family story in hindi

family story in hindi
क्या तुम मेरी दोस्ती का इतना भी मान नहीं रखोगी? मेरे इतने अनुनयविनय पर उस ने कहा कि वह सोच कर जवाब देगी. ये पत्र लौटाना शायद यही इंगित करता है कि वह अतीत भुला कर एक नई जिंदगी शुरू करने के लिए अपनेआप को तैयार कर रही है. पर उस ने ये पत्र आप को क्यों लौटाए, ये मेरी समझ नहीं आ रहा है.’’
‘‘अब छोड़ो न,’’ मैं ने पत्र समेटते हुए बात समाप्त करनी चाही. मैं नहीं चाहती थी
कि गड़े मुरदे उखड़ें और मेरा वह कठोर एकतरफा रूप जतिन के सामने आए, ‘‘मैं ये खत जला दूंगी. ज्योति का अतीत यहीं खत्म. अब वह आराम से एक नई जिंदगी की शुरुआत करेगी.’’
‘‘हां मां, काश ऐसा ही हो,’’ जतिन के चेहरे पर प्रसन्नता की रेखा खिंच गई. उस ने सामने रखे खतों में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. मैं समझ गई कि ज्योति का अध्याय इस की जिंदगी की किताब से निकल चुका है. संजना लौट आई थी.
जतिन और संजना लौट गए. मैं ज्योति के खत अलमारी से जलाने के लिए निकाल लाई. मैं अच्छी तरह समझ सकती हूं ये खत वह मुझे क्यों दे गई है. मैं ने उस के चरित्र पर आक्षेप लगाते हुए उसे कालेज से निकालने की जो धमकी दी थी, उस से वह उस समय भले ही डर गई हो पर वह अपमान उसे हमेशा कचोटता रहा होगा. शायद अपनी बेगुनाही का सुबूत देने ही वह यहां आई थी. मुझे अपने सभी अनुत्तरित प्रश्नों का जवाब मिल गया था, इसलिए इन पत्रों को जला देना ही उचित था.
मोमबत्ती की लौ में एक के बाद एक पत्र की होली जल रही थी. मेरे मस्तिष्क में विचारों का अंधड़ चल रहा था. मुझे शर्मिंदा करने आई थी यह लड़की. पर गुनहगार तो तुम हो ज्योति वर्मा. अपूर्ण होते हुए भी तुम ने प्यार करने का साहस कैसे किया और वह भी मेरे बेटे से? इन पत्रों को तुम ने अब तक संभाल कर रखा था, इसलिए न कि तुम जतिन से प्यार करती थीं.
अंतिम पत्र हाथ में लेते वक्त मुझे कुछ अजीब सा लगा. यह अन्य पत्रों के लिफाफों से अलग किस्म का लिफाफा था. मैं ने उसे मोमबत्ती की लौ से छुआ तो दिया, लेकिन पते पर नाम पढ़ते ही मुझे करंट सा लगा. यह तो मेरे नाम था. तुरंत मैं ने आग बुझाई. शुक्र है, लिफाफा ही जला था. कांपते हाथों से मैं ने अंदर से खत निकाला. पत्र मुझे संबोधित था:
डियर मैडम, सुना था वक्त के साथ इंसान के जख्म भर जाते हैं, किंतु यदि ये जख्म कटु वचनों ने दिए हैं तो युगों का अंतराल भी इन जख्मों को नहीं भर पाता. आप द्वारा दिए जख्म मेरे सीने
में अब तक हरे हैं. मैं अपनी गलती मानती हूं कि मुझे पढ़ाई पर ही ध्यान देना चाहिए था, लेकिन मुझ पर आरोप लगा कर और अपने
बेटे से एक बार भी पूछताछ किए बिना आप ने जो एकतरफा निर्णय सुना दिया, उस से मेरे दिल में बसी आप की सम्मानित छवि तारतार हो गई.
प्रिंसिपल की कुरसी पर एक पूर्वाग्रहग्रसित मां को बोलते देख मैं अवाक रह गई थी. चाहती तो ये पत्र मैं आप को अगले दिन ही ला कर दिखा सकती थी, लेकिन क्या फायदा? आप को मुझ पर विश्वास ही कहां था? आप ने मुझे अपनी सफाई पेश करने का एक मौका भी नहीं दिया. सीधा मुझे चरित्रहीन ठहराते हुए कालेज से निकालने की धमकी दे डाली. मामामामी के पास पल रही मुझ अनाथ के लिए अपमान का घूंट पी जाने के अलावा अन्य कोई चारा न था. जतिन को कहती, तो वह आप के खिलाफ विद्रोह पर उतर आता. मांबाप के प्यार को तरसती यह अनाथ मांबेटे के बीच दीवार नहीं बनना चाहती थी. प्यार तो और भी मिल सकता है, मां नहीं. इसलिए मैं ने एक मनगढ़ंत झूठ बोल कर जतिन से किनारा कर लिया…
पत्र थामे मेरे हाथ कांपने लगे थे पर नजरें उसी पर टिकी रहीं…
और देखिए संजना के रूप में जतिन को दूसरा प्यार भी मिल गया और मां भी साथ है. मेरा क्या, जिस के खाते में कोई प्यार नहीं लिखा, उसे कैसे मिल सकता है? मैं विदेश चली गई. नाम, दौलत सब कमा लेने के बावजूद जीवन में एक खालीपन सा महसूस होता रहा. शायद उसे ही भरने इंडिया लौट आई. दोस्त के रूप में जतिन से मिल कर अच्छा लगा, लेकिन दोस्त के रूप में उस की मुझ से जो अपेक्षाएं हैं वे शायद मैं पूरी नहीं कर पाऊंगी. मैं न तो उसे सच बता सकती हूं, न उस का प्रस्ताव मान सकती हूं. शायद मेरा इंडिया लौटने का निर्णय ही गलत था. मैं किसी को खुशी नहीं दे सकती, इसलिए मैं हमेशाहमेशा के लिए विदेश लौट रही हूं. जानेअनजाने आप लोगों की जिंदगी में आने और आप लोगों को दुख पहुंचाने के लिए क्षमाप्रार्थी हूं.
ज्योति पत्र समाप्त कर मैं देर तक शून्य में आंखें गड़ाए बैठी रही. अहंकार का किला लड़खड़ा कर धराशायी हो चुका था. मैं जतिन और ज्योति के सच्चे प्यार को नहीं पहचान पाई. बेटे को उस के प्यार से दूर कर दिया. न तो मैं एक अच्छी मां बन पाई और न एक अच्छी प्रिंसिपल. अंधी ममता के वशीभूत एक छात्रा का जीवन बरबाद करने पर उतर आई और एक तरह से कर ही डाला. कुछ प्रश्न दिमाग में फिर से उभरने लगे थे. ज्योति इंडिया क्यों आई थी? क्या इस उम्मीद में कि शायद जतिन अब भी उस का इंतजार कर रहा हो? मेरे बेटे का घर तो बस गया, लेकिन क्या ज्योति बेगुनाह होते हुए भी जिंदगी में कभी किसी का हाथ थाम पाएगी? अनुत्तरित प्रश्नों की बौछार ने मुझे निरुत्तर कर दिया.
‘‘अम्माजी, ऐसा कभी नहीं हो सकता. आप मेरी मां हैं, मैं आप की बात पर विश्वास करूंगा. किंतु लगता है आप को गलतफहमी हुई है. रेखा शराब पीने लगी है, यह कैसे मान लूं, मैं.’’
‘‘बेटा, तेरे घर में तूफान आया है. और मैं तेरी मां हूं. यदि तेरे घर को तबाह करने वाले तूफान की आहट न पा सकूं तो मुझ से बढ़ कर मूंढ़ कौन होगा. बस, मैं तो यही कहती हूं, जल्दी से जल्दी इंडिया आ जा और तूफान से होने वाली तबाही को रोक ले.’’
बेटे देवेश से बात कर के अम्माजी ने फोन रख दिया था. ‘देवेश आज यहां नहीं है, तो मेरा तो कर्तव्य है कि उस के घर के तिनके बिखरने से पहले उन्हें बचा लूं,’ सोचतेसोचते अम्माजी वहीं सोफे पर लेट गई थीं. बड़े आश्चर्य की बात है कि रेखा पीती है, वे जानती न थीं. वह तो सोसायटी के गेट पर बैठे चौकीदार ने सुबह बताया था, ‘माताजी, देवेश बाबू एक शरीफ और समझदार व्यक्ति हैं.
