3 टिप्स: गरमी में इन टिप्स से बचाएं आंखें

कुदरत का खूबसूरत तोहफा है आंखें. किसी भी काम को करने के लिए सबसे जरूरी हमारी आंखें होती है, लेकिन गरमियों में सूरज से निकलने वाली नुकसानदायक अल्ट्रावायलट किरणें बौडी के साथ-साथ आंखों पर भी बुरा असर डालती है. दरअसल, आंखों को दिमाग से जोड़ने वाली बारीक शिराएं आंखों की स्किन के बहुत नजदीक होती हैं, इसलिए ज्यादा देर धूप में रहने से आंखों को नुकसान पहुंचता है. वहीं पौल्यूशन का भी असर आपकी आंखों पर पड़ता होगा. जिन्हें बचाना बेहद जरूरी है…

1. आंखों में परेशानियों को पहचानें

अगर आपकी आंखों में जलन, आंखें लाल होना, आंखों से पानी आना, आंखों में चुभन, कंजंक्टिवाइटिस की बिमारी होती है.

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2. ठंडे पानी से आंखों को धोएं

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धूप से लौटने के बाद बौडी का तापमान बढ़ जाता है इसलिए पहले बौडी को धीरे-धीरे नार्मल टैम्प्रेचर पर आने दें. इसके लिए पंखे के नीचे पांच मिनट तक बैठ जाएं. इसके बाद ठंडे पानी से चेहरे और आंखों को अच्छी तरह धोएं. आंखों पर ठंडे पानी के छींटे मारें और फिर मुलायम टावल से फेस को पोछें. अगर आंखों में जलन ज्यादा है और आंखें लाल हैं तो बर्फ से आंखों की सिंकाई करें.

3. आंखों को बार-बार न रगड़ें

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आंखों में चुभन, जलन हो या कोई धूल कण चला जाए तो कुछ लोग फौरन ही आंखों को रगड़ने लगते हैं. ऐसा करने से आंखों को कई तरह के नुकसान होते हैं लिहाजा, ऐसा कभी न करें. अगर आंखों में किसी तरह की दिक्कत हो तो साफ रुमाल या कपड़े से इसे हल्के हाथों से सहलाएं और ठंडे पानी से धोएं.

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4. धूप में निकलें तो जरूर पहनें सनग्लासेज

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धूप के सनग्लासेज सूरज से निकलने वाली घातक यूवी किरणों से आंखों की रेटीना को बचाने का काम करता है. तेज धूप की वजह से आंखों की रोशनी पर प्रतिकूल असर पड़ने के साथ ही धूल के कण रेटिना को नुकसान पहुंचा सकते हैं. इसके अलावा तेज धूप में यूवी किरणों से आंखों के ऊपर बनी टीयर सेल यानी आंसूओं की परत टूटने लगती है. यह स्थिति कौर्निया के लिए हानिकारक हो सकती है. आंखों के कौर्निया को भी यूवी किरणों से उतना ही नुकसान पहुंचता है जितना रेटीना को. लिहाजा धूप में निकलते वक्त सनग्लासेज पहनने से इस परेशानी से बचा जा सकता है.

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समर वेकेशन के लिए बेस्ट है दार्जिलिंग

गरमियां शुरू होते ही आपके बच्चे आपसे किसी हिल स्टेशन पर जाने की जिद्द तो जरूर करते होंगे. और आपके पास औप्शन भी बहुत होंगे घूमने के लिए. उन्ही जगहों में से एक है दार्जिलिंग. यह भारत के सबसे पौपुलर वेकेशन प्लेस में से एक है. दार्जिलिंग में कंचनजंगा पर्वत पर ट्रेकिंग करने और दर्शनीय स्थलों की यात्रा के लिए अनगिनत चीजें हैं. दार्जिलिंग में दर्शनीय स्थलों की यात्रा के साथ साथ ऊंचे-उंचे पहाड़ भी हैं जो आपकी छुट्टियों को पूरा कर देंगे. और अगर आप गरमियों में दार्जिलिंग का प्लैन बनाएं तो यह प्लेस जरूर घूंमें…

आपका दिन बना देगा टाइगर हिल से सनराइज सीन

लगभग 2590 मीटर की ऊंचाई पर और दार्जिलिंग से लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित टाइगर हिल से सूर्योदय देखना रोमांचित कर देनेवाला अनुभव फोटोग्राफी के लिए परफेक्ट जगह है. भारत में जिन जगहों का सनराइज पौपुलर है उनमें से एक टाइगर हिल है. यहां से कंचनजंगा की चोटियों का मनोहर दृश्य आप इंजौय कर सकते हैं. फोटोग्राफी के लिए आपको यहां सीनरी और फ्रेम के भरपूर विकल्प मिलेंगे. टाइगर हिल पर बादलों के साथ मस्ती करना मजेदार रहता है.

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सबसे खूबसूरत रेलवे लाइन में एक है बस्तासिया लूप का रेलवे ट्रैक

बस्तासिया लूप का रेलवे ट्रैक दार्जिलिंग की सबसे खूबसूरत रेलवे लाइन कही जा सकती है. इसका अनूठा डिजाइन यहां का शानदार आकर्षण केंद्र है. यह ट्रैक एक पहाड़ी से सुरंग के माध्यम से निकलता है और फिर पहाड़ी को चारों ओर से यह ट्रैक घेरे हुए है. बस्तासिया लूप के सबसे करामाती पहलुओं में से एक है इसकी बेजोड़ नेचुरल सुंदरता.

टौय ट्रेन के नाम से मशहूर है दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे

दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे, जिसे डीएचआर भी कहा जाता है, अपने सैलानियों को एक मजेदार सफर कराती है. इसकी ट्रेन को प्यार से ‘टॉय ट्रेन’ कहा जाता है. यह 2 फीट की नैरो गेज ट्रेन है, जो भारत के पश्चिम बंगाल में न्यू जलपाईगुड़ी और दार्जिलिंग के बीच चलती है. लगभग 88 किलोमीटर लंबी इस रेल लाइन पर सवारी करना कभी न भूलने वाला एक्सपीरिएंस होता है. वहीं पहाड़ियों और जंगल के आंखों के जरिए दिल में उतर जाते हैं.

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विशाल शिव प्रतिमा और म्यूजिकल फाउंटेन बढ़ाता है शोभा श्रुब्बेरी नाइटिंगेल पार्क  की

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दार्जिलिंग के मंत्रमुग्ध करने वाले नजारों के बीच नाइटिंगेल पार्क में चहलकदमी और आउटडोर गेम्स का अपना मजा है. यहां से कंचनजंघा पर्वतमाला के भव्य दृश्यों को देखने के मन बार-बार मचलता है. यहां पिकनिक का मजा लेना आपको ताजगी से भर देगा. इस पार्क का आर्किटेक्चर और बनावट शानदार है. नाइटिंगेल पार्क थोड़ी ऊंचाई वाले इलाके में है इसलिए आपको इस हरे-भरे मैदान में प्रवेश करने के लिए कुछ सीढ़ियां चढ़नी होंगी. इस पार्क में विशाल शिव प्रतिमा और म्यूजिकल फाउंटेन अलग ही दिव्यता प्रदान करते हैं.

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आखिर क्यों मीडिया से नाराज हैं शाहरुख खान!

बौलीवुड के कलाकारों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि जब तक पत्रकार उनके मन माफिक बातें लिखते हुए उन्हें सफलतम स्टार बताता रहता है, तब तक उनकी नजर में मीडिया और पत्रकार सही होते हैं. पर यदि कभी किसी पत्रकार ने किसी कलाकार को उनकी हकीकत बयां कर दी, तो वह तुरंत आग बबूला होकर मीडियो को कोसने लगते हैं और उन्हें पाठ पढ़ाना शुरू कर देते हैं.

