अब मैं समझ गई हूं: क्या रिमू के परिवार को समझा पाया अमन

family story in hindi

उम्मीदें: तसलीमा का क्या था फैसला

भारत से पाकिस्तान जाने वाली अंतिम समझौता एक्सप्रेस टे्रन जैसे ही प्लेटफार्म पर आ कर लगी, तसलीमा को लगा कि उस का दिल बैठता जा रहा है.

उस ने अपने दोनों हाथों से उन 3 औरतों को और भी कस कर पकड़ लिया जिन के जीने की एकमात्र उम्मीद तसलीमा थी और अब न चाहते हुए भी उन औरतों को इन के हाल पर छोड़ कर उसे जाना पड़ रहा था, दूर, बहुत दूर, सरहद के पार, अपनी ससुराल.

तसलीमा का शौहर अनवर हर 3 महीने बाद ढेर सारे रुपयों और सामान के साथ उसे पाकिस्तान से भारत भेज देता ताकि वह मायके में अपने बड़े होने का फर्ज निभा सके. बीमार अब्बू के इलाज के साथ ही अम्मी की गृहस्थी, दोनों बहनों की पढ़ाई, और भी जाने क्याक्या जिम्मेदारियां तसलीमा ने अपने पति के सहयोग से उठा रखी हैं पर अब इस परिवार का क्या होगा?

तसलीमा के दोनों भाई तारिक और तुगलक जब से एक आतंकवादी गिरोह के सदस्य बने हैं तब से अब्बू भी बीमार रहने लगे. उन का सारा कारोबार ही ठप पड़ गया. ऊपर से थाने के बारबार बुलावे ने तो जैसे उन्हें तोड़ ही दिया. बुरे समय में रिश्तेदारों ने भी मुंह फेर लिया. अकेले अब्बू क्याक्या संभालें, एक दिन ऐसा आ गया कि घर में रोटी के लाले पड़ गए.

ऐसे में बड़ी बेटी होने के नाते तसलीमा को ही घर की बागडोर संभालनी थी. वह तो उसे अनवर जैसा शौहर मिला वरना कैसे कर पाती वह अपने मायके के लिए इतना कुछ.

तसलीमा सोचने लगी कि अब जो वह गई तो जाने फिर कब आना हो पाए. कई दिनों की दौड़धूप के बाद तो किसी तरह उस के अब्बू सरहद पार जाने वाली इस आखिरी ट्रेन में उस के लिए एक टिकट जुटा पाए थे.

कमसिन कपोलों पर चिंता की रेखाएं लिए तसलीमा दाएं हाथ से अम्मी को सहला रही थी और उस का बायां हाथ अपनी दोनों छोटी बहनों पर था.

तसलीमा ने छिपी नजरों से अब्बू को देखा जो बारबार अपनी आंखें पोंछ रहे थे और साथ ही नन्हे असलम को गोद में खिला रहे थे. उन्हें देख कर उस के मन में एक हूक सी उठी. बेचारे अब्बू की अभी उम्र ही क्या है. समय की मार ने तो जैसे उन्हें समय से पहले ही बूढ़ा बना दिया है.

नन्हे असलम के साथ बिलकुल बच्चा बन जाते हैं. तभी तो वह जब भी अपने नाना के घर हिंदुस्तान आता है, उन से ही चिपका रहता है.

लगता है, जैसे नाती को गले लगा कर वह अपने 2-2 जवान बेटों का गम भूलने की कोशिश करते हैं पर हाय रे औलाद का गम, आज तक कोई भूला है जो वह भूल पाते?

तसलीमा ने अपने ही मन से पूछा, ‘क्या खुद वह भूल पाई है अपने दो जवान भाइयों को खोने का गम?’

ससुराल में इतनी खुशहाली और मोहब्बत के बीच भी कभीकभी उस का दिल अपने दोनों छोटे भाइयों के लिए क्या रो नहीं पड़ता? अनवर की मजबूत बांहों में समा कर भी क्या उस की आंखें अपने भाइयों के लिए भीग नहीं जातीं? अगर वह अपने भाइयों को भूल सकी होती तो अनवर के छोटे भाइयों में तारिक और तुगलक को ढूंढ़ती ही क्यों?

‘‘दीदी, देखो, अम्मी को क्या हो गया?’’

तबस्सुम की चीख से तसलीमा चौंक उठी.

खयालों में खोई तसलीमा को पता ही नहीं चला कि कब उस की अम्मी उस की बांहों से फिसल कर वहीं पर लुढ़क गईं.

‘‘यह क्या हो गया, जीजी. अम्मी का दिल तो इतना कमजोर नहीं है,’’ सब से छोटी तरन्नुम अम्मी को सहारा देने के बजाय खुद जोर से सिसकते हुए बोली.

अब तक तसलीमा के अब्बू भी असलम को गोद में लिए ही ‘क्या हुआ, क्या हुआ’ कहते हुए उन के पास आ गए.

तसलीमा ने देखा कि तीनों की जिज्ञासा भरी नजरें उसी पर टिकी हैं जैसे इन लोगों के सभी सवालों का जवाब, सारी मुश्किलों का हल उसी के पास है. उस के मन में आ रहा था कि वह  खूब चिल्लाचिल्ला कर रोए ताकि उस की आवाज दूर तक पहुंचे… बहुत दूर, नेताओं के कानों तक.

पर तसलीमा जानती है कि वह ऐसा नहीं कर सकती क्योंकि अगर वह जरा सा भी रोई तो उस के अब्बू का परिवार जो पहले से ही टूटा हुआ है और टूट जाएगा. आखिर वही तो है इन सब के उम्मीद की धुरी. अब जबकि कुछ ही मिनटों में वह इन्हें छोड़ कर दूसरे मुल्क के लिए रवाना होने वाली है, उन्हें किसी भी तरह की तकलीफ नहीं देना चाहती थी.

समझौता एक्सप्रेस जब भी प्लेटफार्म छोड़ती है, दूसरी ट्रेन की अपेक्षा लोगों को कुछ ज्यादा ही रुला जाती है. यही इस गाड़ी की विशेषता है. आखिर सरहद पार जाने वाले अपनों का गम कुछ ज्यादा ही होता है, पर आज तो यहां मातम जैसा माहौल है.

कहीं कोई सिसकियों में अपने गम का इजहार कर रहा है तो कोई दिल के दर्द को मुसकान में छिपा कर सामने वाले को दिलासा दे रहा है. आज यहां कोसने वालों की भी कमी नहीं दिखती. कोई नेताओं को कोस रहा है तो कोई आतंकवादियों को, जो सारी फसाद की जड़ हैं.

तसलीमा किसे कोसे? उसे तो किसी को कोसने की आदत ही नहीं है. सहसा उसे लगा कि काश, वह औरत के बजाय पुरुष होती तो अपने परिवार को इस तरह मझधार में छोड़ कर तो न जाती.

मन जितना अशांत हो रहा था स्वर को उतना ही शांत बनाते हुए तसलीमा बोली, ‘‘अम्मी को कुछ नहीं हुआ है, वह अभी ठीक हो जाएंगी. तरन्नुम, रोना बंद कर और जा कर अम्मी के लिए जरा ठंडा पानी ले आ और अब्बू, आप मेरा टिकट कैंसल करवा दो. मैं आप लोगों को इस हालात में छोड़ कर पाकिस्तान हरगिज नहीं जाऊंगी.’’

टिकट कैंसल करने की बात सुनते ही अम्मी को जैसे करंट छू गया हो, वह धीरे से बोलीं, ‘‘कुछ नहीं हुआ मुझे. बस, जरा चक्कर आ गया था. तू फिक्र न कर लीमो, अब मैं बिलकुल ठीक हूं.’’

इतने में तरन्नुम ठंडा पानी ले आई. एक घूंट गले से उतार कर अम्मी फिर बोलीं, ‘‘कलेजे पर पत्थर रख कर तेरा रिश्ता तय किया था मैं ने. लेदे कर एक ही तो सुख रह गया है जिंदगी में कि बेटी ससुराल में खुशहाल है, वह तो मत छीन. अरे, ओ लीमो के अब्बू, मेरी लीमो को ले जा कर गाड़ी में बैठा दीजिए. आ बेटा, तुझे सीने से लगा कर कलेजा ठंडा कर लूं,’’ इतना कह कर अम्मी अब्बू की गोद से नन्हे असलम को ले कर पागलों की तरह चूमने लगीं.

शायद नन्हे असलम को भी इतनी देर में विदाई की घंटी सुनाई पड़ने लगी. वह रोंआसा हो कर इन चुंबनों का अर्थ समझने की कोशिश करने लगा.

इतने में तीनों बहनें एकदूसरे से विदा लेने लगीं.

तबस्सुम धीरे से तसलीमा के कान में बोली, ‘‘दीदी, आप बिलकुल फिक्र न करो, आज से घर की सारी जिम्मेदारी मेरी है, मैं अम्मी और तरन्नुम को यहां संभाल लेती हूं, आप निश्ंिचत हो कर जाओ.’’

तसलीमा ने डबडबाई आंखों से तबस्सुम को देखा. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उस की चुलबुली बहन आज कितनी बड़ी हो गई है. सच, जिम्मेदारी उठाने के लिए उम्र नहीं, शायद परिस्थितियां ही जिम्मेदार होती हैं.

असलम को गोद में ले कर तसलीमा चुपचाप अब्बू और कुली के पीछे चल दी. वह जानती थी कि अब अगर आगे उस ने कुछ कहने की कोशिश की या पीछे मुड़ कर देखा तो बस, सारी कयामत यहीं बरपा हो जाएगी.

जब तक गाड़ी प्लेटफार्म पर खड़ी रही, अब्बू ने अपनेआप को सामान सजाने में व्यस्त रखा और तसलीमा ने अपने आंसुओं को रोकने में. पर गाड़ी की सीटी बजते ही उसे लगा कि अब बस, कयामत ही आ जाएगी.

जैसेजैसे अब्बू पीछे छूटने लगे, वह प्लेटफार्म भी पीछे छूटने लगा जहां की एक बेंच पर उस की अम्मी बहनों को साथ लिए बैठी हैं, वह शहर पीछे छूटने लगा जहां वह नाजों पली, वह वतन पीछे छूटने लगा जिसे तसलीमा परदेस जा कर और ज्यादा चाहने लगी थी.

तसलीमा को लगा कि गाड़ी की बढ़ती रफ्तार के साथ उस के आंसुओं की रफ्तार भी बढ़ रही है. अपने आंसुओं की बहती धारा में उसे ध्यान ही नहीं रहा कि कब नन्हा असलम सुबकने लगा. भला अपनी मां को इस तरह रोता देख कौन बच्चा चुप रहेगा?

‘‘बच्चे को इधर दे दो, बहन. जरा घुमा लाऊं तो इस का मन बहल जाएगा. आ मुन्ना, आ जा,’’ कह कर किसी ने असलम को उस की गोद से उठा लिया. वह थी कि बस, दुपट्टे में चेहरा छिपा कर रोए जा रही थी. उस ने यह भी नहीं देखा कि उस के बच्चे को कौन ले जा रहा है.

आखिर जब शरीर में न तो रोने की शक्ति बची और न आंखों में कोई आंसू बचा तो तसलीमा ने धीरे से चेहरा उठा कर चारों तरफ देखा. उस डब्बे में हर उम्र की महिलाएं मौजूद थीं. पर किसी की गोद में उस का असलम नहीं था और न ही आसपास कहीं दिखाई दे रहा था. मां का दिल तड़प उठा. अब वह क्या करे? कहां ढूंढ़े अपने जिगर के टुकड़े को?

इतने में एक नीले बुरके वाली युवती अपनी गोद में असलम को लिए उसी के पास आ कर बैठ गई. तसलीमा ने लपक कर अपने बच्चे को गोद में ले लिया और बोली, ‘‘आप को इस तरह मेरा बच्चा नहीं ले कर जाना चाहिए था. घबराहट के मारे मेरी तो जान ही निकल गई थी.’’

‘‘बहन, क्या करती, बच्चा इतनी बुरी तरह से रो रहा था और आप को कोई होश ही नहीं था. ऐसे में मुझे जो ठीक लगा मैं ने किया. थोड़ा घुमाते ही बच्चा सो गया. गुस्ताखी माफ करें,’’ युवती ने मीठी आवाज में कहा.

शायद यह उस के मधुर व्यवहार का ही अंजाम था कि तसलीमा को सहसा ही अपने गलत व्यवहार का एहसास हुआ. वाकई असलम नींद में भी हिचकियां ले रहा था.

‘‘बहन, माफी तो मुझे मांगनी चाहिए कि तुम ने मेरा उपकार किया और मैं एहसान मानने के बदले नाराजगी जता रही हूं,’’ थोड़ा रुक कर तसलीमा फिर बोली, ‘‘दरअसल, इन हालात में मायका छोड़ कर मुझे जाना पड़ेगा, यह सोचा नहीं था.’’

