संजू ने कहा, ‘‘डिनर मैं बना लाऊंगी.’’

मैं ने कहा, ‘‘हां, बना लाना आज. कल से अंजू को बोल दूंगी… दोनों टाइम का बना लाएगी.’’

तभी नीरा और गीता भी आ गईं. गीता ही फिर थोड़ी देर बाद सब के

लिए चाय बना लाई. मेरे दर्द की बात होती रही. दर्द तो था ही, फिर मैं शरारत से इठलाते हुए बोली, ‘‘मैं तो अभी बैडरैस्ट करूंगी, तुम लोग आती रहना.’’

गीता ने घुड़का, ‘‘ज्यादा उड़ो मत. हमारा भी टाइम आएगा… कभी तो हम भी बैडरैस्ट करेंगे.’’

नीरा ने भी कहा, ‘‘हां, बिलकुल.

ऐसा थोड़े ही है कि हम कभी बैडरैस्ट नहीं करेंगे. चिढ़ाओ मत हमें, सब का टाइम आता है.’’

हम सब जी भर कर हंसे. गीता मस्ती मैं बोली, ‘‘यार, जरा टिप्स दो, कैसे गिरना है कि ज्यादा बुरा हाल भी न हो और बैडरैस्ट भी हो जाए.’’

हम मस्ती कर ही रहे थे कि बच्चे भी आ गए. सब से मिल कर, थोड़ी देर बैठ कर फिर फ्रैश होने चले गए.

डिनर संजू ले आई थी. सब ने खाया तो मु?ो याद आया, ‘‘अरे, कोई मशीन चला दो. कपड़े धोते हैं…’’

तीनों ने एकदूसरे का मुंह देखा. विजय ने कहा, ‘‘अब तो थक गए, कोई इमरजैंसी तो है नहीं, कल धो लेंगे.’’

मैं ने मन में कहा कि थक गए? सोसो कर? मैं बस वाशरूम जाने के लिए ही किसी न किसी का सहारा ले कर उठी थी. मैं ने सचमुच आराम किया था. मु?ो अच्छा लग रहा था.

अगले दिन नीरुषा ने मु?ा से कहा, ‘‘मम्मी, पापा को औफिस भेज दो न. मेरा मन कर रहा है आप के पास रुक कर आप का खयाल रखने का.’’

नीरुषा ने मु?ा से लिपट कर यह बात ऐसे कही कि मना करने का सवाल ही नहीं उठता था. मैं ने सोचा, विजय दिनभर आराम ही तो करेंगे… बेटी का मन है तो वही रह लेगी. अत: मैं ने हामी भर दी. फिर कहा, ‘‘चलो, अब चाय पिला दो.’’

‘‘पापा नहीं बनाएंगे?’’

मैं ने जल्दी से कहा कि ‘‘थक गए? सोसो कर?’’

उसे हंसी आ गई. बोली, ‘‘सम?ा गई… बनाती हूं.’’

विजय और तन्मय चले गए. अंजू ने सफाई के साथसाथ खाने का काम भी कर दिया. नीरुषा मेरे पास ही लेट कर अपने फोन में व्यस्त रही. बीचबीच में कुछ बात कर लेती. पूरा दिन नीरुषा ने अच्छा रिलैक्स कर के बिताया. खूब सोई, गाने सुने. मैं ने उसे जब भी कोई काम कहा वह मु?ा से लिपट गई, ‘‘मम्मी, आप के पास ही लेटने का मन है. काम तो हो ही जाएगा.’’

दिनभर धोबी, कूरियर वाले किसी ने भी डोरबैल बजाई तो नीरुषा ?ां?ालाई, ‘‘उफ, मम्मी दिनभर कितनी घंटियां बजती हैं. कोई आराम से लेट भी नहीं सकता.’’

शाम को उसे चाय के लिए उठाया तो नींद में बोली, ‘‘मम्मी, चाय क्यों पीती हो? अच्छी चीज नहीं है?’’

मु?ो हंसी आ गई, ‘‘अच्छा, आज याद आया? चलो, उठो बना लो.’’

शाम को 2-3 पड़ोसिनें देखने आ गईं.

अंजू उन के घर भी काम करती थी, तो पता चलना ही था.

रात को तन्मय शुरू हो गया, ‘‘कल मैं मम्मी के पास रहूंगा…’’

विजय और नीरुषा ने मना किया तो उस का मुंह लटक गया. मैं ने हां में सिर हिलाया तो प्यार से मु?ा से लिपट गया.

अगले दिन 11 बजे उस ने मु?ा से पूछा, ‘‘मम्मी, आप को अभी मु?ा से कोई काम तो

नहीं है?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘कुछ चाहिए?’’

‘‘नहीं, बेटा.’’

‘‘मम्मी, थोड़ी देर खेल आऊं?’’

‘‘जाओ.’’

‘‘प्यारी मम्मी,’’ कह तन्मय ने अपनी बांहें मेरे गले में डाल दीं, ‘‘मम्मी, आप के लंच तक आ जाऊंगा. आप उठना नहीं. बाय, लव यू,’’ कह कर तन्मय यह जा, वह जा.