बौलीवुड का सुपर स्टार माने जानें वाले शाहरुख खान भी इस बात से अछूते नहीं हैं. कल तक मीडिया में शाहरुख खान को ‘सुपर स्टार’ और स्टार कलाकार लिखा जा रहा था. तो शाहरुख खान बहुत खुश थे. उस वक्त उनके लिए मीडिया बहुत अच्छा था. जब तक फिल्म पत्रकार/फिल्म आलोचक शाहरुख खान की फिल्मों को चार व पांच स्टार की रेटिंग दे रहे थे. तब तक शाहरुख खान की नजरों में मीडिया व फिल्म आलोचक बहुत ईमानदार व सही काम कर रहे थे. तब तक शाहरुख खान को अपनी फिल्म की रिलीज के समय पत्रकारों द्वारा स्टार की रेटिंग देना अच्छा लगता था.

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मगर अब जबकि शाहरुख खान की ‘दिलवाले’, ‘फैन’,‘जीरो’ सहित कुछ फिल्मों को आलोचना का शिकार होना पड़ा और उनकी यह फिल्में लगातार बाक्स आफिस पर मुंह के बल गिरी हैं. तब से शाहरुख खान मीडिया व फिल्म आलोचकों से नाराज चल रहे हैं. शाहरुख खान को यह पसंद नहीं आ रहा है कि फिल्म आलोचक ‘फैन’या ‘जीरो’ में उनके अभिनय को लेकर सच दर्शकों के सामने बयां करते हुए उनकी फिल्म को एक या दो स्टार दे.

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अब शाहरुख खान अपनी कमियों पर गौर कर उन्हे सुधारने की बजाय पत्रकारों और फिल्म आलोचकों को ही नसीहत दे रहे हैं. हाल ही में एक पुरस्कार समारोह में बोलते हुए शाहरुख खान ने कहा- ‘‘हम फिल्म मेकर्स आर्ट ढूंढते हैं. हम लौजिक ढूंढते हैं और स्टोरी टेलिंग की फ्री स्पिरिट पर ध्यान नहीं देते हैं. हमें खुद को यकीन दिलाना होता है कि सच का कोई फार्म नहीं होता. सिर्फ झूठ को ही फार्म करना पड़ता है. हमें खुद के प्रति सच्चा होना है.’’

 

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Should I just let the hair grow for another few months??!

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उसके बाद फिल्म आलोचकों को नसीहत देते हुए शाहरुख खान ने कहा- ‘‘मैं अपने क्रिटिक साथियों से कहना चाहूंगा कि कृपया बौलीवुड फिल्म स्टार की तरह न बने. स्टार सिस्टम से दूर रहें. कई साल पहले यह सिस्टम शुरू हुआ था. जिसके तले बौलीवुड दब गया. किसी फिल्म की समीक्षा के लिए स्टार सिस्टम काफी नहीं है. 3 स्टार, 3.5 स्टार.. 5 स्टार.. यह फिल्म है, होटल नहीं. आज हर जगह लोग क्रिटिक्स बन गए हैं. ऐसे में फिल्म क्रिटिक्स खतरे में हैं.’’

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शाहरुख खान सच हैं या गलत,  यह तो वह अच्छी तरह से जानते हैं. पर वह भी इस बात को समझते है कि यदि फिल्म आलोचकों ने उनकी फिल्मों की समीक्षा गलत लिखी थी. तो फिर उनकी फिल्मों ने बाक्स आफिस पर सफलता क्यों नहीं दर्ज करायी. हम यहां याद दिला दें कि शाहरुख खान की फिल्म ‘‘जीरो’’ का निर्माण दो सौ करोड़ रूपए में हुआ था और यह फिल्म बाक्स आफिस पर महज 186 करोड़ रूप ही कमा सकी थी. हमें यह याद रखना होगा कि बाक्स आफिस की कमाई का साठ प्रतिशत ही निर्माता को मिलता है.

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शाहरुख खान के इस बयान के बाद बौलीवुड के अंदर ही कई लोग सवाल उठा रहे हैं कि जब शाहरुख खान की फिल्मों को तीन से पांच स्टार मिल रहे थे, तब उन्होने फिल्म क्रिटिक्स से क्यों नहीं कहा था कि उनकी फिल्म को स्टार न दें. कुछ लोग तो यह भी कह रहे हैं कि हर फिल्म कलाकार व फिल्म निर्माता को अपने अपने गिरेबांन में झांक कर वह वक्त याद करना चाहिए, जब अपनी फिल्म के प्रदर्शन के समय अपनी फिल्म को ज्यादा से ज्यादा स्टार दिलवाने के लिए खुद या उनकी पीआर टीम ने फिल्म आलोचकों से गुहार लगाई थी.

शाहरुख खान द्वारा फिल्म आलोचकों को दी गयी नसीहत के बाद बौलीवुड से जिस तरह की आवाजें उठ रही हैं, उससे एक बात तो साफ हो जाती है कि बौलीवुड के कलाकार अपनी कमियो को दूर कर दर्शकों को बेहतरीन फिल्म देने की बजाय अपने आलोचकों का मुंह बंद करने में ज्यादा यकीन रखते हैं.

Bharat Trailer: कैटरीना हुईं ट्रोल्स का शिकार, लोगों ने ऐसे उड़ाया मजाक

बौलीवुड के भाईजान सलमान खान की अपकमिंग फिल्म ‘भारत’ का ट्रेलर सोमवार को रिलीज हो गया है. वहीं लोगों को कैटरीना कैफ का डायलौग इतना पसंद आया कि उन्होंने इस पर जोक्स बनाना ही शुरू कर दिया है. इस डायलौग के मीम्स ट्विटर समेत दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर भी वायरल हो रहे हैं. आप भी पढ़िए ऐसे ही कुछ मजेदार मीम्स…

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फिल्म ‘भारत’ के ट्रेलर में एक जगह पर कैटरीना कैफ भाईजान को झाड़ती हुए डायलौग, ‘इसमें इतने भारी ज्ञान की जरूरत बिल्कुल नहीं है.’ में लोगों ने सोशल मीडिया पर कई सारे मीम्स बनाना शुरू कर दिया है.

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बड़े पर्दे पर जब भी किसी बड़े एक्टर की फिल्म आती है, तो सोशल मीडिया पर उसका मजाक बनना लाजमी है. हालांकि फिल्म ‘भारत’ ट्रोलर्स ने फिल्म के ट्रेलर का मजाक नहीं उड़ाया है. उन्होंने सिर्फ कैटरीना कैफ के एक डायलौग पर कुछ जोक्स बनाएं हैं.

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बता दें, भाईजान सलमान खान ने बीते दिन अचानक अपनी अपकमिंग फिल्म ‘भारत’ का ट्रेलर रिलीज कर लोगों को बड़ा सरप्राइज दिया. वहीं इस ट्रेलर में भाईजान के साथ दिशा पाटनी, कैटरीना कैफ और सुनील ग्रोवर भी जबरदस्त किरदारों में दिखे.

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ऐसे दें अपने घर को स्टाइलिश लुक

घर की सजावट में दिवारें सबसे अहम होती हैं. अक्सर पुराने समय में खाली दिवारों पर तस्वीरें लगा दी जाती थीं, जिससे  दीवारें खिल उठती थीं. वैसे ही समय के साथ वाल डेकोरेशन में और चीजें जुड़ने लग गई है. आपको  दीवारों को सजाने के लिए डेकोर टिप्स बताते हैं. जिससे आप भी दिवारों को एक अलग लुक दे सकती हैं.

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– आज दीवारों पर तस्वीर के बजाय वाल रैक ने ले ली है. ये जगह भी कम लेती है और देखने में भी बहुत स्टाइलिश लगती है.

– आप चाहें तो खुद की पसंद से भी वाल रैक बनवा सकती हैं लेकिन बाजार में भी आपको कई तरह के डिजाइन में वाल रैक आसानी से मिल जाएंगे.