2 साल पहले जब वे विदेश जा रहे थे तो कहा था कि घर तुम पर छोड़ कर जा रहा हूं, मुझे यह भी याद है कि उन्होंने आप का फोन नंबर भी दिया था, कहा था कि जरूरत पड़े तो अम्माजी को सूचित कर देना. इसीलिए बता रहा हूं, मैम का देर से घर आना ठीक नहीं लगता. आप तो बुजुर्ग हैं. मैम आप की बहू हैं, कहते शर्म आती है. अच्छा हुआ जो आप आ गई हैं संभाल लेंगी.’ सुन कर अम्माजी सन्न रह गई थीं. चुपचाप फ्लैट पर आ गई थीं.
सुबह का समय था, रेखा घर में नहीं थी. ‘‘मैम तो सुबह निकल जाती हैं. देररात तक वापस आती हैं. मैं तो नौकरानी हूं, क्या कहूं? अच्छा हुआ आप आ गई हैं. अम्माजी, मैं अब यहां नहीं रहूंगी. आप ही ने मुझे यहां भेजा था, आप से ही छुट्टी चाहती हूं. बस, यह नशे की लत है ही बुरी. छोटा मुंह बड़ी बात. यदि झूठ बोलूं तो फूफी को सौ जूती मार लो…’’ नौकरानी फूफी ने भी जब चौकीदार की बात को दोहराया तो उन्हें लगा कि यहां हालात सचमुच ठीक नहीं हैं.
नौकरानी फूफी आगे बोली, ‘‘अम्माजी, बैठो, खाना तैयार है. मूली के परांठे बनाए हैं.’’ अम्माजी बड़ी अनमनी सी बोलीं, ‘‘छोड़ो फूफी, मन नहीं कर रहा. अभी तो बहू का इंतजार कर रही हूं. आज तो शनिवार है, जल्दी आ जाएगी.’’ वे सोफे पर बैठ गईं और अतीत में खो गईं.
देवेश और राकेश अम्माजी के 2 बेटे हैं. जब उन के पति की मृत्यु हुई थी तो दोनों की उम्र 12 वर्ष और 10 वर्ष थी. अम्माजी का वैसे तो नाम अल्पना है पर उन की समझदारी और सोच को देख पूरा महल्ला उन्हें अम्माजी कहता था. पति के न रहने पर उन्होंने बड़ी मुसीबतों में दिन काटे हैं. सब याद है उन्हें.
हरियाणा के छोटे से गांव में स्कूल की छोटी सी नौकरी थी. उसी में सारा गुजारा करना होता था. सो, बच्चों को भी कंजूसी से चलने की आदत थी.
अम्माजी ने दोनों बच्चों को इंजीनियर बनाया था. कितनी परेशानी से वे पढ़े थे, अम्माजी से ज्यादा कौन जानता था. फिर दोनों का विवाह भी किया था उन्होंने ही. ‘‘अम्माजी, खाना टेबल पर लगा दिया है,’’ नौकरानी की आवाज सुन कर वे वर्तमान में लौटीं.
अम्माजी 60 की होने वाली थीं. रिटायर होने के बाद देवेश के साथ रहने की सोच रही थीं. देवेश की शादी को 2 वर्ष बीते तो उसे कंपनी की तरफ से एक प्रोजैक्ट के लिए जरमनी जाना पड़ गया. 3 वर्षों का कौन्ट्रैक्ट था. पैसे भी अच्छे मिल रहे थे. ऐसे सुअवसर को देवेश छोड़ना नहीं चाहता था. देवेश के जाने के कुछ दिनों पहले रेखा ने भी एक नौकरी जौइन कर ली थी. औफिस, उस के घर से काफी दूर था.
एक दिन उस के एक सहयोगी ने कहा, ‘‘रेखा, यहीं औफिस के करीब सोसायटी फ्लैट है, चाहो तो किराए पर ले सकती हो. इतनी दूर आनंद विहार से द्वारका आनाजाना आसान नहीं है. आनंद विहार के फ्लैट सुंदर व सस्ते भी थे. कम किराए में सुंदर फ्लैट. अम्माजी, देवेश और रेखा तीनों को अच्छा लगा.
देवेश के जरमनी जाने से पहले घर बदल भी लिया था. एक रोज देवेश ने रेखा से कहा, ‘यह फ्लैट छोटा है पर गुजारे लायक है. जरमनी से लौटूंगा तो मैं काफी पैसा बचा लूंगा. 50 लाख रुपए के लगभग मेरे पास होंगे, तब मैं अपना फ्लैट खरीद लूंगा.’ ‘ठीक कहते हैं आप, दिल्ली में हमारा अपना मकान होगा. लोगों का यह सपना होता है. हमारा भी यह सपना है,’ रेखा बोली थी.
दरअसल, देवेश ने इस प्रोजैक्ट के लिए हामी भरी ही इसलिए थी. वह बरसों पहले देखा ‘अपना घर’ का सपना पूरा करना चाहता था. इसलिए एकएक पैसा इकट्ठा कर रहा था. बेशक, 3 वर्षों के लिए पत्नी से दूर होना पड़े, पर यही एक रास्ता था. यह बात रेखा भी जानती थी.
देवेश जरमनी चला गया. शुरू में रेखा को खालीपन लगता था. अकसर अम्माजी आ जाती थीं. पर उन की उम्र ढल रही थी. सो, आनाजाना आसान न था. महीनों गुजर जाते. बस, फोन पर सासबहू एकदूसरे का हाल ले लेतीं. रेखा एक समझदार लड़की है. आज तक सासबहू में तूतूमैंमैं कभी नहीं हुई. अम्माजी यहां आ कर पैर फैला कर सोती हैं. इस पर फूफी नौकरानी हमेशा कहती, ‘अच्छी बहू मिली है, अम्माजी.’ उसी फूफी के मुंह से यह सब सुन कर उन का मन खिन्न हो गया. तभी दरवाजे की घंटी बजी. अम्माजी ने समय देखा कि रात में पूरे 12 बजे थे. दिमाग घूम गया.
‘‘अरे फूफी, देखो, लगता है रेखा आ गई है.’’
‘‘हां, वही है.’’
अम्माजी को ड्राइंगरूम में बैठा देख वह सहम गई. ‘‘अम्माजी, आप?’’ उस ने खुद ही महसूस किया कि उस की आवाज लड़खड़ा रही है.
‘‘बहू, इतनी देर?’’
‘‘वह, मेरी सहेली की बेटी का जन्मदिन था. सो, लेट हो गई.’’ उस ने झूठ बोला था. अम्माजी जानती थीं. पर कुछ भी न कहा सिवा इस के, ‘‘अच्छा, हाथमुंह धो ले, मैं तेरे इंतजार में भूखी बैठी हूं.’’
वह हड़बड़ा कर बाथरूम में घुस गई थी. शावर लेते हुए वह सोचने लगी, कुछ देर पहले नशे में धुत्त थी. टैक्सी में बैठी बार वाली उस घटना पर हंस रही थी- नंदिनी और एक शराबी कैसे दोनों लिपटे हुए एकदूसरे को चूमचाट रहे थे. बाकी लोग तालियां बजा कर तमाशा देख रहे थे.
एक शराबी उस को खींच कर नाचने के डांस?फ्लोर पर ले आया. वह शर्म से पानीपानी हो गई थी. मौका ताड़ कर वह भाग कर बार से बाहर आ गई. नशा उतर रहा था, जो टैक्सी मिली, बैठ कर घर आ गई. अच्छा हुआ जो निकल आई, पता नहीं, शायद अम्माजी को शक हो गया है या उसे यों ही लग रहा है. और वह सोसायटी के गेट पर बैठा मुच्छड़ चौकीदार, गेट खोलते समय ऐसे घूर रहा था, जैसे कह रहा हो, ‘मैडमजी, आज तो बड़ी जल्दी घर लौट आईं.’
नहाधो कर वह काफी हलका महसूस कर रही थी. टेबल पर अम्माजी उस का इंतजार कर रही थीं.
‘‘बेटा, देवेश का फोन आया था. बता रहा था प्रोजैक्ट 6 महीने पहले खत्म हो रहा है. वह शायद इसी साल के दिसंबर में आएगा. और मैं भी दिसंबर में रिटायर हो कर तुम लोगों के पास रहूंगी.’’
‘देवेश जल्दी आ रहे हैं’ सुन कर रेखा के मन में खुशी की तरंग दौड़ गई. पर, अम्माजी हमारे साथ हेंगी, यह तो कभी सोचा भी न था.
‘‘अभी मैं 15 दिनों की छुट्टी ले कर आई हूं,’’ अम्माजी ने बरतन समेटते हुए सूचना दी थी. यानी 15 दिन अभी रहेंगी. उस के बाद रिटायर हो कर भी यहीं हमारे पास रहेंगी. इस का मतलब वह इन 15 दिनों तक डिं्रक से दूर रहेगी. और जब अम्मा यहां रहने आ जाएंगी तो फिर उस के पीने का क्या होगा? यही सब सोच रही थी रेखा.
