फीनिक्स: सोनाली को अपनी दोस्त के बारे में क्या पता चल गया था?

सीमा: सालों बाद मिले नवनीत से क्यों किनारा कर रही थी सीमा?

‘‘माया तुम पहले चढ़ो. नेहा आदिल को मुझे दो. अरे, संभाल कर…’’ ट्रेन के छूटने में केवल 5 मिनट शेष थे. सीमा ने अपनी सीट पर बैठ कर अभी पत्रिका खोली ही थी कि दरवाजे से आती आवाज ने सहसा उस की धड़कनें बढ़ा दीं. यह वही आवाज थी, जिसे सीमा कभी बेहद पसंद करती थी. इस आवाज में गंभीरता भी थी और दिल छूने की अदा भी. वक्त बदलता गया था पर सीमा इस आवाज के आकर्षण से कभी स्वयं को मुक्त नहीं कर सकी थी.

अकसर सोचती कि काश कहीं अचानक यह आवाज फिर से उसे पुकार कर वह सब कुछ कह दे, जिसे सुनने की चाह सदा से उस के दिल में रही.

आज वर्षों बाद वही आवाज सुनने को मिली थी. मगर सीमा को उस आवाज में पहले वाली कोमलता और सचाई नहीं वरन रूखापन महसूस हो रहा था. कभी कुली तो कभी अपने परिवार पर झल्लाती आवाज सुनते हुए सीमा बरबस सोचने लगी कि क्या जिंदगी की चोटों ने उस स्वर से कोमलता दूर कर दी या फिर हम दोनों के बीच आई दूरी का एहसास उसे भी हुआ था.

कई दफा 2 लोगों के बीच का रिश्ता अनकहा सा रह जाता है. फासले कभी सिमट नहीं पाते और दिल की कसक दिल में ही रह जाती है. कुछ ऐसा ही रिश्ता था उस आवाज के मालिक यानी नवनीत से सीमा का.

सीमा बहुत उत्सुक थी उसे एक नजर देखने को, 10 साल बीत चुके थे. वह सीट से उठी और दरवाजे की तरफ देखने लगी, जिधर से आवाज आ रही थी. सामने एक शख्स अपने बीवीबच्चों के साथ अपनी सीट की तरफ बढ़ता नजर आया.

सीमा गौर से उसे देखने लगी. केवल आंखें ही थीं जिन में 10 साल पहले वाले नवनीत की झलक नजर आ रही थी. अपनी उम्र से वह बहुत अधिक परिपक्व नजर आ रहा था. माथे पर दूर तक बाल गायब थे. आंखों में पहले वाली नादान शरारतों की जगह चालाकी और घमंड था. शरीर पर चरबी की मोटी परत, निकली हुई तोंद. लगा ही नहीं कि कालेज के दिनों का वही हैंडसम और स्मार्ट नवनीत सामने खड़ा है.

नवनीत ने भी शायद सीमा को पहचाना नहीं था. वह सीमा को देख तो रहा था, मगर पहचानी नजरों से नहीं, अपितु एक खूबसूरत लड़की को देख कर जैसे कुछ पुरुषों की नजरें कामुक हो उठती हैं वैसे और यह सीमा को कतई बरदाश्त नहीं था. वह चुपचाप आ कर सीट पर बैठ गई और पुरानी बातें सोचने लगी…

कालेज का वह समय जब दोनों एकसाथ पढ़ते थे. वैसे उन दिनों सीमा बहुत ही साधारण सी दिखती थी, पर नवनीत में ऐसी कई बातें थीं, जो उसे आकर्षित करतीं. कभी किसी लड़के से बात न करने वाली सीमा अकसर नवनीत से बातें करने के बहाने ढूंढ़ती.

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पर अब वक्त बदल गया था. अच्छी सरकारी नौकरी और सुकून की जिंदगी ने सीमा के चेहरे पर आत्मविश्वास भरी रौनक ला दी थी. फिजिकली भी उस ने खुद को पूरी तरह मैंटेन कर रखा था. जो भी पहनती उस पर वह खूब जंचता.

सीमा चुपचाप पत्रिका के पन्ने पलटने लगी. ऐसा नहीं है कि इस गुजरे वक्त में सीमा ने कभी नवनीत के बारे में सोचा नहीं था. 1-2 दफा फेसबुक पर उस की तलाश की थी और उस की गुजर रही जिंदगी को फेसबुक पर देखा भी था. उस का नया फोन नंबर भी नोट कर लिया था पर कभी फ्रैंड रिक्वैस्ट नहीं भेजी और न ही फोन किया.

आज सीमा फ्री बैठी थी तो सोचा क्यों न उस से चैटिंग ही कर ली जाए. कम से कम पता तो चले कि वह शख्स नवनीत ही है या कोई और. उसे कुछ याद है भी या नहीं. अत: उस ने व्हाट्सऐप पर नवनीत को ‘‘हाय,’’ लिख कर भेज दिया. तुरंत जवाब आया, ‘‘कैसी हो? कहां हो तुम?’’

वह चौंकी. एक पल भी नहीं लगा था उसे सीमा को पहचानने में. प्रोफाइल पिक सीमा ने ऐसी लगाई थी जिसे ऐडिट कर कलरफुल बनाया गया था और फेस क्लीयर नहीं था. शायद मैसेज के साथ जाने वाले नाम ने तुरंत नवनीत को उस की याद दिला दी थी.

सीमा ने मैसेज का जवाब दिया, ‘‘पहचान लिया मुझे? याद हूं मैं ?’’

‘‘100 प्रतिशत याद हो और सब कुछ…’’

‘‘सब कुछ क्या?’’ सीमा चौंकी.

‘‘वही जो तुम ने और मैं ने सोचा था.’’

सीमा सोच में पड़ गई.

नवनीत ने फिर सवाल किया, ‘‘आजकल कहां हो और क्या कर रही हो?’’

‘‘दिल्ली में हूं. जौब कर रही हूं,’’ सीमा ने जवाब दिया.

‘‘गुड,’’ उस ने स्माइली भेजी.

‘‘तुम बताओ, घर में सब कैसे हैं? 2 बेटे हैं न तुम्हारे?’’ सीमा ने पूछा.

‘‘हां, पर तुम्हें कैसे पता?’’ नवनीत ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘बस पता रखने की इच्छा होनी चाहिए,’’ सीमा ने नवनीत के जज्बातों को टटोलते हुए जवाब दिया.

वह तुरंत पूछ बैठा, ‘‘तुम ने शादी की?’’

‘‘नहीं, अभी तक नहीं की. काम में ही व्यस्त रहती हूं.’’

‘‘मैं तो सोच रहा था कि पता नहीं कभी तुम से कौंटैक्ट होगा भी या नहीं, पर तुम आज भी मेरे लिए फ्री हो.’’

नवनीत की फीलिंग्स बाहर आने लगी थीं. पर सीमा को उस के बोलने का तरीका अच्छा नहीं लगा.

‘‘गलत सोच रहे हो. मैं किसी के लिए फ्री नहीं होती. बस तुम्हारी बात अलग है, इसलिए बात कर ली,’’ सीमा ने मैसेज किया.

‘‘मैं भी वही कह रहा था.’’

‘‘वही क्या?’’

‘‘यही कि तुम्हारे दिल में मैं ही हूं. सालों पहले जो बात थी वही आज भी है, नवनीत ने मैसेज भेजा.

जब सीमा ने काफी देर तक कोई मैसेज नहीं किया तो नवनीत ने फिर से मैसेज किया, ‘‘आज तुम से बातें कर के बहुत अच्छा लगा. हमेशा चैटिंग करती रहना.’’

‘‘ओके श्योर.’’

अजीब सी हलचल हुई थी सीमा के दिलोदिमाग में. अच्छा भी लगा और थोड़ा आश्चर्य भी हुआ. वह समझ नहीं पा रही थी कि कैसे रिऐक्ट करे. उस ने मैसेज किया, ‘‘वैसे तुम हो कहां फिलहाल?’’

‘‘फिलहाल मैं ट्रेन में हूं और बनारस जा रहा हूं.’’

‘‘विद फैमिली?’’

‘‘हां.’’

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‘‘ओके ऐंजौय,’’ कह सीमा ने फोन बंद कर दिया. यह तो पक्का हो गया था कि वह नवनीत ही था. वह सोचने लगी कि जिंदगी भी कैसेकैसे रुख बदलती है. फिर बहुत देर तक वह पुरानी बातें याद करती रही.

घर आ कर सीमा काम में व्यस्त हो गई. सफर और नवनीत की बातें भूल सी गई. मगर अगले दिन सुबहसुबह नवनीत का गुड मौर्निंग मैसेज आ गया. सीमा जवाब दे कर औफिस चली गई.

शाम को औफिस से घर आ कर टीवी देख रही थी, तो फिर नवनीत का मैसेज आया, ‘‘क्या कर रही हो?’’

‘‘टीवी देख रही हूं और आप?’’ सीमा ने सवाल किया.

‘‘आप का इंतजार कर रहा हूं.’’

मैसेज पढ़ कर सीमा मुसकरा दी और सोचने लगी कि इसे क्या हो गया है. फिर मुसकराते हुए उस ने मैसेज किया, ‘‘मगर कहां?’’

‘‘वहीं जहां तुम हो.’’

‘‘यह तुम ही हो या कोई और? अपना फोटो भेजो ताकि मुझे यकीन हो.’’

‘‘मैं कल भेजूंगा. तब तक तुम अपना फोटो भेजो, प्लीज.’’

सीमा ने एक फोटो भेज दिया.

तुरंत कमैंट आया, ‘‘मस्त लग रही हो.’’

‘‘मस्त नहीं, स्मार्ट लग रही हूं,’’ सीमा ने नवनीत के शब्दों को सुधारा.

नवनीत चुप रहा. इस के बाद 2 दिनों तक उस का मैसेज नहीं आया. तीसरे

दिन फिर से गुड मौर्निंग मैसेज देख कर सीमा ने पूछा, ‘‘और बताओ कैसे हो?’’