घरेलू रद्दी से बनाएं सुंदर क्राफ्ट

– छोटे घर के लिए आप मल्टीपर्पज वाल रैक का बखूबी इस्तेमाल कर सकती हैं, जिसमें शोपीस और किताबें भी रखी जा सकती हैं.

– ऐसे घरों के लिए स्लाइडिंग डोर वाले रैक बैस्टऔप्शन है. घर का इंटीरियर रौयल लुक का है तो इसके साथ मैचिंग वालनट वुडेन कार्विंग वाल रैक बहुत अच्छे लगते हैं. वाल रैक में आप महंगी क्राकरी या फिर डेकोरोटिव आइट्म्स भी रख कर सकती हैं.

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4 टिप्स: ब्यूटी प्रोडक्ट का काम भी करता है नमक

हर घर की रसोई में नमक जरूर होता है. रोजाना आप नमक का इस्तेमाल खाने को टेस्टी बनाने के लिए करती होंगी, लेकिन क्या आपको पता है कि नमक आपकी स्किन के लिए भी फायदेमंद हैं. जी हां नमक एक ऐसा ब्यूटी प्रोडक्ट है, जो सस्ता होने के साथ-साथ हर घर में मौजूद होता है. आज हम आपको पार्लर में जाकर मेकअप पर पैसा खर्च करने की बजाय घर पर ही स्किन के लिए नमक के फायदे बताएंगे.

1. स्किन टोनर का काम करता है नमक

औयली स्किन के लिए नमक का इस्तेमाल आप टोनर के रूप में भी कर सकती हैं. इसका इस्तेमाल करने के लिए आप एक स्प्रे बोतल में गुनगुना पानी डाल लें और उसमें एक छोटा चम्मच नमक डाल कर अच्छी तरह से मिला लें. जब नमक अच्छे से घुल जाए, तब आप उसका इस्तेमाल कर सकती हैं. स्प्रे के कारण चेहरे पर आए हुए पानी को रुई की मदद से साफ कर लें. स्प्रे करते समय ध्यान रखें कि आप अपने आंखों के पास स्प्रे ना करें. अगर आप स्प्रे नहीं करना चाहती हैं तो आप नमक के गुनगुने पानी से चेहरे पर भाप भी ले सकती हैं.

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2. थकान से होने वाली पफी आंखों के लिए नमक है मददगार

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अक्सर आपको औफिस की थकान और कम नींद आती होगी, जिसके कारण आपकी आंखें सूज जाती होंगी. ऐसे में कईं दवाईयां और मेकअप प्रोडक्टस अपनाते होंगे. पर अब आपके किचन में ही इसका इलाज है. इसके लिए आप बस किचन में जाएं और नमक के डब्बे में से थोड़ा सा नमक निकाल कर उसे गुनगुने पानी में डालकर आंखों को सेक लें.

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3. बेस्ट स्क्रबर है नमक

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आपको यह नही पता होगा कि नमक एक नेचुरल स्क्रबर की तरह भी काम करता है. एक चम्मच नमक में दो चार बूंद पानी की डालकर, अपने हल्के हाथों से चेहरे पर मसाज करें. ऐसा करने से आपके चेहरे पर होने वाली डेड स्किन भी साफ हो जाएगी. इतना ही नहीं ऐसा करने से आपकी स्किन सौफ्ट और क्लीन हो जाएगी.

4. आपकी स्किन को देगा रेस्ट और फ्रैशनेस नमक

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अक्सर औफिस से घर आकर आराम करने से भी हमारी थकान दूर नहीं होती. जिसका सारा असर हमारे फेस पर पड़ता है. हम बुझे-बुझे से लगने लगते हैं. इसके लिए आप आधा बाल्टी पानी गुनगुना कर लें, जब पानी गुनगुना हो जाए तो उसमें आठ से दस चम्मच नमक डाल लें. पानी गर्म होने के कारण नमक उसमें आसानी से घुल जाएगा. इसके बाद आप अपने पैरों को गुनगुने पानी की बाल्टी में डाल दें. ऐसा करने से आपकी थकान दूर हो जाएगी और आपको ताजगी का एहसास होगा. इसी के साथ नमक में एंटी बैटीरियल और एंटी फंगल गुण होते है, जिससे पैरों के संक्रमण से जुड़ी कोई भी समस्या भी दूर हो जाती है.

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गरीब की ताकत है पढ़ाई

हमारे देश में ही नहीं, लगभग सभी देशों में गरीब, मोहताज, कमजोर पीढ़ी दर पीढ़ी जुल्मों के शिकार रहे हैं. इसकी असली वजह दमदारों के हथियार नहीं, गरीबों की शिक्षा और मुंह खोलने की कमजोरी रही है. धर्म के नाम पर शिक्षा को कुछ की बपौती माना गया है और उसी धर्म देश के सहारे राजाओं ने अपनी जनता को पढ़ने-लिखने नहीं दिया. समाज का वही अंग पीढ़ी दर पीढ़ी राज करता रहा जो पढ़-लिख और बोल सका.

2019 के चुनाव में भी यही दिख रहा है. पहले बोलने या कहने के साधन बस समाचारपत्र या टीवी थे. समाचारपत्र धन्ना सेठों के हैं और टीवी कुछ साल पहले तक सरकारी था. इन दोनों को गरीबों से कोई मतलब नहीं था. अब डिजिटल मीडिया आ गया है, पर स्मार्टफोन, डेटा, वीडियो बनाना, अपलोड करना खासा तकनीकी काम है जिस में पैसा और समय दोनों लगते हैं जो गरीबों के पास नहीं हैं.

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गरीबों की आवाज 2019 के चुनावों में भी दब कर रह गई है. विपक्ष ने तो कोशिश की है पर सरकार ने लगातार राष्ट्रवाद, देश की सुरक्षा, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर जनता को बहकाने की कोशिश की है ताकि गरीबों की आवाज को जगह ही न मिले. सरकार से डरे हुए या सरकारी पक्ष के जातिवादी रुख से सहमत मीडिया के सभी अंग कमोबेश एक ही बात कह रहे हैं, गरीब को गरीब, अनजान, बीमार चुप रहने दो.

चूंकि सोशल, इलैक्ट्रोनिक व प्रिंट मीडिया पढ़ेलिखों के हाथों में है, उन्हीं का शोर सुनाई दे रहा है. आरक्षण पाने के बाद भी सदियों तक जुल्म सहने वाले भी शिक्षित बनने के बाद भी आज भी मुंह खोलने से डरते हैं कि कहीं वह शिक्षित ऊंचा समाज जिस का वे हिस्सा बनने की कोशिश कर रहे हैं उन का तिरस्कार न कर दे. कन्हैया कुमार जैसे अपवाद हैं. उन को भीड़ मिल रही है पर उन जैसे और जमा नहीं हो रहे. 15-20 साल बाद कन्हैया कुमार क्या होंगे कोई नहीं कह सकता क्योंकि रामविलास पासवान जैसों को देख कर आज कोई नहीं कह सकता कि उन के पुरखों के साथ क्या हुआ. रामविलास पासवान, प्रकाश अंबेडकर, मायावती, मीरा कुमार जैसे पढ़लिख कर व पैसा पा कर अपने समाज से कट गए हैं.

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2019 के चुनावों के दौरान राहुल गांधी गरीबों की बात करते नजर आए पर वोट की खातिर या दिल से, कहा नहीं जा सकता. पिछड़ों, दलितों ने उन की बातों पर अपनी हामी की मोहर लगाई, दिख नहीं रहा. दलितों से जो व्यवहार पिछले 5 सालों में हुआ उस पर दलितों की चुप्पी साफ करती है कि यह समाज अभी गरीबी के दलदल से नहीं निकल पाएगा. हां, सरकार बदलवा दे यह ताकत आज उस में है पर सिर्फ उस से उस का कल नहीं सुधरेगा. उसे तो पढ़ना और कहना दोनों सीखना होगा. आज ही सीखना होगा. पैन ही डंडे का जवाब है.