वह डाइनिंग टेबल से उठ कर बिस्तर पर लेट गई और सोचने लगी, यह उसे क्या हो गया है ? उस की हर बात ड्रिंक से जुड़ी होती है. पीने के अलावा वह कुछ सोचती ही नहीं. अगर अम्माजी को पता लग गया, मैं क्लब जाती हूं, पीती हूं, तो क्या होगा? यह कैसा शौक पाल बैठी मैं?
बड़ा अजीब सा संयोग था जब दीपा ने उसे औफर दिया था, ‘तुम अकेली हो, तुम्हारे पति बाहर हैं, कैसे वक्त काटती हो?’
‘फिर क्या करूं खाली समय में?’ उस ने अचकचा कर दीपा से पूछा था.
‘अरे, मेरे साथ चलो, भूल जाओगी अकेलापन.’
‘कहां जाना होगा मुझे?’ मासूम सा प्रश्न किया रेखा ने.
‘चलोगी तो जान जाओगी,’ दीपा ने उस के साथ शाम का समय फिक्स किया था.
इस कल्पना से कि उस ने मेरे खिलाफ सब उगल दिया होगा, मेरा सर्वांग कांप उठा. ‘‘जल्दी कर, संजना आती होगी,’’ मैं ने अपनी बेकाबू धड़कनों को संभालने का प्रयास किया.
‘‘संजना जानती है ज्योति के बारे में. मैं ने उसे सब बता दिया है… सिवा इन पत्रों के,’’ जतिन नजरें झुकाए धीरे से बोला.
‘‘क्या? उसे यह सब बताने की क्या जरूरत थी, वह भी ऐसी अवस्था में?’’ मुझे जतिन पर गुस्सा आने लगा था. यह एक के बाद एक नादानियां किए जा रहा था. इसे क्या व्यावहारिकता की जरा भी समझ नहीं?
‘‘जरूरत थी मां और वह बहुत खुश है ज्योति के बारे में जान कर.’’
मुझे लगा, इस लड़के का दिमाग घूम गया है.
‘‘आप पहले पूरी बात सुन लीजिए, फिर सब समझ आ जाएगा. ज्योति ने बताया कि वह मुझ से शादी नहीं कर सकती, क्योंकि वह अपूर्ण है. एक दुर्घटना में वह अपने मातापिता के साथ अपनी प्रजनन क्षमता खो चुकी है, इसलिए वह किसी से विवाह नहीं कर सकती. आप की तरह मैं भी उस वक्त यह सुन कर जड़ रह गया था. इतनी बड़ी बात और ज्योति मुझे अब बता रही थी? अंदर से दूसरी आवाज आई, शुक्र है बता दिया. शादी के बाद पता चलता तो? तभी तीसरी आवाज आई, कहीं यह मुझे परख तो नहीं रही? मुझे असमंजस में खड़ा देख ज्योति आगे बोली कि इस स्थिति में तुम क्या, कोई भी लड़का मुझ से विवाह नहीं करेगा. मुझे तुम्हें पहले बता देना चाहिए था. पता नहीं अब तक किस गफलत में डूबी रही. खैर… अब हमारे रास्ते अलग हैं. वह जाने लगी तो मुझ से रहा नहीं गया. मैं ने आगे बढ़ कर उस का हाथ थाम लिया. नहीं ज्योति, मुझे छोड़ कर मत जाओ. मैं नहीं रह पाऊंगा. हम बच्चा गोद ले लेंगे.’’
मैं ने तमक कर जतिन को देखा, लेकिन इस वक्त उस पर मेरा रोब, खौफ, प्यार सब बेअसर था. वह ज्योति के खयालों में ही खोया हुआ था.
‘‘इस पर ज्योति का कहना था कि भावुकता में बह कर मैं न तुम्हारा जीवन बरबाद करना चाहती हूं, न अपना. आज भले ही तुम भावुकता में मेरा हाथ थाम लो, लेकिन कल लोगों के ताने, मां का विलाप तुम्हें यथार्थ के धरातल पर ला खड़ा करेगा. तब तुम्हें अपने निर्णय पर पछतावा होगा. फिर या तो तुम मेरी अवहेलना करोगे या सहानुभूति दर्शाओगे और मुझे दोनों ही मंजूर नहीं. मैं कालेज से निकल कर आगे और पढ़ना चाहती हूं. कुछ बन कर दिखाना चाहती हूं. अपनी अपूर्णता को अपनी प्रतिभा से मैं पूर्णता में बदल दूंगी. मैं ने उस से कहा था कि वह सब तुम मेरे साथ रह कर भी कर सकती हो ज्योति. लेकिन उस का कहना था कि नहीं जतिन, मुझे बैसाखियों पर चलने का शौक नहीं है.
‘‘उस समय जरूर मुझे ऐसा लगा था मां कि अति आत्मविश्वास ने इसे अंधा बना दिया है. यह अपना भलाबुरा नहीं सोच पा रही है. मैं स्वयं को अपमानित महसूस कर रहा
था. लेकिन आज सोचता हूं तो लगता है उस ने जो भी किया, एकदम सही किया था. प्यार विशुद्ध प्यार होता है. जहां उस में दया, सहानुभूति, सहारे या विवशता का भाव आ जाता है, वहां प्यार खत्म हो जाता है. हम ने अपने प्यार को वहीं लगाम दी, तो कम से कम हमारा दोस्ताना तो जीवित रहा. कालेज खत्म कर के मैं नौकरी करने लगा और वह अपने सपने पूरे करने के लिए विदेश चली गई. व्यस्तता के कारण हमारा संपर्क घटतेघटते एकदम समाप्त हो गया.
‘‘कुछ महीने पहले मेरी उस से अचानक मुलाकात हो गई. पुणे की एक कंपनी में वह मैनेजर बन कर आई है. मैं तो अकसर पुणे जाता रहता हूं. एक व्यावसायिक मीटिंग में उसे देखा तो हैरान रह गया. मीटिंग के बाद हम मिले. दोस्तों की तरह साथ में डिनर भी किया. बहुत अच्छा लगा. पता चला, उस ने अभी तक शादी नहीं की है. बस मेरे दिमाग
में संजना के विधुर भैया का खयाल आ गया. आप तो जानती ही हैं मां, कितने संपन्न और अच्छे युवक हैं राजीव भैया. 2 साल होने को आए हैं सुरेखा भाभी के देहांत को. रिश्ते बहुत आ रहे हैं उन के लिए पर नन्ही सी नैना के मोह ने उन्हें जकड़ रखा है.
‘‘कहते हैं कि विवाह कर आने वाली लड़की खुद भी तो मां बनना चाहेगी और अपना बच्चा होते ही वह नैना की अवहेलना करने लग जाएगी. मां, यदि ज्योति की शादी उन से हो जाए तो कोई समस्या ही नहीं रहेगी, क्योंकि ज्योति तो मां बन ही नहीं सकती. दोनों एकदूसरे के लिए उपयुक्त पात्र हैं. मैं ने संजना को ज्योति के बारे में बताया तो वह भी बहुत खुश हुई. मां, ज्योति की कमी उस की गृहस्थी बसाने में उस की खूबी बन जाएगी,’’ जतिन बेहद उत्साहित हो चला था.
‘‘तुम ने ज्योति से बात की?’’ मैं अब भी सशंकित थी.
‘‘हां मां. उस ने इतनी अच्छी दोस्ती निभाई तो अब उस का घर बसाना मेरा फर्ज बनता है. मैं ज्योति से मिला और उस के सामने सारी बात स्पष्ट खोल कर रख दी.’’
‘‘वह मान गई?’’ मुझे अब भी विश्वास नहीं हो रहा था.
‘‘नहीं मां, ज्योति इतनी आसानी से मानने वालों में नहीं है मैं जानता था. वह नाराज हो गई थी कि मैं क्यों उसे अपनी जिंदगी जीने नहीं देता? लेकिन मैं ने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली हैं. मैं ने उसे अपनी दोस्ती का वास्ता दिया. जिंदगी की व्यावहारिकता समझाई कि इतनी पहाड़ सी जिंदगी बिना किसी सहारे के नहीं बिताई जा सकती. विशेषकर जीवन के संध्याकाल में जीवनसाथी की कमी तुम्हें अवश्य खलेगी. तुम आर्थिक रूप से सक्षम हो, अपने पैरों पर खड़ी हो, जब चाहो उचित न लगने पर संबंध तोड़ सकती हो. इस रिश्ते में तो कोई दया, सहानुभूति वाली बात भी नहीं है. राजीव भैया तुम्हारा सहारा बनेंगे तो तुम उन का सहारा बनोगी. 2 अपूर्ण मिल कर पूर्ण हो जाएंगे.