मुझे पता है कि खेलने का दीवाना तन्मय घर रह कर  यह मौका कैसे छोड़ देता. बाहर

बच्चों के खेलने की आवाजें मु?ो भी आ रही थीं तो भला तन्मय ने क्यों न सुनी होंगी. 1 बजे वह आ गया. तब तक मैं अपना नौवेल पढ़ रही थी. फोन पर भी थी, अच्छा टाइम पास हो रहा था. हम दोनों ने खाना खाया. तन्मय सो गया. मैं ने भी थोड़ी देर ?ापकी ली. दर्द में थोड़ा आराम लग रहा था. उठ कर नहाने में भी किसी का सहारा नहीं लेना पड़ा. अब मेरा मन उठ कर चलनेफिरने का होने लगा. 4 बजे सोचा, चाय आज खुद ही बना लेती हूं.

उठी तो दर्द तो हुआ पर धीरेधीरे कदम रखते हुए चल कर आदतन बच्चों के कमरे में नजर डाली. देखते ही चक्कर आ गया. पूरा कमरा अस्तव्यस्त, हर जगह सामान बिखरा. बहुत गुस्सा आया.

किचन में गई तो वहां भी हाल खराब. अंजू भी अपने हिसाब से बस निबटा ही गई थी. गैस चूल्हा गंदा, फ्रिज पर गंदे हाथों के निशान, बरतन कहीं के कहीं. वाशप्लैश पर नजर डाली. धुलने वाले कपड़ों का अंबार. उफ, बहुत काम इकट्ठा हो गया. मैं बु?ो मन से धीरेधीरे चलती हुई अपनी चाय ले कर लिविंगरूम में सोफे पर बैठ गई. अंजू ने डस्टिंग की ही नहीं थी. हर जगह धूल. 2 दिन के पेपर सोफे पर ही थे. सफाईपसंद विजय को ये सब कैसे नहीं दिखाई दिया, हैरानी हुई. पैर ज्यादा देर लटकाने नहीं थे. मैं फिर ठंडी सांस ले कर बैड पर आ कर लेट गई.

तभी गीता का फोन आ गया, ‘‘कैसी चल रही है बैडरैस्ट?’’

मैं ने कहा, ‘‘चुप हो जाओ. अभीअभी पूरे घर की हालत देख कर लेटी हूं.’’

गीता हंस पड़ी, ‘‘क्यों, क्या हुआ?’’

‘‘आ कर देख लो.’’

‘‘तुम्हें आराम मिल रहा है न? बस ऐंजौय करो.’’

‘‘मु?ो अब डर लग रहा है कि ठीक हो जाने के बाद यह बैडरैस्ट मु?ो बहुत महंगी पड़ने वाली है.’’

‘‘हाहा, बड़ी आई थी हमें चिढ़ाने वाली?’’

रात को सब साथ बैठे तो मैं ने कहा, ‘‘तुम लोग प्लीज घर ठीक कर लो… सारा सामान बिखरा है… बच्चो, अपनाअपना कमरा ठीक कर लो… विजय प्लीज लिविंगरूम संवार लो.’’

‘‘अरे, तुम इतना क्यों उठीं? तुम्हें अभी बैडरैस्ट करनी है.’’

‘‘अच्छा ही हुआ कि उठी. सम?ा आया कि बैडरैस्ट महंगी पड़ेगी… ठीक होने पर 4 गुना काम करना पड़ेगा.’’

तीनों ?ोंप गए. बच्चों ने मासूम शक्ल बना कर कहा, ‘‘आप को यह अच्छा नहीं लगा कि हम छुट्टी ले कर आप के पास रहें? फाम का क्या है मम्मी, आप ठीक हो कर कर ही लोगी. आप के लिए काम इंपौर्टैंट है या हमारी कंपनी?’’

मैं निरुत्तर हो गई. कह नहीं पाई कि भाई, काम कर दो कुछ पहले. कंपनी मिलती रहेगी… कोई भागा नहीं जा रहा है… यह जो हर जगह सामान फैला है… मेरे ठीक होने का इंतजार हो रहा है. डांटना, उलाहने देना मेरे स्वभाव में नहीं. सो बस अब लेटेलेटे अपने तथाकथित ध्यान रखने वालों की हरकतें नोट कर रही थी.

सोच रही थी कि इन लोगों के हिसाब से तो सबकुछ टाला जा सकता है… मशीन चलाने की कोई जल्दी नहीं क्योंकि अभी तो काम चल ही रहा है, बहुत कपड़े हैं… जो एक टाइम भी दाल खा कर खुश नहीं होते वे सुबहशाम दाल खा रहे हैं क्योंकि सब्जी लेने भी जाना पड़ेगा… जो नीरुषा दही के बिना खाना नहीं खाती, अब दही जमाना याद दिलाने पर कहती है कि मम्मी जरूरत नहीं है. दही के बिना भी खाना ठीक लग रहा है. फ्रूट्स लाने को कहा तो उसे फोन कर दिया गया.

एक दिन बहुत कहने पर नीरुषा ने वाशिंग मशीन चला ही दी. फ्लैट की सीमित जगह में इतने कपड़े कहां, कैसे सुखाने हैं, इस पर जबरदस्त विचारविमर्श हुआ, जिसे मैं ने चुपचाप आंखें बंद कर अपनी हंसी रोक कर सुना. अंजू को तो यह दिन बड़ी मुश्किल से मिला. रोज मु?ा से मेरी तबीयत पूछती और पहले से भी ज्यादा फुरती से काम निबटा कर भागती. पति और बच्चों को तो टोका जा सकता पर मेड के आगे तो अच्छोंअच्छों की बोलती बंद रहती है कि कहीं कुछ कह दिया तो भाग न जाए. मेड से तो हम लोग इतने प्यार से बोलते हैं कि इतना पति और बच्चों से बोल लें तो बेचारे निहाल हो जाएं.