‘‘वैसा ही जैसा तुम ने छोड़ा था.’’

‘‘मुझे नहीं लगता… तुम्हारी जिंदगी में तो काफी बदलाव आए हैं. तुम पति परमेश्वर बने और पापा भी, सीमा ने कहा.’’

इस पर नवनीत ने बड़े ही बेपरवाह लहजे में कहा, ‘‘अरे यार, वह सब छोड़ो. तुम बताओ क्या बनाओगी मुझे?’’

‘‘दोस्त बनाऊंगी और क्या?’’ सीमा ने टका सा जवाब दिया.

‘‘वह तो हम हैं ही,’’ कह कर उस ने ‘दिल’ का निशान भेजा.

‘‘अच्छा, अब कुछ काम है. चलती हूं. बाय,’’ कह कर सीमा व्हाट्सऐप बंद करने ही लगी कि फिर नवनीत का मैसेज आया, ‘‘अरे सुनो? मैं कुछ दिनों में दिल्ली आऊंगा.’’

‘‘ओके, आओ तो बताना.’’

‘‘क्या खिलाओगी? कहांकहां घुमाओगी?’’

‘‘जो तुम्हें पसंद हो.’’

‘‘पसंद तो तुम हो.’’

उस के बोलने की टोन से एक बार फिर सीमा चकित रह गई. फिर बोली, ‘‘क्या सचमुच? मगर पहले कभी तो तुम ने कहा नहीं.’’

‘‘क्योंकि तुम औलरैडी समझ गई थीं.’’

‘‘हां वह तो 100% सच है. मैं समझ गई थी.’’

‘‘मगर तुम ने क्यों नहीं कहा?’’ नवनीत ने उलटा सवाल दागा, तो सीमा ने उसी टोन में जवाब दिया, ‘‘क्योंकि तुम भी समझ गए थे.’’

‘‘अब तुम कैसे रहती हो?’’

‘‘कैसे मतलब?’’ सीमा ने पूछा.

‘‘मतलब ठंड में,’’ नवनीत का जवाब था.

‘‘क्यों वहां ठंड नहीं पड़ती क्या?’’ नवनीत का यह सवाल सीमा को अजीब लगा था.

नवनीत ने फिर लिखा, ‘‘मेरे पास तो ठंड दूर करने का उपाय है. पर तुम्हारी ठंड कैसे दूर होती होगी?’’

‘‘कैसी बातें करने लगे हो?’’ सीमा ने झिड़का.

मगर नवनीत का टोन नहीं बदला. उसी अंदाज में बोला, ‘‘ये बातें पहले कर लेते तो आज का दिन कुछ और होता.’’

‘‘वह तो ठीक है, पर अब यह मत भूलो कि तुम्हारी एक बीवी भी है.’’

‘‘वह अपनी जगह है, तुम अपनी जगह. तुम जब चाहो मैं तुम्हारे पास आ सकता हूं,’’ नवनीत ने सीधा जवाब दिया.

सीमा को नवनीत का शादीशुदा होने के बावजूद इस तरह खुला निमंत्रण देना

पसंद नहीं आया था. पहले नवनीत से इस तरह की बातें कभी नहीं हुई थीं, मगर उस के लिए मन में फीलिंग्स थीं जरूर. अब बात तो हो गई थी, मगर फीलिंग्स खत्म हो चुकी थीं. उस के मन में नवनीत के लिए एक अजीब सी उदासीनता आ गई थी.

2 घंटे भी नहीं बीते थे कि नवनीत ने फिर मैसेज किया, ‘‘कैसी हो?’’

‘‘अरे क्या हो गया है तुम्हें? ठीक हूं,’’ सीमा ने लिखा.

‘‘रातें कैसे बिताती हो? नवनीत ने अगला सवाल दागा.’’

सीमा के लिए यह अजीब सवाल था. सीमा ने उस से इस तरह की बातचीत की अपेक्षा नहीं की थी. अत: सीधा सा जवाब दिया, ‘‘सो कर.’’

‘‘नींद आती है?’’

यह सवाल सीमा को और भी बेचैन कर गया. पर लिखा, ‘‘हां पूरी नींद आती है.’’

‘‘और जब…’’

नवनीत ने कुछ ऐसा अश्लील सा सवाल किया था कि वह बिफर पड़ी, ‘‘आई डौंट लाइक दिस टाइप औफ गौसिप.’’

मैं सोच रहा था कि अपने दोस्त से बातें हो रही हैं. मगर सौरी, तुम तो दार्शनिक निकलीं.

नवनीत ने सीमा का मजाक उड़ाया तो सीमा ने कड़े शब्दों में जवाब दिया, ‘‘मैं ने चैटिंग करने से मना नहीं किया, मगर एक सीमा में रह कर ही बातें की जा सकती हैं.’’

‘‘दोस्ती में कोई सीमा नहीं होती.’’

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‘‘पर मैं कभी ऐसी दोस्ती के लिए रजामंदी नहीं दूंगी, जिस में कोई सीमा न हो,’’ सीमा ने फिर से दृढ़ स्वर में कहा.

‘‘यह मत भूलो कि तुम भी मुझे पसंद किया करती थीं सीमा.’’

‘‘पसंद करना अलग बात है, पर उसे अपनी जिंदगी की गलती बना लेना अलग. शायद मैं यह कतई नहीं चाहूंगी कि ऐसा कुछ भी हो. इस तरह की बातें करनी हैं तो प्लीज अब कभी मैसेज मत करना मुझे,’’ मैसेज भेज सीमा ने फोन बंद कर दिया.

अब सीमा का मन काफी हलका हो गया था. नवनीत से सदा के लिए दूरी बना कर उसे तनिक भी अफसोस नहीं हो रहा था. नवनीत, जिसे कभी उस ने मन ही मन चाहा था और पाने की ख्वाहिश भी की थी, अब वह बदल चुका या फिर उस की असली सूरत सीमा को रास नहीं आई.

क्या वह सच था: प्यार गंवाने के बाद भी बहन की नफरत का शिकार क्यों हो रही थी श्रेया?

Serial Story: क्या वह सच था (भाग-3)

‘‘उस दिन हौस्पिटल से निकलते वक्त मैं बेतहाशा रो रही थी. संयोग से उस दिन विपुल भी अपनी नियमित जांच के लिए अस्पताल आए हुए थे. मैं उस दिन पक्का जहर खा चुकी होती. मगर विपुल ने आप का वास्ता दे कर मुझ से सारी बात जान ली. मैं बहुत भयभीत थी कि मेरी वजह से पापा और आप की इज्जत धूल में मिल जाएगी. हार्टपेशैंट पापा को कुछ हो गया तो मैं स्वयं को कभी माफ नहीं कर सकूंगी.

‘‘मगर विपुल ने दिलासा दिया कि वे मुझ से शादी कर बच्चे को अपना नाम देंगे. इसीलिए उन्होंने दूसरे शहर में अपना स्थानांतरण करा लिया ताकि मेरे शादी से पहले गर्भवती होने की बात कोई न जान सके.

‘‘मैं ने सोचा था कि सब ठीक हो जाने पर आप के पास लौट आऊंगी और सब सचसच बता दूंगी. मगर विपुल ने यह कह कर मुझे रोक दिया कि फिर आप शादी नहीं करोगी और विपुल की खातिर अकेली रह जाओगी. आप की शादी का समाचार मिला था हमें और हम आना भी चाहते थे, मगर मेरी तबीयत खराब रहने लगी थी. फिर आप का सामना करने की भी हिम्मत नहीं थी.

‘‘प्लीज दीदी, अब अपनी बहन को माफ कर देना. मैं ने आप की जिंदगी से उसे

दूर कर दिया, जो आप की जिंदगी का सब कुछ था. पर यकीन मानिए विपुल ने आज तक मुझे छुआ भी नहीं. वे आज भी केवल  आप के हैं.’’

‘‘आप की बहन.’’

पत्र पढ़तेपढ़ते श्रेया की आंखों से आंसुओं की बरसात होने लगी. अब तक दग्ध पड़ा

उस का मन विपुल के प्रेम की छांव महसूस कर शीतल हो गया था. पर बहन का दर्द आंखों से आंसुओं के सैलाब के रूप में उमड़ पड़ा था.

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श्रेया बदहवास सी गेट की तरफ भागी कि शायद विपुल बाहर रुका हो. पर विपुल जा चुका था. श्रेया अचानक फूटफूट कर रोने लगी. उस का पता भी तो नहीं था. कहां गया होगा वह? आ कर बिस्तर पर औंधे मुंह लेट गई. पुरानी बातें सोचतीसोचती नींद के आगोश में चली गई. फिर जब होश आया तो देखा, ज्ञान औफिस से आ चुका था और स्वयं चाय बना रहा था. श्रेया को खुद में ग्लानि महसूस हुई कि उसे कैसे ज्ञान के आने का आभास भी नहीं हुआ. वह हड़बड़ा कर उठने लगी कि चक्कर आने लगा. फिर बिस्तर पर लेट गई.

तभी चाय ले कर ज्ञान आ गया. श्रेया के लिए भी चाय बनाई थी. चाय देते हुए बोला, ‘‘जल्दी तैयार हो जाओ श्रेया, हमें चलना है.’’

श्रेया ने उदास नजरों से देखते हुए कहा, ‘‘नहीं, मैं कहीं नहीं जा सकती, प्लीज, आप

चले जाओ.’’

‘‘नहीं श्रेया, तुम्हें चलना होगा,’’ ज्ञान के स्वर में दबाव था.

श्रेया सोच रही थी कैसे मना करूं ज्ञान को और क्या कह कर? पता नहीं, वह क्या सोचेगा. फिर बिना मन के भी श्रेया को ज्ञान से साथ जाने को तैयार होना पड़ा. बड़े बेमन से कार में बैठ गई. कार सीधी एक अस्पताल के आगे जा कर रुकी. प्रश्नवाचक नजरों से श्रेया ने पति की ओर देखा.