‘‘तुम ने मुझे यथार्थ के धरातल पर खड़ा कर के सोचने के लिए मजबूर किया था, आज मैं तुम से उसी यथार्थ के धरातल पर खड़ा हो कर सोचने की प्रार्थना कर रहा हूं.
ज्योति को इतने बरसों बाद एकाएक सामने देख कर मैं हैरान हो उठी. उस ने मुझे जतिन की शादी की बधाई दी.
‘‘मैं काफी समय से विदेश में थी. अभी कुछ समय पूर्व ही इंडिया लौटी हूं. जतिन की शादी की बात सुनी तो बेहद खुशी हुई. आप को बधाई देने के लिए मैं खुद को न रोक सकी, इसीलिए आप के पास चली आई. ये कुछ खत हैं, अब ये आप की अमानत हैं. आप इन का जो करना चाहें करें, मैं चलती हूं.’’
‘‘अरे, कुछ देर तो बैठो… चाय वगैरह…’’ मैं कहती ही रह गई पर वह उठ कर खड़ी हो गई.
‘‘बस, आप को भी तो कालेज जाना होगा,’’ कह कर तेज कदमों से चल दी.
उस के जाने के बाद मैं ने खतों पर सरसरी निगाह डाली तो चौंक उठी. वे जतिन द्वारा ज्योति के नाम लिखे प्रेमपत्र थे. शुरू के 1-2 पत्र पढ़ कर मैं ने सब उठा कर रख दिए. कालेज में आएदिन ऐसे प्रेमपत्र पकड़े जाते थे, इसीलिए ऐसे पत्रों में मेरी कोई रुचि नहीं रह गई थी. पर चूंकि जतिन की लिखावट थी, इसलिए मैं ने 1-2 पत्र पढ़ लिए थे. उन से
ही मुझे प्रेम की गहराई का काफी कुछ अनुमान हो गया था. आश्चर्य था तो इस बात पर कि जतिन ने कभी मुझ से इस बारे में कुछ कहा क्यों नहीं?
कालेज में भी मेरा मन नहीं लगा. बारबार ज्योति का चेहरा आंखों के आगे घूमने लगा. वह पहले से भी ज्यादा आकर्षक लगी थी. सुंदरता में आत्मविश्वास के पुट ने उस के व्यक्तित्व को एक ओज और गरिमा प्रदान कर दी थी. यह मेधावी छात्रा कभी मेरी प्रिय छात्राओं में से एक थी, लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि मैं इसे नापसंद करने लगी. इसी कालेज में पढ़ने वाले अपने बेटे के संग मैं ने इसे 2-3 बार देख लिया था.
जतिन, मेरा बेटा हमेशा मेरी कमजोरी रहा है. सुधीर के निधन के बाद से तो मैं उसी के लिए जी रही हूं. अपनी प्रिय वस्तु के छिन जाने का भय मुझ पर हावी होने लगा. अपने चैंबर में ज्योति को बुला कर अकेले में मैं ने उसे डांट दिया था.
‘‘तुम कालेज में पढ़ने आती हो या अपनी खूबसूरती और प्रतिभा का प्रदर्शन कर उसे भुनाने? अपनी पढ़ाई से मतलब रखो, वरना कालेज से निकाल दी जाओगी. मैं तुम्हारा बैकग्राउंड अच्छी तरह जानती हूं. एक बार शिकायत घर चली गई तो कहीं की नहीं रहोगी. नाऊ गेट लौस्ट,’’ उस समय प्रिंसिपल के कड़क मुखौटे के पीछे मैं एक आशंकित मां का चेहरा छिपाने में सफल हो गई थी.
ज्योति ने फिर कभी मुझे शिकायत का मौका नहीं दिया. मैं आश्वस्त हो गई थी. जतिन को अवश्य मैं ने कुछ दिनों परेशान देखा था पर फिर परीक्षाएं नजदीक देख कर वह भी पढ़ाई में रम गया था. मैं ने राहत की सांस ली थी. डिग्री मिलते ही अपने रसूखों से मैं ने उस की नौकरी लगवा दी. फिर संजना जैसी सुंदर और सुशील कन्या से उस का विवाह भी करा दिया.
फिर भी जतिन ने एक बार भी ज्योति का जिक्र नहीं किया. जतिन और संजना का वैवाहिक जीवन हंसीखुशी चल रहा था. उन के विवाह को 2 वर्ष होने वाले थे. पिछली बार जतिन ने जब मुझे मेरे दादी बनने की खबर सुनाई थी तो मैं खुशी से उछल पड़ी थी. संजना पर आशीर्वाद और हिदायतों की झड़ी लगा दी थी मैं ने.
वे दोनों मेरे पास आने वाले थे. सब कुछ कितना अच्छा चल रहा था और यह बीच में ज्योति जाने कहां से टपक पड़ी. वह भी जतिन के लिखे प्रेमपत्र ले कर. क्या चाहती है यह लड़की? ब्लैकमेल करना? तो फिर पत्र मुझे क्यों दिए? हो सकता है जेरौक्स कौपी हो उस के पास. यह भी हो सकता है कि जतिन की शादी का पता चला हो तब यह किस्सा ही खत्म कर देना चाहती हो. अगर ऐसा होता तो फिर खुद ही जला देती. जतिन को भी लौटा सकती थी. नहींनहीं, वहां तो संजना है.
आखिर, उस का क्या मंतव्य हो सकता है? शायद मेरी निगाहों में खुद को बेकुसूर साबित करना चाहती हो कि आप का बेटा मुझे प्यार करता था और खत लिखता था, मेरा कोई कुसूर नहीं था.
अनुत्तरित प्रश्नों की गूंज ने मुझे बेचैन कर दिया था. कभी मन करता खतों को जला डालूं. कभी मन करता इन्हें जतिन को दिखा कर पूछूं कि इन में कितनी सचाई थी? यदि उस का प्यार सच्चा था तो उस ने उस का इस तरह गला क्यों घोंटा? मेरे सभी प्रश्नों का जवाब जतिन ही दे सकता था. फोन पर पूछना संभव नहीं था. मैं उस के आने की राह देखने लगी.
जतिन आया मगर मुझे उसे खत दिखाने और बात करने का मौका नहीं मिल रहा था, जबकि उन के लौटने के दिन नजदीक आते जा रहे थे. मुझे बहू के लिए साड़ी और कुछ सामान खरीदने थे. जतिन से कहा तो उस ने हाथ खींच लिए.
‘‘मां, यह काम मेरे बस का नहीं है. आप दोनों हो आइए. मैं तब तक अपना कुछ काम कर लेता हूं.’’
मुझे उस की बात ठीक लगी. लौटते वक्त मैं ने अचानक गाड़ी रुकवाई, ‘‘संजना बेटी, मुझे यहीं उतार दो. मैं रिकशा कर के घर चली जाती हूं और खाने वगैरह की तैयारी कर लेती हूं. तुम तब तक नत्थू की दुकान से अपनी पसंद की मिठाई, नमकीन बंधवा लाओ और हां, थोड़े फल भी ले आना.’’
संजना ने मुझे उतार कर गाड़ी घुमा ली. मैं घर पहुंची तो जतिन चौंक पड़ा, ‘‘क्या हुआ मां, तुम अकेली कैसे आईं? तबीयत तो ठीक है न? संजना कहां है?’’
‘‘आ रही है नुक्कड़ से मिठाई ले कर. मुझे तुम से अकेले में कुछ जरूरी बात करनी थी,’’ कह कर मैं जल्दीजल्दी जा कर अपनी अलमारी से कपड़ों की तरह के नीचे दबे खत ले आई और जतिन के सामने रख दिए. पत्र देख कर वह सकपका गया.
‘‘ये आप के पास कैसे आए?’’ उस ने साहस कर के पूछा.
‘‘जाहिर सी बात है, ज्योति दे कर गई है. बहुत प्यार करते थे न तुम उस से? प्रेमपत्र लिखने का साहस था, शादी करने का नहीं? मुझ से कहने का भी नहीं?’’
‘‘ऐसी बात नहीं थी मां. मैं तो उसी से शादी करना चाहता था…’’
‘‘फिर?’’ पूछते हुए मैं मन ही मन कांप उठी. कहीं ज्योति ने डांट और धमकी की बात जतिन को तो नहीं बता दी थी? उस वक्त मुझे कहां पता था कि मेरा अपना ही सिक्का खोटा है.