मु?ो जरा बेहतर लगा तो मैं ने कहा, ‘‘अब तुम सब जाओ, मैं मैनेज कर लूंगी. काफी आराम कर लिया.’’

अब मु?ो लेटेलेटे चैन भी नहीं आ रहा था. मैं ने सब को छुट्टी दी. तीनों आश्वस्त हो कर चले गए तो मैं ने थोड़ाथोड़ा धीरेधीरे काम संभालना शुरू किया. 3 बजे गीता आई तो मैं तीसरी बार मशीन के कपड़े निकाल कर सुखा रही थी. उस ने फौरन नीरा और संजू को भी बुला लिया. तीनों इकट्ठा हुईं तो पूरे घर पर एक नजर डाली. तीनों हंसने लगीं. मैं ने इन दिनों उन्हें इस बात पर खूब चिढ़ाया था कि तुम लोग बस मूर्ख औरतों की तरहकाम करती रहो… मैं तो बैडरैस्ट पर हूं. देखो मु?ो… आजकल तो मेरा स्टेटस भी यही था, बैडरैस्ट.

मैं ने धीरेधीरे चलते हुए कहा, ‘‘यार, अगर पता होता कि बैडरैस्ट के बाद दोगुनी मेहनत

करनी पड़ेगी तो बैडरैस्ट पर कभी खुशियां न मनाई होतीं.’’

नीरा जोर से हंसी, ‘‘क्यों, आराम नहीं मिला? कितनी अच्छी सेवा हो रही थी है न?’’

‘‘छुट्टी ले ले कर सब ने बस आराम ही किया, काम सुनते ही कहते थे कि अरे, हो जाएगा. तुम बस आराम करो.’’

मेरे नाटकीय ढंग से बताने पर सब हंसने लगीं.

संजू बोली, ‘‘मेरी आंखों के आगे तो इस का पहले दिन का चेहरा आ रहा है जब बैडरैस्ट बताते हुए मुंह अनोखी चमक से चमक उठा था मैडम का. जया मैडम, हमारा पति है, बच्चे हैं, भरीपूरी गृहस्थी है, एकल परिवार है और सब से बड़ी बात हम औरतें हैं, बैडरैस्ट हमारे लिए कोई खुशी की बात नहीं हो सकती… ठीक होने पर डबल काम करने पड़ते हैं.’’

मैं ने हंसते हुए कहा, ‘‘हां, इसीलिए सब को भेज दिया… काम कोई कर नहीं रहा था… जब खुद ही करना है तो इन लोगों को घर में क्या रखना.’’

मेरी लास्ट लाइन पर सब जोर से हंस पड़ीं. सब बातें करते हुए मेरा हाथ भी बंटा रही थीं. घर गया तो नीरा सब के लिए चाय बना लाई. गीता ने कहा, ‘‘चलो, यह तय हुआ कि अब बैडरैस्ट की तमन्ना नहीं करेंगे.’’

हम सब ने हंसते हुए हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘हां, नहीं चाहिए बैडरैस्ट.’’

बंद गले का कोट: क्या हुआ था सुनील के साथ

मास्को में गरमी का मौसम था. इस का मतलब यह नहीं कि वहां सूरज अंगारे उगलने लगा था, बल्कि यह कहें कि सूरज अब उगने लगा था, वरना सर्दी में तो वह भी रजाई में दुबका बैठा रहता था. सूरज की गरमी से अब 6 महीने से जमी हुई बर्फ पिघलने लगी थी. कहींकहीं बर्फ के अवशेष अंतिम सांसें गिनते दिखाई देते थे. पेड़ भी अब हरेभरे हो कर झूमने लगे थे, वरना सर्दी में तो वे भी ज्यादातर बर्फ में डूबे रहते थे. कुल मिला कर एक भारतीय की नजर से मौसम सुहावना हो गया था. यानी ओवरकोट, मफलर, टोपी, दस्ताने वगैरा त्याग कर अब सर्दी के सामान्य कपड़ों में घूमाफिरा जा सकता था. रूसी लोग जरूर गरमी के कारण हायहाय करते नजर आते थे. उन के लिए तो 24 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पारा हुआ नहीं कि उन की हालत खराब होने लगती थी और वे पंखे के नीचे जगह ढूंढ़ने लगते थे. बड़े शोरूमों में एयर कंडीशनर भी चलने लगे थे.

सुनील दूतावास में तृतीय सचिव के पद पर आया था. तृतीय सचिव का अर्थ था कि चयन और प्रशिक्षण के बाद यह उस की पहली पोस्टिंग थी, जिस में उसे साल भर देश की भाषा और संस्कृति का औपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त करना था और साथ ही दूतावास के कामकाज से भी परिचित होना था. वह आतेजाते मुझे मिल जाता और कहता, ‘‘कहिए, प्रोफेसर साहब, क्या चल रहा है?’’