बगावत

महीने भर का राशन चुकने को हुआ तो सोचा, आज ही बाजार हो आऊं. आज और कहीं जाने का कार्यक्रम नहीं था और कोई खास काम भी करने के लिए नहीं था. यही सोच कर पर्स उठाया, पैसे रखे और बाजार चल दी.

दुकानदार को मैं अपने सौदे की सूची लिखवा रही थी कि अचानक पीछे से कंधे पर स्पर्श और आंखों पर हाथ रखने के साथसाथ ‘निंदी’ के उच्चारण ने उलझन में डाल दिया. यह तो मेरा मायके का घर का नाम है. कोई अपने शहर का निकट संबंधी ही होना चाहिए जो मेरे घर के नाम से वाकिफ हो. आंखों पर रखे हाथ को टटोल कर पहचानने में असमर्थ रही. आखिर उसे हटाते हुए बोली, ‘‘कौन?’’

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‘‘देख ले, नहीं पहचान पाई न.’’

‘‘उषा तू…तू यहां कैसे…’’ अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था, कालिज में साथ पढ़ी अपनी प्यारी सखी उषा को सामने खड़ी देख कर. मुखमंडल पर खेलती वही चिरपरिचित मुसकान, सलवारकमीज पहने, 2 चोटियों में उषा आज भी कालिज की छात्रा प्रतीत हो रही थी.

‘‘क्यों, बड़ी हैरानी हो रही है न मुझे यहां देख कर? थोड़ा सब्र कर, अभी सब कुछ बता दूंगी,’’ उषा आदतन खिलखिलाई.

‘‘किस के साथ आई?’’ मैं ने कुतूहलवश पूछा.

‘‘उन के साथ और किस के साथ आऊंगी,’’ शरारत भरे अंदाज में उषा बोली.

‘‘तू ने शादी कब कर ली? मुझे तो पता ही नहीं लगा. न निमंत्रणपत्र मिला, न किसी ने चिट्ठी में ही कुछ लिखा,’’ मैं ने शिकायत की.

‘‘सब अचानक हो गया न इसलिए तुझे भी चिट्ठी नहीं डाल पाई.’’

‘‘अच्छा, जीजाजी क्या करते हैं?’’ मेरी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी.

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‘‘वह टेलीफोन विभाग में आपरेटर हैं,’’ उषा ने संक्षिप्त उत्तर दिया.

‘‘क्या? टेलीफोन आपरेटर… तू डाक्टर और वह…’’ शब्द मेरे हलक में ही अटक गए.

‘‘अचंभा लग रहा है न?’’ उषा के मुख पर मधुर मुसकान थिरक रही थी.

‘‘लेकिन यह सब कैसे हो गया? तुझे अपने कैरियर की फिक्र नहीं रही?’’

‘‘बस कर. सबकुछ इसी राशन की दुकान पर ही पूछ लेगी क्या? चल, कहीं पास के रेस्तरां में कुछ देर बैठते हैं. वहीं आराम से सारी कहानी सुनाऊंगी.’’

‘‘रेस्तरां क्यों? घर पर ही चल न. और हां, जीजाजी कहां हैं?’’

‘‘वह विभाग के किसी कार्य के सिलसिले में कार्यालय गए हैं. उन्हीं के कार्य के लिए हम लोग यहां आए हैं. अचानक तेरे घर आ कर तुझे हैरान करना चाहते थे, पर तू यहीं मिल गई. हम लोग नीलम होटल में ठहरे हैं, कल ही आए हैं. 2 दिन रुकेंगे. मैं किसी काम से इस ओर आ रही थी कि अचानक तुझे देखा तो तेरा पीछा करती यहां आ गई,’’ उषा चहक रही थी.

कितनी निश्छल हंसी है इस की. पर एक टेलीफोन आपरेटर के साथ शादी इस ने किस आधार पर की, यह मेरी समझ से बाहर की बात थी.

‘‘हां, तेरे घर तो हम कल इकट्ठे आएंगे. अभी तो चल, किसी रेस्तरां में बैठते हैं,’’ लगभग मुझे पकड़ कर ले जाने सी उतावली वह दिखा रही थी.

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दुकानदार को सारा सामान पैक करने के लिए कह कर मैं ने बता दिया कि घंटे भर बाद आ कर ले जाऊंगी. उषा को ले कर निकट के ही राज रेस्तरां में पहुंची. समोसे और कौफी का आदेश दे कर उषा की ओर मुखातिब होते हुए मैं ने कहा, ‘‘हां, अब बता शादी वाली बात,’’ मेरी उत्सुकता बढ़ चली थी.

‘‘इस के लिए तो पूरा अतीत दोहराना पड़ेगा क्योंकि इस शादी का उस से बहुत गहरा संबंध है,’’ कुछ गंभीर हो कर उषा बोली.

‘‘अब यह दार्शनिकता छोड़, जल्दी बता न, डाक्टर हो कर टेलीफोन आपरेटर के चक्कर में कैसे पड़ गई?’’

3 भाइयों की अकेली बहन होने के कारण हम तो यही सोचते थे कि उषा मांबाप की लाड़ली व भाइयों की चहेती होगी, लेकिन इस के दूसरे पहलू से हम अनजान थे.

उषा ने अपनी कहानी आरंभ की.

बचपन के चुनिंदा वर्ष तो लाड़प्यार में कट गए थे लेकिन किशोरावस्था के साथसाथ भाइयों की तानाकशी, उपेक्षा, डांटफटकार भी वह पहचानने लगी थी. चूंकि पिताजी उसे बेटों से अधिक लाड़ करते थे अत: भाई उस से मन ही मन चिढ़ने लगे थे. पिता द्वारा फटकारे जाने पर वे अपने कोप का शिकार उषा को बनाते.

‘‘मां और पिताजी ने इसे हद से ज्यादा सिर पर चढ़ा रखा है. जो फरमाइशें करती है, आननफानन में पूरी हो जाती हैं,’’ मंझला भाई गुबार निकालता.

‘‘क्यों न हों, आखिर 3-3 मुस्टंडों की अकेली छोटी बहन जो ठहरी. मांबाप का वही सहारा बनेगी. उन्हें कमा कर खिलाएगी, हम तो ठहरे नालायक, तभी तो हर घड़ी डांटफटकार ही मिलती है,’’ बड़ा भाई अपनी खीज व आक्रोश प्रकट करता.

कुशाग्र बुद्धि की होने के कारण उषा पढ़ाई में हर बार अव्वल आती. चूंकि सभी भाई औसत ही थे, अत: हीनभावना के वशीभूत हो कर उस की सफलता पर ईर्ष्या करते, व्यंग्य के तीर छोड़ते.

‘‘उषा, सच बता, किस की नकल की थी?’’

‘‘जरूर इस की अध्यापिका ने उत्तर बताए होंगे. उस के लिए यह हमेशा फूल, गजरे जो ले कर जाती है.’’

उषा तड़प उठती. मां से शिकायत करती लेकिन मांबेटों को कुछ न कह पाती, अपने नारी सुलभ व्यवहार के इस अंश को वह नकार नहीं सकती थी कि उस का आकर्षण बेटी से अधिक बेटों के प्रति था. भले ही वे बेटी के मुकाबले उन्नीस ही हों.

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यौवनावस्था आतेआते वह भली प्रकार समझ चुकी थी कि उस के सभी भाई केवल स्नेह का दिखावा करते हैं. सच्चे दिल से कोई स्नेह नहीं करता, बल्कि वे ईर्ष्या भी करते हैं. हां, अवसर पड़ने पर गिरगिट की तरह रंग बदलना भी वे खूब जानते हैं.

‘‘उषा, मेरी बहन, जरा मेरी पैंट तो इस्तिरी कर दे. मुझे बाहर जाना है. मैं दूसरे काम में व्यस्त हूं,’’ खुशामद करता छोटा भाई कहता.