‘‘जाओ श्रेया, अपनी बहन से मिल लो.’’

ज्ञान का गंभीर स्वर गूंजा, तो श्रेया चौंक उठी, ‘‘क्या सचमुच ज्ञान?’’ और फिर फूटफूट कर रो पड़ी.

ज्ञान ने सहारा देते हुए कहा, ‘‘कुछ सोचो या बोलो मत, बस जल्दी चलो. समय कम है, नेहा के पास.’’

श्रेया और ज्ञान लगभग दौड़ते हुए अंदर पहुंचे. नेहा बैड पर पड़ी जिंदगी और मौत के बीच जूझ रही थी. दरअसल, सालों जिस अपराधबोध का बोझ लिए वह जीती रही थी, वह दर्द आज कैंसर बन कर उस की जिंदगी पर हावी हो गया था.

श्रेया का स्वर गले में ही रह गया. पर उस के हाथों का स्पर्श पाते ही नेहा ने आंखें खोलीं. श्रेया को देखते ही, ‘‘दीदी’’, कह उस की आंखें बरस पड़ीं, ‘‘मुझे माफ कर दो दीदी… मैं आप की कुसूरवार हूं.’’

‘‘नहीं नेहा, तू कुछ न बोल. तेरा कोई दोष नहीं. जो होना था, वही हुआ. इस के लिए स्वयं को दोष क्यों दे रही है?

‘‘अब मैं अच्छी नहीं हो सकती दीदी, तुम्हारे लिए ही सांसें अटकी थीं. बस एकबार विपुल को माफ कर दो, ‘‘कहते उस ने विपुल का हाथ पकड़ उस के हाथों में दे दिया.

विपुल की आंखों से आंसू बहने लगे. श्रेया रुंधे गले से बोली, ‘‘नेहा, विपुल ने तो कोई गलती की ही नहीं. उस ने तो कुरबानी दी है. मैं माफी देने वाली कौन होती हूं?’’

श्रेया की बात सुन कर नेहा का चेहरा खिल उठा जैसे वह एक गहरे अपराधबोध से मुक्त हो गई हो. बहुत देर तक श्रेया नेहा का हाथ पकड़े सुबकती रही.

डाक्टरों ने जवाब दे दिया था. उस रात श्रेया नेहा के पास ही रुकना चाहती थी पर ज्ञान के कहने पर घर चलने को तैयार हो गई. रास्ते भर श्रेया सोचती रही. वर्षों बाद अपनी प्यारी बहन को गले लगा कर कितना सुकून मिला था उसे. फिर विपुल का निश्छल प्रेम महसूस कर उस का दिल फिर से विपुल की ओर झुकने लगा था. आज उसे किसी से कोई शिकवाशिकायत नहीं थी. सिर्फ प्यार था विपुल के लिए, नेहा के लिए.

तभी सहसा उस के मन से आवाज आई, ‘कहीं वह ज्ञान के साथ नाइनसाफी तो नहीं करने जा रही?’

‘‘ज्ञान तुम्हें कैसे पता चला कि नेहा यहां है?’’ श्रेया ने पूछा.

ज्ञान ने गंभीर स्वर में कहा, ‘‘तुम रोतीरोती सो गई थीं, तो मैं घर में दाखिल हुआ था. मैं ने पत्र पढ़ा और सारी हकीकत समझ गया. मैं सोच रहा था कि नेहा से तुम्हें कैसे मिलाऊं? तभी

मुझे विपुल की मां का खयाल आया. जब पार्टी में वे तुम से मिली थीं, तो मैं ने वहां उन से फोन नंबर ले लिया था. आज आंटी को फोन कर के ही मुझे जानकारी मिली कि नेहा यहां ऐडमिट है. तभी मैं ने…’’

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श्रेया विपुल के कंधे पर सिर रखती हुई बोली, ‘‘आप का शुक्रिया कैसे अदा करूं?’’

‘‘मेरा नहीं, विपुल का शुक्रिया अदा करो श्रेया. यदि नेहा को कुछ हो जाता है तो मुझे लगता है तुम्हें विपुल को अपने घर या हमारे बगल के घर में रहने के लिए मना लेना चाहिए. ताकि तुम विपुल को बिलकुल अकेला होने से बचा सको. फिर नेहा के बच्चे को भी तुम्हारा साथ मिल जाएगा.’’

अपने पति के सुलझे विचार जान कर श्रेया का मन और भी हलका हो गया. वह निश्चिंत हो कर ज्ञान के कंधे पर सिर रख कर सो गई, क्योंकि अब वह विपुल के प्रति अपने कर्तव्य बिना किसी हिचकिचाहट निभा सकेगी. उस का पति उस के रिश्तों को पूरी अहमियत जो दे रहा था. शायद वह विपुल के साथ अपने रिश्ते को जितने बेहतर ढंग से नहीं समझ सकी, उस से कहीं अधिक ज्ञान ने उन दोनों को समझा.

Serial Story: क्या वह सच था (भाग-2)

श्रेया को आज भी अच्छी तरह याद है वह शाम जब नेहा थकीहारी और परेशान सी कालेज से घर लौटी थी और फिर सहसा श्रेया के गले लग कर रोने लगी थी. पीछेपीछे विपुल भी आया था. उस ने नेहा को बैठने का इशारा किया और फिर श्रेया से मुखातिब होते हुए बोला, ‘‘श्रेया, मैं तुम से एक बात कहना चाहता हूं.’’

‘‘वह तो ठीक है विपुल, मगर पहले नेहा को तो देख लूं… यह रो क्यों रही है?’’

‘‘मैं ही हूं, इस की वजह,’’ विपुल श्रेया के सामने आ कर खड़ा हो गया.

‘‘मतलब?’’

श्रेया चौंक उठी.

‘‘मतलब यह कि नेहा मेरी वजह से रो रही है.’’

‘‘यह क्या कह रहे हो तुम?’’ श्रेया कुछ समझ नहीं पाई.

‘‘मैं जानता हूं श्रेया, तुम्हारे लिए समझना कठिन होगा. मगर मैं मजबूर हूं. मैं चुप नहीं रह सकता. मैं नेहा से प्रेम करने लगा हूं और इसी से शादी करूंगा.’’

‘‘क्या? तुम नेहा से प्रेम करते हो? और मैं? मैं क्या थी? तुम्हारे मन बहलाव का जरीया? टाइमपास? नहीं विपुल मैं तुम्हारी इस बात पर कभी यकीन नहीं करूंगी.’’

फिर श्रेया ने तुरंत नेहा के पास जा कर पूछा, ‘‘विपुल क्या कह रहे हैं नेहा? यह सब क्या है? यह सब झूठ है न नेहा? तू सच बता नेहा…’’

‘‘दीदी, मैं स्वयं नहीं जानती कि मेरी जिंदगी में क्या लिखा है. फिर मैं आप को क्या बताऊं?’’

‘‘सिर्फ इतना बता कि क्या तू और विपुल एकदूसरे के साथ जिंदगी बिताना चाहते हैं? क्या विपुल ने जो कहा वह सच है?’’

झुकी नजरों से नेहा ने हां में सिर हिलाया तो श्रेया के पास कुछ कहने या सुनने को

नहीं रह गया. एक धक्का सा लगा उस के दिल को. वह बिलकुल अलग जा कर खड़ी हो गई, दिल की सारी हसरतें आंसुओं में बहने लगीं.

इस घटना के बाद विपुल में श्रेया से नजरें मिलाने का भी हौसला नहीं रहा. दबी जबान में जब उस ने श्रेया के पापा से नेहा के साथ शादी की इच्छा जताई तो पूरे घर में कुहराम मच गया. कहां तो श्रेया और विपुल की शादी की तैयारी थी और कहां मामला ही उलट गया. तूफान के बाद जैसे पूरे माहौल में शांति छा जाती वैसे ही घर में नीरवता पसर गई.

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उधर श्रेया का मन अभी भी इस हकीकत को स्वीकार नहीं कर पा रहा था. घर वालों के तैयार न होने पर विपुल नेहा को ले कर बहुत दूर निकल गया. उस ने जानबूझ कर ऐसी जगह अपनी पोस्टिंग करा ली जहां जानपहचान वाले आसपास न हों. उस ने अपना नया पता भी बहुत कम लोगों को दिया.

विपुल और नेहा से श्रेया और उस के घर वालों ने हर तरह के संबंध तोड़ लिए थे. विपुल ने भी लौट कर बात करने की कोशिश नहीं की और इस तरह श्रेया की यह प्रेम कहानी उस की बरबादी का सबब बन कर रह गई.

उसी दौरान श्रेया की जिंदगी में प्रेम का सागर बन कर ज्ञान आया. उस के साथ शादी घर वालों ने ही तय की. पर इस के लिए स्वयं को तैयार करना श्रेया के लिए बहुत कठिन था. खुद को काफी समझाना पड़ा उसे. ज्ञान को अपना तो लिया था उस ने, मगर प्यार के प्रति उस के मन में विपुल की वजह से एक तरह की उदासी व दर्द का साम्राज्य कायम था. वह लाख कोशिश करती, मगर दिल का सूनापन जाता नहीं. वर्षों बीत गए थे. अब तो नन्हा सौरभ ही श्रेया के जीवन का आधार बन गया था.

श्रेया सुबह उठी तो मन भारी था. पूरी रात पुरानी बातें याद करते जो गुजरी थी.

सोचा, ज्ञान औफिस और सौरभ स्कूल चला जाएगा, तो थोड़ी देर सो लेगी. काम करतेकरते 12 बज गए थे. वह थक कर लेटने गई ही थी कि दरवाजे की घंटी बज उठी. अनमने से दरवाजा खोला तो दंग रह गई.

सामने विपुल खड़ा था. परेशान, थका हुआ, बीमार सा. एकबारगी तो श्रेया उसे पहचान ही नहीं पाई. काले बालों पर अब सफेदी चढ़ चुकी थी. आंखों के नीचे गहरी कालिमा और चेहरे का रंग भी फक्क पड़ा चुका था.

