‘‘अरे, यह क्या हो रहा है तुम्हें? पसीना पोंछ लो, आराम से बैठो, फिर बताती हूं.‘‘
रजत के दिल का हाल उस के चेहरे पर झलकने लगा. अपने दिल को बमुश्किल थामे वह श्वेता के मन की बात सुनने बैठ गया. पर फिर जो श्वेता ने बताया, उसे सुन कर रजत का दिल छन्न से बिखर कर रह गया था.
‘‘मेरा एक बौयफ्रैंड है, जो जयपुर में रहता है. हम दोनों औरकुट के जरीए मिले और हमें प्यार हो गया. मुझे नहीं पता कैसे. हम आज तक एकदूसरे से मिले भी नहीं हैं. पर मेरा दिल जानता है कि मैं उस के बिना नहीं जी सकती…‘‘ आगे न जाने क्याक्या कहती गई श्वेता, लेकिन रजत के कानों ने सुनना बंद कर दिया था.
रजत का चेहरा मलिन हो उठा, मानो चेहरे पर दोपहरी की साएंसाएं में लिपटा सूनापन और वीराना छा गया हो. वह भीतर ही भीतर सुलगने लगा. मगर शायद प्यार आप को बेहतरीन अभिनय करना भी सिखा देता है.
श्वेता की बात पर पूरा ध्यान देते हुए, चेहरे पर मुसकान लिए कोई नहीं बता सकता था कि अंदर ही अंदर रजत कितना टूट रहा था. लेकिन प्यार में पड़े किसी मूर्ख की तरह ऊपर से यही बोलता रहा, ‘‘तुम्हें मुझ से जो मदद चाहिए, मैं करूंगा. आखिर तुम्हारी खुशी में ही मेरी खुशी है. हम दोस्त जो हैं.‘‘
लेकिन रजत का दिल घायल हो चुका था. कालेज पूरा होतेहोते रजत ने श्वेता से काफी दूरी बना ली. करता भी क्या, उस का दिल हर बार उसे देख मचल उठता. हर बार मचलते दिल को संभालना कोई हंसीखेल नहीं. कालेज के बाद दोनों भिन्न शहरों में आगे की शिक्षा प्राप्त करने चले गए.
अलगअलग शहरों में दोनों की डिजिटल दोस्ती कायम रही. श्वेता के जयपुर वाले अफेयर को बचपन की भटकन की संज्ञा दे, रजत ने एक बार फिर प्रयास करने का निर्णय किया. परंतु इस बार वह खुद को ‘फ्रैंडजोन‘ होने से बचाना चाहता था, सो इस बार उस ने सोशल मीडिया के अपने अकाउंट पर श्वेता के साथ फ्लर्टिंग से शुरुआत की.
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ऐसा देख उस के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा, जब दूसरी ओर बैठी श्वेता ने उस की बातों का बुरा नहीं माना, बल्कि कभीकभी उसे यों लगता जैसे श्वेता भी ऐसा ही चाहती है. वह भी हंसीमजाक से उस की फ्लर्टिंग का जवाब देती.
रजत अब अपने और श्वेता के रिश्ते को अगले कदम तक पहुंचाना चाहता था, किंतु श्वेता अकसर उसे ‘दोस्त‘ या ‘बडी‘ कह कर पुकारा करती. फिर भी श्वेता के दिल में क्या है, इस को ले कर रजत अकसर उलझन में रहता, क्योंकि उस ने क्या खाया, कब खाया, कितना सोया, पढ़ाई कर ली या नहीं आदि प्रश्नों से श्वेता उसे बमबार्ड करती रहती. इस का निष्कर्ष उस का मन यही लगाता कि श्वेता भी उस की ओर आकर्षित है. शायद यह प्यार एकतरफा नहीं.
रजत इस रिश्ते को आगे बढ़ाने के ख्वाब सजा ही रहा था कि एक दिन श्वेता ने उसे बताया कि उस की शादी होने वाली है. उस ने बताया कि उस के परिवार वालों ने उस के लिए एक लड़का देखा है और अगले साए में उस की शादी कर दी जाएगी.