‘‘ससुराल तो जाना ही पड़ता है बहन, यही तो औरत की जिंदगी है कि जाओ तो मुश्किल, न जाओ तो मुश्किल,’’ नीले बुरके वाली युवती बोली, साथ ही उस का मुसकराता चेहरा कुछ फीका पड़ गया.

‘‘हां, यह तो है,’’ तसलीमा बोली, ‘‘पहले जब भी ससुराल जाती थी तो मायके वालों से दोबारा मिलने की उम्मीद तो रहती थी, मगर इस बार…’’ इतना कहतेकहते तसलीमा को लगा कि उस का गला फिर से रुंध रहा है.

फिर उस ने बात बदलने के लिए पूछा, ‘‘आप अकेली हैं?’’

‘‘हां, अकेली ही समझो. जिस का दामन पकड़ कर यहां परदेस चली आई थी, वह तो अपना हुआ नहीं, तब किस के सहारे यहां रहती. इसलिए अब वापस पाकिस्तान लौट रही हूं. वहां रावलपिंडी के पास गांव है, वैसे मेरा नाम नजमा है और तुम्हारा?’’

‘‘तसलीमा.’’

तसलीमा सोचने लगी कि इनसान भी क्या चीज है. हालात के हाथों बिलकुल खिलौना. किसी और जगह मुलाकात होती तो हम दो अजनबी महिलाओं की तरह दुआसलाम कर के अलग हो जाते पर यहां…यहां दोनों ही बेताब हैं एकदूसरे से अपनेअपने दर्द को कहने और सुनने के लिए, जबकि दोनों ही जानती हैं कि कोई किसी का गम कम नहीं कर सकता पर कहनेसुनने से शायद तकलीफ थोड़ा कम हो और फिर समय भी तो गुजारना है. इसी अंदाज से तसलीमा बोली, ‘‘क्या आप के शौहर ने आप को छोड़ दिया है?’’

‘‘नहीं, मैं ने ही उसे छोड़ दिया,’’ नजमा ने एक गहरी सांस खींचते हुए कहा, ‘‘सच्ची मुसलमान हूं, कैसे रहती उस काफिर के साथ जो अपने लालची इरादों को मजहब की चादर में ढकने की नापाक कोशिश कर रहा था.’’

तसलीमा गौर से नजमा को देख रही थी, शायद उस के दर्द को समझने की कोशिश कर रही थी.

इतने में नजमा फिर बोली, ‘‘जब पाकिस्तान से हम चले थे तो उस ने मुझ से कहा था कि हिंदुस्तान में उसे बहुत अच्छा काम मिला है और वहां हम अपनी मुहब्बत की दुनिया बसाएंगे, पर यहां आ कर पता चला कि वह किसी नापाक इरादे से भारत भेजा गया है जिस के बदले उसे इतने पैसे दिए जाएंगे कि ऐशोआराम की जिंदगी उस के कदमों पर होगी.

‘‘मुझ से मुहब्बत सिर्फ नाटक था ताकि यहां किसी को उस के नापाक इरादों पर शक न हो. मजहब और मुहब्बत के नाम पर इतना बड़ा धोखा. फिर भी मैं ने उसे दलदल से बाहर निकालने की कोशिश की थी. कभी मुहब्बत का वास्ता दे कर तो कभी आने वाली औलाद का वास्ता दे कर, पर आज तक कोई दलदल से बाहर निकला है जो वह निकलता. हार कर खुद ही निकल आई मैं उस की जिंदगी से. आखिर मुझे अपनी औलाद को एक नेकदिल इनसान जो बनाना है.’’

तसलीमा ने देखा कि अपने दर्द का बयान करते हुए भी नजमा के होंठों पर आत्मविश्वास की मुसकान है, आंखों में उम्मीदें हैं. उस ने दर्द का यह रूप पहले कभी नहीं देखा था.

क्या नजमा का दर्द उस के दर्द से कम है? नहीं तो? फिर भी वह मुसकरा रही है, अपना ही नहीं दूसरों का भी गम बांट रही है, अंधेरी राहों में उम्मीदों का चिराग जला रही है. वह ऐसा क्यों नहीं कर सकती? फिर उस के पास तो अनवर जैसा शौहर भी है जो उस के एक इशारे पर सारी दुनिया उस के कदमों पर रख दे. क्या सोचेंगे उस के ससुराल वाले जब उस की सूजी आंखों को देखेंगे. कितना दुखी होगा अनवर उसे दुखी देख कर.

नहीं, अब वह नहीं रोएगी. उस ने खिड़की से बाहर देखा. जिन खेत-खलिहानों को पीछे छूटते देख कर उस की आंखें बारबार भीग रही थीं, अब उन्हीं को वह मुग्ध आंखों से निहार रही थी. कौन कहता है कि इन रास्तों से दोबारा नहीं लौटना है? कौन कहता है सरहद पार जाने वाली ये आखिरी गाड़ी है? वह लौटेगी, जरूर लौटेगी, इन्हीं रास्तों से लौटेगी, इसी गाड़ी में लौटेगी, जब दुनिया नहीं रुकती है तो उस पर चलने वाले कैसे रुक सकते हैं?

तसलीमा ने असलम को सीने से लगा लिया और नजमा की तरफ देख कर प्यार से मुसकरा दी. अब दोनों की ही आंखें चमक रही थीं, दर्द के आंसू से नहीं बल्कि उम्मीद की किरण से.

हैप्पी बर्थडे

आज भोर में दादीमां की नींद खुल गई थी. पास ही दादाजी गहरी नींद में सो रहे थे. कुछ दिन पहले ही उन्हें दिल का दौरा पड़ा था. अब ठीक थे, लेकिन कभीकभी सोते समय नींद की गोली खानी पड़ती थी. दादाजी को सोता देख दादीमां के होंठों पर मुसकान दौड़ गई. आश्वस्त हो कर फिर से आंखें बंद कर लीं. थोड़ी देर में उन्हें फिर से झपकी आगई.

अचानक गाल पर गीलेपन का एहसास हुआ. आंख खोल कर देखा तो श्वेता पास खड़ी थी.

गाल पर चुंबन जड़ते हुए श्वेता ने कहा, ‘‘हैप्पी बर्थडे, दादीमां.’’

‘‘मेरी प्यारी बच्ची,’’ दादीमां का स्वर गीला हो गया, ‘‘तू कितनी अच्छी है.’’

‘‘मैं जाऊं, दादीमां? स्कूल की बस आने वाली है.’’

श्वेता ने दादाजी की ओर देखते हुए कहा, ‘‘कैसे सो रहे हैं.’’

दादीमां को लगा कि सच में दादाजी बरसों से जाग रहे थे. अब कहीं सोने को मिला था.

सचिन ने प्रवेश किया. हाथ में 5 गुलाबों का गुच्छा था. दादीमां को गुलाब के फूलों से विशेष प्यार था. देखते ही उन की आंखों में चमक आ जाती थी.

चुंबन जड़ते हुए सचिन ने फूलों को दादीमां के हाथ में दिया और कहा, ‘‘हैप्पी बर्थडे.’’

‘‘हाय, तू मेरा सब से अच्छा पोता है,’’ दादीमां ने खुश हो कर कहा, ‘‘मेरी पसंद का कितना खयाल रखता है.’’

सचिन ने शरारत से पूछा, ‘‘दादीमां, अब आप की कितनी उम्र हो गई?’’

‘‘चल हट, बदमाश कहीं का. औरतों से कभी उन की आयु नहीं पूछनी चाहिए,’’ दादीमां ने हंस कर कहा.

‘‘अच्छा, चलता हूं, दादीमां,’’ सचिन बोला, ‘‘बाहर लड़के कालिज जाने के लिए इंतजार कर रहे हैं.’’

दादीमां आहिस्ता से उठीं, खटपट से कहीं दादाजी जाग न जाएं. वह बाथरूम गईं और आधे घंटे बाद नहा कर बाहर आ गईं और कपड़े बदलने लगीं.

बेटे तरुण ने नई साड़ी ला कर दी थी. दादीमां वही साड़ी पहन रही थीं.

‘‘हाय मां,’’ तरुण ने अंदर आते हुए कहा, ‘‘हैप्पी बर्थडे. आज आप कितनी सुंदर लग रही हैं.’’

‘‘चल हट, तेरी बीवी से सुंदर थोड़ी हूं,’’ दादीमां बहू के ऊपर तीर छोड़ना कभी नहीं भूलती थीं.

‘‘किस ने कहा ऐसा,’’ तरुण ने मां को गले लगाते हुए कहा, ‘‘मेरी मां से सुंदर तो तुम्हारी मां भी नहीं थीं. तुम्हारी मां ही क्यों, मां की मां की मां में भी कोई तुम्हारे जैसी सुंदर नहीं थीं.’’

‘‘चापलूस कहीं का,’’ दादीमां ने प्यार से चपत लगाते हुए कहा, ‘‘इतना बड़ा हो गया पर बात वही बच्चों जैसी करता है.’’

‘‘अब तुम्हारा तो बच्चा ही हूं न,’’ तरुण ने हंस कर कहा, ‘‘मैं दफ्तर जाने के लिए तैयार हो रहा हूं. पापाजी को क्या हो गया? अभी तक सो रहे हैं.’’

‘‘सो कहां रहा हूं,’’ दादाजी ने आंखें खोलीं और उठते हुए कहा, ‘‘इतना शोर मचा रहे हो, कोई सो सकता है भला.’’

‘‘पापाजी, आप बहुत खराब हैं,’’ तरुण ने शिकायती अंदाज में कहा, ‘‘आप चुपकेचुपके मांबेटे की खुफिया बातें सुन रहे थे.’’

‘‘खुफिया बातें कान में फुसफुसा कर कही जाती हैं. इस तरह आसमान सिर पर उठा कर नहीं,’’ दादाजी ने चुटकी ली.

‘‘क्या करूं, पापाजी, सब लोग कहते हैं कि मैं आप पर गया हूं,’’ तरुण ने दादाजी को सहारा देते हुए कहा, ‘‘अब आप तैयार हो जाइए. वसुधा आप लोगों के लिए कोई विशेष व्यंजन बना रही है.’’

‘‘क्यों, कोई खास बात है क्या?’’ दादाजी ने प्रश्न किया.

‘‘पापाजी, कोई खास बात नहीं, कहते हैं न कि सब दिन होत न एक समान. इसलिए सब के जीवन में एक न एक दिन तो खासमखास होता ही है,’’ तरुण ने रहस्यमयी मुसकान से कहा.

‘‘तू दर्शनशास्त्र कब से पढ़ने लगा,’’ दादाजी ने कहा.

‘‘चलता हूं, पापाजी,’’ तरुण की आंखें मां की आंखों से टकराईं.

क्या सच ही इन को याद नहीं कि आज इन की पत्नी का जन्मदिन था जिस ने 55 साल पहले इन के जीवन में प्रवेश किया था? अब बुढ़ापा न जाने क्या खेल खिलाता है.

डगमगाते कदमों से दादाजी ने बाथरूम की तरफ रुख किया. दादीमां ने सहारा देने का असफल प्रयत्न किया.

दादाजी ने झिड़क कर कहा, ‘‘तुम अपने को संभालो. देखो, मैं अभी भी अभिनेता दिलीप कुमार की तरह स्मार्ट हूं. अपना काम खुद करता हूं. काश, तुम मेरी सायरा बानो होतीं.’’

दादाजी ने बाथरूम का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. अंदर से गाने की आवाज आ रही थी, ‘अभी तो मैं जवान हूं, अभी तो मैं जवान हूं.’

दादीमां मुसकराईं. बिलकुल सठिया गए हैं.

बहू वसुधा ने कमरे में आते ही कहा, ‘‘हाय मां, हैप्पी बर्थडे,’’ फिर उस की नजर साड़ी पर गई तो बोली, ‘‘तरुण सच ही कह रहे थे. इस साड़ी में आप खिल गई हैं. बहुत सुंदर लग रही हैं.’’

‘‘तू भी कम नहीं है, बहू,’’ यह कहते समय दादीमां के गालों पर लाली आ गई.

जातेजाते वसुधा बोली, ‘‘मां, मैं खाना लगा रही हूं. आप दोनों जल्दी से आ जाइए. गरमागरम कचौरी बना रही हूं.’’

दादीमां का बचपन सीताराम बाजार में कूचा पातीराम में बीता था. अकसर वहां की पूरी, हलवा, कचौरी और जलेबी का जिक्र करती थीं. जिस तरह दादीमां बखान करती थीं उसे सुन कर सुनने वालों के मुंह में पानी आ जाता था.

वसुधा मेरठ की थी और उसे ये सारे व्यंजन बनाने आते थे. दादीमां को अच्छे तो लगते थे लेकिन उस की प्रशंसा करने में हर सास की तरह वह भी कंजूसी कर जाती थीं. शुरूमें तो वसुधा को बुरा लगता था. लेकिन अब सास को अच्छी तरह पहचान लिया था.

थोड़ी देर बाद दादाजी और दादीमां बाहर आ कर कुरसी पर बैठ गए. उन के आने की आवाज सुन कर वसुधा ने कड़ाही चूल्हे पर रख दी.