श्रेया असहज होती हुई बोली, ‘‘तुम यहां? तुम वापस क्यों आए हो विपुल? मुझे तुम से कोई बात नहीं करनी.’’

‘‘ठीक है श्रेया, मैं दोबारा लौट कर नहीं आऊंगा. बस यह पत्र देने आया था,’’ कहतेकहते विपुल की आंखें डबडबा आईं. पत्र थमा कर वह तेज कदमों से लौट गया.

श्रेया काफी देर तक विक्षिप्त सी खड़ी रही. जिस शख्स को वह एक पल को भी याद करना पसंद नहीं करती थी, आज वही शख्स उस के सामने खड़ा था. यों तो वह अनजाने ही चाहती रही थी कि उस के जीवन में आंसू भरने वाला शख्स कभी खुश न रहे, मगर आज अपनी नजरों के आगे उस की आंखों में आंसू देख कर एक बार फिर वह तड़प क्यों रही है? 1-2 घंटे वह यों ही परेशान सी रही. फिर न चाहते हुए भी हिम्मत कर के उस ने वह पत्र खोला. उस के हाथ कांप रहे थे. बहन की हैंडराइटिंग देख मन किया कि पत्र को चूम ले. मगर फिर पुरानी कड़वाहट जेहन में ताजा हो गई. अनमने से उस ने पत्र पढ़ना शुरू किया. लिखा था:

‘‘दीदी, मैं आप की क्षमा की हकदार तो नहीं हूं, फिर भी क्षमा मांग रही हूं. शायद जब तक यह पत्र आप के हाथों में पहुंचे तब तक मैं इस दुनिया से जा चुकी होऊं . इतने दिनों तक आप से बहुत राज छिपाए है हम ने, पर अब और नहीं. हकीकत बता कर चैन से अलविदा कह सकूंगी.’’

‘‘दीदी, मैं आप के विपुल से प्यार नहीं करती थी. वह तो सदा से आप के ही रहे. आप से बेहद प्यार करते हैं. तभी आप की प्रिय बहन की जिंदगी बचाने के लिए उन्होंने यह कुरबानी दी, यानी मुझ से शादी की.

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‘‘दीदी, किसी लड़के ने धोखे से मेरा इस्तेमाल किया. उस से धोखा खा कर मैं पूरी तरह टूट गई थी. फिर भी हौसला रखा और सोचा कि प्रयास करूंगी, वह शादी के लिए मान जाए. इस से पहले ही वह इस दुनिया से रुखसत हो गया. 2-3 माह बाद जब मुझे अपने अंदर हलचल महसूस हुईर् तो मैं सकते में आ गई. मेरे पेट में उस धोखेबाज का अंश था. डाक्टर ने जांच कर बताया कि अब गर्भपात कराना जिंदगी पर भारी पड़ सकता है.

आगे पढ़ें- पत्र पढ़तेपढ़ते श्रेया की आंखों से आंसुओं की…

Serial Story: क्या वह सच था (भाग-1)

सफाई करते सहसा ही श्रेया के हाथ विपुल की दी वही चमचमाती रिंग आ गई जिसे उस ने वर्षों पूर्व किसी डब्बे में बंद कर एक कोने में पटक दिया था. वह विपुल को बुरे सपने की तरह भुला देना चाहती थी. मगर ऐसा कहां हो पाया. मन के किसी कोने में आज भी उस की यादों का कारवां ठहरा सा था. आज भी एक कसक रहरह कर उसे तड़पाती कि जिसे सब से ज्यादा चाहा था वही उस के सब से बड़े दुख की वजह बन गया.

कैसे भूल सकती है श्रेया अपने 27वें जन्मदिन से एक दिन पहले की उस शाम को जब विपुल के साथसाथ उस ने अपनी बहन को भी सदा के लिए खो दिया था.

वह बहन, जिस के लिए श्रेया हर मोड़ पर खड़ी रही थी, उसी ने विपुल को छीन लिया उस से. मां के गुजरने के बाद अपनी बच्ची की तरह खयाल रखा था उस ने छोटी बहन नेहा का. विपुल से भी तो अकसर जिक्र करती थी वह कि नेहा उस की बहन से कहीं ज्यादा उस की संतान है. बहुत प्यार करती है उस से. तकलीफ में नहीं देख सकती उसे. पर कब सोचा था उस ने कि उसी बहन को जरीया बना कर विपुल उसे ऐसी तकलीफ देगा कि जिंदगी में संभलना तक मुश्किल हो जाएगा.

एक अजीब से कड़वाहट श्रेया के मन में भर गई. हमेशा ऐसा ही होता है. विपुल और नेहा को याद करते ही उस के जेहन में पुरानी यादें ताजा हो उठती हैं.

‘‘श्रेया… श्रेया… कहां हो तुम?’’

पीछे से आती ज्ञान की आवाज ने उस की तंद्रा तोड़ दी. वह वर्तमान में लौट आई. वर्तमान जहां उस का पति ज्ञान और बेटा सौरभ बेसब्री से उस का इंतजार कर रहे थे.

‘‘तुम भूल गईं श्रेया कि आज हमें नमन के यहां जाना है,’’ ज्ञान ने कहा.

‘‘अरे हां, मुझे याद नहीं रहा. ठीक है मैं अभी तैयार हो कर आती हूं,’’ कह श्रेया कमरे में तैयार होने चली आई. फिर तैयार होते हुए खुद को कोसने लगी कि आज फिर क्यों उस ने पुरानी यादों के साए को खुद पर हावी होने दिया? क्यों नहीं वह विपुल को पूरी तरह भूल पाती है? वह विपुल, जिस ने उस के जज्बातों की परवाह नहीं की. उस की बहन को शिकार बना कर चलता बना. फिर दोबारा देखा भी नहीं. वह तो ज्ञान था, जिस की वजह से वह स्वयं को संभाल सकी.

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श्रेया जब भी विपुल की बेवफाई याद करती बरबस ही उस के दिल में ज्ञान के लिए प्रेम उमड़ पड़ता. आज भी वही हुआ. उस ने ज्ञान की पसंद की हलकी नीली साड़ी पहनी. फिर उसी रंग की चूडि़यां, फुटवियर वगैरह पहन कर जल्दी से तैयार हो गई.

ज्ञान ने देखा तो उस के चेहरे पर एक मीठी सी मुसकान खेल गई. तीनों बहुत दिनों बाद एकसाथ बाहर जा रहे थे. रास्ते भर सौरभ की शैतानियां और ज्ञान की मजेदार बातों ने श्रेया के मन से पुरानी यादों की कड़वाहट दूर कर दी. नमनजी के बेटे की सगाई थी. उस जश्न के माहौल में श्रेया पूरी तरह रंग गई. उस ने ज्ञान के साथ जम कर डांस भी किया.

तभी पीछे से किसी महिला ने श्रेया के कंधे पर हाथ रखा. वह पलटी तो सामने खड़ी उम्रदराज महिला पर नजर पड़ते ही श्रेया के चेहरे का रंग बदल गया. वह हैरान नजरों से उस महिला की तरफ देखती रह गई.

वह महिला कोई और नहीं, विपुल की मां थीं. पहले की ही तरह उन की आंखों से वात्सल्य फूट रहा था. उन्हें सामने पा कर सहसा श्रेया से कुछ कहते न बना. फिर अचानक वर्षों पुराना दबा गुस्सा लावा बन कर आंखों से फूट पड़ा. श्रेया की बड़ीबड़ी आंखें आंसुओं से भर गईं. वह स्वयं को रोक नहीं सकी और विपुल की मां के सीने से लग कर फफकफफक कर रोने लगी.

पहली दफा किसी के आगे खुल कर रो रही थी. मां के स्नेह से भरे हाथ हौलेहौले उस के कंधों को सहलाने लगे थे मानो वे उस का सारा दर्द समझ रही हों. आखिर श्रेया ने ही तो उन से दूरी बनाई थी. सिर्फ उन से ही नहीं, विपुल से जुड़े हर शख्स, हर वस्तु और हर याद से. वह नहीं चाहती थी कि कोई उसे विपुल की याद भी दिलाए. मगर आज जैसे वह उस याद में पूरी तरह डूबी जा रही थी.

सहसा जैसे श्रेया को होश आया. यह क्या कर रही है वह? नहीं. वह किसी के आगे कमजोर नहीं पड़ सकती… पुरानी यादों से दोबारा नहीं जुड़ सकती.

फिर एक झटके से वह अलग खड़ी हो गई. सामने ज्ञान खड़ा उसे ही देख रहा था. आंसू छिपाती श्रेया तेजी से बाथरूम की ओर बढ़ गई. ज्ञान विपुल की मां से बातें करने लगा.

वापस घर लौटते वक्त श्रेया रास्ते भर न चाहते हुए भी विपुल के बारे में ही सोचती रही. उस का दिल अंदर ही अंदर तड़प रहा था. जिस इनसान के लिए वह दुनिया छोड़ने को तैयार थी, उसी को जिंदगी से निकाल कर जी रही थी वह. जब दिल में जज्बा ही न रहे तो फिर क्या फर्क पड़ता है कि कोई इनसान जिंदगी में है या नहीं.

रात भर श्रेया चाह कर भी उन पुरानी यादों से स्वयं को आजाद नहीं कर पाई. पुराने लमहे उस की आंखों के आगे से गुजरते रहे. कैसे विपुल और वह एकदूसरे का हाथ थामे पूरी दुनिया की सैर करते, भविष्य के सुनहरे सपने. देखते, विपुल मितभाषी और संकोची प्रवृत्ति का इनसान था.

आजतक श्रेया समझ नहीं पाई कि उस ने नेहा के साथ कब इतनी नजदीकियां बढ़ा लीं कि वह उस की जिंदगी बन गई और श्रेया को दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फेंका.