‘‘वैसे मां ज्योेति कैसी लगती है तुम्हें?’’ जतिन अब तक सामान्य हो चला था पर अब चौंकने की बारी मेरी थी.
‘‘क्या मतलब है तुम्हारा? कैसी ऊलजलूल बातें कर रहे हो तुम?’’ मैं गुस्से से बोली.
‘‘ओह मां, आप गलत समझ रही हैं. खैर, आप का भी दोष नहीं है. मैं आप को शुरू से सारी बातें बताता हूं. मैं कालेज के दिनों से ही ज्योति को पसंद करने लगा था. लेकिन वह मेरे बारे में क्या सोचती है, यह नहीं जान पाया.
मैं ने उसे खत लिखे पर उस ने कोई जवाब नहीं दिया. मुझे उस की आंखों में अपने लिए प्यार नजर आता था, लेकिन न जाने क्यों वह मुझ से कतराती थी. फिर मुझे समझ आया वह आप से यानी अपनी प्रिंसिपल से खौफ खाती थी, इसलिए उन के बेटे से प्यार करने की जुर्रत नहीं कर पा रही थी. मैं अकेले में उस से मिला. समझाया कि मां से डरने की जरूरत नहीं है. हम वक्त आने पर अपने प्यार का इजहार करेंगे और वे शादी के लिए मान जाएंगी. वह कुछ आश्वस्त हुई थी, पर फिर न जाने क्या हुआ, उस ने अचानक मुझ से मिलना बंद कर दिया. सामने भी पड़ जाती तो कतरा कर निकल जाती. मैं परेशान हो उठा. आखिर एक दिन मैं ने उसे पकड़ लिया…’’
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मुंबई से निकलते वक्त उस ने मंदा के लिए एक खत लिख कर छोड़ दिया था कि घर जा रही हूं किसी जरूरी काम से… सारी बातें लौट कर बताती हूं.
क्लास से लौटने पर मंदा ने जब पूर्वी का लिखा खत देखा तो पहले तो वह सोच में पड़ गई कि ऐसा कौन सा काम अचानक आ गया जो पूर्वी इस तरह अचानक चली गई. फिर अगले ही पल उस के खुरापाती दिमाग में विचार आया कि यही सही मौका है, उस के फ्रैंड सलिल को अपने प्यार के झूठे जाल में फंसा कर अपना बनाने का.
बस फिर उस का माइंड बड़ी तेजी से सलिल को अपना बनाने के लिए षड्यंत्र रचने लगा. उस ने मन ही मन सोचा यदि सलिल उस का न हुआ तो पूर्वी का भी नहीं होने देगी.
इधर पूर्वी बरेली पहुंच कर मां की देखभाल में इस तरह व्यस्त हो गई कि उसे किसी बात का होश ही नहीं रहा. वह तो हरदम मां के जल्दी से जल्दी ठीक होने के लिए प्रार्थना करने लगी और अपना फोन भी साइलैंट मोड पर कर दिया.
इस बीच सलिल ने पूर्वी को कई बार फोन करने की कोशिश की, लेकिन उस का फोन हमेशा स्विच्ड औफ ही मिला. सलिल को पूर्बी के लिए चिंता होने लगी. फिर एक दिन सलिल ने मंदा को फोन मिला कर पूर्बी के बारे में जानने की कोशिश की तो मंदा के मन की तो कली खिल गई.
ऊपर से तो मंदा ने पूर्वी के बारे में चिंता जाहिर की फिर बोली, ‘‘देखो
तो मुझे भी कुछ बता कर नहीं गई,’’ और फिर पूर्वी के द्वारा लिखी चिट सलिल को दिखाई.
फिर तुरंत कहने लगी, ‘‘मुझे तो लगता है कि उस के मां, बाबूजी ने उसे शादी करने के लिए ही बुलाया होगा. मुझ से तो कम से कम कुछ बताती.’’
पूर्वी की शादी की बात सुन कर सलिल के चेहरे का रंग उड़ने लगा तो तुरंत मंदा कहने लगी, ‘‘अरे, इतना उदास क्यों होते हो ये छोटे शहर की लड़कियां होती ही ऐसी हैं. प्यार का नाटक किसी से व शादी किसी से. चिल करो यार, इस दुनिया में एक पूर्वी ही तो नहीं है, हम भी तो प्यार करते हैं तुम से, कभी मौका तो दो मुझे अपना प्यार साबित करने का.
‘‘मेरी आज कोई क्लास नहीं है. कहीं घूमने चलते हैं, तुम्हारा मूड भी ठीक हो जाएगा या ऐसा करते हैं आज होस्टल की वार्डन छुट्टी पर हैं. तुम कुछ ड्रिंक ले कर अपना मूड ठीक कर लेना, बाद में जैसा तुम चाहोगे वैसा ही करेंगे.
सलिल ने कहा, ‘‘नहीं, फिर कभी आता हूं,’’ पूर्वी की कोई खबर न मिलने पर सलिल का मन बहुत घबरा रहा था.
तभी मंदा ने उसे अपने बैड की तरफ खींच कर बैठाया और ?ाटपट ड्रिंक बना कर ले आई जिस में उस ने कुछ नशीली चीज मिला दी थी. जब सलिल ने ड्रिंक लेने से मना किया तो बोली, ‘‘अरे, इतना क्यों सोच रहे हो, कम से कम अपनी माशूका की खुशी के लिए ही पी लो. पूर्वी जहां भी होगी खुश होगी मेरा मन कहता है.’’
ड्रिंक पीते ही कुछ देर में सलिल अपने होश खोने लगा, तो मंदा ने उसे बैड पर लिटाया फिर अपने कपड़ों को फाड़ कर रूम से बाहर निकल कर शोर मचा कर लोगों को जमा कर लिया, ‘ख्देखो इस लड़के ने मेरे साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की है. इस की गलत हरकत के लिए इसे कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए, मैं तो कहती हूं इसे जेल होनी चाहिए.
आननफानन में पुलिस आई और सलिल को पकड़ कर ले गई और जेल में डाल दिया.
दूसरे दिन न्यूजपेपर में बडेबड़े अक्षरों में यह खबर छपी कि लखनऊ के रिटायर्ड डीएसपी के बेटे को किसी लड़की के साथ जबरदस्ती करने के जुर्म में जेल में डाला.
पूर्वी की मां अब अस्पताल से घर आ चुकी थी. उन की तबीयत में काफी सुधार था. पूर्वी आज काफी हलका महसूस कर रही थी. अत: पेपर ले कर पढ़ने लगी, जैसे ही उस की नजर सलिल के जेल में होने पर पड़ी वह एकदम घबरा गई, उस ने तुरंत अपना फोन चैक किया, सलिल की ढेरों मिस्ड कौल्स थीं.
‘‘पूर्वी का मन कतई यह मानने को तैयार नहीं था कि उस का सलिल ऐसी गलत हरकत कर सकता है. इतने दिनों की मेलमुलाकात के दौरान सलिल ने कभी मर्यादा का उलंघन नहीं किया था उसे टच तक नहीं किया था.
पूर्वी ने तुरंत वापस जाने का मन बनाया. उधर सलिल के पापा भी इस खबर को पढ़ कर बहुत परेशान थे. वे भी तुरंत मुंबई पहुंचे और अपने बेटे से मिल कर सारी स्थित की जानकारी ली.
इधर पूर्वी ने भी सलिल के पापा को सारी बातें स्पष्ट रूप से बता दीं. मंदा को थाने में बुलाया गया, कुछ देर में ही उसने अपना जुर्म कुबूल कर लिया कि पूर्वी से जलन होने के कारण ही उस ने ऐसी गलत हरकत की. असली सजा की हकदार तो वह है, सलिल नहीं. सलिल को पुलिस ने बाइज्जत वरी कर दिया. सलिल के पापा सलिल व पूर्वी को लखनऊ ले गए. पूर्वी के मांबाबूजी को भी बहां बुला लिया और दोनों की शादी करवा दी. दोनों ही परिवार बहुत खुश थे. सलिल पूर्वी को कुछेक परेशानी का सामना करने के बाद सही मंजिल मिल गई. शायद इसी को जिंदगी कहते हैं कभी धूप तो कभी प्यार की ठंडीठंडी छांव.
बतियाते हुए वे दोनों होस्टल के गलियारे तक पहुंच चुके थे, पूर्वी भी अब तक सलिल से काफी फ्रैंडली हो गई थी. इतना ही नहीं मन ही मन उसे चाहने भी लगी थी. रूम नंबर 4 आते ही पूर्वी ने रूम की घंटी बजाई, दरबाजा एक लड़की ने खोला. यह पूर्वी की रूममेट मंदाकिनी थी.