सूजी का मुलायम खुशबूदार हलवा पहले दादीजी ने खाना शुरू किया. कचौरी के साथ वसुधा ने दहीजीरे के आलू बनाए थे.

दादाजी 2 कचौरियां खा चुके थे.

दादीमां ने दादाजी से हलवे की तारीफ में कहा, ‘‘शुद्ध घी में बनाया है न… बना तो अच्छा है लेकिन हजम भी तो होना चाहिए.’’

‘‘अरे वाह, तुम ने तो और ले लिया,’’ दादाजी ने निराश स्वर में कहा.

उन दोनों की बातें सुन कर वसुधा हंस पड़ी, ‘‘पापा, मैं फिर बना दूंगी.’’

दिल का दौरा पड़ जाने से दादाजी को काफी परहेज करना व करवाना पड़ता था.

दिन में दादीमां की दोनों बहनों व उन के परिवार के लोग फोन पर जन्मदिन की बधाई दे रहे थे. उन के भाईभाभी का कनाडा से फोन आया. बहुत अच्छा लगा दादीमां को. वह बहुत खुश थीं और दादाजी मुसकरा रहे थे.

रात को तो पूरा परिवार जमा था. बेटी और दामाद भी उपहार ले कर आ गए थे. खूब हल्लागुल्ला हुआ. लड़के-लड़कियां फिल्मी धुनों पर नाच रहे थे. तरुण अपने बहनोई से हंसीमजाक कर रहा था तो वसुधा अपनी ननद के साथ अच्छेअच्छे स्नैक्सबना कर किचन से भेज रही थी. बस, मजा आ गया.

‘‘दादीमां, आप का बर्थडे सप्ताह में कम से कम एक बार अवश्य आना चाहिए,’’ सचिन ने दादीमां से कहा, ‘‘काश, मेरा बर्थडे भी इसी तरह मनाया जाता.’’

दादीमां ने अचानक कहा, ‘‘आज मुझे सब लोगों ने बधाई दी. बस, एक को छोड़ कर.’’

‘‘कौन, मां?’’ तरुण ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘यह गुस्ताखी किस ने की?’’ सचिन ने कहा.

‘‘इन्होंने,’’ दादीमां ने पति की ओर देख कर कहा.

दादाजी एकदम गंभीर हो गए. ‘‘क्या कहा? मैं ने बधाई नहीं दी?’’

दादाजी अभी तक गुदगुदे दीवान पर सहारा ले कर बैठे थे कि अचानक पीछे लुढ़क गए. शायद धक्का सा लगा. ऐसे कैसे भूल गए. सब का दिल दहल गया.

‘‘हाय राम,’’ दादीमां झपट कर दादाजी के पास गईं. लगभग रोते हुए बोलीं, ‘‘आंखें खोलो. मैं ने ऐसा क्या कह दिया?’’

दादाजी को शायद फिर से दिल का दौरा पड़ गया, ऐसा सब को लगा. दादीमां की आंखें नम हो गईं. उन्होंने कान छाती पर लगा कर दिल की धड़कन सुनने की कोशिश की. एक कान से सुनाई नहीं दिया तो दूसरा कान छाती पर लगाया.

‘‘हैप्पी बर्थडे,’’ दादाजी ने आंखें खोल कर मुसकरा कर कहा, ‘‘अब तो कह दिया न.’’

‘‘यह भी कोई तरीका है,’’ दादीमां ने आंसू पोंछते हुए कहा. अब उन के होंठों पर हंसी लौट आई थी.

सब हंस रहे थे.

‘‘तरीका तो नहीं है,’’ दादाजी ने उठते हुए कहा, ‘‘लेकिन याद तो रहेगा न.’’

‘‘छोड़ो भी,’’ दादीमां ने शरमा कर कहा.

‘‘वाह, इसे कहते हैं 18वीं सदी का रोमांस,’’ सचिन ने ताली बजाते हुए कहा.

फिर तो सारा घर तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा.

शादी-भाग 3: रोहिणी ने पिता को कैसे समझाया

सुरेश ने सुकन्या से कहा, ‘‘खाना शुरू हुआ है, तो थोड़ा खा लेते हैं, नहीं तो निकलने की सोचते हैं.’’

‘‘इतनी जल्दी क्या है, अभी तो कोई भी नहीं जा रहा है.’’

‘‘पूरे दिन काम की थकान, फिर फार्म हाउस पहुंचने का थकान भरा सफर और अब खाने का लंबा इंतजार, बेगम साहिबा घर वापस जाने में भी कम से कम 1 घंटा तो लग ही जाएगा. चलते हैं, आंखें नींद से बोझिल हो रही हैं, इस वाहन चालक पर भी कुछ तरस करो.’’

‘‘तुम भी बच्चों की तरह मचल जाते हो और रट लगा लेते हो कि घर चलो, घर चलो.’’

‘‘मैं फिर इधर सोफे पर थोड़ा आराम कर लेता हूं, अभी तो वहां कोई नहीं है.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर सुकन्या सोसाइटी की अन्य महिलाआें के साथ बातें करने लगी और सुरेश एक खाली सोफे पर आराम से पैर फैला कर अधलेटे हो गए. आंखें बंद कर के सुरेश आराम की सोच रहे थे कि एक जोर का हाथ कंधे पर लगा, ‘‘सुरेश बाबू, यह अच्छी बात नहीं है, अकेलेअकेले सो रहे हो. जश्न मनाने के बजाय सुस्ती फैला रहे हो.’’

सुरेश ने आंखें खोल कर देखा तो गुप्ताजी दांत फाड़ रहे थे.

मन ही मन भद्दी गाली निकाल कर प्रत्यक्ष में सुरेश बोले, ‘‘गुप्ताजी, आफिस में कुछ अधिक काम की वजह से थक गया था, सोचा कि 5 मिनट आराम कर लूं.’’

‘‘उठ यार, यह मौका जश्न मनाने का है, सोने का नहीं,’’ गुप्ताजी हाथ पकड़ कर सुरेश को डीजे फ्लोर पर ले गए जहां डीजे के शोर में वर और वधू पक्ष के नजदीकी नाच रहे थे, ‘‘देख नंदकिशोर के ठुमके,’’ गुप्ताजी बोले पर सुरेश का ध्यान सुकन्या को ढूंढ़ने में था कि किस तरीके से अलविदा कह कर वापस घर रवानगी की जाए.

सुकन्या सोसाइटी की महिलाओं के साथ गपशप में व्यस्त थी. सुरेश को नजदीक आता देख मिसेज रस्तोगी ने कहा, ‘‘भाई साहब को कह, आज तो मंडराना छोड़ें, मर्द पार्टी में जाएं. बारबार महिला पार्टी में आ जाते हैं.’’

‘‘भाभीजी, कल मैं आफिस से छुट्टी नहीं ले सकता, जरूरी काम है, घर भी जाना है, रात की नींद पूरी नहीं होगी तो आफिस में काम कैसे करूंगा. अब तो आप सुकन्या को मेरे हवाले कीजिए, नहीं तो उठा के ले जाना पड़ेगा,’’ सुरेश के इतना कहते ही पूरी महिला पार्टी ठहाके में डूब गई.

‘‘क्या बचपना करते हो, थोड़ी देर इंतजार करो, सब के साथ चलेंगे. पार्टी का आनंद उठाओ. थोड़ा सुस्ता लो. देखो, उस कोने में सोफे खाली हैं, आप थोड़ा आराम करो, मैं अभी वहीं आती हूं.’’

मुंह लटका कर सुरेश फिर खाली सोफे पर अधलेटे हो गए और उन की आंख लग गई.

नींद में सुरेश ने करवट बदली तो सोफे से नीचे गिरतेगिरते बचे. इस चक्कर में उन की नींद खुल गई. चंद मिनटों की गहरी नींद ने सुरेश की थकान दूर कर दी थी. तभी सुकन्या आई, ‘‘तुम बड़े अच्छे हो, एक नींद पूरी कर ली. चलो, खाना शुरू हो गया है.’’

सुरेश ने घड़ी देखी, ‘‘रात का 1 बजा था. अब 1 बजे खाना परोस रहे हैं.’’

खाना खाते और फिर मिलते, अलविदा लेते ढाई बज गए. कार स्टार्ट कर के सुरेश बोले, ‘‘आज रात लांग ड्राइव होगी, घर पहुंचतेपहुंचते साढ़े 3 बज जाएंगे. मैं सोचता हूं कि उस समय सोने के बजाय चाय पी जाए और सुबह की सैर की जाए, मजा आ जाएगा.’’

‘‘आप तो सो लिए थे, मैं बुरी तरह थक चुकी हूं. मैं तो नींद जरूर लूंगी… लेकिन आप इतनी धीरे कार क्यों चला रहे हो?’’

‘‘रात के खाली सड़कों पर तेज रफ्तार की वजह से ही भयानक दुर्घटनाएं होती हैं. दरअसल, पार्टियों से वापस आते लोग शराब के नशे में तेज रफ्तार के कारण कार को संभाल नहीं पाते. इसी से दुर्घटनाएं होती हैं. सड़कों पर रोशनी पूरी नहीं होती, सामने से आने वाले वाहनों की हैडलाइट से आंखों में चौंध पड़ती है, पटरी और रोडडिवाइडर नजर नहीं आते हैं, इसलिए जब देरी हो गई है तो आधा घंटा और सही.’’

पौने 4 बजे वे घर पहुंचे, लाइट खोली तो रोहिणी उठ गई, ‘‘क्या बात है पापा, पूरी रात शादी में बिता दी. कल आफिस की छुट्टी करोगे क्या?’’

सुरेश ने हंसते हुए कहा, ‘‘कल नहीं, आज. अब तो तारीख भी बदल गई है. आज आफिस में जरूरी काम है, छुट्टी का मतलब ही नहीं. अगर अब सो गया तो समझ लो, दोपहर से पहले उठना ही नहीं होगा. बेटे, अब तो एक कप चाय पी कर सुबह की सैर पर जाऊंगा.’’

‘‘पापा, आप कपड़े बदलिए, मैं चाय बनाती हूं,’’ रोहिणी ने आंखें मलते हुए कहा.

‘‘तुम सो जाओ, बेटे, हमारी नींद तो खराब हो गई है, मैं चाय बनाती हूं,’’ सुकन्या ने रोहिणी से कहा.

चाय पीने के बाद सुरेश, सुकन्या और रोहिणी सुबह की सैर के लिए पार्क में गए.

‘‘आज असली आनंद आएगा सैर करने का, पूरा पार्क खाली, ऐसे लगता है कि हमारा प्राइवेट पार्क हो, हम आलसियों की तरह सोते रहते हैं. सुबह सैर का अपना अलग ही आनंद है,’’ सुरेश बांहें फैला कर गहरी सांस खींचता हुआ बोला.

‘‘आज क्या बात है, बड़ी दार्शनिक बातें कर रहे हो.’’

‘‘बात दार्शनिकता की नहीं, बल्कि जीवन की सचाई की है. कल रात शादी में देखा, दिखावा ही दिखावा. क्या हम शादियां सादगी से नहीं कर सकते? अगर सच कहें तो सारा शादी खर्च व्यर्थ है, फुजूल का है, जिस का कोई अर्थ नहीं है.’’

तभी रोहिणी जौगिंग करते हुए समीप पहुंच कर बोली, ‘‘पापा, बिलकुल ठीक है, शादियों पर सारा व्यर्थ का खर्चा होता है.’’

सुकन्या सुरेश के चेहरे को देखती हुई कुछ समझने की कोशिश करने लगी. फिर कुछ पल रुक कर बोली, ‘‘मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है. आज सुबह बापबेटी को क्या हो गया है?’’

‘‘बहुत आसान सी बात है, शादी में सारे रिश्तेदारों को, यारों को, पड़ोसियों को, मिलनेजुलने वालों को न्योता दिया जाता है कि शादी में आ कर शान बढ़ाओ. सब आते हैं, कुछ कामधंधा तो करते नहीं…उस पर सब यही चाहते हैं कि उन की साहबों जैसी खातिरदारी हो और तनिक भी कमी हो गई तो उलटासीधा बोलेंगे, जैसे कि नंदकिशोर के बेटे की शादी में देखा, हम सब जम कर दावत उड़ाए जा रहे थे और कमियां भी निकाल रहे थे.’’

तभी रोहिणी जौगिंग का एक और चक्कर पूरा कर के समीप आई और बोलने लगी तो सुकन्या ने टोक दिया, ‘‘आप की कोई विशेष टिप्पणी.’’

यह सुन कर रोहिणी ने हांफते हुए कहा, ‘‘पापा ने बिलकुल सही विश्लेषण किया है शादी का. शादी हमारी, बिरादरी को खुश करते फिरें, यह कहां की अक्लमंदी है और तुर्रा यह कि खुश फिर भी कोई नहीं होता. आखिर शादी को हम तमाशा बनाते ही क्यों हैं. अगर कोई शादी में किसी कारण से नहीं पहुंचा तो हम भी गिला रखते हैं कि आया नहीं. कोई किसी को नहीं छोड़ता. शादी करनी है तो घरपरिवार के सदस्यों में ही संपन्न हो जाए, जितना खच?र् शादी में हम करते हैं, अगर वह बचा कर बैंक में जमा करवा लें तो बुढ़ापे की पेंशन बन सकती है.’’