‘‘सब ठीक है, आप सुनाइए, राजदूत महोदय,’’ मैं जवाब देता.

हम दोनों मुसकानों का आदानप्रदान करते और अपनीअपनी राह लेते. रूस में रहते हुए अपनी भारतीय संस्कृति के प्रति प्रेमप्रदर्शन के लिए और भारतीयों की अलग पहचान दिखाने के लिए मैं बंद गले का सूट पहनता था. रूसी लोग मेरी पोशाक से बहुत आकर्षित होते थे. वे मुझे देख कर कुछ इशारे वगैरा करने लगते. कुछ लोग मुसकराते और ‘इंदीइंदी’ (भारतीयभारतीय) कहते. कुछ मुझे रोक कर मुझ से हाथ मिलाते. कुछ मेरे साथ खडे़ हो कर फोटो खिंचवाते. कुछ ‘हिंदीरूसी भाईभाई’ गाने लगते. सुनील को भी मेरा सूट पसंद था और वह अकसर उस की तारीफ करता था.

यों पोशाक के मामले में सुनील खुद स्वच्छंद किस्म का जीव था. वह अकसर जींस, स्वेटर वगैरा पहन कर चला आता था. कदकाठी भी उस की छोटी और इकहरी थी. बस, उस के व्यवहार में भारतीय विदेश सेवा का कर्मचारी होने का थोड़ा सा गरूर था.

मैं ने कभी उस की पोशाक वगैरा पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन एक दिन अचानक वह मुझे बंद गले का सूट पहने नजर आया. मुझे लगा कि मेरी पोशाक से प्रभावित हो कर उस ने भी सूट बनवाया है. मुझे खुशी हुई कि मैं ने उसे पोशाक के मामले में प्रेरित किया.

‘‘अरे, आज तो आप पूरे राजदूत नजर आ रहे हैं,’’ मैं ने कहा, ‘‘सूट आप पर बहुत फब रहा है.’’

उस ने पहले तो मुझे संदेह की नजरों से देखा, फिर हलके से ‘धन्यवाद’ कहा और ‘फिर मिलते हैं’ का जुमला हवा में उछाल कर चला गया. मुझे उस का यह व्यवहार बहुत अटपटा लगा. मैं सोचने लगा कि मैं ने ऐसा क्या कह दिया कि वह उखड़ गया. मुझे कुछ समझ नहीं आया. इस पर ज्यादा सोचविचार करना मैं ने व्यर्थ समझा और यह सोच कर संतोष कर लिया कि उसे कोई काम वगैरा होगा, इसलिए जल्दी चला गया.

तभी सामने से हीरा आता दिखाई दिया. वह कौंसुलेट में निजी सहायक के पद पर था.

‘‘क्या बात हो रही थी सुनील से?’’ उस ने शरारतपूर्ण ढंग से पूछा.

‘‘कुछ नहीं,’’ मैं ने बताया, ‘‘पहली बार सूट में दिखा, तो मैं ने तारीफ कर दी और वह मुझे देखता चला गया, मानो मैं ने गाली दे दी हो.’’

‘‘तुम्हें पता नहीं?’’ हीरा ने शंकापूर्वक कहा.

‘‘क्या?’’ मुझे जिज्ञासा होना स्वाभाविक था.

‘‘इस सूट का राज?’’ उस ने कहा.

‘‘सूट का राज? सूट का क्या राज, भई?’’ मैं ने भंवें सिकोड़ते हुए पूछा.

‘‘असल में इसे पिछले हफ्ते मिलित्सिया वाले (पुलिस वाले) ने पकड़ लिया था,’’ उस ने बताया, ‘‘वह बैंक गया था पैसा निकलवाने. बैंक जा रहा था तो उस के 2 साथियों ने भी उसे अपने चेक दे दिए. वह बैंक से निकला तो उस की जेब में 3 हजार डालर थे.

‘‘वह बाहर आ कर टैक्सी पकड़ने ही वाला था कि मिलित्सिया का सिपाही आया और इसे सलाम कर के कहा कि ‘दाक्यूमेत पजालस्ता (कृपया दस्तावेज दिखाइए).’ इस ने फट से अपना राजनयिक पहचानपत्र निकाल कर उसे दिखा दिया. वह बड़ी देर तक पहचानपत्र की जांच करता रहा फिर फोटो से उस का चेहरा मिलाता रहा. इस के बाद इस की जींस और स्वेटर पर गौर करता रहा, और अंत में उस ने अपना निष्कर्ष उसे बताया कि यह पहचानपत्र नकली है.’’

‘‘सुनील को जितनी भी रूसी आती थी, उस का प्रयोग कर के उस ने सिपाही को समझाने की कोशिश की कि पहचानपत्र असली है और वह सचमुच भारतीय दूतावास में तृतीय सचिव है. लेकिन सिपाही मानने के लिए तैयार नहीं था. फिर उस ने कहा कि ‘दिखाओ, जेब में क्या है?’ और जेबें खाली करवा कर 3 हजार डालर अपने कब्जे में ले लिए. अब सुनील घबराया, क्योंकि उसे मालूम था कि मिलित्सिया वाले इस तरह से एशियाई लोगों को लूट कर चल देते हैं और फिर उस की कोई सुनवाई नहीं होती. अगर कोई काररवाई होती भी है तो वह न के बराबर होती है. मिलित्सिया वाले तो 100-50 रूबल तक के लिए यह काम करते हैं, जबकि यहां तो मसला 3 हजार डालर यानी 75 हजार रूबल का था.’’