‘‘हाय मैं मंदाकिनी.’’
‘‘और मैं पूर्वी.’’
‘‘तुम मुझे मंदा कह सकती हो,’’ कह मंदा ने भेदती नजरों से सलिल की तरफ देखा जो पूर्वी का बैग अपने कंधे पर टांगे खड़ा था.
सलिल ने पूर्वी को उस का बैग थमाया और उसे बाय कहा, ‘‘सी यू टेक केयर,’’ और चला गया.
सलिल के जाते ही मंदा ने पूर्वी को घूरते हुए पूछा, ‘‘क्या यह तेरा बौयफ्रैंड था?’’
‘‘नहीं,’’ पूर्वी ने जवाब दिया.
‘‘तो फिर तेरा भाई होगा जो तेरी फिक्र कर रहा था.’’
‘‘नहीं.’’
इस बार भी पूर्वी के मुंह से नहीं शब्द सुन कर मंदा बुरी तरह ?ाल्ला गई. कहने लगी, ‘‘भाई भी नहीं है, बौयफ्रैंड भी नहीं है तो यह लड़का आखिर है कौन, जो तेरा इतना खयाल रख रहा था कि तेरा बैग लटका कर तुझे यहां तक छोड़ने आया?’’
‘‘बस फ्रैंड है मेरा?’’
‘‘सिर्फ फ्रैंड या उस से कुछ अधिक?’’
पूर्वी ने कहा, ‘‘कहा न बस फ्रैंड है मेरा,’’ मंदाकिनी के बारे में अधिक कुछ जाने बिना पूर्वी का मन उसे अधिक कुछ बताने से डर रहा था पर मंदा से अनबन भी नहीं कर सकती, रूममेट जो है उस की.
‘‘अच्छा, चल तू फ्रैश हो ले, मैं तुझे अच्छी सी चाय पिलाती हूं. मगर हां मैं तुझे रोज चाय बना कर पिलाने वाली नहीं. वो क्या है कि तू आज नईनई आई है तो तेरा वैलकम तो बनता ही है.’’
यह सुन कर पूर्वी ने कुछ राहत की सांस ली. तभी मंदा चाय बना कर ले आई. साथ ही बिस्कुट भी थे. चाय पीतेपीते दोनों ने अपनेअपने घरपरिवार के बारे में ढेर सारी बातें कीं, साथ ही पूर्वी को होस्टल के रूल्स के बारे में भी जानकारी दी. शनिवार व इतवार के अलावा होस्टल से बाहर जाना मना था या फिर कोई छुट्टी होने पर होस्टल से बाहर जा सकते. हां, होस्टल के अंदर किसी लड़के के आने की तो सख्त मनाही है, सिवा लोकल गार्जियन के.
यह सुन कर पूर्वी एकदम चौंक गई, मन ही मन सोचने लगी हाय, अब वह अपने सलिल से न जाने कब व कैसे मिल पाएगी. उस की नशीली मुसकराहट उस का दिल जो चुरा कर ले गई थी.
तभी मंदा ने चुटकी बजाते हुए उसे टोका, ‘‘कहां खो गई? ये रूल्स सुन कर डर तो नहीं गई तू? धीरेधीरे तुझे आदत हो जाएगी इन सब की.’’
दूसरे दिन क्लास में कुछेक नया लोगों से उस की पहचान हुई. रूटीन शुरू हो
गया. क्लासेज शुरू हो गईं, इन सब के बीच पूर्वी सलिल को नहीं भूल पा रही थी. जबतब उस की आंखों के सामने सलिल के गालों में डिंपल पड़ने वाला मुसकराता चेहरा सामने आ जाता.
कहते हैं न दिल को दिल से राह होती है सो फ्राइडे रात को सलिल का फोन भी आ गया, ‘‘पूर्वी कल हम मिल रहे हैं. इस जगह व इतने बजे, देखो न मत कहना तुम से मिल कर अपने दिल की बहुत सारी बातें करनी हैं, फिर घूमेंफिरेंगे मस्ती करेंगे और क्या,’’ सलिल ने एकदम फिल्मी अंदाज में आमिर खान का डायलौग दोहरा दिया, ‘‘मैं तुम्हें नियत समय पर ही होस्टल छोड़ दूंगा.’’
थोड़ी देर नानुकर करने के बाद पूर्वी ने हां कर दी क्योंकि मन ही मन वह भी तो सलिल से मिलना चाह रही थी.
होस्टल के रूल्स के अनुसार सलिल उसे उस के होस्टल नियत समय पर छोड़ गया, साथ ही अगले शनिवार दोबारा मिलने का वायदा ले गया.
शनिवार आने पर जव पूर्वी तैयार होने लगी तो मंदा ने टोका, ‘‘आज फिर कहां चली इतना सजधज कर?’’
पूर्वी कुछ कहती उस से पहले ही सलिल की गाड़ी का हौर्न उस के कानों में पड़ा. बिना कुछ बोले पूर्वी बाहर आ गई, जहां सलिल उस का इंतजार कर रहा था. उस की कार में बैठते ही सलिल ने उस की तरफ देखा और कहा, ‘‘इस पिंक सूट में तुम सचमुच बहुत ही प्यारी लग रही हो. जानती हो पिंक मेरा पसंदीदा कलर है.
‘‘पूर्वी आज डिनर हम साथ में करने वाले हैं. मैं ने यहां के सब से महंगे व फेमस रैस्टोरैंट में टेबल बुक करा दी है ताकि तुम्हें लौटने में देर नहीं हो जाए क्योंकि आज का दिन मेरे लिए बहुत खास है, पूछो क्यों?’’
पूर्वी ने प्रश्नवाचक नजरों से उस की तरफ देखा.
‘‘अरे, अब बता भी दो कि आज के दिन क्या खास है?’’ पूर्वी ने पूछा.
‘‘आज मेरा हैप्पी बर्थडे है, सोचा तुम्हारे साथ मिल कर सैलिब्रेट करते हैं.’’
उसी समय रैस्तरां का वेटर एक बड़ा सा केक ला कर उन की टेबल पर रख गया. पूर्वी ने नाराजगी दिखाते हुए कहा, ‘‘जाओ मैं बात नहीं करती तुम से. मुझे पहले बता देते तो मैं कम से कम कोई गिफ्ट ले कर तो आती तुम्हारे लिए.’’
‘‘तुम गुस्सा होती हो तो और भी खूबसूरत लगती हो. रही गिफ्ट की बात सो मेरे लिए तो तुम ही एक खूबसूरत गिफ्ट हो. मैं ने तो मां से तुम्हारे बारे में बात भी कर ली है.’’
तभी एक रैड रोज पूर्वी की तरफ बढ़ाते हुए सलिल ने कहा, ‘‘बोलो क्या तुम मेरी
लाइफपार्टनर बनना पसंद करोगी?’’
‘‘पूर्वी ने शरमा कर अपनी नजरें नीची कर लीं. इस अप्रत्याशित खुशी से उस के दिल की धड़कन तेज हो गई थी, साथ ही गाल भी सुर्ख हो गए थे.
जब पूर्वी सलिल के साथ घूम कर होस्टल लौटी तो बहुत खुश थी. वह धीमे स्वर में गुनगुना रही थी, ‘‘छोटी सी मुलाकात प्यार बन गई, प्यार बन के गले का हार बन गई…’’
मंदा के कानों में जब पूर्वी के गाने के स्वर पड़े तो चौंक गई. फिर तुरंत पूर्वी की ओर मुखातिब हो कर बोली, ‘‘अरे, तू तो बड़ी घुन्नी निकली एकदम छिपी रुस्तम. मुझे खबर तक नहीं होने दी, तू तो इश्क फरमा रही है.’’
मंदा की बात सुन कर पूर्वी हलके से मुसकरा दी. ‘‘वाह, मुंबई आते ही तुझे तेरा प्यार मिला गया,’’ मंदा के दिल में जलन की आग धधक उठी. सोचने लगी भला ऐसा क्या है इस पूर्वी में जो सलिल जैसा बांका नौजवान इस छोटे शहर की लड़की पर फिदा हो कर अपना दिल हार बैठा. एक वह है पिछले 2 साल से मुंबई में है, इश्क के नाम पर 2-3 बार दिल टूट चुका है, छुट्टियों में घर जाने का भी दिल नहीं करता. वही मां, पापा की रोज की चिकचिक सुन कर कान पक गए हैं मेरे.