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श्रेया को तो विपुल पर पूरापूरा भरोसा था. उस ने तो कभी सोचा ही नहीं था कि कभी वह उस के साथ कुछ गलत करेगा या फिर उस की दुलारी बहन नेहा ही ऐसा दिल तोड़ने वाला कदम उठाएगी. तब नेहा की ग्रैजुएशन की परीक्षा थी और श्रेया ने ही विपुल से कहा था कि नेहा को पढ़ा दिया करें. पर उसे कहां पता था कि वह अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रही है.

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सही समय पर: क्या मनोज की जिंदगी में पत्नी के खालीपन को समझ पाए उसके बच्चे?

कमलेश के साथ मैं ने विवाहित जिंदगी के 30 साल गुजारे थे, लेकिन कैंसर ने उसे हम से छीन लिया. सिर्फ एक रिश्ते को खो कर मैं बेहद अकेला और खाली सा हो गया था.

ऊब और अकेलेपन से बचने को मैं वक्तबेवक्त पार्क में घूमने चला जाता. मन की पीड़ा को भुलाने के लिए कोई कदम उठाना, उस से छुटकारा पा लेने के बराबर नहीं होता है.

आजकल किसी के पास दूसरे के सुखदुख को बांटने के लिए समय ही कहां है. हर कोई अपनी जिंदगी की समस्याओं में पूरी तरह उलझा हुआ है. मेरे दोनों बेटे और बहुएं भी इस के अपवाद नहीं हैं. मैं अपने घर में खामोश सा रह कर दिन गुजार रहा था.

कमलेश से बिछड़े 2 साल बीत चुके थे. एक शाम पापा के दोस्त आलोकजी मुझे हार्ट स्पैशलिस्ट डाक्टर नवीन के क्लीनिक में मिले. उन की विधवा बेटी सरिता उन के साथ थी.

बातोंबातों में मालूम पड़ा कि आलोकजी को एक दिल का दौरा 4 महीने पहले पड़ चुका था. उन की बूढ़ी, बीमार आंखों में मुझे जिंदगी खो जाने का भय साफ नजर आया था.

उन्हें और उन की बेटी सरिता को मैं ने उस दिन अपनी कार से घर तक छोड़ा. तिवारीजी ने अपनी जिंदगी के दुखड़े सुना कर अपना मन हलका करने के लिए मुझे चाय पिलाने के बहाने रोक लिया था.

कुछ देर उन्होंने मेरे हालचाल पूछे और फिर अपने दिल की पीड़ा मुझ से बयान करने लगे, ‘‘मेरा बेटा अमेरिका में अपनी पत्नी व बच्चों के साथ ऐश कर रहा है. वह मेरी मौत की खबर सुन कर भी आएगा कि नहीं मुझे नहीं पता. तुम ही बताओ कि सरिता को मैं किस के भरोसे छोड़ कर दुनिया से विदा लूं?

‘‘शादी के साल भर बाद ही इस का पति सड़क दुर्घटना में मारा गया था. मेरे खुदगर्ज बेटे को जरा भी चिंता नहीं है कि उस की बहन पिछले 24 साल से विधवा हो कर घर में बैठी है. उस ने कभी दिलचस्पी…’’

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तभी सरिता चायनाश्ते की ट्रे ले कर कमरे में आई और अपने पापा को टोक दिया, ‘‘पापा, भैया के रूखेपन और मेरी जिंदगी की कहानी सुना कर मनोज को बोर मत करो. मैं टीचर हूं और अपनी देखभाल खुद बहुत अच्छी तरह से कर सकती हूं.’’

चाय पीते हुए मैं ने उस से सवाल पूछ लिया था, ‘‘सरिता, तुम ने दोबारा शादी क्यों नहीं की?’’

‘‘मेरे जीवन में जीवनसाथी का सुख लिखा होता तो मैं विधवा ही क्यों होती,’’ उस ने लापरवाही से जवाब दिया.

‘‘यह तो कोई दलील नहीं हुई. जिंदगी में कोई हादसा हो जाता है तो इस का मतलब यह नहीं कि फिर जिंदगी को आगे बढ़ने का मौका ही न दिया जाए.’’

‘‘तो फिर यों समझ लो कि पापा की देखभाल की चिंता ने मुझे शादी करने के बारे में सोचने ही नहीं दिया. अब किसी और विषय पर बात करें?’’

उस की इच्छा का सम्मान करते हुए मैं ने बातचीत का विषय बदल दिया था.

मैं उन के यहां करीब 2 घंटे रुका. सरिता बहुत हंसमुख थी. उस के साथ गपशप करते हुए समय के बीतने का एहसास ही नहीं हुआ था.

सरिता से मुलाकात होने के बाद मेरी जिंदगी उदासी व नीरसता के कोहरे से बाहर निकल आई थी. मैं हर दूसरेतीसरे दिन उस के घर पहुंच जाता. हमारे बीच दोस्ती का रिश्ता दिन पर दिन मजबूत होता गया था.

कुछ हफ्ते बाद आलोकजी की बाईपास सर्जरी हुई पर वे बेचारे ज्यादा दिन जिंदा नहीं रहे. हमारी पहली मुलाकात के करीब 6 महीने बाद उन्होंने जब अस्पताल में दम तोड़ दिया तब मैं भी सरिता के साथ उन के पास खड़ा था.

‘‘मनोज, सरिता का ध्यान रखना. हो सके तो इस की दूसरी शादी करवा देना,’’ मुझ से अपने दिल की इस इच्छा को व्यक्त करते हुए उन की आवाज में जो गहन पीड़ा व बेबसी के भाव थे उन्हें मैं कभी नहीं भूल सकूंगा.

आलोकजी के देहांत के बाद भी मैं सरिता से मिलने नियमित रूप से जाता रहा. हम दोनों ही चाय पीने के शौकीन थे, इसलिए उस से मिलने का सब से अच्छा बहाना साथसाथ चाय पीने का था.

मेरी जिंदगी अच्छी तरह से आगे बढ़ रही थी कि एक दिन मेरे दोनों बेटे गंभीर मुद्रा बनाए मेरे कमरे में मुझ से मिलने आए थे.

‘‘पापा, आप कुछ दिनों के लिए चाचाजी के यहां रह आओ. जगह बदल जाने से आप का मन बहल जाएगा,’’ बेचैन राजेश ने बातचीत शुरू की.

‘‘मुझे तंग होने को उस छोटे से शहर में नहीं जाना है. वहां न बिजली है न पानी. अगर मन किया तो तुम्हारे चाचा के घर कभी सर्दियों में जाऊंगा,’’ मैं ने अपनी राय उन्हें बता दी.

राजेश ने कुछ देर की खामोशी के बाद आगे कहा, ‘‘कोई भी इंसान अकेलेपन व उदासी का शिकार हो गलत फैसले कर सकता है. पापा, हमें उम्मीद है कि आप कभी ऐसा कोई कदम नहीं उठाएंगे जो समाज में हमें गरदन नीचे कर के चलने पर मजबूर कर दे.’’

‘‘क्या मतलब हुआ तुम्हारी इस बेसिरपैर की बात का? तुम ढकेछिपे अंदाज में मुझ से क्या कहना चाह रहे हो?’’ मैं ने माथे में बल डाल लिए.

रवि ने मेरा हाथ पकड़ कर भावुक लहजे में कहा, ‘‘हम मां की जगह किसी दूसरी औरत को इस घर में देखना कभी स्वीकार नहीं कर पाएंगे, पापा.’’

‘‘पर मेरे मन में दूसरी शादी करने का कोई विचार नहीं है फिर तुम इस विषय को क्यों उठा रहे हो?’’ मैं नाराज हो उठा था.

‘‘वह चालाक औरत आप की परेशान मानसिक स्थिति का फायदा उठा कर आप को गुमराह कर सकती है.’’

‘‘तुम किस चालाक औरत की बात कर रहे हो?’’

‘‘सरिता आंटी की.’’

‘‘पर वह मुझ से शादी करने की बिलकुल इच्छुक नहीं है.’’

‘‘और आप?’’ राजेश ने तीखे लहजे में सवाल किया.

‘‘वह इस समय मेरी सब से अच्छी दोस्त है. मेरी जिंदगी की एकरसता को मिटाने में उस ने बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है,’’ मैं ने धीमी आवाज में उन्हें सच बता दिया.

‘‘पापा, आप खुद समझदार हैं और हमें विश्वास है कि हमारे दिल को दुखी करने वाला कोई गलत कदम आप कभी नहीं उठाएंगे,’’ राजेश की आंखों में एकाएक आंसू छलकते देख मैं ने आगे कुछ कहने के बजाय खामोश रहना ही उचित समझा था.

अगली मुलाकात होने पर जब मैं ने सरिता को अपने बेटों से हुई बातचीत की जानकारी दी तो वह हंस कर बोली थी, ‘‘मनोज, तुम मेरी तरह मस्त रहने की आदत डाल लो. मैं ने देखा है कि जो भी अच्छा या बुरा इंसान की जिंदगी में घटना होता है, वह अपने सही समय पर घट ही जाता है.’’

‘‘तुम्हारी यह बात मेरी समझ में ढंग से आई नहीं है, सरिता. तुम कहना क्या चाह रही हो?’’ मेरे इस सवाल का जवाब सरिता ने शब्दों से नहीं बल्कि रहस्यपूर्ण अंदाज में मुसकरा कर दिया था.

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सप्ताह भर बाद मैं शाम को पार्क में बैठा था तब तेज बारिश शुरू हो गई. बारिश करीब डेढ़ घंटे बाद रुकी और मैं पूरे समय एक पेड़ के नीचे खड़ा भीगता रहा था.

रात होने तक शरीर तेज बुखार से तपने लगा और खांसीजुकाम भी शुरू हो गया. 3 दिन में तबीयत काफी बिगड़ गई तो राजेश और रवि मुझे डाक्टर को दिखाने ले गए.

उन्होंने चैकअप कर के बताया कि मुझे निमोनिया हो गया है और उन की सलाह पर मुझे अस्पताल में भरती होना पड़ा.

तब तक दोनों बहुएं औफिस जा चुकी थीं. राजेश और रवि दोनों गंभीर मुद्रा में यह फैसला करने की कोशिश कर रहे थे कि मेरे पास कौन रुके. दोनों को ही औफिस जाना जरूरी लग रहा था.