‘‘देखा सुकन्या, हमारी बेटी कितनी समझदार हो गई है. मुझे रोहिणी पर गर्व है. कितनी अच्छी तरह से भविष्य की सोच रही है. हम अपनी सारी जमापूंजी शादियों में खर्च कर देते हैं, अकसर तो उधार भी लेते हैं, जिस को चुकाना भी कई बार मुश्किल हो जाता है. अपनी चादर से अधिक खर्च जो करते हैं.’’

‘‘क्या बापबेटी को किसी प्रतियोगिता में भाग लेना है, जो वहां देने वाले भाषण का अभ्यास हो रहा है या कोई निबंध लिखना है.’’

‘‘काश, भारत का हर व्यक्ति ऐसा सोचता.

विदाई- भाग 3: नीरज ने कविता के आखिरी दिनों में क्या किया

नीरज कितनी लगन व प्रेम से कविता की देखभाल कर रहा है, यह किसी की नजरों से छिपा नहीं रहा. कविता के मातापिता व भाई हर किसी के सामने नीरज की प्रशंसा करते न थकते.

नीरज के अपने मातापिता को उस का व्यवहार समझ में नहीं आता. वे उस के फ्लैट से हमेशा चिंतित व परेशान से हो कर लौटते.

‘‘दुनिया छोड़ कर जल्दी जाने वाली कविता के साथ इतना मोह रखना ठीक नहीं है नीरज,’’ उस की मां, अकसर अकेले में उसे समझातीं, ‘‘तुम्हारी जिंदगी अभी आगे भी चलेगी, बेटे. कोई ऐसा तेज सदमा दिमाग में मत बैठा लेना कि अपने भविष्य के प्रति तुम्हारी कोई दिलचस्पी ही न रहे.’’

नीरज हमेशा हलकेफुलके अंदाज में उन्हें जवाब देता, ‘‘मां, कविता इतने कम समय के लिए हमारे साथ है कि हम उसे अपना मेहमान ही कहेंगे और मेहमान की विदाई तक उस की देखभाल, सेवा व आवभगत में कोई कमी न रहे, मेरी यही इच्छा है.’’

वक्त का पहिया अपनी धुरी पर निरंतर घूमता रहा. कविता की शारीरिक शक्ति घटती जा रही थी. नीरज ने अगर उस के होंठों पर मुसकान बनाए रखने को जी जान से ताकत न लगा रखी होती तो अपनी तेजी से करीब आ रही मौत का भय उस के वजूद को कब का तोड़ कर बिखेर देता.

एक दिन चाह कर भी वह घर से बाहर जाने की शक्ति अपने अंदर नहीं जुटा पाई. उस दिन उस की खामोशी में उदासी और निराशा का अंश बहुत ज्यादा बढ़ गया.

उस रात सोने से पहले कविता नीरज की छाती से लग कर सुबक उठी. नीरज उसे किसी भी प्रकार की तसल्ली देने में नाकाम रहा.

‘‘मुझे इस एक बात का सब से ज्यादा मलाल है कि हमारे प्रेम की निशानी के तौर पर मैं तुम्हें एक बेटा या बेटी नहीं दे पाई… मैं एक बहू की तरह से…एक पत्नी के रूप में असफल हो कर इस दुनिया से जा रही हूं…मेरी मौत क्या 2-3 साल बाद नहीं आ सकती थी?’’ कविता ने रोंआसी हो कर नीरज से सवाल पूछा.

‘‘कविता, फालतू की बातें सोच कर अपने मन को परेशान मत करो,’’ नीरज ने प्यार से उस की नाक पकड़ कर इधरउधर हिलाई, ‘‘मौत का सामना आगेपीछे हम सब को करना ही है. इस शरीर का खो जाना मौत का एक पहलू है. देखो, मौत की प्रक्रिया पूरी तब होती है जब दुनिया को छोड़ कर चले गए इनसान को याद करने वाला कोई न बचे. मैं इसी नजरिए से मौत को देखता हूं. और इसीलिए कहता हूं कि मेरी अंतिम सांस तक तुम्हारा अस्तित्व मेरे लिए कायम रहेगा…मेरे लिए तुम मेरी सांसों में रहोगी… मेरे साथ जिंदा रहोगी.’’

कविता ने उस की बातों को बड़े ध्यान से सुना था. अचानक वह सहज ढंग से मुसकराई और उस की आंखों में छाए उदासी के बादल छंट गए.

‘‘आप ने जो कहा है उसे मैं याद रखूंगी. मेरी कोशिश रहेगी कि बचे हुए हर पल को जी लूं… बची हुई जिंदगी का कोई पल मौत के बारे में सोचते हुए नष्ट न करूं. थैंक यू, सर,’’ नीरज के होंठों का चुंबन ले कर कविता ने बेहद संतुष्ट भाव से आंखें मूंद ली थीं.

आगामी दिनों में कविता का स्वास्थ्य तेजी से गिरा. उसे सांस लेने में कठिनाई होने लगी. शरीर सूख कर कांटा हो गया. खानापीना मुश्किल से पेट में जाता. शरीर में जगहजगह फैल चुके कैंसर की पीड़ा से कोई दवा जरा सी देर को भी मुक्ति नहीं दिला पाती.

अपनी जिंदगी के आखिरी 3 दिन उस ने अस्पताल के कैंसर वार्ड में गुजारे. नीरज की कोशिश रही कि वह वहां हर पल उस के साथ बना रहे.

‘‘मेरे जाने के बाद आप जल्दी ही शादी जरूर कर लेना,’’ अस्पताल पहुंचने के पहले दिन नीरज का हाथ अपने हाथों में ले कर कविता ने धीमी आवाज में उस से अपने दिल की बात कही.

‘‘मुझे मुसीबत में फंसाने वाली मांग मुझ से क्यों कर रही हो?’’ नीरज ने जानबूझ कर उसे छेड़ा.

‘‘तो क्या आप मुझे अपने लिए मुसीबत समझते रहे हो?’’ कविता ने नाराज होने का अभिनय किया.

‘‘बिलकुल नहीं,’’ नीरज ने प्यार से उस की आंखों में झांक कर कहा, ‘‘तुम तो सोने का दिल रखने वाली एक साहसी स्त्री हो. बहुत कुछ सीखा है मैं ने तुम से.’’

‘‘झूठी तारीफ करना तो कोई आप से सीखे,’’ इन शब्दों को मुंह से निकालते समय कविता की खुशी देखते ही बनती थी.

कविता का सिर सहलाते हुए नीरज मन ही मन सोचता रहा, ‘मैं झूठ नहीं कह रहा हूं, कविता. तुम्हारी मौत को सामने खड़ी देख हमारी साथसाथ जीने की गुणवत्ता पूरी तरह बदल गई. हमारी जीवन ज्योति पूरी ताकत से जलने लगी… तुम्हारी ज्योति सदा के लिए बुझने से पहले अपनी पूरी गरिमा व शक्ति से जलना चाहती होगी…मेरी ज्योति तुम्हें खो देने से पहले तुम्हारे साथ बीतने वाले एकएक पल को पूरी तरह से रोशन करना चाहती है. जीने की सही कला…सही अंदाज सीखा है मैं ने तुम्हारे साथ पिछले कुछ हफ्तों में. तुम्हारे साथ की यादें मुझे आगे भी सही ढंग से जीने को सदा उत्साहित करती रहेंगी, यह मेरा वादा रहा तुम से…भविष्य में किसी अपने को विदाई देने के लिए नहीं, बल्कि हमसफर बन कर जिंदगी का भरपूर आनंद लेने के लिए मैं जिऊंगा क्योंकि जिंदगी के सफर का कोई भरोसा नहीं.’

जब 3 दिन बाद कविता ने आखिरी सांस ली तब नीरज का हाथ उस के हाथ में था. उस ने कठिनाई से आंखें खोल कर नीरज को प्रेम से निहारा. नीरज ने अपने हाथ पर उस का प्यार भरा दबाव साफ महसूस किया. नीरज ने झुक कर उस का माथा प्यार से चूम लिया.

कविता के होंठों पर छोटी सी प्यार भरी मुसकान उभरी. एक बार नीरज के हाथ को फिर प्यार से दबाने के बाद कविता ने बड़े संतोष व शांति भरे अंदाज में सदा के लिए अपनी आंखें मूंद लीं.

नीरज ने देखा कि इस क्षण उस के दिलोदिमाग पर किसी तरह का बोझ नहीं था. इस मेहमान को विदा कहने से पहले उस की सुखसुविधा व मन की शांति के लिए जो भी कर सकता था, उस ने खुशीखुशी व प्रेम से किया. तभी तो उस के मन में कोई टीस या कसक नहीं उठी.

विदाई के इन क्षणों में उस की आंखों से जो आंसुओं की धारा लगातार बह रही थी उस का उसे कतई एहसास नहीं था.

शादी-भाग 2: रोहिणी ने पिता को कैसे समझाया

मुसकराती हुई सुकन्या ने कहा, ‘‘सारे अलग शादियों में नहीं, बल्कि राहुल की शादी में जा रहे हैं.’’

‘‘दिल खोल कर न्योता दिया है नंदकिशोरजी ने.’’

‘‘दिल की मत पूछो, फार्म हाउस में शादी का सारा खर्च वधू पक्ष का होगा, इसलिए पूरी सोसाइटी को निमंत्रण दे दिया वरना अपने घर तो उन की पत्नी ने किसी को भी नहीं बुलाया. एक नंबर के कंजूस हैं दोनों पतिपत्नी. हम तो उसे किटी पार्टी का मेंबर बनाने को राजी नहीं होते हैं. जबरदस्ती हर साल किसी न किसी बहाने मेंबर बन जाती है.’’

‘‘इतनी नाराजगी भी अच्छी नहीं कि मेकअप ही खराब हो जाए,’’ सुरेश ने कार स्टार्ट करते हुए कहा.

‘‘कितनी देर लगेगी फार्म हाउस पहुंचने में?’’ सुकन्या ने पूछा.

‘‘यह तो टै्रफिक पर निर्भर है, कितना समय लगेगा, 1 घंटा भी लग सकता है, डेढ़ भी और 2 भी.’’

‘‘मैं एफएम रेडियो पर टै्रफिक का हाल जानती हूं,’’ कह कर सुकन्या ने रेडियो चालू किया.

तभी रेडियो जौकी यानी कि उद्घोषिका ने शहर में 10 हजार शादियों का जिक्र छेड़ते हुए कहा कि आज हर दिल्लीवासी किसी न किसी शादी में जा रहा है और चारों तरफ शादियों की धूम है. यह सुन कर सुरेश ने सुकन्या से पूछा, ‘‘क्या तुम्हें लगता है कि आज शहर में 10 हजार शादियां होंगी?’’

‘‘आप तो ऐसे पूछ रहे हो, जैसे मैं कोई पंडित हूं और शादियों का मुहूर्त मैं ने ही निकाला है.’’

‘‘एक बात जरूर है कि आज शादियां अधिक हैं, लेकिन कितनी, पता नहीं. हां, एक बात पर मैं अडिग हूं कि 10 हजार नहीं होंगी. 2-3 हजार को 10 हजार बनाने में लोगों को कोई अधिक समय नहीं लगता. बात का बतंगड़ बनाने में फालतू आदमी माहिर होते हैं.’’

तभी रेडियो टनाटन ने टै्रफिक का हाल सुनाना शुरू किया, ‘यदि आप वहां जा रहे हैं तो अपना रूट बदल लें,’ यह सुन कर सुरेश ने कहा, ‘‘रेडियो स्टेशन पर बैठ कर कहना आसान है कि रूट बदल लें, लेकिन जाएं तो कहां से, दिल्ली की हर दूसरी सड़क पर टै्रफिक होता है. हर रोज सुबहशाम 2 घंटे की ड्राइविंग हो जाती है. आराम से चलते चलो, सब्र और संयम के साथ.’’

बातों ही बातों में कार की रफ्तार धीमी हो गई और आगे वाली कार के चालक ने कार से अपनी गरदन बाहर निकाली और बोला, ‘‘भाई साहब, कार थोड़ी पीछे करना, वापस मोड़नी है, आगे टै्रफिक जाम है, एफ एम रेडियो भी यही कह रहा है.’’

उस को देखते ही कई स्कूटर और बाइक वाले पलट कर चलने लगे. कार वालों ने भी कारें वापस मोड़नी शुरू कर दीं. यह देख कर सुकन्या ने कहा, ‘‘आप क्या देख रहे हो, जब सब वापस मुड़ रहे हैं तो आप भी इन के साथ मुड़ जाइए.’’

सुरेश ने कार नहीं मोड़ी बल्कि मुड़ी कारों की जगह धीरेधीरे कार आगे बढ़ानी शुरू की.