‘‘उस ने फिर से रूसी में कुछ कहने की कोशिश की लेकिन मिलित्सिया वाला भला अब क्यों सुनता. वह तो इस फिराक में था कि पैसा और पहचानपत्र दोनों ले कर चंपत हो जाए, लेकिन सुनील के भाग्य से तभी वहां मिलित्सिया की गाड़ी आ गई. उस में से 4 सिपाही निकले, जिन में से 2 के हाथों में स्वचालित गन थीं. उन्हें देख कर सुनील को लगा कि शायद अब वह और उस के पैसे बच जाएं.

‘‘वे सिपाही वरिष्ठ थे, इसलिए पहले सिपाही ने उन्हें सैल्यूट कर के उन्हें सारा माजरा बताया और फिर मन मार कर पहचानपत्र और राशि उन के हवाले कर दी और कहा कि उसे शक है कि यह कोई चोरउचक्का है. उन सिपाहियों ने सुनील को ऊपर से नीचे तक 2 बार देखा. मौका देख कर सुनील ने फिर से अपने रूसी ज्ञान का प्रयोग करना चाहा, लेकिन उन्होंने कुछ सुनने में रुचि नहीं ली और आपस में कुछ जोड़तोड़ जैसा करने लगे. इस पर सुनील की अक्ल ने काम किया और उस ने उन्हें अंगरेजी में जोरों से डांटा और कहा कि वह विदेश मंत्रालय में इस बात की सख्त शिकायत करेगा.

‘‘उन्हें अंगरेजी कितनी समझ में आई, यह तो पता नहीं, लेकिन वे कुछ प्रभावित से हुए और उन्होंने सुनील को कार में धकेला और कार चला दी. पहला सिपाही हाथ मलता और वरिष्ठों को गालियां देता वहीं रह गया. अब तो सुनील और भी घबरा गया, क्योंकि अब तक तो सिर्फ पैसा लुटने का डर था, लेकिन अब तो ये सिपाही न जाने कहां ले जाएं और गोली मार कर मास्कवा नदी में फेंक दें. उस का मुंह रोने जैसा हो गया और उस ने कहा कि वह दूतावास में फोन करना चाहता है. इस पर एक सिपाही ने उसे डांट दिया कि चुप बैठे रहो.

‘‘सिपाही उसे ले कर पुलिस स्टेशन आ गए और वहां उन्होंने थाना प्रभारी से कुछ बात की. उस ने भी सुनील का मुआयना किया और शंका से पूछा, ‘आप राजनयिक हैं?’

‘‘सुनील ने अपना परिचय दिया और यह भी बताया कि कैसे उसे परेशान किया गया है, उस के पैसे छीने गए हैं. बेमतलब उसे यहां लाया गया है और वह दूतावास में फोन करना चाहता है.

‘‘प्रभारी ने सामने पड़े फोन की ओर इशारा किया. सुनील ने झट से कौंसुलर को फोन मिलाया. कौंसुलर ने मुझे बुलाया और फिर मैं और कौंसुलर दोनों कार ले कर थाने पहुंचे. हमें देख कर सुनील लगभग रो ही दिया. कौंसुलर ने सिपाहियों को डांटा और कहा कि एक राजनयिक के साथ इस तरह का व्यवहार आप लोगों को शोभा नहीं देता.’’

‘‘इस पर वह अधिकारी काफी देर तक रूसी में बोलता रहा, जिस का मतलब यह था कि अगर यह राजनयिक है तो इसे राजनयिक के ढंग से रहना भी चाहिए और यह कि इस बार तो संयोग से हमारी पैट्रोल वहां पहुंच गई, लेकिन आगे से हम इस तरह के मामले में कोई जिम्मेदारी नहीं ले सकते?

‘‘अब कौंसुलर की नजर सुनील की पोशाक पर गई. उस ने वहीं सब के सामने उसे लताड़ लगाई कि खबरदार जो आगे से जींस में दिखाई दिए. क्या अब मेरे पास यही काम रह गया है कि थाने में आ कर इन लोगों की उलटीसीधी बातें सुनूं और तुम्हें छुड़वाऊं.’’

‘‘हम लोग सुनील को ले कर आ गए. अगले 2 दिन सुनील ने छुट्टी ली और बंद गले का सूट सिलवाया और उसे पहन कर ही दूतावास में आया. मैं ने तो खैर उस का स्टेटमेंट टाइप किया था, इसलिए इतने विस्तार से सब पता है, लेकिन यह बात तो दूतावास के सब लोग जानते हैं,’’ हीरा ने अपनी बात खत्म की.

‘‘तभी…’’ मेरे मुंह से निकला, ‘‘उसे लगा होगा कि मैं भी यह किस्सा जानता हूं और उस का मजाक उड़ा रहा हूं.’’

‘‘अब तो जान गए न,’’ हीरा हंसा और अपने विभाग की ओर बढ़ गया.

मुझे अफसोस हुआ कि सुनील को सूट सिलवाने की प्रेरणा मैं ने नहीं, बल्कि पुलिस वालों ने दी थी.