तब मैं ने बिना सोचविचार में पड़े सरिता को फोन कर अस्पताल में आने के लिए बड़े हक से कह दिया था.

सरिता को बुला लेना मेरे दोनों बेटों को अच्छा तो नहीं लगा पर मैं ने साफ नोट किया कि उन की आंखों में राहत के भाव उभरे थे. अब वे दोनों ही बेफिक्र हो कर औफिस जा सकते थे.

कुछ देर बाद सरिता उन दोनों के सामने ही अस्पताल आ पहुंची और आते ही उस ने मुझे डांटना शुरू कर दिया, ‘‘क्या जरूरत थी बारिश में इतना ज्यादा भीगने की? क्या किसी रोमांटिक फिल्म के हीरो की तरह बारिश में गाना गा रहे थे.’’

‘‘तुम्हें तो पता है कि मैं ट्रेजडी किंग हूं, रोमांटिक फिल्म का हीरो नहीं,’’ मैं ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

‘‘तुम्हारे पापा से बातों में कोई नहीं जीत सकता,’’ कहते हुए वह राजेश और रवि की तरफ देख कर बड़े अपनेपन से मुसकराई और फिर कमरे में बिखरे सामान को ठीक करने लगी.

‘‘बिलकुल यही डायलाग कमलेश हजारों बार अपनी जिंदगी में मुझ से बोली होगी,’’ मेरी आंखों में अचानक ही आंसू भर आए थे.

तब सरिता भावुक हो कर बोली, ‘‘यह मत समझना कि दीदी नहीं हैं तो तुम अपनी सेहत के साथ खिलवाड़ कर सकते हो. समझ लो कि कमलेश दीदी ने तुम्हारी देखभाल की जिम्मेदारी मुझे सौंपी है.’’

‘‘तुम तो उस से कभी मिली ही नहीं, फिर यह जिम्मेदारी तुम्हें वह कब सौंप गई?’’

‘‘वे मेरे सपने में आई थीं और अब अपने बेटों के सामने मुझ से डांट नहीं खाना चाहते तो ज्यादा न बोल कर आराम करो,’’ उस की डांट सुन कर मैं ने किसी छोटे बच्चे की तरह अपने होंठों पर उंगली रखी तो राजेश और रवि भी मुसकरा उठे थे.

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मेरे बेटे कुछ देर बाद अपनेअपने औफिस चले गए थे. शाम को दोनों बहुएं मुझ से मिलने औफिस से सीधी अस्पताल आई थीं. सरिता ने फोन कर के उन्हें बता दिया था कि मेरे लिए घर से कुछ लाने की जरूरत नहीं है क्योंकि मेरे लिए खाना तो वही बना कर ले आएगी.

मैं 4 दिन अस्पताल में रहा था. इस दौरान सरिता ने छुट्टी ले कर मेरी देखभाल करने की पूरी जिम्मेदारी अकेले उठाई थी. मेरे बेटेबहुओं को 1 दिन के लिए भी औफिस से छुट्टी नहीं लेनी पड़ी थी. सरिता और उन चारों के बीच संबंध सुधरने का शायद यही सब से अहम कारण था.

अस्पताल छोड़ने से पहले मैं ने सरिता से अचानक ही संजीदा लहजे में पूछा था, ‘‘क्या हमें अब शादी नहीं कर लेनी चाहिए?’’

‘‘अभी ऐसा क्या खास घटा है जो यह विचार तुम्हारे मन में पैदा हुआ है?’’ उस ने अपनी आंखों में शरारत भर कर पूछा.

‘‘तुम ने मेरी देखभाल वैसे ही की है जैसे एक पत्नी पति की करती है. दूसरे, मेरे बेटेबहुएं तुम से अब खुल कर हंसनेबोलने लगे हैं. मेरी समझ से यह अच्छा मौका है उन्हें जल्दी से ये बता देना चाहिए कि हम शादी करना चाहते हैं.’’

सरिता ने आंखों में खुशी भर कर कहा, ‘‘अभी तो तुम्हारे बेटेबहुओं के साथ मेरे दोस्ताना संबंधों की शुरुआत ही हुई है, मनोज. इस का फायदा उठा कर मैं पहले तुम्हारे घर आनाजाना शुरू करना चाहती हूं.’’

‘‘हम शादी करने की अपनी इच्छा उन्हें कब बताएंगे?’’

‘‘इस मामले में धैर्य रखना सीखो, मेरे अच्छे दोस्त,’’ उस ने पास आ कर मेरा हाथ प्यार से पकड़ लिया, ‘‘कल तक वे सब मुझे नापसंद करते थे, पर आज मेरे साथ ढंग से बोल रहे हैं. कल को हमारे संबंध और सुधरे तो शायद वे स्वयं ही हम दोनों पर शादी करने को दबाव डालेंगे.’’

‘‘क्या ऐसा कभी होगा भी?’’ मेरी आवाज में अविश्वास के भाव साफ झलक रहे थे.

‘‘जो होना होता है सही समय आ जाने पर वह घट कर रहता है,’’ उस ने मेरा हाथ होंठों तक ला कर चूम लिया था.

‘‘पर मेरा दिल…’’ मैं बोलतेबोलते झटके से चुप हो गया.

‘‘हांहां, अपने दिल की बात बेहिचक बोलो.’’

‘‘मेरा दिल तुम्हें जीभर कर प्यार करने को करता है,’’ अपने दिल की बात बता कर मैं खुद ही शरमा गया था.

पहले खिलखिला कर वह हंसी और फिर शरमाती हुई बोली, ‘‘मेरे रोमियो, अपनी शादी के मामले में हम बच्चों को साथ ले कर चलेंगे. जल्दबाजी में हमें ऐसा कुछ नहीं करना है जिस से उन का दिल दुखे. मेरी समझ से चलोगे तो ज्यादा देर नहीं है जब वे चारों ही मुझे अपनी नई मां का दर्जा देने को खुशीखुशी तैयार हो जाएंगे.’’

‘‘तुम सचमुच बहुत समझदार हो, सरिता,’’ मैं ने दिल से उस की तारीफ की.

‘‘थैंक यू,’’ उस ने आगे झुक कर मेरे होंठों को पहली बार प्यार से चूमा तो मेरे रोमरोम में खुशी की लहर दौड़ गई थी…

सही समय की शुरुआत हो चुकी थी.

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नया अध्याय: क्या धोखेबाज पति को भूल पाई प्राची?

Serial Story: नया अध्याय (भाग-1)

लेखिका- सुधा थपलियाल

एयरोप्लेन से बाहर आते ही बेंगलुरु की ठंडी हवा ने जैसे ही प्राची के शरीर का स्पर्श किया, एक सिहरन सी उस के बदन में दौड़ गई. पीहू को ठंडी हवाओं से बचाने के लिए उसे अपने पास खींच लिया.

“मम्मी, मौसी आएंगी न, हमें पिकअप करने?” उत्सुकता से 7 साल की पीहू ने पूछा.

“नहीं, हम औफिस के गैस्टहाउस जाएंगे.” यह सुनते ही पीहू का चेहरा लटक गया.

प्राची ने पीहू को एक बैग पकड़ाया और ट्रौली लेने चली गई. दोनों मांबेटी घूमती पेटी पर अपने सामान का इंतजार करने लगीं. प्राची का बहुत बार आना होता रहा है बेंगलुरु में, कभी औफिस के काम से, तो कभी दीदी के पास. लेकिन आज वह एक अजीब एहसास से भरी हुई थी. अपना लैपटौप ट्राली में रख प्राची ने पेटी से सामान उठा कर रखा. एयरपोर्ट से बाहर औफिस की कार प्राची का इंतजार कर रही थी. थोड़ी देर में दोनों गैस्टहाउस पहुंच गए. प्राची ने अपने लिए कौफी और पीहू के लिए जूस, सैंडविच और्डर किया कमरे में ही. कौफी पीतेपीते प्राची ने एक नजर पीहू पर डाली. वह चुपचाप सैंडविच खा रही थी और जूस पी रही थी. तभी फोन की घंटी बजी, देखा, दीदी का फोन था.

“कहां है तू, तेरे जीजाजी तुझे लेने एयरपोर्ट गए थे. तेरा मोबाइल औफ आ रहा था,” प्राची की दीदी चिंतित स्वर में कह रही थी.

“दीदी, कहीं जाने का मन नहीं था,” धीमे स्वर में प्राची बोली.

“मैं और तेरे जीजाजी आ रहे हैं तुझे लेने.”

“प्लीज, आज नहीं. मैं कल आऊंगी,” यह कह प्राची ने फोन बंद कर दिया.

नहाने के बाद प्राची थोड़ी ताजगी महसूस कर रही थी. पीहू टीवी देखने लगी और प्राची लैपटौप खोल कर ईमेल चैक करने लगी. बहुत सारी बातें थी, जिन के विषय में नए सिरे से सोचना था. जिंदगी एक नए सिरे से शुरू करनी थी. पता नहीं क्यों बहुत सारी चुनौतियों के बाद भी प्राची कहीं न कहीं एक हलकापन महसूस कर रही थी. कभी सोचा न था कि जिंदगी इस तरह भी करवट बदलेगी. ‘ब्रेन विद ब्यूटी’ का टैग हमेशा उस के साथ चिपका रहा. आज यह टैग उसे खोखला सा प्रतीत हो रहा था. छोटी सी उम्र में कितनाकुछ उस ने हासिल किया. एक अच्छे कालेज से इंजीनियरिंग की डिग्री. एमबीए कालेज की टौपर. एक मल्टीनैशनल कंपनी में उच्च पद पर आसीन. पर क्या ये सब एक सुखी जीवन की गारंटी दे सकते हैं?

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लैपटौप पर चलती उंगलियों को रोक कर देखा, पीहू टीवी देखतेदेखते सोफे पर ही सो गई थी. उस का मन ममत्व के साथ एक दया से भी भर आया. लैपटौप बंद कर, हलकीफुलकी पीहू को उठा कर बिस्तर पर ले आई. उस का सिर अपनी गोदी में रख कर उस के बालों को सहलाने लगी.