मेरी भावनाओं का तो उन्हें जरा भी खयाल नहीं है कि बेटी बड़ी हो रही है. बस यह कह कर अपना पल्ला झड़ लिया है कि तुम्हें जो भी पसंद आए हमें बता देना. उस से ही तुम्हारी शादी कर देंगे. रोने को मन हुआ मंदा का. लाइट औफ कर के पूर्वी के बैड की तरफ पीठ कर के लेट गई और थोड़ी देर आंसू बहाती रही.
नींद तो आ नहीं रही थी, सो मन ही मन प्लान बनाने लगी, जो भी हो इस पूर्वी को तो कभी भी सलिल का नहीं होने देगी. इस के लिए फिर मुझे चाहे कुछ भी क्यों न करना पड़े.
पूर्वी पर सलिल का प्यार परवान चढ़ रहा था, करीब हर शनिवार को वह सलिल के साथ घूमने निकल जाती. जब लौटती तो मंदा से अपने व सलिल के बीच हुई बातें शेयर करती.
एक दिन घूम कर जब लौटी तो पूर्वी ने बताया कि सलिल ने मेरे फोटो अपने घरवालों के पास भेजे थे. उन का अप्रूवल भी आ गया है. सलिल का एमबीए पूरा होते ही उस के घर वाले हम दोनों की शादी करवा देंगे.
‘‘अरे वाह, यह तो बहुत ही खुशी की बात है, तेरी तो सच में लौटरी ही लग गई पूर्वी, सलिल जैसा वांका नौजवान तुझे जीवनसाथी के रूप में मिल गया.’’
ऊपर से तो मंदा पूर्वी से बडी खुशी जाहिर करती, परंतु अंदर से मन ही मन उस की बातें सुन कर उस की छाती पर सांप लोटने लगते. वह ईर्ष्या की आग में बुरी तरह जल रही थी.
उधर पूर्वी उस की जलन की भावनाओं से अनजान, अपनी हरेक बात उस से शेयर करती क्योंकि पूर्वी तो मंदा को अपनी सखी मानती थी.
एक दिन जब पूर्वी क्लास अटैंड कर के अपने रूम की तरफ लौट रही थी कि तभी उस के बाबूजी का फोन आया. उन का स्वर एकदम घबराया हुआ था.
पूर्वी ने पूछा, ‘‘क्या बात है, बाबूजी, मां तो ठीक हैं न?’’
बाबूजी ने बताया, ‘‘तुम्हारी मां की तबीयत कुछ दिनों से ठीक नहीं चल रही थी. पहले तो हम लोगों ने सोचा कि शायद तुम्हारे जाने की वजह से मन उदास है उन का, परंतु जब एक दिन चक्कर खा कर गिर पड़ी तो डाक्टर की राय लेना जरूरी हो गया. डाक्टर ने बताया कि उन्हें ब्रेन ट्यूमर है, तुरंत औपरैशन करना पड़ेगा क्योंकि ट्यूमर आखिरी स्टेज पर है, अत: अधिक देर करना खतरे से खाली नहीं है.’’
सारी बातें सुन पूर्वी भी एक बार तो बहुत घबरा गई फिर बाबूजी को धैर्य बंधाते हुए बोली, ‘‘मैं कल ही बरेली के लिए निकल रही हूं, आप चिंता न करें, सब ठीक हो जाएगा. आजकल विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली है, बड़ी से बड़ी बीमारी का इलाज संभव हो गया है.
पूर्वी के घर पहुंचने तक बाबूजी मां को हौस्पिटल में एडमिट कर चुके थे और औपरैशन की डेट भी ले ली थी. कहां तो पूर्वी घर पहुंचने पर मां को अपने व सलिल के प्यार की बावत बता कर सरप्राइज देने की सोच रही थी और यहां मां को इस हाल में देख कर उस का दिल कांप उठा.
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तेज स्पीड में भागी जा रही गाड़ी एक झटके के साथ रुक गई, पूर्वी ने कंबल से गरदन बाहर निकाल कर खिड़की से झंका. बाहर गुप्प अंधेरा था. उस ने मन ही मन सोचा इस का मतलब है अभी सवेरा नहीं हुआ है. उस ने अपने इर्दगिर्द कस कर कंबल लपेटा और सोने की कोशिश करने लगी. नींद तो जैसे किसी जिद्दी बच्चे की तरह रूठी बैठी थी. पहली बार घर से अकेली इतने लंबे सफर पर निकली थी. हालांकि उस के पापा ने कई बार कहा था इतनी दूर अकेली कैसे जाओगी मैं छोड़ आता हूं परंतु उस ने भी जिद पकड़ ली थी.
‘‘अरे पापा अब मैं इतनी छोटी भी नहीं हूं. वैसे भी होस्टल में रह कर पढ़ाई करनी है तो आनाजाना तो लगा ही रहेगा.’’
पूर्वी वरेली से मुंबई वहां के फेमस इंस्टिट्यूट से इंटीरियर डिजाइनर का कोर्स करने जा रही थी. अब मन ही मन पछता रही थी, नाहक ही पापा को साथ आने से रोका, कम से कम यह सफर तो आराम से कटता.
उस ने एक बार फिर से सोने की कोशिश की. कुछ देर की झपकी लेने के बाद इस बार नींद फिर कानों में टकराती गरमगरम चाय की आवाज से खुली. दिन निकल आया था. पता नहीं कौन सा स्टेशन था परंतु एसी कंपार्टमैंट के कारण ठंड भी लग रही थी, साथ ही चाय पीने की तलव भी जोर मार रही थी. उस के मन में झंझलाहट सी भर गई कि इन ऐसी कंपार्टमैंट में बस खिड़की से झंकते रहो, शीशा खोल कर कुछ ले नहीं सकते. यदि जनरल बोगी होती तो झट से खिड़की खोल कर अपनी सीट पर बैठेबैठे ही चाय ले लेती. अब करे भी तो क्या करे. तभी उस की नजर सामने वाली बर्थ पर पड़ी. जब वह ट्रेन में चढ़ी थी तो सामने वाली बर्थ खाली थी परंतु शायद रात में कोई आया होगा.
सामने की बर्थ पर एक लड़का सो रहा था. वह सोच में पड़ गई कि पता नहीं कैसा हो. वैसे भी गर्ल्स कालेज से पढ़ाई करने के कारण अभी तक लड़कों से बातचीत का कोई मौका नहीं पड़ा था. गरमगरम चाय की आवाज के साथ उस लड़के ने भी अपनी आंखें खोलीं और मुसकराते हुए पूर्वी की तरफ देख कर हाय, गुड मौर्निंग कहा और तुरंत डब्बे से नीचे उतर गया. जब लौट कर आया तो उस के हाथ में चाय के 2 सकोरे थे.
सलिल ने एक कप पूर्वी की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘लीजिए, गरमगरम चाय का आनंद लीजिए, वैसे भी यहां की चाय बहुत मशहूर है और सकोरे में चाय पीने का जो मजा है वह कप से चाय पीने में कहां.’’
पूर्वी ने भी संकोच त्याग कर चाय का कप ले लिया.
‘‘मैं सलिल मुंबई जा रहा हूं. वहां एक इंस्टिट्यूट से एमबीए कर रहा हूं, यह मेरा आखिरी साल है. अपना परिचय नहीं देंगी?’’ सलिल ने कहा.
पूर्वी कुछ झेंप सी गई, ‘‘नहीं वह बात नहीं है. मैं भी मुंबई के फेमस इंस्टिट्यूट एसएनडीटी से इंटीरियर डैकोरेशन का कोर्स करने जा रही हूं. मैं बरेली से हूं और पहली बार मुंबई जा रही हूं. बहुत सुना है मुंबई के बारे में कि सपनों की नगरी है. सभी के सपने पूरे होते हैं यहां. देखती हूं मेरा क्या बनता है,’’ पूर्वी एक ठंडी सांस छोड़ते हुए बोली.
‘‘अरे, यार इतना डरने की क्या जरूरत है, कम से कम मुसकरा तो दो क्योंकि मुसकराने के लिए कोई पैसा यानी रोकड़ा नहीं बस अच्छा थोबड़ा चाहिए, फिर वह तो विद गाड ग्रेस तुम्हारे पास है ही, फिर मुसकराने में इतनी कंजूसी क्यों भला. आधे काम तो आप की प्यारी सी मुसकराहट से ही बन जाते हैं.’’
पूर्वी ने सलिल की ओर आंख उठा कर देखा. वह आकर्षक व्यक्तित्व का ही नहीं था, स्वभाव से मिलनसार व व्यवहारकुशल भी था. इसलिए जल्द ही दोनों घुलमिल गए और छिटपुट बातों ने गति पकड़ ली.
एकदूसरे के परिवार की संक्षिप्त जानकारी लेने के बाद बातचीत का रुख एकदूसरे की पसंदनापसंद की ओर मुड़ गया.