सुख की गारंटी

एकदिन काफी लंबे समय बाद अनु ने महक को फोन किया और बोली, ‘‘महक, जब तुम दिल्ली आना तो मुझ से मिलने जरूर आना.

‘‘हां, मिलते हैं, कितना लंबा समय गुजर गया है. मुलाकात ही नहीं हुई है हमारी.’’

कुछ ही दिनों बाद मैं अकेली ही दिल्ली जा रही थी. अनु से बात करने के बाद पुरानी यादें, पुराने दिन याद आने लगे. मैं ने तय किया कि कुछ समय पुराने मित्रों से मिल कर उन

पलों को फिर से जिया जाए. दोस्तों के साथ बिताए पल, यादें जीवन की नीरसता को कुछ कम करते हैं.

शादी के बाद जीवन बहुत बदल गया व बचपन के दिन, यादें व बहत कुछ पीछे छूट गया था. मन पर जमी हुई समय की धूल साफ होने लगी…

कितने सुहाने दिन थे. न किसी बात की चिंता न फिक्र. दोस्तों के साथ हंसीठिठोली और भविष्य के सतरंगी सपने लिए, बचपन की मासूम पलों को पीछे छोड़ कर हम भी समय की घुड़दौड़ में शामिल हो गए थे. अनु और मैं ने अपने जीवन के सुखदुख एकसाथ साझा किए थे. उस से मिलने के लिए दिल बेकरार था.

मैं दिल्ली पहुंचने का इंतजार कर रही थी. दिल्ली पहुंचते ही मैं ने सब से पहले अनु को फोन किया. वह स्कूल में पढ़ाती है. नौकरी में समय निकालना भी मुश्किल भरा काम है.

‘‘अनु मैं आ गई हूं… बताओ कब मिलोगी तुम? तुम घर ही आ जाओ, आराम से बैठेंगे. सब से मिलना भी हो जाएगा…’’

‘‘नहीं यार, घर पर नहीं मिलेंगे, न तुम्हारे घर न ही मेरे घर. शाम को 3 बजे मिलते हैं. मैं स्कूल समाप्त होने के बाद सीधे वहीं आती हूं, कौफी हाउस, अपने वही पुराने रैस्टोरैंट में…

‘‘ठीक है शाम को मिलते हैं.’’

आज दिल में न जाने क्यों अजीब सी

बैचेनी हो रही थी. इतने वर्षों में हम मशीनी जीवन जीते संवादहीन हो गए थे. अपने लिए जीना भूल गए थे. जीवन एक परिधि में सिमट गया था. एक भूलभुलैया जहां खुद को भूलने

की कवायत शुरू हो गई थी. जीवन सिर्फ ससुराल, पति व बच्चों में सिमट कर रह गया था. सब को खुश रखने की कवायत में मैं खुद को भूल बैठी थी. लेकिन यह परम सत्य है कि सब को खुश रखना नामुमकिन सा होता है.

दुनिया गोल है, कहते हैं न एक न एक दिन चक्र पूरा हो ही जाता है. इसी चक्र में आज बिछड़े साथी मिल रहे थे. घर से बाहर औपचारिकताओं से परे. अपने लिए हम अपनी आजादी को तलाशने का प्रयत्न करते हैं. अपने लिए पलों को एक सुख की अनुभूति होती है.

मैं समझ गई कि आज हमारे बीच कहनेसुनने के लिए बहुत कुछ होगा. सालों से मौन की यह दीवार अब ढलने वाली है.

नियत समय पर मैं वहां पहुंच गई. शीघ्र ही अनु भी आ गई. वही प्यारी सी मुसकान, चेहरे पर गंभीरता के भाव, पर हां शरीर थोड़ा सा भर गया था, लेकिन आवाज में वही खनक थी. आंखें पहले की तरह प्रश्नों को तलाशती हुई नजर आईं, जैसे पहले सपनों को तलाशती थीं.

समय ने अपने अनुभव की लकीरें चेहरे पर खींच दी थीं. वह देखते ही गले मिली तो मौन की जमी हुई बर्फ स्वत: ही पिघलने लगी…

‘‘कैसी हो अनु, कितने वर्षों बाद तुम्हें देखा है, यार तुम तो बिलकुल भी नहीं बदलीं…’’

‘‘कहां यार, मोटी हो गई हूं… तुम बताओ कैसी हो? तुम्हारी जिंदगी तो मजे में गुजर रही है, तुम जीवन में कितनी सफल हो गई हो… चलो आराम से बैठते हैं…’’

आज वर्षों बाद भी हमें संवादहीनता का एहसास नहीं हुआ… बात जैसे वहीं से शुरू हो गई, जहां खत्म हुई थी. अब हम रैस्टोरैंट में अपने लिए कोना तलाश रहे थे, जहां हमारे संवादों में किसी की दखलंदाजी न हो. इंसानी फितरत होती है कि वह भीड़ में भी अपना कोना तलाश लेता है. कोना जहां आप सब से दुबक कर बैठे हों, जैसे कि आसपास बैठी 4 निगाहें भी उस अदृश्य दीवार को भेद न सकें. वैसे यह सब मन का भ्रमजाल ही है.