‘‘यह आप क्या कर रहे हो, टै्रफिक जाम में फंस जाएंगे,’’ सुकन्या ने सुरेश की ओर देखते हुए कहा.

‘‘कुछ नहीं होगा, यह तो रोज की कहानी है. जो कारें वापस मुड़ रही हैं, वे सब आगे पहुंच कर दूसरी लेन को भी जाम करेंगी.’’ धीरेधीरे सुरेश कार को अपनी लेन में रख कर आगे बढ़ाता रहा. चौराहे पर एक टेंपो खराब खड़ा था, जिस कारण टै्रफिक का बुरा हाल था.

‘‘यहां तो काफी बुरा हाल है, देर न हो जाए,’’ सुकन्या थोड़ी परेशान हो गई.

‘‘कुछ नहीं होगा, 10 मिनट जरूर लग सकते हैं. यहां संयम की आवश्यकता है.’’

बातोंबातों में 10 मिनट में चौराहे को पार कर लिया और कार ने थोड़ी रफ्तार पकड़ी. थोड़ीथोड़ी दूरी पर कभी कोई बरात मिलती, तो कार की रफ्तार कम हो जाती तो कहीं बीच सड़क पर बस वाले बस रोक कर सवारियों को उतारने, चढ़ाने का काम करते मिले.

फार्म हाउस आ गया. बरात अभी बाहर सड़क पर नाच रही थी. बरातियों ने अंदर जाना शुरू कर दिया, सोसाइटी निवासी पहले ही पहुंच गए थे और चाट के स्टाल पर मशगूल थे.

‘‘लगता है, हम ही देर से पहुंचे हैं, सोसाइटी के लोग तो हमारे साथ चले थे, लेकिन पहले आ गए,’’ सुरेश ने चारों तरफ नजर दौड़ाते हुए सुकन्या से कहा.

‘‘इतनी धीरे कार चलाते हो, जल्दी कैसे पहुंच सकते थे,’’ इतना कह कर सुकन्या बोली, ‘‘हाय मिसेज वर्मा, आज तो बहुत जंच रही हो.’’

‘‘अरे, कहां, तुम्हारे आगे तो आज सब फीके हैं,’’ मिसेज गुप्ता बोलीं, ‘‘देखो तो कितना खूबसूरत नेकलेस है, छोटा जरूर है लेकिन डिजाइन लाजवाब है. हीरे कितने चमक रहे हैं, जरूर महंगा होगा.’’

‘‘पहले कभी देखा नहीं, कहां से लिया? देखो तो, साथ के मैचिंग टाप्स भी लाजवाब हैं,’’ एक के बाद एक प्रश्नों की झड़ी लग गई, साथ ही सभी सोसाइटी की महिलाओं ने सुकन्या को घेर लिया और वह मंदमंद मुसकाती हुई एक कुरसी पर बैठ गई. सुरेश एक तरफ कोने में अलग कुरसी पर अकेले बैठे थे, तभी रस्तोगी ने कंधे पर हाथ मारते हुए कहा, ‘‘क्या यार, सुरेश…यहां छिप कर चुपके से महिलाआें की बातों में कान अड़ाए बैठे हो. उठो, उधर मर्दों की महफिल लगी है. सब इंतजाम है, आ जाओ…’’

सुरेश कुरसी छोड़ते हुए कहने लगे, ‘‘रस्तोगी, मैं पीता नहीं हूं, तुझे पता है, क्या करूंगा महफिल में जा कर.’’

‘‘आओ तो सही, गपशप ही सही, मैं कौन सा रोज पीने वाला हूं. जलजीरा, सौफ्ट ड्रिंक्स सबकुछ है,’’ कह कर रस्तोगी ने सुरेश का हाथ पकड़ कर खींचा और दोनों महफिल में शरीक हो गए, जहां जाम के बीच में ठहाके लग रहे थे.

‘‘यार, नंदकिशोर ने हाथ लंबा मारा है, सबकुछ लड़की पक्ष वाले कर रहे हैं. फार्म आउस में शादी, पीने का, खाने का इंतजाम तो देखो,’’ अग्रवाल ने कहा.

‘‘अंदर की बात बताता हूं, सब प्यारमुहब्बत का मामला है,’’ साहनी बोला.

‘‘अमा यार, पहेलियां बुझाना छोड़ कर जरा खुल कर बताओ,’’ गुप्ता ने पूछा.

‘‘राहुल और यह लड़की कालिज में एकसाथ पढ़ते थे, वहीं प्यार हो गया. जब लड़कालड़की राजी तो क्या करेगा काजी, थकहार कर लड़की के बाप को मानना पड़ा,’’ साहनी चटकारे ले कर प्यार के किस्से सुनाने लगा. फिर मुड़ कर सुरेश से कहने लगा, ‘‘अरे, आप तो मंदमंद मुसकरा रहे हैं, क्या बात है, कुछ तो फरमाइए.’’

‘‘मैं यह सोच रहा हूं कि क्या जरूरत है, शादियों में फुजूल का पैसा लगाने की, इसी शादी को देख लो, फार्म हाउस का किराया, साजसजावट, खानेपीने का खर्चा, लेनदेन, गहने और न जाने क्याक्या खर्च होता है,’’ सुरेश ने दार्शनिक भाव से कहा.

‘‘यार, जिस के पास जितना धन होता है, शादी में खर्च करता है. इस में फुजूलखर्ची की क्या बात है. आखिर धन को संचित ही इसीलिए करते हैं,’’ अग्रवाल ने बात को स्पष्ट करते हुए कहा.

‘‘नहीं, धन का संचय शादियों के लिए नहीं, बल्कि कठिन समय के लिए भी किया जाता है…’’

सुरेश की बात बीच में काटते हुए गुप्ता बोला, ‘‘देख, लड़की वालों के पास धन की कोई कमी नहीं है. समंदर में से दोचार लोटे निकल जाएंगे, तो कुछ फर्क नहीं पड़ेगा.’’

‘‘यह सोच गलत है. यह तो पैसे की बरबादी है,’’ सुरेश ने कहा.

‘‘सारा मूड खराब कर दिया,’’ साहनी ने बात को समाप्त करते हुए कहा, ‘‘यहां हम जश्न मना रहे हैं, स्वामीजी ने प्रवचन शुरू कर दिए. बाईगौड रस्तोगी, जहां से इसे लाया था, वहीं छोड़ आ.’’

सुरेश चुपचाप वहां से निकल लिए और सुकन्या को ढूंढ़ने लगे.

‘‘क्या बात है, भाई साहब, कहां नैनमटक्का कर रहे हैं,’’ मिसेज साहनी ने कहा, जो सुकन्या के साथ गोलगप्पे के स्टाल पर खट्टेमीठे पानी का मजा ले रही थी और साथ कह रही थी, ‘‘सुकन्या, गोलगप्पे का पानी बड़ा बकवास है, इतनी बड़ी पार्टी और चाटपकौड़ी तो एकदम थर्ड क्लास.’’

सुकन्या मुसकरा दी.

‘‘मुझ से तो भूखा नहीं रहा जाता,’’ मिसेज साहनी बोलीं, ‘‘शगुन दिया है, डबल तो वसूल करने हैं.’’

उन की बातें सुन कर सुरेश मुसकरा दिए कि दोनों मियांबीवी एक ही थैली के चट्टेबट्टे हैं. मियां ज्यादा पी कर होश खो बैठा है और बीवी मीनमेख के बावजूद खाए जा रही है.

शादी-भाग 1: रोहिणी ने पिता को कैसे समझाया

‘‘सुनो, आप को याद है न कि आज शाम को राहुल की शादी में जाना है. टाइम से घर आ जाना. फार्म हाउस में शादी है. वहां पहुंचने में कम से कम 1 घंटा तो लग ही जाएगा,’’ सुकन्या ने सुरेश को नाश्ते की टेबल पर बैठते ही कहा.

‘‘मैं तो भूल ही गया था, अच्छा हुआ जो तुम ने याद दिला दिया,’’ सुरेश ने आलू का परांठा तोड़ते हुए कहा.

‘‘आजकल आप बातों को भूलने बहुत लगे हैं, क्या बात है?’’ सुकन्या ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा.

‘‘आफिस में काम बहुत ज्यादा हो गया है और कंपनी वाले कम स्टाफ से काम चलाना चाहते हैं. दम मारने की फुरसत नहीं होती है. अच्छा सुनो, एक काम करना, 5 बजे मुझे फोन करना. मैं समय से आ जाऊंगा.’’

‘‘क्या कहते हो, 5 बजे,’’ सुकन्या ने आश्चर्य से कहा, ‘‘आफिस से घर आने में ही तुम्हें 1 घंटा लग जाता है. फिर तैयार हो कर शादी में जाना है. आप आज आफिस से जल्दी निकलना. 5 बजे तक घर आ जाना.’’

‘‘अच्छा, कोशिश करूंगा,’’ सुरेश ने आफिस जाने के लिए ब्रीफकेस उठाते हुए कहा.

आफिस पहुंच कर सुरेश हैरान रह गया कि स्टाफ की उपस्थिति नाममात्र की थी. आफिस में हर किसी को शादी में जाना था. आधा स्टाफ छुट्टी पर था और बाकी स्टाफ हाफ डे कर के लंच के बाद छुट्टी करने की सोच रहा था. पूरे आफिस में कोई काम नहीं कर रहा था. हर किसी की जबान पर बस यही चर्चा थी कि आज शादियों का जबरदस्त मुहूर्त है, जिस की शादी का मुहूर्त नहीं निकल रहा है उस की शादी बिना मुहूर्त के आज हो सकती है. इसलिए आज शहर में 10 हजार शादियां हैं.

सुरेश अपनी कुरसी पर बैठ कर फाइलें देख रहा था तभी मैनेजर वर्मा उस के सामने कुरसी खींच कर बैठ गए और गला साफ कर के बोले, ‘‘आज तो गजब का मुहूर्त है, सुना है कि आज शहर में 10 हजार शादियां हैं, हर कोई छुट्टी मांग रहा है, लंच के बाद तो पूरा आफिस लगभग खाली हो जाएगा. छुट्टी तो घोषित कर नहीं सकते सुरेशजी, लेकिन मजबूरी है, किसी को रोक भी नहीं सकते. आप को भी किसी शादी में जाना होगा.’’

‘‘वर्माजी, आप तो जबरदस्त ज्ञानी हैं, आप को कैसे मालूम कि मुझे भी आज शादी में जाना है,’’ सुरेश ने फाइल बंद कर के एक तरफ रख दी और वर्माजी को ऊपर से नीचे तक देखते हुए बोला.

‘‘यह भी कोई पूछने की बात है, आज तो हर आदमी, बच्चे से ले कर बूढ़े तक सभी बराती बनेंगे. आखिर 10 हजार शादियां जो हैं,’’ वर्माजी ने उंगली में कार की चाबी घुमाते हुए कहा, ‘‘आखिर मैं भी तो आज एक बराती हूं.’’

‘‘वर्माजी, एक बात समझ में नहीं आ रही कि क्या वाकई में पूरे स्टाफ को शादी में जाना है या फिर 10 हजार शादियों की खबर सुन कर आफिस से छुट्टी का एक बहाना मिल गया है,’’ सुरेश ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा.

‘‘लगता है कि आप को आज किसी शादी का न्योता नहीं मिला है, घर पर भाभीजी के साथ कैंडल लाइट डिनर करने का इरादा है. तभी इस तरीके की बातें कर रहे हो, वरना घर जल्दी जाने की सोच रहे होते सुरेश बाबू,’’ वर्माजी ने चुटकी लेते हुए कहा.

‘‘नहीं, वर्माजी, ऐसी बात नहीं है. शादी का न्योता तो है, लेकिन जाने का मन नहीं है, पत्नी चलने को कह रही है. लगता है जाना पड़ेगा.’’

‘‘क्यों भई…भाभीजी के मायके में शादी है,’’ वर्माजी ने आंख मारते हुए कहा.

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है, वर्माजी. पड़ोसी की शादी में जाना है. ऊपर वाले फ्लैट में नंदकिशोरजी रहते हैं, उन के बेटे राहुल की शादी है. मन इसलिए नहीं कर रहा कि बहुत दूर फार्म हाउस में शादी है. पहले तो 1 घंटा घर पहुंचने में लगेगा, फिर घर से कम से कम 1 घंटा फार्म हाउस पहुंचने में लगेगा. थक जाऊंगा. यदि आप कल की छुट्टी दे दें तो शादी में चला जाऊंगा.’’

‘‘अरे, सुरेश बाबू, आप डरते बहुत हैं. आज शादी में जाइए, कल की कल देखेंगे,’’ कह कर वर्माजी चले गए.

मुझे डरपोक कहता है, खुद जल्दी जाने के चक्कर में मेरे कंधे पर बंदूक रख कर चलाना चाहता है, सुरेश मन ही मन बुदबुदाया और काम में व्यस्त हो गया.