‘‘अच्छा यह कोर्स करने के बाद कहीं सर्विस करने का इरादा है या अपना ही औफिस खोलने का? वैसे भी इस क्षेत्र में काफी स्कोप है. अधिकतर अमीर लोग अपने घरों को आजकल इंटीरियर डैकोरेशन वालों से ही सजवाते हैं.
‘‘मेरी कजिन ने भी यही कोर्स किया है और आजकल अपना औफिस खोल कर काफी अच्छा अर्न भी कर रही है. यदि तुम चाहो तो मैं तुम्हें उस का फोन नंबर दे सकता हूं, शायद तुम्हारी कुछ मदद हो जाए.’’
सलिल की इतनी साफगोई व मदद भरी बातें सुन कर पूर्वी को काफी राहत मिली. उस ने मन ही मन सोचा, जैसा वह सलिल को देख कर डर रही थी, यह वैसा बिलकुल नहीं है बल्कि यह तो मेरी मदद करने की कोशिश कर रहा है. उस ने मन ही मन राहत की सांस ली.
बातचीत का सिलसिला दोबारा भी सलिल ने ही शुरू किया, ‘‘भई मैं ने तो सोचविचार कर लिया है, एमबीए करने के बाद पहले 2-3 साल किसी अच्छी सी एमएनसी में जौब कर के कुछ ऐक्सपीरियंस जमा करूंगा, फिर अपनी कंसल्टैंसी खोलूंगा. वह क्या है कि किसी की नौकरी करना मेरी फितरत में नहीं है. मैं तो अपना खुद का ही बौस बनना चाहता हूं.’’
‘‘अरे वाह, आप का तो एकदम क्लीयर कौंसैप्ट है अपनी लाइफ के बारे में,’’ पूर्वी ने कहा.
‘‘हां सो तो है, पर देखो न मौम की तबीयत ठीक नहीं रहती है और अगले साल ही पापा का रिटायरमैंट भी है. वैसे भी पुलिस में डीएसपी हैं तो उन से बातचीत करने में थोड़ी घबराहट हो ही जाती है, हां, माई मौम इज वैरी कूल. सो दोनों ने अभी से ऐलान कर दिया है कि एमबीए की डिगरी ले कर लाइफ में सैटल होने के बारे में सोचो ताकि हम लोग घर की जिम्मेदारियों से मुक्त हो सकें यानी सीधे शब्दों में कहें तो तुम शादी कर के घर बसा लो. रिश्ते तो अभी से आने लगे हैं परंतु अभी तो मैं यह कह कर उन लोगों की बात को टालता आ रहा हूं कि पहले मुझे अपने पैरों पर तो खड़ा होने दो, कोई अच्छी नौकरी होगी तभी तो छोकरी को खुश रख पाऊंगा,’’ कह कर जोर से हंस पड़ा.
मैं ने पूर्वी ने ध्यान से पहली बार उस के चेहरे की तरफ देखा. बिलकुल शाहरुख खान की तरह उस के भी दोनों गालों पर डिंपल पड़ रहे थे. कुछ देर तक पूर्वी उस की तरफ देखती रही और फिर सोचने लगी कि जैसा उस ने मन में सोच रखा था कि उस का होने वाला पति गालों में डिंपल पड़ने वाला हो तो कितना अच्छा हो क्योंकि शाहरुख खान पूर्वी का पसंदीदा हीरो जो था. यह सोच कर उस के गाल शर्म से लाल हो गए.
‘‘यू नो हम मध्यवर्गीय पेरैंट्स का बस एक ही फंडा होता है कि बच्चों की पढ़ाई पूरी होते ही उन की शादी कर के अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो लो. मगर शादीविवाह कोई मजाक थोड़े ही है, कोई मन भाता मिलना भी तो चाहिए, आखिर पूरी जिंदगी का सवाल है.’’
अब तक की हुई बातचीत से पूर्वी भी सलिल से कुछ खुल गई थी और वे दोनों मित्रवत ऐसे बातचीत कर रहे थे मानो काफी दिनों से एकदूसरे को जानते हों.
‘‘हां, यह बात तो एकदम ठीक कही आप ने मेरे मांबाबूजी भी बस यही रट लगाए हुए हैं कि बस बहुत हो गई पढ़ाईलिखाई, शादी कर के अपने घरपरिवार को संभालो.’’
‘‘यह आपआप क्या लगा रखा है पूर्वी, वी आर फ्रैंड नाऊं. वैसे भी ट्रेन में जब सहयात्री दोनों ही यंग हों तो अपनेआप उन के बीच की दूरियां सिमट कर छोटी हो जाती हैं. वैसे पूर्वी शादी के बारे में क्या विचार हैं तुम्हारे? तुम्हें अरेंज्ड मैरिज पसंद है या लव मैरिज?’’ सलिल ने सीधा उस की आंखों में देखते हुए पूछा.
‘‘हां मन तो मेरा भी लव मैरिज करने का है क्योंकि मन पसंद जीवनसाथी के साथ जिंदगी जीने का आनंद कुछ अलग ही होता है,’’ पूर्वी ने कहा.
‘‘तो वंदा हाजिर है आप की नजरों के सामने,’’ सलिल ने भी शरारतभरी मुसकान चेहरे पर लाते हुए कहा.
‘‘वाकई, तुम बातें बहुत अच्छी व दिलचस्प करते हो.’’
‘‘लेकिन यह मेरे प्रश्न का जवाब नहीं,’’ सलिल ने कहा, ‘‘तो क्या तुम मुझे पसंद नहीं करतीं?’’
सलिल ने पूर्वी की आंखों में झंका तो उस ने शरमा कर अपनी नजरें झुका लीं, लेकिन उस के सुर्ख होते गालों ने उस के मन की चुगली कर ही दी.
‘‘अच्छा पूर्वी तुम ने वह डायलौग तो सुना ही होगा कि जब कोई किसी को शिद्दत से चाहे तो पूरी कायनात उन्हें मिलाने में जुट जाती है?’’
‘‘लगता है तुम फिल्में बहुत देखते हो, फिल्मी लव स्टोरी व असल जिंदगी की लव स्टोरी में बहुत फर्क होता है सलिल,’’ पूर्वी ने कहा.
‘‘क्या फर्क होता है? ये फिल्म वाले भी अपनी फिल्म की स्टोरी असल जिंदगी से ही तो उठाते हैं. बस उसे मनोरंजक बनाने के लिए कुछ ट्विस्ट डाल देते हैं.’’
‘‘हां, सो तो है… कह तो तुम एकदम सही रहे हो.’’
ट्रेन की स्पीड कुछ धीमी हो चली थी. सलिल ने खिड़की से झंका और बोला, ‘‘लगता है ट्रेन मुंबई पहुंचने वाली है. अच्छा पूर्वी यहां मुंबई में तुम्हारा कोई लोकल गार्जियन है क्या?’’
‘‘नहीं… इसीलिए तो मन में थोड़ा डर व घबराहट है कि इतनी बड़ी मुंबई नगरी में कहीं कुछ हो गया मेरे साथ तो मदद के लिए किसे कहूंगी.’’
‘‘अरे, इतना क्यों घबरा रही हो, वंदा हाजिर है न,’’ सलिल ने फिर हंसते हुए कहा तो पूर्वी उस के गाल के डिंपल देख कर शरमा कर लाल हो गई.
‘‘अच्छा, मैं ऐसा करता हूं पहले तुम्हें तुम्हारे होस्टल छोड़ देता हूं. इस बहाने होस्टल भी देख लूंगा और तुम्हारा रूम नंबर भी पता चल जाएगा.’’
ट्रेन के रुकते ही दोनों ने मिल कर सामान उतारा और टैक्सी स्टैंड की ओर बढ़ चले.
रास्ते में सलिल ने पूर्वी से उस का फोन नंबर ले लिया और अपना फोन नंबर भी उसे दे दिया. तभी टैक्सी एक बड़ी सी बिल्डिंग के सामने रुकी, जिस के ऊपर बड़ेबड़े शब्दों में एसएनडीटी का बोर्ड लगा था.
पूर्वी अभी तक खिड़की से मुंबई की ऊंचीऊंची इमारतों को ही ताक रही थी.
‘‘यह देखो तुम्हारी मंजिल तो आ गई. चलो मैं तुम्हें तुम्हारे रूम तक छोड़ देता हूं. हां, उस से पहले एक सैल्फी तो बनती है ताकि जब तुम्हें मिस करूं, तुम्हारा चेहरा देख सकूं,’’ कह कर सलिल एक बार फिर खिलखिला कर हंस दिया.