आखिरकार हमें कोना मिल ही गया. रैस्टोरैंट के ऊपरी भाग में

कोने की खाली मेज जैसे हमारा ही इंतजार कर रही थी. यह कोना दिल को सुकून दे रहा था. चायनाश्ते का और्डर देने के बाद अनु सीधे मुद्दे पर आ गई. बोली, ‘‘और सुनाओ कैसी हो, जीवन में बहुत कुछ हासिल कर लिया है. आज इतना बड़ा मकाम, पति, बच्चे सब मनमाफिक मिल गए तुम्हें. मुझे बहुत खुशी है…’’

यह सुनते ही महक की आंखों में दर्द की लहर चुपके से आ कर गुजर गई व पलकों के कोर कुछ नम से हो गए. पर मुसकान का बनावटीपन कायम रखने की चेष्टा में चेहरे के मिश्रित हावभाव कुछ अनकही कहानी बयां कर रहे थे.

‘‘बस अनु सब ठीक है. अपने अकेलेपन से लड़ते हुए सफर को तय कर रही हूं, जीवन में बहुत उतारचढ़ाव देखें हैं. तुम तो खुश हो न? नौकरी करती हो, अच्छा काम कर रही हो, अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जी रही हो… सबकुछ अपनी पसंद का मिला है और क्या

सुख चाहिए? मैं तो बस यों ही समय काटने के लिए लिखनेपढ़ने लगी, ‘‘मैं ने बात को घुमा कर उस का हाल जानने की कोशिश करनी चाही.

‘‘मैं भी बढि़या हूं. जीवन कट रहा है. मैं पहले भी अकेली थी, आज भी अकेली हूं. हम साथ जरूर हैं पर कितनी अलग राहें हैं जैसे नदी के 2 किनारे…

‘‘यथार्थ की पथरीली जमीन बहुत कठोर है. पर जीना पड़ता है… इसलिए मैं ने खुद को काम में डुबो दिया है…’’

‘‘क्या हुआ, ऐसे क्यों बोल रही हो? तुम दोनों के बीच कुछ हुआ है क्या?’’

‘‘नहीं यार, पूरा जीवन बीत जाए तो भी हम एकदूसरे को समझ नहीं सकेंगे. कितने वैचारिक मतभेद हैं, शादी का चार्म, प्रेम पता नहीं कहां 1 साल में ही खत्म हो गया. अब पछतावा होता है. सच है, इंसान प्यार में अंधा हो जाता है.’’

‘‘हां, सही कहा, सब एक ही नाव पर सवार होते हैं पर परिवार के लिए जीना पड़ता है.’’

‘‘हां, तुम्हारी बात सही है, पर यह समझौते अंतहीन होते हैं, जिन्हें निभाने में जिंदगी का ही अंत हो जाता है. तुम्हें तो शायद कुदरत से यह सब मिला है पर मैं ने तो अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मारी है. प्रेमविवाह जो किया है.

‘‘सब ने मना किया था कि यह शादी मत करो, पर आज समझ में आया कि मेरा फैसला गलत था. यार, विनय का व्यवहार समझ से परे है. रिश्ता टूटने की कगार पर है. उस के पास मेरे लिए समय ही नहीं है या फिर वह देना नहीं चाहता… याद नहीं कब दो पल सुकून से बैठे हों. हर बात में अलगाव वाली स्थिति होती है.’’

‘‘अनु, सब को मनचाहा जीवनसाथी नहीं मिलता. जिंदगी उतनी आसान नहीं होती, जितना हम सोचते हैं. सुख अपरिभाषित है. रिश्ते निभाना इतना भी आसान नहीं है. हर रिश्ता आप से समय व त्याग मांगता है. पति के लिए जैसे पत्नी उन की संपत्ति होती है जिस पर जितनी चाहे मरजी चला लो. हम पहले मातापिता की मरजी से जीते थे, अब पति की मरजी से जीते हैं. शादी समझौते का दूसरा नाम ही है, हां कभीकभी मुझे भी गुस्सा आता है तो मां से शिकायत करना सीख लिया है. अब दुख नहीं होता. तुम भी हौंसला रखो, सब ठीक हो जाएगा.’’

‘‘नहीं महक, अब उम्मीद बाकी नहीं है. शादी करो तो मुश्किल, न करो तो भी मुश्किल. सब को शादी ही अंतिम पड़ाव क्यों लगता है? मैं ने भी समझौता कर लिया है कि रोनेधोने से समस्या हल नहीं होती.

‘‘अनु, तुम्हारे पास तो पाक कला का हुनर है उसे और निखारो. अपने शौक पूरे करो. एक ही बिंदु पर खड़ी रहोगे तो घुटन होने लगेगी.

‘‘एक बात बताओ कि एक आदमी किसी के सुख का पैमाना कैसे हो सकता है? अरैंज्ड मैरिज में पगपग पर असहमति होती है, यहां पर हर रिश्ता आग की दहलीज पर खड़ा होता है, हर कोई आप से संतुष्ट नहीं होता.’’

‘‘महक बात जो तुम्हारी सही है पर विवाह में कोई एक व्यक्ति, किसी दूसरे के जीने का मापदंड कैसे तय कर सकता है? समय बदल गया है, कानून में भी दंड का प्रावधान है. हमें अपने अधिकारों के लिए सजग रहना चाहिए. कब तक अपनी इच्छाओं का गला घोटें… यहां तो भावनाओं का भी रेप हो जाता है, जहां बिना अपनी मरजी के आप वेदना से गुजरते रहो और कोई इस की परवाह भी न करे.’’