शाम को ठीक 5 बजे सुकन्या ने फोन कर के सुरेश को शादी में जाने की याद दिलाई कि सोसाइटी में लगभग सभी को नंदकिशोरजी ने शादी का न्योता दिया है और सभी शादी में जाएंगे. तभी चपरासी ने कहा, ‘‘साबजी, पूरा आफिस खाली हो गया है, मुझे भी शादी में जाना है, आप कितनी देर तक बैठेंगे?’’

चपरासी की बात सुन कर सुरेश ने काम बंद किया और धीमे से मुसकरा कर कहा, ‘‘मैं ने भी शादी में जाना है, आफिस बंद कर दो.’’

सुरेश ने कार स्टार्ट की, रास्ते में सोचने लगा कि दिल्ली एक महानगर है और 1 करोड़ से ऊपर की आबादी है, लेकिन एक दिन में 10 हजार शादियां कहां हो सकती हैं. घोड़ी, बैंड, हलवाई, वेटर, बसों के साथ होटल, पार्क, गलीमहल्ले आदि का इंतजाम मुश्किल लगता है. रास्ते में टै्रफिक भी कोई ज्यादा नहीं है, आम दिनों की तरह भीड़भाड़ है. आफिस से घर की 30 किलोमीटर की दूरी तय करने में 1 से सवा घंटा लग जाता है और लगभग आधी दिल्ली का सफर हो जाता है. अगर पूरी दिल्ली में 10 हजार शादियां हैं तो आधी दिल्ली में 5 हजार तो अवश्य होनी चाहिए. लेकिन लगता है लोगों को बढ़ाचढ़ा कर बातें करने की आदत है और ऊपर से टीवी चैनल वाले खबरें इस तरह से पेश करते हैं कि लोगों को विश्वास हो जाता है. यही सब सोचतेसोचते सुरेश घर पहुंच गया.

घर पर सुकन्या ने फौरन चाय के साथ समोसे परोसते हुए कहा, ‘‘टाइम से तैयार हो जाओ, सोसाइटी से सभी शादी में जा रहे हैं, जिन को नंदकिशोरजी ने न्योता दिया है.’’

‘‘बच्चे भी चलेंगे?’’

‘‘बच्चे अब बड़े हो गए हैं, हमारे साथ कहां जाएंगे.’’

‘‘हमारा जाना क्या जरूरी है?’’

‘‘जाना बहुत जरूरी है, एक तो वह ऊपर वाले फ्लैट में रहते हैं और फिर श्रीमती नंदकिशोरजी तो हमारी किटी पार्टी की मेंबर हैं. जो नहीं जाएगा, कच्चा चबा जाएंगी.’’

‘‘इतना डरती क्यों हो उस से? वह ऊपर वाले फ्लैट में जरूर रहते हैं, लेकिन साल 6 महीने में एकदो बार ही दुआ सलाम होती है, जाने न जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता है,’’ सुरेश ने चाय की चुस्कियों के बीच कहा.

‘‘डरे मेरी जूती…शादी में जाने की तमन्ना सिर्फ इसलिए है कि वह घर में बातें बड़ीबड़ी करती है, जैसे कोई अरबपति की बीवी हो. हम सोसाइटी की औरतें तो उस की शानशौकत का जायजा लेने जा रही हैं. किटी पार्टी का हर सदस्य शादी की हर गतिविधि और बारीक से बारीक पहलू पर नजर रखेगा. इसलिए जाना जरूरी है, चाहे कितना ही आंधीतूफान आ जाए.’’

सुकन्या की इस बात को उन की बेटी रोहिणी ने काटा, ‘‘पापा, आप को मालूम नहीं है, जेम्स बांड 007 की पूरी टीम साडि़यां पहन कर जासूसी करने में लग गई है. इन के वार से कोई नहीं बच सकता है…’’

सुकन्या ने बीच में बात काटते हुए कहा, ‘‘तुम लोगों के खाने का क्या हिसाब रहेगा. मुझे कम से कम बेफिक्री तो हो.’’

‘‘क्या मम्मा, अब हम बच्चे नहीं हैं, भाई पिज्जा और बर्गर ले कर आएगा. हमारा डिनर का मीनू तो छोटा सा है, आप का तो लंबाचौड़ा होगा,’’ कह कर रोहिणी खिलखिला कर हंस पड़ी. फिर चौंक कर बोली, ‘‘यह क्या मां, यह साड़ी पहनोगी…नहींनहीं, शादी में पहनने की साड़ी मैं सिलेक्ट करती हूं,’’ कहतेकहते रोहिणी ने एक साड़ी निकाली और मां के ऊपर लपेट कर बोली, ‘‘पापा, इधर देख कर बताओ कि मां कैसी लग रही हैं.’’

‘‘एक बात तो माननी पड़ेगी कि बेटी मां से अधिक सयानी हो गई है, श्रीमतीजी आज गश खा कर गिर जाएंगी.’’

तभी रोहन पिज्जा और बर्गर ले कर आ गया, ‘‘अरे, आज तो कमाल हो गया. मां तो दुलहन लग रही हैं. पूरी बरात में अलग से नजर आएंगी.’’

बच्चों की बातें सुन कर सुकन्या गर्व से फूल गई और तैयार होने लगी. तैयार हो कर सुरेश और सुकन्या जैसे ही कार में बैठने के लिए सोसाइटी के कंपाउंड में आए, सुरेश हैरानी के साथ बोल पड़े, ‘‘लगता है कि आज पूरी सोसाइटी शादी में जा रही है, सारे चमकधमक रहे हैं. वर्मा, शर्मा, रस्तोगी, साहनी, भसीन, गुप्ता, अग्रवाल सभी अपनी कारें निकाल रहे हैं, आज तो सोसाइटी कारविहीन हो जाएगी.’’

विदाई- भाग 2: नीरज ने कविता के आखिरी दिनों में क्या किया

उस ने आगे बढ़ कर अपनी पत्नी को बांहों में भर लिया. कविता अचानक हिचकियां ले कर रोने लगी. नीरज की आंखों से भी आंसू बह रहे थे.

कविता के शरीर ने जब कांपना बंद कर दिया तब नीरज ने उसे अपनी बांहों के घेरे से मुक्त किया. अब तक अपनी मजबूत इच्छाशक्ति का सहारा ले कर उस ने खुद को काफी संभाल भी लिया था.

‘‘मेरे सामने यह रोनाधोना नहीं चलेगा, जानेमन,’’ उस ने मुसकरा कर कविता के गाल पर चुटकी भरी, ‘‘इन मुसीबत के क्षणों को भी हम उत्साह, हंसीखुशी और प्रेम के साथ गुजारेंगे. यह वादा इसी वक्त तुम्हें मुझ से करना होगा, कविता.’’

नीरज ने अपना हाथ कविता के सामने कर दिया.

कविता शरमाते हुए पहली बार सहज ढंग से मुसकराई और उस ने हाथ बढ़ा कर नीरज का हाथ पकड़ लिया.

उस रात नीरज अपनी ससुराल में रुका. दोनों ने साथसाथ खाना खाया. फिर देर रात तक हाथों में हाथ ले कर बातें करते रहे.

भविष्य के बारे में कैसी भी योजना बनाने का अवसर तो नियति ने उन से छीन ही लिया था. अतीत की खट्टीमीठी यादों को ही उन दोनों ने खूब याद किया.

सुहागरात, शिमला में बिताया हनीमून, साथ की गई खरीदारी, देखी हुई जगहें, आपसी तकरार, प्यार में बिताए क्षण, प्रशंसा, नाराजगी, रूठनामनाना और अन्य ढेर सारी यादों को उन्होंने उस रात शब्दों के माध्यम से जिआ.

हंसतेमुसकराते, आंसू बहाते वे दोनों देर रात तक जागते रहे. कविता उसे यौन सुख देने की इच्छुक भी थी पर कैंसर ने इतना तेज दर्द पैदा किया कि उन का मिलन संभव न था.

अपनी बेबसी पर कविता की रुलाई फूट पड़ी. नीरज ने बड़े सहज अंदाज में पूरी बात को लिया. वह तब तक कविता के सिर को सहलाता रहा जब तक वह सो नहीं गई.

‘‘मैं तुम्हारी अंतिम सांस तक तुम्हारे पास हूं, कविता. इस दुनिया से तुम्हारी विदाई मायूसी व शिकायत के साथ नहीं बल्कि प्रेम व अपनेपन के एहसास के साथ होगी, यह वादा है मेरा तुम से,’’ नींद में डूबी कविता से यह वादा कर के ही नीरज ने सोने के लिए अपनी आंखें बंद कीं.

अगले दिन सुबह नीरज और कविता 2 कमरों वाले एक फ्लैट में  रहने चले आए. यह खाली पड़ा फ्लैट नीरज के एक पक्के दोस्त रवि का था. रवि ने फ्लैट दिया तो अन्य दोस्तों व आफिस के सहयोगियों ने जरूरत के दूसरे सामान भी फ्लैट में पहुंचा दिए.

नीरज ने आफिस से लंबी छुट्टी ले ली. जहां तक संभव होता अपना हर पल वह कविता के साथ गुजारने की कोशिश करता.

उन से मिलने रोज ही कोई न कोई घर का सदस्य, रिश्तेदार या दोस्त आ जाते. सभी अपनेअपने ढंग से सहानुभूति जाहिर कर उन दोनों का हौसला बढ़ाने की कोशिश करते.

नीरज की समझ में एक बात जल्दी ही आ गई कि हर सहानुभूतिपूर्ण बातचीत के बाद वह दोनों ही उदासी और निराशा का शिकार हो जाते थे. शब्दों के माध्यम से शरीर या मन की पीड़ा को कम करना संभव नहीं था.

इस समझ ने नीरज को बदल दिया. कविता का ध्यान उस की घातक बीमारी पर से हटा रहे, इस के लिए उस ने ज्यादा सक्रिय उपायों को इस्तेमाल में लाने का निर्णय किया.

उसी शाम वह बाजार से लूडो और कैरमबोर्ड खरीद लाया. कविता को ये दोनों ही खेल पसंद थे. जब भी समय मिलता दोनों के बीच लूडो की बाजी जम जाती.

एक सुबह रसोई में जा कर नीरज ने कविता से कहा, ‘‘मुझे भी खाना बनाना सिखाओ, मैं चाय बनाने के अलावा और कुछ जानता ही नहीं.’’

‘‘अच्छा, खाना बनाना सीखने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी जनाब,’’ कविता उस की आंखों में प्यार से झांकते हुए मुसकराई.

‘‘मैडमजी, मैं पूरी लगन से सीखूंगा.’’

‘‘मेरी डांट भी सुननी पड़ेगी.’’

‘‘मुझे मंजूर है.’’

‘‘तब पहले सब्जी काटना सीखो,’’ कविता ने 4 आलू मजाकमजाक में नीरज को पकड़ा दिए.

नीरज तो सचमुच आलुओं को धो कर उन्हें काटने को तैयार हो गया. कविता ने उसे रोकना भी चाहा, पर वह नहीं माना.

उसे ढंग से चाकू पकड़ना भी कविता को सिखाना पड़ा. नीरज ने आलू के आड़ेतिरछे टुकड़े बड़े ध्यान से काटे. दोनों ने ही इस काम में खूब मजा लिया.

‘‘अब मैं तुम्हें खिलाऊंगा आलू के पकौड़े,’’ नीरज की इस घोषणा को सुन कर कविता ने इतनी तरह की अजीबो- गरीब शक्लें बनाईं कि उस का हंसतेहंसते पेट दुखने लगा.

नीरज ने बेसन खुद घोला. तेल की कड़ाही के सामने खुद ही जमा रहा. कविता की सहायता व सलाह लेना उसे मंजूर था, पर पकौड़े बनाने का काम उसी ने किया.

उस दिन के बाद से नीरज भोजन बनाने के काम में कविता का बराबर हाथ बंटाता. कविता को भी उसे सिखाने में बहुत मजा आता. रसोई में साथसाथ बिताए समय के दौरान वह अपना दुखदर्द पूरी तरह भूल जाती.

‘‘मैं नहीं रहूंगी, तब भी आप कभी भूखे नहीं रहोगे. बहुत कुछ बनाना सीख गए हो अब आप,’’ एक रात सोने के समय कविता ने उसे छेड़ा.

‘‘तुम से मैं ने यह जो खाना बनाना सीखा है, शायद इसी की वजह से ऐसा समय कभी नहीं आएगा, जो तुम मेरे साथ मेरे दिल में कभी न रहो,’’ नीरज ने उस के होंठों को चूम लिया.

नीरज से लिपट कर बहुत देर तक खामोश रहने के बाद कविता ने धीमी आवाज में कहा, ‘‘आप के प्यार के कारण अब मुझे मौत से डर नहीं लगता है.

‘‘जिस से जानपहचान नहीं उस से डरना क्या. जीवन प्रेम से भरा हो तो मौत के बारे में सोचने की फुरसत किसे है,’’ नीरज ने इस बार उस की आंखों को बारीबारी से चूमा.

‘‘आप बहुत अच्छे हो,’’ कविता की आंखें नम होने लगीं.