क्या दोष था इस बच्चे का? कितने भी अपने दिल और दिमाग के दरवाजे बंद करो, वे बातें पीछा छोड़ती ही नहीं हैं. दबेपांव चली आती हैं जख्मों को कुरेदने के लिए.

‘प्राची, पीहू, दरवाजा खोलो,’ मनीष रात के 9 बजे दरवाजा जोरजोर से पीट रहा था.

‘मम्मी, खोला न, देखो, पापा आए हैं,’ पापा से मिलने को बेताब, 3 साल की पीहू मम्मी की बांहों में कसमताते हुए कह रही थी.

प्राची कठोर बनी, पीहू को बांहों में भींच कर, बैडरूम से मनीष को दरवाजा पीटते सुनती रही.

‘देख लूंगा,’ बगल के फ्लैट से जब किसी ने टोका, तो मनीष धमकाते हुए चला गया.

‘कल मनीष फिर आया था रात को, काफी ज्यादा पिए हुए लग रहा था,’ लंच के समय प्राची ने अपनी सहकर्ता सहेली स्नेहा से कहा.

‘फिर से, उस की हिम्मत कैसे हुई?’ दांत भींचती हुई स्नेहा बोली, ‘पुलिस को क्यों नहीं बुलाया?’

‘मुझे बारबार तमाशा नहीं करना.’

‘तमाशा तो उस ने बना दिया तुम्हारी जिंदगी का,’ गुस्से से स्नेहा बोली.

‘समझ में नहीं आ रहा क्या करूं,’ परेशान सी प्राची सिर पकड़ते हुए बोली.

बहुत देर तक प्राची सिर पकड़ कर बैठी रही. पहले तो स्नेहा उसे चुपचाप देखती रही, फिर अपनी जगह से उठी और एक मूक आश्वासन देती उस की पीठ सहलाने लगी. 3 भाईबहनों में प्राची सब से छोटी थी. शुरू से ही मेधावी रही प्राची पर सभी को फ़ख्र था. उस की उपलब्धियां पूरे परिवार को गौरवांवित कर रही थीं. बड़ी बहन का विवाह भी अच्छी जगह हो गया था. पढ़ाई में साधारण भाई ने बहुत हाथपांव मारे. कहीं ढंग की नौकरी ना मिलने पर, पिता ने उसे एक व्यवसाय में लगा दिया. उसे भी वह ठीक से चला नहीं पा रहा था.

जब बालरोग विशेषज्ञ डाक्टर मनीष का रिश्ता प्राची के लिए आया तो मातापिता की खुशी का ठिकाना न रहा. आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी मनीष से प्राची प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाई. विवाह के बाद दोनों हैदराबाद आ गए. अपनीअपनी नौकरी में व्यस्त होने के बावजूद दोनों बहुत खुश थे. 2 साल बाद पीहू के आने से जीवन और गुलजार हो गया था. बस, प्राची को यह ही दुख रहता कि पापा एक बार भी उस के घर आए बिना दुनिया से चले गए.

प्राची की व्यस्तता नौकरी में तरक्की होने के साथसाथ बढ़ती जा रही थी. कई बार दूसरे शहर ही नहीं, विदेश भी जाना पड़ता था. पीहू भी नैनी अनिता के भरोसे ही पल रही थी. कई बार पीहू को देख कर उस का मन करता नौकरी छोड़ दे. लेकिन घर और गाड़ी के लोन उस को नौकरी छोड़ने नहीं दे रहे थे. और फिर मनीष का अपना नर्सिंग होम खोलने का सपना. मां भाई के परिवार के साथ उलझी हुई रहती थी. सासससुरजी भी अपनीअपनी नौकरियों में व्यस्त होने के कारण नहीं आ पाते थे.

उस दिन रात के एक बजने वाले थे, मनीष घर नहीं पहुंचा. फोन भी नहीं उठा रहा था जबकि रिंग जा रही थी. चिंतित, परेशान प्राची इधर से उधर चक्कर लगा रही थी. रात के 2 बजे मनीष की गाड़ी की आवाज सुन प्राची ने दरवाजा खोलते ही कहा, ‘कहां थे?’

‘एक इमरजैंसी केस आ गया था,’ कह कर मनीष बाथरूम चला गया.

फिर तो इमरजैंसी केस का सिलसिला खत्म ही नहीं हुआ. प्राची को बहुत बार शक भी हुआ. लेकिन उस की स्वयं की व्यस्तता, और मनीष पर अथाह विश्वास ने, उस के विचारों को झटक दिया. आखिर, एक दिन प्राची ने निर्णय लिया कि वह देखने जाएगी कि कौन से इमरजैंसी केस आते हैं हर दूसरे दिन. उस रात प्राची ने अनिता को घर पर रोक लिया और चली गई मनीष को देखने नर्सिंग होम रात के 11 बजे. मनीष का चैंबर बंद था.

रिसैप्शन पर बैठी लड़की से मनीष के विषय में पूछा, तो वह हकलाते हुए बोली, ‘मैम, डाक्टर साहब 7 बजे चले गए थे.’

‘7 बजे, तुम्हारी डूयटी कब से लगी रात की?’ प्राची का मन शंका से भर गया.

‘मैडम, 3 हफ्ते हो गए. डाक्टर साहब शायद…’ बोलतेबोलते वह रुक गई.

‘बोलो,’ धड़कनों को काबू करते हुए प्राची बोली.

‘मैम, प्लीज, मेरा नाम मत लीजिएगा. उन का न, रीना नर्स से चक्कर चल रहा है,’ धीरे से रिसैप्शनिस्ट ने कहा.

‘क्या?’ प्राची कुछ पलों के लिए स्तब्ध रह गई. सारी जगह उसे घूमती सी प्रतीत हुई, फिर संभलती हुई बोली, ‘क्या तुम मुझे उस का पता दे सकती हो?’

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‘मैम,’ घबराती हुई वह बोली.

‘तुम चिंता मत करो. मैं तुम्हारा नाम नहीं लूंगी,’ प्राची के आश्वासन पर उस ने एक पेपर पर रीना का पता लिख कर दे दिया.

रात के 12 बजे अकेले कैब में दिमाग में चल रहे तूफान के साथ, वह कब रीना के घर के पास पहुंच गई, पता ही न चला. मनीष की कार सुबूत के तौर पर वहां खड़ी थी. विक्षिप्त सी वह तब तक घंटी बजाती रही, जब तक कि दरवाजा न खुल गया.

एक बड़ी उम्र की महिला ने दरवाजा खोला, ‘आप,’ आंखें मलती हुई वह महिला बोली.

‘मैं, उस आदमी की पत्नी हूं जो इस समय तुम्हारे घर में मौजूद है,’ तमतमाती हुई प्राची बोली.

‘यहां तो कोई नहीं है,’ वह औरत ढीठता से बोली.

‘यह बैग किस का है?’ सोफे पर मनीष के बैग की ओर इशारा करती प्राची ने तल्खी से पूछा.

‘मुझे नहीं पता,’ वह औरत अभी भी अपनी ढीठता पर कायम थी.

‘झूठ बोलती हो?’ प्राची चिल्लाती हुई बोली.

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Serial Story: नया अध्याय (भाग-3)

लेखिका- सुधा थपलियाल

औफिस वालों का बहुत सहयोग प्राची को मिल रहा था. शहर से बाहर की मीटिंग में प्राची को वे नहीं भेजते. घर, औफिस और पीहू को अकेले संभालना आसान नहीं था. प्राची शारीरिक रूप से कम मानसिक रूप से ज्यादा थक गई थी. सचाई यह थी कि वह पीहू के साथ नितांत अकेली थी. ऐसा नहीं कि उस को मनीष की कमी नहीं खलती थी. कई बार एक अजीब सा अकेलापन उस को डसने लग जाता. रात को जरा सी आहट से डर और घबराहट से आंख खुल जाती थी. थकाहारा शरीर पुरूष के स्नेहसिक्त स्पर्श और मजबूत बांहों के लिए तरस रहा था जिस के सुरक्षित घेरे में वह एक निश्चिंतताभरी नींद सो सके.

‘मम्मी, मेरे बर्थडे पर पापा आएंगे न?’ प्राची को गैस्ट की लिस्ट बनाते देख पीहू ने उत्सुकता से पूछा.

‘नहीं.’

‘क्यों?’ मायूस सी पीहू ने कहा.

‘मर गए तेरे पापा,’ प्राची के अंदर दबा आक्रोश उमड़ पड़ा.

लेकिन, अब यह मनीष का नशे में धुत, उस के घर का दरवाजा पीटना…पीहू की पापा से मिलने की बेताबी, प्राची की परेशानियों को और बढ़ा रहा था. एक दिन औफिस में व्यस्त प्राची को समय का पता ही नहीं चला. फोन की घंटी बजी, देखा अनिता का फोन था, “क्या बात है अनिता?” लैपटौप पर उंगलियां चलाती हुई प्राची बोली.

‘मैडम, बेबी की तबीयत ठीक नहीं लग रही,’ चिंतित सा अनिता का स्वर गूंजा.

‘क्या हुआ?’ घबराई सी प्राची बोली.

‘शाम तक तो ठीक थी, लेकिन अब…आप जल्दी आ जाओ,’ कह अनिता ने फोन रख दिया.

बदहवास सी प्राची कार चलाती हुई घर पहुंची. देखा, पीहू अचेत सी बिस्तर पर पड़ी हुई थी.

‘पीहू, पीहू.’

‘यह सब कैसे हुआ?’ घबराई सी प्राची ने अनिता से पूछा.