एक बार फिर रजत का दिल टूटा था, वह भी उसी लड़की के हाथों. इस बार रजत खुद को संभालने में स्वयं को विफल पाने लगा. उस ने ठान लिया था कि अब वह श्वेता से कोई सरोकार नहीं रखेगा.
अगर श्वेता उस की हो गई होती, तो उस की राह में वह असंभव को भी संभव बना देता. उस को दुनिया की हर खुशी देता, चाहे इस के लिए उसे पूरे संसार से लोहा लेना पड़े. प्यार ने उसे एक लड़के से एक पुरुष में तबदील कर दिया था.
एक पुरुष के लिए उस का पहला प्यार अविस्मरणीय, अतुलनीय होता है. एक प्रेमी अपनी महबूबा को वह स्थान देता है, जो उस ने आज तक किसी को नहीं दिया, शायद अपने परिवार और अपने दोस्तों से भी ऊपर. उस के लिए प्यार स्वार्थरहित व शर्तरहित होता है.
उसे आज भी याद है, स्कूल में उस के दोस्तों ने उसे समझाया था, ‘‘अरे यार, किसी पर इतना भी फिदा ना हो जा कि उस के परे दुनिया ही ना रहे. संसार में कुछ भी स्थायी नहीं. चेंज इज द ओनली कौंस्टेंट. जब तक वह तुम्हारे पास है उसे प्यार करो, लेकिन जब वह बिछुड़ जाए तो उसे जाने दो.‘‘
हमारे समाज की एक विडंबना यह भी है कि मर्द को दर्द नहीं होता. बेचारा अंदर से कितना भी टूट रहा हो, ऊपर से उसे अपनी मैचोमैन इमेज बना कर रखनी ही पड़ती है. स्वयं को मजबूत और भावनाहीन दिखाना मर्द होने की निशानी बन जाता है.
इसी चक्रव्यूह में फंस कर रजत भी ऊपर से शांत बना रहा. यह तो उस का दिल ही जानता है कि आज भी उस के एटीएम का पिन नंबर श्वेता के जन्म की तारीख है, क्योंकि आज भी वह श्वेता से ही प्यार करता है. जहां भी जाता है लगता है श्वेता उस के साथ है. जबकि एक बार ठान लेने के बाद उस ने कभी श्वेता को ढूंढ़ने की कोशिश नहीं की. वह तो बस अपनी यादों में उस के साए के साथ ही खुश रहा.
शादी भी उस ने परिवार की रजामंदी से कर ली और निरंजना को भी पूरी ईमानदारी से चाहने लगा. श्वेता के प्यार का साया, जो उस के दिल में आज भी लहराता है, वो कभी भी निरंजना के प्रति किसी दुराव का कारण नहीं बना. इस के पीछे का कारण शायद यह है कि कुछ घटनाएं हमारे जीवन को प्रमुख हिस्सों में बांट देती हैं. फिर उन से बाहर निकलना बेहद मुश्किल हो जाता है.
उस की शादी को पांच साल बीत चुके हैं और श्वेता से दूर हुए लगभग सात साल. लेकिन फिर भी उसे ऐसा लगता है, जैसे कल ही की बात हो. श्वेता की झलक, उस की हंसी, उस का आंखें सिकोड़ना, उस के अपने मन में श्वेता के प्रति पुलकित होती भावनाएं… सबकुछ कल की ही बात लगती है.
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तभी तो आज श्वेता का नाम अपनी नजरों के सामने आने पर उस के मन की आर्द्र पुकार कहने लगी कि यही है, जिस का बायोडाटा उस को चयनित करना है.
अगले कुछ दिनों तक रजत एचआर डिपार्टमैंट के पीछे लगा रहा कि क्यों नहीं वो चयनित प्रत्याशियों का साक्षात्कार करवा रहे. उस की जिद थी कि सारे काम छोड़ कर पहले उस के सचिव पद की नियुक्ति की जाए.
आगे पढें- आजकल घर में भी रजत पहले से अधिक….