‘‘थैंक यू. देखो, अगर मैं तुम्हारी तारीफ करने लगा तो सुबह हो जाएगी. कल अस्पताल जाना है. अब तुम आराम करो,’’ अपनी हथेली से नीरज ने कविता की आंखें मूंद दीं.

कुछ ही देर में कविता गहरी नींद के आगोश में पहुंच गई. नीरज देर तक उस के कमजोर पर शांत चेहरे को प्यार से निहारता रहा.

हर दूसरे दिन नीरज अपने किसी दोस्त की कार मांग लाता और कविता को उस की सहेलियों व मनपसंद रिश्तेदारों से मिलाने ले जाता. कभीकभी दोनों अकेले किसी उद्यान में जा कर हरियाली व रंगबिरंगे फूलों के बीच समय गुजारते. एकदूसरे का हाथ थाम कर अपने दिलों की बात कहते हुए समय कब बीत जाता उन्हें पता ही नहीं चलता.

टौनिक: पायल के अंदर क्यों थी हीन भावना

पायलबालकनी में खड़ी बारिश की बूंदों को निहार रही थी. मन ही मन खुद को कोस रही थी कि आज भी वह जयंत को ठीक से नाश्ता नही करा पाई. पायल बचपन से ही हर काम को परफैक्ट करना चाहती थी. अगर कोई काम उस से गलत हो जाता तो खुद को कोसना शुरू कर देती थी. पायल 42 वर्ष की सामान्य शक्ल सूरत की महिला थी. उसे अपनी बहुत सारी बातों से प्रौब्लम थी. उसे अपने रंग से ले कर बालों तक से प्रौब्लम थी.

आज पायल की सोसाइटी में तीज का फंक्शन था. सभी लेडीज बनठन कर गई थी. पायल ने भी अवसर के हिसाब से हरे रंग की शिफौन की साड़ी पहन रखी थी. मगर पायल खुद से संतुष्ट नहीं थी. उस ने देखा निधि 50 वर्ष की उम्र में भी 30 वर्ष की दिख रही हैं, वहीं पूजा की त्वचा एकदम कांच की तरह दमक रही है. चारू की आंखों के नीचे कोई काला घेरा नहीं है तो अंशु अपनी अदाओं से पूरी महफिल की जान बनी हुई हैं. उधर ऊर्जा अपनी जुल्फों को इधरउधर लहरा रही थी तो पायल अपने बालों पर शर्मिंदा हो रही थी.

कितने घने, मुलायम बाल थे उस के, मगर कुछ बच्चों के जन्म के बाद, कुछ मुंबई के पानी ने और रहीसही कसर हाइपोथायरायडिज्म ने पूरी कर दी थी. अपने झड़ू जैसे रूखे बालों को वह आइने में देखना ही नहीं चाहती थी. क्या कुसूर था उस का कि कुदरत ने सारी प्रौब्लम्स उस के ही नाम कर दी थीं.

तभी म्यूजिक आरंभ हो गया और सभी ब्यूटी स्टेज पर थिरकने लगी. पायल भी साड़ी संभालते हुए स्टेज पर थिरकने लगी, तभी पूजा उस के करीब आ कर बोली, ‘‘अरे पायल यह साड़ी पहन कर क्यों आई हो? कोई इंडोवैस्टर्न ड्रैस पहन कर आती तो तुम्हें नाचते हुए बिलकुल असुविधा नहीं होती.’’

पायल फीकी हंसी हंसते हुए बोली, ‘‘हां तुम इस क्रौपटौप और प्लाजो में बेहद स्मार्ट लग रही हो.’’

अचानक पायल की नजर सामने लगे आईने पर पड़ी. बिखरे बाल

और आंखों के नीचे काले घेरे, एकदम से पायल का मूड खराब हो गया.

नीचे आ कर उस ने जैसे ही कोल्डड्रिंक का गिलास उठाया कि तभी अंशु थिरकते हुए उस के करीब आई और बोली, ‘‘अरे पायल अगली बार साड़ी थोड़ी नीचे बांधना जैसे निधि ने बांधी हुई हैं, मगर थोड़ा सा पेट कम करो यार तुम अपना,’’ कह कर अंशु चली गई.

उस के बाद पायल वहां पर कुछ देर और बैठी रही, मगर उस का मन उड़ाउड़ा रहा.

घर आ कर सब से पहले उस ने अपने पति जयंत से पूछा, ‘‘कैसी लग रही हूं मैं?’’

जयंत उड़ती नजर उस पर डालते हुए बोला, ‘‘जैसी रोज लगती हो.’’

पायल बोली, ‘‘क्या तुम्हें लगता है मैं समय से पहले बूड़ी हो गई हूं?’’

जयंत चिढ़ते हुए बोला, ‘‘42 वर्ष की औरत बूढ़ी नहीं तो क्या जवान लगेगी?’’

‘‘अजीब हो तुम भी,’’ पायल रोतेरोते बोली और फिर उसी मनोस्थिति में उस ने खाना बनाया जो बेहद बेस्वाद था.

जयंत और बच्चों ने बड़ा बुरा मुंह बना कर खाना खाया. बेटी रिद्धिमा बोली, ‘‘निधि आंटी तो इतना अच्छा खाना बनाती है कि बस पूछो मत. एक आप हैं कि दाल भी ठीक से नहीं बना पाती हैं.’’

जयंत रूखे स्वर में बोला, ‘‘तुम्हारी मम्मी को रोने से ही फुरसत मिले तो ध्यान लगाए न खाने पर.’’

पायल बाथरूम में बंद हो गई और जोरजोर रोने लगी. जब कुछ मन हलका हुआ तो बाथरूम से बाहर निकली. जयंत पायल की लाललाल आंखें देख कर समझ गया कि आज वह फिर रोई है, मगर यह कोई नई बात नही है. जयंत पायल के करीब आ कर बोला, ‘‘आखिर कब तक पायल ये सब करती रहोगी? तुम जैसी हो, मुझे ठीक लगती हो.’’

पायल बोली, ‘‘बस ठीक ही लगती हूं न… जानती हूं औरों की तरह मैं खूबसूरत नही हूं और न ही स्मार्ट.’’

जयंत बिना कोई जवाब दिए अपने कमरे में चला गया.

पायल को बेहद घुटन हो रही थी. उसे लग रहा था कि वह खुल कर सांस नहीं ले पा रही है. उस ने चप्पलें डालीं और नीचे घूमने चली गई, घूमतेघूमते पायल बाहर निकल गई और सामने वाले पार्क में चली गई. हंसतेखिलखिलाते लोगों की भीड़ जमा थी पार्क में. कुछ दौड़ रहे थे, कुछ योगा कर रहे थे तो कुछ लोग घूम रहे थे. पायल ने खुद के कपड़े देखे, शायद ऐसे कपड़े पहन कर पार्क में आ गई थी बाकी सब लोग ट्रैक सूट या पैंट में थे.

पायल फिर से खुद को भलाबुरा कहने लगी. चलतेचलते पैरों में दर्द हो गया तो पायल बैठ गई. तभी एक 26-27 वर्ष का आकर्षक नौजवान आ कर पायल के बराबर में बैठ गया और बोला, ‘‘आप लगता है आज पहली बार घूमने आई हैं.’’

पायल को लगा कि उस ने अटपटे कपड़े पहन रखे हैं, इसलिए शायद यह लड़का ऐसे उस की खिल्ली उड़ा रहा है. फिर भी उस ने पूछा, ‘‘मेरे कपड़े देख कर पूछ रहे हो?’’

लड़का बोला, ‘‘अरे यह सूट तो आप पर एकदम फब रहा है. मैं तो यहां पर आने वाले हर खूबसूरत चेहरे की खबर रखता हूं. आप पहली बार दिखीं, इसलिए पूछ लिया.’’

पायल के होंठों पर बरबस मुसकान आ गई, ‘‘मेरे बारे में कह रहे हो?’’

लड़का बोला, ‘‘बाई दा वे मेरा नाम अकुल है, सामने वाले गुलमोहर गार्डन में रहता हूं्.’’

पायल बोली, ‘‘अरे मैं भी वहीं रहती हूं, मेरा नाम पायल है.’’

उस के बाद पायल वहां से उठ कर घूमने लगी. उस का मन फूल की तरह हलका हो उठा था. एक आकर्षक नौजवान ने आज उसे खूबसूरत बोला था. गुनगुनाते हुए वह घर पहुंची और सब के लिए मिल्क शेक बनाया.

जयंत हंसते हुए बोला, ‘‘ऐसे ही खुश रहा करो, बहुत अच्छी लगती हो.’’

अगले दिन पायल ने खुद ही जल्दीजल्दी डिनर बनाया और रात के डिनर के

बाद कदम खुदबखुद पार्क की ओर चल पड़े. अकुल अपने दोस्तों के साथ ऐक्सरसाइज कर रहा था. पायल ने भी घूमना शुरू कर दिया. तभी पीछे से अकुल की आवाज आई, ‘‘पायल एक मिनट रुको.’’

पायल को अकुल का पायल कहना थोड़ा अजीब, मगर अच्छा लगा.

अकुल पायल से बोला, ‘‘आप भी फिटनैस बैंड ले लीजिए, इस से आप को अपने गोल सैट करने आसान पड़ जाएंगे.’’

दोनों चलतेचलते बात कर रहे थे. देखते ही देखते 1 घंटा बीत गया. पायल को तब होश आया, जब उस के घर से बेटी का फोन आया, ‘‘मम्मी कितना घूमोगी? हम सब आप का वेट कर रहे हैं.’’

पायल और अकुल एकसाथ ही सोसाइटी

में वापस आ गए थे. अब यह रोज का नियम

हो गया था. पायल के आते ही अकुल अपने दोस्तों के गु्रप को बाय कह कर पायल के साथ घूमने लगता.

पायल और अकुल दोनों के बीच कुछ भी समान नहीं था इसलिए उन के पास ढेरों बातें होती थीं. अकुल बात करतेकरते पायल की कुछ ऐसी तारीफ कर देता कि पायल का अगला दिन बेहद अच्छा जाता.

पायल को जो तारीफ अपने पति से चाहिए होती थी वह उसे अब अकुल से मिल रही थी. अकुल पायल की जिंदगी में टौनिक का काम कर रहा था.

एक दिन अकुल पार्क नहीं आया, तो पायल बेहद

अनमनी सी रही. अगले दिन भी अकुल पार्क में नहीं आया तो पायल उस रात बिना घूमे ही घर लौट आई. घर आते ही पायल बिना किसी बात के अपने पति से उलझ पड़ी.

पायल रोज घूमने पार्क में जाती परंतु घूमने  से अधिक पायल की आंखें अकुल को ढूंढ़ती थीं. उस ने मन को समझ लिया था कि अब अकुल नहीं आएगा. दोनों ने ही एकदूसरे का नंबर भी नहीं लिया था. पायल और अकुल के बीच कोई गहरा रिश्ता न था, परंतु अकुल पायल के लिए टौनिक समान था. वह टौनिक जो उस की रुकीरुकी सी जिंदगी को चलाने में सहायक था.

पायल को फिर लगने लगा कि शायद उस से ही कुछ गलती हो गई होगी. कभी वह सोचती कि क्या पता अकुल उस से मजाक करता हो और वह बेवकूफ उसे सच मान बैठी. परंतु फिर भी रोज पायल न जाने क्यों पार्क जाती. उसे अब घूमने में मजा आने लगा था. उस ने अपने लिए ट्रैक सूट खरीद लिया था. अकुल को अब वह भूलने लगी थी.

एक दिन पायल घूम रही थी कि अचानक पीछे से आवाज आई, ‘‘हाय यंग लेडी.’’

पायल एकाएक मुड़ी तो देखा, अकुल खड़ा मुसकरा रहा था.

पायल रुखे स्वर में बोली, ‘‘कहां गायब हो गए थे.’’

अकुल बोला, ‘‘अपने होमटाउन चला

गया था.’’

पायल के मुंह से अचानक निकल गया, ‘‘पता है कितना मिस किया तुम्हें मैं ने.’’

अकुल शरारत से हंसता हुआ बोला, ‘‘वह क्यों भला? आखिर हम आप के हैं कौन?’’

पायल शरमा गई और बिना कुछ बोले वहां से चली गई. अब फिर से पायल की जिंदगी गुलजार हो गई थी.

एक दिन पायल का मूड बेहद खराब लग रहा था. अकुल बोला, ‘‘क्या हुआ पायल?’’

पायल रोनी सूरत बनाते हुए बोली, ‘‘पिछले

2 माह से मैं कितनी मेहनत कर रही हूं, मगर फिर भी मेरी स्किन, वेट पर कोई असर नहीं हो रहा है.’’

‘‘ठीक तो लग रही हैं आप, जैसे एक 40 वर्ष की महिला दिखती हैं?’’

पायल अकुल की तरफ देख कर मायूसी से बोली, ‘‘क्या मैं सच में 40 वर्ष की लगती हूं?’’

अकुल हैरान होते हुए बोला, ‘‘आप कितने वर्ष की दिखना चाहती हैं?’’