‘पता नहीं मैडम. दिन तक तो ठीक थी,’ फिर अचानक कुछ याद करते हुए बोली, ‘हां, बेबी के स्कूल से फोन आया था कि बेबी गिर गई थी और थोड़े समय के लिए बेहोश हो गई थी. स्कूल वाले आप को भी फोन लगा रहे थे. आप का फोन बंद आ रहा था. लेकिन बेबी जब घर आई तो बिलकुल ठीक थी. खाना भी ठीक से खाया था. लेकिन शाम को दूध पीते ही उलटी कर दी और बेहोश हो गई.’

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‘क्या?’ मीटिंग में होने के कारण, मोबाइल को साइलैंट मोड में रखने के अपराधबोध से प्राची भर गई.

उस समय जिस एक व्यक्ति का ध्यान आया प्राची को वह कोई और नहीं, मनीष था, पीहू का पिता. बेटी की ममता उस के प्रतिशोध पर भारी पड़ गई.

‘मनीष, मनीष…पीहू को…मैं आ रही हूं नर्सिंग होम,’ घबराहट में शब्द भी प्राची के गले में अटक गए.

‘क्या हुआ पीहू को?’ बेचैनी से मनीष ने पूछा, लेकिन तब तक प्राची फोन रख चुकी थी.

कैसे वह कार चला पाई, उसे स्वयं ही पता न था. बारबार पीहू को आवाज दे रही थी. पीहू अचेत सी अनिता की गोदी में पड़ी हुई थी. कार पार्किंग में खड़ी कर पीहू को गोदी में उठा बदहवास सी भागी जा रही थी. अचानक एक हाथ उस के कंधे पर किसी ने रखा. प्राची ने मुड़ कर देखा, मनीष सामने खड़ा था. उस की गोदी में पीहू को देती रोती हुई प्राची बोली, ‘मनीष, बचा लो मेरी बेटी को.’

मनीष ने आश्वासनभरा हाथ प्राची के कंधे पर रखा और चिंतित सा पीहू को तुरंत इमरजैंसी में ले गया. एकदम से उपचार शुरू हो गया. दूसरे डाक्टरों से भी सलाह ली जा रही थी. ड्रिप द्वारा दवाई पीहू के शरीर में जाने लगी. प्राची के आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे. एकएक पल भारी लग रहा था.

2 घंटे बाद जैसे ही पीहू ने हलकी बेहोशी में ‘मम्मा’ बोला, प्राची पागलों की तरह उस को चूमने लगी.

मनीष ने रोका क्योंकि ड्रिप अभी लगी हुई थी.

पापा मनीष को देख कर पीहू की निस्तेज आंखों में चमक सी आ गई. ‘पापा’ बोल कर पीहू फिर से अचेत हो गई.

पीहू के सिर पर प्यार से हाथ फेरतेफेरते मनीष की आंखें नम हो आईं.

‘चिंता मत करो. दवाइयों का असर है,’ प्राची को तसल्ली देते मनीष बोला. कमरे से बाहर निकलते मनीष ने कहा, ‘चूंकि यह गिरी है, इसलिए सारे टेस्ट होंगे. एकदो दिन पीहू को नर्सिंग होम में हमारी निगरानी में रहना होगा. मैं सारी औपचारिकता पूरी कर के आता हूं.’

प्राची को एक राहत सी मिली जब सारे टेस्ट में कुछ नहीं निकला. 2 दिनों बाद पीहू के डिस्चार्ज होने के बाद मनीष स्वयं छोड़ने आया. मनीष जब जाने लगा तो पीहू ने पापा को कस कर पकड़ लिया. बहुत समय के बाद उस को पापा का साथ मिला था. वह अपने पापा को बिलकुल नहीं छोड़ रही थी. मनीष ने एक बार प्राची की ओर देखा.

‘प्लीज, रुक जाओ,’ उस ने पीहू के लिए कहा या स्वयं के लिए, प्राची को खुद ही पता न था.

पहले की तरह पीहू उन दोनों के बीच में इतमीनान से सो गई. अंतर सिर्फ यह था कि पहले जहां पीहू मम्मी का हाथ पकड़ कर सोती थी, आज पापा का हाथ कस के पकड़ कर सो रही थी. पीहू के सोने बाद जैसे ही मनीष के हाथ प्राची की ओर बढ़े, प्राची की सांसों का स्पंदन तेज हो गया. उन पलों में वह मनीष द्वारा दिए गए सारे घावों को भूल, अपने ऊपर से नियंत्रण खो, एक प्यासी नदी के समान मनीष की आगोश में समा गई. इतने दिनों बाद एक पुरूष का स्पर्श उस के तनमन को भिगो रहा था और वह उस में डूबती जा रही थी.

फिर तो यह सिलसिला चल पड़ा. अपने जीवन में आए अकेलेपन से त्रस्त प्राची यह भी भूल गई कि अब वह मनीष की पत्नी नहीं है.

‘यह मैं क्या सुन रही हूं?’ एक दिन नाराजगी से स्नेहा बोली.

‘थक गई हूं मैं अकेले सब देखतेदेखते,’ बेबसी से प्राची बोली.

‘क्या यह ठीक है?’ स्नेहा की नाराजगी शब्दों में झलक ही आई.

‘पीहू की चमक लौट आई है. मैं, उस को पिता के प्यार से वंचित नहीं कर सकती.’

‘कहां गया तुम्हारा स्वाभिमान? तुम एक सशक्त महिला हो. मनीष ने तुम्हारे साथ सिर्फ बेवफाई ही नहीं की, उस ने तलाक लेने के लिए पलभर भी कुछ नहीं सोचा.’

‘अकेलापन जीवन की सब से बड़ी त्रासदी है. यह सारी नैतिकता, सिद्धांतों, अभिमान, स्वाभिमान सब को तोड़ कर रख देता है,’ कौफी के कप को एकटक देखती हुई, भरे हुए स्वर में प्राची बोली.

‘इस का परिणाम सही नहीं होगा,’ चेतावनी देती स्नेहा उठ खड़ी हुई.

फिर वही हुआ. एक रात रीना ने आ कर तमाशा कर दिया.

‘आप? यहां क्या कर रहे हो इतनी रात में?’ मनीष पर चिल्लाती हुई रीना बोली.

‘मैं…’ मनीष घिघियाया सा बोला.

‘शर्म नहीं आती तुम्हें, दूसरे के पति के साथ रात बिताती हो,’ गुर्राती हुई रीना अब प्राची से बोली.

‘तुम दोनों ने मेरे साथ धोखा किया. ये मेरे पति थे,’ प्राची अपने दिल की भड़ास को निकालती हुई बोली.

‘थे… अब ये मेरे पति हैं, यह मत भूलना,’ फिर मनीष को आदेश देती हुई रीना बोली, ‘चलो, आप को तो मैं घर में देख लूंगी.’

कुछ दिनों बाद मनीष फिर आ जाता, प्राची फिर उस के सामने कमजोर पड़ जाती. फिर रीना का धमकीभरा फोन आता. 7 साल की पीहू भी अब कुछकुछ समझने लगी थी. एक अजीब चक्रव्यूह में प्राची ने अपने को फंसा लिया था. औफिस के लोग और परिजन भी अब प्राची से नाराज रहने लगे. स्नेहा तो सिर्फ काम की बात करती.

अब तो मनीष खुल कर, बेशर्म हो, दबंगता से दोनों को बेबकूफ बना रहा था. उस ने प्राची की कमजोरी पकड़ ली थी.

‘मनीष, क्या तुम उसे छोड़ नहीं सकते?’ बैड पर मनीष की बांहों में समाई प्राची पूछ बैठी.

‘कैसी बात करती हो? वह मेरी पत्नी है और मेरे बेटे की मां,’ मनीष ने प्राची को अपनी बांहों के घेरे में कसते हुए कहा.

‘और मैं?’ मनीष की बांहों की गिरफ्त से निकल, प्राची ने तिलमिलाते हुए कहा.

‘तुम मेरी पत्नी थीं,’ मनीष बोला.

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मनीष की बातों ने प्राची का कलेजा चीर कर रख दिया. वह हतप्रभ सी उस को देखती रह गई. उस रात को दोनों के बीच जो झगड़ा हुआ, उसे देख कर पीहू सहम गई. मम्मी को विक्षिप्तों की भांति रोते, चिल्लाते, चीजों को पटकते देख पीहू बोली, ‘जाओ पापा यहां से.’

मनीष के जाते ही प्राची बेचैनी से कमरे में इधर से उधर चलने लगी. आखिर रहा नहीं गया और स्नेहा को फोन लगा दिया.

‘हैलो,’ नींद में स्नेहा बोली. फिर प्राची का रोता स्वर सुन कर स्नेहा चौंक कर एकदम से पलंग पर बैठ गई. प्राची रोती हुई कह रही थी, ‘तुम ठीक कहती हो स्नेहा, मेरी जिंदगी एक तमाशा बन कर रह गई है.’

पूरी बातें सुनने के बाद स्नेहा बोली, ‘प्राची, नया अध्याय तभी खुलता है जब हम पिछला अध्याय बंद करते हैं.’

‘क्या मतलब?’ सुबकती हुई प्राची बोली.

‘मनीष तुम्हारे जीवन का एक बुरा अध्याय है, तुम ने उसे अभी तक बंद ही नहीं किया. बंद करो उसे.’

सुबह कमरे की लगातार बजती घंटी से प्राची की नींद टूट गई. दरवाजा खोला तो देखा, दीदी, जीजाजी, रिया और राहुल सामने खड़े थे. प्राची कस कर दीदी के गले लग गई. पीहू भी खुशी से उछल गई रिया और राहुल को देख कर. तीनों बच्चे धमाचौकड़ी मचाने लगे.

“अपना सामान उठाओ और चलो,” दीदी ने सामान को समेटते हुए कहा.

“बहुत अच्छा किया तुम ने जो अपना ट्रांसफर हैदराबाद से यहां बेंगलुरु करवा लिया,” जीजाजी ने गंभीरता से कहा.

प्राची ने कुछ नहीं कहा, बस, हलके से मुसकरा दी. कानूनी रूप से अलग हुए रिश्ते को अब दिल, दिमाग, शरीर से अलग कर एक सुकून सा महसूस कर रही थी वह.

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