‘‘अनु, जब विवाह किया है तो निभाना भी पड़ेगा. क्या हमें मातापिता, बच्चे,

पड़ोसी हमेशा मनचाहे ही मिलते हैं? क्या सब जगह आप तालमेल नहीं बैठाते? तो फिर पतिपत्नी के रिश्ते में वैचारिक मतभेद होना लाजिमी है. हाथ की सारी उंगलियां भी एकसमान नहीं होतीं, तो

2 लोग कैसे समान हो सकते हैं?

‘‘इन मैरिज रेप इज इनविजिबल, सो रिलैक्स ऐंड ऐंजौय. मुंह फुला कर रहने में कोई मजा नहीं है. दोनों पक्षों को थोड़ाथोड़ा झुकना पड़ता है. किसी ने कहा है न कि यह आग का दरिया है और डूब कर जाना है, तो विवाह में धूप व छांव के मोड़ मिलते रहते हैं.’’

‘‘हां, महक तुम शायद सही हो. कितना सहज सोचती हो. अब मुझे भी लगता है कि हमें फिर से एकदूसरे को मौका देना चाहिए. धूपछांव तो आतीजाती रहती है…’’

‘‘अनु देख यार, जब हम किसी को उस की कमी के साथ स्वीकार करते हैं तो पीड़ा का एहसास नहीं होता. सकारात्मक सोच कर अब आगे बढ़, परिवार को पूर्ण करो, यही जीवन है…’’

विषय किसी उत्कर्षनिष्कर्ष तक पहुंचता कि तभी वेटर आ गया और दोनों चुप हो गईं.

‘‘मैडम, आप को कुछ चाहिए?’’ कहने के साथ ही मेज पर रखे खाली कपप्लेटें समेटने लगा. उस के हावभाव से लग रहा था कि खाली बैठे ग्राहक जल्दी से अपनी जगह छोड़ें.

‘‘हम ने बातोंबातों में पहले ही चाय के कप पी कर खाली कर दिए.’’

‘‘हां, 2 कप कौफी के साथ बिल ले कर आना,’’ अनु ने कहा.

‘‘अनु, समय का भान नहीं हुआ कि 2 घंटे कैसे बीत गए. सच में गरमगरम कौफी की जरूरत महसूस हो रही है.’’

मन में यही भाव था कि काश वक्त हमारे लिए ठहर जाए. पर ऐसा होता नहीं है.

वर्षों बाद मिलीं सहेलियों के लिए बातों का बाजार खत्म करना भी मुश्किल भरा काम है. गरमगरम कौफी हलक में उतरने के बाद मस्तिष्क को राहत महसूस हो रही थी. मन की भड़ास विषय की गरमी, कौफी की गरम चुसकियों के साथ विलिन होने लगी. बातों का रूख बदल गया.

आज दोनों शांत मन से अदृश्य उदासी व पीड़ा के बंधन को मुक्त कर के चुपचाप यहीं छोड़ रही थीं.

मन में कड़वाहट का बीज जैसे मरने लगा. महक घर जाते हुए सोच रही थी कि प्रेमविवाह में भी मतभेद हो सकते हैं तो अरैंज्ड मैरिज में पगपग पर इम्तिहान है. एकदूसरे को समझने में जीवन गुजर जाता है. हर दिन नया होता है. जब आशा नहीं रखेंगे तो वेदना नामक शराब से स्वत: मुक्ति मिल जाएगी.

अनु से बात कर के मैं यह सोचने पर मजबूर हो गई थी कि हर शादीशुदा कपल परेशानी से गुजरता है. शादी के कुछ दिनों बाद जब प्यार का खुमार उतर जाता है तो धरातल की उबड़खाबड़ जमीन उन्हें चैन की नींद सोने नहीं देती है. फिर वहीं से शुरू हो जाता है आरोपप्रत्यारोपों का दौर. क्यों हम अपने हर सुखदुख की गारंटी अपने साथी को समझते हैं? हर पल मजाक उड़ाना व उन में खोट निकालना प्यार की परिभाषा को बदल देता है. जरा सा नजरिया बदलने की देर है.

सामाजिक बधन को क्यों हंस कर जिया जाए. पलों को गुनगुनाया जाए? एक पुरुष या एक स्त्री किसी के सुख की गारंटी कैसे बन सकते हैं? हां, सुख तलाश सकते हैं और बंधन निभाने में ही समझदारी है.

आज मैं ने भी अपने मन में जीवनसाथी के प्रति पल रही कसक को वहीं छोड़

दिया, तो मन का मौसम सुहाना लगने लगा. घर वापसी सुखद थी. शादी का बंधन मजबूरी नहीं प्यार का बंधन बन सकता है, बस सोच बदलने की देर है.

कुछ दिनों बाद अनु का फोन आया, ‘‘शुक्रिया महक, तुम्हारे कारण मेरा जीवन अब महकने लगा है. हम दोनों ने नई शुरुआत कर दी है. अब मेरे आंगन में बेला के फूल महक रहे हैं. सुख की गारंटी एकदूसरे के पास है.’’ दोनों खिलखिला कर हंसने लगीं.

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