‘‘उषा, तेरी लिखाई बड़ी सुंदर है. कृपया मेरे ये थोड़े से प्रश्नोत्तर लिख दे न. सिर्फ उस कापी में से देख कर इस में लिखने हैं,’’ कापीकलम थमाते हुए बड़ा कहता.

भाइयों की मीठीमीठी बातों से वह कुछ देर के लिए उन के व्यंग्य, उलाहने, डांट भूल जाती और झटपट उन के कार्य कर देती. अगर कभी नानुकर करती तो मां कहतीं, ‘‘बेटी, ये छोटेमोटे झगड़े तो सभी भाईबहनों में होते हैं. तू उन की अकेली बहन है. इसलिए तुझे चिढ़ाने में उन्हें आनंद आता है.’’

भाइयों में से किसी को भी तकनीकी शिक्षा में दाखिला नहीं मिला था. बड़ा बी.काम. कर के दुकान पर जाने लगा और छोटा बी.ए. में प्रवेश ले कर समय काटने के साथसाथ पढ़ाई की खानापूर्ति करने लगा. इस बीच उषा ने हायर सेकंडरी प्रथम श्रेणी में विशेष योग्यता सहित उत्तीर्ण कर ली. कालिज में उस ने विज्ञान विषय ही लिया क्योंकि उस की महत्त्वाकांक्षा डाक्टर बनने की थी.

‘‘मां, इसे डाक्टर बना कर हमें क्या फायदा होगा? यह तो अपने घर चली जाएगी. बेकार इस की पढ़ाई पर इतना खर्च क्यों करें,’’ बड़े भाई ने अपनी राय दी.

तड़प उठी थी उषा, जैसे किसी बिच्छू ने डंक मार दिया हो. भाई अपनी असफलता की खीज अपनी छोटी बहन पर उतार रहा था. ‘आखिर उसे क्या अधिकार है उस की जिंदगी के फैसलों में हस्तक्षेप करने का? अभी तो मांबाप सहीसलामत हैं तो ये इतना रोब जमा रहे हैं. उन के न होने पर तो…’ सोच कर के ही वह सिहर उठी.

पिताजी ने अकसर उषा का ही पक्ष लिया था. इस बार भी वही हुआ. अगले वर्ष उसे मेडिकल कालिज में दाखिला मिल गया.

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डाक्टरी की पढ़ाई कोई मजाक नहीं. दिनरात किताबों में सिर खपाना पड़ता. एक आशंका भी मन में आ बैठी थी कि अगर कहीं पहले साल में अच्छे अंक नहीं आ सके तो भाइयों को उसे चिढ़ाने, अपनी कुढ़न निकालने और अपनी कुंठित मनोवृत्ति दर्शाने का एक और अवसर मिल जाएगा. वे तो इसी फिराक में रहते थे कि कब उस से थोड़ी सी चूक हो और उन्हें उसे डांटने- फटकारने, रोब जमाने का अवसर प्राप्त हो. अत: अधिकांश वक्त वह अपनी पढ़ाई में ही गुजार देती.

कालिज के प्रांगण के बाहर अमरूद, बेर तथा भुट्टे लिए ठेले वाले खड़े रहते थे. वे जानते थे कि कच्चेपक्के बेर, अमरूद तथा ताजे भुट्टों के लोभ का संवरण करना कालिज के विद्यार्थियों के लिए असंभव नहीं तो कम से कम मुश्किल तो है ही. उन का खयाल बेबुनियाद नहीं था क्योंकि शाम तक लगभग सभी ठेले खाली हो जाते थे.

अपनी सहेलियों के संग भुट्टों का आनंद लेती उषा उस दिन प्रांगण के बाहर गपशप में मशगूल थी. पीरियड खाली था. अत: हंसीमजाक के साथसाथ चहल- कदमी जारी थी. छोटा भाई उसी तरफ से कहीं जा रहा था. पूरा नजारा उस ने देखा. उषा के घर लौटते ही उस पर बरस पड़ा, ‘‘तुम कालिज पढ़ने जाती हो या मटरगश्ती करने?’’

उषा कुछ समझी नहीं. विस्मय से उस की ओर देखते हुए बोली, ‘‘क्यों, क्या हुआ? कैसी मटरगश्ती की मैं ने?’’

तब तक मां भी वहां आ चुकी थीं, ‘‘मां, तुम्हारी लाड़ली तो सहेलियों के साथ कालिज में भी पिकनिक मनाती है. मैं ने आज स्वयं देखा है इन सब को सड़कों पर मटरगश्ती करते हुए.’’

‘‘मां, इन से कहो, चुप हो जाएं वरना…’’ क्रोध से चीख पड़ी उषा, ‘‘हर समय मुझ पर झूठी तोहमत लगाते रहते हैं. शर्म नहीं आती इन को…पता नहीं क्यों मुझ से इतनी खार खाते हैं…’’ कहतेकहते उषा रो पड़ी.

‘‘चुप करो. क्या तमाशा बना रखा है. पता नहीं कब तुम लोगों को समझ आएगी? इतने बड़े हो गए हो पर लड़ते बच्चों की तरह हो. और तू भी तो उषा, छोटीछोटी बातों पर रोने लगती है,’’ मां खीज रही थीं.

तभी पिताजी ने घर में प्रवेश किया. भाई झट से अंदर खिसक गया. उषा की रोनी सूरत और पत्नी की क्रोधित मुखमुद्रा देख उन्हें आभास हो गया कि भाईबहन में खींचातानी हुई है. अकसर ऐसे मौकों पर उषा रो देती थी. फिर दोचार दिन उस भाई से कटीकटी रहती, बोलचाल बंद रहती. फिर धीरेधीरे सब सामान्य दिखने लगता, लेकिन अंदर ही अंदर उसे अपने तीनों भाइयों से स्नेह होने के बावजूद चिढ़ थी. उन्होंने उसे स्नेह के स्थान पर सदा व्यंग्य, रोब, डांटडपट और जलीकटी बातें ही सुनाई थीं. शायद पिताजी उस का पक्ष ले कर बेटों को नालायक की पदवी भी दे चुके थे. इस के प्रतिक्रियास्वरूप वे उषा को ही आड़े हाथों लेते थे.

‘‘क्या हुआ हमारी बेटी को? जरूर किसी नालायक से झगड़ा हुआ है,’’ पिताजी ने लाड़ दिखाना चाहा.

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‘‘कुछ नहीं. आप बीच में मत बोलिए. मैं जो हूं देखने के लिए. बच्चों के झगड़ों में आप क्यों दिलचस्पी लेते हैं?’’ मां बात को बीच में ही खत्म करते हुए बोलीं.

असहाय सी उषा मां का मुंह देखती रह गई. मां भी तो आखिर बेटों का ही पक्ष लेंगी न. जब कभी भी पिताजी ने उस का पक्ष लिया, बेटों को डांटाफटकारा तो मां को अच्छा नहीं लगा. उस समय तो वह कुछ नहीं कहतीं लेकिन मन के भाव तो चेहरे पर आ ही जाते हैं. बाद में मौका मिलने पर टोकतीं, ‘‘क्यों अपने बड़े भाइयों से उलझती रहती है?’’

उषा पूछती, ‘‘मां, मैं तो सदा उन का आदर करती हूं, उन के भले की कामना करती हूं लेकिन वे ही हमेशा मेरे पीछे पड़े रहते हैं. अगर मैं पढ़ाई में अच्छी हूं तो उन्हें ईर्ष्या क्यों होती है?’’

मां कहतीं, ‘‘चुप कर, ज्यादा नहीं बोलते बड़ों के सामने.’’

दोनों बड़े भाइयों का?स्नातक होने के बाद विवाह कर दिया गया. दोनों बहुओं ने भी घर के हालात देखे, समझे और अपना आधिपत्य जमा लिया. उषा तो भाइयों की ओर से पहले ही उपेक्षित थी. भाभियों के आने के बाद उन की ओर से भी वार होने लगे. इस बीच हृदय के जबरदस्त आघात से पिताजी चल बसे. घर का पूरा नियंत्रण बहुओं के हाथ में आ गया. मां तो पहले से ही बेटों की हमदर्द थीं, अब तो उन की गुलामी तक करने को तैयार थीं. पूरी तरह से बहूबेटों के अधीन हो गईं.

उषा का डाक्टरी का अंतिम वर्ष था. घर के उबाऊ व तनावग्रस्त माहौल से जितनी देर वह दूर रहती, उसे राहत का एहसास होता. अत: अधिक से अधिक वक्त वह पुस्तकालय में, सहेली के घर या कैंटीन में गुजार देती. सच्चे प्रेम, विश्वास, उचित मार्गदर्शन पर ही तो जिंदगी की नींव टिकी है, चाहे वह मांबाप, भाईबहन, पतिपत्नी किसी से भी प्राप्त हो. लेकिन उषा को बीते जीवन में किसी से कुछ भी प्राप्त नहीं हो रहा था. प्रेम, स्नेह के लिए वह तरस उठती थी. पिताजी से जो स्नेह, प्यार मिल रहा था वह भी अब छिन चुका था.

मेडिकल कालिज की कैंटीन शहर भर में दहीबड़े के लिए प्रसिद्ध थी. अचानक जरूरत पड़ने पर या मेहमानों के लिए विशेषतौर पर लोग वहां से दहीबड़े खरीदने आते थे. बाहर के लोगों के लिए भी कैंटीन में आना मना नहीं था. स्वयंसेवा की व्यवस्था थी. लोगों को स्वयं अपना नाश्ता, चाय, कौफी वगैरह अंदर के काउंटर से उठा कर लाना होता था. कालिज के साथ ही सरकारी अस्पताल होता था. रोगियों के संबंधी भी अकसर कालिज की कैंटीन से चायनाश्ता खरीद कर ले जाते थे.

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कैंटीन में अकेली बैठी उषा चाय पी रही थी. सामने की सीट खाली थी. अचानक एक नौजवान चाय का कप ले कर वहां आया, ‘‘मैं यहां बैठ सकता हूं?’’ उस की बातों व व्यवहार से शालीनता टपक रही थी.

‘‘हां, हां, क्यों नहीं,’’ कह कर उषा ने अपनी कुरसी थोड़ी पीछे खिसका ली.

‘‘मेरी मां अस्पताल में दाखिल हैं,’’ बातचीत शुरू करने के लहजे में वह नौजवान बोला.

‘‘अच्छा, क्या हुआ उन को? किस वार्ड में हैं?’’ सहज ही पूछ बैठी थी उषा.

‘‘5 नंबर में हैं. गुरदे में पथरी हो गई थी. आपरेशन हुआ है,’’ धीरे से युवक बोला.

शाम को घर लौटने से पहले उषा अपनी सहेली के साथ वार्ड नंबर 5 में गई तो वहां वही युवक अपनी मां के सिरहाने बैठा हुआ था. उषा को देखते ही उठ खड़ा हुआ, ‘‘आइए, डाक्टर साहब.’’

‘‘अभी तो मुझे डाक्टर बनने में 6 महीने बाकी हैं,’’ कहते हुए उषा के चेहरे पर मुसकान तैर गई.

उस युवक की मां ने पूछा, ‘‘शैलेंद्र, कौन है यह?’’

‘‘मेरा नाम उषा है. आज कैंटीन में इन से मुलाकात हुई तो आप की तबीयत पूछने आ गई. कैसी हैं आप?’’ शैलेंद्र को असमंजस में पड़ा देख कर उषा ने ही जवाब दे दिया.

‘‘अच्छी हूं, बेटी. तू तो डाक्टर है, सब जानती होगी. यह देखना जरा,’’ कहते हुए एक्सरे व अन्य रिपोर्टें शैलेंद्र की मां ने उषा के हाथ में दे दीं. शैलेंद्र हैरान सा मां को देखता रह गया. एक नितांत अनजान व्यक्ति पर इतना विश्वास?

बड़े ध्यान से उषा ने सारे कागजात, एक्सरे देखे और बोली, ‘‘अब आप बिलकुल ठीक हो जाएंगी. आप की सेहत का सुधार संतोषजनक रूप से हो रहा है.’’

मां के चेहरे पर तृप्ति के भाव आ गए. अगले सप्ताह उषा की शैलेंद्र के साथ अस्पताल में कई बार मुलाकात हुई. जब भी मां की तबीयत देखने वह गई, न जाने क्यों उन की बातों, व्यवहार से उसे एक सुकून सा मिलता था. शैलेंद्र के नम्र व्यवहार का भी अपना आकर्षण था.

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शैलेंद्र टेलीफोन विभाग में आपरेटर था. मां की अस्पताल से छुट्टी होने के बाद भी वह अकसर कैंटीन आने लगा और उषा से मुलाकातें होती रहीं. दोनों ही एकदूसरे की ओर आकर्षित होते चले गए और आखिर यह आकर्षण प्रेम में बदल गया. अपने घर के सदस्यों द्वारा उपेक्षित, प्रेम, स्नेह को तरस रही, अपनेपन को लालायित उषा शैलेंद्र के प्रेम को किसी कीमत पर खोना नहीं चाहती थी. वह सोचती, मां और भाई तो इस रिश्ते के लिए कदापि तैयार नहीं होंगे…अब वह क्या करे?

आखिर बात भाइयों तक पहुंच ही गई.

‘‘डाक्टर हो कर उस टुटपुंजिए टेलीफोन आपरेटर से शादी करेगी? तेरा दिमाग तो नहीं फिर गया?’’ सभी भाइयों के साथसाथ मां ने भी लताड़ा था.

‘‘हां, मुझे उस में इनसानियत नजर आई है. केवल पैसा ही सबकुछ नहीं होता,’’ उषा ने हिम्मत कर के जवाब दिया.

‘‘देख लिया अपनी लाड़ली बहन को? तुम्हें ही इनसानियत सिखा रही है.’’ भाभियों ने भी तीर छोड़ने में कोई कसर नहीं रखी.

‘‘अगर तू ने उस के साथ शादी की तो तेरे साथ हमारा संबंध हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा. अच्छी तरह सोच ले,’’ भाइयों ने चेतावनी दी.

जिंदगी में पहली बार किसी का सच्चा प्रेम, विश्वास, सहानुभूति प्राप्त हुई थी, उषा उसे खोना नहीं चाहती थी. पूरी वस्तुस्थिति उस ने शैलेंद्र के सामने स्पष्ट कर दी.

‘‘उषा, यह ठीक है कि मैं संपन्न परिवार से नहीं हूं. मेरी नौकरी भी मामूली सी है, आय भी अधिक नहीं. तुम मेरे मुकाबले काफी ऊंची हो. पद में भी, संपन्नता में भी. लेकिन इतना विश्वास दिलाता हूं कि मेरा प्रेम, विश्वास बहुत ऊंचा है. इस में तुम्हें कभी कंजूसी, धोखा, फरेब नहीं मिलेगा. जो तुम्हारी मरजी हो, चुन लो. तुम पद, प्रतिष्ठा, धन को अधिक महत्त्व देती हो या इनसानियत, सच्चे प्रेम, स्नेह, विश्वास को. यह निर्णय लेने का तुम्हें अधिकार है,’’ शैलेंद्र बोला.

‘‘और फिर परीक्षाएं होने के बाद हम ने कचहरी में जा कर शादी कर ली. मेरी मां, भाई, भाभी कोई भी शादी में हाजिर नहीं हुए. हां, शैलेंद्र के घर से काफी सदस्य शामिल हुए. तुझ से सच कहूं?’’ मेरी आंखों में झांकते हुए उषा आगे बोली, ‘‘मुझे अपने निर्णय पर गर्व है. सच मानो, मुझे अपने पति से इतना प्रेम, स्नेह, विश्वास प्राप्त हुआ है, जिस की मैं ने कल्पना भी नहीं की थी. अपनी मां, भाई, भाभियों से स्नेह, प्यार के लिए तरस रही मुझ बदनसीब को पति व उस के परिवार से इतना प्रेम स्नेह मिला है कि मैं अपना अतीत भूल सी गई हूं.

‘‘अगर मैं किसी बड़े डाक्टर या बड़े व्यवसायी से शादी करती तो धनदौलत व अपार वैभव पाने के साथसाथ मुझे पति का इतना प्रेम, स्नेह मिल पाता, मुझे इस में संदेह है. धनदौलत का तो मांबाप के घर में भी अभाव नहीं था लेकिन प्रेम व स्नेह से मैं वंचित रह गई थी.

‘‘धनदौलत की तुलना में प्रेम का स्थान ऊंचा है. व्यक्ति रूखीसूखी खा कर संतोष से रह सकता है, बशर्ते उसे अपनों का स्नेह, विश्वास, आत्मीयता, प्राप्त हो. लेकिन अत्यधिक संपन्नता और वैभव के बीच अगर प्रेम, सहिष्णुता, आपसी विश्वास न हो तो जिंदगी बोझिल हो जाती है. मैं बहुत खुश हूं, मुझे जीवन की असली मंजिल मिल गई है.

‘‘अब मैं अपना दवाखाना खोल लूंगी. पति के साथ मेरी आय मिल जाने से हमें आर्थिक तंगी नहीं हो पाएगी.’’

‘‘उषा, तू तो बड़ी साहसी निकली. हम तो यही समझते रहे कि 3-3 भाइयों की अकेली बहन कितनी लाड़ली व सुखी होगी, लेकिन तू ने तो अपनी व्यथा का भान ही नहीं होने दिया,’’ सारी कहानी सुन कर मैं ने कहा.

‘‘अपने दुखडे़ किसी के आगे रोने से क्या लाभ? फिर वैसे भी मेरा मेडिकल में दाखिला होने के बाद तुम से मुलाकातें भी तो कम हो गई थीं.’’

मुझे याद आया, उषा मेडिकल कालिज चली गई तो महीने में ही मुलाकात हो पाती थी. विज्ञान में स्नातक होने के पश्चात मेरी शादी हो गई और मैं यहां आ गई. कभीकभार उषा की चिट्ठी आ जाती थी, लेकिन उस ने कभी अपनी व्यथा के बारे में एक शब्द भी नहीं लिखा.

मायके जाने पर जब भी मैं उस से मिली, तब मैं यह अंदाज नहीं लगा सकती थी कि उषा अपने हृदय में तनावों, मानसिक पीड़ा का समंदर समेटे हुए है.

दूसरे दिन आने का वादा कर के वह चली गई. मैं बड़ी बेसब्री से दूसरे दिन का इंतजार कर रही थी ताकि उस व्यक्ति से मिलने का अवसर मिले जिस ने अपने साधारण से पद के बावजूद अपनी शख्सियत, अपने व्यवहार, मृदुस्वभाव व इनसानियत के गुणों के चुंबकीय आकर्षण से एक डाक्टर को जीवन भर के लिए अपनी जिंदगी की गांठ से बांध लिया था.

 कारपोरेट जगत में बढ़ती महिला शक्ति

संसद में 33 प्रतिशत महिला आरक्षण का मामला बेशक अब तक अधर में लटका हुआ हो, लेकिन महिलाओं की बढ़ती प्रतिभा के चलते अन्य क्षेत्रों में इस एकतिहाई आरक्षण की कवायद जारी है. खासकर कारपोरेट जगत, जहां महिलाओं ने अपनी काबिलीयत को बतौर एक शक्ति सिद्ध किया है और इस को पहचान कर ही कारपोरेट जगत महिलाओं के लिए बढ़त बनाने की कवायद में लगा हुआ है. यह राजनीति की तरह कथनी और करनी का अंतर नहीं बल्कि महिलाओं की प्रतिभाओं को भुनाने की कोशिश है.

अमेरिकन एक्सप्रेस कहता है कि जौब इंटरव्यू में कम से कम एकतिहाई संख्या महिलाओं की होनी चाहिए जबकि भारती समूह इंटरव्यू में 25 से 30 प्रतिशत महिलाआें को शामिल करता है. इसी तरह बैक्सटर एशिया पैसिफिक इंक की एशिया प्रशांत क्षेत्र के लिए योजना बिल्ंिडग टैलेंट ऐज के अंतर्गत कंपनी ने मैनेजमेंट व महत्त्वपूर्ण पदों पर 2010 तक पुरुष व महिलाकर्मियों का 50:50 का लक्ष्य बनाया था, जिसे 2008 में ही पूरा किया जा चुका है.

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बैक्सटर इंटरनेशनल इंक, एशिया प्रशांत क्षेत्र के अध्यक्ष एवं कारपोरेट वाइस प्रेसिडेंट जेराल्ड लेमा का कहना है, ‘‘पुरुष व महिलाओं को बराबर संख्या में शामिल करना मात्र सामाजिक मुद्दा नहीं है, बल्कि यह सभी संगठनों के सामने खड़ी एक अहम चुनौती का हल है. चुनौती यह कि किस आधार पर यह अनुपात तैयार किया जाए? और इस का एकमात्र हल है प्रतिभा. गहन अध्ययन और हमारा खुद का अनुभव यह कहता है कि जो संगठन बेहतर प्रतिभाओं को स्वीकार करता है, वह विकसित होता है, आगे बढ़ता है.’’

बात चाहे स्थिरता की हो या तुरंत सीखने की, किसी भी माहौल में ढल जाने की हो या आपसी रवैए की, संप्रेषण की हो या अभिव्यक्ति की, महिलाओं में ये सभी गुण उन्हें कारपोरेट जगत की ऊंची सीढि़यां चढ़ने के काबिल बनाते हैं. यही कारण है कि महिलाओं ने कारपोरेट जगत में अपनी पैठ बना ली है. फिर वह चाहे पेप्सी की सीईओ इंदिरा नुई हो या जैव प्रौद्योगिकी की मशहूर उद्यमी किरण मजूमदार, जो 10 हजार रुपए की पूंजी से व्यवसाय शुरू कर भारत की सब से अमीर महिला बनीं. 2004 में  किरण मजूमदार की कुल संपदा करीब 2,100 करोड़ रुपए आंकी गई थी. किरण मजूमदार का कहना है, ‘‘मेरा मानना है कि महिलाओं में संवेदनशीलता, धीरज, बहुमुखी प्रतिभा और एक आंतरिक शक्ति होती है जो उन की प्रगति में मददगार साबित होती है.’’

कारपोरेट क्षेत्र में महिला शक्ति के मद्देनजर ही बड़े नाम वाली कंपनियों ने महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देना शुरू किया है. पैट्रिक सी डनिकैन जूनियर, चेयरमैन व मैनेजिंग डायरेक्टर, गिब्सन पीसी कहते हैं, ‘‘महिला सशक्ति- करण ने हमें बहुत फायदा पहुंचाया है. हमारी महिला अटार्नी निरंतर अपने पेशेवर कौशल, नेतृत्व क्षमता व बिजनेस नेटवर्क को बढ़ाती हैं. इस सब से हमारे मुवक्किलों को फायदा पहुंचता है और फर्म का आधार भी पुख्ता होता है.’’

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इसी तरह सीएचएचएम हिल का कंस्ट्रकिंटग पाथवेज फार वूमेन थू्र इन्क्लूजन एक ऐसा मौडल है, जो महिला कर्मचारियों को तरजीह देता है कि वे बिजनेस में कामयाबी हासिल करें. सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की बड़ी कंपनी आईबीएम जिस के भारत में 53 हजार कर्मचारी हैं, की वर्क फोर्स में 26 प्रतिशत महिलाएं हैं.

महिलाओं की इसी क्षमता को देखते हुए विभिन्न कारोबारी संगठन आजकल अपने मिडिल व सीनियर मैनेजमेंट में महिला उम्मीदवारों को स्थान दे रहे हैं. माइक्रोसौफ्ट, बैक्सटर, सीएचएम, गिब्सन, भारती एंटरप्राइजेज, अमेरिकन एक्सप्रेस तथा वाल मार्ट आदि ऐसी कुछ कंपनियां हैं, जो महिलाओं की भरती के लिए कई नीतियां इस्तेमाल कर रही हैं.

आईबीएम इंडिया डायवर्सिटी की प्रतिमा वी शेट्टी कहती हैं,  ‘‘आईबीएम की एक नीति है जिस के तहत हम अपनी भरती एजेंसी को योग्य महिला पेशेवर ढूंढ़ कर लाने पर विशेष इंसेंटिव देते हैं. हम आल वूमेन भरती कैंप आयोजित करते हैं.’’

माइक्रोसौफ्ट कंपनी उच्च पदों के लिए महिला व अल्पसंख्यक वर्ग में से काबिल उम्मीदवारों का चुनाव करती है. भारती समूह के एचआर ग्रुप डायरेक्टर इंदर वालिया कहते हैं, ‘‘हम लगातार अपनी कंपनी में महिलाओं की संख्या में इजाफा कर रहे हैं. मानव संसाधन विभाग में हम वरिष्ठ व मध्यम स्तर के पदों पर महिलाओं की भरती पर जोर देते हैं क्योंकि ऐसी प्रतिभाओं की बहुतायत है.’’

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महिलाएं कंपनियों की प्रगति में अच्छा योगदान दे रही हैं. जो कंपनियां अपने यहां महिलाओं की भरती करती हैं, उन्हें भी विशेष सम्मान की नजरों से देखा जाता है. कैटलिस्ट एक अग्रणी संगठन है, जो कारोबार जगत के साथ विश्व स्तर पर काम करता है. यह दुनिया भर में महिलाओं एवं कारोबार दोनों की एकसाथ तरक्की के लिए प्रतिबद्ध है. यह हर साल कारपोरेट जगत की उन कंपनियों को पुरस्कृत करता है जो महिलाओं को आगे बढ़ाती हैं.

कैटलिस्ट की अध्यक्ष व सीईओ इलेन एच लैंग कहती हैं, ‘‘चाहे आप न्यूयार्क को देखें या एशिया प्रशांत को, इंजीनियरिंग से लेकर फार्मा तक महिलाओं को शामिल करने के बाद कंपनियों ने उपलब्धियां हासिल की हैं.

भारती एंटरप्राइजेज और अमेरिकन एक्सप्रेस ने अपनी भरती एजेंसियों को यह निर्देश दिया हुआ है कि इंटरव्यू के वक्त महिलाओं के एक तय प्रतिशत को भी आमंत्रित किया जाए जबकि वाल मार्ट ने अपनी भरती एजेंसी को निर्देश दे रखा है कि एचआर व फाइनेंस में कुछ पदों पर केवल महिलाओं की ही भरती की जाए.

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महिलाओं को मिलती इस बढ़त पर भारती समूह के एचआर ग्रुप डायरेक्टर इंदर वालिया कहते हैं, ‘‘हम लगातार अपनी कंपनी में महिलाओं की संख्या में इजाफा कर रहे हैं. मानव संसाधन विभाग में हम वरिष्ठ व मध्यम स्तर के पदों पर महिलाओं की भरती पर जोर देते हैं क्योंकि ऐसी प्रतिभाओं की बहुतायत है.’’

500 महिला सीईओ में से एक और क्राफ्ट फूड्स इंक की चेयरमैन व सीईओ इरीन रोजनफील्ड  कहती हैं, ‘‘उपभोक्ता कारोबार के तौर पर यह जरूरी है कि हमारी वर्कफोर्स और खासकर हमारे नेताओं में हमारे ग्राहकों की विविधता झलके. क्राफ्ट फूड्स उन कैटलिस्ट अवार्ड विजेताओं की सराहना करता है जिन्होंने यह दर्शाया कि विविधता बढ़ाने से कारोबार में विशेष लाभ हासिल किए जा सकते हैं.’’

कुछ साल पहले आई मधुर भंडारकर की फिल्म कारपोरेट में भी एक महिला (बिपासा बसु) कारपोरेट को अकेले पुरुषों से लोहा लेते हुए दिखाया गया था. इस तरह यह महिलाएं पारिवारिक दायित्वों को निभाने के साथसाथ कारपोरेट जगत में भी अपनी बढ़त बना रही हैं. यह बढ़त उन के उत्कृष्ट कार्यों और उत्तरदायित्वों को बेहतरीन तरीके से सफलतापूर्वक निभा पाने के कारण ही बन पाई है, जिस की जरूरत इस समय हर कारपोरेट ब्रांड को महसूस हो रही है.

स्कीइंग का लेना है भारत में मजा तो जरूर जाएं ‘औली’

उत्तराखंड में स्कीइंग के लिए पूरे वर्ल्ड में फेमस खूबसूरत पर्यटन स्थल औली इस गरमी आपका नया घूमने का स्पौट हो सकता है. यह खूबसूरत जगह समुद्र से 2800मी. ऊपर है. औली ओक धार वाली ढलानों और सब्ज़ शंकुधारी जंगलों के लिए भी फेमस है. औली का इतिहास कई सालों पुराना है.

मान्यताओं के अनुसार, गुरु आदि शंकराचार्य इस पवित्र स्थान पर आए थे. इस जगह को ’बुग्याल’ भी कहा जाता है जिसका स्थानीय भाषा में मतलब है ’घास का मैदान’. ओस की ढलानों पर चलते हुए पर्यटक नंदादेवी, मान पर्वत और कामत पर्वत श्रृंख्ला के अद्भुत नज़ारें देख सकते हैं. यात्री इन ढलानों से गुज़रने पर सेब के बाग और हरे-भरे देवदार के पेड़ भी देख सकते हैं.

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उत्तराखंड के हिमालयी पहाड़ों में स्की के लिए फेमस है औली

उत्तराखंड के हिमालयी पहाड़ों में एक महत्वपूर्ण स्की स्थल औली है, जो समुद्र तल से 2500 से 3050 मीटर की ऊंचाई पर है. शिमला, गुलमर्ग या मनाली की तुलना में औली को लोग स्की डेस्टीनेशन के लिए कम जानते हैं.

ऊंची चोटियों से घिरा है औली

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माणा, कामेट और नंदादेवी जैसी ऊँची चोटियों से औली घिरा हुआ है. लंबी और थकान भरे लंबे सफर को भूलने के लिए औली का 270 डिग्री का दृश्य काफी है. एक बार जब आप स्कीइंग के मजे ले लेने के बाद पहाड़ों की ऊंचाई से ढ़लते सूरज को देखने से आपका पूरा दिन बन .

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सबसे फेमस कुआरी पास ट्रेक की होती है औली से शुरूआत

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कुआरी पास ट्रेक सबसे फेमस ट्रेक है, जो औली से शुरू होता है. स्कीइंग के अलावा कुछ ट्रेक औप्शन भी हैं, जैसे औली – लगभग 7 किमी दूर गोरसन, 6 किमी दूर ताली, 11 किमी दूर कुआरी पास, 12 किमी. दूर खुलारा और 9 कि.मी. दूर तपोवन जहां आप एक दिन में घूम सकते हैं.

पश्चिमी हिमालय में है फ्लावर्स नेशनल पार्क वैली

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अपनी नेचुरल सुंदरता के लिए जाना जाता है, पश्चिमी हिमालय में स्थित फ्लावर्स नेशनल पार्क वैली. भुइंदर घाटी के रूप में जाना जाने वाला यह राष्ट्रीय बगीचा 87.50 वर्ग किमी हिस्से में फैला है. यूनेस्को द्वारा वर्ल्ड हैरीटेज के रूप में पहचानी जाने वाली यह जगह 250 मीटर से 6,750 मीटर की ऊंचाई पर है.

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