पायल बोली, ‘‘मगर तुम तो मुझे हमेशा यंग लेडी और ब्यूटीफुल और भी न जाने क्याक्या बोलते. सभी लड़के ऐसे ही होते हैं, पहले जयंत भी तुम्हारी तरह मेरी तारीफ करते थे और अब उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता.’’

अकुल हंसते हुए बोला, ‘‘आप को मेरी या जयंत की तारीफ की क्यों जरूरत है? अगर मैं कहूं आप 50 साल की लग रही हैं तो आप मान लेंगी और अगर मैं कहूं आप 20 वर्ष की लग रही हैं तो भी आप मान लेंगी?’’ आप की क्या अपनी कोई पहचान नहीं है या आप का अस्तित्व बस बाहरी खूबसूरती पर टिका हुआ है?’’

पायल कड़वे स्वर में बोली, ‘‘ये ज्ञान की बातें रहने दो, मगर जब दुनियाभर की कमियां तुम्हारे अंदर हों न तो तुम्हें मेरी बात समझ आएगी.’’

अकुल बोला, ‘‘आप गलत हैं पायल, आप कैसा दिखती हैं, यह इस बात

पर निर्भर करता है कि आप अंदर से कैसा महसूस करती हैं… ये बालों का रूखापन, थोड़ा सा वजन बढ़ना या चेहरे पर पिगमैंटेशन एक उम्र के साथ आम बात है… इन चीजों से खुद की पहचान मत बनाइए. सब से पहले खुद को प्यार करना सीखिए, अपने अंदर की औरत को दुलार करें, आप ने उस का बहुत तिरस्कार किया है… मेरी या जयंत की तारीफ की आप को जरूरत नहीं है. आप को जरूरत है खुद की तारीफ करने की… अगर कुछ कमी भी है तो उसे दिल से स्वीकार करें और उस पर काम करें और अगर कुछ न कर पाएं तो आगे बढ़ें… आप जैसी हैं अच्छी हैं, आप के पति या मेरी तारीफ के टौनिक की आप को जरूरत नहीं है…

‘‘कभी खुद की तारीफ खुद ही कीजिए, यकीन मानिए आप को किसी भी टौनिक की ताउम्र जरूरत नहीं पड़ेगी. खुद को प्यार करें, कोई गलती हो जाए तो खुद को माफ करें. जिंदगी बेहद खुशनुमा और प्यारी हो जाएगी… जिंदगी को खुल कर जीने के लिए अपने से बेहतर और कोई साथी नहीं होता है क्योंकि एक वही होता है जो बचपन से ले कर बुढ़ापे तक आप के साथ होता है. बाकी लोग तो आप की जीवन की रेलगाड़ी में आएंगे और जाएंगे, कुछ तारीफ करेंगे तो कुछ आलोचना. कब तक आप अपनी जिंदगी का रिमोट कंट्रोल दूसरों के हाथ में रखोगी… आज से नई शुरुआत करो और खुद से ही खुद का नया परिचय कराओ.’’

पायल हंसते हुए बोली, ‘‘ठीक है मेरे ज्ञानी बाबा… अब इस पायल को किसी और की तारीफों के टौनिक की जरूरत नहीं रहेगी, मगर तुम्हारी दोस्ती की अवश्य पड़ेगी.’’

अकुल अदा से सिर झकाते हुए बोला, ‘‘औलवेज ऐट योर सर्विस.’’

पप्पू अमेरिका से कब आएगा- भाग 3: क्यों उसके इंतजार में थी विभा

‘‘यह सब मैं नहीं पचा पाया. मैं अपने देश में, अपनों के बीच शांति से और सम्मानपूर्वक जीना चाहता था. मेरी पत्नी भी यही चाहती थी. इसलिए हम वापस आ गए. मेरी पढ़ाई और तजरबे के कारण यहां आते ही अच्छी नौकरी मिल गई.

‘‘मेरी समझ में नहीं आता कि हमारे देश में अमेरिका के प्रति इतना मोह क्यों है. हर कोई आंख बंद कर के अमेरिका

जाने को तैयार रहता है. यहां के लोग भोलीभाली लड़कियों को शादी के नाम पर वहां भेज कर अंधे कुएं में ढकेल देते हैं.’’

‘‘ठीक कहा तुम ने. मैं नहीं कहता कि सभी के साथ बुरा ही होता है पर जिस के साथ ऐसा होता है, उस की तो जिंदगी बरबाद हो जाती है न. आजकल हमारे देश में भी अच्छी नौकरियों या दूल्हों की कमी नहीं है,’’ नरेंद्र के जीजाजी बोले.

मनोहर, दीदी और जीजाजी को इतना भा गया कि वे उसे घर का ही सदस्य मानने लगे. वह भी नरेंद्र के साथसाथ शादी के कामों में इस तरह जुट गया जैसे शादी उसी के घर की हो.

शादी में अब केवल 2 दिन बाकी रह गए थे. घर मेहमान और सामान से भरा था. रात के 11 बज रहे थे. कुछ लोगों को छोड़ कर बाकी सब जिसे जहां जगह मिली, वहीं नींद में लुढ़के पडे़ थे. नरेंद्र भी बहुत थक गया था. थोड़ी देर आराम करने के लिए जगह ढूंढ़ रहा था. इतने में अर्चना उस के पास आई. उस के हाथ में एक लिफाफा था.

‘‘नरेंद्र, मैं कुछ ढूंढ़ रही थी तो मुझे दूल्हे की फोटो मिल गई. तुम इसे अपने पास रख लो. परसों लड़के वालों को लेने तुम्हें ही स्टेशन जाना होगा. तुम्हारे साथ मेरे देवरजी भी जाएंगे मगर उन्होंने भी लड़के वालों को नहीं देखा. इसलिए तुम्हें फोटो दे रही हूं. संभाल कर रखो. बरात को लिवा लाने में मदद मिलेगी.’’

अर्चना के हाथ से नरेंद्र ने फोटो ले ली. जैसे ही उस की नजर फोटो पर पड़ी उस के मन में फिर वही भावना जगी- कहीं देखा है इसे. पर कहां? दूर से भाईबहन को बतियाते देख विभा भी वहां आ गई.

‘‘सुनो, इस लिफाफे में दूल्हे की फोटो है. अपने पर्स में संभाल कर रख लो. परसों मुझे दे देना. बरात को लाने मुझे ही जाना है.’’

विभा ने लिफाफे में से फोटो निकाली, ‘‘अरे, यह तो महिंदर भाईसाहब का दामाद है.’’

नरेंद्र उछल पड़ा. उस की थकावट और नींद जाने कहां उड़ गई, ‘‘मगर यह बात तुम डंके की चोट पर कैसे कह रही हो? आखिर तुम ने भी तो उसे केवल एक बार शादी में ही देखा था.’’

‘‘आप मर्द लोग शादी में ताश खेलते हो, सुंदरसुंदर भाभियों पर लाइन मारते हो या राजनीति की चर्चाएं करते हों. शादी में दूल्हा या दुलहन बदल जाए तो भी तुम्हें पता नहीं चलता.’’

‘‘तो क्या तुम औरतों की तरह साजशृंगार कर के अदाएं बिखेरते चलें? खैर, छोड़ो असली बात तो बताओ.’’

‘‘शादी के अलबम दिखाने के लिए गेटटुगेदर के बहाने सिमरन भाभी ने सारी महिलाओं को बुलाया था. यह और बात है कि हमें झक मार कर 2 घंटे बैठ कर वीडियो भी देखना पड़ा. इतनी देर तक देखते रहने के बाद भला हम दूल्हे को कैसे भूल सकते हैं. मैं ही नहीं, सारी महिलाएं इसे पहचान लेंगी.’’

‘मगर अब करें क्या? यही तो सोचना है. शादी तो हमें हर हाल में रोकनी है’, नरेंद्र और विभा इसी चिंता के कारण रातभर सो नहीं पाए.

महिंदर भी नरेंद्र के अन्य मित्रों की तरह अपनी नौकरी पर निर्भर मध्यवर्ग का व्यक्ति था. बहुत सीधासादा और ईमानदार. उस ने अपनी जमापूंजी सब लगा कर अपनी लड़की की शादी इस लड़के से तय की थी कि लड़का सुंदर है, अच्छी नौकरी है. सब से बड़ी बात है लड़का अमेरिकावासी है. यह तो ‘बिन मांगे मोर’ था. उन लोगों ने सपनों में भी इस की कल्पना नहीं की थी. उन्होंने सोचा कि लड़की सुखी रहेगी. दूसरी बेटी के विवाह में वह हाथ भी बंटाएगी.

मगर यह आदमी शादी के बाद ऐसे गायब हुआ कि आज ही उस के बारे में पता चला जब उस की फोटो मिली.

महिंदर की बेटी लवली बेचारी आज भी इस की राह देख रही है. यहांवहां से तरहतरह की बातें सुन कर महिंदर को कुछकुछ अंदाजा हो गया है मगर घर में इस बात की चर्चा करने से डरता है. अब क्या किया जाए?

महिंदर की बात तो बाद में आती है. इस समय 2 दिन बाद होने वाली शादी को कैसे रोका जाए? वह कुछ कहे तो क्या दीदी और जीजाजी उस का विश्वास करेंगे? हमारे समाज में शादी टूटना बहुत बुरी बात है. नरेंद्र की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. वह अपनी भांजी की जिंदगी बरबाद होते नहीं देख सकता था.

पौ फटते ही नरेंद्र बिना किसी से कुछ कहेसुने विभा से फोटो ले कर निकल गया. 11 बजे तक वह महिंदर के घर में था. अब तक महिंदर के घर में सब को पता चल चुका था कि वे लोग ठगे गए थे. अब नरेंद्र की भांजी की घटना सुन कर उन का खून खौल उठा. उस के बाद की घटनाएं बड़ी तेजी से घटीं.

महिंदर को साथ ले कर नरेंद्र सारा दिन दौड़धूप करता रहा. शाम को महिंदर  को साथ ले कर टैक्सी से भोपाल के लिए निकल पड़ा. घर पहुंचतेपहुंचते रात के 11 बज गए. दीदी और जीजाजी नरेंद्र पर बहुत बिगड़े. पर नरेंद्र और महिंदरजी के मुख से सारी बात सुन कर उन के पांव तले की जमीन खिसक गई. रात आधी हो गई थी. घर मेहमानों से भरा था. क्या करें क्या न करें. वे सब अंदर सामान वाले कमरे में जागते रहे.

सुबह 10 बजे की गाड़ी से बरात आने वाली थी. पर सुबह होते ही जैसे कोहराम मच गया. अखबार में नाम और बड़ीबड़ी तसवीरों के साथ अमेरिकी दूल्हे की सारी कहानी छपी थी. शादी का जो सुमधुर कोलाहल था वह भयानक नीरवता में बदल गया जिस में मेहमानों की खुसुरफुसुर स्पष्ट रूप से सुनाई दे रही थी.

इस घटना को कोई 20-22 वर्ष गुजर गए हैं. अब विभा नहीं कहती ‘जाने पप्पू कब बड़ा होगा.’ क्योंकि इस लंबे अंतराल में उस के जीवन में बहुत से उतारचढ़ाव आए. जमापूंजी इकट््ठी करने के बाद भी पैसे कम पड़े तो मकान को गिरवी रख कर पप्पू यानी सुशांत को विदेश भेजा गया. वहां उस की पढ़ाई समाप्त हुई और अच्छी सी नौकरी भी लग गई. जाने से पहले पप्पू ने जो कहा था, वे शब्द आज भी विभा के कानों में गूंज रहे थे. उस ने नम आंखों से दोनों के चरण छूते हुए कहा था, ‘मां, बाबूजी, आप ने अपनी जिंदगीभर की जमापूंजी मुझ पर दांव लगा दी, मैं यह बात कभी नहीं भूलूंगा. मैं आप लोगों का सपना अवश्य पूरा करूंगा. खूब परिश्रम करूंगा और  पढ़ाई पूरी होते ही अच्छी नौकरी अवश्य मिल जाएगी. मैं अपना मकान छुड़वा लूंगा और हम सब मिल कर सुखचैन से रहेंगे.’’

सुशांत के जाने के बाद 3 वर्षों में ही नरेंद्र इतना बीमार पड़ा कि वह बिस्तर से उठ ही नहीं पाया. नई नौकरी का वास्ता दे कर सुशांत आ नहीं पाया. विभा कहां जाती. उस ने एक वृद्धाश्रम में पनाह ले ली. अब वह पेड़ के उस सूखे, पीले पत्ते की तरह है जो किसी भी क्षण पेड़ की टहनी से अलग हो कर धूल में मिल सकता है और अपना अस्तित्व खो सकता है. फिर भी उसे इंतजार है…

सूखे और झुर्रियों वाले चेहरे पर धंसी हुई निस्तेज आंखें कहीं दूर शून्य में फंसी हुई हैं. उसे इंतजार है अपने बेटे का. उस के सूखे होंठ बुदबुदा रहे हैं,‘जाने पप्पू कब आएगा…

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें